व्यक्तित्व व आत्मविश्वास

15-11-2020

व्यक्तित्व व आत्मविश्वास

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 169, नवम्बर द्वितीय, 2020 में प्रकाशित)

व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के बाह्य रूप एवं पहनावे से लिया जाता है, परन्तु मनोविज्ञान में व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति के रूप गुणों की समष्टि से है, अर्थात् व्यक्ति के बाह्य आवरण के गुण और आन्तरिक तत्व, दोनों को माना जाता है। ‘व्यक्तित्व’ शब्द प्रायः हमारी दैनन्दिनी चर्चा अथवा बातचीत में प्रकट होता रहता है। व्यक्तित्व का शाब्दिक अर्थ लैटिन शब्द परसोना से लिया गया है। परसोना उस मुखौटे को कहते हैं जिसे अपनी मुख-रूपसज्जा को बदलने के लिए रोमन नाटकों में अभिनेता उपयोग में लाते थे। जिस मुखौटे को अभिनेता अपनाता था उसी के अनुरूप दर्शक उससे एक विशिष्ट भूमिका के निष्पादन की प्रत्याशा करते थे। व्यक्तित्व के अंतर्गत शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक दोनों ही घटक होते हैं। किसी व्यक्ति विशेष में व्यवहार के रूप में इसकी अभिव्यक्ति पर्याप्त रूप से अनन्य होती है। व्यक्तित्व की प्रमुख विशेषताएँ साधारणतया समय के साथ परिवर्तित नहीं होती हैं।

किसी व्यक्ति के व्यवहार की सामान्य और सुसंगत विशेषताओं को संदर्भित करने के लिए व्यक्तित्व शब्द का उपयोग किया जाता है। यह किसी व्यक्ति का कुल और समग्र विवरण है। किसी का व्यक्तित्व न केवल किसी के व्यवहार में परिलक्षित होता है, बल्कि किसी के व्यवहार को भी निर्धारित करता है। इस प्रकार, धारणा, सीखने और अन्य व्यवहार प्रक्रियाओं के क्षेत्रों में शोध से पता चला है कि ये प्रक्रियाएँ व्यक्ति में कुछ स्थिर और सुसंगत कारकों द्वारा निर्धारित की जाती हैं। आत्म और व्यक्तित्व, ये दोनों ही संप्रत्यय घनिष्ठ रूप से संबंधित हैं। आत्म एवं व्यक्तित्व का तात्पर्य उन विशिष्ट तरीक़ों से है जिनके आधार पर हम अपने अस्तित्व को परिभाषित करते हैं। ये ऐसे तरीक़ों को भी इंगित करते हैं जिसमें हमारे अनुभव संगठित एवं व्यवहार में अभिव्यक्त होते हैं। सामान्य प्रेक्षणों के आधार पर हम जानते हैं कि विभिन्न प्रकार के लोग अपने बारे में अलग-अलग प्रकार के विचार रखते हैं। वास्तव में आत्म व्यक्तित्व में मूल रूप में स्थित होता है।

जब हम कहते हैं कि प्रत्येक व्यक्ति का एक व्यक्तित्व है, तो इस व्यक्तित्व की बुनियादी विशेषताओं के बारे में सोचना स्वाभाविक है जो व्यक्ति के व्यवहार को लगातार प्रभावित करती हैं। इस प्रकार, जब हम किसी व्यक्ति को कठोर, आरक्षित और इतने पर परिभाषित करते हैं, तो यह स्पष्ट है कि हम इन बुनियादी विशेषताओं को विशेषण के रूप में सोच रहे हैं जो व्यक्ति का वर्णन करते हैं। व्यक्तित्व उन प्राभ्यास संस्थाओं का या उन अभ्यास के रूपों का समन्वय है जो यह वातावरण में व्यक्ति के विशेष सन्तुलन को प्रस्तुत करता है। हम सभी के अंदर यह जानने का बोध होता है कि हम कौन हैं और क्या हमें अन्य दूसरों से भिन्न बनाता है। हम अपनी व्यक्तिगत और सामाजिक अनन्यताओं से जुड़े रहते हैं और इस ज्ञान से कि ये अनन्यताएँ आजीवन स्थिर रहेंगी, हम सुरक्षित अनुभव करते हैं। जिस प्रकार से हम अपने आपका प्रत्यक्षण करते हैं तथा अपनी क्षमताओं और गुणों के बारे में जो विचार रखते हैं, उसी को आत्म-संप्रत्यय या आत्म-धारणा कहा जाता है।

