ब्रिटेन में कत्थक का मनोहारी प्रदर्शन—दिव्या शर्मा का मंच प्रवेश
स्थान: मिडलैंड आर्ट सेंटर, बर्मिंघम, 14 सितंबर 2024
ब्रिटेन में 14 सितंबर 2024 को मिडलैंड आर्ट सेंटर, बर्मिंघम में दिव्या शर्मा के कथक मंच प्रवेश का आयोजन हुआ। दिव्या पेशे से दंत चिकित्सक हैं। वे प्रसिद्ध कत्थक नृत्यांगना सोनिया साबरी की पहली शिष्या हैं जिनका मंच प्रवेश का कार्यक्रम हुआ। इस कार्यक्रम में दिव्या ने सोनिया साबरी की विशिष्ट कत्थक शैली का शानदार प्रदर्शन किया, जो उनकी वर्षों की निष्ठा, परिश्रम और गहरी श्रद्धा का परिणाम था। दिव्या के नृत्य ने एक अनुभवी कलाकार की गरिमा और परिपक्वता को प्रदर्शित किया, जिसमें लगभग दो घंटे तक शीर्ष स्तर के कत्थक का उत्कृष्ट प्रदर्शन देखने को मिला। उनकी प्रस्तुति की गहराई, शिल्प की सूक्ष्मता और विशिष्टता ब्रिटेन में दुर्लभ अनुभवों में से एक थी।
प्रस्तुति दो भागों में विभाजित थी। पहले भाग में ‘नमः’, ‘होरी’, ‘ठुमरी’ और ‘तराना’ जैसी रचनाएँ थीं, जबकि दूसरे भाग में दिव्या ने तीन ताल पर आधारित प्रदर्शन किया, जिसमें उनकी लयकारी कला का प्रभावशाली प्रदर्शन हुआ। उनके भाई पुलकित शर्मा ने तबले पर संगत दी, जो नृत्य के साथ तालबद्ध सामंजस्य का एक अद्भुत उदाहरण था।
दिव्या की प्रस्तुति में उनका अभिनय और हाव-भाव अत्यंत प्रभावशाली था। प्रत्येक मुद्रा और लय ने कत्थक के गहरे भावों को जीवंत किया, और सोनिया साबरी की शास्त्रीय परंपरा को बख़ूबी प्रस्तुत किया। दिव्या का यह प्रदर्शन पारंपरिक कत्थक की उत्कृष्टता का प्रमाण था।
यह कार्यक्रम ब्रिटेन में पारंपरिक नृत्य और कत्थक को बढ़ावा देने के लिए एक महत्त्वपूर्ण क़दम था और दिव्या जैसी असाधारण नृत्यांगना के इस प्रदर्शन ने भविष्य में और भी मंचों और अवसरों की आवश्यकता को उजागर किया।
बर्मिंघम में उपस्थित भारतीय कौंसुलावस से पधारे चांसरी प्रमुख श्री अमन बंसल इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे। दक्षिण एशियाई नृत्य समुदाय के अग्रणी कलाकार और समर्थक जैसे उस्ताद सरवार साबरी, पियाली रे, चित्रलेखा बोलार, अत्रेयी भट्टाचार्य, विविध क्षेत्रों से उपस्थित कलाप्रेमियों में श्री पद्मेश गुप्त, डॉ. कृष्ण कुमार, सुश्री तितिक्षा शाह की उपस्थिति उल्लेखनीय थी।
—वंदना मुकेश
आगे पढ़ेंताशकंद में राज कपूर पर अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न
मंगलवार दिनांक 17 दिसंबर 2024 को उज़्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न हुआ। राज कपूर शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केंद्र, भारतीय दूतावास ताशकंद एवं ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ ओरिएंटल स्टडीज के संयुक्त तत्त्वावधान में यह परिसंवाद आयोजित किया गया। परिसंवाद का मुख्य विषय था “हिंदी सिनेमा की वैश्विक लोकप्रियता और राज कपूर” ।
परिसंवाद के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता उज़्बेकिस्तान में भारत की राजदूत आदरणीय स्मिता पंत जी ने की । ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज़ की रेक्टर डॉ. गुलचेहरा जी ने स्वागत वक्तव्य दिया । लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केंद्र के निदेशक श्री सितेश कुमार जी ने आयोजन की भूमिका स्पष्ट की । इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में जाने माने फ़िल्म निर्देशक उमेश मेहरा जी उपस्थित थे। उमेश जी ने राज कपूर से जुड़े कई प्रसंगों को साझा किया। वरिष्ठ भारतविद प्रोफेसर उल्फ़त मोहिबोवा ने राज कपूर और उज़्बेकिस्तान के रिश्तों की बारीक़ पड़ताल की । इस अवसर पर प्रयागराज, भारत से प्रकाशित होनेवाली प्रतिष्ठित यूजीसी केयर लिस्टेड शोध पत्रिका ‘अनहद लोक’ के राज कपूर विशेषांक का लोकार्पण भी किया गया। इस परिसंवाद में प्रस्तुत सभी शोध आलेखों को इस अंक के माध्यम से प्रकाशित किया गया है। इस परिसंवाद के संयोजक के रूप में डॉ. मनीष कुमार मिश्रा—विज़िटिंग प्रोफेसर, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद, हिंदी चेयर एवं डॉ. निलोफ़र खोदेजेवा ने परिसंवाद की प्रस्ताविकी प्रस्तुत की । इस अवसर पर लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केंद्र द्वारा उर्दू की किताबें विश्वविद्यालय को प्रदान की गई। उज़्बेकिस्तान के उस्तादों को सम्मानित करने की योजना को शुरू करने की बात भारत की उज़्बेकिस्तान में राजदूत आदरणीय स्मिता पंत जी के माध्यम से की गई।
उद्घाटन सत्र के बाद पहले तकनीकी सत्र की शुरुआत हुई जिसकी अध्यक्षता स्कूल ऑफ़ फ़ॉरेन लैंग्वेजेज़, जामिया मिल्लिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के डॉ. रिजवान और ताशकंद स्टेट युनिवर्सिटी के डॉ. सिराजुद्दीन ने संयुक्त रूप से की । इस सत्र में कुल 11 शोध आलेख प्रस्तुत किए गए। शोध आलेख प्रस्तुत करने वाले विद्वानों में अहमदजान कासिमोव, प्रोफ़ेसर उल्फ़त मोहिबोवा, प्रवीण कुमार, मंजू रानी, डॉ. नवीन कुमार, डॉ. सुमेरा खालिद, डॉ. कमोला रहमतजोनवा, निर्मातोव जुबैदा, शम्सीकामर तिलोवमुरादोवा और स्मततुलेवा मोतबार शामिल थीं ।
दूसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता मुंबई के सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अवकाश जाधव ने की । इस सत्र में कुल 10 शोध आलेख प्रस्तुत किए गए। शोध आलेख प्रस्तुत करने वाले विद्वानों में डॉ. मनीषा पाटिल, नूतन वर्मा, श्वेता कुमारी, प्रोफ़ेसर हेमाली संघवी, डॉ. स्वाती जोशी, डॉ. अनुराधा शुक्ला, डॉ. उर्वशी शर्मा, डॉ. लोकेश जैन, रजनी देवी और विक्रम सिंह शामिल रहे।
तीसरे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता व्यंकटेश्वर कॉलेज, नई दिल्ली में इतिहास विभाग के अध्यक्ष प्रोफ़ेसर निर्मल कुमार ने की । इस सत्र में कुल 12 शोध आलेख प्रस्तुत किए गए। शोध आलेख प्रस्तुत करने वाले विद्वानों में डॉ. रीना सिंह, परमेश कुमार, डॉ. प्रभा लोढ़ा, डॉ. संतोष मोटवानी, डॉ. नवल पाल, गायत्री जोशी, डॉ. हर्षा त्रिवेदी, डॉ. उषा आलोक दुबे, डॉ. गुरमीत सिंह, प्रीती उपाध्याय, डॉ. सुधा वी गदक, डॉ. दीप्ति और डॉ. बी एस हेमलता शामिल रहीं ।
चौथे तकनीकी सत्र की अध्यक्षता अनहद लोक पत्रिका की संपादक डॉ. मधु रानी शुक्ला ने की । इस सत्र में कुल 13 शोध आलेख प्रस्तुत किए गए। शोध आलेख प्रस्तुत करने वाले विद्वानों में गरिमा जोशी, विजय पाटिल, नेहा राठी, डॉ. कल्पना, डॉ. प्रतिमा, डॉ. वंदना पूनिया, प्रभात कुमार, प्रियंका ठाकुर, ज्योति शर्मा, डॉ. आशुतोष वर्मा, प्रकाश नारायण त्रिपाठी, सोनाली शर्मा, डॉ. दानिश खान, वंदना त्रिवेदी और डॉ. गुलज़बीन अख्तर शामिल रहीं। ऑनलाइन सत्रों के कुशल संयोजन में परवीन कुमार ने महती भूमिका निभाई।
भोजनावकाश के बाद समापन सत्र की शुरुआत हुई। इस सत्र में परिसंवाद रिपोर्ट डॉ. मनीष कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत की । डॉ. निलोफ़र खोदेजेवा ने प्रतिभागियों के मंतव्य सुने । सभी प्रतिभागियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। अंत में परिसंवाद संयोजक के रूप में डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एवं डॉ. निलोफर खोदेजेवा ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया। इस तरह सुखद वातावरण में यह एक दिवसीय अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न हुआ।
काव्यांजलि: महिला क्रिश्चियन कॉलेज में भारतीय भाषा दिवस का उत्सव
महिला क्रिश्चियन कॉलेज ने हाल ही में भारतीय भाषा दिवस मनाया, जो प्रसिद्ध तमिल कवि और स्वतंत्रता सेनानी सुब्रमणिय भारती जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह दिन उनके साहित्य, सामाजिक सुधार और भारतीय भाषाओं के प्रचार में उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए समर्पित था।
उनकी धरोहर को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए हिंदी और तमिल भाषा विभाग के संयुक्त तत्त्वावधान में काव्यांजलि का आयोजन किया गया। इसके तहत ‘हिंदी काव्य की विधाएँ’ कार्यशाला का संचालन कीर्ति प्राप्त कवयित्री शोभा चोरड़िया जी ने किया, जो एक प्रतिष्ठित साहित्यिक शख़्सियत हैं। भाषा पर उनकी प्रगाढ़ पकड़ और उनकी रचनाओं में गहरे भावनात्मक तत्त्व के लिए प्रसिद्ध, अपनी कविता में न केवल सौंदर्य, बल्कि गहरी बौद्धिक समृद्धि का समावेश करने में माहिर हैं। हिंदी प्रोफ़ेसर एवं भाषा विभागाध्यक्षा डॉ. सुनीता जाजोदिया ने स्मृति चिह्न भेंट कर श्रीमति शोभा चौरड़िया जी का स्वागत किया।
‘हिंदी काव्य विधाएँ’ नामक कार्यशाला के दौरान, शोभा जी ने हिंदी काव्य के विभिन्न रूपों, जैसे नई कविता, गीत, हाइकु और अन्य काव्य अभिव्यक्तियों की रचनात्मक प्रक्रिया को समझाया। उनके मार्गदर्शन से छात्रों को कविता लेखन की कलात्मक जटिलताओं की गहरी समझ प्राप्त हुई। उनके अनुभव ने इस कार्यक्रम को और भी सशक्त बनाया, क्योंकि उन्होंने कविता की रचनात्मक प्रक्रिया पर छात्रों के साथ मूल्यवान विचार साझा किए।
कार्यक्रम में एक और महत्त्वपूर्ण आकर्षण था विभिन्न प्रतियोगिताएँ जैसे मौलिक कविता प्रस्तुति, कल्पना चित्र और बस एक मिनट, जिनमें छात्रों को अपनी रचनात्मकता और काव्य कौशल दिखाने का अवसर मिला। शोभा चोरड़िया जी ने इन प्रतियोगिताओं का मूल्यांकन किया और छात्रों को रचनात्मकता की सीमाओं को चुनौती देने के लिए प्रोत्साहित किया, साथ ही उनके काव्य कौशल को सुधारने के लिए निर्माणात्मक प्रतिक्रिया दी।
यह कार्यशाला और प्रतियोगिताएँ छात्रों को अपनी रचनात्मकता व्यक्त करने और भाषा की शक्ति से गहरे स्तर पर जुड़ने के लिए प्रेरित करती हैं। कुल मिलाकर, यह कार्यक्रम एक नई पीढ़ी को हिंदी कविता की समृद्धि की खोज करने और उसका उत्सव मनाने के लिए प्रेरित करने में सफल रहा।
विजेताओं की सूची:
मौलिक कविता प्रस्तुति:
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प्रथम स्थान-अवनि धनकु एम (एम ओ पी वैष्णव कॉलेज फ़ॉर वुमेन)
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दूसरा स्थान-साक्षी यादव (एथिराज कॉलेज फ़ॉर वुमेंन)
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तीसरा स्थान-शिवानी झा (एस एस एस शासुन जैन कॉलेज)
कल्पना चित्र:
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विजेता-नाथिया जी (एथिराज कॉलेज फ़ॉर विमेन)
बस एक मिनट:
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प्रथम स्थान-साक्षी यादव (एथिराज कॉलेज फ़ॉर वुमेन)
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दूसरा स्थान-शिवानी झा (एस एस एस शासुन जैन कॉलेज)
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तीसरा स्थान-दिव्या शर्मा (डी जी वैष्णव कॉलेज)
शिवना नवलेखन पुरस्कार 2024 की घोषणा
‘शिवना नवलेखन पुरस्कार’ 2024 की घोषणाः रश्मि कुलश्रेष्ठ और शुभ्रा ओझा की साहित्य में दस्तक
डॉ. परिधि शर्मा का कहानी संग्रह और डॉ. अनन्या मिश्र के संस्मरण अनुशंसित।
सीहोर। साहित्य के क्षेत्र नए लेखकों की आमद साहित्य को समृद्ध करती है। शुक्रवार को शिवना के नवलेखन पुरस्कारों की घोषणी हुई। जिसके ज़रिये चार नए लेखकों ने साहित्य के क्षेत्र में दस्तक दी। शिवना नवलेखन पुरस्कार को शुरू करने की पहल समिति की अध्यक्ष सुधा ओम ढींगरा ने शिवना साहित्य समागम में की थी। जिसके बाद शिवना प्रकाशन के संचालक शहरयार ने पुरस्कार के लिए युवा लेखकों की पांडुलिपियाँ आमंत्रित की थीं। नवलेखकों ने बड़ी संख्या में अपनी पांडुलिपि सीहोर कार्यालय में शहरयार, इंदौर में ज्योति जैन, खंडवा में शैलेन्द्र शरण, दिल्ली में पारुल सिंह और अमेरिका में चयन समिति की अध्यक्ष सुधा ओम ढींगरा को भेजी। जिसके बाद चयन समिति ने पुरस्कार के लिए पांडुलिपियों में से चयन किया। ‘शिवना नवलेखन पुरस्कार’ 2024 के लिए रश्मि कुलश्रेष्ठ के उपन्यास ‘शेष रहेगा प्रेम’ और शुभ्रा ओझा के कहानी संग्रह ‘आख़िरी चाय’, को संयुक्त रूप से घोषित किया गया। इन्हें नई दिल्ली विश्व पुस्तक मेला 2025 में पुरस्कृत किया जाएगा। साथ ही नवलेखकों की किताबों का विमोचन लेखक मंच पर विश्व पुस्तक मेले में ही किया जाएगा।
पुरस्कृत लेखकों के साथ ही दो लेखकों की किताबों को समिति ने अनुशंसित भी किया है। जिसमें डॉ. परिधि शर्मा का कहानी संग्रह ‘प्रेम के देश में’ और डॉ. अनन्या मिश्र का संस्मरण ‘कही अनकही’ शामिल है। अनुशंसित किताबों का विमोचन भी विश्व पुस्तक मेले में ही किया जाएगा। शुक्रवार को घोषणा ऑनलाइन की गई। जिसमें नामों की घोषणा समिति अध्यक्ष सुधा ओम ढींगरा ने की किताबों के बारे में विस्तार से साहित्यकार पंकज सुबीर ने चर्चा की। कार्यक्रम का संचालन आकाश माथुर ने किया।
आकाश माथुर
मीडिया प्रभारी
मोबाइल 7000373096
राजकीय उत्कृष्ट वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गाहलियां में धूमधाम से मनाया वार्षिकोत्सव
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
राजकीय उत्कृष्ट वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला गाहलियां में वार्षिक पारितोषिक वितरण समारोह आयोजित किया गया। समारोह की मुख्य अतिथि SMC प्रधान सुमन देवी रही साथ ही गाहलियां पंचायत की प्रधान, उप प्रधान, पंचायत प्रतिनिधि और गाँव के अन्य गणमान्य व्यक्ति अतिथि के रूप में शामिल हुए और कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। समारोह का शुभारंभ सरस्वती वंदना से शुरू हुआ। इस दौरान प्रधानाचार्य गुलशन अवस्थी ने वार्षिक रिपोर्ट समस्त उपस्थित मेहमानों और अभिभावकों के सामने पेश की। उन्होंने कहा कि विद्यालय में पढ़ रहे बच्चों को शिक्षा देने के लिए हर सम्भव प्रयास किया जा रहा है तथा समय-समय पर खेलों के क्षेत्र व अन्य गतिविधियों की भागीदारी भी सुनिश्चित की जाती है। इस मौक़े पर विद्यालय की पत्रिका स्मृतिका का विमोचन भी हुआ। मंच का संचालन नवनीत वालिया और वीणा देवी ने किया। इस मौक़े पर सभी विद्यार्थियों को पुरस्कार के तौर पर मोमेंटो, शिक्षा से संबंधित सामग्री देकर सम्मानित किया गया, जो पूरे वर्ष की गतिविधियों-वार्षिक परीक्षा परिणाम, खेल क्षेत्र व अन्य समस्त कार्यक्रमों में प्रथम, द्वितीय व तृतीय स्थान पर रहे। इस अवसर पर विद्यार्थियों ने पहाड़ी गीत, देशभक्ति गीत, पंजाबी-हरियाणवी नृत्य, पहाड़ी नाटी की साथ ही प्राथमिक विद्यालय गाहलियां के बच्चों ने भी अपनी प्रस्तुतियाँ पेश करके उपस्थित लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम को सफल बनाने में राजीव डोगरा, विकास चौधरी, भारती, विनोद कुमार, अजय कोटी, पंकज धलोरिया, संजीव कुमार शर्मा, शिल्पा, रजनी शाह, राधा देवी, सोनू बाला, रंजना देवी, मनीषा, निम्मो देवी, मीनाक्षी देवी, हेमलता, संगीता, विक्रम सभी अध्यापकों का योगदान रहा।
आगे पढ़ेंपाठ्यपुस्तकों में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ
साहित्यकार एवं सुपरिचित कुण्डलियाकार और उत्तर पश्चिम रेलवे में इंजीनियर त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ विभिन्न पाठ्यपुस्तकों में संकलित की गयी हैं। ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस की कक्षा-3 की हिन्दी पाठ्यपुस्तक ऑक्सफ़ोर्ड एडवांटेज हिंदी पाठमाला भाग-2 में उनकी कविता ‘अंतरिक्ष की सैर’, शिक्षण की कक्षा-2 की हिंदी पाठ्यपुस्तक अक्षर दीपिका में उनकी बाल कविता ‘उपवन के फूल’ तथा केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम के आधार पर तैयार की गयी कक्षा-5 की हिंदी पाठ्यपुस्तक ‘नवीन सुबोध भारती हिंदी पाठमाला-5’ में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कविता ‘गंध गुणों की बिखराएँ’ सम्मिलित की गयी है।
उल्लेखनीय है कि राजस्थान साहित्य अकादमी के शंभूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार से पुरस्कृत एवं पण्डित जवाहर लाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी (जयपुर) सहित अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी कुमारभारती’ सहित लगभग चार दर्जन पाठ्यपुस्तकों में स्थान पा चुकी हैं। नया सवेरा, काव्यगंधा, समय की पगडंडियों पर, आनन्द मंजरी और सात रंग के घोड़े उनकी चर्चित कृतियाँ हैं।
आगे पढ़ेंलघुकथा सर्वाधिक आकर्षित करने वाली विधा है—डॉ. विकास दवे
नगर की साहित्यिक संस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित किए गए सप्तम अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2024 में अध्यक्ष पद से बोलते हुए साहित्य अकादमी के निदेशक डॉ. विकास दवे ने कहा कि, “लघुकथा का शिल्प अद्भुत होता है और यह सर्वाधिक आकर्षित करने वाली विधा है। आज के समय में इस विधा में बहुत सारे लेखक सामने आए हैं जो बहुत अच्छा लेखन कर रहे हैं।” सारस्वत अतिथि कथाबिम्ब के संपादक प्रबोध कुमार गोविल ने कहा, “लघुकथा दीवार में खिड़की की तरह होती है विस्तार को देखने के लिए खिड़की खोल देना पर्याप्त होता है यही लघुकथा का शिल्प होता है।” दिल्ली से पधारे वरिष्ठ कथाकार बलराम अग्रवाल ने कहा कि, “लघुकथा का शिल्प विधान कहानी के शिल्प विधान से अलग होता है। लघुकथा का प्रबल पक्ष उसकी संप्रेषण शक्ति है। लघुकथा में मौन मुखर हो जाता है।” अग्निधर्मा की संपादक और प्रखर पत्रकार डॉ शोभा जैन ने कहा कि, “लेखक जिस भाषा का इस्तेमाल करता है उससे साहित्य का मापदंड ही नहीं बल्कि समय से जुड़ी सभ्यता का बोध भी निर्धारण होता है। भाषा रचना के एक पात्र की ज़ुबान के साथ पाठक के लिए एक विचार भी होती है।
शिल्प की कोई निजी प्रामाणिक परिभाषा नहीं होती है। एक स्वंत्रता इकाई होते हुए भी वास्तव में बहुत सी अन्य ईकाइयों पर निर्भर रहता है। शिल्प इस बात पर निर्भर करता है कि उसे किस चीज़ के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
जैसे ताजमहल का अपना शिल्प है क़ुतुबमीनार का अपना तो संसद भवन का अपना।”
उन्होंने कहा कि, “लघुकथा में जो नहीं कहा जाता वह महत्त्वपूर्ण होता है। लघुकथाकार को इसे ही समझना होगा। रचना और घटना में अंतर है। घटना का विवरण पत्रकारिता होती है। रचना एक वैचारिक उद्वेलन है। संवाद हो, परस्परिक अर्थवत्तापूर्ण अनुबंधन होना ज़रूरी है।”
प्रथम सत्र के प्रारंभ में अतिथियों के द्वारा सरस्वती का पूजन किया गया एवं सुषमा शर्मा ‘श्रुति’ के द्वारा सरस्वती वंदना प्रस्तुत की गई। इस सत्र में सूर्यकांत नागर को लघुकथा का शिखर सम्मान, सिरसा से पधारी डॉ. शील कौशिक को समालोचना सम्मान, रश्मि स्थापक को नवलेखन सम्मान एवं अंतरा करवड़े को समग्र सम्मान प्रदान किया गया। इसके अतिरिक्त देशभर से पधारे हुए 43 अन्य साहित्यकारों को पद्म विभूषण सम्मान, पद्म भूषण सम्मान, लघुकथा रत्न सम्मान एवं कृति सम्मान से सम्मानित किया गया। संस्था द्वारा आयोजित वैश्विक लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं का भी सम्मान किया गया। क्षितिज संस्था के द्वारा प्रकाशित की गई लघुकथा पत्रिका एवं अन्य कई पुस्तकों का इस आयोजन में लोकार्पण किया गया। इस वार्षिक पत्रिका का संपादन सतीश राठी एवं दीपक गिरकर के द्वारा किया गया है।
संस्था अध्यक्ष सतीश राठी के द्वारा अतिथियों का परिचय और स्वागत भाषण दिया गया।
दूसरे सत्र में लघुकथाओं में मनोविज्ञान विषय पर बोलते हुए अदिति सिंह भदोरिया ने कहा कि, “लघुकथा में जहाँ पर संवेदना और अंतर्द्वंद्व होते हैं वहाँ पर मनोविज्ञान शुरू हो जाता है। आज के समय में पुराने विषयों से हटकर नए विषय और नए शिल्प की नए मनोविज्ञान के साथ आवश्यकता है।” देश की जानी-मानी साहित्यकार ज्योति जैन ने कहा कि, हिंदी भाषा का साहित्य बहुत समृद्ध है जिसे निरंतर पढ़ा जाना चाहिए। उन्होंने बाल मनोविज्ञान के साथ स्त्री और पुरुष के मनोविज्ञान पर भी अपने विचार प्रस्तुत किए। लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की निदेशक कांता राय ने इस बात पर प्रसन्नता व्यक्त की कि, “अब लघुकथा के सृजन से धुँध हट रही है और लघुकथा का आकाश स्वच्छ हो रहा है। प्राचीन काल से परिमार्जित होकर ही नूतन लघुकथाओं को लिखने की प्रेरणा मिल रही है और मनुष्य के मनोविज्ञान की समझ आ रही है।” इस सत्र का संचालन प्रीति दुबे के द्वारा किया गया।
आयोजन के तीसरे सत्र में लघुकथा की आकारगत विशेषता और मारक शक्ति विषय पर प्रख्यात समालोचक डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने कहा कि लघुकथा के आकार का कोई पैमाना नहीं होता। विषय अपना आकार स्वयं चयन कर लेता है। उन्होंने विभिन्न उदाहरणों से लघुकथा के आकार और मारक शक्ति पर विषय को समझाने का काम किया। भोपाल से आई डॉ. वर्षा ढोबले ने भी इस विषय पर अपने विचार अभिव्यक्त किए। इस सत्र का संचालन सुषमा व्यास राजनिधि के द्वारा किया गया।
आयोजन के चतुर्थ सत्र में प्रसिद्ध नाट्य कर्मी नंदकिशोर बर्वे के द्वारा पाँच लघुकथाओं का भावपूर्ण वाचन किया गया। इस सत्र में लगभग 25 लघुकथाकारों के द्वारा लघुकथा पाठ किया गया। प्रख्यात साहित्यकार अश्विनी कुमार दुबे के द्वारा एवं कथाकार बलराम अग्रवाल के द्वारा इन समस्त लघुकथाओं पर प्रभावी विवेचना प्रस्तुत की गई। संस्था के कोषाध्यक्ष सुरेश रायकवार के द्वारा आभार व्यक्त किया गया।
आयोजन में मुंबई, दिल्ली, जयपुर, भोपाल, पंजाब, हरियाणा, बिहार, देवास, उज्जैन, बीकानेर, इन्दौर और अन्य कई शहरों से लघुकथाकारों ने अपनी सहभागिता प्रदान की।
दीपक गिरकर
सचिव: क्षितिज संस्था, इंदौर
28-सी, वैभव नगर, कनाडिया रोड,
इंदौर-452016
मोबाइल: 9425067036
मेलआईडी:deepakgirkar2016@gmail.com
19 नवम्बर को कुण्डलिया दिवस के रूप में मनाया गया
सुपरिचित कुण्डलियाकार और साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला के आह्वान पर साहित्यकारों द्वारा 19 नवम्बर को ‘कुण्डलिया दिवस’ के रूप में मनाया गया।
इस अवसर पर प्रज्ञालय संस्थान, बीकानेर द्वारा नगर की समृद्ध साहित्यिक परंपरा में प्राचीन एवं महत्त्वपूर्ण छंद विधान का काव्य रूप कुण्डलिया पर केन्द्रित कुंडलिया दिवस स्थानीय सुदर्शन कला दीर्घा नागरी भण्डार में वरिष्ठ आलोचक डॉ. उमाकांत गुप्त की अध्यक्षता एवं राजस्थानी के वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा के मुख्य आतिथ्य में कुंडलिया वाचन एवं कुंडलियों पर गंभीर चर्चा के साथ संपन्न हुआ।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार कमल रंगा ने कहा कि राजस्थानी भाषा साहित्य के लिए यह गौरव की बात है कि कुंडलिया छंद राजस्थानी के रासो साहित्य की देन है, क्योंकि इसके प्राचीनतम पद-छंद उल्लेख राजस्थानी के ‘हमीर रासो’ में मिलते हैं। रंगा ने आगे कहा कि कुंडलिया अपने परंपरागत रूप-स्वरूप के साथ नव-बोध, नव कथ-शिल्प के साथ आधुनिक संदर्भों से रची-बसी अपनी यात्रा को आगे बढ़ा रही है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ आलोचक डॉ. उमाकांत गुप्त ने कुंडलिया छंद के इतिहास एवं उसके साहित्यिक पक्षों पर आलोचनात्मक एवं तथ्यात्मक गंभीर चर्चा करते हुए कुंडलिया छंद के संदर्भ ने कहा कि तुलसीदास से लेकर आज आधुनिक काल तक कुंडलिया काव्य की एक सशक्त विधा है।
डॉ. गुप्त ने आगे कहा कि आज सभी भारतीय भाषाओं में कुंडलियों का रचाव हो रहा है। महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस संदर्भ में महिला रचनाकार भी अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दे रही है। जिससे काव्य की यह उपविधा निरंतर समृद्ध हो रही है।
कार्यक्रम में कवि रवि शुक्ल ने अपनी हिन्दी में रचित कुण्डलियों का वाचन करते हुए वातावरण को कुंडलियामय बना दिया और सभी श्रोता कुण्डलियों की मीठी लय का आनंद लेने लगे। शुक्ल ने अपनी कुंडलियों की विषयवस्तु को समसामयिक संदर्भो में जोड़ते हुए कुंडलियों के नए तेवर प्रस्तुत किए।
कवि राजाराम स्वर्णकार ने राजस्थानी और हिन्दी में कुण्डलियों का वाचन करते हुए सभी उपस्थित गरिमायमय श्रोताओं का मन मोह लिया। आपने प्रकृति के साथ-साथ अन्य विषयों को केन्द्र में रखकर कुण्डलियों का वाचन किया।
प्रारंभ में सभी का स्वागत करते हुए कवि गिरिराज पारीक ने आयोजन के महत्त्व को बताते हुए कुंडलिया छंद पर महत्त्वपूर्ण कार्य करने वाले त्रिलोकसिंह ठकुरेला द्वारा इस क्षेत्र में की गई सृजनात्मक सेवाओं का उल्लेख किया। साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने कुण्डलिया छंद के लिए अभूतपूर्व कार्य किया है। उन्होंने अन्य साहित्यकारों को कुण्डलिया छंद लिखने के लिए प्रेरित करते हुए अनेक कुण्डलिया संकलनों का सम्पादन किया है। उन्होंने कई पत्रिकाओं के कुण्डलिया विशेषांकों का सम्पादन किया है। गिरिधर के बाद त्रिलोक सिंह ठकुरेला प्रथम रचनाकार हैं, जिनकी कुण्डलियाँ पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं
इस अवसर पर ख़ासतौर से बंगाल कोलकाता से आए प्रवासी राजस्थानी वरिष्ठ शिक्षाविद् एवं साहित्यकार श्रीमती दुर्गा पारीक का एवं उनके पति जवाहर पारीक का माला, शॉल, एवं दुपट्टा अर्पित कर प्रज्ञालय संस्थान द्वारा सम्मान किया गया।
कार्यक्रम में जुगल किशोर पुरोहित, श्रीमती दुर्गा पारीक एवं जवाहर पारीक ने भी अपने विचार रखे।
कार्यक्रम का सफल संचालन कवि रवि शुक्ल ने किया एवं आभार डॉ. फारूख चौहान ने ज्ञापित किया।
कुण्डलिया दिवस के अवसर पर सुरजीत मान जलईया सिंह द्वारा सम्पादित साहित्य रत्न नामक ई-पत्रिका और सुभाष चंद्र पांडे द्वारा दैनिक ग्राम टुडे ने अपने अपने कुण्डलिया-परिशिष्ट प्रकाशित किये।
कुण्डलिया दिवस के दिन अनेक साहित्यकारों ने विभिन्न सोशल साइट्स पर अपनी अपनी कुण्डलियाँ पोस्ट कीं। त्रिलोक सिंह ठकुरेला के अतिरिक्त डॉ. बिपिन पाण्डेय, परमजीत कौर ‘रीत’, हरिओम श्रीवास्तव सहित अनेक साहित्यकारों ने कुण्डलिया दिवस की आवश्यकता और उपयोगिता को प्रतिपादित किया करते हुए इसके महत्त्व पर बल दिया और सुनिश्चित किया कि 19 नवम्बर को प्रति वर्ष कुण्डलिया दिवस के रूप में मनाते हुए कुण्डलिया छंद के उत्थान के लिए और अधिक कार्य किया जायेगा।
आगे पढ़ें34वीं तमिलनाडु राज्य स्तरीय रोलर स्केटिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण
चेन्नई,
20.10.2024
तमिलनाडु रोलर स्केटिंग एसोसिएशन द्वारा चेन्नई स्थित शेनोय नगर स्केटिंग रिंक में 34वाँ तमिलनाडु राज्य स्तरीय रोलर स्केटिंग डर्बी चैम्पियनशिप स्पर्धा में चेन्नई की जूनियर वर्ग की खिलाड़ियों ने स्वर्ण पदक जीता।
इस टीम में आरुषि चौरसिया (टीम कप्तान), शाविल्या ऑरियन बाबू (वाइस कप्तान) के साथ हँसुजा, वुल्ली श्रीसाहिती, निखिताश्री और दक्षा एस. सम्मिलित हैं। इन खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा दिखाकर स्वर्ण पदक जीता।
टीम कोच किरण चौरसिया, टीम मैनेजर रोहिणी, मृदुभाषिणी, कनकवल्ली, स्केटिंग किड्स एसोसीएशन के निदेशक विजय तथा तमिलनाडु रोलर स्केटिंग एसोसिएशन के प्रधान सचिव टी ऐन सी एम चोक्कलिंगम ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया और शुभकामनाएँ दीं।
आगे पढ़ेंराष्ट्रपाल गौतम के एकांकी नाटक ‘गोबर के गेहूँ’ पर परिचर्चा
नव दलित लेखक संघ, दिल्ली ने ‘नाटक और कविता की संगत’ नामक गोष्ठी का आयोजन किया। गोष्ठी में सर्वप्रथम हाल ही में परिनिर्वाण को प्राप्त हुए लक्ष्मीनारायण सुधाकर जी को आदरांजलि देते हुए दो मिनट का मौन रखा गया। तत्पश्चात् राष्ट्रपाल गौतम द्वारा रचित एकांकी नाटक ‘गोबर के गेहूँ’ पर चर्चा हुई। साथ ही उपस्थित कवियों का उम्दा काव्यपाठ भी हुआ। शाहदरा स्थित संघाराम बुद्ध विहार में रखी गई इस गोष्ठी का संयोजन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया। अध्यक्षता डॉ. कुसुम वियोगी ने की और संचालन मामचंद सागर ने किया। गोष्ठी में डॉ. कुसुम वियोगी, मामचंद सागर, राष्ट्रपाल गौतम, पुष्पा विवेक, डॉ. पूरन सिंह, डॉ. ऊषा सिंह, डॉ. गीता कृष्णांगी, डॉ. अमित धर्मसिंह, लोकेश कुमार, मदनलाल राज़, राधेश्याम कांसोटिया, देवराज सिंह देव, इंद्रजीत सुकुमार, एदल सिंह और विकास कुमार आदि कविगण उपस्थित रहे।
गोबर के गेहूँ एकांकी नाटक पर बोलते हुए डॉ. अमित धर्मसिंह ने कहा, “‘गोबर के गेहूँ’ नाटक आज़ादी से पूर्व की पृष्ठभूमि से लेकर वर्तमान तक फैला हुआ ऐतिहासिक और सामाजिक नाटक है। यह न सिर्फ़ दलित दशा को उद्घाटित करता है अपितु संबंधित सामाजिक कुरीति का प्रतिरोध भी करता है। अपने कथ्य, संवाद, भाषा, शैली और मंचन आदि को लेकर, यह एक सफल एकांकी नाटक है। डॉ. कुसुम वियोगी ने कहा, “यह जातीय अथवा सामाजिक भेदभाव से अधिक वर्ग संघर्ष का नाटक है। इसमें किसी भी प्रकार की सामाजिक बुराई का प्रतिरोध नज़र नहीं आता, बल्कि अपने-अपने सामाजिक स्तर को ऊँचा बनाए रखने की क़वायद दिखाई पड़ती है।” राष्ट्रपाल गौतम ने कहा कि नाटक में गोबर के गेहूँ खाने की जिस घटना का वर्णन किया गया है, वह मेरे साथ स्टुडेंट टाइम में घटित हुई थी। उस समय तो मैं कुछ कह नहीं सका था, बाद में जब यह नाटक मैंने यह लिखा तब भी मैंने इसके विषय में इतना नहीं सोचा था, जितना कि आज इस नाटक पर समीक्षकों ने कहा है। इसके लिए मैं नदलेस का आभारी हूँ, ख़ासकर डॉ. अमित धर्मसिंह और इस पर बात रखने वाले सभी वक्ताओं का।” इनके अलावा मदनलाल राज़, मामचंद सागर, पुष्पा विवेक, इंद्रजीत सुकुमार, देवराज सिंह देव आदि ने भी नाटक पर विशेष टिप्पणियाँ की।
नाटक पर परिचर्चा के उपरांत उपस्थित कवियों का काव्यपाठ हुआ। डॉ. पूरन सिंह ने दीवारें और भूख शीर्षक से दो कविताएँ पढ़ीं। उन्होंने दीवारें कविता में पढ़ा, “बचपन में मैं और रामसनेही साथ-साथ खेला करते थे/ . . . हम बड़े हुए तब समझ आया कि रामसनेही सिर्फ़ रामसनेही नहीं है/वह रामसनेही चमार है/ . . . बस दीवारें खड़ी होने लगीं।” एदल सिंह ने बाबा की ज्योति शीर्षक से लोकगीत में रसिया कुछ यूँ पढ़ा, “बाबा की ज्योति बड़ी प्यारी/जो दिल में कर दे उजियारी/मैं तुझको रहा समझाए/मत पड़े पिछारी देवन के।” इनके अलावा मदनलाल राज़, डॉ. अमित धर्मसिंह, इंद्रजीत सुकुमार, देवराज सिंह देव, राष्ट्रपाल गौतम, पुष्पा विवेक, डॉ. कुसुम वियोगी, मामचंद सागर और राधेश्याम कांसोटिया आदि ने भी अपनी-अपनी बेहतरीन कविताएँ प्रस्तुत कर, गोष्ठी को सफल एवं सार्थक बनाने में महती योगदान दिया। अंत में डॉ. पूरन सिंह द्वारा उपलब्ध करवायी गई, डी.के. भास्कर द्वारा सम्पादित ‘डिप्रेस्ड एक्सप्रेस’ (मासिक पत्रिका) की कुछ प्रतियों का हाईलाइट किया गया। सभी उपस्थित कवियों का सादर धन्यवाद पुष्पा विवेक ने किया।
प्रेषक
लोकेश कुमार
हिंदी साहित्य में सूफ़ी संतों का योगदान-संगोष्ठी संपन्न—युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल सत्रहवीं संगोष्ठी 13 अक्टूबर 2024 (रविवार) 4 बजे से आयोजित की गई।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, तेलंगाना एवं आंध्र प्रदेश शाखा) ने प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह कार्यक्रम प्रखर
व्यंग्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय (दिल्ली) की अध्यक्षता में संपन्न हुई। नगर की सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सुषमा देवी बतौर मुख्य वक्ता एवं वरिष्ठ साहित्यकार एवं प्रखर समीक्षक डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ) बतौर विशिष्ट अतिथि मंचासीन रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ संगीतज्ञ सुश्री शुभ्रा महंतो के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात् प्रदेश इकाई की अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने सम्माननीय अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया।
उन्होंने संस्था का परिचय देते हुए कहा-युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, दिल्ली (पंजीकृत न्यास) एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक विशेष उद्देश्य है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. जयप्रकाश तिवारी ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा, “‘साधक और साध्य’, ‘बंदे और ख़ुदा’ के बीच ‘निर्मल प्रेम तत्त्व’ को सूफ़ियों ने इतनी तल्लीनता से हृदयंगम होकर सींचा है कि हिन्दी साहित्य की निर्गुण धारा में ‘प्रेमाख्यान काव्यधारा’ नाम से एक नई नवेली, दुलारी, प्यारी परंपरा ही चल पड़ी, जिसे ‘संत साहित्य’ के नाम से सूफ़ी संतों, मुस्लिम संतों और भारतीय संतों ने मिल-जुल कर गाया। जुगलबंदी, संगति ऐसी कि प्रेम और प्रेम में विरह भक्ति, प्रेमी के लिए तड़प, प्रणय और सायुज्य की ललक भक्ति का एक निर्मल मानक बनकर ‘भक्तिकाल’ को हिंदी साहित्य का मुकुटमणि, स्वर्ण काल बना गया।
“निष्कर्ष: हम कह सकते हैं कि भक्तिकाल के विकास और उसे हिंदी साहित्य का ‘स्वर्णकाल’ बनाने में सूफियों का महत्त्वपूर्ण योगदान है।”
मुख्य वक्ता डॉ. सुषमा देवी ने अपने तथ्यपरक एवं शोधपूर्ण वक्तव्य में कहा, “हिंदी साहित्य को स्वर्ण युग बनाने में सूफ़ी संतों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। प्रबंध काव्य शैली, लोक जीवन की उपस्थिति, लोक भाषा के माध्यम से भारतीय सांस्कृतिक चेतना के विकास में सूफ़ी संतों ने अप्रतिम योगदान दिया। भारतीय सांस्कृतिक समन्वय की विराट चेष्टा करते हुए विविधता में एकता की दृष्टि को सूफ़ी संतों ने पुष्ट किया।”
संगोष्ठी के अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा, “सूफ़ी कवियों ने वेदांत, ज्योतिष, संगीत, काव्य शास्त्र, तत्त्व ज्ञान, शरीर, जीवात्मा और मनोवृत्तियों को लेकर प्रेम-कहानियों को काव्य रूप में हिन्दू कवियों की तरह ही गूँथा है। इन सभी सूफ़ी संत कवियों ने पाठकों के सभी वर्गों की रुचि का ध्यान रखते हुए प्रेम, शास्त्र-ज्ञान और वैराग्य तीनों का समन्वय करके हिंदी साहित्य/काव्य को समृद्ध ही नहीं किया बल्कि हिंदी-मुस्लिम समाज के मध्य सौहार्द स्थापित करने का एक श्लाघनीय प्रयास भी किया है। सभी सूफ़ी कवि हिंदी साहित्य में अपने अमूल्य योगदान हेतु हमेशा याद रखे जायेंगे।”
इस परिचर्चा में डॉ. राशि सिन्हा ने अपने महत्त्वपूर्ण विचार प्रस्तुत करके सहभागिता निभाई और दर्शन सिंह एवं बिनोद गिरि अनोखा ने गुरु वाणी पर बात रखी।
तत्पश्चात् दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्य पाठ करके वातावरण को ख़ुशनुमा बना दिया। सुश्री विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष), शिल्पी भटनागर, दर्शन सिंह, डॉ. सुषमा देवी, डॉ. राशि सिन्हा, सरिता दीक्षित, डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), प्रियंका पाण्डे, किरण सिंह, इंदु सिंह, बिनोद गिरि अनोखा, शुभ्रा महंतो, राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस‘ (लखनऊ), शोभा देशपाण्डे, उषा शर्मा, डॉ. किरण कुमारी (रांची) काव्यपाठ किया। श्री रामकिशोर उपाध्याय (दिल्ली) ने अध्यक्षीय टिप्पणी में कहा कि आज की संगोष्ठी बहुत सफल और सार्थक रही। सभी रचनाकारों की विविध रससम्पृक्त रचनाओं गीत, ग़ज़ल, मुक्तक, कविता, क्षणिका एवं भक्ति गीत की प्रस्तुति ने सुन्दर समां-सा बाँध दिया। उन्होंने सभी को बधाई और शुभकामनाएँ दीं और अध्यक्षीय काव्य पाठ किया।
तृप्ति मिश्रा, रमाकांत श्रीवास, पूनम झा (दिल्ली), भगवती अग्रवाल, डॉ. सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव) डॉ. ममता श्रीवास्तव ‘सरूनाथ’ (दिल्ली) रेखा अग्रवाल ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
संगोष्ठी का संचालन सुश्री शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) ने किया और सुश्री किरण सिंह के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।
प्रेषक डॉ. रमा द्विवेदी, अध्यक्ष /युवा उत्कर्ष
फोन: 9849021742
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा उज़्बेकिस्तान में खोज रहे हैं हिंदी की नई बोलियाँ
माना जाता है कि दूसरी शताब्दी के आस पास कुछ घुमंतू जातियाँ मध्य एशिया, अफ़्रीका, यूरोप और अमेरिका की तरफ़ गईं और अलग-अलग स्थानों पर रहने लगीं। समय के साथ इन्होंने अपनी मूल भाषा को खो दिया और स्थानीय भाषाओं को बोलचाल के लिए स्वीकार कर लिया। इन्हें मूल रूप से जिप्सी कहा जाता है।
मध्य एशिया के देश उज़्बेकिस्तान में भी ऐसे कई समुदाय रहते हैं। इन लोगों को यहाँ स्थानीय उज़्बेक भाषा में लोले या लोली कहा जाता है। इनके बीच भी कई समुदाय हैं जैसे कि अफ़गान, मुल्तान, पारया, जोगी, मजांग, क़व्वाल, चिश्तानी, सोहूतराश और मुगांत इत्यादि। ये सभी भारत से हैं या नहीं यह शोध का विषय है।
इस सम्बन्ध में विधिवत शोध कार्य न के बराबर हुए हैं। डॉ. भोलानाथ तिवारी ने ताशकंद रहते हुए अफ़गान समूह की भाषा पर काम किया और उनकी भाषा को “ताजुज्बेकी” नाम देते हुए इसे हिंदी की एक नई बोली बताई। लेकिन वे लोले या जिप्सियों को इनसे अलग मानते हैं।
डॉ. मनीष कुमार मिश्रा इन दिनों ICCR हिन्दी चेयर पर उज़्बेकिस्तान में हैं और ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज़ में हिंदी भाषा के विज़िटिंग प्रोफ़ेसर के रूप में कार्यरत हैं। आप भारतीय दूतावास उज़्बेकिस्तान के सहयोग से इन समुदायों एवम इनकी भाषाओं का अध्ययन कर भारत से इनके सम्बन्धों की पड़ताल कर रहे हैं। सम्भव है कि जल्द ही हिंदी की कुछ नई बोलियों का पता लगाने में वे सफल हो जाएँ।
आगे पढ़ेंउज़्बेकिस्तान में एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद संपन्न
बुधवार, दिनांक 18 सितंबर 2024 को लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद, उज़्बेकिस्तान में आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद की शुरूआत सुबह 10 बजे हुई। परिसंवाद का मुख्य विषय था “उज़्बेकिस्तान में हिंदी: दशा और दिशा।” इस परिसंवाद के उद्घाटन सत्र में अध्यक्ष के रूप में उज़्बेकिस्तान में भारत सरकार की राजदूत आदरणीय स्मिता पंत जी उपस्थित थीं। बीज वक्ता के रूप में वरिष्ठ हिंदी भाषाविद श्री बयोत रहमतोव और मुख्य अतिथि के रूप में ताशकंद स्टेट यूनिवर्सिटी ऑफ़ ओरिएंटल स्टडीज से डॉ. निलूफर खोजाएवा ऑनलाईन माध्यम से उपस्थित हुईं।
कार्यक्रम की शुरूआत अतिथियों द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके हुई। लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद के कल्चरल डायरेक्टर श्री सीतेश कुमार जी ने स्वागत भाषण देते हुए केंद्र की आगामी योजनाओं की भी चर्चा की। प्रस्ताविकी परिसंवाद संयोजक के रूप में डॉ. मनीष कुमार मिश्रा ने प्रस्तुत करते हुए सत्र का संचालन भी किया। मुख्य अतिथि डॉ. निलुफर खोजाएवा जी ने आयोजन की सफलता के लिए बधाई देते हुए अपने संस्थान में हिंदी की गतिविधियों की जानकारी दी। बीज वक्ता के रूप में श्री बयोत रहमतोव जी ने विस्तार से उज़्बेकिस्तान में इंडियन डायसपोरा की चर्चा करते हुए भोलानाथ तिवारी के कार्यों को याद किया। इस अवसर पर परिसंवाद में प्रस्तुत शोध आलेखों की पुस्तक का लोकार्पण भी मान्यवर अतिथियों के द्वारा किया गया। इस पुस्तक का सम्पादन डॉ. मनीष कुमार मिश्रा एवं डॉ. निलुफ़र खोजाएवा जी ने किया। इस एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए प्राप्त शोध आलेखों में से कुल 30 शोध आलेखों को ISSN JOURNAL ( 2181-1784), 4(22), September 2024, www.oriens.uz के माध्यम से प्रकाशित किया गया है।
वरिष्ठ हिन्दी प्राध्यापिका डॉ. सादिकोवा मौजूदा काबिलोवना जी की पाठ्यक्रम केंद्रित पुस्तक का भी इस अवसर पर लोकार्पण हुआ। इस कार्यक्रम में ऑन लाईन माध्यम से भारत समेत कई अन्य देशों के हिंदी विद्वान उत्साहपूर्वक जुड़े रहे। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में आदरणीय स्मिता पंत जी ने लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद की साहित्यिक एवं सांस्कृतिक गतिविधियों की प्रशंसा की। हिंदी के प्रचार प्रसार हेतु ऐसे आयोजनों की सार्थकता पर आप ने विस्तार से चर्चा करते हुए आगामी आयोजनों के लिए हर सम्भव सहायता का आश्वासन भी दिया। उज़्बेकिस्तान में जनवरी 2025 में हिन्दी ओलम्पियाड़ आयोजित करने की योजना पर भी आप ने प्रकाश डाला।
उद्घाटन सत्र के बाद प्रथम और द्वितीय चर्चा सत्र की शुरूआत हुई जिसकी अध्यक्षता वरिष्ठ हिंदी भाषाविद डॉ. सादिकोवा मौजूदा काबिलोवना जी ने की। इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए उनमें शाहनाजा ताशतेमीरोवा, कमोला अखमेदोवा, प्रवीण कुमार, नेमातो युरादिल्ला, डॉ. उषा आलोक दुबे, तिलोवमुरोडोवा शम्सिक़मर, निकिता, डॉ. कमोला रहमतजनोवा, डॉ. हर्षा त्रिवेदी, श्रीमती नेहा राठी, डॉ. राजेश सरकार और प्रो. उल्फ़त मोहीबोवा जी शामिल रहीं। इनमें से कई विद्वान ऑन लाईन माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े रहे। ऑन लाईन माध्यम से संगोष्ठी से जुड़े अन्य विद्वानों में डॉ. फ़तहुद दिनोवा इरोदा, युनूसोवा आदोलत, अखमदजान कासीमोव, डॉ. सिराजूद्दीन नुर्मातोव, संध्या सिलावट, डॉ. प्रियंका घिल्डियाल समेत अनेकों लोग देश-विदेश से शामिल थे।
दोपहर के भोजन के उपरांत तीसरे चर्चा सत्र की शुरूआत हुई। इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ हिन्दी भाषाविद श्री बयोत रहमतोव जी ने की। इस सत्र में जिन विद्वानों ने अपने शोध आलेख प्रस्तुत किए उनमें अज़ीज़ा योरमातोवा, जियाजोवा बेरनोरा मंसूर्वोना, मोतबार स्मतुलायवा, हिदायेव मिरवाहिद, खुर्रामो शुकरुल्लाह, डॉ. शिल्पा सिंह और डॉ. ठाकुर शिवलोचन शामिल रहे। इस सत्र में भी भारत से कई विद्वान ऑन लाइन माध्यम से प्रपत्र वाचक के रूप में जुड़े।
तीसरे सत्र के बाद समापन सत्र की शुरूआत हुई। प्रतिभागियों ने इस आयोजन के संदर्भ में खुलकर अपने विचार प्रकट किए। अंत में लाल बहादुर शास्त्री संस्कृति केन्द्र, ताशकंद के कल्चरल डायरेक्टर श्री सीतेश कुमार जी के हाथों प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र और शोध आलेखों की पुस्तक भेंट की गई। अंत में डॉ मनीष कुमार मिश्रा ने सभी के प्रति आभार ज्ञापित किया और परिसंवाद समाप्ति की घोषणा की। इस तरह यह एक दिवसीय राष्ट्रीय परिसंवाद सम्पन्न हुआ।
आगे पढ़ेंचेतना साहित्य मंच के बैनर तले पुस्तक विमोचन समारोह
गाडरवारा की भूमि साहित्य की रत्नगर्भा भूमि है—श्रीमती स्थापक
महाराणा प्रताप कॉलेज के ऑडिटोरियम में चेतना साहित्य मंच के बैनर तले वरिष्ठ साहित्यकार द्वय सुशील शर्मा की चार और नरेंद्र श्रीवास्तव की पाँच पुस्तकों का विमोचन संपन्न हुआ।
पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक और नगर पालिका अध्यक्ष शिवाकांत मिश्रा के मुख्याथित्य, कुशलेंद्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवम मुकेश जैन, महंत बालकदास व मिनेंद्र डागा के सारस्वत आथित्य में सरस्वती पूजन के उपरांत विमोचन समारोह प्रारंभ हुआ।
सर्वप्रथम नरेंद्र श्रीवास्तव की पाँच पुस्तकों ‘रास्ते तो हैं’, ‘शाबाश’, ‘होनहार अवि’, ‘बात पते की’ और ‘अभी उम्मीद है’ का विमोचन संपन्न हुआ। उसके पश्चात सुशील शर्मा की ‘हिंदी साहित्य और भारतीय संस्कृति’, ‘लोक साहित्य एवम पर्यावरण’, ‘हैलो ज़िन्दगी’ और ‘आधुनिक बुद्ध ओशो’ नामक पुस्तकों का विमोचन हुआ।
साहित्यकार नरेंद्र श्रीवास्तव ने अपनी पुस्तकों के बारे में जानकारी देते हुए कहा कि बच्चों के लिए बहुत कम साहित्य लिखा जा रहा है आज ज़रूरत है कि बच्चों को ऐसा साहित्य पढ़ने को मिले जिससे उनके अंदर संस्कारों का निर्माण हो।
सुशील शर्मा ने कहा साहित्य मनुष्यता की अभिव्यक्ति है, साहित्य के माध्यम से हम अतीत से अंतर्दृष्टि प्राप्त कर सकते हैं वर्तमान को समझ सकते हैं और भविष्य को आकार दे सकते हैं।
चेतना मंच के संरक्षक मिनेंद्र डागा ने दोनों साहित्यकारों को समाज का प्रहरी निरूपित किया उन्होंने कहा साहित्य से समाज में जागरूकता आती है।
समाजसेवी मुकेश जैन ने दोनों रचनाकारों के कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इनका साहित्य पढ़ने से हमारी नई पीढ़ी में संस्कारों का सृजन होगा।
महंत बालक दास ने ओशो पर किताब लिखने पर सुशील शर्मा को बधाई दी उन्होंने कहा ओशो के विचार हमें वास्तविक जीवन से परिचय कराते हैं।
नगरपालिका अध्यक्ष पंडित शिवाकांत मिश्रा ने कहा कि इस सम्पूर्ण सृष्टि के वास्तुकार साहित्यकार और शिक्षक होते हैं यही समाज में जागृति पैदा कर समाज और देश को ऊर्जावान बनाते हैं।
श्रीमती साधना स्थापक ने अपने उद्बोधन में कहा कि इस संसार में सब कुछ मिट जाता है सिर्फ़ साहित्यकार के शब्द कालजयी होते हैं, साहित्यकार संस्कृति के दूत होते हैं उनके शब्दों और भावों से समाज में सृजन क्रांति आती है।
वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेंद्र श्रीवास्तव ने वर्तमान पीढ़ी में मरती संवेदनाओं के प्रति गहन चिंता व्यक्ति की उन्होंने कहा कि इस भटकती पीढ़ी को कोई सही दिशा दे सकता है तो वह सिर्फ़ साहित्य ही है।
चेतना साहित्य मंच की ओर से दोनों साहित्यकारों को शाल श्रीफल और सम्मानपत्र भेंटकर सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर ताई क्वांडो के राष्ट्रीय कोच गिरिराज किशोर भट्ट सहित नेशनल खिलाड़ियों और रेफरी, यूसीमास के राष्ट्रीय स्तरीय प्रतियोगिता के विजेता छात्रों, हिंदी की सेवा करने वाले शिक्षिकाओं श्रीमती निर्मला पाराशर, श्रीमती स्वाति चौहान, श्रीमती शिवा ताम्रकार और श्रीमती भागवती मेहरा को विशिष्ट चेतना सम्मान से सम्मानित किया गया। यूसीमास के संचालक नवीन चौबे द्वारा गणितीय विधा और गिरिराज किशोर भट्ट द्वारा ताइकोंडो विधा पर जानकारी दी गई॥
कार्यक्रम का सफल संचालन विजय नामदेव ‘बेशर्म’ ने किया एवम आभार प्रदर्शन नागेंद्र त्रिपाठी द्वारा किया गया।
इस अवसर पर महेश अधरूज, संदीप स्थापक, वेणिशंकर पटेल, मलखान मेहरा, तरुण, शिरीष पाटकर, सूर्यकांत मेहरा, ब्रजेश पांडेय, तुलसीकांत, लक्ष्मीकांत, अनुपम ढिमोले, राजेश बरसैयां मोहरकांत गूजर, डॉ. मंजुला शर्मा, अर्चना शर्मा, निर्मला पाराशर, आशीष राय, प्रदीप बिजपुरिया, ब्रजेश आदि ने दोनों साहित्यकारों का सम्मान किया। कार्यक्रम में नगर की विभिन्न संस्थाओं के प्रबुद्धजन शामिल हुए।
आगे पढ़ेंवैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा का योगदान विषयक त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन संपन्न
त्रिनिदाद यात्रा से डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की रिपोर्ट
हिंदी है हृदय की भाषा: रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल
व्यावहारिक स्तर पर हिंदी अपनाएँ, सांस्कृतिक धरोहर को अंतरित करें: डॉ. प्रदीप राजपुरोहित
पोर्ट ऑफ़ स्पेन, त्रिनिदाद और टोबैगो। “त्रिनिदाद की जनता के लिए हिंदी हृदय की भाषा है। ऐसी हिंदी भाषा को तथा उसकी संस्कृति को सुनिश्चित रखना अनिवार्य है। भले ही यह कार्य कठिन है लेकिन असाध्य नहीं। त्रिनिदाद में बसा हुआ हर भारतीय मूल का परिवार अपनी संस्कृति और सभ्यता, विशेष रूप से अपनी भाषा हिंदी को सुरक्षित रखने के लिए संघर्ष कर रहा है।”
माउंट होप, त्रिनिदाद में स्थित महात्मा गाँधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के सभागार में 6 से 8 सितंबर, 2024 तक भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ़ स्पेन द्वारा आयोजित “त्रि-दिवसीय अंतरराष्ट्रीय क्षेत्रीय हिंदी सम्मेलन” का उद्घाटन करते हुए अटॉर्नी जनरल कार्यालय और क़ानूनी मामलों के मंत्रालय की मंत्री रेणुका संग्रामसिंह सुखलाल ने उक्त विचार व्यक्त किए। उन्होंने यह भी चिंता व्यक्त की कि कैरेबियन देशों में भारतवंशी पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने बच्चों को भारतीय संस्कृति, सभ्यता और हिंदी भाषा को अंतरित करने में असमर्थ हो रहे हैं।
भारतीय उच्चायोग, पोर्ट ऑफ़ स्पेन के उच्चायुक्त डॉ. प्रदीप राजपुरोहित ने सबका स्वागत करते हुए कहा कि सबको व्यावहारिक स्तर पर हिंदी को अपना चाहिए। पंडिताऊ भाषा के स्थान पर सामान्य बोलचाल की हिंदी का प्रयोग करना चाहिए। ऐसा करने से हिंदी भाषा में निहित सांस्कृतिक एवं लोक धरोहर को पीढ़ी-दर-पीढ़ी अंतरित किया जा सकता है। उन्होंने यह चिंता व्यक्त की कि त्रिनिदाद में बसे भारतीय मूल के लोग अपनी भाषा को अक्षुण्ण रख पाने में असमर्थ अनुभव करने लगे हैं। हिंदी भाषा, विशेष रूप से बोलचाल की भाषा, पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि दूतावास स्कूली स्तर पर हिंदी कक्षाएँ चलाने का प्रयास कर रहा है। हिंदी सीखने के लिए प्रोत्साहन के रूप में छात्रवृत्ति देने के लिए भी तैयार है। उन्होंने त्रिनिदाद वासियों से अपील की कि हर व्यक्ति अपनी ज़िम्मेदारी समझकर हिंदी के प्रचार-प्रसार में आगे बढ़े। उन्होंने यह प्रश्न किया कि क्या स्थानीय शिक्षण संस्थाएँ इस कार्य को अंजाम देने में उच्चायोग का सहयोग करने के लिए तैयार हैं?
पोर्ट ऑफ़ स्पेन स्थित राष्ट्रीय भारतीय संस्कृति परिषद (एनसीआईसी) के अध्यक्ष देवरूप तीमल ने कहा कि भाषा जीवन के साथ एकीकृत है। उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया कि वैश्विक स्तर पर हिंदी को बढ़ावा देने के लिए नेटवर्किंग आवश्यक है। आगे उन्होंने कहा कि त्रिनिदाद और टोबैगो में स्थित भारतीय मूल के वासियों में भारतीय संस्कृति ‘रामचरित मानस’ के रूप में विद्यमान है। भले ही यहाँ के लोग अर्थ न जानते हों, लेकिन मानस के पद कंठस्थ करते हैं। यह इसलिए क्योंकि भारतीयता उनके डीएनए में विद्यमान है।
भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव रवींद्र प्रसाद जायसवाल ने कहा कि भारतीयता को समझने की कुंजी है हिंदी भाषा। यदि हम सांस्कृतिक अस्मिता को अक्षुण्ण रखना चाहते हैं तो क्षेत्रीय रंगों को भी अपनाना होगा। उन्होंने भी यही चिंता व्यक्त की कि इस यात्रा में हिंदी भाषा कहीं पीछे छूट रही है।
राष्ट्रीय पुस्तकालय और सूचना प्रणाली प्राधिकरण (नालिस) के चेयरमैन नील पर्सनलाल ने हिंदी भाषा, भारतीय सभ्यता और संस्कृति के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी में हिंदी भाषा के प्रति रुचि जगाने के लिए पुरज़ोर कोशिश किए जाने की ज़रूरत है।
त्रिनिदाद में स्थित हिंदी निधि के अध्यक्ष चंका सीताराम ने हिंदी भाषा को त्रिनिदाद और टोबैगो के भाषाई समाज में पुनः स्थापित करने के लिए युवा पीढ़ी से अपील की।
कार्यक्रम के आरंभ में वरिष्ठ पत्रकार उमेश उपाध्याय को श्रद्धांजलि दी गई। इस अवसर पर महात्मा गाँधी सांस्कृतिक सहयोग संस्था के छात्र और अध्यापकों ने गायन तथा भरतनाट्यम नृत्य प्रस्तुत किया। ‘हिंदी, शिक्षा और संस्कृति’, पोर्ट ऑफ़ स्पेन के द्वितीय सचिव शिवकुमार निगम ने धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन आशा महाराज और ऋषा मोहम्मद ने किया।
उद्घाटन के बाद विचार सत्रों में त्रिनिदाद और टोबैगो के साहित्यकारों, समाजशास्त्रियों और अर्थशास्त्रियों के साथ-साथ भारत, सूरीनाम, गयाना, अमेरिका से पधारे विद्वानों ने इस सम्बन्ध में अपने-अपने विचार व्यक्त किए। प्रथम विचार सत्र में देवरूप तीमल की अध्यक्षता में कमला रामलखन (त्रिनिदाद), सत्यानंद हेरोल्ड परमसुख (सूरीनाम), विकास रामकिसुन (सांसद, गयाना) ने कैरेबियाई क्षेत्र में बोली जाने वाली हिंदी के विभिन्न रूपों पर प्रकाश डाला। इस विचार सत्र से यह तथ्य सामने आया कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा को सुरक्षित रखने के प्रयास किए जा रहे हैं। यह भी कि सूरीनाम में आज भी ‘सूरीनामी हिंदी’ बोली जाती है जो भोजपुरी और हिंदी का मिश्रित रूप है। विद्वानों ने यह कहा कि हिंदी और भारतीय संस्कृति उनकी अस्मिता है। इन कैरेबियाई क्षेत्रों में ‘रामचरित मानस’ ने हिंदू समाज को जोड़कर रखा है। यदि यहाँ के समाज में आज भी हिंदी जीवित है तो उसका श्रेय ‘मानस’ को ही जाता है। यहाँ के लोग ‘रामायण’ और ‘वेद’ को भी अंग्रेज़ी में ही पढ़ते हैं। गायन और संगीत के कारण यहाँ के लोग अपनी मूल संस्कृति के निकट हैं।
डॉ. हितेन्द्र कुमार मिश्र (शिलांग) की अध्यक्षता में संपन्न द्वितीय विचार सत्र में हिंदी भाषा को सीखने के लिए उपलब्ध संसाधनों के बारे में चर्चा करते हुए हिमांचल प्रसाद (गयाना), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), डॉ. प्रदीप के. शर्मा (सिक्किम) ने यह बताया कि गीत-संगीत, सिनेमा, लोकसंगीत, लोक नाटक आदि के माध्यम से भाषा सीखी और सिखाई जा सकती है। आज के समय में सोशल मीडिया के कारण तथा तकनीकी विकास के कारण इतने सारे मोबाइल एप्लीकेशन्स हैं कि भाषा सीखने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (चेन्नै) की अध्यक्षता में संपन्न तृतीय विचार सत्र में डॉ. निवेदिता मिश्र (त्रिनिदाद), रफ़ी हुसैन (त्रिनिदाद), इंदिरा (त्रिनिदाद) और डॉ. मिलन रानी जमातिया (त्रिपुरा) ने हिंदी के विकास में विदेशी विद्वानों के योगदान पर प्रकाश डाला और यह सिद्ध किया कि यदि उचित वातावरण उपलब्ध हो तो भाषा सीखने में समस्या नहीं होगी। भाषा सीखने के लिए पहली शर्त है जिज्ञासा और ज़रूरत।
चतुर्थ विचार सत्र में सूरजदेव मंगरू (त्रिनिदाद और टोबैगो), डॉ. शिवानंद महाराज (यूडब्ल्यूआई), राणा मोहिप (त्रिनिदाद और टोबैगो), कृष रामखलावन (सूरीनाम) ने ‘बैठक गाना’, ‘चटनी संगीत’ और ‘शास्त्रीय संगीत’ के बारे में बताते हुए व्यावहारिक तौर पर दर्शाया कि इनके माध्यम से कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी भाषा आज तक कैसे जीवित है।
हर विचार सत्र के बाद पैनल चर्चा हुई। रामप्रसाद परशुराम (त्रिनिदाद) की अध्यक्षता में संपन्न पैनल चर्चा में आशा मोर (त्रिनिदाद), नितिन जगबंधन (सूरीनाम), डॉ. नवलकिशोर भाबड़ा (अजमेर), सुनैना परीक्षा रागिनीदेवी (सूरीनाम) और स्वामी ब्रह्मस्वरूप नंदा (त्रिनिदाद और टोबैगो) ने यह प्रतिपादित किया कि रामायण, महाभारत जैसे महाकाव्य कैरेबियाई क्षेत्र के लोगों की आत्मा में बसते हैं। आज की पीढ़ी अपनी जड़ों की ओर लौटने के लिए पुरज़ोर कोशिश कर रही हैं। अपनी भाषा हिंदी को सीखने की कोशिश कर रही है। डॉ. विद्याधर शाह की अध्यक्षता में संपन्न चर्चा में डॉ. हितेंद्र मिश्र, ईशा दीक्षित (त्रिनिदाद), कादंबरी आदेश (फ्लोरिडा) ने भाषा के विकास में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की भूमिका पर प्रकाश डाला। नील पर्सनलाल की अध्यक्षता में संपन्न विचार सत्र में डॉ. प्रदीप के शर्मा, डॉ. शशिधरन (केरल), डॉ. मिलन रानी जमातिया, विकास रामकिसुन ने हिंदी भाषा सीखने में फ़िल्मों की भूमिका पर प्रकाश डाला।
चर्चा-परिचर्चा के उपरांत उच्चायुक्त और सांसदों ने यह घोषणा की कि कैरेबियाई क्षेत्रों में हिंदी विकास के लिए अनिवार्य क़दम उठाए जाएँगे। यह भी निर्णय लिया गया कि हिंदी सीखने के लिए जो छात्र आगे आएँगे उन्हें छात्रवृत्ति देकर प्रोत्साहित किया जाएगा। इतना ही नहीं, प्राथमिक स्तर पर हिंदी भाषा को अनिवार्य रूप से पाठ्यक्रम में शामिल करने का प्रस्ताव भी सरकार के समक्ष रखा जाएगा।
त्रि-दिवसीय सम्मेलन के दौरान चर्चा-परिचर्चाओं के अलावा, कैरेबियाई क्षेत्रों में प्रसिद्ध बैठक गाना, चटनी संगीत, लोक नृत्य, शास्त्रीय नृत्य आदि का प्रदर्शन किया गया जिससे संपूर्ण वातावरण जीवंत हो उठा। 000
प्रस्तुति—डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
आगे पढ़ेंदीप्ति जी के पात्र अपने वुजूद के लिए नहीं बल्कि जीवनमूल्यों और संस्कारों को बचाने के लिए संघर्ष करते हैं—शीन काफ़ निज़ाम
जाने-माने आलोचक डॉ. कौशलनाथ उपाध्याय द्वारा सम्पादित आलोचना ग्रन्थ ‘कथाकार दीप्ति कुलश्रेष्ठ: सृजन के विविध आयाम’ के लोकार्पण का भव्य कार्यक्रम अंतरराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त शाइर एवं चिंतक शीन काफ निज़ाम की अध्यक्षता में जोधपुर के होटल चंद्रा इम्पीरियल में संपन्न हुआ। निज़ाम ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में आलोचना और आलोचना की बारीक़ियों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, “दीप्ति जी के पात्र अपने वुजूद के लिए नहीं बल्कि जीवनमूल्यों और संस्कारों को बचाने के लिए संघर्ष करते हैं। ये पात्र लेखक के हाथ की कठपुतलियाँ नहीं हैं, वे जीवित पात्र हैं। उन्होंने यह भी कहा कि हर रचनाकार और उसकी रचना को एक अच्छे पाठक की ज़रूरत होती है और दीप्ति जी को और उनके उपन्यासों ऐसे पाठक मिले हैं।”
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ.सुनीता जाजोदिया, सचिव, तमिलनाडु हिंदी साहित्य अकादमी ने शिरकत करते हुआ कहा, “यदि समाज का व्यष्टिरूप रोगी और अस्वस्थ है, मनोविकार ग्रस्त और असंतुलित है तो स्वस्थ व सुंदर समष्टिरूप की आशा करना व्यर्थ है। दीप्ति जी का लेखन 'माइक्रो लेवल' के लिए है ताकि 'मैक्रो लेवल' की एक सुंदर तस्वीर प्राप्त हो सके।”
अपने सम्पादकीय उद्बोधन में डॉ. कौशलनाथ उपाध्याय ने कहा, “दीप्तिजी अपने हर एक उपन्यास में एक स्पष्ट विज़न लेकर चलती हैं; विज़न – खुलकर जीने का, अन्याय के प्रतिकार का, अतीत की नकारात्मकता-निषेधात्मकता से बाहर आने का, वर्तमान को सँवारने का, एक दूसरे का सहायक बनने का, अपने साथियों की ख़ूबियों को बाहर लाने का। और इन सब के साथ वे जीवन-मूल्यों को स्थापित करने में रचनात्मक योग देती हैं।”
इससे पूर्व लोकार्पित कृति के परिचय पर अपना पत्र प्रस्तुत करते हुआ डॉ. रंजना उपाध्याय ने कहा, “यह कृति उनकी रचना-यात्रा का अब तक का मुक़म्मल दस्तावेज़ है। एक ऐसा दस्तावेज़ जिसमें न मालूम कितने पात्र हैं जो समय एवं समाज के बीच अपनी सकारात्मक-नकारात्मक छाप छोड़ते हुए चलते हैं और दीप्ति जी उन सब के साथ यात्रा करती हैं।” बतौर विशिष्ट अतिथि राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा ‘मीरां पुरस्कार’ से सम्मानित (2018) कथा-लेखिका दीप्ति कुलश्रेष्ठ ने भी संपादित पुस्तक के विषय में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त किया।
कार्यक्रम का संचालन कवयित्री एवं गीतकार मधुर परिहार ने किया और अतिथियों का स्वागत प्रतिष्ठित कथाकार डॉ. शालिनी गोयल ने किया। कार्यक्रम में शहर के जाने-माने साहित्यकार जैसे हबीब कैफ़ी, डॉ. पद्मजा शर्मा, प्रगति गुप्ता, डॉ. सरोज कौशल, जागृति उपाध्याय, मीठेश निर्मोही, दिनेश सिंदल, हरिप्रकाश राठी, कालूराम परिहार, डॉ. हरिदास व्यास, ब्रजेश अंबर, इश्राकुल इस्लाम माहिर, कविता डागा, मनीषा डागा, नीतेश व्यास, अर्जुनलाल मीणा, रामेश्वर राठौड़, डॉ. वीणा चुण्डावत, संध्या शुक्ला, नीना छिब्बर, सत्येन्द्र छिब्बर, मोहित कुलश्रेष्ठ, रुचि कुलश्रेष्ठ, सोनल कुलश्रेष्ठ, विनोद गहलोत, रेणुका श्रीवास्तव सहित अनेक साहित्यकार मौजूद थे।
(डॉ. कौशलनाथ उपाध्याय)
आगे पढ़ेंबृजलोक अकादमी द्वारा सत् साहित्य भेंट
फतेहाबाद।
स्वतंत्रता दिवस के स्वर्णिम अवसर पर एस.के.जी. पब्लिक स्कूल ग्राम रिहावली के प्रबंधक महोदय होतम सिंह को बृजलोक साहित्य कला संस्कृति अकादमी (ट्रस्ट) के सौजन्य से विद्यालय के पुस्तकालय हेतु सत् साहित्य व ग़रीब छात्र-छात्राओं के लिए शैक्षणिक सामग्री ट्रस्ट के अध्यक्ष-मुकेश कुमार ऋषि वर्मा ने भेंट की।
इस अवसर पर विद्यालय के सभी अध्यापक व सैकड़ों छात्र-छात्राएँ मौजूद रहे।
ज्ञात हो बृजलोक अकादमी नियमित सत् साहित्य का प्रकाशन व वितरण करती आ रही है। ट्रस्ट के माध्यम से एक पुस्तकालय—ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय व एक विद्यापीठ ऋषि वैदिक विद्यापीठ का संचालन हो रहा है। ट्रस्ट जल्द अन्य सामाजिक व राष्ट्रहित के सेवा कार्यों को विस्तार रूप देगा।
आगे पढ़ेंअंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन
साहित्य संकाय, त्रिपुरा विश्वविद्यालय, न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फ़ॉउंडेशन और सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के संयुक्त तत्वावधान में दिनांक 14 अगस्त 2024 की शाम स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर एक अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन का आयोजन किया गए।
प्रो. विनोद कुमार मिश्र, अधिष्ठाता, साहित्य संकाय, त्रिपुरा विश्वविद्यालय की अध्यक्षता में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में डॉ. राजेश श्रीवास्तव, संयुक्त निदेशक, राजभाषा विभाग, गृह मंत्रालय, भारत सरकार की गरिमामय उपस्थिति रही।
न्यू मीडिया सृजन संसार ग्लोबल फ़ॉउंडेशन की संस्थापक निदेशक श्रीमती पूनम चतुर्वेदी शुक्ला के संयोजन में आयोजित इस अंतरराष्ट्रीय कवि सम्मेलन में 7 देशों के 12 रचनाकारों ने अपनी कविताओं का पाठ किया। इन रचनाकारों में मॉरीशस से डॉ. कल्पना लालजी ऑस्ट्रेलिया से प्रिया शुक्ला, इंदौर से सुषमा दूबे, श्रीलंका से वजिरा गुणसेन, क़ुवैत से डॉ. विनोद कौशिक, पटना से नूतन सिन्हा और पूनम आनंद, दरभंगा से डॉ. अमरकांत कुमर, फरीदाबाद से मनोरंजन तिवारी आदि शामिल थे। कार्यक्रम का संचालन सृजन ऑस्ट्रेलिया अंतरराष्ट्रीय ई-पत्रिका के के प्रधान संपादक डॉ। शैलेश शुक्ला ने किया।
आगे पढ़ेंचित्रकला के माध्यम से बिखेरे मन के रंग
अलीगढ़।
‘अभिनव बालमन’ द्वारा मांती बसई स्थित ‘बोहरे द्वारिका प्रसाद शर्मा इंटर कॉलेज’ में ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन किया गया।
बच्चों की दुनिया की अपनी सुन्दरता है। उसी सुंदर दुनिया से रंग लेकर बच्चों ने उन्हें अपने मन से तूलिका पर उकेरा।
विद्यालय के संरक्षक शिशुपाल शर्मा ने कहा कि बच्चों के बीच इस तरह का आनंद चित्रकला ने पैदा किया है। बच्चों का उत्साह ग़ज़ब का रहा।
विद्यालय की प्रधानाचार्या करुणा अग्रवाल ने बच्चों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने कहा कि चित्रकला के माध्यम से बच्चों ने जो मनोभाव प्रदर्शित किए हैं वह प्रशंसनीय हैं।
कार्यक्रम का संयोजन लखन ने किया।
इस अवसर पर विद्यालय के आशीष सूर्यवंशी, साक्षी ग़ौर, शैलजा, पुनीता, देवेंद्र, अजीत शर्मा, रीना एवं मानवी का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंप्रवीण प्रणव की पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ पर चर्चा संपन्न
हैदराबाद, 8 अगस्त, 2024—
“समीक्षा अपने आप में बेहद जटिल और ज़िम्मेदारी भरा काम है। कोई भी समीक्षा कभी पूर्ण और अंतिम नहीं होती। सच तो यह है कि किसी कृति की सबसे ईमानदार समीक्षा स्वयं रचनाकार ही कर सकता है। कोई समीक्षक किसी रचनाकार की संवेदना को जितनी निकटता से पकड़ता है, उसकी समीक्षा उतनी ही विश्वसनीय होती है।”
ये विचार वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय, जौनपुर (उत्तर प्रदेश) की पूर्व कुलपति प्रो. निर्मला एस. मौर्य ने आखर ई-जर्नल और फटकन यूट्यूब चैनल की ऑनलाइन परिचर्चा में प्रवीण प्रणव (हैदराबाद) की सद्यःप्रकाशित समीक्षा-कृति ‘लिए लुकाठी हाथ’ की विशद विवेचना करते हुए व्यक्त किए। उन्होंने बताया कि इस पुस्तक में लेखक ने ऋषभदेव शर्मा के व्यक्तित्व और कृतित्व के विविध आयामों को गहन अध्ययन के आधार पर उजागर किया है।
प्रो. मौर्य ने ज़ोर देकर कहा कि ‘लिए लुकाठी हाथ’ में विवेच्य रचनाकार के साहित्य के ज्वलंत प्रश्नों से साक्षात्कार किया गया है और यह दर्शाया गया है कि मनुष्य, समाज, राजनीति, लोकतंत्र और संस्कृति पर गहन विमर्श इस साहित्य को दूरगामी प्रासंगिकता प्रदान करता है।
कार्यक्रम की अध्यक्ष प्रो. प्रतिभा मुदलियार (मैसूरु) ने कहा कि प्रवीण प्रणव ने अपनी पुस्तक ‘लिए लुकाठी हाथ’ के माध्यम से पाठकों को विशेष रूप से दक्षिण भारत के हिंदी साहित्य फलक पर कवि, आलोचक और प्रखर वक्ता के रूप में प्रतिष्ठित ऋषभदेव शर्मा के साहित्य की जनवादी चेतना, स्त्री पक्षीयता, प्रेम प्रवणता और सौंदर्य दृष्टि का सहज दिग्दर्शन कराया है।
‘लिए लुकाठी हाथ’ के लेखक प्रवीण प्रणव ने अपने बेहद सधे हुए वक्तव्य में यह स्पष्ट किया कि आलोचनात्मक लेखन करते हुए लेखक स्वयं को भी समृद्ध करता चलता है। उन्होंने कहा कि इस पुस्तक को लिखते हुए उन्होंने सटीक समीक्षा के लिए ज़रूरी वाक्-संयम सीखा और इससे वे अपने लेखन को अतिवाद तथा अतिरंजना से बचा सके। अपनी रचना प्रक्रिया समझाते हुए प्रवीण प्रणव ने यह सुझाव भी दिया कि जिस दिन आप उतना लिखना सीख जाएँगे जितना वास्तव में ज़रूरी है, उस दिन आप सचमुच लेखक बन जाएँगे। उन्होंने विवेच्य पुस्तक के लिए मार्गदर्शन हेतु श्री अवधेश कुमार सिन्हा, प्रो. गोपाल शर्मा, प्रो. निर्मला एस. मौर्य और प्रो. देवराज का विशेष उल्लेख किया।
चर्चा का समाहार करते हुए ऋषभदेव शर्मा ने यह जानकारी दी कि ‘लिए लुकाठी हाथ’ के लेखक की निजी शैली को प्रो. देवराज ने ‘आत्मीय आलोचना’ तथा प्रो. अरुण कमल ने ‘जीवनचरितात्मक आलोचना’ कहा है।
कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी संगीता देवी ने किया तथा संयोजिका डॉ. रेनू यादव ने आभार ज्ञापित किया।
वर्ष 2024 का सत्राची सम्मान बजरंग बिहारी तिवारी को
सत्राची फाउंडेशन, पटना के द्वारा ‘सत्राची सम्मान’ की शुरुआत 2021 में की गयी। न्यायपूर्ण सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेखन को रेखांकित और प्रोत्साहित करना ‘सत्राची सम्मान’ का उद्देश्य है। अब तक श्री प्रेमकुमार मणि (2021) प्रो. चौथीराम यादव (2022) और श्री सच्चिदानंद सिन्हा (2023) जैसे बौद्धिक इस सम्मान से सम्मानित हो चुके हैं।
सत्राची सम्मान-2024 के लिए वीर भारत तलवार की अध्यक्षता में चयन समिति गठित की गयी। इस समिति के सदस्य पटना विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के तरुण कुमार और ‘सत्राची’ के प्रधान संपादक कमलेश वर्मा रहे।
सत्राची फाउंडेशन के निदेशक आनन्द बिहारी ने चयन समिति की सर्वसम्मति से प्राप्त निर्णय की घोषणा करते हुए बताया कि चौथा ‘सत्राची सम्मान’ (2024) प्रसिद्ध आलोचक व अत्यंत गंभीर अध्येता बजरंग बिहारी तिवारी को दिया जाएगा।
बजरंग बिहारी तिवारी बिना किसी शोर-शराबे के पिछले करीब 20-22 वर्षों से लगातार दलित आंदोलन और साहित्य का गंभीर अध्ययन-विश्लेषण करते हुए भारतीय समाज के जातिवादी चरित्र के यथास्थितिवाद से टकराते रहे हैं। लेखन और चिंतन के लिए ऐसे विषय का चुनाव और लगातार इस मोर्चे पर उनकी सक्रियता से न्यायपूर्ण समाज के निर्माण के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का पता चलता है।
आगामी 20 सितम्बर, 2024 को बजरंग बिहारी तिवारी को सम्मान-स्वरूप इक्यावन हज़ार रुपये का चेक, मानपत्र, अंगवस्त्र और स्मृति-चिह्न प्रदान किया जाएगा।
01 मार्च, 1972 को पूर्वी उत्तर प्रदेश के गोंडा ज़िले के नियावाँ गाँव में जन्मे बजरंग बिहारी तिवारी हिन्दी के महत्वपूर्ण आलोचक हैं। शुरुआती शिक्षा अपने गाँव में रहकर पूरी करने के बाद उन्होंने उच्च शिक्षा इलाहाबाद और दिल्ली से प्राप्त की। दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से उन्होंने हिन्दी में एम.ए., एम.फिल. और पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। पिछले सत्ताईस वर्षों से वे दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबंधु कॉलेज में अध्यापन कर रहे हैं। भक्तिकाव्य, समकालीन संस्कृत साहित्य, भारतीय दलित आंदोलन और अस्मितामूलक साहित्य उनके अध्ययन-चिंतन के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। इक्कीसवीं सदी की हिन्दी आलोचना की पहचान जिन महत्वपूर्ण और संवेदनशील आलोचकों के जरिए बनती है, उनमें बजरंग बिहारी तिवारी का नाम अत्यंत महत्वपूर्ण है।
दलित साहित्य और उसके बहाने जाति का सवाल बजरंग बिहारी तिवारी की आलोचना का केंद्र है। 2003 से ही इन्होंने ‘दलित प्रश्न’ शीर्षक स्तंभ ‘कथादेश’ पत्रिका में लिखना शुरू किया। वे दलित आंदोलन को ‘जातिवादी हिंसा से जूझने वाले संघर्षों के नवीनतम पड़ाव’ के रूप में देखते हैं। जातिवाद के विरुद्ध संघर्षों की परंपरा में दलित विमर्श की ऐतिहासिक महत्ता को रेखांकित करने के साथ-साथ वे उसके अंतर्विरोधों और दलित विमर्श की विभिन्न धाराओं के आपसी मतभेदों की भी बारीकी से पहचान करते हैं। दलित स्त्रीवाद के हवाले से दलित स्त्रियों के संघर्ष को भी इन्होंने अपने लेखन में रेखांकित किया है। इनकी प्रकाशित किताबें भारतीय समाज की सबसे ज्वलंत समस्या- जाति के सवाल को पूरी संजीदगी और संवेदनशीलता के साथ उठाती हैं। 1. दलित कविता : प्रश्न और परिप्रेक्ष्य, 2. हिंसा की जाति : जातिवादी हिंसा का सिलसिला, 3. दलित साहित्य : एक अंतर्यात्रा, 4. केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य, 5. बांग्ला दलित साहित्य : सम्यक अनुशीलन, 6. जाति और जनतंत्र : दलित उत्पीड़न पर केंद्रित, 7. भारतीय दलित साहित्य : आंदोलन और चिंतन, 8. भक्ति कविता, किसानी और किसान आंदोलन, 9. किसान आंदोलन और दलित कविता बजरंग बिहारी तिवारी की महत्वपूर्ण किताबें हैं। इसके अलावा इन्होंने दलित स्त्री के जीवन से संबंधित कहानियों, कविताओं और आलोचना की तीन किताबों का संपादन भी किया है।
पिछले कुछ वर्षों से बजरंग बिहारी तिवारी भारतीय दलित साहित्य के संकलन और विश्लेषण की अत्यंत श्रमसाध्य परियोजना पर काम कर रहे हैं। केरल के दलित साहित्य और बांग्ला दलित साहित्य से संबंधित उनकी किताबें इसी वृहद् परियोजना का हिस्सा हैं। भारत के विभिन्न हिस्सों के दलित आंदोलन के स्वरूप और उसके साहित्य को समग्रता में और साथ ही तुलनात्मक रूप से समझने में यह निश्चित रूप से अत्यंत मददगार साबित होगा।
इस तरह के महत्वपूर्ण लेखकीय योगदान को ध्यान में रखकर बजरंग बिहारी तिवारी को ‘सत्राची सम्मान’- 2024 से सम्मानित किए जाने के निर्णय से सत्राची फाउंडेशन स्वयं को सम्मानित महसूस कर रहा है।
डॉ. आनन्द बिहारी
संपादक: सत्राची
आगे पढ़ेंनदलेस ने की लोकार्पण एवं काव्य पाठ गोष्ठी
दिल्ली। नव दलित लेखक संघ, दिल्ली के तत्वावधान में लोकार्पण एवं काव्य-पाठ गोष्ठी का आयोजन किया गया। सलीमा जी के संयोजन में, गोष्ठी दरिया गंज, नई दिल्ली में रखी गई। गोष्ठी में सर्वप्रथम गीता कुमारी गंगोत्री की सद्यः प्रकाशित पुस्तक हिंदी की काव्यात्मक वर्णावली का लोकार्पण किया गया, तत्पश्चात् उपस्थित कवियों का काव्य पाठ हुआ। अध्यक्षता पुष्पा विवेक ने की एवं संचालन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया। उक्त के अतिरिक्त गोष्ठी में क्रमशः मदनलाल राज़, डॉ. गीता कृष्णांगी, सुनीता कुमारी प्रसाद, लोकेश कुमार, बंशीधर नाहरवाल, अरुण कुमार पासवान, जोगेंद्र सिंह, बृजलाल सहज, अभिषेक चंदन, नतालिया अली, डॉ. सैयद अली अख़्तर नक़वी और अज़ीमा आदि उपस्थित रहे।
मदनलाल राज़ ने कविता कुछ यूँ पढ़ी “मैं तो केवल यारों सच्चाई उकेर रहा हूँ, ठंडी पड़ी राख में आग खुकेर रहा हूँ। आग लगा दे टीवी और झूठे अख़बार को, जो जला दे देश में फैले भ्रष्टाचार को।” सुनीता कुमारी ने कविता पर कविता पढ़ते हुए कहा, “मैं कविता हूँ, मैं धर्म में हूँ, मैं पुराण में हूँ, मैं वेद में हूँ, मैं क़ुरान में हूँ, मैं प्रार्थना में हूँ, मैं अज़ान में हूँ, मैं हृदय में हूँ, मैं ईमान में हूँ, मैं कविता हूँ, मैं कविता हूँ।” अभिषेक चंदन ने पढ़ा, “सोते हुए राष्ट्र को सोते हुए जगा सकोगे क्या? रोते हुए राष्ट्र को रोते हुए जगा सकोगे क्या?” डॉ. सैयद अली अख़्तर नक़वी ने अपनी कविता कुछ यूँ पढ़ी, “चलो एक बार फिर बात करते हैं, सुलह की एक नई शुरूआत करते हैं, हमने कही थीं एक दूसरे को जो बातें, अब उन्हें हम नज़रअंदाज़ करते हैं, अब न करेंगे हम आपस में कोई झगड़ा, आज हम दोनों ये ऐलान करते हैं।” बृजपाल सहज की कविता कुछ इस प्रकार रही, “हर ओर तमाशा हो रहा है, देखने वाला भी ख़ूब रो रहा है, आपदा भी अवसर है साहब, कोई तो है जो रईस हो रहा है।” अरुण कुमार पासवान ने अपनी कविता दवा और दावा कुछ इस प्रकार पढ़ी, “सिर्फ एक लाठी का फ़र्क़ है दवा और दावा में, दवा करने से बहुत आसान है दावा करना, लाठी ही तो उठानी है और कहवा लेना है कि दवा मिल रही है।” इनके अलावा गीता कुमारी गंगोत्री, जोगेंद्र सिंह, बंशीधर नाहरवाल, लोकेश कुमार, डॉ. अमित धर्मसिंह और पुष्पा विवेक ने भी अपनी अपनी कविताओं से गोष्ठी को ऊँचाइयाँ प्रदान की। सभी उपस्थित रचनाकारों का तहेदिल से शुक्रिया अदा गोष्ठी की संयोजक सलीमा ने किया।
जोगेंद्र सिंह
प्रचार सचिव, नदलेस
रेनबो इंटरनेशनल स्कूल नगरोटा बगवां में टैलेंट का महासंग्राम में प्रतिभागियों ने दिखाई अपनी कला
नगरोटा बगवां: हिमाचल प्रदेश।
‘आपना कांगड़ा एंटरटेनमेंट’ के बैनर तले जहाँ पूरे हिमाचल में ऑडिशन लिए जा रहे हैं। उसी कड़ी को आगे बढ़ते हुए रविवार को टैलेंट का महासंग्राम के ऑडिशन नगरोटा बगबां के रेनबो इंटरनेशनल स्कूल में लिए गए। ऑडिशन में प्रतिभागियों ने सिंगिंग नृत्य पेंटिंग योग और मॉडलिंग में अपनी-अपनी कला के जलवे दिखाए और निर्णायक मंडल को दाँतों तले उँगली चबाने पर मजबूर कर दिया। जानकारी के लिए बता दें कि ऑडिशन में 45 से 50 प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया था, जिसमें सिंगिंग के निर्णायक मंडल में हिमाचल प्रदेश की मख़मली आवाज़ मानसिंह जी ने सिंगिंग के प्रतिभागियों की प्रतिभा को निखारा, वहीं डांस के निर्णायक मंडल में चिंकी गुप्ता और विवेक कुमार ने अपनी पैनी नज़र से प्रतिभागियों के हुनर को परखा। पेंटिंग के निर्णायक मंडल में विशाल की अहम भूमिका रही। मॉडलिंग के निर्णायक मंडल में प्रीति सिंह और ख़ुश्बू की भूमिका अहम रही। सभी निर्णायक मंडल ने प्रतिभागियों के उज्जवल भविष्य की कामना की और ऐसे कार्यक्रमों में अधिक से अधिक भाग लेने के लिए युवा युवकों और युवतियों को प्रेरित किया और अधिक से अधिक संख्या में भाग देने के लिए जागरूक किया।
इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश के लोक गायक करनैल राणा जी, हिमाचल प्रदेश के कालजुए पीड फेम अमित मीतू, हिमाचल प्रदेश के कॉमेडियन प्रिंस गर्ग जी मौजूद रहे और उन्होंने अपनी कॉमेडी के जलवे से दर्शकों को तालियाँ बजाने पर मजबूर कर दिया। इस अवसर पर टी-सीरीज़ कंपनी से पोलाराम ढांगवाला जी मुख्य रूप से उपस्थित रहे और उन्होंने हिमाचल फ़िल्म ‘फौजीए दी फ़ैमिली’ के लिए कुछ कलाकारों को चयनित किया जो कि अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। बता दें की ‘फौजीए दी फ़ैमिली’ पार्ट 2 की शूटिंग जल्द ही पूरे हिमाचल में शुरू हो जाएगी और जल्द ही यह फ़िल्म दर्शकों के लिए टी-सीरीज़ कंपनी के बैनर तले देखने को मिलेगी। इस अवसर पर हिमाचल प्रदेश के फनकार एंकर संदीप चौधरी और विजय कुमार ने अपनी मख़मली आवाज़ से दर्शकों को बैठने पर मजबूर कर दिया।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में डॉक्टर नरेश बरमाणी और विशेष अतिथि के रूप में कुलदीप धीमान ने शिरकत की और प्रतिभागियों के उज्जवल भविष्य की कामना की। सुमित गुप्ता ने बताया कि आगे जो फ़ाइनल होगा, वह प्रतिभागियों के लिए मुश्किल होने वाला है और प्रतिभागी किसी भी तरह की लापरवाही ना बरतते हुए पूरी तैयारी के साथ आएँ। इस अवसर पर बिलासपुर हमीरपुर मंडी कांगड़ा से आए हुए प्रतिभागियों ने भी भाग लिया और अपनी कला के जलवे दिखाए। कार्यक्रम में आपना ‘कांगड़ा एंटरटेनमेंट’ की ब्रांड प्रमोटर आरबी सोनी और प्रेजी शर्मा ने अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्र मुग्ध कर दिया और योग गर्ल अवंतिका ठाकुर ने अपनी प्रस्तुति देकर दर्शकों को एक जगह पर स्थित रहकर अपनी प्रस्तुति देखने के लिए मजबूर कर दिया। कार्यक्रम में युवा कवि लेखक डॉ. राजीव डोगरा, समाजसेवी पूजन भंडारी, बाबा त्रिलोकनाथ, अनिल गुप्ता, त्रिलोक धीमान, रविंदर कपूर विशेष रूप से उपस्थित रहे और कार्यक्रम को सफल बनाने में उनका विशेष योगदान रहा।
डॉ. राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)
साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित की गई रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी
रामदरश मिश्र के साहित्य में मानवता के सच्चे सूत्र हैं—रघुवीर चौधरी
सौवें वर्ष में चल रहे हिंदी के वयोवृद्ध प्रो. मिश्र ने बताया अपनी लंबी उम्र का राज़
रामदरश मिश्र ने अपने लंबे जीवन के रहस्य के बारे में बताते हुए कहा कि इसके लिए मैं तीन कारण बताता हूँ पहला—मैंने कोई महत्वकांक्षा नहीं पाली, दूसरा कोई नशा नहीं किया यहाँ तक कि पान तक भी नहीं और तीसरा मेरा बाज़ार से कोई सम्बन्ध नहीं, मतलब घर का ही खाया-पिया।
दिल्ली। साहित्य अकादमी द्वारा प्रतिष्ठित कवि, कथाकार रामदरश मिश्र जन्मशती संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी का उद्घाटन प्रख्यात गुजराती लेखक एवं साहित्य अकादमी के महत्तर सदस्य रघुवीर चौधरी ने किया। रामदरश मिश्र स्वयं विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित थे। बीज भाषण प्रख्यात हिंदी लेखक प्रकाश मनु ने दिया और अध्यक्षीय वक्तव्य साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा द्वारा दिया गया। कार्यक्रम के आरंभ में अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव द्वारा स्वागत वक्तव्य दिया गया।
पूरे दिन चले इस कार्यक्रम में रामदरश मिश्र जी के पद्य और गद्य साहित्य पर अलग-अलग दो सत्रों में आमंत्रित विद्वानों द्वारा आलेख पढ़े गए। पहले सत्र में अध्यक्ष के तौर पर सुविख्यात कवि बालस्वरूप राही और वक्ता के रूप में कवि-आलोचक ओम निश्चल तथा प्रोफ़ेसर व मिश्र जी की सुपुत्री प्रोफ़ेसर स्मिता मिश्र ने अपने विचार व्यक्त किए। दूसरे सत्र की अध्यक्षता अंतरराष्ट्रीय महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व कुलपति गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में मिश्र जी के कथेतर गद्य साहित्य पर डॉ. वेद मित्र शुक्ल, कथा साहित्य पर कवि-कथाकार सुश्री अलका सिन्हा एवं आलोचना पर वरिष्ठ आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने अपने-अपने आलेख-पाठ किए।
इस अवसर पर साहित्य अकादमी के सचिव के। श्रीनिवासराव ने जन्मशती संगोष्ठी को दुर्लभ अवसर बताते हुए कहा कि रामदरश मिश्र के स्वभाव की सरलता उनके लेखन में भी है, जो उनके व्यक्तित्व के साथ ही उनके कृतित्व को महत्त्वपूर्ण बनाता है। ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित रघुवीर चौधरी जो अहमदाबाद में श्री मिश्र के शिष्य भी रहे, ने अपने ‘सर’ को याद करते हुए गुजरात सम्बन्धी अनेक संस्मरण श्रोताओं से साझा किए। उन्होंने उनकी रचनाओं में नाटकीय तत्वों और कहानियों के अंत में मानवता जाग्रत होने वाले बिंदुओं पर विशेष चर्चा की। आगे उन्होंने कहा कि उनके उपन्यास पात्रों के विशिष्ट चरित्र चित्रण के नाते महत्त्वपूर्ण हैं। ‘अपने लोग’ को उनका सर्वश्रेष्ठ उपन्यास बताते हुए उन्होंने कहा कि उनके छोटे उपन्यास भी अपनी कलात्मकता में विशिष्ट है। रामदरश मिश्र द्वारा गाए जाने वाले कजरी गीतों को याद करते हुए कहा कि वे सस्वर गाते थे।
बीज वक्तव्य देते हुए प्रकाश मनु ने कहा कि श्री मिश्र साहित्य के हिमालय पुरुष है, जिसके नीचे बैठकर नयी पीढ़ी अनेक बातें सीख सकती है। उनके संपूर्ण लेखन में समय का इतिहास मिलता है और उस सबका मिज़ाज गंगा-जमुनी है। उनकी कविताओं में नए ज़माने का बोध तो है ही उनका गद्य भी बहुत प्रभावशाली है। उनकी हर विधा में आम-आदमी ही केंद्र में है।
रामदरश मिश्र ने इस भव्य आयोजन के लिए साहित्य अकादमी को धन्यवाद देते हुए कहा कि इस सम्मान से मैं अभिभूत हूँ। उन्होंने अपने लंबे जीवन के रहस्य के बारे में बताते हुए कहा कि इसके लिए मैं तीन कारण बताता हूँ पहला—मैंने कोई महत्वकांक्षा नहीं पाली, दूसरा कोई नशा नहीं किया यहाँ तक कि पान तक भी नहीं और तीसरा मेरा बाज़ार से कोई सम्बन्ध नहीं, मतलब घर का ही खाया-पीया। उन्होंने अपने कई संस्मरण सुनाते हुए कहा कि मैं अमूमन जहाँ जाता हूँ, वहीं का होकर रह जाना चाहता हूँ। इसीलिए मुझे घर-घुसरा भी कहा जाता है। उन्होंने अपने गुजरात के आठ वर्षों को बहुत आत्मीयता से याद करते हुए उमाशंकर जोशी और भोला भाई पटेल को भी याद किया। अपने गुरु हजारी प्रसाद द्विवेदी के भी कई संस्मरण उन्होंने सुनाए। अंत में उन्होंने अपने कई मुक्तक, कविताएँ एवं अपनी सुप्रसिद्ध ग़ज़ल “बनाया है मैंने यह घर धीरे-धीरे” सुनाई।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि गाँव हमेशा मिश्र जी के साथ रहा और उनकी कविताओं में मानवता को प्रतिष्ठित किया गया है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण संवेदनाओं के साथ पूरा युग बोध प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत होता है।
प्रथम सत्र जो उनके पद्य साहित्य पर केंद्रित था कि अध्यक्षता बालस्वरूप राही ने की और उनकी पुत्री स्मिता मिश्र एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। स्मिता मिश्र ने अपने पिता की सदाशयता और जिजीविषा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी हिम्मत से ही परिवार की हिम्मत भी बनी रही। ओम निश्चल ने कहा कि उनकी कविता की गीतात्मकता उसकी ताक़त है। पूरी सदी का काव्य बोध उनके लेखन में झलकता है। उनका लेखन हमेशा समकालीन परिस्थितियों से परिचालित होता रहा। बाल स्वरूप राही ने मॉडल टाउन में रहने के उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वे बहुत ही सहज और मानवीय थे। उन्होंने उनकी कई रचनाओं को पढ़कर भी सुनाया।
द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद् गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में अलका सिन्हा ने उनके कथा लेखन में उपेक्षित पात्रों की बेहतरी की कल्पना और स्त्री के संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका पूरा लेखन गाँव के यथार्थ का चित्रण और बहुत ईमानदारी से किया गया है। डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने उनके कथेतर गद्य पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके कथेतर गद्य में भी कविता/कहानी के अंश हैं। मिश्र जी के साहित्य में कथेतर गद्य ने बड़ी सहजता से अपना स्थान बनाया है। इसके बावजूद कथेतर की कई विधाओं में उन्होंने प्रचुर मात्रा में लिखा है। ‘जीवन-राग’ और जीवन मूल्यों की पहचान से गुंजित उनका कथेतर साहित्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। सुविख्यात आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने उनकी आलोचना पुस्तकों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मूल्य उनकी आलोचना को समझने का बीज शब्द है। रामदरश मिश्र ने आलोचना को भी सृजनात्मक बना दिया है। दूसरे शब्दों में उनकी आलोचना को ‘सृजनात्मक आलोचना’ कहा जा सकता है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में साहित्य अकादमी की उपाध्यक्ष कुमुद शर्मा ने कहा कि गाँव हमेशा मिश्र जी के साथ रहा और उनकी कविताओं में मानवता को प्रतिष्ठित किया गया है। उनकी रचनाओं में ग्रामीण संवेदनाओं के साथ पूरा युग बोध प्रमाणिकता के साथ प्रस्तुत होता है।
प्रथम सत्र जो उनके पद्य साहित्य पर केंद्रित था कि अध्यक्षता बालस्वरूप राही ने की और उनकी पुत्री स्मिता मिश्र एवं ओम निश्चल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। स्मिता मिश्र ने अपने पिता की सदाशयता और जिजीविषा का उल्लेख करते हुए कहा कि उनकी हिम्मत से ही परिवार की हिम्मत भी बनी रही। ओम निश्चल ने कहा कि उनकी कविता की गीतात्मकता उसकी ताक़त है। पूरी सदी का काव्य बोध उनके लेखन में झलकता है। उनका लेखन हमेशा समकालीन परिस्थितियों से परिचालित होता रहा। बाल स्वरूप राही ने मॉडल टाउन में रहने के उनके संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि वे बहुत ही सहज और मानवीय थे। उन्होंने उनकी कई रचनाओं को पढ़कर भी सुनाया।
द्वितीय सत्र रामदरश मिश्र के गद्य साहित्य पर केंद्रित था, जिसकी अध्यक्षता प्रख्यात लेखक और शिक्षाविद् गिरीश्वर मिश्र ने की। इस सत्र में अलका सिन्हा ने उनके कथा लेखन में उपेक्षित पात्रों की बेहतरी की कल्पना और स्त्री के संघर्षों का उल्लेख करते हुए कहा कि उनका पूरा लेखन गाँव के यथार्थ का चित्रण और बहुत ईमानदारी से किया गया है। डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने उनके कथेतर गद्य पर विस्तार से अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके कथेतर गद्य में भी कविता/कहानी के अंश हैं। मिश्र जी के साहित्य में कथेतर गद्य ने बड़ी सहजता से अपना स्थान बनाया है। इसके बावजूद कथेतर की कई विधाओं में उन्होंने प्रचुर मात्रा में लिखा है। ‘जीवन-राग’ और जीवन मूल्यों की पहचान से गुंजित उनका कथेतर साहित्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा देता रहेगा। सुविख्यात आलोचक वेदप्रकाश अमिताभ ने उनकी आलोचना पुस्तकों पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मूल्य उनकी आलोचना को समझने का बीज शब्द है। रामदरश मिश्र ने आलोचना को भी सृजनात्मक बना दिया है। दूसरे शब्दों में उनकी आलोचना को ‘सृजनात्मक आलोचना’ कहा जा सकता है।
अंत में अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में गिरीश्वर मिश्र ने कहा कि उनके लेखन में सहज रूप में मानवीय मूल्यों की स्थापना पाई जाती है। उनकी सभी रचनाओं में जीवन संघर्ष का सच्चा प्रतिनिधित्व है और वह समय के साथ अपने को बदलते भी रहे हैं। कुल मिलाकर रामदरश मिश्र समग्रता के साथ साहित्य की रचना के पक्षधर हैं।
कार्यक्रम का संचालन अकादमी के उपसचिव देवेंद्र कुमार देवेश ने किया। कार्यक्रम में रामदरश मिश्र के पूरे परिवार के साथ ही उनके अनेक शिष्य, लेखक, कॉलेज के विद्यार्थी और पत्रकार उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंडॉ. रमा द्विवेदी कृत ‘खंडित यक्षिणी’ (कहानी संग्रह) लोकार्पित
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान, हैदराबाद केंद्र (शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार) के संयुक्त तत्वावधान में द्वितीय दक्षिण भारतीय साहित्योत्सव 30 जून 2024 (रविवार) सुबह 10:00 बजे से केंद्रीय हिंदी संस्थान के सभागार में आयोजित हुआ।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि इस कार्यक्रम प्रो. गंगाधर वानोडे (क्षेत्रीय निदेशक, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, हैदराबाद केंद्र) की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। प्रो. ऋषभदेव शर्मा, परामर्शी (मौलाना आज़ाद उर्दू विश्वविद्यालय) मुख्य अतिथि रहे। डॉ. अहिल्या मिश्रा (वरिष्ठ साहित्यकार एवं समाज सेवी) राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ (अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, उत्तर प्रदेश शाखा), ओमप्रकाश शुक्ल (महासचिव, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, दिल्ली) विशिष्ट अतिथि रहे। डॉ. सुरभि दत्त (पूर्व प्राचार्या, हिंदी महाविद्यालय) डॉ. राशि सिन्हा (साहित्यकार) सम्माननीय अतिथि तथा प्रमुख अतिथि रामकिशोर उपाध्याय (संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) एवं शाखा अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ मंचासीन सभी अतिथियों के द्वारा दीप प्रज्ज्वलन से हुआ। छात्रा अद्रिका कुमार ने सरस्वती वंदना प्रस्तुति।
तत्पश्चात् डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों के सम्मान में स्वागत भाषण दिया। अतिथियों का सम्मान शॉल, माला, एवं स्मृति चिह्न द्वारा सभी सदस्यों के द्वारा किया गया। राष्ट्रीय महासचिव ओमप्रकाश शुक्ल द्वारा संस्था का परिचय एवं उसके उद्देश्यों पर प्रकाश डाला गया एवं इकाई की महासचिव दीपा कृष्णदीप ने शाखा की रिपोर्ट प्रस्तुत की।
तत्पश्चात् वरिष्ठ साहित्यकार रामकिशोर उपाध्याय कृत “दस हाथ वाला आदमी” व्यंग्य संग्रह का परिचय देते हुए डॉ. सुरभि दत्त ने कहा कि आज के परिवेश को शालीनता पूर्वक व्यंग्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। इसमें राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक विसंगतियों का उल्लेख किया गया है। इस संदर्भ में हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार कबीरदास का भी उल्लेख किया गया एवं अतिथियों द्वारा पुस्तक का लोकार्पण किया गया। तत्पश्चात् पुस्तक के लेखक रामकिशोर उपाध्याय ने पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए।
वरिष्ठ साहित्यकार राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’ कृत “चाक सी नाचती ज़िन्दगी” उपन्यास का परिचय देते हुए रामकिशोर उपाध्याय ने कहा कि “लेखक के अपने जीवन के विविध अनुभव इस उपन्यास में समाहित हैं। उपन्यास में ग्रामीण प्राचीन परिवेश का परिदृश्य प्रस्तुत किया गया है। शिल्प के स्तर पर यह उपन्यास अतिरेक रहित एवं सहज सम्प्रेष्णीय है।” सभी अतिथियों के द्वारा पुस्तक का लोकार्पण किया, तत्पश्चात् पुस्तक के लेखक राजेश सिंह ’श्रेयस’ ने अपनी कृति की रचना प्रक्रिया पर विचार व्यक्त किए।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रमा द्विवेदी कृत ’खंडित यक्षिणी’ कहानी संग्रह का परिचय देते हुए डॉ. राशि सिन्हा ने कहा कि “स्त्री का सशक्त रूप एवं द्वंद्वों से मुक्ति की छटपटाहट को इस संग्रह में देखा जा सकता है। लेखिका ने चित्रात्मक शैली के प्रयोग के माध्यम से कहानी संग्रह को जीवंत बना दिया है।” अतिथियों द्वारा पुस्तक का लोकार्पण किया गया एवं लेखिका ने पुस्तक पर अपने विचार व्यक्त किए।
सभी अतिथियों ने पुस्तकों के लोकार्पण पर सभी लेखकों को बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।
नगर की वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती विनीता शर्मा जी को केंद्र की तरफ़ से ‘लाइफ टाइम अचीवमेंट अवॉर्ड’ देकर अलंकृत किया गया।
इस अवसर पर वरिष्ठतम साहित्यकार श्रीमती रत्नकला मिश्रा, डॉ. संजीव चौधरी, छात्रा अद्रिका कुमार, डॉ. राजीव सिंह ‘नयन’, तृप्ति मिश्रा का सम्मान किया गया। नंदकिशोर वर्मा (लखनऊ) को जल एवं पर्यावरण संरक्षण में योगदान हेतु सम्मानित किया गया।
राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय तथा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. रमा द्विवेदी का सम्मान तेलंगाना हिंदी साहित्य भारती संस्था की प्रदेश प्रभारी डॉ. सुरभि दत्त एवं अध्यक्ष डॉ राजीव सिंह ‘नयन’ द्वारा किया गया। वरिष्ठम साहित्यकार रत्नकला मिश्रा एवं डॉ संगीता शर्मा ने डॉ. रमा द्विवेदी का सम्मान किया।
मुख्य अतिथि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि विधा कोई भी हो, उसमें केंद्रित होती हैं मानवीय संवेदनाएँ, जो इन तीनों सद्यः प्रकाशित संग्रह में दृष्टव्य हैं। उन्होंने कहा कि सत्यम, शिवम, सुंदरम में रचनाकार शिव की कामना से प्रेरित होकर सृजन करता है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. अहिल्या मिश्रा जी ने कहा कि व्यंग्य लेखन अत्यंत गूढ़ कार्य है। गद्य में सतर्क रहकर ही व्यंग्य लिखा जा सकता ह। उपन्यास में ग्रामीण जीवन के आदिम युग से लेकर सबको परिचित कराया गया है। डॉ. रमा द्विवेदी नारी अस्मिता के प्रति प्रतिबद्ध एवं सजगता पूर्ण लेखन करती हैं। उन्होंने सभी रचनाकारों को बधाई दीं।
अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रो. गंगाधर वानोडे ने रचनाकारों के कुछ उल्लेखनीय पंक्तियों का उल्लेख करते हुए उन्हें बधाई दी।
इस सत्र का आभार ज्ञापन डॉ. आशा मिश्रा ने दिया एवं संचालन डॉ राजीव सिंह ‘नयन’ ने किया।
दूसरे सत्र में डॉ. अहिल्या मिश्रा की अध्यक्षता में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। मुख्य अतिथि प्रो. ऋषभ देव शर्मा, विशिष्ट अतिथि-डॉ गंगाधर वानोडे, राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’, ओमप्रकाश शुक्ल, गौरवनीय अतिथि रामकिशोर उपाध्याय एवं सम्माननीय अतिथि—डॉ. संजीव चौधरी, डॉ. सुषमा देवी मंचासीन हुए।
उपस्थित सभी रचनाकारों ने विविध विषयों पर भावपूर्ण रचनाएँ प्रस्तुत करके समां बाँध दिया। उमा सोनी, तृप्ति मिश्रा, डॉ. सुरभि दत्त, डॉ. राशि सिन्हा, डॉ. राजीव सिंह ‘नयन’, सरिता दीक्षित, डॉ. संगीता शर्मा, प्रियंका पाण्डे, डॉ. स्वाति गुप्ता, सविता सोनी, डॉ. उषा शर्मा, चंद्रप्रकाश दायमा, नितेश सागर, मोहिनी गुप्ता, दीपा कृष्ण दीप, डॉ. रमा द्विवेदी, रेखा अग्रवाल, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. गंगाधर वानोडे, राजेश कुमार सिंह ‘श्रेयस’, ओमप्रकाश शुक्ल, रामकिशोर उपाध्याय, डॉ. संजीव चौधरी, डॉ. सुषमा देवी ने काव्य पाठ करके माहौल को बहुत ख़ुशनुमा बना दिया।
डॉ. अहिल्या मिश्र जी ने अध्यक्षीय काव्यपाठ किया।
इस समारोह में कई गणमान्य व्यक्ति रत्नकला मिश्रा, डॉ. आशा मिश्रा, डॉ. एस राधा, पंकज यादव, सजग तिवारी, शेख़ मस्तान वली, डॉ. संदीप कुमार, जी परमेश्वर, सन्देश भारद्वाज, राम सुदिष्ट शर्मा एवं अन्य श्रोता इस समारोह में लगभग 70 लोग उपस्थित रहे।
सत्र का संचालन तृप्ति मिश्रा ने किया एवं प्रियंका पांडे के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।
प्रेषक-
डॉ. रमा द्विवेदी, अध्यक्ष /युवा उत्कर्ष मंच
साहित्य परिषद ने प्रो. सूर्य प्रकाश दीक्षित को अटल साहित्य सम्मान से विभूषित किया
बरेली। 23 जून अखिल भारतीय साहित्य परिषद ब्रज प्रांत के तत्वावधान में अटल साहित्य सम्मान समारोह का आयोजन आज चंद्रकांता ऑडीटोरियम में सम्पन्न हुआ। समारोह में लखनऊ विश्वविद्यालय के पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं वरिष्ठ साहित्यकार प्रोफ़ेसर डॉ. सूर्य प्रकाश दीक्षित को साहित्य में अविस्मरणीय योगदान के लिए अटल साहित्य सम्मान 2023 से विभूषित गया गया। सम्मान स्वरूप उन्हेंं 5100 रुपए की धनराशि, शाल, स्मृति चिह्न नारियल और सम्मान पत्र देकर अलंकृत किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के वन एवं पर्यावरण मंत्री डॉ. अरुण कुमार, कार्यक्रम अध्यक्ष राष्ट्रधर्म के प्रबंध निदेशक डॉ. पवन पुत्र बादल, विशिष्ट अतिथि राजश्री ग्रुप की चेयरपर्सन डॉ. मोनिका अग्रवाल, डॉ. नवल किशोर गुप्ता, प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. सुरेश बाबू मिश्रा एवं प्रांतीय महामंत्री डॉ. शशि बाला राठी ने उन्हेंं यह सम्मान प्रदान किया।
कवि रोहित राकेश, डॉ. एस पी मौर्य, वी के शर्मा, प्रभाकर मिश्र, प्रवीण कुमार शर्मा, डॉ. अखिलेश कुमार गुप्ता, वी सी दीक्षित, डॉ. सी पी शर्मा राजबाला धैर्य आदि ने मंचासीन अतिथियों का माल्यार्पण एवं बैज लगाकर एवं तुलसी के गमले प्रदान कर स्वागत किया।
इससे पूर्व मोहन चन्द्र पाण्डेय द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। उमेश चंद्र गुप्ता ने अभिनन्दन गीत प्रस्तुत किया। प्रांतीय संयुक्त मन्त्री रोहित राकेश ने अटल जी की चिरपरिचित कविता, “बाधाएँ आती हैं आएँ” सुनाई।
प्रांतीय महामंत्री डॉ. शशि बाला राठी ने अतिथि परिचय एवं स्वागत भाषण प्रस्तुत किया। अटल साहित्य सम्मान के आयोजन के सम्बन्ध में प्रांतीय अध्यक्ष सुरेश बाबू मिश्रा ने कहा कि अखिल भारतीय साहित्य परिषद ब्रजप्रान्त हर देश के पूर्व प्रधानमन्त्री, प्रखर पत्रकार एवं ख्यातिलब्ध कवि अटल बिहारी बाजपेई की स्मृति में प्रदेश के किसी वरिष्ठ साहित्यकार को अटल साहित्य सम्मान से सम्मानित करता है। इसी शृंखला के अंतर्गत इस बर्ष का अटल साहित्य सम्मान प्रोफ़ेसर दीक्षित जी को प्रदान किया जा रहा है।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. अरुण कुमार जी ने कहा कि अटल जी राजनीति के अजातशत्रु थे। उन्होंने साहित्य परिषद द्वारा अटल साहित्य सम्मान का आयोजन करने के लिए परिषद की सराहना की।
समारोह की विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. मोनिका अग्रवाल ने कहा कि साहित्य संस्कृति, संस्कारों और राष्ट्रीय चेतना की त्रिवेणी है। साहित्य समाज को रचनात्मक दिशा देने का कार्य करता है।
विशिष्ट अतिथि डॉ. ऐन के गुप्ता ने कहा अटल जी राजनीतिक शुचिता के प्रतीक थे।
अपने स्वागत से अभिभूत प्रोफ़ेसर सूर्य प्रसाद दीक्षित ने भारत के गौरवमय अतीत पर विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि पृथ्वीराज चौहान के बाद देश से हिन्दू साम्राज्य का अंत हो गया। इसके बाद देश में हमारी संस्कृति, सभ्यता और धर्म के पराभव का कालखंड प्रारम्भ हुआ। ऐसे में देश के साहित्यकारों ने अत्याचारों से पीड़ित जनता को भक्ति एवं धार्मिक चेतना का सम्वल प्रदान किया और भारतीय संस्कृति को अक्षुण्ण रखा।
कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. पवन पुत्र बादल ने अपने उद्बोधन में अटल विहारी बाजपेई के जीवन के कई प्रसंग साझा किए। उन्होंने कहा कि अटल जी राष्ट्र धर्म मासिक के प्रथम सम्पादक थे। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. स्वाति गुप्ता ने किया। सभी का आभार डॉ. वी के शर्मा ने व्यक्त किया।
कार्यक्रम में डॉ. सी पी शर्मा, डॉ. रवि प्रकाश शर्मा, रणधीर प्रसाद गौड़, रोहित राकेश, प्रवीण शर्मा, वी सी दीक्षित, राजबाला धैर्य, मोहन चन्द्र पाण्डेय, उमेश चन्द्र गुप्ता, कमल सक्सेना, दिनेश चन्द्र शर्मा सुरेन्द्र बीनू सिन्हा, प्रकाश चंद्र, निर्भय सक्सेना, रणजीत पाँचाले, वीरेंद्र अटल, प्रदीप श्रीवास्तव, रमेश गौतम, मुकेश सक्सेना, विनोद कुमार गुप्ता सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार एवं बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।
वी के शर्मा जनपदीय मंत्री, बरेली।
आगे पढ़ेंनव भारत निर्माण समिति द्वारा युवाओं के लिए ‘इन्हें पंख दें’ अभियान का आयोजन
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युवाओं को अपनी संस्कृति, कला और विरासत से जोड़कर बनायें एक श्रेष्ठ नागरिक: पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
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नव भारत निर्माण समिति द्वारा ‘इन्हें पंख दें’ अभियान के विजेताओं को पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव ने किया पुरस्कृत
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स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत को विकसित एवं सशक्त राष्ट्र बनाने में युवाओं का अहम योगदान: पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव
युवा आने वाले कल के भविष्य हैं। इनमें आरम्भ से ही अपनी संस्कृति, कला, विरासत, नैतिक मूल्यों के प्रति आग्रह पैदा कर एक श्रेष्ठ नागरिक बनाया जा सकता है। सोशल मीडिया के इस अनियंत्रित दौर में उनमें अध्ययन, मनन, रचनात्मक लेखन और कलात्मक प्रवृत्तियों की आदत न सिर्फ़ उन्हें नकारात्मकता से दूर रखेगी अपितु उनके मनोमस्तिष्क में अच्छे विचारों का निर्माण भी करेगी। उक्त उद्गार वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने नव भारत निर्माण समिति द्वारा ‘भारतीय संस्कृति एवं योग’ विषय पर आयोजित त्रिदिवसीय चित्रकला प्रतियोगिता एवं कार्यशाला में पुरस्कार वितरण करते हुए बतौर मुख्य अतिथि व्यक्त किये। उक्त कार्यक्रम का आयोजन नव भारत निर्माण समिति द्वारा वाराणसी समेत पूर्वांचल के 16 ज़िलों के 14-22 आयु वर्ग के विद्यार्थियों पर केंद्रित ‘इन्हें पंख दें’ अभियान के अंतर्गत किया गया था।
ऋषिव वैदिक अनुसंधान, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र, शिवपुर, वाराणसी में आयोजित समारोह में पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने वाराणसी मंडल के मुख्य कोषाधिकारी श्री गोविन्द सिंह, अंतरराष्ट्रीय चित्रकार श्री एस. प्रणाम सिंह के साथ विद्यार्थियों को पुरस्कृत किया और उनके उज्जवल भविष्य के लिए शुभकामनाएँ दीं। पूजा सिंह चौहान, पालक प्रजापति, पालक कुमारी को क्रमशः प्रथम, द्वितीय, तृतीय पुरस्कार मिला वहीं संतोषी वर्मा, सचिन सेठ, स्नेहा वर्मा, रोशनी वर्मा, मानसी पांडेय, अर्चिता, महिमा को सांत्वना पुरस्कार दिया गया। सभी को मैडल, प्रशस्ति पत्र और नक़द राशि सम्मान स्वरूप दी गई।
पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि आज की व्यस्त लाइफ़ स्टाइल में न सिर्फ़ शारीरिक बल्कि संवेदना के स्तर पर मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक सशक्तिकरण भी ज़रूरी है। योग हमारी प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है । ‘योग: कर्मसु कौशलम्’ के माध्यम से भारतीय संस्कृति की इस अमूल्य और विलक्षण धरोहर को वैश्विक स्तर पर अपनाया गया है। योग मन और शरीर, विचार और क्रिया की एकता का प्रतीक है जो मानव कल्याण के लिए मूल्यवान है। श्री यादव ने कहा कि नव भारत निर्माण समिति ने ‘बनारस लिट फेस्ट: काशी साहित्य, कला उत्सव’ के माध्यम से भी लोगों को जोड़ा है, उसी कड़ी में युवाओं हेतु आयोजित ‘इन्हें पंख दें’ अभियान को भी देखा जाना चाहिए। स्वतंत्रता के शताब्दी वर्ष 2047 तक भारत को सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, वैज्ञानिक और आध्यात्मिक रूप से विकसित एवं सशक्त राष्ट्र बनाने में युवाओं का अहम योगदान है।
कार्यक्रम का संचालन बृजेश सिंह, सचिव नव भारत निर्माण समिति ने किया। इस अवसर पर कर्नल संदीप शर्मा, धवल प्रसाद, आर्ट क्यूरेटर राजेश सिंह, दान बहादुर सिंह, डाॅ. अपर्णा, डाॅ. गीतिका, शालिनी, प्रवक्ता मुकेश सिंह, सतीश वर्मा, धर्मेंद्र कुमार, योग प्रशिक्षक प्रणव पाण्डेय, कमलदीप, ममता जी आदि उपस्थित थे।
(बृजेश सिंह)
सचिव - नव भारत निर्माण समिति
ऋषिव वैदिक अनुसंधान, योग एवं प्राकृतिक चिकित्सा केंद्र,
शिवपुर बाईपास रोड, निकट तोमर स्कूल, वाराणसी (उ.प्र.)
