34वीं तमिलनाडु राज्य स्तरीय रोलर स्केटिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण
चेन्नई,
20.10.2024
तमिलनाडु रोलर स्केटिंग एसोसिएशन द्वारा चेन्नई स्थित शेनोय नगर स्केटिंग रिंक में 34वाँ तमिलनाडु राज्य स्तरीय रोलर स्केटिंग डर्बी चैम्पियनशिप स्पर्धा में चेन्नई की जूनियर वर्ग की खिलाड़ियों ने स्वर्ण पदक जीता।
इस टीम में आरुषि चौरसिया (टीम कप्तान), शाविल्या ऑरियन बाबू (वाइस कप्तान) के साथ हँसुजा, वुल्ली श्रीसाहिती, निखिताश्री और दक्षा एस. सम्मिलित हैं। इन खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा दिखाकर स्वर्ण पदक जीता।
टीम कोच किरण चौरसिया, टीम मैनेजर रोहिणी, मृदुभाषिणी, कनकवल्ली, स्केटिंग किड्स एसोसीएशन के निदेशक विजय तथा तमिलनाडु रोलर स्केटिंग एसोसिएशन के प्रधान सचिव टी ऐन सी एम चोक्कलिंगम ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया और शुभकामनाएँ दीं।
आगे पढ़ेंराष्ट्रपाल गौतम के एकांकी नाटक ‘गोबर के गेहूँ’ पर परिचर्चा
नव दलित लेखक संघ, दिल्ली ने ‘नाटक और कविता की संगत’ नामक गोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी में सर्वप्रथम हाल ही में परिनिर्वाण को प्राप्त हुए लक्ष्मीनारायण सुधाकर जी को आदरांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। तत्पश्चात् राष्ट्रपाल गौतम द्वारा रचित एकांकी नाटक ‘गोबर के गेहूँ’ पर चर्चा हुई। साथ ही उपस्थित कवियों का उम्दा काव्यपाठ भी हुआ। शाहदरा स्थित संघाराम बुद्ध विहार में रखी गई इस गोष्ठी का संयोजन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया। अध्यक्षता डॉ. कुसुम वियोगी ने की और संचालन मामचंद सागर ने किया। गोष्ठी में डॉ. कुसुम वियोगी, मामचंद सागर, राष्ट्रपाल गौतम, पुष्पा विवेक, डॉ. पूरन सिंह, डॉ. ऊषा सिंह, डॉ. गीता कृष्णांगी, डॉ. अमित धर्मसिंह, लोकेश कुमार, मदनलाल राज़, राधेश्याम कांसोटिया, देवराज सिंह देव, इंद्रजीत सुकुमार, एदल सिंह और विकास कुमार आदि कविगण उपस्थित रहे।
गोबर के गेहूँ एकांकी नाटक पर बोलते हुए डॉ. अमित धर्मसिंह ने कहा, “‘गोबर के गेहूँ’ नाटक आज़ादी से पूर्व की पृष्ठभूमि से लेकर वर्तमान तक फैला हुआ ऐतिहासिक और सामाजिक नाटक है। यह न सिर्फ़ दलित दशा को उद्घाटित करता है अपितु संबंधित सामाजिक कुरीति का प्रतिरोध भी करता है। अपने कथ्य, संवाद, भाषा, शैली और मंचन आदि को लेकर, यह एक सफल एकांकी नाटक है। डॉ. कुसुम वियोगी ने कहा, “यह जातीय अथवा सामाजिक भेदभाव से अधिक वर्ग संघर्ष का नाटक है। इसमें किसी भी प्रकार की सामाजिक बुराई का प्रतिरोध नज़र नहीं आता, बल्कि अपने-अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा बनाए रखने की क़वायद दिखाई पड़ती है।” राष्ट्रपाल गौतम ने कहा कि नाटक में गोबर के गेहूँ खाने की जिस घटना का वर्णन किया गया है, वह मेरे साथ स्टुडेंट टाइम में घटित हुई थी। उस समय तो मैं कुछ कह नहीं सका था, बाद में जब यह नाटक मैंने यह लिखा तब भी मैंने इसके विषय में इतना नहीं सोचा था, जितना कि आज इस नाटक पर समीक्षकों ने कहा है। इसके लिए मैं नदलेस का आभारी हूँ, ख़ासकर डॉ. अमित धर्मसिंह और इस पर बात रखने वाले सभी वक्ताओं का।” इनके अलावा मदनलाल राज़, मामचंद सागर, पुष्पा विवेक, इंद्रजीत सुकुमार, देवराज सिंह देव आदि ने भी नाटक पर विशेष टिप्पणियाँ की।
नाटक पर परिचर्चा के उपरांत उपस्थित कवियों का काव्यपाठ हुआ। डॉ. पूरन सिंह ने दीवारें और भूख शीर्षक से दो कविताएँ पढ़ीं। उन्होंने दीवारें कविता में पढ़ा, “बचपन में मैं और रामसनेही साथ-साथ खेला करते थे/ . . . हम बड़े हुए तब समझ आया कि रामसनेही सिर्फ़ रामसनेही नहीं है/वह रामसनेही चमार है/ . . . बस दीवारें खड़ी होने लगीं।” एदल सिंह ने बाबा की ज्योति शीर्षक से लोकगीत में रसिया कुछ यूँ पढ़ा, “बाबा की ज्योति बड़ी प्यारी/जो दिल में कर दे उजियारी/मैं तुझको रहा समझाए/मत पड़े पिछारी देवन के।” इनके अलावा मदनलाल राज़, डॉ. अमित धर्मसिंह, इंद्रजीत सुकुमार, देवराज सिंह देव, राष्ट्रपाल गौतम, पुष्पा विवेक, डॉ. कुसुम वियोगी, मामचंद सागर और राधेश्याम कांसोटिया आदि ने भी अपनी-अपनी बेहतरीन कविताएँ प्रस्तुत कर, गोष्ठी को सफल एवं सार्थक बनाने में महती योगदान दिया। अंत में डॉ. पूरन सिंह द्वारा उपलब्ध करवायी गई, डी.के. भास्कर द्वारा सम्पादित ‘डिप्रेस्ड एक्सप्रेस’ (मासिक पत्रिका) की कुछ प्रतियों का हाईलाइट किया गया। सभी उपस्थित कवियों का सादर धन्यवाद पुष्पा विवेक ने किया।
प्रेषक
लोकेश कुमार
हिंदी साहित्य में सूफ़ी संतों का योगदान-संगोष्ठी संपन्न—युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल सत्रहवीं संगोष्ठी 13 अक्टूबर 2024 (रविवार) 4 बजे से आयोजित की गई।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश शाखा) ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह कार्यक्रम प्रखर
व्यंग्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय (दिल्ली) की अध्यक्षता में संपन्न हुई। नगर की सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा देवी बतौर मुख्य वक्ता एवं वरिष्ठ साहित्यकार एवं प्रखर समीक्षक डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ) बतौर विशिष्ट अतिथि मंचासीन रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ संगीतज्ञ सुश्री शुभ्रा महंतो के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात् प्रदेश इकाई की अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने सम्माननीय अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया।
उन्होंने संस्था का परिचय देते हुए कहा-युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, दिल्ली (पंजीकृत न्यास) एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक विशेष उद्देश्य है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. जयप्रकाश तिवारी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, “‘साधक और साध्य’, ‘बंदे और ख़ुदा’ के बीच ‘निर्मल प्रेम तत्त्व’ को सूफ़ियों ने इतनी तल्लीनता से हृदयंगम होकर सींचा है कि हिन्दी साहित्य की निर्गुण धारा में ‘प्रेमाख्यान काव्यधारा’ नाम से एक नई नवेली, दुलारी, प्यारी परंपरा ही चल पड़ी, जिसे ‘संत साहित्य’ के नाम से सूफ़ी संतों, मुस्लिम संतों और भारतीय संतों ने मिल-जुल कर गाया। जुगलबंदी, संगति ऐसी कि प्रेम और प्रेम में विरह भक्ति, प्रेमी के लिए तड़प, प्रणय और सायुज्य की ललक भक्ति का एक निर्मल मानक बनकर ‘भक्तिकाल’ को हिंदी साहित्य का मुकुटमणि, स्वर्ण काल बना गया।
“निष्कर्ष: हम कह सकते हैं कि भक्तिकाल के विकास और उसे हिंदी साहित्य का ‘स्वर्णकाल’ बनाने में सूफियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।”
मुख्य वक्ता डॉ. सुषमा देवी ने अपने तथ्यपरक एवं शोधपूर्ण वक्तव्य में कहा, “हिंदी साहित्य को स्वर्ण युग बनाने में सूफ़ी संतों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रबंध काव्य शैली, लोक जीवन की उपस्थिति, लोक भाषा के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना के विकास में सूफ़ी संतों ने अप्रतिम योगदान दिया। भारतीय सांस्कृतिक समन्वय की विराट चेष्टा करते हुए विविधता में एकता की दृष्टि को सूफ़ी संतों ने पुष्ट किया।”
संगोष्ठी के अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा, “सूफ़ी कवियों ने वेदांत, ज्योतिष, संगीत, काव्य शास्त्र, तत्त्व ज्ञान, शरीर, जीवात्मा और मनोवृत्तियों को लेकर प्रेम-कहानियों को काव्य रूप में हिन्दू कवियों की तरह ही गूँथा है। इन सभी सूफ़ी संत कवियों ने पाठकों के सभी वर्गों की रुचि का ध्यान रखते हुए प्रेम, शास्त्र-ज्ञान और वैराग्य तीनों का समन्वय करके हिंदी साहित्य/काव्य को समृद्ध ही नहीं किया बल्कि हिंदी-मुस्लिम समाज के मध्य सौहार्द स्थापित करने का एक श्लाघनीय प्रयास भी किया है। सभी सूफ़ी कवि हिंदी साहित्य में अपने अमूल्य योगदान हेतु हमेशा याद रखे जायेंगे।”
इस परिचर्चा में डॉ. राशि सिन्हा ने अपने महत्त्वपूर्ण विचार प्रस्तुत करके सहभागिता निभाई और दर्शन सिंह एवं बिनोद गिरि अनोखा ने गुरु वाणी पर बात रखी।
तत्पश्चात् दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्य पाठ करके वातावरण को ख़ुशनुमा बना दिया। सुश्री विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष), शिल्पी भटनागर, दर्शन सिंह, डॉ. सुषमा देवी, डॉ. राशि सिन्हा, सरिता दीक्षित, डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), प्रियंका पाण्डे, किरण सिंह, इंदु सिंह, बिनोद गिरि अनोखा, शुभ्रा महंतो, राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस‘ (लखनऊ), शोभा देशपाण्डे, उषा शर्मा, डॉ. किरण कुमारी (रांची) काव्यपाठ किया। श्री रामकिशोर उपाध्याय (दिल्ली) ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि आज की संगोष्ठी बहुत सफल और सार्थक रही। सभी रचनाकारों की विविध रससम्पृक्त रचनाओं गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, कविता, क्षणिका एवं भक्ति गीत की प्रस्तुति ने सुन्दर समां-सा बाँध दिया। उन्होंने सभी को बधाई और शुभकामनाएँ दीं और अध्यक्षीय काव्य पाठ किया।
तृप्ति मिश्रा, रमाकांत श्रीवास, पूनम झा (दिल्ली), भगवती अग्रवाल, डॉ. सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव) डॉ. ममता श्रीवास्तव ‘सरूनाथ’ (दिल्ली) रेखा अग्रवाल ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
संगोष्ठी का संचालन सुश्री शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) ने किया और सुश्री किरण सिंह के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।
प्रेषक डॉ. रमा द्विवेदी, अध्यक्ष /युवा उत्कर्ष
फोन: 9849021742
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा उज़्बेकिस्तान में खोज रहे हैं हिंदी की नई बोलियाँ
माना जाता है कि दूसरी शताब्दी के आस पास कुछ घुमंतू जातियाँ मध्य एशिया, अफ़्रीका, यूरोप और अमेरिका की तरफ़ गईं और अलग-अलग स्थानों पर रहने लगीं। समय के साथ इन्होंने अपनी मूल भाषा को खो दिया और स्थानीय भाषाओं को बोलचाल के लिए स्वीकार कर लिया। इन्हें मूल रूप से जिप्सी कहा जाता है।
मध्य एशिया के देश उज़्बेकिस्तान में भी ऐसे कई समुदाय रहते हैं। इन लोगों को यहाँ स्थानीय उज़्बेक भाषा में लोले या लोली कहा जाता है। इनके बीच भी कई समुदाय हैं जैसे कि अफ़गान, मुल्तान, पारया, जोगी, मजांग, क़व्वाल, चिश्तानी, सोहूतराश और मुगांत इत्यादि। ये सभी भारत से हैं या नहीं यह शोध का विषय है।
इस सम्बन्ध में विधिवत शोध कार्य न के बराबर हुए हैं। डॉ. भोलानाथ तिवारी ने ताशकंद रहते हुए अफ़गान समूह की भाषा पर काम किया और उनकी भाषा को “ताजुज्बेकी” नाम देते हुए इसे हिंदी की एक नई बोली बताई। लेकिन वे लोले या जिप्सियों को इनसे अलग मानते हैं।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा इन दिनों ICCR हिन्दी चेयर पर उज़्बेकिस्तान में हैं और ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज़ में हिंदी भाषा के विज़िटिंग प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं। आप भारतीय दूतावास उज़्बेकिस्तान के सहयोग से इन समुदायों एवम इनकी भाषाओं का अध्ययन कर भारत से इनके सम्बन्धों की पड़ताल कर रहे हैं। सम्भव है कि जल्द ही हिंदी की कुछ नई बोलियों का पता लगाने में वे सफल हो जाएँ।
आगे पढ़ेंउज़्बेकिस्तान में एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न
बुधवार, दिनांक 18 सितंबर 2024 को लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद की शुरूआत सुबह 10 बजे हुई। परिसंवाद का मुख्य विषय था “उज़्बेकिस्तान में हिंदी: दशा और दिशा।” इस परिसंवाद के उद्घाटन सत्र में अध्यक्ष के रूप में उज़्बेकिस्तान में भारत सरकार की राजदूत आदरणीय स्मिता पंत जी उपस्थित थीं। बीज वक्ता के रूप में वरिष्ठ हिंदी भाषाविद श्री बयोत रहमतोव और मुख्य अतिथि के रूप में ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज से डॉ. निलूफर खोजाएवा ऑनलाईन माध्यम से उपस्थित हुईं।
कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके हुई। लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद के कल्चरल डायरेक्टर श्री सीतेश कुमार जी ने स्वागत भाषण देते हुए केंद्र की आगामी योजनाओं की भी चर्चा की। प्रस्ताविकी परिसंवाद संयोजक के रूप में डॉ. मनीष कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत करते हुए सत्र का संचालन भी किया। मुख्य अतिथि डॉ. निलुफर खोजाएवा जी ने आयोजन की सफलता के लिए बधाई देते हुए अपने संस्थान में हिंदी की गतिविधियों की जानकारी दी। बीज वक्ता के रूप में श्री बयोत रहमतोव जी ने विस्तार से उज़्बेकिस्तान में इंडियन डायसपोरा की चर्चा करते हुए भोलानाथ तिवारी के कार्यों को याद किया। इस अवसर पर परिसंवाद में प्रस्तुत शोध आलेखों की पुस्तक का लोकार्पण भी मान्यवर अतिथियों के द्वारा किया गया। इस पुस्तक का सम्पादन डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एवं डॉ. निलुफ़र खोजाएवा जी ने किया। इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए प्राप्त शोध आलेखों में से कुल 30 शोध आलेखों को ISSN JOURNAL ( 2181-1784), 4(22), September 2024, www.oriens.uz के माध्यम से प्रकाशित किया गया है।
वरिष्ठ हिन्दी प्राध्यापिका डॉ. सादिकोवा मौजूदा काबिलोवना जी की पाठ्यक्रम केंद्रित पुस्तक का भी इस अवसर पर लोकार्पण हुआ। इस कार्यक्रम में ऑन लाईन माध्यम से भारत समेत कई अन्य देशों के हिंदी विद्वान उत्साहपूर्वक जुड़े रहे। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में आदरणीय स्मिता पंत जी ने लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रशंसा की। हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु ऐसे आयोजनों की सार्थकता पर आप ने विस्तार से चर्चा करते हुए आगामी आयोजनों के लिए हर सम्भव सहायता का आश्वासन भी दिया। उज़्बेकिस्तान में जनवरी 2025 में हिन्दी ओलम्पियाड़ आयोजित करने की योजना पर भी आप ने प्रकाश डाला।
उद्घाटन सत्र के बाद प्रथम और द्वितीय चर्चा सत्र की शुरूआत हुई जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ हिंदी भाषाविद डॉ. सादिकोवा मौजूदा काबिलोवना जी ने की। इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए उनमें शाहनाजा ताशतेमीरोवा, कमोला अखमेदोवा, प्रवीण कुमार, नेमातो युरादिल्ला, डॉ. उषा आलोक दुबे, तिलोवमुरोडोवा शम्सिक़मर, निकिता, डॉ. कमोला रहमतजनोवा, डॉ. हर्षा त्रिवेदी, श्रीमती नेहा राठी, डॉ. राजेश सरकार और प्रो. उल्फ़त मोहीबोवा जी शामिल रहीं। इनमें से कई विद्वान ऑन लाईन माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े रहे। ऑन लाईन माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े अन्य विद्वानों में डॉ. फ़तहुद दिनोवा इरोदा, युनूसोवा आदोलत, अखमदजान कासीमोव, डॉ. सिराजूद्दीन नुर्मातोव, संध्या सिलावट, डॉ. प्रियंका घिल्डियाल समेत अनेकों लोग देश-विदेश से शामिल थे।
दोपहर के भोजन के उपरांत तीसरे चर्चा सत्र की शुरूआत हुई। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ हिन्दी भाषाविद श्री बयोत रहमतोव जी ने की। इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए उनमें अज़ीज़ा योरमातोवा, जियाजोवा बेरनोरा मंसूर्वोना, मोतबार स्मतुलायवा, हिदायेव मिरवाहिद, खुर्रामो शुकरुल्लाह, डॉ. शिल्पा सिंह और डॉ. ठाकुर शिवलोचन शामिल रहे। इस सत्र में भी भारत से कई विद्वान ऑन लाइन माध्यम से प्रपत्र वाचक के रूप में जुड़े।
तीसरे सत्र के बाद समापन सत्र की शुरूआत हुई। प्रतिभागियों ने इस आयोजन के संदर्भ में खुलकर अपने विचार प्रकट किए। अंत में लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद के कल्चरल डायरेक्टर श्री सीतेश कुमार जी के हाथों प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र और शोध आलेखों की पुस्तक भेंट की गई। अंत में डॉ मनीष कुमार मिश्रा ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया और परिसंवाद समाप्ति की घोषणा की। इस तरह यह एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद सम्पन्न हुआ।
आगे पढ़ेंचेतना साहित्य मंच के बैनर तले पुस्तक विमोचन समारोह
गाडरवारा की भूमि साहित्य की रत्नगर्भा भूमि है—श्रीमती स्थापक
महाराणा प्रताप कॉलेज के ऑडिटोरियम में चेतना साहित्य मंच के बैनर तले वरिष्ठ साहित्यकार द्वय सुशील शर्मा की चार और नरेंद्र श्रीवास्तव की पाँच पुस्तकों का विमोचन संपन्न हुआ।
पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक और नगर पालिका अध्यक्ष शिवाकांत मिश्रा के मुख्याथित्य, कुशलेंद्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवम मुकेश जैन, महंत बालकदास व मिनेंद्र डागा के सारस्वत आथित्य में सरस्वती पूजन के उपरांत विमोचन समारोह प्रारंभ हुआ।
सर्वप्रथम नरेंद्र श्रीवास्तव की पाँच पुस्तकों ‘रास्ते तो हैं’, ‘शाबाश’, ‘होनहार अवि’, ‘बात पते की’ और ‘अभी उम्मीद है’ का विमोचन संपन्न हुआ। उसके पश्चात सुशील शर्मा की ‘हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति’, ‘लोक साहित्य एवम पर्यावरण’, ‘हैलो ज़िन्दगी’ और ‘आधुनिक बुद्ध ओशो’ नामक पुस्तकों का विमोचन हुआ।
साहित्यकार नरेंद्र श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तकों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बच्चों के लिए बहुत कम साहित्य लिखा जा रहा है आज ज़रूरत है कि बच्चों को ऐसा साहित्य पढ़ने को मिले जिससे उनके अंदर संस्कारों का निर्माण हो।
सुशील शर्मा ने कहा साहित्य मनुष्यता की अभिव्यक्ति है, साहित्य के माध्यम से हम अतीत से अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं वर्तमान को समझ सकते हैं और भविष्य को आकार दे सकते हैं।
चेतना मंच के संरक्षक मिनेंद्र डागा ने दोनों साहित्यकारों को समाज का प्रहरी निरूपित किया उन्होंने कहा साहित्य से समाज में जागरूकता आती है।
समाजसेवी मुकेश जैन ने दोनों रचनाकारों के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनका साहित्य पढ़ने से हमारी नई पीढ़ी में संस्कारों का सृजन होगा।
महंत बालक दास ने ओशो पर किताब लिखने पर सुशील शर्मा को बधाई दी उन्होंने कहा ओशो के विचार हमें वास्तविक जीवन से परिचय कराते हैं।
नगरपालिका अध्यक्ष पंडित शिवाकांत मिश्रा ने कहा कि इस सम्पूर्ण सृष्टि के वास्तुकार साहित्यकार और शिक्षक होते हैं यही समाज में जागृति पैदा कर समाज और देश को ऊर्जावान बनाते हैं।
श्रीमती साधना स्थापक ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस संसार में सब कुछ मिट जाता है सिर्फ़ साहित्यकार के शब्द कालजयी होते हैं, साहित्यकार संस्कृति के दूत होते हैं उनके शब्दों और भावों से समाज में सृजन क्रांति आती है।
वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेंद्र श्रीवास्तव ने वर्तमान पीढ़ी में मरती संवेदनाओं के प्रति गहन चिंता व्यक्ति की उन्होंने कहा कि इस भटकती पीढ़ी को कोई सही दिशा दे सकता है तो वह सिर्फ़ साहित्य ही है।
चेतना साहित्य मंच की ओर से दोनों साहित्यकारों को शाल श्रीफल और सम्मानपत्र भेंटकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर ताई क्वांडो के राष्ट्रीय कोच गिरिराज किशोर भट्ट सहित नेशनल खिलाड़ियों और रेफरी, यूसीमास के राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिता के विजेता छात्रों, हिंदी की सेवा करने वाले शिक्षिकाओं श्रीमती निर्मला पाराशर, श्रीमती स्वाति चौहान, श्रीमती शिवा ताम्रकार और श्रीमती भागवती मेहरा को विशिष्ट चेतना सम्मान से सम्मानित किया गया। यूसीमास के संचालक नवीन चौबे द्वारा गणितीय विधा और गिरिराज किशोर भट्ट द्वारा ताइकोंडो विधा पर जानकारी दी गई॥
कार्यक्रम का सफल संचालन विजय नामदेव ‘बेशर्म’ ने किया एवम आभार प्रदर्शन नागेंद्र त्रिपाठी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर महेश अधरूज, संदीप स्थापक, वेणिशंकर पटेल, मलखान मेहरा, तरुण, शिरीष पाटकर, सूर्यकांत मेहरा, ब्रजेश पांडेय, तुलसीकांत, लक्ष्मीकांत, अनुपम ढिमोले, राजेश बरसैयां मोहरकांत गूजर, डॉ. मंजुला शर्मा, अर्चना शर्मा, निर्मला पाराशर, आशीष राय, प्रदीप बिजपुरिया, ब्रजेश आदि ने दोनों साहित्यकारों का सम्मान किया। कार्यक्रम में नगर की विभिन्न संस्थाओं के प्रबुद्धजन शामिल हुए।
आगे पढ़ेंवैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा का योगदान विषयक त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन संपन्न
त्रिनिदाद यात्रा से डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की रिपोर्ट
हिंदी है हृदय की भाषा: रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल
व्यावहारिक स्तर पर हिंदी अपनाएँ, सांस्कृतिक धरोहर को अंतरित करें: डॉ. प्रदीप राजपुरोहित
पोर्ट ऑफ़ स्पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो। “त्रिनिदाद की जनता के लिए हिंदी हृदय की भाषा है। ऐसी हिंदी भाषा को तथा उसकी संस्कृति को सुनिश्चित रखना अनिवार्य है। भले ही यह कार्य कठिन है लेकिन असाध्य नहीं। त्रिनिदाद में बसा हुआ हर भारतीय मूल का परिवार अपनी संस्कृति और सभ्यता, विशेष रूप से अपनी भाषा हिंदी को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।”
माउंट होप, त्रिनिदाद में स्थित महात्मा गाँधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के सभागार में 6 से 8 सितंबर, 2024 तक भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ़ स्पेन द्वारा आयोजित “त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन” का उद्घाटन करते हुए अटॉर्नी जनरल कार्यालय और क़ानूनी मामलों के मंत्रालय की मंत्री रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल ने उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की कि कैरेबियन देशों में भारतवंशी पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति, सभ्यता और हिंदी भाषा को अंतरित करने में असमर्थ हो रहे हैं।
भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ़ स्पेन के उच्चायुक्त डॉ. प्रदीप राजपुरोहित ने सबका स्वागत करते हुए कहा कि सबको व्यावहारिक स्तर पर हिंदी को अपना चाहिए। पंडिताऊ भाषा के स्थान पर सामान्य बोलचाल की हिंदी का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से हिंदी भाषा में निहित सांस्कृतिक एवं लोक धरोहर को पीढ़ी-दर-पीढ़ी अंतरित किया जा सकता है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि त्रिनिदाद में बसे भारतीय मूल के लोग अपनी भाषा को अक्षुण्ण रख पाने में असमर्थ अनुभव करने लगे हैं। हिंदी भाषा, विशेष रूप से बोलचाल की भाषा, पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि दूतावास स्कूली स्तर पर हिंदी कक्षाएँ चलाने का प्रयास कर रहा है। हिंदी सीखने के लिए प्रोत्साहन के रूप में छात्रवृत्ति देने के लिए भी तैयार है। उन्होंने त्रिनिदाद वासियों से अपील की कि हर व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी समझकर हिंदी के प्रचार-प्रसार में आगे बढ़े। उन्होंने यह प्रश्न किया कि क्या स्थानीय शिक्षण संस्थाएँ इस कार्य को अंजाम देने में उच्चायोग का सहयोग करने के लिए तैयार हैं?
पोर्ट ऑफ़ स्पेन स्थित राष्ट्रीय भारतीय संस्कृति परिषद (एनसीआईसी) के अध्यक्ष देवरूप तीमल ने कहा कि भाषा जीवन के साथ एकीकृत है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नेटवर्किंग आवश्यक है। आगे उन्होंने कहा कि त्रिनिदाद और टोबैगो में स्थित भारतीय मूल के वासियों में भारतीय संस्कृति ‘रामचरित मानस’ के रूप में विद्यमान है। भले ही यहाँ के लोग अर्थ न जानते हों, लेकिन मानस के पद कंठस्थ करते हैं। यह इसलिए क्योंकि भारतीयता उनके डीएनए में विद्यमान है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव रवींद्र प्रसाद जायसवाल ने कहा कि भारतीयता को समझने की कुंजी है हिंदी भाषा। यदि हम सांस्कृतिक अस्मिता को अक्षुण्ण रखना चाहते हैं तो क्षेत्रीय रंगों को भी अपनाना होगा। उन्होंने भी यही चिंता व्यक्त की कि इस यात्रा में हिंदी भाषा कहीं पीछे छूट रही है।
राष्ट्रीय पुस्तकालय और सूचना प्रणाली प्राधिकरण (नालिस) के चेयरमैन नील पर्सनलाल ने हिंदी भाषा, भारतीय सभ्यता और संस्कृति के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी में हिंदी भाषा के प्रति रुचि जगाने के लिए पुरज़ोर कोशिश किए जाने की ज़रूरत है।
त्रिनिदाद में स्थित हिंदी निधि के अध्यक्ष चंका सीताराम ने हिंदी भाषा को त्रिनिदाद और टोबैगो के भाषाई समाज में पुनः स्थापित करने के लिए युवा पीढ़ी से अपील की।
कार्यक्रम के आरंभ में वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय को श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर महात्मा गाँधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के छात्र और अध्यापकों ने गायन तथा भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया। ‘हिंदी, शिक्षा और संस्कृति’, पोर्ट ऑफ़ स्पेन के द्वितीय सचिव शिवकुमार निगम ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन आशा महाराज और ऋषा मोहम्मद ने किया।
उद्घाटन के बाद विचार सत्रों में त्रिनिदाद और टोबैगो के साहित्यकारों, समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों के साथ-साथ भारत, सूरीनाम, गयाना, अमेरिका से पधारे विद्वानों ने इस सम्बन्ध में अपने-अपने विचार व्यक्त किए। प्रथम विचार सत्र में देवरूप तीमल की अध्यक्षता में कमला रामलखन (त्रिनिदाद), सत्यानंद हेरोल्ड परमसुख (सूरीनाम), विकास रामकिसुन (सांसद, गयाना) ने कैरेबियाई क्षेत्र में बोली जाने वाली हिंदी के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला। इस विचार सत्र से यह तथ्य सामने आया कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा को सुरक्षित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह भी कि सूरीनाम में आज भी ‘सूरीनामी हिंदी’ बोली जाती है जो भोजपुरी और हिंदी का मिश्रित रूप है। विद्वानों ने यह कहा कि हिंदी और भारतीय संस्कृति उनकी अस्मिता है। इन कैरेबियाई क्षेत्रों में ‘रामचरित मानस’ ने हिंदू समाज को जोड़कर रखा है। यदि यहाँ के समाज में आज भी हिंदी जीवित है तो उसका श्रेय ‘मानस’ को ही जाता है। यहाँ के लोग ‘रामायण’ और ‘वेद’ को भी अंग्रेज़ी में ही पढ़ते हैं। गायन और संगीत के कारण यहाँ के लोग अपनी मूल संस्कृति के निकट हैं।
डॉ. हितेन्द्र कुमार मिश्र (शिलांग) की अध्यक्षता में संपन्न द्वितीय विचार सत्र में हिंदी भाषा को सीखने के लिए उपलब्ध संसाधनों के बारे में चर्चा करते हुए हिमांचल प्रसाद (गयाना), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), डॉ. प्रदीप के. शर्मा (सिक्किम) ने यह बताया कि गीत-संगीत, सिनेमा, लोकसंगीत, लोक नाटक आदि के माध्यम से भाषा सीखी और सिखाई जा सकती है। आज के समय में सोशल मीडिया के कारण तथा तकनीकी विकास के कारण इतने सारे मोबाइल एप्लीकेशन्स हैं कि भाषा सीखने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (चेन्नै) की अध्यक्षता में संपन्न तृतीय विचार सत्र में डॉ. निवेदिता मिश्र (त्रिनिदाद), रफ़ी हुसैन (त्रिनिदाद), इंदिरा (त्रिनिदाद) और डॉ. मिलन रानी जमातिया (त्रिपुरा) ने हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों के योगदान पर प्रकाश डाला और यह सिद्ध किया कि यदि उचित वातावरण उपलब्ध हो तो भाषा सीखने में समस्या नहीं होगी। भाषा सीखने के लिए पहली शर्त है जिज्ञासा और ज़रूरत।
चतुर्थ विचार सत्र में सूरजदेव मंगरू (त्रिनिदाद और टोबैगो), डॉ. शिवानंद महाराज (यूडब्ल्यूआई), राणा मोहिप (त्रिनिदाद और टोबैगो), कृष रामखलावन (सूरीनाम) ने ‘बैठक गाना’, ‘चटनी संगीत’ और ‘शास्त्रीय संगीत’ के बारे में बताते हुए व्यावहारिक तौर पर दर्शाया कि इनके माध्यम से कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा आज तक कैसे जीवित है।
हर विचार सत्र के बाद पैनल चर्चा हुई। रामप्रसाद परशुराम (त्रिनिदाद) की अध्यक्षता में संपन्न पैनल चर्चा में आशा मोर (त्रिनिदाद), नितिन जगबंधन (सूरीनाम), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), सुनैना परीक्षा रागिनीदेवी (सूरीनाम) और स्वामी ब्रह्मस्वरूप नंदा (त्रिनिदाद और टोबैगो) ने यह प्रतिपादित किया कि रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य कैरेबियाई क्षेत्र के लोगों की आत्मा में बसते हैं। आज की पीढ़ी अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं। अपनी भाषा हिंदी को सीखने की कोशिश कर रही है। डॉ. विद्याधर शाह की अध्यक्षता में संपन्न चर्चा में डॉ. हितेंद्र मिश्र, ईशा दीक्षित (त्रिनिदाद), कादंबरी आदेश (फ्लोरिडा) ने भाषा के विकास में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डाला। नील पर्सनलाल की अध्यक्षता में संपन्न विचार सत्र में डॉ. प्रदीप के शर्मा, डॉ. शशिधरन (केरल), डॉ. मिलन रानी जमातिया, विकास रामकिसुन ने हिंदी भाषा सीखने में फ़िल्मों की भूमिका पर प्रकाश डाला।
चर्चा-परिचर्चा के उपरांत उच्चायुक्त और सांसदों ने यह घोषणा की कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी विकास के लिए अनिवार्य क़दम उठाए जाएँगे। यह भी निर्णय लिया गया कि हिंदी सीखने के लिए जो छात्र आगे आएँगे उन्हें छात्रवृत्ति देकर प्रोत्साहित किया जाएगा। इतना ही नहीं, प्राथमिक स्तर पर हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव भी सरकार के समक्ष रखा जाएगा।
त्रि-दिवसीय सम्मेलन के दौरान चर्चा-परिचर्चाओं के अलावा, कैरेबियाई क्षेत्रों में प्रसिद्ध बैठक गाना, चटनी संगीत, लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य आदि का प्रदर्शन किया गया जिससे संपूर्ण वातावरण जीवंत हो उठा। 000
प्रस्तुति—डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
आगे पढ़ेंदीप्ति जी के पात्र अपने वुजूद के लिए नहीं बल्कि जीवनमूल्यों और संस्कारों को बचाने के लिए संघर्ष करते हैं—शीन काफ़ निज़ाम
जाने-माने आलोचक डॉ. कौशलनाथ उपाध्याय द्वारा सम्पादित आलोचना ग्रन्थ ‘कथाकार दीप्ति कुलश्रेष्ठ: सृजन के विविध आयाम’ के लोकार्पण का भव्य कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शाइर एवं चिंतक शीन काफ निज़ाम की अध्यक्षता में जोधपुर के होटल चंद्रा इम्पीरियल में संपन्न हुआ। निज़ाम ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आलोचना और आलोचना की बारीक़ियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, “दीप्ति जी के पात्र अपने वुजूद के लिए नहीं बल्कि जीवनमूल्यों और संस्कारों को बचाने के लिए संघर्ष करते हैं। ये पात्र लेखक के हाथ की कठपुतलियाँ नहीं हैं, वे जीवित पात्र हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हर रचनाकार और उसकी रचना को एक अच्छे पाठक की ज़रूरत होती है और दीप्ति जी को और उनके उपन्यासों ऐसे पाठक मिले हैं।”
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.सुनीता जाजोदिया, सचिव, तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी ने शिरकत करते हुआ कहा, “यदि समाज का व्यष्टिरूप रोगी और अस्वस्थ है, मनोविकार ग्रस्त और असंतुलित है तो स्वस्थ व सुंदर समष्टिरूप की आशा करना व्यर्थ है। दीप्ति जी का लेखन 'माइक्रो लेवल' के लिए है ताकि 'मैक्रो लेवल' की एक सुंदर तस्वीर प्राप्त हो सके।”
अपने सम्पादकीय उद्बोधन में डॉ. कौशलनाथ उपाध्याय ने कहा, “दीप्तिजी अपने हर एक उपन्यास में एक स्पष्ट विज़न लेकर चलती हैं; विज़न – खुलकर जीने का, अन्याय के प्रतिकार का, अतीत की नकारात्मकता-निषेधात्मकता से बाहर आने का, वर्तमान को सँवारने का, एक दूसरे का सहायक बनने का, अपने साथियों की ख़ूबियों को बाहर लाने का। और इन सब के साथ वे जीवन-मूल्यों को स्थापित करने में रचनात्मक योग देती हैं।”
इससे पूर्व लोकार्पित कृति के परिचय पर अपना पत्र प्रस्तुत करते हुआ डॉ. रंजना उपाध्याय ने कहा, “यह कृति उनकी रचना-यात्रा का अब तक का मुक़म्मल दस्तावेज़ है। एक ऐसा दस्तावेज़ जिसमें न मालूम कितने पात्र हैं जो समय एवं समाज के बीच अपनी सकारात्मक-नकारात्मक छाप छोड़ते हुए चलते हैं और दीप्ति जी उन सब के साथ यात्रा करती हैं।” बतौर विशिष्ट अतिथि राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा ‘मीरां पुरस्कार’ से सम्मानित (2018) कथा-लेखिका दीप्ति कुलश्रेष्ठ ने भी संपादित पुस्तक के विषय में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया।
कार्यक्रम का संचालन कवयित्री एवं गीतकार मधुर परिहार ने किया और अतिथियों का स्वागत प्रतिष्ठित कथाकार डॉ. शालिनी गोयल ने किया। कार्यक्रम में शहर के जाने-माने साहित्यकार जैसे हबीब कैफ़ी, डॉ. पद्मजा शर्मा, प्रगति गुप्ता, डॉ. सरोज कौशल, जागृति उपाध्याय, मीठेश निर्मोही, दिनेश सिंदल, हरिप्रकाश राठी, कालूराम परिहार, डॉ. हरिदास व्यास, ब्रजेश अंबर, इश्राकुल इस्लाम माहिर, कविता डागा, मनीषा डागा, नीतेश व्यास, अर्जुनलाल मीणा, रामेश्वर राठौड़, डॉ. वीणा चुण्डावत, संध्या शुक्ला, नीना छिब्बर, सत्येन्द्र छिब्बर, मोहित कुलश्रेष्ठ, रुचि कुलश्रेष्ठ, सोनल कुलश्रेष्ठ, विनोद गहलोत, रेणुका श्रीवास्तव सहित अनेक साहित्यकार मौजूद थे।
(डॉ. कौशलनाथ उपाध्याय)
आगे पढ़ेंबृजलोक अकादमी द्वारा सत् साहित्य भेंट
फतेहाबाद।
स्वतंत्रता दिवस के स्वर्णिम अवसर पर एस.के.जी. पब्लिक स्कूल ग्राम रिहावली के प्रबंधक महोदय होतम सिंह को बृजलोक साहित्य कला संस्कृति अकादमी (ट्रस्ट) के सौजन्य से विद्यालय के पुस्तकालय हेतु सत् साहित्य व ग़रीब छात्र-छात्राओं के लिए शैक्षणिक सामग्री ट्रस्ट के अध्यक्ष-मुकेश कुमार ऋषि वर्मा ने भेंट की।
इस अवसर पर विद्यालय के सभी अध्यापक व सैकड़ों छात्र-छात्राएँ मौजूद रहे।
ज्ञात हो बृजलोक अकादमी नियमित सत् साहित्य का प्रकाशन व वितरण करती आ रही है। ट्रस्ट के माध्यम से एक पुस्तकालय—ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय व एक विद्यापीठ ऋषि वैदिक विद्यापीठ का संचालन हो रहा है। ट्रस्ट जल्द अन्य सामाजिक व राष्ट्रहित के सेवा कार्यों को विस्तार रूप देगा।
आगे पढ़ेंअंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन
साहित्य संकाय, त्रिपुरा विश्वविद्यालय, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फ़ॉउंडेशन और सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 14 अगस्त 2024 की शाम स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर एक अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन का आयोजन किया गए।
प्रो. विनोद कुमार मिश्र, अधिष्ठाता, साहित्य संकाय, त्रिपुरा विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. राजेश श्रीवास्तव, संयुक्त निदेशक, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार की गरिमामय उपस्थिति रही।
न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फ़ॉउंडेशन की संस्थापक निदेशक श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला के संयोजन में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में 7 देशों के 12 रचनाकारों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। इन रचनाकारों में मॉरीशस से डॉ. कल्पना लालजी ऑस्ट्रेलिया से प्रिया शुक्ला, इंदौर से सुषमा दूबे, श्रीलंका से वजिरा गुणसेन, क़ुवैत से डॉ. विनोद कौशिक, पटना से नूतन सिन्हा और पूनम आनंद, दरभंगा से डॉ. अमरकांत कुमर, फरीदाबाद से मनोरंजन तिवारी आदि शामिल थे। कार्यक्रम का संचालन सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के के प्रधान संपादक डॉ। शैलेश शुक्ला ने किया।
आगे पढ़ेंचित्रकला के माध्यम से बिखेरे मन के रंग
अलीगढ़।
‘अभिनव बालमन’ द्वारा मांती बसई स्थित ‘बोहरे द्वारिका प्रसाद शर्मा इंटर कॉलेज’ में ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन किया गया।
बच्चों की दुनिया की अपनी सुन्दरता है। उसी सुंदर दुनिया से रंग लेकर बच्चों ने उन्हें अपने मन से तूलिका पर उकेरा।
विद्यालय के संरक्षक शिशुपाल शर्मा ने कहा कि बच्चों के बीच इस तरह का आनंद चित्रकला ने पैदा किया है। बच्चों का उत्साह ग़ज़ब का रहा।
विद्यालय की प्रधानाचार्या करुणा अग्रवाल ने बच्चों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि चित्रकला के माध्यम से बच्चों ने जो मनोभाव प्रदर्शित किए हैं वह प्रशंसनीय हैं।
कार्यक्रम का संयोजन लखन ने किया।
इस अवसर पर विद्यालय के आशीष सूर्यवंशी, साक्षी ग़ौर, शैलजा, पुनीता, देवेंद्र, अजीत शर्मा, रीना एवं मानवी का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंप्रवीण प्रणव की पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ पर चर्चा संपन्न
हैदराबाद, 8 अगस्त, 2024—
“समीक्षा अपने आप में बेहद जटिल और ज़िम्मेदारी भरा काम है। कोई भी समीक्षा कभी पूर्ण और अंतिम नहीं होती। सच तो यह है कि किसी कृति की सबसे ईमानदार समीक्षा स्वयं रचनाकार ही कर सकता है। कोई समीक्षक किसी रचनाकार की संवेदना को जितनी निकटता से पकड़ता है, उसकी समीक्षा उतनी ही विश्वसनीय होती है।”
ये विचार वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उत्तर प्रदेश) की पूर्व कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने आखर ई-जर्नल और फटकन यूट्यूब चैनल की ऑनलाइन परिचर्चा में प्रवीण प्रणव (हैदराबाद) की सद्यःप्रकाशित समीक्षा-कृति ‘लिए लुकाठी हाथ’ की विशद विवेचना करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में लेखक ने ऋषभदेव शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध आयामों को गहन अध्ययन के आधार पर उजागर किया है।
प्रो. मौर्य ने ज़ोर देकर कहा कि ‘लिए लुकाठी हाथ’ में विवेच्य रचनाकार के साहित्य के ज्वलंत प्रश्नों से साक्षात्कार किया गया है और यह दर्शाया गया है कि मनुष्य, समाज, राजनीति, लोकतंत्र और संस्कृति पर गहन विमर्श इस साहित्य को दूरगामी प्रासंगिकता प्रदान करता है।
कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रो. प्रतिभा मुदलियार (मैसूरु) ने कहा कि प्रवीण प्रणव ने अपनी पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ के माध्यम से पाठकों को विशेष रूप से दक्षिण भारत के हिंदी साहित्य फलक पर कवि, आलोचक और प्रखर वक्ता के रूप में प्रतिष्ठित ऋषभदेव शर्मा के साहित्य की जनवादी चेतना, स्त्री पक्षीयता, प्रेम प्रवणता और सौंदर्य दृष्टि का सहज दिग्दर्शन कराया है।
‘लिए लुकाठी हाथ’ के लेखक प्रवीण प्रणव ने अपने बेहद सधे हुए वक्तव्य में यह स्पष्ट किया कि आलोचनात्मक लेखन करते हुए लेखक स्वयं को भी समृद्ध करता चलता है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को लिखते हुए उन्होंने सटीक समीक्षा के लिए ज़रूरी वाक्-संयम सीखा और इससे वे अपने लेखन को अतिवाद तथा अतिरंजना से बचा सके। अपनी रचना प्रक्रिया समझाते हुए प्रवीण प्रणव ने यह सुझाव भी दिया कि जिस दिन आप उतना लिखना सीख जाएँगे जितना वास्तव में ज़रूरी है, उस दिन आप सचमुच लेखक बन जाएँगे। उन्होंने विवेच्य पुस्तक के लिए मार्गदर्शन हेतु श्री अवधेश कुमार सिन्हा, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. निर्मला एस. मौर्य और प्रो. देवराज का विशेष उल्लेख किया।
चर्चा का समाहार करते हुए ऋषभदेव शर्मा ने यह जानकारी दी कि ‘लिए लुकाठी हाथ’ के लेखक की निजी शैली को प्रो. देवराज ने ‘आत्मीय आलोचना’ तथा प्रो. अरुण कमल ने ‘जीवनचरितात्मक आलोचना’ कहा है।
कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी संगीता देवी ने किया तथा संयोजिका डॉ. रेनू यादव ने आभार ज्ञापित किया।
वर्ष 2024 का सत्राची सम्मान बजरंग बिहारी तिवारी को
सत्राची फाउंडेशन, पटना के द्वारा ‘सत्राची सम्मान’ की शुरुआत 2021 में की गयी। न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन को रेखांकित और प्रोत्साहित करना ‘सत्राची सम्मान’ का उद्देश्य है। अब तक श्री प्रेमकुमार मणि (2021) प्रो. चौथीराम यादव (2022) और श्री सच्चिदानंद सिन्हा (2023) जैसे बौद्धिक इस सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।
सत्राची सम्मान-2024 के लिए वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में चयन समिति गठित की गयी। इस समिति के सदस्य पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के तरुण कुमार और ‘सत्राची’ के प्रधान संपादक कमलेश वर्मा रहे।
सत्राची फाउंडेशन के निदेशक आनन्द बिहारी ने चयन समिति की सर्वसम्मति से प्राप्त निर्णय की घोषणा करते हुए बताया कि चौथा ‘सत्राची सम्मान’ (2024) प्रसिद्ध आलोचक व अत्यंत गंभीर अध्येता बजरंग बिहारी तिवारी को दिया जाएगा।
बजरंग बिहारी तिवारी बिना किसी शोर-शराबे के पिछले करीब 20-22 वर्षों से लगातार दलित आंदोलन और साहित्य का गंभीर अध्ययन-विश्लेषण करते हुए भारतीय समाज के जातिवादी चरित्र के यथास्थितिवाद से टकराते रहे हैं। लेखन और चिंतन के लिए ऐसे विषय का चुनाव और लगातार इस मोर्चे पर उनकी सक्रियता से न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का पता चलता है।
आगामी 20 सितम्बर, 2024 को बजरंग बिहारी तिवारी को सम्मान-स्वरूप इक्यावन हज़ार रुपये का चेक, मानपत्र, अंगवस्त्र और स्मृति-चिह्न प्रदान किया जाएगा।
01 मार्च, 1972 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले के नियावाँ गाँव में जन्मे बजरंग बिहारी तिवारी हिन्दी के महत्वपूर्ण आलोचक हैं। शुरुआती शिक्षा अपने गाँव में रहकर पूरी करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा इलाहाबाद और दिल्ली से प्राप्त की। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से उन्होंने हिन्दी में एम.ए., एम.फिल. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पिछले सत्ताईस वर्षों से वे दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज में अध्यापन कर रहे हैं। भक्तिकाव्य, समकालीन संस्कृत साहित्य, भारतीय दलित आंदोलन और अस्मितामूलक साहित्य उनके अध्ययन-चिंतन के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। इक्कीसवीं सदी की हिन्दी आलोचना की पहचान जिन महत्वपूर्ण और संवेदनशील आलोचकों के जरिए बनती है, उनमें बजरंग बिहारी तिवारी का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दलित साहित्य और उसके बहाने जाति का सवाल बजरंग बिहारी तिवारी की आलोचना का केंद्र है। 2003 से ही इन्होंने ‘दलित प्रश्न’ शीर्षक स्तंभ ‘कथादेश’ पत्रिका में लिखना शुरू किया। वे दलित आंदोलन को ‘जातिवादी हिंसा से जूझने वाले संघर्षों के नवीनतम पड़ाव’ के रूप में देखते हैं। जातिवाद के विरुद्ध संघर्षों की परंपरा में दलित विमर्श की ऐतिहासिक महत्ता को रेखांकित करने के साथ-साथ वे उसके अंतर्विरोधों और दलित विमर्श की विभिन्न धाराओं के आपसी मतभेदों की भी बारीकी से पहचान करते हैं। दलित स्त्रीवाद के हवाले से दलित स्त्रियों के संघर्ष को भी इन्होंने अपने लेखन में रेखांकित किया है। इनकी प्रकाशित किताबें भारतीय समाज की सबसे ज्वलंत समस्या- जाति के सवाल को पूरी संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ उठाती हैं। 1. दलित कविता : प्रश्न और परिप्रेक्ष्य, 2. हिंसा की जाति : जातिवादी हिंसा का सिलसिला, 3. दलित साहित्य : एक अंतर्यात्रा, 4. केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य, 5. बांग्ला दलित साहित्य : सम्यक अनुशीलन, 6. जाति और जनतंत्र : दलित उत्पीड़न पर केंद्रित, 7. भारतीय दलित साहित्य : आंदोलन और चिंतन, 8. भक्ति कविता, किसानी और किसान आंदोलन, 9. किसान आंदोलन और दलित कविता बजरंग बिहारी तिवारी की महत्वपूर्ण किताबें हैं। इसके अलावा इन्होंने दलित स्त्री के जीवन से संबंधित कहानियों, कविताओं और आलोचना की तीन किताबों का संपादन भी किया है।
पिछले कुछ वर्षों से बजरंग बिहारी तिवारी भारतीय दलित साहित्य के संकलन और विश्लेषण की अत्यंत श्रमसाध्य परियोजना पर काम कर रहे हैं। केरल के दलित साहित्य और बांग्ला दलित साहित्य से संबंधित उनकी किताबें इसी वृहद् परियोजना का हिस्सा हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों के दलित आंदोलन के स्वरूप और उसके साहित्य को समग्रता में और साथ ही तुलनात्मक रूप से समझने में यह निश्चित रूप से अत्यंत मददगार साबित होगा।
इस तरह के महत्वपूर्ण लेखकीय योगदान को ध्यान में रखकर बजरंग बिहारी तिवारी को ‘सत्राची सम्मान’- 2024 से सम्मानित किए जाने के निर्णय से सत्राची फाउंडेशन स्वयं को सम्मानित महसूस कर रहा है।
डॉ. आनन्द बिहारी
संपादक: सत्राची
आगे पढ़ेंनदलेस ने की लोकार्पण एवं काव्य पाठ गोष्ठी
दिल्ली। नव दलित लेखक संघ, दिल्ली के तत्वावधान में लोकार्पण एवं काव्य-पाठ गोष्ठी का आयोजन किया गया। सलीमा जी के संयोजन में, गोष्ठी दरिया गंज, नई दिल्ली में रखी गई। गोष्ठी में सर्वप्रथम गीता कुमारी गंगोत्री की सद्यः प्रकाशित पुस्तक हिंदी की काव्यात्मक वर्णावली का लोकार्पण किया गया, तत्पश्चात् उपस्थित कवियों का काव्य पाठ हुआ। अध्यक्षता पुष्पा विवेक ने की एवं संचालन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया। उक्त के अतिरिक्त गोष्ठी में क्रमशः मदनलाल राज़, डॉ. गीता कृष्णांगी, सुनीता कुमारी प्रसाद, लोकेश कुमार, बंशीधर नाहरवाल, अरुण कुमार पासवान, जोगेंद्र सिंह, बृजलाल सहज, अभिषेक चंदन, नतालिया अली, डॉ. सैयद अली अख़्तर नक़वी और अज़ीमा आदि उपस्थित रहे।
मदनलाल राज़ ने कविता कुछ यूँ पढ़ी “मैं तो केवल यारों सच्चाई उकेर रहा हूँ, ठंडी पड़ी राख में आग खुकेर रहा हूँ। आग लगा दे टीवी और झूठे अख़बार को, जो जला दे देश में फैले भ्रष्टाचार को।” सुनीता कुमारी ने कविता पर कविता पढ़ते हुए कहा, “मैं कविता हूँ, मैं धर्म में हूँ, मैं पुराण में हूँ, मैं वेद में हूँ, मैं क़ुरान में हूँ, मैं प्रार्थना में हूँ, मैं अज़ान में हूँ, मैं हृदय में हूँ, मैं ईमान में हूँ, मैं कविता हूँ, मैं कविता हूँ।” अभिषेक चंदन ने पढ़ा, “सोते हुए राष्ट्र को सोते हुए जगा सकोगे क्या? रोते हुए राष्ट्र को रोते हुए जगा सकोगे क्या?” डॉ. सैयद अली अख़्तर नक़वी ने अपनी कविता कुछ यूँ पढ़ी, “चलो एक बार फिर बात करते हैं, सुलह की एक नई शुरूआत करते हैं, हमने कही थीं एक दूसरे को जो बातें, अब उन्हें हम नज़रअंदाज़ करते हैं, अब न करेंगे हम आपस में कोई झगड़ा, आज हम दोनों ये ऐलान करते हैं।” बृजपाल सहज की कविता कुछ इस प्रकार रही, “हर ओर तमाशा हो रहा है, देखने वाला भी ख़ूब रो रहा है, आपदा भी अवसर है साहब, कोई तो है जो रईस हो रहा है।” अरुण कुमार पासवान ने अपनी कविता दवा और दावा कुछ इस प्रकार पढ़ी, “सिर्फ एक लाठी का फ़र्क़ है दवा और दावा में, दवा करने से बहुत आसान है दावा करना, लाठी ही तो उठानी है और कहवा लेना है कि दवा मिल रही है।” इनके अलावा गीता कुमारी गंगोत्री, जोगेंद्र सिंह, बंशीधर नाहरवाल, लोकेश कुमार, डॉ. अमित धर्मसिंह और पुष्पा विवेक ने भी अपनी अपनी कविताओं से गोष्ठी को ऊँचाइयाँ प्रदान की। सभी उपस्थित रचनाकारों का तहेदिल से शुक्रिया अदा गोष्ठी की संयोजक सलीमा ने किया।
जोगेंद्र सिंह
प्रचार सचिव, नदलेस
रेनबो इंटरनेशनल स्कूल नगरोटा बगवां में टैलेंट का महासंग्राम में प्रतिभागियों ने दिखाई अपनी कला
नगरोटा बगवां: हिमाचल प्रदेश।
‘आपना कांगड़ा एंटरटेनमेंट’ के बैनर तले जहाँ पूरे हिमाचल में ऑडिशन लिए जा रहे हैं। उसी कड़ी को आगे बढ़ते हुए रविवार को टैलेंट का महासंग्राम के ऑडिशन नगरोटा बगबां के रेनबो इंटरनेशनल स्कूल में लिए गए। ऑडिशन में प्रतिभागियों ने सिंगिंग नृत्य पेंटिंग योग और मॉडलिंग में अपनी-अपनी कला के जलवे दिखाए और निर्णायक मंडल को दाँतों तले उँगली चबाने पर मजबूर कर दिया। जानकारी के लिए बता दें कि ऑडिशन में 45 से 50 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था, जिसमें सिंगिंग के निर्णायक मंडल में हिमाचल प्रदेश की मख़मली आवाज़ मानसिंह जी ने सिंगिंग के प्रतिभागियों की प्रतिभा को निखारा, वहीं डांस के निर्णायक मंडल में चिंकी गुप्ता और विवेक कुमार ने अपनी पैनी नज़र से प्रतिभागियों के हुनर को परखा। पेंटिंग के निर्णायक मंडल में विशाल की अहम भूमिका रही। मॉडलिंग के निर्णायक मंडल में प्रीति सिंह और ख़ुश्बू की भूमिका अहम रही। सभी निर्णायक मंडल ने प्रतिभागियों के उज्जवल भविष्य की कामना की और ऐसे कार्यक्रमों में अधिक से अधिक भाग लेने के लिए युवा युवकों और युवतियों को प्रेरित किया और अधिक से अधिक संख्या में भाग देने के लिए जागरूक किया।
इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश के लोक गायक करनैल राणा जी, हिमाचल प्रदेश के कालजुए पीड फेम अमित मीतू, हिमाचल प्रदेश के कॉमेडियन प्रिंस गर्ग जी मौजूद रहे और उन्होंने अपनी कॉमेडी के जलवे से दर्शकों को तालियाँ बजाने पर मजबूर कर दिया। इस अवसर पर टी-सीरीज़ कंपनी से पोलाराम ढांगवाला जी मुख्य रूप से उपस्थित रहे और उन्होंने हिमाचल फ़िल्म ‘फौजीए दी फ़ैमिली’ के लिए कुछ कलाकारों को चयनित किया जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। बता दें की ‘फौजीए दी फ़ैमिली’ पार्ट 2 की शूटिंग जल्द ही पूरे हिमाचल में शुरू हो जाएगी और जल्द ही यह फ़िल्म दर्शकों के लिए टी-सीरीज़ कंपनी के बैनर तले देखने को मिलेगी। इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश के फनकार एंकर संदीप चौधरी और विजय कुमार ने अपनी मख़मली आवाज़ से दर्शकों को बैठने पर मजबूर कर दिया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉक्टर नरेश बरमाणी और विशेष अतिथि के रूप में कुलदीप धीमान ने शिरकत की और प्रतिभागियों के उज्जवल भविष्य की कामना की। सुमित गुप्ता ने बताया कि आगे जो फ़ाइनल होगा, वह प्रतिभागियों के लिए मुश्किल होने वाला है और प्रतिभागी किसी भी तरह की लापरवाही ना बरतते हुए पूरी तैयारी के साथ आएँ। इस अवसर पर बिलासपुर हमीरपुर मंडी कांगड़ा से आए हुए प्रतिभागियों ने भी भाग लिया और अपनी कला के जलवे दिखाए। कार्यक्रम में आपना ‘कांगड़ा एंटरटेनमेंट’ की ब्रांड प्रमोटर आरबी सोनी और प्रेजी शर्मा ने अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया और योग गर्ल अवंतिका ठाकुर ने अपनी प्रस्तुति देकर दर्शकों को एक जगह पर स्थित रहकर अपनी प्रस्तुति देखने के लिए मजबूर कर दिया। कार्यक्रम में युवा कवि लेखक डॉ. राजीव डोगरा, समाजसेवी पूजन भंडारी, बाबा त्रिलोकनाथ, अनिल गुप्ता, त्रिलोक धीमान, रविंदर कपूर विशेष रूप से उपस्थित रहे और कार्यक्रम को सफल बनाने में उनका विशेष योगदान रहा।
डॉ. राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)
साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित की गई रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी
रामदरश मिश्र के साहित्य में मानवता के सच्चे सूत्र हैं—रघुवीर चौधरी
सौवें वर्ष में चल रहे हिंदी के वयोवृद्ध प्रो. मिश्र ने बताया अपनी लंबी उम्र का राज़
रामदरश मिश्र ने अपने लंबे जीवन के रहस्य के बारे में बताते हुए कहा कि इसके लिए मैं तीन कारण बताता हूँ पहला—मैंने कोई महत्वकांक्षा नहीं पाली, दूसरा कोई नशा नहीं किया यहाँ तक कि पान तक भी नहीं और तीसरा मेरा बाज़ार से कोई सम्बन्ध नहीं, मतलब घर का ही खाया-पिया।
दिल्ली। साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिष्ठित कवि, कथाकार रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन प्रख्यात गुजराती लेखक एवं साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य रघुवीर चौधरी ने किया। रामदरश मिश्र स्वयं विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। बीज भाषण प्रख्यात हिंदी लेखक प्रकाश मनु ने दिया और अध्यक्षीय वक्तव्य साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा द्वारा दिया गया। कार्यक्रम के आरंभ में अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा स्वागत वक्तव्य दिया गया।
पूरे दिन चले इस कार्यक्रम में रामदरश मिश्र जी के पद्य और गद्य साहित्य पर अलग-अलग दो सत्रों में आमंत्रित विद्वानों द्वारा आलेख पढ़े गए। पहले सत्र में अध्यक्ष के तौर पर सुविख्यात कवि बालस्वरूप राही और वक्ता के रूप में कवि-आलोचक ओम निश्चल तथा प्रोफ़ेसर व मिश्र जी की सुपुत्री प्रोफ़ेसर स्मिता मिश्र ने अपने विचार व्यक्त किए। दूसरे सत्र की अध्यक्षता अंतरराष्ट्रीय महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में मिश्र जी के कथेतर गद्य साहित्य पर डॉ. वेद मित्र शुक्ल, कथा साहित्य पर कवि-कथाकार सुश्री अलका सिन्हा एवं आलोचना पर वरिष्ठ आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने अपने-अपने आलेख-पाठ किए।
इस अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव के। श्रीनिवासराव ने जन्मशती संगोष्ठी को दुर्लभ अवसर बताते हुए कहा कि रामदरश मिश्र के स्वभाव की सरलता उनके लेखन में भी है, जो उनके व्यक्तित्व के साथ ही उनके कृतित्व को महत्त्वपूर्ण बनाता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित रघुवीर चौधरी जो अहमदाबाद में श्री मिश्र के शिष्य भी रहे, ने अपने ‘सर’ को याद करते हुए गुजरात सम्बन्धी अनेक संस्मरण श्रोताओं से साझा किए। उन्होंने उनकी रचनाओं में नाटकीय तत्वों और कहानियों के अंत में मानवता जाग्रत होने वाले बिंदुओं पर विशेष चर्चा की। आगे उन्होंने कहा कि उनके उपन्यास पात्रों के विशिष्ट चरित्र चित्रण के नाते महत्त्वपूर्ण हैं। ‘अपने लोग’ को उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके छोटे उपन्यास भी अपनी कलात्मकता में विशिष्ट है। रामदरश मिश्र द्वारा गाए जाने वाले कजरी गीतों को याद करते हुए कहा कि वे सस्वर गाते थे।
