अर्जुन से आर्यन तक: आभासी दुनिया का सच

15-09-2025

अर्जुन से आर्यन तक: आभासी दुनिया का सच

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

अर्जुन की ज़िंदगी दो हिस्सों में बँटी हुई थी, एक जो उसके स्मार्टफोन की स्क्रीन पर चमकती थी, और दूसरी जो चार दीवारों के भीतर धूल-धूसरित थी। बाहर की दुनिया उसे एक सफल, ख़ुशहाल और बेफ़िक्र नौजवान मानती थी, जिसकी सोशल मीडिया फ़ीड महँगी छुट्टियों, ब्रांडेड कपड़ों और दोस्तों की हँसती-मुस्कुराती तस्वीरों से भरी रहती थी। पर हक़ीक़त कुछ और ही थी। 

अर्जुन एक छोटे से शहर से आया था और दिल्ली में एक साधारण सी नौकरी करता था। उसके बैंक खाते में हमेशा एक संतुलन बना रहता था जो महीने के आख़िर तक मुश्किल से ही खींच पाता था। उसके माता-पिता का फोन आता तो वह हमेशा यही कहता, “मैं ठीक हूँ, बहुत अच्छा कमा रहा हूँ।” उसकी माँ को लगता कि उसका बेटा बड़े शहर में नाम कमा रहा है, और यही सोचकर वे ख़ुश हो जाते। 

अर्जुन के सोशल मीडिया पर एक नहीं, बल्कि दो प्रोफ़ाइल थे। एक जहाँ वह अपनी असली, साधारण ज़िंदगी की झलकियाँ डालता था, और दूसरा, उसका ‘फैंटेसी’ प्रोफ़ाइल, जहाँ उसने अपना एक नया नाम रखा था—‘आर्यन’। आर्यन की दुनिया ग्लैमर से भरी थी। वह इंटरनेट से चुनी हुई महँगी कारों की तस्वीरें अपनी प्रोफ़ाइल पर डालता, फ़ाइव-सटार होटलों के रेस्तरां में खींची गई तस्वीरों को एडिट करके अपनी शक्ल उसमें जोड़ देता, और दुनिया के दूर-दराज़ के कोनों से ली गई तस्वीरों को अपनी “हाल की छुट्टी” बताकर पोस्ट करता। 

यह सब शुरू हुआ था एक अजीब से असुरक्षा बोध से। कॉलेज के दिनों में उसके दोस्त उसकी साधारण ज़िंदगी का मज़ाक उड़ाते थे। एक दिन किसी ने कह दिया, “तुम कभी भी कुछ बड़ा नहीं कर पाओगे।” यह बात अर्जुन के दिल में घर कर गई। उसे लगा कि दुनिया की नज़रों में सम्मान पाने के लिए उसे कुछ ऐसा बनना पड़ेगा जो वह नहीं था। 

धीरे-धीरे, आर्यन की दुनिया असली लगने लगी। उसे ऑनलाइन ख़ूब लाइक्स और कमेंट्स मिलने लगे। लोग उससे दोस्ती करने की कोशिश करते, उससे उसकी “सफल ज़िंदगी” के बारे में पूछते। 

आर्यन के प्रोफ़ाइल पर दोस्तों की एक बड़ी लिस्ट थी, जो उसे एक सफल और प्रभावशाली व्यक्ति मानते थे। पर अर्जुन की असल ज़िंदगी में कोई दोस्त नहीं था। काम के बाद वह सीधे अपने छोटे से कमरे में आता, और रात-रात भर अपनी फेक दुनिया को और भी आकर्षक बनाने में लगा रहता। 

यह झूठ का जाल धीरे-धीरे कसता जा रहा था। एक दिन उसके एक ऑनलाइन दोस्त ने, जिसने उसे ‘आर्यन’ के रूप में जाना था, उससे मिलने की इच्छा जताई। अर्जुन घबरा गया। वह बहाने बनाने लगा। “मैं बहुत व्यस्त हूँ”, “मैं अभी शहर से बाहर हूँ।” पर वह दोस्त हार नहीं माना। उसने कहा कि वह दिल्ली में है और मिलना चाहता है। अर्जुन ने बहाने की एक लंबी लिस्ट बना रखी थी, पर अब उसे लगा कि यह झूठ कब तक चलेगा? 
उस रात अर्जुन सो नहीं पाया। उसे अपनी माँ की आवाज़ याद आई, “बेटा, सच में वो ताक़त होती है जो दुनिया में किसी और चीज़ में नहीं।” पर सच क्या था? सच तो यह था कि वह अकेला था, उदास था, और हर पल डर में जी रहा था कि कहीं कोई उसका झूठ पकड़ न ले। 

अगले दिन, अर्जुन दफ़्तर से लौट रहा था। दिल्ली की भीड़ भरी मेट्रो में अचानक उसकी नज़र एक जाने-पहचाने चेहरे पर पड़ी। यह उसके गृहनगर का पुराना दोस्त समीर था, जिसे वह सालों से नहीं मिला था। समीर ने भी उसे पहचान लिया। “अरे अर्जुन! तुम यहाँ क्या कर रहे हो?” समीर की आवाज़ सुनकर अर्जुन एक पल के लिए जम सा गया। 