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बाल साहित्य के विविध आयाम (21जून, 2024) ऑनलाइन विचार-विमर्श
बालकों के सर्वांगीण विकास के लिए बाल साहित्य लिखा जाना और पढ़ा जाना बहुत आवश्यक है: वरिष्ठ बाल साहित्यकार—नरेंद्र सिंह ‘नीहार’
अंतरराष्ट्रीय हिन्दी संगठन नीदरलैंड ने बाल साहित्य के फ़ेसबुक पेज “वर्ड ऑफ़ चिल्ड्रनस आर्ट एंड कल्चलर” के बाल साहित्य कार्यक्रम की मासिक शृंखला में 21जून 2024 को “बाल साहित्य के विविध आयाम” विषय पर ऑनलाइन विचार-विमर्श के कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारत के वरिष्ठ बाल साहित्यकार, समीक्षक, व दिल्ली में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत श्री नरेन्द्र सिंह ‘नीहार’ ने वैश्विक स्तर पर उपस्थित दर्शकों व मंच पर उपस्थित सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए बाल साहित्य की अवधारणा को बड़ी कुशलता से अभिव्यक्त करते हुए कहा कि बच्चों कोमल मन को ध्यान में रख देश-साहित्य और संस्कृति को माध्यम बना कर बच्चों के लिए हम जो साहित्य लिखते हैं, उसी को बाल साहित्य माना जाता है।
नीदरलैंड से इस कार्यक्रम की समन्वय व प्रस्तुतकर्ता डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने बाल साहित्य की भूमिका बताते हुए इस कार्यक्रम का संचालन सँभाला।
विषय प्रवर्तन के रूप में विराजमान वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक, व आलोचक श्री सूर्यकान्त शर्मा जी ने बाल साहित्य के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हम लोकल से ग्लोबल हो गए हैं, टेलीविज़न पर बहुत अधिक बच्चों के चैनल आ गये हैं। इसलिए हमें बाल साहित्य पर और अधिक ध्यान देना होगा। सरकार को इसके लिए पुस्तक नीति बनानी चाहिए। प्रकाशकों को लेखकों के प्रति ईमानदार रहना होगा। पुस्तक मेले में बाल साहित्य को बढ़ावा मिलना चाहिए। बाल साहित्य और साहित्यकारों को एक ऐसा मंच मिलना चाहिए जहाँ वह अपनी बात कह सकें। बाल साहित्य को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विमर्श से जोड़ना आवश्यक है।
विशिष्ट अतिथि के रूप में उत्तराखंड के वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री मोहन जोशी गरूड़ जी जो बाल पत्रिका ज्ञानार्जन पत्रिका के संपादक भी हैं उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा की बाल साहित्य एक महत्त्वपूर्ण विषय है जो जाने-अनजाने में कहीं छिप जाता है। देश-विदेश में बाल साहित्य के लोक कथाओं, कहानियों, लेख निबंध, मानवीय मूल्यों पर आधारित साहित्य गीतों, लोरियाँ, कविताओं का ख़ज़ाना बिखरा पड़ा हैं। यदि हम भारत में इस ख़ज़ाने को पुस्तकों के रूप में समाहित कर सकें या किसी वेबसाइट के द्वारा समाहित कर सकें तो यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संस्कृतियों, का आदान-प्रदान का बहुत सफल प्रयोग होगा। ई-पत्रिकाओं का प्रकाशन होना चाहिए। बाल पत्रिकाओं के पंजीकरण में आने वाली कठिनाइयों को सरल किया चाहिए। लेखन व प्रकाशन दोनों के लिए पुरस्कार होने चाहिए। लेखकों को बाल लेखन में नवीनता लानी होगी तभी हम बच्चों को वर्तमान युग से सही पहचान कराने में सफल हो सकेंगे। उन्होंने अपने बाल साहित्य के ऑनलाइन कार्यक्रम मोहन कृति के बारे में भी जानकारी देते हुए बताया की इस कार्यक्रम का संचालन भी बच्चे करते हैं, समीक्षक भी वही होते हैं और अध्यक्षता भी उन्हीं की रहती है। उत्तराखंड में ख़राब मौसम के कारण श्री मोहन जोशी गरूड़ जी के वक्तव्य में व्यवधान उत्पन्न होने के कारण दर्शक उनका वक्तव्य पूरा नहीं सुन सके।
कार्यक्रम को आगे गति देते हुए डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने कार्यक्रम की मुख्य अतिथि श्री मति मीना अरोड़ा जी को मंच पर आमंत्रित करते हुए उनसे प्रश्न किया—क्या अनूदित बाल साहित्य को मौलिक बाल साहित्य से कमतर आँका जाना चाहिए? मुख्य अतिथि श्रीमती मीना अरोड़ा जी ने प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा—साहित्य की अन्य धाराओं की तरह बाल साहित्य भी एक महत्त्वपूर्ण धारा है। यह आज के दौर की अनिवार्य आवश्यकता है। बाल साहित्य की ओर कम ध्यान दिया जा रहा है। हमारे लिए यह दुख का विषय है कि हमारे देश में अधिकतर बच्चों को पाठ्य-पुस्तकों तक ही सीमित रखा जाता है।
माता-पिता बच्चों को खिलौने, वीडियो गेम इत्यादि तो उपलब्ध करवाते हैं लेकिन बाल पत्रिकाओं की ओर उनका ध्यान कम ही जाता है।
वैसे तो हिन्दी बाल साहित्य बहुत समृद्ध है। इनमें अनूदित बाल साहित्य का योगदान बहुत अधिक है। बहुत से प्रकाशन गृह और संस्थान इस दिशा में काम कर रहे हैं। हिन्दी में अनूदित बाल साहित्य में सबसे अधिक अनुवाद अंग्रेज़ी से हिन्दी में हुए हैं। इनमें सबसे अधिक अनुवाद कहानियों का हुआ है। इक्कीसवीं सदी में इस दिशा में सबसे अधिक कार्य हुआ है। अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनूदित बाल कहानियाँ विविधता की दृष्टि से भी बहुत समृद्ध हैं।
इनमें आम जीवन की कहानियाँ, पशु-पक्षियों पर आधारित कहानियाँ, पर्यावरण संबंधी कहानियाँ, जीवनी संबंधी कहानियाँ आदि प्रमुख अभी हाल ही में डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे जी ने नीदरलैंड्स की बाल कहानियों का अनुवाद हिन्दी भाषा में कर उन्हें प्रकाशित करवाया है जिससे बाल साहित्य बहुत ही लाभान्वित हुआ है।
इस कार्यक्रम की समन्वय व संचालिका डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे जी द्वारा अनूदित नीदरलैंड्स की लोक कथाएँ बहुत ही लुभावनी तथा रोचक बाल कहानियाँ हैं। मेरी दृष्टि में बच्चों को कहानियों के साथ बाल कविताओं के माध्यम से बहुत सा ऐसा ज्ञान देना चाहिए जिससे उनको खाने पीने, पढ़ने जीवन जीने के सही तौर तरीक़ों का बचपन से ही अभ्यास हो जाए।
बाल कविताओं तथा कहानियों के माध्यम से बच्चों को प्रकृति के प्रति प्रेम, देश प्रेम, बड़ों का आदर जैसी नैतिक शिक्षा का ज्ञान भी दिया जा सकता है।
मुख्य वक्ता के रूप में इंदौर की वरिष्ठ साहित्यकार व वरिष्ठ पत्रकार डॉ. सुनीता श्रीवास्तव जी ने विषय को आगे बढ़ाते हुए आज का बाल साहित्य बच्चों को सोशल मीडिया, इंटरनेट के जाल से मुक्त करने में किस तरह सहायक हो सकता है? प्रश्न का उत्तर देते कहा कि—हम आज बहुत आसानी से बच्चों पर दोषारोपण कर देते हैं कि बच्चे सारा समय फ़ोन में सोशल मीडिया या इंटरनेट पर समय बिताते हैं। पर क्या हम अपने बच्चों के लिए समय निकाल पाते हैं? आज भागदौड़ की ज़िंदगी में हम इतने व्यस्त हो गए हैं कि हम अपने बच्चों के लिए उनके साथ बैठने, बातें करने का समय ही नहीं निकाल पाते। पहले संयुक्त परिवार होते थे सब साथ मिलकर रहते थे। दादा-दादी से वह कहानी सुना करते थे, रामायण-गीता घरों में सुनी पढ़ी जाती थी अब वह समय बीत गया। एकल परिवार है जहाँ माँ और पिता दोनों काम पर जाते हैं बच्चों को या तो आया पालती है या डे-बोर्डिंग स्कूल। इसलिए आज के समय में यह आवश्यक है कि माता-पिता स्वयं पढ़ने की आदत डालें बच्चों को पुस्तकालय जाना सिखाएँ, उन्हें उपहार में पुस्तकें दें और साथ बैठ कर पढ़ें तो बचते अवश्य ही इंटरनेट के जाल से मुक्त हो सकेंगे। आज के समय में बच्चों व किशोरों में बढ़ते मानसिक अवसाद से बाहर निकलने के लिये अच्छा बाल साहित्य बहुत सहायक सिद्ध हो सकता है।
कार्यक्रम के अध्यक्ष व साहित्य को पूर्ण समर्पित साहित्यकार श्री नरेन्द्र सिंह ने डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे के प्रश्न-बाल साहित्य की समीक्षा व समीक्षक के मूल बिंदु पर चर्चा कविता की दो लाइनों से की—
“बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो।
चार किताबें पढ़ कर यह भी हम जैसे हो जाएँगे।”
शरारत व शिकायत बच्चों और बचपन के लिए बहुत आवश्यक है। बाल साहित्य साहित्य की अलग विधा नहीं साहित्य का सोपान है वहीं से हो कर साहित्य को जाना है। बाल साहित्य केवल बड़ों के लिए ही नहीं है। बाल साहित्य को विश्वविद्यालय के पाठ्यक्रमों में पढ़ाना चाहिए ताकि वह अच्छे अभिभावक बनें। बाल साहित्य को बाल साहित्य की समीक्षा करते समय पुस्तक कि विषय वस्तु पर ध्यान देना आवश्यक होता है। यदि पुस्तक का विषय बालकों की रुचि के अनुसार नहीं है तो फिर उस लेखन का बाल साहित्य में कोई औचित्य नहीं रह जाता है। उस पुस्तक में बाल मनोविज्ञान को कितना ध्यान में रखा गया है? लेखन की शैली रोमांचक है या नहीं? संवादों की भाषा सरल व चुटीले व संक्षिप्त होना भी आवश्यक है। लेखन में नवीनता होनी चाहिए उपदेशात्मकता से बचना होगा। उन्होंने “जूते घूमने निकले” पुस्तक की समीक्षा का उदाहरण देते हुए कहा कि यदि शीर्षक जिज्ञासु व आकर्षक होंगे तभी बच्चे उस पुस्तक या रचना को पढ़ने में रुचि लेंगे।
कहानी या रचना का वातावरण ऐसा होना चाहिए जो हर बाल पाठक को अपने ही परिवेश का बोध कराए। इन सभी बिंदुओं को यदि ध्यान में रखा जाए तो एक उत्तम समीक्षा तैयार कि जा सकती है। किसी पुस्तक की समीक्षा के लिए उसका पुरस्कृत होना आवश्यक नहीं है। भारत में जहाँ पाठक है वहाँ पुस्तक नहीं है और जहाँ पुस्तक हैं वहाँ पाठक नहीं है यह बड़ी विडंबना है। भारत में बच्चों पर पाठ्यक्रम का बहुत बोझ रहता है। जिससे उन्हें अन्य पुस्तकें पढ़ने का समय कम मिल पाता है। इस पर उन्होंने अपनी एक कविता का उदाहरण दिया—
“ठूँस ठूँस के भरी किताबें, हो गया बसता भारी
झुकी पीठ बता रही है बालक की लाचारी . . .।”
बाल साहित्य बच्चों को केवल मनोरंजन ही नहीं शिक्षा, ज्ञान, संस्कृति और इतिहास का भी ज्ञान कराते है।
कार्यक्रम के अंत में सोनू पत्रकार जी भी हमारे साथ अपने विचार व्यक्त करने के लिए जुड़े उन्होंने कहा कि डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे नीदरलैंड से एक वर्ष से बाल साहित्य की अनेक भाषाओं व विधाओं पर कार्यक्रमों का आयोजन कर रही हैं। यह अपनेआप में एक महत्त्वपूर्ण व सराहनीय पहल है। इस कार्यक्रम में संस्कृत, हिन्दी, पंजाबी, भोजपुरी, कन्नड़ आदि भाषाओं के बाल साहित्य पर इन भाषाओं के बाल साहित्यकार विचार विमर्श कर चुके हैं। आज का कार्यक्रम भी बाल साहित्य के विविध आयाम विशेष कार्यक्रम के रूप में सम्पन्न हुआ, इसके लिए मैं मंच पर उपस्थित सभी प्रबुद्ध साहित्यकारों व इस कार्यक्रम की समन्वयक व प्रस्तुतकर्ता डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे के इस सराहनीय प्रयास को नमन करता हूँ।
कार्यक्रम के अंत में श्री सूर्यकान्त शर्मा जी ने कार्यक्रम की संचालिका डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे से नीदरलैंड में बाल साहित्य के विषय में जानकारी देने का आग्रह किया। डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने बताया की नीदरलैंड में 17वीं शताब्दी में बाल साहित्य लिखने की शुरूआत पाँच बच्चों की हस्तलिखित कविता संग्रह से हुई जो आगे चलकर बहुत प्रसिद्ध काव्य संग्रह के रूप में पाठकों के सामने आया। उन्होंने बताया की नीदरलैंड में बाल साहित्य की सरकारी नीति है। पुस्तकों को आयु वर्गों में बाँटा गया है। लेखकों व प्रकाशकों के लिए नियम हैं जिसका उन्हें पालन करना होता है। बाल लेखन के लिए “गोल्डन पैन” का सर्वोच्च पुरस्कार है। हर घर में कम से कम एक या दो पुस्तकों की अलमारी आपको मिल जाएगी। माता-पिता बच्चों को सोने से पहले उनके साथ बैठ कर कहानी पढ़ते हैं। सप्ताहांत में शहर के पुस्तकालयों में बच्चों के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिसमें बाल साहित्यकार आते हैं और अपनी रचनाएँ व कहानी स्वयं बच्चों को पढ़ कर सुनाते हैं। आदि।
कार्यक्रम के अंत में डॉ. ऋतु शर्मा नंनन पांडे ने कार्यक्रम के आभासी पटल से जुड़े बाल साहित्यकार जिनमें: डॉ. नागेश पाण्डेय ‘संजय’ जी, हेमन्त कुमार जी, प्रतिभा राजहंस जी, रोचिका शर्मा जी, निर्मला जोशी जी, दिन दयाल शर्मा जी, श्याम सुंदर श्रीवास्तव जी, डॉ. अखिलेश शर्मा जी, डॉ. अरुण निषाद, लक्ष्मी भट्ट बड़शिलिया “बीना” जी व ढेर सारे दर्शक हमारे इस बाल साहित्य के विशेष कार्यक्रम से जुड़े रहें व अपनी प्रतिक्रियाओं से हमारा मनोबल बढ़ाते रहे। “बाल साहित्य के विविध आयाम” कार्यक्रम में उपस्थित सभी साहित्य मनीषियों व कार्यक्रम के आभासी पटल से जुड़े सभी दर्शकों का धन्यवाद कर कार्यक्रम की समाप्ति की।
आगे पढ़ेंडेटा, डिज़िटल अर्थव्यवस्था का नया तेल है—बालेन्दु शर्मा दाधीच
ग्रेटर नोएडा (भारत), 17 जून, 2024: केंद्रीय हिंदी संस्थान, विश्व हिंदी सचिवालय, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद और भारतीय भाषा मंच के तत्त्वावधान में वैश्विक हिंदी परिवार ने दिनांक: 16 जून 2024 को एक विशेष संगोष्ठी का ऑनलाइन आयोजन किया। इस संगोष्ठी में चर्चा का विषय था ‘कंप्यूटर और भाषा कार्यशाला: तकनीक की दुनिया में डेटा का रहस्यजाल’। उल्लेख्य है कि वैश्विक हिंदी परिवार, भाषा और विशेषतया हिंदी भाषा तथा इसके साहित्य के वैश्विक रूप से प्रचार-प्रसार के लिए स्वयंसेवी आधार पर एक अभियान को आंदोलन के रूप में परिवर्तित करने के लिए संकल्पित है। इसी संकल्प से अभिमंत्रित होकर यह संस्था हिंदी के विस्तारीकरण के लिए इसे अधुनातन तकनीक से जोड़ने के लिए प्रयासरत है तथा इसके कंप्यूटरीकरण की संभावनाओं पर विद्वानों के सुझावों और विचारों का साझा कर रही है।
दिनांक: 16 जून को आयोजित संगोष्ठी में ऐसे वक्ताओं को मंच पर आमंत्रित किया गया जिनकी इस महत्त्वपूर्ण विषय पर गहरी पैठ है एवं जिनके विचारों से हिंदी के कंप्यूटरीकरण की अभिकल्पना को मूर्त रूप प्रदान किया जा सकता है। इस कार्यक्रम के मुख्य वक्ता थे, बालेंदु शर्मा दाधीच जो संप्रति भारत के माइक्रोसॉफ़्ट के निदेशक हैं। वह हिंदी के एक लब्धप्रतिष्ठ साहित्यकार भी हैं।
संगोष्ठी के स्वागत भाषण में हिंदी के प्रखर विद्वान डॉ. जयशंकर यादव ने कार्यक्रम की रूपरेखा बताते हुए इसके मुख्य वक्ता श्री बालेंदु शर्मा और सह-वक्ताओं नामत: डॉ. राजेश गौतम, डॉ. राज कुमार शर्मा, डॉ. आदित्य झा तथा डॉ. ओम प्रकाश बैरवा का परिचय दिया। तदनंतर, मंच संचालक डॉ. सुरेश कुमार मिश्र ‘उरतृप्त’ ने कहा कि वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी के सघन प्रयासों से इस प्रकार की संगोष्ठियों का आयोजन सम्भव हो पाता है।
कंप्यूटर और प्रौद्योगिकी के विशेष जानकार, श्री बालेंदु शर्मा ने कंप्यूटर तथा इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में प्रचुरता से प्रयुक्त डेटा के महत्त्व को रेखांकित करते हुए कहा कि डेटा, डिज़िटल अर्थव्यवस्था का तेल है, अर्थात् आज के दौर में डेटा का महत्त्व पेट्रोलियम से भी ज़्यादा है। डेटा के बदौलत ही आर्टीफ़िशियल इंटेलीजेंस छलाँग मार रहा है। गूगल, ऐमज़न, माइक्रोसॉफ़्ट जैसी कंपनियों का महत्त्व समृद्ध डेटा के ज़रिए ही बढ़ता जा रहा है। उन्होंने भारत-चीन के बीच तनावपूर्ण सम्बन्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि डेटा का सामरिक महत्त्व भी है। यह वैश्विक प्रभाव का स्रोत है। डेटा की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भी है; कोई 20,000 वर्षों पहले की पीढ़ियाँ भी किसी न किसी रूप में डेटा संसाधित करती रही हैं जिनका प्रयोग खेती, कर वसूली, उत्पादन आदि के क्षेत्र में किया जाता रहा है। श्री बालेंदु के वक्तव्य के मध्य प्रतिक्रिया करते हुए डॉ. विजय कुमार मल्होत्रा ने डेटा और सूचना के बीच अंतर्सम्बन्धों का उल्लेख किया। डेटा की क्षमता को महत्त्वांकित करते हुए बताया गया कि आज 1 मिनट में 40 लाख पोस्टें की जाती हैं जिनसे डेटा का सतत विस्तार होता जा रहा है। श्री बालेंदु ने इसके नकारात्मक पक्ष के सम्बन्ध में बताया कि डेटा से निजता अर्थात् प्राइवेसी का ख़तरा भी बढ़ता जा रहा है। डेटा में हर व्यक्ति की जानकारी छिपी होती है।
बीच वक्तव्य में, दिल्ली विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर, डॉ. राजेश गौतम ने कहा कि आज डेटा के द्वारा मूल्यवान सूचनाओं की गोपनीयता को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है। वैसे तो डेटा हमें आत्मविश्वास से लबरेज़ कर देता है किन्तु इस पर निर्भरता ख़तरनाक़ है। गुरु नानक देव कॉलेज के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर राज कुमार शर्मा ने बताया कि यों तो डेटा ने हमारे जीवन को आसान बना दिया है तथापि भारत की 85% आबादी साइबर क्राइम की शिकार हो रही है। इसी बीच, डॉ. आदित्य झा ने श्री बालेंदु से अपने कुछ प्रश्नों का स्पष्टीकरण माँगते हुए पूछा कि क्या डेटा हमें प्रभावित कर रहा है या हम डेटा को प्रभावित कर रहे हैं। उन्होंने डेटा की सीमाओं के बाबत भी प्रश्न किया जिसका श्री बालेंदु ने संतोषजनक समाधान प्रस्तुत किया। तदनंतर डॉ. ओमप्रकाश बैरवा ने अनुवाद, हिंदी भाषा, राजभाषा आदि से सम्बन्धित कंप्यूटरीकरण के बारे में कुछ बिंदुओं पर अपने विचार रखे। उन्होंने भारत सरकार में डेटा को सुरक्षित रखने के उपायों के बारे में जानना चाहा तो श्री बालेंदु ने बताया कि डेटा को डिलीट भी किया जा सकता है; अस्तु, माइक्रोसॉफ़्ट कंपनी हमारी प्राइवेसी की सुरक्षा करती है। मंच पर उपस्थित श्री वी.आर. जगन्नाथ ने बताया कि भाषा स्वयं डेटा है। संगोष्ठी को अपना सान्निध्य प्रदान कर रहे रेल मंत्रालय में राजभाषा के निदेशक श्री वरुण कुमार ने श्री बालेंदु के समृद्ध वक्तव्य को सभी के लिए अत्यंत उपयोगी घोषित किया। वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष श्री अनिल जोशी ने इस संगोष्ठी को अपने बहुमूल्य विचारों से अनुप्राणित करने वाले श्री बालेंदु शर्मा के प्रति आभार व्यक्त किया।
संगोष्ठी का विधिवत समापन करते हुए श्री राजीव रावत ने प्रतिभागी चर्चाकारों तथा श्रोता-दर्शकों के प्रति वैश्विक हिंदी परिवार की ओर से आभार प्रकट किया। इस प्रबुद्ध श्रोतावृन्द में टोमियो मिज़ोकॉमी (जापान), शिखा रस्तोगी (थाईलैंड), दिव्या माथुर (इंग्लैंड), डॉ. ल्यूदमिला खोखलोवा (रूस), डॉ. शैलजा सक्सेना (कैनेडा), डॉ. महादेव कोलूर, डॉ. मोक्षेंद्र, डॉ. वंदना मुकेश, डॉ. अरुणा अजितसरिया, डॉ. ओम प्रकाश, जे. आत्माराम, सच्चिदानंद कालेकर, सुनीता पाहूजा, डॉ. चम्पा मसीवाल, विजय नागरकर, विनयशील चतुर्वेदी, दिलीप कुमार सिंह, ए.के. साहू, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, अमित निश्छल, अपेक्षा पाण्डेय, अभिषेक प्रकाश, उमेश प्रजापति, वेंकेटेश्वर राव वनमा, विभावरी गोरे, श्रेया जगदीशन, स्मिता श्रीवास्तव, सुप्रिया, चंदन उपाध्याय, आशा, कृष्ण कुमार, आशा बर्मन, अठिला कोठालवाला, आनंदकृष्ण, आदित्यनाथ तिवारी, राहुल श्रीवास्तव, राजेश गौतम, समीर, सरोजिनी प्रीतम, सौरभ आर्य, महाबुबली ए नदफ, पूजा अनिल, राज कुमार शर्मा, किरण खन्ना, जीतेंद्र चौधरी आदि की गरिमामयी उपस्थिति रही।
(प्रेस रिपोर्ट-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
वातायन-यूके के वैश्विक मंच पर रूसी साहित्यकार—अंतोन चेखव के कथा-साहित्य पर एक संगोष्ठी का आयोजन
प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में ‘वातायन-यूके’ के तत्त्वावधान में ‘विश्व साहित्य के नगीने’ शृंखला के अंतर्गत रूस के महान साहित्यकार अंतोन पावलविच चेखव की कहानियों पर सारगर्भित चर्चा की गई। इस वातायन संगोष्ठी-190 की प्रस्तोता थीं, ब्रिटेन की आईटी प्रोफ़ेशनल और लेखिका ऋचा जैन। पत्रकार, लेखक, अनुवादक और आलोचक—श्री आलोक श्रीवास्तव अध्यक्ष थे जबकि मुख्य अतिथि थीं, मॉस्को स्टेट यूनिवर्सिटी की प्रो. ल्यूदमिला खोखलोवा। ध्यातव्य है कि दिनांक 27-04-2024 को इसी शृंखला के अंतर्गत चेखव की कहानियों पर पहले भी चर्चा की गई थी।
रूस की इंजीनियर और अनुवादक प्रगति टिपणीस ने सुश्री ऋचा जैन के साथ सह-वाचक के रूप में चेखव की दो कहानियों ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ और ‘बुढ़ापा’ का सस्वर पाठ किया। उल्लेखनीय है कि इन दोनों कहानी वाचकों ने ही इन कहानियों का अनुवाद भी किया था। ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ का अंग्रेज़ी से हिंदी में अनुवाद किया सुश्री ऋचा जैन ने जबकि ‘बुढ़ापा’ कहानी का अनुवाद किया प्रगति टिपणीस ने। दोनों कहानियाँ मानवीय स्पर्श से लबरेज़ थीं। ‘एक बिना शीर्षक की कहानी’ का घटनाक्रम एक चर्च के मुख्य पादरी, भिक्षुओं, शराबियों और एक उच्छृंखल स्त्री के इर्द-गिर्द घूमता है। पादरी की संगीत और छंद-रचना में ख़ास दिलचस्पी है। दूसरी कहानी ‘बुढ़ापा’ का रूसी से हिंदी में अनुवाद सुश्री प्रगति टिपणीस ने किया। इस कहानी का मुख्य पात्र है, एक राजकीय शिल्पकार उज़िल्कोफ जिसको एक चर्च के क़ब्रिस्तान को बहाल की ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी। वह उस स्थान से कोई 18 वर्ष पहले परिचित रहा था; बहरहाल, अब उस स्थान का हुलिया बिल्कुल बदल चुका है। वह वहाँ दोबारा आकर वहाँ के लोगों, स्थान और चीज़ों का जायज़ा बड़े ही फलसफाना अंदाज़ में लेता है जिसमें व्यंग्य-कटाक्ष का भी पुट है। कहानी मनोरंजक ढंग से आगे बढ़ती है तथा श्रोताओं को आद्योपांत बाँधे रहती है।
संगोष्ठी की मुख्य अतिथि ल्यूदमिला खोखलोवा ने दोनों कहानियों के भाव-पक्ष और कला-पक्ष पर बारीक़ी से प्रकाश डाला। उन्होंने दोनों अनुवादकों के अनुवाद-कौशल की सराहना करते हुए कहा कि चेखव की कहानियों में सांसारिक जीवन का जीवंत विवरण मिलता है तथा उनके द्वारा वर्णित सांसारिक जीवन एवं इसके प्रति मनुष्य की प्रलोभन-प्रवृत्ति आकर्षक होती है। संगोष्ठी के अध्यक्ष श्री आलोक श्रीवास्तव ने भी ऋचा और प्रगति की अनुवाद-कला की प्रशंसा करते हुए कहा कि चेखव की कहानियों में आज से कोई 120 वर्षों पहले के संसार और जीवन का चित्रण मिलता है। यद्यपि उन्होंने कोई उपन्यास नहीं लिखा तथापि उनकी सारी कहानियाँ एक उपन्यास के ही विस्तार जैसी लगती हैं। उनकी कहानियों में पात्रों, कथा-वस्तु, पृष्ठभूमि आदि के सम्बन्ध में बड़ी विविधता है। उनका व्यक्तित्व और सृजन-संसार सचमुच अत्यंत विराट है।
संगोष्ठी के टिप्पणीकारों में अन्यों के साथ-साथ, सुश्री दिव्या माथुर और सुश्री राजश्री शर्मा मुख्य थीं। सुश्री शर्मा ने बताया कि चेखव के लेखन में हमें दुःख, पीड़ा, अतृप्ति और अधूरापन मिलता है। संगोष्ठी के समापन पर सुश्री ऋचा ने मुख्य अतिथि, अध्यक्ष तथा श्रोता-दर्शकों को तहे-दिल से धन्यवाद ज्ञापित किया। मंच पर उपस्थित प्रबुद्ध श्रोताओं में तोमियो मिज़ोकॉमी, डॉ. जयशंकर यादव, अनूप भार्गव, अरुणा अजितसरिया, डॉ. महादेव कोलूर, डॉ. जगदीश व्योम, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र, आशा बर्मन, जय वर्मा, अल्पना दास, स्मिता श्रीवास्तव आदि मुख्य थे। संगोष्ठी के ऑनलाइन प्रसारण में तकनीकी सहयोग प्रदान किया श्री कृष्ण कुमार ने।
(प्रेस विज्ञप्ति-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंवातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-188 के अंतर्गत कथाकार नासिरा शर्मा जी के कथा-साहित्य पर विशद चर्चा
ग्रेटर नोएडा, 09 जून, 2024: ‘वातायन-यूके’ के तत्त्वावधान में दिनांक: 08 जून, 2024 को प्रख्यात साहित्यकार नासिरा शर्मा जी के साहित्यिक अवदान पर उन्हीं की उपस्थिति में एक महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। हिंदी राइटर्स गिल्ड और वैश्विक हिंदी परिवार के सहयोग से आयोजित वातायन परिवार की यह संगोष्ठी अत्यंत उपादेय रही क्योंकि इसमें कहानीकार, संपादक और आलोचक राकेश बिहारी जी के वक्तव्य में नासिरा शर्मा की कहानियों पर अत्यंत बारीक़ी से प्रकाश डाला गया। उन्होंने नासिरा जी के उपन्यासों पर संक्षिप्त टिप्पणियों के पश्चात उनकी चुनिंदा प्रतिनिधि कहानियों पर विस्तार से चर्चा की।
कैनेडा की ख्यातिलब्ध कथाकार डॉ. शैलजा सक्सेना और श्री राकेश बिहारी ने बताया की नासिरा जी का कथा-साहित्य मानवीय रिश्तों को जोड़ने की भूमिका का निर्वाह करता है। संगोष्ठी की सह-आयोजक डॉ. शैलजा ने कहा कि नासिरा जी की कहानियाँ मनुष्य में प्रेम की पुनर्वापसी की कामना करती हैं।
एक नए परिप्रेक्ष्य में इस बात पर चर्चा की गई कि नासिरा जी की कुछ कहानियाँ सहृदय पुरुष की स्त्री के प्रति उदार दृष्टिकोण का उल्लेख करती हैं। इस पर नासिरा जी ने इंगित किया कि इक्कीसवीं सदी में स्त्री के प्रति पुरुष का वह रवैया बदल रहा है। राकेश जी ने कहा कि नासिरा जी भावों की संजीदगी और उसके तह तक पहुँचने की पूरी कोशिश करती हैं। मोहब्बत, अधिकार और निर्णय ये तीन बातें उनकी कहानियों में स्त्री-पुरुष के रिश्तों को निर्धारित करती हैं।
प्रख्यात कथाकार नासिरा शर्मा जी का रचना-संसार अत्यंत विशाल है और उन्होंने उपन्यास, कहानी, लेख, रिपोर्ताज, अनुवाद जैसी विधाओं में कोई तीन दर्ज़न से ज़्यादा पुस्तकें लिखी हैं। साहित्य अकादमी और व्यास सम्मान जैसे अलंकरणों से सम्मानित नासिरा शर्मा जी द्वारा संगोष्ठी के अंत में दिए गए संक्षिप्त वक्तव्य को डॉ. शैलजा ने अत्यंत सारगर्भित बताया।
इस संगोष्ठी में आकाशवाणी उद्घोषक, दिल्ली दूरदर्शन से जुड़े और रंगमंच कलाकार श्री कृष्ण कांत टंडन भी उपस्थित थे। उन्होंने अभिनेत्री, एंकर, वॉयसओवर कलाकार–अश्विनी किन्हिकर जी के साथ नासिरा जी की एक कहानी के अंश के नाट्य रूपांतर का हृदयस्पर्शी पाठ प्रस्तुत करके श्रोता-दर्शकों को आत्मविभोर कर दिया। प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों में से कुछ ने टिप्पणियाँ भी कीं जिन पर श्री राकेश और नासिरा शर्मा जी ने भी प्रतिक्रियाएँ कीं।
संगोष्ठी में जापान के प्रो. तोमिओ मिज़ोकामी, प्रो. लुडमिला खोंखोलोव, अरुण सभरवाल, अनूप भार्गव, वरुण कुमार, राकेश त्रिपाठी, भूपेंद्र सिंह, स्मिता श्रीवास्तव, शैल अग्रवाल, दीपिका दास, अर्पणा संत सिंह, रश्मि वर्मा, राजेंद्र माहेश्वरी, अरुणा अजितसरिया आदि जैसे प्रबुद्ध श्रोता दर्शक उपस्थित थे। संगोष्ठी का समापन डॉ. मनोज मोक्षेंद्र के धन्यवाद ज्ञापन से हुआ।
(प्रेस विज्ञप्ति, डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंवैश्विक हिंदी परिवार की समृद्ध संगोष्ठी: ‘विदेश में हिंदी नाटक’
ग्रेटर नोएडा, 3 जून 2024: वैश्विक हिंदी परिवार के तत्त्वावधान में दिनांक: 2 जून 2024 को जापान के ओसाका विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफ़ेसर और हिंदी साहित्यकार प्रो. तोमियो मिजोकामी की अध्यक्षता में ‘विदेश में हिंदी नाटक’ विषय पर एक महत्त्वपूर्ण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के आयोजन में विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन-यूके और भारतीय भाषा मंच का सम्मिलित सहयोग भी प्राप्त था। उल्लेख्य है कि वैश्विक हिंदी परिवार की ऐसी संगोष्ठियों में विश्व के कोई पचास देशों के साहित्यकार, चिंतक और बुद्धिजीवी भी शिरकत करते रहे हैं; इस कारण इन संगोष्ठियों के विशेष महत्त्व को साहित्यिक गलियारों में प्रमुखता से रेखांकित किया जाता है।
इस संगोष्ठी के आरंभ में, हिंदी साहित्यकार और कुशल मंच संचालक, अलका सिन्हा ने कहा कि आज इस मंच पर विदेशों में लिखे जाने वाले हिंदी नाटकों की दशा और दिशा तथा हिंदी रंगमंच के सामने आने वाली चुनौतियों तथा परिवर्तनों पर चर्चा होगी। उन्होंने शुरूआत में ही कहा कि इस संगोष्ठी के अध्यक्ष प्रो. तोमियो मीजोकामी विदेशों में हिंदी शैक्षणिक नाटकों का मंचन करने वाले पहले नाटककार रहे हैं। सुश्री अलका सिन्हा ने संगोष्ठी के मुख्य अतिथि श्री चितरंजन त्रिपाठी एवं चर्चा में शिरक़त करने वाले वक्ताओं नामत: डॉ. शैलजा सक्सेना, श्री अगस्त्य कोहली, श्री कृष्ण टंडन और राजेंद्रप्रसाद सदासिंह के बारे में भी संक्षिप्त परिचय दिया। सुश्री अलका ने कहा कि इन सभी विशिष्ट वक्ताओं का विदेशों में मंचित किए जा रहे हिंदी नाटकों से गहरा जुड़ाव रहा है।
मंच का संचालन कर रहे ब्रिटेन के नाटककार प्रतिबिंब शर्मा ने कहा कि हज़ारों वर्षों पूर्व भरत मुनि ने ‘नाट्य शास्त्र’ की रचना करके हमारा मार्गदर्शन किया है। कैनेडा की कथाकार, डॉ. शैलजा सक्सेना ने कैनेडा की ज़मीन को उर्वर बना रही हिंदी साहित्य सभा और हिंदी राइटर्स गिल्ड की भूमिकाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रारंभ में कैनेडा में प्रवासियों के जीवन में आने वाली समस्याओं और संघर्षों को वर्णित करने वाले छोटे-छोटे नाटक लिखे-मंचित किए गए। उन्होंने भारतीय डायस्पोरा को हिंदी की परंपरा और इसके साहित्य से संबद्ध करने के लिए नाटकों के लेखन-मंचन पर विशेष ध्यान दिया। उन्होंने बताया कि विदेश में नाट्य लेखन में अभी सक्रियता नहीं आई है। ब्रिटेन में हिंदी नाटकों के लेखन-मंचन में चुनौतियों की चर्चा करते हुए श्री कृष्ण टंडन ने कहा कि वह ब्रिटेन और दिल्ली में वह कोई तीस वर्षों से नाटकों से जुड़े रहे हैं। हम ब्रिटेन में संसाधनों, धन और ख़ासतौर से प्रस्तुतकर्ताओं तथा कलाकारों की कमी से जूझ रहे हैं। उन्होंने ब्रिटेन आकर स्वयं नाटक लिखना आरंभ किया जिनके मंचन के लिए उन्हें संस्थाओं से अनुदान लेना पड़ता था। कठोर परिश्रम करते हुए वर्ष में दो-तीन नाटकों का ही मंचन हो पाता था। उन्होंने स्वयं द्वारा मंचित कुछ नाटकों की क्लीपिंग का भी प्रदर्शन किया। अमेरिका के नाटककार श्री अगस्त्य कोहली ने कहा कि उनकी रंगमंच से संबंधित यात्रा दिल्ली के स्कूलों में पढ़ाई के समय से ही हो गई थी। अमरीका आने के पश्चात काफ़ी समय तक वह नाटकों की दुनिया से दूर रहे। फिर, अपने एक मित्र की सलाह पर उन्होंने इसमें दिलचस्पी लेनी शुरू की तथा कुछ नाट्य कंपनियों के साथ काम किया। उन्होंने अमरीका में कुछ नाट्य कंपनियों का उल्लेख किया तथा ‘प्रतिध्वनि’ नामक संस्था द्वारा दी जा रही सहायताओं का भी उल्लेख किया जिनसे वह लाभांवित रहे। मॉरिशस के नाटककार राजेंद्रप्रसाद सदासिंह ने बताया कि मॉरिशस में आज़ादी के पहले और उसके बाद आए गिरमिटिया समुदाय ने मिल-बैठ कर नाट्य परंपरा का सूत्रपात किया। यूपी और बिहार से आए बंधुआ मज़दूरों ने मनोरंजन के उद्देश्य से नौटंकी और नाटकों के मंचन की नींव डाली। उन्होंने सैंकड़ों दर्शकों के बीच ‘सत्य हरिशचंद्र’, “लंकादहन’ और ‘भरत मिलाप’ के कथानकों पर नाटक मंचित किए। कालांतर में, सिनेमा के आगमन से नाटकों के मंचन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा।
राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक, श्री चितरंजन त्रिपाठी ने अपने वक्तव्य में बताया कि उनका रंग-मडल मूलतः हिंदी नाटकों का ही मंचन करता है। विश्व रंगमंच और नाट्य सिद्धांतों को जानने के लिए अंग्रेज़ी सहित्य अत्यंत उपादेय साबित होता है। नए नाटक कम लिखे-मंचित किए जाने के कारण हिंदी नाटकों की दशा और दिशा प्रभावित हुई है। किन्तु, इस दिशा में उनके साथियों और मित्रों का सहयोग निरंतर मिलता रहा है। उन्होंने बताया कि लोगबाग नाटक, संस्कृति और कला के बारे में बातें तो ख़ूब करते हैं; परन्तु, वे नाट्य मंचन देखने के बजाय सिनेमा देखना अधिक पसंद करते हैं। इसलिए अधिकतर उन्हें दर्शकों को फोन करके नाटक देखने के लिए बुलाना पड़ता है।
संगोष्ठी को अपना सान्निध्य देने वाले, वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष, श्री अनिल जोशी ने कहा कि प्रवासी नाटकों को उनका परिवार बड़े उत्साह के साथ सहयोग प्रदान करेगा। उन्होंने बताया कि ब्रिटेन की नाट्य परंपरा दुनिया की सबसे समृद्ध परंपरा है। वहाँ के कलाकारों को नाट्य मंचन करके उतनी अच्छी आय हो जाती है जितनी कि फ़िल्मी कलाकारों को होती है। उन्होंने बताया कि विदेशों में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय तथा भारतीय सांस्कृतिक सहयोग परिषद के सहयोग से नाट्य मंचन को प्रोत्साहित किया जा सकता है। जापान के साहित्यकार प्रो, तोमियो मीजोकामी ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि नाट्य मंचन शिक्षण का एक प्रमुख साधन है और इसके माध्यम से भाषा को भी बेहतर ढंग से सीखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रसिद्ध नाट्य विशेषज्ञ श्री अंकुर जी के माध्यम से वह राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय से गहराई से जुड़े थे। तदनंतर, उन्होंने कुछ नाट्य मंचन की क्लीपिंग का भी प्रदर्शन किया।
इस प्रकार यह संगोष्ठी अत्यंत रोचक तथा श्रोता-दर्शकों के लिए ज्ञानवर्धक रही। कार्यक्रम का समापन श्री पीयूष श्रीवास्तव के विस्तृत, आत्मीय धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ।
(प्रेस रिपोर्ट—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंभाषा दीवार बनाती नहीं, दीवार तोड़ती है: अनिल शर्मा जोशी
(कश्मीर में हिंदी)
ग्रेटर नोएडा, 26 मई 2024: विश्व-स्तर पर हिंदी भाषा और साहित्य का परचम लहराने के लिए भारत समेत कुछ महत्त्वपूर्ण संस्थाओं ने ख़ास पहलक़दमी की है। विश्व हिंदी सचिवालय, केंद्रीय हिंदी संस्थान, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद, वातायन-यूके और भारतीय भाषा मंच के सम्मिलित सहयोग से वैश्विक हिंदी परिवार ने हिंदी को वैश्विक भाषा के रूप में जन-जन की ज़बान पर आरूढ करने का बीड़ा उठा रखा है। इसमें देश-विदेश के साहित्यकारों और भाषाविदों को एक मंच पर लाकर एक सशक्त उपक्रम को स्थायी आधार प्रदान किया जा रहा है। ऐसी आशा की जा रही है कि यह अभियान एक आंदोलन का रूप ले लेगा जिससे हिंदी अक्षांश और देशान्तर को लाँघते हुए भारतीय विरासत और संस्कृति को उल्लेखनीय विस्तार देगी।
दिनांक 26 मई 2024 को इसी अभियान के एक उपक्रम के रूप में वैश्विक हिंदी परिवार ने एक ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया। इस आयोजन के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर के प्रदेशवासियों के हृदय में हिंदी की धड़कन को मापने का श्लाघ्य प्रयास किया गया—बाक़ायदा एक विचार-मंच का संयोजन करके। इस मंच के सूत्रधार थे, जाने-माने साहित्यकार और हिंदी प्रचारक श्री अनिल शर्मा जोशी। इस मंच का विचारार्थ विषय था—‘कश्मीर में हिंदी: वितस्ता-विमर्श और ई-पत्रिका का लोकार्पण’।
संगोष्ठी का शुभारंभ करते हुए ख्यात कवयित्री और मंच-संचालक, सुश्री अलका सिन्हा ने इस कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की। तदनंतर, कश्मीर विश्वविद्यालय में हिंदी अधिकारी के रूप में कार्यरत डॉ. मुदस्सिर अहमद भट्ट ने मंच का सुविध और कुशल संचालन करते हुए श्री अनिल शर्मा जी के प्रति आभार व्यक्त किया जिनके बदौलत कश्मीर में हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबंधित ऐसी संगोष्ठी की संकल्पना ने मूर्त रूप लिया। हिंदी शिक्षिका डॉ. सकीना अख़्तर ने अपने वक्तव्य में कहा कि कश्मीर में हिंदी की स्थिति आशाजनक है; किन्तु संतोषजनक नहीं है। कश्मीर में हिंदी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित किए जाने की ज़रूरत है। कश्मीर की हिंदी लेखिका डॉ. मुक्ति शर्मा ने कहा कि राज्य के कॉलेजों और स्कूलों में हिंदी शिक्षण की स्थिति निराशाजनक है तथा छोटी कक्षाओं में स्कूली बच्चों से हिंदी शिक्षण की शुरूआत की जानी चाहिए। कश्मीर के लोग हिंदी बोलना और सीखना पसंद करते हैं और कश्मीर-पर्यटन के दौरान लोगबाग हिंदी का प्रयोग करते हैं। ई-पत्रिका की संपादक तथा कश्मीर विश्वविद्यालय में हिंदी की व्याख्याता, सुश्री अमृता सिंह ने कहा कि साहित्य और पत्रकारिता एक ही सिक्के के दो पहलू हैं एवं उनके राज्य में हिंदी पत्रिकाओं की चर्चा होती रहती है।
संगोष्ठी के अगले चरण में ई-पत्रिका ‘वितस्ता’ का लोकार्पण किया गया। डॉ. मुदस्सिर ने इस पत्रिका का विस्तृत परिचय दिया। कश्मीर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की अध्यक्ष डॉ. रूबी जुत्शी ने कश्मीर की भाषाई और संस्कृतिक विरासत की चर्चा करते हुए कहा कि कश्मीर में अन्य भाषाओं के साथ-साथ हिंदी में भी इषदेव के गीत गाए जाते हैं। भारतीय भाषा मंच के राष्ट्रीय संयोजक डॉ. राजेश्वर कुमार ने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी भारतीय भाषाओं को जोड़ने वाली एक कड़ी है। कश्मीर हिंदी के आचार्यों की भूमि रही है जबकि यहाँ उर्दू को थोपा गया है। उन्होंने कहा कि राज्य की कश्मीरी, डोगरी, लद्दाखी, गुज्जरी जैसी भाषाओं को देवनागरी लिपि में लिखकर हिंदी भाषा को जनप्रिय बनाया जा सकता है। राज्य में दक्षिण भारत के विपरीत हिंदी-विरोध नहीं है। हिंदी के ज़रिए संस्कृत की शब्दावलियों का प्रयोग करके हम अपनी परंपरा से जुड़ सकते हैं। संगोष्ठी के मुख्य अतिथि और सामाजिक कार्यकर्ता श्री इंद्रेश कुमार ने कहा कि उन्होंने राज्य में आतंकवाद के दौर में, कोई 600 गाँवों का भ्रमण किया है जहाँ उन्होंने भाषाई एकता की लहर देखी है। उन्होंने बताया कि कश्मीर अपनी सुंदर भाषाई और सांस्कृतिक विरासत के कारण भारत की जन्नत है और भारत विश्व की नज़र में जन्नत है। हिंदी का प्रचुर प्रयोग करके ग़लतफ़हमियों को दूर किया जा सकता है; अमन-चैन बहाल किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि कश्मीर में पंचांग को हिंदी और उर्दू दोनों भाषाओं में तैयार किया जाता है।
श्री अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि जिस हिंदी के सम्बन्ध में एक समुदाय बनाया गया है, उसके लिए सेतु तैयार करने का काम माननीय इंद्रेश कुमार ने किया है। उन्होंने हिंदी के विकास में तकनीकी के प्रयोग पर बल दिया। कश्मीर में हिंदी के साथ-साथ सभी भाषाओं के विकास की बात सोचनी होगी। भाषा दीवार नहीं बनाती; यह तो दीवार तोड़ती है। प्रख्यात कवि सतीश विमल ने अपने वक्तव्य में बताया कि कश्मीर राज्य शारदा पीठ और संस्कृत भाषा का केंद्र रहा है। यहाँ भाषाओं का पालन-पोषण हुआ है तथा ज्ञान को विस्तारित किया गया है। यह राज्य बहुभाषी है और कश्मीरी लोग भी बहुभाषी हैं। इसे सरकार द्वारा हिंदीतर राज्य घोषित किया गया है जबकि यह क्षेत्र हिंदीभाषी है। लोग भले ही देवनागरी लिपि से अपरिचित हैं लेकिन वे हिंदी भली-भाँति समझते-बोलते हैं।
यह संगोष्ठी दो घंटे तक अविराम चलती रही और बड़ी संख्या में श्रोता-दर्शक इससे आद्योपांत जुड़े रहे। वेकटेश्वर राव के विस्तृत धन्यवाद-ज्ञापन के साथ इस संगोष्ठी का समापन हुआ।
(प्रेस रिपोर्ट—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंप्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ संगोष्ठी संपन्न, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, तेलंगाना
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल पंद्रहवीं संगोष्ठी 28 अप्रैल 2024 (रविवार) 4 बजे से आयोजित की गई।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि यह संगोष्ठी प्रख्यात चिंतक प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बतौर विशिष्ट अतिथि प्रखर व्यंग्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी, सुप्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. मंजु शर्मा जी मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीपा कृष्णदीप द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात् प्रदेश अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया। संस्था का परिचय देते हुए कहा कि यह एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए समर्पित है, साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक उद्देश्य है। अन्य क्षेत्रो की ललित कलाओं को प्रोत्साहित करना एवं सम्मानित करना संस्था का लक्ष्य है।
विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय जी ने अपने बीज वक्तव्य में कहा कि “दर्शन में जो द्वंद्वात्मक भौतिक विकासवाद है, वही राजनीति में साम्यवाद है और वही साहित्य में प्रगतिवाद है। पूँजीवाद के बढ़ते प्रभाव के कारण श्रमिकों और कृषकों के उत्पीड़न और उनके भीतर चेतना का शंखनाद करने में साम्यवाद ने अपनी विशिष्ट भूमिका का निर्वाह किया है।
मुंशी प्रेमचंद, रामेश्वर करुण से लेकर केदारनाथ अग्रवाल, डॉ रामविलास शर्मा, नागार्जुन, गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’, त्रिलोचन शास्त्री सहित अनेक कवियों और साहित्यकारों ने इस कालखंड में अपनी लेखनी के माध्यम से सामान्य जन, कृषक और श्रमिक, सर्वहारा वर्ग और हाशिये पर खिसके समाज की पीड़ा और संघर्ष को जहाँ मुखरित किया वहीं पूँजीवाद के क्रूर चेहरे को सामने लाने का महत्वपूर्व कार्य कर समाजवादी चेतना को आगे बढ़ाया। जीवन के कटु यथार्थ, व्यक्ति की दीन-हीन स्थिति और किसान और मज़दूर के प्रति सहानुभूति का चित्रण कर प्रगतिवादी साहित्यकारों ने अनेक कालजयी रचनाओं को जन्म दिया। पूँजीवाद के समाजवादी चिंतन की धारा को धार देने के लिए हिन्दी काव्य में प्रगतिवादी विचार धारा आज भी प्रासंगिक बनी हुई है।”
काव्य में ‘प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियाँ’ विषय परअपना सारगर्भित वक्तव्य प्रस्तुत करते हुए मुख्य वक्ता डॉ. मंजु शर्मा ने कहा कि “मार्क्सवादी विचारधारा का साहित्य में उदय प्रगतिवाद के रूप में उदय हुआ। यह विचारधारा समाज को दो वर्गों में देखती है शोषक और शोषित। प्रगतिवादी शोषक या पूँजीपति वर्ग के ख़िलाफ़ एक आवाज़ है जो समाज के दूसरे तबक़े अर्थात् शोषित या सर्वहारा वर्ग में चेतना लाने के लिए उठी। प्रगतिवादी विचारधारा शोषित वर्ग को संगठित कर समाज में चेतना लाने का काम कर रही थी। प्रगतिवाद इसी तरह धर्म की रूढ़िवादिता को दूर फेंक मानवता की अपरिमित शक्ति में विश्वास करता है। प्रगतिवादी कविता यथार्थ चित्रण पर बल देती है, कल्पना पर नहीं।”
अपनी प्रतिक्रिया देते हुए सुप्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. राशि सिन्हा ने कहा कि “प्रगतिवाद एक ऐसी विचारधारा एवं एक ऐसा स्वस्थ दृष्टिकोण है जिसने विरोध के स्वर को काव्य बिंब में पिरोकर प्रगतिशील सृजन की एक ऐसी नींव डाली जिसने समाज में न सिर्फ़ साम्यवाद का उद्घोष किया, बल्कि आगे भी सृजन की चेतना में सामाजिक यथार्थ बोध-भावों को स्थापित किया। भाषाई चेतना को छायावाद के ‘सॉफिस्टिकेटेड’ प्रयोग से निकालकर रचनात्मकता के स्तर पर एक सर्वहारा प्रकृति की ओर उन्मुख कर नई कविता और आधुनिक काव्य सृजन को प्रभावित करते हुए नई राह दिखाई।”
परिचर्चा के अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी वक्तव्यों के सारांश पर अपनी महत्त्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए कहा कि, “प्रगतिवाद का जन्म बीसवीं शताब्दी के चौथे दशक में तेज़ी से बदलती राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के प्रभाव से बदली भारतीय जनता की चित्तवृत्ति का सहज परिणाम था, जिसे मार्क्सवादी विचारधारा ने प्रेरित किया था। उन्होंने हिंदी की प्रगतिवादी कविता की प्रवृत्तियों की चर्चा करते हुए यह भी जोड़ा कि आज भले ही विश्व भर में साम्यवादी राज्य-व्यवस्था का प्रयोग असफल हो गया हो, एक आर्थिक दर्शन के रूप में मार्क्सवाद आज भी प्रासंगिक है; तथा जब तक समाज में वर्ग-भेद और वर्ग-संघर्ष विद्यमान है, तब तक प्रगतिवादी कविता भी क्रांति की प्रेरणा बन कर जीवित रहेगी।”
तत्पश्चात् काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्यपाठ करके वातावरण को ख़ुशनुमा बना दिया। श्रीमती विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष) शिल्पी भटनागर, श्री रामकिशोर उपाध्याय, डॉ राशि सिन्हा, सरिता दीक्षित, डॉ. रमा द्विवेदी, ममता जायसवाल, डॉ. संगीता शर्मा, प्रियंका पाण्डे, रमा गोस्वामी, तृप्ति मिश्रा, इंदु सिंह, डॉ. स्वाति गुप्ता, सरला प्रकाश भूतोड़िया, दीपा कृष्णदीप सभी रचनाकारों ने बहुत उत्कृष्ट रचनाओं का पाठ किया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ में बहुत सुन्दर एवं सन्देश युक्त रचनाओं का पाठ किया किया एवं सभी की रचनाओं की सराहना करते हुए सभी को शुभकामनाएँ प्रेषित कीं।
डॉ. आशा मिश्रा, रामनिवास पंथी (रायबरेली) दर्शन सिंह, सुभाष सिंह (कटनी) भावना मयूर पुरोहित, दीपक दीक्षित तथा राजेश कुमार सिंह श्रेयस (अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष इकाई, लखनऊ) ने कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति दर्ज की।
प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) द्वितीय सत्र का संचालन दीपा कृष्णदीप (महासचिव) ने किया। डॉ. सुषमा देवी आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।
प्रेषक: डॉ. रमा द्विवेदी, अध्यक्ष (युवा उत्कर्ष)
नदलेस ने की अनामिका सिंह अना के नवगीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’ पर परिचर्चा
दिल्ली। नव दलित लेखक संघ ने अनामिका सिंह ‘अना’ के नवगीत गीत संग्रह ‘न बहुरे लोक के दिन’ पर ऑनलाइन परिचर्चा गोष्ठी आयोजित की। मुख्य वक्ता के तौर पर वीरेंद्र आस्तिक, पूर्णिमा वर्मन और जगदीश पंकज के अतिरिक्त नवगीतकार अनामिका सिंह ‘अना’ उपस्थित रही। साथ ही विशेष टिप्पणी के लिए सुभाष वशिष्ठ उपस्थित रहे। गोष्ठी की अध्यक्षता बंशीधर नाहरवाल ने की एवं संचालन डॉ. अमित धर्मसिंह ने किया। अनुपा आदि, डॉ. ईश्वर राही, रेनू गौर, अजय यतीश, ज़ालिम प्रसाद, मामचंद सागर, बी एल तोंदवाल, अशोक पाल सिंह, डॉ. रामावतार सागर, डॉ. प्रिया राणा, जोगेंद्र सिंह, डॉ. घनश्याम दास, डॉ. विक्रम सिंह, बिभाष कुमार, आर. पी. सोनकर, डॉ. सुमित्रा, अमित रामपुरी, फूलसिंह कुस्तवार, चितरंजन गोप लुकाटी, भीष्म देव आर्य, जगतराम दाहरे, पुष्पा विवेक, डॉ. गीता कृष्णांगी, राधेश्याम कांसोटिया और हुमा ख़ातून आदि गणमान्य रचनाकार उपस्थित रहे। सर्वप्रथम उपस्थित सभी साहित्यकारों ने अपना-अपना संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया ताकि एक दूसरे से अनौपचारिक परिचय हो सके। अनामिका सिंह अनामिका और वक्ताओं का शाब्दिक परिचय डॉ. अमित धर्मसिंह ने प्रस्तुत किया। तत्पश्चात् अनामिका सिंह ‘अना’ के दो नवगीतों के सुमधुर गान से गोष्ठी का आग़ाज़ हुआ।
पूर्णिमा वर्मन ने कहा, “अनामिका सिंह अना के नवगीत जन-सरोकार से जुड़े गीत हैं। ये इतनी सधी हुई भाषा में रचे गए हैं कि इनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रहा जा सकता है। मानव-जीवन और प्रकृति को विषय बनाकर लिखे गए ये नवगीत किसी भी पाठक को मोह लेने का दम रखते हैं।” जगदीश पंकज ने कहा, “इन नवगीतों में अनामिका ने इतने-इतने अर्थ भर दिए हैं कि न सिर्फ़ लाइनों में बल्कि ‘बिटवीन द लाइंस’ के बीच छिपे अर्थ को भी समझना ज़रूरी हो जाता है। अनामिका ने भाषा और कथ्य दोनों स्तर से नवगीतों में अभिनव प्रयोग किए हैं। वे अपने एकमात्र नवगीत संग्रह न बहुरे लोक के दिन से ही चर्चित नवगीतकार हो गई है।” वीरेंद्र आस्तिक ने कहा, “मैं अनामिका से पूर्व में परिचित नहीं था लेकिन जब उनके नवगीत संग्रह की भूमिका लिखने को मिली तो मुझे उनकी रचनाशीलता देखकर सुखद आश्चर्य की अनुभूति हुई। अनामिका ने न सिर्फ़ कथ्य की नई ज़मीनें तलाश की हैं बल्कि भाषा का अपना ही नया मुहावरा भी गढ़ा है। इस कारण इनके बहुत से नवगीत ऐसे बन पड़े हैं जिनमे कालजयी होने की बहुत अधिक सम्भावना दिखाई पड़ती है।” सुभाष वशिष्ठ ने विशेष टिप्पणी में कहा, “अनामिका के नवगीत एक बार नहीं बार-बार पढ़े जाने की माँग करते हैं। उनसे हर बार कुछ नया अर्थ उभरकर सामने आता है। निश्चित ही वे आगे चलकर अग्रणी पंक्ति की नवगीतकार साबित होंगी।” अनामिका सिंह अना ने लेखकीय वक्तव्य में कहा, “मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मैंने इतने अच्छे नवगीत लिखे हैं जैसे कि आज के वक्ताओं ने बताए। मैंने इतनी बढ़िया गोष्ठी के होने की भी कल्पना नहीं की थी। इसके लिए मैं नदलेस की पूरी टीम ख़ासकर जगदीश पंकज और डॉ. अमित धर्मसिंह जी की विशेष रूप से आभारी हूँ।” अध्यक्षता कर रहे बंशीधर नाहरवाल ने कहा कि इतनी सुंदर पुस्तक के लिए अनामिका सिंह ‘अना’ को और इतनी बढ़िया परिचर्चा गोष्ठी के लिए नदलेस को हृदय से बधाई दी जाती है।” नवगीतकार सहित सभी वक्ताओं और श्रोताओं का अनौपचारिक धन्यवाद ज्ञापन मामचंद सागर ने किया।
डॉ. अमित धर्मसिंह
आगे पढ़ेंअश्विनी कुमार दुबे के कहानी संग्रह ‘आख़िरी ख़्वाहिश’ के लोकार्पण एवं समकालीन कथा साहित्य पर चर्चा
बेहतर आदमी तो समाज और साहित्य के माध्यम से ही बन सकता है: संतोष चौबे
क्षितिज संस्था द्वारा आयोजित अश्विनी कुमार दुबे के कहानी संग्रह आख़िरी ख़्वाहिश के लोकार्पण एवं समकालीन कथा साहित्य पर चर्चा के कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार, रविंद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल के कुलाधिपति तथा विश्व रंग के निदेशक श्री संतोष चौबे ने कहा कि, “मैं व्यक्तिगत अनुभव से कह सकता हूँ कि एक सपना हम सब की आँखों में रहता था कि समय आएगा जब यह समय सबके लिए बदल जाएगा लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि वह सुधार करते-करते पूरी परंपरा का तिरस्कार कर दिया गया। साहित्यकार के पास आदर्श तो था लेकिन चेतना धीरे-धीरे समाप्त होने लगी थी। गाँव ग़ायब होने लगे थे और बाज़ार चिंतन पर हावी हो गया था। कहानी ने अभी सिर्फ़ चित्रों को पकड़ लिया है। आप चित्र को बाहर से देख सकते हैं उसके भीतर नहीं जा सकते। कहानी सफल तभी हो पाएगी जब वह उसके भीतर के आदर्श तक पहुँच सके। जब आप बेसिक मूल्य की तरफ़ लौटेंगे तभी कहानी की वापसी होगी। ऐसे वक़्त में दुबे जी ने कहानी का लिखना निरंतर जारी रखा यह महत्त्वपूर्ण बात है। क्योंकि समाज में बेहतर आदमी समाज और साहित्य के माध्यम से ही बन सकता है।”
प्रमुख अतिथि के रूप में वरिष्ठ कहानीकार एवं वनमाली कथा पत्रिका के संपादक श्री मुकेश वर्मा ने अपने इंदौर में निवास के संस्मरणों को याद करते हुए कथा साहित्य पर बातचीत की। उन्होंने कहा कि, “समाज में जब बहुत सारा विघटन होता जा रहा है तब आदर्श के सहारे कथा की रचना बहुत आदर्श की स्थापना करती है जो वर्तमान समय में अप्रासंगिक होता जा रहा है। जो नया लेखन सामने आ रहा है वह बड़ा तीखा है और नए विषयों के साथ नई भाषा के साथ नए शिल्प के साथ सामने प्रस्तुत किया जा रहा है।”
देवास से पधारे वरिष्ठ कहानीकार प्रकाशकांत ने कहा कि इस कहानी संग्रह की विशेषताएँ यह है कि आख़िरी ख़्वाहिश कहानी के माध्यम से दो राष्ट्रों की स्थिति को लेखक ने प्रस्तुत किया है तथा जो नायक का अंतर्द्वंद्व है वह बहुत ख़ूबसूरत तरीक़े से रचा गया है। उन्होंने कहा कि पिछली सदी घटनाओं से परिपूर्ण थी और कहानी में से वह सब ग़ायब होता जा रहा है। कथा वनमाली के कथा विशेषांक का भी उन्होंने ज़िक्र किया और उन्होंने कहा कि कहानी को उन सारी चीज़ों को अपने भीतर शामिल करना चाहिए जो घटनाएँ जीवन को प्रभावित करती हैं।”
कहानीकार किसलय पंचोली ने कहा कि, “लगातार परिवर्तन और विकास का नाम ही जीवन है। कहानी में भी परिवर्तन की यह विकास यात्रा बहुत लंबी रही है। यह यायावर विधा है। कहानियों पर कहानियों के पात्रों पर भी उन्होंने विस्तार से बातचीत की।”
कार्यक्रम के प्रारंभ में माँ सरस्वती के चित्र पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन किया गया। संस्था के अध्यक्ष सतीश राठी, कोषाध्यक्ष सुरेश रायकवार, सचिव दीपक गिरकर, ब्रजेश कानूनगो एवं रश्मि स्थापक के द्वारा अतिथियों का स्वागत किया गया। अपनी रचना प्रक्रिया पर बातचीत करते हुए लेखक अश्विनी कुमार दुबे ने कहा कि, “लेखक को अपने शब्दों में अपने भाव और अपनी भाषा के साथ लिखना चाहिए जब वह किसी छद्म भाषा का प्रयोग करता है तो वह भाषा पकड़ में आ जाती है।” इस संदर्भ में उन्होंने टैगोर के जीवन का एक क़िस्सा भी प्रस्तुत किया। श्री अश्विनी कुमार दुबे के द्वारा यह पुस्तक साहित्यकार सतीश राठी को समर्पित की गई है और इस प्रसंग पर उनके द्वारा श्री सतीश राठी का स्वागत भी किया गया।
कार्यक्रम का शानदार संचालन रश्मि चौधरी के द्वारा किया गया एवं आभार संस्था के सचिव श्री दीपक गिरकर के द्वारा माना गया। कार्यक्रम में नगर के गणमान्य साहित्यकार उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंरचनाओं को परिष्कृत करने के लिए उन पर चर्चा ज़रूरी—अश्विनी कुमार दुबे
क्षितिज साहित्य संस्था द्वारा होली मिलन समारोह एवं व्यंग्य रचना पाठ संगोष्ठी का आयोजन अरोमा रेस्टोरेंट, महालक्ष्मी नगर, इंदौर में किया गया जिसमें संस्था सदस्यों द्वारा बढ़-चढ़ कर भाग लिया गया।
कार्यक्रम में पिछले दिनों सदस्यों के लिए आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। इसमें चेतना भाटी को प्रथम, ज्योति जैन को द्वितीय, रश्मि स्थापक को तृतीय और कनक हरलालका तथा चंद्रशेखर दिघे को सांत्वना पुरस्कार प्रदान किए गए।
इस अवसर पर संस्था ने अपने त्रैमासिक ई न्यूज़ लेटर ‘क्षितिज’ का लोकार्पण भी किया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रसिद्ध आशुकवि श्री प्रदीप नवीन ने अपनी हास्य कविताओं से श्रोताओं को ख़ूब गुदगुदाया वहीं कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री अश्विनी दुबे ने कहा कि, संस्था के सदस्यों को अपनी मासिक बैठक में एक दूसरे की रचनाओं में सुधार हेतु चर्चा ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि अपने आप को अभिव्यक्त करने के लिए रचना कर्म बहुत ज़रूरी है। आयोजन में रचना पाठ के दौरान क्षितिज के अध्यक्ष श्री सतीश राठी ने अपना गीत ‘दिन अनमने हो गए, मन पाहुने हो गए’ सुनाया। श्री ब्रजेश कानूनगो द्वारा होली पर तीखे व्यंग्य दोहे सुनाए तो सचिव श्री दीपक गिरकर ने अपना चुटीला व्यंग्य ‘फूफाजी और चौकीदार’ प्रस्तुत किया। श्रीमती ज्योति जैन ने ‘नेताओं की होली में रंगों की दुविधा’ सुनाई वहीं श्री आर.एस. माथुर द्वारा ‘मन में कुंजबिहारी रखना अच्छा है’ नंदकिशोर बर्वे द्वारा ‘जय जगदीश हरे’ व्यंग्य रचना का पाठ किया गया। श्रीमती रश्मि चौधरी द्वारा बुंदेलखंड की लोककथा पर शानदार प्रस्तुति देते हुए लघु नाटिका का मंचन किया गया।
इस अवसर पर सुषमा शर्मा श्रुति, चंद्रशेखर दिघे, रश्मि स्थापक, किशन शर्मा कौशल, अखिलेश शर्मा द्वारा भी अपनी उत्कृष्ट रचनाएँ पढ़ी गई। सभी रचनाकारों द्वारा पढ़ी गई उत्कृष्ट रचनाओं ने श्रोताओं को होली के रंगों से सरोबार कर दिया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में माँ सरस्वती की प्रतिमा पर माल्यार्पण एवं दीप प्रज्वलन किया गया तथा सुषमा शर्मा के द्वारा स्वरचित सरस्वती वंदना का गायन किया गया। कार्यक्रम का संचालन श्री सुरेश रायकवार द्वारा किया गया एवं आभार प्रदर्शन श्री दीपक गिरकर द्वारा किया गया।
—प्रेषक: दीपक गिरकर
आगे पढ़ेंवातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-174
टैगोर ने अपनी पहली कविता ब्रज भाषा में ही लिखी थी—अनिल शर्मा जोशी
लंदन: 31 मार्च, 2024: ‘बोलियों की मिठास और उनकी अकूत संपदा’ विषय पर दिनांक 30 मार्च, 2024 को साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था वातायन-यूके (लंदन) के तत्त्वावधान में वातायन-यूके संगोष्ठी-174 का ऑनलाइन आयोजन हुआ। इस संगोष्ठी की अध्यक्षता की, सुप्रसिद्ध साहित्यकार और हिंदी प्रचारक श्री अनिल शर्मा जोशी ने जबकि वातायन संगोष्ठी की इस लोकगीत शृंखला-15 का सुविध और सुरुचिपूर्ण संचालन किया सिंगापुर साहित्य संगम की सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव ने।
इस कार्यक्रम के प्रतिभागी वार्ताकार थे—लोकसाहित्य और नवगीत के हस्ताक्षर डॉ. जगदीश व्योम तथा आकाशवाणी की सुप्रसिद्ध पूर्व-उद्घोषिका तथा साहित्यकार सुश्री अलका सिन्हा। लोक साहित्य, लोक गीत, लोक भाषा और लोक जीवन के परिप्रेक्ष्य में यह संगोष्ठी अत्यंत दिलचस्प और ज्ञानवर्धक रही तथा ज़ूम, यूट्यूब, फ़ेसबुक एवं अन्य सोशल मीडिया के ज़रिए बड़ी संख्या में श्रोता-दर्शक इस कार्यक्रम से आद्योपांत जुड़े रहे। इस संगोष्ठी में अवधी, ब्रज, मैथिली और भोजपुरी लोकभाषाओं के साहित्य, इनके गीति-काव्य और इनसे संबद्ध लोगों के बारे में उपयोगी चर्चा हुई। डॉ. व्योम और सुश्री सिन्हा इन लोक भाषाओं पर अंतरंग बातचीत करते हुए कई बार भावुक हो गए तथा अपने निजी जीवन से जुड़ी अनेक घटनाओं का भी उल्लेख किया।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए सुश्री आराधना झा श्रीवास्तव ने मिथिला के कवि विद्यापति की एक कविता की एक पंक्ति—‘देसी बैना सब जन मिट्ठा’ उद्धृत करते हुए कहा कि यह कार्यक्रम लोक बोलियों की मिठास और उनकी अकूत संपदा पर केंद्रित है। तदुपरांत, उन्होंने संगोष्ठी के अध्यक्ष, श्री अनिल जोशी, प्रतिभागी संवादकारों, लोक गायकों और लोक गीतकारों का अभिनंदन करते हुए उनका संक्षिप्त परिचय दिया। उन्होंने कुछ लोक भाषा के अध्येताओं यथा, ग्रियर्सन, सुनिधि कुमार चटर्जी, धीरेंद्र वर्मा आदि का उल्लेख किया। अलका सिन्हा ने कहा कि इन लोक भाषाओं में हम जितना उतरते जाते हैं, उनके प्रति हमारी पिपासा उतनी ही बढ़ती जाती है। लोक शब्दावलियाँ लोक जीवन के अनेकानेक इम्प्रेशनों और स्मृतियों से हमें संबद्ध करती हैं। शहर की भागम-भाग के चलते रोबोट बनी ज़िंदग़ी में ये बोलियाँ मिठास का परिपाक करती हैं। डॉ. व्योम ने बताया कि फ़िल्मों में या शहरों में लोक गीत के नाम पर जो गीत गाए-सुने जाते हैं, उनमें लोकगीत का तत्त्व कोई पाँच से दस प्रतिशत तक ही रह जाता है। फ़िल्मों में प्रोफ़ेशनल गायकों द्वारा गाए गए लोक गीतों की एक तरह से हत्या हो गई है। जहाँ तक विभिन्न क्षेत्रों में लोक गीतों का सम्बन्ध हैं, उनमें एक प्रकार की एकरूपता होती है क्योंकि हमारी संवेदनाएँ एक जैसी ही हैं। मूल संवेदनाओं में कृत्रिमता के आने से लोकगीत की मौलिकता का क्षरण होता जा रहा है।
तदनंतर, सुश्री ऋतुप्रिया खरे ने अवधी में कुछ होरी गीत, जैसे ‘होरी खेलैं रघुबीरा अवध मा, होरी खेलैं रघुबीरा’ और ‘रंग लई के दौरे हनुमान जी, राम जी बच के भागे’ गाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। डॉ. व्योम ने कहा कि इन लोक गीतों में नारियों ने अपनी नानाविध भावनाएँ प्रकट की हैं; उदाहरण के लिए एक लोकप्रिय भोजपुरी लोक गीत ‘रेलिया बैरन पिया को लिए जाय रे’ नारी-मन की ऐसी ही भावना को व्यक्त करता है। विवाह के अवसर पर गाया जाने वाला ‘गाली’ लोक गीत मिठास से भरा होता है।
लोकगीतों की फुलझड़ियों के बीच बघेलखंड और मिथिला में गाए जाने वाले लोक गीतों की चर्चा करते हुए आराधना झा श्रीवास्तव ने सूरदास जी द्वारा ब्रज भाषा में विरचित एक भजन ‘दधि मांगत और रोटी गोपाल, माई’ को गाकर मंच को गुंजायमान् कर दिया। इसी क्रम में श्री मनोज कुमार सिन्हा ने विद्यापति की मैथिली में लिखी गई एक गंगा-स्तुति ‘बड़ सुख सार पाओल तुअ तीरे’ गाकर सुनाया। डॉ. व्योम ने बताया कि जो भी रचनाकार ने लोक भाषा का प्रयोग नहीं करता है, वह अच्छा साहित्यकार नहीं हो सकता। हम सभी को लोक शब्द-संपदा को बचाने की आवश्यकता है। श्री रत्नेश पांडे ने लोक गीतों को शाश्वत बताते हुए कहा कि इनके रचनाकार, रचनाकाल, रचना-क्षेत्र के बारे में किसी को कुछ भी पता नहीं होता है। ‘चइता’ और ‘फगुवा’ लोकगीतों की चर्चा करते हुए उन्होंने एक छठ गीत ‘गुणवा ना सोहेला’ और जन्मोत्सव पर गाया जाने वाला एक ‘सोहर’—‘जुग-जुग जिय सू ललनवा, भवनवा के भाग जागल हो’ सुनाया। उन्होंने विवाहोत्सव के दौरान द्वारचार पर गाया जाने वाला एक ‘गाली’ लोक गीत भी सुनाया।
संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे श्री अनिल जोशी जी ने अपने वक्तव्य में इस मंच के लोकगायकों को धन्यवाद देते हुए कहा कि इन्हें इस मंच पर और भी मौक़ा दिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोक भाषाओं और बोलियों का इतिहास बहुत प्राचीन है। ये बेहद लोकप्रिय भी रही हैं जिसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि बांग्ला कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी पहली कविता ब्रज भाषा में ही लिखी थी। उन्होंने ब्रज भाषा के कवि भारतेंदु जी की चर्चा करते हुए कहा कि लोक भाषाओं की लोकप्रियता का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि अवधी में तुलसीदास द्वारा विरचित रामचरित मानस विश्व-प्रसिद्ध काव्य है। अवधी को मधुर भाषा बताते हुए उन्होंने भोजपुरी को अंतरराष्ट्रीय भाषा बताया जिसे मॉरीशस में बहुतायत से बोला जाता है।
कार्यक्रम का समापन श्री अभिषेक त्रिपाठी द्वारा मंचासीन अध्यक्ष, प्रतिभागी संवादकारों और लोकगायकों को धन्यवाद-ज्ञापन से हुआ। उन्होंने कार्यक्रम को सुनने के लिए ज़ूम, यूट्यूब और फ़ेसबुक जुड़े श्रोता-दर्शकों के प्रति भी आभार प्रकट किया। ऐसे श्रोता-दर्शकों में उल्लेखनीय नाम इस प्रकार हैं: प्रो. ल्यूदमिला खोंखोलोव, प्रो. तोमिओ मिज़ोकामी, शैल अग्रवाल, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. रेनू, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, डॉ. वरुण कुमार, प्रो. तात्याना ओरंसकिया, अनूप भार्गव, शेख़ शाहज़ाद-उल्लाह उस्मानी, विजय विक्रांत, डॉ. मधु वर्मा, सुनीता पाहुजा, सुषमा मल्होत्रा, सिंगरवार पांडुरंग, अमिता शाह, गीतू गर्ग, दीपा, पूजा यादव आदि।
संगोष्ठी में विशेष तकनीकी सहयोग देने के लिए कृष्ण कुमार जी के प्रति भी वातायन परिवार की ओर से आभार प्रकट किया गया।
(प्रेस विज्ञप्ति-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंपुनीता जैन को ‘श्री प्रभाकर श्रोत्रिय स्मृति आलोचना सम्मान’
16 मार्च 2024 को मध्यप्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति, हिन्दी भवन, भोपाल द्वारा आलोचना कर्म के लिए अखिल भारतीय स्तर पर प्रदान किया जाने वाला प्रतिष्ठित ‘श्री प्रभाकर श्रोत्रिय स्मृति आलोचना सम्मान-2023’ पुनीता जैन को उनकी कृति ‘आदिवासी कविता-चिंतन और सृजन’ के लिए दिया गया।
सम्मान स्वरूप उन्हें प्रतीक चिह्न, शाल, श्रीफल तथा इक्कीस हज़ार रुपये की राशि प्रदान की गयी। उन्हें समिति के अध्यक्ष श्री सुखदेव प्रसाद दुबे, उपाध्यक्ष श्री रघुनंदन शर्मा, रवींद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे तथा सुश्री रंजना अरगड़े की उपस्थिति में यह सम्मान प्रदान किया गया।
आगे पढ़ेंब्रज के लोकगीत और रसिया गायन
इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली के फ़ाउंटेन लॉन में 9 मार्च, 2024 को ब्रज के लोकगीत और रसिया गायन सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन हुआ। इस कार्यक्रम में भरतपुर के ब्रज क्षेत्र के कलाकार श्री जितेंद्र पराशर एवं ग्रुप द्वारा मन मोहक प्रस्तुति दी गई।
बसंत पंचमी से ब्रज क्षेत्र में होली के त्योहार की शुरूआत हो जाती है और इसके आयोजन में सांगीतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति एक महत्त्वपूर्ण आकर्षण है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की एक स्वायत्तशासी संस्था उत्तर-मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, प्रयागराज के सहयोग से आयोजित इस कार्यक्रम में 15 लोक कलाकारों ने ब्रज के पारंपरिक लोक-संगीत और नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसमें फूलों की होली, मयूर-रास और चरकुला नृत्य आदि प्रमुख प्रस्तुतियाँ थीं।
कार्यक्रम के आरंभ में श्री जितेंद्र पाराशर ने गणपति वंदना ‘महाराज गजानन आओ जी’ प्रस्तुत किया। इसके पश्चात एक प्रसिद्ध कृष्ण भजन ‘करते हो तुम कन्हैया मेरा काम हो रहा है’ की प्रस्तुति के बाद एक छोटे विराम के पश्चात शुरू हुआ गायन-सह-नृत्य का मन भावन कार्यक्रम। भगवान श्री कृष्ण के जन्म और उनके बाल-लीला के रूप में नृत्य की प्रथम प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों का मन मोह लिया। तत्पश्चात् मयूर रास की प्रस्तुति हुई। इस विशेष नृत्य आयोजन के परिचय स्वरूप कलाकार ने काव्यात्मक अंदाज़ में बताया कि ‘बरसाने’ में एक मोर कुटी थी। राधा रानी उस मोर कुटी में नित्य प्रति दर्शन के लिए जाती थीं। एक बार की बात है, श्रावण मास में भीनी-भीनी बूँद पड़ रही थी, घुँघराली-काली घटा छाई हुई थी। लेकिन राधा रानी तो अपने संकल्प की पक्की थीं। चाहे बिजली कड़के, चाहे अम्बर बरसे लेकिन उन्हें मयूर के दर्शन करने थे, सो करने ही थे। संयोगवश उस दिन बहुत इंतज़ार के बाद भी जब उन्हें मोर का दर्शन नहीं हुआ तब उन्होंने अपने साँवरे घनश्याम को पुकार लगाई—
“आया सावन झूम के, अजि मोरा करें पुकार
तू ना आयो साँवरे, मैं तुम्हें ढूँढ़-ढूँढ़ गई हार
जब से राधा के हृदय में, आन बसे घनश्याम
श्याम बन गए राधिका, राधा बन गई श्याम”
इस गीत के ऊपर राधा-कृष्ण और गोपी-गोपिकाओं के रूप में नृत्य-मंडली की मनोहारी प्रस्तुति ने उपस्थित दर्शकों के श्रद्धा-विनत मन-मयूर को झूमने-नाचने पर मजबूर कर दिया।
इसके बाद चरकुला नृत्य की अद्भुत एवं विस्मयकारी प्रस्तुति हुई। ब्रज क्षेत्र की इस प्रचलित नृत्य विधा में नर्तक अपने सिर पर बहु-स्तरीय वृत्ताकार पिरामिडों को रखकर कृष्ण भक्ति गीतों पर नृत्य करते हैं। इस नृत्यांजलि में ग्रुप की दो नृत्यांगनाओं ने अपने सिर पर 108-108 जलते दियों के साथ ख़ूबसूरत नृत्य प्रस्तुत किया।
कार्यक्रम का समापन फूलों की होली के साथ हुआ जिसमें उपस्थित दर्शकों ने भी आनंद निमग्न होकर खुले मन से सहभाग किया और राधा-कृष्ण तथा गोपियों के ऊपर फूलों की वर्षा की। इस नृत्य प्रस्तुति के दौरान एक पल के लिए ऐसा लगा कि श्वास जैसे ठहर गई हो और कोई सुगंधित वायु हमारे हमारे मन-मकरंद को सुवासित कर गई हो। ऐसी प्रतीति हुई कि कि आस-पास एक नए काव्य का जन्म हो रहा है। सभी दर्शकों का संगीत में सहभागी बनना जैसे परमात्मा की गहन संप्रतीति करा गया।
रिपोर्ट: राघवेन्द्र पाण्डेय
आगे पढ़ेंनाट्यकथा: कथा सिया राम की का भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण
दिनांक 06-03-2024 को राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय, नई दिल्ली में मुक्ताकाशीय मंच पर रामायणगाथा कार्यक्रम के अंतर्गत पद्मविभूषण डॉ. सोनल मानसिंह और उनके शिष्यों द्वारा नाट्यकथा : कथा सिया राम की का भावपूर्ण प्रस्तुतीकरण किया गया। इसी वर्ष अप्रैल माह में अपने जीवन के संगीतमय अस्सी वसंत पूर्ण करने जा रहीं भरतनाट्यम और ओडिसी नृत्य विधा की अतीव गुणी एवं सिद्धहस्त कलाकार डॉ. सोनल मानसिंह ने अपनी टीम के साथ रामचरितमानस की चौपाइयों के लयबद्ध गायन आधारित नृत्य के माध्यम से भगवान श्रीराम के जीवन के विभिन्न पक्षों को बड़े ही प्रभावपूर्ण अंदाज़ में प्रस्तुत किया। नाट्यकथा का आरंभ राजा दशरथ द्वारा संतान प्राप्ति हेतु पुत्रेष्टि यज्ञ करने के साथ हुआ और फिर चारों भाइयों के जन्म के समय बधाई गीत, उनके बाल्यकाल का मनोहारी चित्रण, ऋषि विश्वामित्र का राजमहल में आगमन और अपने आश्रम में विश्वकल्याण हेतु यज्ञादि आयोजनों के निर्विघ्न-निष्कंटक पूर्णाहुति के लिए दुष्ट राक्षसों के समूल नाश के निमित्त राजा दशरथ से राम एवं लक्ष्मण को साथ भेजने का अनुरोध, दोनों भाइयों द्वारा वन में आततायी राक्षसों का अंत करना और राजा जनक के निमंत्रण पर ऋषि विश्वामित्र का राम-लक्ष्मण सहित सीता-स्वयंवर में शामिल होना तथा देश-देश से सभा में पधारे समस्त भूपतियों के शिव धनुष को टस से मस नहीं कर पाने के बाद राम के द्वारा प्रत्यंचा चढ़ाने के प्रयास में धनुष भंग के उपरांत राम-सीता के विवाह के साथ यह नृत्य नाटिका संपन्न हुई। नृत्यकला की साधना में व्यतीत डॉ. सोनल मानसिंह का जीवन और उससे उपजा अनुभव पूरे कार्यक्रम के दौरान उनकी भाव-भंगिमाओं से प्रतिपल मुखरित होता रहा जिसने उपस्थित नृत्यानुरागी दर्शकों में सूक्ष्म स्पंदन का संचार करने के साथ ही उन्हें आनंदातिरेक से भर दिया।
कार्यक्रम के समापन सत्र में राष्ट्रीय आधुनिक कला संग्रहालय के महानिदेशक डॉ. संजीव किशोर गौतम ने इस सुंदर एवं मर्मस्पर्शी प्रस्तुति हेतु डॉ. सोनल मानसिंह और उनकी पूरी टीम का आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि बहुत दिनों से उनके विचार में दृश्य-कला और संगीत-मंच कला को एक साथ जोड़ने की इच्छा बलवती हो रही थी। निश्चय ही यह कार्यकम उसी रचनाशील विचार प्रक्रिया की उपज है। वर्तमान में तेज़ी से क्षरित होते जीवन-मूल्यों को सहेजने की ज़िम्मेदारी साहित्य, संगीत और कला के ऊपर एक साथ आन पड़ी है। अतः, इस पुनीत उद्देश्य के लिए सभी प्रकार की कलाओं द्वारा एकजुट प्रयास अपेक्षित है। निश्चय ही जब हम भारतीय समाज में सभ्यता एवं संस्कृति को संपुष्ट करने का हेतु रचते हैं तो इस संदर्भ में मर्यादा पुरुषोत्तम से उत्तम व्यक्तित्व और कौन हो सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने आदरणीया डॉ. सोनल मानसिंह जी के पास इस नृत्य-नाटिका की प्रस्तुति हेतु निवेदन भेजा और उनके उदार हृदय ने हमारे अनुरोध को स्वीकार किया, इसके लिए समस्त एनजीएमए परिवार की ओर से हम आपका हृदयतल से आभार व्यक्त करते हैं।
प्रेषक: राघवेन्द्र पाण्डेय
आगे पढ़ेंप्रो. रेखा शिक्षण जगत की एक शख़्सियत हैं–अनिल शर्मा जोशी
(‘वातायन-यूके’ की 168वीं संगोष्ठी का आयोजन)
लन्दन, दिनांक 02-03-2024: ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में दिनांक 02-03-2024 को इस वैश्विक मंच की 168वीं संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस संगोष्ठी के अंतर्गत, दिल्ली विश्वविद्यालय के इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय की पूर्व-कार्यकारी प्राचार्य और हिंदी साहित्य की यशस्वी साधक प्रो. रेखा सेठी के व्यक्तित्त्व और कृतित्त्व पर विशद चर्चा हुई।
लंदन की कवयित्री सुश्री आस्था देव ने मंच संचालन करते हुए प्रो. रेखा के सम्बन्ध में कहा कि उनकी साहित्य-साधना अनुकरणीय और प्रशंसनीय है। उनके साहित्यिक अवदान को साधारण शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता। मिर्ज़ा ग़ालिब के दिल्ली-स्थित मोहल्ले–बल्लीमारां के बिल्कुल क़रीब रहने वाली प्रो. रेखा ने आस्था देव की जिज्ञासा को शांत करते हुए बताया कि उनकी हिंदी में दिलचस्पी वर्ष 1982 में पैदा हुई जबकि वे एक क्रिश्चियन स्कूल की छात्रा थीं। उसके पश्चात, वे कॉलेज में प्रख्यात साहित्यकार इंदु जैन जी के सान्निध्य में आईं; तदुपरांत, उनमें हिंदी भाषा और साहित्य की समझ पैदा हुई। उन्होंने जर्मनी, अमरीका जैसे देशों में अपने अनुभवों को साझा करते हुए श्रोताओं का समुचित ज्ञान-वर्धन किया।
वैश्विक स्तर पर हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण योगदान करने वाले वरिष्ठ साहित्यकार, श्री अनिल शर्मा जोशी की अध्यक्षता में इस ‘हिंदी सेवी शृंखला-2’ की संगोष्ठी में आस्था देव ने ही प्रो. रेखा से उनके सृजन-कर्म, निजी जीवन और साहित्यिक गतिविधियों के सम्बन्ध में अनेक प्रश्न पूछे। उन्होंने कहा कि प्रो. रेखा का हस्तक्षेप मौलिक लेखन, संपादन, आलोचना, मीडिया-अध्ययन जैसे क्षेत्रों में है। इस पर, प्रो. रेखा ने बताया कि वे नई और चुनौतीपूर्ण चीज़ों को करने की कोशिश करती हैं। विज्ञापन पर लिखी गई उनकी हिंदी पुस्तक में उनकी कोशिश रही है कि इसमें कॉनसेप्ट और प्रोडक्शन के सम्बन्ध में चर्चा की जाए क्योंकि इसका सरोकार इंडस्ट्री से होता है और छात्र को इसी इंडस्ट्री में कार्य करना होता है। गत वर्ष वे लंदन में आयोजित भारोपीय हिंदी महोत्सव में प्रतिभागिता करने के बाद अमरीका की ड्यूक यूनिवर्सिटी गई थीं जहाँ उन्होंने हिंदी के विदेशी छात्रों से भी विभिन्न विषयों पर संवाद किया। उन्होंने बताया कि ड्यूक तथा विंस्टन विश्वविद्यालयों में हिंदी से सम्बन्धित भारतीय लेखकों पर एडवांस पाठ्यक्रम को अंग्रेज़ी में पढ़ाया जाता है। जब आस्था देव ने प्रो. रेखा के वर्तमान रचना-कर्म के बारे में जानना चाहा तो उन्होंने बताया कि स्वयं द्वारा संपादित एक पुस्तक में वे हिंदी कवयित्रियों की कविताओं का अंग्रेज़ी अनुवाद कर रही हैं। इसके अतिरिक्त वे भारत की ही अंग्रेज़ी कवयित्रियों की अंग्रेज़ी कविताओं के हिंदी रूपांतर का भी एक संकलन तैयार कर रही हैं। उनकी तीसरी संपादित पुस्तक प्रेस में है जिसका विषय स्त्री-चिंतन और विमर्श है; यह पुस्तक इसी विषय पर विभिन्न लेखकों के निबंधों का संकलन है। उन्होंने कहा कि उन्हें अनुवाद-कार्य में बहुत आनंद आता है। तदनंतर, मंच पर उपस्थित अंतरीपा ठाकुर-मुखर्जी ने प्रो. रेखा द्वारा अनूदित और विरचित कविताओं का पाठ भी किया। सुश्री अश्विनी किन्हकर ने भी प्रो. रेखा के लिखे हुए के कुछ अंश का वाचन किया।
प्रो. रेखा ने स्त्रियों के विषय में बात करते हुए कहा कि संविधान-निर्माण में सरोजिनी नायडु, हंसा मेहता जैसी स्त्रियाँ भी थीं जिन्होंने स्त्रियों के आरक्षण के प्रस्ताव को अस्वीकार करते हुए कहा था कि उन्हें बस, सम्मानपूर्वक देखा जाना चाहिए; उन्हें स्त्री आरक्षण की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। उन्होंने मंच पर उपस्थित सुश्री शैल अग्रवाल द्वारा उठाए गए बिंदु के प्रत्युत्तर में स्वातंत्र्योत्तर भारत में स्त्रियों के संघर्ष और देश के आधे संसाधनों पर स्त्रियों के अधिकार के सम्बन्ध में भी प्रतिक्रिया की। बताया कि स्त्रियाँ बहुत बाद में आरक्षण की आग्रही बनी है। तदनंतर, डॉ. शैलजा सक्सेना ने कहा कि प्रो. रेखा के साथ उनका सम्बन्ध बहुत आत्मीय रहा है क्योंकि यूनिवर्सिटी के समय से ही वे उनसे परिचित रही हैं। उन्होंने कहा कि प्रो. रेखा जिस आत्मीय शैली से आलोचना के गहरे समुद्र में उतरती हैं, वह बहुत नयापन लिए हुए होता है। श्री निखिल कौशिक ने भी प्रो. रेखा के सम्बन्ध में अपने उद्गार व्यक्त किए।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में अनिल शर्मा जोशी ने कहा कि प्रो. रेखा शिक्षण जगत की एक शख़्सियत हैं जिन्हें देश-दुनिया में घटित नवीनतम घटनाओं के सम्बन्ध में जानकारियाँ हैं। उन्होंने तीन प्रख्यात लेखकों नामत: मुंशी प्रेमचंद, हरिशंकर परसाई और बाल मुकुंद गुप्त पर केंद्रित एक पुस्तक लिखी है और उन्हें ऐसे निबंध पढ़ना अच्छा लगता है। श्री जोशी ने प्रो. रेखा के अनुवाद-कार्य की भी चर्चा की। इस संगोष्ठी की सूत्रधार तथा ‘वातायन-यूके’ की संस्थापक दिव्या माथुर ने कहा कि प्रो. रेखा के साहित्यिक योगदान के सम्बन्ध में एक और संगोष्ठी आयोजित की जानी चाहिए।
कार्यक्रम का समापन करते हुए सुश्री अंतरीपा ठाकुर-मुखर्जी ने प्रो. रेखा को अपनी साहित्यिक यात्रा के सम्बन्ध में इतनी सघनता से परिचय देने के लिए तहे-दिल से धन्यवाद दिया। उन्होंने श्री अनिल शर्मा जोशी को उनके विशिष्ट अध्यक्षीय वक्तव्य के लिए आभार प्रकट किया। उन्होंने संगोष्ठी के प्रतिभागियों समेत, ज़ूम और यूट्यूब के माध्यम से आद्योपांत जुड़े हुए सभी श्रोता-दर्शकों को भी धन्यवाद ज्ञापित किया। चलते-चलते इस संगोष्ठी में तकनीकी सहयोग देने वाली सुश्री शिवि श्रीवास्तव की महत्त्वपूर्ण भूमिका की भी सराहना की।
— डॉ. मनोज मोक्षेंद्र
आगे पढ़ेंसंस्कृत बाल कथा पर अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी
“भाषा विकास तथा एनईपी-2020 के लिए आवश्यक”–कुलपति प्रो. वरखेड़ी
लखनऊ। केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के सीएसयू लखनऊ परिसर में 13-14 फरवरी, 2024 तक आयोजित दो दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन कुलपति श्रीनिवास वरखेड़ी जी के संरक्षण में किया गया।
कुलपति प्रो. वरखेड़ी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि इस तरह के कथा साहित्य को लेकर संगोष्ठी के आयोजन से अनेक भाषाओं के कथा साहित्यों के तुलनात्मक अध्ययन का अवसर उन्मीलित होगा जो राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 तथा विशेषकर भारतीय साहित्य के अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही महत्त्वपूर्ण हो सकता है।
लखनऊ परिसर के निदेशक प्रो. सर्वनारायण झा ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि भारतीय कथा साहित्य अपने काल खण्डों के साथ अपनी मौलिकता को सुरक्षित रखते हुए नवाचारी प्रयोग के साथ अविच्छिन्न गति से बढ़ता रहा है।
डीन अकादमी प्रो. बनमाली बिश्बाल ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि भारतीय कथा साहित्य का उत्स वैदिक वाङ्मय ही रहा है जिसके बीज से संस्कृत कथा साहित्य का विकास हुआ और अनेक काल खण्डों में परिवर्तित हो कर अपनी विविधाओं की भी श्रीवृद्धि की है। इसी संदर्भ में उन्होंने पुट कथा के साथ ललित निबन्धों तथा पत्र काव्यों का भी ज़िक्र किया।
केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, दिल्ली के ही भोपाल प्रो. रमाकान्त पाण्डेय ने संस्कृत कथा तो क्लासिकल है ही। लेकिन लोक भाषा के रूप में भी जाने अनजाने सर्वत्र व्याप्त है। यह भी एक प्रकार भाषिक दृष्टि से संस्कृत कथा की सर्वगामिता का लक्षण माना जाना चाहिए।
संस्कृत साहित्य विद्या शाखा प्रमुख तथा उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के विदुषी प्रो. गज़ाला अंसारी ने अतिथियों का स्वागत करते कहा कि संस्कृत भाषा की सर्वगामिता इस मायने में भी ग़ौरतलब है कि संस्कृत कथाओं में जिन मूल्यों की चर्चा की गयी है उसी से मिलते-जुलते अनेक प्रसंगों को हदीस में भी पढ़ा जा सकता है। इतना ही नहीं क़ुरान के कथानकों को भी संस्कृत के अदब में तर्जुमा किया गया है जिसका शाया पेंगुइन प्रकाशन से किया गया है। अतः सारी भाषाओं का चिन्तन अमूमन एक ही समन्वित केन्द्र पर सहभागी हो कर मिलता जुलता देखा जा सकता है।
इस अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी के संयोजक तथा संस्कृत पाली के युवा नदीष्ण विद्वान डॉ. प्रफुल्ल गडपाल ने संगोष्ठी के विषय प्रवर्तन में स्पष्ट किया कि कैसे संस्कृत भाषा की कथाएँ विशेष कर पंचतंत्र ने कथा साहित्य के रूप
में अरब के देशों में अपनी भूमिका का सिक्का जमाते बाल साहित्य के लिए रोल मोडल के रूप में काम किया।
इस सत्र का संचालन तथा डॉ. शिवानन्द मिश्र ने किया तथा व्याकरण शास्त्र के नदीष्ण विद्वान प्रो. भारत भूषण त्रिपाठी ने विशिष्ट अतिथियों तथा सहभागियों का हार्दिक धन्यवाद किया।
दोनों दिवसों में अनेक महत्त्वपूर्ण शोध पत्रों को प्रस्तुत किये गये जिसमें अनेक सार्थक प्रश्न भी उभर कर प्रकाश में आये जिससे तस्दीक़ होता है कि यह अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी बहुत ही गुणात्मक परिणाम वाली निकली। इसकी पुष्टि विभिन्न सूत्रों के अध्यक्षों की पढ़े गये पत्रों पर टिप्पणियों से भी हुई। एक सत्र अध्यक्ष के रूप में डॉ. अजय कुमार मिश्रा, एसोसिएट प्रोफ़ेसर तथा मीडिया कौन्वेनर और पीआरओ ने कहा कि संस्कृत कथा साहित्य अपने आप को प्राचीनतम से आधुनिक कड़ियों से जीवन्त तथा अविछिन्न रूप में जुड़ कर प्रवाहित होती रही है। उसकी पुष्टि इस संगोष्ठी में पत्र वाचकों के विविध गवेषणात्मक विषयों तथा नाना काल खण्डों से जुड़े विमर्श से भी स्पष्ट होता है। लेकिन यह भी सत्य है कि मूल बिम्बों में समकालीन छटा तथा रोचकता को बनाने के लिए कथाकारों को थोड़ा सजग भी होना होगा। साथ ही साथ वैश्विक परिदृश्य पर भी विमर्श होना चाहिए कि आख़िर क्या कारण है हैरी पॉटर के अनेक खण्ड हाथों-हाथ तथा रातों-रात बिक जाते हैं।
संस्कृत के युवा कवि, लेखक एवं आलोचक डॉ. अरुण कुमार निषाद ने कहा कि केवल लेखन मात्र से ही संस्कृत का भला होने वाला नहीं है आवश्यकता है इसे प्रकाश में लाने की और इस पर शोध कार्य करने की। लखनऊ विश्वविद्यालय की शोधछात्रा शिखारानी ने कहा कि प्राचीन ग्रन्थों के साथ-ही-साथ आधुनिक ग्रन्थों पर भी शोधकार्य होने चाहिए।
इस सम्मेलन के समापन सत्र के मुख्य अतिथि संस्कृत के प्रख्यात विद्वान कवि तथा उपन्यासकार प्रो. रामसुमेर यादव, पूर्व विभागाध्यक्ष, संस्कृत प्राकृत विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय लखनऊ ने अपने मुख्य अतिथि के रूप के सम्बोधन में संगोष्ठी के विषय की सार्थकता की भूरि-भूरि प्रसंशा करते शोध वाचकों बधाई दी इस सत्र की अध्यक्षता निदेशक तथा पूर्व कुलपति प्रो. सर्वनारायण झा ने की तथा ज्योतिषशास्त्र के मर्मज्ञ विद्वान प्रो. मदन मोहन पाठक ने स्वागत भाषण में संगोष्ठी के महत्त्व के विषय में बताया। डॉ. प्रफुल्ल गडपाल ने संगोष्ठियों में पढ़े गये शोध पत्रों की सार्थकता पर प्रकाश डालते अपना प्रतिवेदन को प्रस्तुत किया। प्रो. सर्वनारायण झा के सानिध्य में शोध पत्र प्रमाण पत्र का भी सोल्लास वितरण किया गया।
डॉ. शिवानन्द मिश्र ने मंच का संचालन किया तथा पाली भाषा तथा बौद्ध दर्शन के विद्वान प्रो. गुरुचरण सिंह नेगी ने संगोष्ठी की सफलता के लिए भावपूर्ण धन्यवाद ज्ञापन किया।
— प्रेषक: डॉ. अरुण निषाद
आगे पढ़ेंब्रिलिएंट में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत-2024
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका अभिनव बालमन में विविध प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य श्याम कुंतल ने कहा कि जब हम कविता, कहानी आदि लिखते हैं तो हमारे अंदर आत्मविश्वास आता है। ये तो बहुत अच्छा है कि रचनाएँ प्रकाशित भी हों और पुरस्कार भी मिलें। सभी बाल रचनाकारों को बधाई।
आगे पढ़ेंसमकालीन कुण्डलिया शतक का लोकार्पण
नई दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित विश्व पुस्तक मेले में त्रिलोक सिंह ठकुरेला द्वारा सम्पादित कुण्डलिया संग्रह ‘समकालीन कुण्डलिया शतक’ का लोकार्पण किया गया।
श्वेतवर्णा प्रकाशन की ओर से दिनांक 18.02.2024 को विश्व पुस्तक मेला के हॉल नम्बर 2 में आयोजित इस कार्यक्रम में लोकार्पण के समय सुपरिचित दोहाकार राजपाल सिंह गुलिया, श्वेतवर्णा प्रकाशन की संस्थापक शारदा सुमन, कविता कोश के उप निदेशक राहुल शिवाय, साहित्यकार राजेंद्र वर्मा, गज़लकार के. पी. अनमोल तथा समकालीन कुण्डलिया शतक के सम्पादक त्रिलोक सिंह ठकुरेला सहित अनेक बुद्धिजीवी और पाठक उपस्थित थे। समकालीन कुण्डलिया शतक में सौ कुण्डलियाकारों की रचनाओं का संकलन किया गया है। कुण्डलिया गेय छांदस विधाओं में छह चरणों का एक लोकप्रिय छंद है ।
उल्लेखनीय है कि त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने कुण्डलिया छंद की पुनर्स्थापना के लिए अभूतपूर्व कार्य किया है। उन्होंने कुण्डलिया छंद के अनेक संकलनों का सम्पादन किया है। त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलिया अनेक पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं।
आगे पढ़ेंबैरोनेस श्रीला फ़्लैदर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित
लंदन, 19 फरवरी 2024: साहित्यिक और सांस्कृतिक मंच ‘वातायन-यूके’ द्वारा दिनांक: 17-02-2024 को आयोजित 166 वीं संगोष्ठी में बैरोनेस (श्रीला) फ़्लैदर की दिवंगत आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई। वास्तव में, श्रीला फ़्लैदर अंतरराष्ट्रीय ख्याति की एक महत्त्वपूर्ण महिला थीं। वे वर्ष 2004 में स्थापित ‘वातायन-यूके’ की आरंभ से ही संरक्षक थीं। उल्लेख्य है कि उनकी महान उपलब्धियों पर विशद चर्चा करने के लिए ‘वातायन-यूके’ द्वारा उनके 90वें जन्मदिन के अवसर पर एक विशेष कार्यक्रम के आयोजन की रूपरेखा तैयार की जा रही थी; किंतु प्रारब्ध को यह मंज़ूर नहीं था और वे इसी 6 फरवरी को गोलोकवास कर गईं।
बैरोनेस एक ब्रिटिश-भारतीय राजनीतिज्ञ और शिक्षिका थीं, जिन्हें 2009 में प्रवासी भारतीय सम्मान भी मिला था। उन्होंने उन एशियाई लोगों के लिए ‘मेमोरियल गेट्स’ के निर्माण में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था, जिन्होंने दो ऐतिहासिक विश्व युद्धों में अंग्रेज़ों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ी थी। इसके अलावा, वे ब्रिटिश संसद में अल्पसंख्यक समुदाय की ऐसी पहली सदस्य थीं, जिन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए कड़ी मेहनत की थीं। वे अत्यंत सादा जीवन व्यतीत करती थीं और हमेशा भारतीय संस्कृति की प्रतीक ‘साड़ी’ पहना करती थीं।
डॉ. पद्मेश गुप्त और दिव्या माथुर ने वातायन की ओर से बैरोनेस फ़्लैदर के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि वे विपरीत परिस्थितियों में उनसे सदैव प्रेरणा लेते रहे हैं। उनके अतुलनीय सहयोग को वे सदैव याद रखेंगे; ऐसे अवसर भी आए जबकि उन्होंने अपनी अनुपस्थिति में उन्हें हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स में वातायन के कार्यक्रमों को जारी रखने की व्यवस्था करके उन्हें अनुगृहीत किया। पिछले कुछ वर्षों के दौरान, जबकि वे हमारे कार्यक्रमों में शामिल नहीं हो सकीं, तो भी वे फोन के माध्यम से संपर्क में बनी रहती थीं; वे नेहरू सेंटर में रुकती थीं और उन्हें दोपहर के भोजन के लिए बाहर ले जाती थीं तथा हाउस ऑफ लॉर्ड्स की कैंटीन में उन सबका आवभगत किया करती थीं।
रेडियो और टेलीविजन पर कार्यक्रम-प्रस्तोता एवं पत्रकार और लेखिका, अनीता आनंद ने कहा कि वे श्रीला फ़्लैदर को साड़ी के पोशाक में देखकर बहुत प्रभावित होती थीं। वे उनके बहुआयामी व्यक्तित्व का आजीवन कायल रही हैं तथा भविष्य में वे महिला सशक्तिकरण से संबद्ध उनके समर्पित कार्यों से सदैव प्रेरणा लेती रहेंगी।
डॉ. पॉल फ़्लैदर ने अपने बचपन की स्मृतियों को तरोताज़ा करते हुए बताया कि वे उनके साथ जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों और सुख-दु:ख के पलों को सदैव अपनी स्मृतियों में संजोकर रखेंगे। उन्होंने कहा कि श्रीला फ़्लैदर के प्रभावशाली व्यक्तित्व ने सभी वर्ग के लोगों को आश्चर्यजनक रूप से प्रभावित किया है। ब्रिटेन में भारतीय राजदूत के रूप में लेडी श्रीला एक समर्पित वकील और एक कुशल राजनीतिज्ञ भी थीं। उनका व्यक्तित्व आत्मविश्वास से संपृक्त था। उनके पास सशक्त रूप से विचारवान मस्तिष्क था जबकि वे मनोविनोद में भी गहरी दिलचस्पी रखती थीं। इसके अलावा, वे स्वभाव से साहसी थीं और लोगों के साथ अत्यंत मित्रवत रहती थीं।
लॉर्ड मेघनाद देसाई ने बैरोनेस फ़्लैदर के प्रभावशाली व्यक्तित्व को याद करते हुए और उनके प्रति अपनी श्रद्धांजलि व्यक्त करते हुए कहा कि वे असाधारण रूप से एक साहसिक महिला थीं; किंतु यह अत्यंत विषादजनक है कि उनकी उपलब्धियों को अपेक्षित महत्व नहीं दिया गया।
बैरोनेस (उषा) पाराशर उनकी स्मृतियों को ध्यान में लाते हुए अत्यंत भावुक हो उठीं; उन्होंने कहा कि श्रीला एक अदम्य व्यक्तित्व की धनी महिला थीं। उन्होंने अन्य वक्ताओं के स्वर में स्वर मिलाते हुए कहा कि कि श्रीला फ़्लैदर, हाउस ऑफ लॉर्ड्स में भारतीय पार्षद बनने वाली प्रथम महिला थीं। उन्होंने उनके अद्भुत व्यक्तित्व की सराहना करते हुए कहा कि उनकी महान शख़्सियत हम सभी के लिए सतत प्रेरणा की स्रोत बनी रहेंगी।
लॉर्ड (भीखू) पारीख एवं नेहरू सेंटर-लंदन की पूर्व-निदेशक मोनिका कपिल मोहता सहित दुनियाभर के अनेक विद्वानों और बुद्धिजीवियों ने श्रीला फ़्लैदर की दिवंगत आत्मा के प्रति गहरी संवेदनाएँ व्यक्त कीं। उल्लेखनीय है कि श्रीला फ़्लैदर ‘वातायन-यूके’ के ट्रैक रिकॉर्ड से प्रभावित होकर, सहर्ष इसकी संरक्षक बन गई थीं जो इस संस्था के लिए गौरव की बात थी। ‘वातायन-यूके’ की चेयरपर्सन मीरा मिश्रा-कौशिक समेत इसके कई सदस्यों नामत: डॉ. जयशंकर यादव, अरुणा सभरवाल, अनूप भार्गव, मंजू शाह, आशीष रंजन और, नामत: शिखा वार्ष्णेय, अंतरीपा ठाकुर-मुखर्जी, आस्था देव, मधु चौरसिया, मंजू शाह आदि ने भी श्रीला फैदर के प्रति अपनी गहरी संवेदनाएँ और श्रद्धांजलियाँ व्यक्त कीं। कार्यक्रम का समापन करते हुए, डॉ. पद्मेश गुप्त ने प्रतिभागी वक्ताओं के साथ-साथ दर्शकों को महान व्यक्तित्व बैरोनेस श्रीला फ़्लैदर के बारे में अपने-अपने अमूल्य विचार साझा करने के लिए धन्यवाद दिया।
(प्रेस रिपोर्ट: डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंडॉ. रमा द्विवेदी कृत ’मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ पुस्तक परिचर्चा संपन्न-युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच, हैदराबाद
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की वर्चुअल चौदहवीं संगोष्ठी 28 जनवरी-2024 (रविवार) 3। 30 बजे से आयोजित की गई।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि डॉ. रमा द्विवेदी कृत ’मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह की परिचर्चा प्रख्यात चिंतक प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई। बतौर विशिष्ट अतिथि प्रखर व्यंग्यकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी, प्रख्यात युवा साहित्यकार डॉ. राशि सिन्हा जी मंचासीन हुए। सुप्रसिद्ध वरिष्ठ साहित्यकार श्री अवधेश कुमार सिन्हा जी, सुविख्यात युवा साहित्यकार प्रवीण प्रणव जी एवं प्रख्यात समीक्षक डॉ. जयप्रकाश तिवारी जी बतौर विशेष आमंत्रित अतिथि उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ दीपा कृष्णदीप द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात् अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय दिया एवं शब्द पुष्पों से अतिथियों का स्वागत किया। संस्था का परिचय देते हुए कहा कि यह एक वैश्विक संस्था है जो हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के साथ अन्य सभी भाषाओं के संवर्धन हेतु कार्य करती है। वरिष्ठ साहित्यकारों के विशिष्ठ साहित्यिक योगदान हेतु उन्हें हर वर्ष पुरस्कृत करती है। युवा प्रतिभाओं को मंच प्रदान करना, प्रोत्साहित करना एवं उन्हें सम्मानित करना भी संस्था का एक विशेष उद्देश्य है।
’मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह की परिचर्चा में प्रकाश डालते हुए मुख्य वक्ता डॉ. राशि सिन्हा ने कहा कि ’मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह में शीर्षक लघुकथा के माध्यम से आधुनिक संदर्भ में, स्त्री-चेतना के तहत मिथकीय चरित्र द्रौपदी के माध्यम से, ऐतिहासिकता और पौराणिकता को समेटते हुए, देह मुक्ति से आत्म मुक्ति तक का मार्ग तय करने में लेखिका रमा द्विवेदी जी ने द्रौपदी में अंतर्निहित सभी मानवीय तत्वों के योग में से जिस एक बिंदु को केंद्रीकृत कर, सांकेतिक रूप में अभिव्यंजित किया है, वह सच में लघुकथा के मूल स्वर को तीव्रता प्रदान करती है। साथ ही, आधुनिक युग में व्याप्त विडंबनाओं, विसंगतियों पर प्रहार करते हुए उन्होंने देश और समाज की भटकती सामाजिक-सांस्कृतिक चेतनाओं के साथ साहित्य में बढ़ती उपभोक्तावादी संस्कृति को समेट कर, विविध पक्षों के सत्य के उद्घाटन में जो अर्थ तीव्रता का प्रयोग किया है वह निश्चित रूप से प्रणम्य है एवं प्रशंसनीय है। समाज के हर कोने में उत्पन्न अंतर्विरोध की स्थितियों को, बदलते मूल्यों को सांकेतिक व्यंजनाओं के माध्यम से वर्तमान विसंगतियों में व्याप्त अलग स्वायत्त सत्ता तलाशने की युवा पीढ़ी की एकाकी जीवन धारा की सोच और समर्पण को पूरी अर्थ तीव्रता के साथ प्रस्तुत करता यह लघुकथा संकलन निश्चित रूप से क्षरण हो रहे मानवीय मूल्यों के पुनर्स्थापन की कोशिश है जिसमें लेखिका डॉ. रमा द्विवेदी ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह के सभी आयामों के साथ न्याय करने में सफल हुई हैं।”
विशिष्ट अतिथि एवं राष्ट्रीय अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ संग्रह जीवन के विभिन्न सरोकारों से जुड़ी एक सौ ग्यारह लघुकथाओं का पुष्पगुच्छ है जिसमें कथाकार डॉ. रमा द्विवेदी ने घटना अथवा व्यक्ति से जुड़े एक क्षण का चित्रण सार रूप में बड़े ही कलात्मक ढंग से बहुत कम शब्दों में प्रस्तुत किया है। प्रस्तुत संग्रह की लघुकथाओं में उनकी गहरी संवेदनशीलता, तीव्र बुद्धि और घटनाओं के सूक्ष्म निरीक्षण-क्षमता का परिचय मिलता है जो लघुकथाकार का एक आवश्यक गुण भी है। एक कथाकार को लोक और शास्त्र का समुचित ज्ञान होना चाहिए। इस संग्रह की शीर्षक लघु कथा ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ जैसी कई लघुकथाओं को पढ़कर हमें उनके इस पक्ष का पता चलता है। उनकी लघुकथाएँ किसी समाधान की ओर नहीं बढ़ती बल्कि पाठकों को उनके विवेकाधिकारित निष्कर्ष पर छोड़ती दिखाई देती हैं। उनकी लघुकथायें जीवन के कटु यथार्थ को चित्रित करती हैं। यही बात डॉ. रमा द्विवेदी को विशेष बनाती है। कुल मिला कर उनका लघुकथा लेखन का प्रथम प्रयास प्रशंसनीय है।”
विशेष आमंत्रित अतिथि एवं परामर्शदाता अवधेश कुमार सिन्हा जी ने कहा कि—‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ लघुकथा संग्रह उनके पूर्व में प्रकाशित काव्यसंग्रहों ‘दे दो आकाश’ और ’रेत का समंदर’ का अगला विस्तार है। संग्रह की शीर्षक कथा भारतीय स्त्री की स्वतंत्र चेतना एवं आत्म रक्षण का उद्घोष है। कथाकार ने घर-परिवार एवं समाज की विसंगतियों एवं विद्रूपताओं के अपने अनुभवों को बड़े ही रचनात्मक ढंग से संग्रह की कथाओं में चित्रित किया है।”
विशेष आमंत्रित अतिथि एवं परामर्शदाता प्रवीण प्रणव जी ने संग्रह की अधिकांश कथाओं पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘मैं द्रौपदी नहीं हूँ’ संग्रह की पहली शीर्षक कहानी ही इस संग्रह की कहानियों के विषय तय कर देती है। स्त्री आज भी अपने घर की चारदीवारी के अंदर भी सुरक्षित नहीं है। शीर्षक कथा की नायिका अपने सम्मान की रक्षा के लिए आवाज़ उठाती है। इस संग्रह का शीर्षक उपयुक्त है। कथानकों में विषय वैविध्य है। समाज के विभिन्न क्षेत्रों में व्याप्त नैतिक मूल्यों का क्षरण एवं अन्य आधुनिक विषयों का चित्रण इस संग्रह में किया गया जो इस संग्रह को प्रासंगिक बनाता है।”
विशेष आमंत्रित अतिथि डॉ. जयप्रकाश तिवारी जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि डॉ. रमा द्विवेदी हिन्दी साहित्य जगत की अत्यंत संवेदनशील रचनाकार और समस्या संप्रेषण की अद्भुत शब्द-सर्जक हैं। वे मर्म पर प्रहार करती हैं और पाठक को सोचने पर विवश करती हैं। इन लघुकथाओं में डॉ. रमा जी का बहुआयामी व्यक्तित्व निखर गया है। कहीं वे समाजशास्त्री लगती हैं, कहीं मनोवैज्ञानिक, कहीं दार्शनिक तो कहीं कक्षा में अध्यापन करती शिक्षिका। कुछ लघुकथाओं में वे समाधान की ओर संकेत करती हैं तो कुछ समस्याओं का समाधान पाठक और समाज के लिए छोड़ देती हैं। मानव-मन की पिपासा धन और भोग से शांत नहीं होती। साहित्यिक संस्थाओं का विकृत होते स्वरूप को उभार कर एवं झन्नाटेदार तमाचा जड़कर रमा द्विवेदी जी साहित्य जगत के लिए स्तुत्य और दुलारी बन गई हैं। ग़ौरतलब है कि उनका कुरीतियों से पनपती नवीन विकृतियों पर उनका चुटीला प्रहार सामाजिक उत्कर्ष और कल्याण के लिए है, विध्वंस के लिए नहीं।”
