झरता सावन

01-07-2023

झरता सावन

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 232, जुलाई प्रथम, 2023 में प्रकाशित)

 

दादुर बोले झींगुर बोले
बारिश ने ली है अँगड़ाई
झरता सावन। 
 
काले बादल झरते झम-झम
बहती नदियाँ धरती है नम। 
बिजली चमके पानी हुमके
पेड़ नाचते पहने झुमके। 
वसुंधरा फिर से हरयाई
ताल हुआ मन। 
 
बन-ठन के जब मेघा बरसे
संध्या अपना रूप निहारे। 
बूढ़ा बरगद झाड़ू लेकर
जीवन के सब दर्द बुहारे। 
बूँदों की बजती शहनाई
खिलता जीवन। 
 
उभर गई पीड़ा की सीलन
भीगें भीतर के सन्नाटे। 
कही-अनकही बातें उगतीं
हरे-भरे सपनों के घाटे। 
तन-मन की पीड़ा गदराई 
बिखरा मधुवन। 

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