जैसे

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 233, जुलाई द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

तुम्हारा आना
मन के कोने कोने का
ख़ुशी से भर जाना। 
 
उम्र का गुज़रना
जैसे
मुट्ठी से रेत का फिसलना। 
 
तुम्हें पाने की लालसा
जैसे
चाँद को छू लेना। 
 
बचपन के पल जैसे
गुल्लक में
चिल्लर पैसे। 
 
तुम्हारा पास में होना
जैसे
मुँह में संतरे की गोली। 
 
जीवन जीना
किसी खड़े पहाड़ पर
झाड़ियों को पकड़ कर चढ़ना। 
 
तुमसे मिलना
किसी नदीं में ऊँचे 
घाट से कूदना। 
 
तुम्हारा न मिल पाना
सितारों की तमन्ना। 
 
तुम्हारा जाना
जैसे किसी मरते हुए
की साँसें टूटना।

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