धरती बोल रही है

01-05-2025

धरती बोल रही है

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

बोल रही है धरती अपनी
कोई मुझे बचाओ। 
 
पेड़ों की छाया सूनी है, 
गाँव हुए बेगाने। 
सूख गए हैं ताल-तलैया, 
रिश्ते हैं वीराने। 
जल-जंगल बिन जीवन कैसा? 
प्रश्न यही दुहराओ
 
पक्षी भी अब मौन हुए हैं, 
गीत नहीं अब गाते। 
शहरों ने हरियाली छीनी, 
धुआँ धूप के खाते। 
प्रकृति बनी विकराल समस्या
किस किस को समझाओ। 
 
बीज सहेजें, वृक्ष उगाएँ, 
मन में प्रेम सजाएँ। 
नीर बचाएँ, नदी बचाएँ
मूल प्रकृति लौटाएँ। 
जीवन की जो मूल धरोहर, 
सब मिल वापस लाओ। 

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