चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर

01-04-2024

चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

(होली गीत)

 

चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
होली आई रे भैया

मन मिश्री तन रंग लगाए
नाचें साथी छम-छम-छम 
यौवन का उल्लास समेटे
बजे मृदंगा डम-डम-डम
प्रेम, मौज-मस्ती में डूबे
रंग मलें सब अंगों में। 
मस्ती में झूमें सब टोली
सरोबार हो रंगों में। 
भर-भर रंग गुलाल उड़ाते
कान्हा माधव रे दैया। 
 
मुँह पर सारे रंग लगाएँ
जोकर जैसे लगते हैं। 
इस दिन सारे साथी अपने
दुश्मन जैसे दिखते हैं। 
ढूँढ़-ढूँढ़ कर रँगते साथी
घूम रहे सब इठलाते। 
रंग बिरंगा मुँह कर देते
गुझिया पापड़ फिर खाते। 
आज नहीं बच सकता कोई
चाहे काकी या मैया। 
 
कृष्ण लली के प्रेम रीत का
यह प्रीतम उपहार है। 
रंग बिरंगे प्रिय रंगों का
यह अनुपम त्योहार है। 
यौवन जीवन की लय होली
त्यागो नफ़रत की हाला। 
घृणा द्वेष सब भूलो भाई
सुनो गीत होली वाला। 
भूल दुश्मनी गले लगाते
गाते सब हैया-हैया। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख
गीत-नवगीत
दोहे
काव्य नाटक
कविता
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में