बीज वक्तव्य देते हुए प्रकाश मनु ने कहा कि श्री मिश्र साहित्य के हिमालय पुरुष है, जिसके नीचे बैठकर नयी पीढ़ी अनेक बातें सीख सकती है। उनके संपूर्ण लेखन में समय का इतिहास मिलता है और उस सबका मिज़ाज गंगा-जमुनी है। उनकी कविताओं में नए ज़माने का बोध तो है ही उनका गद्य भी बहुत प्रभावशाली है। उनकी हर विधा में आम-आदमी ही केंद्र में है।
रामदरश मिश्र ने इस भव्य आयोजन के लिए साहित्य अकादमी को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस सम्मान से मैं अभिभूत हूँ। उन्होंने अपने लंबे जीवन के रहस्य के बारे में बताते हुए कहा कि इसके लिए मैं तीन कारण बताता हूँ पहला—मैंने कोई महत्वकांक्षा नहीं पाली, दूसरा कोई नशा नहीं किया यहाँ तक कि पान तक भी नहीं और तीसरा मेरा बाज़ार से कोई सम्बन्ध नहीं, मतलब घर का ही खाया-पीया। उन्होंने अपने कई संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मैं अमूमन जहाँ जाता हूँ, वहीं का होकर रह जाना चाहता हूँ। इसीलिए मुझे घर-घुसरा भी कहा जाता है। उन्होंने अपने गुजरात के आठ वर्षों को बहुत आत्मीयता से याद करते हुए उमाशंकर जोशी और भोला भाई पटेल को भी याद किया। अपने गुरु हजारी प्रसाद द्विवेदी के भी कई संस्मरण उन्होंने सुनाए। अंत में उन्होंने अपने कई मुक्तक, कविताएँ एवं अपनी सुप्रसिद्ध ग़ज़ल “बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे” सुनाई।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि गाँव हमेशा मिश्र जी के साथ रहा और उनकी कविताओं में मानवता को प्रतिष्ठित किया गया है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण संवेदनाओं के साथ पूरा युग बोध प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत होता है।
प्रथम सत्र जो उनके पद्य साहित्य पर केंद्रित था कि अध्यक्षता बालस्वरूप राही ने की और उनकी पुत्री स्मिता मिश्र एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। स्मिता मिश्र ने अपने पिता की सदाशयता और जिजीविषा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी हिम्मत से ही परिवार की हिम्मत भी बनी रही। ओम निश्चल ने कहा कि उनकी कविता की गीतात्मकता उसकी ताक़त है। पूरी सदी का काव्य बोध उनके लेखन में झलकता है। उनका लेखन हमेशा समकालीन परिस्थितियों से परिचालित होता रहा। बाल स्वरूप राही ने मॉडल टाउन में रहने के उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वे बहुत ही सहज और मानवीय थे। उन्होंने उनकी कई रचनाओं को पढ़कर भी सुनाया।
द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद् गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में अलका सिन्हा ने उनके कथा लेखन में उपेक्षित पात्रों की बेहतरी की कल्पना और स्त्री के संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका पूरा लेखन गाँव के यथार्थ का चित्रण और बहुत ईमानदारी से किया गया है। डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने उनके कथेतर गद्य पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके कथेतर गद्य में भी कविता/कहानी के अंश हैं। मिश्र जी के साहित्य में कथेतर गद्य ने बड़ी सहजता से अपना स्थान बनाया है। इसके बावजूद कथेतर की कई विधाओं में उन्होंने प्रचुर मात्रा में लिखा है। ‘जीवन-राग’ और जीवन मूल्यों की पहचान से गुंजित उनका कथेतर साहित्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। सुविख्यात आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने उनकी आलोचना पुस्तकों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मूल्य उनकी आलोचना को समझने का बीज शब्द है। रामदरश मिश्र ने आलोचना को भी सृजनात्मक बना दिया है। दूसरे शब्दों में उनकी आलोचना को ‘सृजनात्मक आलोचना’ कहा जा सकता है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि गाँव हमेशा मिश्र जी के साथ रहा और उनकी कविताओं में मानवता को प्रतिष्ठित किया गया है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण संवेदनाओं के साथ पूरा युग बोध प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत होता है।
प्रथम सत्र जो उनके पद्य साहित्य पर केंद्रित था कि अध्यक्षता बालस्वरूप राही ने की और उनकी पुत्री स्मिता मिश्र एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। स्मिता मिश्र ने अपने पिता की सदाशयता और जिजीविषा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी हिम्मत से ही परिवार की हिम्मत भी बनी रही। ओम निश्चल ने कहा कि उनकी कविता की गीतात्मकता उसकी ताक़त है। पूरी सदी का काव्य बोध उनके लेखन में झलकता है। उनका लेखन हमेशा समकालीन परिस्थितियों से परिचालित होता रहा। बाल स्वरूप राही ने मॉडल टाउन में रहने के उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वे बहुत ही सहज और मानवीय थे। उन्होंने उनकी कई रचनाओं को पढ़कर भी सुनाया।
द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद् गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में अलका सिन्हा ने उनके कथा लेखन में उपेक्षित पात्रों की बेहतरी की कल्पना और स्त्री के संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका पूरा लेखन गाँव के यथार्थ का चित्रण और बहुत ईमानदारी से किया गया है। डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने उनके कथेतर गद्य पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके कथेतर गद्य में भी कविता/कहानी के अंश हैं। मिश्र जी के साहित्य में कथेतर गद्य ने बड़ी सहजता से अपना स्थान बनाया है। इसके बावजूद कथेतर की कई विधाओं में उन्होंने प्रचुर मात्रा में लिखा है। ‘जीवन-राग’ और जीवन मूल्यों की पहचान से गुंजित उनका कथेतर साहित्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। सुविख्यात आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने उनकी आलोचना पुस्तकों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मूल्य उनकी आलोचना को समझने का बीज शब्द है। रामदरश मिश्र ने आलोचना को भी सृजनात्मक बना दिया है। दूसरे शब्दों में उनकी आलोचना को ‘सृजनात्मक आलोचना’ कहा जा सकता है।
अंत में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि उनके लेखन में सहज रूप में मानवीय मूल्यों की स्थापना पाई जाती है। उनकी सभी रचनाओं में जीवन संघर्ष का सच्चा प्रतिनिधित्व है और वह समय के साथ अपने को बदलते भी रहे हैं। कुल मिलाकर रामदरश मिश्र समग्रता के साथ साहित्य की रचना के पक्षधर हैं।
कार्यक्रम का संचालन अकादमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। कार्यक्रम में रामदरश मिश्र के पूरे परिवार के साथ ही उनके अनेक शिष्य, लेखक, कॉलेज के विद्यार्थी और पत्रकार उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंडॉ. रमा द्विवेदी कृत ‘खंडित यक्षिणी’ (कहानी संग्रह) लोकार्पित
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) के संयुक्त तत्वावधान में द्वितीय दक्षिण भारतीय साहित्योत्सव 30 जून 2024 (रविवार) सुबह 10:00 बजे से केंद्रीय हिंदी संस्थान के सभागार में आयोजित हुआ।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस कार्यक्रम प्रो. गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। प्रो. ऋषभदेव शर्मा, परामर्शी (मौलाना आज़ाद उर्दू विश्वविद्यालय) मुख्य अतिथि रहे। डॉ. अहिल्या मिश्रा (वरिष्ठ साहित्यकार एवं समाज सेवी) राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ (अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, उत्तर प्रदेश शाखा), ओमप्रकाश शुक्ल (महासचिव, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, दिल्ली) विशिष्ट अतिथि रहे। डॉ. सुरभि दत्त (पूर्व प्राचार्या, हिंदी महाविद्यालय) डॉ. राशि सिन्हा (साहित्यकार) सम्माननीय अतिथि तथा प्रमुख अतिथि रामकिशोर उपाध्याय (संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) एवं शाखा अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ मंचासीन सभी अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। छात्रा अद्रिका कुमार ने सरस्वती वंदना प्रस्तुति।
तत्पश्चात् डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों के सम्मान में स्वागत भाषण दिया। अतिथियों का सम्मान शॉल, माला, एवं स्मृति चिह्न द्वारा सभी सदस्यों के द्वारा किया गया। राष्ट्रीय महासचिव ओमप्रकाश शुक्ल द्वारा संस्था का परिचय एवं उसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला गया एवं इकाई की महासचिव दीपा कृष्णदीप ने शाखा की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
तत्पश्चात् वरिष्ठ साहित्यकार रामकिशोर उपाध्याय कृत “दस हाथ वाला आदमी” व्यंग्य संग्रह का परिचय देते हुए डॉ. सुरभि दत्त ने कहा कि आज के परिवेश को शालीनता पूर्वक व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। इसमें राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक विसंगतियों का उल्लेख किया गया है। इस संदर्भ में हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार कबीरदास का भी उल्लेख किया गया एवं अतिथियों द्वारा पुस्तक का लोकार्पण किया गया। तत्पश्चात् पुस्तक के लेखक रामकिशोर उपाध्याय ने पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए।
वरिष्ठ साहित्यकार राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ कृत “चाक सी नाचती ज़िन्दगी” उपन्यास का परिचय देते हुए रामकिशोर उपाध्याय ने कहा कि “लेखक के अपने जीवन के विविध अनुभव इस उपन्यास में समाहित हैं। उपन्यास में ग्रामीण प्राचीन परिवेश का परिदृश्य प्रस्तुत किया गया है। शिल्प के स्तर पर यह उपन्यास अतिरेक रहित एवं सहज सम्प्रेष्णीय है।” सभी अतिथियों के द्वारा पुस्तक का लोकार्पण किया, तत्पश्चात् पुस्तक के लेखक राजेश सिंह ’श्रेयस’ ने अपनी कृति की रचना प्रक्रिया पर विचार व्यक्त किए।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रमा द्विवेदी कृत ’खंडित यक्षिणी’ कहानी संग्रह का परिचय देते हुए डॉ. राशि सिन्हा ने कहा कि “स्त्री का सशक्त रूप एवं द्वंद्वों से मुक्ति की छटपटाहट को इस संग्रह में देखा जा सकता है। लेखिका ने चित्रात्मक शैली के प्रयोग के माध्यम से कहानी संग्रह को जीवंत बना दिया है।” अतिथियों द्वारा पुस्तक का लोकार्पण किया गया एवं लेखिका ने पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए।
सभी अतिथियों ने पुस्तकों के लोकार्पण पर सभी लेखकों को बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।
नगर की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती विनीता शर्मा जी को केंद्र की तरफ़ से ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ देकर अलंकृत किया गया।
इस अवसर पर वरिष्ठतम साहित्यकार श्रीमती रत्नकला मिश्रा, डॉ. संजीव चौधरी, छात्रा अद्रिका कुमार, डॉ. राजीव सिंह ‘नयन’, तृप्ति मिश्रा का सम्मान किया गया। नंदकिशोर वर्मा (लखनऊ) को जल एवं पर्यावरण संरक्षण में योगदान हेतु सम्मानित किया गया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय तथा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमा द्विवेदी का सम्मान तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती संस्था की प्रदेश प्रभारी डॉ. सुरभि दत्त एवं अध्यक्ष डॉ राजीव सिंह ‘नयन’ द्वारा किया गया। वरिष्ठम साहित्यकार रत्नकला मिश्रा एवं डॉ संगीता शर्मा ने डॉ. रमा द्विवेदी का सम्मान किया।
मुख्य अतिथि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि विधा कोई भी हो, उसमें केंद्रित होती हैं मानवीय संवेदनाएँ, जो इन तीनों सद्यः प्रकाशित संग्रह में दृष्टव्य हैं। उन्होंने कहा कि सत्यम, शिवम, सुंदरम में रचनाकार शिव की कामना से प्रेरित होकर सृजन करता है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. अहिल्या मिश्रा जी ने कहा कि व्यंग्य लेखन अत्यंत गूढ़ कार्य है। गद्य में सतर्क रहकर ही व्यंग्य लिखा जा सकता ह। उपन्यास में ग्रामीण जीवन के आदिम युग से लेकर सबको परिचित कराया गया है। डॉ. रमा द्विवेदी नारी अस्मिता के प्रति प्रतिबद्ध एवं सजगता पूर्ण लेखन करती हैं। उन्होंने सभी रचनाकारों को बधाई दीं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. गंगाधर वानोडे ने रचनाकारों के कुछ उल्लेखनीय पंक्तियों का उल्लेख करते हुए उन्हें बधाई दी।
इस सत्र का आभार ज्ञापन डॉ. आशा मिश्रा ने दिया एवं संचालन डॉ राजीव सिंह ‘नयन’ ने किया।
दूसरे सत्र में डॉ. अहिल्या मिश्रा की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। मुख्य अतिथि प्रो. ऋषभ देव शर्मा, विशिष्ट अतिथि-डॉ गंगाधर वानोडे, राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’, ओमप्रकाश शुक्ल, गौरवनीय अतिथि रामकिशोर उपाध्याय एवं सम्माननीय अतिथि—डॉ. संजीव चौधरी, डॉ. सुषमा देवी मंचासीन हुए।
उपस्थित सभी रचनाकारों ने विविध विषयों पर भावपूर्ण रचनाएँ प्रस्तुत करके समां बाँध दिया। उमा सोनी, तृप्ति मिश्रा, डॉ. सुरभि दत्त, डॉ. राशि सिन्हा, डॉ. राजीव सिंह ‘नयन’, सरिता दीक्षित, डॉ. संगीता शर्मा, प्रियंका पाण्डे, डॉ. स्वाति गुप्ता, सविता सोनी, डॉ. उषा शर्मा, चंद्रप्रकाश दायमा, नितेश सागर, मोहिनी गुप्ता, दीपा कृष्ण दीप, डॉ. रमा द्विवेदी, रेखा अग्रवाल, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. गंगाधर वानोडे, राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’, ओमप्रकाश शुक्ल, रामकिशोर उपाध्याय, डॉ. संजीव चौधरी, डॉ. सुषमा देवी ने काव्य पाठ करके माहौल को बहुत ख़ुशनुमा बना दिया।
डॉ. अहिल्या मिश्र जी ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया।
इस समारोह में कई गणमान्य व्यक्ति रत्नकला मिश्रा, डॉ. आशा मिश्रा, डॉ. एस राधा, पंकज यादव, सजग तिवारी, शेख़ मस्तान वली, डॉ. संदीप कुमार, जी परमेश्वर, सन्देश भारद्वाज, राम सुदिष्ट शर्मा एवं अन्य श्रोता इस समारोह में लगभग 70 लोग उपस्थित रहे।
सत्र का संचालन तृप्ति मिश्रा ने किया एवं प्रियंका पांडे के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।
प्रेषक-
डॉ. रमा द्विवेदी, अध्यक्ष /युवा उत्कर्ष मंच
साहित्य परिषद ने प्रो. सूर्य प्रकाश दीक्षित को अटल साहित्य सम्मान से विभूषित किया
बरेली। 23 जून अखिल भारतीय साहित्य परिषद ब्रज प्रांत के तत्वावधान में अटल साहित्य सम्मान समारोह का आयोजन आज चंद्रकांता ऑडीटोरियम में सम्पन्न हुआ। समारोह में लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफ़ेसर डॉ. सूर्य प्रकाश दीक्षित को साहित्य में अविस्मरणीय योगदान के लिए अटल साहित्य सम्मान 2023 से विभूषित गया गया। सम्मान स्वरूप उन्हेंं 5100 रुपए की धनराशि, शाल, स्मृति चिह्न नारियल और सम्मान पत्र देकर अलंकृत किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. अरुण कुमार, कार्यक्रम अध्यक्ष राष्ट्रधर्म के प्रबंध निदेशक डॉ. पवन पुत्र बादल, विशिष्ट अतिथि राजश्री ग्रुप की चेयरपर्सन डॉ. मोनिका अग्रवाल, डॉ. नवल किशोर गुप्ता, प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. सुरेश बाबू मिश्रा एवं प्रांतीय महामंत्री डॉ. शशि बाला राठी ने उन्हेंं यह सम्मान प्रदान किया।
कवि रोहित राकेश, डॉ. एस पी मौर्य, वी के शर्मा, प्रभाकर मिश्र, प्रवीण कुमार शर्मा, डॉ. अखिलेश कुमार गुप्ता, वी सी दीक्षित, डॉ. सी पी शर्मा राजबाला धैर्य आदि ने मंचासीन अतिथियों का माल्यार्पण एवं बैज लगाकर एवं तुलसी के गमले प्रदान कर स्वागत किया।
इससे पूर्व मोहन चन्द्र पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। उमेश चंद्र गुप्ता ने अभिनन्दन गीत प्रस्तुत किया। प्रांतीय संयुक्त मन्त्री रोहित राकेश ने अटल जी की चिरपरिचित कविता, “बाधाएँ आती हैं आएँ” सुनाई।
प्रांतीय महामंत्री डॉ. शशि बाला राठी ने अतिथि परिचय एवं स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। अटल साहित्य सम्मान के आयोजन के सम्बन्ध में प्रांतीय अध्यक्ष सुरेश बाबू मिश्रा ने कहा कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद ब्रजप्रान्त हर देश के पूर्व प्रधानमन्त्री, प्रखर पत्रकार एवं ख्यातिलब्ध कवि अटल बिहारी बाजपेई की स्मृति में प्रदेश के किसी वरिष्ठ साहित्यकार को अटल साहित्य सम्मान से सम्मानित करता है। इसी शृंखला के अंतर्गत इस बर्ष का अटल साहित्य सम्मान प्रोफ़ेसर दीक्षित जी को प्रदान किया जा रहा है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. अरुण कुमार जी ने कहा कि अटल जी राजनीति के अजातशत्रु थे। उन्होंने साहित्य परिषद द्वारा अटल साहित्य सम्मान का आयोजन करने के लिए परिषद की सराहना की।
समारोह की विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मोनिका अग्रवाल ने कहा कि साहित्य संस्कृति, संस्कारों और राष्ट्रीय चेतना की त्रिवेणी है। साहित्य समाज को रचनात्मक दिशा देने का कार्य करता है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. ऐन के गुप्ता ने कहा अटल जी राजनीतिक शुचिता के प्रतीक थे।
अपने स्वागत से अभिभूत प्रोफ़ेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित ने भारत के गौरवमय अतीत पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पृथ्वीराज चौहान के बाद देश से हिन्दू साम्राज्य का अंत हो गया। इसके बाद देश में हमारी संस्कृति, सभ्यता और धर्म के पराभव का कालखंड प्रारम्भ हुआ। ऐसे में देश के साहित्यकारों ने अत्याचारों से पीड़ित जनता को भक्ति एवं धार्मिक चेतना का सम्वल प्रदान किया और भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखा।
कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. पवन पुत्र बादल ने अपने उद्बोधन में अटल विहारी बाजपेई के जीवन के कई प्रसंग साझा किए। उन्होंने कहा कि अटल जी राष्ट्र धर्म मासिक के प्रथम सम्पादक थे। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. स्वाति गुप्ता ने किया। सभी का आभार डॉ. वी के शर्मा ने व्यक्त किया।
कार्यक्रम में डॉ. सी पी शर्मा, डॉ. रवि प्रकाश शर्मा, रणधीर प्रसाद गौड़, रोहित राकेश, प्रवीण शर्मा, वी सी दीक्षित, राजबाला धैर्य, मोहन चन्द्र पाण्डेय, उमेश चन्द्र गुप्ता, कमल सक्सेना, दिनेश चन्द्र शर्मा सुरेन्द्र बीनू सिन्हा, प्रकाश चंद्र, निर्भय सक्सेना, रणजीत पाँचाले, वीरेंद्र अटल, प्रदीप श्रीवास्तव, रमेश गौतम, मुकेश सक्सेना, विनोद कुमार गुप्ता सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।
वी के शर्मा जनपदीय मंत्री, बरेली।
आगे पढ़ेंनव भारत निर्माण समिति द्वारा युवाओं के लिए ‘इन्हें पंख दें’ अभियान का आयोजन
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युवाओं को अपनी संस्कृति, कला और विरासत से जोड़कर बनायें एक श्रेष्ठ नागरिक: पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
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नव भारत निर्माण समिति द्वारा ‘इन्हें पंख दें’ अभियान के विजेताओं को पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव ने किया पुरस्कृत
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स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत को विकसित एवं सशक्त राष्ट्र बनाने में युवाओं का अहम योगदान: पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
युवा आने वाले कल के भविष्य हैं। इनमें आरम्भ से ही अपनी संस्कृति, कला, विरासत, नैतिक मूल्यों के प्रति आग्रह पैदा कर एक श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सकता है। सोशल मीडिया के इस अनियंत्रित दौर में उनमें अध्ययन, मनन, रचनात्मक लेखन और कलात्मक प्रवृत्तियों की आदत न सिर्फ़ उन्हें नकारात्मकता से दूर रखेगी अपितु उनके मनोमस्तिष्क में अच्छे विचारों का निर्माण भी करेगी। उक्त उद्गार वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने नव भारत निर्माण समिति द्वारा ‘भारतीय संस्कृति एवं योग’ विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय चित्रकला प्रतियोगिता एवं कार्यशाला में पुरस्कार वितरण करते हुए बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किये। उक्त कार्यक्रम का आयोजन नव भारत निर्माण समिति द्वारा वाराणसी समेत पूर्वांचल के 16 ज़िलों के 14-22 आयु वर्ग के विद्यार्थियों पर केंद्रित ‘इन्हें पंख दें’ अभियान के अंतर्गत किया गया था।
ऋषिव वैदिक अनुसंधान, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र, शिवपुर, वाराणसी में आयोजित समारोह में पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने वाराणसी मंडल के मुख्य कोषाधिकारी श्री गोविन्द सिंह, अंतरराष्ट्रीय चित्रकार श्री एस. प्रणाम सिंह के साथ विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया और उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दीं। पूजा सिंह चौहान, पालक प्रजापति, पालक कुमारी को क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय पुरस्कार मिला वहीं संतोषी वर्मा, सचिन सेठ, स्नेहा वर्मा, रोशनी वर्मा, मानसी पांडेय, अर्चिता, महिमा को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। सभी को मैडल, प्रशस्ति पत्र और नक़द राशि सम्मान स्वरूप दी गई।
पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि आज की व्यस्त लाइफ़ स्टाइल में न सिर्फ़ शारीरिक बल्कि संवेदना के स्तर पर मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक सशक्तिकरण भी ज़रूरी है। योग हमारी प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है । ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ के माध्यम से भारतीय संस्कृति की इस अमूल्य और विलक्षण धरोहर को वैश्विक स्तर पर अपनाया गया है। योग मन और शरीर, विचार और क्रिया की एकता का प्रतीक है जो मानव कल्याण के लिए मूल्यवान है। श्री यादव ने कहा कि नव भारत निर्माण समिति ने ‘बनारस लिट फेस्ट: काशी साहित्य, कला उत्सव’ के माध्यम से भी लोगों को जोड़ा है, उसी कड़ी में युवाओं हेतु आयोजित ‘इन्हें पंख दें’ अभियान को भी देखा जाना चाहिए। स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित एवं सशक्त राष्ट्र बनाने में युवाओं का अहम योगदान है।
कार्यक्रम का संचालन बृजेश सिंह, सचिव नव भारत निर्माण समिति ने किया। इस अवसर पर कर्नल संदीप शर्मा, धवल प्रसाद, आर्ट क्यूरेटर राजेश सिंह, दान बहादुर सिंह, डाॅ. अपर्णा, डाॅ. गीतिका, शालिनी, प्रवक्ता मुकेश सिंह, सतीश वर्मा, धर्मेंद्र कुमार, योग प्रशिक्षक प्रणव पाण्डेय, कमलदीप, ममता जी आदि उपस्थित थे।
(बृजेश सिंह)
सचिव - नव भारत निर्माण समिति
ऋषिव वैदिक अनुसंधान, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र,
शिवपुर बाईपास रोड, निकट तोमर स्कूल, वाराणसी (उ.प्र.)
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बाल साहित्य के विविध आयाम (21जून, 2024) ऑनलाइन विचार-विमर्श
बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए बाल साहित्य लिखा जाना और पढ़ा जाना बहुत आवश्यक है: वरिष्ठ बाल साहित्यकार—नरेंद्र सिंह ‘नीहार’
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड ने बाल साहित्य के फ़ेसबुक पेज “वर्ड ऑफ़ चिल्ड्रनस आर्ट एंड कल्चलर” के बाल साहित्य कार्यक्रम की मासिक शृंखला में 21जून 2024 को “बाल साहित्य के विविध आयाम” विषय पर ऑनलाइन विचार-विमर्श के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारत के वरिष्ठ बाल साहित्यकार, समीक्षक, व दिल्ली में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत श्री नरेन्द्र सिंह ‘नीहार’ ने वैश्विक स्तर पर उपस्थित दर्शकों व मंच पर उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए बाल साहित्य की अवधारणा को बड़ी कुशलता से अभिव्यक्त करते हुए कहा कि बच्चों कोमल मन को ध्यान में रख देश-साहित्य और संस्कृति को माध्यम बना कर बच्चों के लिए हम जो साहित्य लिखते हैं, उसी को बाल साहित्य माना जाता है।
नीदरलैंड से इस कार्यक्रम की समन्वय व प्रस्तुतकर्ता डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने बाल साहित्य की भूमिका बताते हुए इस कार्यक्रम का संचालन सँभाला।
विषय प्रवर्तन के रूप में विराजमान वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक, व आलोचक श्री सूर्यकान्त शर्मा जी ने बाल साहित्य के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हम लोकल से ग्लोबल हो गए हैं, टेलीविज़न पर बहुत अधिक बच्चों के चैनल आ गये हैं। इसलिए हमें बाल साहित्य पर और अधिक ध्यान देना होगा। सरकार को इसके लिए पुस्तक नीति बनानी चाहिए। प्रकाशकों को लेखकों के प्रति ईमानदार रहना होगा। पुस्तक मेले में बाल साहित्य को बढ़ावा मिलना चाहिए। बाल साहित्य और साहित्यकारों को एक ऐसा मंच मिलना चाहिए जहाँ वह अपनी बात कह सकें। बाल साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विमर्श से जोड़ना आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तराखंड के वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री मोहन जोशी गरूड़ जी जो बाल पत्रिका ज्ञानार्जन पत्रिका के संपादक भी हैं उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा की बाल साहित्य एक महत्त्वपूर्ण विषय है जो जाने-अनजाने में कहीं छिप जाता है। देश-विदेश में बाल साहित्य के लोक कथाओं, कहानियों, लेख निबंध, मानवीय मूल्यों पर आधारित साहित्य गीतों, लोरियाँ, कविताओं का ख़ज़ाना बिखरा पड़ा हैं। यदि हम भारत में इस ख़ज़ाने को पुस्तकों के रूप में समाहित कर सकें या किसी वेबसाइट के द्वारा समाहित कर सकें तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृतियों, का आदान-प्रदान का बहुत सफल प्रयोग होगा। ई-पत्रिकाओं का प्रकाशन होना चाहिए। बाल पत्रिकाओं के पंजीकरण में आने वाली कठिनाइयों को सरल किया चाहिए। लेखन व प्रकाशन दोनों के लिए पुरस्कार होने चाहिए। लेखकों को बाल लेखन में नवीनता लानी होगी तभी हम बच्चों को वर्तमान युग से सही पहचान कराने में सफल हो सकेंगे। उन्होंने अपने बाल साहित्य के ऑनलाइन कार्यक्रम मोहन कृति के बारे में भी जानकारी देते हुए बताया की इस कार्यक्रम का संचालन भी बच्चे करते हैं, समीक्षक भी वही होते हैं और अध्यक्षता भी उन्हीं की रहती है। उत्तराखंड में ख़राब मौसम के कारण श्री मोहन जोशी गरूड़ जी के वक्तव्य में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण दर्शक उनका वक्तव्य पूरा नहीं सुन सके।
कार्यक्रम को आगे गति देते हुए डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्री मति मीना अरोड़ा जी को मंच पर आमंत्रित करते हुए उनसे प्रश्न किया—क्या अनूदित बाल साहित्य को मौलिक बाल साहित्य से कमतर आँका जाना चाहिए? मुख्य अतिथि श्रीमती मीना अरोड़ा जी ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा—साहित्य की अन्य धाराओं की तरह बाल साहित्य भी एक महत्त्वपूर्ण धारा है। यह आज के दौर की अनिवार्य आवश्यकता है। बाल साहित्य की ओर कम ध्यान दिया जा रहा है। हमारे लिए यह दुख का विषय है कि हमारे देश में अधिकतर बच्चों को पाठ्य-पुस्तकों तक ही सीमित रखा जाता है।
माता-पिता बच्चों को खिलौने, वीडियो गेम इत्यादि तो उपलब्ध करवाते हैं लेकिन बाल पत्रिकाओं की ओर उनका ध्यान कम ही जाता है।
वैसे तो हिन्दी बाल साहित्य बहुत समृद्ध है। इनमें अनूदित बाल साहित्य का योगदान बहुत अधिक है। बहुत से प्रकाशन गृह और संस्थान इस दिशा में काम कर रहे हैं। हिन्दी में अनूदित बाल साहित्य में सबसे अधिक अनुवाद अंग्रेज़ी से हिन्दी में हुए हैं। इनमें सबसे अधिक अनुवाद कहानियों का हुआ है। इक्कीसवीं सदी में इस दिशा में सबसे अधिक कार्य हुआ है। अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित बाल कहानियाँ विविधता की दृष्टि से भी बहुत समृद्ध हैं।
इनमें आम जीवन की कहानियाँ, पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियाँ, पर्यावरण संबंधी कहानियाँ, जीवनी संबंधी कहानियाँ आदि प्रमुख अभी हाल ही में डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे जी ने नीदरलैंड्स की बाल कहानियों का अनुवाद हिन्दी भाषा में कर उन्हें प्रकाशित करवाया है जिससे बाल साहित्य बहुत ही लाभान्वित हुआ है।
इस कार्यक्रम की समन्वय व संचालिका डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे जी द्वारा अनूदित नीदरलैंड्स की लोक कथाएँ बहुत ही लुभावनी तथा रोचक बाल कहानियाँ हैं। मेरी दृष्टि में बच्चों को कहानियों के साथ बाल कविताओं के माध्यम से बहुत सा ऐसा ज्ञान देना चाहिए जिससे उनको खाने पीने, पढ़ने जीवन जीने के सही तौर तरीक़ों का बचपन से ही अभ्यास हो जाए।
बाल कविताओं तथा कहानियों के माध्यम से बच्चों को प्रकृति के प्रति प्रेम, देश प्रेम, बड़ों का आदर जैसी नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी दिया जा सकता है।
मुख्य वक्ता के रूप में इंदौर की वरिष्ठ साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सुनीता श्रीवास्तव जी ने विषय को आगे बढ़ाते हुए आज का बाल साहित्य बच्चों को सोशल मीडिया, इंटरनेट के जाल से मुक्त करने में किस तरह सहायक हो सकता है? प्रश्न का उत्तर देते कहा कि—हम आज बहुत आसानी से बच्चों पर दोषारोपण कर देते हैं कि बच्चे सारा समय फ़ोन में सोशल मीडिया या इंटरनेट पर समय बिताते हैं। पर क्या हम अपने बच्चों के लिए समय निकाल पाते हैं? आज भागदौड़ की ज़िंदगी में हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि हम अपने बच्चों के लिए उनके साथ बैठने, बातें करने का समय ही नहीं निकाल पाते। पहले संयुक्त परिवार होते थे सब साथ मिलकर रहते थे। दादा-दादी से वह कहानी सुना करते थे, रामायण-गीता घरों में सुनी पढ़ी जाती थी अब वह समय बीत गया। एकल परिवार है जहाँ माँ और पिता दोनों काम पर जाते हैं बच्चों को या तो आया पालती है या डे-बोर्डिंग स्कूल। इसलिए आज के समय में यह आवश्यक है कि माता-पिता स्वयं पढ़ने की आदत डालें बच्चों को पुस्तकालय जाना सिखाएँ, उन्हें उपहार में पुस्तकें दें और साथ बैठ कर पढ़ें तो बचते अवश्य ही इंटरनेट के जाल से मुक्त हो सकेंगे। आज के समय में बच्चों व किशोरों में बढ़ते मानसिक अवसाद से बाहर निकलने के लिये अच्छा बाल साहित्य बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष व साहित्य को पूर्ण समर्पित साहित्यकार श्री नरेन्द्र सिंह ने डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे के प्रश्न-बाल साहित्य की समीक्षा व समीक्षक के मूल बिंदु पर चर्चा कविता की दो लाइनों से की—
“बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो।
चार किताबें पढ़ कर यह भी हम जैसे हो जाएँगे।”
शरारत व शिकायत बच्चों और बचपन के लिए बहुत आवश्यक है। बाल साहित्य साहित्य की अलग विधा नहीं साहित्य का सोपान है वहीं से हो कर साहित्य को जाना है। बाल साहित्य केवल बड़ों के लिए ही नहीं है। बाल साहित्य को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में पढ़ाना चाहिए ताकि वह अच्छे अभिभावक बनें। बाल साहित्य को बाल साहित्य की समीक्षा करते समय पुस्तक कि विषय वस्तु पर ध्यान देना आवश्यक होता है। यदि पुस्तक का विषय बालकों की रुचि के अनुसार नहीं है तो फिर उस लेखन का बाल साहित्य में कोई औचित्य नहीं रह जाता है। उस पुस्तक में बाल मनोविज्ञान को कितना ध्यान में रखा गया है? लेखन की शैली रोमांचक है या नहीं? संवादों की भाषा सरल व चुटीले व संक्षिप्त होना भी आवश्यक है। लेखन में नवीनता होनी चाहिए उपदेशात्मकता से बचना होगा। उन्होंने “जूते घूमने निकले” पुस्तक की समीक्षा का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि शीर्षक जिज्ञासु व आकर्षक होंगे तभी बच्चे उस पुस्तक या रचना को पढ़ने में रुचि लेंगे।
कहानी या रचना का वातावरण ऐसा होना चाहिए जो हर बाल पाठक को अपने ही परिवेश का बोध कराए। इन सभी बिंदुओं को यदि ध्यान में रखा जाए तो एक उत्तम समीक्षा तैयार कि जा सकती है। किसी पुस्तक की समीक्षा के लिए उसका पुरस्कृत होना आवश्यक नहीं है। भारत में जहाँ पाठक है वहाँ पुस्तक नहीं है और जहाँ पुस्तक हैं वहाँ पाठक नहीं है यह बड़ी विडंबना है। भारत में बच्चों पर पाठ्यक्रम का बहुत बोझ रहता है। जिससे उन्हें अन्य पुस्तकें पढ़ने का समय कम मिल पाता है। इस पर उन्होंने अपनी एक कविता का उदाहरण दिया—
“ठूँस ठूँस के भरी किताबें, हो गया बसता भारी
झुकी पीठ बता रही है बालक की लाचारी . . .।”
बाल साहित्य बच्चों को केवल मनोरंजन ही नहीं शिक्षा, ज्ञान, संस्कृति और इतिहास का भी ज्ञान कराते है।
कार्यक्रम के अंत में सोनू पत्रकार जी भी हमारे साथ अपने विचार व्यक्त करने के लिए जुड़े उन्होंने कहा कि डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे नीदरलैंड से एक वर्ष से बाल साहित्य की अनेक भाषाओं व विधाओं पर कार्यक्रमों का आयोजन कर रही हैं। यह अपनेआप में एक महत्त्वपूर्ण व सराहनीय पहल है। इस कार्यक्रम में संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी, भोजपुरी, कन्नड़ आदि भाषाओं के बाल साहित्य पर इन भाषाओं के बाल साहित्यकार विचार विमर्श कर चुके हैं। आज का कार्यक्रम भी बाल साहित्य के विविध आयाम विशेष कार्यक्रम के रूप में सम्पन्न हुआ, इसके लिए मैं मंच पर उपस्थित सभी प्रबुद्ध साहित्यकारों व इस कार्यक्रम की समन्वयक व प्रस्तुतकर्ता डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे के इस सराहनीय प्रयास को नमन करता हूँ।
कार्यक्रम के अंत में श्री सूर्यकान्त शर्मा जी ने कार्यक्रम की संचालिका डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे से नीदरलैंड में बाल साहित्य के विषय में जानकारी देने का आग्रह किया। डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने बताया की नीदरलैंड में 17वीं शताब्दी में बाल साहित्य लिखने की शुरूआत पाँच बच्चों की हस्तलिखित कविता संग्रह से हुई जो आगे चलकर बहुत प्रसिद्ध काव्य संग्रह के रूप में पाठकों के सामने आया। उन्होंने बताया की नीदरलैंड में बाल साहित्य की सरकारी नीति है। पुस्तकों को आयु वर्गों में बाँटा गया है। लेखकों व प्रकाशकों के लिए नियम हैं जिसका उन्हें पालन करना होता है। बाल लेखन के लिए “गोल्डन पैन” का सर्वोच्च पुरस्कार है। हर घर में कम से कम एक या दो पुस्तकों की अलमारी आपको मिल जाएगी। माता-पिता बच्चों को सोने से पहले उनके साथ बैठ कर कहानी पढ़ते हैं। सप्ताहांत में शहर के पुस्तकालयों में बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसमें बाल साहित्यकार आते हैं और अपनी रचनाएँ व कहानी स्वयं बच्चों को पढ़ कर सुनाते हैं। आदि।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने कार्यक्रम के आभासी पटल से जुड़े बाल साहित्यकार जिनमें: डॉ. नागेश पाण्डेय ‘संजय’ जी, हेमन्त कुमार जी, प्रतिभा राजहंस जी, रोचिका शर्मा जी, निर्मला जोशी जी, दिन दयाल शर्मा जी, श्याम सुंदर श्रीवास्तव जी, डॉ. अखिलेश शर्मा जी, डॉ. अरुण निषाद, लक्ष्मी भट्ट बड़शिलिया “बीना” जी व ढेर सारे दर्शक हमारे इस बाल साहित्य के विशेष कार्यक्रम से जुड़े रहें व अपनी प्रतिक्रियाओं से हमारा मनोबल बढ़ाते रहे। “बाल साहित्य के विविध आयाम” कार्यक्रम में उपस्थित सभी साहित्य मनीषियों व कार्यक्रम के आभासी पटल से जुड़े सभी दर्शकों का धन्यवाद कर कार्यक्रम की समाप्ति की।
आगे पढ़ेंडेटा, डिज़िटल अर्थव्यवस्था का नया तेल है—बालेन्दु शर्मा दाधीच
ग्रेटर नोएडा (भारत), 17 जून, 2024: केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और भारतीय भाषा मंच के तत्त्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार ने दिनांक: 16 जून 2024 को एक विशेष संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया। इस संगोष्ठी में चर्चा का विषय था ‘कंप्यूटर और भाषा कार्यशाला: तकनीक की दुनिया में डेटा का रहस्यजाल’। उल्लेख्य है कि वैश्विक हिंदी परिवार, भाषा और विशेषतया हिंदी भाषा तथा इसके साहित्य के वैश्विक रूप से प्रचार-प्रसार के लिए स्वयंसेवी आधार पर एक अभियान को आंदोलन के रूप में परिवर्तित करने के लिए संकल्पित है। इसी संकल्प से अभिमंत्रित होकर यह संस्था हिंदी के विस्तारीकरण के लिए इसे अधुनातन तकनीक से जोड़ने के लिए प्रयासरत है तथा इसके कंप्यूटरीकरण की संभावनाओं पर विद्वानों के सुझावों और विचारों का साझा कर रही है।
दिनांक: 16 जून को आयोजित संगोष्ठी में ऐसे वक्ताओं को मंच पर आमंत्रित किया गया जिनकी इस महत्त्वपूर्ण विषय पर गहरी पैठ है एवं जिनके विचारों से हिंदी के कंप्यूटरीकरण की अभिकल्पना को मूर्त रूप प्रदान किया जा सकता है। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे, बालेंदु शर्मा दाधीच जो संप्रति भारत के माइक्रोसॉफ़्ट के निदेशक हैं। वह हिंदी के एक लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार भी हैं।
संगोष्ठी के स्वागत भाषण में हिंदी के प्रखर विद्वान डॉ. जयशंकर यादव ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुए इसके मुख्य वक्ता श्री बालेंदु शर्मा और सह-वक्ताओं नामत: डॉ. राजेश गौतम, डॉ. राज कुमार शर्मा, डॉ. आदित्य झा तथा डॉ. ओम प्रकाश बैरवा का परिचय दिया। तदनंतर, मंच संचालक डॉ. सुरेश कुमार मिश्र ‘उरतृप्त’ ने कहा कि वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी के सघन प्रयासों से इस प्रकार की संगोष्ठियों का आयोजन सम्भव हो पाता है।
कंप्यूटर और प्रौद्योगिकी के विशेष जानकार, श्री बालेंदु शर्मा ने कंप्यूटर तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रचुरता से प्रयुक्त डेटा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि डेटा, डिज़िटल अर्थव्यवस्था का तेल है, अर्थात् आज के दौर में डेटा का महत्त्व पेट्रोलियम से भी ज़्यादा है। डेटा के बदौलत ही आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस छलाँग मार रहा है। गूगल, ऐमज़न, माइक्रोसॉफ़्ट जैसी कंपनियों का महत्त्व समृद्ध डेटा के ज़रिए ही बढ़ता जा रहा है। उन्होंने भारत-चीन के बीच तनावपूर्ण सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि डेटा का सामरिक महत्त्व भी है। यह वैश्विक प्रभाव का स्रोत है। डेटा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है; कोई 20,000 वर्षों पहले की पीढ़ियाँ भी किसी न किसी रूप में डेटा संसाधित करती रही हैं जिनका प्रयोग खेती, कर वसूली, उत्पादन आदि के क्षेत्र में किया जाता रहा है। श्री बालेंदु के वक्तव्य के मध्य प्रतिक्रिया करते हुए डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने डेटा और सूचना के बीच अंतर्सम्बन्धों का उल्लेख किया। डेटा की क्षमता को महत्त्वांकित करते हुए बताया गया कि आज 1 मिनट में 40 लाख पोस्टें की जाती हैं जिनसे डेटा का सतत विस्तार होता जा रहा है। श्री बालेंदु ने इसके नकारात्मक पक्ष के सम्बन्ध में बताया कि डेटा से निजता अर्थात् प्राइवेसी का ख़तरा भी बढ़ता जा रहा है। डेटा में हर व्यक्ति की जानकारी छिपी होती है।
बीच वक्तव्य में, दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, डॉ. राजेश गौतम ने कहा कि आज डेटा के द्वारा मूल्यवान सूचनाओं की गोपनीयता को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है। वैसे तो डेटा हमें आत्मविश्वास से लबरेज़ कर देता है किन्तु इस पर निर्भरता ख़तरनाक़ है। गुरु नानक देव कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर राज कुमार शर्मा ने बताया कि यों तो डेटा ने हमारे जीवन को आसान बना दिया है तथापि भारत की 85% आबादी साइबर क्राइम की शिकार हो रही है। इसी बीच, डॉ. आदित्य झा ने श्री बालेंदु से अपने कुछ प्रश्नों का स्पष्टीकरण माँगते हुए पूछा कि क्या डेटा हमें प्रभावित कर रहा है या हम डेटा को प्रभावित कर रहे हैं। उन्होंने डेटा की सीमाओं के बाबत भी प्रश्न किया जिसका श्री बालेंदु ने संतोषजनक समाधान प्रस्तुत किया। तदनंतर डॉ. ओमप्रकाश बैरवा ने अनुवाद, हिंदी भाषा, राजभाषा आदि से सम्बन्धित कंप्यूटरीकरण के बारे में कुछ बिंदुओं पर अपने विचार रखे। उन्होंने भारत सरकार में डेटा को सुरक्षित रखने के उपायों के बारे में जानना चाहा तो श्री बालेंदु ने बताया कि डेटा को डिलीट भी किया जा सकता है; अस्तु, माइक्रोसॉफ़्ट कंपनी हमारी प्राइवेसी की सुरक्षा करती है। मंच पर उपस्थित श्री वी.आर. जगन्नाथ ने बताया कि भाषा स्वयं डेटा है। संगोष्ठी को अपना सान्निध्य प्रदान कर रहे रेल मंत्रालय में राजभाषा के निदेशक श्री वरुण कुमार ने श्री बालेंदु के समृद्ध वक्तव्य को सभी के लिए अत्यंत उपयोगी घोषित किया। वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने इस संगोष्ठी को अपने बहुमूल्य विचारों से अनुप्राणित करने वाले श्री बालेंदु शर्मा के प्रति आभार व्यक्त किया।
संगोष्ठी का विधिवत समापन करते हुए श्री राजीव रावत ने प्रतिभागी चर्चाकारों तथा श्रोता-दर्शकों के प्रति वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से आभार प्रकट किया। इस प्रबुद्ध श्रोतावृन्द में टोमियो मिज़ोकॉमी (जापान), शिखा रस्तोगी (थाईलैंड), दिव्या माथुर (इंग्लैंड), डॉ. ल्यूदमिला खोखलोवा (रूस), डॉ. शैलजा सक्सेना (कैनेडा), डॉ. महादेव कोलूर, डॉ. मोक्षेंद्र, डॉ. वंदना मुकेश, डॉ. अरुणा अजितसरिया, डॉ. ओम प्रकाश, जे. आत्माराम, सच्चिदानंद कालेकर, सुनीता पाहूजा, डॉ. चम्पा मसीवाल, विजय नागरकर, विनयशील चतुर्वेदी, दिलीप कुमार सिंह, ए.के. साहू, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, अमित निश्छल, अपेक्षा पाण्डेय, अभिषेक प्रकाश, उमेश प्रजापति, वेंकेटेश्वर राव वनमा, विभावरी गोरे, श्रेया जगदीशन, स्मिता श्रीवास्तव, सुप्रिया, चंदन उपाध्याय, आशा, कृष्ण कुमार, आशा बर्मन, अठिला कोठालवाला, आनंदकृष्ण, आदित्यनाथ तिवारी, राहुल श्रीवास्तव, राजेश गौतम, समीर, सरोजिनी प्रीतम, सौरभ आर्य, महाबुबली ए नदफ, पूजा अनिल, राज कुमार शर्मा, किरण खन्ना, जीतेंद्र चौधरी आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही।
(प्रेस रिपोर्ट-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
वातायन-यूके के वैश्विक मंच पर रूसी साहित्यकार—अंतोन चेखव के कथा-साहित्य पर एक संगोष्ठी का आयोजन
प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में ‘वातायन-यूके’ के तत्त्वावधान में ‘विश्व साहित्य के नगीने’ शृंखला के अंतर्गत रूस के महान साहित्यकार अंतोन पावलविच चेखव की कहानियों पर सारगर्भित चर्चा की गई। इस वातायन संगोष्ठी-190 की प्रस्तोता थीं, ब्रिटेन की आईटी प्रोफ़ेशनल और लेखिका ऋचा जैन। पत्रकार, लेखक, अनुवादक और आलोचक—श्री आलोक श्रीवास्तव अध्यक्ष थे जबकि मुख्य अतिथि थीं, मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रो. ल्यूदमिला खोखलोवा। ध्यातव्य है कि दिनांक 27-04-2024 को इसी शृंखला के अंतर्गत चेखव की कहानियों पर पहले भी चर्चा की गई थी।
रूस की इंजीनियर और अनुवादक प्रगति टिपणीस ने सुश्री ऋचा जैन के साथ सह-वाचक के रूप में चेखव की दो कहानियों ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ और ‘बुढ़ापा’ का सस्वर पाठ किया। उल्लेखनीय है कि इन दोनों कहानी वाचकों ने ही इन कहानियों का अनुवाद भी किया था। ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ का अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किया सुश्री ऋचा जैन ने जबकि ‘बुढ़ापा’ कहानी का अनुवाद किया प्रगति टिपणीस ने। दोनों कहानियाँ मानवीय स्पर्श से लबरेज़ थीं। ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ का घटनाक्रम एक चर्च के मुख्य पादरी, भिक्षुओं, शराबियों और एक उच्छृंखल स्त्री के इर्द-गिर्द घूमता है। पादरी की संगीत और छंद-रचना में ख़ास दिलचस्पी है। दूसरी कहानी ‘बुढ़ापा’ का रूसी से हिंदी में अनुवाद सुश्री प्रगति टिपणीस ने किया। इस कहानी का मुख्य पात्र है, एक राजकीय शिल्पकार उज़िल्कोफ जिसको एक चर्च के क़ब्रिस्तान को बहाल की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। वह उस स्थान से कोई 18 वर्ष पहले परिचित रहा था; बहरहाल, अब उस स्थान का हुलिया बिल्कुल बदल चुका है। वह वहाँ दोबारा आकर वहाँ के लोगों, स्थान और चीज़ों का जायज़ा बड़े ही फलसफाना अंदाज़ में लेता है जिसमें व्यंग्य-कटाक्ष का भी पुट है। कहानी मनोरंजक ढंग से आगे बढ़ती है तथा श्रोताओं को आद्योपांत बाँधे रहती है।
संगोष्ठी की मुख्य अतिथि ल्यूदमिला खोखलोवा ने दोनों कहानियों के भाव-पक्ष और कला-पक्ष पर बारीक़ी से प्रकाश डाला। उन्होंने दोनों अनुवादकों के अनुवाद-कौशल की सराहना करते हुए कहा कि चेखव की कहानियों में सांसारिक जीवन का जीवंत विवरण मिलता है तथा उनके द्वारा वर्णित सांसारिक जीवन एवं इसके प्रति मनुष्य की प्रलोभन-प्रवृत्ति आकर्षक होती है। संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री आलोक श्रीवास्तव ने भी ऋचा और प्रगति की अनुवाद-कला की प्रशंसा करते हुए कहा कि चेखव की कहानियों में आज से कोई 120 वर्षों पहले के संसार और जीवन का चित्रण मिलता है। यद्यपि उन्होंने कोई उपन्यास नहीं लिखा तथापि उनकी सारी कहानियाँ एक उपन्यास के ही विस्तार जैसी लगती हैं। उनकी कहानियों में पात्रों, कथा-वस्तु, पृष्ठभूमि आदि के सम्बन्ध में बड़ी विविधता है। उनका व्यक्तित्व और सृजन-संसार सचमुच अत्यंत विराट है।
संगोष्ठी के टिप्पणीकारों में अन्यों के साथ-साथ, सुश्री दिव्या माथुर और सुश्री राजश्री शर्मा मुख्य थीं। सुश्री शर्मा ने बताया कि चेखव के लेखन में हमें दुःख, पीड़ा, अतृप्ति और अधूरापन मिलता है। संगोष्ठी के समापन पर सुश्री ऋचा ने मुख्य अतिथि, अध्यक्ष तथा श्रोता-दर्शकों को तहे-दिल से धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच पर उपस्थित प्रबुद्ध श्रोताओं में तोमियो मिज़ोकॉमी, डॉ. जयशंकर यादव, अनूप भार्गव, अरुणा अजितसरिया, डॉ. महादेव कोलूर, डॉ. जगदीश व्योम, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र, आशा बर्मन, जय वर्मा, अल्पना दास, स्मिता श्रीवास्तव आदि मुख्य थे। संगोष्ठी के ऑनलाइन प्रसारण में तकनीकी सहयोग प्रदान किया श्री कृष्ण कुमार ने।
(प्रेस विज्ञप्ति-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंवातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-188 के अंतर्गत कथाकार नासिरा शर्मा जी के कथा-साहित्य पर विशद चर्चा
ग्रेटर नोएडा, 09 जून, 2024: ‘वातायन-यूके’ के तत्त्वावधान में दिनांक: 08 जून, 2024 को प्रख्यात साहित्यकार नासिरा शर्मा जी के साहित्यिक अवदान पर उन्हीं की उपस्थिति में एक महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। हिंदी राइटर्स गिल्ड और वैश्विक हिंदी परिवार के सहयोग से आयोजित वातायन परिवार की यह संगोष्ठी अत्यंत उपादेय रही क्योंकि इसमें कहानीकार, संपादक और आलोचक राकेश बिहारी जी के वक्तव्य में नासिरा शर्मा की कहानियों पर अत्यंत बारीक़ी से प्रकाश डाला गया। उन्होंने नासिरा जी के उपन्यासों पर संक्षिप्त टिप्पणियों के पश्चात उनकी चुनिंदा प्रतिनिधि कहानियों पर विस्तार से चर्चा की।
कैनेडा की ख्यातिलब्ध कथाकार डॉ. शैलजा सक्सेना और श्री राकेश बिहारी ने बताया की नासिरा जी का कथा-साहित्य मानवीय रिश्तों को जोड़ने की भूमिका का निर्वाह करता है। संगोष्ठी की सह-आयोजक डॉ. शैलजा ने कहा कि नासिरा जी की कहानियाँ मनुष्य में प्रेम की पुनर्वापसी की कामना करती हैं।
एक नए परिप्रेक्ष्य में इस बात पर चर्चा की गई कि नासिरा जी की कुछ कहानियाँ सहृदय पुरुष की स्त्री के प्रति उदार दृष्टिकोण का उल्लेख करती हैं। इस पर नासिरा जी ने इंगित किया कि इक्कीसवीं सदी में स्त्री के प्रति पुरुष का वह रवैया बदल रहा है। राकेश जी ने कहा कि नासिरा जी भावों की संजीदगी और उसके तह तक पहुँचने की पूरी कोशिश करती हैं। मोहब्बत, अधिकार और निर्णय ये तीन बातें उनकी कहानियों में स्त्री-पुरुष के रिश्तों को निर्धारित करती हैं।
प्रख्यात कथाकार नासिरा शर्मा जी का रचना-संसार अत्यंत विशाल है और उन्होंने उपन्यास, कहानी, लेख, रिपोर्ताज, अनुवाद जैसी विधाओं में कोई तीन दर्ज़न से ज़्यादा पुस्तकें लिखी हैं। साहित्य अकादमी और व्यास सम्मान जैसे अलंकरणों से सम्मानित नासिरा शर्मा जी द्वारा संगोष्ठी के अंत में दिए गए संक्षिप्त वक्तव्य को डॉ. शैलजा ने अत्यंत सारगर्भित बताया।
इस संगोष्ठी में आकाशवाणी उद्घोषक, दिल्ली दूरदर्शन से जुड़े और रंगमंच कलाकार श्री कृष्ण कांत टंडन भी उपस्थित थे। उन्होंने अभिनेत्री, एंकर, वॉयसओवर कलाकार–अश्विनी किन्हिकर जी के साथ नासिरा जी की एक कहानी के अंश के नाट्य रूपांतर का हृदयस्पर्शी पाठ प्रस्तुत करके श्रोता-दर्शकों को आत्मविभोर कर दिया। प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों में से कुछ ने टिप्पणियाँ भी कीं जिन पर श्री राकेश और नासिरा शर्मा जी ने भी प्रतिक्रियाएँ कीं।
संगोष्ठी में जापान के प्रो. तोमिओ मिज़ोकामी, प्रो. लुडमिला खोंखोलोव, अरुण सभरवाल, अनूप भार्गव, वरुण कुमार, राकेश त्रिपाठी, भूपेंद्र सिंह, स्मिता श्रीवास्तव, शैल अग्रवाल, दीपिका दास, अर्पणा संत सिंह, रश्मि वर्मा, राजेंद्र माहेश्वरी, अरुणा अजितसरिया आदि जैसे प्रबुद्ध श्रोता दर्शक उपस्थित थे। संगोष्ठी का समापन डॉ. मनोज मोक्षेंद्र के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
(प्रेस विज्ञप्ति, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंवैश्विक हिंदी परिवार की समृद्ध संगोष्ठी: ‘विदेश में हिंदी नाटक’
ग्रेटर नोएडा, 3 जून 2024: वैश्विक हिंदी परिवार के तत्त्वावधान में दिनांक: 2 जून 2024 को जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर और हिंदी साहित्यकार प्रो. तोमियो मिजोकामी की अध्यक्षता में ‘विदेश में हिंदी नाटक’ विषय पर एक महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के आयोजन में विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन-यूके और भारतीय भाषा मंच का सम्मिलित सहयोग भी प्राप्त था। उल्लेख्य है कि वैश्विक हिंदी परिवार की ऐसी संगोष्ठियों में विश्व के कोई पचास देशों के साहित्यकार, चिंतक और बुद्धिजीवी भी शिरकत करते रहे हैं; इस कारण इन संगोष्ठियों के विशेष महत्त्व को साहित्यिक गलियारों में प्रमुखता से रेखांकित किया जाता है।
इस संगोष्ठी के आरंभ में, हिंदी साहित्यकार और कुशल मंच संचालक, अलका सिन्हा ने कहा कि आज इस मंच पर विदेशों में लिखे जाने वाले हिंदी नाटकों की दशा और दिशा तथा हिंदी रंगमंच के सामने आने वाली चुनौतियों तथा परिवर्तनों पर चर्चा होगी। उन्होंने शुरूआत में ही कहा कि इस संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. तोमियो मीजोकामी विदेशों में हिंदी शैक्षणिक नाटकों का मंचन करने वाले पहले नाटककार रहे हैं। सुश्री अलका सिन्हा ने संगोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री चितरंजन त्रिपाठी एवं चर्चा में शिरक़त करने वाले वक्ताओं नामत: डॉ. शैलजा सक्सेना, श्री अगस्त्य कोहली, श्री कृष्ण टंडन और राजेंद्रप्रसाद सदासिंह के बारे में भी संक्षिप्त परिचय दिया। सुश्री अलका ने कहा कि इन सभी विशिष्ट वक्ताओं का विदेशों में मंचित किए जा रहे हिंदी नाटकों से गहरा जुड़ाव रहा है।
मंच का संचालन कर रहे ब्रिटेन के नाटककार प्रतिबिंब शर्मा ने कहा कि हज़ारों वर्षों पूर्व भरत मुनि ने ‘नाट्य शास्त्र’ की रचना करके हमारा मार्गदर्शन किया है। कैनेडा की कथाकार, डॉ. शैलजा सक्सेना ने कैनेडा की ज़मीन को उर्वर बना रही हिंदी साहित्य सभा और हिंदी राइटर्स गिल्ड की भूमिकाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रारंभ में कैनेडा में प्रवासियों के जीवन में आने वाली समस्याओं और संघर्षों को वर्णित करने वाले छोटे-छोटे नाटक लिखे-मंचित किए गए। उन्होंने भारतीय डायस्पोरा को हिंदी की परंपरा और इसके साहित्य से संबद्ध करने के लिए नाटकों के लेखन-मंचन पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने बताया कि विदेश में नाट्य लेखन में अभी सक्रियता नहीं आई है। ब्रिटेन में हिंदी नाटकों के लेखन-मंचन में चुनौतियों की चर्चा करते हुए श्री कृष्ण टंडन ने कहा कि वह ब्रिटेन और दिल्ली में वह कोई तीस वर्षों से नाटकों से जुड़े रहे हैं। हम ब्रिटेन में संसाधनों, धन और ख़ासतौर से प्रस्तुतकर्ताओं तथा कलाकारों की कमी से जूझ रहे हैं। उन्होंने ब्रिटेन आकर स्वयं नाटक लिखना आरंभ किया जिनके मंचन के लिए उन्हें संस्थाओं से अनुदान लेना पड़ता था। कठोर परिश्रम करते हुए वर्ष में दो-तीन नाटकों का ही मंचन हो पाता था। उन्होंने स्वयं द्वारा मंचित कुछ नाटकों की क्लीपिंग का भी प्रदर्शन किया। अमेरिका के नाटककार श्री अगस्त्य कोहली ने कहा कि उनकी रंगमंच से संबंधित यात्रा दिल्ली के स्कूलों में पढ़ाई के समय से ही हो गई थी। अमरीका आने के पश्चात काफ़ी समय तक वह नाटकों की दुनिया से दूर रहे। फिर, अपने एक मित्र की सलाह पर उन्होंने इसमें दिलचस्पी लेनी शुरू की तथा कुछ नाट्य कंपनियों के साथ काम किया। उन्होंने अमरीका में कुछ नाट्य कंपनियों का उल्लेख किया तथा ‘प्रतिध्वनि’ नामक संस्था द्वारा दी जा रही सहायताओं का भी उल्लेख किया जिनसे वह लाभांवित रहे। मॉरिशस के नाटककार राजेंद्रप्रसाद सदासिंह ने बताया कि मॉरिशस में आज़ादी के पहले और उसके बाद आए गिरमिटिया समुदाय ने मिल-बैठ कर नाट्य परंपरा का सूत्रपात किया। यूपी और बिहार से आए बंधुआ मज़दूरों ने मनोरंजन के उद्देश्य से नौटंकी और नाटकों के मंचन की नींव डाली। उन्होंने सैंकड़ों दर्शकों के बीच ‘सत्य हरिशचंद्र’, “लंकादहन’ और ‘भरत मिलाप’ के कथानकों पर नाटक मंचित किए। कालांतर में, सिनेमा के आगमन से नाटकों के मंचन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक, श्री चितरंजन त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में बताया कि उनका रंग-मडल मूलतः हिंदी नाटकों का ही मंचन करता है। विश्व रंगमंच और नाट्य सिद्धांतों को जानने के लिए अंग्रेज़ी सहित्य अत्यंत उपादेय साबित होता है। नए नाटक कम लिखे-मंचित किए जाने के कारण हिंदी नाटकों की दशा और दिशा प्रभावित हुई है। किन्तु, इस दिशा में उनके साथियों और मित्रों का सहयोग निरंतर मिलता रहा है। उन्होंने बताया कि लोगबाग नाटक, संस्कृति और कला के बारे में बातें तो ख़ूब करते हैं; परन्तु, वे नाट्य मंचन देखने के बजाय सिनेमा देखना अधिक पसंद करते हैं। इसलिए अधिकतर उन्हें दर्शकों को फोन करके नाटक देखने के लिए बुलाना पड़ता है।