परिचर्चा के अध्यक्ष प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सभी वक्तव्यों के सारांश पर अपनी महत्त्वपूर्ण टिप्पणी देते हुए कहा कि “महाश्वेता देवी, प्रतिभा राय से लेकर मंटों तक के समकक्ष रखकर इस संग्रह की कथाओं को रखकर वक्ताओं ने देखा-परखा है और यह लेखिका के लिए चुनौतीपूर्ण दायित्व बन गया है लेकिन यही उनकी उपलब्धि भी है। संग्रह का सामाजिक पक्ष बड़ा प्रबल है। लेखिका अनेक कथाओं में क्रूर अमानवीयता को उभारती हैं। परिचर्चा में शीर्षक कथा बहुत चर्चित रही। द्रौपदी एक पौराणिक महावृत्तांत है जो सहज उपलब्ध है लेकिन इसके कई ख़तरे भी हैं। लेखिका ने यह ख़तरा मोल लिया है और नायिका के एक वाक्य ने ही इसे सार्थक बना दिया है। संग्रह की अधिकांश कहानियाँ इस महावृत्तान्त से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से टकराती हैं और लेखिका कभी पक्ष में और कभी विपक्ष में खड़ी दिखाई देती हैं। यद्यपि गद्य में लेखिका का यह प्रथम प्रयास है लेकिन परिपक्व रचनाकार की परिपक्व रचना कृति है।” उन्होंने सफल लेखन के लिए लेखिका डॉ. रमा द्विवेदी को शुभकामनाएँ दीं।
तत्पश्चात् काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर सृजित सुंदर-सरस रचनाओं का काव्य पाठ करके वातावरण को ख़ुशनुमा बना दिया। विनीता शर्मा (उपाध्यक्ष), डॉ. सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव), शिल्पी भटनागर, दर्शन सिंह, डॉ. सुषमा देवी, श्री रामकिशोर उपाध्याय, डॉ. राशि सिन्हा, भगवती अग्रवाल, सरिता दीक्षित, डॉ. रमा द्विवेदी, ममता महक (कोटा) डॉ. संजीव चौधरी (जयपुर) डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), डॉ. संगीता शर्मा, शशि राय (गाजीपुर) इंदु सिंह, डॉ. स्वाति गुप्ता, दीपा कृष्णदीप तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया।
पूजा महेश, डॉ. आशा मिश्रा, रामनिवास पंथी (रायबरेली) अवधेश कुमार सिन्हा, प्रवीण प्रणव, भावना पुरोहित, किरण सिंह, तृप्ति मिश्रा, डॉ. पी के जैन, डॉ. जी नीरजा, डॉ. मंजू शर्मा, पूनम झा, ऋषि सिन्हा ने कार्यक्रम में उपस्थिति दर्ज की।
प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) द्वितीय सत्र का संचालन दीपा कृष्णदीप (महासचिव) ने किया। डॉ. संगीता शर्मा (मीडिया प्रभारी) के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।
आगे पढ़ेंत्रिलोक सिंह ठकुरेला को ‘वीरबाला काली बाई स्मृति सम्मान’
साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को उनके द्वारा बाल साहित्य के क्षेत्र में किये गये उल्लेखनीय योगदान के लिए नई दिल्ली की ‘द गोल्डन एरा’ संस्था द्वारा राष्ट्रीय बालिका दिवस के अवसर पर दिनांक 24 जनवरी 2024 को आयोजित भव्य समारोह में ‘वीरबाला काली बाई स्मृति सम्मान’ से सम्मानित किया गया।
‘द गोल्डन एरा’ के अध्यक्ष संजय पति तिवारी और न्यासी चन्द्रकांत ने त्रिलोक सिंह ठकुरेला का पुष्पगुच्छ देकर एवं शाॅल उढ़ाकर स्वागत करते हुए उन्हें स्मृति चिह्न एवं सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया।
नई दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर में आयोजित इस समारोह में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग सदस्य, सामाजिक कार्यकर्ताओं, अनेक संस्थाओं के अध्यक्षों, खिलाड़ियों, पत्रकार तथा दूरदर्शन एवं आकाशवाणी के उद्घोषकों सहित देश के गणमान्य व्यक्तिओं सहित बालिकाएँ उपस्थित थी। इस कार्यक्रम में अपने क्षेत्र में विशेष उपलब्धियों के लिए अनेक व्यक्तियों को सम्मानित करते हुए कई बालिकाओं को सम्मानित किया गया।
इस अवसर पर बालिकाओं द्वारा त्रिलोक सिंह ठकुरेला के गीत ‘सुनहरा भविष्य हैं हमारी बेटियाँ’ का सस्वर प्रस्तुतीकरण भी किया गया। उल्लेखनीय है कि त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कृतियाँ राजस्थान साहित्य अकादमी एवं पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी (राजस्थान) के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित की गयी हैं तथा उनकी रचनाएँ महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी कुमारभारती’ सहित चालीस से अधिक पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं।
आगे पढ़ेंपंजाबी लोक साहित्य और संगीत
(वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-165; लोकगीत शृंखला-16)
लोकगीतों की मौखिक परंपरा रही है—डॉ. वनिता
लंदन, 21-01-2024: विश्व-प्रसिद्ध साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘वातायन-यूके’ के तत्त्वावधान में तथा प्रख्यात साहित्यकार दिव्या माथुर के संयोजन में, दिनांक 20 जनवरी 2024 को वातायन-यूके प्रवासी संगोष्ठी-165 का ऑनलाइन आयोजन किया गया। यह आयोजन लोकगीत शृंखला-16 के तहत पंजाबी लोक साहित्य और संगीत को समर्पित था तथा इसके प्रतिभागी गायक, चर्चाकार, वक्ता और विशेषज्ञ अपने-अपने क्षेत्रों के जाने-माने हस्ताक्षर थे। साहित्य अकादमी और पंजाब साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत, डॉ. वनिता ने इस संगोष्ठी की अध्यक्षता की जबकि पूरी संगोष्ठी के दौरान प्रतिष्ठित साहित्यकार इस संगोष्ठी की सूत्रधार डॉ. मधु चतुर्वेदी पंजाबी लोकगीत परंपरा के सम्बन्ध में अपने वक्तव्यों से श्रोता-दर्शकों का आद्योपांत ज्ञानवर्धन करती रहीं। संगोष्ठी भारतीय समयानुसार रात्रि 8:30 बजे से आरंभ होकर लगभग डेढ़ घंटे तक चली। संगोष्ठी का मुख्य आकर्षण था—डॉ. शिव दर्शन दुबे द्वारा गाए गए पंजाबी लोकगीत जिनमें शास्त्रीयता का विशेष संपुट था।
संगोष्ठी का संचालन किया सुश्री प्रिय लेखा ने जबकि डॉ मधु ही डॉ. दुबे से पंजाबी लोकगीत परंपरा से सम्बन्धित गीतों को सुनाने का आग्रह करती रहीं और इस प्रकार दर्शकों को बाँधे रहीं। डॉ. दुबे का साथ दिया सुश्री प्रिय लेखा ने जिन्होंने अपनी स्वरलहरियों से माहौल में चार चाँद लगा दिए। आरंभ में, सिंगापुर साहित्य संगम की संयोजक डॉ. संध्या सिंह ने संगोष्ठी का परिचय देते हुए कहा कि लोक साहित्य का हमारे जीवन में बहुत महत्त्व होता है और यह हमारे परिवार और समाज को विस्तार देता है। साहित्य के एक अभिन्न अंग के रूप में लोकगीत आज भी प्रासंगिक हैं। तदनंतर, संगोष्ठी को अग्रेतर ले जाते हुए डॉ. मधु चतुर्वेदी ने कहा कि जब हम लोक की बात करते हैं तो उसमें लोक से सम्बन्धित सभी आयाम सम्मिलित होते हैं। भक्ति, शक्ति, अनुरक्ति, परम्पराएँ, मान्यताएँ, सामाजिक सरोकार, लोक व्यवहार, जीवन के संस्कार, पर्व, त्योहार सभी लोक जीवन के आधार हैं। दसों सिख गुरुओं की रचनाओं में भी ये बातें अभिभावी हैं जबकि गुरु नानक देव ने राम की महत्ता को लोक जीवन में विशेष महत्त्व दिया है। इसी प्रसंग को आगे बढ़ाते हुए डॉ. शिव दर्शन दुबे ने गुरु नानक देव-रचित ‘राम सुमिर, राम सुमिर’ का हृदय-स्पर्शी गायन प्रस्तुत किया। डॉ. मधु ने कहा कि गुरु गोविंद सिंह में रामभक्ति की पराकाष्ठा परिलक्षित होती है तथा उन्होंने राम के अश्व पर एक वंदन लिखा है जो अद्भुत है। पंजाब में प्रेम-आधारित लोकगीतों की प्रचुरता है जिनमें ‘हीर’ लोकगीत विशेष लोकप्रिय है। डॉ. शिव दर्शन दुबे ने लोकगीत ‘हीर’ के कुछ अंश सुनाकर दर्शकों को आत्मविभोर कर दिया। डॉ. मधु ने बताया कि ‘हीर’ लोकगीत शृंगार से आरंभ होकर अध्यात्म तक पहुँचता है। डॉ. मधु ने पंजाबी लोकगीत ‘छल्ला’ के सम्बन्ध में बताया कि इसका अंदाज़ सूफ़ियाना होता है जिसमें लौकिक व्यवहार का उल्लेख होता है। तदनंतर, उन्होंने ‘माहिया’, ‘टप्पा’ जैसे लोकगीतों के छंद-विधान की चर्चा की। प्रिय लेखा ने हिंद के बाबत एक ‘माहिया’ लोकगीत ‘जुग-जुग जीवे’ सुनाया। उसके बाद, डॉ. दुबे ने ‘कोठे ते आ माहिया . . . मिलना तो मिल आके’ जैसा माहिया लोकगीत सुनाकर दर्शकों को सम्मोहिनी-पाश में बाँध दिया। इस गीत में प्रिय लेखा ने डॉ. दुबे के साथ सह-गायन किया। इसी क्रम ने डॉ. मधु ने बताया कि पंजाबी लोकगीतों में बड़ी विविधता होती है। शक्ति और भक्ति दोनों के पीछे प्रेम का भाव प्रधान होता है।
संगोष्ठी की अध्यक्षा डॉ. वनिता ने बताया कि लोकगीत की परंपरा सदियों से चली आ रही है। इसकी मौखिक परंपरा रही है जबकि लिखना आरंभ नहीं हुआ था। लोकगीत पारंपरिक साज-यंत्रों के संगत में गाए जाते रहे हैं। लोकगीतों के साज-यंत्र भी अलग ही रहे हैं। डफली, ढोलक, सारंगी, तुम्बी आदि सभी लोक साज-यंत्र हैं। उन्होंने कहा कि लोकगीतों में प्रेम जैसे भाव की मूल मानवीय प्रवृत्ति सर्वत्र एक-समान होती है। लड़कियों पर लगने वाली प्रेम की वर्जनाएँ भी सभी जगह एक-जैसी होती हैं।
इस संगोष्ठी के सम्बन्ध में जापान के हिंदी साहित्यकार टोमियो मिजोकामी, भारत से इंद्रजीत सिंह, इंग्लैंड के निखिल कौशिक जैसे प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों ने कुछ गीतों के अंश सुनाते हुए अपनी-अपनी टिप्पणियाँ दीं। कार्यक्रम का समापन करते हुए डॉ. संध्या सिंह ने ऑनलाइन मंच पर उपस्थित सभी दर्शकों के प्रति आभार व्यक्त किया। श्रोता-दर्शकों में आशीष रंजन, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. विवेक मणि त्रिपाठी, इंद्रजीत सिंह, कस्तूरिका, जय वर्मा, किरण खन्ना, कृष्णा बाजपेयी, संध्या सिलावट, तातियाना ओर्नास्किया, डॉ. रश्मि वार्ष्णेय, मधु वर्मा, लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया, भव्या सिंह उल्लेखनीय हैं। संगोष्ठी के समापन पर, डॉ. मधु चतुर्वेदी और डॉ. संध्या सिंह समेत अनेक दर्शकों ने इच्छा व्यक्त की कि पंजाबी लोकगीत पर एक और संगोष्ठी आयोजित की जानी चाहिए।
इस संगोष्ठी के आयोजन में तकनीकी सहयोग प्रदान किया भारत के ही तकनीकी विशेषज्ञ कृष्ण कुमार ने। इस संगोष्ठी में सहयोगी संस्थाएँ थीं—वैश्विक हिंदी परिवार और सिंगापुर साहित्य संगम।
(प्रेस विज्ञप्ति—डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंत्रिलोक सिंह ठकुरेला को बाल साहित्य भूषण
साहित्य मण्डल, श्रीनाथद्वारा के द्वारा, साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को उनके द्वारा बाल साहित्य के क्षेत्र में किये गये उल्लेखनीय कार्य के लिए बाल साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया है।
दिनांक 6 एवं 7 जनवरी 2024 को साहित्य मण्डल, श्रीनाथद्वारा के श्री भगवती प्रसाद देवपुरा प्रेक्षागार में आयोजित भव्य राष्ट्रीय बाल साहित्य समारोह में सांस्कृतिक कार्यक्रम, अनेक महत्त्वपूर्ण पुस्तकों और पत्रिकाओं के प्रदर्शन, काव्यपाठ तथा कहानी वाचन के साथ साथ देश के विभिन्न राज्यों से आये साहित्यकारों का सम्मान किया गया। इस अवसर पर साहित्य मण्डल द्वारा त्रिलोक सिंह ठकुरेला को पगड़ी और कंठहार पहनाते हुए अंगवस्त्र, शाॅल, श्रीफल और श्रीनाथ जी की छवि और प्रसाद देकर स्वागत किया गया। त्रिलोक सिंह ठकुरेला को साहित्य मण्डल के अध्यक्ष श्री मदनमोहन शर्मा तथा प्रधानमंत्री श्री श्यामप्रसाद देवपुरा द्वारा उपाधि पत्र देते हुए बाल साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला को इससे पूर्व भी राजस्थान साहित्य अकादमी तथा पण्डित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। उल्लेखनीय है कि त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ तीस से अधिक पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी है। त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने कुण्डलिया छंद को पुनर्स्थापित करने में अहम भूमिका निभाते हुए बाल साहित्य के लिए उल्लेखनीय कार्य किया है।
आगे पढ़ेंएकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला संपन्न
पाठ लेखन के समय लेखक को स्वयं शिक्षार्थी लर्नर बनना ही होगा—प्रो. गोपाल शर्मा
हैदराबाद, 29 दिसंबर, 2023:
“एस एल एम (सेल्फ लर्निंग मेटीरियल) या स्व-अध्ययन सामग्री ऐसी सामग्री है जिसे आदि से लेकर अंत तक छात्रकेंद्रित होना चाहिए। इस सामग्री को तैयार करते समय लेखक से लेकर संपादक, समन्वयक, परामर्शी आदि कई लोग आपस में मिलजुलकर एक इकाई की तरह कार्य करते हैं। स्व-अध्ययन सामग्री की बात करें तो वास्तव में सबसे पहले वही सीखता है जो उस पाठ को लिखता है। इस दृष्टि से सबसे पहला लर्नर पाठलेखक ही होता है। हर इकाई उसके लिए एक चुनौती है और हर पाठ लिखते समय लेखक को स्वयं शिक्षार्थी लर्नर बनना ही होगा। अन्यथा आप अपने लक्ष्य छात्रों के साथ न्याय नहीं कर पाएँगे। लेखक के रूप में केवल पिष्टपेषण न करें। विषय पर ध्यान दें। शिक्षक के साथ-साथ शिक्षार्थी बनकर इकाई लिखने का प्रयास करें। अपने अंदर निहित विद्यार्थी को जगाइए और उसके अनुरूप, उसकी सीखने की क्षमता के अनुरूप शब्द चयन कीजिए ताकि आसानी से विषय प्रेषित और ग्रहण किया जा सके। यह सामग्री पूरी तरह से विद्यार्थियों के लिए ही होनी चाहिए। विद्यार्थी समीक्षक होते हैं, अतः लेखक कभी भी कहीं भी प्रेसक्राइब न करें। विषय को डिस्क्राइब करें। सामग्री-निर्माण के समय विद्यार्थी और उसकी लर्निंग स्टाइल को भी ध्यान में रखें। लिखने-पढ़ने-सीखने की यह यात्रा कभी समाप्त नहीं होती है। यह आगे भी निरंतर चलती रहेगी।”
ये विचार प्रो. गोपाल शर्मा (पूर्व प्रोफ़ेसर, अंग्रेज़ी विभाग, अरबा मींच विश्वविद्यालय, इथियोपिया) ने 28 दिसंबर, 2023 को मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय में दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के निदेशक प्रो. मोहम्मद रज़ाउल्लाह ख़ान की अध्यक्षता में संपन्न एकदिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला में बीज भाषण देते हुए प्रकट किए। इस कार्यशाला में दूरस्थ शिक्षा माध्यम के छात्रों के लिए हिंदी की गुणवत्तापूर्ण श्रेष्ठ स्व-अध्ययन सामग्री तैयार करने के सिद्धांत और तकनीक पर गहन विचार-विमर्श किया गया।
अपने अध्यक्षीय भाषण में प्रो. मोहम्मद रज़ाउल्ला खान ने उपस्थित सभी इकाई-लेखकों और संपादन मंडल के सदस्यों को साधुवाद देते हुए हर्ष व्यक्त किए। उन्होंने दूरस्थ शिक्षा के दृष्टिकोण को स्पष्ट करते हुए हिंदी की शिक्षण सामग्री की सराहना की और इसे दूरस्थ माध्यम के छात्रों की ज़रूरतों के मुताबिक़ बताया।
बतौर मुख्य अतिथि भाषा विभाग के पूर्व डीन प्रो. नसीमुद्दीन फरीस ने स्व-अध्ययन सामग्री तैयार करने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, उन पर चर्चा की और इकाई-लेखकों को प्रोत्साहित किया। उन्होंने यह स्पष्ट किया कि एस एल एम अर्थात् स्व-अध्ययन सामग्री को मुख्य रूप से 'पाँच स्व' को ध्यान में रखकर निर्मित किया जाता है-स्व-व्याख्यात्मक, स्व-निहित, स्व-निर्देशित, स्व-प्रेरक और स्व-मूल्यांकनपरक।
संपादक मंडल के सदस्य प्रो. श्याम राव राठौड़ (अंग्रेज़ी और विदेशी भाषा विश्वविद्यालय) और डॉ. गंगाधर वानोडे (केंद्रीय हिंदी संस्थान) ने अपने विचार व्यक्त करते हुए यह आश्वासन दिया कि गुणवत्तापूर्ण सामग्री निर्माण में वे आगे भी मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी को अपना योगदान देते रहेंगे।
आमंत्रित वक्ता डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा (दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, चेन्नई) ने स्व-अध्ययन सामग्री के संपादन के समय उपस्थित चुनौतियों पर व्यावहारिक रूप से प्रकाश डाला। डॉ. मंजु शर्मा (चिरेक इंटरनेशनल) और हिंदी विभाग, मानू के आचार्य डॉ. पठान रहीम खान और डॉ. अबु होरैरा आदि ने इकाई-लेखक के रूप में अपने अनुभवों को साझा किया।
कार्यशाला में डॉ. पूर्णिमा शर्मा, डॉ. शशिबाला, डॉ. वाजदा इशरत, डॉ. अनिल लोखंडे, शीला बालाजी, निलया रेड्डी, डॉ. बी। बालाजी, डॉ. अदनान बिसमिल्लाह, डॉ. इरशाद, डॉ. समीक्षा शर्मा और शेख़ मस्तान वली आदि ने सक्रिय सहभागिता निबाही।
इस कार्यक्रम में एमए (हिंदी) द्वितीय सत्र की पाठसामग्री के साथ-साथ डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की समीक्षा कृति “परख और पहचान” का भी लोकार्पण निदेशक प्रो. रज़ाउल्लाह ख़ान ने किया। प्रो. ख़ान ने समस्त अतिथियों का पुष्पगुच्छ और शॉल से भावभीना स्वागत-सत्कार किया, तो इकाई-लेखकों की ओर से परामर्शी और संपादक प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने निदेशक प्रो. रज़ाउल्लाह ख़ान तथा कोर्स कोऑर्डिनेटर डॉ. आफ़ताब आलम बैग का अभिनंदन शॉल ओढ़ाकर किया। प्रतिभागी इकाई-लेखकों को हिंदी विषय की प्रकाशित 14 पुस्तकों की लेखकीय प्रतियाँ ससम्मान भेंट की गईं।
पूरे कार्यक्रम का संचालन डॉ. आफ़ताब आलम बैग ने किया तथा डॉ. अनिल लोखंडे ने धन्यवाद ज्ञापित किया।
प्रस्तुति:
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह संपादक 'स्रवंति'
एसोसिएट प्रोफ़ेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, मद्रास
टी. नगर, चेन्नई-600017
वातायन वैश्विक गोष्ठी–162
दो देश दो कहानियाँ (भाग-14)
लंदन, 31-12-2023: ‘वातायन-यूके’ के तत्वावधान में दिनांक 30 दिसंबर, 2023 को 162 वीं संगोष्ठी का आयोजन आभासी मंच पर किया गया। वर्ष 2023 की इस समापन संगोष्ठी को ‘दो देश दो कहानियाँ (भाग-14)’ के रूप में आयोजित किया गया। इसके अंतर्गत, अमेरिका की डॉ. कुसुम नैपसिक तथा भारत के शुभम नेगी ने अपनी-अपनी कहानियों का सुरुचिपूर्ण पाठ किया। संगोष्ठी की अध्यक्षता सुप्रसिद्ध कहानीकार और आलोचक श्री राकेश बिहारी ने की जबकि प्रवासी लेखिका डॉ. शैलजा सक्सेना इस संगोष्ठी की सूत्रधार थीं। वास्तव में, ‘दो देश दो कहानियाँ’ दो संस्थाओं नामत: ‘वातायन-यूके’ तथा ‘हिंदी राइटर्स गिल्ड-कनाडा’ की संयुक्त प्रस्तुति है जिसे कहानी विधा के रसिया पाठकों द्वारा खूब सराहा जाता है। हिन्दी साहित्य में ऐसी संगोष्ठी एक विशिष्ट प्रस्तुति के रूप में अभिलिखित किया जा रहा है। ऐसी प्रस्तुतियों से हमें यह भी पता चलता है कि भारतेतर देशों में हिंदी कहानी की क्या दशा-दिशा है।
अस्तु, हिंदी राइटर्स गिल्ड की सह-संस्थापिका शैलजा सक्सेना ने मंच-संचालन करते हुए कहा कि भले ही इस ‘दो देश दो कहानियाँ’ शृंखला के अंतर्गत दो भिन्न-भिन्न देशों के हिंदी कथाकारों की कहानियों का पाठ और उन पर चर्चा और समीक्षा होती है, हमें यह पता चलता है कि उनकी संवेदनाएँ एक जैसी होती हैं। अमेरिका की ड्यूक विश्वविद्यालय में हिंदी की सीनियर प्राध्यापिका कुसुम नैपसिक ने ‘जीवन के रंग’ शीर्षक से अपनी कहानी का पाठ किया। इस कहानी की नायिका मौली गर्भ धारण न कर पाने की व्यथा से हताश रहती है और इसके लिए वह अपने पति डेविड को दोषी ठहराती है क्योंकि उसने ही उसे गर्भ-निरोधक गोलियाँ खिला-खिला कर उसे इस बांझपन जैसी स्थिति में ला खड़ा किया है। नि:संतानता से अभिशप्त जब उसे एक दिन जाँच में अचानक पता चलता है कि वह गर्भवती हो गई है, तो वह अपनी इस अपार ख़ुशी का साझा अपने पति और घरवालों से करना चाहती है। लेकिन, इस ख़ुशी के साथ-साथ उसकी चिंताएँ बढ़ने लगीं क्योंकि अब उसे बच्चे की परवरिश में बढ़ने वाले ख़र्चे से निपटने के लिए स्वयं आय का स्रोत तलाशना होगा। कहानी मार्मिक और हृदयस्पर्शी है तथा कथाकार सधे हाथों से लिखी गई कहानी का सुरुचिपूर्ण पाठ करती हैं।
तदनंतर, हिमाचल प्रदेश के कथाकार शुभम नेगी जो डेटा साइंटिस्ट के रूप में मुम्बई में कार्यरत हैं, ने अपनी कहानी ‘टिफिन के माले’ में दु:ख के विभिन्न पर्यायों का उल्लेख करते हुए अपने दु:ख के स्रोत पर बातें करते हैं। कहानी आत्मबोधात्मक है जिसमें दु:ख के भाव को परत-दर-परत खोलने की कोशिश की जाती है। जब यह विश्लेषण एक बिंदु पर आकर ठहर जाता है तो आत्मकथात्मक शैली में शुभम की कहानी शुरू होती है जिसमें वह अपने ‘स्व’ को तलाशने की कोशिश करते हैं। कहानी एक बच्चे की उसके स्कूल में गतिविधियों के इर्द-गिर्द घूमती है और कथाकार उसके बाल मनोविज्ञान की पड़ताल करता है। नि:संदेह, कहानी मर्मस्पर्शी है जो आद्योपांत पाठकों को बाँधे रखती है।
दोनों कहानियों की समीक्षा करते हुए समीक्षक राकेश बिहारी ने दोनों कथाकारों को बधाई दी और बताया कि दोनों कहानियाँ कहीं-न-कहीं आपस में दर्द के धागे से जुड़ती-सी लगती हैं। दोनों कहानियाँ बच्चे के इर्द-गिर्द घूमती हैं—कुसुम की कहानी में बच्चे की प्रतीक्षा है तो शुभम की कहानी में बच्चे की तकलीफ़ दृष्टिगोचर होती है। कुसुम की कहानी में कोरोना के प्रकोप से कहानी की दिशा ही बदल जाती है। ऐसे में, कहानी स्त्री-पुरुष के पारंपरिक संबंधों को छोड़कर एक अलग दिशा में बढ़ जाती है। समीक्षक राकेश बिहारी, जब डेविड के भीतर मौज़ूद स्त्री या पुरुष मित्र की मौली के प्रति चिंता में सहभागी होने की बात का ख़ुलासा करते हैं तो ऐसा न केवल मौली के लिए ख़ुशी का कारक बनता है बल्कि इससे श्रोता-दर्शकों को भी आत्मसंतोष होता है। राकेश बिहारी ने बड़ी दक्षता और सर्वांगीणता से दोनों कहानियों के कला पक्ष और भाव पक्ष पर सधी हुई समीक्षा प्रस्तुत की तथा दोनों कथाकारों से अपेक्षा की कि वे भविष्य में भी ऐसी ही कहानियों का सृजन करते रहेंगे। इसी क्रम में उन्होंने आगे कहा कि हम भारतीय लेखकों को यह नहीं सोचना चाहिए कि संवेदनाएँ और भावनाएँ सिर्फ उन्हीं की जाग़ीर है; प्रवासी लेखकों में भी इनकी प्रचुरता है।
कार्यक्रम का समापन करते हुए शैलजा सक्सेना ने इस कहानी-पाठ के मंच पर उपस्थित प्रख्यात लेखिका नासिरा शर्मा, ‘साहित्य कुंज’ पत्रिका के संपादक और वरिष्ठ लेखक सुमन घई और जापान के हिंदी विद्वान तोमियो मिज़ोकामी सहित जूम और यूट्यूब से जुड़े प्रबुद्ध श्रोता-दर्शकों के प्रति भी आभार प्रकट किया तथा नए वर्ष के आगमन पर सभी को बधाई दी।
(प्रेस विज्ञप्ति-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ें61वीं राष्ट्रीय रोलर स्केटिंग चैंपियनशिप में स्वर्ण
तमिलनाडु की ऐतिहासिक विजय
चेन्नै: 23 दिसंबर, 2023
रोलर स्केटिंग फेडरेशन ऑफ़ इंडिया द्वारा चेंगलपट ज़िले में स्थित तमिलनाडु फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स यूनिवर्सिटी में 18 दिसंबर, 2023 से 22 दिसंबर, 2023 तक आयोजित 61वीं राष्ट्रीय स्केटिंग चैंपियनशिप स्पर्धा में तमिलनाडु की जूनियर वर्ग की खिलाड़ियों ने स्वर्ण पदक जीतकर तमिलनाडु के स्केटिंग के इतिहास में अपना नाम दर्ज किया।
याद रहे कि रोलर डर्बी की शुरूआत भारत में 2018 में आर एस एफ़ आई की ओर से हुई। इन छह वर्षों में पहली बार तमिलनाडु की खिलाड़ियों ने असाधारण प्रतिभा दिखाकर स्वर्ण पदक जीता। इस टीम में आरुषि चौरसिया, वुल्ली श्रीसाहिती, मृदुला पी ए, जे मोहित्रा, हंसुजा, कार्तिका एम, परिणीता बी, हरिणी के एम और वी हेमनित्याश्री सम्मिलित हैं। इस टीम की कप्तान है सागिनी और वाइस कप्तान है गान्याश्री विजयकुमार।
टीम कोच श्रीमती किरण चौरसिया, टीम मैनेजर श्रीमती उषा और स्केटिंग किड्स एसोसिएशन के निदेशक श्री विजय ने खिलाड़ियों को प्रोत्साहित किया और शुभकामनाएँ दीं।
आगे पढ़ेंअहिन्दीभाषी क्षेत्र के छात्र पढ़ेगे ठकुरेला की रचनाएँ
अहिन्दीभाषी क्षेत्र के छात्र पाठ्यक्रम में साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ पढ़ेंगे।
नयी शिक्षा नीति एवं राष्ट्रीय पाठ्यचर्या की रूपरेखा (स्कूली शिक्षा) 2023 के अनुरूप केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड की अहिन्दीभाषी क्षेत्र के कक्षा 3, 4 तथा 5 के छात्रों के लिए तैयार की गयी ‘सरस हिन्दी पाठ्यपुस्तक’ शृंखला में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ संकलित की गयी हैं। उल्लेखनीय है कि राजस्थान साहित्य अकादमी तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी सहित अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी कुमारभारती’ सहित तीस से अधिक पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला ने हिन्दी साहित्यकार के रूप में बाल साहित्य तथा कुण्डलिया एवं मुकरी जैसी साहित्यिक विधाओं के उन्नयन के लिए सराहनीय कार्य किया है।
आगे पढ़ेंसाहित्य संगम संस्थान गुजरात इकाई का तृतीय वार्षिकोत्सव धूमधाम से हुआ संपन्न
देश-विदेश की जानी-मानी पंजीकृत, साहित्य में अपनी अलग पहचान रखने वाली संस्था ‘साहित्य संगम संस्थान’ के गुजरात प्रदेश इकाई के स्थापना दिवस की तृतीय वर्षगाँठ 13 दिसंबर को बड़े धूमधाम से मनाई गई।
प्रातः 9 बजे से रात 8 बजे तक चले इस कार्यक्रम का शुभारंभ संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष आद. राजवीर सिंह ‘मंत्र’ जी द्वारा द्वीप प्रज्वलन और शंखनाद द्वारा किया गया। तदुपरांत गुजरात इकाई की सचिव आद. सोनल मंजूश्री ओमर जी एवं आद. अंकुर सिंह जी द्वारा सरस्वती वंदना करके माँ शारदे का आवाहन किया गया। इकाई के अध्यक्ष आद. डॉक्टर रतन कुमार शर्मा 'रत्न' जी ने स्वागतीय संबोधन द्वारा सभी को कार्यक्रम में आमंत्रित एवं स्वागत किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता आद. जगदीशचंद्र गोकलानी जी के उद्बोधन द्वारा की गई। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि आद. डॉक्टर कमल किशोर दूबे जी और विशिष्ट अतिथि आद. प्रमोद पांडे जी रहे, उन्होंने अपने उद्बोधन द्वारा इकाई के सभी कार्यकारी पदाधिकारियों की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए इकाई की साहित्यिक योगदान की भूमिका को सराहा।
वार्षिकोत्सव समारोह में सभी प्रतिभागियों ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। सभी प्रतिभागियों संग गुजरात इकाई के सभी सक्रिय सदस्यों को सम्मानित करते हुए संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजवीर सिंह 'मंत्र' जी ने अपने प्रेरणात्मक उद्बोधन द्वारा लोगों का मन मोह लिया। अंततः गुजरात इकाई के अध्यक्ष आद. डॉक्टर रतन कुमार शर्मा 'रत्न' जी ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए अपने उद्बोधन द्वारा समारोह का समापन किया।
आगे पढ़ेंहिंदी के सार्वभौमिकीकरण पर बल दिया जाए-संतोष चौबे (वातायन-संगोष्ठी-161)
लंदन, दिनांक 13-12-2023: वातायन-यूके के तत्वावधान में दिनांक 09 दिसंबर 2023 को वातायन संगोष्ठी-161 का आयोजन किया गया। इसके अंतर्गत, रविंद्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे के साहित्यिक अवदान और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान पर व्यापक चर्चा हुई। चर्चा के क्रम में उनके द्वारा वैश्विक आधार पर हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में किए गए बहुमूल्य कार्यों को रेखांकित किया गया। उल्लेखनीय है कि इस संगोष्ठी का स्वरूप एक साक्षात्कार-संवाद के रूप में था जिसके अंतर्गत, ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज के प्रबंध-निदेशक और जाने-माने प्रवासी साहित्यकार डॉ. पद्मेश गुप्त ने हिंदी के विस्तारीकरण के व्यापक परिप्रेक्ष्य में श्री संतोष चौबे से प्रश्न किए। अपने सहज-स्वाभाविक प्रत्युत्तरों में श्री चौबे का बल प्रवासी साहित्य, विदेशों में हिंदीतर छात्रों के हिंदी शिक्षण तथा विदेशों में हिंदी सीखने को सुकर बनाने के लिए प्रौद्योगिकियों के प्रचुर प्रयोग पर था। श्री संतोष चौबे ने सभी हिंदी विद्वानों, लेखकों और हिंदी प्रेमियों से आह्वान किया कि वे हिंदी के सार्वभौमिकीकरण में अपना योगदान करें तथा हिंदी को एक लोकप्रिय वैश्विक भाषा बनाने के स्वप्न को साकार करें।
वैश्विक हिंदी परिवार के संस्थापक-अध्यक्ष श्री अनिल शर्मा जोशी की अध्यक्षता में आयोजित इस संगोष्ठी की महत्ता इसी बात से प्रमाणित होती है कि श्री संतोष चौबे की प्रत्यक्ष निगरानी में वर्ष 2023 के दिसंबर माह के उत्तरार्ध में भोपाल में अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन होने जा रहा है तथा ‘वातायन-संगोष्ठी 161’ को उक्त सम्मेलन की पूर्व-पीठिका के रूप में देखा जा रहा है। ग़ौरतलब है कि संतोष चौबे जी द्वारा स्थापित हिंदी की प्रोत्साहक संस्था ‘विश्वरंग’ के बैनर तले ही इस अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है क्योंकि इसमें श्री चौबे ने उन्हीं पक्षों पर अपेक्षित ज़ोर दिया जिन पर सम्मलेन के अधिकतर इवेंट्स आधारित हैं।
इस साक्षात्कार में श्री चौबे ने अपना लेखकीय परिचय देते हुए अपनी पारिवारिक पृष्ठभूमि की भी चर्चा की तथा यह बताया कि उनके परिवार में साहित्य, संगीत और शास्त्रीय संगीत की पृष्ठभूमि पहले से ही उपलब्ध थी तथा ये उन्हें पिता से विरासत के रूप में मिली। उनकी अभिरुचि विज्ञान में भी उसी अवस्था में पैदा हुई। उन्होंने बताया कि वे अपनी चयन-पद्धति के अनुसार केवल उसी काम को करने के लिए प्रेरित हुए जो उनके मन को अच्छी लगती थी। साक्षात्कार के क्रम में उन्होंने जेपी आंदोलन के दौरान विरचित एक छोटी कविता ‘सफलता आक्रांत करती है’ भी सुनाई। उन्होंने बताया कि 27-28 वर्ष की उम्र तक आते-आते उन्होंने अपने सारे सपने पूरे कर लिए थे और प्रशासनिक सेवा में भी आ गए थे। उन्होंने एक दूसरी कविता ‘मेरे अच्छे आदिवासियों’ का भी हृदयग्राही पाठ किया।
डॉ. पद्मेश के पूछे जाने पर श्री चौबे ने कहा कि वे प्रवासी साहित्य और प्रवासी साहित्यकारों से बहुत बाद में परिचित हुए तथा वर्ष 2019 में उनसे उनका साक्षात्कार हुआ। उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्य पर वास्तव में ध्यान देने की ज़रूरत है क्योंकि इन प्रवासी साहित्यकारों ने भारत से बाहर जाकर सफलता प्राप्त की है। इसके अतिरिक्त, भारत में तो हिंदी और उर्दू के बीच एक द्वंद्वात्मक स्थिति रही है लेकिन अमरीका और अन्य देशों में ऐसा नहीं था। प्रवासी साहित्यकारों के सहयोग से हम हिंदी को एक ताक़त बना सकते हैं।
मंच-संचालक डॉ. गुप्त द्वारा भारतीय मूल के ब्रिटिश सांसद वीरेंद्र शर्मा को आमंत्रित किए जाने पर श्री शर्मा ने दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफ़ेसर रेखा सेठी के वक्तव्य का दृष्टांत देते हुए कहा कि श्री चौबे का जीवन प्रेरणाप्रद रहा है। तदनंतर, प्रोफे. रेखा सेठी ने कहा कि श्री चौबे द्वारा बताई गईं बातें इतनी दिलचस्प थीं कि उनका श्रवण हमने कविता की तरह किया। प्रोफे. सेठी ने श्री चौबे द्वारा इस ऑनलाइन मंच पर सुनाई गई सभी कविताओं की तहे-दिल से प्रशंसा की। कुछ प्रबुद्ध श्रोताओं ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए और श्री संतोष चौबे के कृतित्व और कार्यकलापों की सराहना की। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री अनिल शर्मा जोशी ने बताया कि भारत में साहित्यकार अपनी उतनी पहचान-प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर पाते जितनी कि ब्रिटेन में। उन्होंने कहा कि हिंदी के विकास में देश-विदेश की सभी संस्थाएँ अपना योगदान कर सकती हैं तथा सभी को अपनी ऊर्जाएँ जोड़कर इस महत्त्वपूर्ण कार्य को करना होगा।
इस संगोष्ठी को इंद्रप्रस्थ महाविद्यालय (दिल्ली वि.वि.) का सान्निध्य मिला तथा इसकी संयोजक थीं—प्रख्यात प्रवासी साहित्यकार सुश्री दिव्या माथुर जो ‘वातायन-यूके’ की संस्थापक भी हैं। इस संगोष्ठी में वातायन-यूके की सहयोगी संस्थाएँ रही हैं—वैश्विक हिंदी परिवार, विश्वरंग आदि जबकि ‘वातयन-यूके’ इस वर्ष अपनी 20वीं वर्षगाँठ मना रहा है।
कार्यक्रम का समापन वातायन-यूके की कर्मठ कार्यकर्त्री सुश्री आस्थादेव ने किया। उन्होंने श्री संतोष चौबे द्वारा व्यक्त विचारों तथा उनके जीवन के विभिन्न प्रसंगों से प्राप्त प्रेरणाओं की चर्चा की तथा मंच पर उनकी उपस्थिति के लिए उनके प्रति आभार प्रकट किया। साथ ही, उन्होंने मंच पर उपस्थित प्रबुद्धजनों और ज़ूम एवं यूट्यूब से जुड़े श्रोता-दर्शकों के प्रति भी आभार प्रकट किया।
(प्रेस रिपोर्ट-डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंशिप्रस स्कूल में हुआ अभिव्यक्ति का आयोजन: 2023
90 बाल रचनाकारों ने किया सहभाग
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा ‘अभिव्यक्ति’ का आयोजन आगरा रोड स्थित शिप्रस स्कूल में किया गया।
इस अवसर पर 90 बाल रचनाकारों ने चित्रकला, कविता, कहानी एवं निबंध के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त किया।
बच्चों को विविध विधाओं में शीर्षक प्रदान किए गए जिनके आधार पर बच्चों ने एक से बढ़कर एक रचनाएँ बनाईं।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्या लीना शर्मा ने कहा कि बच्चों ने जिस तरह विविध शीर्षकों पर कविता, कहानी, निबंध, चित्रकला के माध्यम से रचनात्मकता को प्रदर्शित किया है वह प्रशंसनीय है।
प्रबंधक सौरभ राज ने कहा कि विद्यालय में विभिन्न गतिविधियाँ होती हैं। अभिनव बालमन द्वारा ‘अभिव्यक्ति’ के माध्यम से बच्चों ने साहित्यिक गतिविधि से स्वयं को जोड़ा है। यह बच्चों को मानसिक रूप से कल्पनाशील बनाएगा जिससे उनके अंदर सकारात्मक ऊर्जा आएगी।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि सभी बाल रचनाकारों ने बहुत अच्छा प्रयास किया है। अभिनव बालमन का सदैव उद्देश्य रहा है कि अधिक से अधिक बच्चों को स्वरचित रचनाएँ एवं कल्पनाओं से ओतप्रोत चित्र बनाने के लिए प्रेरित किया जाए। बच्चों की अभिव्यक्ति जब पत्रिका में प्रकाशित होगी तो निश्चित ही बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ेगा।
अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने बाल रचनाकारों को बताया कि वो कैसे अपनी कहानी रच सकते हैं। उन्होंने कहानी के लिए प्रारम्भिक आवश्यकताओं के विषय में बच्चों से बात की। बाल रचनाकारों ने इन बातों का ध्यान रखते हुए स्वरचित कहानियों की रचना की।
इस अवसर पर शुभ्रा रायजादा, शिवानी शर्मा, उपासना सक्सेना, प्रियंका चौधरी उपस्थित रहीं।
आगे पढ़ें‘फटकन’ और ‘विद्याश्री साहित्य सान्निध्य’ के बैनर तले ग्रेटर नोएडा में एक कवि गोष्ठी का आयोजन
ग्रेटर नोएडा, 25-11-2023: ‘फटकन’ और ‘विद्याश्री साहित्य सान्निध्य’ के बैनर तले दिनांक 25 नवंबर, 2023 को ग्रेटर नोएडा में एक कवि गोष्ठी का भव्य आयोजन किया गया, जिसमें ग़ाज़ियाबाद, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के चुनिंदा कवियों ने सक्रिय प्रतिभागिता की। यह आयोजन ग्रेटर नोएडा (ओमीक्रॉन-1ए) स्थित साहित्यकार डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र के आवास पर संपन्न हुआ।
यह गोष्ठी अपराह्न 3:00 बजे से आरंभ होकर सायंकाल 6:00 बजे तक अविराम चलती रही। साहिबाबाद (ग़ाज़ियाबाद) से पधारे वरिष्ठ लघुकथाकार और नामचीन साहित्यकार तथा संपादक एवं दिल्ली-प्रशासित कॉलेज के प्रवक्ता श्री सुरेंद्र कुमार अरोड़ा ने गोष्ठी की अध्यक्षता की जबकि सान्निध्य प्राप्त हुआ गीतकार वैभव वंदन तथा महत्त्वपूर्ण कवि मनोज द्विवेदी का। उल्लेख्य है कि वैभव नंदन लोकसभा सचिवालय के मीडिया सलाहकार रहे हैं जिन्होंने अपनी सेवाएँ इंदिरा गाँधी राष्ट्रीय कला केंद्र को भी दी हैं, जबकि मनोज द्विवेदी दूरसंचार विभाग में सहायक महाप्रबंधक रहे हैं। गोष्ठी का सुविध और कुशल संचालन किया गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की आचार्य डॉ. रेनू यादव ने जो एक सुपरिचित लेखिका, शिक्षिका और वक्ता हैं।
माँ शारदे की प्रतिमा को माल्यार्पित करते हुए सुरेंद्र अरोड़ा ने दीप प्रज्ज्वलित किया; तदनंतर, कार्यक्रम का शुभारंभ मनोज द्विवेदी द्वारा गाई गई सरस्वती वंदना से हुआ। गोष्ठी का आग़ाज़ करते हुए भारतीय संसद के पूर्व संयुक्त निदेशक डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र ने डॉ. रेनू यादव को मंच संचालन के लिए आमंत्रित किया। आमंत्रित कवियों में प्रखर कवयित्री और भूतपूर्व प्रवक्ता डॉ. भारती सिंह भी मंच पर उपस्थित थीं।
सर्वप्रथम गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय की छात्रा, युवा कवयित्री सुश्री दीपिका ने दो कविताओं का पाठ किया जिनमें भावों और विचारों की प्रौढ़ता थी और सृजनशीलता की व्यग्रता थी। दीपिका की दूसरी कविता में मृत्यु से न आतंकित होने की निडरता का भाव हृदयस्पर्शी था। प्रकृति की सुरक्षार्थ दीपिका के आह्वान ने श्रोताओं को बख़ूबी आकर्षित किया तथा उपस्थित वरिष्ठ कवियों ने उसे अपने आशीर्वचनों से सराहा तथा उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की। अपनी कविताओं का ओजपूर्ण पाठ किया मनोज द्विवेदी ने, जिन्होंने बीच-बीच में अपनी आशु रचनाओं से माहौल को आद्योपांत जीवंत बनाए रखा। उनकी रचनाओं में हास्य और मनोविनोद के संपुट ने श्रोताओं को पूरी तरह चमत्कृत किया और बाँधे रखा। डॉ. भारती सिंह ने ‘क़लम’, ‘हम क्यों कभी-कभी बर्बर हो जाते हैं’ और ‘मालिनी’ शीर्षक से कविताओं का सस्वर पाठ किया तथा इन कविताओं की पृष्ठभूमि पर भी प्रकाश डाला। ‘तुम्हें नहीं मालूम क़लम में कितनी आग है’, ‘आओ, फिर से पड़ताल करें/हूणों का रक्त तो नहीं दौड़ रहा हममें’ तथा ‘मालिनी आओ/बैठो पास-पास’ जैसी उनकी कविताओं की पंक्तियाँ श्रोताओं के ज़ेहन में देर तक कौंधती रहीं। वैभव वंदन ने नारी की माँ समेत विभिन्न भूमिकाओं को रूपायित करते हुए अपनी गीति-रचनाओं का सुमधुर पाठ किया और श्रोताओं को सम्मोहिनी पाश से बाँधे रखा। ‘धरा जब पीर पीती है तभी तो बीज हँसता है . . . मैं धरती हूँ मेरे क़दमों में ये आकाश झुकता है’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं को सरस भावनाओं से सराबोर कर दिया। तदुपरांत, मोक्षेन्द्र ने कुछ ग़ज़लें सुनाईं। ‘सफ़र में मैं अभी हूँ ठोकरों की बात मत कर/अँधेरे साथ देंगे रोशनी अफ़रात मत कर’ तथा ‘इन बियांबों ने हमें कितना छला है/इनके भीतर शोर का इक जलज़ला है’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं की प्रशंसाएँ बटोरीं। तत्पश्चात्, डॉ. रेनू के कविता-पाठ में माँ (‘माँ ईश्वर नहीं होती’) की अस्मिता को ईश्वर से बिल्कुल अलग स्थापित किया गया और स्त्री के अस्तित्व को नए सिरे से परिभाषित करने की कोशिश की, जिससे श्रोता-दर्शक आश्चर्यचकित हुए। उनकी सुनाई गई अन्य कविताओं ‘स्क्रिजोफेनिया’ तथा ‘बिसुरना’ और ‘भूख भूख होती है’ को तहे-दिल से सराहा गया। ‘वह पत्थर नहीं होती/ईश्वर की तरह/माँ ईश्वर नहीं होती’ एवं ‘भूख की क़ीमत किसी मॉल में बिक/रहे सीलबंद चकमक कंपनी के/नाम से मत आँको/किसी तराज़ू में रखे बटखरे से भी नहीं’ जैसी पंक्तियों ने श्रोताओं को आत्ममंथन करने के लिए विवश कर दिया।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में ख्यात साहित्यकार सुरेंद्र अरोड़ा ने कवियों की रचनाओं की सार्थक मीमांसा की तथा उनमें अंतर्भूत भावों और विचारों पर प्रकाश डाला। उन्होंने युवा कवयित्री दीपिका द्वारा सुनाई गई कविताओं के भाव और शिल्प पर शिद्दत से टिप्पणियाँ कीं। उन्होंने गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय, ग्रेटर नोएडा की छात्राओं-शिखा नागर, भारती भाटी और नेहा समेत दिल्ली विश्वविद्यालय की छात्रा रुनक श्रीवास्तव को साहित्यिक परिप्रेक्ष्य में व्यक्तिगत और सामाजिक उन्नयन के लिए उपयोगी टिप्स भी दिए। सुरेंद्र अरोड़ा ने राष्ट्रवादी और देशभक्ति से ओतप्रोत अपनी कविताएँ सुनाकर श्रोताओं को वर्तमान अराजक स्थितियों से अवगत कराया। उनकी कविताएँ ‘शर्मिंदगी अब भी जारी है’ तथा ‘राम, तुम फिर धरती पर आओ’ ने श्रोताओं को बेहद प्रभावित किया। ‘शर्मिदगी अब भी जारी है/‘बुझा देंगें खेतों की प्यास हम, कहते थे वो’, ‘मानवता पर छाया है संकट/दुष्टों ने तोड़ी हैं मर्यादाएँ/मर्यादा जीवित हो फिर/ वापस आकर तुम संजीवन बन जाओ’ जैसी पंक्तियों ने नकारात्मक विचारों की कलुषित काली काई को भरसक हटाने का प्रयास किया। उन्होंने एक मार्मिक लघुकथा भी सुनाई।
तत्पश्चात्, मंच पर उपस्थित सभी प्रबुद्धजनों ने इस कार्यक्रम के प्रबंधन में आद्योपांत दत्तचित्त निशि श्रीवास्तव के प्रति हियतल से आभार प्रकट किया।
कार्यक्रम समापन करते हुए मोक्षेंद्र ने मंच पर उपस्थित अध्यक्ष सहित प्रतिभागी कवियों और श्रोता-दर्शकों धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने डॉ. रेनू के कुशल मंच-संचालन की सराहना भी की।
आगे पढ़ेंहिन्दी साहित्य में बोलियों का योगदान: युवा उत्कर्ष की संगोष्ठी संपन्न
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की तेरहवीं ऑनलाइन संगोष्ठी 28 अक्तूबर-2023 (शनिवार) संध्या 3:30 बजे से आयोजित की गई। डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। बतौर विशेष अतिथि सुप्रसिद्ध ग़ज़लकार, साहित्यकार श्री प्रवीण प्रणव जी एवं प्रमुख वक्ता के रूप में वरिष्ठ साहित्यकार, समीक्षक श्री अवधेश कुमार सिन्हा जी मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ सुश्री दीपा कृष्णदीप के द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात् अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने सम्माननीय अतिथियों का स्वागत शब्दपुष्पों द्वारा किया एवं परिचय दिया। संस्था का परिचय देते हुए कहा कि संस्था अपने संकल्पित लक्ष्यों के प्रति प्रतिबद्धता के साथ प्रगति की ओर अग्रसर है।
प्रथम सत्र “अनमोल एहसास” और “मन के रंग मित्रों के संग” दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ।
प्रथम सत्र के प्रथम भाग अनमोल अहसास के अंतर्गत प्रमुख वक्ता श्री अवधेश कुमार सिन्हा जी के द्वारा “हिंदी साहित्य में बोलियों का योगदान” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई।
विशिष्ट अतिथि-साहित्यकार प्रवीण प्रणव (सीनियर डायरेक्टर, माइक्रोसॉफ्ट) ने विषय प्रवर्तन करते हुए कहा कि “हिंदी साहित्य में बोलियों के योगदान पर कोई प्रश्नचिन्ह नहीं है, इसके योगदान की हम सब सराहना करते हैं। प्रवीण प्रणव ने अपनी पाँचवीं से दसवीं तक के पाठ्यक्रम में सम्मिलित कविताओं के माध्यम से अवधी, ब्रज भाषा, बुन्देलखंडी, मैथिली और भोजपुरी बोलियों की कविताओं का उल्लेख करते हुए विषय के महत्त्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हिंदी यदि शरीर है तो बोलियाँ इसके आभूषण हैं। बोलियों के बिना हिंदी का सौन्दर्य अधूरा है।”
प्रमुख वक्ता–वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी ने कहा कि “भारत के अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न भाषाएँ और उनकी बोलियाँ व उप-बोलियाँ बोली जाती हैं। हिन्दी प्रदेशों में अपभ्रंश से निकली बोलियों व उप-बोलियों ने हिन्दी साहित्य में मुख्यतः तीन रूपों में महती योगदान दिया है। पहला, स्वयं हिन्दी भाषा के विकास व उसके मानकीकरण में; दूसरा, इन बोलियों में रचित लोक एवं भक्ति साहित्य द्वारा हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में तथा तीसरा, हिन्दी में रचित साहित्य, विशेषकर उपन्यासों एवं कहानियों में आंचलिक बोलियों के रूप में प्रयुक्त होकर। उन्होंने कहा कि जन-भाषा के रूप में उपजी इन बोलियों के सर्जनात्मक प्रयोग से हिन्दी साहित्य में रोचकता, जीवंतता तथा बिंबात्मकता का निर्माण तो हुआ ही है, इससे भाषिक संरचना के नये आयाम भी उद्घाटित हुए हैं, भाषा में सौंदर्यात्मक वृद्धि भी हुई है। वस्तुतः हिन्दी प्रदेशों की बोलियाँ हिन्दी साहित्य की अभिन्न अंग हैं, इसका महत्त्वपूर्ण उपादान हैं।”
तत्पश्चात् मन के रंग मित्रो के संग में सुपरिचित साहित्यकार किरण सिंह जी ने अपना प्रेरक प्रसंग सुनाया। प्रथम बार हैदराबाद आने पर और स्थानीय भाषा का ज्ञान न होने के संघर्ष को उन्होंने साझा किया।
अध्यक्षीय उद्बोधन में सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी ने विषय पर प्रकाश डालते हुए कहा कि “भाषा किसी के हृदय तक जाने का मार्ग है—चाहे वह मौखिक हो, लिखित हो या सांकेतिक हो। भाषा मूल्यों और विचारों की वाहक होती हैं और मानवीय गुणों की अभिव्यक्ति का माध्यम होती है। भाषा और बोली दोनों अलग हैं। किसी भाषा की अनेक बोलियाँ हो सकती हैं जैसे केवल हिंदी की ही सत्रह बोलियाँ है। भाषा की एक ही बोली का उच्चारण स्थान-स्थान पर भिन्न हो जाता है।
बोलियों में साहित्य सृजन के उदाहरण बहुत कम हैं। अवधी में तुलसीदास सृजित रामचरित मानस, जायसी का पद्मावत, ब्रज में सूरदास का सूरसागर, मैथली में विद्यापति के पद, गोरखनाथ की सधुक्कड़ी बोली में गोरख बानी, मीरा के पद आदि साहित्य जैसे अपवाद अवश्य हैं जिनमें रचा गया साहित्य कालजयी है।
बोलियाँ भाषा को सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से समृद्ध करती हैं अतः साहित्य सृजन में उनका महत्त्वपूर्ण योगदान है। शोध के अनुसार भारत की लगभग 239 बोलियाँ समाप्ति की और हैं। स्थायी जीविका की तलाश में गाँव से शहर की ओर पलायन एवं बस जाना भी बोलियों के विलुप्ति का एक प्रमुख कारण है। अतः बोलियों को बचाए रखना जितना समस्त भारतीय भाषाओं के साहित्य के लिए आवश्यक है, उससे भी अधिक समाज के उन बोली समूहों की पहचान को अक्षुण्ण रखना आवश्यक है।”
प्रथम सत्र का संचालन शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका) ने किया।
तत्पश्चात् दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई। उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर ग़ज़ल, गीत, दोहे, मुक्तक, कविता एवं छांदस रचनाओं का काव्य पाठ करके माहौल को बहुत ख़ुशनुमा बना दिया। श्रीमती विनीता शर्मा (उपाध्यक्षा), अवधेश कुमार सिन्हा (परामर्शदाता) डॉ. रमा द्विवेदी, दीपा कृष्णदीप, संजीव चौधरी (जयपुर) प्रवीण प्रणव (परामर्शदाता), डॉ. सुरभि दत्त (संयुक्त सचिव), शिल्पी भटनागर (संगोष्ठी संयोजिका), श्री विजय प्रशांत (राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष, दिल्ली) मोहिनी गुप्ता, किरण सिंह, तृप्ति मिश्रा, सुनीता लुल्ला, रमा गोस्वामी, मल्लिका, ने काव्य पाठ करके सबका मन मोह लिया।
श्री रामकिशोर उपाध्याय जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ में ‘माँ’ पर मार्मिक गीत एवं ग़ज़ल सुनाई तथा सभी रचनाकारों की रचनाओं की मुक्त कंठ से सराहना करते हुए सफल कार्यक्रम की बधाई एवं शुभकामनाएँ प्रेषित कीं। काव्य गोष्ठी का संचालन दीपा कृष्णदीप ने किया एवं सुश्री तृप्ति मिश्रा के आभार प्रदर्शन से कार्यक्रम समाप्त हुआ।
— डॉ. रमा द्विवेदी,
प्रदेश अध्यक्ष, युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
क्षितिज का अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2023
‘लघुकथा में निरंतर होने वाले शोध मील का पत्थर साबित हो रहे हैं’: विकास दवे
क्षितिज संस्था ने स्थापना के चालीस वर्ष पूर्ण कर लिए हैं और संस्था द्वारा 2018 से आरंभ किया गया अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2023 तक अनवरत जारी है।
दिनांक 29 अक्टूबर को आयोजित एक दिवसीय सम्मेलन की अध्यक्षता मध्यप्रदेश साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. विकास दवे ने की। प्रमुख अतिथि साहित्यकार डॉ. जयंत गुप्ता थे जबकि विशिष्ट अतिथि दिल्ली के वरिष्ठ लघुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल तथा सम्मानित अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे।
संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी ने अतिथियों के स्वागत में स्वागत भाषण किया। उन्होंने क्षितिज के द्वारा 40 वर्ष से लघुकथा के विकास के लिए किए जा रहे कार्यों की जानकारी देते हुए समस्त अतिथियों का अभिनंदन किया। कार्यक्रम में देश के विभिन्न हिस्सों से आए लघुकथा लेखकों को विविध सम्मानों से सम्मानित किया गया। श्री उमेश महादोषी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान, श्री सत्यवीर मानव को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान, श्री विजय जोशी को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान तथा श्री पवन जैन एवं श्री मधु जैन को क्षितिज लघुकथा समग्र सम्मान से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त सर्वश्री जयंत गुप्ता, महेंद्र कुमार ठाकुर, आर.एस. माथुर, सुरेश रायकवार, निधि जैन, वर्षा ढोबले को क्षितिज लघुकथा साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। सर्वश्री कुँवर प्रेमील, हनुमान प्रसाद मिश्र, प्रभाकर शर्मा, कर्नल गिरिजेश सक्सेना, अजय वर्मा, राजेंद्र वामन काटदरे, चंद्रेश छतलानी, सीमा व्यास, आशागंगा शिरढोणकर, कोमल वाधवानी को क्षितिज लघुकथा रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। जयपुर से पधारी श्रीमती ज्योत्स्ना सक्सेना को क्षितिज के साथ चरण सिंह अमी फ़ॉउंडेशन के द्वारा कथा सम्मान प्रदान किया गया।
अपने उद्बोधन में बलराम अग्रवाल ने कहा कि, “1983 तक लघुकथा और लघु कहानी के मध्य विवाद था। लघुकथा को पृथक पहचान दिलाने के उद्देश्य से संस्था क्षितिज का गठन किया गया। जिसे चालीस साल पूर्ण हो गए हैं। यह हम सबके लिए गौरव की बात है। पिछले दो तीन दशकों में लघुकथा के लेखन को बहुत गति मिली है। पत्रिकाओं के विशेषांक, विभिन्न मंचों पर प्रतियोगिताएँ इसे आगे बढ़ा रहे हैं।”
जयंत गुप्ता जी ने कहा कि, “मैं जन्म और कर्म से लक्ष्मी पुत्र हूँ। पर मैं सरस्वती का अनन्य साधक हूँ। मैंने पचास की वय तक जो पाया उसके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने के लिए मैंने तीन पुस्तकें तैयार की हैं। अंग्रेज़ी में कहावत है, जीवन चालीसवें साल में आरंभ होता है। इसके अनुसार क्षितिज का वास्तव में अब आरंभ हुआ है। क्षितिज की यात्रा में हम सभी पूर्ण सहयोग देंगे।”
डॉ. विकास दवे ने अपने उद्बोधन में कहा, “क्षितिज का वार्षिक सम्मेलन हम सभी को ऊर्जा से भर देता है। यहाँ लघुकथा का लघुभारत देखने को मिलता है। किसी भी विधा को मान्यता रचनाकार देते हैं, अकादमियाँ नहीं। हम तो रचनाओं और रचनाकारों का सम्मान करते हैं। लघुकथा का अपना स्वरूप है, अपना सौष्ठव है। मैंने अपने जीवन में कविता, कहानी को तो नहीं लघुकथा को संघर्ष करते देखा है। और वर्षों की संघर्ष का परिणाम है कि यदि आज सभी विधाओं में प्रकाशन की प्रतियोगिता हो तो निश्चित रूप से लघुकथा ही अव्वल आएगी। लघुकथा में निरंतर होनेवाले शोध मील का पत्थर साबित हो रहे हैं। साझा संकलन लघुकथा को नई ऊँचाइयाँ दे रहे हैं। लघुकथा बाल साहित्य का भी हिस्सा है। हाल ही में कई लघुकथा संग्रह के अनुवाद भी प्रकाशित हुए हैं। नई शिक्षा नीति में लोक भाषाओं को महत्त्व दिया गया है। लोक भाषाओं में भी लघुकथा के अनुवाद आने चाहिए। रंगकर्मियों ने लघुकथा को मंच प्रदान कर चिरजीवी बना दिया है।”
आयोजन में लघुकथा में प्रयोग कितने सार्थक कितने निरर्थक एवं लघुकथा लेखन का सामाजिक दायित्व इन विषयों पर सार्थक चर्चा दो सत्रों में की गई। श्रीमती कांता राय, ज्योति जैन, सीमा व्यास, अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल, ब्रजेश कानूनगो, पवन शर्मा, नेतराम भारती, पुरुषोत्तम दुबे द्वारा चर्चा सत्रों में बातचीत की गई। इसके अतिरिक्त एक सत्र में लघुकथा पाठ किया गया। विभिन्न सत्रों का संचालन अंतरा करवड़े, यशोधरा भटनागर, रश्मि चौधरी, सपना साहू, निधि जैन, प्रतिभा बर्वे द्वारा किया गया। पथिक ग्रुप के श्री नंदकिशोर बर्वे के निर्देशन में ‘लघुकथा नाट्य छटा’ के रूप में नाटक मंचन का एक कार्यक्रम किया गया जिसमें 24 लघुकथाओं का नाट्य मंचन किया गया। समस्त नाट्य कर्मियों को सूत्रधार के श्री सत्यनारायण व्यास एवं संस्था अध्यक्ष सतीश राठी के साथ सचिव दीपक गिरकर ने सम्मानित किया। आयोजन में सर्वश्री दिलीप जैन, सुरेश रायकवार, बालकृष्ण नीमा, अशोक जी शर्मा, राम मूरत राही, दौलत राम आवतानी, किशन कौशल शर्मा, विश्व बंधु नीमा का भी विशेष सहयोग रहा।
संस्था के सचिव श्री दीपक गिरकर ने अंतिम रूप से आभार माना।
आगे पढ़ेंलंदन में ‘भारोपीय हिंदी महोत्सव-2023’ का रंगारंग आयोजन: डॉ. मनोज मोक्षेंद्र
‘वातायन-यूके’, ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज, यूके हिंदी समिति और वैश्विक हिंदी परिवार के तत्वावधान में दिनांक: 13 से 15 अक्तूबर, 2023 तक आयोजित होने वाला ‘भारोपीय हिंदी महोत्सव’ विदेश में आयोजित होने वाले हिंदी से संबंधित उत्सवों में एक अति महत्त्वपूर्ण आयोजन है तथा इसकी महत्ता अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलनों तथा विश्व हिंदी सम्मेलनों से किसी भी मायने में कमतर नहीं है। इसका एक प्रमुख कारण है, इसमें प्रतिभागिता करने वाले हिंदी के लब्ध-प्रतिष्ठित साहित्यकारों एवं हिंदी को अंतरराष्ट्रीय नभ पर आकाश गंगा की भाँति प्रवाहित करने वाले हिंदी के प्रबुद्धजनों का योगदान। इस इंद्रधनुषीय महोत्सव का आयोजन ऑक्सफ़ोर्ड बिज़नेस कॉलेज-ब्रेंटफोर्ड, लंदन में प्रस्तावित है।
हिंदी महोत्सव की सूत्रधार वर्ष 2004 में स्थापित ‘वातायन-यूके’ की संस्थापक और अध्यक्ष सुश्री दिव्या माथुर हैं जिन्होंने हिंदी से सम्बन्धित इस त्रि-दिवसीय हिंदी महोत्सव को रंगारंग कार्यक्रमों (इवेंट्स) से सज्जित करने का श्लाघ्य प्रयास किया है। ‘वातायन-यूके’ की ऊर्जस्व टीम के जुझारू सदस्य भी अपनी सुप्रतिभ क्षमताओं का स्वयंसेवी आधार पर योगदान करते हुए इसे वैविध्यपूर्ण कलेवर प्रदान कर रहे हैं। उल्लेखनीय है कि हिंदी को विश्वाच्छादित करने के लिए अनेकानेक वैश्विक संस्थाएँ भी इस महत्त्वपूर्ण आयोजन में प्रशंसनीय सहयोग प्रदान कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं में विशेष उल्लेखनीय नाम हैं—हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा, सिंगापुर हिंदी संगम (नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर), इंद्रप्रस्थ महिला महाविद्यालय (दिल्ली विश्वविद्यालय), उपसाला यूनिवर्सिटी-स्वीडेन, नेहरू सेंटर, सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद जयपुर, कृतिक यूके और कीट्स हाउस भवन सेंटर।
दिव्या माथुर इस महोत्सव को बीज-शब्द ‘नए क्षितिज, नए आयाम’ से अभिमंत्रित करते हुए अपने इस संकल्प के प्रति आश्वस्त हैं कि आने वाले कुछ ही दशकों में समूचा विश्व हिंदी भाषा और साहित्य के ज़रिए एक जीवंत सांस्कृतिक उद्बोधन से अभिसिंचित होगा और भारत की साहित्यिक-सांस्कृतिक चेतना सार्वत्रिक आधार पर सकारात्मक प्रेरणा का स्रोत बनेगी। यह कहना भी अतिरंजित न होगा कि जहाँ तक हिंदी भाषा का सम्बन्ध है, इसके लिए यह समय अत्यंत संक्रमणशील दौर के रूप में रेखांकित किया जा रहा है क्योंकि हिंदी साहित्य के व्यापीकरण में प्रवासी साहित्यकारों की सृजनशीलता बड़े ज़ोर-शोर से अपनी दख़ल दर्ज़ कर रही है जो हिंदी के भविष्य के लिए एक अच्छा शकुन है।
संरक्षक बैरोनेस फैदर के सान्निध्य में तथा संस्थापक सदस्यों नामत: सत्येंद्र श्रीवास्तव, अनिल शर्मा जोशी, डॉ. पद्मेश गुप्त एवं मोहन राणा के विगत में अथक प्रयासों से प्रतिफलित यह वैश्विक हिंदी महोत्सव-2023 न केवल भारत की साहित्यिक गलियारों में गरमागरम चर्चाओं से सराबोर होगा, बल्कि इसके माध्यम से हमारी हिंदी सर्वतोन्मुखी नवोन्मेष के साथ वैश्विक मंच पर अवतरित भी होगी।
शुक्रवार 13 अक्तूबर, 2023 को महोत्सव के प्रथम दिवस पर, भारत सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री माननीय रमेश पोखरियाल उद्घाटन समारोह की अध्यक्षता करेंगे जबकि इसके मुख्य अतिथि होंगे श्री अमीश त्रिपाठी जो नेहरू सेंटर (लंदन) में भारतीय उच्चायोग के निदेशक हैं। यह कार्यक्रम लंदन के समयानुसार सायं 5 बजे से आरंभ होकर इसके समापन तक अविराम चलता रहेगा। जाने-माने हिंदी भाषा के प्रचारक और साहित्यकार तथा वैश्विक हिंदी परिवार के अध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी बीज वक्तव्य देंगे। लंदन उच्चायोग में कार्यरत हिंदी एवं संस्कृति अधिकारी डॉ. नंदिता साहू सरस्वती-वंदना प्रस्तुत करेंगी जबकि आलोक मेहता, डॉ. सच्चिदानंद जोशी, अरुण माहेश्वरी डॉ. अल्पना मिश्र, नीलिमा डालमिया आधार और प्रत्यक्षा सिन्हा के महती सान्निध्य में, ‘वातायन-यूके’ की अध्यक्ष मीरा कौशिक ओबीई अतिथियों की अगुवाई करेंगी और स्वागत-भाषण देंगी। प्रवासी साहित्यकार डॉ. पद्मेश गुप्त प्रथम सत्र के समारोह का संचालन अपने चिर-परिचित आत्मीय अंदाज़ में करेंगे। निःसंदेह, कार्यक्रम इतना भव्य होगा कि दुनियाभर की निग़ाहें आद्योपांत इस पर टिकी रहेंगी।
प्रथम दिवसीय उद्घाटन समारोह का मुख्य आकर्षण होगा इसके दूसरे सत्र में ‘वातायन-यूके’ के दो सम्मानों का प्रस्तुतीकरण, जिन्हें वार्षिक आधार पर हिंदी साहित्य के दो जाने-माने साहित्यकारों को दिया जाता है। ये दोनों पुरस्कार क्रमश: श्री संतोष चौबे और प्रोफ़ेसर अनामिका को दिए जाएँगे। दोनों विशिष्ट शख़्सियत हिंदी साहित्य के देदीप्यमान सितारे हैं जिनके साहित्यिक अवदान के हम सभी ऋणी हैं। इसके अतिरिक्त, प्रोफ़ेसर हाइंस वरनर वेस्लर और प्रोफ़ेसर रेखा सेठी को भी प्रशस्ति-पत्र देते हुए उनके हिन्दी साहित्य में विशिष्ट योगदान के लिए सम्मानित किया जाएगा। दूसरे सत्र का संचालन लंदन की कवयित्री आस्था देव करेंगी। इस कार्यक्रम में सक्रिय सहभागिता होगी—डॉ. जवाहर कर्णावत, शिखा वार्ष्णेय, मनीषा कुलश्रेष्ठ, डॉ. निखिल कौशिक, प्रो. राजेश कुमार, ऋचा जैन, तितिक्षा शाह, डॉ. नरेश शर्मा जैसे हिंदी साहित्य के चहेतों की।
दूसरे दिन अर्थात् शनिवार 14 अक्तूबर, 2023 को प्रथम सत्र शिक्षण को समर्पित होगा तथा इसे एक हिंदी कार्यशाला के रूप में आयोजित किया जाएगा। इस शैक्षणिक सत्र की अध्यक्षता करेंगे डॉ. सच्चिदानंद जोशी जबकि मुख्य अतिथि होगी डॉ. रमा पांडे। सत्र-समन्वयक ऋचा जैन के संचालन में डॉ. अभय कुमार, डॉ. इला कुमार, मारिया पूरी, डॉ. पूनम कुमारी सिंह, डॉ. शिव कुमार सिंह तथा डॉ. यूरी बोत्वींकिन सांस्कृतिक और व्यावसायिक क्षेत्रों में अनुवाद विषय पर अपने-अपने बौद्धिक वक्तव्य-मंतव्य प्रस्तुत करेंगे। तदनंतर, डॉ. रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ की गरिमामयी अध्यक्षता में ‘हिंदी शिक्षण: चुनौतियाँ और संभावनाएँ’ विषय पर चर्चा होगी जिसमें प्रो. निरंजन कुमार मुख्य अतिथि होंगे जबकि संतोष चौबे के सान्निध्य में डॉ. कुसुम नैपसिक, डॉ. ज्योति शर्मा, डॉ. संध्या सिंह, सर्वेंद्र, विक्रम बहादुर सिंह, सुश्री पूजा अनिल, शिवानी भारद्वाज, डॉ. येवगेनी रुतोव और डॉ. मोनिका ब्रोवाचिक इस ज़रूरी विषय पर बौद्धिक चर्चा में सहभगिता करेंगी। इस सत्र का समन्वयन करेंगी—शिखा वार्ष्णेय।
दिनांक 14 अक्तूबर, 2023 के व्यस्त कार्यक्रम में कम-से-कम 8 सत्र प्रस्तावित हैं। इसके तीसरे सत्र में, डॉ. सत्यकेतु सांकृत की अध्यक्षता और तेजेंद्र शर्मा के मुख्य आतिथ्य एवं अनिल शर्मा जोशी के सान्निध्य में बहु-चर्चित प्रवासी लेखन पर परिचर्चा होगी जिसमें प्रतिभागी होंगे—अर्चना पेन्यूली, राकेश पांडे, शैल अग्रवाल, कादंबरी मेहरा और जय वर्मा। एक सत्र ‘वैश्वीकरण और हिंदी भाषा’ के लिए भी आवंटित है। आलोक मेहता की अध्यक्षता तथा एल.पी. पंत के मुख्य आतिथ्य और डॉ. जवाहर कर्णावट के सान्निध्य में, प्रो. हाइंस वरनर वेस्लर, डॉ. जयशंकर यादव, डॉ. शैलजा सक्सेना तथा तातियाना ओरांस्किया प्रतिभागी वक्ता होंगे। चौथा सत्र मध्यान्ह पश्चात 3। 00 बजे से प्रारंभ होगा जिसमें ‘साहित्य और सिनेमा’ विषय पर श्री ललित मोहन जोशी, डॉ. निखिल कौशिक, डॉ. गोकुल क्षीरसागर तथा डॉ. अनुपमा श्रीवास्तव अपने-अपने वक्तव्य देंगे जबकि इस संगोष्ठी-सत्र की अध्यक्षता मीरा मिश्रा कौशिक करेंगी। मुख्य अतिथि के आसन पर संजीव पालीवाल विराजमान होंगे और हमें रवि शर्मा का सान्निध्य प्राप्त होगा। सुप्रसिद्ध कवयित्री तिथि दानी समन्वयक की भूमिका में होगी।
इस महोत्सव के सभी सत्र हिंदी भाषा के उन्नयन और हिंदी साहित्य की दिशा तय करने के लिए अभिकल्पित हैं। इसी क्रम में, एक आवश्यक सत्र यूरोप में हिंदी शिक्षण विषय पर होगा जिसे ब्रिटेन की हिंदी समिति द्वारा प्रस्तुत किया जाएगा। इसके अध्यक्ष होंगे, प्रो. हाइंस वरनर वेस्लर तथा मुख्य अतिथि होंगी दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो. रेखा सेठी। डॉ. पद्मेश गुप्त के सान्निध्य में, डॉ. ऐश्वर्यज कुमार, शशि वालिया तथा अंजना उप्पल परिचर्चा में भागीदारी करेंगी। हिंदी भाषा के भविष्य पर चिंतन करने के लिए प्रो. हरमोहिंदर सिंह की अध्यक्षता और डॉ. रियाज़-उल-अंसारी के मुख्य आतिथ्य एवं डॉ. एम ऐ नंदाकुमारा के सान्निध्य में, जिस विषय पर डॉ. गायत्री मिश्रा, प्रो. प्रतिभा मुदलियार, डॉ. वानिश्री बग्गी और प्रो. बलराम धापसे चर्चा करेंगे, वह विषय है—‘भारतीय भाषाओं की एकात्मकता’। इस सत्र की समन्वयक होगी डॉ. रागसुधा विनजामूरी।
भारोपीय हिंदी महोत्सव के त्रि-दिवसीय आयोजन में दूसरा दिन अत्यधिक व्यस्त होगा। लंदन के समयानुसार सायं 4:00 जो सत्र आयोज्य है, उसमें ‘हिंदी भाषा और साहित्य: भविष्य की रूपरेखा’ विषय पर बौद्धिक चिंतन-मनन होगा। अध्यक्ष डॉ. सच्चिदानंद जोशी और मुख्य अतिथि डॉ. नीलम चौहान की उपस्थिति में डॉ. अल्पना मिश्र, डॉ. रेखा सेठी, नीलिमा डालमिया आधार, प्रत्यक्षा सिन्हा और मनीषा कुलश्रेष्ठ, अरुण माहेश्वरी के सान्निध्य में वक्तव्य देंगी। इस संगोष्ठी की समन्वयक अंतरीपा ठाकुर होगी। दिनांक 14 अक्तूबर की संध्या एक कवि सम्मेलन को समर्पित होगी जिसमें अनिल शर्मा जोशी, डॉ. रमा पांडे, डॉ. नंदिता साहू, उषा राजे सक्सेना, मोहन राणा, शेफाली फ्रॉस्ट, डॉ. पद्मेश गुप्त, डॉ. निखिल कौशिक, शिखा वार्ष्णेय, तिथि दानी, ऋचा जैन, ज्ञान शर्मा, आस्था देव, मधुरेश मिश्रा, पवन धनौरी आदि समेत कवि-वृन्द शिरकत करेंगे। इस कार्यक्रम के समन्वयक होंगे लंदन के ही प्रवासी कवि आशीष मिश्रा।
भारोपीय हिंदी महोत्सव के तीसरे दिन के समापन समारोह में भी उल्लेखनीय गतिविधियाँ निष्पादित की जाएँगी। विभिन्न सत्रों से सज्जित इस शृंखला को ‘कलमोत्सव’ की संज्ञा दी गई है। इसमें ‘बेहतर कहानी की भूमि: अपनी भाषा अपने लोग’, ‘इतिहास रचते शब्द’, ‘कविता, उपनिवेशकरण, कूटनीति और स्त्री-कथाएँ’, ‘सत्य और कल्पना के पन्ने’ तथा ‘बदलती लहरें: नारीवाद का विकसित परिदृश्य’ जैसे ज्वलंत विषयों पर सार्थक संवाद होंगे जिनमें प्रबुद्ध संवादकार प्रतिभागिता करेंगे। ‘कलमोत्सव’ का समापन डोना गांगुली द्वारा एक सांस्कृतिक प्रस्तुति से होगा। डॉ. पद्मेश गुप्त द्वारा समापन समारोह में अध्यापकों, स्वयंसेवकों, भाषा-मित्रों; प्रबुद्ध वक्ताओं और संवादकारों तथा प्रतिभागियों; ऑनलाइन जुड़े श्रोता-दर्शकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया जाएगा।
इस प्रकार वर्ष 2023 का अक्तूबर माह हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट महीना के रूप में दर्ज किया जाएगा। बेशक, लंदन में आयोजित भारोपीय हिंदी महोत्सव को, हिंदी साहित्य के इतिहास में समय-समय पर एक मील के पत्थर के रूप में उद्धृत किया जाएगा।
आगे पढ़ेंएक हिंदी दिवस ऐसा भी
हिन्दी दिवस मंच संचालन डॉ. नर नारायण'शास्त्री'ने किया
ऐसा बहुत कम होता है कि कोई संस्था अपना उत्सव देश, समाज और मातृभाषा से जुड़े दिवस विशेष पर ही मनाए और अपने इस उत्सव को हिंदी के साधक-आराधक को समर्पित कर दे। 137 वर्ष पुराने कर्नलगंज इंटर कॉलेज प्रयागराज ने हिंदी दिवस पर हाई स्कूल की मान्यता मिलने की 75वीं वर्षगाँठ हिंदी दिवस पर मनाई। अपने इस उत्सव को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी की स्मृतियों पर केंद्रित करते हुए अपने स्कूल और हिंदी का उत्सव साथ-साथ मनाया।
इसके सूत्रधार बने इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर महेश चंद्र चट्टोपाध्याय। वह 33 वर्षों से कर्नलगंज इंटर कॉलेज के प्रबंधक भी हैं। श्री चट्टोपाध्याय के पिता संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे। उनके बाबा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथी। सुभाष चंद्र बोस के हाथ की लिखी है चिट्ठी आज भी उनके परिवार की ख़ास धरोहर है।
इंडियन प्रेस के संस्थापक और सरस्वती मासिक पत्रिका के प्रकाशक बाबू चिंतामणि घोष के वंशज श्री सुप्रतीक घोष और श्री अरिंदम घोष, सरस्वती के संपादक रहे पंडित देवीदत्त शुक्ल के वंशज श्री व्रतशील शर्मा और ठाकुर श्रीनाथ सिंह के वंशज श्री योगेंद्र सिंह की उपस्थिति आयोजन की सार्थकता में चार चाँद लगाने वाली रही।
आज के इस आयोजन में आचार्य जी शिद्दत से याद किए गए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफ़ेसर राजेंद्र कुमार और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व प्रोफ़ेसर अवधेश प्रधान के विद्वान वक्तव्य ने हिंदी नवजागरण को याद करते हुए आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के योगदान को विस्तार से प्रस्तुत किया। केंद्रीय हिंदी संस्थान के हिंदी के प्रोफ़ेसर रहे प्रोफ़ेसर देवेंद्र शुक्ल और कवयित्री एवं समीक्षक श्रीमती आरती स्मित और श्रीमती सरोज सिंह ने भी उन परतों पर जमी धूल उठाई जिनको पढ़ और सुनकर केवल हिंदी समाज ही नहीं हर भारतीय भाषा भाषी गर्व की अनुभूति करता है। चलने को प्रेरित होता है। नया इतिहास गढ़ने का संकल्प लेता है।
आयोजन में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार रह चुके पूर्व आईपीएस अधिकारी शांतनु मुखर्जी ने अपनी नौकरी से जुड़े क़िस्से के उसे हिस्से को सुनाकर हिंदी की महत्ता को रेखांकित किया जिसने उनका भारतीय पुलिस सेवा में जाने का रास्ता साफ़ किया। उन्होंने बताया कि इंटरव्यू के दौरान बांग्ला भाषा होने की वजह से उनसे टैगोर की गीतावली के सम्बन्ध में पूछा गया। वह कुछ नहीं बता पाए लेकिन असफल होने की उसे घड़ी में हिंदी ने उन्हें सहारा भी दिया और ताक़त भी। हिंदी दिवस पर ऐसे विद्वानों को सुनना और उनके साथ मंच साझा करना हम जैसे अकिंचनों का गौरव बढ़ाने वाला ही रहा।
आचार्य द्विवेदी की परंपरा का आंशिक पालन
जानने वाले जानते हैं कि 1933 में इलाहाबाद में आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के सम्मान में एक बड़ा उत्सव मनाया गया था। इस उत्सव के मौक़े पर आचार्य द्विवेदी ने आयोजक संस्था और उसके पदाधिकारी से ‘मातृभाषा की महत्ता’ विषय पर एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित करने का अनुरोध किया था। अनुरोध को स्वीकार करते हुए इसी विषय पर कराई गई निबंध प्रतियोगिता में तब सैयद अमीर अली मीर ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था। आचार्य द्विवेदी ने निबंध प्रतियोगिता के इन विजेता महोदय को अपने पास से ₹100 की धनराशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की थी। इस धन राशि को अगर आज से जोड़ तो यह क़रीब 75 हज़ार रुपए के आसपास ज़रूर जाएगी। आचार्य द्विवेदी का मातृभाषा के प्रेम का यह एक उदाहरण भर है।
कर्नलगंज इंटर कॉलेज की प्रबंध समिति ने हिंदी दिवस पर अपने स्कूल को की मान्यता मिलने की हीरक जयंती पर आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति व्याख्यान की रूपरेखा तैयार की थी। स्कूल के प्रबंधक प्रोफ़ेसर महेश चंद्र चट्टोपाध्याय जी से आचार्य द्विवेदी की तरह का ही कुछ निवेदन हमने भी किया। अनुरोध स्वीकार करते हुए श्री चट्टोपाध्याय जी ने आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के जीवन वृत्त पर निबंध प्रतियोगिता 9 सितंबर को संपन्न कराई। इसमें प्रयागराज शहर के 22 स्कूलों के 107 छात्र-छात्राओं ने जूनियर और सीनियर वर्ग में प्रतिभाग किया।
जूनियर वर्ग में प्रथम आशीष कुमार (ज्वाला देवी सरस्वती विद्या मंदिर इंटर कॉलेज प्रयागराज), सृष्टि सिंह (क्रॉस्थवेट गर्ल्स इंटर) द्वितीय, नितिन मिश्रा एवं अनुराग मिश्रा (ज्वाला देवी विद्या मंदिर इंटर कॉलेज) संयुक्त रूप से तृतीय रहे और अनुराग मौर्य (कर्नलगंज इंटर कॉलेज) सांत्वना पुरस्कार के हक़दार बने। सीनियर वर्ग में कुमारी शिवानी पटेल (जगत तारन इंटर कॉलेज) प्रथम, अनिरुद्ध वाजपेई (ज्वाला देवी विद्या मंदिर इंटर कॉलेज) द्वितीय, मान्या कुशवाहा (महिला सेवा सदन इंटर कॉलेज) तृतीय और सर्वेश यादव (कर्नलगंज इंटर कॉलेज) सांत्वना पुरस्कार विजेता बने।
आचार्य द्विवेदी की परंपरा का आंशिक पालन करते हुए जूनियर एवं सीनियर वर्ग में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले आशीष कुमार एवं शिवानी पटेल को आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी स्मृति न्यास की ओर से 21-2100 रुपए के नक़द पुरस्कार के साथ ही लेखक विनोद तिवारी के संपादन में लोग भारतीय प्रकाशन प्रयागराज से प्रकाशित एवं इंडियन प्रेस प्रयागराज से मुद्रित ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के श्रेष्ठ निबंध’ नामक पुस्तक और 'आचार्य पथ' देकर सम्मानित किया गया।
—गौरव अवस्थी
रायबरेली
वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में हुआ अभिव्यक्ति का आयोजन
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा ‘अभिव्यक्ति’ का आयोजन देवेंद्र नगर स्थित वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में किया गया।
इस अवसर पर बाल रचनाकारों ने चित्रकला, कविता, कहानी एवं निबंध के माध्यम से अपने विचारों को अभिव्यक्त किया।
बाल रचनाकारों ने मेरा प्यारा त्योहार, हँसते गाते बच्चे, परियों की दुनिया, मेरा प्रिय कार्टून, बच्चे और खेल के मैदान, बस्ता और बच्चे जैसे विषयों पर चित्रकला एवं निबंधों बनाए। कविताओं में बच्चों ने दी गईं दो लाइन को आगे बढ़ाते हुए अपने मन से कविताओं की रचना की। बाल रचनाकारों ने दादी और चुनमुन, रवि सर की डायरी, टुक्कू जैसे विषयों पर कहानी की रचना की।
विद्यालय की प्रधानाचार्या पूनम भारद्वाज ने कहा कि सभी सहभागियों ने उत्साह के साथ विविध विधाओं में सहभाग किया। अपने मन को शब्दों में पिरोना कठिन कार्य है। चित्रकला में रंगों से और लेखन विधाओं में शब्दों से बच्चों ने सभी को प्रभावित किया है। अभिनव बालमन द्वारा दिया गया यह अवसर बच्चों में रचनात्मकता को बढ़ाएगा।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि सभी बाल रचनाकारों ने बहुत सुंदर रचनाएँ बनाई हैं। सभी उत्कृष्ट बाल रचनाकारों की रचनाएँ प्रकाशित अभिनव बालमन में प्रकाशित की जायेंगी जिसको देखकर सभी में और अधिक आत्मविश्वास बढ़ेगा।
अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने अभी बाल रचनाकारों को उनके प्रयास के लिए बधाई दी।
इस अवसर पर विद्यालय की शिक्षिका प्रीती गुप्ता, आँचल सक्सेना, वंशिका जैन, रिंकी, अंजली, शिवानी, नीता, खेमेश्वरी, नीलम, सपना मौजूद रहीं।
आगे पढ़ेंग़ज़लकार अशोक ‘अंजुम’ की पुस्तक का लोकार्पण
“मैं रहूँ या ना रहूँ मेरा कहाँ ज़िन्दा रहे”
अलीगढ़– 9 सितंबर 23, उत्तर प्रदेश साहित्य सभा, लखनऊ तथा शिखर साहित्यिक संस्था, अलीगढ़ के संयुक्त तत्वावधान में अशोक अंजुम की 101 चुनिंदा की ताज़ा ग़ज़लों की किताब “ग़ज़लकार अशोक अंजुम” (संपादक: श्री बालस्वरूप राही) का लोकार्पण समारोह संत फिदेलिस स्कूल, अलीगढ़ के सभागार में फ़ादर रॉबर्ट वर्गीस के संयोजन में संपन्न हुआ। कार्यक्रम का संचालन सुधांशु गोस्वामी ने किया।
कार्यक्रम में पूज्य संत मुरारी बापू, बॉलीवुड के बेहद चर्चित गीतकार-संवाद लेखक मनोज मुंतशिर, वरिष्ठ साहित्यकार तथा ज्ञानपीठ के पूर्व सचिव श्री बालस्वरूप राही, तथा प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. वेदप्रकाश अमिताभ ने वीडियो के माध्यम से पुस्तक पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
जितेंद्र कुमार ने अशोक अंजुम के ग़ज़ल संग्रह से दो ग़ज़लों की संगीतमय प्रस्तुति दी।
सर्वप्रथम भारती शर्मा द्वारा माँ शारदे की वंदना प्रस्तुत कर कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया और अपने वक्तव्य में अशोक अंजुम को उनकी नई पुस्तक के लिए बधाई दी। कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. प्रेम कुमार ने कहा कि “अशोक अंजुम साहित्य का आकाश हैं और उनकी यह पुस्तक साहित्य के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगी।”
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि प्रो. चंद्रशेखर (कुलपति, राजा महेंद्र प्रताप विश्वविद्यालय, अलीगढ़) ने अशोक अंजुम को बधाई देते हुए कहा कि, “अशोक अंजुम की पुस्तक की हरेक ग़ज़ल दिल को छू लेने वाली है।”
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शंभुनाथ तिवारी ने कहा कि, “अशोक अंजुम शब्दों की तपिश भली-भाँति जानते हैं इसीलिए उनके लेखन में शब्दों का अद्भुत प्रबंधन दिखाई देता है उनकी यह पुस्तक इस बात का साक्षात् प्रमाण है।”
फ़ादर रॉबर्ट वर्गीस ने अशोक अंजुम को बधाई देते हुए कहा, “अशोक अंजुम के लेखन में एक अनुपम संतुलन देखने को मिलता है जिसकी वज़ह से उनका लेखन और अधिक प्रभावी होता है और जन सामान्य के दिल ओ दिमाग़ को छूता है।”
‘सर’ पर वरिष्ठ कवि कुमार अतुल ने अशोक अंजुम की ग़ज़लों पर बोलने के साथ-साथ उनके एक कई दोहे सुनाते हुए कहा कि “अशोक अंजुम चाहे किसी भी विधा में लिखें वे लोगों के दिलों तक अपने साहित्य के द्वारा अपनी पहुँच बना लेते हैं।”
ओजस्वी कवि डॉ. हरीश बेताब ने कहा, “अशोक अंजुम विभिन्न विधाओं में उस विधा के होकर अपनी क़लम चलाते हैं जैसा अन्यत्र दुर्लभ दिखाई देता है।”
प्रो. फे.आर.आर. आज़ाद ने कहा कि “अशोक अंजुम के घर जाकर देखिए तो ऐसा लगता है जैसे माँ सरस्वती के मंदिर में आ गए हैं।”
इस अवसर पर अशोक अंजुम ने सबका आभार व्यक्त करते हुए अपनी कई ग़ज़लें सुनाईं:
“ज़िन्दगी का ज़िन्दगी से वास्ता ज़िंदा रहे
हम रहें जब तक हमारा हौसला ज़िंदा रहे
मेरी कविता मेरे दोहे गीत मेरे और ग़ज़ल
मैं रहूँ या ना रहूँ मेरा कहा ज़िंदा रहे।”
कार्यक्रम में प्रेम किशोर पटाखा ने भी अशोक अंजुम को शुभकामनाएँ एवं बधाई प्रेषित की। कार्यक्रम में डॉ. सुदर्शन तोमर, डॉ. मधुसूदन शर्मा, डॉ. शंभुदयाल रावत, योगेश सेंगर, पंकज भारद्वाज, अमिताभ शर्मा, टॉम मैथ्यू, विद्यार्णव शर्मा, पूनम शर्मा, नसीर नादान, अरविंद पंडित, शकेब जलाली, अज़ीज़ अहमद आदि शताधिक विद्वान उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंयुवा लेखक बिश्नोई की पुस्तक ‘आओ चलें उन राहों पर’ का उपमुख्यमंत्री चौटाला ने किया विमोचन
सांस्कृतिक साहित्य को सँजोए रखने में लेखकों की है अहम भूमिका-दुष्यंत चौटाला
हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने हिंदी साहित्य को सँजोए रखने में लेखकों की अहम भूमिका बताते हुए कहा कि लेखकों की लेखनी से ही साहित्य का प्रचार और प्रसार हो सकता है। उन्होंने यह बात हिंदी साहित्य के युवा लेखक विकास बिश्नोई के द्वारा बाल कहानी संग्रह के अंतर्गत लिखित पुस्तक ‘आओ चलें उन राहों पर’ का विमोचन करते हुए कही।
उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने विकास को उज्ज्वल भविष्य की शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि विकास जैसे प्रतिभाशाली युवा लेखक समाज में सभी के लिये प्रेरणादायक है क्योंकि आधुनिकता के इस युग में हिंदी साहित्य की गरिमा को बचाये रखने के लिए नई-नई चीज़ों का प्रकाशन बहुत ज़रूरी है। उन्होंने कहा कि युवा लेखक विकास के द्वारा लिखे गए ये कहानी संग्रह निश्चित ही समाज और बाल वर्ग को एक नई प्रेरणा देगा।
इस अवसर पर युवा लेखक विकास बिश्नोई ने उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला का उनकी पुस्तक के प्रति रुचि दिखाने व उनका प्रोत्साहन करने के लिये आभार व्यक्त करते हुए कहा कि उनके इस कहानी संग्रह का प्रकाशन दिल्ली के शब्दाहुति प्रकाशन द्वारा अमृत महोत्सव योजना के अंतर्गत निशुल्क किया गया है। संग्रह में बाल वर्ग में देशभक्ति की भावना पैदा करने के साथ साथ मानवीय मूल्यों और संवेदनाओं से प्रेरित 35 से ज़्यादा कहानियाँ है।
इस अवसर पर जेजेपी प्रदेश प्रवक्ता एडवोकेट मनदीप बिश्नोई, जांभाणी साहित्य अकादमी के सचिव पृथ्वी सिंह बैनीवाल, शिक्षाविद डॉ अजीत सिंह उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंअभिमन बालमन द्वारा ‘सृजनोत्सव 2023’ का आयोजन 25 मई से
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा वार्षिक रचनात्मक कार्यशाला ‘सृजनोत्सव 2023’ का आयोजन किया जा रहा है।
कार्यशाला में कविता, कहानी, चित्रकला, क्राफ़्ट एवं क्ले-वर्क में बाल रचनाकारों को इन कलाओं के विशेषज्ञों द्वारा मार्गदर्शन प्रदान किया जाएगा।
अभिनव बालमन द्वारा वर्ष 2009 से इस कार्यशाला का आयोजन किया जाता रहा है जिसमें अलीगढ़ ही नहीं पूरे देश से विभिन्न विधाओं के संदर्भदाता के रूप में मार्गदर्शक आते रहे हैं।
कार्यशाला में बाल रचनाकार स्वयं की कहानी एवं कविता रचना सीखेंगे। उन्हें चित्रकारी, क्राफ़्ट और क्ले-वर्क में सृजन के लिए रचनात्मक वातावरण प्रदान किया जाएगा जिससे वे इन कलाओं में और निखार ला सकेंगे।
कार्यशाला का शुल्क 100 रुपए है जिसमेंं बच्चों को सभी आवश्यक सामान्य जलपान की व्यवस्था के साथ पुरस्कार और उपहार भी प्रदान किए जायेंगे।
कार्यशाला में सहभागिता हेतु सासनी गेट स्थित एस ए बुक स्टेशनर्स, रामघाट रोड स्थित कैपिटल स्टेशनर्स, दयानंद कनफेक्शनरी, पला रोड, के पी इंटर कॉलेज के सामने निधि मेडिकल स्टोर से फ़ॉर्म प्राप्त किए जा सकते हैं।
आगे पढ़ेंसाहित्यकार सुशील शर्मा को गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर स्मृति सम्मान
गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर की जयंती पर ऋषि वैदिक साहित्य पुस्तकालय आगरा द्वारा नगर के वरिष्ठ साहित्यकार सुशील शर्मा को हिंदी साहित्य, संस्कृति और शिक्षा में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिए ‘गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर स्मृति सम्मान’ से सम्मानित किया गया। ज्ञातव्य हो कि वरिष्ठ साहित्यकार सुशील शर्मा की 20 साहित्यिक कृतियाँ प्रकाशित हो चुकीं है एवम् शिक्षा में उन्हें राज्यपाल सम्मान से सम्मानित किया गया है।
आगे पढ़ेंसंस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित माँ पर लघुकथा गोष्ठी
हर माँ का एक धर्म होता है और हर धर्म में माँ एक होती है—सूर्यकांत नागर
नगर की साहित्यिक संस्था क्षितिज के द्वारा आयोजित माँ पर लघुकथा पाठ के आयोजन में अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार सूर्यकांत नागर ने कहा कि, “स्त्री का हर रूप ममतामयी माँ का होता है। माँ का प्यार निर्ब्याज, निःस्वार्थ और तर्कातीत होता है। माँ बदले में कुछ नहीं चाहती उसका प्यार सच्चा होता है। वेदव्यास ने कहा है कि करुणा, दया, प्रेम, त्याग और सहिष्णुता एक ही स्थान पर देखना है तो माँ के हृदय में झाँको। माँ का आँचल कितना ही मैला हो संतान को उसमें प्यार और अपनत्व की गंध महसूस होती है। दुनिया की हर माँ का एक ही धर्म होता है और दुनिया के प्रत्येक धर्म में एक ही माँ होती है।”
मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ उपन्यासकार अश्विनी कुमार दुबे ने कहा कि, “माँ का स्थान जीवन में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण है। वह जननी है, उससे ही हमारे जीवन का विकास हुआ है। इस प्रकार उसके उपकार कोई नहीं भुला सकता। साहित्य में एवं अन्य कलाओं में माँ की महिमा का विस्तार पूर्वक वर्णन हुआ है। इधर लघुकथाओं में हमारे कथाकारों ने माँ को आदर पूर्वक याद किया है। माँ पर जितना भी लिखा जाए, वह कम है और माँ से संबंधित हर व्यक्ति के अनुभव अलग-अलग हैं, विशेष हैं, जिनकी अभिव्यक्ति उन्होंने आज पढ़ी गई लघुकथाओं में की है। इस प्रकार माँ की महिमा का वर्णन लघुकथाओं में हमें विस्तार से देखने को मिलता है। इन लघुकथाओं में प्रेम और करुणा का स्वर विद्यमान है।”
आयोजन में सर्वश्री: नंदकिशोर बर्वे, आर एस माथुर, किशनलाल शर्मा, बृजेश कानूनगो, ज्योति सिंह, राम मूरत राही, पुरुषोत्तम दुबे, दीपक गिरकर, सतीश राठी, रामचंद्र धर्मदासानी, बालकृष्ण नीमा, ज्योति जैन, अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल, चेतना भाटी चंद्रा सायता, वर्षा ढोबले, सुषमा शर्मा, विद्यावती पाराशर के द्वारा लघुकथा का पाठ किया गया।
संस्था अध्यक्ष, सतीश राठी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। आयोजन का संचालन सुधा गाडगिल ने किया तथा आभार संस्था के सचिव, दीपक गिरकर ने माना।
आगे पढ़ेंउत्कृष्ट शिक्षण के लिए हर्षित गुप्ता हुए सम्मानित
बरेली: शनिवार 29 अप्रैल 2023 को बीआईयू कॉलेज ऑफ़ ह्यूमनिटीज़ एण्ड जर्नलिज़्म एवं बीआईयू कॉलेज ऑफ़ मैनेजमेंट (बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी) में संयुक्त रूप से ‘सम्मान समारोह’ का आयोजन किया गया, जिसमें सहयोगी शिक्षक के रूप में उत्कृष्ट सेवाएँ प्रदान करने हेतु हर्षित गुप्ता को प्रशस्ति-पत्र एवं क़लम प्रदान कर सम्मानित किया गया।
इस कार्यक्रम में माँ सरस्वती को नमन करते हुए प्राचार्य डॉ. अवनीश सिंह चौहान ने कहा, “हर्षित जी बहुत ही उदार एवं सरल हृदय के व्यक्ति हैं। पढ़ने-पढ़ाने में सदैव रुचि लेते हैं। शिक्षण की कला में निष्णात हैं, सेवाभावी हैं।” कार्यकर्म के मुख्य अतिथि उप-कुलसचिव संदीप शर्मा ने कहा, “हर्षित जी के साथ काम करने का आनंद ही कुछ और है।” विशिष्ट अतिथि अनुभाग अधिकारी प्रदीप त्रिपाठी ने कहा, “हर्षित जी एक व्यवहार-कुशल व्यक्ति हैं।”
इस अवसर पर बरषानी गुप्ता, युसरा जैदी, वंशिका पटेल, गरिमा वर्मा, संस्कृति द्विवेदी, शिफा इंतज़ार, विष्णु गुप्ता, प्रियांशी गुप्ता, अक्षिता पाण्डेय, निमरा खान आदि विद्यार्थियों ने भी हर्षित सर के साथ फोटो खिचवाकर अपनी प्रसन्नता व्यक्त की। संस्थान के सहायक आचार्या शिवानी सक्सेना, रीना सिंह, पूजा गंगवार आदि ने हर्षित जी को बधाई एवं शुभकामनाएँ दीं। फोटोग्राफी प्रवीण कुमार और चमन बाबू ने की। सहायक आचार्य अतुल बाबू ने सभी उपस्थित जनों का आभार व्यक्त किया।
आगे पढ़ेंलोकार्पण, काव्य गोष्ठी व सम्मान समारोह कार्यक्रम संपन्न
आगरा। यूथ हॉस्टल (आगरा) में संस्थान संगम व कविता प्रभा काव्य समूह के संयुक्त बैनर तले एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें डॉ. कविता सिंह प्रभा की दो पुस्तकों (सुनी है आहट व दिशाएँ ज़िन्दगी की) का विमोचन भव्य तरीक़े से किया गया। वहीं संस्थान संगम पत्रिका व राष्ट्रीय हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र एकलव्य दर्पण का वितरण भी किया गया।
इसके साथ ही उपस्थित कवियों ने मधुर काव्यपाठ भी किया। कविता प्रभा काव्य समूह द्वारा सभी कविगणों को प्रशस्ति पत्र, पटका (राधे कृष्णा नाम पट्टिका) व संस्थान संगम पत्रिका की प्रति भेंट कर सम्मानित किया गया।
कवि व लेखक डॉ. मुकेश कुमार ऋषि वर्मा ने अपना लघुकथा संग्रह-जंगल की इज़्ज़त डॉ. कविता सिंह प्रभा व डॉ. अशोक अश्रु जी को भेंट किया।
इस अवसर पर ग़ाफ़िल स्वामी, प्रताप सिंह सिसोदिया, अवधेश कुमार निषाद मझवार, परमानंद शर्मा, रजिया बेगम, कवि रामेश्वर दयाल, डॉ. शशि गोयल, डॉ. श्रुति सिन्हा, राजकुमारी चौहान आदि सहित सैकड़ों कवि व महानुभाव उपस्थित रहे।
कार्यक्रम के अंत में सभी महानुभावों को भोजन कराया गया। कुल मिलाकर कार्यक्रम पूर्णतः सफल रहा।
आगे पढ़ेंब्रिलिएंट के बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा ब्रिलिएंट पब्लिक स्कूल में विभिन्न प्रतियोगिताओंं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य श्याम कुंतैल ने कहा कि हमारे विद्यालय के विद्यार्थी ‘अभिनव बालमन’ की इन प्रतियोगिताओं में जिस तरह बढ़-चढ़कर प्रतिभाग कर रहे हैं वह सुखद है। कविता, कहानी, चित्रकला, संस्मरण आदि को जब स्वयं रचेंगे तो निश्चित ही सृजनात्मक विकास होगा।
इस अवसर पर पर्यावरणविद सुबोध नंदन शर्मा ने कहा कि अभिनव बालमन अपने नाम के अनुरूप बच्चों के बीच कार्य कर रही है। सभी बाल रचनाकारों को मेरी ओर से बधाई।
इस अवसर पर उप प्रधानाचार्या सुधा सिंह, डॉ. चंद्रशेखर शर्मा, अम्बिका शर्मा, कीर्ति पालीवाल, दीपा अधिकारी, रेखा सिंह, नीतू दास आदि शिक्षक-शिक्षिका उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंसुशील शर्मा को डॉ. भीमराव अंबेडकर राष्ट्र गौरव सम्मान
दलितों के उत्थान, शिक्षा साहित्य, समाज सेवा संस्कृति के क्षेत्रों में अभिनव कार्य करने वाली विश्व गंगा वाहिनी एवं शोध संस्थान आगरा द्वारा वर्ष 2023 के डॉ. भीमराव अंबेडकर राष्ट्र गौरव सम्मान नरसिंहपुर ज़िले के शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में अभिनव कार्य करने वाले श्री सुशील शर्मा वरिष्ठ साहित्यकार गाडरवारा को प्रदान किया गया है ज्ञातव्य हो कि सुशील शर्मा कि 20 साहित्यिक कृतियाँ विभिन्न विषयों एवं विधाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं साथ ही शिक्षा के क्षेत्र में सुशील शर्मा जी को राज्यपाल पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया है।
आगे पढ़ेंत्रिलोक सिंह ठकुरेला को अकादमी सम्मान
साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को ‘पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी’ द्वारा ‘बाल साहित्य सर्जक सम्मान’ से सम्मानित किया गया है।
पंडित जवाहरलाल नेहरू बाल साहित्य अकादमी, राजस्थान का पहला सम्मान समारोह 29 मार्च, 2023 को जवाहर कला केंद्र, जयपुर के रंगायन सभागार में भव्यता के साथ संपन्न हुआ।
राजस्थान सरकार के राज्य मंत्री श्री रमेश बोराणा, माननीय मुख्य मंत्री राजस्थान के विशेषाधिकारी श्री फारूक आफरीदी, राजस्थान साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. दुलाराम सहारण, जनसत्ता के प्रधान संपादक श्री मुकेश भारद्वाज और वरिष्ठ बाल साहित्यकार श्री रमेश तैलंग के आतिथ्य में आयोजित इस समारोह में अकादमी द्वारा प्रकाशित त्रिलोक सिंह ठकुरेला के बाल कविता संग्रह ‘सात रंग के घोड़े’ के लोकार्पण के साथ-साथ उन्हें माल्यार्पण, अंगवस्त्र, स्मृति-चिन्ह और सम्मान-पत्र देकर सम्मानित किया गया। उल्लेखनीय है कि कि त्रिलोक सिंह ठकुरेला को पूर्व में भी राजस्थान साहित्य अकादमी सहित अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। कुण्डलिया छंद के कीर्तिपुरुष त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाएँ महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की हिन्दी पाठ्यपुस्तक ‘हिन्दी कुमारभारती’ सहित लगभग दो दर्जन पाठ्यपुस्तकों में सम्मिलित की गयी हैं।
इस अवसर पर बाल साहित्यकारों को पुरस्कृत एवं सम्मानित करते हुए अकादमी द्वारा प्रकाशित 60 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया।
आगे पढ़ेंहिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा द्वारा डॉ. शैलजा सक्सेना ‘हिन्दी गौरव सम्मान-२०२३’ से सम्मानित
मिसिसागा (कैनेडा)
हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा की सह संस्थापिका डॉक्टर शैलजा सक्सेना को फरवरी, २०२३ में फिजी में आयोजित १२वें विश्व हिंदी सम्मेलन में “विश्व हिंदी सम्मान” मिला। उनको इस सम्मान के मिलने की घोषणा के साथ ही इस संस्था के सभी सदस्यों में प्रसन्नता की लहर छा गई। २५ मार्च, २०२३ को हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के निदेशक मंडल ने सभी सदस्यों के साथ मिलकर शैलजा सक्सेना को बधाई देने और संस्था की ओर से भी सम्मानित करने के लिए आयोजन किया। आर्य समाज मिसिसागा के सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम में संस्था के सभी सदस्यों के साथ-साथ अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधि भी उपस्थित थे, ये संस्थाएँ हैं— एकल फ़ाउंडेशन, अंतर्मन, हिंदी टाइम्स मीडिया, ज़ी टी वी तथा प्रोविंशियल पार्लियमेंट के कुछ सदस्य आदि।
अतिथियों के स्वागत के लिए श्रीमती स्नेह धर जी के द्वारा कश्मीरी कहवे और नाश्ते का प्रबंध था जिसे सब ने आनंद पूर्वक ग्रहण किया। यह कार्यक्रम शैलजा जी की जानकारी में नहीं था अतः उन्हें आश्चर्य में डालते हुए, सबने उनके आने पर ताली बजा कर स्वागत किया। निःसंदेह इस स्वागत और अनेक दूर-पास से आए हिन्दी प्रेमियों को देख कर वे हैरान हुईं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में डॉक्टर नरेंद्र ग्रोवर ने बहुत ही आदरपूर्वक सबका स्वागत किया। उन्होंने कहा कि शैलजा जी हमारी संस्था की आन, बान और शान हैं। इसके बाद टोरंटो की प्रतिष्ठित गायिका और लेखिका श्रीमती मानोशी चैटर्जी ने माँ सरस्वती की भावपूर्ण वंदना से कार्यक्रम का प्रारंभ किया।
इसके उपरांत श्री संदीप कुमार सिंह जी को संचालन हेतु निमंत्रित किया गया। संदीप जी ने अत्यंत संक्षिप्त रूप से शैलजा जी की साहित्यिक उपलब्धियों की चर्चा की तथा उन्हें हमारी हिंदी राइटर्स गिल्ड की मुखिया बताया।
उन्होंने ताल अकादमी से रिया व्यास और प्रिशा पाटील को आमंत्रित किया जिन्होंने एक अत्यंत सुंदर कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया, डॉ. शैलजा ने उनकी सराहना करते हुए सर्टिफ़िकेट दिए। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा का प्रयास रहता है कि नई पीढ़ी उनके कार्यक्रमों से अधिक से अधिक जुड़े। इस कार्यक्रम में ऑडियो-वीडियो आदि का कार्य भी नवीं कक्षा में पढ़ने वाले आयुष्मान कानूनगो ने सँभाला हुआ था।।
इसके पश्चात विद्याभूषण धर जी ने शैलजा जी द्वारा लिखित कविता “हाँ, मैं स्त्री हूँ” की सराहनीय प्रस्तुति की। कविता में नारी के विविध रूपों द्वारा उसके सामर्थ्य का वर्णन किया गया था। दर्शकों ने कविता की सरल भाषा, भाव और विद्या जी की प्रस्तुति को सराहा।
अगली प्रस्तुति में श्रीमती आशा बर्मन ने एक लेख–“आभासी मंच पर डॉक्टर शैलजा सक्सेना की साहित्यिक उपलब्धियाँ” और एक स्वरचित कविता का पाठ किया। लेख में उन्होंने शैलजा जी ने करोना काल में आभासी मंच द्वारा कई सांस्कृतिक व साहित्यिक संस्थाओं से जुड़ने और अपनी संस्था के फ़ेसबुक कार्यक्रम प्रारंभ करने के बारे में बताया जिससे सारे विश्व ने उनकी प्रतिभा को और कैनेडा के अनेक लेखकों को पहचाना। उन्होंने शैलजा जी के सुंदर व्यवहार तथा सब को साथ ले चलने की प्रवृत्ति की सराहना की।
इसके बाद उन्होंने एक कविता का पाठ किया ‘हमारी शैलजा’। यह कविता टोरंटो की एक वरिष्ठ कवयित्री श्रीमती अचला दीप्ति कुमार और आशा बर्मन जी ने २००४ में लिखी थी जब शैलजा के प्रथम काव्य-संग्रह ‘क्या तुमको भी ऐसा लगा?’ का विमोचन हुआ था। इस कविता ने दर्शकों का बहुत मनोरंजन किया, ‘छपी किताब शैलजा की यह बड़ी शुभ घड़ी आई है’ इन पंक्तियों के साथ आशा जी ने शैलजा जी को बधाई दी।
अगली प्रस्तुति में श्रीमती कृष्णा वर्मा ने लघु कथा के स्वरूप का विवरण देते हुए शैलजा जी द्वारा लिखित एक लघु कथा ‘अस्तित्व बोध’ को अत्यंत रोचक ढंग से प्रस्तुत किया तथा इसकी अंतर्वस्तु की विवेचना की।
इसके पश्चात हिंदी राइटर्स गिल्ड के सह संस्थापक तथा साहित्य कुञ्ज के संपादक श्री सुमन कुमार घई जी ने “डॉ. शैलजा सक्सेना के साहित्य में नारी” विषय पर एक विवेचनापूर्ण लेख पढ़ा साथ ही शैलजा से अपनी पहली मुलाक़ात के बारे में बताया जिसमें वे शैलजा जी की कविता के नए स्वर से प्रभावित हुए थे। उन्होंने शैलजा की कविताओं के विस्तृत फलक की चर्चा करते हुए “आज की कविता”, “क्या भूली”, “तुम” कविताओं के संदर्भ दिए जहाँ अफ़गानिस्तान से लेकर रसोई तक को विषय बनाया गया था। कुछ कहानियों की चर्चा करते हुए, उनके उद्धरण देते हुए सुमन जी ने कहा कि ’शैलजा के स्त्री पात्र बहुत सजग और विभिन्न देशों की भिन्न परिस्थितियों को समझ कर कार्य करने वाली सशक्त महिलाएँ हैं जो प्रारंभ में भले कमज़ोर दिखती हों पर वे कमज़ोर हैं नहीं”। उन्होंने शैलजा जी के साहित्य पर ’साहित्य कुञ्ज’ में समीक्षा शृंखला शुरू करने की बात कही और दर्शकों को ई-पत्रिका पढ़ने के लिए आमंत्रित किया।
अगला वक्तव्य वरिष्ठ सदस्या श्रीमती इंदिरा वर्मा जी का था जिसमें उन्होंने शैलजा से संबंधित अपने संस्मरण सुनाए। इंदिरा जी ने शैलजा और उसके संपूर्ण परिवार को इस सम्मान के लिए बधाई दी और शैलजा के स्वभाव, उनके साहित्य एवं गुणों की प्रशंसा की। उनका वक्तव्य अत्यंत आत्मीयता से भरा था।
अगली प्रस्तुति में टोरोंटो के प्रतिष्ठित कवि आचार्य संदीप त्यागी जी ने सर्वप्रथम नवरात्रि के दिनों में और श्री गणेश शंकर विद्यार्थी जी की जन्मतिथि के दिन कार्यक्रम होने की बात करते हुए उन्हें प्रणाम किया। इसके पश्चात उन्होंने कुछ दोहे सुना कर, शैलजा जी के संबंध में अपनी संस्कृतनिष्ठ शब्दावली की एक कविता सुनाई। उन्होंने शैलजा की तुलना अपाला, गार्गी तथा विद्योत्तमा से की। इस पर शैलजा जी ने उन्हें प्रणाम करते हुए कहा कि यह कविता उनकी नहीं अपितु संदीप जी की प्रतिभा और काव्यकौशल का साक्षात प्रमाण है।
इसके बाद कई विशिष्ट अतिथियों ने शैलजा जी को उनके सम्मान के लिए वीडियो द्वारा और मंच से बधाई दी उनमें प्रमुख नाम हैं: वेदांता सोसायटी के स्वामी कृपामयानंदा जी, डॉक्टर अरुणा अजीतसीरिया, .के., फ़िल्म, डॉक्यूमेंट्री निर्माता श्री ललित जोशी, यू.के., ब्रैम्पटन के मेयर श्री पैट्रिक ब्राउन, रूबी सहोटा, योगेश ममगाईं, राकेश तिवारी, डॉ निर्मल जसवाल, मेजर नागरा, बैरिस्टर पंकज शर्मा, एकल कनाडा के नेशनल सेक्रेटरी सुभाष चंद जी तथा अंबिका शर्मा इत्यादि। प्रोविंशियल पार्लियामेंट ऑफ़ ओंटारियो के मेंबर श्री दीपक आनंद जी ने भी एक प्रमाण पत्र दिया।
इसके बाद डॉ. शैलजा सक्सेना द्वारा लिखित “चाह” कहानी का नाटकीय वाचन—मानोशी चटर्जी, पूनम जैन कासलीवाल, पीयूष श्रीवास्तव ने प्रस्तुत किया। इसमें पार्श्व ध्वनियों और संगीत संयोजन किया आयुष्मान कानूनगो ने। स्त्री की थकावट और सपनों के बीच से उपजी इस कहानी की यह नाटकीय प्रस्तुति अत्यंत प्रभावशाली रही।
हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के सह-संस्थापक श्री विजय विक्रांत जी ने अपने संदेश में ‘एक छोटी सी गुड़िया की लंबी कहानी’ प्रस्तुत की जिसमें उन्होंने शैलजा के पैदा होने के समय अपने कैनेडा आने की बात कही और फिर भाग्य द्वारा मिला दिये जाने की बात बहुत नाटकीय तरह से रखी। यह कहानी भी अत्यंत रोचक थी।
इसके उपरांत संस्था की तकनीकी निदेशिका पूनम चंद्रा ’मनु’ जी ने शैलजा जी के कार्यों पर आधारित प्रभावशाली वृत्तचित्र प्रस्तुत किया। इसके बाद संस्था की ओर से डॉ. शैलजा सक्सेना को “हिन्दी गौरव सम्मान“ प्रदान किया गया जिसमें उन्हें एक ट्रॉफ़ी तथा प्रमाणपत्र दिया गया। इस सम्मान को देने के लिए संस्था के पूरे निदेशिक मंडल के साथ, कार्यक्रम में भाग लेने वाले लोग तथा शैलजा जी के पति- विकास सक्सेना, बेटे- मानस और उमंग, बहू-जॉर्डन और भावी बहू स्नेहल भी मंच पर आमंत्रित किए गए। बहुत ही उत्साह और हर्ष के वातावरण में सभी ने यह सम्मान उन्हें दिया।
डॉ. शैलजा सक्सेना ने बहुत सुंदर शब्दों में सबको धन्यवाद करते हुए एक कविता पढ़ी, उन्होंने कहा;
“आज के कार्यक्रम से अभिभूत, चकित, प्रभावित और आह्लादित हूँ। सब के प्रेम और मेहनत को प्रणाम करती हूँ।..
