पर्यावरण 

15-07-2025

पर्यावरण 

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 281, जुलाई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

नीला था नभ
धुआँ धुआँ जीवन
कहाँ हैं पंछी? 
 
कटते पेड़
गूँगा हुआ जंगल 
हवा भी चुप। 
 
बोलती नदी
काली जल धाराएँ, 
विष में घुली। 
 
कूड़े में फूल, 
काग़ज़ के आँकड़े
झूठी तसल्ली। 
 
घोंसला टूटा, 
चिड़िया रोई नहीं
सन्नाटा बोला। 
 
धरती चीखी, 
सुने नहीं मानव 
मरती आत्मा। 
 
बढ़ता ताप
पिघली हिमशिला, 
मृत्यु की ओर। 
 
सूखी शाखों पे
उदास बैठा तोता 
ठूँठ जीवन। 
 
मिट्टी की साँसें, 
प्लास्टिक से घुटती 
मरते बीज। 
 
दिया जलाए, 
बच्चा बोला ठूँठ से 
फिर से उगो। 

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