संगोष्ठी को अपना सान्निध्य देने वाले, वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष, श्री अनिल जोशी ने कहा कि प्रवासी नाटकों को उनका परिवार बड़े उत्साह के साथ सहयोग प्रदान करेगा। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन की नाट्य परंपरा दुनिया की सबसे समृद्ध परंपरा है। वहाँ के कलाकारों को नाट्य मंचन करके उतनी अच्छी आय हो जाती है जितनी कि फ़िल्मी कलाकारों को होती है। उन्होंने बताया कि विदेशों में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय तथा भारतीय सांस्कृतिक सहयोग परिषद के सहयोग से नाट्य मंचन को प्रोत्साहित किया जा सकता है। जापान के साहित्यकार प्रो, तोमियो मीजोकामी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि नाट्य मंचन शिक्षण का एक प्रमुख साधन है और इसके माध्यम से भाषा को भी बेहतर ढंग से सीखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध नाट्य विशेषज्ञ श्री अंकुर जी के माध्यम से वह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से गहराई से जुड़े थे। तदनंतर, उन्होंने कुछ नाट्य मंचन की क्लीपिंग का भी प्रदर्शन किया।
इस प्रकार यह संगोष्ठी अत्यंत रोचक तथा श्रोता-दर्शकों के लिए ज्ञानवर्धक रही। कार्यक्रम का समापन श्री पीयूष श्रीवास्तव के विस्तृत, आत्मीय धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ।
(प्रेस रिपोर्ट—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंभाषा दीवार बनाती नहीं, दीवार तोड़ती है: अनिल शर्मा जोशी
(कश्मीर में हिंदी)
ग्रेटर नोएडा, 26 मई 2024: विश्व-स्तर पर हिंदी भाषा और साहित्य का परचम लहराने के लिए भारत समेत कुछ महत्त्वपूर्ण संस्थाओं ने ख़ास पहलक़दमी की है। विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन-यूके और भारतीय भाषा मंच के सम्मिलित सहयोग से वैश्विक हिंदी परिवार ने हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में जन-जन की ज़बान पर आरूढ करने का बीड़ा उठा रखा है। इसमें देश-विदेश के साहित्यकारों और भाषाविदों को एक मंच पर लाकर एक सशक्त उपक्रम को स्थायी आधार प्रदान किया जा रहा है। ऐसी आशा की जा रही है कि यह अभियान एक आंदोलन का रूप ले लेगा जिससे हिंदी अक्षांश और देशान्तर को लाँघते हुए भारतीय विरासत और संस्कृति को उल्लेखनीय विस्तार देगी।
दिनांक 26 मई 2024 को इसी अभियान के एक उपक्रम के रूप में वैश्विक हिंदी परिवार ने एक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया। इस आयोजन के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के प्रदेशवासियों के हृदय में हिंदी की धड़कन को मापने का श्लाघ्य प्रयास किया गया—बाक़ायदा एक विचार-मंच का संयोजन करके। इस मंच के सूत्रधार थे, जाने-माने साहित्यकार और हिंदी प्रचारक श्री अनिल शर्मा जोशी। इस मंच का विचारार्थ विषय था—‘कश्मीर में हिंदी: वितस्ता-विमर्श और ई-पत्रिका का लोकार्पण’।
संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए ख्यात कवयित्री और मंच-संचालक, सुश्री अलका सिन्हा ने इस कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। तदनंतर, कश्मीर विश्वविद्यालय में हिंदी अधिकारी के रूप में कार्यरत डॉ. मुदस्सिर अहमद भट्ट ने मंच का सुविध और कुशल संचालन करते हुए श्री अनिल शर्मा जी के प्रति आभार व्यक्त किया जिनके बदौलत कश्मीर में हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबंधित ऐसी संगोष्ठी की संकल्पना ने मूर्त रूप लिया। हिंदी शिक्षिका डॉ. सकीना अख़्तर ने अपने वक्तव्य में कहा कि कश्मीर में हिंदी की स्थिति आशाजनक है; किन्तु संतोषजनक नहीं है। कश्मीर में हिंदी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाने की ज़रूरत है। कश्मीर की हिंदी लेखिका डॉ. मुक्ति शर्मा ने कहा कि राज्य के कॉलेजों और स्कूलों में हिंदी शिक्षण की स्थिति निराशाजनक है तथा छोटी कक्षाओं में स्कूली बच्चों से हिंदी शिक्षण की शुरूआत की जानी चाहिए। कश्मीर के लोग हिंदी बोलना और सीखना पसंद करते हैं और कश्मीर-पर्यटन के दौरान लोगबाग हिंदी का प्रयोग करते हैं। ई-पत्रिका की संपादक तथा कश्मीर विश्वविद्यालय में हिंदी की व्याख्याता, सुश्री अमृता सिंह ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं एवं उनके राज्य में हिंदी पत्रिकाओं की चर्चा होती रहती है।
संगोष्ठी के अगले चरण में ई-पत्रिका ‘वितस्ता’ का लोकार्पण किया गया। डॉ. मुदस्सिर ने इस पत्रिका का विस्तृत परिचय दिया। कश्मीर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. रूबी जुत्शी ने कश्मीर की भाषाई और संस्कृतिक विरासत की चर्चा करते हुए कहा कि कश्मीर में अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी इषदेव के गीत गाए जाते हैं। भारतीय भाषा मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजेश्वर कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली एक कड़ी है। कश्मीर हिंदी के आचार्यों की भूमि रही है जबकि यहाँ उर्दू को थोपा गया है। उन्होंने कहा कि राज्य की कश्मीरी, डोगरी, लद्दाखी, गुज्जरी जैसी भाषाओं को देवनागरी लिपि में लिखकर हिंदी भाषा को जनप्रिय बनाया जा सकता है। राज्य में दक्षिण भारत के विपरीत हिंदी-विरोध नहीं है। हिंदी के ज़रिए संस्कृत की शब्दावलियों का प्रयोग करके हम अपनी परंपरा से जुड़ सकते हैं। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और सामाजिक कार्यकर्ता श्री इंद्रेश कुमार ने कहा कि उन्होंने राज्य में आतंकवाद के दौर में, कोई 600 गाँवों का भ्रमण किया है जहाँ उन्होंने भाषाई एकता की लहर देखी है। उन्होंने बताया कि कश्मीर अपनी सुंदर भाषाई और सांस्कृतिक विरासत के कारण भारत की जन्नत है और भारत विश्व की नज़र में जन्नत है। हिंदी का प्रचुर प्रयोग करके ग़लतफ़हमियों को दूर किया जा सकता है; अमन-चैन बहाल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कश्मीर में पंचांग को हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में तैयार किया जाता है।
श्री अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि जिस हिंदी के सम्बन्ध में एक समुदाय बनाया गया है, उसके लिए सेतु तैयार करने का काम माननीय इंद्रेश कुमार ने किया है। उन्होंने हिंदी के विकास में तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया। कश्मीर में हिंदी के साथ-साथ सभी भाषाओं के विकास की बात सोचनी होगी। भाषा दीवार नहीं बनाती; यह तो दीवार तोड़ती है। प्रख्यात कवि सतीश विमल ने अपने वक्तव्य में बताया कि कश्मीर राज्य शारदा पीठ और संस्कृत भाषा का केंद्र रहा है। यहाँ भाषाओं का पालन-पोषण हुआ है तथा ज्ञान को विस्तारित किया गया है। यह राज्य बहुभाषी है और कश्मीरी लोग भी बहुभाषी हैं। इसे सरकार द्वारा हिंदीतर राज्य घोषित किया गया है जबकि यह क्षेत्र हिंदीभाषी है। लोग भले ही देवनागरी लिपि से अपरिचित हैं लेकिन वे हिंदी भली-भाँति समझते-बोलते हैं।
यह संगोष्ठी दो घंटे तक अविराम चलती रही और बड़ी संख्या में श्रोता-दर्शक इससे आद्योपांत जुड़े रहे। वेकटेश्वर राव के विस्तृत धन्यवाद-ज्ञापन के साथ इस संगोष्ठी का समापन हुआ।
(प्रेस रिपोर्ट—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंप्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ संगोष्ठी संपन्न, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, तेलंगाना
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल पंद्रहवीं संगोष्ठी 28 अप्रैल 2024 (रविवार) 4 बजे से आयोजित की गई।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह संगोष्ठी प्रख्यात चिंतक प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बतौर विशिष्ट अतिथि प्रखर व्यंग्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी, सुप्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. मंजु शर्मा जी मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीपा कृष्णदीप द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात् प्रदेश अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया। संस्था का परिचय देते हुए कहा कि यह एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है, साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक उद्देश्य है। अन्य क्षेत्रो की ललित कलाओं को प्रोत्साहित करना एवं सम्मानित करना संस्था का लक्ष्य है।
विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय जी ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि “दर्शन में जो द्वंद्वात्मक भौतिक विकासवाद है, वही राजनीति में साम्यवाद है और वही साहित्य में प्रगतिवाद है। पूँजीवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण श्रमिकों और कृषकों के उत्पीड़न और उनके भीतर चेतना का शंखनाद करने में साम्यवाद ने अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वाह किया है।
मुंशी प्रेमचंद, रामेश्वर करुण से लेकर केदारनाथ अग्रवाल, डॉ रामविलास शर्मा, नागार्जुन, गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’, त्रिलोचन शास्त्री सहित अनेक कवियों और साहित्यकारों ने इस कालखंड में अपनी लेखनी के माध्यम से सामान्य जन, कृषक और श्रमिक, सर्वहारा वर्ग और हाशिये पर खिसके समाज की पीड़ा और संघर्ष को जहाँ मुखरित किया वहीं पूँजीवाद के क्रूर चेहरे को सामने लाने का महत्वपूर्व कार्य कर समाजवादी चेतना को आगे बढ़ाया। जीवन के कटु यथार्थ, व्यक्ति की दीन-हीन स्थिति और किसान और मज़दूर के प्रति सहानुभूति का चित्रण कर प्रगतिवादी साहित्यकारों ने अनेक कालजयी रचनाओं को जन्म दिया। पूँजीवाद के समाजवादी चिंतन की धारा को धार देने के लिए हिन्दी काव्य में प्रगतिवादी विचार धारा आज भी प्रासंगिक बनी हुई है।”
काव्य में ‘प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ’ विषय परअपना सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए मुख्य वक्ता डॉ. मंजु शर्मा ने कहा कि “मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्य में उदय प्रगतिवाद के रूप में उदय हुआ। यह विचारधारा समाज को दो वर्गों में देखती है शोषक और शोषित। प्रगतिवादी शोषक या पूँजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एक आवाज़ है जो समाज के दूसरे तबक़े अर्थात् शोषित या सर्वहारा वर्ग में चेतना लाने के लिए उठी। प्रगतिवादी विचारधारा शोषित वर्ग को संगठित कर समाज में चेतना लाने का काम कर रही थी। प्रगतिवाद इसी तरह धर्म की रूढ़िवादिता को दूर फेंक मानवता की अपरिमित शक्ति में विश्वास करता है। प्रगतिवादी कविता यथार्थ चित्रण पर बल देती है, कल्पना पर नहीं।”
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. राशि सिन्हा ने कहा कि “प्रगतिवाद एक ऐसी विचारधारा एवं एक ऐसा स्वस्थ दृष्टिकोण है जिसने विरोध के स्वर को काव्य बिंब में पिरोकर प्रगतिशील सृजन की एक ऐसी नींव डाली जिसने समाज में न सिर्फ़ साम्यवाद का उद्घोष किया, बल्कि आगे भी सृजन की चेतना में सामाजिक यथार्थ बोध-भावों को स्थापित किया। भाषाई चेतना को छायावाद के ‘सॉफिस्टिकेटेड’ प्रयोग से निकालकर रचनात्मकता के स्तर पर एक सर्वहारा प्रकृति की ओर उन्मुख कर नई कविता और आधुनिक काव्य सृजन को प्रभावित करते हुए नई राह दिखाई।”
परिचर्चा के अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी वक्तव्यों के सारांश पर अपनी महत्त्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए कहा कि, “प्रगतिवाद का जन्म बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में तेज़ी से बदलती राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के प्रभाव से बदली भारतीय जनता की चित्तवृत्ति का सहज परिणाम था, जिसे मार्क्सवादी विचारधारा ने प्रेरित किया था। उन्होंने हिंदी की प्रगतिवादी कविता की प्रवृत्तियों की चर्चा करते हुए यह भी जोड़ा कि आज भले ही विश्व भर में साम्यवादी राज्य-व्यवस्था का प्रयोग असफल हो गया हो, एक आर्थिक दर्शन के रूप में मार्क्सवाद आज भी प्रासंगिक है; तथा जब तक समाज में वर्ग-भेद और वर्ग-संघर्ष विद्यमान है, तब तक प्रगतिवादी कविता भी क्रांति की प्रेरणा बन कर जीवित रहेगी।”
तत्पश्चात् काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्यपाठ करके वातावरण को ख़ुशनुमा बना दिया। श्रीमती विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष) शिल्पी भटनागर, श्री रामकिशोर उपाध्याय, डॉ राशि सिन्हा, सरिता दीक्षित, डॉ. रमा द्विवेदी, ममता जायसवाल, डॉ. संगीता शर्मा, प्रियंका पाण्डे, रमा गोस्वामी, तृप्ति मिश्रा, इंदु सिंह, डॉ. स्वाति गुप्ता, सरला प्रकाश भूतोड़िया, दीपा कृष्णदीप सभी रचनाकारों ने बहुत उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ में बहुत सुन्दर एवं सन्देश युक्त रचनाओं का पाठ किया किया एवं सभी की रचनाओं की सराहना करते हुए सभी को शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।
डॉ. आशा मिश्रा, रामनिवास पंथी (रायबरेली) दर्शन सिंह, सुभाष सिंह (कटनी) भावना मयूर पुरोहित, दीपक दीक्षित तथा राजेश कुमार सिंह श्रेयस (अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष इकाई, लखनऊ) ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) द्वितीय सत्र का संचालन दीपा कृष्णदीप (महासचिव) ने किया। डॉ. सुषमा देवी आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।
प्रेषक: डॉ. रमा द्विवेदी, अध्यक्ष (युवा उत्कर्ष)
नदलेस ने की अनामिका सिंह अना के नवगीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’ पर परिचर्चा
दिल्ली। नव दलित लेखक संघ ने अनामिका सिंह ‘अना’ के नवगीत गीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’ पर ऑनलाइन परिचर्चा गोष्ठी आयोजित की। मुख्य वक्ता के तौर पर वीरेंद्र आस्तिक, पूर्णिमा वर्मन और जगदीश पंकज के अतिरिक्त नवगीतकार अनामिका सिंह ‘अना’ उपस्थित रही। साथ ही विशेष टिप्पणी के लिए सुभाष वशिष्ठ उपस्थित रहे। गोष्ठी की अध्यक्षता बंशीधर नाहरवाल ने की एवं संचालन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया। अनुपा आदि, डॉ. ईश्वर राही, रेनू गौर, अजय यतीश, ज़ालिम प्रसाद, मामचंद सागर, बी एल तोंदवाल, अशोक पाल सिंह, डॉ. रामावतार सागर, डॉ. प्रिया राणा, जोगेंद्र सिंह, डॉ. घनश्याम दास, डॉ. विक्रम सिंह, बिभाष कुमार, आर. पी. सोनकर, डॉ. सुमित्रा, अमित रामपुरी, फूलसिंह कुस्तवार, चितरंजन गोप लुकाटी, भीष्म देव आर्य, जगतराम दाहरे, पुष्पा विवेक, डॉ. गीता कृष्णांगी, राधेश्याम कांसोटिया और हुमा ख़ातून आदि गणमान्य रचनाकार उपस्थित रहे। सर्वप्रथम उपस्थित सभी साहित्यकारों ने अपना-अपना संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया ताकि एक दूसरे से अनौपचारिक परिचय हो सके। अनामिका सिंह अनामिका और वक्ताओं का शाब्दिक परिचय डॉ. अमित धर्मसिंह ने प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् अनामिका सिंह ‘अना’ के दो नवगीतों के सुमधुर गान से गोष्ठी का आग़ाज़ हुआ।
पूर्णिमा वर्मन ने कहा, “अनामिका सिंह अना के नवगीत जन-सरोकार से जुड़े गीत हैं। ये इतनी सधी हुई भाषा में रचे गए हैं कि इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता है। मानव-जीवन और प्रकृति को विषय बनाकर लिखे गए ये नवगीत किसी भी पाठक को मोह लेने का दम रखते हैं।” जगदीश पंकज ने कहा, “इन नवगीतों में अनामिका ने इतने-इतने अर्थ भर दिए हैं कि न सिर्फ़ लाइनों में बल्कि ‘बिटवीन द लाइंस’ के बीच छिपे अर्थ को भी समझना ज़रूरी हो जाता है। अनामिका ने भाषा और कथ्य दोनों स्तर से नवगीतों में अभिनव प्रयोग किए हैं। वे अपने एकमात्र नवगीत संग्रह न बहुरे लोक के दिन से ही चर्चित नवगीतकार हो गई है।” वीरेंद्र आस्तिक ने कहा, “मैं अनामिका से पूर्व में परिचित नहीं था लेकिन जब उनके नवगीत संग्रह की भूमिका लिखने को मिली तो मुझे उनकी रचनाशीलता देखकर सुखद आश्चर्य की अनुभूति हुई। अनामिका ने न सिर्फ़ कथ्य की नई ज़मीनें तलाश की हैं बल्कि भाषा का अपना ही नया मुहावरा भी गढ़ा है। इस कारण इनके बहुत से नवगीत ऐसे बन पड़े हैं जिनमे कालजयी होने की बहुत अधिक सम्भावना दिखाई पड़ती है।” सुभाष वशिष्ठ ने विशेष टिप्पणी में कहा, “अनामिका के नवगीत एक बार नहीं बार-बार पढ़े जाने की माँग करते हैं। उनसे हर बार कुछ नया अर्थ उभरकर सामने आता है। निश्चित ही वे आगे चलकर अग्रणी पंक्ति की नवगीतकार साबित होंगी।” अनामिका सिंह अना ने लेखकीय वक्तव्य में कहा, “मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मैंने इतने अच्छे नवगीत लिखे हैं जैसे कि आज के वक्ताओं ने बताए। मैंने इतनी बढ़िया गोष्ठी के होने की भी कल्पना नहीं की थी। इसके लिए मैं नदलेस की पूरी टीम ख़ासकर जगदीश पंकज और डॉ. अमित धर्मसिंह जी की विशेष रूप से आभारी हूँ।” अध्यक्षता कर रहे बंशीधर नाहरवाल ने कहा कि इतनी सुंदर पुस्तक के लिए अनामिका सिंह ‘अना’ को और इतनी बढ़िया परिचर्चा गोष्ठी के लिए नदलेस को हृदय से बधाई दी जाती है।” नवगीतकार सहित सभी वक्ताओं और श्रोताओं का अनौपचारिक धन्यवाद ज्ञापन मामचंद सागर ने किया।
डॉ. अमित धर्मसिंह
आगे पढ़ेंअश्विनी कुमार दुबे के कहानी संग्रह ‘आख़िरी ख़्वाहिश’ के लोकार्पण एवं समकालीन कथा साहित्य पर चर्चा
बेहतर आदमी तो समाज और साहित्य के माध्यम से ही बन सकता है: संतोष चौबे
क्षितिज संस्था द्वारा आयोजित अश्विनी कुमार दुबे के कहानी संग्रह आख़िरी ख़्वाहिश के लोकार्पण एवं समकालीन कथा साहित्य पर चर्चा के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार, रविंद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल के कुलाधिपति तथा विश्व रंग के निदेशक श्री संतोष चौबे ने कहा कि, “मैं व्यक्तिगत अनुभव से कह सकता हूँ कि एक सपना हम सब की आँखों में रहता था कि समय आएगा जब यह समय सबके लिए बदल जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि वह सुधार करते-करते पूरी परंपरा का तिरस्कार कर दिया गया। साहित्यकार के पास आदर्श तो था लेकिन चेतना धीरे-धीरे समाप्त होने लगी थी। गाँव ग़ायब होने लगे थे और बाज़ार चिंतन पर हावी हो गया था। कहानी ने अभी सिर्फ़ चित्रों को पकड़ लिया है। आप चित्र को बाहर से देख सकते हैं उसके भीतर नहीं जा सकते। कहानी सफल तभी हो पाएगी जब वह उसके भीतर के आदर्श तक पहुँच सके। जब आप बेसिक मूल्य की तरफ़ लौटेंगे तभी कहानी की वापसी होगी। ऐसे वक़्त में दुबे जी ने कहानी का लिखना निरंतर जारी रखा यह महत्त्वपूर्ण बात है। क्योंकि समाज में बेहतर आदमी समाज और साहित्य के माध्यम से ही बन सकता है।”
प्रमुख अतिथि के रूप में वरिष्ठ कहानीकार एवं वनमाली कथा पत्रिका के संपादक श्री मुकेश वर्मा ने अपने इंदौर में निवास के संस्मरणों को याद करते हुए कथा साहित्य पर बातचीत की। उन्होंने कहा कि, “समाज में जब बहुत सारा विघटन होता जा रहा है तब आदर्श के सहारे कथा की रचना बहुत आदर्श की स्थापना करती है जो वर्तमान समय में अप्रासंगिक होता जा रहा है। जो नया लेखन सामने आ रहा है वह बड़ा तीखा है और नए विषयों के साथ नई भाषा के साथ नए शिल्प के साथ सामने प्रस्तुत किया जा रहा है।”
देवास से पधारे वरिष्ठ कहानीकार प्रकाशकांत ने कहा कि इस कहानी संग्रह की विशेषताएँ यह है कि आख़िरी ख़्वाहिश कहानी के माध्यम से दो राष्ट्रों की स्थिति को लेखक ने प्रस्तुत किया है तथा जो नायक का अंतर्द्वंद्व है वह बहुत ख़ूबसूरत तरीक़े से रचा गया है। उन्होंने कहा कि पिछली सदी घटनाओं से परिपूर्ण थी और कहानी में से वह सब ग़ायब होता जा रहा है। कथा वनमाली के कथा विशेषांक का भी उन्होंने ज़िक्र किया और उन्होंने कहा कि कहानी को उन सारी चीज़ों को अपने भीतर शामिल करना चाहिए जो घटनाएँ जीवन को प्रभावित करती हैं।”
कहानीकार किसलय पंचोली ने कहा कि, “लगातार परिवर्तन और विकास का नाम ही जीवन है। कहानी में भी परिवर्तन की यह विकास यात्रा बहुत लंबी रही है। यह यायावर विधा है। कहानियों पर कहानियों के पात्रों पर भी उन्होंने विस्तार से बातचीत की।”
कार्यक्रम के प्रारंभ में माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन किया गया। संस्था के अध्यक्ष सतीश राठी, कोषाध्यक्ष सुरेश रायकवार, सचिव दीपक गिरकर, ब्रजेश कानूनगो एवं रश्मि स्थापक के द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया। अपनी रचना प्रक्रिया पर बातचीत करते हुए लेखक अश्विनी कुमार दुबे ने कहा कि, “लेखक को अपने शब्दों में अपने भाव और अपनी भाषा के साथ लिखना चाहिए जब वह किसी छद्म भाषा का प्रयोग करता है तो वह भाषा पकड़ में आ जाती है।” इस संदर्भ में उन्होंने टैगोर के जीवन का एक क़िस्सा भी प्रस्तुत किया। श्री अश्विनी कुमार दुबे के द्वारा यह पुस्तक साहित्यकार सतीश राठी को समर्पित की गई है और इस प्रसंग पर उनके द्वारा श्री सतीश राठी का स्वागत भी किया गया।
कार्यक्रम का शानदार संचालन रश्मि चौधरी के द्वारा किया गया एवं आभार संस्था के सचिव श्री दीपक गिरकर के द्वारा माना गया। कार्यक्रम में नगर के गणमान्य साहित्यकार उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंरचनाओं को परिष्कृत करने के लिए उन पर चर्चा ज़रूरी—अश्विनी कुमार दुबे
क्षितिज साहित्य संस्था द्वारा होली मिलन समारोह एवं व्यंग्य रचना पाठ संगोष्ठी का आयोजन अरोमा रेस्टोरेंट, महालक्ष्मी नगर, इंदौर में किया गया जिसमें संस्था सदस्यों द्वारा बढ़-चढ़ कर भाग लिया गया।
कार्यक्रम में पिछले दिनों सदस्यों के लिए आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। इसमें चेतना भाटी को प्रथम, ज्योति जैन को द्वितीय, रश्मि स्थापक को तृतीय और कनक हरलालका तथा चंद्रशेखर दिघे को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किए गए।
इस अवसर पर संस्था ने अपने त्रैमासिक ई न्यूज़ लेटर ‘क्षितिज’ का लोकार्पण भी किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध आशुकवि श्री प्रदीप नवीन ने अपनी हास्य कविताओं से श्रोताओं को ख़ूब गुदगुदाया वहीं कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अश्विनी दुबे ने कहा कि, संस्था के सदस्यों को अपनी मासिक बैठक में एक दूसरे की रचनाओं में सुधार हेतु चर्चा ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए रचना कर्म बहुत ज़रूरी है। आयोजन में रचना पाठ के दौरान क्षितिज के अध्यक्ष श्री सतीश राठी ने अपना गीत ‘दिन अनमने हो गए, मन पाहुने हो गए’ सुनाया। श्री ब्रजेश कानूनगो द्वारा होली पर तीखे व्यंग्य दोहे सुनाए तो सचिव श्री दीपक गिरकर ने अपना चुटीला व्यंग्य ‘फूफाजी और चौकीदार’ प्रस्तुत किया। श्रीमती ज्योति जैन ने ‘नेताओं की होली में रंगों की दुविधा’ सुनाई वहीं श्री आर.एस. माथुर द्वारा ‘मन में कुंजबिहारी रखना अच्छा है’ नंदकिशोर बर्वे द्वारा ‘जय जगदीश हरे’ व्यंग्य रचना का पाठ किया गया। श्रीमती रश्मि चौधरी द्वारा बुंदेलखंड की लोककथा पर शानदार प्रस्तुति देते हुए लघु नाटिका का मंचन किया गया।
इस अवसर पर सुषमा शर्मा श्रुति, चंद्रशेखर दिघे, रश्मि स्थापक, किशन शर्मा कौशल, अखिलेश शर्मा द्वारा भी अपनी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ी गई। सभी रचनाकारों द्वारा पढ़ी गई उत्कृष्ट रचनाओं ने श्रोताओं को होली के रंगों से सरोबार कर दिया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन किया गया तथा सुषमा शर्मा के द्वारा स्वरचित सरस्वती वंदना का गायन किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्री सुरेश रायकवार द्वारा किया गया एवं आभार प्रदर्शन श्री दीपक गिरकर द्वारा किया गया।
—प्रेषक: दीपक गिरकर
आगे पढ़ेंवातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-174
टैगोर ने अपनी पहली कविता ब्रज भाषा में ही लिखी थी—अनिल शर्मा जोशी
लंदन: 31 मार्च, 2024: ‘बोलियों की मिठास और उनकी अकूत संपदा’ विषय पर दिनांक 30 मार्च, 2024 को साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था वातायन-यूके (लंदन) के तत्त्वावधान में वातायन-यूके संगोष्ठी-174 का ऑनलाइन आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता की, सुप्रसिद्ध साहित्यकार और हिंदी प्रचारक श्री अनिल शर्मा जोशी ने जबकि वातायन संगोष्ठी की इस लोकगीत शृंखला-15 का सुविध और सुरुचिपूर्ण संचालन किया सिंगापुर साहित्य संगम की सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव ने।
इस कार्यक्रम के प्रतिभागी वार्ताकार थे—लोकसाहित्य और नवगीत के हस्ताक्षर डॉ. जगदीश व्योम तथा आकाशवाणी की सुप्रसिद्ध पूर्व-उद्घोषिका तथा साहित्यकार सुश्री अलका सिन्हा। लोक साहित्य, लोक गीत, लोक भाषा और लोक जीवन के परिप्रेक्ष्य में यह संगोष्ठी अत्यंत दिलचस्प और ज्ञानवर्धक रही तथा ज़ूम, यूट्यूब, फ़ेसबुक एवं अन्य सोशल मीडिया के ज़रिए बड़ी संख्या में श्रोता-दर्शक इस कार्यक्रम से आद्योपांत जुड़े रहे। इस संगोष्ठी में अवधी, ब्रज, मैथिली और भोजपुरी लोकभाषाओं के साहित्य, इनके गीति-काव्य और इनसे संबद्ध लोगों के बारे में उपयोगी चर्चा हुई। डॉ. व्योम और सुश्री सिन्हा इन लोक भाषाओं पर अंतरंग बातचीत करते हुए कई बार भावुक हो गए तथा अपने निजी जीवन से जुड़ी अनेक घटनाओं का भी उल्लेख किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव ने मिथिला के कवि विद्यापति की एक कविता की एक पंक्ति—‘देसी बैना सब जन मिट्ठा’ उद्धृत करते हुए कहा कि यह कार्यक्रम लोक बोलियों की मिठास और उनकी अकूत संपदा पर केंद्रित है। तदुपरांत, उन्होंने संगोष्ठी के अध्यक्ष, श्री अनिल जोशी, प्रतिभागी संवादकारों, लोक गायकों और लोक गीतकारों का अभिनंदन करते हुए उनका संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने कुछ लोक भाषा के अध्येताओं यथा, ग्रियर्सन, सुनिधि कुमार चटर्जी, धीरेंद्र वर्मा आदि का उल्लेख किया। अलका सिन्हा ने कहा कि इन लोक भाषाओं में हम जितना उतरते जाते हैं, उनके प्रति हमारी पिपासा उतनी ही बढ़ती जाती है। लोक शब्दावलियाँ लोक जीवन के अनेकानेक इम्प्रेशनों और स्मृतियों से हमें संबद्ध करती हैं। शहर की भागम-भाग के चलते रोबोट बनी ज़िंदग़ी में ये बोलियाँ मिठास का परिपाक करती हैं। डॉ. व्योम ने बताया कि फ़िल्मों में या शहरों में लोक गीत के नाम पर जो गीत गाए-सुने जाते हैं, उनमें लोकगीत का तत्त्व कोई पाँच से दस प्रतिशत तक ही रह जाता है। फ़िल्मों में प्रोफ़ेशनल गायकों द्वारा गाए गए लोक गीतों की एक तरह से हत्या हो गई है। जहाँ तक विभिन्न क्षेत्रों में लोक गीतों का सम्बन्ध हैं, उनमें एक प्रकार की एकरूपता होती है क्योंकि हमारी संवेदनाएँ एक जैसी ही हैं। मूल संवेदनाओं में कृत्रिमता के आने से लोकगीत की मौलिकता का क्षरण होता जा रहा है।
तदनंतर, सुश्री ऋतुप्रिया खरे ने अवधी में कुछ होरी गीत, जैसे ‘होरी खेलैं रघुबीरा अवध मा, होरी खेलैं रघुबीरा’ और ‘रंग लई के दौरे हनुमान जी, राम जी बच के भागे’ गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ. व्योम ने कहा कि इन लोक गीतों में नारियों ने अपनी नानाविध भावनाएँ प्रकट की हैं; उदाहरण के लिए एक लोकप्रिय भोजपुरी लोक गीत ‘रेलिया बैरन पिया को लिए जाय रे’ नारी-मन की ऐसी ही भावना को व्यक्त करता है। विवाह के अवसर पर गाया जाने वाला ‘गाली’ लोक गीत मिठास से भरा होता है।
लोकगीतों की फुलझड़ियों के बीच बघेलखंड और मिथिला में गाए जाने वाले लोक गीतों की चर्चा करते हुए आराधना झा श्रीवास्तव ने सूरदास जी द्वारा ब्रज भाषा में विरचित एक भजन ‘दधि मांगत और रोटी गोपाल, माई’ को गाकर मंच को गुंजायमान् कर दिया। इसी क्रम में श्री मनोज कुमार सिन्हा ने विद्यापति की मैथिली में लिखी गई एक गंगा-स्तुति ‘बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे’ गाकर सुनाया। डॉ. व्योम ने बताया कि जो भी रचनाकार ने लोक भाषा का प्रयोग नहीं करता है, वह अच्छा साहित्यकार नहीं हो सकता। हम सभी को लोक शब्द-संपदा को बचाने की आवश्यकता है। श्री रत्नेश पांडे ने लोक गीतों को शाश्वत बताते हुए कहा कि इनके रचनाकार, रचनाकाल, रचना-क्षेत्र के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं होता है। ‘चइता’ और ‘फगुवा’ लोकगीतों की चर्चा करते हुए उन्होंने एक छठ गीत ‘गुणवा ना सोहेला’ और जन्मोत्सव पर गाया जाने वाला एक ‘सोहर’—‘जुग-जुग जिय सू ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो’ सुनाया। उन्होंने विवाहोत्सव के दौरान द्वारचार पर गाया जाने वाला एक ‘गाली’ लोक गीत भी सुनाया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे श्री अनिल जोशी जी ने अपने वक्तव्य में इस मंच के लोकगायकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि इन्हें इस मंच पर और भी मौक़ा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोक भाषाओं और बोलियों का इतिहास बहुत प्राचीन है। ये बेहद लोकप्रिय भी रही हैं जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बांग्ला कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी पहली कविता ब्रज भाषा में ही लिखी थी। उन्होंने ब्रज भाषा के कवि भारतेंदु जी की चर्चा करते हुए कहा कि लोक भाषाओं की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अवधी में तुलसीदास द्वारा विरचित रामचरित मानस विश्व-प्रसिद्ध काव्य है। अवधी को मधुर भाषा बताते हुए उन्होंने भोजपुरी को अंतरराष्ट्रीय भाषा बताया जिसे मॉरीशस में बहुतायत से बोला जाता है।
कार्यक्रम का समापन श्री अभिषेक त्रिपाठी द्वारा मंचासीन अध्यक्ष, प्रतिभागी संवादकारों और लोकगायकों को धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ। उन्होंने कार्यक्रम को सुनने के लिए ज़ूम, यूट्यूब और फ़ेसबुक जुड़े श्रोता-दर्शकों के प्रति भी आभार प्रकट किया। ऐसे श्रोता-दर्शकों में उल्लेखनीय नाम इस प्रकार हैं: प्रो. ल्यूदमिला खोंखोलोव, प्रो. तोमिओ मिज़ोकामी, शैल अग्रवाल, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. रेनू, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, डॉ. वरुण कुमार, प्रो. तात्याना ओरंसकिया, अनूप भार्गव, शेख़ शाहज़ाद-उल्लाह उस्मानी, विजय विक्रांत, डॉ. मधु वर्मा, सुनीता पाहुजा, सुषमा मल्होत्रा, सिंगरवार पांडुरंग, अमिता शाह, गीतू गर्ग, दीपा, पूजा यादव आदि।
संगोष्ठी में विशेष तकनीकी सहयोग देने के लिए कृष्ण कुमार जी के प्रति भी वातायन परिवार की ओर से आभार प्रकट किया गया।
(प्रेस विज्ञप्ति-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंपुनीता जैन को ‘श्री प्रभाकर श्रोत्रिय स्मृति आलोचना सम्मान’
16 मार्च 2024 को मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिन्दी भवन, भोपाल द्वारा आलोचना कर्म के लिए अखिल भारतीय स्तर पर प्रदान किया जाने वाला प्रतिष्ठित ‘श्री प्रभाकर श्रोत्रिय स्मृति आलोचना सम्मान-2023’ पुनीता जैन को उनकी कृति ‘आदिवासी कविता-चिंतन और सृजन’ के लिए दिया गया।
सम्मान स्वरूप उन्हें प्रतीक चिह्न, शाल, श्रीफल तथा इक्कीस हज़ार रुपये की राशि प्रदान की गयी। उन्हें समिति के अध्यक्ष श्री सुखदेव प्रसाद दुबे, उपाध्यक्ष श्री रघुनंदन शर्मा, रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे तथा सुश्री रंजना अरगड़े की उपस्थिति में यह सम्मान प्रदान किया गया।
आगे पढ़ेंब्रज के लोकगीत और रसिया गायन
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली के फ़ाउंटेन लॉन में 9 मार्च, 2024 को ब्रज के लोकगीत और रसिया गायन सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में भरतपुर के ब्रज क्षेत्र के कलाकार श्री जितेंद्र पराशर एवं ग्रुप द्वारा मन मोहक प्रस्तुति दी गई।
बसंत पंचमी से ब्रज क्षेत्र में होली के त्योहार की शुरूआत हो जाती है और इसके आयोजन में सांगीतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की एक स्वायत्तशासी संस्था उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में 15 लोक कलाकारों ने ब्रज के पारंपरिक लोक-संगीत और नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसमें फूलों की होली, मयूर-रास और चरकुला नृत्य आदि प्रमुख प्रस्तुतियाँ थीं।
कार्यक्रम के आरंभ में श्री जितेंद्र पाराशर ने गणपति वंदना ‘महाराज गजानन आओ जी’ प्रस्तुत किया। इसके पश्चात एक प्रसिद्ध कृष्ण भजन ‘करते हो तुम कन्हैया मेरा काम हो रहा है’ की प्रस्तुति के बाद एक छोटे विराम के पश्चात शुरू हुआ गायन-सह-नृत्य का मन भावन कार्यक्रम। भगवान श्री कृष्ण के जन्म और उनके बाल-लीला के रूप में नृत्य की प्रथम प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया। तत्पश्चात् मयूर रास की प्रस्तुति हुई। इस विशेष नृत्य आयोजन के परिचय स्वरूप कलाकार ने काव्यात्मक अंदाज़ में बताया कि ‘बरसाने’ में एक मोर कुटी थी। राधा रानी उस मोर कुटी में नित्य प्रति दर्शन के लिए जाती थीं। एक बार की बात है, श्रावण मास में भीनी-भीनी बूँद पड़ रही थी, घुँघराली-काली घटा छाई हुई थी। लेकिन राधा रानी तो अपने संकल्प की पक्की थीं। चाहे बिजली कड़के, चाहे अम्बर बरसे लेकिन उन्हें मयूर के दर्शन करने थे, सो करने ही थे। संयोगवश उस दिन बहुत इंतज़ार के बाद भी जब उन्हें मोर का दर्शन नहीं हुआ तब उन्होंने अपने साँवरे घनश्याम को पुकार लगाई—
“आया सावन झूम के, अजि मोरा करें पुकार
तू ना आयो साँवरे, मैं तुम्हें ढूँढ़-ढूँढ़ गई हार
जब से राधा के हृदय में, आन बसे घनश्याम
श्याम बन गए राधिका, राधा बन गई श्याम”
इस गीत के ऊपर राधा-कृष्ण और गोपी-गोपिकाओं के रूप में नृत्य-मंडली की मनोहारी प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों के श्रद्धा-विनत मन-मयूर को झूमने-नाचने पर मजबूर कर दिया।
इसके बाद चरकुला नृत्य की अद्भुत एवं विस्मयकारी प्रस्तुति हुई। ब्रज क्षेत्र की इस प्रचलित नृत्य विधा में नर्तक अपने सिर पर बहु-स्तरीय वृत्ताकार पिरामिडों को रखकर कृष्ण भक्ति गीतों पर नृत्य करते हैं। इस नृत्यांजलि में ग्रुप की दो नृत्यांगनाओं ने अपने सिर पर 108-108 जलते दियों के साथ ख़ूबसूरत नृत्य प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का समापन फूलों की होली के साथ हुआ जिसमें उपस्थित दर्शकों ने भी आनंद निमग्न होकर खुले मन से सहभाग किया और राधा-कृष्ण तथा गोपियों के ऊपर फूलों की वर्षा की। इस नृत्य प्रस्तुति के दौरान एक पल के लिए ऐसा लगा कि श्वास जैसे ठहर गई हो और कोई सुगंधित वायु हमारे हमारे मन-मकरंद को सुवासित कर गई हो। ऐसी प्रतीति हुई कि कि आस-पास एक नए काव्य का जन्म हो रहा है। सभी दर्शकों का संगीत में सहभागी बनना जैसे परमात्मा की गहन संप्रतीति करा गया।
रिपोर्ट: राघवेन्द्र पाण्डेय
आगे पढ़ेंनाट्यकथा: कथा सिया राम की का भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण
दिनांक 06-03-2024 को राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली में मुक्ताकाशीय मंच पर रामायणगाथा कार्यक्रम के अंतर्गत पद्मविभूषण डॉ. सोनल मानसिंह और उनके शिष्यों द्वारा नाट्यकथा : कथा सिया राम की का भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण किया गया। इसी वर्ष अप्रैल माह में अपने जीवन के संगीतमय अस्सी वसंत पूर्ण करने जा रहीं भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्य विधा की अतीव गुणी एवं सिद्धहस्त कलाकार डॉ. सोनल मानसिंह ने अपनी टीम के साथ रामचरितमानस की चौपाइयों के लयबद्ध गायन आधारित नृत्य के माध्यम से भगवान श्रीराम के जीवन के विभिन्न पक्षों को बड़े ही प्रभावपूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत किया। नाट्यकथा का आरंभ राजा दशरथ द्वारा संतान प्राप्ति हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ करने के साथ हुआ और फिर चारों भाइयों के जन्म के समय बधाई गीत, उनके बाल्यकाल का मनोहारी चित्रण, ऋषि विश्वामित्र का राजमहल में आगमन और अपने आश्रम में विश्वकल्याण हेतु यज्ञादि आयोजनों के निर्विघ्न-निष्कंटक पूर्णाहुति के लिए दुष्ट राक्षसों के समूल नाश के निमित्त राजा दशरथ से राम एवं लक्ष्मण को साथ भेजने का अनुरोध, दोनों भाइयों द्वारा वन में आततायी राक्षसों का अंत करना और राजा जनक के निमंत्रण पर ऋषि विश्वामित्र का राम-लक्ष्मण सहित सीता-स्वयंवर में शामिल होना तथा देश-देश से सभा में पधारे समस्त भूपतियों के शिव धनुष को टस से मस नहीं कर पाने के बाद राम के द्वारा प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयास में धनुष भंग के उपरांत राम-सीता के विवाह के साथ यह नृत्य नाटिका संपन्न हुई। नृत्यकला की साधना में व्यतीत डॉ. सोनल मानसिंह का जीवन और उससे उपजा अनुभव पूरे कार्यक्रम के दौरान उनकी भाव-भंगिमाओं से प्रतिपल मुखरित होता रहा जिसने उपस्थित नृत्यानुरागी दर्शकों में सूक्ष्म स्पंदन का संचार करने के साथ ही उन्हें आनंदातिरेक से भर दिया।
कार्यक्रम के समापन सत्र में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. संजीव किशोर गौतम ने इस सुंदर एवं मर्मस्पर्शी प्रस्तुति हेतु डॉ. सोनल मानसिंह और उनकी पूरी टीम का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि बहुत दिनों से उनके विचार में दृश्य-कला और संगीत-मंच कला को एक साथ जोड़ने की इच्छा बलवती हो रही थी। निश्चय ही यह कार्यकम उसी रचनाशील विचार प्रक्रिया की उपज है। वर्तमान में तेज़ी से क्षरित होते जीवन-मूल्यों को सहेजने की ज़िम्मेदारी साहित्य, संगीत और कला के ऊपर एक साथ आन पड़ी है। अतः, इस पुनीत उद्देश्य के लिए सभी प्रकार की कलाओं द्वारा एकजुट प्रयास अपेक्षित है। निश्चय ही जब हम भारतीय समाज में सभ्यता एवं संस्कृति को संपुष्ट करने का हेतु रचते हैं तो इस संदर्भ में मर्यादा पुरुषोत्तम से उत्तम व्यक्तित्व और कौन हो सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने आदरणीया डॉ. सोनल मानसिंह जी के पास इस नृत्य-नाटिका की प्रस्तुति हेतु निवेदन भेजा और उनके उदार हृदय ने हमारे अनुरोध को स्वीकार किया, इसके लिए समस्त एनजीएमए परिवार की ओर से हम आपका हृदयतल से आभार व्यक्त करते हैं।
प्रेषक: राघवेन्द्र पाण्डेय
आगे पढ़ेंप्रो. रेखा शिक्षण जगत की एक शख़्सियत हैं–अनिल शर्मा जोशी
(‘वातायन-यूके’ की 168वीं संगोष्ठी का आयोजन)
लन्दन, दिनांक 02-03-2024: ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में दिनांक 02-03-2024 को इस वैश्विक मंच की 168वीं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के अंतर्गत, दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय की पूर्व-कार्यकारी प्राचार्य और हिंदी साहित्य की यशस्वी साधक प्रो. रेखा सेठी के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व पर विशद चर्चा हुई।
लंदन की कवयित्री सुश्री आस्था देव ने मंच संचालन करते हुए प्रो. रेखा के सम्बन्ध में कहा कि उनकी साहित्य-साधना अनुकरणीय और प्रशंसनीय है। उनके साहित्यिक अवदान को साधारण शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। मिर्ज़ा ग़ालिब के दिल्ली-स्थित मोहल्ले–बल्लीमारां के बिल्कुल क़रीब रहने वाली प्रो. रेखा ने आस्था देव की जिज्ञासा को शांत करते हुए बताया कि उनकी हिंदी में दिलचस्पी वर्ष 1982 में पैदा हुई जबकि वे एक क्रिश्चियन स्कूल की छात्रा थीं। उसके पश्चात, वे कॉलेज में प्रख्यात साहित्यकार इंदु जैन जी के सान्निध्य में आईं; तदुपरांत, उनमें हिंदी भाषा और साहित्य की समझ पैदा हुई। उन्होंने जर्मनी, अमरीका जैसे देशों में अपने अनुभवों को साझा करते हुए श्रोताओं का समुचित ज्ञान-वर्धन किया।
वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार, श्री अनिल शर्मा जोशी की अध्यक्षता में इस ‘हिंदी सेवी शृंखला-2’ की संगोष्ठी में आस्था देव ने ही प्रो. रेखा से उनके सृजन-कर्म, निजी जीवन और साहित्यिक गतिविधियों के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न पूछे। उन्होंने कहा कि प्रो. रेखा का हस्तक्षेप मौलिक लेखन, संपादन, आलोचना, मीडिया-अध्ययन जैसे क्षेत्रों में है। इस पर, प्रो. रेखा ने बताया कि वे नई और चुनौतीपूर्ण चीज़ों को करने की कोशिश करती हैं। विज्ञापन पर लिखी गई उनकी हिंदी पुस्तक में उनकी कोशिश रही है कि इसमें कॉनसेप्ट और प्रोडक्शन के सम्बन्ध में चर्चा की जाए क्योंकि इसका सरोकार इंडस्ट्री से होता है और छात्र को इसी इंडस्ट्री में कार्य करना होता है। गत वर्ष वे लंदन में आयोजित भारोपीय हिंदी महोत्सव में प्रतिभागिता करने के बाद अमरीका की ड्यूक यूनिवर्सिटी गई थीं जहाँ उन्होंने हिंदी के विदेशी छात्रों से भी विभिन्न विषयों पर संवाद किया। उन्होंने बताया कि ड्यूक तथा विंस्टन विश्वविद्यालयों में हिंदी से सम्बन्धित भारतीय लेखकों पर एडवांस पाठ्यक्रम को अंग्रेज़ी में पढ़ाया जाता है। जब आस्था देव ने प्रो. रेखा के वर्तमान रचना-कर्म के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि स्वयं द्वारा संपादित एक पुस्तक में वे हिंदी कवयित्रियों की कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद कर रही हैं। इसके अतिरिक्त वे भारत की ही अंग्रेज़ी कवयित्रियों की अंग्रेज़ी कविताओं के हिंदी रूपांतर का भी एक संकलन तैयार कर रही हैं। उनकी तीसरी संपादित पुस्तक प्रेस में है जिसका विषय स्त्री-चिंतन और विमर्श है; यह पुस्तक इसी विषय पर विभिन्न लेखकों के निबंधों का संकलन है। उन्होंने कहा कि उन्हें अनुवाद-कार्य में बहुत आनंद आता है। तदनंतर, मंच पर उपस्थित अंतरीपा ठाकुर-मुखर्जी ने प्रो. रेखा द्वारा अनूदित और विरचित कविताओं का पाठ भी किया। सुश्री अश्विनी किन्हकर ने भी प्रो. रेखा के लिखे हुए के कुछ अंश का वाचन किया।
प्रो. रेखा ने स्त्रियों के विषय में बात करते हुए कहा कि संविधान-निर्माण में सरोजिनी नायडु, हंसा मेहता जैसी स्त्रियाँ भी थीं जिन्होंने स्त्रियों के आरक्षण के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा था कि उन्हें बस, सम्मानपूर्वक देखा जाना चाहिए; उन्हें स्त्री आरक्षण की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। उन्होंने मंच पर उपस्थित सुश्री शैल अग्रवाल द्वारा उठाए गए बिंदु के प्रत्युत्तर में स्वातंत्र्योत्तर भारत में स्त्रियों के संघर्ष और देश के आधे संसाधनों पर स्त्रियों के अधिकार के सम्बन्ध में भी प्रतिक्रिया की। बताया कि स्त्रियाँ बहुत बाद में आरक्षण की आग्रही बनी है। तदनंतर, डॉ. शैलजा सक्सेना ने कहा कि प्रो. रेखा के साथ उनका सम्बन्ध बहुत आत्मीय रहा है क्योंकि यूनिवर्सिटी के समय से ही वे उनसे परिचित रही हैं। उन्होंने कहा कि प्रो. रेखा जिस आत्मीय शैली से आलोचना के गहरे समुद्र में उतरती हैं, वह बहुत नयापन लिए हुए होता है। श्री निखिल कौशिक ने भी प्रो. रेखा के सम्बन्ध में अपने उद्गार व्यक्त किए।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि प्रो. रेखा शिक्षण जगत की एक शख़्सियत हैं जिन्हें देश-दुनिया में घटित नवीनतम घटनाओं के सम्बन्ध में जानकारियाँ हैं। उन्होंने तीन प्रख्यात लेखकों नामत: मुंशी प्रेमचंद, हरिशंकर परसाई और बाल मुकुंद गुप्त पर केंद्रित एक पुस्तक लिखी है और उन्हें ऐसे निबंध पढ़ना अच्छा लगता है। श्री जोशी ने प्रो. रेखा के अनुवाद-कार्य की भी चर्चा की। इस संगोष्ठी की सूत्रधार तथा ‘वातायन-यूके’ की संस्थापक दिव्या माथुर ने कहा कि प्रो. रेखा के साहित्यिक योगदान के सम्बन्ध में एक और संगोष्ठी आयोजित की जानी चाहिए।
कार्यक्रम का समापन करते हुए सुश्री अंतरीपा ठाकुर-मुखर्जी ने प्रो. रेखा को अपनी साहित्यिक यात्रा के सम्बन्ध में इतनी सघनता से परिचय देने के लिए तहे-दिल से धन्यवाद दिया। उन्होंने श्री अनिल शर्मा जोशी को उनके विशिष्ट अध्यक्षीय वक्तव्य के लिए आभार प्रकट किया। उन्होंने संगोष्ठी के प्रतिभागियों समेत, ज़ूम और यूट्यूब के माध्यम से आद्योपांत जुड़े हुए सभी श्रोता-दर्शकों को भी धन्यवाद ज्ञापित किया। चलते-चलते इस संगोष्ठी में तकनीकी सहयोग देने वाली सुश्री शिवि श्रीवास्तव की महत्त्वपूर्ण भूमिका की भी सराहना की।
— डॉ. मनोज मोक्षेंद्र
आगे पढ़ेंसंस्कृत बाल कथा पर अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी
“भाषा विकास तथा एनईपी-2020 के लिए आवश्यक”–कुलपति प्रो. वरखेड़ी
लखनऊ। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के सीएसयू लखनऊ परिसर में 13-14 फरवरी, 2024 तक आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी जी के संरक्षण में किया गया।
कुलपति प्रो. वरखेड़ी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह के कथा साहित्य को लेकर संगोष्ठी के आयोजन से अनेक भाषाओं के कथा साहित्यों के तुलनात्मक अध्ययन का अवसर उन्मीलित होगा जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तथा विशेषकर भारतीय साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय कथा साहित्य अपने काल खण्डों के साथ अपनी मौलिकता को सुरक्षित रखते हुए नवाचारी प्रयोग के साथ अविच्छिन्न गति से बढ़ता रहा है।
डीन अकादमी प्रो. बनमाली बिश्बाल ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि भारतीय कथा साहित्य का उत्स वैदिक वाङ्मय ही रहा है जिसके बीज से संस्कृत कथा साहित्य का विकास हुआ और अनेक काल खण्डों में परिवर्तित हो कर अपनी विविधाओं की भी श्रीवृद्धि की है। इसी संदर्भ में उन्होंने पुट कथा के साथ ललित निबन्धों तथा पत्र काव्यों का भी ज़िक्र किया।
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के ही भोपाल प्रो. रमाकान्त पाण्डेय ने संस्कृत कथा तो क्लासिकल है ही। लेकिन लोक भाषा के रूप में भी जाने अनजाने सर्वत्र व्याप्त है। यह भी एक प्रकार भाषिक दृष्टि से संस्कृत कथा की सर्वगामिता का लक्षण माना जाना चाहिए।
संस्कृत साहित्य विद्या शाखा प्रमुख तथा उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के विदुषी प्रो. गज़ाला अंसारी ने अतिथियों का स्वागत करते कहा कि संस्कृत भाषा की सर्वगामिता इस मायने में भी ग़ौरतलब है कि संस्कृत कथाओं में जिन मूल्यों की चर्चा की गयी है उसी से मिलते-जुलते अनेक प्रसंगों को हदीस में भी पढ़ा जा सकता है। इतना ही नहीं क़ुरान के कथानकों को भी संस्कृत के अदब में तर्जुमा किया गया है जिसका शाया पेंगुइन प्रकाशन से किया गया है। अतः सारी भाषाओं का चिन्तन अमूमन एक ही समन्वित केन्द्र पर सहभागी हो कर मिलता जुलता देखा जा सकता है।
इस अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक तथा संस्कृत पाली के युवा नदीष्ण विद्वान डॉ. प्रफुल्ल गडपाल ने संगोष्ठी के विषय प्रवर्तन में स्पष्ट किया कि कैसे संस्कृत भाषा की कथाएँ विशेष कर पंचतंत्र ने कथा साहित्य के रूप
में अरब के देशों में अपनी भूमिका का सिक्का जमाते बाल साहित्य के लिए रोल मोडल के रूप में काम किया।
इस सत्र का संचालन तथा डॉ. शिवानन्द मिश्र ने किया तथा व्याकरण शास्त्र के नदीष्ण विद्वान प्रो. भारत भूषण त्रिपाठी ने विशिष्ट अतिथियों तथा सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद किया।
दोनों दिवसों में अनेक महत्त्वपूर्ण शोध पत्रों को प्रस्तुत किये गये जिसमें अनेक सार्थक प्रश्न भी उभर कर प्रकाश में आये जिससे तस्दीक़ होता है कि यह अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी बहुत ही गुणात्मक परिणाम वाली निकली। इसकी पुष्टि विभिन्न सूत्रों के अध्यक्षों की पढ़े गये पत्रों पर टिप्पणियों से भी हुई। एक सत्र अध्यक्ष के रूप में डॉ. अजय कुमार मिश्रा, एसोसिएट प्रोफ़ेसर तथा मीडिया कौन्वेनर और पीआरओ ने कहा कि संस्कृत कथा साहित्य अपने आप को प्राचीनतम से आधुनिक कड़ियों से जीवन्त तथा अविछिन्न रूप में जुड़ कर प्रवाहित होती रही है। उसकी पुष्टि इस संगोष्ठी में पत्र वाचकों के विविध गवेषणात्मक विषयों तथा नाना काल खण्डों से जुड़े विमर्श से भी स्पष्ट होता है। लेकिन यह भी सत्य है कि मूल बिम्बों में समकालीन छटा तथा रोचकता को बनाने के लिए कथाकारों को थोड़ा सजग भी होना होगा। साथ ही साथ वैश्विक परिदृश्य पर भी विमर्श होना चाहिए कि आख़िर क्या कारण है हैरी पॉटर के अनेक खण्ड हाथों-हाथ तथा रातों-रात बिक जाते हैं।
संस्कृत के युवा कवि, लेखक एवं आलोचक डॉ. अरुण कुमार निषाद ने कहा कि केवल लेखन मात्र से ही संस्कृत का भला होने वाला नहीं है आवश्यकता है इसे प्रकाश में लाने की और इस पर शोध कार्य करने की। लखनऊ विश्वविद्यालय की शोधछात्रा शिखारानी ने कहा कि प्राचीन ग्रन्थों के साथ-ही-साथ आधुनिक ग्रन्थों पर भी शोधकार्य होने चाहिए।
इस सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि संस्कृत के प्रख्यात विद्वान कवि तथा उपन्यासकार प्रो. रामसुमेर यादव, पूर्व विभागाध्यक्ष, संस्कृत प्राकृत विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ ने अपने मुख्य अतिथि के रूप के सम्बोधन में संगोष्ठी के विषय की सार्थकता की भूरि-भूरि प्रसंशा करते शोध वाचकों बधाई दी इस सत्र की अध्यक्षता निदेशक तथा पूर्व कुलपति प्रो. सर्वनारायण झा ने की तथा ज्योतिषशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान प्रो. मदन मोहन पाठक ने स्वागत भाषण में संगोष्ठी के महत्त्व के विषय में बताया। डॉ. प्रफुल्ल गडपाल ने संगोष्ठियों में पढ़े गये शोध पत्रों की सार्थकता पर प्रकाश डालते अपना प्रतिवेदन को प्रस्तुत किया। प्रो. सर्वनारायण झा के सानिध्य में शोध पत्र प्रमाण पत्र का भी सोल्लास वितरण किया गया।
डॉ. शिवानन्द मिश्र ने मंच का संचालन किया तथा पाली भाषा तथा बौद्ध दर्शन के विद्वान प्रो. गुरुचरण सिंह नेगी ने संगोष्ठी की सफलता के लिए भावपूर्ण धन्यवाद ज्ञापन किया।
— प्रेषक: डॉ. अरुण निषाद
आगे पढ़ेंब्रिलिएंट में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत-2024
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका अभिनव बालमन में विविध प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य श्याम कुंतल ने कहा कि जब हम कविता, कहानी आदि लिखते हैं तो हमारे अंदर आत्मविश्वास आता है। ये तो बहुत अच्छा है कि रचनाएँ प्रकाशित भी हों और पुरस्कार भी मिलें। सभी बाल रचनाकारों को बधाई।
आगे पढ़ेंसमकालीन कुण्डलिया शतक का लोकार्पण
नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में त्रिलोक सिंह ठकुरेला द्वारा सम्पादित कुण्डलिया संग्रह ‘समकालीन कुण्डलिया शतक’ का लोकार्पण किया गया।
श्वेतवर्णा प्रकाशन की ओर से दिनांक 18.02.2024 को विश्व पुस्तक मेला के हॉल नम्बर 2 में आयोजित इस कार्यक्रम में लोकार्पण के समय सुपरिचित दोहाकार राजपाल सिंह गुलिया, श्वेतवर्णा प्रकाशन की संस्थापक शारदा सुमन, कविता कोश के उप निदेशक राहुल शिवाय, साहित्यकार राजेंद्र वर्मा, गज़लकार के. पी. अनमोल तथा समकालीन कुण्डलिया शतक के सम्पादक त्रिलोक सिंह ठकुरेला सहित अनेक बुद्धिजीवी और पाठक उपस्थित थे। समकालीन कुण्डलिया शतक में सौ कुण्डलियाकारों की रचनाओं का संकलन किया गया है। कुण्डलिया गेय छांदस विधाओं में छह चरणों का एक लोकप्रिय छंद है ।
उल्लेखनीय है कि त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने कुण्डलिया छंद की पुनर्स्थापना के लिए अभूतपूर्व कार्य किया है। उन्होंने कुण्डलिया छंद के अनेक संकलनों का सम्पादन किया है। त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया अनेक पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं।
आगे पढ़ेंबैरोनेस श्रीला फ़्लैदर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित
लंदन, 19 फरवरी 2024: साहित्यिक और सांस्कृतिक मंच ‘वातायन-यूके’ द्वारा दिनांक: 17-02-2024 को आयोजित 166 वीं संगोष्ठी में बैरोनेस (श्रीला) फ़्लैदर की दिवंगत आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। वास्तव में, श्रीला फ़्लैदर अंतरराष्ट्रीय ख्याति की एक महत्त्वपूर्ण महिला थीं। वे वर्ष 2004 में स्थापित ‘वातायन-यूके’ की आरंभ से ही संरक्षक थीं। उल्लेख्य है कि उनकी महान उपलब्धियों पर विशद चर्चा करने के लिए ‘वातायन-यूके’ द्वारा उनके 90वें जन्मदिन के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम के आयोजन की रूपरेखा तैयार की जा रही थी; किंतु प्रारब्ध को यह मंज़ूर नहीं था और वे इसी 6 फरवरी को गोलोकवास कर गईं।