अपनों से मुझको मिला, प्रेम, मान, सम्मान
पर इतना मिल जाएगा, था कहाँ मुझॆ अनुमान
था कहाँ मुझॆ अनुमान कि इतने मित्र मिलेंगे
मेरे चलने में गति, आँखों में आकाश भरेंगे।….
धन्यवाद कैसे करूँ, प्रेम भाव अनमोल
शब्दों में इनको कभी, कौन सका है तोल।
वंदन सबका मौन ही, करती दुई कर जोड़
(प्रभु), प्रेम पगा जीवन चले, सके न कोई तोड़॥“
पूनम चंद्र मनु जी ने शैलजा जी को धन्यवाद देते हुए कहा कि यह विश्व हिन्दी सम्मान उनका नहीं अपितु पूरी संस्था का सम्मान है और इसी प्रसन्नता का उत्सव यह कार्यक्रम है। उन्होंने संस्था को १५ वर्षों से आगे बढ़ाने में शैलजा जी के धैर्य, बहुत तेज़ी से योजना बनाने, क्रियान्वित करने और सभी को उनकी योजनाओं पर कार्य करने सहमति देने की प्रशंसा की।
अंत में दीपक राजदान जी ने सभी अतिथियों को इस महत्वपूर्ण से जुड़ने के लिए धन्यवाद दिया और भोजन के लिए आमंत्रित किया। सभी ने आनंदपूर्ण कार्यक्रम के बाद सुस्वादु भोजन का आनंद लिया। इस प्रकार हिन्दी राइटर्स गिल्ड का एक और सुंदर कार्यक्रम संपन्न हुआ।
रिपोर्ट : आशा बर्मन
सुशील शर्मा की पाँच किताबें विमोचित
गाडरवारा। विगत रविवार चेतना साहित्यिक संस्था के तत्वाधान में स्थानीय पीजी कॉलेज स्थित आडीटोरियम में स्व. प्रतिभा श्रीवास्तव स्मृति साहित्य सम्मान में विमोचन समारोह नगरपालिका अध्यक्ष शिवांकात मिश्रा, पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक, वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाशचन्द्र डांगरे एवं चेतना के सरंक्षक मिनेन्द्र डागा के आतिथ्य में तथा वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेन्द्र श्रीवास्तव की अध्यक्षता में आयोजित हुआ।
कार्यक्रम का शुभारंभ माँ सरस्वती की प्रतिमा परमाल्यार्पण एवं दीप प्रज्जवलन के साथ हुआ। मोहद के युवा साहित्यकार मुकेश माधव ने सस्वर सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। मंचासीन अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान संस्था के सदस्यों द्वारा किया गया। अपने स्वागत भाषण में मिनेन्द्र डागा ने कहा कि ओशो की पावन धरा गाडरवारा क्षेत्र में साहित्य सृजन निरंतर हो रहा है, आज के दौर में यह सुखद अहसास कराता है। उन्होंने अपील की कि साहित्यकार गौ माता के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए भी रचनाएँ लिखें।
श्रीमती प्रतिभा श्रीवास्तव की स्मृति में ‘प्रतिभा साहित्य सम्मान भोपाल’ की ख्यातिलब्ध युवा महिला साहित्यकार श्रीमती कीर्ति श्रीवास्तव को प्रदान किया गया। मंचासीन अतिथियों ने श्रीमती कीर्ति श्रीवास्तव को स्मृति चिह्न, शाल, श्रीफल, सम्मानपत्र एवं नगद राशि प्रदान की। इस अवसर पर कीर्ति श्रीवास्तव ने सभी को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम की भूरि-भूरि प्रशंसा की।
तदोपरांत नगर के साहित्यकार सुशील शर्मा की पाँच कृतियाँ ‘दोहा दिवाकर’ दोहा संग्रह, ‘कमुदनी’ कुडंलियाँ संग्रह, ‘गोविन्द गीत’ दोहामय गीता, ‘नन्ही बूंदें’ क्षणिकाएँ, ‘शक्कर के दाने’ लघुकथा संग्रह का विमोचन करतल ध्वनि के बीच मंचासीन अतिथियों द्वारा किया गया। चेतना संस्था द्वारा शाल, श्रीफल एवं सम्मानपत्र के साथ उनका सम्मान किया गया। विमोचति कृतियों की समीक्षा सतीश नाइक ने प्रस्तुत की। अपने लेखकीय उद्बोधन में सुशील शर्मा ने अपनी रचनाधर्मिता के बारे में विचार प्रस्तुत करते हुए कहा कि सृजन समयापेक्ष होना आवश्यक है, साहित्य समाज को जोड़ता है। उन्होंने कहा कि साहित्य जब समाज से जुड़ता है तब ही उसकी सार्थकता दृष्टित होती है। इस अवसर पर अपने उद्बोधन में नगरपालिका परिषद के अध्यक्ष शिवाकांत मिश्रा ने कहा कि साहित्य राष्ट्र का निर्माण करता है, साहित्य व्यक्ति का विकास करता है। उन्होंने कहा कि हमें गर्व है कि हमारे क्षेत्र में निरंतर साहित्य सृजन हो रहा है। उन्होंने वायदा किया कि वे अपने क्षेत्र में साहित्य के लिए सुझाए गए हर कार्य को पूरा करेंगे। पूर्व विधायक श्रीमती साधना स्थापक ने आयोजन की प्रशंसा करते हुए कहा कि साहित्य समाज का पथ प्रदर्शक होता है। उन्होंने रामायण का उदाहरण देते हुए कहा कि रामायाण अविश्वास से विश्वास की ओर ले जाती है। माँ सीता के समक्ष जब हनुमान जी ने मुंदरी फेंकी तो सीता जी तुरंत ही जान गई थी कि यह अँगूठी रामजी की ही है, उनके मन में ज़रा सा भी संदेह पैदा नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि साहित्य में यह शक्ति होती है कि वह समाज की सोच का बदल सकता है। नरसिंपुर से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार प्रकाशचन्द्र डोगरे ने कहा कि साहित्य जितना सहज सरल होगा वह उतनी ही अपनी छाप छोड़ेगा। उन्होंने विमोचित किताबों के कुछ अंश पढ़कर सुनाए, उन्होंने कहा कि यह सुखद है कि इस क्षेत्र में साहित्य की अपनी परंपरा रही है जिसका निर्वहन आज के दौर में भी हो रहा है और नवोदित रचनाकार सामने आ रहे हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष कुशलेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि हमारी संस्कृति का क्षरण हो रहा है, हमारा नैतिक अवमूल्यन हो रहा है ऐसे में साहित्य सृजन का स्वरूप भी बदला जाना आवश्यक है। हम संक्रमणकाल से होकर गुज़र रहे हैं, हमें इसे बचाने के लिए वैचारिक क्रांति की आवश्यकता है जो साहित्य के माध्यम से हो सकती है।
विभिन्न संस्थाओं द्वारा साहित्यकार सुशील शर्मा का सम्मान किया गया। कार्यक्रम मेें ज़िले के साहित्यकार सुनील तन्हा, मुकेश माधव, बृजबिहारी कौरव, पोषराज अकेला, पुष्पेन्द्र सिंह का सम्मान स्मृति चिह्न देकर किया गया। कार्यक्रम का संचालन विजय बेशर्म ने किया और आभार प्रदर्शन नगेन्द्र त्रिपाठी ने किया। कार्यक्रम में ज़िले से आए श्रोताओं की गरिमामयी उपस्थिति रही।
आगे पढ़ेंडॉ. मनीष कुमार मिश्रा संत नामदेव पुरस्कार से सम्मानित
के.एम. अग्रवाल महाविद्यालय, कल्याण पश्चिम में हिंदी विभाग प्रमुख के रूप में कार्यरत डॉ. मनीष कुमार मिश्र को महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी की तरफ़ से वर्ष 2020-21 के विधा पुरस्कारों के अंतर्गत संत नामदेव पुरस्कार (स्वर्ण पदक) से सम्मानित किया गया। उन्हें यह पुरस्कार उनके काव्य संग्रह “इस बार तुम्हारे शहर में” के लिए प्रदान किया गया। डॉ. मनीष कुमार मिश्र विगत 13 वर्षों से के.एम. अग्रवाल महाविद्यालय में कार्यरत हैं। उन्होंने डॉ. रामजी तिवारी के निर्देशन में “कथाकार अमरकांत: संवेदना और शिल्प” इस विषय पर पीएच.डी. उपाधि प्राप्त की है। आप को मुंबई विद्यापीठ से एम.ए. हिंदी में सर्वोच्च अंक प्राप्त करने हेतु वर्ष 2003 में श्याम सुंदर गुप्ता स्वर्ण पदक से भी सम्मानित किया जा चुका है।
“इस बार तुम्हारे शहर में” के अलावा उनके दो काव्य संग्रह और प्रकाशित हैं “अक्टूबर उस साल” और “अमलतास के गालों पर”। आप का एक कहानी संग्रह “स्मृतियां” शीर्षक से प्रकाशित हो चुका है। “अमरकांत को पढ़ते हुए” शीर्षक से एक समीक्षात्मक ग्रंथ भी आपका प्रकाशित है। हिंदी और अंग्रेज़ी की लगभग 33 किताबों का कुशल संपादन आपके द्वारा हुआ है। देश-विदेश में राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय परिसंवाद एवं संगोष्ठी आयोजित करने के लिए भी आप जाने जाते हैं। आप ने देश भर में अब तक 12 से अधिक परिसंवाद आयोजित किए हैं, जिसके लिए अनेकों राष्ट्रीय स्तर की संस्थाओं द्वारा उन्हें अनुदान प्राप्त हुआ है।
अंतर विषयी शोध कार्यों में भी आपका महत्त्वपूर्ण योगदान है। आपने बहुत सारे शोध प्रकल्प विभिन्न सरकारी संस्थानों के लिए पूरे किए हैं। वर्ष 2014 से वर्ष 2016 तक आप यूजीसी रिसर्च अवॉर्डी के रूप में चुने गए और दो साल तक बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में रहते हुए आपने अपना शोध कार्य पूरा किया। आईसीएसएसआर इंप्रेस के लिए आपने एक बड़ा महत्त्वपूर्ण काम मालेगांव के सिनेमा पर किया। मालेगांव के सिनेमा पर संभवतः यह देश का पहला कार्य रहा। हिंदी ब्लॉगिंग और वेब मीडिया के क्षेत्र में भी आपने अनेकों पुस्तकों का संपादन एवं राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर पर परिसंवाद का आयोजन किया है।
डॉ. मनीष कुमार मिश्र अकादमिक जगत में लगातार अपनी सक्रियता बनाए रखते हैं। देश के कई राज्यों के लोक सेवा आयोग के लिए आप परीक्षा संबंधी कार्यों से भी जुड़े हुए हैं। मुंबई विश्वविद्यालय से संबद्ध कई महाविद्यालयों के अध्ययन मंडल के सदस्य के रूप में भी आप कार्यरत हैं। आप भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला में वर्ष 2011 से एसोसिएट के रूप में जुड़े हुए हैं। यूजीसी केयर लिस्टेड “समीचीन” एवं “अनहद लोक” पत्रिका के संपादन मंडल से भी आप जुड़े हैं। आप अंग्रेज़ी साहित्य से एम.ए. और मानव संसाधन में एमबीए डिग्री भी प्राप्त कर चुके हैं। प्रबंधन के क्षेत्र में पीएच.डी. का शोध कार्य भी आप मुंबई विद्यापीठ से कर रहे हैं। आप हिंदी में शोध निदेशक भी हैं।
कोविड 19 के कठिन समय में आप ने महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादमी द्वारा संपोषित “75 साल 75 व्याख्यान” नामक आनलाइन व्याख्यान शृंखला को पूरे एक साल तक सफलतापूर्वक चलाया। अपनी अकादमिक गतिविधियों से आप लगातार हिंदी साहित्य की सेवा में जुटे हैं।
आगे पढ़ेंईश कुमार गंगानिया का आत्मवृत्त: जाति की हदों से आगे की रचना
साहित्य के झरोखे से . . .
ईश कुमार गंगानिया के आत्मवृत्त ‘मैं और मेरा गिरेबां’ का लोकार्पण एवं चर्चा
26 फरवरी 2023 को समय संज्ञान फ़ॉउंडेशन द्वारा आयोजित ईश कुमार गंगानिया के आत्मवृत्त ‘मैं और मेरा गिरेबां’ का लोकार्पण व परिचर्चा का आयोजन गाँधी शान्ति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में किया गया। जिसमें मुख्य वक्ता डॉ. रजनी दिसोदिया, डॉ. अनुज कुमार और श्री शंकर थे। आयोजन की अध्यक्षता प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह और विषय प्रस्तावना प्रो. राम चन्द्र ने की। मंच संचालन का दायित्व डॉ. राजेश कुमार ने निभाया। कार्यक्रम की वीडियो रिकॉर्डिंग को शिव नाथ शीलबोधि ने शिद्दत से अंजाम दिया। कर्मशील भारती ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का आभार प्रकट किया।
आयोजन की एक ख़ूबी यह भी रही कि सभी वक्ताओं के व्याख्यान ईश कुमार गंगानिया के आत्मवृत्त ‘मैं और मेरा गिरेबां’ पर ही केंद्रित रहा, उनका अध्ययन और चिंतन टेक्स्ट आधारित और व्यापक था। वक्ताओं के साथ-साथ अध्यक्ष महोदय ने भी पुस्तक के एक-एक वाक्य और एक-एक शब्द के गुण-दोषों पर विस्तार से उल्लेख किया, अन्यथा लोकार्पण और पुस्तक परिचर्चा संबंधी आयोजनों को लेकर श्रोताओं को आशंका रहती है कि कहीं वक्ताओं के अलावा पुस्तक लेखक भी यह न कह दे कि मुझे पुस्तक पढ़ने का अवसर तो नहीं मिला, अभी आते-आते रास्ते में सरसरी तौर पर देखी है, यह एक कालजयी कृति है। आयोजन की सार्थकता इस बात में रही कि परिचर्चा ईश कुमार गंगानिया के आत्मवृत्त ‘मैं और मेरा गिरेबां’ पर केंद्रित भी रही। और दलित साहित्य (विशेष रूप से आत्मकथाओं) की परंपरा का पुनर्मूल्यांकन भी सम्भव हुआ। प्रो. राम चन्द्र ने विषय प्रस्तावना में आत्मकथाओं के इतिहास का अवलोकन (मराठी साहित्य से हिंदी साहित्य तक) करते हुए ईश कुमार गंगानिया की आत्मकथा ‘मैं और मेरा गिरेबां’ का विशेष परिचय दिया। उन्होंने ओम प्रकाश वाल्मीकि की प्रशंसा करते हुए कहा कि ‘जूठन’ जातीय उत्पीड़न और दलित समाज के अनुभवों का मार्मिक दस्तावेज़ है। प्रो. राम चन्द्र ने ‘जूठन’ से ‘मैं और मेरा गिरेबां’ तक हिंदी दलित आत्मकथाओं के इतिहास का सारगर्भित परिचय दिया।
अपने लेखकीय वक्तव्य में ईश कुमार गंगानिया ने कहा—‘मुझे न कुछ पा लेने की लालसा है, न कुछ खो जाने का डर। मगर हाँ, ज़िम्मेदारियों से पलायन मुझे कभी मंज़ूर नहीं है। इसलिए मौजूदा हालात में बिन माँगे जो मिल रहा है, उससे बेहद सुकून में हूँ।’ अर्थात् लेखक लोभ और भय से मुक्त होकर साहित्य में सामाजिक यथार्थ और व्यक्ति सत्य को चित्रित कर सकते हैं अन्यथा लोभ और भयग्रस्त लेखक ‘चारण’ भी होते हैं।
अपने रचना कर्म के संदर्भ में गंगानिया जी ने कहा, “मैं वो लिखता हूँ, जो मुझे सैटिस्फ़ैक्शन देता है। मुझे नहीं मालूम, इस प्रक्रिया में मैं साहित्य के अनुशासन व मानदंडों का हित कर रहा हूँ या अहित, यह तय करना विद्वानों का काम है, जो मैं नहीं हूँ और उस दौड़ में भी नहीं हूँ।” इस प्रकार गंगानिया जी ने न तो किसी साहित्य सेवा का दावा किया है और न ही अपने रचना कर्म को क्रांति का अग्रदूत कहा। उन्होंने यह दावा अवश्य किया कि उनके लेखन के केंद्र में ग्लोबल सिटीजन है—“मेरे लेखन के केंद्र में व्यक्ति है, समाज है, राष्ट्र है, पूरी मानवता है।” यह ग्लोबल सिटीजन धर्म और जाति की हदों में सीमित नहीं हैं। इसलिए लेखक को जाति का विक्टिम कार्ड खेलने की ज़रूरत नहीं है। यद्यपि लेखक ने यह भी स्वीकार किया, “बहुसंख्यकवाद के चलते धार्मिक आतंक है। बहुसंख्यक के अंदर अल्पसंख्यक का जातिवादी तांडव है, शोषण है, उत्पीड़न है।” जिसके विरुद्ध लड़ने का लेखक का तरीक़ा विक्टिम कार्ड से बिल्कुल अलग है। यह तरीक़ा डॉ. आंबेडकर और बराक ओबामा से प्रेरित है कि अपने संसाधनों का उपयोग कर ऊपर उठने को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है। अपने लेखकीय वक्तव्य के आरंभ में गंगानिया जी ने विनम्र भाव से कहा कि वे आज भी एक विद्यार्थी हैं, एक लर्नर हैं। उन्होंने स्वयं को एक्सपेरिमेंटल मोड़ पर रखा है। अपने वक्तव्य के अंत में भी उन्होंने विनम्र भाव से कहा कि उनके पास छिपाने को कुछ नहीं है। अपने जीवन के खिड़की दरवाज़े सब खोल दिए हैं, “Now the ball in the court of Experts to deal the way find appropriate।”
एक्सपर्ट्स के पाले में गेंद आने के बाद डॉ. रजनी दिसोदिया ने आत्मकथा के गुण-दोषों का विवेचन करते हुए कृति के पक्ष में भी कई बातें कहीं और इस पर कुछ प्रश्न भी उठाए। लेकिन उनके एक कथन की अनुगूँज आयोजन संपन्न होने के बाद भी निरंतर सुनाई देती है, “लेखक आत्मकथा लेखन में अतिरिक्त रूप से सतर्क है, चौकन्ना है।” डॉ. अनुज कुमार की असहमति ने डॉ. रजनी दिसोदिया के इस कथन की अनुगूँज को और गहन कर दिया। जबकि डॉ. रजनी दिसोदिया ने अपने वक्तव्य की शुरूआत लेखक की आत्मकथा संबंधी अवधारणा को समझने समझाने के क्रम से की थी कि लेखक ने यह आत्मकथा किस समझ के साथ लिखी है। गंगानिया जी कहते हैं कि उन्होंने अभी तक कोई ऐसा तीर नहीं मार लिया है, जिसके लिए आत्मकथा लिखी जाए उनके जीवन में स्टारडम जैसा कुछ नहीं है और न ही उनके जीवन में ऐसा कोई शोषण-उत्पीड़न रहा कि वे उसका बखान करने के लिए अपना आत्मवृत्त लिखें जैसा कि मराठी के दलित साहित्यकारों ने लिखा है। मराठी की तर्ज़ पर ही हिंदी के अधिकांश आत्मवृत्त लिखे गए हैं या लिखे जा रहे हैं। इन दोनों श्रेणियों के बाहर भी जनसाधारण के लिए ऐसा बहुत कुछ है, जिससे सीखा जा सकता है, उन्हीं अनुभवों के अन्वेषण के क्रम यह आत्मकथा लिखी गई है।
डॉ. रजनी दिसोदिया के कथन से असहमत होने के उपरांत डॉ. अनुज कुमार ने अपना वक्तव्य लेखक की उन टिप्पणियों पर केंद्रित कर दिया, जो गाँधी के विषय में थीं। दलित लेखन में गाँधी की नकारात्मक छवि को लेकर डॉ. अनुज कुमार ने खिन्नता प्रकट की कि दलित लेखक गाँधी और आर.एस.एस. की विचारधारा में अंतर नहीं करते। गाँधी को कोसने वाले नेता भी आर.एस.एस. की झंडाबरदारी में संकोच नहीं करते। गाँधी के प्रति लेखक की अनुदारता को छोड़ दिया जाए तो डॉ. अनुज कुमार ने इस आत्मकथा को आत्मीयता और प्रशंसा भाव से स्वीकार किया। उन्होंने इस आत्मकथा को अन्य दलित आत्मकथाओं से आगे की रचना मानते हुए कहा कि वे लेखक की जाति नहीं जानते। यदि पाठक को लेखक की जाति पता न हो तो इस आत्मकथा को पढ़ते हुए पता नहीं लगता कि यह दलित आत्मकथा है। अर्थात् यह आत्मकथा जाति की हदों से आगे की रचना है।
परिकथा के संपादक श्री शंकर ने विमर्शों के आईने में ‘मैं और मेरा गिरेबां’ का विवेचन किया। उन्होंने आत्मकथा और आत्मवृत्त में सूक्ष्म अंतर करते आत्मवृत्त की विशद व्याख्या की। दलित आत्मवृतों के यथार्थ को बिना किसी किन्तु परन्तु के स्वीकार करते हुए उन्होंने कहा, “यदि लेखक को जातीय अपमान और उत्पीड़न के अनुभव नहीं हुए तो इसका अर्थ यह नहीं कि समाज में जाति की समस्या नहीं है, समाज जाति मुक्त हो गया है।” श्री शंकर जी की बात की पुष्टि प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने भी की। उन्होंने आत्मकथा से ही लेखक के प्रेम और विवाह का उदाहरण प्रस्तुत किया कि लेखक और उनकी होने वाली पत्नी दोनों ही दलित समाज से हैं, फिर भी जाति उनके विवाह में बाधा बनकर खड़ी हो जाती है। श्री शंकर ने साहित्य में सामाजिक यथार्थ पर बल देते हुए यह भी कहा कि यदि दलित लेखकों की रचनाओं में जाति की समस्या आती है तो यह उनका सच है और गंगानिया जी ने अपना सच लिखा है।
इस पर संचालक महोदय राजेश चौहान ने श्री शंकर की कहानी विषयक रुचि पर टिप्पणी की, “अब समझ आया कि शंकर जी को फूल-पत्तियों की कहानियाँ क्यों पसंद नहीं हैं, जब हम विसंगतियों और विद्रूपताओं से घिरे हों तो प्राकृतिक सौंदर्य को निहारने की फ़ुर्सत कहाँ है!”
प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने अध्यक्षीय वक्तव्य की शुरूआत बड़े रोचक ढंग से की। वह सतत विद्यार्थी की भूमिका में रहने वाले लेखक ईश कुमार गंगानिया को अपना विद्यार्थी कहने का लोभ संवरण नहीं कर पाए। बिस्मिल्लाह जी ने जामिया में अध्यापन किया और गंगानिया जी वहाँ कुछ समय तक विद्यार्थी रहे, गुरु शिष्य के सम्बन्ध के लिए इतना आधार पर्याप्त माना गया। इसी कारण बिस्मिल्लाह जी आत्मकथा में यह भी खोजते रहे कि लेखक ने जामिया के विषय में क्या लिखा है। “जामिया में किसी तरह का जाति भेद या धार्मिक भेदभाव नहीं है।” लेखक के इस कथन पर बिस्मिल्लाह जी मुग्ध थे। उन्होंने आत्मकथा का विवेचन विमर्शों के आईने में भी किया। गंगानिया जी के जाति विषयक अनुभव अन्य दलित लेखकों से अलग हैं, इसके दो प्रमुख कारण बिस्मिल्लाह जी ने बताए—एक तो यह कि उनके पिता आर्य समाजी थे और लेखक को शिक्षा का अवसर मिला। शिक्षित और समर्थ दलित जाति की समस्या से ऊपर उठ जाता है। दूसरा कारण भौगोलिक बताया कि लेखक दिल्ली से जुड़े सोनीपत इलाक़े से आते हैं, जहाँ जाति की समस्या ठीक वैसी नहीं है जैसी कि उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान में है।
बिस्मिल्लाह जी ने भाषा व्याकरण सम्बन्धी त्रुटियों को आत्मकथा की कमज़ोरी के रूप में रेखांकित किया, इस मामले में वह लेखक को कोई छूट नहीं देते। यद्यपि उन्होंने लेखक के अंदाज़े बयाँ को इस मायने में विशिष्ट बताया कि खंडन मंडन की शैली का उपयोग रणनीतिक कौशल के रूप में किया गया है। लेखक ने दूसरों की भर्त्सना करके यह भी जोड़ दिया है कि हो सकता है शायद वह स्वयं ही ग़लत हों और दूसरा ठीक हो। अर्थात् दूसरों को ग़लत सिद्ध करने के इरादे से उन्होंने किसी प्रसंग का उल्लेख नहीं किया है।
पुस्तक परिचर्चा का पटाक्षेप करते हुए राजेश चौहान ने कहा, लेखक ने शायद बे-इरादा लिखा है। बात शुरू हुई थी चौक्कनेपन (सतर्कतापूर्वक लेखन) से और तान टूटी है ग़ैर इरादतन लेखन पर। डॉ. रजनी दिसोदिया ने जिसे अतिरिक्त सतर्कता से लिखी गई आत्मकथा कहा, प्रो. अब्दुल बिस्मिल्लाह ने उसे परिहास में ग़ैर-इरादतन लेखन कहा। कार्यक्रम के अंत में कर्मशील भारती ने औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया।
प्रस्तुति: डॉ. राजेश चौहान
आगे पढ़ेंवेद मित्र कृत बाल कविता-संग्रह ‘जनजातीय गौरव’ का हुआ लोकार्पण
विश्व पुस्तक मेला-2023, नई दिल्ली में ‘लेखक मंच’ पर सर्वभाषा ट्रस्ट व प्रकाशक के सौजन्य से डॉ. वेद मित्र शुक्ल कृत बाल कविता-संग्रह “जनजातीय गौरव” का लोकार्पण संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में अध्यक्ष के रूप में केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा से उपाध्यक्ष अनिल जोशी, एवं विशिष्ट अतिथि व वक्ता के तौर पर साहित्य अमृत के संपादक एवं पूर्व केंद्र निदेशक, आकाशवाणी, नई दिल्ली से लक्ष्मी शंकर वाजपेयी, वरिष्ठ कवि व आलोचक डॉ. ओम निश्चल, वरिष्ठ ग़ज़लकार नरेश शान्डिल्य, प्रकाशन विभाग से जुड़े आजकल के संपादक राकेश रेणु, ग़ज़लकार रेणु हुसैन एवं सर्वभाषा ट्रस्ट के निदेशक केशव मोहन पाण्डेय द्वारा लोकार्पण किया गया।
ज्ञात हो कि इस पुस्तक के आवरण पृष्ठ का विमोचन फिजी में आयोजित 12वें विश्व हिंदी सम्मेलन में साहित्य अकादेमी, मध्य प्रदेश के निदेशक विकास दवे और विद्या भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी द्वारा किया जा चुका है।
आगे पढ़ेंतेजपाल सिंह ‘तेज’: अभिनंदन समारोह
साहित्य के झरोखे से: एक रिपोर्ट
तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने सामाजिक सद्भावना से साहित्य सृजन किया: डॉ. महेंद्र सिंह बेनिवाल
दलित लेखक संघ ने दिनांक 19 फरवरी 2023 को हिंदी अकादमी से सन् 1995-96 में बाल गीतों की पुस्तक ‘खेल खेल में’ के लिए बाल साहित्य पुरस्कार तथा सन् 2006-07 के लिए में साहित्यकार सम्मान प्राप्त वयोवृद्ध गीत व ग़ज़लकार मान्यवर तेजपाल सिंह ‘तेज’ का अभिनंदन और सम्मान समारोह, वाइट हाउस, कनॉट प्लेस, नई दिल्ली में आयोजित किया।
दलित लेखक संघ के सदस्यों ने दुशाला पहनाकर तथा अध्यक्ष महेंद्र सिंह बेनीवाल और महासचिव शीलबोधि ने प्रशस्ति पत्र प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया। इस कार्यक्रम में दिल्ली और दिल्ली के आसपास के अनेक साहित्यकार मौजूद रहे। तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने कार्यक्रम में अपने जीवन संघर्ष से कई दिलचस्प और प्रेरणादायक क़िस्से बयान किए। उन्होंने अपनी रचनाधर्मिता और उससे जुड़ी प्रयोगात्मक शैली के उदाहरण प्रस्तुत करने के साथ-साथ शब्द और उसके प्रभाव के विषय में उपस्थित श्रोताओं को जानकारी दी। इस अवसर पर वे अपने सभी साथियों का स्मरण करना नहीं भूले।
दलित लेखक संघ के अध्यक्ष डॉ. महेन्द्र सिंह बेनीवाल का इस अवसर पर वक्तव्य विशेष रहा उन्होंने अपनी बात रखते हुए कहा कि समकालीन लेखन के समक्ष गुणवत्ता में कम ना होने की चुनौती को तेजपाल सिंह ‘तेज’ ने स्वीकार किया और प्रतियोगी की स्वस्थ भावना से अपनी भाषा को माँझा जो सीखने लायक़ बात है। उन्होंने स्वच्छ सामाजिक सद्भावना से साहित्य सृजन किया। उनकी कविता-ग़ज़ल की भाषा और विषय इतने सरल और ग्राही हैं कि समझने के लिए दिमाग़ पर ज़ोर नहीं देना पड़ता, पढ़ते ही प्रभावित कर जाती हैं। तेजपाल सिंह तेज ने अपना लेखन सभी सीमाओं से ऊपर उठकर किया है।
कार्यक्रम में नीम का थाना (राजस्थान) से आए, मुख्य वक्ता डॉ. देवी प्रसाद वर्मा (सह-प्राध्यापक) ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ का राजस्थानी पगड़ी पहनाकर सम्मान किया और अपने संबोधन में कहा कि तेजपाल सिंह ‘तेज’ का लेखन समसामयिक परिवेश का सशक्त दस्तावेज़ है। तेजपाल सिंह ‘तेज’ ऐसे साहित्यकार हैं, जो अपनी बात बहुत बेबाकी से रखते हैं। आधुनिक परिवेश को समझने के लिए इनके साहित्य का अनुशीलन करना चाहिए। इन्होंने सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक, साहित्यिक ओर सांस्कृतिक परिवेश में आ रहे बदलाव को अपने लेखन का विषय बनाया है। कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जिस पर इन्होंने नहीं लिखा हो। यहाँ तक कि पति-पत्नी, पिता-पुत्र में साथ ही नयी पीढ़ी में आ रहे परिवर्तन को चित्रित किया है। इनकी ग़ज़लें आम आदमी की व्यथा को व्यक्त करने के साथ-साथ उनकी समस्याओं का सामना करने का हौसला देती हैं। तेजपाल सिंह ‘तेज’ की रचनाओं का मुख्य उद्देश्य जन-जागरण है, जिसमें वे पूरी तरह सफल हैं और यही साहित्य का उद्देश्य भी है।
ईश कुमार गंगानिया-जाने माने आलोचक, कथाकार व कवि ने भी तेजपाल सिंह ‘तेज’ से अपनी नज़दीकियों को ज़ाहिर करते हुए बताया कि बहुत से स्थापित लेखकों में इतना असुरक्षा का भाव है कि वे अपने साथियों व नवांकुरों के साथ खड़े होने में ख़ुद को असहज महसूस करते हैं। लेकिन तेजपाल सिंह ‘तेज’ इस मामले में अपवाद हैं। वे अपना ख़ुद का काम छोड़कर भी दूसरे लेखकों के सहयोग के लिए तत्पर रहते हैं। उनकी यह आदत उन्हें अन्य लेखकों से अलग ही नहीं करती बल्कि ऐसी सहयोग की भावना समय की माँग भी है। मैं टी पी सिंह ‘तेज’ के इस जज़्बे को सलाम करता हूँ। स्थापित नव गीतकार जगदीश पंकज ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ के साहित्य में शब्द के कुशल प्रयोग पर अपनी बेबाक राय रखते हुए कहा कि जब मैं तेजपाल सिंह ‘तेज’ की रचनाओं को पढ़ रहा था तब मुझे लगा कि उन्होंने एक-एक शब्द का मूल्य और उसकी शक्ति को समझा है और फिर अपनी रचनाओं में प्रयोग किया है। शब्द कभी-कभी ऐसी मार कर देता है जो बड़ी से बड़ी मिसाइल भी नहीं कर पाती।
दलित लेखक संघ के संस्थापक सदस्यों में से एक माननीय कर्मशील भारतीय-कवि व नाटककार ने भी तेजपाल सिंह ‘तेज’ के साथ बिताए क्षणों को याद करते हुए कहा कि 1990 के दशक में हमारे लेखकों के लेखन में गुणवत्ता वैसी नहीं थी, जैसी होनी चाहिए थी। इसलिए तेजपाल सिंह ‘तेज’ और हम लोगों ने मिलकर दलित लेखक संघ की स्थापना की, उसके बाद लेखन में काफ़ी सुधार देखा गया। आलोचना में दख़ल रखने वाले वेद प्रकाश ने तेजपाल सिंह ‘तेज’ के काव्य में प्रयुक्त भाषा पर टिप्पणी करते हुए अपनी राय रखी कि उनकी भाषा पानीदार है, कलकल बहती हुई। शब्दों का उपयुक्त चयन, उनके वज़न की सटीक पहचान और शब्दों की लय का उपयुक्त ज्ञान। मैं चाहता हूँ कि नई पीढ़ी के लेखक उनसे ये बात सीखें। इस अवसर पर तेजपाल सिंह के सम्मान में कार्यक्रम के दूसरे भाग के रूप में काव्य गोष्ठि की अध्यक्षता संतराम आर्य ने की तथा काव्य पाठ कर्मशील भारती, जगदीश पंकज, ईश कुमार गंगानिया, महेंद्र सिंह बेनीवाल, सतीश खनकवाल, हरिराम मीणा, पूजा 'सादगी' आदि ने किया। सम्मान समारोह में पुष्पा विवेक, संतोष पटेल व भीष्मपाल सिंह व ऋत्विक भारतीय जैसे व्यक्तियों की उपस्थिति विशेष थी। कार्यक्रम में शोधार्थी और सामाजिक कार्यकर्ताओं की अच्छी ख़ासी उपस्थिति रही।
प्रस्तुति: शीलबोधी
आगे पढ़ेंअकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ— पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
नवाचार को अपनाएँ शोधार्थी—प्रो. देवराज
वर्तमान में भारत विश्वगुरु बनने की ओर अग्रसर—प्रो. ऋषभदेव शर्मा
शोध-पद्धति का ज्ञान आवश्यक—प्रो. पूरन चंद टंडन
बिजनौर (उत्तर प्रदेश)। वर्धमान कॉलेज, बिजनौर (उत्तर प्रदेश) में “अकादमिक लेखन: शोध की नई प्रवृत्तियाँ” विषय पर दो-दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी की शुरूआत माँ सरस्वती की वंदना और अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर इनॉग्रल सेशन (उद्घाटन सत्र) का शुभारंभ किया गया। इसके पश्चात कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों को बालवृक्ष देकर उनका स्वागत किया गया। साथ ही महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफ़ेसर सी.एम. जैन ने संगोष्ठी में उपस्थित अतिथियों का स्वागत किया। साथ ही इस महत्त्वपूर्ण विषय की गंभीरता पर बात की। उन्होंने कहा कि इस तरह की संगोष्ठियों में शोधार्थियों और प्राध्यापकों को बढ़-चढ़ कर भाग लेना चाहिए, जिससे उनके रिसर्च की क़ाबिलियत में उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे। इसके पश्चात संगोष्ठी की कॉर्डिनेटर डॉ. अलका साहू ने संगोष्ठी में सहयोग के लिए विभिन्न संस्थाओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। संगोष्ठी के कन्वीनर डॉ. एस. के. शोन ने शोध पत्रिका में छपे शोधपत्रों और उनकी गुणवत्ता की बात की।
इसी क्रम में मुख्य अतिथि ने यूजीसी केयर लिस्टेड पत्रिका 'शोध-दिशा' के 484 पृष्ठीय दीर्घकाय विशेषांक का लोकार्पण किया। इस विशेषांक में इस संगोष्ठी के लिए प्राप्त 81 शोधपत्र प्रकाशित किए गए हैं।
इसके पश्चात डॉ. शशि प्रभा ने संगोष्ठी के बीज वक्तव्य के लिए वर्धा से पधारे प्रोफेसर देवराज, डीन, अनुवाद विद्यापीठ, महात्मा गाँधी हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा का परिचय-पाठ किया। तत्पश्चात् उन्होंने अपना गंभीर और सुलझा वक्तव्य देना शुरू किया। उन्होंने अपनी बात करते हुए कहा कि मैं भाषा का छोटा सा सिपाही हूँ। इसी क्रम में बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमारा देश वैश्विक प्रौद्योगिकी, सांस्कृतिक पहचान आदि की धारा में एक साथ छलाँग लगा रहा है। उन्होंने शोधार्थियों द्वारा उनके विषय चुनाव की पद्धति पर बात करते हुए नवाचार को अपनाने की सलाह दी।
इसी क्रम में डॉ. यशवेंद्र ढाका ने संगोष्ठी के मुख्य अतिथि के रूप में पधारे प्रो. ऋषभदेव शर्मा (पूर्व अध्यक्ष, पोस्टग्रेजुएट ऐंड रिसर्च इंस्टीट्यूट, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद) का परिचय-पाठ किया। प्रो. ऋषभदेव ने शोध की वर्तमान दशा और दिशा पर बात करते हुए भूमंडलीकरण के प्रभाव का मूल्यांकन किया। साथ ही विभिन्न विमर्शों पर शोध की प्रक्रिया और उपयोगिता पर बात की। उन्होंने बताया कि वर्तमान में पूरा भारत अपनी कर्मठता और क्रियाशीलता से विश्वगुरु बनने की प्रक्रिया में लगा हुआ है। उन्होंने आगे कहा कि शोधार्थियों को भी अपने शोध की गुणवत्ता का ध्यान रखते हुए देश की प्रगति में अपना योगदान देना चाहिए।
इनॉग्रल सेशन के बाद विभिन्न तकनीकी सत्रों का आयोजन हुआ, जिसमें प्रतिभागियों ने अपने शोधपत्रों का वाचन किया।
संगोष्ठी का सफल मंच संचालन ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. अन्जू बंसल द्वारा किया गया।
दूसरे दिन संगोष्ठी के चतुर्थ टेक्निकल सेशन में चेयरपर्सन के रूप में अलवर से पधारे प्रोफ़ेसर राजीव जैन, डीन, सनराइज यूनिवर्सिटी, अलवर और को-चेयरपर्सन डॉ. राजीव जौहरी, डीन, फैकेल्टी ऑफ़ साइंस, वर्धमान कॉलेज, बिजनौर शामिल हुए। इस सेशन में विभिन्न शोधार्थियों ने ऑनलाइन तथा ऑफ़लाइन माध्यम से अपने शोधपत्रों का वाचन किया। कार्यक्रम की शुरूआत में अतिथि वक्ता के रूप में डॉ. दीप्ति माहेश्वरी, एक्स डीन, रवींद्रनाथ टैगोर, यूनिवर्सिटी, भोपाल ने रिसर्च मैथडोलॉजी: सेलेक्शन ऑफ़ टूल्स ऐंड टेक्निक्ल विषय पर अपना सारगर्भित वक्तव्य ऑनलाइन माध्यम से प्रस्तुत किया। उन्होंने अपने विषय पर बात करते हुए विभिन्न विषयों और उनमें प्रयोग की जाने वाली विभीन्न शोध-प्रविधियों पर सोदाहरण अपनी बात रखी।
इसके पश्चात आईआईटी कानपुर के विद्वान प्रोफ़ेसर अरुण कुमार शर्मा, हेड एवं डीन, ह्यूमैनिटीज ऐंड सोशल साइंसेज ने हाउ टू राइट अ रिसर्च प्रपोजल पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने अपने विषय पर बोलते हुए कहा कि शोधार्थियों को सबसे पहले विषय का चुनाव किस प्रकार किया जाय, इस पर विचार करना चाहिए। तत्पश्चात् यह देखना चाहिए कि उस विषय पर अभी तक कितना कार्य हो चुका है। साथ ही आप उसमें नया क्या करने वाले हैं और आपकी पद्धति वैज्ञानिक है अथवा नहीं। साथ ही आपके शोध में समाज के नैतिक विषयों को उठाया जा रहा है अथवा नहीं। इन सभी संस्तरणों पर शोधार्थियों को क्रमवार विचार करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। प्रोफ़ेसर शर्मा के बारे में जब श्रोताओं को पता चला कि आप वर्धम कॉलेज के पूर्व छात्र रहे हैं, तो पूरा सभागार तालियों से गूँज उठा।
अगले सत्र में विभिन्न शोधार्थियों द्वारा शोधपत्रों का वाचन किया गया, जिनमें प्रवीण कुमार, अनमत खान आदि ने शोधप्रविधि पर अपनी बात रखी। इस टैक्निकल सत्र का मंच संचालन डॉ. मेघना अरोड़ा द्वारा किया गया।
इसके पश्चात षष्ठ टैक्निकल सत्र की शुरूआत हुई, जिसके चेयरपर्सन डॉ. जी.आर. गुप्ता, पूर्व प्राचार्य, वर्धमान कॉलेज और को-चेयरपर्सन डॉ. एस.के. गुप्ता, डीन, फैकेल्टी ऑफ़ कॉमर्स, वर्धमान कॉलेज रहे।
इस सत्र में अतिथि वक्ता के रूप में प्रोफ़ेसर एस.के. यादव, ऐनसीईआरटी, नई दिल्ली और डॉ. भावना जौहरी, दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट आगरा ने संगोष्ठी के विषय पर अपना महत्त्वपूर्ण वक्तव्य दिया। साथ ही शोधार्थियों व प्राध्यापकों ने भी अपने शोधपत्र पढ़े।
अंत में इस संगोष्ठी का समापन सत्र आयोजित किया गया। इस सत्र की शुरूआत अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती की प्रतिमा के समक्ष दीप प्रज्वलित कर की गई। इसके पश्चात संगोष्ठी के कन्वीनर डॉ. एस.के. शोन ने अतिथियों का स्वागत किया। कॉर्डिनेटर डॉ. अलका साहू ने पूरे दो दिनों तक चले इस आयोजन का रिपोर्ट प्रस्तुत किया।
तत्पश्चात् दिल्ली विश्वविद्यालय से विशेष अतिथि के रूप में पधारे प्रोफ़ेसर पूरन चंद टण्डन ने इस संगोष्ठी के विषय की महत्ता पर बात करते हुए कहा कि यह विषय प्रत्येक शोधार्थी व शैक्षिक कर्त्तव्य में लगे प्राध्यापकों के लिए आवश्यक है, जिनका सीधा सम्बन्ध विद्यार्थियों के साथ संप्रेषण व अध्यापन के माध्यम से होता है। आपने शोध-पद्धति से सम्बंधित ज्ञान के विस्तार को आवश्यक बताया।
समापन सत्र के मुख्य अतिथि के रूप में साउथ एशियन यूनिवर्सिटी, नई दिल्ली से पधारे प्रोफ़ेसर पंकज जैन ने साइंस विषयों में अपनाई जाने वाली शोधप्रविधि का उल्लेख करते हुए इस संगोष्ठी के सफल आयोजन के लिए आयोजन समिति को बधाई दी। आपने कहा कि इस प्रकार के आयोजनों से शिक्षण संस्थाओं में शोध-प्रक्रिया को बल मिलता है।
प्रो. देवराज में समाकलन वक्तव्य दिया और प्रोफ़ेसर ऋषभदेव शर्मा ने संगोष्ठों का मूल्यांकन करते हुए टिप्पणी की। दोनों ने ही इस बात पर ज़ोर दिया कि शोध-पद्धति के हर एक सोपान पर नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में अलग-अलग कार्यशालाएँ आयोजित की जानी चाहिए।
संगोष्ठी की ऑर्गेनाइजिंग सेक्रेटरी डॉ. अन्जू बंसल द्वारा अतिथियों के माध्यम से सर्टिफ़िकेट वितरण का कार्य पूर्ण किया गया। इसी क्रम में डॉ. सी.एस. शुक्ला, पूर्व विभागाध्यक्ष, बीएड विभाग की दो पुस्तकों, क्रमशः भारतीय एवं पाश्चात्य शिक्षाविद व शिक्षा मनोविज्ञान का अतिथि विद्वानों द्वारा विमोचन किया गया।
अंत में महाविद्यालय के प्राचार्य प्रोफ़ेसर सी.एम. जैन द्वारा सभी अतिथियों व संगोष्ठी प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापित किया गया। समापन सत्र का सफल संचालन डॉ. यशवेंद्र ढाका द्वारा किया गया।
इस अवसर पर विभिन्न प्रदेशों और शहरों से पधारे प्रतिभागियों व शोधार्थियों के अलावा शोध के इच्छुक विद्यार्थीगण भी उपस्थित रहे। साथ ही महाविद्यालय के प्राध्यापकगणों में डॉ. रेणु शर्मा, डॉ. राजीव जौहरी, डॉ. सुनील अग्रवाल, डॉ. एस.के. जोशी, डॉ. ए.के.एस. राणा, डॉ. पूनम शर्मा, डॉ. संजय कुमार, डॉ. टी.ऐन. सूर्या, डॉ. धर्मेंद्र कुमार, डॉ. पद्मश्री, डॉ. जे.के. विश्वकर्मा, डॉ. शशि प्रभा, डॉ. प्रीति खन्ना, डॉ. राजेश यादव, डॉ. प्रमोद कुमार, डॉ. नीरज कुमार, डॉ. मुकेश कुमार, डॉ. वैशाली पूनिया, डॉ. सुरभि सिंघल, डॉ. निदा खान, डॉ. राजीव अग्रवाल, डॉ. धर्मेंद्र यादव, डॉ. दिव्या जैन, मौ. साबिर, डॉ. पंकज भटनागर, श्री विकास, डॉ. सोनल शुक्ला, डॉ. अवनीश अरोड़ा, डॉ. विपिन देशवाल, डॉ. चारुदत्त आर्य, डॉ. दुर्गा जैन, डॉ. काकरान, श्री प्रशांत आहलूवालिया, डॉ. राहुल, डॉ. प्रतिभा, डॉ. अनामिका, डॉ. ओ.पी. सिंह आदि शामिल रहे।
प्रस्तुति—
डॉ. अंजु बंसल
वर्धमान कॉलेज, बिजनौर।
वर्धमान स्कूल में बाल रचनाकार पुरस्कृत
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा वर्धमान स्कूल में विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
विद्यालय की प्रबंधक डी पी सिंह ने कहा कि अभिनव बालमन के माध्यम से विद्यार्थियों में यह विश्वास आया है कि वह भी अपनी कल्पनाओं को पिरोकर कहानी, कविता जैसी विभिन्न विधाओं में लेखन कर सकते हैं।
प्रधानाचार्या पूजा वार्ष्णेय ने कहा कि विद्यार्थियो के लिए बाल साहित्य से जुड़ना बेहद आवश्यक है, जिसका विद्यालय के विद्यार्थियों अवसर प्राप्त हो रहा है।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि विद्यार्थियों की सहभागिता उनका होंसला बढ़ाएगी। हमें विश्वास है कि आगे भी विद्यार्थी एक से बढ़कर एक रचनायें रचेंगे जिससे उनके व्यक्तित्व में निखार आएगा।
इस अवसर पर मो। फारूक एवं पूजा सक्सेना का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंडी एस बाल मंदिर में बाल रचनाकार पुरस्कृत
अलीगढ़। डी एस बाल मंदिर में बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर प्रधानाचार्या रचना गुप्ता ने कहा कि अभिनव बालमन को पढ़कर बच्चे बहुत ख़ुश हैं। इससे उनमें लेखन के प्रति उत्साह बढ़ा है।
अभिनव बालमन के सम्पादक निश्चल ने कहा कि बाल पत्रिका बच्चों के लिए बेहद ज़रूरी है। बच्चों को कविता, कहानी, चित्रकला आदि से जोड़ने का मक़सद यही है कि वह नए विचारों को जन्म दें। अपने भावों को शब्दों में रचने का गुर सीखे।
आगे पढ़ेंहिन्दू कॉलेज में नाट्य मनीषी दशरथ ओझा का अवदान विषयक संगोष्ठी
हिंदी साहित्येतिहास में दशरथ ओझा अविस्मरणीय: अंकुर
नई दिल्ली। दशरथ ओझा उन अध्येताओं में थे जिन्होंने स्थायी महत्त्व का लेखन किया जिसे उनके निधन के चालीस वर्षों के बाद भी अनदेखा नहीं किया जा सकता। प्रसिद्ध रंगकर्मी और आलोचक देवेंद्र राज अंकुर ने हिन्दू कॉलेज में कहा कि ओझा जी द्वारा लिखित ‘हिंदी नाटक: उद्भव और विकास’ के बाद ‘आज का हिंदी नाटक: प्रगति और प्रभाव’ ऐसे ग्रन्थ हैं जिन्हें पढ़कर हिंदी नाटक के इतिहास को सम्पूर्णता में जाना जा सकता है। ‘आज का हिंदी नाटक: प्रगति और प्रभाव’ को ‘अंधा युग’, ‘पहला राजा’ और ‘आठवाँ सर्ग’ के अध्ययन के लिए विशेष उल्लेखनीय बताया।
अंकुर ने ओझा जी के जगदीश चंद्र माथुर के साथ मिलकर लिखी गई किताब ‘प्राचीन भाषा नाटक’ को भी याद करते हुए बताया कि संस्कृत और प्राचीन भारतीय भाषाओं का ऐसा अद्भुत संग्रह हमारे सांस्कृतिक इतिहास की थाती है। उन्होंने ओझा जी द्वारा निर्मित ‘हिन्दी नाटक कोश’ के महत्त्व की भी चर्चा की।
जयशंकर प्रसाद के प्रसिद्ध नाटक ‘चन्द्रगुप्त’ के अध्यापन के संस्मरण सुनाते हुए उन्होंने बताया कि ऐसे बड़े और गंभीर नाटक एक-एक संवाद को वे कक्षा में पढ़ाते थे। नाटक जब पाठ से रंगमंच तक जाता है तब वह सम्पूर्ण होता है। नाटक की आंतरिक जटिलताएँ मंच पर ही व्यक्त हो पाती हैं पढ़ते हुए नहीं। उन्होंने हिंदी विद्यार्थियों की रंगमंच में घटती रुचि पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि जो नाटक पाठ्यक्रम में होता है और यदि उसका मंचन हो तब विद्यार्थी उसे देखने आते हैं लेकिन यह पर्याप्त नहीं है क्योंकि रंगमंच के बिना साहित्य का वृत्त सम्पूर्ण नहीं होता। अंकुर ने कहा कि रंगमंच ही ऐसा माध्यम है जो ग़लतियाँ सुधारने का अवसर हमेशा देता है।
इससे पहले दशरथ ओझा लिखित उपन्यास ‘एकता के अग्रदूत: शंकराचार्य’ तथा ‘आज का हिंदी नाटक: प्रगति और प्रभाव’ का लोकार्पण किया गया। दोनों पुस्तकों के नये संस्करण लगभग चालीस वर्षों के बाद आए हैं। हिंदी विभाग के आचार्य प्रो. रामेश्वर राय ने उपन्यास ‘एकता के अग्रदूत: शंकराचार्य’ को उल्लेखनीय कृति बताते हुए कहा कि गंभीर भाषा में अपने युग के महान आचार्य के जीवन पर लिखी गई ऐसी पुस्तक है जिसमें दर्शन और संस्कृति का सार है। पुस्तकों की प्रकाशक और राजपाल एंड सन्ज़ की निदेशक मीरा जौहरी ने कहा कि उनके लिए पुस्तक प्रकाशन व्यवसाय से अधिक सांस्कृतिक योगदान है। जौहरी ने ओझा जी के व्यक्तित्व को याद करते हुए उनके कुछ संस्मरण भी सुनाए। उन्होंने कहा कि यह आयोजन अनूठा है क्योंकि आत्मप्रदर्शन के इस दौर में ऐसे लेखक को याद किया जा रहा है अनुपस्थिति को भी लंबा समय व्यतीत हो गया है।
अभिरंग के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने कहा कि ओझा जी जैसे साहित्य निर्माताओं को याद करना अपनी पुरोधा पीढ़ी के अवदान का ऋण स्वीकार है। गोष्ठी का संयोजन दृष्टि शर्मा ने किया और आयुष मिश्र ने लेखक परिचय दिया। अंत में लोकेश ने आभार व्यक्त किया। संगोष्ठी में जूही शर्मा, चंचल, रितिका शर्मा, अजय, वज्रांग और आरिश ने स्वागत और अभिनन्दन किया। हिन्दू कॉलेज के सुशीला देवी सभागार में इस अवसर पर हिंदी विभाग के आचार्य रचना सिंह, डॉ विमलेन्दु तीर्थंकर, डॉ अरविन्द कुमार सम्बल, डॉ धर्मेंद्र प्रताप सिंह, डॉ नौशाद अली और डॉ रमेश कुमार राज सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित थे।
शिवम मिश्रा
अभिरंग, हिन्दू कॉलेज
दिल्ली
वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़। सासनी गेट स्थित वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताएँ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
प्रधानाचार्या पूनम भारद्वाज ने कहा कि हमारे विद्यालय के बच्चे अभिनव बालमन से जुड़कर बेहद आनंदित हैं। उनको इससे ये पता चला कि किस तरह वो भी कविता, कहानी, संस्मरण लिख सकते हैं। बच्चों ने विभिन्न प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर प्रतिभाग किया है।
इस अवसर पर अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि विद्यालय द्वारा हमेशा सकारात्मक सहयोग मिला है। बच्चों को चित्रकला एवं लेखन में रचनात्मक सृजन के लिए पर्याप्त अवसर दिया जाता है जो आज के बदलते परिवेश में उनकी रचनात्मकता को बेहतर बनाता है।
इस अवसर पर उप प्रधानाचार्या शालिनी भारद्वाज का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंअभिनव बालमन द्वारा बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
सी बी गुप्ता सरस्वती विद्यापीठ में बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय त्रैमासिक पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा विभिन्न प्रतियोगिताएँ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
प्रधानाचार्य कुमुदेश कुमार ने कहा कि बच्चों ने अपनी रचनात्मकता को जिस तरह इन प्रतियोगिताओं के माध्यम से प्रदर्शित किया है वह प्रशंसनीय है। अपनी दैनिक दिनचर्या में कुछ समय कविता, कहानी, चित्रकला, संस्मरण आदि के लिए देना सीख देता है कि हम पाठ्यक्रम के साथ-साथ इन विधाओं को समय दें तो निश्चित ही हमारे व्यक्तित्व का विकास और भी बेहतर ढंग से होगा।
अभिनव बालमन के सम्पादक निश्चल ने कहा कि विगत 14 वर्षों से अलीगढ़ में अभिनव बालमन द्वारा हज़ारों बाल रचनाकारों को जोड़ते हुए विभिन्न विधाओं में रचनात्मक सृजन कराया गया है। बच्चों में कल्पनाओं की कमी नहीं, ज़रूरत हैं उन्हें ऐसा वातावरण देने की जिसमें वह अपने आस पास के अनुभवों को शब्दों एवं रंगों के माध्यम से अभिव्यक्त कर सकें। और ये करने का प्रयास हमारे द्वारा निरंतर जारी है।
इस अवसर पर भारती, विमल एवं अनिल जैन का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
युवा उत्कर्ष संगोष्ठी संपन्न: ‘रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक’
युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच (पंजीकृत न्यास) आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा की दशम ऑनलाइन संगोष्ठी 21 जनवरी 2023 (शनिवार) संध्या 4:00 बजे से आयोजित की गई।
डॉ. रमा द्विवेदी (अध्यक्ष, आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना राज्य शाखा) एवं महासचिव दीपा कृष्णदीप ने संयुक्त प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि सुप्रसिद्ध वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की। विशेष अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी (दिल्ली) एवं मुख्य वक्ता साहित्यकार डॉ संगीता शर्मा मंचासीन हुए।
कार्यक्रम का शुभारंभ पूनम जायसवाल के द्वारा सरस्वती वंदना के साथ हुआ। तत्पश्चात अध्यक्षा डॉ. रमा द्विवेदी ने अतिथियों का परिचय, स्वागत भाषण एवं संस्था का परिचय दिया। विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. रमा द्विवेदी ने कहा—रांगेय राघव ने शेक्सपियर के दस नाटकों का हिंदी अनुवाद करके उनका परिचय हिंदी साहित्य से करवाया और वे नाटक आज भी सर्वश्रेष्ठ नाटक माने जाते हैं। इसलिए उन्हें हिंदी का शेक्सपियर भी कहा जाता है।
वे स्त्रियों का बहुत सम्मान करते थे और उनके स्त्री पात्र बहुत मज़बूत और सशक्त हैं। अतः उन्होंने अपने अधिकांश उपन्यासों के नाम उस कथा की नायिका के नाम पर रखे, जैसे : लोई का ताना, रत्ना की बात, यशोधरा जीत गई, देवकी का बेटा, लखिमा की आँखें, भारती का सपूत। रांगेय राघव जी तमिल कुल के अद्भुत हिंदी साहित्यकार थे।
प्रथम सत्र “अनमोल एहसास” और “मन के रंग मित्रों के संग” दो शीर्षक के अंतर्गत संपन्न हुआ।
प्रथम सत्र के प्रथम भाग अनमोल अहसास के अंतर्गत “रांगेय राघव: हिंदी के लिक्खाड़ लेखक” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गई।
मुख्य वक्ता डॉ. संगीता शर्मा ने अपने वक्तव्य में कहा कि रांघेय राघव 13 साल की उम्र में लिखना शुरू किया और 39 साल की अल्पायु में ही 150 कृतियों की रचना की थी। उनकी बेमिसाल लेखकीय प्रतिभा का ही कमाल है कि साहित्य की हर विधा पर अपनी लेखनी चलाई। वे कहते हैं कि ‘जीवन की विषमताओं को रटना मेरा ध्येय नहीं बल्कि उन्हें मिटाना ही मेरा उद्देश्य है’। उनके लेखन में नए और पुराने दोनों का सम्मिश्रण मिलता है। भारतीय समाज में यह विख्यात है कि वे दोनों हाथों से लिखते थे, वे तंत्र सिद्ध थे इसलिये उन्हें हिंदी साहित्य जगत का लिक्खाड़ लेखक कहा जाता है।
विशेष अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार अवधेश कुमार सिन्हा जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि रांघेय राघव मूलतः दक्षिण भारतीय होकर तथा शिक्षा का माध्यम अंग्रेज़ी होते हुए भी रांघेय राघव को हिंदी से अगाध प्रेम था और इसी को उन्होंने अपने लेखन की भाषा बनाया। विषम आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद परिवार की साहित्यिक विरासत को आगे बढ़ाने एवं लेखन के प्रति उनके पूर्ण समर्पण के कारण उन्होंने स्वतंत्र रूप से लेखन को ही अपनी आजीविका का साधन बनाया। मनुष्य के जीवनगत यथार्थ, उसकी पीड़ा को उजागर करने तथा सामाजिक विषमता व वर्ग-संघर्ष से त्रस्त मानवता को मुक्ति दिलाने के लिए वे साहित्य की विभिन्न विधाओं में जीवन के अंतिम क्षणों तक लिखते रहे। लक्ष्य की प्राप्ति के लिए निरंतर लिखने के जुनून में उन्होंने कभी अपने शरीर की चिंता नहीं की और उनका गिरता स्वास्थ्य ही अंततः अल्पायु में उनकी मत्यु का कारण बना।
तत्पश्चात मन के रंग मित्रों के संग में सुपरिचित साहित्यकार संतोष रजा जी ने अपना प्रेरक प्रसंग सुनाया। अपने प्रसंग में उन्होंने अपनी स्वयं की घटना का उल्लेख किया जिससे हम सब को गर्व महसूस हुआ कि ऐसे लोग भी हैं जो दूसरों के लिए दया, करुणा और प्रेम का भाव रखते हैं वो आज हमारे बीच हम सब के मित्र हैं।
अध्ययक्षीय उद्बोधन में वरिष्ठ व्यंग्यकार/कथाकार श्री रामकिशोर उपाध्याय जी (राष्ट्रीय अध्यक्ष, दिल्ली) ने सफल कार्यक्रम की शुभकामनाएँ दीं और विषय पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि रांगेय राघव अपने समय के एक ऐसे साहित्यकार हैं जिन्होंने हिन्दी साहित्य की सभी विधाओं में प्रभूत लेखन किया। उन्होंने कई नूतन परंपराओं का सूत्रपात भी किया । लिखने का उनके भीतर जुनून था। वे उन विरले साहित्यकारों में शुमार हो गये जिनके विषय में कहा जाता है कि वे लेखनी पकड़ कर पैदा हुए । उनकी विलक्षण लेखन-प्रतिभा के अनेक उदाहरण हैं। प्रसिद्ध उपन्यास ‘कब तक पुकारूँ’ को उन्होंने एक महीने से कम समय में लिख डाला था । उन्होंने समाज, संस्कृति एवं मानवीय पहलुओं को लेखन की अंतर्वस्तु के ग्रहण करते हुए अपनी कहानियों और उपन्यासों में सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक शोषण को बख़ूबी उकेरा। उनकी कहानी “गदल” बहुत लोकप्रिय हुई । मार्क्सवादी होते हुए भी वे जड़ मार्क्सवाद के पैरोकार कभी नहीं रहे।
दुर्भाग्यवश हिन्दी साहित्य ने उन्हें उनका उचित स्थान नहीं दिया। इस शताब्दी वर्ष में हम सभी का दायित्व है कि रांगेय राघव के साहित्यिक अवदान को यथोचित स्थान दिलायें। यही उस महान साहित्यकार के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
तत्पश्चात दूसरे सत्र में काव्य गोष्ठी आयोजित की गई।
उपस्थित रचनाकारों ने विविध विषयों पर काव्य पाठ करके कार्यक्रम को हर्षोल्लास से भर दिया। डॉ. ममता श्रीवास्तव सरुनाथ (दिल्ली), भावना पुरोहित, डॉ. सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, विनीता शर्मा, डॉ. जयप्रकाश तिवारी (लखनऊ), सी पी दायमा, किरण सिंह, डॉ. रमा द्विवेदी, दीपा कृष्णदीप, डॉ. संगीता शर्मा, संजीव चौधरी (कोलकता) संतोष रजा, रमा गोस्वामी ने काव्य पाठ किया। अध्यक्ष रामकिशोर उपाध्याय जी ने अध्यक्षीय काव्य पाठ किया एवं सभी रचनाकारों को शानदार काव्यपाठ के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित कीं।
अवधेश कुमार सिन्हा (दिल्ली), लावण्या इनागंती, कुंतल श्रीवास्तव (मुंबई) पूनम जायसवाल, डॉ. सुरभि दत्त, मोहिनी गुप्ता एवं डॉ. पी. के. जैन जी ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई।
संगोष्ठी का संचालन दीपा कृष्णदीप ने किया। किरण सिंह जी के आभार प्रदर्शन के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।
—डॉ. रमा द्विवेदी
शाखा अध्यक्ष/ युवा उत्कर्ष साहित्यिक मंच
आगे पढ़ेंहरियाणा के सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ को ‘विश्व हिंदी साहित्य रत्न सम्मान’
‘विश्व हिंदी दिवस’ के अवसर पर 10 जनवरी 10 बजकर 10 मिनट पर ‘विश्व हिंदी साहित्य रत्न सम्मान 2023’ से सम्मानित किया गया। देश भर के 75 साहित्यकारों के इस प्रोग्राम को ‘फॉरएवर स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ में दर्ज किया गया है। युवा लेखक दम्पति भिवानी के गाँव बड़वा के निवासी है और साहित्य जगत के साथ-साथ दैनिक सम्पादकीय लेखन में सक्रिय है।
हिसार/भिवानी/कोटा। संगम अकादमी एवं पब्लिकेशन कोटा के द्वारा 'विश्व हिंदी दिवस' के अवसर पर 10 जनवरी को 10 बजकर 10 मिनट पर हरियाणा के भिवानी ज़िले के सिवानी उपमंडल के गाँव बड़वा निवासी युवा लेखक सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ को देश के हिंदी भाषी 75 साहित्यकारों की सूची में शामिल किया गया। देश भर के 75 साहित्यकारों के इस प्रोग्राम को ‘फॉरएवर स्टार बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्ड्स’ में दर्ज किया गया है। संगम अकादमी हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए देश में एक अग्रणी संस्था है।
सत्यवान 'सौरभ' की 4 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है। यादें काव्य संग्रह, तितली है ख़ामोश दोहा संग्रह, क़ुदरत की पीर निबंध संग्रह और अंग्रेज़ी में एक पुस्तक इश्यूज एंड पैंस प्रमुख पुस्तकें है; अभी एक पुस्तक संवाद प्रकाशनाधीन है। इनके लिखे दोहे न केवल हर किसी को पसंद आते हैं बल्कि लोग इनके लेखन के पीछे के उद्देश्य को भी भली-भाँति समझ पाते हैं।
युवा लेखिका ‘प्रियंका सौरभ’ की, जो मौजूदा समय में महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं और अपनी क़लम से नारी जगत के लिए आवाज़ उठा रही हैं। कविता के अलावा वे प्रतिदिन अपने संपादकीय लेखों से विभिन्न भाषाओं में लेखन कार्य कर रही हैं। उनकी तीन पुस्तकें हाल ही में प्रकाशित हुई हैं। इनमें सामाजिक और राजनीतिक जीवन की कड़वी सच्चाई को व्यक्त करने वाले निबंध ‘दीमक लगे गुलाब’ और आधुनिक नारी की समस्याओं से रूबरू कराने वाली ‘निर्भयाएं’ शामिल हैं। इन दो किताबों के अलावा हर क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति पर आधारित अंग्रेज़ी में ‘द फीयरलेस’ किताब शामिल है।
सत्यवान ‘सौरभ’ एवं प्रियंका सौरभ हरियाणा के दैनिक संपादकीय लेखकों में है। इनका दोहा संग्रह ‘तितली है ख़ामोश’ देशभर में काफ़ी चर्चित रहा है। सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ की इस उपलब्धि पर सिवानी उपमंडल के साहित्यकारों, शिक्षकों, राजनीतिज्ञों और मित्रों ने शुभकामनाएँ देकर उनके उज्जवल भविष्य की कामना की है।
आगे पढ़ेंटॉफ़ी, मिठाई और रंगों को लेकर रच दी कहानियाँ
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा सूतमिल चौराहे स्थित मिशन इंटरनेशनल स्कूल में ‘मिलकर बुनें कहानी’ का आयोजन किया गया।
अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने बच्चों से कविता और कहानी के रचने के बारे में बातचीत की। साथ ही कहानी कैसे बुनें इस का प्रयास बच्चों द्वारा किया गया।
अपने आसपास की चीज़ों में घटनाओं में कहानी कैसे तलाशें इस पर बातचीत हुई और बच्चों ने कहानियों के आइडिया दिए। किसी ने टॉफियों के संसार की कहानी का इंडिया दिया किसी ने मिठाइयों का, किसान का, चिड़ियों की दोस्ती का और किसी ने रंग की बातचीत को लेकर कहानी के आइडिया दिए। जिस पर सभी बच्चों ने बाद में कहानियों को बुनने की कोशिश की।
इस अवसर पर प्रबन्धक आशीष शर्मा ने कहा कि बच्चों ने कविता एवं कहानी लेखन में जिस तरह रुचि के साथ सहभागिता की है वह प्रशंसनीय है।
प्रधानाचार्या शीतल शर्मा ने कहा कि बच्चों ने बहुत ही अच्छी कविता और कहानियों की रचना की है। निश्चित ही इस तरह उनकी रचनात्मकता में निखार आएगा।
कार्यक्रम में अभिनव बालमन के लखन एवं विद्यालय के शिक्षक हनी कश्यप का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंरंगों की ख़ुशी से चहक उठे बाल चित्रकार
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा सासनी गेट स्थित वात्सल्य वर्ल्ड स्कूल में ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन किया गया।
बच्चों ने अपनी अपनी रचनात्मकता को कोमल कल्पनाओं से जोड़ते हुए भिन्न-भिन्न चित्र बनाए।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्या पूनम भारद्वाज ने कहा कि नन्हे-मुन्ने प्यारे बच्चों को चित्रकला से जोड़कर उनके मन की बातों को जानना अभिनव प्रयोग है।
इस अवसर पर अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि ‘अभिनव बालमन’ बच्चों के बीच जाकर निरंतर यह प्रयास कर रही है कि बच्चे विभिन्न विधाओं में रचनात्मकता को सभी के सामने लायें। इसी उद्देश्य के साथ ‘मेरा मन मेरे रंग’ के माध्यम से बच्चों को चित्रकारी का अवसर प्रदान किया गया।
आयोजन में विद्यालय की उप प्रधानाचार्या शालिनी भारद्वाज सहित प्रीती गुप्ता, रेशू अग्रवाल, आँचल, आरती, नीता, सुषमा, रजनी, सपना, अंशिका उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंपहली बार रची ख़ुद की कहानी
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका 'अभिनव बालमन' द्वारा सी बी गुप्ता सरस्वती विद्यापीठ में ‘मिलकर बुनें कहानी’ का आयोजन किया गया।
इस अवसर पर अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने बच्चों को स्वयं की कहानी को रचने के गुर सिखाये। बच्चों से कहानी की बात हुई। जो कहानी अब तक पढ़ते थे वो स्वयं कि कैसे लिखें ये बच्चों के लिए उत्सुकता का विषय रहा। बात को समझते हुए बच्चों ने कहानी रचने का प्रयास किया। बच्चों ने एक से एक बढ़िया और नए विषय कहानी के बताए जिसपर उन्होंने कहानी रचने की कोशिश की।
इस तरह से बहुत से बच्चों ने पहली बार ख़ुद की कहानी रची।
इस अवसर पर प्रधानाचार्य कुमुदेश ने कहा कि अभिनव बालमन द्वारा बच्चों के बीच आकर उन्हें रचनात्मक लेखन से जोड़ना प्रशंसनीय है। आजकल इस लेखन की महती आवश्यकता है।
कार्यक्रम में विमल वार्ष्णेय, नीतू अग्रवाल, अंकिता महेश्वरी, गीता शर्मा, अनुज जैन, डॉ. शकील का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंकांगड़ा के राजीव डोगरा को नाईजीरिया से मिली डॉक्टरेट की उपाधि
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश।
कांगड़ा के युवा कवि और भाषा अध्यापक राजीव डोगरा को साहित्य, शिक्षा और मानवता में किए गए उनके द्वारा कार्यों के लिए नाइजीरिया की संस्था Good Samaritan Theological Seminary (Affiliated with TECHM INTL INC United States of America) ने डॉक्टरेट की उपाधि देकर सम्मानित किया। उनको यह उपाधि संस्था के चांसलर Dr. Ade Harold और Prof. H E Amb. Dr. Md. Shahin ने वर्चुअल प्रदान की। राजीव ने बांग्लादेश के कवि तनवीर शाहीन का विशेष रूप से धन्यवाद किया जिनके मार्गदर्शन और सहयोग से उनको इतनी बड़ी उपलब्धि प्राप्त हुई।
सम्मानित होने पर राजीव के माता-पिता हंसराज और सरोज कुमारी तथा शिमला के रोशन जसवाल (साहित्यकार और रिटायर्ड ज्वाइंट डायरेक्टर शिक्षा विभाग हिमाचल प्रदेश), रविंदर नरयाल (खण्ड स्त्रोत केंद्रीय समन्वयक खण्ड कांगड़ा के बी.आर.सी.), प्रिंसिपल नीरज गर्ग (गवर्नमेंट सीनियर सेकेंडरी स्कूल गाहलियां), धराधाम इंटरनेशनल संस्था के संस्थापक डॉ. सौरभ पांडे, कांगड़ा के साहित्यकार उदयवीर भारद्वाज, कुल्लू के साहित्यकार तथा संस्कृति के संरक्षक राज शर्मा, लिटल एंकर मॉडल एक्टरस अक्षिता जसवाल ने अत्यंत ख़ुशी व्यक्त की और ऐसे ही आगे बढ़ते रहने के लिए उत्साहित किया।
आगे पढ़ेंचौधरी बंसीलाल विश्वविद्यालय भिवानी की कुल सचिव प्रो. ऋतु सिंह ने वर्ष 2023 का कलेण्डर जारी किया
भिवानी।
16 नवम्बर 2022 को गुगनराम एजुकेशनल एण्ड सोशल वैलफ़ेयर सोसायटी रजिस्टर्ड द्वारा भिवानी से प्रकाशित अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका बोहल शोध मंजुषा एवं गीना देवी शोध संस्थान द्वारा श्रीगंगानगर, राजस्थान से प्रकाशित गीना शोध संगम अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका का संयुक्त टेबल कैलेण्डर 2023 चौधरी बंसी लाल विश्वविद्यालय भिवानी हरियाणा की कुल सचिव प्रो. ऋतु सिंह जी ने जारी करते हुए कहा कि वर्ष 2015 से भिवानी शहर से प्रकाशित बोहल शोध मंजूषा शोध के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य कर रही है। ऐसी पत्रिकाएँ हमें शोध के साथ-साथ साहित्य, शिक्षा, संस्कृति से भी हमें जोड़ती हैं। पत्रिका विशेष अवसरों पर अपने विशेषांक भी प्रकाशित करती रहती हैं। पत्रिका के किन्नर विशेषांक, नारी विशेषांक, रूपा जीवा, हिन्दी साहित्य को मुस्लिम साहित्यकारों का योगदान आदि शोध के क्षेत्र में प्रकाशित अंक मील का पत्थर हैं।
गीना देवी शोध संस्थान द्वारा श्रीगंगानगर से प्रकाशित गीना शोध संगम के प्रधान सम्पादक डॉ. नरेश सिहाग एडवोकेट ने बताया कि हमारी पत्रिका 2013 से नियमित प्रकाशित हो रही है। सितम्बर 2023 में प्रकाशित हिन्दी भाषा: साहित्य, शिक्षा के विशेष संदर्भ में, धर्म एवं संस्कृति नेपाल विशेषांक आदि प्रकाशित कर साहित्य व शिक्षा के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दे रही है। संस्थान समय-समय पर महाविद्यालयों, विश्वविद्यालयों के साथ मिलकर राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों, कार्यशालाओं का आयोजन करता रहता है। संस्थान प्रतिवर्ष साहित्य, शिक्षा एवं शोध के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान करने वाले विद्वानों को भी सम्मानित भी करता रहता है। इस अवसर पर डॉ. सुशीला आर्या, दिनेश सोनी, राजेन्द्र लांग्यान, सुरेन्द्र सिंह, विनोद शर्मा आदि उपस्थित थे।
प्रस्तुति: मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगे पढ़ेंहिन्दू कॉलेज में नाटक 'गज फुट इंच' का मंचन
सामूहिकता और सामुदायिकता के लिए रंगमंच आवश्यक: डॉ. पल्लव
नई दिल्ली।
“मन, अरमान, लालसाएँ, उम्र की तलब सबके पास होती हैं। मेरे पास भी हैं। पर किस क़ीमत पर? जब-जब कुछ कहना चाहा है, सबने मज़ाक उड़ाया है। क्यों? क्योंकि सब आगे बढ़ गए हैं और मैं उसी गद्दी पर हूँ जहाँ मेरे अनपढ़ बाप दादा बैठते थे। सच मानो जुगनी, आज के मीटर सेंटीमीटर के युग में मैं वही पुराना गज, फुट, इंच हूँ जिसे लोग कब का भूल चुके हैं।” टिल्लू के इस कथन के साथ नाटक 'गज, फुट, इंच' का समाहार हुआ और दर्शकों ने तालियों की गड़गड़ाहट से अभिनेताओं का उत्साहवर्धन किया।
हिन्दू कॉलेज में हिंदी नाट्य संस्था ‘अभिरंग’ द्वारा नाटक प्रसिद्ध व्यंग्यकार के पी सक्सेना के नाटक का मंचन किया गया। ‘गज, फुट, इंच’ शीर्षक से मंचित इस नाटक में भारतीय समाज में धन कमाने की लोभी प्रवृत्ति के कारण व्यक्तित्व के दमन पर व्यंग्य किया गया है।
नाटक में दिव्यांश प्रताप सिंह द्वारा पोखरमल, दृष्टि शर्मा द्वारा गुल्लो, कृतिका द्वारा जुगनी, आयुष मिश्र द्वारा टिल्लू, मोहित द्वारा युवक, श्रुति नायक द्वारा माँ, भानु प्रताप सिंह द्वारा साईदास का अभिनय दर्शकों ने बेहद पसंद किया। दिव्यांश द्वारा पोखरमल की भूमिका में स्थानीय मुहावरों में संवाद अदायगी तथा टिल्लू की भूमिका में आयुष मिश्र के आंगिक अभिनय को दर्शकों ने लगातार तालियाँ बजाकर सराहना की।
नेपथ्य में लोकेश, जूही शर्मा, चंचल, रितिका शर्मा, अजय, वज्रांग और आरिश ने विभिन्न कार्यों द्वारा मंचन में सहयोग दिया। अभिरंग के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने अंत में अभिनेताओं का परिचय देते हुए कहा कि रंगमंच की गतिविधि युवाओं के व्यक्तित्व को बहुआयामी बनाती है और इससे उन्हें न केवल भावी जीवन में मदद मिलती है अपितु वे स्वयं भी बेहतर मनुष्य बन पाते हैं। उन्होंने अभिरंग के उद्देश्यों और संकल्पों के बारे में कहा कि नयी पीढ़ी में सामूहिकता और सामुदायिकता के लिए इस तरह की गतिविधियाँ सदैव उपयोगी रहेंगी।
नाटक के प्रारम्भ में रितिका शर्मा ने नाटक की विषय वस्तु तथा नाटककार का परिचय दिया। अभिरंग के छात्र संयोजक लोकेश ने आभार ज्ञापन किया। हिन्दू कॉलेज के सभागार में इस अवसर पर हिंदी विभाग के अध्यक्ष अभय रंजन, आचार्य रचना सिंह, संस्कृत विभाग के डॉ. विजय गर्ग, डॉ. जगमोहन, पुस्तकालयाध्यक्ष संजीव शर्मा सहित बड़ी संख्या में शिक्षक और विद्यार्थी उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंकृष्णा किंडर में हुआ ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा पला मोड़, आसना स्थित कृष्णा किंडर स्कूल में ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन किया गया।
बाल रचनाकारों ने देशभक्ति, प्रकृति, कार्टून आदि विविध रूपों में चित्रांकन सहित दिए गए चित्रों में अपने मन के रंग भरे।
इस अवसर पर विद्यालय की निदेशिका हेमलता तोमर ने कहा कि बाल रचनाकारों की चित्रकला उनकी प्रतिभाओं को अभिव्यक्त कर रही है।
प्रधानाचार्या गौरी तोमर ने कहा कि सभी बाल रचनाकारों ने विविध चित्रों के माध्यम से सकारात्मक संदेश प्रदान किया है।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या शर्मा ने कहा कि अभिनव बालमन द्वारा बच्चे की कविता, कहानी, चित्रकला सहित सभी अन्य लेखन विधाओं में उनकी सृजनात्मकता को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जाता है। इसी उद्देश्य से आज इस आयोजन में चित्रकला के माध्यम से बच्चों को एक मौक़ा दिया गया है।
इस अवसर पर आकर्षण, कविंद्र, कृष्णा, प्रिया, लिटिल, ख़ुशी, श्रुति, काजल, सोनाली, नीतू, चंचल, नंदनी एवं चारू उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंमहर्षि विद्या मंदिर, पला रोड में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की त्रैमासिक राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा पापा रोड स्थित महर्षि विद्या मंदिर में पत्रिका में दी गईं प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाचार्य देवेश कुमार ने कहा कि बाल रचनाकारों को जिस तरह अभिनव बालमन रचनात्मकता के लिए अवसर प्रदान कर रही है वह सराहनीय है।
इस अवसर पर विद्यालय की शिक्षिका निशा अरोरा की सक्रिय भागीदारी रही।
आगे पढ़ेंमैं केवल एक किरदार हूँ, क़लम में स्याही वो भरता है: अनुभूति की पंचम ‘संवाद शृंखला’ में बोले रमेश गुप्त नीरद
“काव्य लेखन एक सतत प्रक्रिया है। परिवार समाज और देश के वातावरण से विचार ग्रहण करता है कवि। अनुभूतियों और अनुभवों से उत्पन्न विचारों के मंथन से उत्पन्न बिंबों को शब्दों में उकेरना ही कविता की सृजनात्मक प्रक्रिया है। लोकगीत बचपन से ही दिल में रचे-बसे होने के कारण अधिकतर गीत ही लिखे। गेयता मेरी रचनाओं का सहज गुण है,” अनुभूति द्वारा आयोजित पंचम संवाद शृंखला में रमेश गुप्त नीरद ने अपने ये विचार व्यक्त किए।
पर-पीड़ा से आँखें भीग जाती हैं इसलिए गीतों में दर्द झलकता है। कवि नीरद के शब्दों में— पीड़ा के एहसासों को अंबर में लहराता हूँ, मैं बन मेघ तृषित धरती की प्यास बुझाता हूँ—आप नारी का सम्मान करते हैं इसलिए नारी की पीड़ा का चित्रण करते हैं अतः संयोग से अधिक वियोग शृंगार आपकी रचनाओं में मिलता है। समाज में व्याप्त बुराइयों को देखकर अंतस जलता है इसलिए कविताओं में आक्रोश उभरता है। आपके स्कूल के शिक्षक ने आप में अध्ययन की प्रवृत्ति विकसित की और 15 वर्ष की अल्पायु में ही आपने अग्रणी साहित्यकारों की किताबें पढ़ डालीं थी। छायावादी कवि प्रसाद का आपकी आरंभिक रचनाओं पर प्रभाव है। नीरज और बच्चन से भी आप प्रभावित थे। दक्षिण के हिंदीतर प्रदेश तमिलनाडु से सत्तर के दशक में नवगीत आंदोलन का झंडा आपने उठाया था।
उभरते लेखकों में अध्ययन की कमी देख आपके मन में पीड़ा होती है। पढ़ना ही काफ़ी नहीं है अपितु भाव, शब्दों बिंबों पर भी चिंतन करना चाहिए। चालीस वर्षों पहले लिखा गया अपना प्रसिद्ध गीत ‘जाने किसकी आँखों के सितारे झिलमिलाए’ सुनाकर आपने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
अनुभूति के संस्थापक सदस्यों में से एक और अनुभूति के वर्तमान अध्यक्ष श्री रमेश जी सामाजिक और शैक्षणिक संस्थाओं में आज भी सक्रिय हैं। नित नया अनुबंध, जब याद तुम्हें मेरी आए, कहीं कुछ छूट गया है, मेरे गीत तुम्हारे साथी, तमिल की लोक कथाएँ, चिंगारी के अंश और खुली खिड़कियाँ आपकी कृतियाँ हैं। ‘गुलदस्ता’ आपकी कविताओं का संपादित संकलन है और साहित्य पथ का अनथक पथिक आपके जीवन एवं साहित्य पर प्रकाशित पुस्तक है। धर्मपत्नी श्रीमती प्रमिला देवी एक सफल गृहिणी हैं। सुनीता, विवेक, विनीता अशोक, कोमल आपकी संतान हैं। परदादा और परनाना रमेश जी अपने परिवार के साथ ख़ुशहाल जीवन जी रहे हैं।
इस अवसर पर ‘संवेदना’ विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में रचनाएँ सुनाने वाले कवि थे ज्ञान जैन, गोविंद मूंदड़ा, सुधा त्रिवेदी, नीलम सारडा, मंजू रुस्तगी, नीलावती मेघानी, अरुणा मुनोथ, गौतम डी जैन और कुमारकांत ने अपनी रचनाएँ सुनाई।
उपाध्यक्ष विजय गोयल ने इस माह के विशिष्ट कवि श्री रमेश गुप्त नीरद का अंगवस्त्रम से सम्मान किया। डॉ. ज्ञान जैन ने प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया। महासचिव शोभा चोरड़िया ने काव्य गोष्ठी का सफल संचालन किया। श्री उदय मेघानी ने सूत्रधार की भूमिका में संवाद के ज़रिए नीरद जी की सृजन यात्रा के पहलुओं से परिचय करवाया। कोला सरस्वती वैष्णव सीनियर विद्यालय की प्रधानाचार्या श्रीमती मीना मेहता एवं उप प्रधानाचार्या श्रीमती सीमा मदन ने अपनी गरिमामय उपस्थिति से कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया के धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ।
आगे पढ़ेंमानवीयता की संस्कृति के उत्थान में सभी देश एक साथ
डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी को अंतरराष्ट्रीय फ़ोरम, सीरिया के एम्बेसेडर का सम्मान
उदयपुर/06 नवम्बर।
सीरिया, मध्य पूर्व के संस्थान इंटरनेशनल कल्चरल फ़ोरम ऑफ़ ह्यूमैनिटी एंड क्रिएटिविटी द्वारा जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ के सहायक आचार्य डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी को वर्ष 2022 के अंतरराष्ट्रीय फ़ोरम के एम्बेसेडर का सम्मान प्रदान किया गया है। यह सम्मान उन्हें उनके द्वारा किए गए वैश्विक स्तर पर सभी समुदायों में सांस्कृतिक व शैक्षिक जागरूकता बढ़ाने के प्रयासों हेतु इंटरनेशनल कल्चरल फ़ोरम ऑफ़ ह्यूमैनिटी एंड क्रिएटिविटी के संस्थापक अध्यक्ष डॉ. अयमन कोदरा डेनियल द्वारा प्रदान किया गया।
कुलपति प्रो. कर्नल एस. एस. सारंगदेवोत ने पूरे विद्यापीठ की तरफ़ से डॉ. छतलानी को बधाई देते हुए कहा कि वैश्विक स्तर पर संस्कृति को शिक्षा द्वारा सँभालने की आवश्यकता है। ऐसे देश जिनमें जागरूकता और शिक्षा के अभाव के कारण मानवीयता दम तोड़ रही है, उनमें उचित व इंसानियत की शिक्षा देकर भारतीय संस्कृति के वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को जागृत किया जा सकता है। डॉ. चंद्रेश साहित्य, सोशल मीडिया व इन्टरनेट द्वारा इन कार्यों को डिजिटली संपन्न कर रहे हैं, जो कि निःसंदेह सराहनीय हैं।
विश्व भाषा अकादमी के राष्ट्रीय चेयरमैन मुकेश शर्मा ने बताया कि डॉ. छतलानी अथक परिश्रमी हैं और उन्होंने साहित्य में कई स्तरीय शोध कार्य व नवीन प्रयोग भी संपन्न किए हैं।
कृष्णकांत कुमावत
निजी सचिव
एस.एस.जे. कैंपस अल्मोड़ा में—एंटी करप्शन: विजिलेंस वीक
आज दिनांक 3/11/2022 को एस.एस.जे. कैंपस अल्मोड़ा में “एंटी करप्शन: विजिलेंस वीक” वीक के तहत 24 यू.के. बालिका वाहिनी की एसोसिएट ऐनसीसी ऑफ़िसर ले. (डॉ.) ममता पंत के निर्देशन में 24 यू.के. बालिका वाहिनी एस.एस.जे. परिसर के कैडेट्स द्वारा भ्रष्टाचार को रोकने में अपना सहयोग देने के लिए शपथ ली गई।
एसोसिएट ऐनसीसी ऑफ़िसर ले. (डॉ.) ममता पंत द्वारा बताया गया कि यह “एंटी करप्शन:विजिलेंस वीक” 31/10/2022 से 06/11/2022 तक मनाया जायेगा तथा ले। (डॉ.) ममता पंत ने एंटी करप्शन पर ऐनसीसी कैडेट्स की कक्षा ली। उनके द्वारा बताया गया कि एंटी करप्शन पर कैंपस में भी कार्यक्रम आयोजित कराए जाएँगे; जिनमें पेंटिग, कविता लेखन एवं भाषण प्रतियोगिता मुख्य हैं। इन प्रतियोगिताओं का परिणाम 7/11/2022 को घोषित कर प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त करने वाले कैडेट्स को पुरस्कृत किया जायेगा।
इस अवसर पर कैडेट्स ने भी अपने विचार व्यक्त किये। सीनियर अंडर ऑफ़िसर निहारिका कपिल ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि भ्रष्टाचार का प्रभाव अत्यंत व्यापक है इसलिए हमें इससे मिलकर लड़ना होगा। अंडर ऑफ़िसर आँचल राज ने कहा कि भ्रष्टाचार आज हमारे समाज व देश के लिए सबसे अधिक घातक शत्रु है अतः इससे लड़ने के लिए हमें स्वयं से अपने कार्यों में ईमानदार होना पड़ेगा और लोगों को इसके लिए जागरूक करना होगा। इस अवसर पर सीएचऐम राजपाल सिंह, हवलदार दीपक सिंह, सीनियर अंडर ऑफ़िसर निहारिका कपिल, अंडर ऑफ़िसर आँचल राज सत्य प्रेमी, अंडर ऑफ़िसर ख़ुश्बू दोसाद, अंडर ऑफ़िसर रोशनी कपकोटी, सीनियर सार्जेण्ट लिपाक्षी बिष्ट एवं अन्य कैडेट्स उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंमिशन इंटरनेशनल में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका “अभिनव बालमन” द्वारा मिशन इंटरनेशनल स्कूल में पत्रिका में दी गईं प्रतियोगिता में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रबंधक आशीष जी ने कहा कि अभिनव बालमन की ओर से किये जा रहे प्रयास बच्चों में रचनात्मक सृजन के लिए उत्सुकता जगा रहे हैं।
विद्यालय की प्रधानाचार्य शीतल शर्मा ने कहा कि बच्चों ने पत्रिका की सदस्यता लेने के साथ-साथ इसमें दी गई विभिन्न प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़कर भागीदारी की जिसका परिणाम है कि बच्चों ने आज पुरस्कार प्राप्त किये। मुझे विश्वास है आगे भी बच्चे अपने सक्रियता बनाए रखेंगे।
इस अवसर पर विद्यालय के शिक्षक हनी कश्यप की सक्रिय भागीदारी रही।
आगे पढ़ेंविभिन्न विद्यालयों के बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़।
बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा मॉरिशस इंटरनेशनल स्कूल, साऊथ पॉइंट पब्लिक एवं आधार पब्लिक स्कूल में विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर मॉरीशस इंटरनेशनल स्कूल के प्रबंधक मुकेश सिंह, प्रधानाचार्य पायल सिंह, साउथ पॉइंट पब्लिक स्कूल की हेड मिस्ट्रेस नीरू अरोरा एवं आधार पब्लिक स्कूल के प्रबंधक नवनीत ने बाल रचनाकारों को उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए बधाई दी।
अभिनव बालमन की उपसंपादक संध्या ने कहा कि अभिनव बालमन के माध्यम से बच्चों में रचनात्मक लेखन एवं चित्रकला से जुड़ाव बढ़ रहे हैं जिससे उनकी रचनात्मकता सभी के बीच स्थान पा रही है।
आगे पढ़ेंएस.एस.जे. कैंपस अल्मोड़ा में सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की जयंती
दिनांक 31/10/2022 को एस.एस.जे. कैंपस अल्मोड़ा में सरदार वल्लभ भाई पटेल जी की जयंती “एकता दिवस” के रूप में मनाई गई ।
इस अवसर पर 24 यू.के. बालिका वाहिनी की एसोसिएट एन.सी.सी. ऑफ़िसर ले. (डॉ.) ममता पंत के निर्देशन में 24 यू.के. बालिका वाहिनी के कैडेट्स द्वारा एस.एस.जे. कैंपस में मार्च पास्ट का आयोजन किया गया। साथ ही अपने देश की एकता एवं अखंडता को बनाए रखने के लिए कैडेट्स द्वारा प्रतिज्ञा भी ली गई। ले . (डॉ.) ममता पंत द्वारा कैडेट्स को संबोधित करते हुए कहा गया कि सरदार जी ने अपने विचारों के माध्यम से देश में क्रांति की एक अलग ही अलख जगाई थी। सरदार जी का मानना था कि “यह हर एक नागरिक की ज़िम्मेदारी है कि वह यह अनुभव करे की उसका देश स्वतंत्र है और उसकी स्वतंत्रता की रक्षा करना उसका कर्तव्य है। हर एक भारतीय को अब यह भूल जाना चाहिए कि वह एक राजपूत है, एक सिख या जाट है। उसे यह याद होना चाहिए कि वह एक भारतीय है और उसे इस देश में हर अधिकार है पर कुछ ज़िम्मेदारियाँ भी हैं।”
ले. (डॉ.) ममता पंत ने कहा कि हमें सरदार जी के आदर्शों को अपने जीवन में अपनाना चाहिए। इस अवसर पर सीनियर अंडर ऑफ़िसर निहारिका कपिल, अंडर ऑफ़िसर आँचल राज सत्य प्रेमी, अंडर ऑफ़िसर रोशनी कपकोटी, सीनियर सार्जेण्ट लिपाक्षी बिष्ट, सार्जेण्ट संजना बिष्ट आदि मौजूद रहे।
आगे पढ़ेंअखिल भारतीय साहित्य परिषद्, बहराइच द्वारा अन्नकूट पर्व पर काव्य-गोष्ठी एवं पुस्तक-परिचर्चा का आयोजन
बहराइच (उ.प्र.) शहर के हमजापुरा स्थित राम जानकी मंदिर में अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की बहराइच शाखा की ओर से 27 अक्टूबर 2022 को एक सरस काव्य गोष्ठी एवं परिचर्चा का आयोजन किया गया। जिसका निर्देशन परिषद् के प्रांतीय उपाध्यक्ष गुलाब चन्द्र जायसवाल एवं ज़िलाध्यक्ष शिव कुमार सिंह रैकवार द्वारा किया गया। गोष्ठी में अध्यक्ष के रूप में किसान महाविद्यालय के हिंदी विभाग से जुड़े रहे वरिष्ठ साहित्यकार राधेश्याम पाण्डेय, मुख्य अतिथि के तौर पर साहित्य भूषण राम करन मिश्र सैलानी तथा विशिष्ठ अतिथि के रूप में डॉ. वेद मित्र शुक्ल एवं गुरु प्रसाद सिंह जायसवाल उपस्थित रहे। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय में आंग्ल भाषा के प्रोफेसर डॉ. वेद मित्र शुक्ल ने अपनी पुस्तक, “एक समंदर गहरा भीतर” की प्रति अखिल भारतीय साहित्य परिषद् को भेंट की। परिषद् के महामंत्री रमेश चंद्र तिवारी ने भी अपनी पुस्तक, “दी राईज़ ऑफ़ नमो एन्ड न्यू इंडिया” की एक प्रति सौंपी। इस दौरान मुख्य वक्ता के रूप में असम से आये ग़ज़लकार व समालोचक डॉ. दिनेश त्रिपाठी शम्स ने डॉ. शुक्ल के कविता-संग्रह ‘एक समंदर गहरा भीतर’ पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि कविता-संग्रह हिंदी सॉनेटों का संग्रह है। वेद मित्र ने यह सॉनेट संग्रह रचकर हिंदी कविता को और विस्तार दिया है।
काव्य पाठ की शुरूआत अयोध्या प्रसाद नवीन ने वाणी वंदना पढ़कर की। तदुपरांत कवि विनोद कुमार पांडेय ने एक व्यंग्य पढ़ा—राम काल्पनिक बने थे अब गीता भई जिहाद। अमर सिंह विसेन ने पढ़ा—राह में यूँ अकेला नहीं छोड़ना, मैं सुदामापुरी हूँ, और तुम द्वारिका। वीरेश पांडेय ने पढ़ा—तब एक शारदा वीणा ले अवतार जगत में लेती है, रसहीन विकर्षण भरे जगत को ध्वनि कंठा स्वर देती है। कवि आशुतोष ने पढ़ा—अंतस का तम मिट न सका तो दीप जलाने से क्या होगा, मिटी न दूरी जो हृदयों की हृदय लगाने से क्या होगा। डॉ. दिनेश त्रिपाठी शम्स ने पढ़ा—भाषणों में ज़िक्र मरहम का सदा, लेकिन हमारे देश का नेता हमें बस घाव ही देगा। कार्यक्रम में डॉ. राधे श्याम पांडेय, कवि गुलाब जायसवाल, रमेश चन्द्र तिवारी, वेद मित्र शुक्ल व विमलेश विमल ने भावात्मक रचनाओं से लोगों के हृदय छू लिए।
गोष्ठी एवं परिचर्चा के बाद संरक्षक विक्रम जायसवाल की ओर से अन्नकूट पर्व पर भंडारे का आयोजन किया गया। कार्यक्रम में पूर्व सहकारिता मंत्री मुकुट बिहारी वर्मा तथा सांसद अक्षयवरलाल गोंड भी बतौर अतिथि मौजूद रहे। साथ ही, पं. राकेश कुमार दुबे, कैलाश नाथ डालमिया, आयुष जायसवाल, बजरंग कुमार मिश्र, प्रेम कुमार जालान, राम गोपाल चौधरी आदि की भी सहभागिता रही।
आगे पढ़ेंशिप्रस स्कूल में बाल रचनाकार हुए पुरस्कृत
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा आज आगरा रोड स्थित शिप्रस स्कूल में विभिन्न प्रतियोगिताओं में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले बाल रचनाकारों को पुरस्कृत किया गया।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्या लीना शर्मा ने कहा कि रचनात्मक रूप से बच्चों की विभिन्न विधाओं में अभिव्यक्ति देखकर प्रसन्नता होती है। इस तरह के अवसर बच्चों में आत्मविश्वास बढ़ाते हैं।
विद्यालय के प्रबन्धक सौरभ राज ने कहा कि विद्यालय में विभिन्न गतिविधियाँ निरंतर आयोजित होती हैं। इसी के अंतर्गत अभिनव बालमन की प्रतियोगिताओं में बच्चे बड़े ही मनोभाव से प्रतिभाग करते हैं फलस्वरूप उनकी रचनात्मकता उभरती है।
अभिनव बालमन की उपसंपादक संध्या ने कहा कि अभिनव बालमन का यह लक्ष्य है कि हर बच्चे तक बाल साहित्य पहुँचे।
हमें बच्चों को बाल साहित्य से जोड़ने का प्रयास करना चाहिए ताकि उनको उनके मानसिक विकास में सहायता मिले। इसी सन्दर्भ में अभिनव बालमन में प्रकाशित रंग भरो, कहानी लेखन, कविता लेखन, संस्मरण लेखन, पत्र लेखन, कार्टून कोना आदि विभिन्न प्रतियोगिताएँ हैं जिसमें प्रतिभाग कर बच्चे खेल खेल में साहित्य से जुड़ते हैं।
इस अवसर पर विद्यालय की शिक्षिका शुभ्रा एवं शिवानी का महत्त्वपूर्ण सहयोग रहा।
आगे पढ़ेंअभिनव बालमन के विमोचन की दीपावली मनाई गई
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ चौदहवें वर्ष के प्रथम अंक का दीपावली के अवसर पर विमोचन हुआ। वर्ष 2009 से निरंतर प्रकाशित पत्रिका का यह 48वाँ अंक है जिसमें बाल रचनाकारों की स्वरचित कविता, कहानी, संस्मरण, चित्रकला, पत्र आदि विविध विधाओं में रचनाएँ प्रकाशित होती हैं।
इस बार के अंक के आवरण पृष्ठ पर 6 साल के वत्सल का कृष्ण रूप में आकर्षक छायाचित्र है।
विमोचन के अवसर पर प्रबंध संपादक विनोद कुमार, प्रकाशक सरोज शर्मा, संपादक निश्चल, उप संपादक पल्लव एवं संध्या सहित बाल रचनाकार वरेण्य, वत्सल उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंडॉ. शेषन को श्रद्धांजलि
खतौली, 22 अक्टूबर, 2022
आज 'साहित्य मंथन' के तत्वावधान में तमिल भाषी विद्वान और भारतीय हिंदी आंदोलन के समर्थ कार्यकर्ता डॉ. एम. शेषन के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए एक आयोजन संपन्न हुआ। इसमें हैदराबाद से पधारे प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने विस्तार से डॉ. एम. शेषन का परिचय दिया और उनकी हिंदी सेवा के साथ ही तमिल और हिंदी के बारे में जो तुलनात्मक अध्ययन हुआ है, उसके महत्त्वपूर्ण बिंदुओं की ओर सबका ध्यान खींचा। प्रो. ऋषभ ने इस बात पर बहुत बल दिया कि डॉ. एम. शेषन ने हिंदी साहित्य में रीतिकाल और तमिल साहित्य की रीति परंपरा के बीच सम्बन्ध की जो अवधारणा प्रस्तुत की थी, उस पर गंभीर शोध किए जाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर डॉ. एम. शेषन के खतौली पधारने की घटना का स्मरण दिलाते हुए पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लेखक जसवीर राणा ने यह प्रतिपादित किया कि जब शेषन जी हिंदी सेवी टी.एस. राजु शर्मा और प्रो. ऐन. सुंदरम के साथ खतौली पधारे थे, तो उनकी स्पष्टवादिता तथा सहज व्यवहार ने सभी को प्रभावित किया था। उस समय उन्होंने उत्तर भारत और दक्षिण भारत के बीच सम्बन्ध को हिंदी भाषा तथा साहित्य के सहारे अधिक मज़बूत बनाने की आवश्यकता पर बल दिया था, इसीलिए शेषन जी उत्तरापथ और दक्षिणापथ के मिलन को महत्त्व देने वाले राष्ट्रभक्त थे। जसवीर राणा ने उनके निधन को पूरे हिंदी आंदोलन और भारतीय भाषाओं की क्षति माना।
वरिष्ठ कवि-समीक्षक प्रो. देवराज ने इस अवसर पर डॉ. एम. शेषन के साथ अपने बरसों के सम्बन्ध को याद किया और यह कहा कि भारतीय साहित्य और हिंदी भाषा को मज़बूत बनाने के लिए तथा सभी भारतीय भाषाओं की समृद्धि के लिए डॉ. एम. शेषन ने जो तुलनात्मक अध्ययन किया तथा अपने लेखन के माध्यम से हिंदी और तमिल के पाठकों को इन दोनों भाषाओं के साहित्य का जो ज्ञान दिया, वह कभी नहीं भुलाया जा सकता।
साहित्य मंथन के इस आयोजन में यह भी याद किया गया कि डॉ. एम. शेषन को हिंदी भाषा के प्रति रुचि तो अपने प्रारंभिक दिनों से ही हो गई थी, लेकिन उसका गहरा ज्ञान उन्होंने आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी और डॉ. शिव प्रसाद सिंह के संपर्क में आकर अर्जित किया। आचार्य द्विवेदी ने अपने इस महान शिष्य को संस्कृति की ज़मीन से जोड़ने का जो कार्य किया था और भारतीयता को समझने की जो योग्यता दी थी, उसका शेषन जी ने सफल प्रयोग भारत की राष्ट्रीय चेतना को समृद्ध बनाने में किया। श्रद्धांजलि सभा के अंत में 2 मिनट का मौन रखकर शेषन जी की आत्मा की शान्ति के लिए प्रार्थना की गई।
प्रेषक-
जसवीर राणा
अध्यक्ष, साहित्य मंथन, खतौली।
अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन–2022
‘मानवीय स्तर पर अपील करने वाली रचना स्मृति में बनी रहती है।”–भगीरथ
“जो रचना विचार के स्तर पर, बुद्धि के स्तर पर और मानवीय स्तर पर ज़्यादा अपील करती है वही रचना आपकी स्मृति में हमेशा बनी रहती है। श्री सुकेश साहनी ने अलग-अलग विषय पर अलग-अलग शिल्प में लघुकथाएँ लिखी हैं। जो रचनाकार प्रयोगात्मक लघुकथाएँ लिखते हैं वे अलग-अलग शिल्प में लिखते हैं। कमल चोपड़ा की लघुकथाओं का शिल्प क़रीब-क़रीब एक जैसा रहता है। रचनाकार को यह देखना है कि उसकी रचना पाठक के मन में, बुद्धि में प्रवेश कर रही है या नहीं। किसी भी लघुकथाकार की सभी लघुकथाएँ उत्कृष्ट नहीं हो सकती हैं। कुछ लघुकथाएँ उत्कृष्ट होगी, कुछ निम्न स्तर की होगी और कुछ अच्छी होगी।” यह विचार श्री भगीरथ ने!लघुकथा विधा में सौन्दर्य दृष्टि एवं भाषा शिल्प विषय पर अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में प्रस्तुत किए।
उन्होंने कहा कि “कल्पना का सौन्दर्य देखना हो तो असगर वजाहत की शाह आलम की रूहें की लघुकथाएँ पढ़नी होंगी। किसी भी विधा में शिल्प के अलावा भाषा भी एक प्रमुख तत्व है। लघुकथाकार संध्या तिवारी की भाषा मुग्ध करती है।”
उल्लेखनीय है कि प्रति वर्ष की तरह इस वर्ष भी क्षितिज संस्था ने एक दिवसीय अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन इंदौर शहर में किया है। इस महत्त्वपूर्ण आयोजन की अध्यक्षता दूरदर्शन के पूर्व अतिरिक्त महानिदेशक श्री राजशेखर व्यास के द्वारा की गई तथा साहित्य अकादमी भोपाल के निदेशक श्री विकास दवे मुख्य अतिथि रहे। इस आयोजन में लघुकथा विधा पर उसकी भाषा पर उसके शिल्प पर उसकी अभिव्यक्ति पर निरंतर विभिन्न सत्रों के भीतर चर्चा की गई और परिचर्चा भी रखी गई। 23 लघुकथाओं पर श्री नंदकिशोर बर्वे के एवं श्री सतीश श्रोती के निर्देशन में ‘पथिक’ ग्रुप के द्वारा सफल मंचन का कार्यक्रम किया गया। सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इस आयोजन में 21 पुस्तकों का लोकार्पण किया गया जिनमें क्षितिज पत्रिका का ‘लघुकथा समालोचना अंक’ भी शामिल रहा। आयोजन में 15 लघुकथाकारों को, साहित्यकारों, को पत्रकारों को विभिन्न सम्मानों से सम्मानित किया गया। लघुकथा में स्त्री लेखन पर एक विशेष सत्र आयोजन में समाहित किया गया। समाज के विभिन्न वर्गों के महत्त्वपूर्ण व्यक्ति इस आयोजन में सम्मानित किए गए।
सर्वश्री सूर्यकांत नागर, बलराम अग्रवाल, भागीरथ परिहार, जितेंद्र जीतू, पवन शर्मा, शील कौशिक, डॉक्टर मुक्ता, अंतरा करवड़े, कांता राय, वसुधा गाडगिल, ज्योति जैन, गरिमा दुबे पुरुषोत्तम दुबे, घनश्याम मैथिल अमृत, गोकुल सोनी ने विभिन्न विषयों पर अपने विचार अभिव्यक्त किए।
श्री भागीरथ को लघुकथा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। जितेंद्र जीतू को लघुकथा समालोचना सम्मान से, पवन शर्मा को लघुकथा समग्र सम्मान से एवं रश्मि चौधरी को लघुकथा नवलेखन सम्मान से सम्मानित किया गया। श्री विकास दवे को साहित्य भूषण सम्मान से सम्मानित किया गया। राजशेखर व्यास को राष्ट्र गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया। सर्वश्री बृजेश कानूनगो, प्रदीप नवीन, दिलीप जैन, चंद्रा सायता, चक्रपाणि दत्त मिश्र को साहित्य रत्न सम्मान दिए गए। इनके अतिरिक्त श्री कीर्ति राणा को साहित्यिक पत्रकारिता सम्मान, अनुराग पनवेल को मानव सेवा सम्मान से सम्मानित किया गया। प्रदीप नवीन को गीत गुंजन सम्मान से सम्मानित किया गया। डॉक्टर मुक्ता एवं शील कौशिक को क्षितिज एवं चरणसिंह अमी फ़ॉउंडेशन द्वारा कथा सम्मान एवं लघुकथा सम्मान से सम्मानित किया गया।
लघुकथा पाठ के सत्र में श्री संतोष सुपेकर की अध्यक्षता और दिलीप जैन के विशेष आतिथ्य में लघुकथाकारों के द्वारा लघुकथा पाठ किया गया। इस सत्र का संचालन विनीता शर्मा सुरेश रायकवार के द्वारा किया गया। प्रारंभिक सत्र का संचालन अंतरा करवड़े एवं ज्योति जैन ने किया तथा आभार सुरेश रायकवार के द्वारा माना गया। सीमा व्यास के द्वारा लघुकथा मंचन के सत्र का संचालन किया गया प्रतिभागियों को मोमेंटो और सम्मान पत्र से सम्मानित भी किया गया। समस्त सत्रों का अंत में संस्था के सचिव दीपक गिरकर के द्वारा आभार माना गया। संस्था के विभिन्न सदस्यों के द्वारा आयोजन के नेपथ्य में बहुत सारी ज़िम्मेदारियों का निर्वहन किया गया।
शरद पूर्णिमा के दिन क्षितिज का यह आयोजन शरद पूर्णिमा के चाँद की तरह अमृत रस वर्षा करने वाला रहा।
आगे पढ़ेंपशुता से मनुष्यता की ओर ले जाता है साहित्य
बरेली 7 अगस्त– अखिल भारतीय साहित्य परिषद के तत्वाधान में चंद्र चंद्रकांता सभागार में साहित्य समागम का आयोजन किया गया। तीन सत्रों में आयोजित इस समारोह में पहले सत्र में विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। गोष्ठी का विषय था, “साहित्य का प्रदेय” विचार गोष्ठी के मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने विचार गोष्ठी को संबोधित करते हुए कहा कि साहित्य समाज में संस्कारों एवं संस्कृति का संवाहक होता है। साहित्य का पहला धर्म है कि वह समाज को पशुता से मानवता की ओर ले जाए। उन्होंने साहित्यकारों से यह भी अनुरोध किया कि वे प्रोफ़ेशनल कोर्सों एमबीबीएस एवं बीटेक की पुस्तकें हिंदी में लिखने का अभियान चलाएँ।
कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉक्टर ऐन.के. गुप्ता ने कहा कि साहित्य के माध्यम से समाज में भारतीय संस्कृति भारतीय विचारधारा जन-जन तक पहुँचाने का कार्य करें।
कहानी वाचन के सत्र में डॉक्टर संदीप अवस्थी, मीनू खरे, डॉ. अमिता दुबे, प्रतिभा सिंह, आरती बाजपेई, डॉ. सुरेश बाबू मिश्रा तथा ऋचा पाठक ने अपनी-अपनी कहानियों का वाचन किया।
कहानी गोष्ठी के मुख्य अतिथि संघ के विभाग प्रचारक ओमवीर जी रहे। अध्यक्षता डॉक्टर संदीप अवस्थी ने की। कार्यक्रम संयोजक डॉ. शशि बाला राठी जी ने सभी अभ्यागतों का स्वागत किया। कार्यक्रम के अंत में आभार डॉक्टर दीपंकर गुप्त ने प्रकट किया। कहानी वाचन के पश्चात तीसरे सत्र में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता डॉक्टर ओम प्रकाश शुक्ला अज्ञात ने की। मुख्य अतिथि डॉक्टर हरि अग्रवाल हरि (लखनऊ) रहे। काव्य गोष्ठी में कवियों ने भावपूर्ण कविताएँ प्रस्तुत कर समय बाँध दिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अनिल शर्मा जोशी, अध्यक्ष संदीप अवस्थी, ब्रज प्रांत के अध्यक्ष साहित्य भूषण सुरेश बाबू मिश्रा, संरक्षक डॉ. अनिल शर्मा एवं कार्यक्रम संयोजक डॉक्टर शशिवाला राठी ने विभिन्न राज्यों से आए 22 साहित्यकारों को उत्तर प्रदेश साहित्य गौरव सम्मान से शॉल सम्मान पत्र एवं माल्यार्पण कर सम्मानित किया। 60 साहित्यकारों एवं समाजसेवियों को पांचाल गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया।
उत्तर प्रदेश साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित होने वाले साहित्यकारों में डॉ. अनिल शर्मा जोशी (दिल्ली), डॉक्टर संदीप अवस्थी (आगरा), हरि अग्रवाल हरि (लखनऊ), ओमप्रकाश अज्ञात (छिबरामऊ), डॉक्टर महेश पांडे बजरंग (उरई), मीनू खरे (लखनऊ), डॉ. अमिता दुबे (लखनऊ), प्रदीप श्रीवास्तव (लखनऊ), डॉक्टर राम कृष्ण बुद्ध (नागपुर), आरती सिंह एकता, प्रतिभा सिंह (अयोध्या), रेनू हुसैन (दिल्ली), प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार कौशिक (दिल्ली), आरती बाजपेई (लखनऊ), सुरेंद्र कुमार अग्निहोत्री (लखनऊ), रिचा पाठक (काशीपुर), सौम्या मिश्रा (लखनऊ) एवं डॉक्टर चंद्र प्रकाश शर्मा (रामपुर) तथा कंचन वर्मा मुख्य रूप से सम्मिलित रहे।
कार्यक्रम का संचालन डॉ. ऐन.एल. शर्मा रविंद्र कुमार मिश्रा तथा रोहित राकेश ने संयुक्त रूप से किया कार्यक्रम में मुख्य रूप से डॉ. शशि वाला राठी, डॉक्टर दीपंकर गुप्त, उमेश चंद्र गुप्ता, डॉ. एस पी मौर्या, प्रभाकर मिश्र, मोहन चंद्र पांडे, उपेंद्र सक्सेना, निर्भय सक्सैना, सुरेंद्र बीनू सेना, शिशुपाल सिंह, सुमंत माहेश्वरी, देवेंद्र शर्मा, रणधीर प्रसाद गौड़, रमेश गौतम, गुरविंदर सिंह, प्रवीण शर्मा, डॉ. रवि शर्मा, महिपाल राही आदि विशेष रूप से उपस्थित रहे। कार्यक्रम संयोजन डॉ. शशि बाला राठी ने किया तथा सभी आए हुए अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन डॉक्टर दीपंकर गुप्ता ने किया।
— शशिवाला राठी कार्यक्रम संयोजक
आगे पढ़ेंनासिरा शर्मा: ‘गुंटी’ का क्राफ़्ट और भाषा बहुत सशक्त है
यह विचार नासिरा शर्मा, सुपसिद्ध लेखिका ने व्यक्त किए ‘गुंटी’ कथा संग्रह के लोकार्पण पर। दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में अवसर था युवा लेखिका रेणु हुसैन के प्रथम कथा संग्रह के लोकार्पण का। कार्यक्रम के समन्वयक कथाकार आलोचक डॉ. संदीप अवस्थी, राजस्थान और आयोजक जश्न ए हिन्द थे।
मैत्रयी पुष्पा ने अपनी आत्मकथा अल्मा कबूतरी का भी ज़िक्र किया। और कहा कि जब कथा संग्रह आता है तो उसकी आलोचना भी होती है। ऐसी ही हमारी हुई तो हमने पति से कहा कि इसे तुम मत पढ़ना। रेणु हुसैन के कथा संग्रह ‘गुंटी’ की रचनाओं की उन्होंने बहुत तारीफ़ की और कहा कि हम तुम्हें समय-समय पर मार्ग दिखाते रहेंगे।
अध्यक्षता करते हुए नासिरा जी ने संग्रह की कुछ कहानियों का उल्लेख कर उन्हें आगे बढ़ने का आशीर्वाद दिया। यह विशेष कहा कि संग्रह की कहानियों का क्राफ़्ट बहुत बेहतर है।
डॉ. संदीप अवस्थी ने कहा कि रेणु जी की रचनाओं में लोक, उसके प्रतिमान और भाषा आश्वस्त करती हैं कि लेखिका पूरी तैयारी के साथ क़दम रख रही हैं। कथा जगत में उनका स्वागत है। समारोह में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष अनिल शर्मा जोशी ने शैलेश मटियानी का उल्लेख करते हुए कहा कि जिस तरह उनकी रचनाएँ हमारे समाज के आसपास घूमती हैं और उनकी भाषा भी सहज प्रवाहवान है, वैसी ही झलक मुझे रेणु हुसैन की रचनाओं में भी दिखती है।
