हिंदी–एकता की धड़कन, संस्कृति का स्वर

15-09-2025

हिंदी–एकता की धड़कन, संस्कृति का स्वर

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 284, सितम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

(हिंदी दिवस पर कविता-सुशील शर्मा) 
 
हिंदी
सिर्फ़ शब्दों का समूह नहीं
यह तो उन धड़कनों का संगीत है
जो माँ की लोरी में सुनाई देती हैं
जो खेतों की मेड़ पर बच्चों की हँसी में खिलती हैं
जो मंदिर की घंटियों से लेकर
गली के नुक्कड़ तक गूँजती है
यह जीवन की भाषा है
आशा की, संघर्ष की, आत्मा की।  
 
कभी यह संतों के आश्रम में तपती रही
कभी कवियों के कंठ से बहती रही
कभी खेतिहर किसान 
की मेहनत की साँस बनी
कभी मज़दूर की थकी हथेलियों
पर उभरती रही
कभी सैनिक के हौसले की आवाज़ बनी
कभी माँ के आँचल में सिमटी
करुण पुकार। 
 
हिंदी ने देखा है
आक्रमणों का दौर
राजनीति के उतार-चढ़ाव
रोज़गार की तलाश में भटकते क़दम
शहरों की भागती सड़कें
गाँवों का धीरे-धीरे बदलता चेहरा
फिर भी वह मुस्कुराई
हर परिस्थिति में 
अपने शब्दों को सँजोती रही
हर आँसू को गीत में बदल देती रही। 
 
हिंदी भाषा
किसी एक क्षेत्र की नहीं
न किसी एक वर्ग की
यह तो हर घर की साँस है
हर बच्चे की पहली पुकार
हर त्योहार का उत्सव
हर रिश्ते का अपनापन। 
कभी यह राम की कथा सुनाती है
कभी कृष्ण की रास
कभी शहीदों की वीर गाथा
कभी प्रेमियों की गुप्त बातचीत। 
यह जोड़ती है मनुष्यों को
धर्म से, जाति से, भाषा से परे। 
 
देश की सीमाएँ लाँघती हुई
यह अब समुद्र पार भी पहुँची है
मॉरीशस की लहरों में गूँजती है
फिजी की हवाओं में तैरती है
अफ़्रीका के गाँवों में बच्चों की आवाज़ बनती है
अमेरिका के विश्वविद्यालयों में
शोध का विषय बनती है। 
इंग्लैंड के रेलवे स्टेशनों में
कहानियों में अंकित होती है। 
हिंदी की पहचान
अब सिर्फ़ भारत तक सीमित नहीं
यह संस्कृति का वाहक है
एक पुल है
जो हर जगह भारतीयता 
का रंग बिखेर रहा है। 
 
फिर भी, 
क्योंकि दुनिया बदल रही है
तकनीक का तेज़ दौर आया है
कंप्यूटर की भाषा ने 
नए शब्दों को जन्म दिया है
मोबाइल की स्क्रीन पर 
नए अक्षर लिखे जा रहे हैं
कभी-कभी अंग्रेज़ी की छाया में
हिंदी धीमे स्वर में खड़ी दिखाई देती है
परन्तु वह हार नहीं मानती
वह फिर उठती है
नई लिपियों, नए ऐप्स, नए मंचों पर
अपने अस्तित्व को सिद्ध करने के लिए
हर पीढ़ी को अपने अर्थों से जोड़ती हुई। 
 
हिंदी भाषा
शिक्षा में प्रवेश चाहती है
विज्ञान की प्रयोगशालाओं में जाना चाहती है
कृत्रिम मेधा के एल्गोरिथम 
में स्थान चाहती है
डिजिटल पुस्तकालयों में अपना संग्रह चाहती है
हर शोधपत्र में, हर सम्मेलन में
अपनी उपस्थिति दर्ज 
कराना चाहती है। 
 
हिंदी
अपने शब्दों में समेटे है 
धरती की ख़ुश्बू, 
आसमान का रंग, 
नदियों की नमी, 
त्योहारों की रौनक़, 
इतिहास की पीड़ा, 
भविष्य की आशा। 
यह भाषा
सिखाती है सहानुभूति
सिखाती है संवाद
सिखाती है कि विविधता में भी
अपनापन होता है। 
 
आज हमें हिंदी की 
सिर्फ़ बोलना नहीं
जीना है
विद्यालयों में बच्चों को 
उसकी कहानी सुनानी है
माता-पिता को उसे घर की भाषा बनाना है
शोधकर्ताओं को उसमें 
ज्ञान का विस्तार करना है
सरकार को प्रशासन की भाषा बनाना है
तकनीक कंपनियों को 
उसमें नई दुनिया रचना है। 
 
आओ, हिंदी को गीत बनाएँ
उसे कविता में ढालें
उसकी लय को नृत्य में सजाएँ
उसकी गहराई को विज्ञान में उतारें
उसकी आत्मा को मानवता 
के दीपक में जलाएँ। 
 
हिंदी
हमारी साँसों की धुन है, 
हमारी स्मृतियों का रंग है, 
हमारी सभ्यता का दीपक है, 
हमारी आत्मा का स्वर है। 
 
हिंदी भाषा
सिर्फ़ अतीत की विरासत नहीं
यह भविष्य की दिशा है। 
जब तक मनुष्य मनुष्य 
से जुड़ना चाहता है
जब तक संस्कृति संवाद चाहती है
जब तक मानवता अपने स्वर 
को पहचानना चाहती है
तब तक हिंदी
एकता और गौरव की वैश्विक
आवाज़ बनी रहेगी। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
कविता - हाइकु
सामाजिक आलेख
सांस्कृतिक आलेख
चिन्तन
लघुकथा
व्यक्ति चित्र
किशोर साहित्य कहानी
कहानी
कविता - क्षणिका
दोहे
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ललित निबन्ध
साहित्यिक आलेख
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
स्वास्थ्य
स्मृति लेख
खण्डकाव्य
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
रेखाचित्र
काम की बात
काव्य नाटक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में