बैरोनेस एक ब्रिटिश-भारतीय राजनीतिज्ञ और शिक्षिका थीं, जिन्हें 2009 में प्रवासी भारतीय सम्मान भी मिला था। उन्होंने उन एशियाई लोगों के लिए ‘मेमोरियल गेट्स’ के निर्माण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था, जिन्होंने दो ऐतिहासिक विश्व युद्धों में अंग्रेज़ों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी थी। इसके अलावा, वे ब्रिटिश संसद में अल्पसंख्यक समुदाय की ऐसी पहली सदस्य थीं, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए कड़ी मेहनत की थीं। वे अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करती थीं और हमेशा भारतीय संस्कृति की प्रतीक ‘साड़ी’ पहना करती थीं।
डॉ. पद्मेश गुप्त और दिव्या माथुर ने वातायन की ओर से बैरोनेस फ़्लैदर के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वे विपरीत परिस्थितियों में उनसे सदैव प्रेरणा लेते रहे हैं। उनके अतुलनीय सहयोग को वे सदैव याद रखेंगे; ऐसे अवसर भी आए जबकि उन्होंने अपनी अनुपस्थिति में उन्हें हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में वातायन के कार्यक्रमों को जारी रखने की व्यवस्था करके उन्हें अनुगृहीत किया। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, जबकि वे हमारे कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो सकीं, तो भी वे फोन के माध्यम से संपर्क में बनी रहती थीं; वे नेहरू सेंटर में रुकती थीं और उन्हें दोपहर के भोजन के लिए बाहर ले जाती थीं तथा हाउस ऑफ लॉर्ड्स की कैंटीन में उन सबका आवभगत किया करती थीं।
रेडियो और टेलीविजन पर कार्यक्रम-प्रस्तोता एवं पत्रकार और लेखिका, अनीता आनंद ने कहा कि वे श्रीला फ़्लैदर को साड़ी के पोशाक में देखकर बहुत प्रभावित होती थीं। वे उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का आजीवन कायल रही हैं तथा भविष्य में वे महिला सशक्तिकरण से संबद्ध उनके समर्पित कार्यों से सदैव प्रेरणा लेती रहेंगी।
डॉ. पॉल फ़्लैदर ने अपने बचपन की स्मृतियों को तरोताज़ा करते हुए बताया कि वे उनके साथ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों और सुख-दु:ख के पलों को सदैव अपनी स्मृतियों में संजोकर रखेंगे। उन्होंने कहा कि श्रीला फ़्लैदर के प्रभावशाली व्यक्तित्व ने सभी वर्ग के लोगों को आश्चर्यजनक रूप से प्रभावित किया है। ब्रिटेन में भारतीय राजदूत के रूप में लेडी श्रीला एक समर्पित वकील और एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं। उनका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से संपृक्त था। उनके पास सशक्त रूप से विचारवान मस्तिष्क था जबकि वे मनोविनोद में भी गहरी दिलचस्पी रखती थीं। इसके अलावा, वे स्वभाव से साहसी थीं और लोगों के साथ अत्यंत मित्रवत रहती थीं।
लॉर्ड मेघनाद देसाई ने बैरोनेस फ़्लैदर के प्रभावशाली व्यक्तित्व को याद करते हुए और उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि वे असाधारण रूप से एक साहसिक महिला थीं; किंतु यह अत्यंत विषादजनक है कि उनकी उपलब्धियों को अपेक्षित महत्व नहीं दिया गया।
बैरोनेस (उषा) पाराशर उनकी स्मृतियों को ध्यान में लाते हुए अत्यंत भावुक हो उठीं; उन्होंने कहा कि श्रीला एक अदम्य व्यक्तित्व की धनी महिला थीं। उन्होंने अन्य वक्ताओं के स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा कि कि श्रीला फ़्लैदर, हाउस ऑफ लॉर्ड्स में भारतीय पार्षद बनने वाली प्रथम महिला थीं। उन्होंने उनके अद्भुत व्यक्तित्व की सराहना करते हुए कहा कि उनकी महान शख़्सियत हम सभी के लिए सतत प्रेरणा की स्रोत बनी रहेंगी।
लॉर्ड (भीखू) पारीख एवं नेहरू सेंटर-लंदन की पूर्व-निदेशक मोनिका कपिल मोहता सहित दुनियाभर के अनेक विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने श्रीला फ़्लैदर की दिवंगत आत्मा के प्रति गहरी संवेदनाएँ व्यक्त कीं। उल्लेखनीय है कि श्रीला फ़्लैदर ‘वातायन-यूके’ के ट्रैक रिकॉर्ड से प्रभावित होकर, सहर्ष इसकी संरक्षक बन गई थीं जो इस संस्था के लिए गौरव की बात थी। ‘वातायन-यूके’ की चेयरपर्सन मीरा मिश्रा-कौशिक समेत इसके कई सदस्यों नामत: डॉ. जयशंकर यादव, अरुणा सभरवाल, अनूप भार्गव, मंजू शाह, आशीष रंजन और, नामत: शिखा वार्ष्णेय, अंतरीपा ठाकुर-मुखर्जी, आस्था देव, मधु चौरसिया, मंजू शाह आदि ने भी श्रीला फैदर के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएँ और श्रद्धांजलियाँ व्यक्त कीं। कार्यक्रम का समापन करते हुए, डॉ. पद्मेश गुप्त ने प्रतिभागी वक्ताओं के साथ-साथ दर्शकों को महान व्यक्तित्व बैरोनेस श्रीला फ़्लैदर के बारे में अपने-अपने अमूल्य विचार साझा करने के लिए धन्यवाद दिया।
(प्रेस रिपोर्ट: डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंडॉ. रमा द्विवेदी कृत ’मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ पुस्तक परिचर्चा संपन्न-युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, हैदराबाद
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल चौदहवीं संगोष्ठी 28 जनवरी-2024 (रविवार) 3। 30 बजे से आयोजित की गई।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि डॉ. रमा द्विवेदी कृत ’मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह की परिचर्चा प्रख्यात चिंतक प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बतौर विशिष्ट अतिथि प्रखर व्यंग्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी, प्रख्यात युवा साहित्यकार डॉ. राशि सिन्हा जी मंचासीन हुए। सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री अवधेश कुमार सिन्हा जी, सुविख्यात युवा साहित्यकार प्रवीण प्रणव जी एवं प्रख्यात समीक्षक डॉ. जयप्रकाश तिवारी जी बतौर विशेष आमंत्रित अतिथि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीपा कृष्णदीप द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात् अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया। संस्था का परिचय देते हुए कहा कि यह एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक विशेष उद्देश्य है।
’मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह की परिचर्चा में प्रकाश डालते हुए मुख्य वक्ता डॉ. राशि सिन्हा ने कहा कि ’मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह में शीर्षक लघुकथा के माध्यम से आधुनिक संदर्भ में, स्त्री-चेतना के तहत मिथकीय चरित्र द्रौपदी के माध्यम से, ऐतिहासिकता और पौराणिकता को समेटते हुए, देह मुक्ति से आत्म मुक्ति तक का मार्ग तय करने में लेखिका रमा द्विवेदी जी ने द्रौपदी में अंतर्निहित सभी मानवीय तत्वों के योग में से जिस एक बिंदु को केंद्रीकृत कर, सांकेतिक रूप में अभिव्यंजित किया है, वह सच में लघुकथा के मूल स्वर को तीव्रता प्रदान करती है। साथ ही, आधुनिक युग में व्याप्त विडंबनाओं, विसंगतियों पर प्रहार करते हुए उन्होंने देश और समाज की भटकती सामाजिक-सांस्कृतिक चेतनाओं के साथ साहित्य में बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति को समेट कर, विविध पक्षों के सत्य के उद्घाटन में जो अर्थ तीव्रता का प्रयोग किया है वह निश्चित रूप से प्रणम्य है एवं प्रशंसनीय है। समाज के हर कोने में उत्पन्न अंतर्विरोध की स्थितियों को, बदलते मूल्यों को सांकेतिक व्यंजनाओं के माध्यम से वर्तमान विसंगतियों में व्याप्त अलग स्वायत्त सत्ता तलाशने की युवा पीढ़ी की एकाकी जीवन धारा की सोच और समर्पण को पूरी अर्थ तीव्रता के साथ प्रस्तुत करता यह लघुकथा संकलन निश्चित रूप से क्षरण हो रहे मानवीय मूल्यों के पुनर्स्थापन की कोशिश है जिसमें लेखिका डॉ. रमा द्विवेदी ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह के सभी आयामों के साथ न्याय करने में सफल हुई हैं।”
विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ संग्रह जीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ी एक सौ ग्यारह लघुकथाओं का पुष्पगुच्छ है जिसमें कथाकार डॉ. रमा द्विवेदी ने घटना अथवा व्यक्ति से जुड़े एक क्षण का चित्रण सार रूप में बड़े ही कलात्मक ढंग से बहुत कम शब्दों में प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत संग्रह की लघुकथाओं में उनकी गहरी संवेदनशीलता, तीव्र बुद्धि और घटनाओं के सूक्ष्म निरीक्षण-क्षमता का परिचय मिलता है जो लघुकथाकार का एक आवश्यक गुण भी है। एक कथाकार को लोक और शास्त्र का समुचित ज्ञान होना चाहिए। इस संग्रह की शीर्षक लघु कथा ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ जैसी कई लघुकथाओं को पढ़कर हमें उनके इस पक्ष का पता चलता है। उनकी लघुकथाएँ किसी समाधान की ओर नहीं बढ़ती बल्कि पाठकों को उनके विवेकाधिकारित निष्कर्ष पर छोड़ती दिखाई देती हैं। उनकी लघुकथायें जीवन के कटु यथार्थ को चित्रित करती हैं। यही बात डॉ. रमा द्विवेदी को विशेष बनाती है। कुल मिला कर उनका लघुकथा लेखन का प्रथम प्रयास प्रशंसनीय है।”
विशेष आमंत्रित अतिथि एवं परामर्शदाता अवधेश कुमार सिन्हा जी ने कहा कि—‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह उनके पूर्व में प्रकाशित काव्यसंग्रहों ‘दे दो आकाश’ और ’रेत का समंदर’ का अगला विस्तार है। संग्रह की शीर्षक कथा भारतीय स्त्री की स्वतंत्र चेतना एवं आत्म रक्षण का उद्घोष है। कथाकार ने घर-परिवार एवं समाज की विसंगतियों एवं विद्रूपताओं के अपने अनुभवों को बड़े ही रचनात्मक ढंग से संग्रह की कथाओं में चित्रित किया है।”
विशेष आमंत्रित अतिथि एवं परामर्शदाता प्रवीण प्रणव जी ने संग्रह की अधिकांश कथाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ संग्रह की पहली शीर्षक कहानी ही इस संग्रह की कहानियों के विषय तय कर देती है। स्त्री आज भी अपने घर की चारदीवारी के अंदर भी सुरक्षित नहीं है। शीर्षक कथा की नायिका अपने सम्मान की रक्षा के लिए आवाज़ उठाती है। इस संग्रह का शीर्षक उपयुक्त है। कथानकों में विषय वैविध्य है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त नैतिक मूल्यों का क्षरण एवं अन्य आधुनिक विषयों का चित्रण इस संग्रह में किया गया जो इस संग्रह को प्रासंगिक बनाता है।”
विशेष आमंत्रित अतिथि डॉ. जयप्रकाश तिवारी जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. रमा द्विवेदी हिन्दी साहित्य जगत की अत्यंत संवेदनशील रचनाकार और समस्या संप्रेषण की अद्भुत शब्द-सर्जक हैं। वे मर्म पर प्रहार करती हैं और पाठक को सोचने पर विवश करती हैं। इन लघुकथाओं में डॉ. रमा जी का बहुआयामी व्यक्तित्व निखर गया है। कहीं वे समाजशास्त्री लगती हैं, कहीं मनोवैज्ञानिक, कहीं दार्शनिक तो कहीं कक्षा में अध्यापन करती शिक्षिका। कुछ लघुकथाओं में वे समाधान की ओर संकेत करती हैं तो कुछ समस्याओं का समाधान पाठक और समाज के लिए छोड़ देती हैं। मानव-मन की पिपासा धन और भोग से शांत नहीं होती। साहित्यिक संस्थाओं का विकृत होते स्वरूप को उभार कर एवं झन्नाटेदार तमाचा जड़कर रमा द्विवेदी जी साहित्य जगत के लिए स्तुत्य और दुलारी बन गई हैं। ग़ौरतलब है कि उनका कुरीतियों से पनपती नवीन विकृतियों पर उनका चुटीला प्रहार सामाजिक उत्कर्ष और कल्याण के लिए है, विध्वंस के लिए नहीं।”
परिचर्चा के अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी वक्तव्यों के सारांश पर अपनी महत्त्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए कहा कि “महाश्वेता देवी, प्रतिभा राय से लेकर मंटों तक के समकक्ष रखकर इस संग्रह की कथाओं को रखकर वक्ताओं ने देखा-परखा है और यह लेखिका के लिए चुनौतीपूर्ण दायित्व बन गया है लेकिन यही उनकी उपलब्धि भी है। संग्रह का सामाजिक पक्ष बड़ा प्रबल है। लेखिका अनेक कथाओं में क्रूर अमानवीयता को उभारती हैं। परिचर्चा में शीर्षक कथा बहुत चर्चित रही। द्रौपदी एक पौराणिक महावृत्तांत है जो सहज उपलब्ध है लेकिन इसके कई ख़तरे भी हैं। लेखिका ने यह ख़तरा मोल लिया है और नायिका के एक वाक्य ने ही इसे सार्थक बना दिया है। संग्रह की अधिकांश कहानियाँ इस महावृत्तान्त से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से टकराती हैं और लेखिका कभी पक्ष में और कभी विपक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं। यद्यपि गद्य में लेखिका का यह प्रथम प्रयास है लेकिन परिपक्व रचनाकार की परिपक्व रचना कृति है।” उन्होंने सफल लेखन के लिए लेखिका डॉ. रमा द्विवेदी को शुभकामनाएँ दीं।
तत्पश्चात् काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्य पाठ करके वातावरण को ख़ुशनुमा बना दिया। विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष), डॉ. सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव), शिल्पी भटनागर, दर्शन सिंह, डॉ. सुषमा देवी, श्री रामकिशोर उपाध्याय, डॉ. राशि सिन्हा, भगवती अग्रवाल, सरिता दीक्षित, डॉ. रमा द्विवेदी, ममता महक (कोटा) डॉ. संजीव चौधरी (जयपुर) डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), डॉ. संगीता शर्मा, शशि राय (गाजीपुर) इंदु सिंह, डॉ. स्वाति गुप्ता, दीपा कृष्णदीप तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया।
पूजा महेश, डॉ. आशा मिश्रा, रामनिवास पंथी (रायबरेली) अवधेश कुमार सिन्हा, प्रवीण प्रणव, भावना पुरोहित, किरण सिंह, तृप्ति मिश्रा, डॉ. पी के जैन, डॉ. जी नीरजा, डॉ. मंजू शर्मा, पूनम झा, ऋषि सिन्हा ने कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज की।
प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) द्वितीय सत्र का संचालन दीपा कृष्णदीप (महासचिव) ने किया। डॉ. संगीता शर्मा (मीडिया प्रभारी) के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।
आगे पढ़ेंत्रिलोक सिंह ठकुरेला को ‘वीरबाला काली बाई स्मृति सम्मान’
साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को उनके द्वारा बाल साहित्य के क्षेत्र में किये गये उल्लेखनीय योगदान के लिए नई दिल्ली की ‘द गोल्डन एरा’ संस्था द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर दिनांक 24 जनवरी 2024 को आयोजित भव्य समारोह में ‘वीरबाला काली बाई स्मृति सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
‘द गोल्डन एरा’ के अध्यक्ष संजय पति तिवारी और न्यासी चन्द्रकांत ने त्रिलोक सिंह ठकुरेला का पुष्पगुच्छ देकर एवं शाॅल उढ़ाकर स्वागत करते हुए उन्हें स्मृति चिह्न एवं सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया।
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर में आयोजित इस समारोह में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ताओं, अनेक संस्थाओं के अध्यक्षों, खिलाड़ियों, पत्रकार तथा दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के उद्घोषकों सहित देश के गणमान्य व्यक्तिओं सहित बालिकाएँ उपस्थित थी। इस कार्यक्रम में अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धियों के लिए अनेक व्यक्तियों को सम्मानित करते हुए कई बालिकाओं को सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर बालिकाओं द्वारा त्रिलोक सिंह ठकुरेला के गीत ‘सुनहरा भविष्य हैं हमारी बेटियाँ’ का सस्वर प्रस्तुतीकरण भी किया गया। उल्लेखनीय है कि त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कृतियाँ राजस्थान साहित्य अकादमी एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी (राजस्थान) के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित की गयी हैं तथा उनकी रचनाएँ महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी कुमारभारती’ सहित चालीस से अधिक पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं।
आगे पढ़ेंपंजाबी लोक साहित्य और संगीत
(वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-165; लोकगीत शृंखला-16)
लोकगीतों की मौखिक परंपरा रही है—डॉ. वनिता
लंदन, 21-01-2024: विश्व-प्रसिद्ध साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘वातायन-यूके’ के तत्त्वावधान में तथा प्रख्यात साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में, दिनांक 20 जनवरी 2024 को वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-165 का ऑनलाइन आयोजन किया गया। यह आयोजन लोकगीत शृंखला-16 के तहत पंजाबी लोक साहित्य और संगीत को समर्पित था तथा इसके प्रतिभागी गायक, चर्चाकार, वक्ता और विशेषज्ञ अपने-अपने क्षेत्रों के जाने-माने हस्ताक्षर थे। साहित्य अकादमी और पंजाब साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत, डॉ. वनिता ने इस संगोष्ठी की अध्यक्षता की जबकि पूरी संगोष्ठी के दौरान प्रतिष्ठित साहित्यकार इस संगोष्ठी की सूत्रधार डॉ. मधु चतुर्वेदी पंजाबी लोकगीत परंपरा के सम्बन्ध में अपने वक्तव्यों से श्रोता-दर्शकों का आद्योपांत ज्ञानवर्धन करती रहीं। संगोष्ठी भारतीय समयानुसार रात्रि 8:30 बजे से आरंभ होकर लगभग डेढ़ घंटे तक चली। संगोष्ठी का मुख्य आकर्षण था—डॉ. शिव दर्शन दुबे द्वारा गाए गए पंजाबी लोकगीत जिनमें शास्त्रीयता का विशेष संपुट था।
संगोष्ठी का संचालन किया सुश्री प्रिय लेखा ने जबकि डॉ मधु ही डॉ. दुबे से पंजाबी लोकगीत परंपरा से सम्बन्धित गीतों को सुनाने का आग्रह करती रहीं और इस प्रकार दर्शकों को बाँधे रहीं। डॉ. दुबे का साथ दिया सुश्री प्रिय लेखा ने जिन्होंने अपनी स्वरलहरियों से माहौल में चार चाँद लगा दिए। आरंभ में, सिंगापुर साहित्य संगम की संयोजक डॉ. संध्या सिंह ने संगोष्ठी का परिचय देते हुए कहा कि लोक साहित्य का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व होता है और यह हमारे परिवार और समाज को विस्तार देता है। साहित्य के एक अभिन्न अंग के रूप में लोकगीत आज भी प्रासंगिक हैं। तदनंतर, संगोष्ठी को अग्रेतर ले जाते हुए डॉ. मधु चतुर्वेदी ने कहा कि जब हम लोक की बात करते हैं तो उसमें लोक से सम्बन्धित सभी आयाम सम्मिलित होते हैं। भक्ति, शक्ति, अनुरक्ति, परम्पराएँ, मान्यताएँ, सामाजिक सरोकार, लोक व्यवहार, जीवन के संस्कार, पर्व, त्योहार सभी लोक जीवन के आधार हैं। दसों सिख गुरुओं की रचनाओं में भी ये बातें अभिभावी हैं जबकि गुरु नानक देव ने राम की महत्ता को लोक जीवन में विशेष महत्त्व दिया है। इसी प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए डॉ. शिव दर्शन दुबे ने गुरु नानक देव-रचित ‘राम सुमिर, राम सुमिर’ का हृदय-स्पर्शी गायन प्रस्तुत किया। डॉ. मधु ने कहा कि गुरु गोविंद सिंह में रामभक्ति की पराकाष्ठा परिलक्षित होती है तथा उन्होंने राम के अश्व पर एक वंदन लिखा है जो अद्भुत है। पंजाब में प्रेम-आधारित लोकगीतों की प्रचुरता है जिनमें ‘हीर’ लोकगीत विशेष लोकप्रिय है। डॉ. शिव दर्शन दुबे ने लोकगीत ‘हीर’ के कुछ अंश सुनाकर दर्शकों को आत्मविभोर कर दिया। डॉ. मधु ने बताया कि ‘हीर’ लोकगीत शृंगार से आरंभ होकर अध्यात्म तक पहुँचता है। डॉ. मधु ने पंजाबी लोकगीत ‘छल्ला’ के सम्बन्ध में बताया कि इसका अंदाज़ सूफ़ियाना होता है जिसमें लौकिक व्यवहार का उल्लेख होता है। तदनंतर, उन्होंने ‘माहिया’, ‘टप्पा’ जैसे लोकगीतों के छंद-विधान की चर्चा की। प्रिय लेखा ने हिंद के बाबत एक ‘माहिया’ लोकगीत ‘जुग-जुग जीवे’ सुनाया। उसके बाद, डॉ. दुबे ने ‘कोठे ते आ माहिया . . . मिलना तो मिल आके’ जैसा माहिया लोकगीत सुनाकर दर्शकों को सम्मोहिनी-पाश में बाँध दिया। इस गीत में प्रिय लेखा ने डॉ. दुबे के साथ सह-गायन किया। इसी क्रम ने डॉ. मधु ने बताया कि पंजाबी लोकगीतों में बड़ी विविधता होती है। शक्ति और भक्ति दोनों के पीछे प्रेम का भाव प्रधान होता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षा डॉ. वनिता ने बताया कि लोकगीत की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसकी मौखिक परंपरा रही है जबकि लिखना आरंभ नहीं हुआ था। लोकगीत पारंपरिक साज-यंत्रों के संगत में गाए जाते रहे हैं। लोकगीतों के साज-यंत्र भी अलग ही रहे हैं। डफली, ढोलक, सारंगी, तुम्बी आदि सभी लोक साज-यंत्र हैं। उन्होंने कहा कि लोकगीतों में प्रेम जैसे भाव की मूल मानवीय प्रवृत्ति सर्वत्र एक-समान होती है। लड़कियों पर लगने वाली प्रेम की वर्जनाएँ भी सभी जगह एक-जैसी होती हैं।
इस संगोष्ठी के सम्बन्ध में जापान के हिंदी साहित्यकार टोमियो मिजोकामी, भारत से इंद्रजीत सिंह, इंग्लैंड के निखिल कौशिक जैसे प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों ने कुछ गीतों के अंश सुनाते हुए अपनी-अपनी टिप्पणियाँ दीं। कार्यक्रम का समापन करते हुए डॉ. संध्या सिंह ने ऑनलाइन मंच पर उपस्थित सभी दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त किया। श्रोता-दर्शकों में आशीष रंजन, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, इंद्रजीत सिंह, कस्तूरिका, जय वर्मा, किरण खन्ना, कृष्णा बाजपेयी, संध्या सिलावट, तातियाना ओर्नास्किया, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, मधु वर्मा, लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया, भव्या सिंह उल्लेखनीय हैं। संगोष्ठी के समापन पर, डॉ. मधु चतुर्वेदी और डॉ. संध्या सिंह समेत अनेक दर्शकों ने इच्छा व्यक्त की कि पंजाबी लोकगीत पर एक और संगोष्ठी आयोजित की जानी चाहिए।
इस संगोष्ठी के आयोजन में तकनीकी सहयोग प्रदान किया भारत के ही तकनीकी विशेषज्ञ कृष्ण कुमार ने। इस संगोष्ठी में सहयोगी संस्थाएँ थीं—वैश्विक हिंदी परिवार और सिंगापुर साहित्य संगम।
(प्रेस विज्ञप्ति—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंत्रिलोक सिंह ठकुरेला को बाल साहित्य भूषण
साहित्य मण्डल, श्रीनाथद्वारा के द्वारा, साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को उनके द्वारा बाल साहित्य के क्षेत्र में किये गये उल्लेखनीय कार्य के लिए बाल साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया है।
दिनांक 6 एवं 7 जनवरी 2024 को साहित्य मण्डल, श्रीनाथद्वारा के श्री भगवती प्रसाद देवपुरा प्रेक्षागार में आयोजित भव्य राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम, अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों और पत्रिकाओं के प्रदर्शन, काव्यपाठ तथा कहानी वाचन के साथ साथ देश के विभिन्न राज्यों से आये साहित्यकारों का सम्मान किया गया। इस अवसर पर साहित्य मण्डल द्वारा त्रिलोक सिंह ठकुरेला को पगड़ी और कंठहार पहनाते हुए अंगवस्त्र, शाॅल, श्रीफल और श्रीनाथ जी की छवि और प्रसाद देकर स्वागत किया गया। त्रिलोक सिंह ठकुरेला को साहित्य मण्डल के अध्यक्ष श्री मदनमोहन शर्मा तथा प्रधानमंत्री श्री श्यामप्रसाद देवपुरा द्वारा उपाधि पत्र देते हुए बाल साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला को इससे पूर्व भी राजस्थान साहित्य अकादमी तथा पण्डित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ तीस से अधिक पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी है। त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने कुण्डलिया छंद को पुनर्स्थापित करने में अहम भूमिका निभाते हुए बाल साहित्य के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है।
आगे पढ़ेंएकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला संपन्न
पाठ लेखन के समय लेखक को स्वयं शिक्षार्थी लर्नर बनना ही होगा—प्रो. गोपाल शर्मा
हैदराबाद, 29 दिसंबर, 2023:
“एस एल एम (सेल्फ लर्निंग मेटीरियल) या स्व-अध्ययन सामग्री ऐसी सामग्री है जिसे आदि से लेकर अंत तक छात्रकेंद्रित होना चाहिए। इस सामग्री को तैयार करते समय लेखक से लेकर संपादक, समन्वयक, परामर्शी आदि कई लोग आपस में मिलजुलकर एक इकाई की तरह कार्य करते हैं। स्व-अध्ययन सामग्री की बात करें तो वास्तव में सबसे पहले वही सीखता है जो उस पाठ को लिखता है। इस दृष्टि से सबसे पहला लर्नर पाठलेखक ही होता है। हर इकाई उसके लिए एक चुनौती है और हर पाठ लिखते समय लेखक को स्वयं शिक्षार्थी लर्नर बनना ही होगा। अन्यथा आप अपने लक्ष्य छात्रों के साथ न्याय नहीं कर पाएँगे। लेखक के रूप में केवल पिष्टपेषण न करें। विषय पर ध्यान दें। शिक्षक के साथ-साथ शिक्षार्थी बनकर इकाई लिखने का प्रयास करें। अपने अंदर निहित विद्यार्थी को जगाइए और उसके अनुरूप, उसकी सीखने की क्षमता के अनुरूप शब्द चयन कीजिए ताकि आसानी से विषय प्रेषित और ग्रहण किया जा सके। यह सामग्री पूरी तरह से विद्यार्थियों के लिए ही होनी चाहिए। विद्यार्थी समीक्षक होते हैं, अतः लेखक कभी भी कहीं भी प्रेसक्राइब न करें। विषय को डिस्क्राइब करें। सामग्री-निर्माण के समय विद्यार्थी और उसकी लर्निंग स्टाइल को भी ध्यान में रखें। लिखने-पढ़ने-सीखने की यह यात्रा कभी समाप्त नहीं होती है। यह आगे भी निरंतर चलती रहेगी।”
ये विचार प्रो. गोपाल शर्मा (पूर्व प्रोफ़ेसर, अंग्रेज़ी विभाग, अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया) ने 28 दिसंबर, 2023 को मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. मोहम्मद रज़ाउल्लाह ख़ान की अध्यक्षता में संपन्न एकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बीज भाषण देते हुए प्रकट किए। इस कार्यशाला में दूरस्थ शिक्षा माध्यम के छात्रों के लिए हिंदी की गुणवत्तापूर्ण श्रेष्ठ स्व-अध्ययन सामग्री तैयार करने के सिद्धांत और तकनीक पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. मोहम्मद रज़ाउल्ला खान ने उपस्थित सभी इकाई-लेखकों और संपादन मंडल के सदस्यों को साधुवाद देते हुए हर्ष व्यक्त किए। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए हिंदी की शिक्षण सामग्री की सराहना की और इसे दूरस्थ माध्यम के छात्रों की ज़रूरतों के मुताबिक़ बताया।
बतौर मुख्य अतिथि भाषा विभाग के पूर्व डीन प्रो. नसीमुद्दीन फरीस ने स्व-अध्ययन सामग्री तैयार करने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उन पर चर्चा की और इकाई-लेखकों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि एस एल एम अर्थात् स्व-अध्ययन सामग्री को मुख्य रूप से 'पाँच स्व' को ध्यान में रखकर निर्मित किया जाता है-स्व-व्याख्यात्मक, स्व-निहित, स्व-निर्देशित, स्व-प्रेरक और स्व-मूल्यांकनपरक।
संपादक मंडल के सदस्य प्रो. श्याम राव राठौड़ (अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय) और डॉ. गंगाधर वानोडे (केंद्रीय हिंदी संस्थान) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए यह आश्वासन दिया कि गुणवत्तापूर्ण सामग्री निर्माण में वे आगे भी मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी को अपना योगदान देते रहेंगे।
आमंत्रित वक्ता डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई) ने स्व-अध्ययन सामग्री के संपादन के समय उपस्थित चुनौतियों पर व्यावहारिक रूप से प्रकाश डाला। डॉ. मंजु शर्मा (चिरेक इंटरनेशनल) और हिंदी विभाग, मानू के आचार्य डॉ. पठान रहीम खान और डॉ. अबु होरैरा आदि ने इकाई-लेखक के रूप में अपने अनुभवों को साझा किया।
कार्यशाला में डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. शशिबाला, डॉ. वाजदा इशरत, डॉ. अनिल लोखंडे, शीला बालाजी, निलया रेड्डी, डॉ. बी। बालाजी, डॉ. अदनान बिसमिल्लाह, डॉ. इरशाद, डॉ. समीक्षा शर्मा और शेख़ मस्तान वली आदि ने सक्रिय सहभागिता निबाही।
इस कार्यक्रम में एमए (हिंदी) द्वितीय सत्र की पाठसामग्री के साथ-साथ डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की समीक्षा कृति “परख और पहचान” का भी लोकार्पण निदेशक प्रो. रज़ाउल्लाह ख़ान ने किया। प्रो. ख़ान ने समस्त अतिथियों का पुष्पगुच्छ और शॉल से भावभीना स्वागत-सत्कार किया, तो इकाई-लेखकों की ओर से परामर्शी और संपादक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने निदेशक प्रो. रज़ाउल्लाह ख़ान तथा कोर्स कोऑर्डिनेटर डॉ. आफ़ताब आलम बैग का अभिनंदन शॉल ओढ़ाकर किया। प्रतिभागी इकाई-लेखकों को हिंदी विषय की प्रकाशित 14 पुस्तकों की लेखकीय प्रतियाँ ससम्मान भेंट की गईं।
पूरे कार्यक्रम का संचालन डॉ. आफ़ताब आलम बैग ने किया तथा डॉ. अनिल लोखंडे ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
प्रस्तुति:
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह संपादक 'स्रवंति'
एसोसिएट प्रोफ़ेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास
टी. नगर, चेन्नई-600017
वातायन वैश्विक गोष्ठी–162
दो देश दो कहानियाँ (भाग-14)
लंदन, 31-12-2023: ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में दिनांक 30 दिसंबर, 2023 को 162 वीं संगोष्ठी का आयोजन आभासी मंच पर किया गया। वर्ष 2023 की इस समापन संगोष्ठी को ‘दो देश दो कहानियाँ (भाग-14)’ के रूप में आयोजित किया गया। इसके अंतर्गत, अमेरिका की डॉ. कुसुम नैपसिक तथा भारत के शुभम नेगी ने अपनी-अपनी कहानियों का सुरुचिपूर्ण पाठ किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कहानीकार और आलोचक श्री राकेश बिहारी ने की जबकि प्रवासी लेखिका डॉ. शैलजा सक्सेना इस संगोष्ठी की सूत्रधार थीं। वास्तव में, ‘दो देश दो कहानियाँ’ दो संस्थाओं नामत: ‘वातायन-यूके’ तथा ‘हिंदी राइटर्स गिल्ड-कनाडा’ की संयुक्त प्रस्तुति है जिसे कहानी विधा के रसिया पाठकों द्वारा खूब सराहा जाता है। हिन्दी साहित्य में ऐसी संगोष्ठी एक विशिष्ट प्रस्तुति के रूप में अभिलिखित किया जा रहा है। ऐसी प्रस्तुतियों से हमें यह भी पता चलता है कि भारतेतर देशों में हिंदी कहानी की क्या दशा-दिशा है।
अस्तु, हिंदी राइटर्स गिल्ड की सह-संस्थापिका शैलजा सक्सेना ने मंच-संचालन करते हुए कहा कि भले ही इस ‘दो देश दो कहानियाँ’ शृंखला के अंतर्गत दो भिन्न-भिन्न देशों के हिंदी कथाकारों की कहानियों का पाठ और उन पर चर्चा और समीक्षा होती है, हमें यह पता चलता है कि उनकी संवेदनाएँ एक जैसी होती हैं। अमेरिका की ड्यूक विश्वविद्यालय में हिंदी की सीनियर प्राध्यापिका कुसुम नैपसिक ने ‘जीवन के रंग’ शीर्षक से अपनी कहानी का पाठ किया। इस कहानी की नायिका मौली गर्भ धारण न कर पाने की व्यथा से हताश रहती है और इसके लिए वह अपने पति डेविड को दोषी ठहराती है क्योंकि उसने ही उसे गर्भ-निरोधक गोलियाँ खिला-खिला कर उसे इस बांझपन जैसी स्थिति में ला खड़ा किया है। नि:संतानता से अभिशप्त जब उसे एक दिन जाँच में अचानक पता चलता है कि वह गर्भवती हो गई है, तो वह अपनी इस अपार ख़ुशी का साझा अपने पति और घरवालों से करना चाहती है। लेकिन, इस ख़ुशी के साथ-साथ उसकी चिंताएँ बढ़ने लगीं क्योंकि अब उसे बच्चे की परवरिश में बढ़ने वाले ख़र्चे से निपटने के लिए स्वयं आय का स्रोत तलाशना होगा। कहानी मार्मिक और हृदयस्पर्शी है तथा कथाकार सधे हाथों से लिखी गई कहानी का सुरुचिपूर्ण पाठ करती हैं।
तदनंतर, हिमाचल प्रदेश के कथाकार शुभम नेगी जो डेटा साइंटिस्ट के रूप में मुम्बई में कार्यरत हैं, ने अपनी कहानी ‘टिफिन के माले’ में दु:ख के विभिन्न पर्यायों का उल्लेख करते हुए अपने दु:ख के स्रोत पर बातें करते हैं। कहानी आत्मबोधात्मक है जिसमें दु:ख के भाव को परत-दर-परत खोलने की कोशिश की जाती है। जब यह विश्लेषण एक बिंदु पर आकर ठहर जाता है तो आत्मकथात्मक शैली में शुभम की कहानी शुरू होती है जिसमें वह अपने ‘स्व’ को तलाशने की कोशिश करते हैं। कहानी एक बच्चे की उसके स्कूल में गतिविधियों के इर्द-गिर्द घूमती है और कथाकार उसके बाल मनोविज्ञान की पड़ताल करता है। नि:संदेह, कहानी मर्मस्पर्शी है जो आद्योपांत पाठकों को बाँधे रखती है।
दोनों कहानियों की समीक्षा करते हुए समीक्षक राकेश बिहारी ने दोनों कथाकारों को बधाई दी और बताया कि दोनों कहानियाँ कहीं-न-कहीं आपस में दर्द के धागे से जुड़ती-सी लगती हैं। दोनों कहानियाँ बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती हैं—कुसुम की कहानी में बच्चे की प्रतीक्षा है तो शुभम की कहानी में बच्चे की तकलीफ़ दृष्टिगोचर होती है। कुसुम की कहानी में कोरोना के प्रकोप से कहानी की दिशा ही बदल जाती है। ऐसे में, कहानी स्त्री-पुरुष के पारंपरिक संबंधों को छोड़कर एक अलग दिशा में बढ़ जाती है। समीक्षक राकेश बिहारी, जब डेविड के भीतर मौज़ूद स्त्री या पुरुष मित्र की मौली के प्रति चिंता में सहभागी होने की बात का ख़ुलासा करते हैं तो ऐसा न केवल मौली के लिए ख़ुशी का कारक बनता है बल्कि इससे श्रोता-दर्शकों को भी आत्मसंतोष होता है। राकेश बिहारी ने बड़ी दक्षता और सर्वांगीणता से दोनों कहानियों के कला पक्ष और भाव पक्ष पर सधी हुई समीक्षा प्रस्तुत की तथा दोनों कथाकारों से अपेक्षा की कि वे भविष्य में भी ऐसी ही कहानियों का सृजन करते रहेंगे। इसी क्रम में उन्होंने आगे कहा कि हम भारतीय लेखकों को यह नहीं सोचना चाहिए कि संवेदनाएँ और भावनाएँ सिर्फ उन्हीं की जाग़ीर है; प्रवासी लेखकों में भी इनकी प्रचुरता है।
कार्यक्रम का समापन करते हुए शैलजा सक्सेना ने इस कहानी-पाठ के मंच पर उपस्थित प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा, ‘साहित्य कुंज’ पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ लेखक सुमन घई और जापान के हिंदी विद्वान तोमियो मिज़ोकामी सहित जूम और यूट्यूब से जुड़े प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों के प्रति भी आभार प्रकट किया तथा नए वर्ष के आगमन पर सभी को बधाई दी।
(प्रेस विज्ञप्ति-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ें61वीं राष्ट्रीय रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण
तमिलनाडु की ऐतिहासिक विजय
चेन्नै: 23 दिसंबर, 2023
रोलर स्केटिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा चेंगलपट ज़िले में स्थित तमिलनाडु फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी में 18 दिसंबर, 2023 से 22 दिसंबर, 2023 तक आयोजित 61वीं राष्ट्रीय स्केटिंग चैंपियनशिप स्पर्धा में तमिलनाडु की जूनियर वर्ग की खिलाड़ियों ने स्वर्ण पदक जीतकर तमिलनाडु के स्केटिंग के इतिहास में अपना नाम दर्ज किया।
याद रहे कि रोलर डर्बी की शुरूआत भारत में 2018 में आर एस एफ़ आई की ओर से हुई। इन छह वर्षों में पहली बार तमिलनाडु की खिलाड़ियों ने असाधारण प्रतिभा दिखाकर स्वर्ण पदक जीता। इस टीम में आरुषि चौरसिया, वुल्ली श्रीसाहिती, मृदुला पी ए, जे मोहित्रा, हंसुजा, कार्तिका एम, परिणीता बी, हरिणी के एम और वी हेमनित्याश्री सम्मिलित हैं। इस टीम की कप्तान है सागिनी और वाइस कप्तान है गान्याश्री विजयकुमार।
टीम कोच श्रीमती किरण चौरसिया, टीम मैनेजर श्रीमती उषा और स्केटिंग किड्स एसोसिएशन के निदेशक श्री विजय ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया और शुभकामनाएँ दीं।
आगे पढ़ेंअहिन्दीभाषी क्षेत्र के छात्र पढ़ेगे ठकुरेला की रचनाएँ
अहिन्दीभाषी क्षेत्र के छात्र पाठ्यक्रम में साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ पढ़ेंगे।
नयी शिक्षा नीति एवं राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (स्कूली शिक्षा) 2023 के अनुरूप केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की अहिन्दीभाषी क्षेत्र के कक्षा 3, 4 तथा 5 के छात्रों के लिए तैयार की गयी ‘सरस हिन्दी पाठ्यपुस्तक’ शृंखला में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ संकलित की गयी हैं। उल्लेखनीय है कि राजस्थान साहित्य अकादमी तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी कुमारभारती’ सहित तीस से अधिक पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने हिन्दी साहित्यकार के रूप में बाल साहित्य तथा कुण्डलिया एवं मुकरी जैसी साहित्यिक विधाओं के उन्नयन के लिए सराहनीय कार्य किया है।
आगे पढ़ेंसाहित्य संगम संस्थान गुजरात इकाई का तृतीय वार्षिकोत्सव धूमधाम से हुआ संपन्न
देश-विदेश की जानी-मानी पंजीकृत, साहित्य में अपनी अलग पहचान रखने वाली संस्था ‘साहित्य संगम संस्थान’ के गुजरात प्रदेश इकाई के स्थापना दिवस की तृतीय वर्षगाँठ 13 दिसंबर को बड़े धूमधाम से मनाई गई।
प्रातः 9 बजे से रात 8 बजे तक चले इस कार्यक्रम का शुभारंभ संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष आद. राजवीर सिंह ‘मंत्र’ जी द्वारा द्वीप प्रज्वलन और शंखनाद द्वारा किया गया। तदुपरांत गुजरात इकाई की सचिव आद. सोनल मंजूश्री ओमर जी एवं आद. अंकुर सिंह जी द्वारा सरस्वती वंदना करके माँ शारदे का आवाहन किया गया। इकाई के अध्यक्ष आद. डॉक्टर रतन कुमार शर्मा 'रत्न' जी ने स्वागतीय संबोधन द्वारा सभी को कार्यक्रम में आमंत्रित एवं स्वागत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आद. जगदीशचंद्र गोकलानी जी के उद्बोधन द्वारा की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आद. डॉक्टर कमल किशोर दूबे जी और विशिष्ट अतिथि आद. प्रमोद पांडे जी रहे, उन्होंने अपने उद्बोधन द्वारा इकाई के सभी कार्यकारी पदाधिकारियों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए इकाई की साहित्यिक योगदान की भूमिका को सराहा।
वार्षिकोत्सव समारोह में सभी प्रतिभागियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। सभी प्रतिभागियों संग गुजरात इकाई के सभी सक्रिय सदस्यों को सम्मानित करते हुए संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजवीर सिंह 'मंत्र' जी ने अपने प्रेरणात्मक उद्बोधन द्वारा लोगों का मन मोह लिया। अंततः गुजरात इकाई के अध्यक्ष आद. डॉक्टर रतन कुमार शर्मा 'रत्न' जी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अपने उद्बोधन द्वारा समारोह का समापन किया।
आगे पढ़ेंहिंदी के सार्वभौमिकीकरण पर बल दिया जाए-संतोष चौबे (वातायन-संगोष्ठी-161)
लंदन, दिनांक 13-12-2023: वातायन-यूके के तत्वावधान में दिनांक 09 दिसंबर 2023 को वातायन संगोष्ठी-161 का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत, रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे के साहित्यिक अवदान और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान पर व्यापक चर्चा हुई। चर्चा के क्रम में उनके द्वारा वैश्विक आधार पर हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में किए गए बहुमूल्य कार्यों को रेखांकित किया गया। उल्लेखनीय है कि इस संगोष्ठी का स्वरूप एक साक्षात्कार-संवाद के रूप में था जिसके अंतर्गत, ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज के प्रबंध-निदेशक और जाने-माने प्रवासी साहित्यकार डॉ. पद्मेश गुप्त ने हिंदी के विस्तारीकरण के व्यापक परिप्रेक्ष्य में श्री संतोष चौबे से प्रश्न किए। अपने सहज-स्वाभाविक प्रत्युत्तरों में श्री चौबे का बल प्रवासी साहित्य, विदेशों में हिंदीतर छात्रों के हिंदी शिक्षण तथा विदेशों में हिंदी सीखने को सुकर बनाने के लिए प्रौद्योगिकियों के प्रचुर प्रयोग पर था। श्री संतोष चौबे ने सभी हिंदी विद्वानों, लेखकों और हिंदी प्रेमियों से आह्वान किया कि वे हिंदी के सार्वभौमिकीकरण में अपना योगदान करें तथा हिंदी को एक लोकप्रिय वैश्विक भाषा बनाने के स्वप्न को साकार करें।
वैश्विक हिंदी परिवार के संस्थापक-अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी की महत्ता इसी बात से प्रमाणित होती है कि श्री संतोष चौबे की प्रत्यक्ष निगरानी में वर्ष 2023 के दिसंबर माह के उत्तरार्ध में भोपाल में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है तथा ‘वातायन-संगोष्ठी 161’ को उक्त सम्मेलन की पूर्व-पीठिका के रूप में देखा जा रहा है। ग़ौरतलब है कि संतोष चौबे जी द्वारा स्थापित हिंदी की प्रोत्साहक संस्था ‘विश्वरंग’ के बैनर तले ही इस अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है क्योंकि इसमें श्री चौबे ने उन्हीं पक्षों पर अपेक्षित ज़ोर दिया जिन पर सम्मलेन के अधिकतर इवेंट्स आधारित हैं।
इस साक्षात्कार में श्री चौबे ने अपना लेखकीय परिचय देते हुए अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की भी चर्चा की तथा यह बताया कि उनके परिवार में साहित्य, संगीत और शास्त्रीय संगीत की पृष्ठभूमि पहले से ही उपलब्ध थी तथा ये उन्हें पिता से विरासत के रूप में मिली। उनकी अभिरुचि विज्ञान में भी उसी अवस्था में पैदा हुई। उन्होंने बताया कि वे अपनी चयन-पद्धति के अनुसार केवल उसी काम को करने के लिए प्रेरित हुए जो उनके मन को अच्छी लगती थी। साक्षात्कार के क्रम में उन्होंने जेपी आंदोलन के दौरान विरचित एक छोटी कविता ‘सफलता आक्रांत करती है’ भी सुनाई। उन्होंने बताया कि 27-28 वर्ष की उम्र तक आते-आते उन्होंने अपने सारे सपने पूरे कर लिए थे और प्रशासनिक सेवा में भी आ गए थे। उन्होंने एक दूसरी कविता ‘मेरे अच्छे आदिवासियों’ का भी हृदयग्राही पाठ किया।
डॉ. पद्मेश के पूछे जाने पर श्री चौबे ने कहा कि वे प्रवासी साहित्य और प्रवासी साहित्यकारों से बहुत बाद में परिचित हुए तथा वर्ष 2019 में उनसे उनका साक्षात्कार हुआ। उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य पर वास्तव में ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि इन प्रवासी साहित्यकारों ने भारत से बाहर जाकर सफलता प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त, भारत में तो हिंदी और उर्दू के बीच एक द्वंद्वात्मक स्थिति रही है लेकिन अमरीका और अन्य देशों में ऐसा नहीं था। प्रवासी साहित्यकारों के सहयोग से हम हिंदी को एक ताक़त बना सकते हैं।
मंच-संचालक डॉ. गुप्त द्वारा भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद वीरेंद्र शर्मा को आमंत्रित किए जाने पर श्री शर्मा ने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर रेखा सेठी के वक्तव्य का दृष्टांत देते हुए कहा कि श्री चौबे का जीवन प्रेरणाप्रद रहा है। तदनंतर, प्रोफे. रेखा सेठी ने कहा कि श्री चौबे द्वारा बताई गईं बातें इतनी दिलचस्प थीं कि उनका श्रवण हमने कविता की तरह किया। प्रोफे. सेठी ने श्री चौबे द्वारा इस ऑनलाइन मंच पर सुनाई गई सभी कविताओं की तहे-दिल से प्रशंसा की। कुछ प्रबुद्ध श्रोताओं ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए और श्री संतोष चौबे के कृतित्व और कार्यकलापों की सराहना की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री अनिल शर्मा जोशी ने बताया कि भारत में साहित्यकार अपनी उतनी पहचान-प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते जितनी कि ब्रिटेन में। उन्होंने कहा कि हिंदी के विकास में देश-विदेश की सभी संस्थाएँ अपना योगदान कर सकती हैं तथा सभी को अपनी ऊर्जाएँ जोड़कर इस महत्त्वपूर्ण कार्य को करना होगा।
इस संगोष्ठी को इंद्रप्रस्थ महाविद्यालय (दिल्ली वि.वि.) का सान्निध्य मिला तथा इसकी संयोजक थीं—प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर जो ‘वातायन-यूके’ की संस्थापक भी हैं। इस संगोष्ठी में वातायन-यूके की सहयोगी संस्थाएँ रही हैं—वैश्विक हिंदी परिवार, विश्वरंग आदि जबकि ‘वातयन-यूके’ इस वर्ष अपनी 20वीं वर्षगाँठ मना रहा है।
कार्यक्रम का समापन वातायन-यूके की कर्मठ कार्यकर्त्री सुश्री आस्थादेव ने किया। उन्होंने श्री संतोष चौबे द्वारा व्यक्त विचारों तथा उनके जीवन के विभिन्न प्रसंगों से प्राप्त प्रेरणाओं की चर्चा की तथा मंच पर उनकी उपस्थिति के लिए उनके प्रति आभार प्रकट किया। साथ ही, उन्होंने मंच पर उपस्थित प्रबुद्धजनों और ज़ूम एवं यूट्यूब से जुड़े श्रोता-दर्शकों के प्रति भी आभार प्रकट किया।
(प्रेस रिपोर्ट-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंशिप्रस स्कूल में हुआ अभिव्यक्ति का आयोजन: 2023
90 बाल रचनाकारों ने किया सहभाग
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा ‘अभिव्यक्ति’ का आयोजन आगरा रोड स्थित शिप्रस स्कूल में किया गया।
इस अवसर पर 90 बाल रचनाकारों ने चित्रकला, कविता, कहानी एवं निबंध के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त किया।
बच्चों को विविध विधाओं में शीर्षक प्रदान किए गए जिनके आधार पर बच्चों ने एक से बढ़कर एक रचनाएँ बनाईं।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्या लीना शर्मा ने कहा कि बच्चों ने जिस तरह विविध शीर्षकों पर कविता, कहानी, निबंध, चित्रकला के माध्यम से रचनात्मकता को प्रदर्शित किया है वह प्रशंसनीय है।
प्रबंधक सौरभ राज ने कहा कि विद्यालय में विभिन्न गतिविधियाँ होती हैं। अभिनव बालमन द्वारा ‘अभिव्यक्ति’ के माध्यम से बच्चों ने साहित्यिक गतिविधि से स्वयं को जोड़ा है। यह बच्चों को मानसिक रूप से कल्पनाशील बनाएगा जिससे उनके अंदर सकारात्मक ऊर्जा आएगी।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि सभी बाल रचनाकारों ने बहुत अच्छा प्रयास किया है। अभिनव बालमन का सदैव उद्देश्य रहा है कि अधिक से अधिक बच्चों को स्वरचित रचनाएँ एवं कल्पनाओं से ओतप्रोत चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया जाए। बच्चों की अभिव्यक्ति जब पत्रिका में प्रकाशित होगी तो निश्चित ही बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने बाल रचनाकारों को बताया कि वो कैसे अपनी कहानी रच सकते हैं। उन्होंने कहानी के लिए प्रारम्भिक आवश्यकताओं के विषय में बच्चों से बात की। बाल रचनाकारों ने इन बातों का ध्यान रखते हुए स्वरचित कहानियों की रचना की।
इस अवसर पर शुभ्रा रायजादा, शिवानी शर्मा, उपासना सक्सेना, प्रियंका चौधरी उपस्थित रहीं।
आगे पढ़ें‘फटकन’ और ‘विद्याश्री साहित्य सान्निध्य’ के बैनर तले ग्रेटर नोएडा में एक कवि गोष्ठी का आयोजन
ग्रेटर नोएडा, 25-11-2023: ‘फटकन’ और ‘विद्याश्री साहित्य सान्निध्य’ के बैनर तले दिनांक 25 नवंबर, 2023 को ग्रेटर नोएडा में एक कवि गोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें ग़ाज़ियाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के चुनिंदा कवियों ने सक्रिय प्रतिभागिता की। यह आयोजन ग्रेटर नोएडा (ओमीक्रॉन-1ए) स्थित साहित्यकार डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र के आवास पर संपन्न हुआ।
यह गोष्ठी अपराह्न 3:00 बजे से आरंभ होकर सायंकाल 6:00 बजे तक अविराम चलती रही। साहिबाबाद (ग़ाज़ियाबाद) से पधारे वरिष्ठ लघुकथाकार और नामचीन साहित्यकार तथा संपादक एवं दिल्ली-प्रशासित कॉलेज के प्रवक्ता श्री सुरेंद्र कुमार अरोड़ा ने गोष्ठी की अध्यक्षता की जबकि सान्निध्य प्राप्त हुआ गीतकार वैभव वंदन तथा महत्त्वपूर्ण कवि मनोज द्विवेदी का। उल्लेख्य है कि वैभव नंदन लोकसभा सचिवालय के मीडिया सलाहकार रहे हैं जिन्होंने अपनी सेवाएँ इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र को भी दी हैं, जबकि मनोज द्विवेदी दूरसंचार विभाग में सहायक महाप्रबंधक रहे हैं। गोष्ठी का सुविध और कुशल संचालन किया गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की आचार्य डॉ. रेनू यादव ने जो एक सुपरिचित लेखिका, शिक्षिका और वक्ता हैं।
माँ शारदे की प्रतिमा को माल्यार्पित करते हुए सुरेंद्र अरोड़ा ने दीप प्रज्ज्वलित किया; तदनंतर, कार्यक्रम का शुभारंभ मनोज द्विवेदी द्वारा गाई गई सरस्वती वंदना से हुआ। गोष्ठी का आग़ाज़ करते हुए भारतीय संसद के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र ने डॉ. रेनू यादव को मंच संचालन के लिए आमंत्रित किया। आमंत्रित कवियों में प्रखर कवयित्री और भूतपूर्व प्रवक्ता डॉ. भारती सिंह भी मंच पर उपस्थित थीं।
सर्वप्रथम गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की छात्रा, युवा कवयित्री सुश्री दीपिका ने दो कविताओं का पाठ किया जिनमें भावों और विचारों की प्रौढ़ता थी और सृजनशीलता की व्यग्रता थी। दीपिका की दूसरी कविता में मृत्यु से न आतंकित होने की निडरता का भाव हृदयस्पर्शी था। प्रकृति की सुरक्षार्थ दीपिका के आह्वान ने श्रोताओं को बख़ूबी आकर्षित किया तथा उपस्थित वरिष्ठ कवियों ने उसे अपने आशीर्वचनों से सराहा तथा उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। अपनी कविताओं का ओजपूर्ण पाठ किया मनोज द्विवेदी ने, जिन्होंने बीच-बीच में अपनी आशु रचनाओं से माहौल को आद्योपांत जीवंत बनाए रखा। उनकी रचनाओं में हास्य और मनोविनोद के संपुट ने श्रोताओं को पूरी तरह चमत्कृत किया और बाँधे रखा। डॉ. भारती सिंह ने ‘क़लम’, ‘हम क्यों कभी-कभी बर्बर हो जाते हैं’ और ‘मालिनी’ शीर्षक से कविताओं का सस्वर पाठ किया तथा इन कविताओं की पृष्ठभूमि पर भी प्रकाश डाला। ‘तुम्हें नहीं मालूम क़लम में कितनी आग है’, ‘आओ, फिर से पड़ताल करें/हूणों का रक्त तो नहीं दौड़ रहा हममें’ तथा ‘मालिनी आओ/बैठो पास-पास’ जैसी उनकी कविताओं की पंक्तियाँ श्रोताओं के ज़ेहन में देर तक कौंधती रहीं। वैभव वंदन ने नारी की माँ समेत विभिन्न भूमिकाओं को रूपायित करते हुए अपनी गीति-रचनाओं का सुमधुर पाठ किया और श्रोताओं को सम्मोहिनी पाश से बाँधे रखा। ‘धरा जब पीर पीती है तभी तो बीज हँसता है . . . मैं धरती हूँ मेरे क़दमों में ये आकाश झुकता है’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं को सरस भावनाओं से सराबोर कर दिया। तदुपरांत, मोक्षेन्द्र ने कुछ ग़ज़लें सुनाईं। ‘सफ़र में मैं अभी हूँ ठोकरों की बात मत कर/अँधेरे साथ देंगे रोशनी अफ़रात मत कर’ तथा ‘इन बियांबों ने हमें कितना छला है/इनके भीतर शोर का इक जलज़ला है’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं की प्रशंसाएँ बटोरीं। तत्पश्चात्, डॉ. रेनू के कविता-पाठ में माँ (‘माँ ईश्वर नहीं होती’) की अस्मिता को ईश्वर से बिल्कुल अलग स्थापित किया गया और स्त्री के अस्तित्व को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की, जिससे श्रोता-दर्शक आश्चर्यचकित हुए। उनकी सुनाई गई अन्य कविताओं ‘स्क्रिजोफेनिया’ तथा ‘बिसुरना’ और ‘भूख भूख होती है’ को तहे-दिल से सराहा गया। ‘वह पत्थर नहीं होती/ईश्वर की तरह/माँ ईश्वर नहीं होती’ एवं ‘भूख की क़ीमत किसी मॉल में बिक/रहे सीलबंद चकमक कंपनी के/नाम से मत आँको/किसी तराज़ू में रखे बटखरे से भी नहीं’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं को आत्ममंथन करने के लिए विवश कर दिया।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में ख्यात साहित्यकार सुरेंद्र अरोड़ा ने कवियों की रचनाओं की सार्थक मीमांसा की तथा उनमें अंतर्भूत भावों और विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने युवा कवयित्री दीपिका द्वारा सुनाई गई कविताओं के भाव और शिल्प पर शिद्दत से टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा की छात्राओं-शिखा नागर, भारती भाटी और नेहा समेत दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा रुनक श्रीवास्तव को साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नयन के लिए उपयोगी टिप्स भी दिए। सुरेंद्र अरोड़ा ने राष्ट्रवादी और देशभक्ति से ओतप्रोत अपनी कविताएँ सुनाकर श्रोताओं को वर्तमान अराजक स्थितियों से अवगत कराया। उनकी कविताएँ ‘शर्मिंदगी अब भी जारी है’ तथा ‘राम, तुम फिर धरती पर आओ’ ने श्रोताओं को बेहद प्रभावित किया। ‘शर्मिदगी अब भी जारी है/‘बुझा देंगें खेतों की प्यास हम, कहते थे वो’, ‘मानवता पर छाया है संकट/दुष्टों ने तोड़ी हैं मर्यादाएँ/मर्यादा जीवित हो फिर/ वापस आकर तुम संजीवन बन जाओ’ जैसी पंक्तियों ने नकारात्मक विचारों की कलुषित काली काई को भरसक हटाने का प्रयास किया। उन्होंने एक मार्मिक लघुकथा भी सुनाई।
तत्पश्चात्, मंच पर उपस्थित सभी प्रबुद्धजनों ने इस कार्यक्रम के प्रबंधन में आद्योपांत दत्तचित्त निशि श्रीवास्तव के प्रति हियतल से आभार प्रकट किया।
कार्यक्रम समापन करते हुए मोक्षेंद्र ने मंच पर उपस्थित अध्यक्ष सहित प्रतिभागी कवियों और श्रोता-दर्शकों धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने डॉ. रेनू के कुशल मंच-संचालन की सराहना भी की।
आगे पढ़ेंहिन्दी साहित्य में बोलियों का योगदान: युवा उत्कर्ष की संगोष्ठी संपन्न
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की तेरहवीं ऑनलाइन संगोष्ठी 28 अक्तूबर-2023 (शनिवार) संध्या 3:30 बजे से आयोजित की गई। डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। बतौर विशेष अतिथि सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार, साहित्यकार श्री प्रवीण प्रणव जी एवं प्रमुख वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक श्री अवधेश कुमार सिन्हा जी मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुश्री दीपा कृष्णदीप के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात् अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने सम्माननीय अतिथियों का स्वागत शब्दपुष्पों द्वारा किया एवं परिचय दिया। संस्था का परिचय देते हुए कहा कि संस्था अपने संकल्पित लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ प्रगति की ओर अग्रसर है।
प्रथम सत्र “अनमोल एहसास” और “मन के रंग मित्रों के संग” दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ।
प्रथम सत्र के प्रथम भाग अनमोल अहसास के अंतर्गत प्रमुख वक्ता श्री अवधेश कुमार सिन्हा जी के द्वारा “हिंदी साहित्य में बोलियों का योगदान” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई।
विशिष्ट अतिथि-साहित्यकार प्रवीण प्रणव (सीनियर डायरेक्टर, माइक्रोसॉफ्ट) ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि “हिंदी साहित्य में बोलियों के योगदान पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है, इसके योगदान की हम सब सराहना करते हैं। प्रवीण प्रणव ने अपनी पाँचवीं से दसवीं तक के पाठ्यक्रम में सम्मिलित कविताओं के माध्यम से अवधी, ब्रज भाषा, बुन्देलखंडी, मैथिली और भोजपुरी बोलियों की कविताओं का उल्लेख करते हुए विषय के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंदी यदि शरीर है तो बोलियाँ इसके आभूषण हैं। बोलियों के बिना हिंदी का सौन्दर्य अधूरा है।”