समारोह में रेणु हुसेन ने अपने उद्बोधन में अपने लेखकीय यात्रा को याद किया। स्वर्गीय मुकेश मानस के सहयोग को याद किया। उन्होंने संक्षेप में अपनी रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डाला। गुंटी, पपन, चिता की आग कहानियों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इन सबके पात्र मेरे ही आसपास हैं। उन घटनाओं और दर्द को शब्दों में महज़ पिरोया भर है।
गुंटी शीर्षक की कहानी के कुछ अंशों का अद्भुत ढंग से सुमन केशरी ने पाठ किया और नई ऊँचाइयों पर कार्यक्रम को पहुँचा दिया।
समारोह में लक्ष्मीशंकर वाजपयी ने रेणु की कहानियों को एक ताज़ी हवा का झोंका बताया। एनबीटी के संपादक और प्रसिद्ध लेखक लालित्य ललित ने अपने वक्तव्य में इस बात पर बल दिया कि रचना दूर तक तभी चलती है जब उसमें हमारे आसपास का वातावरण उभरता है। इस लिहाज़ से गुंटी संग्रह की कई कहानियाँ खरी उतरती हैं।
जश्न ए हिन्द की अध्यक्ष मृदुला टण्डन ने सभी को संस्थान की मासिक बैठकों से परिचित करवाया। समारोह का संचालन कवयित्री ममता किरण ने किया। कार्यक्रम में मनीष बना का प्रबंधन रहा। इंडिया इंटरनेशनल एनेक्सी हॉल नंबर दो में आयोजित इस कार्यक्रम में आलोक यात्री ने अपने मधुर अंदाज़ में सभी आगन्तुको को धन्यवाद ज्ञापित किया। और बताया कि वह हर माह काव्य और कथा पर कार्यक्रम सभी के लिए कर रहे हैं। कार्यक्रम में श्रीमती सरोज शर्मा, योग और लाइफ़ स्टाइल मैनेजमेंट गुरु, रणविजय राव, राज्यसभा टीवी, संजय तलवार फ़िल्म प्रोड्यूसर और गायक, चचित कवयित्री कंचन वर्मा, रमा पांडेय प्रसिद्ध रंगकर्मी, श्री और श्रीमती निगम, कमलेश भारतीय, और बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमियों की गरिमामयी उपस्तिथि रही। यह पुस्तक अमेज़न, फिलिप्कार्ट सहित सभी जगह उपलब्ध है
आगे पढ़ें’व्यंग्य भोजपाल’ की प्रथम काव्य गोष्ठी दिनांक 6 अगस्त 2022 को भोपाल में संपन्न
साहित्य के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय संस्था, भोजपाल साहित्य संस्थान, भोपाल अंतर्गत गठित चैप्टर ’व्यंग्य भोजपाल’ की प्रथम मासिक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन 06 अगस्त 2022 को भोपाल हाट स्थित ’9 एम मसाला रेंस्तरां’ में संस्था के अध्यक्ष श्री प्रियदर्शी खैरा की अध्यक्षता व कार्यकारी अध्यक्ष सुदर्शन सोनी के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ।
श्री सुदर्शन सोनी द्वारा ’व्यंग्य भोजपाल’ की संकल्पना व उद्देश्य पर अपने विचार रखे गये। उनके द्वारा कहा गया कि व्यंग्य क्षेत्र में सार्थक विमर्श के साथ ही अध्ययन व शोध के लिये व्यंग्यकारों के डेडिकेटेड फ़ोरम की आवश्यकता भोपाल में लम्बे समय से महसूस की जा रही थी। भोजपाल साहित्य संस्थान इसकी पूर्ति नहींं कर पा रहा था, क्योंकि वह सभी विधाओं के रचनाकारों को मंच उपलब्ध करवाता है। शहर की अन्य अनेक संस्थाएँ भी बहुविधामुखी हैं अथवा कविता, लघुकथा, कहानी, ग़ज़ल इत्यादि में से किसी एक विधा को ही समर्पित है। व्यंग्य पर ऐसी कोई समर्पित संस्था भोपाल में नहींं है। उम्मीद कर सकते हैं कि ’व्यंग्य भोजपाल’ इस रिक्ति को सभी व्यंग्यकारों व साहित्य प्रेमियों के सहयोग से दूर कर सकेगा।
तत्पश्चात वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री कुमार सुरेश द्वारा ’व्यंग्यकार के दायित्व’ विषय पर बोलते कहा कि समाज की बेहतरी ही उसका दायित्व है। श्री विजी श्रीवास्तव द्वारा व्यंग्य के वर्तमान परिदृश्य पर विस्तार से प्रकाश डाला। श्री खैरा द्वारा अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में सुदर्शन सोनी के साहित्य व व्यंग्य के प्रति समर्पण की तारीफ़ करते कहा कि ’व्यंग्य भोजपाल’ व्यंग्यकारों को एक बहुप्रतीक्षित मंच प्रदान करेगा। जहाँ वे रचनापाठ के अलावा नये प्रयोग कर सकेंगे।
उपस्थित व्यंग्यकारों ने सशक्त रचनाओं का पाठन कर श्रोताओं की प्रशंसा बटोरी। अशोक व्यास, ”मैं और मेरा मोबाईल अक़्सर ये बाते करते हैं’। कमल किशोर दुबे द्वारा दुनिया का ’अभिशप्त मजदूर’, चरनजीत सिंह द्वारा ‘और हम ख़ाली लौट आये’, सुरेश पटवा द्वारा ‘साहित्यजीवी’ तो विवेक रंजन श्रीवास्तव द्वारा ‘ट्राई कलर्स बेलून्स इन स्काई’ सुमन ओबेराय द्वारा ‘सब से प्यारा हिंदुस्तान हमारा’, जयजीत अकलेचा द्वारा ‘जन व तंत्र’ प्रमोद ताम्बट द्वारा ‘अर्थ व्यवस्था का अर्थ अनर्थ’ गोकुल सोनी द्वारा ‘कुत्ता फजीती’, श्री कुमार सुरेश द्वारा ‘जरा धीरे से उड़ो मेरे साजना’ बिजि श्रीवास्तव द्वारा ‘चुनाव पंडाल के बाहर खडे़ शौचालय की आपबीती’ व श्री सुदर्शन सोनी द्वारा व्यंग्य ‘डिजिटाईजेशन व बडे़ बाबू’ का पाठन किया गया। अध्यक्ष प्रियदर्शी खैरा द्वारा ‘सब जल्दी में हैं’ का पाठन किया गया।
कार्यक्रम में दुष्यंत कुमार पाडुलिपि संग्रहालय भोपाल के निदेशक श्री राजुरकार राज, प्रसिद्व कथाकार श्री मुकेश वर्मा, प्रभात साहित्य परिषद के अध्यक्ष श्री नंदकुमार, श्री चंद्रभान राही व अन्य साहित्यकारों के साथ ही बड़ी संख्या में साहित्य रसिक श्रोता उपिस्थत थे। श्री मुकेश वर्मा द्वारा ’व्यंग्य भोजपाल’ को एक अच्छा प्रयास बताते हुए वनमाली सृजन द्वारा कथा के क्षेत्र में प्रकाशित संकलन की तरह ही व्यंग्य के क्षेत्र में कार्य प्रारम्भ करने के लिए कहा। कार्यक्रम का सफल व व्यंग्यमय संचालन श्री गोकुल सोनी व आभार प्रदर्शन श्री सुरेश पटवा द्वारा किया गया।
प्रियदर्शी खैरा
90-91, यशोदा विहार, भोपाल
मध्यप्रदेश।
सोबन सिंह जीना परिसर, अल्मोड़ा, उत्तराखंड में स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में भव्य परेड का आयोजन
दिनांक 15/08/2022 सोमवार को आज़ादी का अमृत महोत्सव 76 वें स्वतंत्रता दिवस के उपलक्ष्य में सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा में भव्य परेड का आयोजन किया गया। जहाँ 24 यू.के. बालिका वाहिनी एन.सी.सी. अल्मोड़ा के कैडेट्स, 77 यू.के. बटालियन एन.सी.सी. अल्मोड़ा के कैडेट्स तथा एन.एस.एस. स्वयंसेवियों ने मिलकर शानदार परेड का प्रदर्शन किया। परेड का निर्देशन 24 यू.के. बालिका वाहिनी की एसोसिएट एन.सी.सी. ऑफ़िसर ले . (डॉ.) ममता पंत द्वारा किया गया। परेड का नेतृत्व फर्स्ट कमांडर सीनियर अंडर ऑफ़िसर निहारिका कपिल 24 यू.के. बालिका वाहिनी एन.सी.सी. तथा सीनियर अंडर ऑफ़िसर रजत सिंह बिष्ट 77 यू.के. बटालियन एन.सी.सी. द्वारा किया गया। सेकंड कमांडर का कार्यभार अंडर ऑफ़िसर मंयक पाण्डे 77 यू .के. बाटिलयन एन.सी.सी. तथा गॉर्ड कमांडर का कार्यभार अंडर ऑफ़िसर रोशनी कपकोटी 24 यू के. बालिका वाहिनी एन.सी.सी. और एन.एस.एस . कमांडर का दायित्व अंकिता आर्या ने सँभाला।
कैडेट्स द्वारा तिरंगे को सलामी शस्त्र दिया गया। आज़ादी के अमृत महोत्सव का सही मायनों में मतलब समझाया, सोबन सिंह जीना कैंपस के अधिष्ठाता छात्र प्रशासन प्रो. प्रवीण सिंह बिष्ट ने झण्डारोहण किया और मंच पर अधिष्ठाता छात्र प्रशासन एवं ले. (डॉ.) ममता पंत एवं प्रांगण से शिक्षक वृंद, एन.सी.सी.कैडेट्स एवं एन.एस.एस. स्वयंसेवियों, छात्र–छात्राओं द्वारा झण्डे को सलामी दी गई। संगीत विभाग के विद्यार्थियों द्वारा देशभक्ति गीतों से वातावरण गुंजायमान रहा। अधिष्ठाता प्रशासन द्वारा एन.सी.सी. कैडेट्स को मेडल द्वारा सम्मानित किया गया। पूरा परिसर प्रांगण भारत माता की जय एवं देशभक्ति नारों से गुंजायमान रहा।
इस अवसर पर डी.एस.डब्लू. प्रो. ईला साह, कुलानुशासक डॉ. मुकेश सामंत, शोध एवं प्रसार निदेशक, संकायाध्यक्ष कला संकाय प्रो. जगत सिंह बिष्ट, विज्ञान संकायाध्यक्ष प्रो. जया उप्रेती, एन.एस.एस. अधिकारी डॉ. देवेन्द्र धामी, प्रो. भीमा मनराल संकायाध्यक्ष शिक्षा संकाय, प्रो. एम.एम. जिन्ना संकायाध्यक्ष वाणिज्य संकाय, प्रो. सोनू द्विवेदी संकायाध्यक्ष दृश्यकला संकाय, प्रो. निर्मला पत, प्रो. के.एन. पाण्डे, विश्वविद्यालय मीडिया प्रभारी प्रो. ललित जोशी, शिक्षक वर्ग, कर्मचारी वर्ग एवं छात्र–छात्राएँ उपस्थित रहे। तत्पश्चात कैडेट्स द्वारा आज़ादी के अमृत महोत्सव के तहत 24 यू के बालिका वाहिनी एन.सी.सी. के उपवन में वृक्षारोपण भी किया गया। इस अवसर पर अधिष्ठाता प्रशासन प्रोफेसर प्रवीण सिंह बिष्ट, एसोसिएट एन.सी.सी. ऑफिसर डॉ. ममता पंत, कुलानुशासक डॉ. मुकेश सामन्त एवं एन.एस.एस. अधिकारी डॉ. देवेंद्र धामी उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंप्रो. ऋषभदेव शर्मा की तपस्या का फल है ‘धूप के अक्षर’
हैदराबाद। भारत के पूर्व शिक्षा मंत्री और प्रसिद्ध लेखक डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक ने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, खैरताबाद, हैदराबाद के सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में ‘धूप के अक्षर’ का लोकार्पण करते हुए कहा कि यह ग्रंथ प्रो. ऋषभदेव शर्मा की जीवन भर की तपस्या का फल है। उनकी इस तपस्या को दक्षिण भारत ने हृदय से स्वीकार किया है जिसके दर्शन उनके अभिनंदन समारोह में हो रहे हैं। वे डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा के प्रधान संपादकत्व में दो खंडों में प्रकाशित प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सम्मान में लोकार्पित किए जाने वाले आयोजन में बोल रहे थे।
डॉ. निशंक ने इस बात पर विशेष बल दिया कि भारतवर्ष को विश्वगुरु के पथ पर पुनः प्रतिष्ठित करने के लिए तेलुगु, तमिल, कन्नड, मलयालम, बंगला, मराठी, पंजाबी, असमी आदि सभी भाषाओं को सम्मिलित भूमिका निभानी होगी। उन्होंने यह भी कहा कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा हिंदी के माध्यम से सारी भारतीय भाषाओं के लिए कार्य कर रहे हैं। यह कार्य हैदराबाद में हो रहा है जिस पर हम गर्व कर सकते हैं।
अभिनंदन समारोह का उद्घाटन शीर्षस्थ भारतीय लेखक प्रो. एन. गोपि ने किया। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि प्रो. शर्मा एक आदर्श अध्यापक और प्रख्यात लेखक ही नहीं है, बल्कि वे एक उत्तम मनुष्य भी हैं। दक्षिण में उनका आना भाषा और साहित्य के लिए एक वरदान जैसा है।
प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अभिनंदन समारोह में अध्यक्ष के रूप में प्रो.देवराज (दिल्ली), अतिविशिष्ट अतिथि रूप में डॉ. पुष्पा खंडूरी (देहारदून) के साथ प्रो. गोपाल शर्मा, जसवीर राणा, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. वर्षा सोलंकी, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, पी. ओबय्या, जी. सेल्वराजन, एस. श्रीधर, प्रो. संजय एल मादार आदि मौजूद थे।
सभी वक्ताओं ने अपने विचार व्यक्त करते हुए इस बात को विशेष रूप से रेखांकित किया कि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने हैदराबाद, चेन्नै और एरणाकुलम आदि में रहते हुए जो कार्य किया उसका भाषायी और साहित्यिक महत्व ही नहीं है बल्कि सांस्कृतिक महत्व भी है। उनका कार्य दक्षिणापथ और उत्तरापथ के मध्य संस्कृति सेतु का कार्य है।
आयोजन का संचालन ‘धूप के अक्षर’ ग्रंथ की प्रधान संपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने किया। समारोह के प्रारंभ में कलापूर्ण सस्वर सरस्वती वंदना शुभ्रा मोहंता ने प्रस्तुत की। ‘धूप के अक्षर’ ग्रंथ के सहयोगी लेखकों को यह ग्रंथ भेंट भी किया गया।
इस समारोह में हैदराबाद के साहित्य प्रेमी बड़ी संख्या में उपस्थित थे। विनीता शर्मा, वेणुगोपाल भट्टड, अजित गुप्ता, लक्ष्मीनारायण अग्रवाल, पवित्रा अग्रवाल, रामदास कृष्ण कामत, सुरेश गुगालिया, जी. परमेश्वर, डॉ. श्रीपूनम जोधपुरी, डॉ. जयप्रकाश नागला, डॉ. रियाजुल अंसारी, डॉ. बी. एल. मीणा, मुकुल जोशी, डॉ. शिवकुमार राजौरिया, रवि वैद, डॉ. एस. राधा, सरिता सुराणा, वर्षा कुमारी, हुडगे नीरज, रूपा प्रभु, उत्तम प्रसाद, नीलम सिंह, नेक परवीन, संदीप कुमार, मुकुल जोशी, डॉ. कोकिला, एफ. एम. सलीम, डॉ. के. श्रीवल्ली, डॉ. बी. बालाजी, डॉ. करन सिंह ऊटवाल, वुल्ली कृष्णा राव, शीला बालाजी, समीक्षा शर्मा, डॉ.सुषमा देवी, सुनीता लुल्ला, प्रवीण प्रणव,, डॉ. गंगाधर वानोडे, डॉ. सी. एन. मुगुटकर, डॉ. रामा द्विवेदी, डॉ. संगीता शर्मा, प्रो. दुर्गेशनंदिनी, डॉ. रेखा शर्मा, चवाकुल रामकृष्णा राव, एम. सूर्यनरायन, प्रवीण, केशव, जे. रामकृष्ण, मुरली, एम. शिवकुमार, नृपुतंगा सी. के., डॉ. के. चारुलता, जी, एकांबरेश्वरुडु, शैलेषा नंदूरकर, जाकिया परवीन, शेक जुबर अहमद, डॉ. गौसिया सुलताना, विकास कुमार आजाद, पल्लवी कुमारी, निशा देवी, डॉ. पठान रहीम खान, के. राजन्ना, डॉ. एस. तुलसीदेवी, डॉ. रजनी धारी, गीतिटिका कुम्मूरी, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. साहिरा बानू बी. बोरगल, डॉ. बिष्णु कुमार राय, डॉ. शक्ति कुमार द्विवेदी, डॉ. ए. जी. श्रीराम, हरदा राजेश कुमार, डॉ. संतोष विजय मुनेश्वर, काज़िम अहमद, और अनेक लोग अंडमान, दिल्ली, वर्धा, खतौली, नांदेड, कर्नाटक, चेन्नै, अहमदाबाद, बनारस से भी पधारे थे।
सच्ची कविता स्वांत: सुखाय की अभिव्यक्ति है, इसमें कोई मायाजाल नहीं होता: अनुभूति की द्वितीय ‘संवाद शृंखला’ में बोले डॉ. ज्ञान जैन
कृष्ण-भाव में होता है केवल तेरा-तेरा, सर्वत्र तेरा, जीवन-मरण, अस्तित्व और परिवर्तन सब तेरा, पुरुषार्थ है बस मेरा। जैन दर्शन विभाग, श्री एस. एस शासुन जैन कॉलेज के विभागाध्यक्ष डॉ. ज्ञान जैन ने अनुभूति द्वारा आयोजित 'संवाद शृंखला' में भारतीय दर्शन पर प्रकाश डालते हुए यह कहा, “कोई साथ आया नहीं, कोई साथ जाएगा नहीं तो फिर उदास ना होना मेरे मन, ख़ुशी में या ग़म में, संतों ने समझाया है बने रहो शुद्ध स्वभाव में। दर्शन का पहला चरण है आस्था होना अन्यथा यह ज्ञान नहीं प्रपंच है। व्यक्ति स्वातंत्र्य की आत्म प्रतिष्ठा कराए वही समीचीन धर्म है। जो खोजने दर्शन गया वह लौट कर नहीं आया, दीपज्योति बन गया। जो प्रदर्शन करने गया वो अँधियारा मन रह गया। निर्णय ख़ुद का है बनना ज्योति है या अँधियारा,” दर्शन की महत्ता को बताते हुए आप ने आगे कहा।
हापुड़, उत्तर प्रदेश में जन्मे डॉ. ज्ञान जैन ने अपनी लेखन यात्रा के बारे में बताते हुए कहा कि आपकी पढ़ाई अँग्रेज़ी माध्यम से हुई थी, पढ़ने का शौक़ था जिज्ञासा जागी तो आपने गीता पढ़ी। विचारों पर मनन करने से सृजन की राह निकल पड़ती है, ऐसा आपका मानना है। आपने गुजराती से हिंदी में आठ पुस्तकें एवं हिंदी से अँग्रेज़ी में तीन पुस्तकों का अनुवाद किया है। जैन ऋषि-मुनियों के प्रवचन, उनके ज्ञान-दर्शन एवं मीमांसाओं की दस पुस्तकें आपके द्वारा संपादित हैं। मासिक पत्रिका ‘खरतर वाणी’ के आप मुख्य संपादक हैं। आपकी धर्मपत्नी श्रीमती प्रीतिबाला जैन एक कुशल गृहिणी हैं, आशीष एवं रचना आपकी संतान हैं।
इस अवसर पर ‘दर्शन’ विषय पर आयोजित अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में सुनीता जाजोदिया, शोभा चौरडिया, उदय मेघाणी, महेश नक़्श, रमेश गुप्त नीरद, नीलम दीक्षित एवं ज्ञान जैन ने काव्य पाठ किया।
अध्यक्ष श्री रमेश गुप्त नीरद ने स्वागत भाषण दिया एवं इस माह के विशेष कवि डॉ. ज्ञान जैन का अंगवस्त्रम से सम्मान किया।
महासचिव शोभा चौरडिया ने प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ किया एवं डॉ. ज्ञान जैन जी का परिचय प्रस्तुत किया। श्रीमती नीलम सारडा ने कार्यक्रम का सफल संचालन किया एवं सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस अवसर पर उपाध्यक्ष श्री विजय गोयल एवं कोषाध्यक्ष श्री विकास सुराना भी उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंप्रो. ऋषभदेव शर्मा अभिनंदन ग्रंथ का विमोचन 4 जुलाई को
हैदराबाद, 24 जून, 2022
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (उच्च शिक्षा और शोध संस्थान) तथा 'साहित्य मंथन' के संयुक्त तत्वावधान में आगामी 4 जुलाई (सोमवार) को दोपहर साढ़े 3 बजे से सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में एकदिवसीय राष्ट्रीय साहित्यिक समारोह आयोजित किया जा रहा है। इस अवसर पर प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. ऋषभदेव शर्मा के सम्मान में प्रकाशित अभिनंदन ग्रंथ 'धूप के अक्षर' का लोकार्पण किया जाएगा।
समारोह के स्वागाताध्यक्ष प्रो. संजय लक्ष्मण मादार ने बताया कि कार्यक्रम का उद्घाटन राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कृत वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. ऐन. गोपि करेंगे। अध्यक्ष महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के पूर्व अधिष्ठाता प्रो. देवराज होंगे। देहरादून से पधारीं प्रो. पुष्पा खंडूरी अतिविशिष्ट अतिथि का आसन ग्रहण करेंगी। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. गोपाल शर्मा, डॉ. अहिल्या मिश्र, डॉ. राकेश कुमार शर्मा, डॉ. वर्षा सोलंकी एवं सभा के प्रधान सचिव जी। सेल्वराजन उपस्थित रहेंगे।
अभिनंदन ग्रंथ की संपादक एवं समारोह की समन्वयक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने बताया कि 'धूप के अक्षर' शीर्षक अभिनंदन ग्रंथ दो ज़िल्दों में प्रकाशित है। लगभग 700 पृष्ठ के इस ग्रंथ में 60 लेखकों के कुल 82 आलेख सम्मिलित हैं। इनमें देश भर के विद्वानों और समीक्षकों के साथ-साथ प्रो. ऋषभदेव शर्मा के अंतरंग मित्रों, सहकर्मियों और शोध छात्रों के संस्मरण और समीक्षाएँ शामिल हैं। उन्होंने यह जानकारी भी दी कि विमोचन के उपरांत अभिनंदन ग्रंथ की प्रतियाँ संपादन मंडल और सहयोगी लेखकों को समर्पित की जाएँगी।
समारोह के संयोजक एवं सभा के सचिव एस। श्रीधर ने सभी साहित्य प्रेमियों से कार्यक्रम में उपस्थित होने की अपील की है।
प्रेषक
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह-संपादक 'स्रवंति'
असिस्टेंट प्रोफेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद
हैदराबाद-500004
उन्मेष:अभिव्यक्ति महोत्सव: भव्य अंतरराष्ट्रीय साहित्य महोत्सव-शिमला
शिमला, १६ जून २०२२: साहित्य, कला और संगीत की विधाओं में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को विस्तार देने के लिए ७५वें अमृत महोत्सव के एक भाग के रूप में, अभी तक का विशालतम अंतरराष्ट्रीय महोत्सव मनाया गया। यह उत्सव कला और संस्कृति विभाग, शिमला के सहयोग से संस्कृति मंत्रालय तथा साहित्य अकादमी के तत्वावधान में, हिमालय की तलहटी की मनोहारी अँचल में, ऐतिहासिक गेयटी थियेटर में आयोजित किया गया। माननीय राज्यपाल, राज्यमंत्रियों, ४२५ साहित्यकारों, कलाकारों, मानवतावादियों, राजनेताओं, दूरदर्शन और सिने हस्तियों, प्रकाशकों और उद्यमियों की उपस्थिति में इस समारोह का भव्य आयोजन किया गया। उल्लेखनीय है कि इन उपस्थिति व्यक्तियों में विभिन्न क्षेत्रों की पाँच पीढ़ियाँ शामिल थीं।
इस त्रिदिवसीय समारोह में चर्चाओं, कार्यशालाओं; वाद-विवादों; पुस्तकों के लोकार्पणों; नृत्य-संगीत प्रस्तुतियों; पुस्तक, कला और शिल्पकला से सम्बन्धित प्रदर्शनियों; कहानी-पाठों, फिल्म-स्क्रीनिंग से सम्बन्धित अनेक रंगारंग आयोजन किए गए। ये सभी आयोजन कोई ६० भाषाओं में थे। शिमला में आयोजित इस भारतीय प्रवासी सत्र में विभिन्न विधाओं की हस्तियों में साहित्य को गरिमामयी अभिव्यक्ति प्रदान की गई। विजय शेषाद्री, चित्रा देवकरणी, मंजुला पद्मनाभन (यूएसए), अभय के. (मेडागास्कर), अंजू राजन (दक्षिण अफ्रीका), सुनेत्र गुप्त (यूके) तथा पुष्पिता अवस्थी (नीदरलैंड्स) की सहभागिता विशेष उल्लेखनीय है।
निःसंदेह, शिमला की पर्वतीय भूमि कवि गुलज़ार की ग़ज़लों, प्रसून जोशी के गीतों, सोनल मानसिंह के संगीतबद्ध नृत्य-प्रस्तुतियों, महमूद फारुकी की दास्तानगोई, पी जय की कचेरी, नाथूलाल सोलंकी की नागदा, महमूद फारुकी की दस्ताने-कर्ण तथा अनेकानेक भक्ति-संगीत एवं जनजातीय संगीत से झंकृत हो उठी। साहित्य और सिनेमा, भारतीय तथा जनजातीय लेखकों के साहित्य, लेस्बियन-गे-बाइसेक्सुअल-ट्रांसजेंडर के साहित्य, मिडिया एवं साहित्य, लोक साहित्य, भक्ति-साहित्य तथा सांस्कृतिक एकनिष्ठा आदि से सम्बंधित प्रस्तुतियों में यह सत्र विशेष उल्लेखनीय रहा। जाने-माने साहित्यकारों और हस्तियों में भैरप्पा, गीतांजलि श्री, दिव्या माथुर, साई परांजपे, दीप्ति नवल, लिंक्स हायेस, डेनियल नेजर्स, चंद्रशेखर कम्बर, नमिता गोखले, सिवा रेड्डी, आरिफ मोहम्मद खान, प्रत्युष गुलेरी, होशंग मर्चेंट, सीतांश यशचन्द्र, विश्वास पाटिल, रंजीत होसकोटे, लीलाधर जगूड़ी, अरुण कमल, सतीश आलेकर, विष्णु दत्त, अनामिका, लक्ष्मी शंकर वाजपेयी आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। भारत के विभिन्न राज्यों के युवा लेखकों की उपस्थिति ने भी इस समारोह को महत्त्वपूर्ण बना दिया।
निःसंदेह, शिमला साहित्यिक महोत्सव में विशेषतया भारतीय साहित्यकारों तथा भारत से ही सम्बन्ध रखने वाले साहित्य, कला, नाट्य कला और ललित कला के विदेशी सृजकों को अंतरराष्ट्रीय मंच मिला। इस मंच को अंतरराष्ट्रीय ख्याति मिली और आयोजित सभी कार्यक्रमों को व्यापक आधार पर सराहा गया।
(प्रेस विज्ञप्ति: डॉ. मनोज मोक्षेंद्र)
आगे पढ़ेंडॉ. मोहन बैरागी को मिस्र (इजिप्ट) में मिला हिंदी सम्मान
हिंदी साहित्य के राहुल सांकृत्यायन सम्मान से विभूषित हुए डॉ. मोहन बैरागी
उज्जैन। हिंदी साहित्य और हिंदी भाषा का डंका विश्व के कई देशों में वर्तमान समय में बज रहा है। विगत दिनों ही हिंदी भाषा को सातवें क्रम में वैश्विक रूप से स्वीकृत किया गया है। भारतीय भाषा और हिंदी साहित्य की व्यापकता इसी बात से प्रमाणित होती है कि मिस्र के नोबेल पुरस्कार प्राप्त साहित्यकार अहमद शौक़ी ने भारत से रबिंद्रनाथ टैगोर को मिस्र आमंत्रित कर अपना सारा साहित्य समर्पित कर दिया था। साहित्य को समर्पित विद्वानों के ऐसे देश में 19वें अंतरराष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन का आयोजन 6 जून से 17 जून 2022 को मिस्र के काहिरा में आयोजित किया गया। भारत तथा अन्य देशों के विद्वानों व साहित्यकारों के इस संयोजन के समय वैश्विक रूप से भारतीय भाषा को स्थापित करने के प्रयास में यह सम्मेलन मिल का पत्थर साबित होगा, यह गौरव का विषय है।
विदेशी धरती पर सम्मान मिलने के अवसर पर यह बात डॉ. मोहन बैरागी ने सम्मान समारोह में कही। भारत से अलग-अलग विषयों में दख़ल रखने वाले विद्वानों ने अपनी आमद इस आयोजन में दी। इस अवसर पर विद्वानों को सम्मानित किया गया, तथा इस कड़ी में 14 जून 2022 को इजिप्ट के काहिरा शहर के ग़िज़ा में स्थित पिरामिड पार्क रिसोर्ट में एक भव्य आयोजन में मध्य प्रदेश उज्जैन के डॉ. मोहन बैरागी को हिंदी के प्रकांड विद्वान राहुल सांकृत्यायन सम्मान से सम्मानित किया गया। डॉ. मोहन बैरागी द्वारा अल्प समय में हिंदी में विभिन्न विधाओं में लेखन तथा उत्कृष्ट साहित्य के लिए यह सम्मान दिया गया। यह सम्मान इजिप्ट तथा भारत के विद्वानों व साहित्यकारों तथा प्रशासनिक अधिकारियों के करकमलों से दिया गया।
हज़ारों किलोमीटर दूर विदेशी धरती पर मिले इस सम्मान के लिये डॉ. मोहन बैरागी ने अपने माता पिता, परिवारजन, साथी मित्रों, गुरुजनों, डॉ. शैलेंद्रकुमार शर्मा, डॉ. जगदीश शर्मा, संतोष सुपेकर, शशिरंजन अकेला, अशोक भाटी, दिनेश दिग्गज, अशोक नागर, संदीप नाडकर्णी, मुकेश जोशी, सुरेंद्र सर्किट, नरेंद्र अकेला व अभिन्न पत्रकार मित्रों को याद कर धन्यवाद दिया, जिनके संबल से यह उपलब्धि हासिल हुई है।
इस अवसर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा तथा छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष टॉमन सिंग सोनवानी, वरिष्ठ विद्वान साहित्यकार जवाहर गंगवार, डॉ. सुखदेवे, छत्तीसगढ़ लोकसेवा आयोग के सचिव जीवनकिशोर ध्रुव, उत्तर प्रदेश, भारत सरकार से यश भारती सम्मान प्राप्त डॉ. रामकृष्ण राजपूत, डॉ. जयप्रकाश मानस, मुमताज़, उच्च शिक्षा विभाग उत्तराखंड की निदेशक डॉ. सविता मोहन तथा इजिप्ट के पुरातत्वविद व साहित्यकार तथा पर्यटन विशेषज्ञ सुश्री शाइमा, मुहम्मद, अहमद, अब्दुल्ला, मुहम्मद व अन्य विद्वानों की उपस्थिति में कार्यक्रम सम्पन्न हुआ।
आगे पढ़ेंबालकहानी प्रतियोगिता के परिणाम घोषित
अलका प्रमोद लखनऊ को मिला प्रथम स्थान
देशभर के बालकथाकारों से बालकहानियाँ, प्रतियोगिता—श्रीमती सुशीलादेवी केशवराम क्षत्रिय स्मृति बाल प्रतियोगिता-2022 के लिए आमंत्रित की गई थीं। जिसमें विभिन्न बालसाहित्यकारों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इस कारण इस प्रतियोगिता में 55 से अधिक कहानियाँ प्रविष्टियों के तौर पर प्राप्त हुई थीं। प्रतियोगिता के नियमानुसार इन सभी कहानियों पर से रचनाकारों के नाम हटाकर कहानी के शीर्षक के साथ निर्णायक और प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. दिनेश कुमार पाठक ‘शशि’ को मूल्यांकन के लिए भेजा गया था।
निर्णायक महोदय ने कहानी का अध्ययन, मनन और चिंतन करके प्रथम स्थान: महँगी पड़ी शरारत, रचनाकार-अलका प्रमोद लखनऊ; द्वितीय स्थान: कहानी मिली की, रचनाकार-इंद्रजीत कौशिक बीकानेर; तृतीय स्थान: मछली जल की रानी, रचनाकार-नीलम राकेश लखनऊ की कहानी को प्रदान किया गया।
इसी तरह प्रथम 10 कहानियों में अपना स्थान बनाने वाली कहानियों और रचनाकारों के नाम इस प्रकार हैं: सब्ज़ी लोक में टिंकू-अलका अग्रवाल जयपुर; लैपटॉप-मधुलिका श्रीवास्तव भोपाल; कौन जीता कौन हारा-मीनू त्रिपाठी नोएडा; इफ्तारी-डॉ.क्टर लता अग्रवाल भोपाल; मिंकु पिंकू-वंदना पुणतांबेकर इंदौर; अनुशासन का महत्त्व-विनीता राहुरिकर भोपाल; खेल खेल में-अंजली खेर भोपाल; मंगलवन में अमंगल ललित शौर्य पिथौरागढ़; नन्ना गोलू-संध्या गोयल सुगम्या राजनगर गाजियाबाद को प्राप्त हुआ है।
इन सभी विजेताओं को पुरस्कार राशि व सम्मानपत्र श्रीमती सुशीलादेवी केशवराम क्षत्रिय स्मृति बाल प्रतियोगिता-2022 के आयोजक प्रसिद्ध बालसाहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ द्वारा प्रदान किए जाएँगे।
आगे पढ़ेंअंतर्राष्ट्रीय महिला साहित्य समागम में साहित्य और भाषा पर वैश्विक चिंतन सफल
किसी भी संगोष्ठी का उद्देश्य उस विषय अथवा आयोजित शीर्षक पर नवीन तथ्यों पर विचार विमर्श करते हुए संवाद की प्रक्रिया के साथ प्रकाश डालना होता है। संगोष्ठी के माध्यम से साहित्य की प्रगति का वातावरण निर्मित होता है जिसमें विभिन्न भाषा और साहित्य के विषयों के प्रति एक नये दृष्टिकोण का प्रादुर्भाव होता है। यह संवाद की प्रक्रिया किसी नए विचार, विचारधारा अथवा अवधारणा की आधारशिला बनती है जिससे साहित्य का विस्तार होता है। इन्हीं उद्देश्यों के साथ विगत 14-15 मई 2022 को वामा साहित्य मंच और घमासान डॉट कॉम के तत्वावधान में अभय प्रशाल इंदौर में अंतरराष्ट्रीय महिला साहित्य समागम का आयोजन किया गया।
विविध सत्रों में हिंदी की स्थिति, अपेक्षाएँ, भविष्य का पथ और नवीन तकनीक से जुड़ाव, रोज़गार आदि की संभावनाओं के मध्य भाषा की विधागत स्थिति पर चिंतन मनन करते हुए, इस आयोजन को विविध सत्रों में विभाजित किया गया था।
प्रथम सत्र उद्घाटन सत्र में मुख्य अथिति व अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यिकार सूर्यबालाजी व विशेष अतिथि डॉ. राजकुमारी गौतम उपस्थित थीं, सत्र का विषय था “हिंदी साहित्य के प्रचार प्रसार में तकनीक की भूमिका।”
अपने उद्बोधन में राजकुमारी गौतम जी ने तकनीक, भाषा, विदेश में अन्य भाषाओं के साथ तुलनात्मक अध्ययन के तकनीकी पक्ष व भविष्य में उसका उपयोग कर हिंदी के भविष्य पर बात की। उन्होंने कहा कि भारत, जापान एवं यूरोपीय संघ में भारतीय भाषाओं, संस्कृति के प्रचार-प्रसार व शोध में सहयोग देने का कार्य चल रहा है इसके अलावा भारत की संस्कृति में इच्छुक लोगों को एक दूसरे से जोड़ने का एवं यूरोपीय संघ के विश्वविद्यालयों में तकनीकी सहयोग देने का कार्य भी रिसर्च फ़ॉउंडेशन के माध्यम से किया जाता है।
अध्यक्ष डॉ. सूर्यबाला ने कहा कि स्त्री को आक्रामकता न दिखाकर बुराई के विरोध में होना चाहिए, कोई आपसे अपने मन के विचार लिखवा ले, आप दूसरे के हाथ की कठपुतली बनकर नहीं लिखना है, हमें वो लिखना है जो हमारा मन है। उन्होंने कहा कोई विषय अश्लील नहीं होता, अश्लील होता है उसे प्रस्तुत करने का तरीक़ा। नई पीढ़ी लिखने में पढ़ने और अपने मन का रचने के लिए स्वतंत्र है किन्तु विषय चयन विध्वंसक न हो। सृजन ही साहित्य की पहली परिभाषा है, ख़ूब पढ़ें, ख़ूब लिखें, नया रचें।
स्त्री लेखन को कम महत्त्व दिए जाने के बावजूद एक दमदार उपस्थित स्त्री लेखन की रही है, जिसमें उदार पाठक है संपादकों का योगदान है। इस सत्र में वामा साहित्य मंच की पत्रिका शब्द समागम, पद्मा राजेन्द्र, सुषमा चौधरी व चित्रा जैन की पुस्तक का विमोचन भी हुआ।
विनीता शर्मा को उनके योग व शोभा प्रजापति को संस्कृत भाषा में उनके योगदान पर सम्मानित किया गया।
स्वागत उद्वोधन समागम चेयर पर्सन पद्मा राजेन्द्र ने दिया, वार्षिक रपट का वाचन ज्योति जैन द्वारा किया गया। सत्र का संचालन गरिमा संजय दुबे ने किया।
द्वितीय सत्र का विषय था “प्रवासी और मुख्यधारा साहित्य के मध्य मैत्री सेतु”।
विषय की प्रस्तावना रखते हुए चर्चाकार पद्मा राजेंद्र ने कहा कि प्रवासी साहित्य का सम्बन्ध प्रवासी लोगों के द्वारा लिखित साहित्य से है। सवाल यह है कि यह प्रवासी लोग कौन हैं और इनके साहित्य की विशेषता अथवा सुंदरता क्या है और किस तरह वह सेतु के रूप में काम कर रहा है! प्रवासी विमर्श की विशेषता यह है कि इसके अंतर्गत रचनात्मक साहित्य अधिक लिखा गया है और यह लेखन एक सांस्कृतिक सेतु की तरह है प्रवासी साहित्य वर्तमान दशा, संभावनाएँ, भारतीय साहित्य की मुख्यधारा में प्रवासी साहित्य का समावेश कई बातों को ओर इंगित करता है। प्रवासी हिंदी साहित्य के अंतर्गत कविताएँ, उपन्यास, कहानियाँ, नाटक, एकांकी, महाकाव्य, खंडकाव्य, अनूदित साहित्य, यात्रा वर्णन आदि का सृजन हुआ है इन साहित्यकारों ने अपनी रचनाओं के द्वारा नीति, मूल्य, मिथक, इतिहास, सभ्यता के माध्यम से भारतीयता को सुरक्षित रखा है यह सबसे बड़ी और महत्त्वपूर्ण बात है। प्रवासी साहित्य से हमें अपने देश की ख़ुश्बू मिलती है उन्होंने अनेक प्रवासी साहित्यकारों द्वारा लिखे गए साहित्य का उल्लेख किया।
प्रवासी साहित्य के बीच सेतु विषय पर बोलते हुए डॉ. प्रतिभा कटियार ने कहा कि आज का दौर ऐसा है जिसमें सभी स्त्रियाँ प्रवासी हो गई हैं और यहाँ तक की मज़दूर भी प्रवासी हैं लेकिन इसके बावजूद जो बाहर के देशों में रह रहे हैं और लिख रहे हैं वे भारतीय संस्कृति के साथ-साथ उन देशों की संस्कृति से भी जुड़ गए हैं। यही वजह है कि उनके लेखन में विविधता झलकती है। दो देशों की संस्कृति के बारे में जब हम पढ़ते हैं तो हमें नवीनता का आभास होता है। प्रतिभा कटियार ने आगे कहा, कि भारत में जो लड़ाइयाँ लड़ी जा रही है क्या उन्हें प्रवासी साहित्यकार अपने लेखन में ला रहे हैं! यह भी हमें देखना होगा। उन्होंने कहा कि भारत में स्त्री को जिन स्थितियों का सामना करना पड़ता है क्या अमेरिका की स्त्री भी उन स्थितियों का सामना कर रही है इन सब को भी देखना होगा।
प्रवासी साहित्य का सेतु इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है इसके माध्यम से विदेश की ख़ुश्बू हमारे देश आती है और हमारे देश की ख़ुश्बू वहाँ तक पहुँचती है उन्होंने बताया कि विदेश में रह रहे साहित्यकारों ने वहाँ की स्त्रियों के दर्द को भी व्यक्त किया है। महिला लेखन ने बहुत संघर्षों के बाद आज अपने लिए ख़ुद ज़मीन बनाई उन्होंने कहा कि महिला लेखन को पहले दोयम दर्जे का समझा जाता था लेकिन धीरे-धीरे महिला लेखन ने ख़ुद अपनी ज़मीन तैयार की।
सिंगापुर से पधारी प्रसिद्ध लेखिका शार्दूला नोगजा ने कहा कि प्रवासी साहित्यकार जब भारत के बारे में लिखते हैं तो क्या सचमुच उसमें भारत के संघर्ष से उभर कर आते हैं! उन्होंने कहा कि भारत में रहने वाले बहुत कम ऐसे लोग हैं जिन्होंने प्रवासी साहित्यकारों की किताबें पढ़ी हैं, ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को प्रवासी साहित्य पढ़ना चाहिए तभी प्रवासी साहित्य मुख्यधारा में शामिल में हो पाएगा। हालाँकि आधुनिक टेक्नॉलोजी के माध्यम से भारत के लोग प्रवासी साहित्य से जुड़ गए हैं उन्होंने बताया कि उन्होंने एक समूह बनाया है “हिंदी से प्यार है” इसके माध्यम से हम लोग लेखकों को जोड़ने का काम कर रहे हैं उन्होंने कहा कि सेतु बनाने के लिए चर्चा और विमर्श के साथ ही और भी प्रयास करना चाहिए। इस विषय पर डॉ. शोभा जैन ने शोध पत्र वाचन किया और सत्र का संचालन बबीता कड़ाकिया ने किया।
तृतीय सत्र “स्त्री अस्मिता, अदम्य जिजीविषा के संघर्ष एवं स्त्री लेखन ” विषय पर केंद्रित था इस विषय पर तीन वरिष्ठ लेखिका द्वारा परिचर्चा की गई।
वरिष्ठ लेखिका ज्योति जैन ने अपने सारगर्भित उद्बोधन को, मैं कर सकती हूँ, मैं करूँगी, मैं कुछ बनकर ही रहूँगी प्रण लेती हूँ इन पंक्तियों से प्रारंभ किया। आपने नारी सशक्तिकरण पर यह कहा कि शिक्षा प्राप्त करना या आत्मनिर्भर हो जाना ही सशक्त होना नहीं है। उसके निर्णय लेने की क्षमता ही उसका सशक्त होना है। आज हिन्दी में साहित्य भी समृद्ध है और स्त्री लेखन भी। ज्योति जैन ने अपनी लघुकथाओं के माध्यम से बताया कि किस तरह से उनके पात्र अपने जीवन को जीने के लिए संघर्ष करते हैं उन्होंने कहा कि आज का महिला लेखन वास्तव में बहुत सार्थकता साबित कर रहा है।
स्त्री अस्मिता को लेकर प्रसिद्ध लेखिका जया सरकार ने कहा कि अहिल्याबाई से लेकर मंडन मिश्र की पत्नी तक ने स्त्री अस्मिता और स्त्री की गरिमा को समय-समय पर साबित किया है उन्होंने कहा कि गंगूबाई काठियावाड़ी भी स्त्री अस्मिता का प्रतीक है इस मौक़े पर उन्होंने एक सशक्त कविता भी सुनाई।
इस कविता में स्त्री के अस्तित्व और उस पर उठते सवालों को रेखांकित किया गया है। उन्होंने कहा कि स्त्री की अस्मिता को समझने के लिए हमें उन पात्रों को भी देखना होगा जिन्होंने संघर्ष का जीवन जिया है।
स्त्री अस्मिता को लेकर अपने विचार रखते हुए वरिष्ठ लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि अब हमें दायरों की आवश्यकता नहीं है। स्त्री विमर्श और पुरुष विमर्श जैसी विभाजन रेखा को तोड़ना होगा। उन्होंने कहा कि बचपन में हमें दायरों में रहना सिखाया जाता था लेकिन मेरा यह कहना है कि स्त्री लेखन किसी का भी मोहताज नहीं है। उन्होंने कहा कि लेखन को कभी भी विभाजित नहीं किया जाना चाहिए उसी तरह से उन्होंने कहा कि उन्हें अभिमन्यु अनत जो कि मारीशस में रहते थे वह कभी प्रवासी नहीं लगे। कहानियों में पात्र सबक़ सिखाते हैं ऐसा ही वास्तविक जीवन में भी होना चाहिए इस मौक़े पर उन्होंने सशक्त कविता का वाचन भी किया पहले कई महिलाएँ पुरुषों के नाम से लेखन करती थीं भारतेंदु की प्रेरणा मल्लिका रही है। स्त्री की जिजीविषा गुलाबों में से काँटे निकाल देती है। पहले महिलाएँ लिखने के बाद उसे आटे के डब्बे में दबा देती थीं लेकिन आज स्त्री लेखन मुखर होकर सामने आया है। लेखिकाओं की पूरी जमात जो कृष्णा सोबती से शुरू होती है उसका सिलसिला आज तक जारी है। आपने अपने वक्तव्य में महादेवी वर्मा एवं सुभद्रा कुमारी चौहान से लेकर नासिरा शर्मा, मन्नू भण्डारी से होते हुए आधुनिक काल की लेखिकाओं के बारे में बताया।
बीते समय में कैसे लेखिकाओं को संघर्ष करना पड़ता था, उसके बाद समय बदला जिस तरह से मन्नू भण्डारी ने राजनीति को लेकर महाभोज उपन्यास की रचना की वो स्त्री की जिजीविषा एवं अदम्य साहस का परिचय देती है।
सत्र के अंत में वामा मंच की डॉ. अंजना मिश्र के शोध पत्र का वाचन डॉ. शोभा प्रजापति द्वारा किया गया। सत्र का संचालन मधु टाक द्वारा किया गया।
चतुर्थ सत्र अप्रचलित विधाएँ जैसे ललित निबंध यात्रा, वृत्तांत, व्यंग्य लेखन इत्यादि पर केंद्रित था। महिला का अकेला यात्रा करना वाक़ई एक रोमांचक अनुभव है। ट्रैवल ब्लॉगर कोपल जैन ने अपने अनुभव बताते हुए कहा कि उन्हें पहले ऐसा लगता था कि महिलाओं के लिए अकेले यात्रा करना सुरक्षित नहीं है। लेकिन पिछले कई वर्षों में उन्हें अनुभव हुआ कि यह बात पूरी तरह से ग़लत है। उन्होंने कहा कि यात्रियों के माध्यम से अलग-अलग देशों की तथा अपने ही देश की संस्कृति को जानने का मौक़ा मिलता है। उन्होंने बताया कि उनका प्रिय देश वियतनाम रहा है जहाँ पर वह वहाँ की संस्कृति को नज़दीक से देख कर बेहद आनंदित हुई।
प्रसिद्ध व्यंग्य लेखिका समीक्षा तैलंग ने कहा, कि अबू धाबी के कबूतर और भारत के कबूतर में क्या अंतर है इस पर भी मैंने अपने अनुभव लिखे हैं इसलिए मैं कह सकती हूँ कि किसी भी विषय को देखने के लिए दृष्टि चाहिए इसके बाद तो लेखन बहुत आसान हो जाता है। विषय कोई भी हो सकता है सबसे बड़ी बात यह है कि आपकी दृष्टि क्या है? हमारे आस पास बहुत सारी विसंगतियाँ हैं जो लेखन का विषय होती है। महिला व्यंग्यकार के पास सबसे बड़ा काम बाहर की गंदगी का सफ़ाया करना है और उसे समाज के बीच लाना है। इसलिए आज महिला लेखन का महत्त्व बहुत अधिक बढ़ गया है।
इस सत्र का संचालन गरिमा मुद्गल ने किया।
पाँचवाँ सत्र साक्षात्कार का था जिसमें वामा साहित्य मंच की अध्यक्ष अमर चड्ढा ने जम्मू कश्मीर से आई प्रसिद्ध लेखिका क्षमा कौल का साक्षात्कार लिया। क्षमा कौलजी ने साक्षात्कार के उल्लेखनीय प्रश्नों के उत्तर में बताया कि किस तरह से इन्होंने कश्मीर में दमन और अत्याचार का माहौल देखा है। उन्होंने कश्मीरी पंडितों के दर्द की बात बताते हुए कहा कि एक बार प्रसिद्ध लेखक नागार्जुन भी उनके साथ कश्मीर गए थे जहाँ वे 1 महीने रहे इस दौरान उन्होंने भी इस बात को महसूस किया था कि यहाँ पर जो कुछ हो रहा है वह बहुत ग़लत है और उन्होंने इस बात की ज़रूरत को महसूस किया था कि यहाँ पर मज़बूत संगठन होना चाहिए उन्होंने कहा कि पहले हमें चुन-चुन कर नहीं बल्कि तिल-तिल करके मारा जाता था। उन्होंने कहा कि एक लेखक के रूप में उन्होंने महसूस किया है कि कश्मीरी पंडितों के दर्द का कोई अंत नहीं है लेकिन अब जागरूकता आ रही है।
सांध्यकालीन सत्र “ओपन माइक” में विभिन्न शहरों से पधारी लेखिकाओं ने काव्य प्रस्तुतियाँ दीं। स्थानीय युवाओं ने, नवांकुरों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। इस सत्र का संचालन दिव्या मंडलोई और प्रतिभा जैन ने किया।
दूसरे दिन की शुरूआत वर्तमान दौर की लोकप्रिय विधा लघुकथा से हुई यह सत्र लघुकथा पाठ पर आधारित था। इस सत्र में देश विदेश से आई लेखिकाओं द्वारा सशक्त लघुकथाओं का पाठ किया गया। सत्र की की मुख्य अतिथि थी वरिष्ठ लेखिका कांता राय और पत्रकार श्रीमती निर्मला भुराडिया।
सत्र में लेखिकाओं द्वारा सामाजिक विसंगतियों, महिला संघर्ष पर केंद्रित लघुकथाओं का वाचन किया गया। प्रसिद्ध लेखिका कांता राय ने लघुकथा लेखन हेतु मार्गदर्शन किया। उन्होंने कहा कि समाज में एकल परिवार बढ़ते जा रहे हैं इसके कारण भी बहुत सारी परेशानियाँ सामने आ रही है। बुज़ुर्गों को वृद्धाश्रम में रखा जा रहा है, इसकी विसंगतियाँ भी हमें देखने को मिल रही है। उन्होंने कहा कि आज हमारे समाज में जो बदलाव आ रहे हैं उन सब को अभिव्यक्त करती हैं लघुकथाएँ। आपके अनुसार इस सत्र में जितनी भी लघुकथाओं का पाठ किया गया उनमें कहीं न कहीं कुव्यवस्थाओं और समस्याओं का चित्रण हुआ है।
वरिष्ठ लेखिका निर्मला भुराडिया ने कहा कि लघुकथा को लघु ही होना चाहिए और सबसे बड़ी बात यह है कि उसमें पंच आना चाहिए अभी यह देखने में आता है कि कई लघुकथाएँ लंबी हो जाती हैं लेकिन यह स्पष्ट नहीं होता कि वह किस उद्देश्य से लिखी गई हैं। इस सत्र का संचालन रूपाली पाटनी और शिरीन भावसार ने किया।
अंतरराष्ट्रीय समागम के नवे सत्र में हिंदी भाषा और साहित्य की प्रधानता को परिलक्षित किया। यह सत्र मार्गदर्शन सत्र रहा। इस सत्र की मुख्य अतिथि केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली की सहायक निदेशक डॉ. नूतन पांडेय थी। उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया की भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने राजभाषा विभाग की स्थापना 14 सितंबर 1949 को की और हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया। इसके अनुसार तब से लेकर अब तक हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है इस पखवाड़े में हिंदी भाषा में लेखन कार्य करने वाले लेखकों को राजभाषा हिंदी पुरस्कार, राजभाषा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किए जाने का प्रावधान है। यदि आप ज्ञान विज्ञान, योग, पत्रकारिता, मीडिया पर्यावरण पर पुस्तक लिख चुके हैं तो उसे राजभाषा वेबसाइट पर प्रेषित करें। अगर आपकी पुस्तक राजभाषा मापदंडों पर खरी उतरती हैं तो उस पुस्तक को नगद पुरस्कार और राजभाषा गौरव पुरस्कार से सम्मानित किया जा सकता है। उन्होंने हिंदी भाषा में लेखन कार्य से सम्बन्धित सभी सरकारी योजना को विस्तार पूर्वक समझाया। किस तरह सरकारी योजना के माध्यम से लेखक अपने लेख, पांडुलिपियाँ, अनुवाद, शोध पत्र, आलेख और अपनी रचनाओं को त्रैमासिक हिंदी विश्व पत्रिका के माध्यम से प्रचार-प्रसार कर उसे जनमानस तक पहुँचा सकते हैं। अगर आप अच्छे लेखन के पश्चात भी पुस्तक के प्रकाशन में असमर्थ हैं तो केंद्रीय हिंदी निदेशालय प्रकाशन की पांडुलिपि योजना के अंतर्गत ज्ञान विज्ञान मनोविज्ञान, पर्यटन, संस्कृति, धर्म किसी भी विषय में आप अपनी पांडुलिपि का अनुमानित व्यय लिखित में उन्हें प्रेषित कर उसका 80% केंद्र निदेशालय से प्राप्त कर सकते हैं अगर आपकी पांडुलिपि उत्कृष्ट और प्रकाशन हेतु उचित पाई जाती है। साथ ही उन्होंने बताया कि अगर दूसरी भारतीय भाषाओं में आपने अनुवाद कर रखा है तो आप वह भी भेज कर अनुदान राशि प्राप्त कर लाभ उठा सकते हैं। प्राध्यापक व्याख्यानमाला जिसके अंतर्गत विभिन्न विधाओं में आप तीन विश्वविद्यालयों में हिंदी साहित्य में व्याख्यान दे सकती हैं। हिंदी के प्रचार-प्रसार हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता ने रोज़गार के नए आयाम उद्घाटित किए हैं। उन्होंने बताया भारत में 800 से ज़्यादा रजिस्टर्ड कंपनियाँ हैं जो हिंदी में अपना कार्य कर रही है। उन्होंने कहा कि हिंदी कि सारी बोलियों को यदि मिला दिया जाए तो हिंदी को विश्व की नंबर एक की बोली माना जा सकता है। हिंदी को विश्व स्तर पर स्वीकार कर लिया गया है और इसकी लोकप्रियता में दिनोंदिन बढ़ोतरी हो रही है। हिंदी सीखने में विश्व के कई देश रुचि ले रहे हैं। हिंदी सीखने के कारण रोज़गार के अवसर भी बढ़ते चले जा रहे हैं। डॉ. नूतन ने हिंदी को को विश्व की भाषा कहते हुए उन्होंने अपनी बात समाप्त की।
इस सत्र संचालन संगीता परमार ने किया।
अगला सत्र “अंतरराष्ट्रीय भाषा के रूप में हिंदी की स्थापना वैश्विक अपेक्षाएँ व वर्तमान स्थिति” इस विषय पर केंद्रित था। प्रसिद्ध भाषा सेवी साहित्यकार और अनुवादक अंतरा करवड़े ने कहा कि आज टेक्नॉलोजी का जिस तरीक़े से विस्तार हो रहा है उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि आने वाले समय में एलेक्सा मालवी भाषा में ना केवल बात करने लगेगी बल्कि हमारे द्वारा बोले गए ग़लत शब्दों को सुधार भी देगी। उन्होंने कहा कि टेक्नॉलोजी ने भाषा के विकास का रास्ता खोल दिया है कई ऐसे उपकरण आ गए हैं जिनकी सहायता से सिर्फ़ बोलकर ही टाइप किया जा सकता है इसके अलावा एलेक्सा ने भी हिंदी अँग्रेज़ी अनुवाद के साथ-साथ बहुत सारी जानकारियों को हमारे तक आसानी से पहुँचा दिया है।
उदयपुर से आई प्रसिद्ध लेखिका रीना मेनारिया ने कहा कि हिंदी भाषा को सम्मान देना ज़रूरी है। घर के बच्चों से भी हमें हिंदी में ही बात करनी चाहिए। विदेशों में जाकर रहने वाले भारतीयों की यही विशेषता है कि भारतीय जहाँ पर भी जाते हैं वह अपनी लोक संस्कृति को नहीं भूलते।
मॉरीशस से पधारी प्रसिद्ध लेखिका प्रोफ़ेसर डॉक्टर अंजली चिंतामणि ने विश्व में हिंदी की वैश्विक स्थिति और उसके विकास पर चर्चा करते हुए कहा कि भारत से जो भी लोग मॉरीशस सहित विदेशों में गए उन्होंने वहाँ पर हिंदी के विकास के साथ-साथ भारतीय संस्कारों को भी प्रसारित किया है। आपके अनुसार मारीशस में हिंदी संस्थान के माध्यम से हिंदी के विकास का कार्य चल रहा है। हिंदी के विकास के लिए अभी तक 11विश्व हिंदी सम्मेलन हो चुके हैं। मॉरीशस में विश्व हिंदी सचिवालय कार्य कर रहा है लेकिन इसके बावजूद हमें एक सेतु की आवश्यकता है ताकि सामूहिक रूप से कार्य किए जा सकें उन्होंने कहा कि विश्व के 180 विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई कराई जा रही है।
अगले सत्र का विषय था “भारतीय संस्कृति का बदलता स्वरूप और भाषायी शुचिता”।
इस सत्र में नेपाल से विशेष रूप से पधारी अतिथि केन्द्रीय हिन्दी विभाग, त्रिभुवन विश्वविद्यालय, कीर्तिपुर, काठमांडू, नेपाल की पूर्व विभागाध्यक्ष एवं सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं संपादक डॉ. श्वेता दीप्ति ने अपने उद्बोधन में कहा कि नेटफ्लिक्स का कल्चर हमारी संस्कृति और देश दोनों की बर्बादी कर रहा है। आज के बच्चे जितनी आसानी से गालियाँ सीख रहे हैं वह सब इसी कल्चर की देन है।
उन्होंने कहा कि हमारी संस्कृति को बचाने के लिए बच्चों को संस्कारित करना होगा। भाषाई शुचिता पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि बच्चों के सीखने की शुरूआत घर से ही होती है इसलिए जो भी वह सीख रहे हैं उस पर हमें ध्यान देना चाहिए। किसी भी भाषा का एक पक्ष नहीं होता। भाषा राजनीति, संस्कृति और पारिवारिक माहौल से निकल कर आती है। बच्चों में भाषा रोपने के लिए उन्हें समय दें, उनसे बात करें और क्वालिटी टाइम दें। उन्हें अपने आप इधर-उधर से सीखने के लिए, समझने के लिए स्वतंत्र ना छोड़ें। उन्होंने परिवार की अवधारणा को बनाए रखने की आवश्यकता पर बल दिया।
सत्र में चर्चाकार, हिंदी एवं मराठी भाषा की लेखिका एवं अनुवादक डॉ. वसुधा गाडगिल ने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि हमें भारतीय संस्कृति में निहित मूल्यों को सम्हाल कर रखना चाहिए। आयातित संस्कृति में विदेशी भाषाएँ आईं और हमारी संस्कृति में धीरे से घुल मिल गईं। आयातित उत्पादों के साथ आयातित भाषा ने भी हमारी भाषा में घुसपैठ कर ली जो कि चिंताजनक है। भारतीय संस्कृति और हिंदी भाषा के प्रचार प्रसार में हिंदी सिनेमा और गीतों की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। तमिल की बाहुबली नामक अनूदित फ़िल्म में शिवतांडव स्तोत्र और संस्कृतनिष्ठ, तत्सम, तद्भव शब्दों से युक्त हिंदी संवादों के माध्यम से युवाओं में सनातन संस्कृति, मानवीय मूल्य और सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार हुआ है जो हिंदी भाषा की सफलता का उत्कृष्ट है। आज मशीनी अनुवाद में भी भाषाई शुचिता को लेकर सजग रहने की ज़रूरत है। उन्होंने भाषाई शुचिता को भिन्न-भिन्न प्रकार के उदाहरणों के साथ अपनी बात बहुत ही रोचक तरीक़े से प्रस्तुत की।
सत्र के अंत में वैजयंती दाते जी ने विषय पर सारगर्भित शोध पत्र का वाचन किया। कार्यक्रम का सफल संचालन शिवानी जयपुर ने किया।
आगामी सत्र पुरुष सत्र था इसका विषय “स्त्री लेखन पुरुषों की दृष्टि से” था। इसमें प्रसिद्ध अनुवादक और साहित्यकार डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद मिश्र ने कहा कि कृष्णा सोबती से अमृता प्रीतम तक और उसके पश्चात अनेक लेखिकाओं ने लेखन के माध्यम से स्त्री लेखन की नई इबारत लिखी है और स्त्रियों को लेखन हेतु प्रोत्साहित किया है। स्त्री लेखन की पराकाष्ठा यह है कि अब तक सोलह महिलाओं को नोबेल पुरस्कार मिला है। महिला लेखन का महत्त्व दिनों दिन बढ़ता ही जा रहा है। भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार भी कई महिलाओं को मिले हैं, आशापूर्णा देवी को तो 1976 में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका था। महाश्वेता देवी को भी यह पुरस्कार मिल चुका है। नीदरलैंड से पधारे डॉक्टर रामा तक्षक ने कहा कि महिलाओं को जीवन से जुड़े ज्वलंत मुद्दों पर क़लम चलानी चाहिए। उन्होंने कहा की यूक्रेन युद्ध में महिलाओं और बच्चों की जो दुर्दशा हुई है वह वास्तव में शर्मनाक है।
केंद्रीय हिंदी निदेशालय, दिल्ली के सहायक निदेशक डॉ. दीपक पांडेय ने इस विषय पर उदात्त विचार व्यक्त करते हुए कहा कि प्राचीन काल से आज तक स्त्री लेखन, साहित्य में सशक्त उपस्थिति दर्ज करा रहा है। साहित्य की समृद्ध परंपरा में स्त्री लेखन के माध्यम से महिलाओं का उल्लेखनीय योगदान रहा है। आपने यह भी कहा की लेखन को दो धाराओं में नहीं बाँटना चाहिए। हमें यह देखना, समझना आवश्यक है कि आज का साहित्य कितना प्रासंगिक और उपयोगी है। समागम के आयोजक राजेश राठौर ने भी महिला लेखन पर विचार रखें।
इस सत्र के मॉडरेटर लेखक विश्वास व्यास थे उन्होंने वर्तमान में स्त्री लेखन पर विचार व्यक्त किए।
वामा साहित्य मंच, घमासान डॉट काम के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित इस दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय समागम के अंतिम सत्र में मुख्य अतिथि डॉ. अनुपमा जैन (एडिशनल रिप्रेज़ेंटेटिव संयुक्त अखिल भारतीय शाह बेहराम बग सोसाइटी मुंबई) एवं अध्यक्षता डॉ. नूतन पांडेय (सहायक निदेशक केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली) ने की। डॉ. नूतनजी ने अपने उद्बोधन में कहा कि हिंदी का जैसे-जैसे विकास हो रहा है, उसके साथ ही हिंदी में रोज़गार के अवसर भी बढ़ते जा रहे हैं। जनसंपर्क का कारोबार भी हिंदी के कारण विकसित हो रहा है हिंदी की यही शक्ति उसे दूसरी भाषाओं से अलग करती है। सरकार के कई विभाग हिंदी के विकास को बढ़ावा देने के लिए कार्य कर रहे हैं। हिंदी के सृजन एवं प्रचार-प्रसार हेतु प्रोत्साहित करते हुए विभिन्न वेबसाइट्स की जानकारी दी। आयोजन में लखनऊ से पधारी दिव्यांग लेखिका कंचन सिंह चौहान को अहिल्या शक्ति सम्मान से सम्मानित किया गया। डॉ. अनुपमा जैन-एडिशनल रिप्रेज़ेंटेटिव संयुक्त अखिल भारतीय शाह बेहराम बग सोसाइटी, मुंबई संस्था की ओर से साहित्य और भाषा सेवा तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर की सफल एवं सुनियोजित संगोष्ठी हेतु वरिष्ठ लेखिका पद्मा राजेंद्र, ज्योति जैन अमर चड्ढा, डॉ. वसुधा गाडगिल एवं अंतरा करवड़े का सम्मान किया।
घमासान डॉट कॉम की ओर से श्री अर्जुन राठौर जी की गरिमामय उपस्थिति मंच पर रही। समापन सत्र में आभार शिशिर सोमानी एवं समस्त सत्रों का आभार वामा संस्थापक अध्यक्ष पद्मा राजेंद्र ने व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन प्रीति दुबे ने किया।
यह अंतरराष्ट्रीय साहित्य समागम विचारों को प्रकट करने का न केवल एक माध्यम बना अपितु वैश्विक समाज, हिंदी भाषा और अन्य भाषाओं को जोड़ने वाला साहित्य संवाद सिद्ध हुआ। इस समागम से साहित्य, भाषा और स्त्री लेखन को नई दिशा मिली। निःसंदेह यहाँ पल्लवित शब्द पुष्प विश्व साहित्य जगत को सुरभित करेंगे।
– अंतरा करवड़े डॉ. वसुधा गाडगिल।
आगे पढ़ेंबाल रचनाकारों ने अभिव्यक्त की अपनी भावनाएँ: ‘मेरा मन मेरे रंग’ में
मॉरिशस इंटरनेशनल स्कूल में हुआ आयोजन
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा आज महेन्द्र नगर स्थित मॉरिशस इण्टरनेशनल स्कूल में ‘मेरा मन मेरे रंग’ का आयोजन किया गया जिसमें 173 बाल रचनाकारों ने अपनी अभिव्यक्ति को चित्रकला के माध्यम से अभिव्यक्त किया।
बाल रचनाकारों ने पर्यावरण, देशभक्ति, माँ, बचपन आदि विभिन्न विषयों से जुड़े चित्रों को अपनी भावनाओं में पिरोकर चित्रित किया। इन चित्रों में बाल रचनाकारों के मन में उपजी भावनाएँ सभी को आकर्षित कर रही थीं।
इस अवसर पर विद्यालय के निदेशक मुकेश सिंह ने कहा कि ऐसी रचनात्मक गतिविधियाँ बच्चों के व्यक्त्वि विकास में सहायक हैं। चित्रकला से जुड़कर बच्चे ख़ुश भी होते हैं और उनकी कल्पनाओं को उड़ान भी मिलती है।
अभिनव बालमन की उप संपादक संध्या ने कहा कि अभिनव बालमन विगत 13 वर्षों से बाल रचनाकारों की रचनात्मकता को मंच प्रदान करती आ रही है। कोविड काल के बाद इस तरह बच्चों के बीच गतिविधि होना सुखद है। बाल रचनाकारों द्वारा की जा रही चित्रकारी उनके रचनात्मकता को और निखारेगी।
इस अवसर पर विद्यालय की सह निदेशिका नीना सक्सैना, प्रधानाचार्या पायल अग्रवाल, कला शिक्षिका कविता सेवक, रिंकी गौर, कामिनी वार्ष्णेय, अलका वार्ष्णेय सहित अन्य शिक्षक शिक्षिकाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा।
आगे पढ़ेंविमोचन का मौक़ा पाकर बच्चे हुए ख़ुश
अभिनव बालमन के 46वें अंक का हुआ विमोचन
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ के नए अंक का विमोचन अतरौली के राजमार्गपुर के शासकीय संविलियन विद्यालय के बच्चों द्वारा किया गया। विद्यालय के बच्चे सुहाना, हेमलता, गोविंद, जितेंद्र एवं ज्योति ने विमोचन किया। विमोचन के मौक़े को पाकर बच्चे अत्यंत प्रसन्न नज़र आये।
अभिनव बालमन पिछले 13 वर्षों के निरंतर बच्चों को रचनात्मकता के लिए प्रोत्साहित करने वाली पत्रिका है, जिसमें बच्चे स्वयं कविता, कहानी, चित्रकला, संस्मरण आदि विधाओं में रचकर अपनी रचनात्मकता को परिष्कृत करते हैं।
इस अवसर पर विद्यालय के प्रधानाध्यापक संजीव शर्मा ने कहा कि पत्रिका को पाकर सभी बच्चे प्रफुल्लित हैं। बच्चों को बाल साहित्य से जोड़ने का निरन्तर प्रयास रहता है। ‘अभिनव बालमन’ से जुड़कर निश्चित ही बच्चों को रचनात्मक लाभ मिलेगा। उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित विविध पठन गतिविधियों में ‘अभिनव बालमन पत्रिका’ में प्रकाशित कहानियाँ, कविताएँ एवं अन्य विषय वस्तु बेहद उपयोगी हैं। जिनका प्रयोग विद्यालय स्तर पर किया जा रहा है।
इस अवसर पर श्वेता शर्मा का विषेश योगदान रहा।
आगे पढ़ेंसाहित्य के लोकतंत्र के लिए असहमति अति आवश्यक—विष्णु नागर
हिन्दू कॉलेज में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन
दिल्ली। “सोचना और लिखना ऐन्द्रिक कार्य है जिसमें ज्ञान और भाव इकट्ठे चलते हैं। क़लम को चलाना सबसे ज़रूरी है क्योंकि इसी से सारी शुरूआत होती है।” विख्यात आलोचक और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व समकुलपति प्रो. सुधीश पचौरी जी ने उक्त विचार हिन्दू कॉलेज में आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला 'पुस्तक समीक्षा-क्या, क्यों और कैसे' में व्यक्त किए। इस एकदिवसीय कार्यशाला का आयोजन हिंदी विभाग और आइ क्यू ए सी के संयुक्त तत्त्वावधान में हुआ जिसमें देश भर से सवा सौ से अधिक प्रतिभागियों ने प्रत्यक्ष और ऑनलाइन माध्यम से भागीदारी की।
प्रो. पचौरी ने फ़िल्मों का उदाहरण देते हुए कहा फ़िल्म देखने के पश्चात फ़िल्म के बारे में बनी हमारी समझ ही समीक्षा है। समीक्षा के लिए किसी भी पाठ के मानी पाठ के भीतर से ही खोजे जाने की ज़रूरत पर बल देते हुए उन्होंने कहा मीडिया ने आज आलोचना को दरकिनार कर दिया है। उन्होंने कविता समीक्षा के औज़ारों को स्पष्ट करते हुए कहा कि कविता अपने मायने स्वयं अंदर दबाए रहती है। जो मायने दबा दिए गए हैं वह हमें अपनी कल्पना और बुद्धि से बाहर लाने होते हैं। प्रो. पचौरी ने संरचनावाद और उत्तर संरचनावाद जैसे सिद्धांतों के माध्यम से नागार्जुन की प्रसिद्ध कविता 'अकाल और उसके बाद' का पाठ-विश्लेषण कर प्रतिभागियों को समीक्षा की गहराइयों से अवगत करवाया। उन्होंने कहा यदि पुस्तक समीक्षक बनना है तो यह ना सोचिए कि इस पुस्तक पर पहले क्या लिखा गया है।
इससे पहले कार्यशाला का उद्घाटन सुविख्यात लेखक और पत्रकार विष्णु नागर ने दीप प्रज्ज्वलन से किया। नागर ने विभिन्न प्रसंगों और उदाहरणों द्वारा समीक्षा की ज़रूरतों, समीक्षा और आलोचना में अंतर को सरल शब्दों में प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा कि समीक्षा और आलोचना को अकादमिक दुनिया के बंद दायरों से बाहर निकाल कर ही स्वस्थ रचनात्मक वातावरण बनाया जा सकेगा। उन्होंने साहित्य के लोकतंत्र के लिए असहमति को अति आवश्यक बताते हुए कहा कि यह बुलडोजर समय है जिसमें साहित्य ही नहीं संसार का लोकतंत्र भी ख़तरे में है। नागर ने अपने द्वारा सम्पादित पत्रिकाओं 'कादम्बिनी' और 'शुक्रवार' के कुछ रोचक संस्मरण भी प्रस्तुत करते हुए कहा कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि समीक्षा से अप्रसन्न होकर अनेक रचनाकार समीक्षकों और सम्पादकों से शत्रुतापूर्ण व्यवहार करने लगते हैं। उन्होंने व्याख्यान के अंत में कहा कि लेखक ने जो पहले कहा है ज़रूरी नहीं कि वह आज अपनी उसी बात से सहमत हो, लोगों के विचार बदलते हैं जिन्हें समझना चाहिए। हिंदी विभाग के प्रभारी प्रो. रामेश्वर राय ने कार्यशाला की प्रस्तावना रखते हुए पुस्तक समीक्षा की सैद्धांतिकी और व्यावहारिकी की नवोन्मेषी स्थापना पर बल दिया। उन्होंने कहा कि आलोचना एक मोहल्ला है तो समीक्षा उस मौहल्ले का एक घर है। प्रो. राय ने कहा कि बदलते हुए परिदृश्य में हिंदी विभागों को भी अपने समय की ज़रूरतों के अनुसार विभिन्न प्रयोग करने होंगे।
कार्यशाला के दूसरे सत्र में सुविख्यात प्राध्यापक व लेखक प्रो. गोपाल प्रधान ने 'कथा समीक्षा की चुनौतियाँ' विषय पर समीक्षा और साहित्य की सृजनात्मकता की व्याख्या करते हुए कहा सत्ता की आलोचना करने का कोई ना कोई रचनात्मक तरीक़ा रचनाकार निकाल ही लेता है। प्रो. प्रधान ने आलोचना की परिभाषा को प्रस्तुत करते हुए कहा कि यथार्थ या वास्तविकता को पाठकों के सामने रखना ही आलोचना है। उन्होंने पंचतंत्र का उदाहरण देते हुए कहा कि जब हम मानव को सामने रखकर आलोचना नहीं कर पाते तब हम मानवेतर प्राणियों के माध्यम से मानव समाज के आलोचना करते हैं। सच्ची समालोचना को परिभाषित करते हुए उन्होंने कहा कि पक्षपात से दूर ले जाने वाला आलोचना कर्म ही सच्ची समालोचना कहलाने का अधिकारी है। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि समस्त लेखन रचनात्मक है। स्वान्तः सुखाय होते हुए भी लेखन दूसरों के लिए ही लिखा जाता है। गद्य में भी संगीत होता है। पूरी पंक्ति एक अर्थ की उद्भावना करती है जिसमें से एक भी शब्द हटाया नहीं जा सकता।
चौथे और अंतिम सत्र में युवा आलोचक और 'बनास जन' के सम्पादक डॉ. पल्लव ने कथेतर विधाओं की समीक्षा पर व्याख्यान दिया। उन्होंने कथेतर को परिभाषित करते हुए बताया कि ऐसा गद्य जो व्याकरण की शर्तों पर कथा न हो लेकिन जिसका आस्वाद कथा जैसा हो। कथेतर में आत्मकथा, जीवनी, यात्रा आख्यान, संस्मरण, रेखाचित्र, डायरी, रिपोर्ताज़, निबंध, साक्षात्कार, पत्र और आख्यान जैसी रचनाओं को शामिल करते हुए उन्होंने इनके स्वरूप पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने कहा कि गद्य के प्रचलित कथा माध्यम जब यथार्थ के उदघाटन में कमज़ोर दिखाई दे रहे हों तब कथेतर विधाएँ अपने समय और समाज का सच्चा मूल्यांकन करने लगती हैं। उन्होंने प्रतिभागियों से पुस्तक समीक्षा के व्यावहारिक पक्षों की चर्चा में कहा कि समीक्षा से पूर्व अध्ययन बहुत आवश्यक है।
कार्यशाला में हिंदू कॉलेज के प्राध्यापक प्रो. हरींद्र कुमार, डॉ. अरविन्द सम्बल, डा धर्मेंद्र प्रताप सिंह, नौशाद अली, रमेश कुमार राज, डॉ. प्रज्ञा त्रिवेदी और डॉ. स्वाति सहित अनेक विश्वविद्यालयों के शोधार्थी, विद्यार्थी और अध्यापकों ने भाग लिया। आयोजन स्थल पर राजकमल प्रकाशन और रचयिता समूह द्वारा कार्यशाला विषयक पुस्तकों की प्रदर्शनी लगाईं गई थी।
जसविंदर सिंह
प्रथम वर्ष, हिंदी विभाग
हिंदू महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
हिन्दू कॉलेज में अभिधा का समापन
इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा कुछ भी नहींं है।
दिल्ली। देश एक व्यक्तिगत इकाई से बनने वाला समूह है परन्तु वर्तमान में देश एक मिथक बना दिया गया है। सरकार को ही देश समझ लेना अनुचित है क्योंकि देश सरकार कहीं से बड़ी सच्चाई है। सुप्रसिद्ध लेखक और पत्रकार प्रियदर्शन ने हिन्दू कॉलेज में हिंदी साहित्य सभा के वार्षिक समारोह 'अभिधा' के दूसरे दिन आयोजित संगोष्ठी 'साहित्य और देश' में कहा कि हमें देश और साहित्य के सम्बन्ध को ठीक ढंग से परिभाषित करने के लिए रवींद्रनाथ ठाकुर जैसे मनीषी को पढ़ना चाहिए। प्रियदर्शन ने विश्व युद्धों की विभीषिका का उल्लेख करते हुए स्मरण किया कि साहित्य हमारे भीतर उन संवेदनाओं का पोषण करता है जिनसे भौगोलिक सीमाओं का अतिक्रमण कर हम बेहतर मनुष्य बन पाते हैं। प्रियदर्शन ने सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ‘देश काग़ज़ पर बना नक़्शा नहींं होता’ को उद्धृत कर कहा कि इस दुनिया में आदमी की जान से बड़ा कुछ भी नहींं है।
सत्र में युवा कवि अदनान कफ़ील दरवेश ने कहा कि देश एक नक़्शा मात्र नहीं है, यह देश के प्रत्येक व्यक्ति की इकाई से बनने वाला समूह है जो साहित्य के संवेदनशील स्तंभ पर टिका हुआ है। दरवेश ने कहा कि साहित्य मनुष्य के तरलतम रूप को उजागर करता है तथा व्यक्ति के जीवित होने का प्रमाण देता है। उन्होंने अपने नए संग्रह 'ठिठुरते लैम्प पोस्ट' से एक कविता सुनाते हुए अपने वक्तव्य का समापन किया। इसी सत्र में चर्चित पत्रकार भाषा सिंह ने 1950 के संवैधानिक समय की पृष्ठभूमि लेकर समतामूलक अभिव्यक्ति और साहित्य के महत्त्व तथा उद्देश्यों पर प्रकाश डाला। उन्होंने अपने लेखन क्षेत्र के विविध अनुभवों को साझा करते हुए देश के सामाजिक यथार्थ की पहचान में साहित्य की भूमिका का उल्लेख किया। मूलभूत तथा दिखावटी विकास के तथ्यों का वर्गीकरण करते हुए उन्होंने युवाओं के मन मस्तिष्क से नफ़रत ख़त्म करने के लिए शिक्षा पर ज़ोर दिया।
इससे पहले विषय प्रस्तावना रखते हुए विभाग के प्रभारी प्रोफ़ेसर रामेश्वर राय ने साहित्य और देश के बहुक्षेत्रीय रिश्तों की चर्चा की। राय ने साहित्य की कालजयिता और सार्वभौमिकता को रेखांकित करने के लिए महाभारत, मैकबेथ और कफ़न जैसी कृतियों का हवाला दिया।
दूसरे सत्र में अंतर महाविद्यालयी साहित्यिक अंताक्षरी प्रतियोगिता का आयोजन किया गया जिसका संचालन जूही शर्मा और नंदिनी गिरी ने किया। इसके निर्णायक मंडल में श्री नौशाद अली, श्री रमेश कुमार और डॉ. अरविंद कुमार संबल शामिल थे। प्रतियोगिता में हंसराज कॉलेज के कुमार मंगलम और कुलदीप प्रथम, द्वितीय मोतीलाल नेहरु कॉलेज के आयुष और उमेश तथा तृतीय स्थान पर श्री गुरु नानक देव खालसा कॉलेज के शिवम सिंह और वंशिका शर्मा रहे।
हिंदी साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने अंत में सभी का आभार ज्ञापित किया।
रिया गौतम व कृतिका
हिंदी विभाग, हिंदू महाविद्यालय
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
हिन्दू कॉलेज में 'अभिधा' के अंतर्गत संगोष्ठी आयोजित
औपनिवेशकता ने हमारा सांस्कृतिक और इतिहास बोध नष्ट किया है: प्रो. अभय कुमार दुबे
दिल्ली। औपनिवेशिकता केवल हमारे शरीरों को ग़ुलाम नहीं बनाती है बल्कि हमारे दिमाग़ों को भी ग़ुलाम बनाती है। यूरोपीय साम्राज्यवाद ने भारत और अपने अन्य उपनिवेशों में पहले हथियारों और बाद में स्कूलों के माध्यम से हमें मानसिक ग़ुलाम बनाया है जिसके चलते भले ही आज हम राजनैतिक रूप से स्वतंत्र हो गए लेकिन मानसिक रूप से स्वतंत्र नहीं हो सके हैं। सुविख्यात समाज विज्ञानी और लेखक प्रो. अभय कुमार दुबे ने उक्त विचार हिन्दू कॉलेज में आयोजित 'साहित्य का भारत और जनता का भारत' विषयक व्याख्यान में व्यक्त किए। प्रो. दुबे ने कहा कि हमारा अकादमिक ढाँचा पूरी तरह से औपनिवेशिक ग़ुलामी से बँधा हुआ है जिसके बाहर जाने की कल्पना भी हम नहीं कर पाते। उन्होंने तक्षशिला और नालंदा विश्वविद्यालयों के उदाहरण देकर कहा कि भारतीय ज्ञानार्जन की यदि कोई पद्धति इन संस्थानों ने विकसित की थी तो उसे खोजना हमारे लिए आवश्यक है। प्रो. दुबे ने हिंदी साहित्य सभा, हिंदी विभाग के वार्षिकोत्सव “अभिधा” के अंतर्गत अपने व्याख्यान में भारत में अँग्रेज़ी व हिंदी भाषा के आपसी तनाव और टकराव पर प्रकाश डालते हुए हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं का अँग्रेज़ी भाषा में समन्वय स्थापित करने वाले पहलुओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि अँग्रेज़ी को राज्य निर्माण की भाषा तथा देशी भाषाओं को सामाजिक तथा लोकोत्तर कार्यों के स्तंभ आधार में विभाजित किया जाना प्रचलित हो गया। इसका परिणाम है कि अँग्रेज़ी जहाँ गंभीर चिंतन और विमर्श की भाषा बन कर हमारे ऊपर क़ाबिज़ है। वक्तव्य के अंत में हिंदी और देशज भाषाओं को समाज की आधारशिला बताते हुए औपनिवेशिक काल के इतिहास के संदर्भ में सांस्कृतिक पक्षों पर पुनर्विचार की ज़रूरत बताई। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि अँग्रेज़ी विरोधी आंदोलन व भाषाई राजनीति करने के बजाय हमें सांस्कृतिक विमर्श करना चाहिए।
इससे पहले अभिधा का उद्घाटन दीप प्रज्वलन से हुआ। विभाग के प्रभारी प्रो. रामेश्वर राय ने विषय प्रस्तावना रखी जिसमें हिंदी साहित्य की अनेक चर्चित कृतियों के माध्यम से देश के स्वरूप चित्रण को स्पष्ट किया। साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने स्वागत वक्तव्य दिया। तृतीय वर्ष की छात्रा श्रेष्ठा आर्य ने प्रो. अभय कुमार दुबे का परिचय और सभा के अध्यक्ष कमलकांत उपाध्याय ने धन्यवाद दिया। सत्र का संचालन डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया।
अभिधा के दूसरे सत्र में जानी मानी लेखिका ममता कालिया 'लेखक से मिलिए' कार्यक्रम के अंतर्गत हिन्दू कॉलेज के युवा पाठकों से रूबरू हुईं। साहित्य की भूमिका पर बात करते हुए ममता कालिया ने एक व्यक्ति के भीतर लेखक बनने की इच्छा पर प्रकाश डालते हुए बताया की भाषा व्यक्ति को जीवित एवं पल्लवित रखने का काम करती है और लेखन कार्य व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार कभी भी कर सकता है। उन्होंने अपने चर्चित उपन्यास 'दौड़' की रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए कहा कि यह उपन्यास आज की युवा पीढ़ी पर केंद्रित है; कैरियर के लिए एक दौड़ में शामिल है। उन्होंने कहा कि आज की इस दौड़ ने बच्चों को साहित्य और जीवन के रस से दूर कर दिया है। इस दौड़ में बहुत लोग जीवन जीने की कला भूलकर जीवन का गणित सीखने लगते हैं। उन्होंने साहित्य पर भी इस दौड़ के असर को लक्षित करते हुए कहा कि आज की युवा पीढ़ी तुरंत असर और परिणाम देखना चाहती है जो साहित्य में सम्भव नहीं। प्रेमचंद की रचनाओं का उदाहरण देते हुए कालिया ने कहा कि उनके लिखे जाने के वर्षों बाद अब हम लोग उनका अवास्तविक महत्त्व समझ पा रहे हैं इसका आशय स्पष्ट है कि साहित्य में बाज़ार की तरह तुरंत लाभ-हानि के पैमाने पर मूल्यांकन नहीं हो सकता। प्रश्नोत्तर सत्र में ममता जी ने अपने लेखन और जीवन के प्रसंगों को याद करते हुए अनेक बातें कीं। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि 'कितने शहरों में कितनी बार' और 'दिल्ली: शहर दर शहर' सरीखी रचनाएँ अंतत: संस्मरण ही मानी जानी चाहिएँ क्योंकि इनमें लेखक का अपना व्यक्तित्व शहर के दायरे में आता है मुख्य ज़ोर शहर पर नहीं है। वहीं अपने मित्र और पति रवींद्र कालिया को याद करते हुए कहा कि उन्होंने मुझमें हमेशा आत्मविश्वास भरा कि मैं बेहतर लिख सकती हूँ-कर सकती हूँ। निजी जीवन के प्रसंगों को साहित्य से जोड़ने पर उन्होंने कहा कि अंतत: सभी कथाएँ जीवन से ही आती हैं यह कथाकार का कौशल पर ही निर्भर करता है कि वह किस तरह उसे कला में रूपांतरित करता है।
द्वितीय वर्ष के छात्र कमल नारायण ने लेखक परिचय और हिंदी साहित्य सभा की उपाध्यक्ष रेनू प्रसाद ने धन्यवाद ज्ञापन किया। कार्यक्रम का संचालन विभाग के प्राध्यापक नौशाद अली ने किया।
रिया गौतम
द्वितीय वर्ष, हिंदी विभाग
हिंदू महाविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय
अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में ’जीवन’ की बिखरी छटा
कोला सरस्वती विद्यालय के प्रांगण में आयोजित ’जीवन’ विषयक अनुभूति की मासिक काव्य गोष्ठी में सदस्य कवियों ने अपनी रचनाओं के द्वारा जीवन के अनेक रंग बिखेरे। जीवन जीने की कला पर अशोक मिमानी, जीवन के निराले खेल पर उदय मेघानी, सफल जीवन के अर्थ पर लीलावती मेघानी, पौधों सा परोपकारी जीवन पर नीलम सारडा, जीवन के नज़रिए पर मोहिनी चौरडिया, जीवन में प्रेम व परमार्थ पर रमेश गुप्त ’नीरद’, जीवन के संघर्षों में आशा चुनने की बात कहते हुए शोभा चोरड़िया ने अपनी रचनाएँ सुनाकर श्रोताओं की ख़ूब वाहवाही लूटी।
कोलकाता से पधारी इस गोष्ठी की विशिष्ट अतिथि श्रीमती निशा कोठारी ने धूपछांव के बीच साँसों को जीवन की आस्था बनाने के गीत गाए व मुक्तक व ग़ज़लें सुनाकर श्रोताओं को भाव विभोर किया। यथा: “मृत्यु सुनिश्चित है ये माना, बस उसको इतना समझाना, अपने सारे क़र्ज़ चुकाने फिर आते हैं, साँसों की धुन पूरी गाने फिर आते हैं”, “जब तक धड़कन धड़क रही है, तब तक आस रहे बाक़ी, सुख का अमृत भी निकलेगा, पहले दुख का विष पी ले।”
इस अवसर पर मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित श्रीमान राज हीरामन, मॉरीशस ने मॉरीशस की आज़ादी में हिंदी के महत्त्व को रेखांकित कर इसे संस्कारों की भाषा कहा। फिर आपने “नौकरी चाहिए थी क्योंकि पैसा नहीं था, नौकरी मिली नहीं क्योंकि पैसा नहीं था”, “भूले से तुम मेरी जड़ें इंसान की जड़ों से मत लगाना” जैसी जीवन की विसंगतियों और विद्रूपताओं पर अपनी रचनाएँ सुनाकर श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया।
काव्य गोष्ठी का शुभारंभ संगीता जैन ने सरस्वती वंदना से किया। अनुभूति के अध्यक्ष श्री रमेश गुप्त ’नीरद’ ने स्वागत भाषण देने के बाद शॉल से विशिष्ट अतिथि एवं अंगवस्त्र से मुख्य अतिथि श्री राज हीरामन को सम्मानित किया।
शोभा चोरड़िया ने गोष्ठी का सफल संचालन किया। सचिव डॉ. सुनीता जाजोदिया द्वारा दिए गए धन्यवाद ज्ञापन से गोष्ठी का समापन हुआ।
आगे पढ़ेंडॉ. सुरंगमा यादव सम्मानित
राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान, उ.प्र., लखनऊ द्वारा डाॅ. सुरंगमा यादव, असि. प्रो., महामाया राजकीय महाविद्यालय, महोना लखनऊ को उनकी हाइकु पुस्तक ‘भाव-प्रकोष्ठ’ हेतु वर्ष 2021–22 का "रामधारी सिंह ‘दिनकर’" पुरस्कार प्रदान किया गया। यह पुरस्कार उन्हें दिनांक 20 मार्च 2022 को आयोजित भव्य समारोह में पद्मश्री डाॅ. विद्या बिन्दु सिंह एवं संस्था के अध्यक्ष श्री आलोक रंजन (आई.ए.एस.) के कर-कमलों द्वारा प्राप्त हुआ। पुरस्कार स्वरूप प्रतीक चिह्न, अंग वस्त्र व एक लाख रुपए की धनराशि प्रदान की गयी।
आगे पढ़ेंहिन्दू कॉलेज में ‘हस्ताक्षर’ का लोकार्पण
‘हस्ताक्षर’ पूरे देश के सभी हिंदी विभागों में सबसे विलक्षण प्रयोग है: प्रो. अपूर्वानंद
नई दिल्ली। साहित्य की दृष्टि से देखें तो हस्ताक्षर बहुत व्यंजक नाम है। हस्ताक्षर करने का सभी का अपना विशिष्ट अंदाज़ होता है। साहित्य भी अपने अंदाज़, अपने विशिष्ट शैली, अपने हस्ताक्षर के निर्माण की प्रक्रिया ही है। इस प्रकार ‘हस्ताक्षर’ पत्रिका पूरे देश के सभी हिंदी विभागों में सबसे विलक्षण प्रयोग है। उक्त विचार हिंदी साहित्य सभा, हिंदू विभाग, हिंदू कॉलेज में ‘हस्ताक्षर’ पत्रिका के लोकार्पण के अवसर पर आयोजित ‘हिंदी की साहित्यिक पत्रकारिता और हमारा समय’ विषय पर परिसंवाद सत्र में प्रो. अपूर्वानंद ने व्यक्त किए। साहित्यिक पत्रिकाओं पर बात करते हुए प्रो. अपूर्वानंद ने पत्रिकाओं और साहित्य के बीच के अंतरसम्बन्धों पर प्रकाश डाला। उन्होंने मूर्धन्य कवि और पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी के उदाहरण के माध्यम से स्पष्ट किया कि पत्रकारों का काम अधिक जवाबदेही वाला है। पत्रकारिता के लोगों पर साहित्य के विद्वानों से अधिक ज़िम्मेदारी है, सभी वर्ग के लोगों तक सत्य पहुँचाने की ज़िम्मेदारी।
कार्यक्रम में हिन्दी की लोकप्रिय साहित्य मासिकी ‘हंस’ के संपादक संजय सहाय ने किसी एक फोर्टे में न बंधकर, लेखन में नए-नए प्रयोग करने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि रचनाकारों को अपनी भाषा में, अपने लेखन शैली में निरंतर नए संभावनाओं को तलाशते रहना चाहिए। जो रचनाकार जितना अधिक परिवर्तन, जितना अधिक प्रयोग करता है, वह उतना ही बड़ा रचनाकार होता है। वहीं ‘हंस’ की प्रकाशक और कथक गुरु रचना यादव ने पठन, लेखन, प्रकाशन और वितरण के क्षेत्र में विद्यमान समस्याओं और उनके समाधान पर बात की। उन्होंने कहा कि हमारे समक्ष सबसे बड़ी चुनौती नये पाठकों को तैयार करना है ताकि साहित्य की विरासत न केवल क़ायम रहे अपितु इसका सिलसिला निरंतर बना रहे।
परिसंवाद के दौरान अतिथियों ने ‘हस्ताक्षर’ पत्रिका की संपादक प्रो. रचना सिंह और प्रभारी प्रो. रामेश्वर राय की उपस्थिति में हस्ताक्षर के 22-23वें संयुक्तांक का लोकार्पण किया। प्रख्यात कवि नीलेश रघुवंशी की हस्तलिपि में कुछ कविताओं सहित इस अंक में ‘घर’ विषयक कविताओं का एक चयन मुख्य आकर्षण है। इससे पहले विभाग प्रभारी प्रो. रामेश्वर राय ने अतिथियों का औपचारिक स्वागत कर, भारतेंदु हरिश्चन्द्र के नाटक ‘प्रेमजोगिनी’ के उदाहरण के माध्यम से पत्रकारिता और साहित्य के बीच के सम्बन्ध को स्पष्ट किया। उन्होंने बताया कि पत्रकारिता में साहित्य आ जाए तो पत्रकारिता अधिक मानवीय हो जाती है और साहित्य में पत्रकारिता के तत्वों की अधिकता हो जाए तो साहित्य अधिक सूचनाख़ोर और तात्कालिक हो जाती है।
कार्यक्रम की शुरूआत में हिंदी साहित्य सभा की संयोजक दिशा ग्रोवर ने अतिथियों का विस्तृत परिचय दिया। कार्यक्रम के अंत में द्वितीय वर्ष के छात्र कमल नारायण ने कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों के साथ कार्यक्रम में शामिल विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं शिक्षकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में विभाग के प्राध्यापक प्रो. हरींद्र कुमार, डॉ. अभय रंजन, डॉ. विमलेंदु तीर्थंकर, डॉ. पल्लव, डॉ. अरविंद संबल एवं श्री नौशाद अली सहित परास्नातक एवं शोध के विद्यार्थी भी उपस्थित रहे। इस अवसर पर ‘रचयिता’ समूह द्वारा लगाई गई साहित्यिक पत्रिका प्रदर्शनी को पाठकों द्वारा भरपूर सराहना मिली।
रिपोर्ट–श्रेयस
मीडिया प्रभारी, हिन्दी साहित्य सभा
हिन्दू कॉलेज
प्राइड ऑफ़ हिमाचल बेस्ट फ़र्स्ट यंगेस्ट एंकर का अवार्ड कांगड़ा की अक्षिता जसवाल के नाम
प्राइड ऑफ़ हिमाचल बेस्ट फ़र्स्ट यंगेस्ट एंकर का अवार्ड कांगड़ा की अक्षिता जसवाल को मिला है। अक्षिता हिमाचल की सबसे कम उम्र की एंकर है इसलिए उसको यह अवार्ड अरनी यूनिवर्सिटी इंदौरा में आयोजित भव्य समारोह में कार्यक्रम आयोजक अमित शर्मा ने अपने करकमलों से प्रदान किया।
अक्षिता की माँ मंजू जसवाल का कहना है की यह अवार्ड कम उम्र में बेटी को मिलना उनके लिए गौरव की बात है। उल्लेखनीय है कि 15 साल की कम उम्र में अक्षिता ने बड़ी मंज़िल तय की है। हाल ही में होली मेला परौर में बेहतरीन एंकरिंग कर कांगड़ा की बेटी अक्षिता जसवाल ने ख़ूब वाहवाही लूटी। स्टेज शो के साथ-साथ अक्षिता म्यूज़िक एल्बम व शॉर्ट मूवी में भी नज़र आ रही है तमाचा शॉर्ट मूवी रिलीज़ हो चुकी है और गुड बाय पापा 28 मार्च को रिलीज़ हो रही है। पहाड़ी नॉन स्टॉप म्यूज़िक वीडियो बाँका बाबू में भी अक्षिता लीड रोल में है। अक्षिता इंडिया नेक्स्ट मास्टर किड्स में द्वितीय स्थान प्राप्त कर चुकी है। ज़िला कांगड़ा के (सिलेटी) प्रागपुर से ताल्लुक़ रखने बाली अक्षिता जसवाल ने मॉडलिंग कैटिगिरी में दूसरा स्थान हासिल कर कांगड़ा ही नहीं बल्कि पूरे हिमाचल का नाम देश में रोशन किया है। 15 साल की अक्षिता की मंज़िल हालाँकि डॉक्टर बनना है लेकिन वे मॉडलिंग और एक्टिंग में भी मुक़ाम हासिल करना चाहती है। दो शॉर्ट मूवी आईना दो और कोरोना का काल में अक्षिता जसवाल लीड रोल कर चुकी है। मिस्टर एंड मिस कांगड़ा जूनियर में भी वह प्रथम रही है। चार साल के अंतराल में हिमाचल गोट टैलेंट, हिमाचल स्टार, इंडिया टैलेंट फ़ास्ट जैसे कॉन्टेस्ट में वह अव्वल रही है। नेशनल कोरोना वारियर्स व मदर टेरेसा का अवार्ड भी अक्षिता प्राप्त कर चुकी है। हिमाचल फ़िल्म एंड म्यूज़िक अवॉर्ड बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट्स का सम्मान भी वह ग्रहण कर चुकी है।
राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
rajivdogra1@gmail। com
प्रेमचंद्र जैन की प्रथम पुण्यतिथि पर भावपूर्ण स्मरण
समाज निर्माण के लिए भाईचारे को बढ़ाने की आवश्यकता-डॉ. देवराज
प्रेमचंद्र जैन शिक्षा और ज्ञान के अगाध समंदर थे-डॉ. सूर्यमणि रघुवंशी
नजीबाबाद (उत्तर प्रदेश) के साहू जैन डिग्री कॉलेज के पूर्व प्रोफ़ेसर डॉ. प्रेमचंद्र जैन की प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर 16 मार्च, 2022 को उनके विद्यार्थियों द्वारा आयोजित ‘प्रेमचंद्र जैन स्मरण’ कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए ‘चिंगारी’ के संपादक डॉ. सूर्यमणि रघुवंशी ने कहा कि डॉ. प्रेमचंद्र जैन एक व्यक्ति नहीं थे, बल्कि वे व्यक्तित्व थे, परंपरा थे। उन्होंने यह भी कहा कि उनके भीतर एक संत और एक ऐसा सिपाही विद्यमान था जो सागर की तरह शांत था तथा समुद्र की लहरों की तरह ही आगे बढ़ता था। प्रेमचंद्र जैन शिक्षा और ज्ञान के अगाध समंदर थे।
डॉ. देवराज ने अपने गुरु प्रेमचंद जैन का स्मरण करते हुए कहा कि उन्होंने अपने शिष्यों को सही कहना और निर्भय रहना सिखाया। उन्होंने आगे कहा कि आज समाज संकट में फँसा है। अँधेरों से लड़ना है, उजाले में इसे बदलना है। समाज के निर्माण के लिए नफ़रत नहीं भाईचारा बढ़ाने की ज़रूरत है। जब भाईचारा और आपसी प्रेम बढ़ेगा, तो एक अच्छे समाज का निर्माण होगा। प्रेमचंद्र जैन ने गुरु-शिष्य का अच्छा रिश्ता निभाने के साथ सामाजिक सरोकारों की जो चेतना पैदा की थी, उसे आज तेज़ी से आगे बढ़ाने की आवश्यकता है।
इस अवसर पर एम। दानिश सैफी द्वारा संपादित प्रेमचंद्र जैन के व्यक्तित्व और कृतित्व पर आधारित स्मृति ग्रंथ ‘इतिहास हुआ एक अध्यापक’ का विमोचन भी किया गया। इसकी प्रथम प्रति प्रेमचंद्र जैन की अर्धांगिनी श्रीमती आशा जैन ने स्वीकार की। उनकी सुपत्री श्रीमती श्रद्धा भी इस अवसर उपस्थित रहीं।
इस कार्यक्रम में डॉ. ए.के. मित्तल, महमूद जफ़र, डॉ. आफ़ताब नोमानी, शकील राज, इंद्रदेव भारती, डॉ. हेमलता राठौर, डॉ. निर्मल शर्मा, डॉ. रजनी शर्मा, पुनीत गोयल, मनोज शर्मा, आशा रजा, डॉ. शहला अंजुम, कामरेड रामपाल सिंह, जितेंद्र कुमार आदि उपस्थित रहे। कार्यक्रम का सफल संचालन दानिश सैफी ने किया।
आगे पढ़ेंबापू की पाती का विमोचन एवं सम्मान समारोह संपन्न
ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' सम्मानित
सवाई माधोपुर। त्रिनेत्र गणेश की नगरी में फर्न रिसोर्ट होटल में बापू की पाती सहित सात पुस्तकों का विमोचन समारोह समृद्ध मंचस्थ मुख्य अतिथि-जयपुर डाक अधीक्षक प्रियंका गुप्ता, वरिष्ठ साहित्यकार बजरंग सोनी, वरिष्ठ पत्रकार अशोक सक्सेना, बाल साहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय प्रकाश, गुजराती अनुवादक प्रभा पारीक, ग़ज़लकार मुजीब अता आज़ाद, प्रशासकीय अधिकारी कपिल शर्मा, अतिरिक्त ज़िला उप अधिकारी सूरज सिंह नेगी के कर कमलों द्वारा रविवार को संपन्न हुआ।
स्मरणीय हैं कि पाती मुहिम को पुनर्जीवित करने के लिए अब तक इस पर विभिन्न विषयों पर 16 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इस में प्रकृति की पुकार, शिक्षक को पाती, मीत को पाती, दादी-नानी को पाती आदि प्रकाशित हो चुकी हैं। इस मुहिम से विभिन्न विद्यालयों के 7000 से अधिक विद्यार्थी जुड़ चुके हैं। उसी मुहिम के अंतर्गत यह कार्यक्रम बापू की पाती पुस्तक का विमोचन एवं सम्मान समारोह के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था।
इस कार्यक्रम में नीमच ज़िले के बाल साहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' को मंचस्थ मुख्य अतिथि के रूप में सम्मानित किया गया। आपने अपने दायित्व का निर्वहन करते हुए मंचस्थ अतिथि के तौर पर आप ने पाती के रचनाकार साथियों को प्रमाणपत्र, बापू की पाती-पुस्तक और त्रिनेत्र गणेशजी की तस्वीर प्रदान कर सम्मान करने में सहभागिता प्रदान की।
आगे पढ़ेंवेद मित्र शुक्ल कृत एक समंदर गहरा भीतर का हुआ लोकार्पण
कविता और जीवन दोनों की सादगीपूर्ण साधना ही कवि-धर्म: रामदरश मिश्र
मार्च 3, 2022, नई दिल्ली। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र के आवास पर दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े प्राध्यापक डॉ. वेद मित्र शुक्ल कृत सॉनेट-संग्रह एक समंदर गहरा भीतर का लोकार्पण श्री मिश्र एवं प्रख्यात आलोचक व कवि डॉ. ओम निश्चल द्वारा किया गया। इस दौरान कवि व दोहाकार नरेश शांडिल्य, प्रोफ़ेसर स्मिता मिश्र, डॉ. जसवीर त्यागी, समकालीन अभिव्यक्ति के संपादक हरिशंकर राढ़ी, ग़ज़लकार शशिकान्त, रविशंकर सिंह तथा उज्जवल शुक्ल मुख्य रूप से उपस्थित रहे।
पुस्तक-लोकार्पण के बाद सॉनेट-संग्रह पर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया। इसका शुभारंभ लेखक श्री शुक्ल द्वारा अपने संग्रह से “माँ, धरती, बादल-सा” और “मजबूरी में मज़दूरी, पर स्वाभिमान से” शीर्षक से दो प्रतिनिधि सॉनेटों के काव्यपाठ से हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित डॉ. ओम निश्चल ने जहाँ एक ओर 126 सॉनेट वाले संग्रह एक समंदर गहरा भीतर को सुकवि त्रिलोचन की परंपरा में समकालीन हिंदी कविता में महत्वपूर्ण योगदान बताया तो वहीँ गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे डॉ. रामदरश मिश्र ने पुस्तक के लेखक को सॉनेट छंद के माध्यम से जीवन और कविता दोनों को सादगी के साथ साधने के लिए बधाई देते हुए कहा कि विधा कोई भी हो, शैली कोई भी हो उसमें लेखक ही अपने ईमानदार अनुभवों, भावों और दृष्टि के साथ व्याप्त रहता है। इन सॉनेट में आज के समय में मनुष्यता को आहत करने वाले क्रिया व्यापारों पर वेद मित्र ने बार बार व्यंग्य किये हैं और मूल्यों को भी रूपायित किया है। साथ ही, राजनीति और आमजन के संबंधों की भी पहचान की है।
परिचर्चा में भाग लेते हुए दिल्ली विश्वविद्यालय के गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज में प्रोफेसर डॉ. स्मिता मिश्र ने महानगरीय जीवन की कृत्रिमता के प्रतिवाद में उकेरे गये सहज ग्रामीण जीवन तथा सहज रचनात्मक लय से युक्त सॉनेटों को पढ़ते हुए उनके महत्व पर प्रकाश डाला। लोकप्रिय कवि नरेश शांडिल्य ने वेद मित्र के सॉनेटों को भारतीय मूल्य, परिवेश, परंपरा आदि से ओतप्रोत बताया। व्यंग्यकार हरिशंकर राढ़ी ने इस हिंदी सॉनेट-संग्रह को विदेशी जमीन पर सफलतापूर्वक रोपा गया देशी पौधा बताते हुए कृति को हिंदी कविता का ही विस्तार माना। डॉ. जसवीर त्यागी ने संग्रह से रचनाएँ पढ़ते हुए वैविध्यपूर्ण कथ्यों को पुस्तक की पठनीयता और रोचकता को बढ़ाने वाला महत्वपूर्ण कारक बताया। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रोफेसर डॉ. स्मिता मिश्र द्वारा किया गया।
• डॉ. वेद मित्र शुक्ल, नई दिल्ली
मोबा.- 9953458727, 95997987272
उदयपुर के डॉ.चंद्रेश कुमार छतलानी ने सबसे ज़्यादा अकादमिक प्रमाणपत्र अर्जित कर वर्ल्डस ग्रेटेस्ट रिकार्ड्स में अपना नाम दर्ज कराया
डॉ.छतलानी ने विद्यापीठ को गर्वित किया: प्रो. सारंगदेवोत
लॉकडाउन का सदुपयोग
उदयपुर 26 जनवरी, किसी बेहतरीन कार्य को करने के लिए यदि ठान लिया जाए तो हर समय व परिस्थिति अनुकूल हो जाती हैं। यह सम्भव कर दिखाया है उदयपुर, राजस्थान के डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी ने, जिन्होंने लॉकडाउन के समय का सदुपयोग करते हुए विभिन्न अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तरीय संगठनों यथा माइक्रोसॉफ़्ट, गूगल, सिस्को, विश्व स्वास्थ्य संगठन आदि द्वारा विविध अकादमिक विषयों व कार्यकर्मों के ऑनलाइन माध्यम से एक हज़ार से अधिक प्रमाणपत्र अर्जित किए। अंतरराष्ट्रीय संगठन वर्ल्डस ग्रेटेस्ट रिकॉर्ड्स, जो प्रमाणीकरण के साथ दुनिया भर के असाधारण रिकॉर्ड्स को सूचीबद्ध और सत्यापित करता है, द्वारा छतलानी को शैक्षणिक प्रमाणपत्रों की उच्चतम संख्या के वैश्विक स्तर पर रिकॉर्ड स्थापित करने की मान्यता प्रदान की गई है। यह प्रमाणपत्र वर्ल्डस ग्रेटेस्ट रिकॉर्ड्स के अधिनिर्णायक द्वारा प्रदान किया गया।
डॉ. चंद्रेश ने कोरोना से लड़ते हुए दो साहित्यिक पुस्तकों का सम्पादन करने के साथ-साथ शैक्षिक क्षेत्र की महत्त्वपूर्ण रणनीतियाँ व योजनाएँ भी स्वतंत्र रूप से बनाई और देश के लॉकडाउन में 'कोविड-19 के कारण लॉकडाउन के समय कर्मचारियों/शिक्षकों की मानसिकता पर प्रभाव' विषय पर राष्ट्रीय स्तर का शोधकार्य भी सफलता पूर्वक संपन्न किया। उन्हें कोरोना योद्धा सहित कई अन्य सम्मान भी प्राप्त हो चुके हैं। वे राजस्थान विद्यापीठ में सहायक आचार्य के पद पर कार्यरत हैं।
विद्यापीठ के कुलपति प्रो. कर्नल एस. एस. सारंगदेवोत ने डॉ. छतलानी को बधाई देते हुए कहा कि छतलानी विश्वविद्यालय का गौरव हैं और उनके द्वारा किए जा रहे कार्य न केवल विश्वस्तरीय बल्कि अनुकरणीय भी हैं। वे कम्प्यूटर विज्ञान के प्रख्यात ज्ञाता व शोधकर्ता होने के साथ-साथ एक अच्छे साहित्यकार भी हैं। कोविड के बाद लम्बी बीमारी से संघर्षरत होने के बावजूद भी उन्होंने यह मुक़ाम हासिल किया है, जो उनकी प्रतिबद्धता को ज़ाहिर करता है। छतलानी ने स्वतंत्र रूप से 140 से अधिक सॉफ़्टवेयर व वेबसाइट का निर्माण भी किया है और वे विश्वविद्यालय के शोध को उन्नत करने हेतु साहित्यिक चोरी पकड़ने के सॉफ़्टवेयर का प्रबंधन भी कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त विद्यापीठ के कई प्रमुख कार्यों में भी उनकी महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।
इससे पूर्व डॉ. छतलानी को शिक्षा, शोध व साहित्य के क्षेत्र में योगदान के बीस सम्मान प्राप्त हो चुके हैं, उन्होंने नौ पुस्तकों का लेखन व सात का संपादन किया है, साथ ही उनके 27 शोध पत्र प्रकाशित व 40 अन्य शोध पत्र राष्ट्रीय-अतरराष्ट्रीय संगोष्ठियों में प्रस्तुत हुए हैं।
डॉ. घनश्याम सिंह भीण्डर
जनसम्पर्क अधिकारी
बालिका दिवस पर राजीव, अमित, सुहानी और श्रुति हुए सम्मानित
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
जैसे की हम जानते हैं कि 24 जनवरी को पूरे भारतवर्ष में बालिका दिवस मनाया जाता है। इसी अवसर पर शान्ती फ़ॉउंडेशन कार्यालय अशोकपुर टिकिया वजीरगंज गोण्डा में आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार एवं सम्मान समारोह के मुख्य अतिथि डॉ. विजय कुमार शाह पद्मश्री महाराष्ट्र, विशिष्ट अतिथि सुनील दत्त मिश्रा अभिनेता छत्तीसगढ़, श्रीमती रेनू रॉव प्रवक्ता डायट गोण्डा, विशिष्ट वक्ता रम्भा सिंह माँ माया फ़ॉउंडेशन, ज्योति शिक्षिका हरियाणा, विशेषज्ञ श्रीमती विनीता कुशवाहा एस आर जी गोण्डा, श्रीमती पिंकी देवी अध्यक्ष शान्ती फ़ॉउंडेशन गोण्डा, सुनील कुमार आनन्द के द्वारा कार्यक्रम का शुभारम्भ किया गया। जिसमें बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने के साथ दहेज़, भ्रूण हत्या एवं लिंग भेद जैसी कुरीतियों को दूर करने का संकल्प लिया गया। इस कार्यक्रम में कांगड़ा के अमित डोगरा, भाषा अध्यापक राजीव डोगरा तथा उनकी छात्राएँ श्रुति तथा सुहानी सहित पूरे भारत के 100 से अधिक लोगों को सम्मानित किया गया। सम्मानित होने पर हंसराज, सरोज कुमारी तथा बच्चों के माता-पिता इंदु बाला, मनजीत सिंह, बीना देवी और वीर सिंह ने अत्यंत ख़ुशी व्यक्त की तथा अध्यापक राजीव डोगरा का भी धन्यवाद किया जो बच्चों को आगे बढ़ाने के लिए हमेशा है तत्पर रहते हैं।
राजीव डोगरा
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
पता: गाँव जनयानकड़
पिन कोड-176038
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
9876777233
rajivdogra1@gmail। com
क्षितिज साहित्य संस्था की ऑनलाइन संगोष्ठी
“कहानी में कथाकथन के साथ नाट्य दृश्य और संवाद उसे ज़्यादा प्रभावी बनाते हैं।”— श्री बी एल आच्छा
क्षितिज साहित्य संस्था की ऑनलाइन संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए चेन्नई के वरिष्ठ समालोचक श्री बी। एल। आच्छा ने कहा कि, “कहानियाँ ज़मीनी सच्चाइयों को व्यक्त करती हैं। कहानी का आंतरिक ताना बाना जितना उलझा होता है, पाठक उतना ही कहानी का सहयात्री बनता जाता है। यदि कथा में कहानीकार कम कहे और दृश्य विधान या पात्र सहजता से कह जाए तो पाठक उनके निकट हो जाता है। आधुनिक साहित्य में समय का समाजशास्त्र जितना ज़रूरी है, उतना ही साहित्य की विधाओं का संक्रमण उन्हें प्रयोगशील बनाता है।”
इस संगोष्ठी में दतिया के कथाकार श्री राज नारायण बोहरे ने अपनी रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए ’हल्ला’ कहानी का प्रभावी वाचन किया। यह कहानी ईमानदारी से नौकरी कर रहे अधिकारी श्री बजाज की कहानी है जो राजनैतिक दबाव के कारण बहुत अपमानित होते हैं लेकिन फिर भी अपने संघर्ष पर डटे रहते हैं।
इंदौर के कथाकार श्री अश्विनी कुमार दुबे ने अपनी रचना प्रक्रिया पर बात करते हुए ’चेकबुक’ कहानी का वाचन किया। यह कहानी आरक्षित चुनाव सीट पर किस प्रकार से दबंग लोग डमी कैंडिडेट खड़ा कर हावी होते हैं उस स्थिति को प्रभावशाली तरीक़े से प्रस्तुत करती है। दोनों कथाकारों ने कहानी की रचना प्रक्रिया पर बातचीत करते हुए यह कहा कि हमारे आस पास जो घटित होता है वह एक लेखक के मन को प्रभावित करता है और उन घटनाओं पर लेखक के मन में जब चिंता और प्रश्न खड़े होते हैं तो वह कहानी का सर्जन करता है।
संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी ने कहा कि, “इस तरह की गोष्ठियों के आयोजन का उद्देश्य यह रहता है कि कहानी लेखन कैसे किया जाए और कहानी की रचना प्रक्रिया क्या होती है इस पर जो प्रश्न अन्य लेखकों के मन में रहते हैं उनका समाधान ऐसी कार्यशाला के माध्यम से प्राप्त हो जाता है इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में क्या लेखन हो रहा है वह भी पाठक के समक्ष प्रस्तुत होता है।”
संगोष्ठी में ज्योति जैन, अंतरा करवड़े, ब्रजेश कानूनगो, संतोष सुपेकर, कनक हरलालका, निधि जैन, संगीता तोमर, शैलेन्द्र उपस्थित रहे। कार्यक्रम का संचालन एवं तकनीकी संयोजन श्री दीपक गिरकर ने किया और आभार श्री सुरेश रायकवार ने माना।
आगे पढ़ेंवातायन-यूके, हिंदी राइटर्सगिल्ड कैनडा और वैश्विक परिवार द्वारा ‘दो देश-दो कहानियाँ’–कल्पना मनोरमा
(पूरा कार्यक्रम देखने के लिए क्लिक करें - दो देश-दो कहानियाँ, जनवरी 2022)
लंदन 15 जनवरी 2022: वातायन-यूके, हिंदी राइटर्स गिल्ड और वैश्विक परिवार द्वारा आयोजित एक नई शृंखला ‘दो देश - दो कहानियाँ’ की शुरूआत डॉ. हरीश नवल जी की अध्यक्षता में संपन्न हुई जिसमें दो जाने-माने और पुरस्कृत लेखक: सुमन घई (कैनेडा) और तेजेंद्र शर्मा (ब्रिटेन) ने अपनी-अपनी कहानियाँ प्रस्तुत कीं। वातायन की संस्थापक, दिव्या माथुर जी के सुन्दर संयोजन, आशीष मिश्रा जी के संक्षिप्त स्वागत-भाषण और डॉ. शैलजा सक्सेना जी के कुशल संचालन में इस संगोष्ठी की सफलता निश्चित ही थी; सो, विद्वतजनों की प्रखर उपस्थिति में कार्यक्रम की शुरूआत की गयी।
शैलजा जी ने सुमन घई जी का अनुकरणीय साहित्यिक परिचय देते हुए उनको कहानी पाठ के लिए मंच पर आमंत्रित किया। सुमन घई जी ने अपनी अभिव्यंजनात्मक, वर्जनाओं से ओतप्रोत कहानी “पगड़ी” का पाठ बेहद ठहराव और रोचकता से किया। आपकी कहानी बेहद सजीव चित्रात्मकता के साथ हमारी आँखों में चित्रित होती रही। आपकी कहानी का मूल स्वर आत्मसंघर्ष था। प्रवासी मन कैसे दो देशों की संस्कृति के बीच गिरते-पड़ते अपनी संस्कृति को ‘पगड़ी’ के रूप में सिर पर सहेज ही लेता है। कहानी के किरदारों के संवाद बेहद सजीव लग रहे थे। “पर यह तो अपनी है....!”, “पर यह... यह तो मेरी पोती भी हो सकती है!” ’पगड़ी’ कहानी में “नमक अजवाइन का पराँठा” जैसी बात बेहद अपनी-सी लगी।
