रौब

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 187, अगस्त द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

"तुम जब देखो जब मुझ पर रौब झाड़ते रहते हो अब बच्चे बड़े हो गए हैं अब तो सुधर जाओ," अमिता का मन बहुत दुखी था।

"मतलब तुम कुछ भी कहो और मैं चुपचाप रहूँ," सुधीर ने व्यंग्य से कहा।

"मैं तुम्हें समझाने के उद्देश्य से कहती हूँ हालाँकि तुम मेरी कोई बात मानते तो हो नहीं," अमिता ने अपना पक्ष रखा।

"अच्छा तुम टोको तो समझाना और मैंने कुछ कहा तो रौब ये तो उचित बात नहीं है," सुधीर के चेहरे पर व्यंग्य भरी मुस्कुराहट थी।

"मैं हमेशा तुम्हारे, बच्चों के और घर के भले के लिए तुम्हें टोकती हूँ और तुम सिर्फ़ ख़ुद को सही साबित करने, अपने पुरुष अहम्‌ को संतुष्ट करने और पति के रूप में रौब झाड़ने के लिए मुझे अपमानित करते हो," अमिता ने स्पष्ट और सपाट लहजे में उत्तर दिया।

बच्चे अपनी माँ के स्वाभिमानी रूप को देख कर मुस्कुरा रहे थे, सुधीर चाह कर भी कुछ नहीं कह सका।

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