प्रमुख वक्ता–वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी ने कहा कि “भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ और उनकी बोलियाँ व उप-बोलियाँ बोली जाती हैं। हिन्दी प्रदेशों में अपभ्रंश से निकली बोलियों व उप-बोलियों ने हिन्दी साहित्य में मुख्यतः तीन रूपों में महती योगदान दिया है। पहला, स्वयं हिन्दी भाषा के विकास व उसके मानकीकरण में; दूसरा, इन बोलियों में रचित लोक एवं भक्ति साहित्य द्वारा हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में तथा तीसरा, हिन्दी में रचित साहित्य, विशेषकर उपन्यासों एवं कहानियों में आंचलिक बोलियों के रूप में प्रयुक्त होकर। उन्होंने कहा कि जन-भाषा के रूप में उपजी इन बोलियों के सर्जनात्मक प्रयोग से हिन्दी साहित्य में रोचकता, जीवंतता तथा बिंबात्मकता का निर्माण तो हुआ ही है, इससे भाषिक संरचना के नये आयाम भी उद्घाटित हुए हैं, भाषा में सौंदर्यात्मक वृद्धि भी हुई है। वस्तुतः हिन्दी प्रदेशों की बोलियाँ हिन्दी साहित्य की अभिन्न अंग हैं, इसका महत्त्वपूर्ण उपादान हैं।”
तत्पश्चात् मन के रंग मित्रो के संग में सुपरिचित साहित्यकार किरण सिंह जी ने अपना प्रेरक प्रसंग सुनाया। प्रथम बार हैदराबाद आने पर और स्थानीय भाषा का ज्ञान न होने के संघर्ष को उन्होंने साझा किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी ने विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “भाषा किसी के हृदय तक जाने का मार्ग है—चाहे वह मौखिक हो, लिखित हो या सांकेतिक हो। भाषा मूल्यों और विचारों की वाहक होती हैं और मानवीय गुणों की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। भाषा और बोली दोनों अलग हैं। किसी भाषा की अनेक बोलियाँ हो सकती हैं जैसे केवल हिंदी की ही सत्रह बोलियाँ है। भाषा की एक ही बोली का उच्चारण स्थान-स्थान पर भिन्न हो जाता है।
बोलियों में साहित्य सृजन के उदाहरण बहुत कम हैं। अवधी में तुलसीदास सृजित रामचरित मानस, जायसी का पद्मावत, ब्रज में सूरदास का सूरसागर, मैथली में विद्यापति के पद, गोरखनाथ की सधुक्कड़ी बोली में गोरख बानी, मीरा के पद आदि साहित्य जैसे अपवाद अवश्य हैं जिनमें रचा गया साहित्य कालजयी है।
बोलियाँ भाषा को सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से समृद्ध करती हैं अतः साहित्य सृजन में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। शोध के अनुसार भारत की लगभग 239 बोलियाँ समाप्ति की और हैं। स्थायी जीविका की तलाश में गाँव से शहर की ओर पलायन एवं बस जाना भी बोलियों के विलुप्ति का एक प्रमुख कारण है। अतः बोलियों को बचाए रखना जितना समस्त भारतीय भाषाओं के साहित्य के लिए आवश्यक है, उससे भी अधिक समाज के उन बोली समूहों की पहचान को अक्षुण्ण रखना आवश्यक है।”
प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) ने किया।
तत्पश्चात् दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर ग़ज़ल, गीत, दोहे, मुक्तक, कविता एवं छांदस रचनाओं का काव्य पाठ करके माहौल को बहुत ख़ुशनुमा बना दिया। श्रीमती विनीता शर्मा (उपाध्यक्षा), अवधेश कुमार सिन्हा (परामर्शदाता) डॉ. रमा द्विवेदी, दीपा कृष्णदीप, संजीव चौधरी (जयपुर) प्रवीण प्रणव (परामर्शदाता), डॉ. सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव), शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका), श्री विजय प्रशांत (राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, दिल्ली) मोहिनी गुप्ता, किरण सिंह, तृप्ति मिश्रा, सुनीता लुल्ला, रमा गोस्वामी, मल्लिका, ने काव्य पाठ करके सबका मन मोह लिया।
श्री रामकिशोर उपाध्याय जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ में ‘माँ’ पर मार्मिक गीत एवं ग़ज़ल सुनाई तथा सभी रचनाकारों की रचनाओं की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए सफल कार्यक्रम की बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित कीं। काव्य गोष्ठी का संचालन दीपा कृष्णदीप ने किया एवं सुश्री तृप्ति मिश्रा के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।
— डॉ. रमा द्विवेदी,
प्रदेश अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
क्षितिज का अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2023
‘लघुकथा में निरंतर होने वाले शोध मील का पत्थर साबित हो रहे हैं’: विकास दवे
क्षितिज संस्था ने स्थापना के चालीस वर्ष पूर्ण कर लिए हैं और संस्था द्वारा 2018 से आरंभ किया गया अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2023 तक अनवरत जारी है।
दिनांक 29 अक्टूबर को आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन की अध्यक्षता मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. विकास दवे ने की। प्रमुख अतिथि साहित्यकार डॉ. जयंत गुप्ता थे जबकि विशिष्ट अतिथि दिल्ली के वरिष्ठ लघुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल तथा सम्मानित अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे।
संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी ने अतिथियों के स्वागत में स्वागत भाषण किया। उन्होंने क्षितिज के द्वारा 40 वर्ष से लघुकथा के विकास के लिए किए जा रहे कार्यों की जानकारी देते हुए समस्त अतिथियों का अभिनंदन किया। कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए लघुकथा लेखकों को विविध सम्मानों से सम्मानित किया गया। श्री उमेश महादोषी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान, श्री सत्यवीर मानव को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान, श्री विजय जोशी को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान तथा श्री पवन जैन एवं श्री मधु जैन को क्षितिज लघुकथा समग्र सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त सर्वश्री जयंत गुप्ता, महेंद्र कुमार ठाकुर, आर.एस. माथुर, सुरेश रायकवार, निधि जैन, वर्षा ढोबले को क्षितिज लघुकथा साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। सर्वश्री कुँवर प्रेमील, हनुमान प्रसाद मिश्र, प्रभाकर शर्मा, कर्नल गिरिजेश सक्सेना, अजय वर्मा, राजेंद्र वामन काटदरे, चंद्रेश छतलानी, सीमा व्यास, आशागंगा शिरढोणकर, कोमल वाधवानी को क्षितिज लघुकथा रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। जयपुर से पधारी श्रीमती ज्योत्स्ना सक्सेना को क्षितिज के साथ चरण सिंह अमी फ़ॉउंडेशन के द्वारा कथा सम्मान प्रदान किया गया।
अपने उद्बोधन में बलराम अग्रवाल ने कहा कि, “1983 तक लघुकथा और लघु कहानी के मध्य विवाद था। लघुकथा को पृथक पहचान दिलाने के उद्देश्य से संस्था क्षितिज का गठन किया गया। जिसे चालीस साल पूर्ण हो गए हैं। यह हम सबके लिए गौरव की बात है। पिछले दो तीन दशकों में लघुकथा के लेखन को बहुत गति मिली है। पत्रिकाओं के विशेषांक, विभिन्न मंचों पर प्रतियोगिताएँ इसे आगे बढ़ा रहे हैं।”
जयंत गुप्ता जी ने कहा कि, “मैं जन्म और कर्म से लक्ष्मी पुत्र हूँ। पर मैं सरस्वती का अनन्य साधक हूँ। मैंने पचास की वय तक जो पाया उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए मैंने तीन पुस्तकें तैयार की हैं। अंग्रेज़ी में कहावत है, जीवन चालीसवें साल में आरंभ होता है। इसके अनुसार क्षितिज का वास्तव में अब आरंभ हुआ है। क्षितिज की यात्रा में हम सभी पूर्ण सहयोग देंगे।”
डॉ. विकास दवे ने अपने उद्बोधन में कहा, “क्षितिज का वार्षिक सम्मेलन हम सभी को ऊर्जा से भर देता है। यहाँ लघुकथा का लघुभारत देखने को मिलता है। किसी भी विधा को मान्यता रचनाकार देते हैं, अकादमियाँ नहीं। हम तो रचनाओं और रचनाकारों का सम्मान करते हैं। लघुकथा का अपना स्वरूप है, अपना सौष्ठव है। मैंने अपने जीवन में कविता, कहानी को तो नहीं लघुकथा को संघर्ष करते देखा है। और वर्षों की संघर्ष का परिणाम है कि यदि आज सभी विधाओं में प्रकाशन की प्रतियोगिता हो तो निश्चित रूप से लघुकथा ही अव्वल आएगी। लघुकथा में निरंतर होनेवाले शोध मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। साझा संकलन लघुकथा को नई ऊँचाइयाँ दे रहे हैं। लघुकथा बाल साहित्य का भी हिस्सा है। हाल ही में कई लघुकथा संग्रह के अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। नई शिक्षा नीति में लोक भाषाओं को महत्त्व दिया गया है। लोक भाषाओं में भी लघुकथा के अनुवाद आने चाहिए। रंगकर्मियों ने लघुकथा को मंच प्रदान कर चिरजीवी बना दिया है।”
आयोजन में लघुकथा में प्रयोग कितने सार्थक कितने निरर्थक एवं लघुकथा लेखन का सामाजिक दायित्व इन विषयों पर सार्थक चर्चा दो सत्रों में की गई। श्रीमती कांता राय, ज्योति जैन, सीमा व्यास, अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल, ब्रजेश कानूनगो, पवन शर्मा, नेतराम भारती, पुरुषोत्तम दुबे द्वारा चर्चा सत्रों में बातचीत की गई। इसके अतिरिक्त एक सत्र में लघुकथा पाठ किया गया। विभिन्न सत्रों का संचालन अंतरा करवड़े, यशोधरा भटनागर, रश्मि चौधरी, सपना साहू, निधि जैन, प्रतिभा बर्वे द्वारा किया गया। पथिक ग्रुप के श्री नंदकिशोर बर्वे के निर्देशन में ‘लघुकथा नाट्य छटा’ के रूप में नाटक मंचन का एक कार्यक्रम किया गया जिसमें 24 लघुकथाओं का नाट्य मंचन किया गया। समस्त नाट्य कर्मियों को सूत्रधार के श्री सत्यनारायण व्यास एवं संस्था अध्यक्ष सतीश राठी के साथ सचिव दीपक गिरकर ने सम्मानित किया। आयोजन में सर्वश्री दिलीप जैन, सुरेश रायकवार, बालकृष्ण नीमा, अशोक जी शर्मा, राम मूरत राही, दौलत राम आवतानी, किशन कौशल शर्मा, विश्व बंधु नीमा का भी विशेष सहयोग रहा।
संस्था के सचिव श्री दीपक गिरकर ने अंतिम रूप से आभार माना।
आगे पढ़ेंलंदन में ‘भारोपीय हिंदी महोत्सव-2023’ का रंगारंग आयोजन: डॉ. मनोज मोक्षेंद्र
‘वातायन-यूके’, ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज, यूके हिंदी समिति और वैश्विक हिंदी परिवार के तत्वावधान में दिनांक: 13 से 15 अक्तूबर, 2023 तक आयोजित होने वाला ‘भारोपीय हिंदी महोत्सव’ विदेश में आयोजित होने वाले हिंदी से संबंधित उत्सवों में एक अति महत्त्वपूर्ण आयोजन है तथा इसकी महत्ता अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों तथा विश्व हिंदी सम्मेलनों से किसी भी मायने में कमतर नहीं है। इसका एक प्रमुख कारण है, इसमें प्रतिभागिता करने वाले हिंदी के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकारों एवं हिंदी को अंतरराष्ट्रीय नभ पर आकाश गंगा की भाँति प्रवाहित करने वाले हिंदी के प्रबुद्धजनों का योगदान। इस इंद्रधनुषीय महोत्सव का आयोजन ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज-ब्रेंटफोर्ड, लंदन में प्रस्तावित है।
हिंदी महोत्सव की सूत्रधार वर्ष 2004 में स्थापित ‘वातायन-यूके’ की संस्थापक और अध्यक्ष सुश्री दिव्या माथुर हैं जिन्होंने हिंदी से सम्बन्धित इस त्रि-दिवसीय हिंदी महोत्सव को रंगारंग कार्यक्रमों (इवेंट्स) से सज्जित करने का श्लाघ्य प्रयास किया है। ‘वातायन-यूके’ की ऊर्जस्व टीम के जुझारू सदस्य भी अपनी सुप्रतिभ क्षमताओं का स्वयंसेवी आधार पर योगदान करते हुए इसे वैविध्यपूर्ण कलेवर प्रदान कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि हिंदी को विश्वाच्छादित करने के लिए अनेकानेक वैश्विक संस्थाएँ भी इस महत्त्वपूर्ण आयोजन में प्रशंसनीय सहयोग प्रदान कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं में विशेष उल्लेखनीय नाम हैं—हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा, सिंगापुर हिंदी संगम (नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर), इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय), उपसाला यूनिवर्सिटी-स्वीडेन, नेहरू सेंटर, सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद जयपुर, कृतिक यूके और कीट्स हाउस भवन सेंटर।
दिव्या माथुर इस महोत्सव को बीज-शब्द ‘नए क्षितिज, नए आयाम’ से अभिमंत्रित करते हुए अपने इस संकल्प के प्रति आश्वस्त हैं कि आने वाले कुछ ही दशकों में समूचा विश्व हिंदी भाषा और साहित्य के ज़रिए एक जीवंत सांस्कृतिक उद्बोधन से अभिसिंचित होगा और भारत की साहित्यिक-सांस्कृतिक चेतना सार्वत्रिक आधार पर सकारात्मक प्रेरणा का स्रोत बनेगी। यह कहना भी अतिरंजित न होगा कि जहाँ तक हिंदी भाषा का सम्बन्ध है, इसके लिए यह समय अत्यंत संक्रमणशील दौर के रूप में रेखांकित किया जा रहा है क्योंकि हिंदी साहित्य के व्यापीकरण में प्रवासी साहित्यकारों की सृजनशीलता बड़े ज़ोर-शोर से अपनी दख़ल दर्ज़ कर रही है जो हिंदी के भविष्य के लिए एक अच्छा शकुन है।
संरक्षक बैरोनेस फैदर के सान्निध्य में तथा संस्थापक सदस्यों नामत: सत्येंद्र श्रीवास्तव, अनिल शर्मा जोशी, डॉ. पद्मेश गुप्त एवं मोहन राणा के विगत में अथक प्रयासों से प्रतिफलित यह वैश्विक हिंदी महोत्सव-2023 न केवल भारत की साहित्यिक गलियारों में गरमागरम चर्चाओं से सराबोर होगा, बल्कि इसके माध्यम से हमारी हिंदी सर्वतोन्मुखी नवोन्मेष के साथ वैश्विक मंच पर अवतरित भी होगी।
शुक्रवार 13 अक्तूबर, 2023 को महोत्सव के प्रथम दिवस पर, भारत सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री माननीय रमेश पोखरियाल उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करेंगे जबकि इसके मुख्य अतिथि होंगे श्री अमीश त्रिपाठी जो नेहरू सेंटर (लंदन) में भारतीय उच्चायोग के निदेशक हैं। यह कार्यक्रम लंदन के समयानुसार सायं 5 बजे से आरंभ होकर इसके समापन तक अविराम चलता रहेगा। जाने-माने हिंदी भाषा के प्रचारक और साहित्यकार तथा वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी बीज वक्तव्य देंगे। लंदन उच्चायोग में कार्यरत हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी डॉ. नंदिता साहू सरस्वती-वंदना प्रस्तुत करेंगी जबकि आलोक मेहता, डॉ. सच्चिदानंद जोशी, अरुण माहेश्वरी डॉ. अल्पना मिश्र, नीलिमा डालमिया आधार और प्रत्यक्षा सिन्हा के महती सान्निध्य में, ‘वातायन-यूके’ की अध्यक्ष मीरा कौशिक ओबीई अतिथियों की अगुवाई करेंगी और स्वागत-भाषण देंगी। प्रवासी साहित्यकार डॉ. पद्मेश गुप्त प्रथम सत्र के समारोह का संचालन अपने चिर-परिचित आत्मीय अंदाज़ में करेंगे। निःसंदेह, कार्यक्रम इतना भव्य होगा कि दुनियाभर की निग़ाहें आद्योपांत इस पर टिकी रहेंगी।
प्रथम दिवसीय उद्घाटन समारोह का मुख्य आकर्षण होगा इसके दूसरे सत्र में ‘वातायन-यूके’ के दो सम्मानों का प्रस्तुतीकरण, जिन्हें वार्षिक आधार पर हिंदी साहित्य के दो जाने-माने साहित्यकारों को दिया जाता है। ये दोनों पुरस्कार क्रमश: श्री संतोष चौबे और प्रोफ़ेसर अनामिका को दिए जाएँगे। दोनों विशिष्ट शख़्सियत हिंदी साहित्य के देदीप्यमान सितारे हैं जिनके साहित्यिक अवदान के हम सभी ऋणी हैं। इसके अतिरिक्त, प्रोफ़ेसर हाइंस वरनर वेस्लर और प्रोफ़ेसर रेखा सेठी को भी प्रशस्ति-पत्र देते हुए उनके हिन्दी साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया जाएगा। दूसरे सत्र का संचालन लंदन की कवयित्री आस्था देव करेंगी। इस कार्यक्रम में सक्रिय सहभागिता होगी—डॉ. जवाहर कर्णावत, शिखा वार्ष्णेय, मनीषा कुलश्रेष्ठ, डॉ. निखिल कौशिक, प्रो. राजेश कुमार, ऋचा जैन, तितिक्षा शाह, डॉ. नरेश शर्मा जैसे हिंदी साहित्य के चहेतों की।
दूसरे दिन अर्थात् शनिवार 14 अक्तूबर, 2023 को प्रथम सत्र शिक्षण को समर्पित होगा तथा इसे एक हिंदी कार्यशाला के रूप में आयोजित किया जाएगा। इस शैक्षणिक सत्र की अध्यक्षता करेंगे डॉ. सच्चिदानंद जोशी जबकि मुख्य अतिथि होगी डॉ. रमा पांडे। सत्र-समन्वयक ऋचा जैन के संचालन में डॉ. अभय कुमार, डॉ. इला कुमार, मारिया पूरी, डॉ. पूनम कुमारी सिंह, डॉ. शिव कुमार सिंह तथा डॉ. यूरी बोत्वींकिन सांस्कृतिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में अनुवाद विषय पर अपने-अपने बौद्धिक वक्तव्य-मंतव्य प्रस्तुत करेंगे। तदनंतर, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की गरिमामयी अध्यक्षता में ‘हिंदी शिक्षण: चुनौतियाँ और संभावनाएँ’ विषय पर चर्चा होगी जिसमें प्रो. निरंजन कुमार मुख्य अतिथि होंगे जबकि संतोष चौबे के सान्निध्य में डॉ. कुसुम नैपसिक, डॉ. ज्योति शर्मा, डॉ. संध्या सिंह, सर्वेंद्र, विक्रम बहादुर सिंह, सुश्री पूजा अनिल, शिवानी भारद्वाज, डॉ. येवगेनी रुतोव और डॉ. मोनिका ब्रोवाचिक इस ज़रूरी विषय पर बौद्धिक चर्चा में सहभगिता करेंगी। इस सत्र का समन्वयन करेंगी—शिखा वार्ष्णेय।
दिनांक 14 अक्तूबर, 2023 के व्यस्त कार्यक्रम में कम-से-कम 8 सत्र प्रस्तावित हैं। इसके तीसरे सत्र में, डॉ. सत्यकेतु सांकृत की अध्यक्षता और तेजेंद्र शर्मा के मुख्य आतिथ्य एवं अनिल शर्मा जोशी के सान्निध्य में बहु-चर्चित प्रवासी लेखन पर परिचर्चा होगी जिसमें प्रतिभागी होंगे—अर्चना पेन्यूली, राकेश पांडे, शैल अग्रवाल, कादंबरी मेहरा और जय वर्मा। एक सत्र ‘वैश्वीकरण और हिंदी भाषा’ के लिए भी आवंटित है। आलोक मेहता की अध्यक्षता तथा एल.पी. पंत के मुख्य आतिथ्य और डॉ. जवाहर कर्णावट के सान्निध्य में, प्रो. हाइंस वरनर वेस्लर, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. शैलजा सक्सेना तथा तातियाना ओरांस्किया प्रतिभागी वक्ता होंगे। चौथा सत्र मध्यान्ह पश्चात 3। 00 बजे से प्रारंभ होगा जिसमें ‘साहित्य और सिनेमा’ विषय पर श्री ललित मोहन जोशी, डॉ. निखिल कौशिक, डॉ. गोकुल क्षीरसागर तथा डॉ. अनुपमा श्रीवास्तव अपने-अपने वक्तव्य देंगे जबकि इस संगोष्ठी-सत्र की अध्यक्षता मीरा मिश्रा कौशिक करेंगी। मुख्य अतिथि के आसन पर संजीव पालीवाल विराजमान होंगे और हमें रवि शर्मा का सान्निध्य प्राप्त होगा। सुप्रसिद्ध कवयित्री तिथि दानी समन्वयक की भूमिका में होगी।
इस महोत्सव के सभी सत्र हिंदी भाषा के उन्नयन और हिंदी साहित्य की दिशा तय करने के लिए अभिकल्पित हैं। इसी क्रम में, एक आवश्यक सत्र यूरोप में हिंदी शिक्षण विषय पर होगा जिसे ब्रिटेन की हिंदी समिति द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा। इसके अध्यक्ष होंगे, प्रो. हाइंस वरनर वेस्लर तथा मुख्य अतिथि होंगी दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. रेखा सेठी। डॉ. पद्मेश गुप्त के सान्निध्य में, डॉ. ऐश्वर्यज कुमार, शशि वालिया तथा अंजना उप्पल परिचर्चा में भागीदारी करेंगी। हिंदी भाषा के भविष्य पर चिंतन करने के लिए प्रो. हरमोहिंदर सिंह की अध्यक्षता और डॉ. रियाज़-उल-अंसारी के मुख्य आतिथ्य एवं डॉ. एम ऐ नंदाकुमारा के सान्निध्य में, जिस विषय पर डॉ. गायत्री मिश्रा, प्रो. प्रतिभा मुदलियार, डॉ. वानिश्री बग्गी और प्रो. बलराम धापसे चर्चा करेंगे, वह विषय है—‘भारतीय भाषाओं की एकात्मकता’। इस सत्र की समन्वयक होगी डॉ. रागसुधा विनजामूरी।
भारोपीय हिंदी महोत्सव के त्रि-दिवसीय आयोजन में दूसरा दिन अत्यधिक व्यस्त होगा। लंदन के समयानुसार सायं 4:00 जो सत्र आयोज्य है, उसमें ‘हिंदी भाषा और साहित्य: भविष्य की रूपरेखा’ विषय पर बौद्धिक चिंतन-मनन होगा। अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी और मुख्य अतिथि डॉ. नीलम चौहान की उपस्थिति में डॉ. अल्पना मिश्र, डॉ. रेखा सेठी, नीलिमा डालमिया आधार, प्रत्यक्षा सिन्हा और मनीषा कुलश्रेष्ठ, अरुण माहेश्वरी के सान्निध्य में वक्तव्य देंगी। इस संगोष्ठी की समन्वयक अंतरीपा ठाकुर होगी। दिनांक 14 अक्तूबर की संध्या एक कवि सम्मेलन को समर्पित होगी जिसमें अनिल शर्मा जोशी, डॉ. रमा पांडे, डॉ. नंदिता साहू, उषा राजे सक्सेना, मोहन राणा, शेफाली फ्रॉस्ट, डॉ. पद्मेश गुप्त, डॉ. निखिल कौशिक, शिखा वार्ष्णेय, तिथि दानी, ऋचा जैन, ज्ञान शर्मा, आस्था देव, मधुरेश मिश्रा, पवन धनौरी आदि समेत कवि-वृन्द शिरकत करेंगे। इस कार्यक्रम के समन्वयक होंगे लंदन के ही प्रवासी कवि आशीष मिश्रा।
भारोपीय हिंदी महोत्सव के तीसरे दिन के समापन समारोह में भी उल्लेखनीय गतिविधियाँ निष्पादित की जाएँगी। विभिन्न सत्रों से सज्जित इस शृंखला को ‘कलमोत्सव’ की संज्ञा दी गई है। इसमें ‘बेहतर कहानी की भूमि: अपनी भाषा अपने लोग’, ‘इतिहास रचते शब्द’, ‘कविता, उपनिवेशकरण, कूटनीति और स्त्री-कथाएँ’, ‘सत्य और कल्पना के पन्ने’ तथा ‘बदलती लहरें: नारीवाद का विकसित परिदृश्य’ जैसे ज्वलंत विषयों पर सार्थक संवाद होंगे जिनमें प्रबुद्ध संवादकार प्रतिभागिता करेंगे। ‘कलमोत्सव’ का समापन डोना गांगुली द्वारा एक सांस्कृतिक प्रस्तुति से होगा। डॉ. पद्मेश गुप्त द्वारा समापन समारोह में अध्यापकों, स्वयंसेवकों, भाषा-मित्रों; प्रबुद्ध वक्ताओं और संवादकारों तथा प्रतिभागियों; ऑनलाइन जुड़े श्रोता-दर्शकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया जाएगा।
इस प्रकार वर्ष 2023 का अक्तूबर माह हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट महीना के रूप में दर्ज किया जाएगा। बेशक, लंदन में आयोजित भारोपीय हिंदी महोत्सव को, हिंदी साहित्य के इतिहास में समय-समय पर एक मील के पत्थर के रूप में उद्धृत किया जाएगा।
आगे पढ़ेंएक हिंदी दिवस ऐसा भी
हिन्दी दिवस मंच संचालन डॉ. नर नारायण'शास्त्री'ने किया
ऐसा बहुत कम होता है कि कोई संस्था अपना उत्सव देश, समाज और मातृभाषा से जुड़े दिवस विशेष पर ही मनाए और अपने इस उत्सव को हिंदी के साधक-आराधक को समर्पित कर दे। 137 वर्ष पुराने कर्नलगंज इंटर कॉलेज प्रयागराज ने हिंदी दिवस पर हाई स्कूल की मान्यता मिलने की 75वीं वर्षगाँठ हिंदी दिवस पर मनाई। अपने इस उत्सव को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की स्मृतियों पर केंद्रित करते हुए अपने स्कूल और हिंदी का उत्सव साथ-साथ मनाया।
इसके सूत्रधार बने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर महेश चंद्र चट्टोपाध्याय। वह 33 वर्षों से कर्नलगंज इंटर कॉलेज के प्रबंधक भी हैं। श्री चट्टोपाध्याय के पिता संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उनके बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथी। सुभाष चंद्र बोस के हाथ की लिखी है चिट्ठी आज भी उनके परिवार की ख़ास धरोहर है।
इंडियन प्रेस के संस्थापक और सरस्वती मासिक पत्रिका के प्रकाशक बाबू चिंतामणि घोष के वंशज श्री सुप्रतीक घोष और श्री अरिंदम घोष, सरस्वती के संपादक रहे पंडित देवीदत्त शुक्ल के वंशज श्री व्रतशील शर्मा और ठाकुर श्रीनाथ सिंह के वंशज श्री योगेंद्र सिंह की उपस्थिति आयोजन की सार्थकता में चार चाँद लगाने वाली रही।
आज के इस आयोजन में आचार्य जी शिद्दत से याद किए गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर राजेंद्र कुमार और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व प्रोफ़ेसर अवधेश प्रधान के विद्वान वक्तव्य ने हिंदी नवजागरण को याद करते हुए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के योगदान को विस्तार से प्रस्तुत किया। केंद्रीय हिंदी संस्थान के हिंदी के प्रोफ़ेसर रहे प्रोफ़ेसर देवेंद्र शुक्ल और कवयित्री एवं समीक्षक श्रीमती आरती स्मित और श्रीमती सरोज सिंह ने भी उन परतों पर जमी धूल उठाई जिनको पढ़ और सुनकर केवल हिंदी समाज ही नहीं हर भारतीय भाषा भाषी गर्व की अनुभूति करता है। चलने को प्रेरित होता है। नया इतिहास गढ़ने का संकल्प लेता है।
आयोजन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी शांतनु मुखर्जी ने अपनी नौकरी से जुड़े क़िस्से के उसे हिस्से को सुनाकर हिंदी की महत्ता को रेखांकित किया जिसने उनका भारतीय पुलिस सेवा में जाने का रास्ता साफ़ किया। उन्होंने बताया कि इंटरव्यू के दौरान बांग्ला भाषा होने की वजह से उनसे टैगोर की गीतावली के सम्बन्ध में पूछा गया। वह कुछ नहीं बता पाए लेकिन असफल होने की उसे घड़ी में हिंदी ने उन्हें सहारा भी दिया और ताक़त भी। हिंदी दिवस पर ऐसे विद्वानों को सुनना और उनके साथ मंच साझा करना हम जैसे अकिंचनों का गौरव बढ़ाने वाला ही रहा।
आचार्य द्विवेदी की परंपरा का आंशिक पालन
जानने वाले जानते हैं कि 1933 में इलाहाबाद में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्मान में एक बड़ा उत्सव मनाया गया था। इस उत्सव के मौक़े पर आचार्य द्विवेदी ने आयोजक संस्था और उसके पदाधिकारी से ‘मातृभाषा की महत्ता’ विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित करने का अनुरोध किया था। अनुरोध को स्वीकार करते हुए इसी विषय पर कराई गई निबंध प्रतियोगिता में तब सैयद अमीर अली मीर ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। आचार्य द्विवेदी ने निबंध प्रतियोगिता के इन विजेता महोदय को अपने पास से ₹100 की धनराशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की थी। इस धन राशि को अगर आज से जोड़ तो यह क़रीब 75 हज़ार रुपए के आसपास ज़रूर जाएगी। आचार्य द्विवेदी का मातृभाषा के प्रेम का यह एक उदाहरण भर है।
कर्नलगंज इंटर कॉलेज की प्रबंध समिति ने हिंदी दिवस पर अपने स्कूल को की मान्यता मिलने की हीरक जयंती पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति व्याख्यान की रूपरेखा तैयार की थी। स्कूल के प्रबंधक प्रोफ़ेसर महेश चंद्र चट्टोपाध्याय जी से आचार्य द्विवेदी की तरह का ही कुछ निवेदन हमने भी किया। अनुरोध स्वीकार करते हुए श्री चट्टोपाध्याय जी ने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के जीवन वृत्त पर निबंध प्रतियोगिता 9 सितंबर को संपन्न कराई। इसमें प्रयागराज शहर के 22 स्कूलों के 107 छात्र-छात्राओं ने जूनियर और सीनियर वर्ग में प्रतिभाग किया।
जूनियर वर्ग में प्रथम आशीष कुमार (ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज प्रयागराज), सृष्टि सिंह (क्रॉस्थवेट गर्ल्स इंटर) द्वितीय, नितिन मिश्रा एवं अनुराग मिश्रा (ज्वाला देवी विद्या मंदिर इंटर कॉलेज) संयुक्त रूप से तृतीय रहे और अनुराग मौर्य (कर्नलगंज इंटर कॉलेज) सांत्वना पुरस्कार के हक़दार बने। सीनियर वर्ग में कुमारी शिवानी पटेल (जगत तारन इंटर कॉलेज) प्रथम, अनिरुद्ध वाजपेई (ज्वाला देवी विद्या मंदिर इंटर कॉलेज) द्वितीय, मान्या कुशवाहा (महिला सेवा सदन इंटर कॉलेज) तृतीय और सर्वेश यादव (कर्नलगंज इंटर कॉलेज) सांत्वना पुरस्कार विजेता बने।
आचार्य द्विवेदी की परंपरा का आंशिक पालन करते हुए जूनियर एवं सीनियर वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले आशीष कुमार एवं शिवानी पटेल को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति न्यास की ओर से 21-2100 रुपए के नक़द पुरस्कार के साथ ही लेखक विनोद तिवारी के संपादन में लोग भारतीय प्रकाशन प्रयागराज से प्रकाशित एवं इंडियन प्रेस प्रयागराज से मुद्रित ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के श्रेष्ठ निबंध’ नामक पुस्तक और 'आचार्य पथ' देकर सम्मानित किया गया।
—गौरव अवस्थी
रायबरेली
वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में हुआ अभिव्यक्ति का आयोजन
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा ‘अभिव्यक्ति’ का आयोजन देवेंद्र नगर स्थित वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में किया गया।
इस अवसर पर बाल रचनाकारों ने चित्रकला, कविता, कहानी एवं निबंध के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त किया।
बाल रचनाकारों ने मेरा प्यारा त्योहार, हँसते गाते बच्चे, परियों की दुनिया, मेरा प्रिय कार्टून, बच्चे और खेल के मैदान, बस्ता और बच्चे जैसे विषयों पर चित्रकला एवं निबंधों बनाए। कविताओं में बच्चों ने दी गईं दो लाइन को आगे बढ़ाते हुए अपने मन से कविताओं की रचना की। बाल रचनाकारों ने दादी और चुनमुन, रवि सर की डायरी, टुक्कू जैसे विषयों पर कहानी की रचना की।
विद्यालय की प्रधानाचार्या पूनम भारद्वाज ने कहा कि सभी सहभागियों ने उत्साह के साथ विविध विधाओं में सहभाग किया। अपने मन को शब्दों में पिरोना कठिन कार्य है। चित्रकला में रंगों से और लेखन विधाओं में शब्दों से बच्चों ने सभी को प्रभावित किया है। अभिनव बालमन द्वारा दिया गया यह अवसर बच्चों में रचनात्मकता को बढ़ाएगा।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि सभी बाल रचनाकारों ने बहुत सुंदर रचनाएँ बनाई हैं। सभी उत्कृष्ट बाल रचनाकारों की रचनाएँ प्रकाशित अभिनव बालमन में प्रकाशित की जायेंगी जिसको देखकर सभी में और अधिक आत्मविश्वास बढ़ेगा।
अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने अभी बाल रचनाकारों को उनके प्रयास के लिए बधाई दी।
इस अवसर पर विद्यालय की शिक्षिका प्रीती गुप्ता, आँचल सक्सेना, वंशिका जैन, रिंकी, अंजली, शिवानी, नीता, खेमेश्वरी, नीलम, सपना मौजूद रहीं।
आगे पढ़ेंग़ज़लकार अशोक ‘अंजुम’ की पुस्तक का लोकार्पण
“मैं रहूँ या ना रहूँ मेरा कहाँ ज़िन्दा रहे”
अलीगढ़– 9 सितंबर 23, उत्तर प्रदेश साहित्य सभा, लखनऊ तथा शिखर साहित्यिक संस्था, अलीगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में अशोक अंजुम की 101 चुनिंदा की ताज़ा ग़ज़लों की किताब “ग़ज़लकार अशोक अंजुम” (संपादक: श्री बालस्वरूप राही) का लोकार्पण समारोह संत फिदेलिस स्कूल, अलीगढ़ के सभागार में फ़ादर रॉबर्ट वर्गीस के संयोजन में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन सुधांशु गोस्वामी ने किया।
कार्यक्रम में पूज्य संत मुरारी बापू, बॉलीवुड के बेहद चर्चित गीतकार-संवाद लेखक मनोज मुंतशिर, वरिष्ठ साहित्यकार तथा ज्ञानपीठ के पूर्व सचिव श्री बालस्वरूप राही, तथा प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ ने वीडियो के माध्यम से पुस्तक पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
जितेंद्र कुमार ने अशोक अंजुम के ग़ज़ल संग्रह से दो ग़ज़लों की संगीतमय प्रस्तुति दी।
सर्वप्रथम भारती शर्मा द्वारा माँ शारदे की वंदना प्रस्तुत कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया और अपने वक्तव्य में अशोक अंजुम को उनकी नई पुस्तक के लिए बधाई दी। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि “अशोक अंजुम साहित्य का आकाश हैं और उनकी यह पुस्तक साहित्य के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी।”
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. चंद्रशेखर (कुलपति, राजा महेंद्र प्रताप विश्वविद्यालय, अलीगढ़) ने अशोक अंजुम को बधाई देते हुए कहा कि, “अशोक अंजुम की पुस्तक की हरेक ग़ज़ल दिल को छू लेने वाली है।”
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शंभुनाथ तिवारी ने कहा कि, “अशोक अंजुम शब्दों की तपिश भली-भाँति जानते हैं इसीलिए उनके लेखन में शब्दों का अद्भुत प्रबंधन दिखाई देता है उनकी यह पुस्तक इस बात का साक्षात् प्रमाण है।”
फ़ादर रॉबर्ट वर्गीस ने अशोक अंजुम को बधाई देते हुए कहा, “अशोक अंजुम के लेखन में एक अनुपम संतुलन देखने को मिलता है जिसकी वज़ह से उनका लेखन और अधिक प्रभावी होता है और जन सामान्य के दिल ओ दिमाग़ को छूता है।”
‘सर’ पर वरिष्ठ कवि कुमार अतुल ने अशोक अंजुम की ग़ज़लों पर बोलने के साथ-साथ उनके एक कई दोहे सुनाते हुए कहा कि “अशोक अंजुम चाहे किसी भी विधा में लिखें वे लोगों के दिलों तक अपने साहित्य के द्वारा अपनी पहुँच बना लेते हैं।”
ओजस्वी कवि डॉ. हरीश बेताब ने कहा, “अशोक अंजुम विभिन्न विधाओं में उस विधा के होकर अपनी क़लम चलाते हैं जैसा अन्यत्र दुर्लभ दिखाई देता है।”
प्रो. फे.आर.आर. आज़ाद ने कहा कि “अशोक अंजुम के घर जाकर देखिए तो ऐसा लगता है जैसे माँ सरस्वती के मंदिर में आ गए हैं।”
इस अवसर पर अशोक अंजुम ने सबका आभार व्यक्त करते हुए अपनी कई ग़ज़लें सुनाईं:
“ज़िन्दगी का ज़िन्दगी से वास्ता ज़िंदा रहे
हम रहें जब तक हमारा हौसला ज़िंदा रहे
मेरी कविता मेरे दोहे गीत मेरे और ग़ज़ल
मैं रहूँ या ना रहूँ मेरा कहा ज़िंदा रहे।”
कार्यक्रम में प्रेम किशोर पटाखा ने भी अशोक अंजुम को शुभकामनाएँ एवं बधाई प्रेषित की। कार्यक्रम में डॉ. सुदर्शन तोमर, डॉ. मधुसूदन शर्मा, डॉ. शंभुदयाल रावत, योगेश सेंगर, पंकज भारद्वाज, अमिताभ शर्मा, टॉम मैथ्यू, विद्यार्णव शर्मा, पूनम शर्मा, नसीर नादान, अरविंद पंडित, शकेब जलाली, अज़ीज़ अहमद आदि शताधिक विद्वान उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंयुवा लेखक बिश्नोई की पुस्तक ‘आओ चलें उन राहों पर’ का उपमुख्यमंत्री चौटाला ने किया विमोचन
सांस्कृतिक साहित्य को सँजोए रखने में लेखकों की है अहम भूमिका-दुष्यंत चौटाला
हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने हिंदी साहित्य को सँजोए रखने में लेखकों की अहम भूमिका बताते हुए कहा कि लेखकों की लेखनी से ही साहित्य का प्रचार और प्रसार हो सकता है। उन्होंने यह बात हिंदी साहित्य के युवा लेखक विकास बिश्नोई के द्वारा बाल कहानी संग्रह के अंतर्गत लिखित पुस्तक ‘आओ चलें उन राहों पर’ का विमोचन करते हुए कही।
उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने विकास को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि विकास जैसे प्रतिभाशाली युवा लेखक समाज में सभी के लिये प्रेरणादायक है क्योंकि आधुनिकता के इस युग में हिंदी साहित्य की गरिमा को बचाये रखने के लिए नई-नई चीज़ों का प्रकाशन बहुत ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि युवा लेखक विकास के द्वारा लिखे गए ये कहानी संग्रह निश्चित ही समाज और बाल वर्ग को एक नई प्रेरणा देगा।
इस अवसर पर युवा लेखक विकास बिश्नोई ने उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का उनकी पुस्तक के प्रति रुचि दिखाने व उनका प्रोत्साहन करने के लिये आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके इस कहानी संग्रह का प्रकाशन दिल्ली के शब्दाहुति प्रकाशन द्वारा अमृत महोत्सव योजना के अंतर्गत निशुल्क किया गया है। संग्रह में बाल वर्ग में देशभक्ति की भावना पैदा करने के साथ साथ मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं से प्रेरित 35 से ज़्यादा कहानियाँ है।
इस अवसर पर जेजेपी प्रदेश प्रवक्ता एडवोकेट मनदीप बिश्नोई, जांभाणी साहित्य अकादमी के सचिव पृथ्वी सिंह बैनीवाल, शिक्षाविद डॉ अजीत सिंह उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंअभिमन बालमन द्वारा ‘सृजनोत्सव 2023’ का आयोजन 25 मई से
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा वार्षिक रचनात्मक कार्यशाला ‘सृजनोत्सव 2023’ का आयोजन किया जा रहा है।
कार्यशाला में कविता, कहानी, चित्रकला, क्राफ़्ट एवं क्ले-वर्क में बाल रचनाकारों को इन कलाओं के विशेषज्ञों द्वारा मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा।
अभिनव बालमन द्वारा वर्ष 2009 से इस कार्यशाला का आयोजन किया जाता रहा है जिसमें अलीगढ़ ही नहीं पूरे देश से विभिन्न विधाओं के संदर्भदाता के रूप में मार्गदर्शक आते रहे हैं।
कार्यशाला में बाल रचनाकार स्वयं की कहानी एवं कविता रचना सीखेंगे। उन्हें चित्रकारी, क्राफ़्ट और क्ले-वर्क में सृजन के लिए रचनात्मक वातावरण प्रदान किया जाएगा जिससे वे इन कलाओं में और निखार ला सकेंगे।
कार्यशाला का शुल्क 100 रुपए है जिसमेंं बच्चों को सभी आवश्यक सामान्य जलपान की व्यवस्था के साथ पुरस्कार और उपहार भी प्रदान किए जायेंगे।
कार्यशाला में सहभागिता हेतु सासनी गेट स्थित एस ए बुक स्टेशनर्स, रामघाट रोड स्थित कैपिटल स्टेशनर्स, दयानंद कनफेक्शनरी, पला रोड, के पी इंटर कॉलेज के सामने निधि मेडिकल स्टोर से फ़ॉर्म प्राप्त किए जा सकते हैं।
आगे पढ़ेंसाहित्यकार सुशील शर्मा को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर स्मृति सम्मान
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती पर ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय आगरा द्वारा नगर के वरिष्ठ साहित्यकार सुशील शर्मा को हिंदी साहित्य, संस्कृति और शिक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए ‘गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर स्मृति सम्मान’ से सम्मानित किया गया। ज्ञातव्य हो कि वरिष्ठ साहित्यकार सुशील शर्मा की 20 साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकीं है एवम् शिक्षा में उन्हें राज्यपाल सम्मान से सम्मानित किया गया है।
आगे पढ़ेंसंस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित माँ पर लघुकथा गोष्ठी
हर माँ का एक धर्म होता है और हर धर्म में माँ एक होती है—सूर्यकांत नागर
नगर की साहित्यिक संस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित माँ पर लघुकथा पाठ के आयोजन में अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर ने कहा कि, “स्त्री का हर रूप ममतामयी माँ का होता है। माँ का प्यार निर्ब्याज, निःस्वार्थ और तर्कातीत होता है। माँ बदले में कुछ नहीं चाहती उसका प्यार सच्चा होता है। वेदव्यास ने कहा है कि करुणा, दया, प्रेम, त्याग और सहिष्णुता एक ही स्थान पर देखना है तो माँ के हृदय में झाँको। माँ का आँचल कितना ही मैला हो संतान को उसमें प्यार और अपनत्व की गंध महसूस होती है। दुनिया की हर माँ का एक ही धर्म होता है और दुनिया के प्रत्येक धर्म में एक ही माँ होती है।”
मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ उपन्यासकार अश्विनी कुमार दुबे ने कहा कि, “माँ का स्थान जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। वह जननी है, उससे ही हमारे जीवन का विकास हुआ है। इस प्रकार उसके उपकार कोई नहीं भुला सकता। साहित्य में एवं अन्य कलाओं में माँ की महिमा का विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ है। इधर लघुकथाओं में हमारे कथाकारों ने माँ को आदर पूर्वक याद किया है। माँ पर जितना भी लिखा जाए, वह कम है और माँ से संबंधित हर व्यक्ति के अनुभव अलग-अलग हैं, विशेष हैं, जिनकी अभिव्यक्ति उन्होंने आज पढ़ी गई लघुकथाओं में की है। इस प्रकार माँ की महिमा का वर्णन लघुकथाओं में हमें विस्तार से देखने को मिलता है। इन लघुकथाओं में प्रेम और करुणा का स्वर विद्यमान है।”
आयोजन में सर्वश्री: नंदकिशोर बर्वे, आर एस माथुर, किशनलाल शर्मा, बृजेश कानूनगो, ज्योति सिंह, राम मूरत राही, पुरुषोत्तम दुबे, दीपक गिरकर, सतीश राठी, रामचंद्र धर्मदासानी, बालकृष्ण नीमा, ज्योति जैन, अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल, चेतना भाटी चंद्रा सायता, वर्षा ढोबले, सुषमा शर्मा, विद्यावती पाराशर के द्वारा लघुकथा का पाठ किया गया।
संस्था अध्यक्ष, सतीश राठी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। आयोजन का संचालन सुधा गाडगिल ने किया तथा आभार संस्था के सचिव, दीपक गिरकर ने माना।
आगे पढ़ेंउत्कृष्ट शिक्षण के लिए हर्षित गुप्ता हुए सम्मानित
बरेली: शनिवार 29 अप्रैल 2023 को बीआईयू कॉलेज ऑफ़ ह्यूमनिटीज़ एण्ड जर्नलिज़्म एवं बीआईयू कॉलेज ऑफ़ मैनेजमेंट (बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी) में संयुक्त रूप से ‘सम्मान समारोह’ का आयोजन किया गया, जिसमें सहयोगी शिक्षक के रूप में उत्कृष्ट सेवाएँ प्रदान करने हेतु हर्षित गुप्ता को प्रशस्ति-पत्र एवं क़लम प्रदान कर सम्मानित किया गया।
इस कार्यक्रम में माँ सरस्वती को नमन करते हुए प्राचार्य डॉ. अवनीश सिंह चौहान ने कहा, “हर्षित जी बहुत ही उदार एवं सरल हृदय के व्यक्ति हैं। पढ़ने-पढ़ाने में सदैव रुचि लेते हैं। शिक्षण की कला में निष्णात हैं, सेवाभावी हैं।” कार्यकर्म के मुख्य अतिथि उप-कुलसचिव संदीप शर्मा ने कहा, “हर्षित जी के साथ काम करने का आनंद ही कुछ और है।” विशिष्ट अतिथि अनुभाग अधिकारी प्रदीप त्रिपाठी ने कहा, “हर्षित जी एक व्यवहार-कुशल व्यक्ति हैं।”
इस अवसर पर बरषानी गुप्ता, युसरा जैदी, वंशिका पटेल, गरिमा वर्मा, संस्कृति द्विवेदी, शिफा इंतज़ार, विष्णु गुप्ता, प्रियांशी गुप्ता, अक्षिता पाण्डेय, निमरा खान आदि विद्यार्थियों ने भी हर्षित सर के साथ फोटो खिचवाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। संस्थान के सहायक आचार्या शिवानी सक्सेना, रीना सिंह, पूजा गंगवार आदि ने हर्षित जी को बधाई एवं शुभकामनाएँ दीं। फोटोग्राफी प्रवीण कुमार और चमन बाबू ने की। सहायक आचार्य अतुल बाबू ने सभी उपस्थित जनों का आभार व्यक्त किया।
आगे पढ़ेंलोकार्पण, काव्य गोष्ठी व सम्मान समारोह कार्यक्रम संपन्न
आगरा। यूथ हॉस्टल (आगरा) में संस्थान संगम व कविता प्रभा काव्य समूह के संयुक्त बैनर तले एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें डॉ. कविता सिंह प्रभा की दो पुस्तकों (सुनी है आहट व दिशाएँ ज़िन्दगी की) का विमोचन भव्य तरीक़े से किया गया। वहीं संस्थान संगम पत्रिका व राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र एकलव्य दर्पण का वितरण भी किया गया।
इसके साथ ही उपस्थित कवियों ने मधुर काव्यपाठ भी किया। कविता प्रभा काव्य समूह द्वारा सभी कविगणों को प्रशस्ति पत्र, पटका (राधे कृष्णा नाम पट्टिका) व संस्थान संगम पत्रिका की प्रति भेंट कर सम्मानित किया गया।
कवि व लेखक डॉ. मुकेश कुमार ऋषि वर्मा ने अपना लघुकथा संग्रह-जंगल की इज़्ज़त डॉ. कविता सिंह प्रभा व डॉ. अशोक अश्रु जी को भेंट किया।
इस अवसर पर ग़ाफ़िल स्वामी, प्रताप सिंह सिसोदिया, अवधेश कुमार निषाद मझवार, परमानंद शर्मा, रजिया बेगम, कवि रामेश्वर दयाल, डॉ. शशि गोयल, डॉ. श्रुति सिन्हा, राजकुमारी चौहान आदि सहित सैकड़ों कवि व महानुभाव उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के अंत में सभी महानुभावों को भोजन कराया गया। कुल मिलाकर कार्यक्रम पूर्णतः सफल रहा।
आगे पढ़ेंब्रिलिएंट के बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा ब्रिलिएंट पब्लिक स्कूल में विभिन्न प्रतियोगिताओंं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य श्याम कुंतैल ने कहा कि हमारे विद्यालय के विद्यार्थी ‘अभिनव बालमन’ की इन प्रतियोगिताओं में जिस तरह बढ़-चढ़कर प्रतिभाग कर रहे हैं वह सुखद है। कविता, कहानी, चित्रकला, संस्मरण आदि को जब स्वयं रचेंगे तो निश्चित ही सृजनात्मक विकास होगा।
इस अवसर पर पर्यावरणविद सुबोध नंदन शर्मा ने कहा कि अभिनव बालमन अपने नाम के अनुरूप बच्चों के बीच कार्य कर रही है। सभी बाल रचनाकारों को मेरी ओर से बधाई।
इस अवसर पर उप प्रधानाचार्या सुधा सिंह, डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, अम्बिका शर्मा, कीर्ति पालीवाल, दीपा अधिकारी, रेखा सिंह, नीतू दास आदि शिक्षक-शिक्षिका उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंसुशील शर्मा को डॉ. भीमराव अंबेडकर राष्ट्र गौरव सम्मान
दलितों के उत्थान, शिक्षा साहित्य, समाज सेवा संस्कृति के क्षेत्रों में अभिनव कार्य करने वाली विश्व गंगा वाहिनी एवं शोध संस्थान आगरा द्वारा वर्ष 2023 के डॉ. भीमराव अंबेडकर राष्ट्र गौरव सम्मान नरसिंहपुर ज़िले के शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में अभिनव कार्य करने वाले श्री सुशील शर्मा वरिष्ठ साहित्यकार गाडरवारा को प्रदान किया गया है ज्ञातव्य हो कि सुशील शर्मा कि 20 साहित्यिक कृतियाँ विभिन्न विषयों एवं विधाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में सुशील शर्मा जी को राज्यपाल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है।
आगे पढ़ेंत्रिलोक सिंह ठकुरेला को अकादमी सम्मान
साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी’ द्वारा ‘बाल साहित्य सर्जक सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान का पहला सम्मान समारोह 29 मार्च, 2023 को जवाहर कला केंद्र, जयपुर के रंगायन सभागार में भव्यता के साथ संपन्न हुआ।
राजस्थान सरकार के राज्य मंत्री श्री रमेश बोराणा, माननीय मुख्य मंत्री राजस्थान के विशेषाधिकारी श्री फारूक आफरीदी, राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. दुलाराम सहारण, जनसत्ता के प्रधान संपादक श्री मुकेश भारद्वाज और वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री रमेश तैलंग के आतिथ्य में आयोजित इस समारोह में अकादमी द्वारा प्रकाशित त्रिलोक सिंह ठकुरेला के बाल कविता संग्रह ‘सात रंग के घोड़े’ के लोकार्पण के साथ-साथ उन्हें माल्यार्पण, अंगवस्त्र, स्मृति-चिन्ह और सम्मान-पत्र देकर सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय है कि कि त्रिलोक सिंह ठकुरेला को पूर्व में भी राजस्थान साहित्य अकादमी सहित अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। कुण्डलिया छंद के कीर्तिपुरुष त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी कुमारभारती’ सहित लगभग दो दर्जन पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं।
इस अवसर पर बाल साहित्यकारों को पुरस्कृत एवं सम्मानित करते हुए अकादमी द्वारा प्रकाशित 60 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।
आगे पढ़ेंहिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा द्वारा डॉ. शैलजा सक्सेना ‘हिन्दी गौरव सम्मान-२०२३’ से सम्मानित
मिसिसागा (कैनेडा)
हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा की सह संस्थापिका डॉक्टर शैलजा सक्सेना को फरवरी, २०२३ में फिजी में आयोजित १२वें विश्व हिंदी सम्मेलन में “विश्व हिंदी सम्मान” मिला। उनको इस सम्मान के मिलने की घोषणा के साथ ही इस संस्था के सभी सदस्यों में प्रसन्नता की लहर छा गई। २५ मार्च, २०२३ को हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के निदेशक मंडल ने सभी सदस्यों के साथ मिलकर शैलजा सक्सेना को बधाई देने और संस्था की ओर से भी सम्मानित करने के लिए आयोजन किया। आर्य समाज मिसिसागा के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में संस्था के सभी सदस्यों के साथ-साथ अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे, ये संस्थाएँ हैं— एकल फ़ाउंडेशन, अंतर्मन, हिंदी टाइम्स मीडिया, ज़ी टी वी तथा प्रोविंशियल पार्लियमेंट के कुछ सदस्य आदि।
अतिथियों के स्वागत के लिए श्रीमती स्नेह धर जी के द्वारा कश्मीरी कहवे और नाश्ते का प्रबंध था जिसे सब ने आनंद पूर्वक ग्रहण किया। यह कार्यक्रम शैलजा जी की जानकारी में नहीं था अतः उन्हें आश्चर्य में डालते हुए, सबने उनके आने पर ताली बजा कर स्वागत किया। निःसंदेह इस स्वागत और अनेक दूर-पास से आए हिन्दी प्रेमियों को देख कर वे हैरान हुईं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉक्टर नरेंद्र ग्रोवर ने बहुत ही आदरपूर्वक सबका स्वागत किया। उन्होंने कहा कि शैलजा जी हमारी संस्था की आन, बान और शान हैं। इसके बाद टोरंटो की प्रतिष्ठित गायिका और लेखिका श्रीमती मानोशी चैटर्जी ने माँ सरस्वती की भावपूर्ण वंदना से कार्यक्रम का प्रारंभ किया।
इसके उपरांत श्री संदीप कुमार सिंह जी को संचालन हेतु निमंत्रित किया गया। संदीप जी ने अत्यंत संक्षिप्त रूप से शैलजा जी की साहित्यिक उपलब्धियों की चर्चा की तथा उन्हें हमारी हिंदी राइटर्स गिल्ड की मुखिया बताया।
उन्होंने ताल अकादमी से रिया व्यास और प्रिशा पाटील को आमंत्रित किया जिन्होंने एक अत्यंत सुंदर कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया, डॉ. शैलजा ने उनकी सराहना करते हुए सर्टिफ़िकेट दिए। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा का प्रयास रहता है कि नई पीढ़ी उनके कार्यक्रमों से अधिक से अधिक जुड़े। इस कार्यक्रम में ऑडियो-वीडियो आदि का कार्य भी नवीं कक्षा में पढ़ने वाले आयुष्मान कानूनगो ने सँभाला हुआ था।।
इसके पश्चात विद्याभूषण धर जी ने शैलजा जी द्वारा लिखित कविता “हाँ, मैं स्त्री हूँ” की सराहनीय प्रस्तुति की। कविता में नारी के विविध रूपों द्वारा उसके सामर्थ्य का वर्णन किया गया था। दर्शकों ने कविता की सरल भाषा, भाव और विद्या जी की प्रस्तुति को सराहा।
अगली प्रस्तुति में श्रीमती आशा बर्मन ने एक लेख–“आभासी मंच पर डॉक्टर शैलजा सक्सेना की साहित्यिक उपलब्धियाँ” और एक स्वरचित कविता का पाठ किया। लेख में उन्होंने शैलजा जी ने करोना काल में आभासी मंच द्वारा कई सांस्कृतिक व साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ने और अपनी संस्था के फ़ेसबुक कार्यक्रम प्रारंभ करने के बारे में बताया जिससे सारे विश्व ने उनकी प्रतिभा को और कैनेडा के अनेक लेखकों को पहचाना। उन्होंने शैलजा जी के सुंदर व्यवहार तथा सब को साथ ले चलने की प्रवृत्ति की सराहना की।
इसके बाद उन्होंने एक कविता का पाठ किया ‘हमारी शैलजा’। यह कविता टोरंटो की एक वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती अचला दीप्ति कुमार और आशा बर्मन जी ने २००४ में लिखी थी जब शैलजा के प्रथम काव्य-संग्रह ‘क्या तुमको भी ऐसा लगा?’ का विमोचन हुआ था। इस कविता ने दर्शकों का बहुत मनोरंजन किया, ‘छपी किताब शैलजा की यह बड़ी शुभ घड़ी आई है’ इन पंक्तियों के साथ आशा जी ने शैलजा जी को बधाई दी।
अगली प्रस्तुति में श्रीमती कृष्णा वर्मा ने लघु कथा के स्वरूप का विवरण देते हुए शैलजा जी द्वारा लिखित एक लघु कथा ‘अस्तित्व बोध’ को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया तथा इसकी अंतर्वस्तु की विवेचना की।
इसके पश्चात हिंदी राइटर्स गिल्ड के सह संस्थापक तथा साहित्य कुञ्ज के संपादक श्री सुमन कुमार घई जी ने “डॉ. शैलजा सक्सेना के साहित्य में नारी” विषय पर एक विवेचनापूर्ण लेख पढ़ा साथ ही शैलजा से अपनी पहली मुलाक़ात के बारे में बताया जिसमें वे शैलजा जी की कविता के नए स्वर से प्रभावित हुए थे। उन्होंने शैलजा की कविताओं के विस्तृत फलक की चर्चा करते हुए “आज की कविता”, “क्या भूली”, “तुम” कविताओं के संदर्भ दिए जहाँ अफ़गानिस्तान से लेकर रसोई तक को विषय बनाया गया था। कुछ कहानियों की चर्चा करते हुए, उनके उद्धरण देते हुए सुमन जी ने कहा कि ’शैलजा के स्त्री पात्र बहुत सजग और विभिन्न देशों की भिन्न परिस्थितियों को समझ कर कार्य करने वाली सशक्त महिलाएँ हैं जो प्रारंभ में भले कमज़ोर दिखती हों पर वे कमज़ोर हैं नहीं”। उन्होंने शैलजा जी के साहित्य पर ’साहित्य कुञ्ज’ में समीक्षा शृंखला शुरू करने की बात कही और दर्शकों को ई-पत्रिका पढ़ने के लिए आमंत्रित किया।
अगला वक्तव्य वरिष्ठ सदस्या श्रीमती इंदिरा वर्मा जी का था जिसमें उन्होंने शैलजा से संबंधित अपने संस्मरण सुनाए। इंदिरा जी ने शैलजा और उसके संपूर्ण परिवार को इस सम्मान के लिए बधाई दी और शैलजा के स्वभाव, उनके साहित्य एवं गुणों की प्रशंसा की। उनका वक्तव्य अत्यंत आत्मीयता से भरा था।
अगली प्रस्तुति में टोरोंटो के प्रतिष्ठित कवि आचार्य संदीप त्यागी जी ने सर्वप्रथम नवरात्रि के दिनों में और श्री गणेश शंकर विद्यार्थी जी की जन्मतिथि के दिन कार्यक्रम होने की बात करते हुए उन्हें प्रणाम किया। इसके पश्चात उन्होंने कुछ दोहे सुना कर, शैलजा जी के संबंध में अपनी संस्कृतनिष्ठ शब्दावली की एक कविता सुनाई। उन्होंने शैलजा की तुलना अपाला, गार्गी तथा विद्योत्तमा से की। इस पर शैलजा जी ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि यह कविता उनकी नहीं अपितु संदीप जी की प्रतिभा और काव्यकौशल का साक्षात प्रमाण है।
इसके बाद कई विशिष्ट अतिथियों ने शैलजा जी को उनके सम्मान के लिए वीडियो द्वारा और मंच से बधाई दी उनमें प्रमुख नाम हैं: वेदांता सोसायटी के स्वामी कृपामयानंदा जी, डॉक्टर अरुणा अजीतसीरिया, .के., फ़िल्म, डॉक्यूमेंट्री निर्माता श्री ललित जोशी, यू.के., ब्रैम्पटन के मेयर श्री पैट्रिक ब्राउन, रूबी सहोटा, योगेश ममगाईं, राकेश तिवारी, डॉ निर्मल जसवाल, मेजर नागरा, बैरिस्टर पंकज शर्मा, एकल कनाडा के नेशनल सेक्रेटरी सुभाष चंद जी तथा अंबिका शर्मा इत्यादि। प्रोविंशियल पार्लियामेंट ऑफ़ ओंटारियो के मेंबर श्री दीपक आनंद जी ने भी एक प्रमाण पत्र दिया।
इसके बाद डॉ. शैलजा सक्सेना द्वारा लिखित “चाह” कहानी का नाटकीय वाचन—मानोशी चटर्जी, पूनम जैन कासलीवाल, पीयूष श्रीवास्तव ने प्रस्तुत किया। इसमें पार्श्व ध्वनियों और संगीत संयोजन किया आयुष्मान कानूनगो ने। स्त्री की थकावट और सपनों के बीच से उपजी इस कहानी की यह नाटकीय प्रस्तुति अत्यंत प्रभावशाली रही।
हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के सह-संस्थापक श्री विजय विक्रांत जी ने अपने संदेश में ‘एक छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी’ प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने शैलजा के पैदा होने के समय अपने कैनेडा आने की बात कही और फिर भाग्य द्वारा मिला दिये जाने की बात बहुत नाटकीय तरह से रखी। यह कहानी भी अत्यंत रोचक थी।
इसके उपरांत संस्था की तकनीकी निदेशिका पूनम चंद्रा ’मनु’ जी ने शैलजा जी के कार्यों पर आधारित प्रभावशाली वृत्तचित्र प्रस्तुत किया। इसके बाद संस्था की ओर से डॉ. शैलजा सक्सेना को “हिन्दी गौरव सम्मान“ प्रदान किया गया जिसमें उन्हें एक ट्रॉफ़ी तथा प्रमाणपत्र दिया गया। इस सम्मान को देने के लिए संस्था के पूरे निदेशिक मंडल के साथ, कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोग तथा शैलजा जी के पति- विकास सक्सेना, बेटे- मानस और उमंग, बहू-जॉर्डन और भावी बहू स्नेहल भी मंच पर आमंत्रित किए गए। बहुत ही उत्साह और हर्ष के वातावरण में सभी ने यह सम्मान उन्हें दिया।
डॉ. शैलजा सक्सेना ने बहुत सुंदर शब्दों में सबको धन्यवाद करते हुए एक कविता पढ़ी, उन्होंने कहा;
“आज के कार्यक्रम से अभिभूत, चकित, प्रभावित और आह्लादित हूँ। सब के प्रेम और मेहनत को प्रणाम करती हूँ।..