दूसरी कहानी के पाठ के लिए शैलजा जी ने ख्यातिलब्ध कथाकार तेजेंद्र शर्मा जी का विस्तृत परिचय दिया तथा उन्हें आमंत्रित किया। कहानीकार ने अपनी कहानी “मैं भी तो ऐसा ही हूँ” का वाचन बेहद सजीव और रोचक ढंग से किया। जैसा कि कहानी के शीर्षक से ही स्वत: स्पष्ट है, आज के समय में जो कुछ भी हो रहा है, चाहे वह सार्थक हो या निरर्थक, मूल्यवान या बेकार हम सिर्फ़ उस स्थिति के दर्शक भर बने रहते हैं। ऐसे में, मन कुछ अपनी पहचान खोने-सा लगता है। लेखक की वाचन-शैली इतनी जीवंत और संवादात्मक थी कि हमारे मानस पटल पर सब कुछ ऐसे चल रहा था जैसेकि कोई नाटक मंचित हो रहा हो। परदेस में रहकर अपने देश की बातों का ज़िक्र करना लेखक के लिए तो रोचक होगा ही, किन्तु उसे हमारे लिए सुनना बेहद रुचिकर हो जाता है । दोनों प्रवासी कहानीकारों के साहित्यिक अवदान की प्रशंसा करते हुए शैलजा जी हृदयतल से प्रसन्न दिखाई दीं।
‘पगड़ी’ और “मैं भी तो ऐसा ही हूँ” दोनों कहानियों पर डॉ. हरीश नवल जी ने अपनी समालोचनात्मक समीक्षा को बड़ी सिद्धहस्तता से प्रस्तुत किया। सार्थक टिप्पणियाँ देते हुए उन्होंने जो वक्तव्य रखा, उससे दोनों लेखकों की रचनाधर्मिता और उनकी कहानियों की बारीक़ियाँ खुलकर सामने आईं। कहानियों की द्वन्द्वात्मकता, संवेदनशीलता, लेखकीय प्रतिबद्धता के साथ-साथ समकालीन साहित्यिक वैचारिकी पर डॉ. नवल जी ने विस्तार से अत्यंत असरदार व्यख्या प्रस्तुत की। कहानी में आए विशेष कथन और वाक्यों को तो रेखांकित किया ही , साथ में एक-एक शब्द के सार्थकता को भी खोलकर उनका सौष्ठवपूर्ण विवेचन किया ताकि साहित्य के रसिया पाठकों का साहित्य के प्रति नज़रिया और परिपक्व हो सके। निःसंदेह, दोनों कहानीकारों का लेखकीय हृदय यथार्थ चेतना, सौन्दर्य-बोध, अभिव्यंजक भाषा के प्रति रुझान श्लाघ्य रहा।
अंत में, कल्पना मनोरमा ने संगोष्ठी में आये सभी विद्वानों के प्रति आभार प्रकट करते हुए गोष्ठी का समापन किया।
श्रोताओं में विश्वभर के लेखक और विचारक सम्मिलित हुए, जिनमें प्रमुख हैं: पद्मेश गुप्त, डॉ. शैल अग्रवाल, आराधना झा, आदेश पोद्दार, प्रो. टोमियो मिज़ोकामी, अरुणा सब्बरवाल, डॉ. तातिअना ओरान्स्किया, नारायण कुमार जी, प्रो. जगदीश दवे, डॉ. मनोज मोक्षेन्द्र, डॉ. अरुण अजितसरिया, आशा बर्मन, कप्तान प्रवीर भारती, डॉ. आरती स्मित, अरुण सभरवाल इत्यादि।
कल्पना मनोरमा
अध्यापक एवं लेखक
हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा-विश्व हिंदी दिवस की रिपोर्ट
10 जनवरी 2022 को हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा ने एक अत्यंत सुंदर आयोजन किया विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में। यह कार्यक्रम हमारी संस्था तथा भारतवर्ष के टोरोंटो की कोउंसलाधीश श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्तव के सहयोग से संपन्न किया गया। श्रीमती अपूर्वा जी इस कार्यक्रम की प्रमुख अतिथि के रूप में उपस्थित थीं। इस कार्यक्रम का विवरण इस प्रकार है।
सर्वप्रथम कार्यक्रम के आरंभ में कुशल संचालिका श्रीमती अंबिका शर्मा जी ने सभी दर्शकों को स्वागत कर हिंदी दिवस की महत्ता को रेखांकित किया। इसके पश्चात् एक प्यारी सी पंचवर्षीय कियारा तिवारी को मंच पर आमंत्रित किया जिसने अपने मधुर स्वर में 'या कुंदेंदु तुषार हार धवला' का अत्यंत सुंदर गान कर सरस्वती वंदना की और सबका मन मुग्ध कर दिया। इसके बाद अंबिका जी ने हिंदी के अनवरत सेवी हिंदी राइटर्स गिल्ड के संस्थापक निदेशक श्री सुमन घई जी का स्वागत कर मंच पर आमंत्रित किया। सुमन जी साहित्य कुंज के प्रधान संपादक तथा हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि व् कथाकार भी हैं।
इसके पश्चात् सुमन जी ने भारत की विदेश और संस्कृति मंत्री श्रीमती मीनाक्षी लेखी जी का भारत से वीडियो संदेश प्रस्तुत किया, जिसमें उन्होंने भारत में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी के महत्त्व के सम्बन्ध में बताते हुए सब को हिंदी दिवस की बधाई दी। इसके बाद सुमन जी ने कोंसुलाध्यक्ष श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्तव जी का अभिनंदन कर उन्हें मंच पर आमंत्रित किया। अपूर्वा जी ने कहा कि हिन्दी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के साथ काम करना उन्हें बहुत अच्छा लगता है क्योंकि हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार में सतत कार्यशील है। उनके अनुसार हिंदी एक अत्यंत सरल, सुगम और वैज्ञानिक भाषा है। हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा से यह भी अनुरोध किया कि वह नई पीढ़ी के हिंदी के प्रशिक्षण के सम्बन्ध में भी कार्य करें, जिससे नई पीढ़ी हिंदी सीख सके। इसके पश्चात सुमन जी ने दर्शकों को बताया कि किस प्रकार हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा गोष्ठियों और कार्यशालाओं का आयोजन कर हिंदी के प्रचार-प्रसार में सहायक होने का प्रयत्न करती है। इसके उपरान्त उन्होंने हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा की गतिविधियों के सम्बन्ध में एक वीडियो प्रस्तुत किया।
डॉ. नरेंद्र ग्रोवर जी ने हिंदी राइटर्स गिल्ड के 2021 वर्ष की गतिविधियों का विस्तृत वर्णन किया। इसके उपरांत भारतीय संस्कृति से गहरे जुड़े श्री नवीन पांडे जी ने अपने मधुर स्वर में प्रसाद जी की एक उद्बोधन कविता 'हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती ' मधुर स्वर में प्रस्तुत किया। अगली प्रस्तुति थी बाल कलाकार श्रेयांशी कानूनगो की जिसने अत्यंत ओजपूर्ण वाणी में श्री भवानी प्रसाद मिश्र की प्रसिद्ध कविता 'सतपुड़ा के घने जंगल' प्रस्तुत की। इसके पश्चात् व्यवसाय से गणितज्ञ और हृदय से कवि श्रीमती आशा मिश्रा जी ने महादेवी वर्मा जी की प्रसिद्ध कविता ’मैं नीर भरी दुख की बदली’ अपने सुरीले स्वर में गाकर प्रस्तुत की।
इसके बाद बाल कलाकार कुमारी नेहा भार्गव ने बच्चन जी की एक अत्यंत प्रेरणादायक कविता पढ़ी ’तुम मुझको कब तक रोकोगे।’ यह एक अत्यंत सुंदर प्रस्तुति रही जिसे बहुत सराहा गया।
उसके बाद हमारे हिंदी राइटर्स गिल्ड की गायिका, कवयित्री, लेखिका श्रीमती मानोशी चैटर्जी ने एक स्वरचित गीत प्रस्तुत किया जो आज के युग के लिए प्रेरणादायक गीत था, जिसकी पहली पंक्ति थी ’तोड़कर सब वर्जनायें स्वप्न सारे जीत लेंगे एक दिन हम।’
कार्यक्रम का अत्यंत सुचारु रूप से सञ्चालन करते हुए अम्बिका जी ने दर्शकों को यह बताया कि कविताओं के साथ हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा में हिंदी साहित्य की गद्य की विभिन्न विधाओं को भी प्रोत्साहन दिया जाता रहा है। इस संस्था ने अबतक 12 नाटक प्रस्तुत किए हैं, जो दर्शकों के द्वारा अत्यंत सराहनीय रहे। इस संदर्भ में विभिन्न प्रयोग भी किए हैं। ऐसा ही एक प्रयोग आज आप देखेंगे। कैनेडा में भारतवर्ष से प्रवासी यहाँ भिन्न भिन्न समय पर आये, अतः उनके प्रवास के अनुभव भी अलग-अलग रहे। उन्हीं अनुभवों पर आधारित है आज की स्मरण नाटिका। इसे हिंदी राइटर्स गिल्ड कैनेडा के निदेशक मंडल के सदस्य प्रस्तुत कर रहे हैं। ये सभी प्रतिभागी हिंदी की विभिन्न विधाओं में, कविता, लघु कथा आदि में रचनाएँ करते हैं और आज नाटक में भाग ले रहे हैं। इनके नाम है, श्रीमती कृष्णा वर्मा, श्रीमती आशा बर्मन, श्रीमती लता पांडे तथा श्री विद्याभूषण धर।
इस नाटक का नाम है ’भारत हम में’ जिसकी परिकल्पना की डॉक्टर शैलजा सक्सेना जी ने और इसका अधिकांश भाग इसके प्रतिभागियों ने स्वयं ही लिखा है। 35 मिनट के इस नाटक में इन चारों ने अत्यंत उत्साह के साथ भाग लिया। सभी दर्शकों ने इस नाटक का आनंद उठाया। इसका प्रमाण है ज़ूम तथा फ़ेसबुक पर जुड़े दर्शकों ने इस सम्बन्ध में अत्यंत सुंदर टिप्पणियाँ दीं।
अंत में श्री दीपक राज़दान जी ने सुंदर शब्दों में इस कार्यक्रम में भाग लेने वाले सभी लोगों तथा संस्थाओं को धन्यवाद दिया। श्रीमती मीनाक्षी लेखी जी, श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्तव जी के योगदान को सराहा। सुमन जी व नरेंद्र ग्रोवर जी ने हिंदी राइटर्स गिल्ड की गतिविधियों पर प्रकाश डाला इसके लिए उनको धन्यवाद दिया और इसके साथ ही बाल कलाकारों तथा आशा मिश्रा जी, श्री नवीन पांडे जी तथा मानोशी चैटर्जी को कविता और मधुर संगीत प्रस्तुत करने के लिए भी धन्यवाद दिया। आज के इस कार्यक्रम के ग्राफ़िक्स, मीडिया और इंटरनेट प्रस्तुति पूनम चंद्रा मनु जी के सहयोग के बिना असंभव थी अत: मनु को भी धन्यवाद दिया।
यह कार्यक्रम टोरोंटो की कुछ प्रमुख संस्थाओं के सहयोग से प्रस्तुत किया गया। हमें उनमें से कुछ के शुभकामना संदेश भी मिले। ये संस्थाएँ हैं: राना-(के महेंद्र भंडारी और रश्मि नीरज जी का आभार), बाजका (की लता पांडे जी का आभार), एकल फ़ाउंडेशन (संदीप कुमार सिंह-कामिनी सिंह, पुरुषोत्तम गुप्ता जी, इंद्रा वढेरा जी, सुभाष चंद्र जी का आभार), के ओ ए सी (विद्या भूषण धर जी का आभार) CASEC (Canadian Academy of sports, education and culture के लिए पुन: महेन्द्र भंडारी जी का आभार), साहित्यकुंज.नेट ई-पत्रिका का सहयोग के लिए श्री सुमन कुमार घई जी आभार।
अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ भी हमेशा हमारा सहयोग करती हैं—हम उनके आभारी हैं। ये संस्थाएँ हैं: भारत से वैश्विक हिन्दी परिवार, अक्षरम, सिंगापुर कविताई, ब्रिटेन से वातायन यू.के. अमेरिका से झिलमिल। ज़ूम, फ़ेसबुक और यूट्यूब से जो लोग जुड़े उन सभी का हार्दिक आभार व्यक्त किया गया।
अंत में उन्होंने आशा प्रकट की कि हिंदी राइटर्स गिल्ड के द्वारा हिंदी के प्रचार प्रसार का जो यह दीप प्रज्वलित हुआ है वह हमेशा हमें प्रकाश देता रहेगा और हमारे देश, हमारे मन और संस्कृति को नई ऊँचाइयों तक ले कर जाएगा।
इस प्रकार हिंदी राइटर्स गिल्ड के द्वारा विश्व हिंदी दिवस के उपलक्ष्य में एक अत्यंत सुंदर कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया और हिंदी भाषा के महत्त्व को रेखांकित किया गया।
रिपोर्ट प्रस्तुति-आशा बर्मन
आगे पढ़ें‘अनुभूति सम्मान’ से विभूषित हुए उदय प्रताप सिंह
सुप्रसिद्ध कवि एवं राजनेता श्री उदय प्रताप सिंह, लखनऊ को वर्ष 2021 के ‘अनुभूति सम्मान’ से सम्मानित किया गया। चेन्नै महानगर के डी.जी. वैष्णव कॉलेज के सभागार में रविवार, 19 दिसम्बर 2021 को ‘अनुभूति’ संस्था द्वारा आयोजित इस सम्मान समारोह में हिंदी साहित्य प्रेमियों संग ‘अनुभूति’ के सदस्य भी अपने परिजनों व इष्ट मित्रों सहित भारी संख्या में उपस्थित थे। हिंदी साहित्य में अप्रतिम योगदान के लिए प्रतिवर्ष यह सम्मान हिंदी कवि को प्रदान किया जाता है। गोपालदास नीरज, बालकवि बैरागी, माया गोविंद, अशोक चक्रधर जैसे कीर्ति-स्तंभ इस सम्मान से विभूषित किए जा चुके हैं।
उदय प्रताप सिंह का स्वागत कर अनुभूति के अध्यक्ष श्री रमेश गुप्त नीरद ने सम्मान-पत्र एवं अंगवस्त्रम् से सम्मानित किया व कोषाध्यक्ष श्री विकास सुराणा ने सम्मान राशि प्रदान की। ‘हिंदीतर प्रदेश के साहित्यिक समाज की भावनाओं का प्रतीक है यह सम्मान’ अध्यक्षीय उद्बोधन में रमेश गुप्त नीरद ने ये विचार प्रकट किए और यह भी कहा कि तमिलनाडु के सृजनकारों के लिए भी एक सम्मान प्रारंभ किया जाना चाहिए। इस अवसर पर श्री उदय प्रताप सिंह के कर-कमलों से महासचिव श्रीमती शोभा चौरडिया की पुस्तक ‘भावों की पुड़िया’ का भी लोकार्पण हुआ।
पुनश्च: सहज-सरल अंदाज़ में दिल को गहरे छूने वाले भावों की उत्कृष्ट रचनाएँ सुनाकर उदय प्रताप सिंह जी ने श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। लोकतंत्र के प्रहरी जनता जनार्दन को सुप्तावस्था से अपनी कविता के शब्दों से इस प्रकार जगाया कि ‘जाग कर बैठो, तुम हो पहरेदार चमन के’, ’न तेरा है न मेरा है, हिंदुस्तान ये सबका है’, ‘ज़िंदगी सिद्धांत की सीमाओं में बँधती नहीं, यह वह पूँजी है जो व्यय से बढ़ती है, घटती नहीं’, ’गंध उपवन की विरासत है इसे संचित न कर, बाँटने के सुख से अपने आप को वंचित न कर’, ’ऊँचे ऊँचे शिखरों के ऊँचे ऊँचे दावेदार, ज्यों नहीं हुए तो सोच मन में न लाइए’, ’सुख दुख तो भावों के भ्रम हैं, मन के माने से होते हैं’, ’जब प्यार मिल गया तो सभी रत्न मिल गए’, ’तिनके से काल के प्रवाह में विलीन हुए, शैल से अखंड अभिमानी वे कहाँ गए’, ’काश पक्षी होना मेरे अधिकार में होता’, ’अलस्सुबह मेरे आँगन में आकर चिड़िया बैठ गई’, ’दुख में भी मेरे साथ-साथ गीत गाती रही चाँदनी’ जैसे जीवन जीने की कला एवं समाधान से ओतप्रोत छंदों व ग़ज़लों को सुनाकर उदय प्रताप सिंह ने काव्य प्रेमियों की ख़ूब वाह-वाही लूटी। उदय प्रताप सिंह ने यह भी कहा कि ‘कवि जनता का जन्मजात प्रतिनिधि होता है, इसलिए जनता के दुख दर्द की बात करता है। कविता केवल मनोरंजन ही नहीं, समस्या का समाधान भी होती है।’
‘अनुभूति सम्मान’ समारोह के चैयरमेन श्री गोविंद मूँदड़ा के कुशल एवं सुचारु संयोजन से कार्यक्रम सफल व शानदार रहा। श्रीमती शकुंतला करनानी द्वारा की गई प्रार्थना से कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ व समापन राष्ट्रगान से हुआ। महासचिव श्रीमती शोभा चौरडिया ने कार्यक्रम का संचालन किया व सचिव डॉ। सुनीता जाजोदिया ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। उपाध्यक्ष श्री विजय गोयल सहित कार्यकारिणी समिति के अन्य सदस्य भी समारोह में उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंगुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ लोकार्पित
हैदराबाद; 21 दिसंबर, 2021
साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘साहित्य मंथन’ और दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-आंध्र प्रदेश तथा तेलंगाना के संयुक्त कार्यक्रम में गुर्रमकोंडा नीरजा की पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ का लोकार्पण संपन्न हुआ।
इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अरबा मींच विश्वविद्यालय के पूर्व अँग्रेज़ी प्रोफ़ेसर डॉ. गोपाल शर्मा ने कहा कि यह उन विमर्शों का युग है जिनको अब तक विमर्श के बाहर रखा जाता रहा और यह पुस्तक उन विमर्शों का सोदाहरण प्रस्तुतीकरण है। पुस्तक में संकलित 24 आलेखों में सामाजिक, सांस्कृतिक और भाषिक मुद्दों को रेखांकित किया जा सकता है।
लोकार्पण वक्तव्य में मुख्य अतिथि उस्मानिया विश्वविद्यालय की पूर्व प्रोफ़ेसर डॉ. शुभदा वांजपे ने कहा कि आज स्त्री और दलित विमर्श पर अधिकांश रूप से प्रकाश डाला जा रहा है, किन्तु लोकार्पित पुस्तक ‘समकालीन साहित्य विमर्श’ में इन दो विमर्शों के अतिरिक्त हरित, किन्नर, आदिवासी, विस्थापन आदि पर भी गंभीर विमर्श किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि “समकालीन साहित्यकार गति-अवरोधक मूल्यों के प्रति सदैव विद्रोही और अपनी रचनाओं में नवीन विचारों की स्थापना कर चेतना भरने वाले रहे हैं। उनकी रचनाएँ नवीन विषय वस्तु और शैलीय भंगिमा की दृष्टि से अभिनव हैं। उनके प्रयोगात्मक वैशिष्ट्य तथा आधुनिक वैचारिक दृष्टि को अभिव्यंजित करने में यह पुस्तक पूरी तरह सफल हुई है।”
मुख्य वक्ता माइक्रोसॉफ़्ट के प्रोग्राम मैनेजमेंट निदेशक प्रवीण प्रणव ने कहा कि इस पुस्तक में पाँच खंडों में सम्मिलित 24 आलेखों में विभिन्न विमर्शों को पुल के अलग-अलग भागों की तरह एक साथ लाकर इस तरह जोड़ा गया है कि अपने स्वरूप में वे पूर्णता को प्राप्त कर लें। ये सभी लेख अलग-अलग समय में लिखे गए हैं इसलिए इनकी अपनी अलग पहचान तो है ही, लेकिन इस किताब में संकलित हो जाने और इन्हें एक साथ पढ़ने से पाठक इन लेखों के ‘तेरहवें स्वाद’ से भी परिचित हो सकेंगे।
लोकार्पित पुस्तक की प्रथम प्रति स्वीकार करते हुए प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में बोलने और लिखने की भाषा के द्वैध को मिटाने का प्रयास किया गया है तथा अधिकतर आलेखों में विविध विमर्शों की भाषा पर अलग-अलग ढंग से प्रकाश डाला गया है; और यह पहचानने की कोशिश की गई है कि अलग-अलग पृष्ठभूमि से आने वाले रचनाकार किस तरह से हिंदी भाषा के दायरे को कितना विकसित कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि विमर्शीय लेखन ने साहित्य की भाषा को जनता की भाषा के अधिकाधिक नज़दीक लाने का काम किया है।
विशेष अतिथि मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर डॉ. करन सिंह ऊटवाल ने कहा कि कहने का अंदाज़ अलग-अलग भले ही होता है, लेकिन साहित्य हर काल में समाज सापेक्ष रहा है। अवसर पर साहित्य मंथन की ओर से प्रोफ़ेसर ऊटवाल का अभिनंदन किया गया।
आरंभ में अतिथियों ने दीप-प्रज्वलन किया और शिक्षा महाविद्यालय की प्राध्यापक शैलेषा नंदूरकर ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। संचालन और धन्यवाद ज्ञापन की ज़िम्मेदारी मिश्र धातु निगम के हिंदी अनुभाग एवं निगम संचार उपनिदेशक डॉ. बी. बालाजी ने निभाई।
इस अवसर पर वीरेंद्र कुमार, सुरेश राचपूड़ी, डॉ. रियाजुल अंसारी, डॉ. साहिराबानू बी. बोरगल, डॉ. बलविंदर कौर, डॉ. गोरखनाथ तिवारी, डॉ. शक्ति कुमार द्विवेदी, डॉ. सी.एन. मुगुटकर, डॉ. ए.जी. श्रीराम, खादर अली खान, जकिया परवीन, डॉ. डी.डी. देसाई, एकांबरेश्वरुडु, जुबेर अहमद, डॉ. शंकर सिंह ठाकुर, के. राजन्ना, जी. परमेश्वर, डॉ. सुपर्णा मुखर्जी, जी. संगीता, डॉ. सीमा मिश्रा, अशोक तिवारी, डॉ. श्याम सुंदर, अब्दुल हमीद खान, हुड़गे नीरज, रूपा प्रभु, फिज़ा बानू, पार्वती देशपांडे, डॉ. संतोष विजय मुनेश्वर, वी. कृष्णा राव, लोहित्या, श्रीसाहिती, राधाकृष्ण मिरियाला, किशोर बाबू, रमाकांत, नेक परवीन, जी. शिरीष बाबू, डॉ. राजेंद्र, संजय, शारदा आदि साहित्य प्रेमियों, विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों, विश्वविद्यालयों के प्रोफ़ेसरों, छात्रों और शोधार्थियों ने उपस्थित होकर लेखिका को शुभकामनाएँ दीं। संकल्य, हिंदी अकादमी, साहित्य मंथन और हिंदी हैं हम विश्व मैत्री मंच ने लेखिका का सारस्वत सम्मान किया।
आगे पढ़ेंवसंत के हरकारे—कवि शैलेंद्र चौहान
सुप्रसिद्ध कवि आलोचक शैलेंद्र चौहान के कृतित्व पर विश्लेषणात्मक दृष्टि से समालोचना संचयन 'वसंत के हरकारे' का विमोचन एवं लोकार्पण विदिशा के सम्राट अशोक अभियांत्रिकी महाविद्यालय के स्मार्ट क्लास हॉल में भव्यता से संपन्न हुआ। यह पुस्तक शैलेंद्र चौहान की विभिन्न विधाओं में की गई रचनाशीलता पर आलोचनात्मक दृष्टि से लिखे गए विभिन्न लेखों का संचयन /संपादन है। इसका संपादन विदिशा के सुधि संपादक सुरेंद्र सिंह कुशवाह द्वारा किया गया है। पुस्तक का लोकार्पण मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रदेश अध्यक्ष पलाश सुरजन, सुप्रसिद्ध साहित्यकार प्रोफेसर शील चंद पालीवाल, पाठक न्यास के कार्यकारी अध्यक्ष गोविंद देवलिया एवं वरिष्ठ कवि कालूराम पथिक के सानिध्य में संपन्न हुआ।
सर्वप्रथम वयोवृद्ध कथाकार सूर्यकांत नागर के आलेख "गहरी जीवन दृष्टि के अन्वेषक कवि शैलेंद्र चौहान" का वाचन हुआ जिसमें कहा गया कि शैलेंद्र चौहान ग्राम्य जीवन के कुशल चितेरे हैं। लोक उनके अंदर गहरे तक समाया है। गाँव की बदलती तस्वीर उन्हें बेचैन किए रहती है। बाज़ारवाद और शहरीकरण ने गाँवों को प्रभावित किया है। ग्रामीण संस्कृति विकृत हो रही है। गाँव और शहर दो अलग दुनिया बना दी गई हैं जहाँ गाँव गौण है। गाँव के ऊपर ध्यान देना हमारी सोच का हिस्सा ही नहीं है। शैलेंद्र ने अपने उपन्यास "पांव ज़मीन पर" में इस विसंगति को बहुत शिद्दत से उभारा है।
तदुपरांत प्रोफेसर असमुरारी नंदन मिश्र ने अपने उद्बोधन में कहा—किसी ऐसे रचनाकार जिस पर मुख्यधारा की आलोचना चुप है उस पर किताब लाना एक साहस एवं संवेदनापूर्ण कार्य है। लेकिन यह आवश्यक काम भी है। शैलेंद्र चौहान की रचनाशीलता पर सुरेंद्र सिंह कुशवाह ने अपने अग्रलेख में शैलेंद्र जी की सभी प्रकाशित पुस्तकों पर कुछ सुविज्ञ रचनाकारों द्वारा की गई समालोचना और टिप्पणियाँ इस पुस्तक में समाहित की हैं। इस पुस्तक की बड़ी विशेषता यह है कि इसमें आलोच्य रचनाकारों को संपूर्णता के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इससे जहाँ शैलेंद्र चौहान के विषय में जानने समझने का मौक़ा मिलता है, वहीं उनकी रचनाओं के प्रति सहज उत्सुकता भी पैदा होती है।
डॉक्टर शीलचंद पालीवाल ने शैलेंद्र चौहान के व्यक्तित्व और कृतित्व के विभिन्न पहलुओं पर अपनी विशिष्ट राय रखी। शैलेंद्र चौहान की यथार्थवादी रचनाशीलता का उन्होंने ज़िक्र किया। उनकी आलोचनात्मक प्रतिभा का महत्त्व प्रतिपादित किया। उन्होंने कहा—शैलेंद्र चौहान कथ्य को कला से ऊपर मानते हैं लेकिन ऐसा नहीं है कि वे कला को खारिज करते हैं।
गोविंद देवलिया ने शैलेंद्र चौहान के कृतित्व में लोक एवं स्थानीयता को यथार्थवादी दृष्टि से प्रस्तुत करने वाली प्रतिभा का ज़िक्र किया। पलाश सुरजन ने शैलेंद्र चौहान की स्पष्ट विचार दृष्टि और अविचलित प्रतिबद्धता को महत्त्वपूर्ण माना। एक ऐसे समय में जब रचनाकार अपने मुखौटे उतार दे रहे हैं और सत्ता के साथ खेल में शामिल हैं तब शैलेंद्र चौहान अपने ही रास्ते पर चल रहे हैं।
इस सत्र के बाद स्थानीय कवियों ने अपना काव्यपाठ किया। इस काव्यपाठ में उदय ढोली, दिनेश श्रीवास्तव, सुरेंद्र श्रीवास्तव, शाहिद अली, निसार मालवी, कृष्णकांत मूंदडा, कालूराम पथिक, सुरेंद्र सिंह कुशवाह, ममता गुर्जर आदि शामिल थे। उपस्थित गणमान्य लोगों में इंजीनियर ओपी श्रीवास्तव नोएडा, डॉ. सुरेश गर्ग डॉक्टर कुसुम गर्ग प्रो. राजितराम द्विवेदी, उपेंद्र कालुसकर, सुलखान सिंह हाडा, संतोष नेमा आदि शामिल रहे। विदिशा नगर में साहित्य के क्षेत्र में यह कार्यक्रम अपनी विशेषता के कारण लंबे समय तक याद किया जाएगा।
प्रेषक: सुरेंद्र सिंह कुशवाह सचिव मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन, बांसकुली, विदिशा 464001
आगे पढ़ेंअभिनव बालमन का किया गया निःशुल्क वितरण
आगरा। ताजगंज नगर क्षेत्र के ’प्राथमिक विद्यालय- सौहल्ला’ में अध्ययनरत् विद्यार्थियों को उमाशंकर जेटली द्वारा निःशुल्क बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ का वितरण किया गया। आज के समय में बाल साहित्य के प्रति रुचि जगाने के लिए विभिन्न प्रयास किए जाते हैं। साहित्य छपता बहुत है परन्तु बच्चों तक उतना नहीं पहुँचता जितना उसे पहुँचना चाहिए। ऐसे में बच्चों के साहित्य को निःशुल्क बच्चों के बीच वितरित करने का कार्य उमाशंकर जेटली द्वारा निरन्तर किया जाना सुखद है।
इस कार्य के लिए अभिनव बालमन के संपादक निश्चल ने प्रसन्नता व्यक्त की और कहा कि अगर इस तरह उपहार में पत्रिका दी जाएँ तो बच्चों का साहित्य के प्रति लगाव भी बढ़ेगा जो कि बच्चों को रचनात्मकता की ओर ले जाने में सार्थक होगा।
आगे पढ़ें'श्रीरामकथा का विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड का लोकार्पण संपन्न
30 नवंबर 2021 को नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन के प्लेनरी हॉल में संपन्न "रामकथा में सुशासन" विषयक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के अवसर पर 56 खंडों के 'श्रीरामकथा विश्वसंदर्भ महाकोश' के पहले खंड 'लोकगीत और लोक कथाओं में श्रीरामकथा का संदर्भ' का लोकार्पण मुख्य अतिथि जी। किशन रेड्डी (संस्कृति, पर्यटन व डोनर मंत्री, भारत सरकार) ने अतिविशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे (पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन राज्यमंत्री, भारत सरकार) तथा विशिष्ट अतिथिगण साध्वी प्रज्ञा ठाकुर (सांसद, लोकसभा), स्वामी परिपूर्णानंद, विजय गोयल, श्याम जाजू, प्रोफेसर दिलीप सिंह, प्रोफेसर विनय कुमार, प्रोफेसर प्रदीप कुमार सिंह, डॉ. अमित जैन एवं समारोह अध्यक्ष लक्ष्मीनारायण भाला की गरिमामय उपस्थिति में संपन्न किया।
इस अवसर पर बोलते हुए मुख्य अतिथि जी. किशन रेड्डी ने राम संस्कृति के अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार के लिए साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था के कार्यों की प्रशंसा की तथा विश्वास प्रकट किया कि 56 खंडों के महाकोश के प्रकाशन की यह विराट योजना आगे और भी तीव्र गति से विकसित होगी। महाकोश के लोकार्पित प्रथम खंड के बारे में बताते हुए जी. किशन रेड्डी ने कहा कि राम भारतवर्ष के आम जन के रोम-रोम में बसे हुए हैं, इसका जीता जागता प्रमाण हमारे सभी प्रान्तों, भाषाओं और समुदायों के लोकगीतों और लोककथाओं में राम कथा के प्रसंगों के गुँथे होने से मिलता है।
समारोह के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय से पधारे भाषाचिंतक प्रो. दिलीप सिंह ने की और संचालन दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व प्रोफेसर डॉ. ऋषभदेव शर्मा ने किया। "रामकथा में सुशासन" विषय पर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की प्रोफेसर बिंदेश्वरी अग्रवाल, 'उपमा' केलिफोर्निया की प्रतिनिधि डॉक्टर अलका भटनागर और डॉक्टर हेमप्रभा एवं साठये महाविद्यालय, मुंबई से पधारे प्रोफेसर लोखंडे और डॉ. सतीश कनौजिया सहित विभिन्न विद्वानों ने सारगर्भित विचार प्रस्तुत किए और प्रोफेसर प्रदीप कुमार सिंह के द्वारा चलाए जा रहे चलाई जा रही 56 खंडों के महाकोश की प्रकाशन योजना का हार्दिक स्वागत किया। उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री डॉ. श्याम सिंह शशि ने विस्तार से देश विदेश की रामकथाओं में उपलब्ध रामराज्य के विवेचन के आधार पर प्रजा के राज्य को सुशासन का श्रेष्ठ रूप सिद्ध किया। आरंभ में अंतरराष्ट्रीय पाक्षिक पत्रिका 'चाणक्य वार्ता' के संपादक डॉ. अमित जैन ने अतिथियों का स्वागत सत्कार किया।
कार्यक्रम के दूसरे चरण में डॉ. विनोद बब्बर, डॉ रंजय कुमार सिंह, डॉ. नारायण, डॉ. शीरीन कुरेशी तथा डॉ. आशा ओझा तिवारी ने रामराज्य और सुशासन के विभिन्न पक्षों पर प्रकाश डाला। इस सत्र की अध्यक्षता हंसराज कॉलेज, नई दिल्ली की प्रधानाचार्य प्रोफेसर रमा ने की और संचालन डॉ. भावना शुक्ल ने किया।
समापन सत्र में मुख्य अतिथि साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और अति विशिष्ट अतिथि अश्विनी कुमार चौबे के हाथों देश-विदेश के हिंदी सेवियों और राम संस्कृति के पोषक सहयोगियों का सम्मान किया गया तथा प्रो. ऋषभदेव शर्मा सहित कई विशिष्ट विद्वानों को "विश्व राम संस्कृति सम्मान" से अलंकृत किया गया। अवसर पर छत्तीसगढ़ से रामकथा की मंचीय प्रस्तुति के लिए पधारे लोक कलाकारों का भी 'चाणक्य वार्ता' और साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था की ओर से अभिनंदन किया गया। सम्मान सत्र का संचालन प्रो. माला मिश्रा ने किया।
रिपोर्ट: डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा,
सह-संपादक: 'स्रवन्ति',
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन, अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान तथा शिवना प्रकाशन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कथा-कविता सम्मान घोषित
तेजेंद्र शर्मा, रणेंद्र, उमेश पंत, लक्ष्मी शर्मा, इरशाद ख़ान सिकंदर तथा मोतीलाल आलमचंद्र को सम्मान
सीहोर (1 दिसंबर)
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका ने अपने प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान तथा शिवना प्रकाशन ने अपने कथा-कविता सम्मान घोषित कर दिए हैं। ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन सम्मानों की चयन समिति के संयोजक पंकज सुबीर ने बताया कि 'ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन लाइफ़ टाइम एचीवमेंट सम्मान' हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार इंग्लैंड में रहने वाले श्री तेजेन्द्र शर्मा को प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया है। सम्मान के तहत इक्यावन हज़ार रुपये सम्मान राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा। वहीं 'ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान' उपन्यास विधा में वरिष्ठ साहित्यकार श्री रणेंद्र को राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित उनके उपन्यास 'गूँगी रुलाई का कोरस' हेतु तथा कथेतर विधा में श्री उमेश पंत को सार्थक प्रकाशन से प्रकाशित उनके यात्रा संस्मरण 'दूर, दुर्गम, दुरुस्त' हेतु प्रदान किए जाएँगे। दोनों सम्मानित रचनाकारों को इकतीस हज़ार रुपये की सम्मान राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा।
शिवना प्रकाशन के सम्मानों की चयन समिति के संयोजक श्री नीरज गोस्वामी ने बताया कि 'अंतर्राष्ट्रीय शिवना कथा सम्मान' हिन्दी की चर्चित लेखिका लक्ष्मी शर्मा को शिवना प्रकाशन से प्रकाशित उनके उपन्यास 'स्वर्ग का अंतिम उतार' के लिए, 'अंतर्राष्ट्रीय शिवना कविता सम्मान', महत्त्वपूर्ण शायर इरशाद ख़ान सिकंदर को राजपाल एण्ड संस से प्रकाशित उनके ग़ज़ल संग्रह 'आँसुओं का तर्जुमा' के लिए प्रदान किया जाएगा। दोनों सम्मानित रचनाकारों को इकतीस हज़ार रुपये की सम्मान राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा। 'शिवना अंतर्राष्ट्रीय कृति सम्मान' शिवना प्रकाशन से प्रकाशित पुस्तक 'साँची दानं' के लिए श्री मोतीलाल आलमचन्द्र को प्रदान किया जाएगा, सम्मान के तहत ग्यारह हज़ार रुपये सम्मान राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा।
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका तथा शिवना प्रकाशन द्वारा हर वर्ष साहित्य सम्मान प्रदान किए जाते हैं। ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका का यह पाँचवा सम्मान है। हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार, कवयित्री, संपादक डॉ. सुधा ओम ढींगरा तथा उनके पति डॉ. ओम ढींगरा द्वारा स्थापित इस फ़ाउण्डेशन के यह सम्मान इससे पूर्व उषा प्रियंवदा, चित्रा मुद्गल, ममता कालिया, उषाकिरण खान, महेश कटारे, डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, सुदर्शन प्रियदर्शिनी, डॉ. कमल किशोर गोयनका, मुकेश वर्मा, मनीषा कुलश्रेष्ठ, अनिल प्रभा कुमार तथा प्रो. हरिशंकर आदेश को प्रदान किया जा चुका है। जबकि शिवना सम्मान का यह दूसरा वर्ष है, इससे पूर्व गीताश्री, वसंत सकरगाए, प्रज्ञा, रश्मि भारद्वाज, गरिमा संजय दुबे तथा ज्योति जैन को प्रदान किया जा चुका है।
आकाश माथुर
मीडिया प्रभारी
7000373096
शहरयार अमजद ख़ान
शिवना प्रकाशन
मोबाइल 9806162184
दूरभाष 07562405545
लोकार्पण व सम्मान समारोह कार्यक्रम संपन्न
आगरा—
कोठी मीना बाज़ार मैदान (आगरा) में कार्यक्रम ’आगरा महोत्सव’ का भव्य आयोजन 23 से 31 अक्टूबर 2021 तक किया गया। इस भव्य कार्यक्रम में डॉ. अमी आधार निडर जी को समर्पित ‘साहित्यिक पवेलियन’ मुख्य आकर्षण का केंद्र रहा। इसी कार्यक्रम में मुकेश कुमार ऋषि वर्मा द्वारा संपादित साझा संकलन– ’कालिका दर्शन’ का लोकार्पण शहर के वरिष्ठ क़लमकार आदर्श नंदन गुप्त जी, वरिष्ठ पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह जी, कवि दिनेश अगरिया, विमल अग्रवाल, निखिल शर्मा व अवधेश कुमार निषाद मझवारजी के कर कमलों से संपन्न हुआ।
साझा संकलन– ’कालिका दर्शन’ की सम्मानित क़लमकारों ने प्रशंसा की। उन्होंने कहा कि लोग सोचते रह जाते हैं, अब लिखेंगे-तब लिखेंगे परन्तु कुछ लिख नहीं पाते। प्रकाशित कराना तो बहुत दूर की बात है। प्रयास सराहनीय है।
इस अवसर पर बृजलोक साहित्य-कला-संस्कृति अकादमी के सौजन्य से आदर्श नंदन गुप्तजी को ‘कलम साधक’ उपाधि-सम्मान से सम्मानित किया गया। वहीं दीपावली पर्व के शुभ अवसर पर देशभर के तमाम क़लम साधकों को विभिन्न सम्मान प्रदान किए गये।
संकलन प्रकाशन में विशेष सहयोग डॉ. नरेश कुमार सिहाग (एडवोकेट) व मनभावन प्रिंटर्स (हरियाणा) का रहा। आपको बता दें कि बृजलोक अकादमी के सौजन्य से व सीमित संसाधनों के बावजूद निरन्तर विभिन्न रूपों में साहित्य, कला, संस्कृति की निस्वार्थ सेवा की जा रही है।
— कार्यकारी अध्यक्ष
आगे पढ़ेंदक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा, हैदराबाद में हिंदी पखवाड़ा समापन समारोह संपन्न
भाषाई आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना हमारा कर्तव्य है - रुद्रनाथ मिश्र
हैदराबाद, अक्टूबर, 2021 —
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा-आंध्र प्रदेश एवं तेलंगाना के सचिव एवं संपर्क अधिकारी श्री एस. श्रीधर की अध्यक्षता में संपन्न हिंदी पखवाड़ा समापन समारोह में बतौर मुख्य अतिथि एनएमडीसी के उप महाप्रबंधक श्री रुद्रनाथ मिश्र ने कहा कि हिंदी की प्रकृति समावेशी है। इसी प्रवृत्ति के कारण ही वह सभी भारतीय भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करते हुए आगे बढ़ रही है। हिंदी में आज रोज़गार की संभावनाएँ बढ़ चुकी हैं क्योंकि यह रोज़ी-रोटी से जुड़ चुकी है। उन्होंने इस बात का ख़ुलासा किया कि भाषाई आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ना हमारा कर्तव्य है।
अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में श्री एस. श्रीधर ने कहा कि हिंदी हमारी अस्मिता है और भारतीय संस्कृति की आत्मा है। आज के तकनीकी युग में हिंदी भाषा बाज़ार-दोस्त और कंप्यूटर-दोस्त की भाषा बन गई है। उन्होंने आगे यह भी कहा कि दीपावली, दुर्गाष्टमी, स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्रता दिवस की तरह ही हिंदी दिवस को भी मनाना चाहिए।
सभा के प्रथम उपाध्यक्ष श्री अब्दुल रहमान ने इस बात पर ज़ोर दिया कि स्वतंत्रता आंदोलन में संपूर्ण भारत को एकसूत्र में बाँधकर हिंदी ने महती भूमिका निभाई।
सभा के प्रबंध निधिपालक श्री शेख़ मोहम्मद खासिम ने हिंदी के वैश्विक परिदृश्य पर प्रकाश डाला तो कोषाध्यक्ष श्रीमती जमीला बेगम ने कहा कि हिंदी में जोड़ने की शक्ति है। उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के आचार्य एवं अध्यक्ष प्रो. संजय एल. मादार ने कहा कि एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा है हिंदी जो हम सबकी ताक़त है। शिक्षा महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सी. एन. मुगुटकर और दूरस्थ शिक्षा निदेशालय के सहायक निदेशक डॉ. शंकर सिंह ठाकुर ने सभी को शुभकामनाएँ दी।
इस अवसर पर संपन्न भाषण प्रतियोगिता के विजेताओं को पुरस्कृत किया गया। पुरस्कार वितरण समारोह का संचालन शिक्षा महाविद्यालय की प्रवक्ता श्रीमती शैलेशा एन. नंदूरकर ने किया। इस अवसर पर सभा के सभी विभागों के प्राध्यापक, छात्र, व्यवस्थापक गण, कार्यकर्ता गण, नगरद्वय के विभिन्न विद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों से पधारे अध्यापक तथा छात्र उपस्थित रहें। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्वलन से हुआ और संचालन डॉ. बिष्णु कुमार राय ने किया। डॉ. साहिरा बानू बी. बोरगल ने धन्यवाद ज्ञापित किया। सामूहिक राष्ट्रगान के साथ कार्यक्रम समाप्त हुआ।
- सादर
डॉ नीरजा गुर्रमकोंडा
सह संपादक 'स्रवंति'
घनी रात में भी उजाला करने वाली एक चिंगारी हैं गाँधी – तुषार गाँधी
(हिंदू कॉलेज में ‘गाँधी : एक असंभव संभावना’ विषय पर ऑनलाइन व्याख्यान)
नई दिल्ली। ‘आज के दौर में गाँधी असंभव लगे यह आश्चर्य की बात नहीं है। आज ऐसी विपरीत परिस्थितियाँ हैं, जिससे यह प्रश्न उठना स्वाभाविक हो जाता है कि क्या सच में गाँधी जैसा कोई व्यक्तित्व था या उन्हें बड़ा बना दिया गया।’ सुप्रसिद्ध चिंतक, लेखक एवं समाजकर्मी तुषार गाँधी ने उक्त विचार हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज द्वारा आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान में ‘गाँधी : एक असंभव संभावना’ विषय पर व्यक्त किए।
तुषार गाँधी ने कहा कि गाँधी संभव लग रहे थे क्योंकि उनके जीवनकाल में उनका प्रत्यक्ष दर्शन था और उसके बाद कहीं दशकों तक हम गाँधी के सहयोगियों को देखते रहे। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में देखेंगे कि समाज में गाँधी जैसे अनुकरणीय लोग बहुत कम शेष हैं। तुषार जी ने बताया कि महात्मा गाँधी के बारे में ऐल्बर्ट आइंस्टाइन ने कहा है कि ‘ऐसा वक़्त आएगा जब यह मानना भी कठीन हो जायेगा कि कभी ऐसे हाड़-मांस का व्यक्ति भी हमारे बीच इस धरती पर चला होगा।’ उन्होंने कहा कि गाँधी अनुकरणीय लगते थे क्योंकि वह जब कुछ कहते तो जनता को उनका दर्शन उनके जीवन में दिखता था। इसलिए लोगों के बीच उनके रस्ते पर चलने के लिए प्रतियोगिता शुरू हो गई थी। तुषार जी ने कहा कि लोकशाही में सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी नागरिक की है। आज ऐसा प्रजातंत्र है जहाँ नागरिक की भागीदारी नहीं है। जिससे प्रजातंत्र असंभव लगने लगा है तथा गाँधी भी असंभव लगने लगे हैं। गाँधी के बाद की व्यवस्थाओं ने गाँधी को असंभव बना दिया है।
तुषार गाँधी ने बापू को संभव बताते हुए कहा कि समाज में जो समस्याएँ आती रही हैं, उनका निराकरण करने के लिए गाँधी के जीवन से समाधान मिलते रहे हैं। इस सर्वनाश की घड़ी को टालने का उपाय गाँधी जी की संभावना ही है। उनके अनुसार वर्तमान में गाँधी स्वेच्छा से स्वीकृत करने वाली चीज़ नहीं हैं, अब हम मजबूर हैं कि हम गाँधी को किसी न किसी रूप में अपनाएँ। आज युवाओं ने गाँधी को गाँधीगिरी के रूप में अपनाया है। वर्तमान समाज की संकीर्ण समझ पर वार करते हुए उन्होंने कहा कि आज हमने सत्य को अपनी सुविधा से व्याख्यायित करना शुरू कर दिया है। आज सत्य की ठोकशाही का दौर चल रहा है अर्थात् ‘जिसकी लाठी उसका सत्य’। हम गाँधी जी के वह बंदर हो गए हैं जिसने अपने कान ठूँस लिए हैं सत्य से बचने के लिए।
अपने वक्तव्य का समापन करते हुए उन्होंने कहा कि गाँधी का संदेश था कि अगर मेरा कोई संदेश है तो मेरा जीवन ही मेरा संदेश है, यानी मेरे जीवन को समझो और अपनाओ। गाँधी के जीवन से ही गाँधी की समझ प्राप्त होती है। गाँधी की शिक्षा किसी से न लें, गाँधी सीखे जा सकते हैं पर सिखाए नहीं।
वक्तव्य के पश्चात् तृतीय वर्ष के छात्र श्रेयस द्वारा प्रश्नोत्तर सत्र का संयोजन किया गया। तुषार गाँधी ने सभी रोचक सवालों का विस्तारता से जवाब दिया। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि गाँधी को समझने और जानने का सबसे सही रास्ता उनकी लिखी पुस्तकों से जाता है। इसके लिए उन्होंने गाँधी जी की आत्मकथा और हिन्द स्वराज का विशेष उल्लेख किया। कार्यक्रम के प्रारंभ में विभाग के प्रभारी डॉ. रामेश्वर राय ने स्वागत करते हुए विषय की प्रस्तावना रखी। हिंदी साहित्य सभा की संयोजक दिशा ग्रोवर ने साहित्य सभा का परिचय दिया। द्वितीय वर्ष की छात्रा जूही शर्मा ने तुषार गाँधी का औपचारिक परिचय दिया। आयोजन में विभाग के वरिष्ठ प्रध्यापक डॉ. रचना सिंह, डॉ. हरीन्द्र कुमार, डॉ. पल्लव के साथ-साथ बड़ी संख्या में विद्यार्थी, शोधार्थी और अन्य महाविद्यालय के प्राध्यापक भी उपस्थित रहे। अंत में द्वितीय वर्ष के छात्र कमल नारायण ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया।
हिरेन कलाल
(कोषाध्यक्ष)
हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज
लघुकथा समकालीन समय की संवेदना के साथ बातचीत करती है – नरहरी पटेल
"लघुकथा में संवेदना, रिश्ते, साहित्य को समझना आवश्यक है। लघुकथाकार लघुकथा के माध्यम से समकालीन समय की संवेदना के साथ बातचीत करती है।" उपरोक्त विचार नगर की साहित्यिक संस्था 'क्षितिज' द्वारा आयोजित तृतीय अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में श्री नरहरि पटेल के द्वारा व्यक्त किए गए। श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति में आयोजित कार्यक्रम में साहित्य अकादमी के निदेशक श्री विकास दवे ने मुख्य अतिथि के रूप में कहा कि, "साहित्य जगत में और अलक्ष्य क़लमों को रेखांकित किया जाना आवश्यक है। जिस तरह संयुक्त परिवार में दादा-दादी एवं अन्य वरिष्ठ सदस्यों के साथ नाती-पोते भी रहते हैं लेकिन नाती पोतियों की धमाल सबसे ज़्यादा आकर्षित करती है, उसी तरह इन दिनों साहित्य जगत लघुकथा की लोकप्रियता इस धमाल के स्तर की ही है। साहित्य में लघुकथा के क्षेत्र में बहुत काम हो रहा है, इसमें साक्षात्कार विशेषांक जैसा उपक्रम निकलना चाहिए। अनुवाद विधा से लघुकथा को समृद्ध किया जा सकता है। महर्षि अरविंद, महर्षि दयानंद सरस्वती के अवदान को अनुवाद में रेखांकित किया जाना आवश्यक है।"
आयोजन में डॉ. कमल चोपड़ा दिल्ली, डॉ. रामकुमार घोटड, चूरू, राजस्थान को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे को लघुकथा समालोचना सम्मान, डॉ. योगेंद्र नाथ शुक्ला, ज्योति जैन को लघुकथा समग्र सम्मान, दिव्या राकेश शर्मा गुरुग्राम, अंजू निगम देहरादून को लघुकथा नवलेखन सम्मान प्रदान किया गया।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा सरस्वती पूजन के साथ हुआ। सरस्वती वंदना विनीता द्वारा शर्मा द्वारा प्रस्तुत की गई । संस्था अध्यक्ष श्री सतीश राठी के स्वागत भाषण के साथ कार्यक्रम प्रारंभ हुआ। सम्मान समारोह के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार श्री नरहरी पटेल ने अध्यक्षीय उद्बोधन में, साहित्य मनीषी श्यामसुंदर दास, सुमनजी, सतीश दुबेजी का पुण्यस्मरण भी किया ।
इस प्रसंग पर साहित्यिक अवदान हेतु श्री नरहरि पटेल को क्षितिज मालव गौरव सम्मान, श्री शरद पगारे एवं श्री सत्यनारायण व्यास को क्षितिज समग्र जीवन साहित्यिक अवदान सम्मान, डॉ. विकास दवे को साहित्य गौरव सम्मान, डॉ. अर्पण जैन को भाषा सारथी सम्मान प्रदान किए गए। श्री राज नारायण बोहरे, नंदकिशोर बर्वे, चरण सिंह अमी, अंतरा करवड़े, डॉ. वसुधा गाडगिल को भी विशिष्ट सम्मानों से सम्मानित किया गया । इसी शृंखला में क्षितिज की अनुवाद उपक्रम संस्था, भाषा सखी द्वारा श्री सतीश राठी, श्री अश्विनी कुमार दुबे, श्री दीपक गिरकर, श्री राम मूरत राही को भी सम्मान प्रदान किए गए।
इसके पश्चात क्षितिज संस्था के द्वारा प्रकाशित संवादात्मक लघुकथा अंक एवं विभिन्न विधाओं में लिखी गई कुछ पुस्तकों का लोकार्पण भी हुआ। सत्र का यशस्वी संचालन हिंदी सेवी,अंतरा करवड़े ने किया। सत्र का कृतज्ञता ज्ञापन श्री सतीश राठी ने किया।
सम्मान सत्र के पश्चात लघुकथा पर केंद्रित तीन सत्रों का आयोजन किया गया, जिसमें द्वितीय सत्र "लघुकथाओं के परिप्रेक्ष्य में भाषा साहित्य और आधुनिक तकनीक की भूमिका" पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसमें वरिष्ठ साहित्यकार श्री राज नारायण बोहरे अध्यक्ष थे। कांता राय (भोपाल ), अंतरा करवड़े (इंदौर) चर्चाकार थीं। मॉडरेटर डॉक्टर वसुधा गाडगिल थी। इस चर्चा में लघुकथा के माध्यम से देवनागरी लिपि और हिंदी भाषा को अंतरराष्ट्रीय फलक तक पहुँचाने पर विचार व्यक्त किए गए।
तृतीय सत्र "आपदा कालीन साहित्य सृजन का दूरगामी प्रभाव" विषय पर था जिसमें अध्यक्ष चूरु राजस्थान से पधारे डॉ. राम कुमार घोटड थे, मूर्धन्य साहित्यकार श्री संतोष सुपेकर, उज्जैन, नंदकिशोर बर्वे, श्रीमती सीमा व्यास, इंदौर से थे। इस सत्र में आपदाकालीन साहित्य सर्जना और आगामी पीढ़ी पर प्रभाव को लेकर विचाराभिव्यक्ति की गई। सत्र का संचालन अदिति सिंह भदोरिया ने किया।
चौथे सत्र में विभिन्न विषयों पर केंद्रित चयनित लघुकथाओं का वाचन किया गया। इस सत्र का संचालन विनीता शर्मा ने किया। समूचे आयोजन का आभार सचिव श्री दीपक गिरकर ने किया। सम्मेलन में संतोष सुपेकर, राममूरत राही, उमेश कुमार नीमा, दिलीप जैन, ज्योति जैन का उल्लेखनीय सहयोग रहा। इस तरह अत्यंत गरिमामय आयोजन में लघुकथा को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फलक तक ले जाने, पोषित-पल्लवित करने के लिए मूर्धन्य लघुकथाकारों द्वारा विचार- मंथन, साधक–बाधक चर्चा कर लघुकथा विधा को समृद्ध करने का सार्थक आयोजन संपन्न हुआ ।
आगे पढ़ेंकाव्य वर्षा द्वारा लिखित 'समाज' जल्द होगी रिलीज़
शार्ट फ़िल्म ’द पिल्लो’ और ’पॉकेट मनी’ की अपार सफलता के बाद काव्य वर्षा की एक और लघु फ़िल्म बनकर लगभग तैयार है और जल्दी रिलीज़ की जाएगी जिसका शीर्षक ’समाज’ है। फ़िल्म का निर्देशन एक बार फिर एकलव्य ने किया है। इसे एन एम इंटरप्राइजेज एवं बैक बेंचर्स टीम ने प्रोड्यूस किया है। समाज लघु फ़िल्म एक बहुत ही गम्भीर विषय पर आधारित है जो आज की रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अक़्सर होता है। बहुत से लोग ऐसी स्थिति में होते कुछ समाज की कुरीतियों के साथ समझौता कर लेते हैं; कुछ उन कुरीतियों से लड़ते हैं। बस उसी विषय के संदर्भ में दो दोस्तों की आपस की बातचीत और समाज को लेकर उनके नज़रिये को दर्शाती है। बाक़ी, वो क्या सोच और नज़रिया है यह इस लघु फ़िल्म के देखने के बाद ही पता चलेगा। इस लघु फ़िल्म में आशीष वशिष्ठ और सुदेश सिंह परिहार जी मुख्य भूमिका में नज़र आएँगे। इससे पहले 2 लघु फ़िल्में ’द पिल्लो’ और ’पॉकेट मनी’ दोनों ही अंतरराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सव में अवार्ड जीत चुकी हैं। ’द पिल्लो’ को बैंगलोर में स्पेशल जूरी अवार्ड मिला और ’पॉकेट मनी’ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेस्ट फ़िल्म और बेस्ट डायरेक्टर का अवार्ड अपने नाम करके आयी। इसके अलावा 6 अंतरराष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय स्तर के फ़िल्म महोत्सव में चयन हो चुका है और वहाँ इन्हें दिखाया जाएगा।
राजीव डोगरा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
rajivdogra1@gmail.com
मनोज कुमार पांडेय को पहला स्वयं प्रकाश स्मृति सम्मान
कहानी संग्रह 'बदलता हुआ देश' का सम्मान के लिए चयन
दिल्ली 27 सितंबर 2021– साहित्य और संस्कृति के क्षेत्र में कार्यरत संस्थान ’स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास’ ने सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वयं प्रकाश की स्मृति में दिए जाने वाले वार्षिक सम्मान की घोषणा कर दी है। न्यास के अध्यक्ष प्रो. मोहन श्रोत्रिय ने बताया कि राष्ट्रीय स्तर के इस सम्मान में इस बार कहानी विधा के लिए सुपरिचित कथाकार मनोज कुमार पांडेय के कहानी संग्रह 'बदलता हुआ देश' को दिया जाएगा।
सम्मान के लिए तीन सदस्यी निर्णायक मंडल ने सर्वसम्मति से इस संग्रह को वर्ष 2021 के लिए चयनित करने की अनुशंसा की है। निर्णायक मंडल के वरिष्ठतम सदस्य कथाकार काशीनाथ सिंह (वाराणसी) ने अपनी संस्तुति में कहा कि यह संग्रह लोकतंत्र के पतनोन्मुख कालखंड का दिलचस्प किन्तु बेचैन और विक्षुब्ध करने वाला आख्यान प्रस्तुत करता है। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय के त्रासद, भयावह और जनविरोधी यथार्थ के उद्घाटन और उसके चित्रण के लिए मनोज ने एक नये क़िस्म के शिल्प की तलाश की है। उन्होंने कहा कि मनोज ने वर्तमान यथार्थ को मनुष्य की कथा कहने की आदिम शैली 'लोककथा' में संभव किया है। सिंह ने कहा कि इन कहानियों में क़िस्सागोई, उत्सुकता और कुतूहल है जिन्हें कहानियाँ कूड़ा-कबाड़ मान कर छोड़ चुकी थीं। निर्णायक मंडल के दूसरे सदस्य कथाकार असग़र वजाहत (दिल्ली) ने संस्तुति में कहा कि मनोज कुमार पांडेय कहानी के एक कम प्रचलित मुहावरे में सामाजिक यथार्थ को समझने, समझाने का प्रयास करते हैं। उन्होंने मौखिक परम्परा की कहानी और दास्तान गोई के तत्वों को मिलाकर एक शैली बनाने का प्रयास किया है। उनकी कहानियों को किसी प्रचलित शैली के अंदर नहीं रखा जा सकता है और यह बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है। सामाजिक संरचना और उसके अंतर्द्वंद्व को समझने के लिए कहानीकार बहुत सधी हुई स्थितियाँ निर्मित करता है जिनके माध्यम से उसकी बात कहीं बहुत पीछे छिपी हुई इस तरह दिखाई पड़ती है जैसे घने अँधेरे में कहीं कोई चमक। तीसरे निर्णायक कवि-गद्यकार राजेश जोशी (भोपाल) ने मनोज कुमार पाण्डेय के कहानी संग्रह 'बदलता हुआ देश : स्वर्ण देश की लोक कथाएँ' की अनुशंसा में कहा कि क़िस्सागोई को पुन: नया करने की यह कोशिश कहानी के नये रास्ते खोलेगी।
प्रो. श्रोत्रिय ने बताया कि मूलत: राजस्थान के अजमेर निवासी स्वयं प्रकाश हिंदी कथा साहित्य के क्षेत्र में मौलिक योगदान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने ढाई सौ के आसपास कहानियाँ लिखीं और उनके पाँच उपन्यास भी प्रकाशित हुए थे। इनके अतिरिक्त नाटक, रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध और बाल साहित्य में भी अपने अवदान के लिए स्वयं प्रकाश को हिंदी संसार में जाना जाता है। उन्हें भारत सरकार की साहित्य अकादेमी सहित देश भर की विभिन्न अकादमियों और संस्थाओं से अनेक पुरस्कार और सम्मान मिले थे। उनके लेखन पर अनेक विश्वविद्यालयों में शोध कार्य हुआ है तथा उनके साहित्य के मूल्यांकन की दृष्टि से अनेक पत्रिकाओं ने विशेषांक भी प्रकाशित किए हैं। 20 जनवरी 1947 को इंदौर में जन्मे स्वयं प्रकाश का निधन कैंसर के कारण 7 दिसम्बर 2019 को हो गया था। लम्बे समय से वे भोपाल में निवास कर रहे थे और यहाँ से निकलने वाली पत्रिकाओं 'वसुधा' तथा 'चकमक' के सम्पादन से भी जुड़े रहे।
प्रो. श्रोत्रिय ने बताया कि इसी वर्ष आयोज्य समारोह में कथाकार मनोज कुमार पांडेय को सम्मान में ग्यारह हज़ार रुपये, प्रशस्ति पत्र और शॉल भेंट किये जाएँगे। इस सम्मान के लिए देश भर से बड़ी संख्या में प्रविष्टियाँ प्राप्त हुई थीं जिनमें से प्राथमिक चयन के बाद छह संग्रहों को निर्णायकों के पास भेजा गया। साहित्य और लोकतान्त्रिक विचारों के प्रचार-प्रसार के लिए गठित स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास में कवि राजेश जोशी (भोपाल), आलोचक दुर्गाप्रसाद अग्रवाल (जयपुर), कवि-आलोचक आशीष त्रिपाठी (बनारस), आलोचक पल्लव (दिल्ली), श्रीमती अंकिता सावंत (मुंबई) और श्रीमती अपूर्वा माथुर (दिल्ली) सदस्य हैं।
पल्लव
सचिव
स्वयं प्रकाश स्मृति न्यास
393, कनिष्क अपार्टमेंट
ब्लॉक सी एंड डी, शालीमार बाग़
दिल्ली – 110088
तृतीय अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का आयोजन
संस्था 'क्षितिज' द्वारा तृतीय अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2021 का आयोजन 26 सितंबर, 2021 रविवार को सुबह 10.00 बजे से श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति, शिवाजी सभागृह इंदौर में किया जा रहा है। इस आयोजन में कमल चोपड़ा (दिल्ली) एवं रामकुमार घोटड चुरू को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान, पुरुषोत्तम दुबे को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान से, ज्योति जैन एवं योगेन्द्रनाथ शुक्ल को लघुकथा समग्र सम्मान से, दिव्या राकेश शर्मा (दिल्ली) एवं अंजू निगम (देहरादून को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान से सम्मानित किया जाएगा। नगर के वरिष्ठ साहित्यकारों को कुछ विशिष्ट सम्मान प्रदान किए जाएँगे। श्री नरहरि पटेल (क्षितिज मालव गौरव सम्मान), शरद पगारे (क्षितिज समग्र जीवन साहित्यिक अवदान सम्मान) सत्यनारायण व्यास (क्षितिज समग्र जीवन साहित्यिक अवदान सम्मान) से सम्मानित किए जाएँगे। सर्वश्री विकास दवे, गोविंद मूंदड़ा (चेन्नई), राजनारायण बोहरे, नंदकिशोर बर्वे, अर्पण जैन, चरणसिंह अमी, अंतरा करवड़े, डॉ. वसुधा गाडगिल को भी विभिन्न महत्वपूर्ण सम्मानों से सम्मानित किया जाएगा।
इसी अवसर पर 'भाषा सखी' संस्था के द्वारा भी कुछ विशिष्ट सम्मान प्रदान किए जाएँगे ।
यह कार्यक्रम कोरोना गाइडलाइंस का पूर्ण अनुपालन करते हुए सिर्फ ’आमंत्रित अतिथियों’ के मध्य किया जा रहा है। इस प्रसंग पर लघुकथा से संबंधित कुछ पुस्तकों का लोकार्पण भी होगा जिसमें क्षितिज संस्था का वार्षिक अंक भी शामिल है।
सम्मान सत्र के बाद तीन विविध सत्रों में क्षितिज संस्था के द्वारा लघुकथा पर महत्वपूर्ण चर्चा के सत्र रखे गए हैं। दिन भर का यह वार्षिक कार्यक्रम पुराने कार्यक्रमों की तरह उसी गरिमा के साथ संपन्न होगा। उल्लेखनीय है कि क्षितिज संस्था इंदौर शहर में वर्ष 1983 से लघुकथा विधा के लिए समर्पण भाव से कार्य कर रही है।
दीपक गिरकर
सचिव : क्षितिज इंदौर
अभिनव बालमन के नए अंक का हुआ विमोचन
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ के 12वें वर्ष के 44वें अंक का विमोचन मॉरीशस इण्टरनेशनल स्कूल में किया गया। अभिनव बालमन अलीगढ़ से प्रकाशित ऐसी पत्रिका है जिसमें बाल रचनाकारों की रचनाओं को प्राथमिकता दी जाती है। कविता, कहानी, चित्रकला, संस्मरण, पत्र लेखन, चित्र पहेली एवं विविध रचनात्मक प्रतियोगिताओं को समाहित करती हुई यह पत्रिका बाल रचनाकारों की रचनात्मकता को मंच प्रदान कर रही।
विद्यालय के प्रबन्धक मुकेश सिंह ने कहा कि ‘अभिनव बालमन’ से जुड़कर हमारे विद्यालय के विद्यार्थी लेखन गतिविधियों में सक्रिय हो रहे हैं। उनमें बाल साहित्य के प्रति रोचकता उत्पन्न हो रही है जिससे उनका लेखन भी निखर रहा है।
अभिनव बालमन की प्रकाशक सरोज शर्मा ने सभी बाल रचनाकारों को शुभकामनाएँ दीं।
इस अवसर पर विद्यालय की प्रधानाचार्या पायल अग्रवाल, उप प्रधानाचार्या नीना सक्सैना, आवरण पृष्ठ पर प्रकाशित छायाचित्र की बालिका आयुषी, सरोज सिंह सहित अन्य छात्र-छात्राएँ उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंभारतीय साहित्य मानव जाति की प्राचीन ज्ञान परंपरा का दर्पण है : प्रो. अवधेश प्रधान
हिंदू कॉलेज में डॉ. दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यान का आयोजन
नई दिल्ली। ‘भारतीय साहित्य की अवधारणा भारत से जुड़ी है। भारत एक बहुनस्लीय, बहुधर्मी तथा बहुभाषी देश है। भारतीय साहित्य के संबंध सिर्फ भारत तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसके तार पाकिस्तान, बांग्लादेश, चीन, तिब्बत तथा दक्षिणी एशिया से भी जुड़े हैं।’ उक्त विचार हिंदी के सुपरिचित आलोचक एवं काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पूर्व आचार्य प्रो. अवधेश प्रधान ने हिंदी साहित्य सभा, हिंदी विभाग, हिंदू कॉलेज द्वारा ‘डॉ. दीपक सिन्हा स्मृति व्याख्यान’ के अंतर्गत आयोजित ऑनलाइन व्याख्यान में ‘भारतीय साहित्य की अवधारणा’ विषय पर व्यक्त किए।
हिंदी विभाग की इस प्रतिष्ठित वार्षिक व्याख्यान शृंखला में प्रो. अवधेश प्रधान ने कहा कि भारतीय साहित्य का इतिहास आज से क़रीब पाँच हज़ार वर्ष पुराना है। भारतीय साहित्य की जड़ें संस्कृत तथा अन्य आर्य भाषा परिवार से जुड़ी हैं। अगर प्राचीन भारतीय भाषाओं का अध्ययन किया जाए तो मालूम होता है कि प्राचीन भारतीय साहित्य में न सिर्फ रस साहित्य शामिल है, बल्कि उसमें ज्ञानात्मक साहित्य भी सम्मिलित है। उन्होंने प्राचीन संस्कृत साहित्य के महत्व पर ज़ोर देते हुए कहा कि जीवन के जितने क्षेत्रों में मानव की रुचि रही है उन सभी क्षेत्रों को संस्कृत साहित्य समेटता है।
प्रो. प्रधान ने बौद्ध साहित्य का ज़िक्र करते हुए कहा कि पालि भाषा में लिखे गए साहित्य में दर्शनशास्त्र, आयुर्वेद तथा ज्ञान-विज्ञान आदि क्षेत्रों का भी समावेश है। उन्होंने जैन धर्म साहित्य, जो प्राकृत भाषा में लिखा गया है, का उल्लेख करते हुए कहा कि उसमें जैन धर्म की शिक्षा-दीक्षा है। साथ ही नाट्यशास्त्र, काव्यशास्त्र, कथाशास्त्र आदि भी सम्मिलित है। प्रो. प्रधान ने अपने वक्तव्य द्वारा भारतीय साहित्य जैसे बहुआयामी विषय के अनेक नए एवं सूक्ष्म आयामों से परिचय कराया।
सत्र के आरंभ में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. हरींद्र कुमार ने डॉ. दीपक सिन्हा का परिचय देते हुए उनके विद्यार्थी वत्सल व्यक्तित्व का भी उल्लेख किया। उन्होंने बताया कि डॉ. विश्वनाथ त्रिपाठी ने अपनी पुस्तक गुरुजी की खेती बाड़ी में भी एक अध्याय समाजवादी विचारधारा से प्रभावित सिद्धांतवादी अध्यापक सिन्हा जी पर लिखा है। इससे पहले हिंदी साहित्य सभा की संयोजक दिशा ग्रोवर ने प्रो. अवधेश प्रधान का औपचारिक परिचय देते हुए हिंदी जगत में उनके महत्वपूर्ण योगदान पर प्रकाश डाला। प्रो. प्रधान के वक्तव्य पश्चात हिंदी साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने हिंदी साहित्य सभा की 2021-22 की निर्वाचित कार्यकारिणी का परिचय दिया। सत्र 2021-22 के लिए तृतीय वर्ष से दिशा ग्रोवर को संयोजक, कैलाश लिंबा को महासचिव, द्वितीय वर्ष से गरिमा शर्मा तथा हिरेन कलाल को क्रमानुसार सचिव तथा कोषाध्यक्ष निर्वाचित किया गया है। आयोजन में विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर राय, वरिष्ठ प्राध्यापक श्री अभय रंजन, डॉ. रचना सिंह, डॉ. विमलेन्दु तीर्थंकर सहित अनेक लेखक, पाठक और विद्यार्थी, शोधार्थी शामिल हुए। वेबिनार का संयोजन डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया।
कैलाश लिंबा
महासचिव, हिंदी साहित्य सभा,
हिंदू कॉलेज, दिल्ली विश्विद्यालय, दिल्ली – 7
मनुष्यधर्मी मूल्यों की स्थापना लघु पत्रिकाओं का उद्देश्य : डॉ. राजीव रंजन गिरि
संभावना द्वारा वेबिनार का आयोजन
चित्तौड़गढ़। हिंदी साहित्य के अतीत और वर्तमान को पहचानने और विश्लेषित करने की कोई भी कोशिश, लघु-पत्रिकाओं की दुनिया पर नज़र डाले बिना, पूरी नहीं हो सकती। युवा अध्येता और दिल्ली विश्वविद्यालय में हिंदी के सहायक आचार्य डॉ. राजीव रंजन गिरि ने कहा कि छोटे-छोटे शहरों-क़स्बों से निकलती रही लघु पत्रिकाओं ने साहित्य के क्षेत्र में भी लोकतंत्र की स्थापना की है। डॉ. गिरि ने चित्तौड़गढ़ की साहित्य-संस्कृति की संस्था 'सम्भावना' द्वारा आयोजित वेबिनार में कहा कि विचारशीलता और प्रतिरोध लघु-पत्रिका के मूल स्वर हैं। 'लघु पत्रिका आंदोलन और हमारा समय' विषय पर उन्होंने कहा कि विचारशीलता से आशय है, अपने समाज और समय के द्वंद्वों को गहराई से संबोधित करना वहीं प्रतिरोध से आशय है मनुष्य विरोधी संरचनाओं को पहचान कर उनका सच्चा विरोध कर मनुष्यधर्मी मूल्यों की रक्षा करना। इसके अतिरिक्त लघु-पत्रिका के स्वरूप व उसकी भूमिका को लेकर हमारे पास पहले की कुछ प्रचलित अवधारणाएँ भी हैं। लघु आकार की और सीमित संख्या में प्रकाशित तथा साथियों के सहयोग से वितरित होने वाली इन पत्रिकाओं के पीछे कोई बड़ी पूँजी, प्रतिष्ठान, या सुव्यवस्थित बुनियादी ढाँचा नहीं होता, ये व्यक्तिगत संसाधनों से निकलती हैं और इनका ध्येय आर्थिक उपार्जन न होकर सामाजिक चेतना के लिए किया गया साहित्यिक अनुष्ठान होता है। उन्होंने वर्तमान समय में नियमित निकल रहीं महत्त्वपूर्ण लघु पत्रिकाओं को रेखांकित करते हुए बताया कि हमारे समय के साहित्य की सबसे प्रामाणिक छवि इन पत्रिकाओं के माध्यम से ही निर्मित होती है।
इससे पहले संभावना के अध्यक्ष डॉ. के सी शर्मा ने राजस्थान और विशेष रूप से मेवाड़ क्षेत्र में साहित्य-संस्कृति की चर्चा करते हुए बताया कि आज हिंदी जगत में विख्यात पत्रिका 'बनास जन' की शुरुआत संभावना द्वारा ही की गई थी। उन्होंने कहा कि साहित्य और पत्रिकाओं के माध्यम से सांस्कृतिक जागरूकता का अभियान लघु पत्रिका आंदोलन को महत्त्वपूर्ण बनाता है। डॉ. कनक जैन ने आयोजन के मुख्य वक्ता डॉ. गिरि का परिचय दिया तथा चित्तौड़गढ़ में विख्यात कथाकार स्वयं प्रकाश के द्वारा लघु पत्रिकाओं के प्रसार सम्बन्धी अवदान को रेखांकित किया। वेबिनार का संयोजन राजस्थान विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में सहायक आचार्य डॉ. विशाल विक्रम सिंह ने किया। अंत में डॉ. गिरि ने अपने व्याख्यान पर मिली प्रतिक्रियाओं पर भी टिप्पणी करते हुए आह्वान किया कि अपनी भाषा और संस्कृति की रक्षा के लिए लघु पत्रिकाओं को बढ़ावा देना किसी भी साहित्यप्रेमी समाज के लिए आवश्यक है। वेबिनार में देश के अनेक शहरों-क़स्बों से साहित्य प्रेमियों ने जुड़कर डॉ. गिरि के व्याख्यान को सुना।
डॉ. कनक जैन
द्वारा संभावना
3, ज्योति नगर
चित्तौड़गढ़ – 312001
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शिक्षक रत्न सामान 2021 से सम्मानित हुए भाषा अध्यापक राजीव डोगरा
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश —
शिक्षक दिवस के अवसर पर नवोदय क्रांति परिवार उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित पत्रिका 'शिक्षक' में अपनी उत्कृष्ट रचना सुसज्जित करने तथा शिक्षा के उत्थान के लिए किए जाने वाले सराहना पूर्ण कार्य के लिए राजीव को "शिक्षक रत्न सम्मान-2021" देकर सम्मानित किया गया। उनको यह सम्मान संस्था के संस्थापक संदीप ढिल्लों तथा संपादक "शिक्षक" पत्रिका/जिला मोटिवेटर नवनीत कुमार शुक्ल द्वारा प्रदान किया गया।
सम्मान मिलने पर उनके पिता हंसराज, माता सरोज कुमारी और बड़े भाई पीएचडी शोधकर्ता अमित डोगरा तथा स्कूल के मुख्याध्यापक प्रवेश शर्मा, रविंदर नरयाल खण्ड स्त्रोत केंद्रीय समन्वयक खण्ड कांगड़ा के बी.आर.सी,कुल्लू के साहित्यकार तथा संस्कृति के संरक्षक राज शर्मा और शिमला के साहित्यकार रोशन जसवाल ने अत्यंत ख़ुशी व्यक्त की तथा राजीव को ऐसे ही अपने जिले और हिमाचल का नाम रोशन करने के लिए उत्साहित किया।
आगे पढ़ेंसाहित्यिक पत्रिका 'स्रवंति' का पावस विशेषांक लोकार्पित
हैदराबाद, 5 सितंबर, 2021—
यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा (आंध्र एवं तेलंगाना) के खैरताबाद स्थित परिसर में पधारे केंद्रीय हिंदी निदेशालय के क्षेत्रीय निदेशक डॉ. राकेश कुमार शर्मा ने सभा द्वारा प्रकाशित साहित्यिक मासिक पत्रिका 'स्रवंति' के 'पावस विशेषांक-2' का लोकार्पण किया। उन्होंने लोकार्पित पत्रिका की शोधपरक दृष्टि की प्रशंसा करते हुए संस्कृत और हिंदी सहित्य में पावस ऋतु के वर्णन की परंपरा पर भी प्रकाश डाला।
समारोह के अध्यक्ष एवं सभा के सचिव एस. श्रीधर ने कहा कि पावस ऋतु पर केंद्रित अपने दो विशेषांकों के माध्यम से पत्रिका ने साहित्य और मीडिया में वर्षा के विबिध रूपों पर शोधपरक सामग्री प्रकाशित की है।
अवसर पर ए. जानकी, प्रो. संजय ल मादार, डॉ. बिष्णु राय और डॉ. गोरखनाथ तिवारी भी उपस्थित रहे। पत्रिका की सहसंपादक डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा ने विशेषांक का परिचय देने के अलावा सबका धन्यवाद व्यक्त किया।
प्रेषक
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सहसंपादक 'स्रवंति'
असिस्टेंट प्रोफेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद
हैदराबाद - 500004
ज़ूम मीटिंग के माध्यम से श्री बी.एम. जैन पब्लिक स्कूल के विद्यार्थियों ने शिक्षक दिवस मनाया
सोलन (हिमाचल प्रदेश) — आज अध्यापक दिवस पर श्री बी.एम. जैन पब्लिक स्कूल, नालागढ़ के विद्यार्थियों द्वारा ज़ूम मीटिंग के माध्यम से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया जिसमें देश के दूसरे राष्ट्रपति डॉक्टर सर्वपल्ली राधाकृष्णन को याद किया गया। उनके जीवन वृत्तांत पर प्रकाश डालते हुए शिक्षा के क्षेत्र में उनके द्वारा स्थापित सामाजिक एवं नैतिक मूल्यों की सार्थकता बताते हुए प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष श्री रमेश कुमार जैन जी, प्रिंसिपल प्रीति शर्मा जी तथा शिक्षकों को संदेश दिया कि छात्रों में समाज के प्रति कर्तव्य की भावना को जागृत किया जाए तथा अपनी संस्कृति के प्रति उन को जागरूक किया जाए। विद्यार्थियों के जीवन निर्माण की ज़िम्मेदारी सबकी है। माता-पिता, घर -परिवार और आस-पड़ोस सभी की यह ज़िम्मेदारी है पर सर्वाधिक ज़िम्मेदारी है . . . अध्यापक की। विद्यार्थी का मानस अनुकरण प्रधान होता है वह जैसा आचरण और व्यवहार दूसरों को करते हुए देखते हैं वैसा ही आचरण करते हैं इसलिए अध्यापक अपनी इस ज़िम्मेदारी के प्रति गंभीर बनते हुए सबसे पहले अपना जीवन निर्माण करें। जिसका स्वयं का जीवन निर्मित नहीं है वह दूसरों का निर्माण कैसे कर सकेगा? निर्मित ही दूसरों का निर्माण कर सकता है। प्रिंसिपल प्रीति शर्मा जी ने यह संदेश देते हुए अध्यापकों और विद्यार्थियों को यह संदेश दिया, अध्यापक वही है जो विद्या का सही उद्देश्य क्या है; अपने विद्यार्थियों को अवगत कराए। विद्या का सही उद्देश्य है आत्मज्ञान की उपलब्धि। उस विद्या को विद्या नहीं माना जा सकता जो आत्म-संवेदन से परे हो आवश्यकता से परे हो। आज की शिक्षा में यदि अध्यापक विद्यार्थियों को विनम्रता, अनुशासन, सत्य, नीति-निष्ठा प्रमाणिकता जैसी बातें नहीं पढ़ाते तो इसी का दुष्परिणाम है कि विद्यार्थी आगे चलकर उद्दंड बन जाते हैं। झूठ, फ़रेब, चोरी जैसी दुष्ट प्रवृत्तियों में अपना जीवन बर्बाद कर लेते हैं। इसलिए इस बिंदु पर गंभीरता से चिंतन करने की आवश्यकता है ताकि हमारे अध्यापक, शिक्षा प्रणाली को दोष मुक्त बना सकें। अध्यापकों और विद्यार्थियों में भावनात्मक संबंध होना अत्यंत आवश्यक है क्योंकि अध्यापक की पढ़ाने की शैली जितनी सरल व आत्मीयता लिए होगी विद्यार्थी हृदय में वे उतनी ही सरलता से उतरती जाएगी। ’सिर्फ़ पढ़ना ही नहीं’ यदि कोई अध्यापन अपने कर्तव्य को समझ ले तो वे शिक्षा जैसे पवित्र कार्य के लिए न्याय संगत होगा। उन्होंने अपने संदेश में अध्यापकों को यह राय दी कि वह विद्यार्थियों में साहित्य सर्जन के प्रति रुचि का विकास करे। क्योंकि साहित्य सृजन भावनाओं व संवेदनाओं के ऊपर टिका हुआ है। जहाँ संवेदन आया ही नहीं, वहाँ लेखन नहीं, जहाँ भावनाएँ नहीं, वहाँ लेखन नहीं। इसलिए जो अध्यापक, अध्यापन ही नहीं, लेखन भी करता है, वह सोने पे सुहागे के समान है। कविता, नाटक, कहानी के माध्यम से अगर अध्यापक विद्यार्थियों को पढ़ाते हैं तो वह उनके हृदय पटल पर एक गहरी छाप छोड़ता है। इसलिए अध्यापकों को चाहिए कि वह विद्यार्थियों के साथ ऐसा भावनात्मक संबंध बनाकर रखें कि उनको रचनात्मक ढंग से शिक्षा देकर उनके जीवन में एक गहरी छाप छोड़ें। शिक्षक चरित्र निर्माण का प्रहरी होता है।
कार्यक्रम में उपस्थित अन्य अध्यापकगणों कुसुम जी, मनोरमा जी, बलवीर जी, शुभलता जी और उप-अध्यापिका श्रीमती संगीता खुल्लर जी ने विद्यार्थियों को प्रेरणादायक संदेश देते हुए विद्यार्थियों का मार्गदर्शन किया। और संदेश दिया कि अध्यापक समाज में एक नींव पत्थर का काम करता है। ज़ूम मीटिंग के माध्यम से विद्यार्थियों ने शिक्षकों को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाई दी कई बच्चों ने कविताएँ पढ़ीं और शिक्षकों का आभार व्यक्त किया।
आगे पढ़ेंपंकज सुबीर को रूस का पुश्किन सम्मान
30 अगस्त 2021 – मास्को। मानवीय सरोकारों के पैराकार हिन्दी के चर्चित लेखक पंकज सुबीर को रूस का पुश्किन सम्मान-2017 दिये जाने की घोषणा की गई है। रूस के 'भारत मित्र समाज' की ओर से प्रतिवर्ष हिन्दी के एक प्रसिद्ध लेखक-कवि को मास्को में हिन्दी साहित्य का यह महत्त्वपूर्ण सम्मान दिया जाता है। इस क्रम में समकालीन भारतीय लेखकों में अपना विशिष्ट स्थान रखने वाले और कथा लेखन के प्रति विशेष रूप से समर्पित पंकज सुबीर को जल्द ही यह सम्मान मास्को में आयोजित होने वाले गरिमापूर्ण कार्यक्रम में दिया जाएगा। उल्लेखनीय है कि पहली बार यह सम्मान किसी युवा लेखक को मिला है।
मूल रूप से मानवीय संवेदना के पक्ष में खड़े नज़र आने वाले लेखक पंकज सुबीर के अब तक सात कहानी संग्रह, तीन उपन्यास, और संपादन की चार पुस्तकों सहित विविध विधाओं की कुल 17 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिन्दी साहित्य के अनेक महत्त्वपूर्ण राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मानों से सम्मानित पंकज सुबीर को 2009 में भारतीय ज्ञानपीठ नवलेखन पुरस्कार मिला था। उसके बाद उन्हें वागीश्वरी पुरस्कार, वनमाली कथा सम्मान, शैलेश मटियानी पुरस्कार, कमलेश्वर सम्मान आदि दस से ज़्यादा पुरस्कार और सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
भारत मित्र समाज के महासचिव अनिल जनविजय ने मास्को से जारी विज्ञप्ति में यह सूचना दी है कि प्रसिद्ध रूसी कवि अलेक्सान्दर सेंकेविच की अध्यक्षता में हिन्दी साहित्य के रूसी अध्येताओं व विद्वानों की पाँच सदस्यीय निर्णायक-समिति ने पंकज सुबीर को वर्ष 2017 के पुश्किन सम्मान के लिए चुना है। इस निर्णायक-समिति में हिन्दी साहित्य की प्रसिद्ध रूसी विद्वान ल्युदमीला ख़ख़लोवा, रूसी कवि ईगर सीद, कवयित्री और हिन्दी साहित्य की विद्वान अनस्तसीया गूरिया, कवि सेर्गेय स्त्रोकन और लेखक व पत्रकार स्वेतलाना कुज्मिना शामिल हैं। सम्मान के अन्तर्गत पंकज सुबीर को पन्द्रह दिन की रूस-यात्रा पर बुलाया जाएगा। उन्हें रूस के कुछ नगरों की साहित्यिक यात्रा कराई जाएगी तथा रूसी लेखकों से उनकी मुलाक़ातें आयोजित की जाएँगी।
इससे पहले यह सम्मान हिन्दी के कवि विश्वनाथप्रसाद तिवारी, उदयप्रकाश, लीलाधर मंडलोई, बुद्धिनाथ मिश्र, पवन करण, कहानीकार हरि भटनागर और महेश दर्पण आदि को दिया जा चुका है। पंकज सुबीर इन दिनों सीहोर, मध्यप्रदेश में रहते हैं और उनसे 9806162184 पर संपर्क किया जा सकता है।
रूस स्थित 'भारत मित्र समाज' द्वारा 30 अगस्त 2021 को प्रेस के लिए जारी विज्ञप्ति।
अनिल जनविजय
महासचिव
भारत मित्र समाज, मास्को, रूस
साहित्य में विशेषज्ञता की चर्चा की जाना ज़रूरी है – श्री विकास दवे, निदेशक साहित्य अकादमी
"किसी भी साहित्य का लेखक ही उस विषय का विशेषज्ञ होता है और समालोचना का कार्य भी वह स्वयं अधिक कुशलता और सब क्षमता के साथ कर सकता है। यदि व्यंग्यकार स्वयं ही व्यंग्य रचनाओं की समालोचना करे तो वह समालोचना उसकी उस विषय की विशेषज्ञता के साथ सामने आती है और वह उस विषय पर न्याय पूर्ण तरीक़े से प्रस्तुत होती है। विशेषज्ञ होने की क्षमता ईश्वर ने सभी को प्रदान नहीं की है, इसलिए साहित्य में विशेषज्ञता पर चर्चा होना ज़रूरी है।" उपर्युक्त विचार साहित्य अकादमी के निदेशक श्री विकास दवे के द्वारा नगर की साहित्यिक संस्था 'क्षितिज' के द्वारा आयोजित श्री अश्विनी कुमार दुबे के व्यंग्य संग्रह 'इधर होना एक महापुरुष' पर चर्चा संगोष्ठी में व्यक्त किए।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार श्री सूर्यकांत नागर ने कहा, "लेखन का उद्देश्य है कि समाज कल्याण के लिए लिखना होता है और उसमें करुणा का स्वर आना ज़रूरी होता है। यदि कोई लेखक अपने लेखन में समाज की बात करता है तो यह उसका श्रेष्ठ प्रतिमान होता है। लेखक किस तरह सोचता है, किस तरह प्रयोग करता है और किस तरह लिखता है, यह किसी भी विधा के लेखन में बड़ा महत्वपूर्ण होता है और जब वह समाज से जुड़कर लिखता है तो उसका लेखन महत्वपूर्ण हो जाता है। लेखक की प्रतिबद्धता किसके साथ है यह देखा जाना बड़ा महत्वपूर्ण है।"
साहित्यकार श्री महेश दुबे ने अपने उद्बोधन में कहा, "इन व्यंग्य रचनाओं में श्री दुबे की व्यंजनात्मक कुशलता का परिचय मिलता है। कई आलेखों में उन्होंने साहित्य को राजनीति और राजनीति में साहित्य पर विमर्श किया है। भारतीय परिप्रेक्ष्य में लोकतंत्र की बढ़ती आयु के साथ उसमें साहित्य कला और भाषा के सरोकार निरंतर घटते जा रहे हैं। यह गंभीर चिंता का विषय है। उन्होंने कहा कि एक समर्थ साहित्यकार कही गई कथा को पुनर्नवा करते हुए अपनी शैली और अपने कथ्य में उसको उत्सर्जित करता है। अश्विनी जी के यह व्यंग्य आलेख पाठकों को रास्ते की तलाश की यात्रा में शामिल होने का आमंत्रण देते हैं। इनमें शब्दों और विचारों का चमत्कार पूर्ण प्रयोग है।"
पुस्तक पर समीक्षा करते हुए कथाकार गरिमा संजय दुबे ने कहा, "व्यंग्य विधा की सबसे बड़ी ज़रूरत एक ऐसी दृष्टि है, जो उजले में भी काले को ढूँढ़ सके, दिखा सके, यह अनाज बीनने जैसी कुशलता है कि पूरे अनाज में से कंकर निकाल कर उसे बताया जा सके, तो वस्तुतः व्यंग्य एक परिष्कार, साफ़ सुथरा करने की विधा है, अनाज को फटक कर, बीन कर उसे शुद्ध करने जैसा एक प्रयास। व्यंग्यकार यही तो करता है, विशाल जन समुदाय, मुद्दों, प्रवृतियों के विसंगतियों रूपी कंकर को निकालने का कार्य।"
पुस्तक पर प्रारंभिक व्याख्यान देते हुए अमृत दर्पण भोपाल के संपादक श्री चंद्रभान राही ने कहा, "कोई भी रचनाकार निरंतर लेखन के द्वारा स्वयं को रचनाकार के रूप में स्थापित करने के प्रयास में लगा रहता है और निरंतर लेखन ही उसे उस स्थान पर स्थापित करता है, जिसका वह हक़दार होता है। श्री अश्विनी कुमार दुबे न सिर्फ़ व्यंग्य लेखन अपितु निरंतर कहानी और उपन्यास का लेखन कर रहे हैं और एक सशक्त कथाकार के रूप में उनका नाम चर्चा में है।"
प्रारंभ में संस्था अध्यक्ष सतीश राठी द्वारा संस्था का परिचय दिया गया। अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किए गए तथा श्री विकास दवे का सारस्वत सम्मान भी किया गया। कार्यक्रम का संचालन सीमा व्यास ने किया एवं आभार प्रदर्शन विजया त्रिवेदी के द्वारा किया गया।
दीपक गिरकर
सचिव क्षितिज
ठाकुरद्वारा स्कूल के बच्चों द्वारा मनाया गया ऑनलाइन स्वतंत्रता दिवस
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
राजकीय उच्च विद्यालय ठाकुरद्वारा द्वारा मनाया गया ऑनलाइन स्वतंत्रता दिवस इस मौक़े पर विद्यालय के बच्चों ने सुन्दर-सुन्दर पेंटिंग, सलोगन आदि बनाये। सभी बच्चों ने इस में बढ़-चढ़ कर भाग लिया जैसे अलीशा, मानसी, श्रुति, प्रियांशा, आकृति, राशि, सुहानी, गौरव, खुशी, दीक्षा, सारांश प्रथम, पूजा, शिनाम, सिया आदि। मुख्याध्यापक प्रवेश कुमार और अन्य अध्यापकों जैसे अध्यापक राजीव डोगरा, रविंदर कुमार, ज्योतिप्रकाश, राकेश कुमार, अमीचंद, सुनील कुमार, और मैडम प्रवीण लता ने 75वें स्वतंत्रता दिवस पे सभी को शुभकामनायें दीं।
राजीव डोगरा 'विमल'
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
पिन कोड 176029
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
9876777233
rajivdogra1@gmail.com
हिन्दू कॉलेज में प्रेमचंद जयंती पर प्रो. अपूर्वानंद का व्याख्यान
आवाज़ में भी रोशनी होती है – प्रो. अपूर्वानंद
हिंदू कॉलेज में प्रेमचंद जयंती पर वेबिनार
दिल्ली— "हम भी इस घृणा, नफ़रत, छोटेपन और ओछेपन से बाहर निकल आएँगे और हम उस सफ़र को जारी रख सकेंगे जो मनुष्यता का सच्चा सफ़र है। किन्तु प्रेमचंद की बातों को याद रखें कि इंसान होने का भरपूर आनंद तभी ले पाएँगे जब यह आनंद समूचे समाज और समूह को मिले।" महान कथाकार प्रेमचंद की 141 जयंती के अवसर पर हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज द्वारा आयोजित ऑनलाइन वेबिनार में जाने-माने आलोचक और हिंदी साहित्य के आचार्य डॉ. अपूर्वानंद ने उक्त विचार व्यक्त किए। "प्रेमचंद को क्यों पढ़ें?" विषय पर प्रो अपूर्वानंद ने कहा कि प्रेमचंद पर बात करते हुए कुछ भी नया नहीं कहा जा सकता बल्कि सब दोहराया ही जाता है किंतु दोहराने का शिक्षा और साहित्य दोनों में ही बहुत महत्त्व है। प्रेमचंद को पढ़ते हुए उनके विचार से शायद ही प्रेमचंद के साहित्य का कोई कोना है जो महादेवी वर्मा, जैनेंद्र, अज्ञेय, निराला, बेनीपुरी, दिनकर, नागार्जुन, भीष्म साहनी जैसे पुराने साहित्यकार व लेखकों से छूटा होगा। प्रेमचंद समस्याओं के कारण लेखक नहीं बने अपितु याद रखना चाहिए कि रचनाकार जब लिखता है तो वह दरअसल किसी राष्ट्रीय कर्त्तव्यवश या किसी सामाजिक सुधार के कर्त्तव्यवश नहीं लिखता है बल्कि इसलिए लिखता है क्योंकि उसे लोगों में दिलचस्पी है, उसे आसपास की ज़िंदगी में लुत्फ़ आता है। प्रेमचंद को भी इस ज़िंदगी में अत्यधिक आनंद आता है और उनकी गहरी दिलचस्पी चलते-फिरते लोगों में है कि यह काम करते हुए क्या सोच रहे हैं? इसका दिल कैसे धड़क रहा है? उन लोगों के भाव-भंगिमाओं अंदाज़, मनोभावों में बहुत दिलचस्पी है। प्रेमचंद की साहित्य की परिभाषा के अनुसार मनोभावों का चित्रण करने वाला ही लेखन साहित्य है।
उन्होंने कहा कि गोदान केवल भारतीय किसान की त्रासदी नहीं बल्कि होरी, धनिया, गोविंदी, मालती, मिर्ज़ा साहब, राय साहब आदि तमाम लोगों के जीवन की कहानी है इसलिए केवल एक सूत्र देखना प्रेमचंद और गोदान दोनों के साथ अन्याय है। अपने मित्र डॉ. यशपाल की बात याद करते हुए हमें कहते हैं चलते समय लक्ष्य पर निगाह रखो पर रास्ता है जिस पर चलना है तो उसे पकड़कर मत रहो, रुक-रुक कर चलो, रास्ते का आनंद लो, आप सिर्फ़ अंतिम बिंदु लक्ष्य पर निगाह रखने की हड़बड़ी ना करें। यही उपन्यासकार की दृष्टि है जिसमें वे जीवन के विस्तार को उसकी विविधता को प्रस्तावित करता है। अतः सही कहा गया है प्रेमचंद उपन्यास पढ़ने वालों का एक समाज बनाते थे।
प्रो. अपूर्वानंद ने कहा कि साहित्य की भाषा विद्वानों के बीच बनती है अर्थात् जो भाषा के साथ अदब से पेश आते हैं ना कि सड़क किनारे बनती हैं। उस भाषा के लिए रचनाकार को अत्यधिक जतन करना होता है। महादेवी वर्मा भी प्रेमचंद की भाषा पर कहती हैं कि एक तरफ़ उनकी भाषा में जल है और दूसरी तरफ ज्वाला है। प्रेमचंद भाषा को जिस नज़रिए से गढ़ रहे हैं उस नज़रिए को ध्यान रखना चाहिए, वह भाषा में आनंद लेने योग्य है। प्रेमचंद के लेख "दास्तान ए आज़ाद" में भाषा का आनंद देखा जा सकता है।
प्रो. अपूर्वानंद ने कहा कि इंसान होना बहुत कठिन काम है; यह प्रेमचंद बार-बार अपने कहानियों-उपन्यासों से हमें याद दिलाते हैं। "पंच परमेश्वर" कहानी के अमर प्रश्न "क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात ना कहोगे?" के माध्यम से नैतिकता की शिक्षा देने का प्रयास करते हैं। प्रेमचंद का साहित्य धर्मनिरपेक्ष है, वे अपने लेखन में हिंदू-मुसलमान की बराबर सहारना एवं आलोचना करते हैं। प्रेमचंद की वैचारिकी और भाषा को समझाने के लिए प्रो. अपूर्वानंद ने अनेक सूत्र रखते हुए प्रेमचंद के संदर्भ में लिखे गए अनेक हिंदी साहित्यकारों के लेखों का उन्होंने अपने व्याख्यान में ज़िक्र किया। प्रश्नोत्तरी सत्र में विद्यार्थियों के जिज्ञासापूर्ण प्रश्नों के उत्तर देते हुए प्रो. अपूर्वानंद ने कहा प्रत्येक साहित्य का यही उद्देश्य है कि वह मनुष्य को मनुष्य होने का एहसास दिला सके। प्रश्नोत्तरी सत्र का संयोजन विभाग के अध्यापक डॉ. नौशाद द्वारा किया गया।
इससे पहले हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रामेश्वर राय ने प्रो अपूर्वानंद का स्वागत और विषय प्रवर्तन किया। उन्होंने प्रो. अपूर्वानंद की सद्य प्रकाशित पुस्तक "यह प्रेमचंद हैं" का उल्लेख कर बताया कि साधारण पाठकों को ध्यान में रखकर प्रेमचंद के महत्त्व की पुनर्स्थापना करने वाली यह पहली आलोचना पुस्तक है। विभाग के वरिष्ठ अध्यापक डॉ. विमलेन्दु तीर्थंकर ने प्रो अपूर्वानंद का परिचय दिया। हिंदी साहित्य सभा के परामर्शदाता डॉ. पल्लव ने सभा के इतिहास और गतिविधियों का परिचय दिया। उन्होंने कहा कि नयी पीढ़ी को साहित्य की विरासत से जोड़कर संवेदनशील पाठक और नागरिक बनाना ही सभा का उद्देश्य है। आयोजन में विभाग के डॉ. अभय रंजन, डॉ. हरींद्र कुमार, डॉ. रचना सिंह सहित दूर-दराज़ के अनेक लेखक-पाठक और विद्यार्थी-शोधार्थी भी शामिल हुए। वेबिनार का संयोजन डॉ. धर्मेंद्र प्रताप सिंह ने किया।
— प्रस्तुति
दिशा ग्रोवर
हिंदी साहित्य सभा, हिंदूकॉलेज,
दिल्ली विश्विद्यालय, दिल्ली- 110007
कोरोनाकाल की क़ैद में सौरभ दम्पती ने रची तीन पुस्तकें
(डॉ. सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है, एक दोहाकार के रूप में जहां उनकी दोहा सतसई ‘तितली है का खामोश’ के अलावा हजारों दोहे प्रकाशित हो चुके हैं, वह दैनिक स्तंभकार के रूप में राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक विषयों संपादकीय पृष्ठों पर पर प्रमुखता से प्रकाशित हो रहे हैं। )
कोरोनाकाल की क़ैद ने उन्हें राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर स्तंभ लेखन के लिए प्रेरित किया, जिसमें उनकी पत्नी प्रियंका तथा परिजनों का बहुमुखी योगदान रहा। दोहा संग्रह तितली है खामोश, व्यंग्य आंध्या की माख़ी राम उड़ावै और निबंध नए पंख डॉ. सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ की कोरोना काल में रची नयी कृतियाँ हैं जिनके अंश आये दिन देश-विदेश की पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। माता कौशल्या तथा पिता रामकुमार के आदर्शों से प्रेरित होकर रचनात्मक लेखन में पदार्पित हुए डॉ. सौरभ मानते कि भले ही वे कविताएँ आदि लिखते रहे हैं, किंतु साहित्य में दोहा ही उनकी प्रिय विधा रही है। आलेख, निबंध तथा फ़ीचर लेखन उनकी अभिव्यक्ति के अन्य प्रमुख रूप हैं
करीब डेढ़ दशक पहले हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड, भिवानी ने विद्यार्थियों तथा शिक्षकों के दो वर्गों में काव्य पाठ तथा स्लोगन लेखन प्रतियोगिता के प्रदेशभर से चयनित प्रतिनिधियों के फ़ाइनल मुक़ाबले में राज्य कवि उदयभानु ‘हंस’ के हाथों आशीर्वाद स्वरूप सांत्वना पुरस्कार से अलंकृत एक छात्र आज भारत के प्रमुख अख़बारों में नियमित लेखन से समाज को एक सृजनात्मक दृष्टिकोण देने के लिए तत्त्पर है।
डॉ. सत्यवान सौरभ एवं प्रियंका सौरभ आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है, एक दोहाकार के रूप में जहाँ उनकी दोहा सतसई ‘तितली है का खामोश’ के अलावा हज़ारों दोहे प्रकाशित हो चुके हैं, वह दैनिक स्तंभकार के रूप में राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में समसामयिक विषयों संपादकीय पृष्ठों पर पर प्रमुखता से प्रकाशित हो रहे हैं। लेखन की रुचि-अभिरुचि से जुड़ी अर्धांगिनी प्रियंका के जीवन में आने के बाद उनकी लेखकीय साधना व प्रतिभा निरंतर नई धार मिली है।
आजकल इस सौरभ दिव्य-दंपति की लेखनी का समसामयिकी पर दैनिक लेखन नई पीढ़ी के लिए प्रेरणापुंज है। प्रमुख राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं के अलावा इनके स्तंभ अंग्रेज़ी तथा हिंदी भाषाओं में करीब चार हज़ार वेबपोर्टल न्यूज़पेपर्स में प्रतिदिन देश और दुनिया में प्रकाशित हो रहे हैं। इससे दोनों की चिंतनशीलता, लेखकीय दक्षता तथा नियमितता के प्रति समर्पण व साधना का ही प्रतिफल कहा जाएगा कि सामाजिक व सांस्कृतिक पहलुओं पर केंद्रित राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बहुआयामी लेखन मौलिक सूझबूझ के साथ हो रहा है।
हरियाणा प्रदेश के लिए भी यह गर्व का विषय है कि एक गाँव से प्रदेश, देश व दुनिया को चिंतक व विचारक की दृष्टि से देखा जा रहा है। जहाँ डॉ. सत्यवान एक रिसर्च ऑथर हैं, वहीं परास्नातक कर चुकी मेधावी प्रियंका आजकल शोध की तैयारी में हैं। एक ओर जहाँ यह जोड़ी विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयारी एवं अध्यापन में जुटी है, वहीं वे दोनों अपने नवाचारी प्रकल्प आरके फ़ीचर्स के माध्यम से स्तंभ लेखन में निरंतर नए आयाम रचते जा रहे हैं।
एक सवाल के जवाब में डॉ. सौरभ बताते हैं कि लिखते तो वे बचपन से ही रहे हैं, किंतु कोरोना काल की क़ैद ने उन्हें राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर स्तंभ लेखन के लिए प्रेरित किया, जिसमें प्रियंका तथा परिजनों का बहुमुखी योगदान रहा। माता कौशल्या तथा पिता रामकुमार के आदर्शों से प्रेरित होकर रचनात्मक लेखन में पदार्पित हुए डॉ. सौरभ मानते कि भले ही वे कविताएँ आदि लिखते रहे हैं, किंतु साहित्य में दोहा ही उनकी प्रिय विधा रही है। आलेख, निबंध तथा फ़ीचर लेखन उनकी अभिव्यक्ति के अन्य प्रमुख रूप हैं।
साहित्य एवं स्तंभ लेखन के लिए हरियाणा से आईपीएस मनुमुक्त मानव पुरस्कार, उत्तर प्रदेश की राष्ट्रभाषा रत्न पुरस्कार, साहित्य साधक सम्मान के अलावा हिसार के प्रेरणा पुरस्कार, अखिल भारतीय साहित्य परिषद् की भिवानी शाखा तथा आईपीएस मानव मुक्त मानव पुरस्कार से अलंकृत डॉ. सौरभ कम उम्र में परिपक्व लेखन से विशिष्ट पहचान बना चुके हैं। आकाशवाणी दूरदर्शन तथा इलेक्ट्रॉनिक चैनल्स पर पैनलिस्ट के तौर पर भी उनकी मौलिकता प्रेरक रही है। युवाओं के नाम अपने संदेश में वे कहते हैं कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से निष्पक्ष मूल्यांकन करते हुए रचनात्मकता से क्षेत्र विशेष में कार्य करें आपको सफलता अवश्य मिलेगी।
— मनोज हरियाणवी
आगे पढ़ें'पर्यावरण' विषयक हाइकु संगोष्ठी
'हाइकु गंगा' व्हाट्सएप समूह के तत्त्वावधान में दिनांक 27 जून 2021 को आज की ज्वलंत समस्या 'पर्यावरण' विषय पर आनॅलाइन हाइकु संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी पर्यावरण के विविध पक्षों यथा – जल संरक्षण, जल शुद्धिकरण, वायु-प्रदूषण से बचाव, ध्वनि-प्रदूषण की समस्या व समाधान तथा अग्नि व पृथ्वी की महत्ता पर केन्द्रित थी। देश के प्रसिद्ध हाइकुकारों ने न केवल दूषित होते पर्यावरण पर चिंता व्यक्त की बल्कि समाधान भी प्रस्तुत किये। प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कृति होने के कारण तथा विवेकशील प्राणी होने के नाते मनुष्य ही पर्यावरण की शुद्धता एवं प्रकृति संरक्षण पर चिंतन करते हुए निदान खोज सकता है। कटु सच्चाई यह भी है कि मनुष्य ने ही पर्यावरण को सबसे अधिक नुक़्सान पहुँचाया है, इसलिए यह मनुष्य का दायित्त्व भी है कि वह पर्यावरण को दूषित होने से बचाये। इन्हीं विचारों के आलोक में डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने संगोष्ठी का संयोजन किया।
माँ वीणा पाणि के श्री चरणों में नमन करते हुए श्री निहाल चन्द्र शिवहरे जी ने संगोष्ठी के शुभारम्भ में सभी का आह्वान किया कि हम सब प्रतिवर्ष एक नीम का पेड़ लगायें। वास्तव में हमारी छोटी-छोटी कोशिशें एकाकार होकर संपूर्ण समाज व मानवता के लिए बड़ी हितकारी हो सकती हैं।
सर्वप्रथम मुख्य अतिथि डॉ. सुषमा सिंह जी ने अपने उद्बोधन में कहा, "पर्यावरण असंतुलन प्राकृतिक आपदाओं का कारण है, जब ये विध्वंसक रूप दिखाते हैं तब मनुष्य के वश में कुछ नहीं रहता। समय रहते हमें सचेत रहने की आवश्यकता है।"
विशिष्ट अतिथि इन्दिरा किसलय जी ने अपने महत्त्वपूर्ण वक्तव्य मे कहा, "पर्यावरण की क़ीमत पर हम विकास की अंधी सुरंग में जा रहे हैं जो विनाश के मुहाने पर ख़त्म होती है। हमें चेतना होगा अन्यथा प्रकृति हमें कभी माफ़ नहीं करेगी। 'नैसर्गिक जीवन शैली’ ही एकमात्र विकल्प है।" दूसरी विशिष्ट अतिथि पुष्पा सिंघी जी ने अति महात्त्वाकांक्षा तथा जागरुकता के अभाव को पर्यावरण प्रदूषण का कारण माना।
अतिथियों के उद्बोधन के पश्चात हाइकु पाठ की शृंखला में सर्वप्रथम अंजू निगम जी ने हाइकु प्रस्तुत किये। उन्होंने अपने हाइकु में वनों के कटने से जल-प्लावन की समस्या को रेखांकित करते हुए सावधान किया– कटे जंगल/बढ़े जल प्लावन/ नहीं मंगल। डॉ. नीना छिब्बर जी ने पानी, धरा व जंगल को त्रिदेव की उपाधि प्रदान करते हुए इनके संरक्षण पर बल दिया– पर्यावरण/पानी, धरा, जंगल/बने त्रिदेव। डॉ. ए.पी. शाक्य जी ने मानव की अतिभौतिकतावादी प्रवृत्ति के कारण बढ़ते प्रदूषण की समस्या को उठाते हुए समाधान भी प्रस्तुत किया– ये प्रदूषण/बन जाता गरल/बनें सरल। डॉ. सुभाषिनी शर्मा जी ने जल संरक्षण पर बल देते हुए वृक्षारोपण का महत्त्व बताया– बो दीं उम्मीदें/आशा के आँगन में/ साँसें उगेंगी। डॉ. सुरंगमा यादव ने मानव की दोहरी मानसिकता पर व्यंग्य किया– ए.सी. में बैठ/प्रकृति प्रेम पर/ लिखते लेख। डॉ. कल्पना दुबे जी ने सचेत किया कि जल व पृथ्वी से ही हमारा अस्तित्व है– जल-जमीन/बचाया अगर तो/रहेंगे हम। डॉ. सुषमा सिंह जी ने भी आगाह किया, यदि पर्यावरण की शुद्धता पर अभी भी हमने ध्यान नहीं दिया तो प्रलय अवश्यंभावी है– एक प्रलय /खड़ी है मुँह बाए/हर दिशा में। कार्यक्रम की संयोजिका व हाइकु मर्मज्ञ डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने सुंदर भाव प्रधान हाइकु प्रस्तुत किये। विवेकशील प्राणी मानव के द्वारा पर्यावरण प्रदूषित किया जाना खेद की बात है। वे कहती हैं– नर प्रबुद्ध/फिर भी कर देता/जग अशुद्ध। बढ़ते प्रदूषण के कारण मनुष्य नाना बीमारियों से ग्रसित हो रहा है। हरे-भरे वनों को काटकर हम कंक्रीट के वन उगाते जा रहे हैं, इसी संदर्भ में पुष्पा सिंघी जी ने कहा– कंक्रीट वन/विषैला पानी-हवा/मेज़ पे दवा। इन्दिरा किसलय जी मानव की अति महत्त्वाकांक्षा पर व्यंग्य करते कहती हैं– चाँद पे बस्ती/बसा लेना बाद में/धरा बचा लो। ध्वनि प्रदूषण भी आज एक गंभीर समस्या बनता जा रहा है। वर्षा अग्रवाल जी ने सत्य ही कहा– ध्वनि प्रदूषण/श्रवण शक्ति चोर/हैं चहुँओर। बढ़े वाहन तथा चिमनियों का धुआँ हवा में ज़हर घोल रहे हैं। हम व्यक्तिगत प्रयासों से इसमें कमी ला सकते हैं। साधना वेद जी ने इसीलिए कहा– दोस्ती निभाएँ/शाला या कार्यालय/साथ में जाएँ। डॉ. सरस दरबारी जी ने देश में लाकॅडाउन से पूर्व तथा लाकॅडाउन की अवधि में पर्यावरण की स्थिति का आंकलन प्रस्तुत किया– उज्ज्वल नभ/चिमनियाँ सुषुप्त/ वायु है शुद्ध। प्रतिमा प्रधान जी ने भावी पीढ़ी के लिए चिंता व्यक्त की– हरे ख़तम/रंग बचे हैं काले/बच्चों खातिर।
हाइकु पाठ को अल्प विराम देते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष डॉ. शैलेष गुप्त वीर जी का उदबोधन सुनने का अवसर मिला। उन्होंने कहा, "पर्यावरण हमारे जीवन के प्रत्येक क्षण और प्रकृति के प्रत्येक कण में उपस्थित है। हमें इसके महत्त्व को समझना होगा। पर्यावरण के प्रति मनुष्य आदिकाल से ही चेतनायुक्त था। यही कारण है कि मनुष्य ने जल, अग्नि, पवन, पृथ्वी, अन्न आदि सभी में देवत्व के दर्शन किये और उनकी पूजा की।" उद्बोधन के पश्चात अपने हाइकु के माध्यम से उन्होंने संदेश दिया– जल के साथ/जिये कल की पीढ़ी/रोप दो पौधे। निहाल चन्द्र शिवहरे जी ने ओज़ोन पर्त के क्षरण पर चिंता व्यक्त की– गहनतम/चिमनियों का धुआँ/ओज़ोन पर्त।
संगोष्ठी की समापन बेला में डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने सभी के प्रति आभार व्यक्त किया तथा पर्यावरण संरक्षण का संकल्प भी दिलाया।
प्रस्तुति: डॉ. सुरंगमा यादव
आगे पढ़ेंसुंदर चित्रकारी तथा पौधारोपण के माध्यम से ठाकुरद्वारा स्कूल के बच्चों ने दिया पर्यावरण सुरक्षा का सुंदर संदेश
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश
राजकीय उच्च विद्यालय ठाकुरद्वारा में मनाया गया ऑनलाइन पर्यावरण दिवस। बच्चों ने पर्यावरण सुरक्षा संबंधी संदेश देने के लिए विभिन्न तरह की गतिविधियाँ कीं, जैसे– सुंदर-सुंदर चित्र बनाये ,पौधारोपण किया, स्लोगन बनाए, पर्यावरण सुरक्षा संबंधी कविताओं का गान किया। भाषा अध्यापक राजीव डोगरा ने कहा पर्यावरण दिवस मनाने का तात्पर्य बच्चों को पर्यावरण के साथ जोड़ना है तथा और इसी बहाने बच्चों के अंदर के कलात्मक गुणों को बाहर निकालना ही मुख्य लक्ष्य है। मुख्याध्यापक प्रवेश शर्मा ने बच्चों को पर्यावरण सुरक्षा संबंधी संदेश दिया तथा कहा कि ठाकुरद्वारा स्कूल में हर दिवस बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है ताकि बच्चों की शिक्षा के साथ-साथ उनके कलात्मक गुणों का भी विकास किया जा सके। कार्यक्रम को सफल बनाने में सभी अध्यापकों जैसे अमीचंद, सुनील कुमार, ज्योति प्रकाश, रविंद्र कुमार, राकेश कुमार, मैडम प्रवीण लता का सहयोग रहा।
राजीव डोगरा 'विमल'
युवा कवि एवं लेखक
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
9876777233
rajivdogra1@gmail.com
राजकीय उच्च विद्यालय ठाकुरद्वारा ने करवाई कोरोना पेंटिंग प्रतियोगिता
कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश—
राजकीय उच्च विद्यालय ठाकुरद्वारा द्वारा बच्चों को कोरोना के प्रति जागृत करने के लिए कोरोना पेंटिंग प्रतियोगिता करवाई गई। जिसमें विभिन्न कक्षाओं के बच्चों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया और अपनी कला का प्रदर्शन किया। जिनमें से आकृति, दीक्षा, कशिश, शिनम, राशि, सिया, सोनाली, मेहक, रोहित, हर्ष, पीयूष, सारांश, प्रथम, स्मृति, सुहानी, कामना, गौरव, पूजा इत्यादि बच्चों ने बहुत सुंदर पेंटिंग बनाई।
भाषा अध्यापक राजीव डोगरा ने कहा करोना प्रतियोगिता करवाने का अर्थ सिर्फ़ प्रतियोगिता ही नहीं है बल्कि इसके द्वारा बच्चों को कोरोना से संबंधित जानकारी देना है जिससे बच्चे सुरक्षित रह सकें। मुख्य अध्यापक प्रवेश शर्मा ने बच्चों को संदेश दिया कि जब तक स्कूल नहीं खुलते तब तक घर पर रहें और सुरक्षित रहें और साथ ही अपनी पढ़ाई ऑनलाइन से करते रहें।
राजीव डोगरा 'विमल'
युवा कवि लेखक
(भाषा अध्यापक)
गवर्नमेंट हाई स्कूल ठाकुरद्वारा
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश
9876777233
rajivdogra1@gmail.com
अभिनन्दन! अभिनन्दन!