व्यक्ति के शरीर की बनावट में आनुवांशिकता से प्राप्त विशेष गुण सम्मिलित होते हैं जो कि व्यक्तित्व की प्रथम सीढ़ी है इसके साथ ही सामाजिक सम्बन्धों और सामाजिक विकास व्यक्तित्व की दूसरी सीढ़ी है। व्यक्तित्व का तीसरा सोपान आध्यात्मिक व्यक्तित्व है। इसमें व्यक्ति की रुचि आध्यात्मिक विषयों में होती है और वह सामाजिक सम्बन्धों से इसे अधिक महत्व देता है। अंतिम सीढ़ी में व्यक्ति अपने आत्म स्वरूप का पूर्ण ज्ञान कर लेता है और सभी वस्तुओं में आत्म दर्शन करता है।

व्यक्तित्व की संरचना

फ़्रॉयड के सिद्धांत के अनुसार व्यक्तित्व के प्राथमिक संरचनात्मक तत्व तीन हैं– इदम् या (ID ), अहं (EGO ) और पराहम (SUPER EGO )। ये तत्व अचेतन में ऊर्जा के रूप में होते हैंऔर इन के बारे में लोगों द्वारा किए गए व्यवहार के तरीक़ों से अनुमान लगाया जा सकता है; यहाँ स्मरणीय है कि इदम्‌, अहं और पराहम् संप्रत्यय हैं न कि वास्तविक भौतिक संरचनाएँ। इदं व्यक्ति की मूलप्रवृत्तिक ऊर्जा का द्योतक होता है। इसका संबंध व्यक्ति की आदिम आवश्यकताओं, कामेच्छाओं और आक्रामक आवेगों की तात्कालिक तुष्टि से होता है। अहं का विकास इदम्‌ से होता है और यह व्यक्ति की मूलप्रवृत्तिक आवश्यकताओं की संतुष्टि वास्तविकता के धरातल पर करता है। पराहम्‌ मानसिक प्रकार्यों की नैतिक शाखा के रूप में जाना जाता। पराहम्‌ ,इदं औरअहं को बताता है कि किसी विशिष्ट अवसर पर इच्छा विशेष की संतुष्टि नैतिक है अथवा नहीं।

व्यक्तित्व के निर्धारक कारक —

किसी भी व्यक्ति के व्यक्तित्व के निर्माण में निम्नकारक सम्मलित होते हैं। इनमे से कुछ कारक या सभी कारक उसके व्यक्तित्व का निर्धारण करने में सहायक होते हैं।

 

  • जैविक कारक

  • प्राकृतिक एवं सामाजिक-सांस्कृतिक कारक

  • ग्रंथियों की रासायनिक प्रक्रियाएँ

  • मनोवैज्ञानिक कारक

जलवायु-संबंधी दशाएँ, वासस्थान के भू-भाग की प्रकृति और इसमें भोजन; वनस्पति और जीव-जंतुओ की उपलब्धता न केवल लोगों की आर्थिक गतिविधियों को निर्धारित करती है बल्कि उनके व्यवस्थापन के संरूपों, सामाजिक संरचनाओं, श्रम विभाजन और अन्य पक्षों, जैसे -बाल-पोषण रीतियों को भी निर्धारित करती है। सम्मिलित रूप से ये सारे तत्व किसी व्यक्ति के समग्र अधिगम वातावरण का निर्माण करते हैं। लोगों के कौशल, योग्यताएँ, व्यवहार-शैलियाँ और मूल्य प्राथमिकताएँ इन विशेषताओं से घनिष्ठ रूप से संबंधित होते हैं। अनुष्ठान, उत्सव, धार्मिक क्रियाकलाप, कला, मनोरंजन और खेल-कूद वे साधन हैं जिनके माध्यम से लोगों का व्यक्तित्व किसी संस्कृति में प्रक्षेपित होता है।