अपनों से मुझको मिला, प्रेम, मान, सम्मान
पर इतना मिल जाएगा, था कहाँ मुझॆ अनुमान
था कहाँ मुझॆ अनुमान कि इतने मित्र मिलेंगे
मेरे चलने में गति, आँखों में आकाश भरेंगे।….
धन्यवाद कैसे करूँ, प्रेम भाव अनमोल
शब्दों में इनको कभी, कौन सका है तोल।
वंदन सबका मौन ही, करती दुई कर जोड़
(प्रभु), प्रेम पगा जीवन चले, सके न कोई तोड़॥“
पूनम चंद्र मनु जी ने शैलजा जी को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह विश्व हिन्दी सम्मान उनका नहीं अपितु पूरी संस्था का सम्मान है और इसी प्रसन्नता का उत्सव यह कार्यक्रम है। उन्होंने संस्था को १५ वर्षों से आगे बढ़ाने में शैलजा जी के धैर्य, बहुत तेज़ी से योजना बनाने, क्रियान्वित करने और सभी को उनकी योजनाओं पर कार्य करने सहमति देने की प्रशंसा की।
अंत में दीपक राजदान जी ने सभी अतिथियों को इस महत्वपूर्ण से जुड़ने के लिए धन्यवाद दिया और भोजन के लिए आमंत्रित किया। सभी ने आनंदपूर्ण कार्यक्रम के बाद सुस्वादु भोजन का आनंद लिया। इस प्रकार हिन्दी राइटर्स गिल्ड का एक और सुंदर कार्यक्रम संपन्न हुआ।
रिपोर्ट : आशा बर्मन
सुशील शर्मा की पाँच किताबें विमोचित
गाडरवारा। विगत रविवार चेतना साहित्यिक संस्था के तत्वाधान में स्थानीय पीजी कॉलेज स्थित आडीटोरियम में स्व. प्रतिभा श्रीवास्तव स्मृति साहित्य सम्मान में विमोचन समारोह नगरपालिका अध्यक्ष शिवांकात मिश्रा, पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक, वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाशचन्द्र डांगरे एवं चेतना के सरंक्षक मिनेन्द्र डागा के आतिथ्य में तथा वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोजित हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा परमाल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। मोहद के युवा साहित्यकार मुकेश माधव ने सस्वर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। मंचासीन अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान संस्था के सदस्यों द्वारा किया गया। अपने स्वागत भाषण में मिनेन्द्र डागा ने कहा कि ओशो की पावन धरा गाडरवारा क्षेत्र में साहित्य सृजन निरंतर हो रहा है, आज के दौर में यह सुखद अहसास कराता है। उन्होंने अपील की कि साहित्यकार गौ माता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए भी रचनाएँ लिखें।
श्रीमती प्रतिभा श्रीवास्तव की स्मृति में ‘प्रतिभा साहित्य सम्मान भोपाल’ की ख्यातिलब्ध युवा महिला साहित्यकार श्रीमती कीर्ति श्रीवास्तव को प्रदान किया गया। मंचासीन अतिथियों ने श्रीमती कीर्ति श्रीवास्तव को स्मृति चिह्न, शाल, श्रीफल, सम्मानपत्र एवं नगद राशि प्रदान की। इस अवसर पर कीर्ति श्रीवास्तव ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
तदोपरांत नगर के साहित्यकार सुशील शर्मा की पाँच कृतियाँ ‘दोहा दिवाकर’ दोहा संग्रह, ‘कमुदनी’ कुडंलियाँ संग्रह, ‘गोविन्द गीत’ दोहामय गीता, ‘नन्ही बूंदें’ क्षणिकाएँ, ‘शक्कर के दाने’ लघुकथा संग्रह का विमोचन करतल ध्वनि के बीच मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। चेतना संस्था द्वारा शाल, श्रीफल एवं सम्मानपत्र के साथ उनका सम्मान किया गया। विमोचति कृतियों की समीक्षा सतीश नाइक ने प्रस्तुत की। अपने लेखकीय उद्बोधन में सुशील शर्मा ने अपनी रचनाधर्मिता के बारे में विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि सृजन समयापेक्ष होना आवश्यक है, साहित्य समाज को जोड़ता है। उन्होंने कहा कि साहित्य जब समाज से जुड़ता है तब ही उसकी सार्थकता दृष्टित होती है। इस अवसर पर अपने उद्बोधन में नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष शिवाकांत मिश्रा ने कहा कि साहित्य राष्ट्र का निर्माण करता है, साहित्य व्यक्ति का विकास करता है। उन्होंने कहा कि हमें गर्व है कि हमारे क्षेत्र में निरंतर साहित्य सृजन हो रहा है। उन्होंने वायदा किया कि वे अपने क्षेत्र में साहित्य के लिए सुझाए गए हर कार्य को पूरा करेंगे। पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक ने आयोजन की प्रशंसा करते हुए कहा कि साहित्य समाज का पथ प्रदर्शक होता है। उन्होंने रामायण का उदाहरण देते हुए कहा कि रामायाण अविश्वास से विश्वास की ओर ले जाती है। माँ सीता के समक्ष जब हनुमान जी ने मुंदरी फेंकी तो सीता जी तुरंत ही जान गई थी कि यह अँगूठी रामजी की ही है, उनके मन में ज़रा सा भी संदेह पैदा नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि साहित्य में यह शक्ति होती है कि वह समाज की सोच का बदल सकता है। नरसिंपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाशचन्द्र डोगरे ने कहा कि साहित्य जितना सहज सरल होगा वह उतनी ही अपनी छाप छोड़ेगा। उन्होंने विमोचित किताबों के कुछ अंश पढ़कर सुनाए, उन्होंने कहा कि यह सुखद है कि इस क्षेत्र में साहित्य की अपनी परंपरा रही है जिसका निर्वहन आज के दौर में भी हो रहा है और नवोदित रचनाकार सामने आ रहे हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष कुशलेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि हमारी संस्कृति का क्षरण हो रहा है, हमारा नैतिक अवमूल्यन हो रहा है ऐसे में साहित्य सृजन का स्वरूप भी बदला जाना आवश्यक है। हम संक्रमणकाल से होकर गुज़र रहे हैं, हमें इसे बचाने के लिए वैचारिक क्रांति की आवश्यकता है जो साहित्य के माध्यम से हो सकती है।
विभिन्न संस्थाओं द्वारा साहित्यकार सुशील शर्मा का सम्मान किया गया। कार्यक्रम मेें ज़िले के साहित्यकार सुनील तन्हा, मुकेश माधव, बृजबिहारी कौरव, पोषराज अकेला, पुष्पेन्द्र सिंह का सम्मान स्मृति चिह्न देकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन विजय बेशर्म ने किया और आभार प्रदर्शन नगेन्द्र त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में ज़िले से आए श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही।
आगे पढ़ेंडॉ. मनीष कुमार मिश्रा संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित
के.एम. अग्रवाल महाविद्यालय, कल्याण पश्चिम में हिंदी विभाग प्रमुख के रूप में कार्यरत डॉ. मनीष कुमार मिश्र को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी की तरफ़ से वर्ष 2020-21 के विधा पुरस्कारों के अंतर्गत संत नामदेव पुरस्कार (स्वर्ण पदक) से सम्मानित किया गया। उन्हें यह पुरस्कार उनके काव्य संग्रह “इस बार तुम्हारे शहर में” के लिए प्रदान किया गया। डॉ. मनीष कुमार मिश्र विगत 13 वर्षों से के.एम. अग्रवाल महाविद्यालय में कार्यरत हैं। उन्होंने डॉ. रामजी तिवारी के निर्देशन में “कथाकार अमरकांत: संवेदना और शिल्प” इस विषय पर पीएच.डी. उपाधि प्राप्त की है। आप को मुंबई विद्यापीठ से एम.ए. हिंदी में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने हेतु वर्ष 2003 में श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है।
“इस बार तुम्हारे शहर में” के अलावा उनके दो काव्य संग्रह और प्रकाशित हैं “अक्टूबर उस साल” और “अमलतास के गालों पर”। आप का एक कहानी संग्रह “स्मृतियां” शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। “अमरकांत को पढ़ते हुए” शीर्षक से एक समीक्षात्मक ग्रंथ भी आपका प्रकाशित है। हिंदी और अंग्रेज़ी की लगभग 33 किताबों का कुशल संपादन आपके द्वारा हुआ है। देश-विदेश में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद एवं संगोष्ठी आयोजित करने के लिए भी आप जाने जाते हैं। आप ने देश भर में अब तक 12 से अधिक परिसंवाद आयोजित किए हैं, जिसके लिए अनेकों राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं द्वारा उन्हें अनुदान प्राप्त हुआ है।
अंतर विषयी शोध कार्यों में भी आपका महत्त्वपूर्ण योगदान है। आपने बहुत सारे शोध प्रकल्प विभिन्न सरकारी संस्थानों के लिए पूरे किए हैं। वर्ष 2014 से वर्ष 2016 तक आप यूजीसी रिसर्च अवॉर्डी के रूप में चुने गए और दो साल तक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में रहते हुए आपने अपना शोध कार्य पूरा किया। आईसीएसएसआर इंप्रेस के लिए आपने एक बड़ा महत्त्वपूर्ण काम मालेगांव के सिनेमा पर किया। मालेगांव के सिनेमा पर संभवतः यह देश का पहला कार्य रहा। हिंदी ब्लॉगिंग और वेब मीडिया के क्षेत्र में भी आपने अनेकों पुस्तकों का संपादन एवं राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परिसंवाद का आयोजन किया है।
डॉ. मनीष कुमार मिश्र अकादमिक जगत में लगातार अपनी सक्रियता बनाए रखते हैं। देश के कई राज्यों के लोक सेवा आयोग के लिए आप परीक्षा संबंधी कार्यों से भी जुड़े हुए हैं। मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालयों के अध्ययन मंडल के सदस्य के रूप में भी आप कार्यरत हैं। आप भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में वर्ष 2011 से एसोसिएट के रूप में जुड़े हुए हैं। यूजीसी केयर लिस्टेड “समीचीन” एवं “अनहद लोक” पत्रिका के संपादन मंडल से भी आप जुड़े हैं। आप अंग्रेज़ी साहित्य से एम.ए. और मानव संसाधन में एमबीए डिग्री भी प्राप्त कर चुके हैं। प्रबंधन के क्षेत्र में पीएच.डी. का शोध कार्य भी आप मुंबई विद्यापीठ से कर रहे हैं। आप हिंदी में शोध निदेशक भी हैं।
कोविड 19 के कठिन समय में आप ने महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा संपोषित “75 साल 75 व्याख्यान” नामक आनलाइन व्याख्यान शृंखला को पूरे एक साल तक सफलतापूर्वक चलाया। अपनी अकादमिक गतिविधियों से आप लगातार हिंदी साहित्य की सेवा में जुटे हैं।
आगे पढ़ेंईश कुमार गंगानिया का आत्मवृत्त: जाति की हदों से आगे की रचना
साहित्य के झरोखे से . . .
ईश कुमार गंगानिया के आत्मवृत्त ‘मैं और मेरा गिरेबां’ का लोकार्पण एवं चर्चा
26 फरवरी 2023 को समय संज्ञान फ़ॉउंडेशन द्वारा आयोजित ईश कुमार गंगानिया के आत्मवृत्त ‘मैं और मेरा गिरेबां’ का लोकार्पण व परिचर्चा का आयोजन गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता डॉ. रजनी दिसोदिया, डॉ. अनुज कुमार और श्री शंकर थे। आयोजन की अध्यक्षता प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह और विषय प्रस्तावना प्रो. राम चन्द्र ने की। मंच संचालन का दायित्व डॉ. राजेश कुमार ने निभाया। कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग को शिव नाथ शीलबोधि ने शिद्दत से अंजाम दिया। कर्मशील भारती ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार प्रकट किया।
आयोजन की एक ख़ूबी यह भी रही कि सभी वक्ताओं के व्याख्यान ईश कुमार गंगानिया के आत्मवृत्त ‘मैं और मेरा गिरेबां’ पर ही केंद्रित रहा, उनका अध्ययन और चिंतन टेक्स्ट आधारित और व्यापक था। वक्ताओं के साथ-साथ अध्यक्ष महोदय ने भी पुस्तक के एक-एक वाक्य और एक-एक शब्द के गुण-दोषों पर विस्तार से उल्लेख किया, अन्यथा लोकार्पण और पुस्तक परिचर्चा संबंधी आयोजनों को लेकर श्रोताओं को आशंका रहती है कि कहीं वक्ताओं के अलावा पुस्तक लेखक भी यह न कह दे कि मुझे पुस्तक पढ़ने का अवसर तो नहीं मिला, अभी आते-आते रास्ते में सरसरी तौर पर देखी है, यह एक कालजयी कृति है। आयोजन की सार्थकता इस बात में रही कि परिचर्चा ईश कुमार गंगानिया के आत्मवृत्त ‘मैं और मेरा गिरेबां’ पर केंद्रित भी रही। और दलित साहित्य (विशेष रूप से आत्मकथाओं) की परंपरा का पुनर्मूल्यांकन भी सम्भव हुआ। प्रो. राम चन्द्र ने विषय प्रस्तावना में आत्मकथाओं के इतिहास का अवलोकन (मराठी साहित्य से हिंदी साहित्य तक) करते हुए ईश कुमार गंगानिया की आत्मकथा ‘मैं और मेरा गिरेबां’ का विशेष परिचय दिया। उन्होंने ओम प्रकाश वाल्मीकि की प्रशंसा करते हुए कहा कि ‘जूठन’ जातीय उत्पीड़न और दलित समाज के अनुभवों का मार्मिक दस्तावेज़ है। प्रो. राम चन्द्र ने ‘जूठन’ से ‘मैं और मेरा गिरेबां’ तक हिंदी दलित आत्मकथाओं के इतिहास का सारगर्भित परिचय दिया।
अपने लेखकीय वक्तव्य में ईश कुमार गंगानिया ने कहा—‘मुझे न कुछ पा लेने की लालसा है, न कुछ खो जाने का डर। मगर हाँ, ज़िम्मेदारियों से पलायन मुझे कभी मंज़ूर नहीं है। इसलिए मौजूदा हालात में बिन माँगे जो मिल रहा है, उससे बेहद सुकून में हूँ।’ अर्थात् लेखक लोभ और भय से मुक्त होकर साहित्य में सामाजिक यथार्थ और व्यक्ति सत्य को चित्रित कर सकते हैं अन्यथा लोभ और भयग्रस्त लेखक ‘चारण’ भी होते हैं।
अपने रचना कर्म के संदर्भ में गंगानिया जी ने कहा, “मैं वो लिखता हूँ, जो मुझे सैटिस्फ़ैक्शन देता है। मुझे नहीं मालूम, इस प्रक्रिया में मैं साहित्य के अनुशासन व मानदंडों का हित कर रहा हूँ या अहित, यह तय करना विद्वानों का काम है, जो मैं नहीं हूँ और उस दौड़ में भी नहीं हूँ।” इस प्रकार गंगानिया जी ने न तो किसी साहित्य सेवा का दावा किया है और न ही अपने रचना कर्म को क्रांति का अग्रदूत कहा। उन्होंने यह दावा अवश्य किया कि उनके लेखन के केंद्र में ग्लोबल सिटीजन है—“मेरे लेखन के केंद्र में व्यक्ति है, समाज है, राष्ट्र है, पूरी मानवता है।” यह ग्लोबल सिटीजन धर्म और जाति की हदों में सीमित नहीं हैं। इसलिए लेखक को जाति का विक्टिम कार्ड खेलने की ज़रूरत नहीं है। यद्यपि लेखक ने यह भी स्वीकार किया, “बहुसंख्यकवाद के चलते धार्मिक आतंक है। बहुसंख्यक के अंदर अल्पसंख्यक का जातिवादी तांडव है, शोषण है, उत्पीड़न है।” जिसके विरुद्ध लड़ने का लेखक का तरीक़ा विक्टिम कार्ड से बिल्कुल अलग है। यह तरीक़ा डॉ. आंबेडकर और बराक ओबामा से प्रेरित है कि अपने संसाधनों का उपयोग कर ऊपर उठने को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है। अपने लेखकीय वक्तव्य के आरंभ में गंगानिया जी ने विनम्र भाव से कहा कि वे आज भी एक विद्यार्थी हैं, एक लर्नर हैं। उन्होंने स्वयं को एक्सपेरिमेंटल मोड़ पर रखा है। अपने वक्तव्य के अंत में भी उन्होंने विनम्र भाव से कहा कि उनके पास छिपाने को कुछ नहीं है। अपने जीवन के खिड़की दरवाज़े सब खोल दिए हैं, “Now the ball in the court of Experts to deal the way find appropriate।”
एक्सपर्ट्स के पाले में गेंद आने के बाद डॉ. रजनी दिसोदिया ने आत्मकथा के गुण-दोषों का विवेचन करते हुए कृति के पक्ष में भी कई बातें कहीं और इस पर कुछ प्रश्न भी उठाए। लेकिन उनके एक कथन की अनुगूँज आयोजन संपन्न होने के बाद भी निरंतर सुनाई देती है, “लेखक आत्मकथा लेखन में अतिरिक्त रूप से सतर्क है, चौकन्ना है।” डॉ. अनुज कुमार की असहमति ने डॉ. रजनी दिसोदिया के इस कथन की अनुगूँज को और गहन कर दिया। जबकि डॉ. रजनी दिसोदिया ने अपने वक्तव्य की शुरूआत लेखक की आत्मकथा संबंधी अवधारणा को समझने समझाने के क्रम से की थी कि लेखक ने यह आत्मकथा किस समझ के साथ लिखी है। गंगानिया जी कहते हैं कि उन्होंने अभी तक कोई ऐसा तीर नहीं मार लिया है, जिसके लिए आत्मकथा लिखी जाए उनके जीवन में स्टारडम जैसा कुछ नहीं है और न ही उनके जीवन में ऐसा कोई शोषण-उत्पीड़न रहा कि वे उसका बखान करने के लिए अपना आत्मवृत्त लिखें जैसा कि मराठी के दलित साहित्यकारों ने लिखा है। मराठी की तर्ज़ पर ही हिंदी के अधिकांश आत्मवृत्त लिखे गए हैं या लिखे जा रहे हैं। इन दोनों श्रेणियों के बाहर भी जनसाधारण के लिए ऐसा बहुत कुछ है, जिससे सीखा जा सकता है, उन्हीं अनुभवों के अन्वेषण के क्रम यह आत्मकथा लिखी गई है।
डॉ. रजनी दिसोदिया के कथन से असहमत होने के उपरांत डॉ. अनुज कुमार ने अपना वक्तव्य लेखक की उन टिप्पणियों पर केंद्रित कर दिया, जो गाँधी के विषय में थीं। दलित लेखन में गाँधी की नकारात्मक छवि को लेकर डॉ. अनुज कुमार ने खिन्नता प्रकट की कि दलित लेखक गाँधी और आर.एस.एस. की विचारधारा में अंतर नहीं करते। गाँधी को कोसने वाले नेता भी आर.एस.एस. की झंडाबरदारी में संकोच नहीं करते। गाँधी के प्रति लेखक की अनुदारता को छोड़ दिया जाए तो डॉ. अनुज कुमार ने इस आत्मकथा को आत्मीयता और प्रशंसा भाव से स्वीकार किया। उन्होंने इस आत्मकथा को अन्य दलित आत्मकथाओं से आगे की रचना मानते हुए कहा कि वे लेखक की जाति नहीं जानते। यदि पाठक को लेखक की जाति पता न हो तो इस आत्मकथा को पढ़ते हुए पता नहीं लगता कि यह दलित आत्मकथा है। अर्थात् यह आत्मकथा जाति की हदों से आगे की रचना है।
परिकथा के संपादक श्री शंकर ने विमर्शों के आईने में ‘मैं और मेरा गिरेबां’ का विवेचन किया। उन्होंने आत्मकथा और आत्मवृत्त में सूक्ष्म अंतर करते आत्मवृत्त की विशद व्याख्या की। दलित आत्मवृतों के यथार्थ को बिना किसी किन्तु परन्तु के स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “यदि लेखक को जातीय अपमान और उत्पीड़न के अनुभव नहीं हुए तो इसका अर्थ यह नहीं कि समाज में जाति की समस्या नहीं है, समाज जाति मुक्त हो गया है।” श्री शंकर जी की बात की पुष्टि प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने भी की। उन्होंने आत्मकथा से ही लेखक के प्रेम और विवाह का उदाहरण प्रस्तुत किया कि लेखक और उनकी होने वाली पत्नी दोनों ही दलित समाज से हैं, फिर भी जाति उनके विवाह में बाधा बनकर खड़ी हो जाती है। श्री शंकर ने साहित्य में सामाजिक यथार्थ पर बल देते हुए यह भी कहा कि यदि दलित लेखकों की रचनाओं में जाति की समस्या आती है तो यह उनका सच है और गंगानिया जी ने अपना सच लिखा है।
इस पर संचालक महोदय राजेश चौहान ने श्री शंकर की कहानी विषयक रुचि पर टिप्पणी की, “अब समझ आया कि शंकर जी को फूल-पत्तियों की कहानियाँ क्यों पसंद नहीं हैं, जब हम विसंगतियों और विद्रूपताओं से घिरे हों तो प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने की फ़ुर्सत कहाँ है!”
प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अध्यक्षीय वक्तव्य की शुरूआत बड़े रोचक ढंग से की। वह सतत विद्यार्थी की भूमिका में रहने वाले लेखक ईश कुमार गंगानिया को अपना विद्यार्थी कहने का लोभ संवरण नहीं कर पाए। बिस्मिल्लाह जी ने जामिया में अध्यापन किया और गंगानिया जी वहाँ कुछ समय तक विद्यार्थी रहे, गुरु शिष्य के सम्बन्ध के लिए इतना आधार पर्याप्त माना गया। इसी कारण बिस्मिल्लाह जी आत्मकथा में यह भी खोजते रहे कि लेखक ने जामिया के विषय में क्या लिखा है। “जामिया में किसी तरह का जाति भेद या धार्मिक भेदभाव नहीं है।” लेखक के इस कथन पर बिस्मिल्लाह जी मुग्ध थे। उन्होंने आत्मकथा का विवेचन विमर्शों के आईने में भी किया। गंगानिया जी के जाति विषयक अनुभव अन्य दलित लेखकों से अलग हैं, इसके दो प्रमुख कारण बिस्मिल्लाह जी ने बताए—एक तो यह कि उनके पिता आर्य समाजी थे और लेखक को शिक्षा का अवसर मिला। शिक्षित और समर्थ दलित जाति की समस्या से ऊपर उठ जाता है। दूसरा कारण भौगोलिक बताया कि लेखक दिल्ली से जुड़े सोनीपत इलाक़े से आते हैं, जहाँ जाति की समस्या ठीक वैसी नहीं है जैसी कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में है।
बिस्मिल्लाह जी ने भाषा व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियों को आत्मकथा की कमज़ोरी के रूप में रेखांकित किया, इस मामले में वह लेखक को कोई छूट नहीं देते। यद्यपि उन्होंने लेखक के अंदाज़े बयाँ को इस मायने में विशिष्ट बताया कि खंडन मंडन की शैली का उपयोग रणनीतिक कौशल के रूप में किया गया है। लेखक ने दूसरों की भर्त्सना करके यह भी जोड़ दिया है कि हो सकता है शायद वह स्वयं ही ग़लत हों और दूसरा ठीक हो। अर्थात् दूसरों को ग़लत सिद्ध करने के इरादे से उन्होंने किसी प्रसंग का उल्लेख नहीं किया है।
पुस्तक परिचर्चा का पटाक्षेप करते हुए राजेश चौहान ने कहा, लेखक ने शायद बे-इरादा लिखा है। बात शुरू हुई थी चौक्कनेपन (सतर्कतापूर्वक लेखन) से और तान टूटी है ग़ैर इरादतन लेखन पर। डॉ. रजनी दिसोदिया ने जिसे अतिरिक्त सतर्कता से लिखी गई आत्मकथा कहा, प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने उसे परिहास में ग़ैर-इरादतन लेखन कहा। कार्यक्रम के अंत में कर्मशील भारती ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया।
प्रस्तुति: डॉ. राजेश चौहान
आगे पढ़ेंवेद मित्र कृत बाल कविता-संग्रह ‘जनजातीय गौरव’ का हुआ लोकार्पण
विश्व पुस्तक मेला-2023, नई दिल्ली में ‘लेखक मंच’ पर सर्वभाषा ट्रस्ट व प्रकाशक के सौजन्य से डॉ. वेद मित्र शुक्ल कृत बाल कविता-संग्रह “जनजातीय गौरव” का लोकार्पण संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा से उपाध्यक्ष अनिल जोशी, एवं विशिष्ट अतिथि व वक्ता के तौर पर साहित्य अमृत के संपादक एवं पूर्व केंद्र निदेशक, आकाशवाणी, नई दिल्ली से लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, वरिष्ठ कवि व आलोचक डॉ. ओम निश्चल, वरिष्ठ ग़ज़लकार नरेश शान्डिल्य, प्रकाशन विभाग से जुड़े आजकल के संपादक राकेश रेणु, ग़ज़लकार रेणु हुसैन एवं सर्वभाषा ट्रस्ट के निदेशक केशव मोहन पाण्डेय द्वारा लोकार्पण किया गया।
ज्ञात हो कि इस पुस्तक के आवरण पृष्ठ का विमोचन फिजी में आयोजित 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन में साहित्य अकादेमी, मध्य प्रदेश के निदेशक विकास दवे और विद्या भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी द्वारा किया जा चुका है।
आगे पढ़ेंतेजपाल सिंह ‘तेज’: अभिनंदन समारोह
साहित्य के झरोखे से: एक रिपोर्ट
तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने सामाजिक सद्भावना से साहित्य सृजन किया: डॉ. महेंद्र सिंह बेनिवाल
दलित लेखक संघ ने दिनांक 19 फरवरी 2023 को हिंदी अकादमी से सन् 1995-96 में बाल गीतों की पुस्तक ‘खेल खेल में’ के लिए बाल साहित्य पुरस्कार तथा सन् 2006-07 के लिए में साहित्यकार सम्मान प्राप्त वयोवृद्ध गीत व ग़ज़लकार मान्यवर तेजपाल सिंह ‘तेज’ का अभिनंदन और सम्मान समारोह, वाइट हाउस, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली में आयोजित किया।
दलित लेखक संघ के सदस्यों ने दुशाला पहनाकर तथा अध्यक्ष महेंद्र सिंह बेनीवाल और महासचिव शीलबोधि ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में दिल्ली और दिल्ली के आसपास के अनेक साहित्यकार मौजूद रहे। तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने कार्यक्रम में अपने जीवन संघर्ष से कई दिलचस्प और प्रेरणादायक क़िस्से बयान किए। उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता और उससे जुड़ी प्रयोगात्मक शैली के उदाहरण प्रस्तुत करने के साथ-साथ शब्द और उसके प्रभाव के विषय में उपस्थित श्रोताओं को जानकारी दी। इस अवसर पर वे अपने सभी साथियों का स्मरण करना नहीं भूले।
दलित लेखक संघ के अध्यक्ष डॉ. महेन्द्र सिंह बेनीवाल का इस अवसर पर वक्तव्य विशेष रहा उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि समकालीन लेखन के समक्ष गुणवत्ता में कम ना होने की चुनौती को तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने स्वीकार किया और प्रतियोगी की स्वस्थ भावना से अपनी भाषा को माँझा जो सीखने लायक़ बात है। उन्होंने स्वच्छ सामाजिक सद्भावना से साहित्य सृजन किया। उनकी कविता-ग़ज़ल की भाषा और विषय इतने सरल और ग्राही हैं कि समझने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर नहीं देना पड़ता, पढ़ते ही प्रभावित कर जाती हैं। तेजपाल सिंह तेज ने अपना लेखन सभी सीमाओं से ऊपर उठकर किया है।
कार्यक्रम में नीम का थाना (राजस्थान) से आए, मुख्य वक्ता डॉ. देवी प्रसाद वर्मा (सह-प्राध्यापक) ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ का राजस्थानी पगड़ी पहनाकर सम्मान किया और अपने संबोधन में कहा कि तेजपाल सिंह ‘तेज’ का लेखन समसामयिक परिवेश का सशक्त दस्तावेज़ है। तेजपाल सिंह ‘तेज’ ऐसे साहित्यकार हैं, जो अपनी बात बहुत बेबाकी से रखते हैं। आधुनिक परिवेश को समझने के लिए इनके साहित्य का अनुशीलन करना चाहिए। इन्होंने सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, साहित्यिक ओर सांस्कृतिक परिवेश में आ रहे बदलाव को अपने लेखन का विषय बनाया है। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिस पर इन्होंने नहीं लिखा हो। यहाँ तक कि पति-पत्नी, पिता-पुत्र में साथ ही नयी पीढ़ी में आ रहे परिवर्तन को चित्रित किया है। इनकी ग़ज़लें आम आदमी की व्यथा को व्यक्त करने के साथ-साथ उनकी समस्याओं का सामना करने का हौसला देती हैं। तेजपाल सिंह ‘तेज’ की रचनाओं का मुख्य उद्देश्य जन-जागरण है, जिसमें वे पूरी तरह सफल हैं और यही साहित्य का उद्देश्य भी है।
ईश कुमार गंगानिया-जाने माने आलोचक, कथाकार व कवि ने भी तेजपाल सिंह ‘तेज’ से अपनी नज़दीकियों को ज़ाहिर करते हुए बताया कि बहुत से स्थापित लेखकों में इतना असुरक्षा का भाव है कि वे अपने साथियों व नवांकुरों के साथ खड़े होने में ख़ुद को असहज महसूस करते हैं। लेकिन तेजपाल सिंह ‘तेज’ इस मामले में अपवाद हैं। वे अपना ख़ुद का काम छोड़कर भी दूसरे लेखकों के सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं। उनकी यह आदत उन्हें अन्य लेखकों से अलग ही नहीं करती बल्कि ऐसी सहयोग की भावना समय की माँग भी है। मैं टी पी सिंह ‘तेज’ के इस जज़्बे को सलाम करता हूँ। स्थापित नव गीतकार जगदीश पंकज ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ के साहित्य में शब्द के कुशल प्रयोग पर अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा कि जब मैं तेजपाल सिंह ‘तेज’ की रचनाओं को पढ़ रहा था तब मुझे लगा कि उन्होंने एक-एक शब्द का मूल्य और उसकी शक्ति को समझा है और फिर अपनी रचनाओं में प्रयोग किया है। शब्द कभी-कभी ऐसी मार कर देता है जो बड़ी से बड़ी मिसाइल भी नहीं कर पाती।
दलित लेखक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक माननीय कर्मशील भारतीय-कवि व नाटककार ने भी तेजपाल सिंह ‘तेज’ के साथ बिताए क्षणों को याद करते हुए कहा कि 1990 के दशक में हमारे लेखकों के लेखन में गुणवत्ता वैसी नहीं थी, जैसी होनी चाहिए थी। इसलिए तेजपाल सिंह ‘तेज’ और हम लोगों ने मिलकर दलित लेखक संघ की स्थापना की, उसके बाद लेखन में काफ़ी सुधार देखा गया। आलोचना में दख़ल रखने वाले वेद प्रकाश ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ के काव्य में प्रयुक्त भाषा पर टिप्पणी करते हुए अपनी राय रखी कि उनकी भाषा पानीदार है, कलकल बहती हुई। शब्दों का उपयुक्त चयन, उनके वज़न की सटीक पहचान और शब्दों की लय का उपयुक्त ज्ञान। मैं चाहता हूँ कि नई पीढ़ी के लेखक उनसे ये बात सीखें। इस अवसर पर तेजपाल सिंह के सम्मान में कार्यक्रम के दूसरे भाग के रूप में काव्य गोष्ठि की अध्यक्षता संतराम आर्य ने की तथा काव्य पाठ कर्मशील भारती, जगदीश पंकज, ईश कुमार गंगानिया, महेंद्र सिंह बेनीवाल, सतीश खनकवाल, हरिराम मीणा, पूजा 'सादगी' आदि ने किया। सम्मान समारोह में पुष्पा विवेक, संतोष पटेल व भीष्मपाल सिंह व ऋत्विक भारतीय जैसे व्यक्तियों की उपस्थिति विशेष थी। कार्यक्रम में शोधार्थी और सामाजिक कार्यकर्ताओं की अच्छी ख़ासी उपस्थिति रही।
प्रस्तुति: शीलबोधी
आगे पढ़ेंअकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ— पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
नवाचार को अपनाएँ शोधार्थी—प्रो. देवराज
वर्तमान में भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर—प्रो. ऋषभदेव शर्मा
शोध-पद्धति का ज्ञान आवश्यक—प्रो. पूरन चंद टंडन
बिजनौर (उत्तर प्रदेश)। वर्धमान कॉलेज, बिजनौर (उत्तर प्रदेश) में “अकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ” विषय पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की शुरूआत माँ सरस्वती की वंदना और अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर इनॉग्रल सेशन (उद्घाटन सत्र) का शुभारंभ किया गया। इसके पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों को बालवृक्ष देकर उनका स्वागत किया गया। साथ ही महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफ़ेसर सी.एम. जैन ने संगोष्ठी में उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया। साथ ही इस महत्त्वपूर्ण विषय की गंभीरता पर बात की। उन्होंने कहा कि इस तरह की संगोष्ठियों में शोधार्थियों और प्राध्यापकों को बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए, जिससे उनके रिसर्च की क़ाबिलियत में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे। इसके पश्चात संगोष्ठी की कॉर्डिनेटर डॉ. अलका साहू ने संगोष्ठी में सहयोग के लिए विभिन्न संस्थाओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी के कन्वीनर डॉ. एस. के. शोन ने शोध पत्रिका में छपे शोधपत्रों और उनकी गुणवत्ता की बात की।
इसी क्रम में मुख्य अतिथि ने यूजीसी केयर लिस्टेड पत्रिका 'शोध-दिशा' के 484 पृष्ठीय दीर्घकाय विशेषांक का लोकार्पण किया। इस विशेषांक में इस संगोष्ठी के लिए प्राप्त 81 शोधपत्र प्रकाशित किए गए हैं।
इसके पश्चात डॉ. शशि प्रभा ने संगोष्ठी के बीज वक्तव्य के लिए वर्धा से पधारे प्रोफेसर देवराज, डीन, अनुवाद विद्यापीठ, महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा का परिचय-पाठ किया। तत्पश्चात् उन्होंने अपना गंभीर और सुलझा वक्तव्य देना शुरू किया। उन्होंने अपनी बात करते हुए कहा कि मैं भाषा का छोटा सा सिपाही हूँ। इसी क्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमारा देश वैश्विक प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक पहचान आदि की धारा में एक साथ छलाँग लगा रहा है। उन्होंने शोधार्थियों द्वारा उनके विषय चुनाव की पद्धति पर बात करते हुए नवाचार को अपनाने की सलाह दी।
इसी क्रम में डॉ. यशवेंद्र ढाका ने संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में पधारे प्रो. ऋषभदेव शर्मा (पूर्व अध्यक्ष, पोस्टग्रेजुएट ऐंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) का परिचय-पाठ किया। प्रो. ऋषभदेव ने शोध की वर्तमान दशा और दिशा पर बात करते हुए भूमंडलीकरण के प्रभाव का मूल्यांकन किया। साथ ही विभिन्न विमर्शों पर शोध की प्रक्रिया और उपयोगिता पर बात की। उन्होंने बताया कि वर्तमान में पूरा भारत अपनी कर्मठता और क्रियाशीलता से विश्वगुरु बनने की प्रक्रिया में लगा हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि शोधार्थियों को भी अपने शोध की गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए देश की प्रगति में अपना योगदान देना चाहिए।
इनॉग्रल सेशन के बाद विभिन्न तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ, जिसमें प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया।
संगोष्ठी का सफल मंच संचालन ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. अन्जू बंसल द्वारा किया गया।
दूसरे दिन संगोष्ठी के चतुर्थ टेक्निकल सेशन में चेयरपर्सन के रूप में अलवर से पधारे प्रोफ़ेसर राजीव जैन, डीन, सनराइज यूनिवर्सिटी, अलवर और को-चेयरपर्सन डॉ. राजीव जौहरी, डीन, फैकेल्टी ऑफ़ साइंस, वर्धमान कॉलेज, बिजनौर शामिल हुए। इस सेशन में विभिन्न शोधार्थियों ने ऑनलाइन तथा ऑफ़लाइन माध्यम से अपने शोधपत्रों का वाचन किया। कार्यक्रम की शुरूआत में अतिथि वक्ता के रूप में डॉ. दीप्ति माहेश्वरी, एक्स डीन, रवींद्रनाथ टैगोर, यूनिवर्सिटी, भोपाल ने रिसर्च मैथडोलॉजी: सेलेक्शन ऑफ़ टूल्स ऐंड टेक्निक्ल विषय पर अपना सारगर्भित वक्तव्य ऑनलाइन माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने विषय पर बात करते हुए विभिन्न विषयों और उनमें प्रयोग की जाने वाली विभीन्न शोध-प्रविधियों पर सोदाहरण अपनी बात रखी।
इसके पश्चात आईआईटी कानपुर के विद्वान प्रोफ़ेसर अरुण कुमार शर्मा, हेड एवं डीन, ह्यूमैनिटीज ऐंड सोशल साइंसेज ने हाउ टू राइट अ रिसर्च प्रपोजल पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने अपने विषय पर बोलते हुए कहा कि शोधार्थियों को सबसे पहले विषय का चुनाव किस प्रकार किया जाय, इस पर विचार करना चाहिए। तत्पश्चात् यह देखना चाहिए कि उस विषय पर अभी तक कितना कार्य हो चुका है। साथ ही आप उसमें नया क्या करने वाले हैं और आपकी पद्धति वैज्ञानिक है अथवा नहीं। साथ ही आपके शोध में समाज के नैतिक विषयों को उठाया जा रहा है अथवा नहीं। इन सभी संस्तरणों पर शोधार्थियों को क्रमवार विचार करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। प्रोफ़ेसर शर्मा के बारे में जब श्रोताओं को पता चला कि आप वर्धम कॉलेज के पूर्व छात्र रहे हैं, तो पूरा सभागार तालियों से गूँज उठा।
अगले सत्र में विभिन्न शोधार्थियों द्वारा शोधपत्रों का वाचन किया गया, जिनमें प्रवीण कुमार, अनमत खान आदि ने शोधप्रविधि पर अपनी बात रखी। इस टैक्निकल सत्र का मंच संचालन डॉ. मेघना अरोड़ा द्वारा किया गया।
इसके पश्चात षष्ठ टैक्निकल सत्र की शुरूआत हुई, जिसके चेयरपर्सन डॉ. जी.आर. गुप्ता, पूर्व प्राचार्य, वर्धमान कॉलेज और को-चेयरपर्सन डॉ. एस.के. गुप्ता, डीन, फैकेल्टी ऑफ़ कॉमर्स, वर्धमान कॉलेज रहे।
इस सत्र में अतिथि वक्ता के रूप में प्रोफ़ेसर एस.के. यादव, ऐनसीईआरटी, नई दिल्ली और डॉ. भावना जौहरी, दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट आगरा ने संगोष्ठी के विषय पर अपना महत्त्वपूर्ण वक्तव्य दिया। साथ ही शोधार्थियों व प्राध्यापकों ने भी अपने शोधपत्र पढ़े।
अंत में इस संगोष्ठी का समापन सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र की शुरूआत अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर की गई। इसके पश्चात संगोष्ठी के कन्वीनर डॉ. एस.के. शोन ने अतिथियों का स्वागत किया। कॉर्डिनेटर डॉ. अलका साहू ने पूरे दो दिनों तक चले इस आयोजन का रिपोर्ट प्रस्तुत किया।
तत्पश्चात् दिल्ली विश्वविद्यालय से विशेष अतिथि के रूप में पधारे प्रोफ़ेसर पूरन चंद टण्डन ने इस संगोष्ठी के विषय की महत्ता पर बात करते हुए कहा कि यह विषय प्रत्येक शोधार्थी व शैक्षिक कर्त्तव्य में लगे प्राध्यापकों के लिए आवश्यक है, जिनका सीधा सम्बन्ध विद्यार्थियों के साथ संप्रेषण व अध्यापन के माध्यम से होता है। आपने शोध-पद्धति से सम्बंधित ज्ञान के विस्तार को आवश्यक बताया।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली से पधारे प्रोफ़ेसर पंकज जैन ने साइंस विषयों में अपनाई जाने वाली शोधप्रविधि का उल्लेख करते हुए इस संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए आयोजन समिति को बधाई दी। आपने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से शिक्षण संस्थाओं में शोध-प्रक्रिया को बल मिलता है।
प्रो. देवराज में समाकलन वक्तव्य दिया और प्रोफ़ेसर ऋषभदेव शर्मा ने संगोष्ठों का मूल्यांकन करते हुए टिप्पणी की। दोनों ने ही इस बात पर ज़ोर दिया कि शोध-पद्धति के हर एक सोपान पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में अलग-अलग कार्यशालाएँ आयोजित की जानी चाहिए।
संगोष्ठी की ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. अन्जू बंसल द्वारा अतिथियों के माध्यम से सर्टिफ़िकेट वितरण का कार्य पूर्ण किया गया। इसी क्रम में डॉ. सी.एस. शुक्ला, पूर्व विभागाध्यक्ष, बीएड विभाग की दो पुस्तकों, क्रमशः भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षाविद व शिक्षा मनोविज्ञान का अतिथि विद्वानों द्वारा विमोचन किया गया।
अंत में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफ़ेसर सी.एम. जैन द्वारा सभी अतिथियों व संगोष्ठी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। समापन सत्र का सफल संचालन डॉ. यशवेंद्र ढाका द्वारा किया गया।
इस अवसर पर विभिन्न प्रदेशों और शहरों से पधारे प्रतिभागियों व शोधार्थियों के अलावा शोध के इच्छुक विद्यार्थीगण भी उपस्थित रहे। साथ ही महाविद्यालय के प्राध्यापकगणों में डॉ. रेणु शर्मा, डॉ. राजीव जौहरी, डॉ. सुनील अग्रवाल, डॉ. एस.के. जोशी, डॉ. ए.के.एस. राणा, डॉ. पूनम शर्मा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. टी.ऐन. सूर्या, डॉ. धर्मेंद्र कुमार, डॉ. पद्मश्री, डॉ. जे.के. विश्वकर्मा, डॉ. शशि प्रभा, डॉ. प्रीति खन्ना, डॉ. राजेश यादव, डॉ. प्रमोद कुमार, डॉ. नीरज कुमार, डॉ. मुकेश कुमार, डॉ. वैशाली पूनिया, डॉ. सुरभि सिंघल, डॉ. निदा खान, डॉ. राजीव अग्रवाल, डॉ. धर्मेंद्र यादव, डॉ. दिव्या जैन, मौ. साबिर, डॉ. पंकज भटनागर, श्री विकास, डॉ. सोनल शुक्ला, डॉ. अवनीश अरोड़ा, डॉ. विपिन देशवाल, डॉ. चारुदत्त आर्य, डॉ. दुर्गा जैन, डॉ. काकरान, श्री प्रशांत आहलूवालिया, डॉ. राहुल, डॉ. प्रतिभा, डॉ. अनामिका, डॉ. ओ.पी. सिंह आदि शामिल रहे।
प्रस्तुति—
डॉ. अंजु बंसल
वर्धमान कॉलेज, बिजनौर।
वर्धमान स्कूल में बाल रचनाकार पुरस्कृत
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा वर्धमान स्कूल में विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
विद्यालय की प्रबंधक डी पी सिंह ने कहा कि अभिनव बालमन के माध्यम से विद्यार्थियों में यह विश्वास आया है कि वह भी अपनी कल्पनाओं को पिरोकर कहानी, कविता जैसी विभिन्न विधाओं में लेखन कर सकते हैं।
प्रधानाचार्या पूजा वार्ष्णेय ने कहा कि विद्यार्थियो के लिए बाल साहित्य से जुड़ना बेहद आवश्यक है, जिसका विद्यालय के विद्यार्थियों अवसर प्राप्त हो रहा है।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि विद्यार्थियों की सहभागिता उनका होंसला बढ़ाएगी। हमें विश्वास है कि आगे भी विद्यार्थी एक से बढ़कर एक रचनायें रचेंगे जिससे उनके व्यक्तित्व में निखार आएगा।
इस अवसर पर मो। फारूक एवं पूजा सक्सेना का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंडी एस बाल मंदिर में बाल रचनाकार पुरस्कृत
अलीगढ़। डी एस बाल मंदिर में बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर प्रधानाचार्या रचना गुप्ता ने कहा कि अभिनव बालमन को पढ़कर बच्चे बहुत ख़ुश हैं। इससे उनमें लेखन के प्रति उत्साह बढ़ा है।
अभिनव बालमन के सम्पादक निश्चल ने कहा कि बाल पत्रिका बच्चों के लिए बेहद ज़रूरी है। बच्चों को कविता, कहानी, चित्रकला आदि से जोड़ने का मक़सद यही है कि वह नए विचारों को जन्म दें। अपने भावों को शब्दों में रचने का गुर सीखे।
आगे पढ़ेंहिन्दू कॉलेज में नाट्य मनीषी दशरथ ओझा का अवदान विषयक संगोष्ठी
हिंदी साहित्येतिहास में दशरथ ओझा अविस्मरणीय: अंकुर
नई दिल्ली। दशरथ ओझा उन अध्येताओं में थे जिन्होंने स्थायी महत्त्व का लेखन किया जिसे उनके निधन के चालीस वर्षों के बाद भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। प्रसिद्ध रंगकर्मी और आलोचक देवेंद्र राज अंकुर ने हिन्दू कॉलेज में कहा कि ओझा जी द्वारा लिखित ‘हिंदी नाटक: उद्भव और विकास’ के बाद ‘आज का हिंदी नाटक: प्रगति और प्रभाव’ ऐसे ग्रन्थ हैं जिन्हें पढ़कर हिंदी नाटक के इतिहास को सम्पूर्णता में जाना जा सकता है। ‘आज का हिंदी नाटक: प्रगति और प्रभाव’ को ‘अंधा युग’, ‘पहला राजा’ और ‘आठवाँ सर्ग’ के अध्ययन के लिए विशेष उल्लेखनीय बताया।
अंकुर ने ओझा जी के जगदीश चंद्र माथुर के साथ मिलकर लिखी गई किताब ‘प्राचीन भाषा नाटक’ को भी याद करते हुए बताया कि संस्कृत और प्राचीन भारतीय भाषाओं का ऐसा अद्भुत संग्रह हमारे सांस्कृतिक इतिहास की थाती है। उन्होंने ओझा जी द्वारा निर्मित ‘हिन्दी नाटक कोश’ के महत्त्व की भी चर्चा की।
जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक ‘चन्द्रगुप्त’ के अध्यापन के संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने बताया कि ऐसे बड़े और गंभीर नाटक एक-एक संवाद को वे कक्षा में पढ़ाते थे। नाटक जब पाठ से रंगमंच तक जाता है तब वह सम्पूर्ण होता है। नाटक की आंतरिक जटिलताएँ मंच पर ही व्यक्त हो पाती हैं पढ़ते हुए नहीं। उन्होंने हिंदी विद्यार्थियों की रंगमंच में घटती रुचि पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जो नाटक पाठ्यक्रम में होता है और यदि उसका मंचन हो तब विद्यार्थी उसे देखने आते हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि रंगमंच के बिना साहित्य का वृत्त सम्पूर्ण नहीं होता। अंकुर ने कहा कि रंगमंच ही ऐसा माध्यम है जो ग़लतियाँ सुधारने का अवसर हमेशा देता है।
इससे पहले दशरथ ओझा लिखित उपन्यास ‘एकता के अग्रदूत: शंकराचार्य’ तथा ‘आज का हिंदी नाटक: प्रगति और प्रभाव’ का लोकार्पण किया गया। दोनों पुस्तकों के नये संस्करण लगभग चालीस वर्षों के बाद आए हैं। हिंदी विभाग के आचार्य प्रो. रामेश्वर राय ने उपन्यास ‘एकता के अग्रदूत: शंकराचार्य’ को उल्लेखनीय कृति बताते हुए कहा कि गंभीर भाषा में अपने युग के महान आचार्य के जीवन पर लिखी गई ऐसी पुस्तक है जिसमें दर्शन और संस्कृति का सार है। पुस्तकों की प्रकाशक और राजपाल एंड सन्ज़ की निदेशक मीरा जौहरी ने कहा कि उनके लिए पुस्तक प्रकाशन व्यवसाय से अधिक सांस्कृतिक योगदान है। जौहरी ने ओझा जी के व्यक्तित्व को याद करते हुए उनके कुछ संस्मरण भी सुनाए। उन्होंने कहा कि यह आयोजन अनूठा है क्योंकि आत्मप्रदर्शन के इस दौर में ऐसे लेखक को याद किया जा रहा है अनुपस्थिति को भी लंबा समय व्यतीत हो गया है।
अभिरंग के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने कहा कि ओझा जी जैसे साहित्य निर्माताओं को याद करना अपनी पुरोधा पीढ़ी के अवदान का ऋण स्वीकार है। गोष्ठी का संयोजन दृष्टि शर्मा ने किया और आयुष मिश्र ने लेखक परिचय दिया। अंत में लोकेश ने आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी में जूही शर्मा, चंचल, रितिका शर्मा, अजय, वज्रांग और आरिश ने स्वागत और अभिनन्दन किया। हिन्दू कॉलेज के सुशीला देवी सभागार में इस अवसर पर हिंदी विभाग के आचार्य रचना सिंह, डॉ विमलेन्दु तीर्थंकर, डॉ अरविन्द कुमार सम्बल, डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह, डॉ नौशाद अली और डॉ रमेश कुमार राज सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित थे।
शिवम मिश्रा
अभिरंग, हिन्दू कॉलेज
दिल्ली
वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़। सासनी गेट स्थित वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताएँ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
प्रधानाचार्या पूनम भारद्वाज ने कहा कि हमारे विद्यालय के बच्चे अभिनव बालमन से जुड़कर बेहद आनंदित हैं। उनको इससे ये पता चला कि किस तरह वो भी कविता, कहानी, संस्मरण लिख सकते हैं। बच्चों ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया है।
इस अवसर पर अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि विद्यालय द्वारा हमेशा सकारात्मक सहयोग मिला है। बच्चों को चित्रकला एवं लेखन में रचनात्मक सृजन के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाता है जो आज के बदलते परिवेश में उनकी रचनात्मकता को बेहतर बनाता है।
इस अवसर पर उप प्रधानाचार्या शालिनी भारद्वाज का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंअभिनव बालमन द्वारा बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
सी बी गुप्ता सरस्वती विद्यापीठ में बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताएँ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
प्रधानाचार्य कुमुदेश कुमार ने कहा कि बच्चों ने अपनी रचनात्मकता को जिस तरह इन प्रतियोगिताओं के माध्यम से प्रदर्शित किया है वह प्रशंसनीय है। अपनी दैनिक दिनचर्या में कुछ समय कविता, कहानी, चित्रकला, संस्मरण आदि के लिए देना सीख देता है कि हम पाठ्यक्रम के साथ-साथ इन विधाओं को समय दें तो निश्चित ही हमारे व्यक्तित्व का विकास और भी बेहतर ढंग से होगा।
अभिनव बालमन के सम्पादक निश्चल ने कहा कि विगत 14 वर्षों से अलीगढ़ में अभिनव बालमन द्वारा हज़ारों बाल रचनाकारों को जोड़ते हुए विभिन्न विधाओं में रचनात्मक सृजन कराया गया है। बच्चों में कल्पनाओं की कमी नहीं, ज़रूरत हैं उन्हें ऐसा वातावरण देने की जिसमें वह अपने आस पास के अनुभवों को शब्दों एवं रंगों के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकें। और ये करने का प्रयास हमारे द्वारा निरंतर जारी है।
इस अवसर पर भारती, विमल एवं अनिल जैन का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
युवा उत्कर्ष संगोष्ठी संपन्न: ‘रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक’
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की दशम ऑनलाइन संगोष्ठी 21 जनवरी 2023 (शनिवार) संध्या 4:00 बजे से आयोजित की गई।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। विशेष अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी (दिल्ली) एवं मुख्य वक्ता साहित्यकार डॉ संगीता शर्मा मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ पूनम जायसवाल के द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय, स्वागत भाषण एवं संस्था का परिचय दिया। विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. रमा द्विवेदी ने कहा—रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिंदी अनुवाद करके उनका परिचय हिंदी साहित्य से करवाया और वे नाटक आज भी सर्वश्रेष्ठ नाटक माने जाते हैं। इसलिए उन्हें हिंदी का शेक्सपियर भी कहा जाता है।
वे स्त्रियों का बहुत सम्मान करते थे और उनके स्त्री पात्र बहुत मज़बूत और सशक्त हैं। अतः उन्होंने अपने अधिकांश उपन्यासों के नाम उस कथा की नायिका के नाम पर रखे, जैसे : लोई का ताना, रत्ना की बात, यशोधरा जीत गई, देवकी का बेटा, लखिमा की आँखें, भारती का सपूत। रांगेय राघव जी तमिल कुल के अद्भुत हिंदी साहित्यकार थे।
प्रथम सत्र “अनमोल एहसास” और “मन के रंग मित्रों के संग” दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ।
प्रथम सत्र के प्रथम भाग अनमोल अहसास के अंतर्गत “रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई।