श्रेष्ठ साहित्यकार, संवेदनशील व्यक्तित्त्व एवं ऊर्जावान एवं चंदन चर्चित चरित्र के स्वामी परम सम्माननीय डॉ. राजकुमार आचार्य जी के पाणि पल्लवों में सादर अर्पित अभिनंदन
मंज़िलों पर पहुँचना भी खड़े रहना भी,
कितना मुश्किल है बड़े होकर बड़े रहना भी।
तेज़ आँधी में जलना अपने दम पर सदा,
कितना मुश्किल है चिराग़ों का खड़े रहना भी।
हे अक्षय कीर्ति के उज्ज्वल पुञ्ज –
आज आपका यह अभिनंदन, वंदन और अर्चन व आराधना हमारे अंतस की असीम गहराई से उपजी अद्भुत भावधारा की एक विनम्र अभिव्यक्ति है। ब्रह्मलीन पंडित शंकर लाल जी आचार्य एवं ममतामयी मातुश्री श्रीमती रामवती आचार्य की पावन कुक्षि से 22 जून 1961 को जन्म लेकर आपने अपनी ऊर्जावान व सृजनशील उत्कृष्ट जीवन शैली से सभी को प्रभावित किया है और अपने शानदार व्यक्तित्व के द्वारा "कुलं पवित्रं, जननी कृतार्थं, वसुंधरा भाग्यवती च तेन" की उस पवित्र उक्ति को सर्वार्थ चरितार्थ किया है। आप एक जीवंत अक्षर पुरुष की तरह वर्षों से साहित्य-सृजन की सरस अभिव्यक्ति में निमग्न हैं। हमें गर्व है कि विगत चार दशकों से, शिक्षा, आध्यात्म, करुणा के संवेदनशील पर सवार आपश्री का अद्भुत, प्रांजल व्यक्तित्व, ‘संवेदनात्मक युग चेतन बोध’ का, मंजुल मिश्रण सभी को आकर्षित कर रहा है।
हे यशस्वी विभूति –
राष्ट्रीय वैचारिक चिंतन, लोक संस्कृति और भाषा के उन्नायक आपश्री शाश्वत जीवन मूल्यों के साथ आपने एम.कॉम.; पीएच.डी. एवं दिल्ली विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा किया,यूजीसी से स्वीकृत दो रिसर्च प्रोजेक्ट, 20 शोध पत्रों का प्रकाशन; आठ शोधकर्ताओं को पीएच.डी. अवार्ड;100 से अधिक राष्ट्रीय एवं 22 अंतरराष्ट्रीय सेमिनारों का मार्गदर्शन, सिंगापुर और मलेशिया के विश्वविद्यालयों में प्रवर्तक के रूप में प्रवास कर देश को गौरवान्वित किया है।
1984 से सतत अध्यापन में लीन रहकर आपने वाणिज्य विषय की आठ पुस्तकों का लेखन, ६ सन्दर्भ पुस्तकों के साथ तीन सामाजिक सरोकारों की पुस्तकों का लेखन आपकी स्वस्तिमयी लेखनी से हुआ। 26 वर्ष तक राष्ट्रीय सेवा योजना के ज़िला संघटक के रूप में आप कई प्रतिष्ठित पुरस्कारों से सम्मानित हुए हैं।
आपका उन्मन व्यक्तित्व कई पदों को सुशोभित कर चुका है। आप अधिष्ठाता वाणिज्य एवं कार्य परिषद रानी दुर्गावती वि वि जबलपुर, विद्याभारती सरस्वती शिक्षा परिषद महाकौशल प्रान्त, महात्मागांधी स्नातकोत्तर महाविद्यालय करेली के प्राचार्य भी रहे हैं। वर्तमान में इस नर्मदा भूमि के रत्न को मध्यप्रदेश के राज्यपाल ने अवधेशप्रताप वि वि रीवा का कुलपति नियुक्त कर इस महामयी योग्यता को सम्मानित किया है।
हे शिक्षा के सारथी –
वर्तमान सूचना प्रौद्योगिकी की नवीन आधुनिक युग में आपश्री अपने प्रबुद्ध, दूरदृष्टि पूर्ण निर्देशन में अनेक जिज्ञासु विद्यार्थियों के लिए अनुसंधान एवं अध्यापन के क्षेत्र में अनंत अवसर प्रदान कर रहे हैं; वह श्लाघनीय है। एक आतंकहीन, बलवान, न्याय संगत समृद्धिवान, लोकसंस्कारित समाज की रचना में आप श्री के लिए अपनी वाणी का महत्वपूर्ण स्थान है। वक़्त के साथ चलते हुए, अपने परिवेश, समाज, संस्कृति में न्यायप्रियता, तार्किक एवं विश्लेषणात्मक बौद्धिक कौशल, विशिष्ठ अभिव्यक्ति, जन-जन से गहन सम्पर्क और किसी मुद्दे पर परत दर परत तक सूक्ष्मावलोकनोपरांत न्यायोचित तार्किक विवेचन करते हुए निर्भीक होकर श्रेष्ठ निर्णय देने जैसी कई विशिष्ठताएँ आपश्री जैसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी को माता सरस्वती ने प्रदान की हैं।
हे नर्मदा भूमि के रत्न –
आप जैसी विभूति के उज्ज्वल मुखारविंद से इतिहास का दर्पण निखरता रहता है। जिस प्रकार सूर्य के प्रकाश, चंद्रमा की शीतलता एवं जल के रंग का अनुवाद संभव नहीं है, आज उसी प्रकार आपके यशस्वी ऊर्जावान मंगलकारी जीवन का गुणानुवाद करने में हमें शब्दों का नितांत दारिद्रय अनुभव हो रहा है।
आप देश की अनेकानेक साहित्यिक एवं सामाजिक संस्थाओें व अकादमियों से पुरस्कार व सम्मान से विभूषित व निरन्तर कीर्ति के पंखों पर सवार हैं।
धन्य है आपकी लेखनी, आपकी मेधावी वाणी और आपका विलक्षण, प्रतिभावान व्यक्तित्व! आज हृदय के कोटि-कोटि एवं राशि-राशि उल्लास से हम सभी आपका अभिनंदन करते हैं।
ईश्वर से यही प्रार्थना है कि वह असीम वैभव, ऐश्वर्य, उन्नति, प्रगति, स्वास्थ्य, प्रसिद्धि और समृद्धि के साथ आजीवन आपको एक सुमंगल जीवन पथ पर गतिमान रखे।
आपका अभिनन्दन-हमारा सौभाग्य
अभिनंदन आयोजन समिति गाडरवारा
फाल्गुन कृष्ण अष्टमी
शनिवार
6 मार्च 2021
स्थल: सभाकक्ष
महाराणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय
गाडरवारा
(शब्द सुमन – डॉ. सुशील शर्मा)
साहित्य सरोकारों और सम्वेदनाओं को आवाज़ देता है- आशुतोष राना
डॉ. सुशील शर्मा की चार पुस्तकें विमोचित
गाडरवारा स्थानीय महाराणा प्रताप वार्ड शांति नगर में परम पूज्य पंडित देव प्रभाकर शास्त्री दद्दा जी की कृपा से नगर के साहित्यकार डॉ. सुशील शर्मा की चार कृतियाँ मन वीणा, स्वप्न झरे फूल से, शब्दनाद, गुलटटा विलटटा का विमोचन किया गया। प्रथम अतिथियों द्वारा माँ सरस्वती के तैल चित्र के समक्ष पूजा अर्चना की गई। इस अवसर फ़िल्म स्टार आशुतोष राणा ने अपने संबोधन में कहा कि साहित्य और शब्दकोश में अंतर होता है। शब्दकोश शब्दों के अर्थ बताता है, जबकि साहित्य मनोभावों को प्रगट करता है। कार्यक्रम के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार, पत्रकार, कुशलेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि डॉ. सुशील शर्मा की रचनाओं में वेदना और संवेदना दोनों दिखाई देती हैं। उन्होंने जन मानस के सांस्कृतिक विरासत और परम्पराओं से दूर होने पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि आज घरों से तुलसी कोट गायब हो रहे हैं और उनकी जगह नागफनी के गमलों ने ले ली है। तेंदूखेड़ा विधानसभा के विधायक संजय शर्मा ने इस अवसर पर बोलते हुए कहा जिस तरह आशुतोष राणा ने इस ज़िले का नाम पूरे देश में रौशन किया है, उसी तरह डॉ. सुशील शर्मा की रचनाएँ साहित्य में अपना मुक़ाम बनाएँ। शिक्षक नगेन्द्र त्रिपाठी ने चारों पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की। गाडरवारा की पूर्व विधायक साधना स्थापक ने कहा कि डॉ. सुशील शर्मा ने साहित्य का जो दीपक जलाया है उसका उजियारा समाज के कोने-कोने में फैले। साहित्यकार डॉ. सुशील शर्मा ने कहा कि उन्होंने साहित्य के माध्यम से उन आवाज़ों को लिखा है जो दबी हुई हैं। मैंने प्रयास किया है मेरी लेखनी आदमी के मन को स्पर्श करे। उन्होंने कहा कि इतने बड़े फ़िल्म अभिनेता आशुतोष राणा ने मुझे जो सम्मान दिया मैं ज़िंदगी भर नहीं भूल सकता। कृतियों के प्रकाशक राजू अरोड़ा ने कहा की दद्दा जी की असीम कृपा से मुझे गुरु भाई के रूप में आशुतोष राणा मिले, राणा जी के साहित्य रामराज्य ने पूरे देश में अलग मुक़ाम बनाया है। इस कार्यक्रम की जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए कपिल साहू ने कहा की राणा का साहित्य से काफ़ी लगाव है; उनके सत्संग से हम सभी को प्रेरणा मिलती है। कार्यक्रम में जबलपुर एसटीएफ पुलिस अधीक्षक नीरज सोनी भी उपस्थित थे। मंचासीन अतिथियों का राहुल मिश्रा, अनुपम ढिमोले, राजेश गुप्ता, प्रशांत कौरव, महेश अध्रुज आदि ने स्वागत किया। कृतियों के विमोचन कार्यक्रम के दूसरे चरण में काव्य पाठ की प्रस्तुति की गई, जिसमें वरिष्ठ साहित्यकार कुशलेंद्र श्रीवास्तव ने अपनी व्यंग्य रचना, फ़िल्म स्टार आशुतोष राणा ने कली और कल्की के संवाद से जुड़ी अपनी प्रसिद्ध कविता का पाठ किया। डॉ. सुशील शर्मा ने अपने गीतों के माध्यम से अभिव्यक्ति दी। इस अवसर पर कवि विजय नामदेव, वेणी शंकर पटेल, पोषराज मेहरा, प्रशांत कौरव, मुकेश ठाकुर, एनपी साहू ने भी काव्य पाठ किया कार्यक्रम के पूर्व क्षेत्रीय विधायक श्रीमती सुनीता पटेल ने आशुतोष राणा के निवास स्थान पहुँचकर उनसे सौजन्य भेंट की एवम डॉ सुशील शर्मा को बधाई दी साथ ही उपस्थित साहित्यकारों की लेखनी की प्रशंसा की। आदर्श स्कूल परिवार एवं मुकेश बसेड़िया द्वारा डॉक्टर सुशील शर्मा का शाल, श्रीफल एवं माँ नर्मदा का तैल चित्र भेंट कर सम्मान किया गया। देर रात तक काव्य संगोष्ठी का भरपूर आनंद उपस्थित जनों ने लिया अंत में आभार प्रदर्शन कीर्तिराज लूनावत ने किया।
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की दो पुस्तकें लोकार्पित
हैदराबाद, 19.2.2021
यहाँ दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के खैरताबाद स्थित परिसर में विगत 11 फरवरी को डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा की दो पुस्तकों ‘तेलुगु साहित्य : एक अंतर्यात्रा’ और ‘कुछ कोलाहल, कुछ सन्नाटा’ का लोकार्पण संपन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता करते हुए सभा के सचिव श्री जी. सेल्वराजन ने कहा कि एक तेलुगुभाषी लेखिका के रूप में डॉ. नीरजा की उपलब्धियों पर सभा गर्व का अनुभव करती है।
‘तेलुगु साहित्य : एक अंतर्यात्रा’ – आलोचना कृति |
दोनों पुस्तकों का लोकार्पण लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के कुलपति और केंद्रीय हिंदी निदेशालय के निदेशक डॉ. रमेश कुमार पांडेय ने किया। उन्होंने लेखिका को बधाई देते हुए कहा कि हिंदीतरभाषी हिंदी सेवियों ने ही हिंदी को भारत की राष्ट्रभाषा बनाया है। उन्होंने आगे कहा कि डॉ. नीरजा की ये दोनों पुस्तकें हिंदी और तेलुगु भाषा-समाजों के बीच सेतु को सुदृढ़ करने वाली हैं।
‘कुछ कोलाहल, कुछ सन्नाटा’ – काव्य कृति |
विशेष अतिथि के रूप में पधारे केंद्रीय हिंदी निदेशालय के उपनिदेशक डॉ. राकेश कुमार शर्मा ने यह जानकारी दी कि विमोचित पुस्तकों में सम्मिलित ‘तेलुगु साहित्य : एक अंतर्यात्रा’ के लिए लेखिका को केंद्रीय हिंदी निदेशालय से एक लाख रुपए का ‘हिंदीतरभाषी हिंदी लेखक पुरस्कार’ भी प्राप्त हुआ है। उन्होंने इस पुस्तक में शामिल तेलुगु भाषा और साहित्य विषयक सामग्री को भारतीय साहित्य के विद्यार्थियों के लिए अत्यंत उपयोगी बताया।
लोकार्पित पुस्तकों की समीक्षा करते हुए प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने कहा कि ‘कुछ कोलाहल, कुछ सन्नाटा’ में जहाँ कवयित्री की हिंदी में रचित मौलिक कविताएँ शामिल हैं, वहीं उनके द्वारा किया गया हिंदी, तमिल और तेलुगु के कुछ प्रसिद्ध रचनाकारों की कविताओं का अनुवाद भी सम्मिलित है। उन्होंने बताया कि ‘तेलुगु साहित्य : एक अंतर्यात्रा’ में जहाँ तेलुगु भाषा और साहित्य के उदय से लेकर इक्कीसवीं सदी तक के विकास को अलग-अलग निबंधों के माध्यम से दर्शाया गया है, वहीं इसमें सम्मिलित 76 तेलुगु साहित्यकारों का ‘परिचय कोश’ इसकी उपादेयता को और भी बढ़ा देता है।
डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा का अभिनंदन |
लेखिका का परिचय देते हुए शिक्षा महाविद्यालय की प्राध्यापक डॉ. के. चारुलता ने कहा कि डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा बहुभाषाविद लेखिका हैं और उन्होंने साहित्यिक मासिक पत्रिका ‘स्रवंति’ के सह-संपादक के रूप में साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान बनाई है।
इस अवसर पर दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा और शिक्षा महाविद्यालय, हैदराबाद की ओर से लेखिका का भावभीना अभिनंदन किया गया।
• वुल्ली श्रीसाहिती
304, मेधा टावर्स, राधाकृष्ण नगरा, अत्तापुर, हैदराबाद – 500004
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रिश्तों की विविधता और बाज़ारवाद पर आधारित हैः ’पतियों का एक्सचेंज ऑफर’
सुदर्शन सोनी के चौथे व्यंग्य संकलन ‘पतियों का एक्सचेंज ऑफर’ का विमोचन संपन्न
व्यंग्यकार सुदर्शन सोनी की आठवीं पुस्तक चौथे व्यंग्य संकलन के रूप में ’पतियों का एक्सचेंज ऑफर’ का स्वामी विवेकानन्द लायब्रेरी, भोपाल में विमोचन करते हुए श्री मनोज श्रीवास्तव अपर मुख्य सचिव पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग ने कहा कि प्रशासन के अनुभव और लेखक के अनुभव की आँच से तपकर कई उत्कृष्ट कवि और व्यंग्यकार निकलते हैं। सुदर्शन सोनी इनमें से एक हैं। श्री सोनी थीम आधारित व्यंग्य लिखते हैं जिनमें वे विकृति और विसंगितयों को प्याज के छिलकों की तरह उधेड़ते चले जाते हैं। प्रशासन की मर्यादा व विसंगतियों से उपजे संघर्ष से व्यंग्य व कविता का जन्म होता है। उन्होंने भावुक होकर कहा कि इस लायब्रेरी में आकर पुरानी यादें ताज़ा हो गयीं। इसी लायब्रेरी से किताबें इश्यू करवा-करवा कर मैंने संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा दी और आईएएस बना। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि मूर्धन्य साहित्यकार, चिंतक व कुलाधिपति रवीन्द्र टैगौर विश्वविद्यालय डॉक्टर संतोष चौबे ने कहा कि सुदर्शन के व्यंग्य मनोवैज्ञानिक तथ्यों से जुड़े हुए होते हैं। एक ही विषय पर केन्द्रित कर लिखना असल में पेंटिंग की विधा हैं। उनकी शैली शब्दों की पेन्टिंग बनाने की सी है। पुस्तक के कार्टूनों की उन्होंने प्रशंसा की। श्री सोनी के व्यंग्य बाज़ारवाद पर कड़े प्रहार करते हैं। ’पतियों का एक्सचेंज ऑफर’ से यदि एकाध व्यंग्य निकाल दिया जाये तो एक संपूर्ण पुस्तक है। उन्होने कहा श्री सोनी अपने व्यंग्यों को वर्गीकरण, मेनेजमेंट, आदि स्टाईल से व्यक्त करते हैं। हाँ उनकी कई रचनाओं में वाक्य बडे़-बडे़ होते हैं। इससे कई बार धार पर असर पड़ता है। अतः वाक्य छोटे होना चाहिये। ’मेड मेनेजमेंट’, ’बीबीआई’, ’पत्नी का पति भेदिया माड्यूल’ को उन्होंने अच्छी रचना बताया।
सुप्रसद्धि व्यंग्यकार डॉ. हरि जोशी ने कई उदाहरण देते हुए कहा कि व्यंग्य लेखन एक कठिन विधा है, जिसमें कई बार व्यंग्यकार को प्रशासनिक अथवा सामाजिक प्रताड़ना का शिकार भी होना पड़ता है। उन्होंने नव लेखकों को सृजनात्मकता के कई गुर दिए। उन्होंने कहा कि सुदर्शन सोनी में लिखने की जिजिविषा है, जो उन्हें बहुत आगे ले जाएगी। उनकी भाषा मर्यादित है। उनका नैरन्तर्य उन्हें काफी आगे ले जायेगा। वे एक ही विषय पर पूरा संकलन लिख कर एक तरह से एक नया प्रयोग कर रहे हैं। उनकी पिछली बहुचर्चित पुस्तक ’अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो’ भी इसी थीम पर लिखी गयी थी। व्यंग्यकार श्री प्रियदर्शी खैरा ने व्यंग्य साहित्य का विश्लेषण करते हुए श्री सोनी की किताब पर बीज वक्तव्य पढ़ा। उन्होंने कहा कि पुस्तक में युवाओं, प्रोढ़ व बुज़ुर्ग सभी श्रेणियों के दम्पतियों के व्यंग्य सम्मिलत हैं। अतः प्रत्येक पति-पत्नी को इसे पढ़ना चाहिये। उन्होंने जानकारी दी कि श्री सोनी का पिछला बहुचर्चित व्यंग्य संग्रह ’अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो’ ’इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्डस्’ में दर्ज हो चुका है। ’गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्डस्’ द्वारा भी इसे विश्व रिकार्ड की मान्यता दी गयी है। कार्यक्रम के प्रारम्भ में श्री सुदर्शन सोनी द्वारा अपनी सृजनात्मक यात्रा का संक्षिप्त विवरण देते हुये कहा कि लॉक डाऊन की अत्यन्त कठिन व विपरीत परिस्थितियों में पति-पत्नी के बीच के तनाव के लगातार आ रहे समाचार से मन में विचार आया कि ऐसी एक पुस्तक हो जो कि दम्पतियों के मध्य तनाव कम करने में सहायक हो। इससे इस पुस्तक का जन्म हुआ। श्री सोनी ने एक व्यंग्य ’पति की नीति निर्देशक तत्व दाता’ का पाठन किया। वहीं सुश्री सुभुति सोनी द्वारा पुस्तक के ही एक अन्य व्यंग्य ’वाके मिस्ट्री’ का वाचन कर दर्शकों की प्रशंसा अर्जित की। कार्यकम का संचालन कथाकार चंद्रभान ‘राही’ ने किया। आभार प्रदर्शन कुल सोनी द्वारा करते कहा कि पुस्तक निश्चित रूप से ख़रीद कर पढ़ने योग्य है।
प्रियदर्शी खैरा
अध्यक्ष, भोजपाल साहित्य संस्थान भोपाल
ऋषभदेव शर्मा की पुस्तक ‘साहित्य, संस्कृति और भाषा’ लोकार्पित
हैदराबाद, 19 जनवरी, 2021
आज यहाँ मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय स्थित दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में डॉ. ऋषभदेव शर्मा की सद्यः प्रकाशित आलोचना कृति ‘साहित्य, संस्कृति और भाषा’ को लोकार्पित किया गया। पुस्तक का लोकार्पण करते हुए निदेशक प्रो. अबुल कलाम ने कहा कि “भाषा और साहित्य दोनों का मूल आधार संस्कृति होती है। इस पुस्तक में इन तीनों के भीतरी रिश्ते की बखूबी पड़ताल और व्याख्या की गई है।“
डॉ. आफताब आलम बेग ने विमोचित पुस्तक में राष्ट्रीयता और समकालीन विमर्शों की उपस्थिति पर चर्चा की। डॉ. मोहम्मद नेहाल अफ़रोज़ ने भारतीय और तुलनात्मक साहित्य की विवेचना के क्षेत्र में लेखक के दृष्टिकोण की व्याख्या की, तो डॉ. अकमल खान ने प्रवासी साहित्य संबंधी अंशों का परिचय दिया। डॉ. इबरार खान ने पुस्तक में दक्षिण भारत की पत्रकारिता और आंध्र प्रदेश के हिंदी रचनाकारों पर केंद्रित शोधपत्रों पर अपने विचार प्रकट किए। डॉ. बी. एल. मीना ने हिंदी की बदलती चुनौतियों के संबंध में लेखक की विचारधारा पर प्रकाश डाला तथा डॉ. वाजदा इशरत ने लेखक के व्यक्तित्व और कृतित्व का परिचय दिया। अंत में डॉ. शर्मा ने सभी विद्वानों का धन्यवाद ज्ञापित किया।
प्रेषक:
डॉ. गुरमकोंडा नीरजा, सहसंपादक, स्रवंती (दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा, हैदराबाद)
“साहित्य संस्कृति और भाषा” का लोकार्पण करते हुए प्रो. अबुल कलाम (निदेशक, दूरस्थ शिक्षा निदेशालय, मानू, हैदराबाद)। साथ में, बाएँ से : प्रो. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. बी. एल मीना, डॉ. आफताब आलम बेग, डॉ. वाजदा इशरत, डॉ. मोहम्मद नेहाल अफ़रोज, डॉ. इबरार खान और डॉ. मोहम्मद अकमल खान। |
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सबके भीतर होती है कल्पना : प्रो हेमंत द्विवेदी
हिन्दू कॉलेज में वेबिनार
नई दिल्ली/उदयपुर—
कला और साहित्य दो भिन्न क्षेत्र नहीं हैं, बल्कि एक-दूसरे से गहरे स्तर तक जुड़े हुए हैं। ऐसी कोई भी महीन या बारीक़ रेखा नहीं है,जो इन्हें अलगाती हो। कला और साहित्य की अंतःसूत्रता को समझने के लिए, दोनों का सूक्ष्म निरीक्षण बेहद ज़रूरी है। गहरी अंतर्दृष्टि के संभव होने पर ही कला और साहित्य का वास्तविक रसास्वादन करने की अर्हता अर्जित की जा सकती है। सुविख्यात चित्रकार और उदयपुर के मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के मानविकी संकाय के अध्यक्ष प्रो. हेमंत द्विवेदी ने उक्त विचार हिन्दू कॉलेज की हिंदी साहित्य सभा द्वारा आयोजित एक वेबिनार में व्यक्त किए। प्रो. द्विवेदी ने 'कला और साहित्य का अंतर्संबंध' विषय पर कहा कि कल्पना कुछ विशेष लोगों को प्राप्त होने वाली प्राकृतिक शक्ति नहीं है, बल्कि यह सबके भीतर होती है। इस शक्ति के लिए लिए भावक को निरंतर अभ्यासरत रहने की आवश्यकता होती है। निरंतर अभ्यास से अर्जित कल्पना से उपजी कला या साहित्य ही आस्वादकों को प्रभावित कर सकते हैं। प्रो. द्विवेदी ने अपने पसंद के रंगों और विषयों की चर्चा करते हुए कहा कि कलाकार अपने स्वभाव के अनुसार इन सबका चयन करता है जो हमेशा एक जैसा नहीं रह सकता। प्रो. द्विवेदी ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि कला वर्ग जहाँ साहित्य से गहरे स्तर पर जुड़ा है, वहीं पिछले कुछ दशकों से साहित्य वर्ग, कला के प्रति कुछ उदासीन सा रहा है। उन्होंने इस सम्बन्ध में अज्ञेय का उदाहरण देते हुए कहा कि उनके लिए कविता और कला दोनों एक साथ चिंतन के विषय थे। प्रो. द्विवेदी ने अज्ञेय की प्रसिद्ध पुस्तक भारतीय कला दृष्टि का भी उल्लेख किया और कहा कि साहित्य तथा कला से जुड़े सभी लोगों के लिए यह अनिवार्य पुस्तक है।
आयोजन के दूसरे भाग में प्रश्न काल का संयोजन विभाग के प्राध्यापक नौशाद अली और साहित्य सभा के संयोजक हर्ष उरमलिया ने किया। इससे पहले विभाग के प्रभारी डॉ. पल्लव ने हिंदी साहित्य सभा की गतिविधियों का परिचय दिया और कोरोना के दौरान भी सभा की सक्रियता के सम्बन्ध में अतिथियों को जानकारी दी। विभाग के प्राध्यापक डॉ. विमलेन्दु तीर्थंकर ने प्रो. द्विवेदी का परिचय देते हुए बताया कि हिन्दू कॉलेज की हिंदी नाट्य संस्था का लोगो डिज़ायन करने वाले वाले प्रो. द्विवेदी अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के चित्रकार हैं जिनकी अनेक एकल तथा सामूहिक प्रदर्शनियाँ विश्व की विख्यात कला-गैलेरियों में हो चुकी हैं। अंत में साहित्य सभा की सचिव दिशा ग्रोवर ने धन्यवाद ज्ञापन किया। वेबिनार में विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक डॉ. रामेश्वर राय, डॉ. रचना सिंह, डॉ. हरींद्र कुमार एवं दूसरे विश्वविद्यालयों के अध्यापक तथा बड़ी संख्या में विद्यार्थी एवं शोधार्थी मौजूद रहे।
सूरज सिंह
मीडिया प्रभारी
हिंदी साहित्य सभा, हिंदू कॉलेज
दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली
विश्वरंग 2020 - कैनेडा सत्र नवम्बर 07
रिपोर्ट- आशा बर्मन
कैनेडा के हिंदी-प्रेमियों के लिए 7 नवम्बर 2020 एक अविस्मरणीय दिन रहेगा। इसी दिन पहली बार कैनेडा में विश्व रंग कैनेडा 2020 का हिंदी उत्सव आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम के लिए हम लोग 'रबीन्द्रनाथ टैगोर विश्वविद्यालय' और उसके चांसलर डॉ संतोष चौबे जी के आभारी हैं। इस आयोजन में हिंदी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर बातचीत तथा प्रवासी भारतवासियों द्वारा अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम भी प्रस्तुत किये गये।
सर्वप्रथम डॉक्टर शैलजा सक्सेना ने सभी दर्शकों का स्वागत करते हुए हमारी काउंसलाध्यक्ष श्रीमती अपूर्वा श्रीवास्तव जी को सभा के उद्घाटन के लिए आमंत्रित किया। उनके कथनानुसार हिंदी में ही भारत को एक सूत्र में बाँधने की क्षमता है भारत की सांस्कृतिक विविधता और सुंदरता को बनाए रखने के लिए भारतीय भाषाओं को बढ़ावा देना बहुत ज़रूरी है।
इसलिये इस प्रकार के आयोजनों की आवश्यकता है। इसके पश्चात् श्रीमती मानोशी चटर्जी ने अपने सुमधुर स्वर में सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर वातावरण को गरिमामय बनाया। साथ ही लुई लेब्लांक जी ने सर्वशक्तिमान ईश्वर की प्रार्थना कर हमारे कार्यक्रम की सफलता की कामना की।
इसके बाद सुश्री करीना अलग ने एक कैनेडा के सम्बन्ध में एक वृत्तचित्र प्रस्तुत किया जिसमें यहाँ के सुन्दर प्राकृतिक वातावरण में कैनेडा की जीवन प्रणाली को दर्शाया गया था। सुश्री सिंधु नायर ने एक अत्यंत मनोहारी कत्थक नृत्य प्रस्तुत कर सबको मुग्ध कर दिया।
दूसरा सत्र था -'बिन पानी सब सून'। इसमें प्रोफ़ेसर डॉक्टर रोमिला वर्मा जी ने एक वृत्तचित्र के माध्यम से जीवन में जल की महत्ता तथा जल के अभाव व प्रदूषण की समस्या पर विचार किया और उन समस्याओं के समाधान की भी चर्चा की।
अपनी ज्ञानवर्धक वार्ता में उन्होंने बताया कि प्रकृति ने जिस जल को निःशुल्क दिया है, उसका उचित संरक्षण हमारा कर्तव्य है। अंत में, इस सत्र की दोनों प्रतिभागियों डॉक्टर रोमिला वर्मा तथा प्रभजोत जी ने स्वरचित कविताएँ भी पढ़ी जो अत्यंत मार्मिक थीं श्री संदीप कुमार जी ने सत्र का सुन्दर संचालन किया और वार्ता को सही दिशा और गति प्रदान की।
तीसरा सत्र था, ‘भारतवंशी प्रवासी लेखक’, जिसमें भारतीय मूल के कैनेडा साहित्यकारों ने भी कार्यक्रम की सुंदरता में चार चाँद लगाये।
इनमें पंजाबी, अँग्रेज़ी और गुजराती के लेखकों ने अपने साहित्यिक अवदान के बारे में दर्शकों को बताया। श्रीमती अंबिका शर्मा ने इस कार्यक्रम का बहुत सुंदर संचालन किया। सर्वप्रथम इसमें पंजाबी लेखिका श्रीमती सुरजीत कौर ने अपनी पंजाबी की कुछ कविताएँ पढ़ी और उन्होंने बताया कि किस प्रकार वे कई वर्षों से पंजाबी की संस्थाओं से जुड़ी हुई हैं। मयंक भट्ट जी ने कहा कि उन्होंने अँग्रेज़ी में उपन्यास और लघु कथाएँ लिखी है। गुजराती भाषा की लेखिका नीता शैलेश जी ने बताया कि उन्होंने गुजराती भाषा में कई नाटक तथा लघु कथाएँ लिखी हैं। वे गुजराती भाषा की अनुवादक भी रही हैं तथा गुजराती संस्था से जुड़ी हुई हैं।
कार्यक्रम का चौथा सत्र था, ’हमारी नींव- वरिष्ठ लेखक’। इस सत्र में कैनेडा के हिंदी विकास के संबंध में चर्चा की गई। इसमें आधारशिला के रूप में कैनेडा के तीन वरिष्ठ साहित्यकारों से साक्षात्कार किया गया जो 50 वर्षों से अधिक समय से हिंदी के प्रचार प्रसार कार्य में संलग्न रहे और उन्होंने एक ऐसी आधारभूमि तैयार की जिसके कारण आज यहाँ हिंदी इतनी विकसित अवस्था में है। ये वरिष्ठ साहित्यकार थे आचार्य श्रीनाथ प्रसाद द्विवेदी जी तथा डॉक्टर भारतेंदु जी, जिन्होंने विशद रूप से अपनी साहित्यिक यात्रा के संबंध में चर्चा की।
उनके साथ थीं श्रीमती अर्चना दीप्ति कुमार, जो भारत के एक अत्यंत प्रतिष्ठित साहित्यिक परिवार से हैं और यहाँ की एक प्रसिद्ध लेखिका हैं। उन्होंने छठे दशक में कैनेडा के परिवेश में बसने की चुनौतियों पर प्रकाश डाला। दीप्ति जी ने अपने काव्य पाठ से से श्रोताओं को मुग्ध कर दिया इस सत्र का सुचारू संचालन किया श्रीमती आशा बर्मन ने जो स्वयं पिछले 40 वर्षों से टोरंटो में हिंदी के कार्यकलापों से जुड़ी हैं और कवयित्री भी हैं।
आयोजन के अंतिम सत्र में दो नाटक प्रस्तुत किए गए। पहले नाटक ‘अश्वत्थामा’ में निमेष नानावती जी का अभिनय अत्यंत सराहनीय था और दूसरा नाटक था भीष्म साहनी द्वारा रचित ‘चीफ की दावत’। इसमें जिन पात्रों में अभिनय किया था उनके नाम इस प्रकार हैं, विद्याभूषण धर, श्रीमती कृष्णा वर्मा, श्री निर्मल सिद्धू तथा श्रीमती लता पांडे। इन दोनों नाटकों की दर्शकों ने बहुत सराहना की।
‘विश्वरंग’ ने विश्व के सभी साहित्यकारों तथा कलाकारों को अपनी कला को अभिव्यक्त करने का एक सुनहरा अवसर प्रदान किया, हम सारे विश्व से जुड़े। प्रसन्नता की बात है कि विभिन्न देशों के इन कार्यक्रमों में 25,000 से अधिक दर्शक जुड़े। यह हमारे लिए एक परम सौभाग्य की बात है, धन्यवाद ‘विश्वरंग’।
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वातायन के इतिहास में एक शानदार सम्मान-समारोह
डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक’ और श्री मनोज मुंतशिर वातायन-यूके द्वारा सम्मानित
लंदन, 21 नवंबर 2020: वातायन का वार्षिक समारोह कार्यक्रम इस बार आभासी मंच पर संपन्न हुआ, अपनी उतनी ही धूमधाम से जैसे कि 2004 से हर वर्ष हाउस ऑफ़ लॉर्ड्स अथवा नेहरु केंद्र-लंदन में होता चला आया है। भारतीय उच्चायोग के मंत्री (संस्कृति) एवं -लंदन नेहरु केंद्र के निदेशक, डॉ. अमीश त्रिपाठी, श्री वीरेंद्र शर्मा, ब्रिटिश सांसद, प्रतिष्ठित लेखिका और वातायन-यूके की संस्थापक दिव्या माथुर, एफ.आर.एस.ए. की उपस्थिति में प्रख्यात लेखक एवं भारत के शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक' जी को वातायन के लाइफ़-टाइम अचीवमेंट पुरस्कार और प्रसिद्ध गीतकार, पटकथा और संवाद लेखक मनोज मुंतशिर को वार्षिक वातायन काव्य पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का संचालन किया डॉ. पद्मेश गुप्त, यूके हिंदी समिति के संस्थापक और ऑक्सफोर्ड बिज़नेस कॉलेज के निदेशक, जिन्होंने यूके में हिंदी को प्रचलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, ने 2003 में स्थापित वातायन की गतिविधियों पर एक पावरपॉइंट भी प्रस्तुत किया। सम्मानित विभूतियों का परिचय देते हुए उन्होंने कहा कि हमारा सौभाग्य है कि इस वर्ष अंतर्राष्ट्रीय शिखर सम्मान (लाइफ़ टाइम अचिवमेंट) को स्वीकार कर डॉ. रमेश पोखरियाल 'निशंक’ जी ने वातायन परिवार का ही नहीं अपितु यू.के के सम्पूर्ण साहित्यक समाज का सम्मान बढ़ाया है। जिस व्यक्ति का जीवन साहित्य की परंपरा हो, जिस व्यक्ति की सोच पीढ़ियों का मार्गदर्शन हो, भारत के ऐसे श्रेष्ठ हस्ताक्षर, निशंक जी को शब्दों के परिचय में नहीं बाँधा जा सकता।
श्री मनोज मुन्तशिर के विषय में बताते हुए डॉ. गुप्त ने बताया कि इस वर्ष हमने चुना है भारत के एक यशस्वी युवा कवि को, जिन्हें आज इस बात का श्रेय दिया जाता है कि आपने एक बार फिर हिंदी कविता और शायरी को हिंदी सिनेमा की प्रचलित विधा से न केवल जोड़ा है, अपितु इस माध्यम से नई पीढ़ी के विश्व के करोड़ों युवाओं तक कविता की विधा को पहुँचाने का श्रेष्ठ कार्य किया है।
सरस्वती वंदना की सुरीली और भावप्रवण प्रस्तुति दी प्रसिद्ध गायिका रीना भारद्वाज ने, जो एक ब्रिटिश मूल की सिंगर-सॉन्ग राइटर हैं, जिन्होंने ए.आर. रहमान के साथ अपना पहला गीत 'ये रिश्ता' रिकॉर्ड किया, जो संगीत-चार्ट के शीर्ष पर पहुँचा। अतिथियों का अभिवादन करते हुए वातायन की अध्यक्ष, मीरा मिश्रा-कौशिक, ओबीई, ब्रिटेन में भारतीय कलाओं को सींचती, अंतरराष्ट्रीय मंचो के लिए समसामयिक प्रदर्शनों की निर्माता, पुरस्कृत निर्देशक और सांस्कृतिक नेता, ने कहा कि भारतीय उच्चायोग-लंदन के फ्रेडरिक पिनकॉट पुरस्कार से सम्मानित वातायन ने पिछले 17 वर्षों में साहित्य और संस्कृति से जुड़े हुए अंतर्राष्ट्रीय लेखकों और कला-मर्मज्ञों को एक सशक्त मंच प्रदान किया है, अप्रैल ‘20 में लागू हुए लॉकडाउन के बावजूद 35 से भी अधिक संगोष्ठियों का आयोजन कर एक विश्व-रिकॉर्ड क़ायम किया है। उन्होंने यह भी बताया कि वातायन की संरक्षक, बैरोनेस श्रीला फ्लैदर, जो अस्वस्थता की वजह से आज अनुपस्थित हैं, ने बधाई और शुभकामनाएँ भिजवाई हैं।
वाणी प्रकाशन की प्रबंध-निदेशक अदिति माहेश्वरी ने मनोज मुन्तशिर का परिचय यह कहते हुए दिया कि मनोज मुंतशिर एक बेहद लोकप्रिय गीतकार पटकथा लेखक हैं, जिन्होंने 'कौन बनेगा करोड़पति’ की पटकथा का अनुसरण करते हुए, 'गलियां’, 'तेरे संग यारा, 'मेरे दिल ने मेरी ना सुनी’, ‘तेरी मिट्टी' सहित कई सफल गीत लिखे। उन्हें 'ब्लैक-पैंथर' के हॉलीवुड प्रोडक्शन के लिए भी कमीशन मिला। वाणी प्रकाशन ने उनकी एक पुस्तक, 'ये किताब क्यूँ' हाल ही में प्रकाशित की है, जो उनपर गुज़रे कुछ हादसों पर आधारित है। तितिक्षा दंड-शाह, कृति-यूके की संस्थापक, कवि और फैशन डिजाइनर, ने पुरस्कृत कवि के क्रेडेंशल प्रस्तुत किए। वातायन के प्रति आभार व्यक्त करते हुए मनोज मुन्तशिर कहा कि यह सम्मान हर उस व्यक्ति के लिए है जिसे लगता है कि वह छोटे शहर से आता है; छोटे शहर में रहने का अर्थ यह नहीं है कि वह बड़े सपने नहीं देख सकता।
अनिल शर्मा जोशी जी ने माननीय डॉ. निशंक जी का परिचय देते हुए कहा, अलावा इसके कि नई शिक्षा नीति को आकार देने में निशंक जी की भूमिका सराहनीय है, उन्होंने हिंदी की अनन्य विधाओं में 75 से भी अधिक पुस्तकें लिखी हैं, जो व्यापक रूप से अनूदित हैं, जिन पर व्यापक शोध हो चुके हैं। राजनीतिक प्रतिस्पर्धा की दुनिया में, एक कवि के दिमाग़ को जीवित रखना उसकी अद्भुत रचनात्मकता का प्रतीक है। डॉ. निखिल कौशिक, पेशे से नेत्र सर्जन पर हृदय से कवि, फ़िल्म निर्माता, ने पुरस्कृत कवि के क्रेडेंशल प्रस्तुत किए। सम्मान ग्रहण करते हुए माननीय निशंक जी ने कहा कि उनका लेखन राष्ट्रीयता के उस भाव का सम्मान है जो उनके जीवन की प्रमुख प्रेरणा रहा है; यह उनका नहीं, उत्तराखंड की उस देवभूमि का सम्मान है, जिसका कण-कण प्राकृतिक सौंदर्य और आध्यात्मिकता के प्रकाश से आलोकित है।
श्री वीरेंद्र शर्मा, ब्रिटिश सांसद, जो वातायन के कार्यक्रमों में नियमित उपस्थिति से हमारा मनोबल बढ़ाते रहे हैं, ने कहा कि वातायन के माध्यम से उनका परिचय अंतरराष्ट्रीय हिंदी साहित्य से हुआ। अपने समापन भाषण में भारतीय उच्चायोग के मंत्री (संस्कृति), नेहरु केंद्र-लंदन के निदेशक, प्रसिद्ध और पुरस्कृत लेखक, डॉ. अमीश त्रिपाठी, ने पुरस्कृत कवियों को बधाई देते हुए वातायन की नियमित और सार्थक गतिविधियों की भी सराहना की और उन्हें नेहरू केंद्र में अपने कार्यक्रम आयोजित करने के लिए सहर्ष आमंत्रित किया।
अंत में, अन्तरीपा ठाकुर-मुखर्जी, एफ़.आर.एस.ए.,अकादमी-यूके की प्रवर्धन प्रमुख, जो एक प्रतिभा संपन्न लेखिका भी हैं, बहुभाषीय हैं, ने धन्यवाद-ज्ञापन प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम को वैश्विक हिंदी परिवार के फ़ेसबुक पर लाइव प्रसारित किया गया, जिसमें विश्व भर के प्रतिष्ठित विद्वान, लेखक, कलाकार और मीडिया कर्मी मौजूद थे।
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तेजेन्द्र शर्मा के कविता संग्रह ‘टेम्स नदी के तट से’ का लोकार्पण नेहरू सेन्टर लंदन के मंच से...
• कथा यू.के. संवाददाता
भारतीय उच्चायोग लंदन, नेहरू सेन्टर लंदन एवं एशियन कम्यूनिटी आर्ट्स ने एक साझे कार्यक्रम में तेजेन्द्र शर्मा के नवीनतम कविता संग्रह ‘टेम्स नदी के तट से’ के लोकार्पण समारोह का आयोजन किया। लोकार्पण समारोह ज़ूम पर आयोजित किया और लाइव स्ट्रीम फ़ेसबुक, ट्विटर एवं यू-ट्यूब पर दिखाई गयी। भारी संख्या में दर्शकों ने इस कार्यक्रम का लुत्फ़ उठाया। नेहरू सेन्टर के उप-निदेशक श्री बृजकुमार गुहारे ने सभी प्रतिभागियों, एवं फ़ेसबुक, ट्विटर व यू-ट्यूब पर श्रोताओं का स्वागत किया।
लोकार्पण करते हुए नेहरू सेंटर के निदेशक एवं अंग्रेज़ी के लोकप्रिय लेखक श्री अमीश त्रिपाठी ने कहा कि कोरोना ने जहाँ एक ओर डर का माहौल पैदा कर दिया है वहीं तकनीक ने हमें ऐसे अवसर प्रदान किये हैं कि हम अलग-अलग देशों में रहते हुए भी एक मंच पर इकट्ठे हो कर एक दूसरे से संवाद कर पा रहे हैं। उन्होंने आगे कहा, “भारतीय सभ्यता भी नदियों के तट पर शुरू हुई थी। ठीक वैसे ही इंग्लैण्ड की सभ्यता का विकास भी टेम्स नदी के तट से हुआ होगा। हमारे लिये यह गर्व का विषय है कि तेजेन्द्र शर्मा जैसे वरिष्ठ कवि ने अपने नवीनतम कविता संग्रह ‘टेम्स नदी के तट से’ के लोकार्पण के लिये नेहरू सेन्टर के मंच को चुना। मैं आपको बधाई देता हूँ और कामना करता हूँ कि संग्रह को पाठक हाथों हाथ लें।”
भारतीय उच्चायोग के मंत्री समन्वय श्री मनमीत सिंह नारंग ने तेजेन्द्र शर्मा जी को बधाई देते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि, “तेजेन्द्र शर्मा के लेखन में गहराई है, संवेदनाएँ हैं और उनकी रचनाएँ हृदयस्पर्शी होती हैं। उन्होंने अप्रवासी हिन्दी साहित्य को आगे बढ़ाने का बीड़ा उठा रखा है।”
वरिष्ठ साहित्यकार एवं काउंसलर ज़किया ज़ुबैरी ने कहा कि तेजेन्द्र शर्मा हिन्दी के प्रचार प्रसार और लेखन के लिये प्रतिबद्ध हैं। उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा की निजी ज़िन्दगी, उनका अपनी माँ एवं बहनों के प्रति स्नेह और दिनचर्या की चर्चा करते हुए तेजन्द्र जी के लेखन को रेखांकित किया। उन्होंने तेजेन्द्र शर्मा की एक ग़ज़ल का पाठ भी किया – “बहुत से गीत ख़्यालों में सो रहे थे मेरे / तुम्हारे आने से जागे हैं कसमसाए हैं / जो नग़में आजतक मैं गुनगुना न पाया था / तुम्हारी बज़्म में ख़ातिर तुम्हारी गाए हैं।”
ब्रिटिश सांसद श्री विरेन्द्र शर्मा ने भावुक स्वर में कहा, “तेजेन्द्र मेरे छोटे भाई हैं। इस बेहतरीन कविता संग्रह के लिये मैं उसे बधाई देता हूँ। साहित्यकार, कवि समाज को एक नयी दिशा देते हैं। यदि उनकी सोच अच्छी न हो तो समाज को बेहतर नहीं बनाया जा सकता। तेजेन्द्र का साहित्य इसका विशेष उदाहरण है। तेजेन्द्र की सोच सकारात्मक है, भाषा सरल है और दिल तक पहुँचती है। वे एक अच्छे दिल के इन्सान हैं। तेजेन्द्र अपने लेखन के माध्यम से इस मुल्क़ में भारत और ब्रिटेन के समुदायों में निकटता पैदा करने का प्रयास करते हैं। मैं उन्हें इस मुहिम में शुभकामनाएँ प्रेषित करता हूँ।”
ग़ाज़ियाबाद से युवा कवयित्री नंदिनी श्रीवास्तव ने तेजेन्द्र शर्मा की कविता टेम्स का पानी का पाठ करने से पहले कहा, “यह मेरे जीवन का पहला काव्य संग्रह है जिसमें साहित्य के सभी नौ रस मौजूद हैं। हर प्रकार की कविता इस संकलन में शामिल हैं।” कविता सुनाते हुए उन्होंने दो शेरों पर ख़ास ध्यान देते हुए पढ़ा - “बाज़ार संस्कृति में नदियां नदियां ही रह जाती हैं / बनती हैं व्यापार का माध्यमत, माँ नहीं बन पाती हैं। ... जी लगाने के कई साधन हैं टेम्स नदी के आसपास / गंगा मैया में जी लगाता है, हमारा अपना विश्वास।”
वरिष्ठ ग़ज़लकार डॉ. लक्ष्मीशंकर वाजपेयी ने अपने वक्तव्य में तेजेन्द्र की कुछ कविताओं पर विशेष ध्यान दिलवाया। उन्होंने सबसे पहले ‘सुबह का अख़बार’ कविता का पाठ किया और कहा, “सच्ची प्रेम कविता यह कविता है। इस में प्रेम भी है और कविता भी है। यह कोई फ़ॉर्मूलाबद्ध तेरी बाँहों में मर जाऊँ टाइप कविता नहीं है। इस संकलन की विशेषता यह है कि इसमें बहुत सी कोटेशन्स पाठक को मिलती हैं। इस संग्रह की कविताओं में बहुत गहरा काँटेण्ट है। जैसे ‘मकड़ी बुन रही है जाल’ एक अद्भुत अंतर्राष्ट्रीय कविता है। संग्रह की हर कविता संप्रेषित होती है आपको स्पर्श करती है। हर कविता कोई न कोई संदेश दे कर जाती है, दिल पर असर करती है। कर्मभूमि का पर्स्पेक्टिव बिल्कुल हट कर है। एक कविता को मैं संग्रह की साहसिक कविता मानूँगा जिसमें वे इंग्लैण्ड को अपना देश बताते हैं। ‘मैं कवि हूँ इस देश का’ एक अलग क़िस्म की कविता है।” उन्होंने बात जारी रखते हुए कहा कि यदि मेरा बस चले तो मैं कविता ‘हम ऐसे क्यों हो जाते हैं’ को तुरन्त पाठ्यक्रम में लगवा दूँ। यह कविता एक पूरा जीवन दर्शन है। इस संग्रह में कहन भी नया है, विचार भी और अंदाज़ भी। तेजेन्द्र जी ने संग्रह की भूमिका भी शानदार लिखी है।
मेरठ से शामिल हुए कवि मनोज कुमार मनोज ने कविता संग्रह ‘टेम्स के तट से’ पर बात करते हुए कहा, “कविता की जितनी भी विधाएँ हैं उन सभी का इस्तेमाल तेजेन्द्र भाई ने अपने संग्रह में किया है और अधिकार से किया है। कवि भी पक्षियों औऱ बादलों की तरह सीमा में नहीं बाँधे जा सकते। रचनाकार अपने साथ दूसरे देशों में अपनी संस्कृति की ख़ुशबू ले जाते हैं। और भाई तेजेन्द्र शर्मा ने यह काम बख़ूबी किया है।” मनोज कुमार मनोज ने तेजेन्द्र शर्मा के कुछ शेर सस्वर गा कर सुनाए – “डरा डरा सा मैं रातों को जाग जाता हूँ / नींद आती है मगर सो नहीं मैं पाता हूँ। सवाल यह नहीं ये शहर क्यों डराता है / सवाल ये है कि मैं क्यों भटक सा जाता हूँ। जो लोग गाँव की मिट्टी को यहां लाए हैं / बदन में उनके अपनेपन की महक पाता हूँ।”
भारतीय उच्चायोग के हिन्दी अताशे श्री तरुण कुमार तकनीकी कारणों से कार्यक्रम से कुछ विलम्ब से जुड़ पाए। उनका मानना है कि यह काव्य संग्रह तेजेन्द्र जी के विचारों, भावों और संवेदनाओं की संपूर्णता में अभिव्यक्ति है। उनकी रचनाएँ जीवन और यथार्थ से जुड़ी होती हैं। इस संग्रह में लगभग 150 से अधिक कविताएँ हैं जो जीवन के हर रंग को छूती हैं। शायद ही कोई ऐसा विषय होगा जो इस संग्रह में समाहित न हुआ हो। संग्रह की शीर्षक कविता टेम्स का पानी केवल दो नदियों की तुलना नहीं है। दो संस्कृतियों के बीच की भी तुलना है। भौतिकता और आध्यात्म का द्वन्द्व भी है। तेजेन्द्र जी के अनुसार गँगा माँ है और टेम्स केवल बहता पानी। तेजेन्द्र जी एक संवेदनशील रचनाकार हैं और किसी विचारधारा के दबाव में नहीं लिखते हैं। उनकी कविताओं का कैनवस काफ़ी विशाल है। उनकी चिन्ता और चिन्तन में केवल मानव समाज ही नहीं अपितु संपूर्ण चराचर जगत है। गिलहरी कविता इसका जीवंत उदाहरण है। उनकी कविताओं में जहाँ एक ओर प्रवास का जीवन और यहां के संघर्ष हैं तो वहीं अपने देश की सुनहरी यादें भी हैं।
तेजेन्द्र शर्मा की सुपुत्री आर्या शर्मा ने मुंबई से कार्यक्रम में शिरकत करते हुए कहा कि मेरे पापा एक मल्टी-फ़ेसेटिड इन्सान है जिनके पास शब्दों का ख़ज़ाना है बेहतरीन यादें हैं। वे अपने अर्थपूर्ण शब्दों से अपनी रचनाओं को रचते हैं। मेरे पापा अपनी बात बहुत सरल ढंग से रखते हैं जो सब तक पहुँच जाती है। पापा हर चीज़ को बहुत सुलझे हुये ढंग से प्रस्तुत करते हैं। मैं तो परवीन शाकिर और जावेद अख़्तर की ग़ज़लों की किताबें पढ़ती हूँ अब यह संकलन मेरा प्रिय संकलन बन गया है। आर्या ने अपने पापा की कविता – ‘क्यूं आसानी से समझ आ जाते हो’ का पाठ किया। किसी भी कवि या लेखक का आज की युवा पीढ़ी से जुड़ने के लिये सरल भाषा का इस्तेमाल करना ज़रूरी है। यह सोशल मीडिया का ज़माना है। इस संकलन इतनी ख़ूबसूरत पंक्तियाँ हैं जिन्हें हम इंस्टाग्राम और फ़ेसबुक पर कैप्शन के तौर पर लिख सकते हैं।
कविता संग्रह ‘टेम्स नदी के तट से’ के प्रकाशक जितेन्द्र पात्रो (प्रलेक प्रकाशन, मुंबई) ने सभी उपस्थित हस्तियों का स्वागत करते हुए तेजेन्द्र शर्मा से अपने कुछ संस्मरण साझा करते हुए कहा, “मेरी तेजेन्द्र शर्मा जी से पहली मुलाक़ात मुंबई विश्वविद्यालय में डॉ. करुणा शंकर उपाध्याय के कार्यालय में हुई। और मैं बाबू जी (तेजेन्द्र शर्मा) की पर्सनेलिटी का कायल हो गया। मैं जब उन्हें अपनी कार में छोड़ने गया तो बस आधे घन्टे के सफ़र में ही हमारे बीच एक रिश्ता कायम हो गया। उम्र का कोई फ़ासला नहीं महसूस हो रहा था। लग रहा था जैसे किसी दोस्त के साथ गुफ़्तगू चल रही है। तेजेन्द्र जी एक ऐसे प्रवासी लेखक हैं जो यूथ को अपने साथ लेकर चलते हैं। बाबूजी में एक सम्मोहन क्षमता है।"
तेजेन्द्र शर्मा ने पूरे पैनल का धन्यवाद करते हुए फ़ेसबुक, ट्विटर और यू-ट्यूब पर उपस्थित मित्रों और श्रोताओं का भी धन्यवाद किया। उन्होंने अपनी लेखन यात्रा को संक्षिप्त शब्दों में साझा किया। उनका कहना था कि वे तब तक कुछ नहीं लिखते जब तक उनके पास लिखने को कुछ नया न हो। उन्होंने ब्रिटेन में एक मुहिम चलाई थी कि यहाँ कि कवि कथाकार नॉस्टेलजिया भूल कर अपने आसपास के समाज और स्थितियों पर अपनी क़लम चलाएँ। उन्होंने अपनी एक कविता सुनाई भीः “जो तुम न मानो मुझे अपना, हक़ तुम्हारा है / यहां जो आ गया इक बार वो हमारा है।”
राहुल व्यास ने अपने कुशल संचालन के दौरान अपनी छोटी छोटी टिप्पणियों के माध्यम से तेजेन्द्र शर्मा के व्यक्तित्व और कविताओं पर रौशनी डाली। उनका कहना था, आत्मा के सौंदर्य का शब्द रूप है काव्य / मानव होना भाग्य है, कवि होना सौभाग्य!! और जब एक व्यक्ति कहानीकार के साथ साथ उतना ही अच्छा और शब्द-समर्थ कवि भी तो यह सौभाग्य स्वतः दोगुना हो जाता है। तेजेन्द्र शर्मा जी का जो साहित्य है या उनकी जो लेखनी है ,इतने बड़े साहित्यकार होने के बावजूद, वो बहुत सरलता और सहजता से लिखते हैं। तेजेन्द्र जी ने न सिर्फ़ बड़े-बड़े साहित्यकारों और विद्वानों को अपने लेखन से प्रभावित किया है, बल्कि आम इंसान को भी हिंदी से और साहित्य से जोड़ने में अहम भूमिका निभाई है। हम सभी के लिए एक बड़े ही गर्व की बात है कि हमारे पास एक ऐसे महान साहित्यकार मौजूद हैं ,जो एक आम इंसान/भारतीय को साहित्य और हिंदी से जोड़ने में एक कड़ी का काम करते हैं। तेजेन्द्र जी की कविताएँ बेहतरीन तो हैं ही मगर जब आर्या जी ने इन कविताओं को अपनी आवाज़ दी तो यह कविताएँ और भी सुंदर बन पड़ी।
नेहरू सेन्टर के उपनिदेशक श्री बृज कुमार गुहारे ने धन्यवाद ज्ञापन देते हुए तेजेन्द्र शर्मा जी का धन्यवाद किया कि उन्होंने अपनी पुस्तक के लोकार्पण के लिये नेहरू सेन्टर के मंच का इस्तेमाल किया।
आगे पढ़ेंकविता संग्रह 'नक्कारखाने की उम्मीदें' का ऑन लाइन लोकार्पण/समीक्षा संगोष्ठी
सुपेकर की कविताएँ पूर्वाग्रह मुक्त कविताएँ - श्री सतीश राठी
नगर की प्रमुख साहित्यिक संस्था क्षितिज के द्वारा श्री संतोष सुपेकर के कविता संग्रह ‘नक्कारखाने की उम्मीदें’ के लोकार्पण एवं चर्चा संगोष्ठी का आयोजन क्षितिज संस्था के फेसबुक पटल पर किया गया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री सतीश राठी ने कहा, "सुपेकर की कविताएँ पूर्वाग्रह मुक्त कविताएँ हैं। वे आसपास के वातावरण से अपनी रचनाओं के लिए सूत्र बिन्दु निकाल लेते हैं। ऐसे कठिन वक़्त में लेखन करना नक्कारखाने में अपनी उम्मीदों को बुलंद करने जैसा है। सुपेकर की कविताओं में एक आग है, जो व्यवस्था पर सीधे-सीधे चोट करने में सक्षम है।"
इस अवसर पर कवि श्री सन्तोष सुपेकर ने अपनी काव्य चेतना में जीवन जगत के प्रति दृष्टिकोण संग्रह की दो प्रतिनिधि कविताओं "हो सकती है" और "हाहाकारी निष्कर्ष" का पाठ कर प्रस्तुत किया।
विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलानुशासक ख्यात समालोचक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा ने अपने समीक्षकीय वक्तव्य में कहा, "आधा दर्जन से ज़्यादा पुस्तकों के रचयिता श्री सन्तोष सुपेकर की कविताओं से गुज़रना अपने समय से संवाद करने जैसा है। उनकी कविताएँ विसंगतियों का ख़ुलासा करने के साथ-साथ कहीं सीधे तो कहीं संकेतों के माध्यम से सन्देश देती हैं। इन कविताओं मे लक्षित में अलक्षित रह गए सन्दर्भ नए सन्दर्भों के साथ सामने आते हैं, जो पाठक को सोचने के लिए विवश करते हैं।"
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ समालोचक डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने कहा कि, सन्तोष सुपेकर की कविताओं में लघुकथाओं का आचरण देखने को मिलता है। उन्होंने वैचारिक अनुभूति के घनत्व के माध्यम से अपने भोगे हुए समय को लिखा है। उनकी कविताओं की भाषा और शिल्प सीधे-सीधे चोट करने वाले होते हैं।"
विशेष अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार श्री ब्रजेश कानूनगो ने शुभकामनाएँ देते हुए कहा, "सुपेकर की कविताओं में समकालीन कविता की बजाए गद्य के औज़ारों का प्रयोग ज़्यादा देखने को मिलता है। संतोष सुपेकर की कविताएँ पढ़ते हुए कई जगह महसूस होता है कि, यह रचना संभवत: एक बेहतरीन लघुकथा की शक्ल में, पाठकीय संवेदना जगा रही है। कई जगह वे कोई शब्द चित्र सा बनाते नज़र आते हैं। बरसों बरस लघुकथा विधा की प्रतिष्ठा और सृजन में संलग्न रहकर लघुकथा के लिए समर्पित, सम्मानित रचनाकार की कविताओं पर इसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक है।"
पुस्तक चर्चा करते हुए ख्यात समीक्षक श्री दीपक गिरकर ने सुपेकर को एक संवेदनशील कवि बताया। उन्होंने कहा, "इस पुस्तक में आम आदमी की छटपटाहट की कविताएँ हैं। संतोष जी ने आम आदमी की पीड़ा, निराशा, घुटन, दर्द को मार्मिक रूप से अपनी कविताओं में अभिव्यक्त किया है। संग्रह की हर कविता जीवन की सच्चाई को बयां करती है। इन रचनाओं में वह रवानी, वह भाव है जो दिल को छू लेती हैं। कवि की दृष्टि छोटी से छोटी बातों पर गई हैं। इस संग्रह की कविताएँ जीवन के खुरदुरे यथार्थ से जूझती दिखाई देती हैं।"
अपने शुभकामना संदेश में साहित्यकार डॉ. वसुधा गाडगिल ने कहा, “इस संग्रह में श्री सुपेकर की व्यंजना व संवेदना पाठकों को झंकृत कर देने में सफल हुई है।” लघुकथाकार श्री राममूरत 'राही' ने बधाई देते हुए कहा कि 'नक्कारखाने की उम्मीदें' में एक से बढ़कर एक कविताएँ हैं, जो वर्तमान परिदृश्य में एक कवि हृदय का सहज, सरल उद्गार है।
कार्यक्रम का सफल संयोजन, संचालन साहित्यकार श्रीमती अंतरा करवड़े ने किया और अंत में आभार सुपरिचित कथाकार श्री दिलीप जैन ने माना।
कार्यक्रम के समूचे आयोजन प्रसंग की क्लिप क्षितिज के फ़ेसबुक पटल पर अभी भी श्रोताओं के लिए उपलब्ध है।
’अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो’ पुस्तक को ’इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्डस’ द्वारा मान्यता
सुदर्शन सोनी द्वारा लिखी पुस्तक ’अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो’ एक ऐसा व्यंग्य संग्रह जिसके सभी 34 व्यंग्य केवल कुत्तों पर केन्द्रित हैं। अपनी तरह की पहली पुस्तक होने के कारण यह चर्चा में रही। प्रसिद्ध व्यंग्यकार आलोक पुराणिक द्वारा इसे संपूर्ण एशिया की केवल श्वानों पर लिखे व्यंग्यों की पहली कृति माना गया है। डाक्टर ज्ञान चतुर्वेदी जी द्वारा इसे व्यंग्य में नया प्रयोग कहा है। इसी कड़ी में इसे ’इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्डस्’ नई दिल्ली द्वारा केवल कुत्तों पर लिखे 34 व्यंग्य संग्रह का एक रिकार्ड बनाया जाना मानते हुये लेखक सुदर्शन सोनी को 21 मार्च 2020 को रिकार्ड की मान्यता देते हुये प्रमाण पत्र व मैडल प्रदान किया है। लेखक ने बताया कि वे अब गिन्नीज़ बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्डस् व गोल्डन बुक ऑफ़ वर्ल्ड रिकार्डस में भी अपना दावा पेश करेंगे। ज्ञातव्य हो कि लेखक को इस किताब को संकलित करने की प्रेरणा उनके प्रिय डॉगी रॉकी की वर्ष 2017 में आकस्मिक मृत्यु से मिली थी। लेखक द्वारा पुस्तक अपने डॉग ’प्रिय रॉकी को समर्पित’ की गयी है। किसी लेखक द्वारा अपने कुत्ते को पुस्तक समर्पित करने का भी यह संभवतया पहला मौक़ा था।
’इंडिया बुक ऑफ़ रिकार्डस’ द्वारा लेखक को इस पुस्तक हेतु अब वर्ल्ड रिकार्ड युनिवर्सिटी में दावा पेश करने का आमंत्रण व सुझाव भी दिया गया है। शीघ्र ही पुस्तक के संबंध में चर्चा व रचना पाठ का एक कार्यक्रम भोजपाल साहित्य संस्थान द्वारा रखा जायेगा । भोजपाल साहित्य संस्थान श्री सोनी की इस उपलब्धि के लिये बधाई देता है। ज्ञातव्य हो कि श्री सुदर्शन सोनी भोजपाल साहित्य संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष भी हैं।
प्रियदर्शी खैरा
अध्यक्ष भोजपाल साहित्य संस्थान
90/91 यशोदा विहार चूना भटटी भोपाल
अनिल शर्मा केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के नए उपाध्यक्ष
27 जून 2020 (भारत): मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार ने अनिल कुमार शर्मा को केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल का उपाध्यक्ष नियुक्त किया है।
अनिल शर्मा साहित्य जगत में अनिल जोशी के नाम से जाने जाते हैं। आपने नौ वर्षों तक ब्रिटेन और फीजी में राजनयिक के रूप में कार्य करते हुए हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार का महत्वपूर्ण कार्य किया है। फीजी उच्चायोग में द्वितीय सचिव के पद पर रहते हुए अनिल शर्मा के कार्य सराहनीय रहे हैं। हिंदी संस्थान के निदेशक प्रो. नन्दकिशोर पांडेय ने अपनी शुभकामनाएँ देते हुए आशा व्यक्त की है कि अनिल शर्मा के नेतृत्व में संस्थान विकास के नए सोपान चढ़ेगा।
अनिल शर्मा से पहले डॉ. कमल किशोर गोयनका केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष थे। दिल्ली के ज़ाकिर हुसैन कॉलेज से अवकाशप्राप्त डॉ. गोयनका प्रेमचन्द साहित्य के विद्वान एवं प्रामाणिक शोधकर्ता माने जाते हैं। मुंशी प्रेमचन्द पर उनकी अनेक पुस्तकें व लेख प्रकाशित हो चुके हैं। डॉ. कमल किशोर गोयनका ने वैश्विक हिंदी परिवार के माध्यम से अनिल शर्मा को शुभकामनाएँ दी हैं। उन्होंने अपने सदेश में कहा, "अनिल जोशी को बधाई। एक हिंदी सेवी सर्वथा उचित पद पर पहुंचा है। हिंदी सेवा के लिए देश-विदेश में पर्याप्त अवसर होंगे और नया करने की भी स्वतंत्रता होगी। एक सही व्यक्ति को सही जगह मिली है। डॉ. रमेश पोखरियाल, मंत्री जी को इस नियुक्ति के लिए धन्यवाद और अनिल जी को बधाई।"
डॉ. कमल किशोर गोयनका के अतिरिक्त अशोक चक्रधर और ब्रजकिशोर शर्मा केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल के उपाध्यक्ष रह चुके हैं। केंद्र सरकार द्वारा 1960 में केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल का गठन किया था। मंडल का प्रमुख उद्देश्य भारत के संविधान की धारा 351 की मूल भावना के अनुरूप अखिल भारतीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी के शिक्षण-प्रशिक्षण, शैक्षणिक अनुसंधान, बहुआयामी विकास और प्रचार प्रसार से जुड़े कार्यों का संचालन करना है।
आगे पढ़ेंडिजिटल संप्रेषण और साहित्य पर अंतरराष्ट्रीय वेबिनार संपन्न
हैदराबाद, 1 जून 2020
हिंदी हैं हम विश्व मैत्री मंच, हैदराबाद के तत्वावधान में 1 जून, 2020 को मध्याह्न 3 बजे से 5 बजे तक "तकनीकी व डिजिटल संप्रेषण की दुनिया में हिंदी साहित्य के बढ़ते क़दम" विषय पर एकदिवसीय अंतरराष्ट्रीय वेबिनार सफलतापूर्वक आयोजित किया गया।
मुख्य वक्ता के रूप में प्रसिद्ध कवि-समीक्षक प्रो. ऋषभदेव शर्मा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार तेजेंद्र शर्मा उपस्थित थे।
हैदराबाद केंद्र से संचालित अंतरराष्ट्रीय वेबिनार में दोनों विद्वानों ने महत्वपूर्ण विचार रखे। प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी साहित्य के क्षेत्र में हैदराबाद नगर को एक विशेष स्थान दिलाया है। उन्होंने तकनीकी संप्रेषण के माध्यम से हिंदी साहित्य की बढ़ोतरी के बारे में अपने विचार अभिव्यक्त किए। प्रो. ऋषभ ने कहा कि वर्तमान समाज सही अर्थ में 'सूचना समाज' है। अब साहित्य पुस्तकों की दहलीज़ लाँघ कर डिजिटल मल्टीमीडिया के सहारे अधिक लोकतांत्रिक बनने की ओर अग्रसर है। उन्होंने मुक्त वितरण के लिए तकनीकी के उपयोग की जानकारी देने के साथ ही विभिन्न आधुनिक संचार माध्यमों में स्टोरी-टेलिंग की तुलना करते हुए 'डिगिंग' और 'स्प्रेडिंग' की अवधारणाओं का ख़ुलासा किया।
वरिष्ठ साहित्यकार तथा विदेशों में हिंदी के प्रमुख हस्ताक्षर के रूप में अपना परचम लहराने वाले श्री तेजेंद्र शर्मा जी ने अपने विचारों में डिजिटल रूप से हिंदी के विकास के बारे में अपनी राय रखी। डिजिटल एवं ऑनलाइन संचार ऐसी क्रांति है, जो नि:संदेह देश को प्रगति के पथ पर त्वरित गति से ले जा सकती है। इसी का लाभ आज हिंदी साहित्य उठा रहा है। आज इतनी सारी वेबसाइटें, ब्लाग हैं कि वे हिंदी की कथा, कहानी, कविताएँ, निबंध, जीवनी, आत्मकथा, रिपोर्ताज, संस्मरण, एकांकी, नाटक तथा अन्य विधाओं को सुंदर मंच प्रदान कर रहे हैं। डिजिटल एवं ऑनलाइन संचार में भाषा का संयम, शब्दों का चयन उपयुक्त होना चाहिए। भावनाओं की अभिव्यक्ति के साथ-साथ दूसरों की भावनाओं का सम्मान भी अवश्य होना चाहिए। ऐसा करने पर ही हिंदी साहित्य का विकास तकनीकी तथा डिजिटल रूप में हो सकता है। आज रचनाकार, साहित्य कुञ्ज, हिंदी कुंज, कविताकोश, गद्यकोश, प्रतिलिपि जैसे कई साइट इन बातों का ध्यान रखते हिंदी साहित्य की सेवा में निरंतर लगे हुए हैं। पढ़ने को तो कई किताबें हैं, लेकिन गुलज़ार के शब्दों में कहना हो तो सारी किताबें अलमारी में पड़े-पड़े अपनी बेबसी पर रो रही हैं। हम यह सोच रहे हैं कि किताबें अलमारी में बंद हैं, जबकि सच्चाई यह है कि हम कहीं न कहीं अपनी मजबूरियों में बंद हैं।
मंच के महासचिव डॉ. डी. विद्याधर ने अपने स्वागत भाषण में हिंदी के विकास को लेकर अपनी कटिबद्धता व्यक्त की। साथ ही कोरोना महामारी के काल में भी हिंदी का अलख जगाने की पुरज़ोर अभिव्यक्ति की। अध्यक्ष डॉ. मो. रियाजुल अंसारी ने मंच के हिंदी के प्रचार-प्रसार कार्यक्रमों की जानकारी दी। इसके अतिरिक्त वेबिनार में मंच की ओर से उपाध्यक्ष डॉ. राजेश अग्रवाल, डॉ. राकेश शर्मा, डॉ. सुषमा देवी, डॉ. डी. जयप्रदा तथा डॉ. सुरेश कुमार मिश्रा उपस्थित थे। ग़ौरतलब है कि इस वेबिनार में प्रत्यक्ष रूप से 500 प्रतिभागियों ने तो यूट्यूब के सीधे प्रसारण पर 2500 प्रतिभागियों ने ज्ञानवर्धन किया। सभी तीन हजार प्रतिभागियों को ई-प्रमाण पत्र प्रदान किए गए।
प्रस्तुति-
डॉ. विद्याधर,महासचिव, हिंदी हैं हम विश्व मैत्री मंच,हैदराबाद।
आगे पढ़ेंढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन, अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान तथा शिवना प्रकाशन द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कथा-कविता सम्मान घोषित
(सभी सम्मान लेखिकाओं को)
ममता कालिया, उषाकिरण ख़ान, अनिलप्रभा कुमार, प्रज्ञा, रश्मि भारद्वाज तथा गरिमा संजय दुबे होंगे सम्मानित
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका ने अपने प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान तथा शिवना प्रकाशन ने अपने कथा-कविता सम्मान घोषित कर दिए हैं। ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन सम्मानों की चयन समिति के संयोजक पंकज सुबीर ने बताया कि 'ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन लाइफ़ टाइम एचीवमेंट सम्मान' हिन्दी की वरिष्ठ साहित्यकार ममता कालिया को प्रदान किए जाने का निर्णय लिया गया है सम्मान के तहत इक्यावन हज़ार रुपये सम्मान राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा। वहीं 'ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान' उपन्यास विधा में वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री उषाकिरण ख़ान को वाणी प्रकाशन से प्रकाशित उनके उपन्यास 'अगनहिंडोला' हेतु तथा कहानी विधा में प्रवासी कहानीकार अनिलप्रभा कुमार को भावना प्रकाशन से प्रकाशित उनके कहानी संग्रह 'कतार से कटा घर' हेतु प्रदान किए जाएँगे, दोनोंं सम्मानित रचनाकारों को इकतीस हज़ार रुपये की सम्मान राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा। शिवना प्रकाशन के सम्मानों की चयन समिति के संयोजक श्री नीरज गोस्वामी ने बताया कि 'अंतर्राष्ट्रीय शिवना कथा सम्मान' हिन्दी की चर्चित लेखिका प्रज्ञा को लोकभारती प्रकाशन से प्रकाशित उनके उपन्यास 'धर्मपुर लॉज' के लिए, 'अंतर्राष्ट्रीय शिवना कविता सम्मान' महत्त्वपूर्ण कवयित्री रश्मि भारद्वाज को सेतु प्रकाशन से प्रकाशित उनके कविता संग्रह 'मैंने अपनी माँ को जन्म दिया है' के लिए प्रदान किया जाएगा दोनों सम्मानित रचनाकारों को इकतीस हज़ार रुपये की सम्मान राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा। 'अंतर्राष्ट्रीय शिवना कृति सम्मान' शिवना प्रकाशन से प्रकाशित कहानी संग्रह 'दो ध्रुवों के बीच की आस' के लिए कथाकार गरिमा संजय दुबे को प्रदान किया जाएगा, सम्मान के तहत ग्यारह हज़ार रुपये सम्मान राशि तथा सम्मान पत्र प्रदान किया जाएगा।
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका तथा शिवना प्रकाशन द्वारा हर वर्ष साहित्य सम्मान प्रदान किए जाते हैं। पिछले वर्ष यह सम्मान भोपाल में आयोजित एक भव्य समारोह में प्रदान किए गए थे। चूँकि इस वर्ष यह आयोजन किया जाना किसी भी प्रकार से संभव नहीं है इसलिए सम्मानित रचनाकारों को इस वर्ष यह सम्मान एक ऑनालाइन कार्यक्रम में प्रदान किए जाएँगे। अगले वर्ष 2021 के सम्मान प्रदान करने के लिए आयोजन किया जाएगा तो उसमें इस वर्ष के सम्मानित रचनाकारों को भी मंच पर सम्मानित किया जाएगा। ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका का यह चतुर्थ सम्मान समारोह है। हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार, कवयित्री, संपादक डॉ. सुधा ओम ढींगरा तथा उनके पति डॉ. ओम ढींगरा द्वारा स्थापित इस फ़ाउण्डेशन के यह सम्मान इससे पूर्व उषा प्रियंवदा, चित्रा मुद्गल, महेश कटारे, डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, सुदर्शन प्रियदर्शिनी, डॉ. कमल किशोर गोयनका, मुकेश वर्मा, मनीषा कुलश्रेष्ठ तथा प्रो. हरिशंकर आदेश को प्रदान किया जा चुका है। जबकि शिवना सम्मान का यह दूसरा वर्ष है, इससे पूर्व गीताश्री, वसंत सकरगाए तथा ज्योति जैन को प्रदान किया जा चुका है।
शहरयार अमजद ख़ान
शिवना प्रकाशन
मोबाइल 9806162184
दूरभाष 07562405545
संक्रामक समय में आशावादी लघुकथाओं का आयोजन
क्षितिज संस्था की संकल्पना
क्षितिज साहित्य मंच, इंदौर के द्वारा दिनांक 26 मई 2020 शनिवार शाम 4:00 बजे एक ऑनलाइन ऑडियो सार्थक लघुकथा गोष्ठी का क्षितिज के व्हाट्सएप पटल पर आयोजन किया गया। गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री सूर्यकांत नागर ने की। प्रमुख अतिथि साहित्यकार, समीक्षक डॉ. पुरुषोत्तम दुबे रहे। गोष्ठी के आरम्भ में सस्वर सरस्वती वंदना विनीता शर्मा द्वारा प्रस्तुत की गई।
क्षितिज संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया। अतिथियों का स्वागत करते हुए श्री राठी ने कहा कि, "आठवां दशक लघुकथा के लिए एक महत्वपूर्ण समय था। उस समय में लघुकथा की स्थापना के लिए जद्दोजेहद हो रही थी। बहुत सारा काम लघुकथा के लिए हो रहा था। तब लघुकथा विधा के विकास के लिए जून 1983 में 'क्षितिज' की स्थापना की गई। तबसे लघुकथा के लिए संस्था सतत कार्य कर रही है। पत्रिका क्षितिज का प्रकाशन करने के साथ लघुकथा की कई पुस्तकों का प्रकाशन एवं इंदौर में कई सारे आयोजन लघुकथा विधा को लेकर किए गए। इन आयोजनों में सर्वश्री विष्णु प्रभाकर, रामनारायण उपाध्याय, मालती जोशी, यशवंत व्यास, रामविलास शर्मा, गणेश दत्त त्रिपाठी, विलास गुप्ते, विष्णु चिंचालकर, शरद पगारे, विष्णु दत्त नागर, बलराम, बलराम अग्रवाल, सुकेश साहनी, अशोक भाटिया, सुभाष नीरव, भगीरथ, योगराज प्रभाकर, नर्मदा प्रसाद उपाध्याय तथा लघुकथा के कई महत्वपूर्ण हस्ताक्षर क्षितिज के आयोजनों में शिरकत कर चुके हैं। लघुकथा विधा के उन्नयन के लिए समर्पित लघुकथाकारों को पिछले 2 वर्षों से क्षितिज संस्था सम्मानित भी कर रही है।
नियमित आयोजनों की शृंखला में ऑनलाइन लघुकथा संगोष्ठी में सर्वश्री ब्रजेश कानूनगो ने "सभ्यता", आर.एस. माथुर ने "बोध", जितेन्द्र गुप्ता ने "थैंक्स लॉकडाउन", चंद्रा सायता ने "शोर", सुषमा व्यास "राजनिधि" ने " ममता का लॉकडाउन", चेतना भाटी ने "पानी रे पानी", अदिति सिंह भदौरिया ने "एहसास", राममूरत राही ने "पराया खून", योगेन्द्र नाथ शुक्ल ने "भ्रमभंग", देवेन्द्र सिंह सिसौदिया ने "अंतर सोच का", विजया त्रिवेदी ने "मजबूरी", ललित समतानी ने "तेरह तारीख", अंतरा करवड़े ने "गंदा कुत्ता", अखिलेश शर्मा ने "विडम्बना", सतीश राठी ने "रोटी की कीमत", ज्योतिसिंह ने "सूत सावन", नंदकिशोर बर्वे ने "आजादी", विनिता शर्मा ने "पुनरागमन", ज्योति जैन ने "अपने वाले" लघुकथाओं का पाठ किया। इन रचनाओं पर डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने अपनी सटीक, सारगर्भित समीक्षा प्रस्तुत की और सभी लघुकथा प्रस्तुत करने वाले लघुकथाकारों को बधाई दी। इस अवसर पर डॉ. दुबे ने अपनी लघुकथा "अन्न प्राशन" का पाठ किया। आज पाठ की गई लघुकथाओं पर डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा "ब्रजेश कानूनगो की लघुकथा "सभ्यता" में फ़िल्मी प्रभाव की स्वीकार्यता को, भारतीय सांस्कृतिक परिवेश को दरकिनार करते हुए विश्लेषित किया गया है। लघुकथा "सभ्यता" में वर्तमान पीढ़ी की लड़की के विचारों में संवाद बेड टी और गुड़ टच के विस्फोटक प्रहार से घायल हुई भारतीय सांस्कृतिक परंपरा का हृदय विदारक चित्र खींचा गया है। आर. एस. माथुर की लघुकथा "बोध" डोर टू डोर कचरा बटोरने की गाड़ी के ड्राइवर की कर्मशीलता को रेखांकित करती है। किसी भी प्रकार के लोभ और लालच रहित उसके चरित्र का बखान करती है। जितेन्द्र गुप्ता की लघुकथा "थैंक्स लॉकडाउन" खेत और घर के बँटवारे की नीयत से माता-पिता के पास आए दो भाइयों के परिवार के मध्य की मन-मुटाव की दरार को लॉकडाउन से उत्पन्न परिस्थिति के मरहम से भर देती है। दोनों भाई माँ के ममत्व का अतिरेक पाकर बँटवारे का फ़ैसला टाल देते हैं। डॉ. चन्द्रा सहायता की लघुकथा "शोर" में परिवार का पोता मरणासन्न वृद्ध दादा की अंतिम इच्छा पूर्ति का अनुमान लगाकर तमाम प्रतिबंधों के बावजूद उन्हें बीड़ी पीने को देता है। सुषमा व्यास "राजनिधि" की लघुकथा "ममता का लॉकडाउन" हर घन्टे चाय पीने वाले पति के अविश्वसनीय लगने वाले शौक़ की शल्य चिकित्सा पत्नी द्वारा लॉकडाउन में बेकार हुए झोपड़ी वाली के भूखे बच्चों के लिए करूणा ग्रसित होकर पति की चाय पर खर्च होने वाले हिस्से का दूध बच्चे के लिए दे देती है। चेतना भाटी की लघुकथा "पानी रे पानी" पानी के अपव्यय पर प्रश्न खड़ा कर पानी के संचय, उसकी आवश्यकता और उपयोगिता पर विचार रखती है। अदिति सिंह भदौरिया की लघुकथा "एहसास" लॉकडाउन के चलते हुए माँ के स्नेह का दोहन करने परिवार के पारस्परिक सामंजस्य का परिवेश बुनती है, जिससे माँ को अपना घर, घर जैसा लगने लगता है। लघुकथा में चर्चित नाम है डॉ. योगेन्द्र नाथ शुक्ल की लघुकथा "भ्रमभंग" परिवार में कार्यरत नौकर रामलाल की सेविकाई का उत्कट रूप खींचती है। परिवार के बच्चे हर छोटे-बड़े काम के लिए रामलाल को ही बुलाते हैं, इस कारण परिवार के मुखिया की सोच का यह भ्रम टूट जाता है कि बच्चों को हर घड़ी उसकी ज़रूरत है। देवेन्द्रसिंह सिसौदिया की लघुकथा "अंतर सोच का" में पति को वेतन मिलने की प्रतिक्षा में पत्नी प्रधानमंत्री राहत कोष में दस हज़ार रुपए का दान करती है, लेकिन पति को सरकारी निर्देश के बावजूद आधा वेतन मिलता है, तो ख़र्चे की भरपाई के लिए वह अपने भाई से दस हज़ार रुपए माँगने को विवश हो जाती है। डॉ. विजया त्रिवेदी की लघुकथा "मजबूरी" क्वारेंटाइन किए हुए घर में कोरोना संक्रमित पति के कमरे में उन्हें खाना देने में हर कोई घबराया हुआ है, यहाँ तक कि ख़ुद की पत्नी भी। लेकिन परिवार का पालतू कुत्ता तन्हाई की ऐसी घड़ी में भी अपने मालिक के साथ उसी कमरे में रहता है। संवेदनहीनता के बरअक्स संवेदनशीलता से जड़ित लघुकथा विचारणीय है। ललित समतानी की लघुकथा "तेरह तारीख" तेरह के अशुभ अंक की मनहुसियत का बोझ उस समय खारिज कर देती है जब इस तारीख़ की समय पीड़ा से ग्रसित लड़की का नौकरी के लिए साक्षात्कार तेरह तारीख़ को ही होता है और वह इस साक्षात्कार में सफल हो जाती है। डॉ. अखिलेश शर्मा की लघुकथा "विडम्बना" ज़मीन में निरंतर घट रहे जलस्तर का ताना-बाना भीष्म पितामह और धनुर्धारी अर्जुन जैसे पौराणिक चरित्रों के माध्यम से बुनी जाकर जल के अभाव में मृत्यु का बोध कराती है। ज्योति जैन की लघुकथा "अपने वाले" एकेन्द्रिय जीव कैरियों से लदे आम के पेड़ की झुकी हुई विनयशीलता के बरअक्स आम का मालिक जो पंचेन्द्रियों से बना है, अपने पेड़ की कैरियों का बड़ों और बच्चों में बाँटने में कृपणता का ओछा भाव प्रदर्शित करता है। सतीश राठी की लघुकथा "रोटी की कीमत" अलग प्रकार की विचारणीय लघुकथा है। इस लघुकथा का शीर्षक "रोटी की कीमत" की वाचालता ही लघुकथा का परिवेश बुनती है। जब एक सुटेड-बुटेड व्यक्ति कार द्वारा पहली बार गेहूँ पिसाने आटा चक्की पर जाता है नम्बर आने पर ही चक्की वाला उसका गेहूँ पिसता है, यही बात प्रकारान्तर से उसके रूतबे को छलनी कर उसे असहज बना देती है। डॉ. ज्योतिसिंह की "सूत सावन" मकान बनाने वाले कारीगर के अनुशासित परिवार पर आधारित है। जिस प्रकार कारीगर सीधी दिवार बनाने में सूत सावन का उपयोग करता है, प्रतीक रूप में घर के सदस्यों में उनके चरित्र का निर्माण सूत सावन के आदर्श व्यवहार से होता है। सूर्यकांत नागर की लघुकथा "सांझी चिंता" अपने अपने दायित्व बोध को ज़मीनी अन्जाम देने में जुटे पुलिस कर्मी और गृहस्वामी के समानांतर ज़िम्मेदारियों का विश्लेषण करती है। प्रकृति के प्रति रागात्मक विचार रखने वाला गृहस्वामी पेड़ पौधों को पानी पिलाने की संवेदना के बूते लॉकडाउन की सख़्ती के बावजूद पुलिस कर्मी का हृदय जीत लेता है। विनीता शर्मा की लघुकथा "पुनरागमन" योग और प्राणायाम के माध्यम से रोग प्रतिरोधक क्षमता को स्थायी रूप में बढ़ाए जाने बाबत "जिम" पहुँचने वाले युवाओं को लौटने की बात करती है। अंतरा करवड़े की लघुकथा "गंदा कुत्ता" कुत्ता और मनुष्य के बीच एक बेनाम रागात्मक रिश्ता बुन जाने की बात करती है। नित्य प्रति प्रात:कालीन सैर को निकलने वाले संभ्रान्त व्यक्ति के साथ उस व्यक्ति की अवांछा के चलते हुए भी एक सड़क छाप गंदा कुत्ता प्रतिदिन उसकी सैर का सहभागी बन जाता है और अंत में एक दिन साम्प्रदायिकता की सुलगती आग के घेरे से वही गंदा कुत्ता उसको सुरक्षित स्थान पर ले जाकर सिद्ध कर देता है कि कुत्ता गंदा या आवारा हो वफ़ादारी निभाने में कुत्ता होकर भी कुत्ताई नहीं दिखाता। इस मंतव्य को पूर्ण बनाने में गली का कुत्ता और पालतू कुत्ता की इच्छाओं का प्रतीकात्मकता के साथ उभारा गया है। राममूरत राही की लघुकथा "पराया खून" किसी सिनेमा के गीत की तरह सामने आती है। एक नि:संतान व्यक्ति संतान प्राप्ति के लिए पत्नी को तलाक़ देकर दूसरा विवाह करना चाहता है, जिसके उत्तर में उसकी माँ उसे ऐसा न कर अनाथालय से किसी बच्चे को गोद लेने की बात करती है। लेकिन उसकी माँ तब हतप्रभ हो जाती है कि उसका बेटा अपने खून की संतान चाहता है। उसकी माँ उसके अड़ियल रवैए को दस्तक देती है कि वह ख़ुद भी हमारे द्वारा अनाथालय से गोद लिया हुआ है। नंदकिशोर बर्वे का नाम हमारे लिए महत्वपूर्ण है। वर्ष 2018 में क्षितिज के अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में बर्वे जी ने कई लघुकथाओं के नाट्य रूपांतरण क्षितिज के मंच पर प्रस्तुत किए थे। हाल ही में इन्होंने सतीश राठी की लघुकथा "राशन" का नाट्य रूपांतरण प्रस्तुत किया है। इनकी लघुकथा "आजादी" में दृष्टव्य है कि गुलामी के हलवे से बेहतर आजादी की रोटी होती है।"
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री सूर्यकांत नागर ने कहा "अभी हमने 21 लघुकथाकारों की लघुकथाओं का पाठ सुना। सबको बधाई। सभी लघुकथाकार इस इंदौर से है, जिसे मध्य भारत में आधुनिक लघुकथा की जन्म स्थली होने का गौरव प्राप्त है। सन 1980-81 के आसपास विक्रम सोनी, सतीश दुबे, सतीश राठी और चरणसिंह अमी ने लघुकथा केंद्रित पत्रिका "लघु आघात" के माध्यम से और अन्यथा भी विधा के उन्नयन के लिए काम किया। बाद में क्षितिज ने यह जिम्मेदारी ली और उसे पूरी ज़िम्मेदारी से आज तक निभा रही है। वेद हिमांशु, चंद्रशेखर दुबे, सुरेश शर्मा, चैतन्य त्रिवेदी, एन. उन्नी, अनंत श्रीमाली का भी इस विधा में निरंतर योगदान रहा है योगेंद्रनाथ शुक्ल, पुरुषोत्तम दुबे के बाद अब अंतरा करवड़े, वसुधा गाडगिल आदि मशाल जला क्षितिज संस्था के साथ निरंतर काम कर रहे हैं। परिपक्व लघुकथाओं का अनुभव आज सुनाई गई कई लघुकथाओं में हुआ। समय की माँग, ज़रूरत और लेखक की प्रतिभा ही किसी विधा की दिशा तय करते हैं। बदलते यथार्थ के रचनात्मक स्वरूप को सामने लाने का प्रयास पढ़ी हुई लघुकथाओं में नज़र आता है। इधर युगीन यथार्थ की अभिव्यक्ति का जज़्बा बढ़ा है। फिर भी धैर्यपूर्वक अभी बहुत कुछ किया जाना शेष है। व्यंजना लघुकथा की बड़ी ताक़त है जो बाँची गई लघुकथाओं में दिखाई देती है। इस पूरे आयोजन के लिए इंदौरी लघुकथाकारों के साथ क्षितिज और उससे जुड़े समस्त सक्रिय साथियों का अभिवादन, बधाई और अपेक्षा कि ऐसे यज्ञों के हवन कुंड में आहुतियाँ पड़ती रहेंगी।"
इस गोष्ठी की एक प्रमुख विशेषता रही है कि दो घंटे के इस कार्यक्रम में देश के वरिष्ठ साहित्यकार और लघुकथाकार श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहकर इस ऑनलाईन लघुकथा संगोष्ठी के सहभागी और साक्षी बने। इस ऑनलाइन कार्यक्रम में बलराम अग्रवाल, अशोक कंधवे (दिल्ली), श्री बी. एल. आच्छा (चैन्नई) अशोक भाटिया (चंडीगढ़), कुमार गौरव (पटना), सेवा सदन प्रसाद (मुम्बई), मुन्नुलाल (बलरामपुर, उ.प्र.), अनघा जोगलेकर (गुरुग्राम), पवित्रा अग्रवाल, सरिता सुराणा (हैदराबाद), योगराज प्रभाकर, जगदीश कुलारिया, सीमा भाटिया (पंजाब), पवन जैन (जबलपुर), संध्या तिवारी (पीलीभीत), ज्योत्स्ना सिंह कपिल (बरेली), अशोक मिश्र (गोरखपुर), प्रतापराव कदम, आत्माराम शर्मा, कांता राय, मधुलिका सक्सेना, संतोष श्रीवास्तव अशोक गुजराती (भोपाल), राजेंद्र काटदारे (मुम्बई), देवेन्द्र सोनी (इटारसी), गोविन्द गुंजन (खंडवा), विजय जोशी (महेश्वर), हनुमान प्रसाद मिश्र (अयोध्या), कुलदीप दासोत (जयपुर), बालकृष्ण नीमा (नीमच), संतोष सुपेकर, डी.के. जैन, वंदना गुप्ता (उज्जैन) से शामिल हुए। सर्वश्री जी डी अग्रवाल, वसुधा गाडगिल, कविता वर्मा, शोभा जैन, सत्यनारायण व्यास (सूत्रधार), कांतिलाल ठाकरे, राकेश शर्मा, अश्विनी कुमार दुबे, वंदना पुणताम्बेकर, उमेश नीमा, पदमा राजेंद्र, रजनी रमण शर्मा, राजनारायण बोहरे, प्रदीपकांत, मनोज सेवलकर, दीपा व्यास, अनिल त्रिवेदी, रविंद्र व्यास, रूख़साना जी इंदौर से इस आयोजन के साक्षी रहे।
क्षितिज संस्था ने इस अनूठे साहित्यिक समारोह द्वारा लघुकथा विधा में नये आयाम स्थापित किए। इस गोष्ठी का संचालन सीमा व्यास ने किया। आभार श्री दीपक गिरकर सचिव क्षितिज संस्था के द्वारा माना गया। कार्यक्रम के अंतिम चरण में ऑनलाइन उपस्थित श्रोताओं ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ पोस्ट कीं।
दीपक गिरकर
सचिव - क्षितिज
डॉ. सुषम बेदी की स्मृति में भावपूर्ण ज़ूम श्रद्धांजलि सभा
दिनांक 15 मई, 2020 को शीर्ष प्रवासी साहित्यकार श्रीमती सुषम बेदी की स्मृति में वैश्विक हिंदी परिवार (वाटस्एप समूह) द्वारा विश्व की विभिन्न संस्थाओं अक्षरम (भारत), वातायन काव्यांजलि (ब्रिटेन), हिंदी राइटर्स गिल्ड (कनाडा), झिलमिल (अमेरीका) के सहयोग से श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में श्रीमती सुषम बेदी जी की स्मृति में साहित्य कुंज द्वारा प्रकाशित वेब अंक का लोकार्पण भी किया गया। कार्यक्रम में उनके परिवार के सदस्यों उनके पति श्री राहुल बेदी, बेटी व अभिनेत्री पूर्वा बेदी व परिवार के अन्य सदस्यों के अतिरिक्त न्यूयार्क में भारत के कौंसलेट जनरल श्री संदीप चक्रवर्ती, विश्व हिंदी सचिवालय के महासचिव श्री विनोद कुमार मिश्र, केंद्रीय हिंदी संस्थान के श्री कमल किशोर गोयनका, वरिष्ठ पत्रकार राहुल देव, अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के श्री श्याम परांडे व नारायण कुमार और कार्यक्रम के आयोजक अनिल जोशी संचालक श्री अनूप कुमार के अतिरिक्त कई विशेष व्यक्तियों ने अपने विचार रखे। इस अवसर पर उनकी स्मृति में बोलने वाले और उनकी कृतियाँ प्रस्तुत करने वालों में कोलंबिया विश्वविद्यालय के श्री राकेश रंजन, सुश्री गैबरिला, सुश्री सोमा व्यास। येल से श्रीमती सीमा खुराना, कनाडा से श्री सुमन घई, डॉ. शैलजा सक्सेना, भारत से अलका सिन्हा, ब्रिटेन से डॉ. पद्मेश गुप्त, मीरा मिश्रा ‘कौशिक‘ सम्मिलित थे।
कार्यक्रम का प्रारंभ लेखक व इस कार्यक्रम के संयोजक अनिल जोशी ने सुषम जी की कहानी ’अवसान’ को याद करते हुए गीता पाठ से किया। उन्होंने कहा कि सुषम जी का योगदान इतना महत्वपूर्ण है कि उनके द्वारा रचित साहित्य के आधार पर ही प्रवासी साहित्य के प्रतिमान बनाए गए। उनका लेखन स्त्री विमर्श में मील का पत्थर है। कार्यक्रम के संचालक श्री अनूप कुमार ने सुश्री सुषम बेदी से जु़ड़े कई आत्मीय प्रसंगों को याद किया और उनके जाने को अमेरिका के हिंदी साहित्य की बड़ी क्षति बताया। उन्होंने सुषम जी के चित्रों के पावर प्वाईंट प्रस्तुति के माध्यम से उनके व्यक्तित्व के बारे में जानकारी दी। इसके बाद उन्होंने वक्ताओं को बुलाना प्रारंभ किया।
सभी वक्ता सुषम जी से जुड़ी स्मृतियों के भाव में डूबे हुए थे। सुषम जी के पति श्री राहुल बेदी जी के भाषण को सुन कर सभी की आँखें भर आईं। उन्होंने लेखन और हिंदी के प्रति सुषम जी की निष्ठा को विभिन्न प्रसंगों के माध्यम से बताया। राहुल जी अपने प्रति लिखी कविता ‘तुम्हारे जाने के बाद’ पढ़ते हुए भावुक हो गए। उन्होंने गीता के एक श्लोक का उद्धृत करते हुए कहा कि सुषम जी के जीवन में वे सभी गुण थे जिनका उल्लेख महिलाओं के संदर्भ में गीता के विभूति योग में है। उन्होंने कहा कि वे उनके जाने के बाद भी सदा हिंदी से जुड़े रहना चाहेंगे। उनकी बेटी और अभिनेत्री पूर्वा बेदी ने भी अपने माँ के असाधारण व्यक्तित्व को याद किया। उनके बेटे वरुण बेदी ने स्मृति-सभा के आयोजन के लिए सबको धन्यवाद देते हुए अपनी माँ के सक्रिय व्यक्तित्व को याद किया।
सुषम जी के योगदान को याद करते हुए न्यूयार्क में भारत के कौंसलेट जनरल श्री संदीप चक्रवर्ती ने बताया कि वे कोंसलेट के कार्यक्रमों में सदा भागीदारी करती थीं। उन्होंने उनकी भागीदारी के कुछ चित्र भी प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि लॉकडाउन खुलने पर कांसुलेट में उनकी स्मृति में एक कार्यक्रम रखना चाहेंगे। विश्व हिंदी सचिवालय के महासचिव श्री विनोद कुमार मिश्रा ने कहा वे केवल प्रवासी जगत की ही नहीं बल्कि पूरे हिंदी जगत की महत्वपूर्ण साहित्यकार थीं। उनका जाना हिंदी साहित्य की बड़ी क्षति है। प्रसिद्ध आलोचक श्री कमल किशोर गोयनका ने कहा कि यह उचित ही है कि सुषम जी जैसी वैश्विक पटल पर कहानियाँ रचने वाली लेखिका की स्मृति में यह वैश्विक श्रद्धांजलि सभा हो रही है। उन्होंने कहा कि वे अमेरिका में हिंदी की सबसे महत्वपूर्ण साहित्यकार थीं। अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के महासचिव श्री श्याम परांडे ने उनके व्यक्तित्व और कृतित्व का अभिनंदन करते हुए उनका पुण्य स्मरण किया वहीं अंतरराष्ट्रीय सहयोग परिषद के मानद निदेशक श्री नारायण कुमार ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटेन के सत्येन्द्र श्रीवास्तव, मारिशस के अभिमन्यु अनत, फीजी के श्री जोगिंदर सिंह कँवल और अब सुषम बेदी का जाना प्रवासी साहित्य की बहुत बड़ी क्षति है। वरिष्ठ पत्रकार श्री राहुल देव ने पिछले वर्ष ही भोपाल में आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में आत्मीय मुलाक़ात का उल्लेख किया और कहा कि वे असाधारण गुणों से युक्त व्यक्तित्व थीं। कोलंबिया युनिवर्सटी की सुश्री गैबरिएला तो इतनी भाव विभोर हुई कि अपनी स्मृतियों को शब्दरूप में कहते हुए उनका गला रुंध गया। उन्होंने एक कविता के माध्यम से सुषम जी को याद किया। सुश्री सोमा व्यास ने कहा कि वे नए लेखकों का सदा उत्साह बढ़ाती थीं। उनके व्यक्तित्व के विकास में सुषम जी का महत्वपूर्ण योगदान है। इस अवसर पर उनके साथ शिक्षण के क्षेत्र से जुड़े रहे श्री राकेश रंजन और येल युनिवर्सटी की श्रीमती सीमा खुराना ने भी सुषम जी की सहजता और आत्मीय व्यक्तित्व को याद किया। कार्यक्रम में भारत की लेखिका अलका सिन्हा ने सुषम बेदी जी की स्त्री विमर्श से जुड़ी कुछ प्रतिनिधि कविताओं का बहुत सुरुचिपूर्ण पाठ किया, वहीं वातायन यू.के. की अध्यक्ष सुश्री मीरा कौशिक ने सुश्री दिव्या माथुर द्वारा चयनित कविता ‘यादें‘ संवेदनापूर्ण तरीक़े से पढ़ीं। ब्रिटेन के डॉ. पद्मेश गुप्त ने सुषम बेदी जी को श्रद्धांजलि दी और वैश्विक हिंदी परिवार जैसे समूह की स्थापना के लिए अनिल जोशी जी को बधाई दी और कहा कि इस मंच के कारण से विश्व के सभी प्रमुख हिंदी व्यक्तित्व इस श्रद्धांजलि सभा में एक साथ इकट्ठे हो पाए हैं।
इस अवसर पर सुश्री सुषम बेदी की स्मृति में ’साहित्य कुंज.नेट’ वेब पत्रिका के विेशेषांक का भी लोकार्पण हुआ। साहित्य कुंज के संपादक श्री सुमन घई ने विशेषांक के बारे में जानकारी देते हुए सुषम जी को याद किया। विशेषांक की अतिथि संपादक डॉ. शैलजा सक्सेना ने अपने साथ उनके संबंधों को याद करते हुए उनके सरल सहज व्यक्तित्व को याद किया। उन्होंने उनके उपन्यास कतरा-दर-कतरा- दुख के संबंध में एक संस्मरण बताते हुए कहा कि सुषम जी ने उन्हें सलाह दी थी कि इसे मत पढ़ना, तुम दुखी होगी। पढ़ कर लगा कि एक बड़े लेखक के रूप में उन्होंने कितने बड़े संसार का दुख सहा। उन्होंने विशेषांक के सभी लेखकों का भी आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम के अंत में राहुल बेदी जी की बहन नीलम पूरी ने (जो मिशिगन में रहती हैं) ने बताया कि किस तरह सुषम जी उन्हें अपनी ननद नहीं, बहन की तरह मानती थी और उतना ही स्नेह देती थी। सुषम जी की बड़ी बहन उषा तनेजा और उषा जी की पुत्री रश्मि मंगल भी शामिल हुई और उन्होंने बताया कि सुषम जी किस तरह बचपन से ही प्रतिभाशाली रही और परिवार में सब को कितना प्यार करती थीं।
कार्यक्रम में दुनिया भर के 200 से ज्यादा लेखकों / साहित्यकारों / हिंदी प्रेमियों और सुषम जी के परिवार के सदस्यों ने उपस्थित होकर सुषम बेदी जी को श्रद्धांजलि दी।
प्रस्तुतकर्ता- अनिल जोशी
आगे पढ़ेंलॉकडाऊन में रचनाधर्मिता को नवीन आयाम : क्षितिज की ऑनलाइन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी
लघुकथा प्रवासी और टेक दुनिया के अंतरंग का हिस्सा- श्री बीएल आच्छा
श्री बलराम अग्रवाल (दिल्ली) |
कोरोना वायरस के कारण किए गए लॉकडाऊन को देखते हुए क्षितिज साहित्य मंच, इंदौर द्वारा दिनांक 25 अप्रैल 2020 शनिवार शाम 4:00 बजे एक ऑनलाइन ऑडियो सार्थक लघुकथा गोष्ठी का क्षितिज साहित्य मंच के पटल पर आयोजन किया गया। इस गोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, लघुकथाकार, कथाकार, आलोचक श्री बलराम अग्रवाल (दिल्ली) ने की और इस समारोह के प्रमुख अतिथि थे मूर्धन्य साहित्यकार, समीक्षक, आलोचक श्री बी.एल. आच्छा (चैन्नई)। गोष्ठी के आरम्भ में क्षितिज संस्था के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार, लघुकथाकार, समीक्षक श्री सतीश राठी द्वारा स्वागत भाषण दिया गया और अतिथियों का स्वागत करते हुए श्री राठी ने कहा कि आज हमारे लिए बड़ी ख़ुशी कि बात है कि इस ऑनलाइन कार्यक्रम में आदरणीय श्री बलराम अग्रवाल (दिल्ली) और श्री बी.एल. आच्छा (चैन्नई) के साथ देश के वरिष्ठ साहित्यकार और लघुकथाकार आदरणीय सर्वश्री अशोक भाटिया (चंडीगढ़), सुभाष नीरव (दिल्ली), भागीरथ (रावतभाटा), माधव नागदा (नाथद्वारा), रामकुमार घोटड़ (चूरू, राजस्थान), अशोक जैन, मुकेश शर्मा (गुरुग्राम), ओम मिश्रा (बीकानेर), योगराज प्रभाकर, जगदीश कुलारिया (पंजाब), हीरालाल मिश्रा (कोलकाता), लता चौहान चौहान (बेंगलुरु) पवन शर्मा (छत्तीसगढ़), पवन जैन (जबलपुर), संध्या तिवारी (पीलीभीत), अरुण धूत, संतोष श्रीवास्तव, अशोक गुजराती (भोपाल), मनीष वैद्य (देवास), राजेंद्र काटदारे (मुम्बई), अंजना अनिल (अलवर), देवेन्द्र सोनी (इटारसी), पवित्रा अग्रवाल (हैदराबाद), गोविन्द गुंजन (खंडवा), कुलदीप दासोत (जयपुर), धर्मपाल महेंद्र जैन (टोरंटो), सत्यनारायण व्यास सूत्रधार, व्यंग्यकार कांतिलाल ठाकरे, राकेश शर्मा संपादक वीणा, अश्विनी कुमार दुबे, पुरुषोत्तम दुबे, ब्रजेश कानूनगो, चंद्रा सायता, वन्दना पुणताम्बेकर, पदमा राजेंद्र, संगीता भारूका, रजनी रमण शर्मा, जगदीश जोशी, सुषमा व्यास, राजनारायण बोहरे, अर्जुन गौड़, नंदकिशोर बर्वे, सुभाष शर्मा, उमेश नीमा, ललित समतानी, सीमा व्यास, चेतना भाटी, मंजुला भूतड़ा, निधि जैन, राममूरत राही, (इंदौर), नई दुनिया के हमारे साथी श्री अनिल त्रिवेदी, दैनिक भास्कर के हमारे साथी श्री रविंद्र व्यास, पत्रिका से रुख़साना जी, बैंक के साथी गोपाल शास्त्री, गोपाल कृष्ण निगम (उज्जैन) भी उपस्थित हैं, मैं इन सभी का स्वागत करता हूँ और हृदय से अभिनन्दन करता हूँ।
श्री बी.एल. आच्छा (चैन्नई) |
इसके पश्चात लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से क्षितिज संस्था द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी एवं क्षितिज के विभिन्न प्रकाशनों की जानकारी श्री सतीश राठी द्वारा दी गई। इस गोष्ठी में हमारे इंदौर शहर से बाहर के क्षितिज के सदस्य लघुकथाकारों सर्वश्री संतोष सुपेकर, दिलीप जैन, कोमल वाधवानी, आशा गंगा शिरढोनकर (उज्जैन), सीमा जैन (ग्वालियर), कांता राय (भोपाल ), अनघा जोगलेकर, विभा रश्मि (गुरुग्राम), अंजू निगम, सावित्री कुमार (देहरादून), कनक हरलालका (धुबरी, आसाम), हनुमान प्रसाद मिश्रा (अयोध्या) ने लघुकथाओं का पाठ किया। स्व पारस दासोत की लघुकथा का पाठ उनकी बहू द्वारा किया गया।
इन रचनाओं पर श्री बलराम अग्रवाल ने अपने उद्बोधन में कहा, “दिलीप जैन की लघुकथा 'गिनती की रोटी' में पात्र का चरित्र उसके दादाजी से प्राप्त संस्कार के रूप में आकार ग्रहण करता है और एक विशेष प्रकार का मनोविकार बन जाता है। कुल मिलाकर यह लघुकथा पद प्रतिष्ठा और स्थिति के अनुरूप भारतीय स्त्री भारतीय स्त्री के संस्कार पूर्ण मनोविज्ञान को सफलतापूर्वक हमारे सामने प्रस्तुत करती है। अंजू निगम की लघुकथा 'माँ' के केंद्र में सौतेली माँ की प्रचलित छवि को बदलने का प्रयास नज़र आता है। विषय नया न होकर भी अच्छा है, लेकिन इस लघुकथा का शिल्प अभी कमज़ोर है। इस सदी में लघुकथा लेखन में कुछ सधी हुई क़लम भी आई हैं। उनमें सीमा जैन ऐसा नाम है जिनका जो व्यक्ति जीवन के संवेदनशील क्षणों को पकड़ने और प्रस्तुत करने के प्रति बहुत सचेत रहती हैं। उनकी प्रस्तुति जाने पहचाने विषय को भी नयापन दे देती है। उनकी लघुकथा 'उड़ान' सकारात्मक सरोकारों से लबालब है।
“कांता राय की लघुकथा 'माँ की नज़र'- इस पूरी लघुकथा में पात्रों के चरित्र के साथ न्याय होता मुझे नज़र नहीं आता है। कोमल वाधवानी लघुकथा 'गुहार'- यह संस्मरणात्मक शैली में लिखी कथा है। कथा का अंत इस अर्थ में अति नाटकीय हो गया है कि दीवारें अपने गिरने का पूर्वाभास नहीं देती हैं। वे गिर ही जाती हैं, बूढ़ी काकी की तरह किसी को बचा लेने का अवसर भी वे नहीं देतीं। सावित्री कुमार की लघुकथा 'भ्रम का संबल' कथ्य की दृष्टि से एक सुंदर लघुकथा है। इसका आधार एक मनोवैज्ञानिक सत्य है। इस लघुकथा में, मुझे लगता है कि अनु का डॉक्टर के पास हर बार पहले जाना ज़रूरी नहीं है। आशा गंगा प्रमोद शिरढोणकर की लघुकथा 'उसके बाद'- बढ़ी उम्र में जीवनसाथी से बिछोह के बाद त्रस्त जीवन की भावपूर्ण झाँकी इस लघुकथा में बड़ी सहजता से सफलतापूर्वक प्रस्तुत की गई है। अनघा जोगलेकर की लघुकथा 'जुगनू'- उन्होंने किसान के जीवन में आशा की एक किरण को 'जुगनू' की संज्ञा दी है। लघुकथा के इस कथानक में कई बातें अस्पष्ट सी छूट गई हैं। 'वेरी गुड' संतोष सुपेकर की लघुकथा है। मेरा विश्वास है कि बालमन को समझना और बालक का मान रखना हँसी खेल नहीं है। विपरीत परिस्थिति में भी इस लघुकथा का मुख्य पात्र जिस तरह अपने बेटे का मान रखता है वह हमें दूर तक फैले ख़ुशियों के उपवन में ले जाता है। विभा रश्मि की एंटीवायरस स्त्री मनोविज्ञान की बेहतरीन लघुकथा है। हनुमान प्रसाद मिश्र अपेक्षाकृत कम लिखने वाले वरिष्ठ लेखक हैं। क्षितिज के इस ऑनलाइन लघुकथा गोष्ठी कार्यक्रम में उनकी उपस्थिति उत्साह बढ़ाने वाली है। दृष्टांत शैली की यह रचना प्रभावित करती है। कनक हरलालका की 'इनसोर' लघु कथा में एक मज़दूर की पीड़ा को उभारने की भरपूर कोशिश है। शिल्प की दृष्टि से इसे अभी और कसा जा सकता था फिर भी इस भाव संप्रेषण के कारण कि मज़दूर की पहली ज़रूरत उसके आज की पूर्ति होना है, यह एक प्रभावशाली लघुकथा कही जा सकती है।
“कुल मिलाकर देखा जाए तो वर्तमान लघु कथा लेखन नवीन विषयों को लेकर तो कुछ नवीन प्रस्तुतियों को लेकर साहित्य मार्ग पर अग्रसर है और उसकी यह अग्रसारिता संतुष्ट करती है।”
श्री बी. एल. आच्छा ने ऑनलाइन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी पर अपनी प्रतिक्रया देते हुए कहा, “हिंदी लघुकथा नई विधा है, पर अल्पकाल में इस विधा ने जितने संघर्षों को समेटा है, विमर्शों को अंतरंग बनाया है, मानव मन के अंतर्जाल को उकेरा है, उससे लगता है कि अन्य विधाओं की लंबी काल यात्रा लघुकथा में उतर आई है। यही नहीं लघुकथा ने आज की टेक दुनिया के साथ प्रवासी दुनिया तक विस्तार किया है। बड़ी बात यह इसका एक सिरा चूल्हे-चौके या मज़दूर किसान जीवन से सिरजा है, उतना ही बुर्जुआ और बोल्ड संस्कृति से भी। प्रयोग के लिए न केवल अनेक नई पुरानी शैलियों को आज़माया है, बल्कि अन्य विधाओं से इसे संवादी नाट्यपरक और विजुअल बनाया है। आज की लघुकथा यद्यपि मोटे तौर पर मध्यमवर्गीय जीवन के घेरे में ज्यादा है, पर प्रवासी और टेक दुनिया भी उसका अंतरंग हिस्सा बनी है। आज की संगोष्ठी में इसकी झलक देखी जा सकती है।
“अनघा जोगलेकर की लघुकथा किसानी व्यथाओं में पत्नी के जीवट में जुगनू की चमक दिखाती है, तो विभा रश्मि की 'एंटीवायरस 'आँखों के स्क्रीन में एंटीवायरस प्रोग्राम से हमउम्र के मनोविकारों को धोकर रख देती है। दिलीप जैन की लघुकथा 'गिनती की रोटी' में पीढ़ियों की समझ का फेर भले ही हो पर हृदय कल्मश नहीं है। सावित्री कुमार की लघुकथा 'भ्रम का संबल' में नारी की उदात्त पारिवारिक भूमिका मन को छू लेती है। कोमल वाधवानी की 'गुहार' और आशा गंगा शिरढोणकर की 'उसके बाद' लघुकथा में पारिवारिक रिश्तों में वृद्धावस्था की बेचैनियों के नुकीले सिरे चुभनदार बन जाते हैं। अंजू निगम की 'माँ' लघुकथा अपने उद्देश्य में बिखरती हुई भी समझ को विकसित करती है। सीमा जैन की 'उड़ान' में जेंडर असमानता के बीच लड़की की उड़ान नारी चेतना के पंखों में गति ला देती है। संतोष सुपेकर दो मनोभूमियों के कंट्रास्ट को 'व्हेरी गुड' में बख़ूबी मुखर कर देते हैं। हनुमानप्रसाद मिश्र दायित्व बोध लघुकथा में मानवेतर के माध्यम से सांस्कारिकता का संदेश देते हैं। कनक हरलालका की लघुकथा 'इनसोर' में कॉरपोरेट बचत की बाज़ारवादी सोच में भूख की पीड़ा असरदार है। कांता राय की 'माँ की नज़र में' लघुकथा पतित्व की स्वामी-सत्ता का घुलता हुआ अंदाज़ है। स्व. पारस दासोत की लघुकथा 'भारत' में तमाम फटेहाली के बावजूद ग़रीब की जीत का जज़्बा है। पठित रचनाओं में कथाभूमियाँ विविधता के क्षेत्रफल में बुनी हुई हैं। वे सामाजिक-पारिवारिक सरोकारों को जितनी वास्तविकताओं के साथ बुनती हैं, उतना ही बदलती दुनिया से भी। नरेटिव से संवादी बनती हैं और अंतर्वृत्तियों को सामने लाती हैं।”
इस गोष्ठी की एक प्रमुख विशेषता रही है कि 1 घंटे के इस कार्यक्रम में देश के वरिष्ठ साहित्यकार और लघुकथाकार श्रोताओं के रूप में उपस्थित रहकर प्रथम ऑनलाइन लघुकथा संगोष्ठी के सहभागी और साक्षी बने। क्षितिज ऑनलाईन सार्थक लघुकथा ऑडियो गोष्ठी जो कि क्षितिज संस्था का एक महत्वपूर्ण आयोजन था, ऐतिहासिक रूप से सफल रही। क्षितिज संस्था ने इस अनूठे साहित्यिक समारोह द्वारा लघुकथा विधा में नये आयाम स्थापित किए। इस गोष्ठी का संचालन जानी मानी मंच संचालक अंतरा करवड़े और डॉ. वसुधा गाडगिल ने किया। कार्यक्रम के अंतिम चरण में ऑनलाइन उपस्थित सहभागियों ने अपनी-अपनी प्रतिक्रियाएँ पोस्ट कीं और क्षितिज संस्था के सचिव श्री दीपक गिरकर द्वारा आभार व्यक्त किया गया।
