मन वसंत 

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 223, फरवरी द्वितीय, 2023 में प्रकाशित)

 

सुमन-वृन्त 
फूले कचनारी 
प्रणय निवेदित 
मन मनुहारी। 
 
मादल वंशी 
अधर धरी है 
उमड़ घुमड़ मन 
प्रीत भरी है। 
शरद भोर की 
दूब सुहानी 
खिली धूप की 
प्रेम कहानी। 
 
नव वसंत उर आन बसा है  
प्लावित मन मृदुमत अभिसारी। 
 
कूल कुसुम 
कमनीय खिले हैं। 
मलयानिल मदमत्त 
चले हैं। 
शस्य कमल शतदल 
मनभावन। 
कोकिल गुंजन 
स्वप्न सुहावन। 
 
परिमल मारुत काम्य भरा है
मन वसंत मधुकर मनहारी। 
 
स्वच्छ मधुर आकाश 
नीलिमा। 
बिछी हुई चादर 
हरीतिमा। 
डार-पात सब 
पीत पनीले। 
केसर वसन 
पलाश सुरीले। 
 
आम मंजरी मौर मुकुट सी 
छंद गीत सब हैं आभारी।

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