दिन भर बोई धूप को

01-07-2021

दिन भर बोई धूप को

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 184, जुलाई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

दिन भर बोई धूप को
चलो समेटें।
 
जीवन एक निबंध सा
लिखते जाओ।
रिश्तों से अनुबंध कर
बिकते जाओ।
मुस्काते मुखड़ा लिए
दर्द पियो तुम।
बड़बोलों की भीड़ में
मौन जियो तुम।
 
चलो आज फिर पेट पर
भूख लपेटें।
 
शहर लुटेरे हो गए
कौन बचाए ?
अधिकारों का शोर अब
कौन मचाए ?
बने सभी अनजान हैं
अपने वाले ?
भरी तिजोरी लाख की
मन पर ताले।
 
ख़ूब उमगती पीर मन
उसे चपेटें।

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