मुख्य वक्ता डॉ. संगीता शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि रांघेय राघव 13 साल की उम्र में लिखना शुरू किया और 39 साल की अल्पायु में ही 150 कृतियों की रचना की थी। उनकी बेमिसाल लेखकीय प्रतिभा का ही कमाल है कि साहित्य की हर विधा पर अपनी लेखनी चलाई। वे कहते हैं कि ‘जीवन की विषमताओं को रटना मेरा ध्येय नहीं बल्कि उन्हें मिटाना ही मेरा उद्देश्य है’। उनके लेखन में नए और पुराने दोनों का सम्मिश्रण मिलता है। भारतीय समाज में यह विख्यात है कि वे दोनों हाथों से लिखते थे, वे तंत्र सिद्ध थे इसलिये उन्हें हिंदी साहित्य जगत का लिक्खाड़ लेखक कहा जाता है।
विशेष अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि रांघेय राघव मूलतः दक्षिण भारतीय होकर तथा शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी होते हुए भी रांघेय राघव को हिंदी से अगाध प्रेम था और इसी को उन्होंने अपने लेखन की भाषा बनाया। विषम आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद परिवार की साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाने एवं लेखन के प्रति उनके पूर्ण समर्पण के कारण उन्होंने स्वतंत्र रूप से लेखन को ही अपनी आजीविका का साधन बनाया। मनुष्य के जीवनगत यथार्थ, उसकी पीड़ा को उजागर करने तथा सामाजिक विषमता व वर्ग-संघर्ष से त्रस्त मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए वे साहित्य की विभिन्न विधाओं में जीवन के अंतिम क्षणों तक लिखते रहे। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर लिखने के जुनून में उन्होंने कभी अपने शरीर की चिंता नहीं की और उनका गिरता स्वास्थ्य ही अंततः अल्पायु में उनकी मत्यु का कारण बना।
तत्पश्चात मन के रंग मित्रों के संग में सुपरिचित साहित्यकार संतोष रजा जी ने अपना प्रेरक प्रसंग सुनाया। अपने प्रसंग में उन्होंने अपनी स्वयं की घटना का उल्लेख किया जिससे हम सब को गर्व महसूस हुआ कि ऐसे लोग भी हैं जो दूसरों के लिए दया, करुणा और प्रेम का भाव रखते हैं वो आज हमारे बीच हम सब के मित्र हैं।
अध्ययक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने सफल कार्यक्रम की शुभकामनाएँ दीं और विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि रांगेय राघव अपने समय के एक ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में प्रभूत लेखन किया। उन्होंने कई नूतन परंपराओं का सूत्रपात भी किया । लिखने का उनके भीतर जुनून था। वे उन विरले साहित्यकारों में शुमार हो गये जिनके विषय में कहा जाता है कि वे लेखनी पकड़ कर पैदा हुए । उनकी विलक्षण लेखन-प्रतिभा के अनेक उदाहरण हैं। प्रसिद्ध उपन्यास ‘कब तक पुकारूँ’ को उन्होंने एक महीने से कम समय में लिख डाला था । उन्होंने समाज, संस्कृति एवं मानवीय पहलुओं को लेखन की अंतर्वस्तु के ग्रहण करते हुए अपनी कहानियों और उपन्यासों में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण को बख़ूबी उकेरा। उनकी कहानी “गदल” बहुत लोकप्रिय हुई । मार्क्सवादी होते हुए भी वे जड़ मार्क्सवाद के पैरोकार कभी नहीं रहे।
दुर्भाग्यवश हिन्दी साहित्य ने उन्हें उनका उचित स्थान नहीं दिया। इस शताब्दी वर्ष में हम सभी का दायित्व है कि रांगेय राघव के साहित्यिक अवदान को यथोचित स्थान दिलायें। यही उस महान साहित्यकार के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
तत्पश्चात दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर काव्य पाठ करके कार्यक्रम को हर्षोल्लास से भर दिया। डॉ. ममता श्रीवास्तव सरुनाथ (दिल्ली), भावना पुरोहित, डॉ. सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, विनीता शर्मा, डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), सी पी दायमा, किरण सिंह, डॉ. रमा द्विवेदी, दीपा कृष्णदीप, डॉ. संगीता शर्मा, संजीव चौधरी (कोलकता) संतोष रजा, रमा गोस्वामी ने काव्य पाठ किया। अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया एवं सभी रचनाकारों को शानदार काव्यपाठ के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित कीं।
अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली), लावण्या इनागंती, कुंतल श्रीवास्तव (मुंबई) पूनम जायसवाल, डॉ. सुरभि दत्त, मोहिनी गुप्ता एवं डॉ. पी. के. जैन जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
संगोष्ठी का संचालन दीपा कृष्णदीप ने किया। किरण सिंह जी के आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।
—डॉ. रमा द्विवेदी
शाखा अध्यक्ष/ युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
आगे पढ़ेंहरियाणा के सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ को ‘विश्व हिंदी साहित्य रत्न सम्मान’
‘विश्व हिंदी दिवस’ के अवसर पर 10 जनवरी 10 बजकर 10 मिनट पर ‘विश्व हिंदी साहित्य रत्न सम्मान 2023’ से सम्मानित किया गया। देश भर के 75 साहित्यकारों के इस प्रोग्राम को ‘फॉरएवर स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ में दर्ज किया गया है। युवा लेखक दम्पति भिवानी के गाँव बड़वा के निवासी है और साहित्य जगत के साथ-साथ दैनिक सम्पादकीय लेखन में सक्रिय है।
हिसार/भिवानी/कोटा। संगम अकादमी एवं पब्लिकेशन कोटा के द्वारा 'विश्व हिंदी दिवस' के अवसर पर 10 जनवरी को 10 बजकर 10 मिनट पर हरियाणा के भिवानी ज़िले के सिवानी उपमंडल के गाँव बड़वा निवासी युवा लेखक सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ को देश के हिंदी भाषी 75 साहित्यकारों की सूची में शामिल किया गया। देश भर के 75 साहित्यकारों के इस प्रोग्राम को ‘फॉरएवर स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ में दर्ज किया गया है। संगम अकादमी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए देश में एक अग्रणी संस्था है।
सत्यवान 'सौरभ' की 4 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। यादें काव्य संग्रह, तितली है ख़ामोश दोहा संग्रह, क़ुदरत की पीर निबंध संग्रह और अंग्रेज़ी में एक पुस्तक इश्यूज एंड पैंस प्रमुख पुस्तकें है; अभी एक पुस्तक संवाद प्रकाशनाधीन है। इनके लिखे दोहे न केवल हर किसी को पसंद आते हैं बल्कि लोग इनके लेखन के पीछे के उद्देश्य को भी भली-भाँति समझ पाते हैं।
युवा लेखिका ‘प्रियंका सौरभ’ की, जो मौजूदा समय में महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं और अपनी क़लम से नारी जगत के लिए आवाज़ उठा रही हैं। कविता के अलावा वे प्रतिदिन अपने संपादकीय लेखों से विभिन्न भाषाओं में लेखन कार्य कर रही हैं। उनकी तीन पुस्तकें हाल ही में प्रकाशित हुई हैं। इनमें सामाजिक और राजनीतिक जीवन की कड़वी सच्चाई को व्यक्त करने वाले निबंध ‘दीमक लगे गुलाब’ और आधुनिक नारी की समस्याओं से रूबरू कराने वाली ‘निर्भयाएं’ शामिल हैं। इन दो किताबों के अलावा हर क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति पर आधारित अंग्रेज़ी में ‘द फीयरलेस’ किताब शामिल है।
सत्यवान ‘सौरभ’ एवं प्रियंका सौरभ हरियाणा के दैनिक संपादकीय लेखकों में है। इनका दोहा संग्रह ‘तितली है ख़ामोश’ देशभर में काफ़ी चर्चित रहा है। सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ की इस उपलब्धि पर सिवानी उपमंडल के साहित्यकारों, शिक्षकों, राजनीतिज्ञों और मित्रों ने शुभकामनाएँ देकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना की है।
आगे पढ़ेंटॉफ़ी, मिठाई और रंगों को लेकर रच दी कहानियाँ
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा सूतमिल चौराहे स्थित मिशन इंटरनेशनल स्कूल में ‘मिलकर बुनें कहानी’ का आयोजन किया गया।
अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने बच्चों से कविता और कहानी के रचने के बारे में बातचीत की। साथ ही कहानी कैसे बुनें इस का प्रयास बच्चों द्वारा किया गया।
अपने आसपास की चीज़ों में घटनाओं में कहानी कैसे तलाशें इस पर बातचीत हुई और बच्चों ने कहानियों के आइडिया दिए। किसी ने टॉफियों के संसार की कहानी का इंडिया दिया किसी ने मिठाइयों का, किसान का, चिड़ियों की दोस्ती का और किसी ने रंग की बातचीत को लेकर कहानी के आइडिया दिए। जिस पर सभी बच्चों ने बाद में कहानियों को बुनने की कोशिश की।
इस अवसर पर प्रबन्धक आशीष शर्मा ने कहा कि बच्चों ने कविता एवं कहानी लेखन में जिस तरह रुचि के साथ सहभागिता की है वह प्रशंसनीय है।
प्रधानाचार्या शीतल शर्मा ने कहा कि बच्चों ने बहुत ही अच्छी कविता और कहानियों की रचना की है। निश्चित ही इस तरह उनकी रचनात्मकता में निखार आएगा।
कार्यक्रम में अभिनव बालमन के लखन एवं विद्यालय के शिक्षक हनी कश्यप का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंरंगों की ख़ुशी से चहक उठे बाल चित्रकार
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा सासनी गेट स्थित वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन किया गया।
बच्चों ने अपनी अपनी रचनात्मकता को कोमल कल्पनाओं से जोड़ते हुए भिन्न-भिन्न चित्र बनाए।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्या पूनम भारद्वाज ने कहा कि नन्हे-मुन्ने प्यारे बच्चों को चित्रकला से जोड़कर उनके मन की बातों को जानना अभिनव प्रयोग है।
इस अवसर पर अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि ‘अभिनव बालमन’ बच्चों के बीच जाकर निरंतर यह प्रयास कर रही है कि बच्चे विभिन्न विधाओं में रचनात्मकता को सभी के सामने लायें। इसी उद्देश्य के साथ ‘मेरा मन मेरे रंग’ के माध्यम से बच्चों को चित्रकारी का अवसर प्रदान किया गया।
आयोजन में विद्यालय की उप प्रधानाचार्या शालिनी भारद्वाज सहित प्रीती गुप्ता, रेशू अग्रवाल, आँचल, आरती, नीता, सुषमा, रजनी, सपना, अंशिका उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंपहली बार रची ख़ुद की कहानी
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका 'अभिनव बालमन' द्वारा सी बी गुप्ता सरस्वती विद्यापीठ में ‘मिलकर बुनें कहानी’ का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने बच्चों को स्वयं की कहानी को रचने के गुर सिखाये। बच्चों से कहानी की बात हुई। जो कहानी अब तक पढ़ते थे वो स्वयं कि कैसे लिखें ये बच्चों के लिए उत्सुकता का विषय रहा। बात को समझते हुए बच्चों ने कहानी रचने का प्रयास किया। बच्चों ने एक से एक बढ़िया और नए विषय कहानी के बताए जिसपर उन्होंने कहानी रचने की कोशिश की।
इस तरह से बहुत से बच्चों ने पहली बार ख़ुद की कहानी रची।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य कुमुदेश ने कहा कि अभिनव बालमन द्वारा बच्चों के बीच आकर उन्हें रचनात्मक लेखन से जोड़ना प्रशंसनीय है। आजकल इस लेखन की महती आवश्यकता है।
कार्यक्रम में विमल वार्ष्णेय, नीतू अग्रवाल, अंकिता महेश्वरी, गीता शर्मा, अनुज जैन, डॉ. शकील का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंकांगड़ा के राजीव डोगरा को नाईजीरिया से मिली डॉक्टरेट की उपाधि
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।
कांगड़ा के युवा कवि और भाषा अध्यापक राजीव डोगरा को साहित्य, शिक्षा और मानवता में किए गए उनके द्वारा कार्यों के लिए नाइजीरिया की संस्था Good Samaritan Theological Seminary (Affiliated with TECHM INTL INC United States of America) ने डॉक्टरेट की उपाधि देकर सम्मानित किया। उनको यह उपाधि संस्था के चांसलर Dr. Ade Harold और Prof. H E Amb. Dr. Md. Shahin ने वर्चुअल प्रदान की। राजीव ने बांग्लादेश के कवि तनवीर शाहीन का विशेष रूप से धन्यवाद किया जिनके मार्गदर्शन और सहयोग से उनको इतनी बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई।
सम्मानित होने पर राजीव के माता-पिता हंसराज और सरोज कुमारी तथा शिमला के रोशन जसवाल (साहित्यकार और रिटायर्ड ज्वाइंट डायरेक्टर शिक्षा विभाग हिमाचल प्रदेश), रविंदर नरयाल (खण्ड स्त्रोत केंद्रीय समन्वयक खण्ड कांगड़ा के बी.आर.सी.), प्रिंसिपल नीरज गर्ग (गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल गाहलियां), धराधाम इंटरनेशनल संस्था के संस्थापक डॉ. सौरभ पांडे, कांगड़ा के साहित्यकार उदयवीर भारद्वाज, कुल्लू के साहित्यकार तथा संस्कृति के संरक्षक राज शर्मा, लिटल एंकर मॉडल एक्टरस अक्षिता जसवाल ने अत्यंत ख़ुशी व्यक्त की और ऐसे ही आगे बढ़ते रहने के लिए उत्साहित किया।
आगे पढ़ेंचौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानी की कुल सचिव प्रो. ऋतु सिंह ने वर्ष 2023 का कलेण्डर जारी किया
भिवानी।
16 नवम्बर 2022 को गुगनराम एजुकेशनल एण्ड सोशल वैलफ़ेयर सोसायटी रजिस्टर्ड द्वारा भिवानी से प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका बोहल शोध मंजुषा एवं गीना देवी शोध संस्थान द्वारा श्रीगंगानगर, राजस्थान से प्रकाशित गीना शोध संगम अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका का संयुक्त टेबल कैलेण्डर 2023 चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय भिवानी हरियाणा की कुल सचिव प्रो. ऋतु सिंह जी ने जारी करते हुए कहा कि वर्ष 2015 से भिवानी शहर से प्रकाशित बोहल शोध मंजूषा शोध के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही है। ऐसी पत्रिकाएँ हमें शोध के साथ-साथ साहित्य, शिक्षा, संस्कृति से भी हमें जोड़ती हैं। पत्रिका विशेष अवसरों पर अपने विशेषांक भी प्रकाशित करती रहती हैं। पत्रिका के किन्नर विशेषांक, नारी विशेषांक, रूपा जीवा, हिन्दी साहित्य को मुस्लिम साहित्यकारों का योगदान आदि शोध के क्षेत्र में प्रकाशित अंक मील का पत्थर हैं।
गीना देवी शोध संस्थान द्वारा श्रीगंगानगर से प्रकाशित गीना शोध संगम के प्रधान सम्पादक डॉ. नरेश सिहाग एडवोकेट ने बताया कि हमारी पत्रिका 2013 से नियमित प्रकाशित हो रही है। सितम्बर 2023 में प्रकाशित हिन्दी भाषा: साहित्य, शिक्षा के विशेष संदर्भ में, धर्म एवं संस्कृति नेपाल विशेषांक आदि प्रकाशित कर साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दे रही है। संस्थान समय-समय पर महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों, कार्यशालाओं का आयोजन करता रहता है। संस्थान प्रतिवर्ष साहित्य, शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान करने वाले विद्वानों को भी सम्मानित भी करता रहता है। इस अवसर पर डॉ. सुशीला आर्या, दिनेश सोनी, राजेन्द्र लांग्यान, सुरेन्द्र सिंह, विनोद शर्मा आदि उपस्थित थे।
प्रस्तुति: मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगे पढ़ेंहिन्दू कॉलेज में नाटक 'गज फुट इंच' का मंचन
सामूहिकता और सामुदायिकता के लिए रंगमंच आवश्यक: डॉ. पल्लव
नई दिल्ली।
“मन, अरमान, लालसाएँ, उम्र की तलब सबके पास होती हैं। मेरे पास भी हैं। पर किस क़ीमत पर? जब-जब कुछ कहना चाहा है, सबने मज़ाक उड़ाया है। क्यों? क्योंकि सब आगे बढ़ गए हैं और मैं उसी गद्दी पर हूँ जहाँ मेरे अनपढ़ बाप दादा बैठते थे। सच मानो जुगनी, आज के मीटर सेंटीमीटर के युग में मैं वही पुराना गज, फुट, इंच हूँ जिसे लोग कब का भूल चुके हैं।” टिल्लू के इस कथन के साथ नाटक 'गज, फुट, इंच' का समाहार हुआ और दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से अभिनेताओं का उत्साहवर्धन किया।
हिन्दू कॉलेज में हिंदी नाट्य संस्था ‘अभिरंग’ द्वारा नाटक प्रसिद्ध व्यंग्यकार के पी सक्सेना के नाटक का मंचन किया गया। ‘गज, फुट, इंच’ शीर्षक से मंचित इस नाटक में भारतीय समाज में धन कमाने की लोभी प्रवृत्ति के कारण व्यक्तित्व के दमन पर व्यंग्य किया गया है।
नाटक में दिव्यांश प्रताप सिंह द्वारा पोखरमल, दृष्टि शर्मा द्वारा गुल्लो, कृतिका द्वारा जुगनी, आयुष मिश्र द्वारा टिल्लू, मोहित द्वारा युवक, श्रुति नायक द्वारा माँ, भानु प्रताप सिंह द्वारा साईदास का अभिनय दर्शकों ने बेहद पसंद किया। दिव्यांश द्वारा पोखरमल की भूमिका में स्थानीय मुहावरों में संवाद अदायगी तथा टिल्लू की भूमिका में आयुष मिश्र के आंगिक अभिनय को दर्शकों ने लगातार तालियाँ बजाकर सराहना की।
नेपथ्य में लोकेश, जूही शर्मा, चंचल, रितिका शर्मा, अजय, वज्रांग और आरिश ने विभिन्न कार्यों द्वारा मंचन में सहयोग दिया। अभिरंग के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने अंत में अभिनेताओं का परिचय देते हुए कहा कि रंगमंच की गतिविधि युवाओं के व्यक्तित्व को बहुआयामी बनाती है और इससे उन्हें न केवल भावी जीवन में मदद मिलती है अपितु वे स्वयं भी बेहतर मनुष्य बन पाते हैं। उन्होंने अभिरंग के उद्देश्यों और संकल्पों के बारे में कहा कि नयी पीढ़ी में सामूहिकता और सामुदायिकता के लिए इस तरह की गतिविधियाँ सदैव उपयोगी रहेंगी।
नाटक के प्रारम्भ में रितिका शर्मा ने नाटक की विषय वस्तु तथा नाटककार का परिचय दिया। अभिरंग के छात्र संयोजक लोकेश ने आभार ज्ञापन किया। हिन्दू कॉलेज के सभागार में इस अवसर पर हिंदी विभाग के अध्यक्ष अभय रंजन, आचार्य रचना सिंह, संस्कृत विभाग के डॉ. विजय गर्ग, डॉ. जगमोहन, पुस्तकालयाध्यक्ष संजीव शर्मा सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंकृष्णा किंडर में हुआ ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा पला मोड़, आसना स्थित कृष्णा किंडर स्कूल में ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन किया गया।
बाल रचनाकारों ने देशभक्ति, प्रकृति, कार्टून आदि विविध रूपों में चित्रांकन सहित दिए गए चित्रों में अपने मन के रंग भरे।
इस अवसर पर विद्यालय की निदेशिका हेमलता तोमर ने कहा कि बाल रचनाकारों की चित्रकला उनकी प्रतिभाओं को अभिव्यक्त कर रही है।
प्रधानाचार्या गौरी तोमर ने कहा कि सभी बाल रचनाकारों ने विविध चित्रों के माध्यम से सकारात्मक संदेश प्रदान किया है।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या शर्मा ने कहा कि अभिनव बालमन द्वारा बच्चे की कविता, कहानी, चित्रकला सहित सभी अन्य लेखन विधाओं में उनकी सृजनात्मकता को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। इसी उद्देश्य से आज इस आयोजन में चित्रकला के माध्यम से बच्चों को एक मौक़ा दिया गया है।
इस अवसर पर आकर्षण, कविंद्र, कृष्णा, प्रिया, लिटिल, ख़ुशी, श्रुति, काजल, सोनाली, नीतू, चंचल, नंदनी एवं चारू उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंमहर्षि विद्या मंदिर, पला रोड में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की त्रैमासिक राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा पापा रोड स्थित महर्षि विद्या मंदिर में पत्रिका में दी गईं प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य देवेश कुमार ने कहा कि बाल रचनाकारों को जिस तरह अभिनव बालमन रचनात्मकता के लिए अवसर प्रदान कर रही है वह सराहनीय है।
इस अवसर पर विद्यालय की शिक्षिका निशा अरोरा की सक्रिय भागीदारी रही।
आगे पढ़ेंमैं केवल एक किरदार हूँ, क़लम में स्याही वो भरता है: अनुभूति की पंचम ‘संवाद शृंखला’ में बोले रमेश गुप्त नीरद
“काव्य लेखन एक सतत प्रक्रिया है। परिवार समाज और देश के वातावरण से विचार ग्रहण करता है कवि। अनुभूतियों और अनुभवों से उत्पन्न विचारों के मंथन से उत्पन्न बिंबों को शब्दों में उकेरना ही कविता की सृजनात्मक प्रक्रिया है। लोकगीत बचपन से ही दिल में रचे-बसे होने के कारण अधिकतर गीत ही लिखे। गेयता मेरी रचनाओं का सहज गुण है,” अनुभूति द्वारा आयोजित पंचम संवाद शृंखला में रमेश गुप्त नीरद ने अपने ये विचार व्यक्त किए।
पर-पीड़ा से आँखें भीग जाती हैं इसलिए गीतों में दर्द झलकता है। कवि नीरद के शब्दों में— पीड़ा के एहसासों को अंबर में लहराता हूँ, मैं बन मेघ तृषित धरती की प्यास बुझाता हूँ—आप नारी का सम्मान करते हैं इसलिए नारी की पीड़ा का चित्रण करते हैं अतः संयोग से अधिक वियोग शृंगार आपकी रचनाओं में मिलता है। समाज में व्याप्त बुराइयों को देखकर अंतस जलता है इसलिए कविताओं में आक्रोश उभरता है। आपके स्कूल के शिक्षक ने आप में अध्ययन की प्रवृत्ति विकसित की और 15 वर्ष की अल्पायु में ही आपने अग्रणी साहित्यकारों की किताबें पढ़ डालीं थी। छायावादी कवि प्रसाद का आपकी आरंभिक रचनाओं पर प्रभाव है। नीरज और बच्चन से भी आप प्रभावित थे। दक्षिण के हिंदीतर प्रदेश तमिलनाडु से सत्तर के दशक में नवगीत आंदोलन का झंडा आपने उठाया था।
उभरते लेखकों में अध्ययन की कमी देख आपके मन में पीड़ा होती है। पढ़ना ही काफ़ी नहीं है अपितु भाव, शब्दों बिंबों पर भी चिंतन करना चाहिए। चालीस वर्षों पहले लिखा गया अपना प्रसिद्ध गीत ‘जाने किसकी आँखों के सितारे झिलमिलाए’ सुनाकर आपने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अनुभूति के संस्थापक सदस्यों में से एक और अनुभूति के वर्तमान अध्यक्ष श्री रमेश जी सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाओं में आज भी सक्रिय हैं। नित नया अनुबंध, जब याद तुम्हें मेरी आए, कहीं कुछ छूट गया है, मेरे गीत तुम्हारे साथी, तमिल की लोक कथाएँ, चिंगारी के अंश और खुली खिड़कियाँ आपकी कृतियाँ हैं। ‘गुलदस्ता’ आपकी कविताओं का संपादित संकलन है और साहित्य पथ का अनथक पथिक आपके जीवन एवं साहित्य पर प्रकाशित पुस्तक है। धर्मपत्नी श्रीमती प्रमिला देवी एक सफल गृहिणी हैं। सुनीता, विवेक, विनीता अशोक, कोमल आपकी संतान हैं। परदादा और परनाना रमेश जी अपने परिवार के साथ ख़ुशहाल जीवन जी रहे हैं।
इस अवसर पर ‘संवेदना’ विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में रचनाएँ सुनाने वाले कवि थे ज्ञान जैन, गोविंद मूंदड़ा, सुधा त्रिवेदी, नीलम सारडा, मंजू रुस्तगी, नीलावती मेघानी, अरुणा मुनोथ, गौतम डी जैन और कुमारकांत ने अपनी रचनाएँ सुनाई।
उपाध्यक्ष विजय गोयल ने इस माह के विशिष्ट कवि श्री रमेश गुप्त नीरद का अंगवस्त्रम से सम्मान किया। डॉ. ज्ञान जैन ने प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। महासचिव शोभा चोरड़िया ने काव्य गोष्ठी का सफल संचालन किया। श्री उदय मेघानी ने सूत्रधार की भूमिका में संवाद के ज़रिए नीरद जी की सृजन यात्रा के पहलुओं से परिचय करवाया। कोला सरस्वती वैष्णव सीनियर विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती मीना मेहता एवं उप प्रधानाचार्या श्रीमती सीमा मदन ने अपनी गरिमामय उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
आगे पढ़ेंमानवीयता की संस्कृति के उत्थान में सभी देश एक साथ
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी को अंतरराष्ट्रीय फ़ोरम, सीरिया के एम्बेसेडर का सम्मान
उदयपुर/06 नवम्बर।
सीरिया, मध्य पूर्व के संस्थान इंटरनेशनल कल्चरल फ़ोरम ऑफ़ ह्यूमैनिटी एंड क्रिएटिविटी द्वारा जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के सहायक आचार्य डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी को वर्ष 2022 के अंतरराष्ट्रीय फ़ोरम के एम्बेसेडर का सम्मान प्रदान किया गया है। यह सम्मान उन्हें उनके द्वारा किए गए वैश्विक स्तर पर सभी समुदायों में सांस्कृतिक व शैक्षिक जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों हेतु इंटरनेशनल कल्चरल फ़ोरम ऑफ़ ह्यूमैनिटी एंड क्रिएटिविटी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अयमन कोदरा डेनियल द्वारा प्रदान किया गया।
कुलपति प्रो. कर्नल एस. एस. सारंगदेवोत ने पूरे विद्यापीठ की तरफ़ से डॉ. छतलानी को बधाई देते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर संस्कृति को शिक्षा द्वारा सँभालने की आवश्यकता है। ऐसे देश जिनमें जागरूकता और शिक्षा के अभाव के कारण मानवीयता दम तोड़ रही है, उनमें उचित व इंसानियत की शिक्षा देकर भारतीय संस्कृति के वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को जागृत किया जा सकता है। डॉ. चंद्रेश साहित्य, सोशल मीडिया व इन्टरनेट द्वारा इन कार्यों को डिजिटली संपन्न कर रहे हैं, जो कि निःसंदेह सराहनीय हैं।
विश्व भाषा अकादमी के राष्ट्रीय चेयरमैन मुकेश शर्मा ने बताया कि डॉ. छतलानी अथक परिश्रमी हैं और उन्होंने साहित्य में कई स्तरीय शोध कार्य व नवीन प्रयोग भी संपन्न किए हैं।
कृष्णकांत कुमावत
निजी सचिव
एस.एस.जे. कैंपस अल्मोड़ा में—एंटी करप्शन: विजिलेंस वीक
आज दिनांक 3/11/2022 को एस.एस.जे. कैंपस अल्मोड़ा में “एंटी करप्शन: विजिलेंस वीक” वीक के तहत 24 यू.के. बालिका वाहिनी की एसोसिएट ऐनसीसी ऑफ़िसर ले. (डॉ.) ममता पंत के निर्देशन में 24 यू.के. बालिका वाहिनी एस.एस.जे. परिसर के कैडेट्स द्वारा भ्रष्टाचार को रोकने में अपना सहयोग देने के लिए शपथ ली गई।
एसोसिएट ऐनसीसी ऑफ़िसर ले. (डॉ.) ममता पंत द्वारा बताया गया कि यह “एंटी करप्शन:विजिलेंस वीक” 31/10/2022 से 06/11/2022 तक मनाया जायेगा तथा ले। (डॉ.) ममता पंत ने एंटी करप्शन पर ऐनसीसी कैडेट्स की कक्षा ली। उनके द्वारा बताया गया कि एंटी करप्शन पर कैंपस में भी कार्यक्रम आयोजित कराए जाएँगे; जिनमें पेंटिग, कविता लेखन एवं भाषण प्रतियोगिता मुख्य हैं। इन प्रतियोगिताओं का परिणाम 7/11/2022 को घोषित कर प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त करने वाले कैडेट्स को पुरस्कृत किया जायेगा।
इस अवसर पर कैडेट्स ने भी अपने विचार व्यक्त किये। सीनियर अंडर ऑफ़िसर निहारिका कपिल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार का प्रभाव अत्यंत व्यापक है इसलिए हमें इससे मिलकर लड़ना होगा। अंडर ऑफ़िसर आँचल राज ने कहा कि भ्रष्टाचार आज हमारे समाज व देश के लिए सबसे अधिक घातक शत्रु है अतः इससे लड़ने के लिए हमें स्वयं से अपने कार्यों में ईमानदार होना पड़ेगा और लोगों को इसके लिए जागरूक करना होगा। इस अवसर पर सीएचऐम राजपाल सिंह, हवलदार दीपक सिंह, सीनियर अंडर ऑफ़िसर निहारिका कपिल, अंडर ऑफ़िसर आँचल राज सत्य प्रेमी, अंडर ऑफ़िसर ख़ुश्बू दोसाद, अंडर ऑफ़िसर रोशनी कपकोटी, सीनियर सार्जेण्ट लिपाक्षी बिष्ट एवं अन्य कैडेट्स उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंमिशन इंटरनेशनल में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका “अभिनव बालमन” द्वारा मिशन इंटरनेशनल स्कूल में पत्रिका में दी गईं प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रबंधक आशीष जी ने कहा कि अभिनव बालमन की ओर से किये जा रहे प्रयास बच्चों में रचनात्मक सृजन के लिए उत्सुकता जगा रहे हैं।
विद्यालय की प्रधानाचार्य शीतल शर्मा ने कहा कि बच्चों ने पत्रिका की सदस्यता लेने के साथ-साथ इसमें दी गई विभिन्न प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर भागीदारी की जिसका परिणाम है कि बच्चों ने आज पुरस्कार प्राप्त किये। मुझे विश्वास है आगे भी बच्चे अपने सक्रियता बनाए रखेंगे।
इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक हनी कश्यप की सक्रिय भागीदारी रही।
आगे पढ़ेंविभिन्न विद्यालयों के बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा मॉरिशस इंटरनेशनल स्कूल, साऊथ पॉइंट पब्लिक एवं आधार पब्लिक स्कूल में विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर मॉरीशस इंटरनेशनल स्कूल के प्रबंधक मुकेश सिंह, प्रधानाचार्य पायल सिंह, साउथ पॉइंट पब्लिक स्कूल की हेड मिस्ट्रेस नीरू अरोरा एवं आधार पब्लिक स्कूल के प्रबंधक नवनीत ने बाल रचनाकारों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए बधाई दी।
अभिनव बालमन की उपसंपादक संध्या ने कहा कि अभिनव बालमन के माध्यम से बच्चों में रचनात्मक लेखन एवं चित्रकला से जुड़ाव बढ़ रहे हैं जिससे उनकी रचनात्मकता सभी के बीच स्थान पा रही है।
आगे पढ़ेंएस.एस.जे. कैंपस अल्मोड़ा में सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की जयंती
दिनांक 31/10/2022 को एस.एस.जे. कैंपस अल्मोड़ा में सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की जयंती “एकता दिवस” के रूप में मनाई गई ।
इस अवसर पर 24 यू.के. बालिका वाहिनी की एसोसिएट एन.सी.सी. ऑफ़िसर ले. (डॉ.) ममता पंत के निर्देशन में 24 यू.के. बालिका वाहिनी के कैडेट्स द्वारा एस.एस.जे. कैंपस में मार्च पास्ट का आयोजन किया गया। साथ ही अपने देश की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए कैडेट्स द्वारा प्रतिज्ञा भी ली गई। ले . (डॉ.) ममता पंत द्वारा कैडेट्स को संबोधित करते हुए कहा गया कि सरदार जी ने अपने विचारों के माध्यम से देश में क्रांति की एक अलग ही अलख जगाई थी। सरदार जी का मानना था कि “यह हर एक नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिख या जाट है। उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी हैं।”
ले. (डॉ.) ममता पंत ने कहा कि हमें सरदार जी के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। इस अवसर पर सीनियर अंडर ऑफ़िसर निहारिका कपिल, अंडर ऑफ़िसर आँचल राज सत्य प्रेमी, अंडर ऑफ़िसर रोशनी कपकोटी, सीनियर सार्जेण्ट लिपाक्षी बिष्ट, सार्जेण्ट संजना बिष्ट आदि मौजूद रहे।
आगे पढ़ेंअखिल भारतीय साहित्य परिषद्, बहराइच द्वारा अन्नकूट पर्व पर काव्य-गोष्ठी एवं पुस्तक-परिचर्चा का आयोजन
बहराइच (उ.प्र.) शहर के हमजापुरा स्थित राम जानकी मंदिर में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की बहराइच शाखा की ओर से 27 अक्टूबर 2022 को एक सरस काव्य गोष्ठी एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसका निर्देशन परिषद् के प्रांतीय उपाध्यक्ष गुलाब चन्द्र जायसवाल एवं ज़िलाध्यक्ष शिव कुमार सिंह रैकवार द्वारा किया गया। गोष्ठी में अध्यक्ष के रूप में किसान महाविद्यालय के हिंदी विभाग से जुड़े रहे वरिष्ठ साहित्यकार राधेश्याम पाण्डेय, मुख्य अतिथि के तौर पर साहित्य भूषण राम करन मिश्र सैलानी तथा विशिष्ठ अतिथि के रूप में डॉ. वेद मित्र शुक्ल एवं गुरु प्रसाद सिंह जायसवाल उपस्थित रहे। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय में आंग्ल भाषा के प्रोफेसर डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक, “एक समंदर गहरा भीतर” की प्रति अखिल भारतीय साहित्य परिषद् को भेंट की। परिषद् के महामंत्री रमेश चंद्र तिवारी ने भी अपनी पुस्तक, “दी राईज़ ऑफ़ नमो एन्ड न्यू इंडिया” की एक प्रति सौंपी। इस दौरान मुख्य वक्ता के रूप में असम से आये ग़ज़लकार व समालोचक डॉ. दिनेश त्रिपाठी शम्स ने डॉ. शुक्ल के कविता-संग्रह ‘एक समंदर गहरा भीतर’ पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कविता-संग्रह हिंदी सॉनेटों का संग्रह है। वेद मित्र ने यह सॉनेट संग्रह रचकर हिंदी कविता को और विस्तार दिया है।
काव्य पाठ की शुरूआत अयोध्या प्रसाद नवीन ने वाणी वंदना पढ़कर की। तदुपरांत कवि विनोद कुमार पांडेय ने एक व्यंग्य पढ़ा—राम काल्पनिक बने थे अब गीता भई जिहाद। अमर सिंह विसेन ने पढ़ा—राह में यूँ अकेला नहीं छोड़ना, मैं सुदामापुरी हूँ, और तुम द्वारिका। वीरेश पांडेय ने पढ़ा—तब एक शारदा वीणा ले अवतार जगत में लेती है, रसहीन विकर्षण भरे जगत को ध्वनि कंठा स्वर देती है। कवि आशुतोष ने पढ़ा—अंतस का तम मिट न सका तो दीप जलाने से क्या होगा, मिटी न दूरी जो हृदयों की हृदय लगाने से क्या होगा। डॉ. दिनेश त्रिपाठी शम्स ने पढ़ा—भाषणों में ज़िक्र मरहम का सदा, लेकिन हमारे देश का नेता हमें बस घाव ही देगा। कार्यक्रम में डॉ. राधे श्याम पांडेय, कवि गुलाब जायसवाल, रमेश चन्द्र तिवारी, वेद मित्र शुक्ल व विमलेश विमल ने भावात्मक रचनाओं से लोगों के हृदय छू लिए।
गोष्ठी एवं परिचर्चा के बाद संरक्षक विक्रम जायसवाल की ओर से अन्नकूट पर्व पर भंडारे का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में पूर्व सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा तथा सांसद अक्षयवरलाल गोंड भी बतौर अतिथि मौजूद रहे। साथ ही, पं. राकेश कुमार दुबे, कैलाश नाथ डालमिया, आयुष जायसवाल, बजरंग कुमार मिश्र, प्रेम कुमार जालान, राम गोपाल चौधरी आदि की भी सहभागिता रही।
आगे पढ़ेंशिप्रस स्कूल में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा आज आगरा रोड स्थित शिप्रस स्कूल में विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्या लीना शर्मा ने कहा कि रचनात्मक रूप से बच्चों की विभिन्न विधाओं में अभिव्यक्ति देखकर प्रसन्नता होती है। इस तरह के अवसर बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाते हैं।
विद्यालय के प्रबन्धक सौरभ राज ने कहा कि विद्यालय में विभिन्न गतिविधियाँ निरंतर आयोजित होती हैं। इसी के अंतर्गत अभिनव बालमन की प्रतियोगिताओं में बच्चे बड़े ही मनोभाव से प्रतिभाग करते हैं फलस्वरूप उनकी रचनात्मकता उभरती है।
अभिनव बालमन की उपसंपादक संध्या ने कहा कि अभिनव बालमन का यह लक्ष्य है कि हर बच्चे तक बाल साहित्य पहुँचे।
हमें बच्चों को बाल साहित्य से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए ताकि उनको उनके मानसिक विकास में सहायता मिले। इसी सन्दर्भ में अभिनव बालमन में प्रकाशित रंग भरो, कहानी लेखन, कविता लेखन, संस्मरण लेखन, पत्र लेखन, कार्टून कोना आदि विभिन्न प्रतियोगिताएँ हैं जिसमें प्रतिभाग कर बच्चे खेल खेल में साहित्य से जुड़ते हैं।
इस अवसर पर विद्यालय की शिक्षिका शुभ्रा एवं शिवानी का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंअभिनव बालमन के विमोचन की दीपावली मनाई गई
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ चौदहवें वर्ष के प्रथम अंक का दीपावली के अवसर पर विमोचन हुआ। वर्ष 2009 से निरंतर प्रकाशित पत्रिका का यह 48वाँ अंक है जिसमें बाल रचनाकारों की स्वरचित कविता, कहानी, संस्मरण, चित्रकला, पत्र आदि विविध विधाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती हैं।
इस बार के अंक के आवरण पृष्ठ पर 6 साल के वत्सल का कृष्ण रूप में आकर्षक छायाचित्र है।
विमोचन के अवसर पर प्रबंध संपादक विनोद कुमार, प्रकाशक सरोज शर्मा, संपादक निश्चल, उप संपादक पल्लव एवं संध्या सहित बाल रचनाकार वरेण्य, वत्सल उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंडॉ. शेषन को श्रद्धांजलि
खतौली, 22 अक्टूबर, 2022
आज 'साहित्य मंथन' के तत्वावधान में तमिल भाषी विद्वान और भारतीय हिंदी आंदोलन के समर्थ कार्यकर्ता डॉ. एम. शेषन के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक आयोजन संपन्न हुआ। इसमें हैदराबाद से पधारे प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने विस्तार से डॉ. एम. शेषन का परिचय दिया और उनकी हिंदी सेवा के साथ ही तमिल और हिंदी के बारे में जो तुलनात्मक अध्ययन हुआ है, उसके महत्त्वपूर्ण बिंदुओं की ओर सबका ध्यान खींचा। प्रो. ऋषभ ने इस बात पर बहुत बल दिया कि डॉ. एम. शेषन ने हिंदी साहित्य में रीतिकाल और तमिल साहित्य की रीति परंपरा के बीच सम्बन्ध की जो अवधारणा प्रस्तुत की थी, उस पर गंभीर शोध किए जाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर डॉ. एम. शेषन के खतौली पधारने की घटना का स्मरण दिलाते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लेखक जसवीर राणा ने यह प्रतिपादित किया कि जब शेषन जी हिंदी सेवी टी.एस. राजु शर्मा और प्रो. ऐन. सुंदरम के साथ खतौली पधारे थे, तो उनकी स्पष्टवादिता तथा सहज व्यवहार ने सभी को प्रभावित किया था। उस समय उन्होंने उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच सम्बन्ध को हिंदी भाषा तथा साहित्य के सहारे अधिक मज़बूत बनाने की आवश्यकता पर बल दिया था, इसीलिए शेषन जी उत्तरापथ और दक्षिणापथ के मिलन को महत्त्व देने वाले राष्ट्रभक्त थे। जसवीर राणा ने उनके निधन को पूरे हिंदी आंदोलन और भारतीय भाषाओं की क्षति माना।
वरिष्ठ कवि-समीक्षक प्रो. देवराज ने इस अवसर पर डॉ. एम. शेषन के साथ अपने बरसों के सम्बन्ध को याद किया और यह कहा कि भारतीय साहित्य और हिंदी भाषा को मज़बूत बनाने के लिए तथा सभी भारतीय भाषाओं की समृद्धि के लिए डॉ. एम. शेषन ने जो तुलनात्मक अध्ययन किया तथा अपने लेखन के माध्यम से हिंदी और तमिल के पाठकों को इन दोनों भाषाओं के साहित्य का जो ज्ञान दिया, वह कभी नहीं भुलाया जा सकता।
साहित्य मंथन के इस आयोजन में यह भी याद किया गया कि डॉ. एम. शेषन को हिंदी भाषा के प्रति रुचि तो अपने प्रारंभिक दिनों से ही हो गई थी, लेकिन उसका गहरा ज्ञान उन्होंने आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. शिव प्रसाद सिंह के संपर्क में आकर अर्जित किया। आचार्य द्विवेदी ने अपने इस महान शिष्य को संस्कृति की ज़मीन से जोड़ने का जो कार्य किया था और भारतीयता को समझने की जो योग्यता दी थी, उसका शेषन जी ने सफल प्रयोग भारत की राष्ट्रीय चेतना को समृद्ध बनाने में किया। श्रद्धांजलि सभा के अंत में 2 मिनट का मौन रखकर शेषन जी की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की गई।
प्रेषक-
जसवीर राणा
अध्यक्ष, साहित्य मंथन, खतौली।
अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन–2022
‘मानवीय स्तर पर अपील करने वाली रचना स्मृति में बनी रहती है।”–भगीरथ
“जो रचना विचार के स्तर पर, बुद्धि के स्तर पर और मानवीय स्तर पर ज़्यादा अपील करती है वही रचना आपकी स्मृति में हमेशा बनी रहती है। श्री सुकेश साहनी ने अलग-अलग विषय पर अलग-अलग शिल्प में लघुकथाएँ लिखी हैं। जो रचनाकार प्रयोगात्मक लघुकथाएँ लिखते हैं वे अलग-अलग शिल्प में लिखते हैं। कमल चोपड़ा की लघुकथाओं का शिल्प क़रीब-क़रीब एक जैसा रहता है। रचनाकार को यह देखना है कि उसकी रचना पाठक के मन में, बुद्धि में प्रवेश कर रही है या नहीं। किसी भी लघुकथाकार की सभी लघुकथाएँ उत्कृष्ट नहीं हो सकती हैं। कुछ लघुकथाएँ उत्कृष्ट होगी, कुछ निम्न स्तर की होगी और कुछ अच्छी होगी।” यह विचार श्री भगीरथ ने!लघुकथा विधा में सौन्दर्य दृष्टि एवं भाषा शिल्प विषय पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रस्तुत किए।
उन्होंने कहा कि “कल्पना का सौन्दर्य देखना हो तो असगर वजाहत की शाह आलम की रूहें की लघुकथाएँ पढ़नी होंगी। किसी भी विधा में शिल्प के अलावा भाषा भी एक प्रमुख तत्व है। लघुकथाकार संध्या तिवारी की भाषा मुग्ध करती है।”
उल्लेखनीय है कि प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी क्षितिज संस्था ने एक दिवसीय अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन इंदौर शहर में किया है। इस महत्त्वपूर्ण आयोजन की अध्यक्षता दूरदर्शन के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक श्री राजशेखर व्यास के द्वारा की गई तथा साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकास दवे मुख्य अतिथि रहे। इस आयोजन में लघुकथा विधा पर उसकी भाषा पर उसके शिल्प पर उसकी अभिव्यक्ति पर निरंतर विभिन्न सत्रों के भीतर चर्चा की गई और परिचर्चा भी रखी गई। 23 लघुकथाओं पर श्री नंदकिशोर बर्वे के एवं श्री सतीश श्रोती के निर्देशन में ‘पथिक’ ग्रुप के द्वारा सफल मंचन का कार्यक्रम किया गया। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन में 21 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया जिनमें क्षितिज पत्रिका का ‘लघुकथा समालोचना अंक’ भी शामिल रहा। आयोजन में 15 लघुकथाकारों को, साहित्यकारों, को पत्रकारों को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। लघुकथा में स्त्री लेखन पर एक विशेष सत्र आयोजन में समाहित किया गया। समाज के विभिन्न वर्गों के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति इस आयोजन में सम्मानित किए गए।
सर्वश्री सूर्यकांत नागर, बलराम अग्रवाल, भागीरथ परिहार, जितेंद्र जीतू, पवन शर्मा, शील कौशिक, डॉक्टर मुक्ता, अंतरा करवड़े, कांता राय, वसुधा गाडगिल, ज्योति जैन, गरिमा दुबे पुरुषोत्तम दुबे, घनश्याम मैथिल अमृत, गोकुल सोनी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार अभिव्यक्त किए।
श्री भागीरथ को लघुकथा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। जितेंद्र जीतू को लघुकथा समालोचना सम्मान से, पवन शर्मा को लघुकथा समग्र सम्मान से एवं रश्मि चौधरी को लघुकथा नवलेखन सम्मान से सम्मानित किया गया। श्री विकास दवे को साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। राजशेखर व्यास को राष्ट्र गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। सर्वश्री बृजेश कानूनगो, प्रदीप नवीन, दिलीप जैन, चंद्रा सायता, चक्रपाणि दत्त मिश्र को साहित्य रत्न सम्मान दिए गए। इनके अतिरिक्त श्री कीर्ति राणा को साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान, अनुराग पनवेल को मानव सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रदीप नवीन को गीत गुंजन सम्मान से सम्मानित किया गया। डॉक्टर मुक्ता एवं शील कौशिक को क्षितिज एवं चरणसिंह अमी फ़ॉउंडेशन द्वारा कथा सम्मान एवं लघुकथा सम्मान से सम्मानित किया गया।
लघुकथा पाठ के सत्र में श्री संतोष सुपेकर की अध्यक्षता और दिलीप जैन के विशेष आतिथ्य में लघुकथाकारों के द्वारा लघुकथा पाठ किया गया। इस सत्र का संचालन विनीता शर्मा सुरेश रायकवार के द्वारा किया गया। प्रारंभिक सत्र का संचालन अंतरा करवड़े एवं ज्योति जैन ने किया तथा आभार सुरेश रायकवार के द्वारा माना गया। सीमा व्यास के द्वारा लघुकथा मंचन के सत्र का संचालन किया गया प्रतिभागियों को मोमेंटो और सम्मान पत्र से सम्मानित भी किया गया। समस्त सत्रों का अंत में संस्था के सचिव दीपक गिरकर के द्वारा आभार माना गया। संस्था के विभिन्न सदस्यों के द्वारा आयोजन के नेपथ्य में बहुत सारी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन किया गया।
शरद पूर्णिमा के दिन क्षितिज का यह आयोजन शरद पूर्णिमा के चाँद की तरह अमृत रस वर्षा करने वाला रहा।
आगे पढ़ेंपशुता से मनुष्यता की ओर ले जाता है साहित्य
बरेली 7 अगस्त– अखिल भारतीय साहित्य परिषद के तत्वाधान में चंद्र चंद्रकांता सभागार में साहित्य समागम का आयोजन किया गया। तीन सत्रों में आयोजित इस समारोह में पहले सत्र में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का विषय था, “साहित्य का प्रदेय” विचार गोष्ठी के मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य समाज में संस्कारों एवं संस्कृति का संवाहक होता है। साहित्य का पहला धर्म है कि वह समाज को पशुता से मानवता की ओर ले जाए। उन्होंने साहित्यकारों से यह भी अनुरोध किया कि वे प्रोफ़ेशनल कोर्सों एमबीबीएस एवं बीटेक की पुस्तकें हिंदी में लिखने का अभियान चलाएँ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर ऐन.के. गुप्ता ने कहा कि साहित्य के माध्यम से समाज में भारतीय संस्कृति भारतीय विचारधारा जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करें।
कहानी वाचन के सत्र में डॉक्टर संदीप अवस्थी, मीनू खरे, डॉ. अमिता दुबे, प्रतिभा सिंह, आरती बाजपेई, डॉ. सुरेश बाबू मिश्रा तथा ऋचा पाठक ने अपनी-अपनी कहानियों का वाचन किया।
कहानी गोष्ठी के मुख्य अतिथि संघ के विभाग प्रचारक ओमवीर जी रहे। अध्यक्षता डॉक्टर संदीप अवस्थी ने की। कार्यक्रम संयोजक डॉ. शशि बाला राठी जी ने सभी अभ्यागतों का स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में आभार डॉक्टर दीपंकर गुप्त ने प्रकट किया। कहानी वाचन के पश्चात तीसरे सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता डॉक्टर ओम प्रकाश शुक्ला अज्ञात ने की। मुख्य अतिथि डॉक्टर हरि अग्रवाल हरि (लखनऊ) रहे। काव्य गोष्ठी में कवियों ने भावपूर्ण कविताएँ प्रस्तुत कर समय बाँध दिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अनिल शर्मा जोशी, अध्यक्ष संदीप अवस्थी, ब्रज प्रांत के अध्यक्ष साहित्य भूषण सुरेश बाबू मिश्रा, संरक्षक डॉ. अनिल शर्मा एवं कार्यक्रम संयोजक डॉक्टर शशिवाला राठी ने विभिन्न राज्यों से आए 22 साहित्यकारों को उत्तर प्रदेश साहित्य गौरव सम्मान से शॉल सम्मान पत्र एवं माल्यार्पण कर सम्मानित किया। 60 साहित्यकारों एवं समाजसेवियों को पांचाल गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया।
उत्तर प्रदेश साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित होने वाले साहित्यकारों में डॉ. अनिल शर्मा जोशी (दिल्ली), डॉक्टर संदीप अवस्थी (आगरा), हरि अग्रवाल हरि (लखनऊ), ओमप्रकाश अज्ञात (छिबरामऊ), डॉक्टर महेश पांडे बजरंग (उरई), मीनू खरे (लखनऊ), डॉ. अमिता दुबे (लखनऊ), प्रदीप श्रीवास्तव (लखनऊ), डॉक्टर राम कृष्ण बुद्ध (नागपुर), आरती सिंह एकता, प्रतिभा सिंह (अयोध्या), रेनू हुसैन (दिल्ली), प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार कौशिक (दिल्ली), आरती बाजपेई (लखनऊ), सुरेंद्र कुमार अग्निहोत्री (लखनऊ), रिचा पाठक (काशीपुर), सौम्या मिश्रा (लखनऊ) एवं डॉक्टर चंद्र प्रकाश शर्मा (रामपुर) तथा कंचन वर्मा मुख्य रूप से सम्मिलित रहे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. ऐन.एल. शर्मा रविंद्र कुमार मिश्रा तथा रोहित राकेश ने संयुक्त रूप से किया कार्यक्रम में मुख्य रूप से डॉ. शशि वाला राठी, डॉक्टर दीपंकर गुप्त, उमेश चंद्र गुप्ता, डॉ. एस पी मौर्या, प्रभाकर मिश्र, मोहन चंद्र पांडे, उपेंद्र सक्सेना, निर्भय सक्सैना, सुरेंद्र बीनू सेना, शिशुपाल सिंह, सुमंत माहेश्वरी, देवेंद्र शर्मा, रणधीर प्रसाद गौड़, रमेश गौतम, गुरविंदर सिंह, प्रवीण शर्मा, डॉ. रवि शर्मा, महिपाल राही आदि विशेष रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम संयोजन डॉ. शशि बाला राठी ने किया तथा सभी आए हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर दीपंकर गुप्ता ने किया।
— शशिवाला राठी कार्यक्रम संयोजक
आगे पढ़ेंनासिरा शर्मा: ‘गुंटी’ का क्राफ़्ट और भाषा बहुत सशक्त है
यह विचार नासिरा शर्मा, सुपसिद्ध लेखिका ने व्यक्त किए ‘गुंटी’ कथा संग्रह के लोकार्पण पर। दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अवसर था युवा लेखिका रेणु हुसैन के प्रथम कथा संग्रह के लोकार्पण का। कार्यक्रम के समन्वयक कथाकार आलोचक डॉ. संदीप अवस्थी, राजस्थान और आयोजक जश्न ए हिन्द थे।
मैत्रयी पुष्पा ने अपनी आत्मकथा अल्मा कबूतरी का भी ज़िक्र किया। और कहा कि जब कथा संग्रह आता है तो उसकी आलोचना भी होती है। ऐसी ही हमारी हुई तो हमने पति से कहा कि इसे तुम मत पढ़ना। रेणु हुसैन के कथा संग्रह ‘गुंटी’ की रचनाओं की उन्होंने बहुत तारीफ़ की और कहा कि हम तुम्हें समय-समय पर मार्ग दिखाते रहेंगे।
