गोपाष्टमी: गौ की पुकार

01-11-2025

गोपाष्टमी: गौ की पुकार

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

गाय 
जिसे वैदिक ऋषियों ने “अघ्न्या” कहा, 
जिसे मारना पाप बताया, 
जिसके चरणों में लक्ष्मी का निवास माना, 
जिसकी आँखों में करुणा का सागर देखा गया। 
 
वही गाय 
आज शहर के मोड़ों पर भूखी भटकती है, 
पॉलीथिन खाती है, 
धुएँ में साँस लेती है, 
और उसके नाम पर राजनीति पलती है। 
 
कभी वह
कृषक के खेत की शक्ति थी, 
हल की लय में उसकी साँसें मिलती थीं, 
उसकी गोबर-गंध से उपजता था जीवन, 
उसके मूत्र से मिटती थी रोग की छाया, 
उसके दूध से बनता था 
शरीर और मन का संस्कार। 
 
वह केवल एक पशु नहीं थी, 
वह घर का हिस्सा थी, 
माँ की तरह सुबह पुकारती थी, 
गौ माता केवल शब्द नहीं, 
गंध, गरिमा और गृहस्थी की आत्मा थी। 
 
गाय के बिना गाँव अधूरा था, 
उसके बछड़े हल खींचते, 
उसके उपले चूल्हे जलाते, 
उसकी रंभाहट में गाँव का संगीत था, 
उसके गोबर से बने आँगन में
देवता उतरते थे। 
 
पर आज 
खेत मशीनों से चल रहे हैं, 
गोठानें गोदाम बन गईं, 
दूध अब पैकेट में आता है, 
और बच्चों को पता ही नहीं
कि गाय के थनों से 
गरम दूध कैसे बहता है। 
 
विज्ञान भी अब कहता है 
गाय पृथ्वी की कार्बन-संतुलन चक्र में
अहम भूमिका निभाती है, 
उसका गोबर मिट्टी में जीवाणु जगाता है, 
उसकी उपस्थिति
धरती की उर्वरता की गारंटी है। 
 
पर यह जानने के बावजूद, 
हमने उसे सड़क पर छोड़ दिया, 
न वह घर की रही, 
न गौशाला की, 
न ही समाज की ज़िम्मेदारी। 
 
कभी जिसे कामधेनु कहा गया, 
आज वही
कूड़े के ढेर पर अवांछित कही जाती है। 
उसके नाम पर बने ट्रस्ट
घोटालों में डूबते हैं, 
और उसकी आँखों में अब भी
वही मासूम विनती 
मुझे बस एक ठिकाना दे दो। 
 
गोपाष्टमी 
अब केवल एक रस्म रह गई है, 
थाली में फूल हैं, 
घंटियाँ बजती हैं, 
पर वह असली स्पर्श 
वह प्रेम, वह कृतज्ञता 
कहीं खो गई है। 
 
गाय अब मंदिर के श्लोक में है, 
पर हमारे मन में नहीं। 
 
याद करो 
कृष्ण का गोकुल, 
जहाँ हर गाय का नाम था, 
हर बछड़े का एक साथी था, 
जहाँ राधा की हँसी
गायों की घंटियों में घुली थी। 
 
वह संस्कृति गाय के साथ ही थी, 
जो हर प्राणी में ईश्वर देखती थी, 
जो देती थी लेती नहीं, 
जो पोषण में ही पूजा देखती थी। 
 
आज हमें फिर लौटना होगा
उस सहज करुणा की भूमि पर, 
जहाँ गाय केवल धर्म नहीं, 
धरती थी। 
जहाँ उसका दूध, गोबर, साँस 
सब जीवन का विज्ञान थे। 
 
गोपाष्टमी का अर्थ
सिर्फ़ गाय की आरती 
उतारना नहीं है, 
प्रायश्चित भी होना चाहिए। 
हम झुकें उसके चरणों में, 
पर साथ ही प्रण लें 
अब कोई गाय भूखी न रहे, 
अब कोई गाय सड़कों पर न भटके, 
अब गाय फिर से
घर, खेत और समाज का अंग बने। 
 
क्योंकि जब गाय लौटेगी, 
धरती मुस्कुराएगी। 
जब धरती मुस्कुराएगी 
मनुष्य का मन भी पवित्र होगा। 
 
गाय केवल शरीर नहीं, 
गाय जीवन का श्वास है, 
और गोपाष्टमी 
याद दिलाती है कि
जिस दिन गाय सुरक्षित होगी, 
उसी दिन मानव सभ्यता भी सुरक्षित होगी। 

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