सूना पल

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 227, अप्रैल द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 
सपनों में से कहीं टूट कर
गिरा एक पल सूना
 
लिए सुनहरी
धूप चोंच में
चिड़िया बैठी है। 
मन के उस
सूने आँगन में
पीड़ा पैठी है। 
दिन भर सूरज पूरा चलता
फिर भी लगता ऊना। 
 
रिश्ते कड़वे
और कसैले
सूनी है मस्ती। 
ख़त्म सभी
संवाद हो गए
आवारा बस्ती। 
अपने ही अपनों के पीछे
लगा रहे हैं चूना। 
 
राजनीति के
गलियारों में
बिकती है रोटी। 
बड़े बड़े महलों
के भीतर
सोच बड़ी छोटी। 
गली-गली में झूठ सजा है
रोता सत्य नमूना। 

सुशील शर्मा

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