तुम—मेरी सबसे अनकही कविता

15-05-2025

तुम—मेरी सबसे अनकही कविता

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


 
(प्रेम कविता) 
 
तुम
न कोई प्रसिद्धि, न कोई मंच, 
पर फिर भी
मेरे भीतर की सबसे पूर्ण कविता। 
तुम्हारी सादगी
किसी छंद की नहीं, 
एक अनुभूति की तरह
हर दिन मेरे भीतर उतरती रही। 
 
मैंने तुम्हें देखा
बिना किसी सजावट के, 
बिना किसी भूमिका के, 
बस एक मुस्कान में लिपटी
वो स्त्री जो
जैसे जीवन को समझती नहीं, 
बल्कि उसे जीती है। 
 
तुम्हारे चलने की धीमी गति में
मुझे अपना भविष्य दिखा—
जहाँ समय ठहर सकता है
अगर तुम साथ चलो। 
 
तुम कोई कवयित्री नहीं, 
लेकिन तुम्हारे मौन में
शब्दों से ज़्यादा अभिव्यक्तियाँ थीं। 
 
एक झिझकती दृष्टि, 
एक संकोच से झुकी पलकों में
प्रेम की भाषा थी
जिसे बस महसूस किया जा सकता था। 
 
मैं तुम्हें चाहता हूँ
तुम्हारे उसी रूप में
जहाँ तुम अपनी हो, 
दुनिया की नहीं। 
न किसी उपमा की ज़रूरत, 
न किसी विशेषण की—
तुम ही पूरी हो, 
मेरे लिए। 
 
क्या तुम मुझे
उस क्षण का अधिकार दोगी
जब प्रेम को कोई नाम न हो, 
सिर्फ़ एक मौन स्वीकृति हो—
कि “हाँ, मैं भी चाहती हूँ?” 
 
मैं नहीं चाहता
कोई उत्तर, कोई वचन—
सिर्फ़ तुम्हारी उपस्थिति
मेरे जीवन की सबसे सुंदर कविता है, 
जो अब तक लिखी नहीं गई, 
पर जिया जा रहा है—
हर दिन, 
तुम्हारे नाम से पहले और बाद में। 

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