उजाले की तलाश
डॉ. सुशील कुमार शर्मा"पेशेंट की तबियत ज़्यादा सीरयस है रेमेडिसेविर चाहिए जल्दी से," डॉक्टर ने मनोज से कहा।
"पर डॉक्टर वो तो मिल नहीं रहें हैं बहुत मारामारी है, बहुत महँगे हैं। मेरे पास इतने पैसे नहीं है," मनोज ने मजबूरी बताई।
"आगे का आप जानो मैंने वस्तुस्थिति बता दी है, "डॉक्टर जाने लगा।
"डॉक्टर क्या रेमेडिसेविर के बाद मरीज़ बच जाएगा, "मनोज ने कड़ा मन किया।
"कोई गारण्टी नहीं है हम सिर्फ़ प्रयास कर सकते हैं, " डॉक्टर ने मनोज को बड़ी गंभीर नज़रों से देखा और चला गया।
मनोज को समझ में नहीं आ रहा था वो क्या करे उसके पास इतने पैसे थे नहीं कि वो रेमेडिसेविर ब्लैक में ख़रीदे और किसी तरह जुगाड़ लगाकर ख़रीद भी लिए तो उसकी माँ के बचने के बहुत कम आसार हैं लेकिन उसने निश्चय किया कि वो रेमेडिसेविर इंजेक्शन ख़रीदेगा चाहे उसे ख़ुद को ही क्यों न बेचना पड़े।
उसी समय उसे अपना दोस्त रहीम आता दिखा किसी मरीज़ को लेकर आया था मनोज को उदास देख कर बोला, "क्यों मित्र क्या बात है कौन बीमार है।"
"माँ," मनोज के बेबसी में आँसू निकल आये।
"क्या बात है कोई दिक़्क़त है?" रहीम ने उसे दिलासा देते हुए पूछा।
"माँ सीरियस है, डॉक्टर कह रहा है रेमेडिसेविर चाहिए कहाँ से लाऊँ?" मनोज ने सुबकते हुए कहा।
"माँ का ब्लड ग्रुप क्या है?" रहीम ने पूछा।
"ओ पॉज़िटिव," मुकेश ने हैरानी से रहीम को देखा।
"चल मेरे साथ तेरी माँ को तुझसे कोई नहीं छीन सकता," रहीम ने मुकेश की बाँह पकड़ी।
"मेरा भी ओ पॉज़िटिव ग्रुप है और मैं कोरोना पॉज़िटिव तीन महीने पहले हुआ था मैं प्लाज़्मा दूँगा माँ को; तेरी माँ मेरी माँ है," रहीम मनोज की बाँह पकड़े डॉक्टर की ओर ले जा रहा था।
आधे घंटे बाद रहीम का प्लाज़्मा मनोज की माँ को चढ़ रहा था, मनोज दूर से कृतज्ञता से रहीम को देख रहा था उसे जिस उजाले की तलाश थी वो मिल गया था।
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