व्यक्तित्व और आत्मविश्वास

आत्मसम्मान को एक सकारात्मक रूप से स्वयं से जुड़ी हर चीज़ को देखने के लिए एक विशेषता में निहित किया गया है। इस व्याख्या का तात्पर्य यह है कि व्यक्तित्व की प्रतिक्रियाएँ वांछनीयता से प्रेरित होती हैं और उच्च आत्म-सम्मान वाले व्यक्ति ख़ुद को सभी प्रकार की वांछनीय विशेषताओं के पास देखते हैं।

सफल व्यक्तित्व ही व्यक्ति में आत्मविश्वास उत्पन्न करता है। निम्न लिखित कारक उच्च आत्मविश्वास और सफल व्यक्तित्व के परिचायक हैं।

  1. आत्म-जागरूकता – अपनी ताक़त और अपनी कमज़ोरियों के बारे में ईमानदार रहें। सबसे सफल व्यक्तियों के पास भी वो जो चाहते हैं वो नहीं होता है।
  2. सत्यनिष्ठा – सच्चा आत्मविश्वास वास्तविकता में रहने से आता है। इसका मतलब यह भी है कि आप अपनी बात रखें, इसलिए यदि आप कहते हैं कि आप कुछ करेंगे, तो आप इसे करते हैं। वह भी निश्चित समयावधि में।
  3. निर्णय क्षमता – निर्णय लेने से डरें नहीं। सही समय पर सही निर्णय लेना एक लीडर की निशानी है, ज़्यादातर लोग ग़लत निर्णय लेने से डरते हैं इसलिए वो पीछे रह जाते हैं।
  4. सबसे मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखें – जब आप किसी से मिलते हैं तो मुस्कुरायें इससे आप एक अच्छे व्यक्तित्व का परिचय देंगे और आपका कार्य बहुत शीघ्रता से होगा। 
  5. अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहें – ज़रूरत पड़ने पर अपने और अपने सिद्धांतों के लिए खड़े रहें। और न्याय के लिए दूसरों के लिए भी लड़ें। 
  6. आभार – जीवन में हर चीज़ के लिए आभारी रहें।
  7. सेंस ऑफ़ ह्यूमर – ख़ुद पर हँसने में सक्षम होना, आत्मविश्वास दिखाता है। यदि आप किसी भी पल में हँसने के लिए तैयार नहीं महसूस कर रहे हैं तो स्टैंड-अप कॉमेडी (या जो कुछ भी आपको हँसाता है) सुनें।
  8. उद्देश्य – आपके काम और जीवन का उद्देश्य स्पष्ट होना चाहिए।
  9. . जिस व्यक्ति में सफलता के लिए आशा और आत्मविश्वास है, वही व्यक्ति उच्च शिखर पर पहुँचते हैं।
  10. आत्मविश्वास ही आपको कार्यक्षेत्र में सम्मान दिलाता है।

आत्मविश्वास आपके व्यक्तित्व का वह गहना है जो आपको दूसरों से श्रेष्ठ साबित करता है। आत्मविश्वास ज्ञान और दृष्टिकोण का का संयुक्त पुंज है यह हर बड़ी सफलता की आधारशिला है। हमारे सबसे बड़े अहसास की कुंजी अक्सर आत्मविश्वास ही है। वास्तविक अर्थों में वही विकास व्यक्तित्व विकास है जो व्यक्ति के सामाजिक एवं आर्थिक विकास में सहायक सिद्ध हो।

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