कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन

15-10-2022

कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

1.
मस्तानी वो मस्तियाँ, वो शाही अंदाज़। 
बेफ़िक्री की ज़िन्दगी, बचपन का है राज। 
बचपन का है राज, खेल हैं अल्लम-गल्लम। 
जीवन बेपरवाह, समझते ख़ुद को बल्लम। 
बच्चे हैं मासूम, गढ़ें हम नई कहानी। 
हम अल्हड़ नादान, ज़िन्दगी है मस्तानी। 
 
2.
काग़ज़ की वो नाव थी, वो पतंग की डोर। 
जाने कब बचपन गया, बीती जीवन भोर। 
बीती जीवन भोर, ज़िन्दगी कठिन कहानी
छूटा सुख का साथ, छूटती ख़ुशियाँ धानी। 
मिलता बचपन काश, त्याग दें सारे कारज। 
बचपन दें गर छोड़, ज़िन्दगी कोरा काग़ज़। 

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