मौत तो बस अब बहाना हो गया 

15-06-2021

मौत तो बस अब बहाना हो गया 

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 183, जून द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

2122    2122   212 
 
रदीफ़: हो गया
क़ाफ़िया: आना
 
मौत तो बस अब बहाना हो गया 
घर ख़ुदा के वो रवाना हो गया 
 
लग रहा क्यों आज सूरज सर्द है
चाँद भी काफ़ी पुराना हो गया 
 
दग्ध दिल का दर्द जीती ज़िंदगी
पीर का ये दिल ठिकाना हो गया 
 
ख़ुशबुओं से भर गयीं हैं वादियाँ 
आज मौसम आशिक़ाना हो गया 
 
बढ़ रहीं है बीच की ये दूरियाँ 
बस लड़ाई तो बहाना हो गया 
 
भेजते थे तुम कभी जो ख़त मुझे 
शेष अब उनका जलाना हो गया 
 
सिर झुका सदका हुआ वो जब मिले
बस ख़ुदा को सर झुकाना हो गया  
 
रूठना उनका मनाना उम्र भर 
ज़िंदगी का ये फ़साना हो गया

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
दोहे
कहानी
गीत-नवगीत
सामाजिक आलेख
कविता - हाइकु
कविता-मुक्तक
कविता - क्षणिका
सांस्कृतिक आलेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
लघुकथा
स्वास्थ्य
स्मृति लेख
खण्डकाव्य
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
साहित्यिक आलेख
रेखाचित्र
चिन्तन
काम की बात
काव्य नाटक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में