बड़ी गहन पीड़ा से गुज़रा, मेरा अंतर्मन है

01-11-2021

बड़ी गहन पीड़ा से गुज़रा, मेरा अंतर्मन है

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 192, नवम्बर प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

सार छंद आधारित गीतिका

 

बड़ी गहन पीड़ा से गुज़रा, मेरा अंतर्मन है
कितना दुष्कर और भयावह, देखो ये जीवन है
 
छला गया हर बार मुझे ही, ऐसा क्यों होता है
जिसको तुम अपना कहते हो, उस में दूजापन है
 
सोचा कब था दर्द मिलेगा, साँझा वो सपने थे
आँख खुली तो हमने पाया, मरुथल वो मधुवन है
 
बहुत घुटन है अंदर अंदर, कैसे बाहर निकलूँ
निशा तिमिरमय डूबी भीगी, टूटा टूटा मन है
 
कब तक यूँ हो रोओगे तुम, यूँ हिम्मत मत हारो
मन को आशाओं से साधो, हरा भरा आँगन है

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