अध्यक्षता करते हुए नासिरा जी ने संग्रह की कुछ कहानियों का उल्लेख कर उन्हें आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया। यह विशेष कहा कि संग्रह की कहानियों का क्राफ़्ट बहुत बेहतर है।
डॉ. संदीप अवस्थी ने कहा कि रेणु जी की रचनाओं में लोक, उसके प्रतिमान और भाषा आश्वस्त करती हैं कि लेखिका पूरी तैयारी के साथ क़दम रख रही हैं। कथा जगत में उनका स्वागत है। समारोह में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने शैलेश मटियानी का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह उनकी रचनाएँ हमारे समाज के आसपास घूमती हैं और उनकी भाषा भी सहज प्रवाहवान है, वैसी ही झलक मुझे रेणु हुसैन की रचनाओं में भी दिखती है।
समारोह में रेणु हुसेन ने अपने उद्बोधन में अपने लेखकीय यात्रा को याद किया। स्वर्गीय मुकेश मानस के सहयोग को याद किया। उन्होंने संक्षेप में अपनी रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। गुंटी, पपन, चिता की आग कहानियों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इन सबके पात्र मेरे ही आसपास हैं। उन घटनाओं और दर्द को शब्दों में महज़ पिरोया भर है।
गुंटी शीर्षक की कहानी के कुछ अंशों का अद्भुत ढंग से सुमन केशरी ने पाठ किया और नई ऊँचाइयों पर कार्यक्रम को पहुँचा दिया।
समारोह में लक्ष्मीशंकर वाजपयी ने रेणु की कहानियों को एक ताज़ी हवा का झोंका बताया। एनबीटी के संपादक और प्रसिद्ध लेखक लालित्य ललित ने अपने वक्तव्य में इस बात पर बल दिया कि रचना दूर तक तभी चलती है जब उसमें हमारे आसपास का वातावरण उभरता है। इस लिहाज़ से गुंटी संग्रह की कई कहानियाँ खरी उतरती हैं।
जश्न ए हिन्द की अध्यक्ष मृदुला टण्डन ने सभी को संस्थान की मासिक बैठकों से परिचित करवाया। समारोह का संचालन कवयित्री ममता किरण ने किया। कार्यक्रम में मनीष बना का प्रबंधन रहा। इंडिया इंटरनेशनल एनेक्सी हॉल नंबर दो में आयोजित इस कार्यक्रम में आलोक यात्री ने अपने मधुर अंदाज़ में सभी आगन्तुको को धन्यवाद ज्ञापित किया। और बताया कि वह हर माह काव्य और कथा पर कार्यक्रम सभी के लिए कर रहे हैं। कार्यक्रम में श्रीमती सरोज शर्मा, योग और लाइफ़ स्टाइल मैनेजमेंट गुरु, रणविजय राव, राज्यसभा टीवी, संजय तलवार फ़िल्म प्रोड्यूसर और गायक, चचित कवयित्री कंचन वर्मा, रमा पांडेय प्रसिद्ध रंगकर्मी, श्री और श्रीमती निगम, कमलेश भारतीय, और बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमियों की गरिमामयी उपस्तिथि रही। यह पुस्तक अमेज़न, फिलिप्कार्ट सहित सभी जगह उपलब्ध है
आगे पढ़ें’व्यंग्य भोजपाल’ की प्रथम काव्य गोष्ठी दिनांक 6 अगस्त 2022 को भोपाल में संपन्न
साहित्य के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय संस्था, भोजपाल साहित्य संस्थान, भोपाल अंतर्गत गठित चैप्टर ’व्यंग्य भोजपाल’ की प्रथम मासिक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन 06 अगस्त 2022 को भोपाल हाट स्थित ’9 एम मसाला रेंस्तरां’ में संस्था के अध्यक्ष श्री प्रियदर्शी खैरा की अध्यक्षता व कार्यकारी अध्यक्ष सुदर्शन सोनी के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ।
श्री सुदर्शन सोनी द्वारा ’व्यंग्य भोजपाल’ की संकल्पना व उद्देश्य पर अपने विचार रखे गये। उनके द्वारा कहा गया कि व्यंग्य क्षेत्र में सार्थक विमर्श के साथ ही अध्ययन व शोध के लिये व्यंग्यकारों के डेडिकेटेड फ़ोरम की आवश्यकता भोपाल में लम्बे समय से महसूस की जा रही थी। भोजपाल साहित्य संस्थान इसकी पूर्ति नहींं कर पा रहा था, क्योंकि वह सभी विधाओं के रचनाकारों को मंच उपलब्ध करवाता है। शहर की अन्य अनेक संस्थाएँ भी बहुविधामुखी हैं अथवा कविता, लघुकथा, कहानी, ग़ज़ल इत्यादि में से किसी एक विधा को ही समर्पित है। व्यंग्य पर ऐसी कोई समर्पित संस्था भोपाल में नहींं है। उम्मीद कर सकते हैं कि ’व्यंग्य भोजपाल’ इस रिक्ति को सभी व्यंग्यकारों व साहित्य प्रेमियों के सहयोग से दूर कर सकेगा।
तत्पश्चात वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री कुमार सुरेश द्वारा ’व्यंग्यकार के दायित्व’ विषय पर बोलते कहा कि समाज की बेहतरी ही उसका दायित्व है। श्री विजी श्रीवास्तव द्वारा व्यंग्य के वर्तमान परिदृश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला। श्री खैरा द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सुदर्शन सोनी के साहित्य व व्यंग्य के प्रति समर्पण की तारीफ़ करते कहा कि ’व्यंग्य भोजपाल’ व्यंग्यकारों को एक बहुप्रतीक्षित मंच प्रदान करेगा। जहाँ वे रचनापाठ के अलावा नये प्रयोग कर सकेंगे।
उपस्थित व्यंग्यकारों ने सशक्त रचनाओं का पाठन कर श्रोताओं की प्रशंसा बटोरी। अशोक व्यास, ”मैं और मेरा मोबाईल अक़्सर ये बाते करते हैं’। कमल किशोर दुबे द्वारा दुनिया का ’अभिशप्त मजदूर’, चरनजीत सिंह द्वारा ‘और हम ख़ाली लौट आये’, सुरेश पटवा द्वारा ‘साहित्यजीवी’ तो विवेक रंजन श्रीवास्तव द्वारा ‘ट्राई कलर्स बेलून्स इन स्काई’ सुमन ओबेराय द्वारा ‘सब से प्यारा हिंदुस्तान हमारा’, जयजीत अकलेचा द्वारा ‘जन व तंत्र’ प्रमोद ताम्बट द्वारा ‘अर्थ व्यवस्था का अर्थ अनर्थ’ गोकुल सोनी द्वारा ‘कुत्ता फजीती’, श्री कुमार सुरेश द्वारा ‘जरा धीरे से उड़ो मेरे साजना’ बिजि श्रीवास्तव द्वारा ‘चुनाव पंडाल के बाहर खडे़ शौचालय की आपबीती’ व श्री सुदर्शन सोनी द्वारा व्यंग्य ‘डिजिटाईजेशन व बडे़ बाबू’ का पाठन किया गया। अध्यक्ष प्रियदर्शी खैरा द्वारा ‘सब जल्दी में हैं’ का पाठन किया गया।
कार्यक्रम में दुष्यंत कुमार पाडुलिपि संग्रहालय भोपाल के निदेशक श्री राजुरकार राज, प्रसिद्व कथाकार श्री मुकेश वर्मा, प्रभात साहित्य परिषद के अध्यक्ष श्री नंदकुमार, श्री चंद्रभान राही व अन्य साहित्यकारों के साथ ही बड़ी संख्या में साहित्य रसिक श्रोता उपिस्थत थे। श्री मुकेश वर्मा द्वारा ’व्यंग्य भोजपाल’ को एक अच्छा प्रयास बताते हुए वनमाली सृजन द्वारा कथा के क्षेत्र में प्रकाशित संकलन की तरह ही व्यंग्य के क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ करने के लिए कहा। कार्यक्रम का सफल व व्यंग्यमय संचालन श्री गोकुल सोनी व आभार प्रदर्शन श्री सुरेश पटवा द्वारा किया गया।
प्रियदर्शी खैरा
90-91, यशोदा विहार, भोपाल
मध्यप्रदेश।
सोबन सिंह जीना परिसर, अल्मोड़ा, उत्तराखंड में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में भव्य परेड का आयोजन
दिनांक 15/08/2022 सोमवार को आज़ादी का अमृत महोत्सव 76 वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा में भव्य परेड का आयोजन किया गया। जहाँ 24 यू.के. बालिका वाहिनी एन.सी.सी. अल्मोड़ा के कैडेट्स, 77 यू.के. बटालियन एन.सी.सी. अल्मोड़ा के कैडेट्स तथा एन.एस.एस. स्वयंसेवियों ने मिलकर शानदार परेड का प्रदर्शन किया। परेड का निर्देशन 24 यू.के. बालिका वाहिनी की एसोसिएट एन.सी.सी. ऑफ़िसर ले . (डॉ.) ममता पंत द्वारा किया गया। परेड का नेतृत्व फर्स्ट कमांडर सीनियर अंडर ऑफ़िसर निहारिका कपिल 24 यू.के. बालिका वाहिनी एन.सी.सी. तथा सीनियर अंडर ऑफ़िसर रजत सिंह बिष्ट 77 यू.के. बटालियन एन.सी.सी. द्वारा किया गया। सेकंड कमांडर का कार्यभार अंडर ऑफ़िसर मंयक पाण्डे 77 यू .के. बाटिलयन एन.सी.सी. तथा गॉर्ड कमांडर का कार्यभार अंडर ऑफ़िसर रोशनी कपकोटी 24 यू के. बालिका वाहिनी एन.सी.सी. और एन.एस.एस . कमांडर का दायित्व अंकिता आर्या ने सँभाला।
कैडेट्स द्वारा तिरंगे को सलामी शस्त्र दिया गया। आज़ादी के अमृत महोत्सव का सही मायनों में मतलब समझाया, सोबन सिंह जीना कैंपस के अधिष्ठाता छात्र प्रशासन प्रो. प्रवीण सिंह बिष्ट ने झण्डारोहण किया और मंच पर अधिष्ठाता छात्र प्रशासन एवं ले. (डॉ.) ममता पंत एवं प्रांगण से शिक्षक वृंद, एन.सी.सी.कैडेट्स एवं एन.एस.एस. स्वयंसेवियों, छात्र–छात्राओं द्वारा झण्डे को सलामी दी गई। संगीत विभाग के विद्यार्थियों द्वारा देशभक्ति गीतों से वातावरण गुंजायमान रहा। अधिष्ठाता प्रशासन द्वारा एन.सी.सी. कैडेट्स को मेडल द्वारा सम्मानित किया गया। पूरा परिसर प्रांगण भारत माता की जय एवं देशभक्ति नारों से गुंजायमान रहा।
इस अवसर पर डी.एस.डब्लू. प्रो. ईला साह, कुलानुशासक डॉ. मुकेश सामंत, शोध एवं प्रसार निदेशक, संकायाध्यक्ष कला संकाय प्रो. जगत सिंह बिष्ट, विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. जया उप्रेती, एन.एस.एस. अधिकारी डॉ. देवेन्द्र धामी, प्रो. भीमा मनराल संकायाध्यक्ष शिक्षा संकाय, प्रो. एम.एम. जिन्ना संकायाध्यक्ष वाणिज्य संकाय, प्रो. सोनू द्विवेदी संकायाध्यक्ष दृश्यकला संकाय, प्रो. निर्मला पत, प्रो. के.एन. पाण्डे, विश्वविद्यालय मीडिया प्रभारी प्रो. ललित जोशी, शिक्षक वर्ग, कर्मचारी वर्ग एवं छात्र–छात्राएँ उपस्थित रहे। तत्पश्चात कैडेट्स द्वारा आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत 24 यू के बालिका वाहिनी एन.सी.सी. के उपवन में वृक्षारोपण भी किया गया। इस अवसर पर अधिष्ठाता प्रशासन प्रोफेसर प्रवीण सिंह बिष्ट, एसोसिएट एन.सी.सी. ऑफिसर डॉ. ममता पंत, कुलानुशासक डॉ. मुकेश सामन्त एवं एन.एस.एस. अधिकारी डॉ. देवेंद्र धामी उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंप्रो. ऋषभदेव शर्मा की तपस्या का फल है ‘धूप के अक्षर’
हैदराबाद। भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री और प्रसिद्ध लेखक डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद, हैदराबाद के सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में ‘धूप के अक्षर’ का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह ग्रंथ प्रो. ऋषभदेव शर्मा की जीवन भर की तपस्या का फल है। उनकी इस तपस्या को दक्षिण भारत ने हृदय से स्वीकार किया है जिसके दर्शन उनके अभिनंदन समारोह में हो रहे हैं। वे डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा के प्रधान संपादकत्व में दो खंडों में प्रकाशित प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सम्मान में लोकार्पित किए जाने वाले आयोजन में बोल रहे थे।
डॉ. निशंक ने इस बात पर विशेष बल दिया कि भारतवर्ष को विश्वगुरु के पथ पर पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए तेलुगु, तमिल, कन्नड, मलयालम, बंगला, मराठी, पंजाबी, असमी आदि सभी भाषाओं को सम्मिलित भूमिका निभानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा हिंदी के माध्यम से सारी भारतीय भाषाओं के लिए कार्य कर रहे हैं। यह कार्य हैदराबाद में हो रहा है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं।
अभिनंदन समारोह का उद्घाटन शीर्षस्थ भारतीय लेखक प्रो. एन. गोपि ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि प्रो. शर्मा एक आदर्श अध्यापक और प्रख्यात लेखक ही नहीं है, बल्कि वे एक उत्तम मनुष्य भी हैं। दक्षिण में उनका आना भाषा और साहित्य के लिए एक वरदान जैसा है।
प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अभिनंदन समारोह में अध्यक्ष के रूप में प्रो.देवराज (दिल्ली), अतिविशिष्ट अतिथि रूप में डॉ. पुष्पा खंडूरी (देहारदून) के साथ प्रो. गोपाल शर्मा, जसवीर राणा, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. वर्षा सोलंकी, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, पी. ओबय्या, जी. सेल्वराजन, एस. श्रीधर, प्रो. संजय एल मादार आदि मौजूद थे।
सभी वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने हैदराबाद, चेन्नै और एरणाकुलम आदि में रहते हुए जो कार्य किया उसका भाषायी और साहित्यिक महत्व ही नहीं है बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी है। उनका कार्य दक्षिणापथ और उत्तरापथ के मध्य संस्कृति सेतु का कार्य है।
आयोजन का संचालन ‘धूप के अक्षर’ ग्रंथ की प्रधान संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया। समारोह के प्रारंभ में कलापूर्ण सस्वर सरस्वती वंदना शुभ्रा मोहंता ने प्रस्तुत की। ‘धूप के अक्षर’ ग्रंथ के सहयोगी लेखकों को यह ग्रंथ भेंट भी किया गया।
इस समारोह में हैदराबाद के साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। विनीता शर्मा, वेणुगोपाल भट्टड, अजित गुप्ता, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, पवित्रा अग्रवाल, रामदास कृष्ण कामत, सुरेश गुगालिया, जी. परमेश्वर, डॉ. श्रीपूनम जोधपुरी, डॉ. जयप्रकाश नागला, डॉ. रियाजुल अंसारी, डॉ. बी. एल. मीणा, मुकुल जोशी, डॉ. शिवकुमार राजौरिया, रवि वैद, डॉ. एस. राधा, सरिता सुराणा, वर्षा कुमारी, हुडगे नीरज, रूपा प्रभु, उत्तम प्रसाद, नीलम सिंह, नेक परवीन, संदीप कुमार, मुकुल जोशी, डॉ. कोकिला, एफ. एम. सलीम, डॉ. के. श्रीवल्ली, डॉ. बी. बालाजी, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, वुल्ली कृष्णा राव, शीला बालाजी, समीक्षा शर्मा, डॉ.सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, प्रवीण प्रणव,, डॉ. गंगाधर वानोडे, डॉ. सी. एन. मुगुटकर, डॉ. रामा द्विवेदी, डॉ. संगीता शर्मा, प्रो. दुर्गेशनंदिनी, डॉ. रेखा शर्मा, चवाकुल रामकृष्णा राव, एम. सूर्यनरायन, प्रवीण, केशव, जे. रामकृष्ण, मुरली, एम. शिवकुमार, नृपुतंगा सी. के., डॉ. के. चारुलता, जी, एकांबरेश्वरुडु, शैलेषा नंदूरकर, जाकिया परवीन, शेक जुबर अहमद, डॉ. गौसिया सुलताना, विकास कुमार आजाद, पल्लवी कुमारी, निशा देवी, डॉ. पठान रहीम खान, के. राजन्ना, डॉ. एस. तुलसीदेवी, डॉ. रजनी धारी, गीतिटिका कुम्मूरी, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. साहिरा बानू बी. बोरगल, डॉ. बिष्णु कुमार राय, डॉ. शक्ति कुमार द्विवेदी, डॉ. ए. जी. श्रीराम, हरदा राजेश कुमार, डॉ. संतोष विजय मुनेश्वर, काज़िम अहमद, और अनेक लोग अंडमान, दिल्ली, वर्धा, खतौली, नांदेड, कर्नाटक, चेन्नै, अहमदाबाद, बनारस से भी पधारे थे।
सच्ची कविता स्वांत: सुखाय की अभिव्यक्ति है, इसमें कोई मायाजाल नहीं होता: अनुभूति की द्वितीय ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. ज्ञान जैन
कृष्ण-भाव में होता है केवल तेरा-तेरा, सर्वत्र तेरा, जीवन-मरण, अस्तित्व और परिवर्तन सब तेरा, पुरुषार्थ है बस मेरा। जैन दर्शन विभाग, श्री एस. एस शासुन जैन कॉलेज के विभागाध्यक्ष डॉ. ज्ञान जैन ने अनुभूति द्वारा आयोजित 'संवाद शृंखला' में भारतीय दर्शन पर प्रकाश डालते हुए यह कहा, “कोई साथ आया नहीं, कोई साथ जाएगा नहीं तो फिर उदास ना होना मेरे मन, ख़ुशी में या ग़म में, संतों ने समझाया है बने रहो शुद्ध स्वभाव में। दर्शन का पहला चरण है आस्था होना अन्यथा यह ज्ञान नहीं प्रपंच है। व्यक्ति स्वातंत्र्य की आत्म प्रतिष्ठा कराए वही समीचीन धर्म है। जो खोजने दर्शन गया वह लौट कर नहीं आया, दीपज्योति बन गया। जो प्रदर्शन करने गया वो अँधियारा मन रह गया। निर्णय ख़ुद का है बनना ज्योति है या अँधियारा,” दर्शन की महत्ता को बताते हुए आप ने आगे कहा।
हापुड़, उत्तर प्रदेश में जन्मे डॉ. ज्ञान जैन ने अपनी लेखन यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि आपकी पढ़ाई अँग्रेज़ी माध्यम से हुई थी, पढ़ने का शौक़ था जिज्ञासा जागी तो आपने गीता पढ़ी। विचारों पर मनन करने से सृजन की राह निकल पड़ती है, ऐसा आपका मानना है। आपने गुजराती से हिंदी में आठ पुस्तकें एवं हिंदी से अँग्रेज़ी में तीन पुस्तकों का अनुवाद किया है। जैन ऋषि-मुनियों के प्रवचन, उनके ज्ञान-दर्शन एवं मीमांसाओं की दस पुस्तकें आपके द्वारा संपादित हैं। मासिक पत्रिका ‘खरतर वाणी’ के आप मुख्य संपादक हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रीतिबाला जैन एक कुशल गृहिणी हैं, आशीष एवं रचना आपकी संतान हैं।
इस अवसर पर ‘दर्शन’ विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में सुनीता जाजोदिया, शोभा चौरडिया, उदय मेघाणी, महेश नक़्श, रमेश गुप्त नीरद, नीलम दीक्षित एवं ज्ञान जैन ने काव्य पाठ किया।
अध्यक्ष श्री रमेश गुप्त नीरद ने स्वागत भाषण दिया एवं इस माह के विशेष कवि डॉ. ज्ञान जैन का अंगवस्त्रम से सम्मान किया।
महासचिव शोभा चौरडिया ने प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया एवं डॉ. ज्ञान जैन जी का परिचय प्रस्तुत किया। श्रीमती नीलम सारडा ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया एवं सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस अवसर पर उपाध्यक्ष श्री विजय गोयल एवं कोषाध्यक्ष श्री विकास सुराना भी उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंप्रो. ऋषभदेव शर्मा अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन 4 जुलाई को
हैदराबाद, 24 जून, 2022
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (उच्च शिक्षा और शोध संस्थान) तथा 'साहित्य मंथन' के संयुक्त तत्वावधान में आगामी 4 जुलाई (सोमवार) को दोपहर साढ़े 3 बजे से सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में एकदिवसीय राष्ट्रीय साहित्यिक समारोह आयोजित किया जा रहा है। इस अवसर पर प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सम्मान में प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ 'धूप के अक्षर' का लोकार्पण किया जाएगा।
समारोह के स्वागाताध्यक्ष प्रो. संजय लक्ष्मण मादार ने बताया कि कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ऐन. गोपि करेंगे। अध्यक्ष महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. देवराज होंगे। देहरादून से पधारीं प्रो. पुष्पा खंडूरी अतिविशिष्ट अतिथि का आसन ग्रहण करेंगी। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. गोपाल शर्मा, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, डॉ. वर्षा सोलंकी एवं सभा के प्रधान सचिव जी। सेल्वराजन उपस्थित रहेंगे।
अभिनंदन ग्रंथ की संपादक एवं समारोह की समन्वयक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने बताया कि 'धूप के अक्षर' शीर्षक अभिनंदन ग्रंथ दो ज़िल्दों में प्रकाशित है। लगभग 700 पृष्ठ के इस ग्रंथ में 60 लेखकों के कुल 82 आलेख सम्मिलित हैं। इनमें देश भर के विद्वानों और समीक्षकों के साथ-साथ प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अंतरंग मित्रों, सहकर्मियों और शोध छात्रों के संस्मरण और समीक्षाएँ शामिल हैं। उन्होंने यह जानकारी भी दी कि विमोचन के उपरांत अभिनंदन ग्रंथ की प्रतियाँ संपादन मंडल और सहयोगी लेखकों को समर्पित की जाएँगी।
समारोह के संयोजक एवं सभा के सचिव एस। श्रीधर ने सभी साहित्य प्रेमियों से कार्यक्रम में उपस्थित होने की अपील की है।
प्रेषक
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह-संपादक 'स्रवंति'
असिस्टेंट प्रोफेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद
हैदराबाद-500004
उन्मेष:अभिव्यक्ति महोत्सव: भव्य अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव-शिमला
शिमला, १६ जून २०२२: साहित्य, कला और संगीत की विधाओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को विस्तार देने के लिए ७५वें अमृत महोत्सव के एक भाग के रूप में, अभी तक का विशालतम अंतरराष्ट्रीय महोत्सव मनाया गया। यह उत्सव कला और संस्कृति विभाग, शिमला के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय तथा साहित्य अकादमी के तत्वावधान में, हिमालय की तलहटी की मनोहारी अँचल में, ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में आयोजित किया गया। माननीय राज्यपाल, राज्यमंत्रियों, ४२५ साहित्यकारों, कलाकारों, मानवतावादियों, राजनेताओं, दूरदर्शन और सिने हस्तियों, प्रकाशकों और उद्यमियों की उपस्थिति में इस समारोह का भव्य आयोजन किया गया। उल्लेखनीय है कि इन उपस्थिति व्यक्तियों में विभिन्न क्षेत्रों की पाँच पीढ़ियाँ शामिल थीं।
इस त्रिदिवसीय समारोह में चर्चाओं, कार्यशालाओं; वाद-विवादों; पुस्तकों के लोकार्पणों; नृत्य-संगीत प्रस्तुतियों; पुस्तक, कला और शिल्पकला से सम्बन्धित प्रदर्शनियों; कहानी-पाठों, फिल्म-स्क्रीनिंग से सम्बन्धित अनेक रंगारंग आयोजन किए गए। ये सभी आयोजन कोई ६० भाषाओं में थे। शिमला में आयोजित इस भारतीय प्रवासी सत्र में विभिन्न विधाओं की हस्तियों में साहित्य को गरिमामयी अभिव्यक्ति प्रदान की गई। विजय शेषाद्री, चित्रा देवकरणी, मंजुला पद्मनाभन (यूएसए), अभय के. (मेडागास्कर), अंजू राजन (दक्षिण अफ्रीका), सुनेत्र गुप्त (यूके) तथा पुष्पिता अवस्थी (नीदरलैंड्स) की सहभागिता विशेष उल्लेखनीय है।
निःसंदेह, शिमला की पर्वतीय भूमि कवि गुलज़ार की ग़ज़लों, प्रसून जोशी के गीतों, सोनल मानसिंह के संगीतबद्ध नृत्य-प्रस्तुतियों, महमूद फारुकी की दास्तानगोई, पी जय की कचेरी, नाथूलाल सोलंकी की नागदा, महमूद फारुकी की दस्ताने-कर्ण तथा अनेकानेक भक्ति-संगीत एवं जनजातीय संगीत से झंकृत हो उठी। साहित्य और सिनेमा, भारतीय तथा जनजातीय लेखकों के साहित्य, लेस्बियन-गे-बाइसेक्सुअल-ट्रांसजेंडर के साहित्य, मिडिया एवं साहित्य, लोक साहित्य, भक्ति-साहित्य तथा सांस्कृतिक एकनिष्ठा आदि से सम्बंधित प्रस्तुतियों में यह सत्र विशेष उल्लेखनीय रहा। जाने-माने साहित्यकारों और हस्तियों में भैरप्पा, गीतांजलि श्री, दिव्या माथुर, साई परांजपे, दीप्ति नवल, लिंक्स हायेस, डेनियल नेजर्स, चंद्रशेखर कम्बर, नमिता गोखले, सिवा रेड्डी, आरिफ मोहम्मद खान, प्रत्युष गुलेरी, होशंग मर्चेंट, सीतांश यशचन्द्र, विश्वास पाटिल, रंजीत होसकोटे, लीलाधर जगूड़ी, अरुण कमल, सतीश आलेकर, विष्णु दत्त, अनामिका, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। भारत के विभिन्न राज्यों के युवा लेखकों की उपस्थिति ने भी इस समारोह को महत्त्वपूर्ण बना दिया।
निःसंदेह, शिमला साहित्यिक महोत्सव में विशेषतया भारतीय साहित्यकारों तथा भारत से ही सम्बन्ध रखने वाले साहित्य, कला, नाट्य कला और ललित कला के विदेशी सृजकों को अंतरराष्ट्रीय मंच मिला। इस मंच को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली और आयोजित सभी कार्यक्रमों को व्यापक आधार पर सराहा गया।
(प्रेस विज्ञप्ति: डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंडॉ. मोहन बैरागी को मिस्र (इजिप्ट) में मिला हिंदी सम्मान
हिंदी साहित्य के राहुल सांकृत्यायन सम्मान से विभूषित हुए डॉ. मोहन बैरागी
उज्जैन। हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा का डंका विश्व के कई देशों में वर्तमान समय में बज रहा है। विगत दिनों ही हिंदी भाषा को सातवें क्रम में वैश्विक रूप से स्वीकृत किया गया है। भारतीय भाषा और हिंदी साहित्य की व्यापकता इसी बात से प्रमाणित होती है कि मिस्र के नोबेल पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार अहमद शौक़ी ने भारत से रबिंद्रनाथ टैगोर को मिस्र आमंत्रित कर अपना सारा साहित्य समर्पित कर दिया था। साहित्य को समर्पित विद्वानों के ऐसे देश में 19वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन 6 जून से 17 जून 2022 को मिस्र के काहिरा में आयोजित किया गया। भारत तथा अन्य देशों के विद्वानों व साहित्यकारों के इस संयोजन के समय वैश्विक रूप से भारतीय भाषा को स्थापित करने के प्रयास में यह सम्मेलन मिल का पत्थर साबित होगा, यह गौरव का विषय है।
विदेशी धरती पर सम्मान मिलने के अवसर पर यह बात डॉ. मोहन बैरागी ने सम्मान समारोह में कही। भारत से अलग-अलग विषयों में दख़ल रखने वाले विद्वानों ने अपनी आमद इस आयोजन में दी। इस अवसर पर विद्वानों को सम्मानित किया गया, तथा इस कड़ी में 14 जून 2022 को इजिप्ट के काहिरा शहर के ग़िज़ा में स्थित पिरामिड पार्क रिसोर्ट में एक भव्य आयोजन में मध्य प्रदेश उज्जैन के डॉ. मोहन बैरागी को हिंदी के प्रकांड विद्वान राहुल सांकृत्यायन सम्मान से सम्मानित किया गया। डॉ. मोहन बैरागी द्वारा अल्प समय में हिंदी में विभिन्न विधाओं में लेखन तथा उत्कृष्ट साहित्य के लिए यह सम्मान दिया गया। यह सम्मान इजिप्ट तथा भारत के विद्वानों व साहित्यकारों तथा प्रशासनिक अधिकारियों के करकमलों से दिया गया।
हज़ारों किलोमीटर दूर विदेशी धरती पर मिले इस सम्मान के लिये डॉ. मोहन बैरागी ने अपने माता पिता, परिवारजन, साथी मित्रों, गुरुजनों, डॉ. शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ. जगदीश शर्मा, संतोष सुपेकर, शशिरंजन अकेला, अशोक भाटी, दिनेश दिग्गज, अशोक नागर, संदीप नाडकर्णी, मुकेश जोशी, सुरेंद्र सर्किट, नरेंद्र अकेला व अभिन्न पत्रकार मित्रों को याद कर धन्यवाद दिया, जिनके संबल से यह उपलब्धि हासिल हुई है।
इस अवसर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष टॉमन सिंग सोनवानी, वरिष्ठ विद्वान साहित्यकार जवाहर गंगवार, डॉ. सुखदेवे, छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग के सचिव जीवनकिशोर ध्रुव, उत्तर प्रदेश, भारत सरकार से यश भारती सम्मान प्राप्त डॉ. रामकृष्ण राजपूत, डॉ. जयप्रकाश मानस, मुमताज़, उच्च शिक्षा विभाग उत्तराखंड की निदेशक डॉ. सविता मोहन तथा इजिप्ट के पुरातत्वविद व साहित्यकार तथा पर्यटन विशेषज्ञ सुश्री शाइमा, मुहम्मद, अहमद, अब्दुल्ला, मुहम्मद व अन्य विद्वानों की उपस्थिति में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
आगे पढ़ेंबालकहानी प्रतियोगिता के परिणाम घोषित
अलका प्रमोद लखनऊ को मिला प्रथम स्थान
देशभर के बालकथाकारों से बालकहानियाँ, प्रतियोगिता—श्रीमती सुशीलादेवी केशवराम क्षत्रिय स्मृति बाल प्रतियोगिता-2022 के लिए आमंत्रित की गई थीं। जिसमें विभिन्न बालसाहित्यकारों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इस कारण इस प्रतियोगिता में 55 से अधिक कहानियाँ प्रविष्टियों के तौर पर प्राप्त हुई थीं। प्रतियोगिता के नियमानुसार इन सभी कहानियों पर से रचनाकारों के नाम हटाकर कहानी के शीर्षक के साथ निर्णायक और प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. दिनेश कुमार पाठक ‘शशि’ को मूल्यांकन के लिए भेजा गया था।
निर्णायक महोदय ने कहानी का अध्ययन, मनन और चिंतन करके प्रथम स्थान: महँगी पड़ी शरारत, रचनाकार-अलका प्रमोद लखनऊ; द्वितीय स्थान: कहानी मिली की, रचनाकार-इंद्रजीत कौशिक बीकानेर; तृतीय स्थान: मछली जल की रानी, रचनाकार-नीलम राकेश लखनऊ की कहानी को प्रदान किया गया।
इसी तरह प्रथम 10 कहानियों में अपना स्थान बनाने वाली कहानियों और रचनाकारों के नाम इस प्रकार हैं: सब्ज़ी लोक में टिंकू-अलका अग्रवाल जयपुर; लैपटॉप-मधुलिका श्रीवास्तव भोपाल; कौन जीता कौन हारा-मीनू त्रिपाठी नोएडा; इफ्तारी-डॉ.क्टर लता अग्रवाल भोपाल; मिंकु पिंकू-वंदना पुणतांबेकर इंदौर; अनुशासन का महत्त्व-विनीता राहुरिकर भोपाल; खेल खेल में-अंजली खेर भोपाल; मंगलवन में अमंगल ललित शौर्य पिथौरागढ़; नन्ना गोलू-संध्या गोयल सुगम्या राजनगर गाजियाबाद को प्राप्त हुआ है।
इन सभी विजेताओं को पुरस्कार राशि व सम्मानपत्र श्रीमती सुशीलादेवी केशवराम क्षत्रिय स्मृति बाल प्रतियोगिता-2022 के आयोजक प्रसिद्ध बालसाहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ द्वारा प्रदान किए जाएँगे।
आगे पढ़ेंअंतर्राष्ट्रीय महिला साहित्य समागम में साहित्य और भाषा पर वैश्विक चिंतन सफल
किसी भी संगोष्ठी का उद्देश्य उस विषय अथवा आयोजित शीर्षक पर नवीन तथ्यों पर विचार विमर्श करते हुए संवाद की प्रक्रिया के साथ प्रकाश डालना होता है। संगोष्ठी के माध्यम से साहित्य की प्रगति का वातावरण निर्मित होता है जिसमें विभिन्न भाषा और साहित्य के विषयों के प्रति एक नये दृष्टिकोण का प्रादुर्भाव होता है। यह संवाद की प्रक्रिया किसी नए विचार, विचारधारा अथवा अवधारणा की आधारशिला बनती है जिससे साहित्य का विस्तार होता है। इन्हीं उद्देश्यों के साथ विगत 14-15 मई 2022 को वामा साहित्य मंच और घमासान डॉट कॉम के तत्वावधान में अभय प्रशाल इंदौर में अंतरराष्ट्रीय महिला साहित्य समागम का आयोजन किया गया।
विविध सत्रों में हिंदी की स्थिति, अपेक्षाएँ, भविष्य का पथ और नवीन तकनीक से जुड़ाव, रोज़गार आदि की संभावनाओं के मध्य भाषा की विधागत स्थिति पर चिंतन मनन करते हुए, इस आयोजन को विविध सत्रों में विभाजित किया गया था।
प्रथम सत्र उद्घाटन सत्र में मुख्य अथिति व अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यिकार सूर्यबालाजी व विशेष अतिथि डॉ. राजकुमारी गौतम उपस्थित थीं, सत्र का विषय था “हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार में तकनीक की भूमिका।”
अपने उद्बोधन में राजकुमारी गौतम जी ने तकनीक, भाषा, विदेश में अन्य भाषाओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन के तकनीकी पक्ष व भविष्य में उसका उपयोग कर हिंदी के भविष्य पर बात की। उन्होंने कहा कि भारत, जापान एवं यूरोपीय संघ में भारतीय भाषाओं, संस्कृति के प्रचार-प्रसार व शोध में सहयोग देने का कार्य चल रहा है इसके अलावा भारत की संस्कृति में इच्छुक लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का एवं यूरोपीय संघ के विश्वविद्यालयों में तकनीकी सहयोग देने का कार्य भी रिसर्च फ़ॉउंडेशन के माध्यम से किया जाता है।
अध्यक्ष डॉ. सूर्यबाला ने कहा कि स्त्री को आक्रामकता न दिखाकर बुराई के विरोध में होना चाहिए, कोई आपसे अपने मन के विचार लिखवा ले, आप दूसरे के हाथ की कठपुतली बनकर नहीं लिखना है, हमें वो लिखना है जो हमारा मन है। उन्होंने कहा कोई विषय अश्लील नहीं होता, अश्लील होता है उसे प्रस्तुत करने का तरीक़ा। नई पीढ़ी लिखने में पढ़ने और अपने मन का रचने के लिए स्वतंत्र है किन्तु विषय चयन विध्वंसक न हो। सृजन ही साहित्य की पहली परिभाषा है, ख़ूब पढ़ें, ख़ूब लिखें, नया रचें।
स्त्री लेखन को कम महत्त्व दिए जाने के बावजूद एक दमदार उपस्थित स्त्री लेखन की रही है, जिसमें उदार पाठक है संपादकों का योगदान है। इस सत्र में वामा साहित्य मंच की पत्रिका शब्द समागम, पद्मा राजेन्द्र, सुषमा चौधरी व चित्रा जैन की पुस्तक का विमोचन भी हुआ।
विनीता शर्मा को उनके योग व शोभा प्रजापति को संस्कृत भाषा में उनके योगदान पर सम्मानित किया गया।
स्वागत उद्वोधन समागम चेयर पर्सन पद्मा राजेन्द्र ने दिया, वार्षिक रपट का वाचन ज्योति जैन द्वारा किया गया। सत्र का संचालन गरिमा संजय दुबे ने किया।
द्वितीय सत्र का विषय था “प्रवासी और मुख्यधारा साहित्य के मध्य मैत्री सेतु”।
विषय की प्रस्तावना रखते हुए चर्चाकार पद्मा राजेंद्र ने कहा कि प्रवासी साहित्य का सम्बन्ध प्रवासी लोगों के द्वारा लिखित साहित्य से है। सवाल यह है कि यह प्रवासी लोग कौन हैं और इनके साहित्य की विशेषता अथवा सुंदरता क्या है और किस तरह वह सेतु के रूप में काम कर रहा है! प्रवासी विमर्श की विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत रचनात्मक साहित्य अधिक लिखा गया है और यह लेखन एक सांस्कृतिक सेतु की तरह है प्रवासी साहित्य वर्तमान दशा, संभावनाएँ, भारतीय साहित्य की मुख्यधारा में प्रवासी साहित्य का समावेश कई बातों को ओर इंगित करता है। प्रवासी हिंदी साहित्य के अंतर्गत कविताएँ, उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, एकांकी, महाकाव्य, खंडकाव्य, अनूदित साहित्य, यात्रा वर्णन आदि का सृजन हुआ है इन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के द्वारा नीति, मूल्य, मिथक, इतिहास, सभ्यता के माध्यम से भारतीयता को सुरक्षित रखा है यह सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात है। प्रवासी साहित्य से हमें अपने देश की ख़ुश्बू मिलती है उन्होंने अनेक प्रवासी साहित्यकारों द्वारा लिखे गए साहित्य का उल्लेख किया।
प्रवासी साहित्य के बीच सेतु विषय पर बोलते हुए डॉ. प्रतिभा कटियार ने कहा कि आज का दौर ऐसा है जिसमें सभी स्त्रियाँ प्रवासी हो गई हैं और यहाँ तक की मज़दूर भी प्रवासी हैं लेकिन इसके बावजूद जो बाहर के देशों में रह रहे हैं और लिख रहे हैं वे भारतीय संस्कृति के साथ-साथ उन देशों की संस्कृति से भी जुड़ गए हैं। यही वजह है कि उनके लेखन में विविधता झलकती है। दो देशों की संस्कृति के बारे में जब हम पढ़ते हैं तो हमें नवीनता का आभास होता है। प्रतिभा कटियार ने आगे कहा, कि भारत में जो लड़ाइयाँ लड़ी जा रही है क्या उन्हें प्रवासी साहित्यकार अपने लेखन में ला रहे हैं! यह भी हमें देखना होगा। उन्होंने कहा कि भारत में स्त्री को जिन स्थितियों का सामना करना पड़ता है क्या अमेरिका की स्त्री भी उन स्थितियों का सामना कर रही है इन सब को भी देखना होगा।
प्रवासी साहित्य का सेतु इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है इसके माध्यम से विदेश की ख़ुश्बू हमारे देश आती है और हमारे देश की ख़ुश्बू वहाँ तक पहुँचती है उन्होंने बताया कि विदेश में रह रहे साहित्यकारों ने वहाँ की स्त्रियों के दर्द को भी व्यक्त किया है। महिला लेखन ने बहुत संघर्षों के बाद आज अपने लिए ख़ुद ज़मीन बनाई उन्होंने कहा कि महिला लेखन को पहले दोयम दर्जे का समझा जाता था लेकिन धीरे-धीरे महिला लेखन ने ख़ुद अपनी ज़मीन तैयार की।
सिंगापुर से पधारी प्रसिद्ध लेखिका शार्दूला नोगजा ने कहा कि प्रवासी साहित्यकार जब भारत के बारे में लिखते हैं तो क्या सचमुच उसमें भारत के संघर्ष से उभर कर आते हैं! उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्होंने प्रवासी साहित्यकारों की किताबें पढ़ी हैं, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को प्रवासी साहित्य पढ़ना चाहिए तभी प्रवासी साहित्य मुख्यधारा में शामिल में हो पाएगा। हालाँकि आधुनिक टेक्नॉलोजी के माध्यम से भारत के लोग प्रवासी साहित्य से जुड़ गए हैं उन्होंने बताया कि उन्होंने एक समूह बनाया है “हिंदी से प्यार है” इसके माध्यम से हम लोग लेखकों को जोड़ने का काम कर रहे हैं उन्होंने कहा कि सेतु बनाने के लिए चर्चा और विमर्श के साथ ही और भी प्रयास करना चाहिए। इस विषय पर डॉ. शोभा जैन ने शोध पत्र वाचन किया और सत्र का संचालन बबीता कड़ाकिया ने किया।
तृतीय सत्र “स्त्री अस्मिता, अदम्य जिजीविषा के संघर्ष एवं स्त्री लेखन ” विषय पर केंद्रित था इस विषय पर तीन वरिष्ठ लेखिका द्वारा परिचर्चा की गई।
वरिष्ठ लेखिका ज्योति जैन ने अपने सारगर्भित उद्बोधन को, मैं कर सकती हूँ, मैं करूँगी, मैं कुछ बनकर ही रहूँगी प्रण लेती हूँ इन पंक्तियों से प्रारंभ किया। आपने नारी सशक्तिकरण पर यह कहा कि शिक्षा प्राप्त करना या आत्मनिर्भर हो जाना ही सशक्त होना नहीं है। उसके निर्णय लेने की क्षमता ही उसका सशक्त होना है। आज हिन्दी में साहित्य भी समृद्ध है और स्त्री लेखन भी। ज्योति जैन ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से बताया कि किस तरह से उनके पात्र अपने जीवन को जीने के लिए संघर्ष करते हैं उन्होंने कहा कि आज का महिला लेखन वास्तव में बहुत सार्थकता साबित कर रहा है।
स्त्री अस्मिता को लेकर प्रसिद्ध लेखिका जया सरकार ने कहा कि अहिल्याबाई से लेकर मंडन मिश्र की पत्नी तक ने स्त्री अस्मिता और स्त्री की गरिमा को समय-समय पर साबित किया है उन्होंने कहा कि गंगूबाई काठियावाड़ी भी स्त्री अस्मिता का प्रतीक है इस मौक़े पर उन्होंने एक सशक्त कविता भी सुनाई।
इस कविता में स्त्री के अस्तित्व और उस पर उठते सवालों को रेखांकित किया गया है। उन्होंने कहा कि स्त्री की अस्मिता को समझने के लिए हमें उन पात्रों को भी देखना होगा जिन्होंने संघर्ष का जीवन जिया है।
स्त्री अस्मिता को लेकर अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि अब हमें दायरों की आवश्यकता नहीं है। स्त्री विमर्श और पुरुष विमर्श जैसी विभाजन रेखा को तोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि बचपन में हमें दायरों में रहना सिखाया जाता था लेकिन मेरा यह कहना है कि स्त्री लेखन किसी का भी मोहताज नहीं है। उन्होंने कहा कि लेखन को कभी भी विभाजित नहीं किया जाना चाहिए उसी तरह से उन्होंने कहा कि उन्हें अभिमन्यु अनत जो कि मारीशस में रहते थे वह कभी प्रवासी नहीं लगे। कहानियों में पात्र सबक़ सिखाते हैं ऐसा ही वास्तविक जीवन में भी होना चाहिए इस मौक़े पर उन्होंने सशक्त कविता का वाचन भी किया पहले कई महिलाएँ पुरुषों के नाम से लेखन करती थीं भारतेंदु की प्रेरणा मल्लिका रही है। स्त्री की जिजीविषा गुलाबों में से काँटे निकाल देती है। पहले महिलाएँ लिखने के बाद उसे आटे के डब्बे में दबा देती थीं लेकिन आज स्त्री लेखन मुखर होकर सामने आया है। लेखिकाओं की पूरी जमात जो कृष्णा सोबती से शुरू होती है उसका सिलसिला आज तक जारी है। आपने अपने वक्तव्य में महादेवी वर्मा एवं सुभद्रा कुमारी चौहान से लेकर नासिरा शर्मा, मन्नू भण्डारी से होते हुए आधुनिक काल की लेखिकाओं के बारे में बताया।
बीते समय में कैसे लेखिकाओं को संघर्ष करना पड़ता था, उसके बाद समय बदला जिस तरह से मन्नू भण्डारी ने राजनीति को लेकर महाभोज उपन्यास की रचना की वो स्त्री की जिजीविषा एवं अदम्य साहस का परिचय देती है।
सत्र के अंत में वामा मंच की डॉ. अंजना मिश्र के शोध पत्र का वाचन डॉ. शोभा प्रजापति द्वारा किया गया। सत्र का संचालन मधु टाक द्वारा किया गया।
चतुर्थ सत्र अप्रचलित विधाएँ जैसे ललित निबंध यात्रा, वृत्तांत, व्यंग्य लेखन इत्यादि पर केंद्रित था। महिला का अकेला यात्रा करना वाक़ई एक रोमांचक अनुभव है। ट्रैवल ब्लॉगर कोपल जैन ने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि उन्हें पहले ऐसा लगता था कि महिलाओं के लिए अकेले यात्रा करना सुरक्षित नहीं है। लेकिन पिछले कई वर्षों में उन्हें अनुभव हुआ कि यह बात पूरी तरह से ग़लत है। उन्होंने कहा कि यात्रियों के माध्यम से अलग-अलग देशों की तथा अपने ही देश की संस्कृति को जानने का मौक़ा मिलता है। उन्होंने बताया कि उनका प्रिय देश वियतनाम रहा है जहाँ पर वह वहाँ की संस्कृति को नज़दीक से देख कर बेहद आनंदित हुई।
प्रसिद्ध व्यंग्य लेखिका समीक्षा तैलंग ने कहा, कि अबू धाबी के कबूतर और भारत के कबूतर में क्या अंतर है इस पर भी मैंने अपने अनुभव लिखे हैं इसलिए मैं कह सकती हूँ कि किसी भी विषय को देखने के लिए दृष्टि चाहिए इसके बाद तो लेखन बहुत आसान हो जाता है। विषय कोई भी हो सकता है सबसे बड़ी बात यह है कि आपकी दृष्टि क्या है? हमारे आस पास बहुत सारी विसंगतियाँ हैं जो लेखन का विषय होती है। महिला व्यंग्यकार के पास सबसे बड़ा काम बाहर की गंदगी का सफ़ाया करना है और उसे समाज के बीच लाना है। इसलिए आज महिला लेखन का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है।
इस सत्र का संचालन गरिमा मुद्गल ने किया।
पाँचवाँ सत्र साक्षात्कार का था जिसमें वामा साहित्य मंच की अध्यक्ष अमर चड्ढा ने जम्मू कश्मीर से आई प्रसिद्ध लेखिका क्षमा कौल का साक्षात्कार लिया। क्षमा कौलजी ने साक्षात्कार के उल्लेखनीय प्रश्नों के उत्तर में बताया कि किस तरह से इन्होंने कश्मीर में दमन और अत्याचार का माहौल देखा है। उन्होंने कश्मीरी पंडितों के दर्द की बात बताते हुए कहा कि एक बार प्रसिद्ध लेखक नागार्जुन भी उनके साथ कश्मीर गए थे जहाँ वे 1 महीने रहे इस दौरान उन्होंने भी इस बात को महसूस किया था कि यहाँ पर जो कुछ हो रहा है वह बहुत ग़लत है और उन्होंने इस बात की ज़रूरत को महसूस किया था कि यहाँ पर मज़बूत संगठन होना चाहिए उन्होंने कहा कि पहले हमें चुन-चुन कर नहीं बल्कि तिल-तिल करके मारा जाता था। उन्होंने कहा कि एक लेखक के रूप में उन्होंने महसूस किया है कि कश्मीरी पंडितों के दर्द का कोई अंत नहीं है लेकिन अब जागरूकता आ रही है।
सांध्यकालीन सत्र “ओपन माइक” में विभिन्न शहरों से पधारी लेखिकाओं ने काव्य प्रस्तुतियाँ दीं। स्थानीय युवाओं ने, नवांकुरों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस सत्र का संचालन दिव्या मंडलोई और प्रतिभा जैन ने किया।
दूसरे दिन की शुरूआत वर्तमान दौर की लोकप्रिय विधा लघुकथा से हुई यह सत्र लघुकथा पाठ पर आधारित था। इस सत्र में देश विदेश से आई लेखिकाओं द्वारा सशक्त लघुकथाओं का पाठ किया गया। सत्र की की मुख्य अतिथि थी वरिष्ठ लेखिका कांता राय और पत्रकार श्रीमती निर्मला भुराडिया।
सत्र में लेखिकाओं द्वारा सामाजिक विसंगतियों, महिला संघर्ष पर केंद्रित लघुकथाओं का वाचन किया गया। प्रसिद्ध लेखिका कांता राय ने लघुकथा लेखन हेतु मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि समाज में एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं इसके कारण भी बहुत सारी परेशानियाँ सामने आ रही है। बुज़ुर्गों को वृद्धाश्रम में रखा जा रहा है, इसकी विसंगतियाँ भी हमें देखने को मिल रही है। उन्होंने कहा कि आज हमारे समाज में जो बदलाव आ रहे हैं उन सब को अभिव्यक्त करती हैं लघुकथाएँ। आपके अनुसार इस सत्र में जितनी भी लघुकथाओं का पाठ किया गया उनमें कहीं न कहीं कुव्यवस्थाओं और समस्याओं का चित्रण हुआ है।
वरिष्ठ लेखिका निर्मला भुराडिया ने कहा कि लघुकथा को लघु ही होना चाहिए और सबसे बड़ी बात यह है कि उसमें पंच आना चाहिए अभी यह देखने में आता है कि कई लघुकथाएँ लंबी हो जाती हैं लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता कि वह किस उद्देश्य से लिखी गई हैं। इस सत्र का संचालन रूपाली पाटनी और शिरीन भावसार ने किया।
अंतरराष्ट्रीय समागम के नवे सत्र में हिंदी भाषा और साहित्य की प्रधानता को परिलक्षित किया। यह सत्र मार्गदर्शन सत्र रहा। इस सत्र की मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली की सहायक निदेशक डॉ. नूतन पांडेय थी। उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया की भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने राजभाषा विभाग की स्थापना 14 सितंबर 1949 को की और हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसके अनुसार तब से लेकर अब तक हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है इस पखवाड़े में हिंदी भाषा में लेखन कार्य करने वाले लेखकों को राजभाषा हिंदी पुरस्कार, राजभाषा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का प्रावधान है। यदि आप ज्ञान विज्ञान, योग, पत्रकारिता, मीडिया पर्यावरण पर पुस्तक लिख चुके हैं तो उसे राजभाषा वेबसाइट पर प्रेषित करें। अगर आपकी पुस्तक राजभाषा मापदंडों पर खरी उतरती हैं तो उस पुस्तक को नगद पुरस्कार और राजभाषा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता है। उन्होंने हिंदी भाषा में लेखन कार्य से सम्बन्धित सभी सरकारी योजना को विस्तार पूर्वक समझाया। किस तरह सरकारी योजना के माध्यम से लेखक अपने लेख, पांडुलिपियाँ, अनुवाद, शोध पत्र, आलेख और अपनी रचनाओं को त्रैमासिक हिंदी विश्व पत्रिका के माध्यम से प्रचार-प्रसार कर उसे जनमानस तक पहुँचा सकते हैं। अगर आप अच्छे लेखन के पश्चात भी पुस्तक के प्रकाशन में असमर्थ हैं तो केंद्रीय हिंदी निदेशालय प्रकाशन की पांडुलिपि योजना के अंतर्गत ज्ञान विज्ञान मनोविज्ञान, पर्यटन, संस्कृति, धर्म किसी भी विषय में आप अपनी पांडुलिपि का अनुमानित व्यय लिखित में उन्हें प्रेषित कर उसका 80% केंद्र निदेशालय से प्राप्त कर सकते हैं अगर आपकी पांडुलिपि उत्कृष्ट और प्रकाशन हेतु उचित पाई जाती है। साथ ही उन्होंने बताया कि अगर दूसरी भारतीय भाषाओं में आपने अनुवाद कर रखा है तो आप वह भी भेज कर अनुदान राशि प्राप्त कर लाभ उठा सकते हैं। प्राध्यापक व्याख्यानमाला जिसके अंतर्गत विभिन्न विधाओं में आप तीन विश्वविद्यालयों में हिंदी साहित्य में व्याख्यान दे सकती हैं। हिंदी के प्रचार-प्रसार हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता ने रोज़गार के नए आयाम उद्घाटित किए हैं। उन्होंने बताया भारत में 800 से ज़्यादा रजिस्टर्ड कंपनियाँ हैं जो हिंदी में अपना कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि हिंदी कि सारी बोलियों को यदि मिला दिया जाए तो हिंदी को विश्व की नंबर एक की बोली माना जा सकता है। हिंदी को विश्व स्तर पर स्वीकार कर लिया गया है और इसकी लोकप्रियता में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है। हिंदी सीखने में विश्व के कई देश रुचि ले रहे हैं। हिंदी सीखने के कारण रोज़गार के अवसर भी बढ़ते चले जा रहे हैं। डॉ. नूतन ने हिंदी को को विश्व की भाषा कहते हुए उन्होंने अपनी बात समाप्त की।
इस सत्र संचालन संगीता परमार ने किया।
अगला सत्र “अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी की स्थापना वैश्विक अपेक्षाएँ व वर्तमान स्थिति” इस विषय पर केंद्रित था। प्रसिद्ध भाषा सेवी साहित्यकार और अनुवादक अंतरा करवड़े ने कहा कि आज टेक्नॉलोजी का जिस तरीक़े से विस्तार हो रहा है उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले समय में एलेक्सा मालवी भाषा में ना केवल बात करने लगेगी बल्कि हमारे द्वारा बोले गए ग़लत शब्दों को सुधार भी देगी। उन्होंने कहा कि टेक्नॉलोजी ने भाषा के विकास का रास्ता खोल दिया है कई ऐसे उपकरण आ गए हैं जिनकी सहायता से सिर्फ़ बोलकर ही टाइप किया जा सकता है इसके अलावा एलेक्सा ने भी हिंदी अँग्रेज़ी अनुवाद के साथ-साथ बहुत सारी जानकारियों को हमारे तक आसानी से पहुँचा दिया है।
उदयपुर से आई प्रसिद्ध लेखिका रीना मेनारिया ने कहा कि हिंदी भाषा को सम्मान देना ज़रूरी है। घर के बच्चों से भी हमें हिंदी में ही बात करनी चाहिए। विदेशों में जाकर रहने वाले भारतीयों की यही विशेषता है कि भारतीय जहाँ पर भी जाते हैं वह अपनी लोक संस्कृति को नहीं भूलते।
मॉरीशस से पधारी प्रसिद्ध लेखिका प्रोफ़ेसर डॉक्टर अंजली चिंतामणि ने विश्व में हिंदी की वैश्विक स्थिति और उसके विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत से जो भी लोग मॉरीशस सहित विदेशों में गए उन्होंने वहाँ पर हिंदी के विकास के साथ-साथ भारतीय संस्कारों को भी प्रसारित किया है। आपके अनुसार मारीशस में हिंदी संस्थान के माध्यम से हिंदी के विकास का कार्य चल रहा है। हिंदी के विकास के लिए अभी तक 11विश्व हिंदी सम्मेलन हो चुके हैं। मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय कार्य क