दोनों ने एक-दूसरे को गले लगाया और बात करने लगे। समीर ने कहा, “मैंने तुम्हें सोशल मीडिया पर देखा। तुम तो बहुत बड़े आदमी बन गए हो यार! फ़ाइव-सटार होटलों में खाना, महँगी गाड़ियाँ . . . तुम्हारी प्रोफ़ाइल देखकर तो यक़ीन ही नहीं हुआ कि यह वही अर्जुन है।”

समीर की बातों से अर्जुन का दिल धक् से रह गया। समीर ने आगे पूछा, “मैंने तुम्हें ‘आर्यन’ के नाम से भी देखा है। यह तुम्हारा ही प्रोफ़ाइल है न? तुम दो नाम क्यों रखते हो? और क्या तुम सच में इतनी महँगी ज़िंदगी जीते हो?” 

अर्जुन के पास कोई जवाब नहीं था। उसका चेहरा सफ़ेद पड़ गया। समीर ने उसकी घबराहट भाँप ली। उसने अर्जुन का हाथ पकड़ा और कहा, “चलो, कहीं बैठकर बात करते हैं। तुम ठीक नहीं लग रहे।”

एक छोटे से ढाबे पर बैठकर समीर ने अर्जुन को पानी पिलाया और शान्ति से उसकी बात सुनी। अर्जुन ने धीरे-धीरे उसे अपनी पूरी कहानी सुनाई। कैसे वह अपनी साधारण ज़िंदगी से शर्मिंदा था, कैसे उसने सोशल मीडिया पर एक झूठी पहचान बनाई, और कैसे वह इस झूठ के जाल में फँसता चला गया। 

समीर ने उसकी बात शान्ति से सुनी। उसने कहा, “मुझे पता था कि कुछ तो गड़बड़ है। कोई भी इतना परफ़ेक्ट नहीं हो सकता।” 

फिर उसने एक चौंकाने वाली बात कही, “मैं भी कुछ ऐसा ही करता था। मेरे दोस्त मेरी ज़िंदगी से ईर्ष्या करते थे, पर वे नहीं जानते थे कि मैं कितना अकेला हूँ।”

यह बात सुनकर अर्जुन की आँखों में आँसू आ गए। उसे लगा कि वह अकेला नहीं है। दुनिया में ऐसे और भी लोग हैं जो एक परफ़ेक्ट ज़िंदगी का दिखावा करते हैं, पर अंदर से ख़ाली हैं। 

अर्जुन ने उस रात एक बड़ा फ़ैसला लिया। उसने अपने ‘आर्यन’ प्रोफ़ाइल को डिलीट कर दिया। उसने अपने सभी दोस्तों को एक संदेश भेजा, जिसमें उसने सच लिखा था। उसने लिखा कि उसने एक ऐसी ज़िंदगी का दिखावा किया जो उसकी नहीं थी, और अब वह अपनी असली ज़िंदगी को स्वीकार करना चाहता है। 

अगले कुछ दिन बहुत मुश्किल थे। कुछ लोगों ने उसका मज़ाक उड़ाया, कुछ ने उसे इग्नोर किया। पर कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्होंने उसे समझा। समीर ने उसे फोन किया और कहा, “तुम्हारे इस क़दम ने मुझे भी हिम्मत दी है। अब मैं भी अपनी ज़िंदगी का सच स्वीकार करूँगा।”

इस घटना के बाद अर्जुन की ज़िंदगी में एक बड़ा बदलाव आया। उसकी ऑनलाइन दुनिया भले ही ख़त्म हो गई थी, पर उसकी असल ज़िंदगी में दोस्तों का एक नया ग्रुप बन रहा था। वह अब अपनी ज़िंदगी की छोटी-छोटी ख़ुशियों को महसूस करने लगा था। उसने महँगे रेस्तरां की फेक तस्वीरों की जगह, अपने दोस्तों के साथ पकौड़े खाते हुए असली तस्वीरें पोस्ट कीं। 

वह जान गया था कि सोशल मीडिया की चमक असली ख़ुशी नहीं दे सकती। असली ख़ुशी तो अपनी ज़िंदगी के सच को स्वीकार करने में होती है, चाहे वह कितना भी साधारण क्यों न हो। अर्जुन ने झूठ का जाल तोड़ दिया था, और अब वह अपनी ज़िंदगी का मालिक था। उसकी कहानी लाखों लोगों के लिए एक सबक़ बन गई जो एक परफ़ेक्ट वर्चुअल दुनिया बनाने में व्यस्त हैं, पर अपनी असलियत से दूर भाग रहे हैं। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
दोहे
कविता - हाइकु
कहानी
किशोर साहित्य कहानी
सामाजिक आलेख
लघुकथा
साहित्यिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
कविता - क्षणिका
स्वास्थ्य
स्मृति लेख
खण्डकाव्य
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
रेखाचित्र
चिन्तन
काम की बात
काव्य नाटक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में