'इंडियन पोएट्री इन इंग्लिश— पेट्रीकॉर' का लोकार्पण
पटना, मार्च 06, 2020 -
शुक्रवार को अँग्रेज़ी के जाने-माने साहित्यकार, कवि एवं टीपीएस कॉलेज के अँग्रेज़ी विभाग के आचार्य डॉ. छोटे लाल खत्री के साहित्यिक अवदान पर डॉ. सुधीर के अरोड़ा और डॉ. अवनीश सिंह चौहान द्वारा सम्पादित पुस्तक 'इंडियन पोएट्री इन इंग्लिश— पेट्रीकॉर : ए क्रिटीक ऑफ़ सी. एल. खत्रीज़ पोएट्री' का लोकार्पण कॉलेज के प्राचार्य प्रो. उपेन्द्र प्रसाद सिंह एवं उर्दू विभागाध्यक्ष प्रो. अबू बकर रिज़वी, दर्शनशास्त्र के अध्यक्ष प्रो. श्यामल किशोर, हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो. जावेद अख्तर खाँ एवं प्रो. शशि भूषण चौधरी ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर प्रो. छोटे लाल खत्री भी मौजूद थे।
प्रकाश बुक डिपो, बरेली द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक में भारतीय अँग्रेज़ी काव्य के परिप्रेक्ष्य में सीएल खत्री की रचनाधर्मिता पर 22 शोधपरक आलेख/आलोचनात्मक निबंधों के साथ रचनाकार का सारगर्भित साक्षात्कार, प्रतिनिधि रचनाएँ एवं महत्वपूर्ण उद्धरणों को संकलित कर विस्तार से चर्चा की गई है। इस पुस्तक को मुख्य रूप से 'द रिवर', 'फायर एंड वाटर', 'अर्थ', 'एयर', 'स्काई' खण्डों में विभाजित किया गया है। इसके साथ ही साक्षात्कार खण्ड, रचना खण्ड, ग्रंथसूची आदि को भी जोड़ा गया है।
प्रो. उपेन्द्र प्रसाद ने इस पुस्तक को महाविद्यालय के लिए एक बड़ी उपलब्धि मानते हुए प्रो. खत्री को बधाई दी। प्रो. रिजवी ने इस अवसर पर कहा कि सीएल खत्री अँग्रेज़ी में कविताएँ ज़रूर लिखते हैं, मगर इनकी कविताओं में हिन्दुस्तान की रूह बसती है। इनकी कविताओं का अनुवाद देश की कई अन्य भाषाओं में भी हो चुका है। इस अवसर पर उन्होंने यह भी बताया कि इन दिनों वे खत्री जी की कविताओं का सग्रंह— 'टू मिनट सायलेंस' का उर्दू में अनुवाद कर रहे हैं। प्रो. जावेद अख्तर खाँ ने डॉ. सुधीर के अरोड़ा और डॉ. अवनीश सिंह चौहान के इस बेहतरीन सम्पादन की सराहना करते हुए कहा कि खत्री जी अपनी कविताओं में आम आदमी की जिन्दगी की बुनयादी समस्याओं का चित्रण बख़ूबी करना जानते हैं। इस अवसर पर कॉलेज के शिक्षक एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ मौजूद थे
आगे पढ़ेंभाषा और संस्कृति पर दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन संपन्न
नई दिल्ली, 1 मार्च 2020
"आज का समय पूरी दुनिया में मानवीय मूल्यों के संकट, आसुरी शक्तियों के आतंक और आदर्शों के अभाव का समय है। ऐसे में पूरी दुनिया भारत की ओर उम्मीद की नज़रों से देख रही है। भारत के पास राम और कृष्ण जैसे आदर्श चरित्र उपलब्ध हैं, जो विश्व कल्याण की प्रेरणा दे सकते हैं। इनके माध्यम से दुनिया भर में मानवमूलक संस्कृति की पुनः स्थापना की जा सकती है। तरह तरह के खंड खंड विमर्शों के स्थान पर परिवार विमर्श आज की आवश्यकता है और इसी के साथ रामत्व और कृष्णतव की प्रतिष्ठा जुड़ी है।"
ये विचार प्रख्यात साहित्यकार, लोक संस्कृति विशेषज्ञ और गोवा की पूर्व राज्यपाल मृदुला सिन्हा ने नई दिल्ली महानगर निगम के विशाल कन्वेंशन हॉल में आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन का उद्घाटन करते हुए प्रकट किए।
सम्मेलन का आयोजन साहित्यिक सांस्कृतिक शोध संस्था (मुंबई), इंदिरा गांधी राष्ट्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (अमरकंटक) तथा विश्व हिंदी परिषद (दिल्ली) ने संयुक्त रूप से किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता अमरकंटक से पधारे कुलपति डॉ. श्रीप्रकाश मणि त्रिपाठी ने की और बीज वक्तव्य प्रो. दिलीप सिंह ने दिया। डॉ. ऋषभदेव शर्मा के संचालन में हुए इस समारोह में देश भर से आए विद्वानों और साहित्यकारों के अलावा रूस की डॉ. लीना सरीन तथा हिंदी प्रचारिणी सभा, मॉरीशस के अध्यक्ष डॉ. यंतुदेव बुधु, महात्मा गांधी संस्थान, मॉरीशस की निदेशक डॉ. विद्योत्तमा कुंजल तथा प्रो.अलका धनपत और लिथुआनिया की कत्थक नृत्यांगना कैटरीना ने विभिन्न विचार सत्रों को संबोधित किया। समारोह के विचारणीय विषय 'आधुनिक समय में रामकथा और कृष्णकथा का वैश्विक संदर्भ' तथा 'नई शिक्षा नीति और हिंदी भाषा' रहे।
समापन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि पधारे पूर्व सांसद सुनील शास्त्री ने राष्ट्रीय चरित्र के निर्माण में राम और कृष्ण की लोक कल्याणकारी संघर्षगाथाओं के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने यह भी कहा की शिक्षा और संस्कृति का सीधा संबंध हमारी भाषाओं के साथ है तथा हमारी भाषाओं में ही जीवन मूल्यों की जड़ें होती हैं, इसलिए यह जरूरी है कि हम भारतीय लोग अपनी भाषाओं का सम्मान करें। उन्होंने हिंदी के साथ साथ अन्य भारतीय भाषाओं को शिक्षा का अनिवार्य अंग बनाने पर ज़ोर दिया।
अवसर पर कई हिंदीसेवियों,साहित्यकारों और शिक्षाविदों को अंतरराष्ट्रीय सम्मानों से अलंकृत किया गया, जिनमें प्रो. दिलीप सिंह, प्रो. टी वी कट्टीमनी, प्रो. ऋषभदेव शर्मा, ज्ञान चन्द्र मर्मज्ञ, डॉ. श्रीराम परिहार, डॉ. कैलाश नाथ पांडे, डॉ. मधुकर पाड़वी, और डॉ. भावेश जाधव आदि सम्मिलित हैं। समारोह का समापन डॉ.प्रदीप कुमार सिंह के धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ।
एकदिवसीय राष्ट्रीय शिक्षक उन्नयन कार्यशाला संपन्न
बैंगलोर, 29 जनवरी (मीडिया विज्ञप्ति)।
बिशप कॉटन वीमेन्स क्रिश्चियन कॉलेज की ओर से एकदिवसीय राष्ट्रीय शिक्षक उन्नयन कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें विभिन्न महाविद्यालयों के लगभग 75 हिंदी शिक्षक-शिक्षिकाओंऔर छात्राओं ने प्रतिभागिता निभाई। अवसर पर बेंगलुरु केंद्रीय विश्वविद्यालय एवं बेंगलुर विश्वविद्यालय के बी.कॉम. द्बितीय सेमेस्टर की पाठ्यपुस्तक 'काव्य मधुवन' एवं 'काव्य निर्झर' की कविताओं व उनके कवियों पर विशेषज्ञों के साथ चर्चा की गई।
कार्यशाला का उद्घाटन मौलाना आज़ाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, हैदराबाद के परामर्शी प्रो.ऋषभदेव शर्मा ने बतौर मुख्य किया। उन्होंने दोनों कार्यसत्रों की अध्यक्षता भी की।
मुख्य अतिथि प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने सभी आमंत्रित जनों के बारे में अपने स्नेह को प्रदर्शित करते हुए सभी को शुभकामनाएँ दीं व सभी प्रतिभागियों को कार्यक्रम के विषय पर वार्ता के लिए प्रेरित किया। उन्होंने कविता की ताक़त को सभी भिन्नताओं व कुंठाओं के तालों को खोलने की चाबी बताया व इसे व्यक्तित्व के विकास की संभावनाओं का हिस्सा बताया। हिंदी कविता के शिक्षण के क्षेत्र में इस प्रकार के कार्यक्रमों से छात्रों व अध्यापकों के मार्गदर्शन के लिए मुख्य अतिथि ने ऐसे कार्यक्रमों के बार-बार होने पर बल दिया ।
बिशप कॉटन वीमेन्स क्रिश्चियन कॉलेज की प्रधानाचार्या प्रोफ़ेसर एस्थर प्रसन्नकुमार व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार यादव ने भी कविता-शिक्षण की आवश्यकता और पेचीदगियों पर सूक्ष्म चर्चा की।
दो कार्यसत्रों के दौरान डॉ. रेणु शुक्ला, डॉ. अरविंद कुमार, डॉ. कोयल बिस्वास, डॉ. ज्ञान चंद मर्मज्ञ, डॉ. राजेश्वरी वीएम , डॉ. जी नीरजा डॉ. एम. गीताश्री ने बतौर विषय विशेषज्ञ निर्धारित कविताओं की बारीक़ियों पर विस्तार से चर्चा की।
प्रथम सत्र में हरिवंशराय बच्चन की कविता - जुगनू, जगदीश गुप्त की कविता - सच हम नहीं, सच तुम नहीं, नागार्जुन की कविता - कालिदास सच सच बतलाना, अटल बिहारी वाजपेयी की कविता - मन का संतोष और जयशंकर प्रसाद की कविता - अशोक की चिंता पर चर्चा व वार्ता की गई। द्वितीय सत्र कवि गोपाल दास नीरज की कविता - स्वप्न झरे फूल से गीत चुभे शूल से, रामधारी सिंह दिनकर की कविता - पुरुरवा और उर्वशी पर केंद्रित रहा।
प्रतिभागियों ने बताया कि कार्यशाला छात्रों व अध्यापकों के लिए बहुत ज्ञानवर्धक रही। कार्यक्रम की सफल प्रस्तुति का अंत राष्ट्रगान से हुआ ।
प्रस्तुति-
डॉ. विनय कुमार यादव
अध्यक्ष, हिंदी विभाग
बिशप कॉटन वीमेन्स क्रिश्चियन कॉलेज
बैंगलोर।
फ़ॉल्सम, कैलिफ़ोर्निया में 'रचनात्मिका - हिंदी साहित्य मंच' का गठन
११ जनवरी २०२०, फ़ॉल्सम, कैलिफ़ोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका। "विश्व हिंदी दिवस" के सुअवसर पर सैक्रामेंटो तथा आस पास के क्षेत्रों में हिंदी भाषा के साहित्य साधकों को नव साहित्य सृजन हेतु प्रेरित करने के उद्देश्य से फ़ॉल्सम पब्लिक लाइब्रेरी में "रचनात्मिका - हिंदी साहित्य मंच" का गठन किया गया। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध लेखिका डॉ. प्रतिभा सक्सेना की अध्यक्षता में मंच की प्रथम साहित्य गोष्ठी भी आयोजित की गई। गोष्ठी में पूनम सिरोही, अतुल श्रीवास्तव, अनिल सूरी, शिवेश सिन्हा, चिंतन राज्यगुरु, वंदना शर्मा, अभिनव शुक्ल, जय श्रीवास्तव एवं डॉ प्रतिभा सक्सेना ने अपनी रचनाओं का पाठ किया। कार्यक्रम का सञ्चालन लोकप्रिय कवि अभिनव शुक्ल ने किया।
आगे पढ़ेंवीरेन्द्र आस्तिक को 'साहित्य भूषण सम्मान'
लखनऊ : लखनऊ में सोमवार (दिसंबर 30, 2019) को उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के स्थापना दिवस के अवसर पर आयोजित सम्मान समारोह में विख्यात कवि एवं आलोचक श्री वीरेंद्र आस्तिक (कानपुर) को 'साहित्य भूषण सम्मान' (दो लाख रुपये) से अलंकृत किया गया। आस्तिक जी को यह सम्मान माननीय विधानसभा अध्यक्ष डॉ हृदय नारायण दीक्षित के कर-कमलों से प्रदान किया गया।
इस अवसर पर माननीय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा कि साहित्य समाज का मार्गदर्शक होता है। साहित्य का अर्थ है, जिसमें सबका हित हो। साहित्य के माध्यम से ही हम किसी समाज, राष्ट्र व संस्कृति को संबल प्रदान कर सकते हैं। साहित्यकार को समाज की ज्वलंत समस्याओं को रचनात्मक दिशा देने का प्रयास करना चाहिए। जब हम अपनी लेखनी को खेमे, क्षेत्रीयता व जातीयता में बांटने का प्रयास करेंगे, तो इससे साहित्यिक साधना भंग होगी। साथ ही समाज व देश का बड़ा नुक़सान होगा।
सोमवार को लखनऊ में उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान द्वारा जब आस्तिक जी को 'साहित्य भूषण सम्मान' से सम्मानित किया गया, तब उन्हें और उनके परिवार को बधाइयाँ एवं शुभकामनाएँ देने वालों का तांता लग गया। नवगीत सृजन एवं आलोचना के ज़रिए ख्याति प्राप्त करने वाले श्री वीरेंद्र आस्तिक मानते हैं कि नवगीत मूलत: गीत की आधारशिला पर ही खड़ा हुआ है। गीत वास्तव में ऋग्वेद से विरासत में मिला है जोकि अपनी यात्रा में कई पड़ावों को पार कर आज समकालीन संदर्भो को समोकर नवगीत के रूप में लोक-जीवन की संवेदना, संस्कृति एवं सरोकारों को मुखरित कर रहा है। आज के दौर में नवगीत के क्षेत्र में लगातार युवा चेहरे आ रहे हैं। इनकी सोच भी काफ़ी अच्छी है और वे चीज़ों को अलग तरीक़े से देख रहे हैं। इसलिए नवगीत इस समय तेज़ी से आगे बढ़ता नज़र आ रहा है।
'धार पर हम- एक और दो' के प्रकाशन से ज़बरदस्त ख्याति पाने वाले आस्तिक जी कहते हैं कि उन्होंने 1964 में एयरफ़ोर्स ज्वाइन किया। इसके बाद 1970 से उन्होंने लेखन का कार्य शुरू किया। 1974 में एयरफ़ोर्स छोड़ने के बाद 1975 से टेलीफोन विभाग में कार्य किया और 2007 में बीएसएनएल से सेवानिवृत्त हुए। वह मुख्य रूप से कानपुर देहात की अकबरपुर तहसील के रहने वाले हैं। 'परछाईं के पांव', 'आनंद! तेरी हार है', 'तारीखों के हस्ताक्षर', 'आकाश तो जीने नहीं देता', 'दिन क्या बुरे थे', 'गीत अपने ही सुनें' आदि काव्य-कृतियों ने उन्हें नई ऊँचाई पर पहुँचाया। हाल ही में उनकी आलोचना पुस्तक - 'नवगीत : समीक्षा के नए आयाम' के जरिए उन्होंने नवगीत क्या है, इसे समझने-समझाने का प्रयास किया।
इस अवसर पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. सदानंद प्रसाद गुप्त , डॉ. भगवान सिंह, डॉ. मनमोहन सहगल, जलशक्ति मंत्री श्री महेंद्र सिंह, डॉ. अरिबम ब्रजकुमार शर्मा, डॉ. उषा किरण खान , डॉ. कमल कुमार, डॉ. ओम प्रकाश पांडेय, आचार्य श्री श्यामसुन्दर दुबे, आचार्य श्री रामदेव लाल विभोर, डॉ रामसनेही लाल शर्मा 'यायावर' आदि गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे।
विशिष्ट प्रतिभा सम्मान 2019 से सम्मानित हुए बालसाहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश'
राजस्थान के भीलवाड़ा स्थित विनायक विद्यापीठ परिसर में “हम सब साथ साथ” के बैनर तले सातवाँ अंतरराष्ट्रीय सोशल मीडिया एवं मैत्री सम्मान समारोह 2019 का आयोजन 24 और 25 दिसंबर को आयोजित किया गया। इस सम्मान समारोह के लिए प्रसिद्ध बालसाहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' को बालसाहित्य में विशेष योगदान के चयनित कर आमंत्रित किया गया था।
समाज में भाईचारे और विश्व बंधुत्व की भावना के विकास में सोशल मीडिया की भूमिका विषय पर आयोजित परिचर्चा में उत्कृष्ट स्थान प्राप्त करने और बालसाहित्य के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिए ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' को विशिष्ट प्रतिभा सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान 'हम सब साथ साथ' के राष्ट्रीय संयोजक तथा देश और दुनिया की जाने-माने शख़्सियत श्री किशोर श्रीवास्तव, वीर रस के लब्धप्रतिष्ठित कवि योगेंद्र शर्मा, समाजसेवी विनोद बब्बर ,और नामचीन साहित्यकार डॉ. प्रीति समकित सुराना के करकमलों से प्राप्त हुआ।
इस कार्यक्रम में देशविदेश के जाने माने प्रतिभावान कलाकारों ने हिस्सा लिया । नेपाल से अंजलि पटेल, अमेरिका शिकागो से रेडियो प्रतिनिधि विशाल पांडेय, फिजी से स्वेता चौधरी सहित पूरे देश से पधारे हुए कला, साहित्य एवं समाजसेवा के क्षेत्र में बेहतर कार्य करने वाले अनेक प्रतिभासंपन्न साथियों ने इस में भाग लिया।
आगे पढ़ेंविश्वरंग – भोपाल में भव्य और सार्थक महोत्सव
4 से 10 नवंबर के बीच भोपाल में टैगोर अंतरराष्ट्रीय साहित्य एवं कला महोत्सव का भव्यतम आयोजन हुआ। हिंदी को केंद्र में रख कर सात दिन तक चले इस 'विश्वरंग' में तीस देशों के पाँच सौ से अधिक रचनाकारों ने शामिल हो कर एक ऐसा वैश्विक उत्सव रचा जो एशिया के अब तक के सबसे बड़े साहित्य और संस्कृति के आयोजन के रूप में जाना जाएगा।
आईसेक्ट समूह के पाँच विश्वविद्यालयों के इस संयुक्त उपक्रम को भोपाल के रवींद्रनाथ टैगोर विश्व विद्यालय के परिसर, रवींद्र भवन, भारत भवन, स्वराज भवन और मिंटो हाल में साकार होते देखना एक अद्भूत अनुभव रहा। भारतीय भाषाओं और बोलियों, फिल्मों, नाट्य संगीत, बाल और वैज्ञानिक लेखन, प्रवासी साहित्य, विश्व कविता और थर्ड जेंडर के कविता सत्रों जैसे विभिन्न विषयों पर लगभग साठ विशिष्ठ सत्रों ने विचार-विमर्श को सार्थक दिशा दी।
टैगोर की सांस्कृतिक विरासत के पुनरावलोकन के बहाने कबीर, फैज़, इक़बाल, गाँधी, चित्रकला, सरोद, वायलिन, शहनाई वादन, गुंदेचा बंधुओं के ऐतिहासिक ध्रुपद गायन एवं लोक नृत्यों ने इस समावेशी उत्सव को साहित्य के साथ एकरस कर दिया। इस सुदीर्घ महोत्सव की यह विशेषता रही कि इसके प्रारंभिक आयोजनों को स्कूलों में आयोजित कर व्यापक स्तर पर स्कूलों को जोड़ा गया। लगभग पचास शहरों में पुस्तक यात्राएँ आयोजित कर हज़ारों युवा साहित्य प्रेमियों और स्थानीय रचनाकारों को इस उत्सव से जोड़ना महत्वपूर्ण रहा। हिंदी शिक्षण में अग्रणी विदेशी विश्वविद्यालयों के प्रतिनिधियों, वहाँ के विद्यार्थियों व प्रवासी भारतीय लेखकों को इस महोत्सव से जोड़ कर आयोजकों ने विश्व रंग को अनूठी पहचान दी। बद्रवास्ती के संचालन में चले उर्दू के मुशायरे ने प्रस्तुति और स्तर के नए कीर्तिमान बनाए।
हिंदी कथा के पिछले दो सौ वर्षों की महत्वपूर्ण छह सौ कहानियों को अठारह खंडों में प्रकाशित करने के लिए वनमाली सृजन पीठ के डॉ. मुकेश वर्मा का यह भगीरथ कार्य हिंदी भाषा के लिए स्मरणीय बन गया। प्रमुख सत्रों में डॉ. कमल किशोर गोयनका, नंदकिशोर आचार्य, मधुसूदन आनंद, विनोद तिवारी, ज्ञान चतुर्वेदी, सतीश जायसवाल और कई लब्ध प्रतिष्ठत लेखकों की श्रोताओं के बीच उपस्थिति कार्यक्रमों को प्रतिष्ठा दे रही थी। श्री जवाहर कर्नावट की विदेशों से प्रकाशित हिंदी पत्र-पत्रिकाओं के संकलन, दुष्यंत पांडुलिपि संग्रहालय और निर्मेश ठाकर के कैरिकेचर, गर्भनाल पत्रिका द्वारा हिंदी लिपि तथा विदेशों मे हिंदी प्रसार के लिए किए कार्यों की प्रस्तुतियाँ विश्व रंग के आकर्षण का केंद्र बनीं।
आईसेक्ट समूह के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे, लीलाधर मंडलोई और नेपथ्य में काम करने वाले आत्माराम शर्मा, अरविंद चतुर्वेदी तथा कई समर्पित कार्यकर्ताओं को यह उत्सव उनकी अप्रतिम सफलता की याद दिलाता रहेगा।
(प्रस्तुति – धर्मपाल महेंद्र जैन, टोरंटो)
क्षितिज अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019, इंदौर
कोई भी कला संयम और समय के साथ ही विकसित होती है - सुकेश साहनी
‘क्षितिज’ संस्था, इंदौर द्वारा द्वितीय ‘अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन 2019’ का आयोजन दिनांक 24 नवम्बर 2019, रविवार को श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति, इन्दौर में किया गया। यह कार्यक्रम चार विभिन्न सत्रों में आयोजित हुआ। प्रथम उद्घाटन, लोकार्पण एवम् सम्मान सत्र रहा। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार, कला मर्मज्ञ श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने की। मंच पर क्षितिज साहित्य संस्था के अध्यक्ष श्री सतीश राठी, श्री सूर्यकांत नागर, श्री सुकेश साहनी, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल, श्री माधव नागदा एवम श्री कुणाल शर्मा उपस्थित थे।
संस्था परिचय एवं अतिथियों के लिए स्वागत भाषण श्री सतीश राठी ने दिया। लघुकथा विधा को लेकर वर्ष 1983 से संस्था द्वारा किए गए कार्यों की उन्होंने जानकारी दी एवं संस्था के विभिन्न प्रकाशनों पर जानकारी देते हुए लघुकथा विधा के पिछले 35 वर्ष के इतिहास पर एक दृष्टि डाली। उन्होंने संस्था के इतिहास व कार्यों से सभी को परिचित करवाया। अतिथियों का परिचय देते हुए लघुकथा विधा के लिए उनके द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी प्रस्तुत की तथा लघुकथा विधा के लिए दिए जाने वाले सम्मानों की चयन प्रक्रिया वहाँ पर प्रस्तुत की।
इस सत्र में सत्र अध्यक्ष श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय को कला साहित्य सृजन सम्मान 2019, श्री सुकेश साहनी को क्षितिज लघुकथा शिखर सम्मान 2019, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल को क्षितिज लघुकथा सेतु शिखर सम्मान 2019, श्री माधव नागदा को क्षितिज लघुकथा समालोचना सम्मान 2019, श्री कुणाल शर्मा को क्षितिज लघुकथा नवलेखन सम्मान 2019 एवं श्री हीरालाल नागर को लघुकथा शिखर सम्मान 2019 से सम्मानित किया गया।
इस सत्र में पुस्तकों का विमोचन भी किया गया।
क्षितिज पत्रिका के सार्थक लघुकथा अंक का विमोचन सर्वप्रथम हुआ। पुस्तक सार्थक लघुकथाएँ, इंदौर के 10 लघुकथाकारों के लघुकथा संकलन शिखर पर बैठ कर, श्री सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह सायबर मैन, श्री भागीरथ परिहार की पुस्तक कथा शिल्पी, सुकेश साहनी की सृजन चेतना, ज्योति जैन के लघुकथा संग्रह जलतरंग का अँग्रेज़ी अनुवाद, डॉ. अश्विनी कुमार दुबे के ग़ज़ल संग्रह कुछ अशहार हमारे भी, श्री चरण सिंह अमी की पुस्तक हिंदी सिनेमा के अग्रज, श्री बृजेश कानूनगो की दो पुस्तकें रात नौ बजे का इंद्रधनुष व अनुगमन का विमोचन इस कार्यक्रम के लोकार्पण सत्र में हुआ। उद्घाटन के पश्चात इस तरह कुल 11 पुस्तकों का विमोचन हुआ।
अतिथियों का स्वागत पुरुषोत्तम दुबे, अरविंद ओझा, सतीश राठी, अश्विनी कुमार दुबे, योगेन्द्र नाथ शुक्ल, आशा गंगा शिरढोनकर एवं प्रदीप नवीन ने किया। प्रथम सत्र का संचालन अंतरा करबड़े ने किया। माँ सरस्वती के पूजन एवं दीप प्रज्ज्वलन के वक़्त सरस्वती वंदना विनीता शर्मा ने प्रस्तुत की।
व्याख्यान सत्र में कुणाल शर्मा ने लघुकथा के आधुनिक स्वरूप पर बात की। श्री माधव नागदा ने शैक्षणिक पाठ्यक्रम में लघुकथा की उपादेयता विषय पर अपने विचार रखे। किशोर और युवा को लघुकथा पाठ्यक्रम में शामिल करवा कर ही साहित्य से परिचित करवाया जा सकता है, उससे उनमें साहित्यिक अभिरुचि का विकास होता है। इतिहास भले ही पुराना हो किंतु यह एक नई विधा है। विधार्थी इससे अनजान हैं इसलिए यदि विधिवत पाठ्यक्रम के द्वारा उन्हें विधा से परिचित करवाया जाए तो आगे शोध के रास्ते खुलते हैं। पंचतंत्र भी लघुकथा का ही रूप है, बुद्ध महावीर भी लघुकथा के माध्यम से अपनी बात कहते थे। समय का अभाव व भाव की तीव्रता के कारण यह विधा अधिक ग्राह्य है। कहानी उपन्यास की तरह यह भी सभी विषयों पर अपनी उपयोगिता सिद्ध करेगी।
सुकेश साहनी ने अपने भाषण में लघुकथा के विचार पक्ष एवम् विभिन्न विषयों पर रची जा रही लघुकथाओं के महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि, लघुकथा विषय पर अपने विचार लेखक को व्यक्त करते हुए विषय के साथ न्याय करना प्राथमिकता में होना चाहिए। घटना व विषय विविध हैं। लिखते वक़्त समय देते हुए लिखा जाए। कोई भी कला संयम और समय के साथ विकसित होती है इसलिए किसी भी विषय के साथ समय देकर ही न्याय किया जा सकता है। विचार वह धुरी है जिस पर कल्पना घूमती है। सीप में मोती बनने वाली प्रक्रिया की तरह लघुकथा का सृजन हो सकता है लेकिन शीघ्र मोती पाने के चक्कर में लघुकथा को नोच कर नहीं परोसा जा सकता उसका पूरी तरह से परिपक्व होना ज़रूरी है।
श्री श्याम सुंदर अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि पंजाबी लघुकथा से आगे अब हिंदी लघुकथा विकास की बात हो। इंदौर शहर के योगदान को याद करते हुए उन्होंने विविध भाषाओं में लिखने वाली लघुकथा के विकास की बात की। निरंतरता सबसे बड़ा गुण है वह सफलता की ओर ले जाती है। लघुकथा में भी यह बात उल्लेखनीय है कि तमाम आलोचना के बाद भी लेखकों ने लिखना जारी रखा और आज लघुकथा एक विधा के रूप में स्थापित हो चुकी है। पंजाबी भाषा एवं हिंदी भाषा के आपसी जुड़ाव की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि क्षितिज पत्रिका ने कभी पंजाबी लघुकथाओं पर भी अंक निकाला और मिनी पत्रिका में भी हिंदी के लघुकथाकारों की लघुकथाओं के अनुवाद प्रकाशित किए गए।
विशेष योगदान हेतु, सर्वश्री उमेश नीमा, चरण सिंह अमी, नई दुनिया के अनिल त्रिवेदी, पत्रिका अख़बार की संपादक रुख़साना, दैनिक भास्कर के श्री रविंद्र व्यास, श्री प्रदीप नवीन आदि को सम्मानित किया गया। कला सहयोग के लिए वरिष्ठ कलाकार श्री संदीप राशिनकर को भी सम्मानित किया गया।
अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय ने अपने वक्तव्य में कहा कि, साहित्य का यात्री सृजन से एकाकर हो जाता है। जो बुद्धि न समझ सके वह चमत्कार कहा जाता है, लघुकथा भी एक सहज चमत्कार है, कहने को लघु किंतु प्रभाव में विराट है। यह विधा, वामन के विराट पग की तरह अपने प्रभाव क्षेत्र में व्यापक रूप से लोकप्रिय है। एक स्वतंत्र विधा के रूप में इसका बड़ा सम्मान है।
लघुकथा की यात्रा की तुलना उन्होंने गंगा की यात्रा से कर कहा कि, अब यह संगम की तरह महत्वपूर्ण हो गई है। संस्कृत आख्यायिका यह नहीं है, उपन्यास का साररूप भी यह नहीं है। लघुकथा भिन्न विधा है एडगर एलन पो अँग्रेज़ी में इसके पुरोधा रहे। लघुकथा संवेदना का सार रूप है जिसकी तेजस्विता अपूर्व है। प्राचीन ग्रंथों में हर जगह यह विधा भिन्न-भिन्न स्वरूप में उपस्थित रही है। सार्थक संदेश, विसंगति पर चोट व व्यंग्य भी लघुकथा के तत्व माने जाते हैं।
विधाओं के अंतर अवगमन पर उन्होंने कहा विधाओं का आपस में संवाद होना आवश्यक है, अधिक से अधिक अध्ययन से यह विवाद समाप्त किया जा सकता है।
श्री नरेंद्र जैन, श्री राजेंद्र मूंदड़ा, श्री नितिन पंजाबी, को भी सम्मानित किया गया। इस सत्र का आभार प्रदर्शन पुरुषोत्तम दुबे ने किया।
कार्यक्रम का द्वितीय सत्र लघुकथा पाठ का था जिसमें 35 से अधिक लघुकथाकारों ने अपनी प्रतिनिधि रचनाओं का पाठ किया। इस सत्र की अध्यक्षता वरिष्ठ लघुकथाकार श्री भागीरथ परिहार ने की। मंच पर अतिथि थे सर्वश्री योगेन्द्र नाथ शुक्ल, पवन जैन, संतोष सुपेकर।
श्रीमती जया आर्य, सुषमा दुबे, सुषमा व्यास, पुष्परानी गर्ग, स्नेहलता, कोमल वाधवानी प्रेरणा, राम मुरत राही, कपिल शास्त्री, दीपा व्यास, आदि ने लघुकथा पाठ किया। अपने उद्बोधन में श्री योगेंद्रनाथ शुक्ल, श्री पवन जैन, श्री भागीरथ परिहार ने पढ़ी गई लघुकथाओं के कथ्य शिल्प की समीक्षा की। इस सत्र का संचालन निधि जैन ने किया।
तृतीय सत्र नारी अस्मिता व लघुकथा लेखन पर मूल रूप से केंद्रित था। मुख्य अतिथि श्री सूर्यकांत नागर थे। सत्र अध्यक्षता श्री बलराम अग्रवाल ने की। डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, हीरालाल नागर, ज्योति जैन व वसुधा गाडगिल सत्र में अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस सत्र का संचालन श्रीमती सीमा व्यास एवं वत्सला त्रिवेदी ने किया।
श्री सूर्यकांत नागर ने स्त्री पुरुष की संवेदना में भेद बताते हुए स्त्री विमर्श को आवश्यकता पर बल दिया।
श्री बलराम अग्रवाल ने कहा - साहस के साथ स्त्री अस्मिता व अधिकार की बात करने के लिए लेखन से बेहतर कोई माध्यम नहीं है, वेदों से लेकर अब तक स्त्री के विमर्श में गिरावट आई है और अब धीरे-धीरे स्थितियाँ बदली हैं। श्री हीरालाल नागर ने अपने वक्तव्य में स्त्री विर्मश में लघुकथा की उपयोगिता व उसकी यात्रा पर प्रकाश डाला। डॉ. पुरुषोत्तम दुबे ने लघुकथा के कालखंड व शिल्प पर चर्चा की। ज्योति जैन ने स्त्री अस्मिता पर कुछ लघुकथाओं के माध्यम से अपनी बात प्रभावी ढंग से प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि स्त्री और पुरुष की तुलना नहीं की जा सकती।
वसुधा गाडगिल ने अपने वक्तव्य में स्त्री के विविध स्वरूप पर लिखे जाने वाले साहित्य पर प्रकाश डाला। नवीन प्रतिमान नवीन विचार आज की आवश्यकता है।
आख़िरी महत्वपूर्ण सत्र प्रश्न उत्तर सत्र व मुक्त संवाद व परिचर्चा का था जिसमें लघुकथा विधा से जुड़ी विभिन्न जिज्ञासा, दुविधा उसके कथा शिल्प व प्रभाव पर चर्चा हुई। सत्र की अध्यक्षता श्रीमध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के श्री राकेश शर्मा, संपादक वीणा पत्रिका ने की। मंच पर विभिन्न प्रश्नों का जवाब देने के लिए देश भर में लघुकथा की अलख जगाने के लिए निरंतर सक्रिय श्री सुकेश साहनी, श्री बलराम अग्रवाल, श्री श्याम सुंदर अग्रवाल व श्री ब्रजेश कानूनगो ने विभिन्न प्रश्नों का उचित समाधान करते हुए जवाब दिये।
लघुकथा में शब्द सीमा क्या हो? लघुकथा व अँग्रेज़ी की शॉर्ट स्टोरी में क्या भेद है? लघुकथा में संवाद की भूमिका कितनी है? एक चरित्र पर आधारित लघुकथा को मान्य किया जायेगा? लघुकथा व कथा में क्या भेद है? लघुकथा के मापदंड क्या हैं? लघुकथा में व्यंग्य की भूमिका पर प्रश्न क्यों उठाये जाते हैं? लघुकथा में कथ्य का विकास कैसा हो? जैसे और कई प्रश्नों के जवाब देकर नव लेखकों, शोधार्थियों की जिज्ञासाओं का समाधान किया गया। सत्र का संचालन डॉ. गरिमा संजय दुबे ने किया।
समूचे आयोजन के संदर्भ में, आयोजन में पधारे अतिथियों का उपस्थित लघुकथाकारों का एवं स्थानीय अतिथियों का, क्षितिज संस्था के सचिव श्री अशोक शर्मा भारती ने आभार व्यक्त किया।
इस आयोजन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि लघुकथा की रचना प्रक्रिया एवं विभिन्न विषयों पर लिखी जाने वाली लघुकथा पर चर्चा करने के साथ-साथ सार्थक लघुकथा पर चर्चा विशेष रुप से की गई। क्षितिज संस्था का प्रथम सम्मेलन लघुकथा की सजगता पर केंद्रित था और यह द्वितीय सम्मेलन लघुकथा की सार्थकता पर केंद्रित था।
अवनीश सिंह चौहान को 'बाबूसिंह स्मृति साहित्यरत्न सम्मान'
मथुरा : रविवार, 24 नवम्बर 2019 को आलोक पब्लिक स्कूल, पंचवटी कॉलोनी, मथुरा के सभागार में बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, बरेली के मानविकी एवं पत्रकारिता महाविद्यालय में प्रोफेसर और प्राचार्य के पद पर कार्यरत वृन्दावनवासी कवि, आलोचक, अनुवादक डॉ. अवनीश सिंह चौहान को 'बाबूसिंह स्मृति साहित्यरत्न सम्मान' से सम्मानित किया गया। बहुभाषी रचनाकार डॉ. चौहान हिंदी भाषा एवं साहित्य की वेब पत्रिका— 'पूर्वाभास' और अंग्रेज़ी भाषा एवं साहित्य की अंतर्राष्ट्रीय शोध पत्रिका— 'क्रिएशन एण्ड क्रिटिसिज़्म' के संपादक हैं। यह सम्मान उन्हें आलोक प्रताप सिंह मैमोरियल शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक समिति, मथुरा, उत्तर प्रदेश ने प्रदान किया है।
डॉ. अवनीश सिंह चौहान के नवगीत 'शब्दायन', 'गीत वसुधा', 'सहयात्री समय के', 'समकालीन गीत कोश', 'नयी सदी के गीत', 'गीत प्रसंग', 'नयी सदी के नये गीत' आदि समवेत संकलनों में और मेरी शाइन द्वारा सम्पादित अंग्रेज़ी कविता संग्रह 'ए स्ट्रिंग ऑफ़ वर्ड्स' एवं डॉ. चारुशील एवं डॉ बिनोद मिश्रा द्वारा सम्पादित अंग्रेज़ी कविताओं का संकलन 'एक्ज़ाइल्ड अमंग नेटिव्स' में अंग्रेज़ी कविताएँ संकलित की जा चुकी हैं। पिछले पंद्रह वर्ष से आपकी आधा दर्जन से अधिक अंग्रेज़ी भाषा की पुस्तकें कई विश्वविद्यालयों में पढ़ी-पढ़ाई जा रही हैं। आपका नवगीत संग्रह 'टुकड़ा कागज़ का' साहित्य समाज में बेहद चर्चित रहा है। आपने 'बुद्धिनाथ मिश्र की रचनाधर्मिता' पुस्तक का बेहतरीन संपादन किया है। 'वंदे ब्रज वसुंधरा' सूक्ति को आत्मसात कर जीवन जीने वाले ऐसे विलक्षण युवा रचनाकार को 'अंतर्राष्ट्रीय कविता कोश सम्मान', मिशीगन- अमेरिका से 'बुक ऑफ़ द ईयर अवार्ड', राष्ट्रीय समाचार पत्र 'राजस्थान पत्रिका' का 'सृजनात्मक साहित्य पुरस्कार', अभिव्यक्ति विश्वम् (अभिव्यक्ति एवं अनुभूति वेब पत्रिकाएँ) का 'नवांकुर पुरस्कार', उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान- लखनऊ का 'हरिवंशराय बच्चन युवा गीतकार सम्मान' आदि से अलंकृत किया जा चुका है।
कार्यक्रम का शुभारम्भ माँ शारदे की पूजा-अर्चना-वंदना से हुआ। समारोह की अध्यक्षता सेवानिवृत्त न्यायाधीश श्री एस.एस. यादव (आगरा) ने की, जबकि मुख्य अतिथि वरिष्ठ समाजसेवी डॉ. अशोक अग्रवाल (मथुरा), अति-विशिष्ट अतिथि महामंडलेश्वर योगी नवलगिरि जी महाराज (वृन्दावन), विशिष्ट अतिथि डॉ. अनिल गहलौत (मथुरा), श्री निशेश जार एवं डॉ शेषपाल सिंह शेष (आगरा) रहे। इस कार्यक्रम में चार अन्य शब्द-साधकों- डॉ. आर. पी. सारस्वत (सहारनपुर), डॉ. धर्मराज (मथुरा) एवं चित्रांश रजनीश राज ब्रजवासी (मथुरा) एवं कुमारी किरन वर्मा को भी उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए सम्मानित किया गया। साथ ही इस समारोह में मथुरा के वरिष्ठ साहित्यकार संतोष कुमार सिंह की एक साथ चार बाल साहित्य की पुस्तकों- 'वृक्षों में भी होता जीवन', ’अपने चाचा चंपकलाल', 'चींटा ले खर्राटे' तथा 'मैं पूछूँगा आप बताएँ' का भव्य लोकार्पण सम्मानित अतिथियों-साहित्यकारों के कर-कमलों से सम्पन्न हुआ।
इस कार्यक्रम में डॉ. आर.पी.सारस्वत, निखिता सिंह सेंगर, रवेन्द्र पाल सिंह रसिक, डॉ. विवेकनिधि, मदन मोहन अरविंद, चित्रांश रजनीश राज, सुमन पाठक, प्रिया शर्मा, मूलचंद शर्मा, अटलराम चतुर्वेदी, निशेश जार, डॉ अनीता चौधरी, सी.पी.शर्मा, जुगुनू सारस्वत, डॉ अनिल गहलौत, डॉ. धर्मराज, अनुपम गौतम आदि ने गीत, सजल और हास्य व्यंग्य की रचनाओं का पाठ कर श्रोताओं को आनंदित कर दिया। सभागार में ब्रज भूषण वर्मा, डॉ. महेन्द्र प्रताप सिंह, तेजपाल सिंह सेंगर, प्रेमपाल सिंह शास्त्री, देवेन्द्र कुमार, एस. एस.चौहान, ए. पी. सिंह, डॉ. कमल कौशिक, एम. के. शर्मा, डॉ. भुवनेश कुमार सिंह, प्रदीप अग्रवाल, एस.एम.शर्मा, एस. एस. यादव, शैलेन्द्र शर्मा, नीटू शर्मा, मोहन मोही, चौ. जगवीर सिंह आदि साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे। मंच संचालन अनुपम गौतम तथा धन्यवाद ज्ञापन स्कूल प्रबंधक जितेन्द्रसिंह सेंगर ने किया।
आगे पढ़ेंविद्यार्थियों को बाल पत्रिका पढ़ने के लिए किया गया प्रेरित
मिशन इण्टरनेशनल स्कूल के 50 विद्यार्थियों ने ली सदस्यता
अलीगढ़। बाल रचनाकारों की राष्ट्रीय पत्रिका ‘अभिनव बालमन’ द्वारा मिशन इण्टरनेशनल स्कूल में विद्यार्थियों को बाल पत्रिकाओं को पढ़ने एवं रचनात्मक गतिविधियों में प्रतिभाग करने के उद्देश्य को लेकर प्रेरित किया गया और इसी प्रेरणा को लेकर विद्यालय के 50 विद्यार्थियों ने ‘अभिनव बालमन’ की सदस्यता ली।
प्रधानाचार्य शीतल शर्मा ने विद्यार्थियों से कहा कि आपको पाठ्यक्रम तक सीमित न रहकर पत्र-पत्रिकाओं को भी पढ़ना चाहिए जिससे आपके ज्ञान का प्रसार हो। इसके लिए ‘अभिनव बालमन’ का यह प्रयास श्रेयस्कर है।
प्रबंधक आशीष शर्मा ने कहा कि ऐसा नहीं है कि बच्चों पर अन्य पत्रिकाएँ पढ़ने के लिए समय नहीं है बल्कि समस्या यह है कि बच्चे अपना समय पढ़ने के अलावा मोबाइल, टीवी में लगा रहे हैं। जब तक हम उन्हें पत्र-पत्रिकाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित नहीं करेंगे तब तक बच्चे को इनके बारे में जानकारी नहीं मिलेगी। अतः हम सभी को ऐसा माहौल बनाना होगा कि बच्चे बाल पत्रिकाओं के प्रति रुचि दिखाएँ।
इस अवसर पर अभिनव बालमन के सम्पादक निश्चल ने कहा कि बाल पत्रिकाएँ बच्चे को उसके मानसिक स्तर के अनुरूप विभिन्न जानकारियों से अवगत तो कराती ही हैं साथ ही उसकी रचनात्मकता को भी निखारती हैं। ‘अभिनव बालमन’ पिछले 10 वर्षों से बच्चों की रचनात्मकता को निखारने, सँवारने का कार्य तो कर ही रही है साथ ही उनको ऐसा मंच भी प्रदान कर रही है जिससे वह आत्मविश्वास के साथ इस कार्य को कर सकें।
कार्यक्रम का संयोजन विद्यालय के शिक्षक हनी सर ने किया।
डॉ. सुरंगमा यादव को मिला ’हिन्दी भूषण श्री’ सम्मान
के.बी. हिन्दी साहित्य समिति (पंजी.) बिसौली, बदायूँ (उ.प्र.) द्वारा 03 नवंबर 2019 को आर. के. इण्टरनेशनल स्कूल बिसौली में आयोजित पंचम अखिल भारतीय सम्मान समारोह में डॉ. सुरंगमा यादव को उनकी हाइकु कृति ’यादों के पंछी’ के लिए ’हिन्दी भूषण श्री’ सम्मान 1100/- सहित अंगवस्त्र, सम्मान पत्र एवं प्रतीक चिह्न से सम्मानित किया गया। इस समारोह में भारत के 17 प्रांतों और नेपाल से पधारे साहित्यकारों ने हिस्सा लिया।
आगे पढ़ेंशिशिर की एक शाम, नृत्य-नाट्योत्सव के नाम
हिन्दी राइटर्स गिल्ड का 11वां वार्षिकोत्सव
नवंबर 17, 2019 मिसीसागा -
टोरोंटो में पिछले ग्यारह वर्षों से अपने एक से एक स्तरीय नाटकों, कवि-सम्मेलनों, गोष्ठियों, परिचर्चाओं, बाल-प्रतिभा विकास और साँस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से हिन्दी भाषा और साहित्य का प्रचार-प्रसार करने वाली दानार्थी, लाभ-निर्पेक्ष संस्था, हिन्दी राइटर्स गिल्ड का ग्यारहवां वार्षिक कार्यक्रम इस रविवार, नवंबर 17, 2019 को मिसीसागा के पोर्ट क्रेडिट हाई स्कूल में ३ बजे से ६ बजे के बीच सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
लोगों ने पौने तीन बजे से सभागार में बैठना प्रारंभ कर दिया था। कार्यक्रम शुरू होने से पहले, संगीत की धुनों के साथ मंच पर लगी स्क्रीन पर, संस्था के पूर्व कार्यक्रमों की अनेक झलकियाँ, कार्यकर्ताओं के चित्र, स्पांसरों के नाम प्रोजेक्टर के माध्यम से उभर रहे थे जिन्हें सहायक मंडल की निदेशिका और इस पूरे कार्यक्रम की सह संयोजिका पूनम चंद्रा ’मनु’ ने संयोजित किया था। इन चित्रों ने गिल्ड की अब तक की अनेक उपलब्धियों को लोगों के सामने साकार कर दिया।
कार्यक्रम में आए दर्शकों का सादर अभिनंदन डॉ. शैलजा सक्सेना ने ’सियाराममय सब जग जानी, करहुँ प्रणाम जोरि जुग पानी (महाकवि तुलसी रचित)’ दोहे से किया और माँ सरस्वती की वंदना करने के लिए मराठी समाज में गीत, संगीत और रंगमंच में सक्रिय श्रीमती मेधा दाते जी को आमंत्रित किया। मेधा जी की भाव डूबी मधुर आवाज़ में दर्शकों ने भी माँ सरस्वती को अपने भाव-पुष्प अर्पित किए। मुख्य अतिथि आचार्य ज़ैनजी निओ का गुलाब के फूलों से स्वागत करते हुए डॉ. शैलजा ने उनका परिचय दिया। हिंदी साहित्य के मंच पर एक अहिंदी नाम के प्रति दर्शकों की उत्सुकता को शांत करते हुए और साहित्य को धर्म से जोड़ते हुए शैलजा जी ने कहा कि साहित्यकार समाज को ’राम-राज्य’ जैसे मानवीय मूल्यों का सपना सौंपता है और समाज के कर्मवीर उस सपने में रंग भरते हैं। आचार्य ज़ैनजी निओ इसी प्रकार के समाजसेवी हैं और टोरोंटो में इस समय वे बौद्ध धर्म, समुराई शाखा के आधिकारिक प्रवक्ता है, मोटिवेशनल स्पीकर होने के साथ ही वे मानवता के सैनानी हैं। ये कार्य वे अपनी संस्था ’कैनन इनिशिएटिव’ के अध्यक्ष के रूप में अनेक चैरिटेबल संस्थाओं को सहयोग और समर्थन देने के द्वारा करते हैं जिसके माध्यम से नेपाल की ह्यूमन ट्रैफ़िकिंग, भारत की भूख तथा गरीबी, अन्याय के विरुद्ध काम किया जाता है। श्री ज़ैनजी निओ को भारत के राष्ट्रपति डॉ. कलाम के द्वारा गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ है और उन्हें कनाडा सरकार के अनेक मंत्रालयों, ओलंपिक-पैरा ओलंपिक आदि जगहों पर मुख्य वक्ता के रूप में बुलाया जाता हैं। ऐसे प्रसिद्ध मुख्य अतिथि का सभी ने उत्साह से स्वागत किया। आचार्य ज़ैनजी ने संस्कृत के महत्त्व को बताते हुए, विदेश में हिंदी के प्रचार-प्रसार में लगी संस्था हिन्दी राइटर्स गिल्ड के कार्यक्रम में आने पर प्रसन्नता व्यक्त की। उन्होंने पूरा भाषण हिंदी में दिया जो बहुत प्रभावशाली रहा। उन्होंने साहित्य को समाज की धरोहर बताते हुए हिन्दी राइटर्स गिल्ड को अनेक रचनात्मक कार्य करने पर बहुत बधाई दी और आगे के लिए शुभकामनाएँ भी दीं। हिंदु धर्म से निकले बुद्ध धर्म की करुणा को लेकर चलना मनुष्य का कर्तव्य बताते हुए उन्होंने तक्षशिला और नालंदा के बौद्ध विहारों में पढ़ाए जाने वाले सदधर्म पुंडरीक के संस्कृत श्लोक सुनाए साथ ही बुद्ध धर्म की महायान शाखा और जापान में अपने मंदिर और म्यूज़ियम आदि की संक्षिप्त जानकारी भी दी।
इसके पश्चात् मंच संचालन के लिए डॉ. शैलजा सक्सेना ने संस्था की परिचालन निदेशिका श्रीमती कृष्णा वर्मा को बुलाया। कृष्णा जी ने गिल्ड द्वारा प्रारंभ किए गए ’सरस्वती सम्मान’, जो कि अवैतनिक, अनवरत हिन्दी प्रचार-प्रसार के कार्यों के लिए दिए जाता है और अनवरत, उत्कृष्ट साहित्य सृजन के लिए दिए जाने वाले ’साहित्य सृजन सम्मान’ के विषय में बताया और २०१९ से पूर्व जिन हिन्दी प्रेमियों को ये सम्मान दिया जा चुका है, उनके नाम भी दर्शकों को बताए। इस वर्ष ‘साहित्य सृजन सम्मान- 2019’ ऑटवा निवासी गीतकार डॉ. जगमोहन हूमर को प्रदान किया गया। वे व्यवसाय के स्तर पर ऑटवा, कनाडा की कार्लटन यूनिवर्सिटी में भूकम्प विशेषज्ञ के रूप में पढ़ा रहे हैं और टोरंटो के विश्वप्रसिद्ध स्काईडोम के निर्माण कार्य में भी इनका योगदान रहा है। वे पिछले २० वर्ष से अधिक हिन्दी में सृजन कार्य कर रहे हैं। इनके गीत अनेक संग्रहों, पत्र-पत्रिकाओं में छप चुके हैं और एक कविता-संग्रह भी ’जीवन के रंग’ नाम से आ चुका है। इन्होंने कई वर्षों तक 'अंकुर 'नामक हिंदी और अंग्रेज़ी की द्विभाषिक पत्रिका का सम्पादन भी किया। मंच पर आमंत्रित किये जाने पर श्री हूमर जी ने कहा कि हिन्दी राइटर्स गिल्ड द्वारा सम्मान मिलना उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है। इसके उपरांत उन्होंने प्रेम के अनेक आयामों पर लिखे अपने कुछ गीतों का सस्वर पाठ किया जिन्हें दर्शकों ने बहुत सराहा।
इस वर्ष का ’सरस्वती सम्मान’, पिछले २२-२३ वर्षों से इंटरनेट, अनेक संस्थाओं, पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से हिन्दी साहित्य से हिंदी प्रेमियों को जोड़ने, स्थानीय लेखकों की पुस्तकें प्रकाशित करवाने, २००३ से साहित्य कुंज.नेट वेब पत्रिका के संपादन कार्य में नि:स्वार्थ भाव से लगे हिन्दी राइटर्स गिल्ड के निदेशक श्री सुमन कुमार घई जी को प्रदान किया गया। उत्तरी अमरीका में हिन्दी के प्रसार में लगे लोगों में अग्रगण्य सुमन जी ने ई-पुस्तक बाजार.कॉम की स्थापना भी की है ताकि लोग अच्छी किताबें सरलता से डाउनलोड कर के पढ़ सकें। उनका कहानी-संग्रह ’लाश एवं अन्य कहानियाँ’ भी ई-पुस्तक के रूप में प्रकाशित हो चुका है। सुमन जी ने सम्मान प्राप्ति पर अपने संक्षिप्त वक्तव्य में अपने परिवार के सदस्यों को धन्यवाद दिया जिनके कारण वे अपने प्रिय काम कर पाए। उन्होंने माँ सरस्वती को धन्यवाद देते हुए कहा कि प्रकृति हमें कुछ क्षमताएँ देकर, निश्चित संभावनाओं के रास्तों पर चलाती हमारी नियति तय कर देती है। अपने हिन्दी के कार्यों की संक्षिप्त रूप-रेखा बताते हुए उन्होंने हि.रा.गि. के सदस्यों का धन्यवाद किया जिनके विश्वास के कारण वे मंच पर उपस्थित थे।
इसके बाद कृष्णाजी ने कार्यक्रम के प्रायोजकों को धन्यवाद देते हुए कार्यकारी मंडल के सदस्य श्री संदीप कुमार जी को पिछले वर्ष की गतिविधियों की रिपोर्ट पढ़ने के लिए बुलाया। संदीप कुमार ने रिपोर्ट पढ़ने के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जहाँ एक ओर दर्शक इस के माध्यम से संस्था के कामों से परिचित होते हैं, वहीं संस्था भी अपने कामों को बेहतर स्तर पर ले जाने के लिए उत्साहित होती है। उन्होंने मासिक गोष्ठियों में हुए पुस्तक विमोचनों, साहित्य चर्चाओं, होली कार्यक्रम, हिन्दी दिवस, कवि सम्मेलन आदि पर प्रकाश डाला। यूँ तो इस वर्ष संस्था की हर मासिक गोष्ठी महत्त्वपूर्ण रही थी पर अतिथि के रूप में डॉ. रोहिणी अग्रवाल द्वारा कहानी लेखन की संगोष्ठी और श्रीमती परमजीत डिओल के पंजाबी कविता-संग्रह के हिन्दी रूपांतर के विमोचन कार्यक्रम विशिष्ट रहे।
इस उत्सव के सांस्कृतिक कार्यक्रम का संचालन, सहायक निदेशक मंडल के निदेशक और काश्मीरी पृष्ठभूमि पर रचनाएँ करने वाले श्री विद्याभूषण धर द्वारा किया गया। नृत्य-नाट्योत्सव का यह हिस्सा ताल अकादमी द्वारा प्रशिक्षित एक कत्थक नृत्य द्वारा प्रारंभ हुआ। विद्या जी ने उत्तर भारत और राजस्थान से जन्में इस नृत्य का परिचय देते हुए बताया कि भावपूर्ण मुद्राओं में थिरकते हुए कथा कहने को कत्थक या कुशिलव कहा जाता था। अनुष्का हरनाल और वैदेही सदरानी ने अपने सुंदर नृत्य से दर्शकों को बाँध लिया। भावम, रागम और तालम के भ, र, और त अक्षरों की संयुक्ति से बने दक्षिण भारत में विशेष प्रचलित भरतनाट्यम का संक्षिप्त परिचय देते हुए विद्या जी ने श्रीमती जोवानी रत्नराजा की शिष्यों रितु बहादुर, मल्लिका तुषाकिरण और उमा सलादी को इस नृत्य की प्रस्तुति के लिए आमंत्रित किया। श्रीमती रत्नराजा टोरोंटो में पिछले अनेक वर्षों से भारतम एकादमी ऑफ इंडियन डांसेज़ के माध्यम से अनेक नृत्यांगनाओं को पारंगत कर चुकी हैं।
अगली प्रस्तुति नाटक थी। भरत मुनि के नाट्यशास्त्र का संदर्भ देते हुए विद्या जी ने बताया कि लोकचेतना को दृश्य काव्य रूप में प्रस्तुत करना ही नाटक होता है। संस्था की वरिष्ठ सहायक निदेशिका श्रीमती आशा बर्मन और श्री सुरेश पांडे जी ने हास्य श्रुति नाटक ’शादी का इंटरव्यू' प्रस्तुत किया जो पर्याप्त मनोरंजक रहा। श्रुति नाटक की परंपरा बंगाल में अधिक है जहाँ पात्र बैठ कर भाव से अपने संवाद पढ़ते हैं। हिंदी मंच से इस नए प्रयोग को करने के लिए आशा बर्मन जी की बहुत सराहना की गई।
शास्त्रीय नृत्यों के साथ ही प्रसिद्ध लोक-नृत्य लावणी को मंच पर प्रस्तुत किया गया। महाराष्ट्र में यह नृत्य ढोलकी की ताल पर स्त्रियों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। मराठी रंगमंच से जुड़ी नमिता दांडेकर और कल्पना नाडकर्णी ने लावणी नृत्य की सुंदर प्रस्तुति से दर्शकों को मोह लिया।
कार्यक्रम के अंत में विद्याभूषण धर जी ने एक नए प्रयोग, गीत-नाटिका ’दूसरी दुनिया’ का परिचय दिया जिसकी संकल्पना, कहानी और अभिनय डॉ. शैलजा सक्सेना का था और इस गीतों भरी कहानी के गहरे गीतों को लिख कर अपने मधुर, भावपूर्ण स्वर में गाया, टोरोंटो की प्रसिद्ध कवियत्री और शास्त्रीय संगीत गायिका मानोशी चैटर्जी ने! इस नाटक में निर्देशन सहयोग दिया, रंगकर्म में निष्णात श्री प्रकाश दाते जी ने और पूरी कहानी को सजीव कर देने वाला संगीत श्री दीपक संत जी ने दिया था। एक स्त्री के बचपन से लेकर प्रौढ़ावस्था तक की यह कहानी घटनाओं के स्थान पर भाव और विचार की रेखाओं पर प्रस्तुत की गई थी जिसमें स्थिति और भावानुरूप गीत और संगीत दर्शकों की संवेदना को चरम पर ले जाने में समर्थ हुए।
सभी दर्शकों ने नाटक के अंत में खड़े होकर नाटक की सराहना की। यहाँ यह कहना आवश्यक है कि टोरोंटो के दर्शक हिन्दी राइटर्स गिल्ड के स्तरीय नाटकों को देखने की प्रतिवर्ष प्रतीक्षा करते हैं।
कार्यक्रम के अंत में श्री विद्याभूषण धर ने हिन्दी राइटर्स गिल्ड के सभी कार्यकर्ताओं को धन्यवाद दिया और पूरी टीम और स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं को मंच पर बुला कर दर्शकों से उनका परिचय करवाया। इसके पश्चात् सभी अतिथियों ने स्वादिष्ट भोजन का आनंद लिया। हिन्दी राइटर्स गिल्ड का ग्यारहवां वार्षिक महोत्सव दर्शकों के मन को पुन: साहित्य और कला से जोड़ कर आनंदित करते हुए सफलतापूर्वक संम्पन्न हुआ।
पूरी फोटो गैलरी देखने के लिए क्लिक करें - शिशिर की एक शाम, नृत्य-नाट्योत्सव के नाम
• आशा बर्मन और डॉ. शैलजा सक्सेना
आगे पढ़ेंओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' ’क्रांतिधरा अंतरराष्ट्रीय साहित्य साधक” सम्मान से सम्मानित
सुपरिचित बाल-साहित्यकार ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' को साहित्य सृजन, हिन्दी के प्रचार-प्रसार एवं बाल-साहित्य उन्नयन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए त्रिदिवसीय क्रान्तिधरा मेरठ साहित्यिक महाकुम्भ 2019 में आज दिनांक 20 नवम्बर 2019 को अंतरराष्ट्रीय हास्य कवि एवं शायर डॉ. एजाज पॉपुलर मेरठी, श्री सरण घई (कनाडा), श्री कपिल कुमार (बेल्जियम ), श्री रामदेव धुरंधर (मारीशस), श्रीमती जया वर्मा (ब्रिटेन), डॉ. रमा शर्मा (जापान), डॉक्टर श्वेता दीप्ति नेपाल डॉ. सच्चिदानंद मिश्र नेपाल आदि आदि देश-विदेश के मंचस्थ अतिथि साहित्यकारों के द्वारा #क्रांतिधरा_अंतरराष्ट्रीय_साहित्य_साधक_सम्मान प्रदान किया गया। इस अवसर पर देश विदेश से पधारे हुए 200 से अधिक शब्द शिल्पियों की उपस्थिति में यह सम्मान प्रदान किया गया।
उल्लेखनीय है कि आप की बाल-कहानियाँ देश की प्रसिद्ध बाल पत्रिकाओं जैसे- नंदन, चम्पक, देवपुत्र, बाल किलकारी, हँसती दुनिया सहित कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रहती हैं। हाल ही में एक पुस्तक प्रकाशन की स्वीकृति प्रकाशन विभाग, भारत सरकार द्वारा प्रदान की गई है। आप को इस गौरवशाली सम्मान की प्राप्ति पर हार्दिक इष्टमित्रों, पत्रकार बन्धु एवं साहित्यकार साथियों ने आप दोनों को हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ दी हैं।
आगे पढ़ेंबालकविता संग्रह ‘कहावतों की कविताएं’ का हुआ लोकार्पण
संस्कृति शिक्षा संस्थान, कुरुक्षेत्र (हरियाणा) द्वारा प्रकाशित डॉ. वेद. मित्र शुक्ल के बाल-कविता संग्रह ‘कहावतों की कविताएं’ का लोकार्पण कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय, वर्धा के कुलपति प्रो. रजनीश शुक्ल एवं मुख्यातिथि प्रो. अवनीश कुमार, निदेशक, केंद्रीय हिंदी निदेशालय, व अध्यक्ष, वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग द्वारा किया गया। यह पुस्तक बच्चों की भाषा को लोक-आधार से समृद्ध करने के उद्देश्य से ‘संस्कृति भवन बाल साहित्य माला’ के अंतर्गत प्रकाशित की गई है। ज्ञात हो कि इस संस्थान से प्रकाशित यह श्री शुक्ल की दूसरी पुस्तक है। इससे पूर्व महात्मा गाँधी जयंती के १५० वर्ष पूर्ण होने पर ‘बापू से सीखें’ का प्रकाशन हो चुका है।
इस दौरान शिक्षा एवं बाल-साहित्य से जुड़े देश भर के 12 विद्वानों को ‘संस्कृति भवन साहित्य-सेवा सम्मान’ से अलंकृत किया गया। ये लेखक हैं: दिलीप बेतकेकर (गोवा), डॉ. ओरुगंटि सीताराम मूर्ति (विशाखापत्तनम), डॉ. श्रीराम चौथाईवाले (पुणे), देवेन्द्रराव देशमुख (रायपुर), वासुदेव प्रजापति (जोधपुर), डॉ. विकास दवे (इन्दौर), गोपाल माहेश्वरी (इन्दौर), डॉ. नीलम राकेश (लखनऊ), डॉ. फकीरचंद शुक्ल (लुधियाना), डॉ. देवेन्द्रचन्द्र दास (गुहावटी), एवं डॉ. मंजरी शुक्ला (पानीपत)। विभिन्न महत्वपूर्ण विषयों पर इन विद्वानों की भी पुस्तकों का विमोचन हुआ। कार्यक्रम का सफल संचालन संस्थान के सचिव अवनीश भटनागर द्वारा किया गया। इस अवसर पर विद्या भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. ललित बिहारी गोस्वामी, निदेशक डॉ. रामेन्द्र सिंह, अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष देवेन्द्रचन्द्र दास सुदामा, स्थानीय विधायक सुभाष सुधा सहित अनेक लेखक व विद्वान उपस्थित रहे।
आगे पढ़ेंगोइन्का राजस्थानी साहित्य पुरस्कार वितरण समारोह सम्पन्न
चूरू जिले के सम्मानित विधायक श्री राजेन्द्रसिंह जी राठौड़ की अध्यक्षता में "मातुश्री कमला गोइन्का राजस्थानी साहित्य पुरस्कार" वितरण समारोह जयपुर (राजस्थान) में भारतीय विद्या भवन के "महाराणा प्रताप सभागृह" में संपन्न हुआ। इस अवसर पर फाउण्डेशन के प्रबंध न्यासी श्री श्यामसुन्दर गोइन्का द्वारा कोटा राजस्थान के सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री अंबिका दत्त जी को पुरस्कार स्वरूप एक लाख ग्यारह हज़ार एक सौ ग्यारह रुपये नगद के संग श्री राजेन्द्रसिंह जी के हाथों शॉल, श्रीफल व स्मृतिचिन्ह भेंट कर पुरस्कृत किया गया।
संग-संग जयपुर की स्वनामधन्य साहित्यकार श्रीमती सावित्री चौधरी जी को भी "रानी लक्ष्मीकुमारी चूण्डावत महिला साहित्यकार पुरस्कार" के तहत पुरस्कार स्वरूप इकतीस हज़ार रुपये नगद के संग समारोह अध्यक्ष के हाथों शॉल, श्रीफल व स्मृतिचिन्ह भेंट कर पुरस्कृत किया गया।
समारोह आयोजक श्री गोइन्का जी ने पुरस्कार व फाउण्डेशन के कार्यकलापों के बारे में जानकारी दी तथा आये हुए अतिथियों व साहित्यकारों का स्वागत किया। सम्मानित साहित्यकारों ने अपने सम्मान का आभार व्यक्त करते हुए कमला गोइन्का फाउण्डेशन को धन्यवाद दिया।
समारोह अध्यक्ष श्री राजेन्द्रसिंह राठौड़ जी ने सम्मानमूर्ति साहित्यकारों का अभिनन्दन किया तथा गोइन्का जी को साहित्यिक गतिविधयों के लिए बधाई देते हुए हिन्दी, राजस्थानी, कन्नड़, तेलुगु, तमिल एवं मलयालम आदि साहित्य के प्रति किये जा रहे कार्यों की भरपूर सराहना की।
समारोह के अंत में श्री श्यामसुन्दर शर्मा ने समारोह की सफलता के लिए विशिष्ट अतिथियों के प्रति आभार प्रकट किया। कार्यक्रम का संचालन प्रो. उमेद गोठवाल ने सुचारू रूप से किया।
इस अवसर पर जोधपुर से पधारे "माणक" पत्रिका के प्रबंध संपादक श्री पदम मेहता जी, जयपुर के सुप्रसिद्ध कवि श्री केशरदेव मारवाड़ी, चूरू से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार श्री दुलाराम सहारण के संग नन्दकिशोर मोजासिया, श्री अरूण अग्रवाल तथा फाउण्डेशन की सहन्यासी व समारोह आयोजन में कर्मठ भूमिका में रहने वाली श्रीमती ललिता गोइन्का सहित अनेक गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंशरद् काव्योत्सव मासिक गोष्ठी - अक्तूबर 2019
१९ अक्तूबर २०१९—हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी ब्रैम्पटन लाइब्रेरी के सभागार में संपन्न हुई। पतझड़ के मोहक रंगों से सजे वृक्ष, डालों का हाथ थामे आख़िरी साँसें लेते पल्लव, कुछ हवाओं में गुलाबी खुनकियाँ प्रकृति की अनूठी छटा बिखेरती शार्दिक ऋतु में आज की गोष्ठी को काव्य उत्सव के रूप में मनाया गया। इस गोष्ठी के संचालक श्री संदीप कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। साथ ही इस ख़ूबसूरत मौसम और चंद दिनों में ही आने वाली शीत ऋतु के शर सहने को स्वीकारते हुए कार्यक्रम को आरम्भ किया। गोष्ठी के मध्य में सभी ने जलपान का आन्नद उठाया। तथा अंत तक श्री संदीप कुमार ने बहुत ही काव्यमय ढंग से संचालन का निर्वहन किया।
काव्योत्सव में इन सभी कवियों और कवियित्रियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया।
सबसे पहली कवियित्री थीं श्रीमती इंदिरा वर्मा जिन्होंने एक ख़ूबसूरत भजन ’श्याम सुंदर तेरी आरती गाऊँ, श्रद्दा सुमन मैं तुम्हें चढ़ाऊँ’ से सबका मन मोह लिया। श्री सतीश सेठी ने आज के बदलते हालातों, बदलते रिश्तों के दर्द का सटीक चित्रण करते हुए अपनी रचना ’मेरा शहर बहुत बदल गया’ का पाठ किया। श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे ने माँ बेटी के प्यारे नाते पर लिखी ’वो मेरे मन की सुमन, वर्षों पहले बोया बीज’ ख़ूबसूरत रचना सांझी की। अगले कवि श्री निमर्ल सिद्धु ने यादों पर आधारित कुछ हाइकु कहे और एक ग़ज़ल प्रस्तुत की ’उजालों के लिए मिट्टी के फिर दिये तलाशें’। श्रीमती इंदु रायज़ादा ने राबर्ट ब्राउनिंग की इश्क़ से संबंधित अंग्रेज़ी कविता का हिन्दी अनुवाद सुनाया। श्री राज महेश्वरी ने मोदी सरकार की उपलब्धियों का ब्योरा देते हुए अपनी एक रचना सुनाई ’अच्छे दिन आए’। डॉ. जगमोहन सांगा की शरद ऋतु पर लिखी बहुत सुंदर कविता थी ’शरद ऋतु में भी कोसा बोलने की कोशिश तो कर के देख, बोलने से पहले तोलने की कोशिश तो कर के देख’। सदैव की भाँति अपनी उम्दा दो ग़ज़लों से श्री अखिल भंडारी ने आज फिर श्रोताओं का मन मोह लिया। ’शाख़-ओ-शजर की तन्हाई क्या गुलशन का वीराना क्या, ये पंछी तो आवारा हैं इनका ठौर ठिकाना क्या’। और दूसरी ग़ज़ल थी ’उसका चेहरा बुझा-बुझा सा है’। श्री बाल कृष्ण शर्मा ने ’चहुँ ओर मेरे ईश्वर की माया है’ अपने भजन का गायन किया। अगली कवियित्री श्रीमती प्रोमिला भार्गव ने अक्तूबर माह के पर्वों पर आधारित ’उत्सवों का महीना है’ रचना पाठ किया। श्रीमती प्रीति अग्रवाल की ’चलो आज ख़ुद से मुलाक़ात कर लें’ तथा ’धक्का मुक्की देख असमंजस में खड़े थे’ रोचक कविताओं ने सबको मुग्ध किया। बदलते मौसम का बहुत सुंदर वर्णन करती श्रीमती सविता अग्रवाल की कविता थी ’गरमी का मौसम जाते ही, वसुधा में भी थी हरियाली’। तत्पश्चात श्रीमती कनिका वर्मा ने अपनी रचना ’मुझे इश्क़ है’ द्वारा इश्क़ के विभिन्न रूपों का विवरण देते हुए दिल के कई राज़ तथा शब्दों के मौन की सुंदर व्याख्या की। शारदीय ऋतु का ख़ूबसूरत चित्रण ’हरियाली बन्नो’ सुंदर शब्द चयन पतझड़ का मानवीकरण करती डॉ. शैलजा सक्सेना की रचना ’प्रकृति के आँगन में फैली है उदासी, विदा होने को है मौसम की पालकी में बिटिया’ ने सभी श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। श्री संदीप त्यागी के कुछ दोहों और ’इश्क़ को न उम्र में जकड़िएगा जी’ रचना ने सुंदर समा बाँधा। डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर ने अपना कविता पाठ शरद ऋतु से संबंधित एक हाइकु से आरम्भ किया और अपनी मुख्य कविता से सबका मन मोह लिया। श्री सुमन घई ने साहित्य कुंज में प्रकाशित १६ वर्षीय क्षितिज जैन की कविता सुनाई -शीर्षक था ’नवयुग का गीत’। कविता की पहली पंक्तियाँ थीं - जो पीत हुए पत्र रोक रहे हरित नवकोंपलों को/उन्हें आज वृक्ष शाखाओं से टूट कर गिरने दो। इसमें किशोर कवि ने पुरानी पीढ़ी से आग्रह किया था कि नई पीढ़ी के आगे बढ़ने के लिए पुरानी पीढ़ी को रास्ता छोड़ देना चाहिए। फुरसत के चंद पल मिले नहीं कि मन फोलने लगता है बीती को। और आंकलन में उलझा मन करता रहता है आँखें नम। श्रीमती कृष्णा वर्मा ने इस बात को दर्शाती ’स्मृतियों के घेरे में’ एक रचना तथा कुछ विभिन्न विषयों पर हाइकु का पाठ किया। श्रीमती पूनम चंद्रा ने दीप के बलिदान पर आधारित ’वो दिया जो जल कर रौशन करता है’ सुंदर रचना सुनाई। तथा साथ ही आज के कार्यक्रम के संचालक श्री संदीप कुमार को रचना पाठ के लिए आमंत्रित किया। श्री संदीप कुमार ने ’मेरा एक ख़्वाब और तेरी यादें अक्सर बातें करती हैं’ अपनी ख़ूबसूरत रचना सुनाई। गोष्ठी के अंत में श्री इक़बाल बरार ने हमेशा की तरह अपनी मधुर आवाज़ में आज एक पंजाबी लोकगीत ’मिट्टी दा बावा बनानीआँ’ पेश कर सभी का मन मोह लिया। और आज की यादगार गोष्ठी को विराम दिया।
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प्रस्तुति : श्रीमती कृष्णा वर्मा
आगे पढ़ेंभोजपाल साहित्य संस्थान, भोपाल की मासिक काव्य गोष्ठी संपन्न
19 अक्टूबर 2019 को भोपाल में साहित्य के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय संस्था, भोजपाल साहित्य संस्थान, भोपाल की मासिक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन भोपाल हाट परिसर स्थित ’9 एम मसाला रेंस्तरां’ में किया गया। कार्यक्रम संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष श्री सुदर्शन सोनी की अध्यक्षता, श्री प्रियदर्शी खैरा के मुख्य आतिथ्य व वरिष्ठ साहित्यकार द्वय श्री अशोक निर्मल व श्री वीरेंद्र जैन के विशिष्ट आतिथ्य में संपन्न हुआ। कार्यक्रम में बडी़ संख्या में साहित्यकार व साहित्य प्रेमी उपस्थित थे ।
आगे पढ़ेंपुस्तक विमोचन व विराट कवि सम्मेलन तमनार में सम्पन्न
’दर्दोगम की बस्ती’ नामक पुस्तक हृदय को उद्वेलित करने वाली है - जयशंकर
रायगढ़ - औद्योगिक व वनांचल तहसील तमनार के नवदुर्गा समिति बरभांठा द्वारा पुस्तक विमोचन एवं विराट कवि सम्मेलन का सफल आयोजन गत् दिवांक 05 अक्टूबर को किया गया।
उक्त आयोजन के मुख्य अतिथि रायगढ़ के ख्यातिलब्ध साहित्यकार पं. शिवकुमार पाण्डेय जी, कार्यक्रम अध्यक्ष ग़ज़लकार शुकदेव पटनायक जी, विशिष्ट अतिथि प्रो. के. के. तिवारी जी व कवि कमल बहिदार जी थे।
कार्यक्रम के प्रथम चरण में माँ ज्ञानदात्री महासरस्वती जी के छायाचित्र पर माल्यार्पण व समक्ष दीप, धूप प्रज्वलित करके कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ किया गया। तत्पश्चात स्वागत के क्रम में आयोजक समिति के सक्रिय सदस्यों ने सभी साहित्यकारों को तिलक लगाकर व श्रीफल प्रदान करके स्वागत - सम्मान किया।
स्वागत पश्चात् अंचल के प्रतिष्ठित ग़ज़लकार जयशंकर प्रसाद डनसेना जी द्वारा सृजित ग़ज़ल संग्रह "दर्दोगम की बस्ती" नामक पुस्तक का विमोचन अतिथियों व आमंत्रित कवियों के हाथों से हुआ। अपने उद्बोधन में जयशंकर जी ने कहा कि - "मैंने, जल - जंगल व ज़मीन को लक्ष्य बनाकर जो ग़ज़ल सृजन किया है। वह, प्रत्येक आँचलिक के हृदय को उद्वेलित करने वाली हैं। समस्त रचनाएँ मात्र कोरी कल्पना नहीं वरन् यथार्थ के धरातल पर सृजित की गई ग़ज़ल हैं। आशा है, पाठक जगत स्वागत करेंगे।"
तृतीय चरण में आमंत्रित रचनाकारों द्वारा अपने - अपने प्रतिनिधि कविताओं का पाठ किया गया। जिसमें पं. शिवकुमार पाण्डेय, प्रो. के. के. तिवारी, कमल बहिदार, राघवेन्द्र सिंह रुहेल, डॉ. दिलीप गुप्ता, शुकदेव पटनायक, रूखमणी राजपूत, स्नेहलता सिंह 'स्नेह', पुष्पलता पटनायक, संतोष पैंकरा, उग्रसेन स्वर्णकार, तेजराम चौहान, जय शंकर प्रसाद डनसेना, बालकवि प्रमोद सोनवानी 'पुष्प', सिमरन साहू, कन्हैया पड़िहारी, मिमिक्री कलाकार सेतकुमार गुप्ता आदि प्रमुख हैं।
कार्यक्रम के अंतिम चरण में आयोजक समिति द्वारा सभी प्रतिभागी रचनाकारों को स्मृति चिन्ह भेंटकर सम्मानित किया गया।
कुशल मंच संचालन घरघोड़ा से पधारे प्रतिष्ठित कवि डॉ. दिलीप गुप्ता जी ने किया।
आयोजन को सफल बनाने में रूपचन्द्र गुप्ता, परमानंद पटनायक, डॉ. मित्रभान गुप्ता, अरविन्द गुप्ता, प्रमोद साव, गोपाल गुप्ता, प्रदीप नायक आदि की भूमिका सराहनीय रही।
उक्त सफल कवि सम्मेलन अंचल में चर्चा का विषय है।
हिन्दी हैं हम, चाहे, कोई वतन हमारा…..
हिन्दी राइटर्स गिल्ड ने 14 सितम्बर 2019 को अपनी मासिक गोष्ठी में ‘हिंदी दिवस’ का सुन्दर आयोजन किया। यह कार्यक्रम ब्रैमप्टन की स्प्रिंगडेल शाखा लाइब्रेरी में दोपहर 1:30 से 4:30 तक चला। ’हिन्दी दिवस’ के इस आयोजन में बच्चों की विशेष भूमिका रही। कार्यक्रम के केन्द्र में 18 बच्चों की ऑडियो और वीडियो प्रस्तुतियाँ थीं जिन्हें पहले ही एक निश्चित समय देकर मँगा लिया गया था। लगभग सभी बच्चे इस कार्यक्रम में उपस्थित थे।
इस गोष्ठी के सफल संचालन का कार्य श्री विद्याभूषण धर तथा श्रीमती लता पांडे ने किया। कार्यक्रम के आरम्भ में विद्याभूषण जी ने हिन्दी के महत्वपूर्ण इतिहास की चर्चा की और राजभाषा के रूप में हिंदी के महत्व को बताया। उन्होंने बच्चों के साथ ही उनके माता-पिताओं को भी उनके सहयोग के लिए धन्यवाद दिया।
इसके पश्चात लताजी ने प्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी को आमंत्रित किया। काम्बोज जी ने कहा कि कोई भी भाषा बोली जाने पर ही पल्लवित होती है अत: माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों से घर में हिंदी में ही बात करें। उन्होंने लेखक के दायित्व को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि लेखक को भाषा की शुद्धता पर सदैव ध्यान देना चाहिए। शुद्ध भाषा पढ़ने से पाठक भी शुद्ध भाषा सीखेगा। उन्होंने कहा कि यह लोगों का दायित्व है कि वे भाषा का प्रयोग करके उसे जीवित रखें, मात्र किसी राजतंत्र के द्वारा भाषा का संरक्षण नहीं किया जा सकता। श्री काम्बोज जी ने हिंदी भाषा में प्रयोग की जानेवाली अनेक अशुद्धियों के उदाहरण देकर लोगों को शुद्ध किंतु सरल भाषा लिखने तथा बोलने के लिए प्रेरित किया।
इसके उपरान्त, विद्याभूषण जी ने कौंसिलेट से आए मुख्य अतिथि श्री प्रवीण कुमार मुंजाल को मंच पर आमंत्रित किया तथा हिन्दी राइटर्स गिल्ड के संस्थापक निदेशक श्री विजय विक्रांत तथा सुमन घई जी ने पुष्प प्रदान कर उनका स्वागत किया। मुंजाल जी ने हिंदी राइटर्स गिल्ड के कार्य की सराहना की और कहा कि विदेश में रहनेवाले भारतीयों के मन में हिंदी के प्रति उत्साह देखकर अच्छा लगता है।
इसके पश्चात आरम्भ हुआ बच्चों का कार्यक्रम! सभी बच्चों की पहले से रिकॉर्ड की गई कविताओं को पावर पॉइंट के माध्यम से स्क्रीन पर दिखाया गया। हर कवितापाठ के अंत में भाग लेनेवाले उपस्थित बच्चे सबके सामने आकर अपना परिचय दे रहे थे। भाग लेनेवाले बच्चों के नाम इस प्रकार हैं :
अनिका तिवारी, आरोही काम्बोज, आन्या गुप्ता, आशी चौबे, आर्या काम्बोज, श्रेयांसी कानूनगो, नैना कपूर, याना कपूर, साँची मेहरा, अस्मि चंद्रा, ईशान वर्मा, सम्यक् कुमार, अच्युतम कुमार, ईशान, कश्यप, वैष्णवी। अंत में, वैष्णवी ने हिंदी में एक मधुर भजन गाकर बच्चों के कार्यक्रम का समापन किया। सभी बच्चों को उपहार तथा प्रमाण पत्र देकर उनका सम्मान किया गया।
इसके पश्चात गोष्ठी का मध्यांतर स्वादिष्ट जलपान और चाय के साथ हुआ। ‘दम पुख़्त रेस्टोरेंट’, मारखम ने इस कार्यक्रम में पकोड़े और स्प्रिंग रोल भिजवा कर अपना सहयोग दिया, हिंदी राइटर्स गिल्ड उनका धन्यवाद करती है। सभी अतिथियों ने जलेबी ढोकले और हलवे का भी भरपूर आनंद लिया।
दूसरे सत्र में समय कम होने के कारण केवल कुछ अतिथियों को ही स्वरचित रचनाओं की प्रस्तुति के लिए बुलाया गया। सबसे पहले श्री के. एल. पांडे को आमंत्रित किया गया। वो भारत से पधारे थे। उन्होंने एक ग्रंथ की रचना की है जिसमें 1933 से अभी तक के 17000 हिंदी फ़िल्मों के गानों का रागों के आधार पर वर्गीकरण किया गया है। कार्यक्रम में उन्होंने अपने प्रकाशित काव्य संग्रह से ‘बाँसुरी’ नामक एक कविता और एक लघुकथा सुनाई।
इसके पश्चात् फ्रांस के सबसे बड़े नागरिक सम्मान से सम्मानित और पेरिस की यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर, डॉक्टर सरस्वती जोशी ने अपनी कविता द्वारा नारी की महिमा का उल्लेख किया। उनकी पुत्री डॉक्टर साधना जोशी ,जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरंटो में प्रोफ़ेसर हैं, उन्होंने मोदी जी की माता के सम्बन्ध में एक कविता पढ़ी। श्री संदीप त्यागी ने अपने मधुर स्वर में मातृभाषा हिंदी का महिमा गान प्रस्तुत किया।
इनके अतिरिक्त, श्रीमती सरोजनी जौहर, प्रीति अग्रवाल तथा श्री संदीप कुमार ने भी अपनी रचनाएँ पढ़ीं। संदीपजी ने दानार्थी संस्था एकल विद्यालय के कार्यक्रमों के सम्बन्ध में बताया कि किस प्रकार एकल ज़रूरतमंद बच्चों के लिए शिक्षा का मार्ग सुलभ करता है। उनकी कविता मातृभाषा हिंदी से संबंधित थी ।
इस प्रकार हर्ष और उत्साह से हिन्दी राइटर्स गिल्ड का ’हिंदी दिवस’ समारोह संपन्न हुआ।
प्रस्तुति - आशा बर्मन, डॉ. शैलजा सक्सेना
आगे पढ़ेंडॉ. सुरंगमा यादव को मिला ’हिन्दी रत्न सम्मान’
डॉ. सुरंगमा यादव को सुल्तानपुर की सर्वोच्च साहित्यिक संस्था ’सरिता लोकसेवा संस्थान’ द्वारा दिनांक 22 सितम्बर 2019 को अयोध्या शोध संस्थान,अयोध्या के हाल में आयोजित उन्नीसवें अखिल भारतीय सम्मान समारोह में उनके साहित्यिक योगदान के लिए ’हिन्दी रत्न सम्मान’ से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि जगतगुरू श्री रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय,चित्रकूट के कुलपति प्रो. योगेश चन्द्र दुबे, सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. विद्याविन्दु सिंह एवं संस्था के अध्यक्ष डॉ. कृष्णमणि चतुर्वेदी ’मैत्रेय’ ने सुरंगमा यादव को सम्मान पत्र एवं अगं वस्त्र प्रदान कर सम्मानित किया । डॉ. सुरंगमा यादव ,महामाया राजकीय महाविद्यालय महोना, लखनऊ में एसो.प्रो. हिन्दी के पद पर कार्यरत हैं।
आगे पढ़ेंभोजपाल साहित्य संस्थान, भोपाल की मासिक काव्य गोष्ठी दिनांक 28 सितम्बर 2019 को भोपाल में संपन्न
साहित्य के क्षेत्र में निरंतर सक्रिय संस्था, भोजपाल साहित्य संस्थान, भोपाल की मासिक साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन दिनांक 28 सितम्बर 2019 को भोपाल हाट परिसर स्थित ’9 एम मसाला रेंस्तरां’ में किया गया। कार्यक्रम संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष श्री सुदर्शन सोनी की अध्यक्षता, वरिष्ठ साहित्यकार श्री अशोक व्यास के मुख्य आतिथ्य में संपन्न हुआ।
कार्यक्रम में वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री अशोक व्यास, दुर्गारानी श्रीवास्तव, श्री के के दुबे, श्री जयपाल सिंह, सुश्री सरिता, श्री चन्द्रभान राही आदि उपस्थित थे। श्री अशोक व्यास द्वारा सशक्त सामयिक व्यंग्य ’मेरे अनमोल रतन आयेंगे’, दुर्गारानी श्रीवास्तव द्वारा कविता ’नार्यस्तु पूजयंते के देश में पशु घूमते मनुज के वेष में’ का श्रोताओं को मुग्ध करने वाला पाठन किया। चन्दभान राही द्वारा शेर ’जब जब हमें पीठ में खंजर लगा है हमने अक्सर अपने को दोस्तों के बीच पाया है’ का पाठ किया गया। मुम्बई से पधारी सुश्री सरिता द्वारा वॉलीवुड पर हास्य कविता का पाठन किया। संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष सुदर्शन सोनी द्वारा व्यंग्य ’कवि सम्मेलन आयोजन के लिये पापड़ बिलाई’ का पाठ किया जिसे खूब सराहा गया। कार्यक्रम का संचालन श्री चन्द्रभान राही व आभार प्रदर्शन दुर्गारानी श्रीवास्तव द्वारा किया गया।
- प्रियदर्शी खैरा
आगे पढ़ेंसृजनलोक अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव संपन्न
विशेष अतिथि डॉ. ऋषभदेव शर्मा को सम्मानित करते हुए कुलपति डॉ. संदीप संचेती, मुख्य अतिथि चित्रा मुद्गल और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. दिविक रमेश। |
हैदराबाद, 20 सितंबर, 2019 - एसआरएम इंस्टीट्यूट ऑफ़ साइंस एंड टेक्नोलोजी, चेन्नै तथा सृजनलोक प्रकाशन समूह के संयुक्त तत्वावधान में एसआरएम विश्वविद्यालय के चेन्नै स्थित सभागार में ‘हिंदी की विकास यात्रा : विविध आयाम’ विषयक द्विदिवसीय सृजनलोक अंतरराष्ट्रीय साहित्योत्सव संपन्न हुआ। इस समारोह में चित्रा मुद्गल, डॉ. दिविक रमेश, शरद आलोक (नॉर्वे), डॉ. सत्यनारायण मुंडा, डॉ. बी.एल. आच्छा, डॉ. पुष्पिता अवस्थी (सूरीनाम), कुसुम भट्ट, रानू मुखर्जी, कंचन शर्मा, डॉ. उषा रानी राव आदि उपस्थित रहे। समारोह का उद्घाटन एसआरएम विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. संदीप संचेती ने किया।
दो-दिवसीय सम्मेलन में सृजनलोक के चित्रा मुद्गल विशेषांक सहित आठ पुस्तकों का लोकार्पण भी संपन्न हुआ। अवसर पर हैदराबाद की डॉ. संगीता शर्मा की पुस्तक ‘चित्रा मुद्गल की कहानियों में यथार्थ और कथाभाषा’ का लोकार्पण स्वयं चित्रा मुद्गल के हाथों हुआ। इस अवसर पर देश भर के 9 मौलिक रचनाकारों को ‘सृजनलोक सम्मान’ प्रदान किया गया।
प्रस्तुति
गुर्रमकोंडा नीरजा
सहायक आचार्य
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद, हैदराबाद – 500004
लेख कैसे लिखें: एक सार्थक चर्चा
10 अगस्त, 2019 को हिंदी राइटर्स गिल्ड ने वैचारिक संगोष्ठी आयोजित की, विचार का विषय था: अच्छा लेख कैसे लिखा जाए!
कार्यक्रम का प्रारंभ डॉक्टर नरेन्द्र ग्रोवर द्वारा आयोजित जलपान से हुआ। अतिथियों का स्वागत करते हुए डॉ. शैलजा सक्सेना ने संचालन का कार्यभार सँभाला। उन्होंने आज की गोष्ठी की रूपरेखा बताते हुए कहा कि यह गोष्ठी दो सत्रों में विभाजित है, पहले सत्र में लेख पर बातचीत होगी और दूसरे सत्र में कविता पाठ होगा। विषय की भूमिका स्थापित करते हुए उन्होंने कहा कि जो बात कविता और कहानी से इतर लेखक सीधे-सीधे पाठकों तक पहुँचाना चाहता है, उसके लिए वह प्राय: लेख या निबंध विधा का उपयोग करता है। विषय के आधार पर लेखों का वर्गीकरण किया जा सकता है, जैसे वैचारिक लेख, संस्मरणात्मक लेख, व्यंग्य लेख, विश्लेषणात्मक लेख आदि। उन्होंने प्रसिद्ध लेखक श्री निर्मल वर्मा द्वारा लिखित लेखों की विशेषता की चर्चा करते हुए उदाहरण स्वरूप उनके लेख ’मेरे लिए भारतीय होने का अर्थ’ से कुछ अंश भी पढ़ा।
इसके पश्चात उन्होंने श्री सुमन कुमार घई को लेख पर चर्चा के लिए सादर आमंत्रित किया। सुमन जी ने लेख के विषय में विस्तार से चर्चा करते हुए कहा कि लेख की विधा बहुत विस्तृत है, कई शैलियाँ हैं इसलिए उसे एक ही परिभाषा में नहीं बाँधा जा सकता। उन्होंने कहा कि आवश्यक है कि जो भी लेख लिखा जाए वह तथ्यपरक हो, उसका विषय रुचिकर हो, लेखक को विषय की पूर्णरूप से जानकारी हो। लेखक को इस विषय पर लिखे हुए पहले के लेख भी पढ़ने चाहिएँ और यदि उस में से वह कोई भी तथ्य अपने लेख में उद्धृत करता है तो उस लेख का संदर्भ अवश्य देना चाहिए। लेख की भाषा भी विषय के अनुसार होना आवश्यक है। साथ ही उन्होंने इस बात पर ध्यान दिलाया कि लेख या अन्य लेखन तभी सार्थक होता है जब उसका प्रकाशन स्तरीय पत्र-पत्रिकाओं में हो। लेख पर बातचीत के दौरान ही उन्होंने श्रोताओं के प्रश्नों का भी बड़ी कुशलता से समाधान किया। ललित निबन्धों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने अपनी वेब पत्रिका ’साहित्य कुंज’ में प्रकाशित श्री सुरेन्द्रनाथ तिवारी और श्री जय प्रकाश मानस रथ के ललित निबन्धों से कुछ पंक्तियाँ पढ़ीं।
तदोपरांत श्री अजय गुप्ता जी ने सुमन कुमार घई एवं कृष्णा वर्मा को जन्मदिन की बधाई देते हुए पुष्पगुच्छ प्रदान किए। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए श्रीमती मानोशी चटर्जी ने अपना लेख पढ़ा। उनका लेख कोलकाता के चंदन नगर में दुर्गा पूजा के बाद आयोजित चंदन नगर की विशेष पूजा के विषय में था। चंदन नगर के इतिहास और भौगोलिक स्थिति को बताते हुए उन्होंने इस पूजा के धार्मिक और सामाजिक संदर्भों का बहुत सुंदर चित्र प्रस्तुत किया। इस लेख के माध्यम से श्रोताओं को एक नए स्थान और पूजा की विस्तृत जानकारी रोचक रुप से मिल सकी। लेख की इस विचार गोष्ठी में यह लेख एक बहुत अच्छा उदाहरण रहा।
इसके साथ ही पहला सत्र समाप्त हुआ और सभी ने पुन: तरोताज़ा होने के लिए चाय-नाश्ते का आनन्द लिया।
डॉ. शैलजा ने रचनात्मक प्रस्तुतियों के दूसरे सत्र में सबसे पहले अखिल भंडारी जी को आमंत्रित किया। उन्होंने अपनी दो ख़ूबसूरत ग़ज़लें पेश की "अगर उनके इशारे इस क़दर मुबहम नहीं होंगे / हमारी गुफ़्तगू में भी ये पेचोख़म नहीं होंगे" इसके बाद श्रीमती मानोशी चटर्जी ने अपनी दो ग़ज़लों से श्रोताओं का मन मोह लिया। उनकी ग़ज़ल की पंक्तियाँ थीं: यह जहाँ मेरा नहीं है/ या कोई मुझ से नहीं है। इसके बाद श्री निर्मल सिद्धू ने अपनी दो ग़ज़लें प्रस्तुत कीं, उनकी कुछ पंक्तियाँ हैं “मैं तो एक दीवाना हूँ/अलबेला मस्ताना हूँ/यह सिक्का अब भी चलता है/चाहे दौर पुराना हूँ" और दूसरी ग़ज़ल “वो जो एक दीवाना है/दुनिया से बेगाना है/निर्मल के वो संग रहे/बरसों का याराना है"। श्री संदीप त्यागी की ग़ज़ल थी "वजूद ख़ुद का हक़ीक़त में दिखाना होगा"। डॉक्टर नरेन्द्र ग्रोवर की कविता थी "दौड़ का दौर है फ़ुर्सत न ढूँढिए"। श्री बालकृष्ण शर्मा ने "या तो मुझे अपने मन में बसा लो तुम" नामक अपनी कविता का पाठ किया। श्रीमती पूनम चन्द्रा ने अपनी दो सुंदर रचनाएँ साँझी कीं "पतझड़ के मौसम में बहारों को सजा रखा है" तथा “वो बिना राह के ही सफ़र में था"। श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे जी ने डॉ. जगदीश व्योम जी की पुस्तक से कुछ हाइकु पढ़े। श्रीमती इंदिरा वर्मा ने सुमन घई तथा कृष्णा वर्मा के जन्मदिन पर कुछ सुंदर पंक्तियाँ पढ़ीं। श्री विजय विक्रांत ने अपनी डायरी से "कांस्टेबल की डायरी का पन्ना” पढ़ा। श्रीमती प्रमिला भार्गव की कविता थी "चुप कर चुपके से"। श्रीमती सीमा बागला ने अपनी कविता "निर्भय श्वास ले रहा आज लाल चौक पे तिरंगा" का पाठ किया। श्रीमती कृष्णा वर्मा ने श्रोताओं से अपनी रचना "समय" साँझी की। श्री सुमन कुमार घई ने टोरोंटो के प्रतिष्ठित लेखक श्री पाराशर गौड़ की दो कविताओं का पाठ किया जिन्हें किसी कारण से जल्दी जाना पड़ गया था। अंत में डॉ. शैलजा सक्सेना ने कुछ स्वरचित हाइकु पढ़े।
सभी लोग आज के कार्यक्रम की सार्थकता से संतोष और हर्ष अनुभव कर रहे थे।
नोट: हिंदी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठियाँ नि:शुल्क हैं और इसमें सभी साहित्य प्रेमियों का स्वागत है। यह गोष्ठी हर महीने के दूसरे शनिवार को दोपहर 1:30 बजे से 4:30 बजे तक स्प्रिंगडेल ब्रांच लाइब्रेरी, ब्रैम्पटन में होती हैं।
- प्रस्तुति: कृष्णा वर्मा, शैलजा सक्सेना, सुमन कुमार घई
आगे पढ़ें’खूँटी पर आकाश’ का लोकार्पण
बंगलौर, 3 सितंबर, 2019
यहाँ जयनगर स्थित मानंदी संस्कृति सदन में आयोजित भव्य समारोह में प्रसिद्ध कवि एवं लेखक ज्ञानचंद मर्मज्ञ के सद्यःप्रकाशित निबंध संग्रह "खूँटी पर आकाश" का लोकार्पण सम्पन्न हुआ। अखिल भारतीय साहित्य साधक मंच, बंगलौर के सौजन्य से आयोजित, इस समारोह में हैदराबाद से आये, दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के पूर्व प्रोफ़ेसर एवं प्रख्यात साहित्यकार डॉ. ऋषभदेव शर्मा बतौर मुख्य अतिथि शामिल रहे। बतौर विशिष्ट अतिथि राजस्थान पत्रिका के प्रभारी संपादक राजेंद्र शेखर व्यास, बिशप कॉटन वुमंस क्रिश्चयंस कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. विनय कुमार यादव, और हिंदी प्रचार परिषद पत्रिका के संपादक डॉ. मनोहर भारती उपस्थित थे। अध्यक्षता आकाशवाणी बंगलौर के पूर्व निदेशक एवं उर्दू साहित्यकार मिलनसार अहमद ने की।
समारोह के मुख्य अतिथि और लोकार्पणकर्ता ऋषभदेव शर्मा ने अपने लोकार्पण भाषण में आलोच्य पुस्तक के साथ ही लेखक की रचनाधर्मिता की विशेष चर्चा की। उन्होनें कहा कि मर्मज्ञ के साहित्य के मूल त्रिकोण में एक कोण पर "लोक" है, दूसरे कोण पर "समाज और संस्कृति" एवं तीसरे कोण पर "राष्ट्र"। ऋषभ देव शर्मा ने आगे कहा कि ज्ञानचंद मर्मज्ञ के साहित्य में नारी मन की पीड़ा, समाज की लोक से बढ़ती दूरी, मानवीय मूल्यों का क्षरण, जंगलों के शहर होने एवं शहरों के जंगल होने की व्यथा मुखरित होती है। उन्होंने "खूँटी पर आकाश" में संकलित निबंधों में व्यक्त लेखक की चिंताओं का जिक्र करते हुए कहा कि लेखक विनाश से अधिक विनाशकारी प्रवृत्तियों को लेकर चिंतित है।
अध्यक्षीय टिप्पणी में मिलनसार अहमद ने मर्मज्ञ के साहित्य-सृजन को 'लोक-कल्याण' से प्रेरित बताया। उन्होंने निबंध की बारीक़ियों और समकालीन साहित्य में इसके महत्व को रेखांकित करते हुए 'खूँटी पर आकाश' में संकलित निबंधों की विशेषताओं की चर्चा की और कहा कि इनमें एक नया मेटाफर है, एक नयी फैंटसी है और स्वयं से संवाद है।
पुस्तक की समीक्षा करते हुए केशव कर्ण ने "खूँटी पर आकाश" को गद्यकाव्य की संज्ञा दी और इसे जीवन की क्षणभंगुरता एवं जिजीविषा के बीच सामंजस्य पर केंद्रित बहु-आयामी एवं विविधवर्णी निबंधों का संकलन बताया। राजेंद्र शेखर व्यास ने साहित्य एवं पत्रकारिता के संबंधों को चिह्नित करते हुए इन दोनों विधाओं में 'टाइम और स्पेस' के महत्व पर बल दिया, तो डॉ. विनय यादव ने मर्मज्ञ के साहित्य की पठनीयता एवं उपादेयता पर चर्चा की। डॉ मनोहर भारती ने लेखक ज्ञानचंद मर्मज्ञ को जन-मन का रचनाकार बताया।लेखक ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने अतिथियों एवं उपस्थित गणमान्य व्यक्तियों के प्रति आभार प्रकट करते हुए पुस्तक से जुडी अपनी भावनाओं को भी व्यक्त किया। लेखक ने कहा कि इन निबंधों में आकुल मन के प्रश्न हैं, कुछ चिंता है कुछ व्यथा है।
आरंभ में अतिथियों ने दीप-प्रज्वलन किया। अर्जुनसिंह धर्मधारी ने सरस्वती-वंदना की। डॉ. उषा रानी राव ने अतिथियो परिचय दिया। मुख्य अतिथि का परिचय डॉ संतोष मिश्रा ने दिया। मंच संचालन मंजु वेंकट ने किया तथा धन्यवाद डॉ. अरविंद गुप्ता ने दिया।
-प्रस्तुति केशव कर्ण, साहित्य साधक मंच, बंगलौर
आगे पढ़ेंराष्ट्रीय संगोष्ठी में रचना प्रतिभा सम्मान से सम्मानित हुए प्रमोद सोनवानी
रायगढ़ - अंतर्राष्ट्रीय साहित्य संस्था ’मंजिल ग्रुप साहित्य मंच’ - नई दिल्ली के बैनर तले तहसील घरघोड़ा के प्राचीन बैगिन डोकरी मन्दिर प्रांगण में गत् दिवस एक भव्य राष्ट्रीय साहित्य संगोष्ठी का आयोजन किया गया।
इस संगोष्ठी के प्रमुख अतिथि दिल्ली से पधारे मगसम के राष्ट्रीय संयोजक व ख्यातिलब्ध साहित्यकार डॉ. सुधीर सिंह 'सुधाकर' जी थे ।
आयोजित राष्ट्रीय साहित्य संगोष्ठी में तमनार, पड़िगाँव निवासी बाल साहित्यकार प्रमोद सोनवानी पुष्प को बाल साहित्य लेखन - सृजन हेतु "रचना प्रतिभा सम्मान - 2019" से सम्मानित किया गया। उक्त प्रद्दत सम्मान के तहत पुष्प को अलंकरण वस्त्र , अलंकरण पट्टी, साहित्य व सम्मान पत्र अतिथियों के करकमलों से प्रदान किया गया।
काव्यपाठ के क्रम में प्रमोद सोनवानी ने माँ के ऊपर केन्द्रित व बालमन को समर्पित बाल-कविता ’बचपन खोने न दें’ शीर्षक से सस्वर पाठ करके ख़ूब वाहवाही व तालियाँ बटोरीं।
प्राप्त सम्मान हेतु बाल साहित्यकार प्रमोद को डॉ. सुधीर सिंह जी, वकील शंखदेव मिश्रा जी, डॉ. दिलीप गुप्ता ज , व्याख्याता संजय बहिदार ज , प्रधान अध्यापिका रूखमणी राजपूत जी, समाज के ज़िला अध्यक्ष बाबा गंगाधर दास जी, पत्रकार प्रताप नारायण बेहरा जी, श्रवण चौहान जी व कृषि विस्तार अधिकारी संतोष पैंकरा जी ने आशीर्वाद स्वरूप बधाई दी।
आदर्श व पृथक ढंग से आयोजित उक्त साहित्यिक कार्यक्रम क्षेत्र में चर्चित है। इस कार्यक्रम में गणमान्यों के साथ-साथ आमजनों की उपस्थिति सराहनीय रही। ज्ञातव्य हो कि उक्त आयोजन भारत के साथ-साथ विश्व के लगभग 27 देशों में संचालित हो रहा है।
राजकुमार जैन राजन की नेपाली में अनूदित पुस्तकों का लोकार्पण उज्जैन में
उज्जैन- आकोला (राजस्थान) के सुपरिचित साहित्यकार, संपादक, प्रकाशक, समाजसेवी श्री राजकुमार जैन राजन की बाल-साहित्य कृतियों के नेपाल से प्रकाशित नेपाली अनूदित संस्करण का लोकार्पण उज्जैन में हुआ। उज्जैन की कालिदास अकादमी परिसर में 'शब्द प्रवाह सृजन मंच' उज्जैन व 'राष्ट्रीय पुस्तक न्यास', नई दिल्ली के भव्य आयोजन में राजन के बाल कहानी संग्रह 'मन के जीते जीत' एवम बाल कविता संग्रह 'रोबोट एक दिला दो राम' के नेपाली संस्करण 'मनले जिते जित' एवम 'एउटा रोबट दिलाइदेऊ राम' का लोकार्पण सम्पन्न हुआ।
मंचस्थ अतिथि राष्ट्रीय पुस्तक न्यास के संपादक डॉ. लालित्य ललित, विक्रम विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति, मध्य प्रदेश हिंदी ग्रन्थ अकादमी के निदेशक व प्रसिद्ध साहित्यकार, चिंतक डॉ. राम राजेश मिश्र, कुलानुशासक हिंदी विभागाध्यक्ष विक्रम विश्वविद्यालय एवम प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा, सुप्रसिद्ध संपादक, साहित्यकार श्री संदीप सृजन, डॉ. राजेश रावल, श्री राजेश राज आदि के करकमलों द्वारा इन कृतियों का लोकार्पण सम्पादित हुआ। इस आयोजन में सर्व श्री गोविंद शर्मा (संगरिया), डॉ. जयप्रकाश पंड्या ज्योतिपुंज (उदयपुर), जयसिंग आशावत (नैनवा), डॉ. गरिमा दुबे (इंदौर), डॉ. महेंद्र अग्रवाल (शिवपुरी), श्री अशोक व्यास (भोपाल), श्रीमती शशि सक्सैना (जयपुर), श्री प्रदीप नवीन (इंदौर) सहित देश के कई ख्यातनाम साहित्यकार उपस्थित रहे।
ज्ञातव्य है कि राजकुमार जैन राजन बाल-साहित्य के उन्नयन एवम संवर्द्धन के लिए प्रतिबद्ध व बाल-साहित्य सर्जक के रूप में बाल-साहित्य जगत में सुपरिचित नाम है। इनकी अब तक 36 बाल सहित्य कृतियाँ प्रकाशित हो चुकी है। देश-विदेश में कई भाषाओं में इनकी कृतियों का अनुवाद हुआ है।
बाल कहानी संग्रह 'मन के जीते जीत' में सकारात्मक सोच प्रदान करने वाली 30 कहानियाँ प्रकाशित है। इस कहानी संग्रह का नेपाली अनूदित संस्करण 'मनले जिते जित' नाम से 'शब्द संयोजन प्रकाशन' काठमांडू , नेपाल से, नेपाल सरकार के आईएसबीएन नम्बर के साथ प्रकाशित हुआ है जिसका नेपाली भाषा मे अनुवाद नेपाली/हिंदी की प्रसिद्ध साहित्यकार सुमि लोहनी ने किया है।
बाल कविता संग्रह 'रोबोट एक दिला दो राम' में राजकुमार जैन राजन की 47 कविताएँ संगृहीत हैं जिसमें बच्चों को प्रकृति प्रेम, पर्यावरण संरक्षण की सीख देते हुये प्रकृति के विविध आयामों को सुंदर तरीक़े से प्रस्तुत करते हुए आधुनिक वैज्ञानिक युग से जोड़ने वाली कवितायें संगृहीत हैं। इस बाल कविता संग्रह का नेपाली भाषा मे अनूदित संस्करण 'एउटा रोबट दिलाईदेऊ राम' शीर्षक से दीपश्री क्रिएटिव मीडिया पब्लिसिंग हाउस, काठमांडू नेपाल से, नेपाल के आईएसबीएन के साथ प्रकाशित हुआ है। इस बाल कविता संग्रह का अनुवाद भी नेपाल की ख्यातनाम लेखिका , शिक्षाविद सुमि लोहनी ने किया है।
भारतीय रचनाकार की नेपाल से प्रकाशित ये कृतियाँ भारत -नेपाल मैत्री व सांस्कृतिक संम्बंधों को सुदृढ़ करने का काम करेगी।
इससे पूर्व राजकुमार जैन राजन के कविता संग्रह 'खोजना होगा अमृत कलश' का भी नेपाली में अनूदित संस्करण प्रकाशित हो चुका है जिसका लोकार्पण नेपाल, प्रदेश 2 के मुख्यमंत्री द्वारा किया गया है।
●समाचार: पारुल व्यास
आगे पढ़ेंस्पंदन द्वारा 'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क पर नाज़ था' पर चर्चा
ललित कलाओं के प्रशिक्षण प्रदर्शन एवं शोध की अग्रणी संस्था स्पंदन द्वारा पंकज सुबीर के बहुचर्चित उपन्यास 'जिन्हें जुर्म-ए-इश्क पर नाज़ था' पर पुस्तक चर्चा का आयोजन स्वराज भवन में किया गया। इस अवसर पर उपन्यास के दूसरे संस्करण का भी विमोचन हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता मध्यप्रदेश के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक श्री सैयद मोहम्मद अफ़ज़ल ने की। पुस्तक पर वक्ता के रूप में भोपाल कलेक्टर श्री तरुण पिथोड़े, एबीपी न्यूज़ के संवाददाता श्री बृजेश राजपूत तथा दैनिक भास्कर के समाचार संपादक श्री सुदीप शुक्ला उपस्थित थे।
सर्वप्रथम अतिथियों का स्वागत स्पंदन की संयोजक वरिष्ठ कथाकार डॉ उर्मिला शिरीष ने किया। इस अवसर पर बोलते हुए श्री सुदीप शुक्ला ने कहा कि यह उपन्यास एक ऐसे समय पर आया है, जब इस उपन्यास की सबसे अधिक आवश्यकता थी। यह इस समय की सबसे ज़रूरी किताब है। इस उपन्यास में प्रश्नोत्तर के माध्यम से आज के कुछ महत्वपूर्ण सवालों के जवाब तलाशे गए हैं। ऐतिहासिक पात्रों को उठाकर उनके साथ चर्चा करते हुए लेखक ने आज की समस्याओं के हल और उनकी जड़ तलाशने की कोशिश की है। उपन्यास पर चर्चा करते हुए श्री बृजेश राजपूत ने कहा कि पंकज सुबीर के पहले के दोनों उपन्यास भी मैंने पढ़े हैं तथा उन पर टिप्पणी की है, यह तीसरा उपन्यास उन दोनों से बिल्कुल अलग तरह का उपन्यास है। इस उपन्यास को पंकज सुबीर ने एक बिल्कुल नए शिल्प और एक नई भाषा के साथ लिखा है। यह ठहरकर पढ़े जाने वाला उपन्यास है जो आपको कई सारी नई जानकारियाँ प्रदान करता है, ऐसी जानकारियाँ जिनके बारे में आप जानना चाहते हैं।
भोपाल कलेक्टर श्री तरुण पिथोड़े ने उपन्यास पर चर्चा करते हुए कहा कि यह उपन्यास प्रशासन से जुड़े हुए अधिकारियों के मानवीय पक्ष को सामने रखता है। साथ में उन चुनौतियों के बारे में भी बताता है जिन चुनौतियों का सामना हम सब को करना पड़ता है। यह मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना का उपन्यास है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे श्री सैयद मोहम्मद अफ़ज़ल ने कहा कि इस उपन्यास में बहुत सारी बातें ऐसी हैं जिनको पढ़ते हुए हमें ऐसा लगता है कि लेखक ने बहुत ख़तरा उठा कर इस उपन्यास को लिखा है। कई सारी बातें, कई सारे कोट्स इस तरह के हैं जैसे हमारे ही मन की बात लेखक ने लिख दी है। इस तरह के उपन्यासों का लिखा जाना बहुत ज़रूरी है क्योंकि यह उपन्यास और इस तरह की किताबें बहुत सारी ग़लतफ़हमियों के अँधेरे को दूर किया है।
कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों को स्पंदन तथा शिवना प्रकाशन की तरफ से स्मृति चिन्ह प्रदान किए गए। अंत में आभार स्पंदन की संयोजक डॉ. उर्मिला शिरीष ने व्यक्त किया। इस अवसर पर बड़ी संख्या में साहित्यकार, पत्रकार उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंसाहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला पाठ्यक्रम में
सुपरिचित कुंडलियाकार एवं साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाओं को XSEED Education की पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित किया गया है । XSEED Education की कक्षा 6 की हिंदी पाठ्य-पुस्तक भाग 2 में त्रिलोक सिंह ठकुरेला की कुण्डलियाँ, कक्षा 7 की हिंदी पाठ्य-पुस्तक भाग 1 में बाल कविता एवं कक्षा 8 की हिंदी पाठ्य-पुस्तक में गीत सम्मिलित किया गया है । ज्ञातव्य है कि XSEED Education का मुख्यालय सिंगापुर में स्थित है, जिसकी शिक्षण पद्धति से भारत सहित 8 देशों के हज़ारों स्कूल संचालित हैं ।
त्रिलोक सिंह ठकुरेला को उनके साहित्यिक अवदान के लिए अनेक साहित्यिक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जा चुका है । उल्लेखनीय है कि पूर्व में भी त्रिलोक सिंह ठकुरेला की रचनाओं को महाराष्ट्र राज्य की दसवीं कक्षा की पाठ्य-पुस्तक 'हिंदी कुमारभारती' सहित अनेक पाठ्य-पुस्तकों में सम्मिलित किया जा चुका है ।
आगे पढ़ेंकहानी-पाठ एवं चर्चा - उर्मिला जैन का संग्रह ’मोन्टाना’ और कमला दत्त का ’अच्छी औरतें’
लंदन, 17 जुलाई 2019 – वातायन पोएट्री ऑन साउथ बैंक द्वारा नेहरु सेंटर-लंदन में एक विशेष साहित्यिक समारोह का आयोजन किया गया जिसमें जानी-मानी लेखिका और अनुवादक उर्मिला जैन की पुस्तक ’ट्रेमोन्टाना’ जो कि स्पैनिश लेखक मार्क्वेज़ गेब्रियल की कहानियों का सुंदर अनुवाद है और एटलांटा-यू.एस.ए. से पधारी वरिष्ठ अनुसंधानकर्ता और कथाकार कमला दत्त के कहानी-संग्रह ’अच्छी औरतें’ पर लंदन में बसी साहित्यकारों, डॉ. अचला शार्मा एवं श्रीमती शैल अग्रवाल द्वारा चर्चा की गयी; लेखिकाओं ने अपनी एक छोटी कहानी का नाटकीय पाठ भी किया।
नेत्र-सर्जन, फ़िल्म-प्रोड्यूसर, डायरेक्टर और कवि, डॉ. निखिल कौशिक जो इस कार्यक्रम के कुशल संचालक भी थे, की सुरीली वंदना के उपरान्त वातायन की अध्यक्ष मीरा कौशिक, ओ.बी.ई. ने मंच से अतिथियों एवं श्रोताओं का स्वागत-अभिनंदन किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे ब्रिस्टल के मेयर माननीय टॉम आदित्य जो अनुशासन-प्रबंधन के कार्य में रत रहते हुए बहु-भाषा के फ़ोरम एवं सामाजिक अभियानों का नेतृत्व भी करते हैं। उन्होंने लेखकों बधाई देते हुए विदेश में हिंदी की उन्नति और प्रचार-प्रसार के लिए वातायन की सराहना की और अपनी शुभकामनाएँ दीं। ऑक्सफ़ोर्ड बिजिनेस कॉलेज के डायरेक्टर और प्रसिद्ध लेखक डॉ. पद्मेश गुप्त ने अध्यक्षता का पद सँभाला।
डॉ. उर्मिला जैन की ’ट्रेमोन्टाना’ की समीक्षा जानी-मानी लेखिका, कवि और ’लेखनी’ की संपादिका श्रीमती शैल अग्रवाल ने की। प्रख्यात कोलंबियन नोबल-प्राईज़ विजेता लेखक व उपन्यासकार गेब्रियल मार्क्वेज़ की कहानियों का दुनिया भर में कई भाषाओं में अनुवाद किया जा चुका है। किसी अन्य भाषा से अपनी भाषा में कहानियों का अनुवाद करना कितना कठिन कार्य होता है, इसे हम सभी जानते हैं। किंतु उर्मिला जैन ने “ट्रेमोन्टाना” का अंग्रेज़ी अनुवाद से हिंदी में अनुवाद करके अपने उत्कृष्ट लेखन का प्रमाण दिया है। उर्मिला जी ने मार्क्वेज़ की एक लघु कथा, उस प्रतापी का भूत का रोचक पाठ भी किया, जो भूतों पर आधारित थी।
डॉ. कमला दत्त की पुस्तक ’अच्छी औरतें’ की समीक्षा लेखिका और बी.बी.सी. की विख्यात पूर्व-प्रसारक डॉ. अचला शर्मा ने उत्तम तरीक़े से की। डॉ. कमला दत्त, जिन्होंने स्टेम-सेल रिसर्च और टिश्यू-इंजीनियरिंग में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, के कहानी संकल ’मछली सलीब पर टंगी है’, ’कमला दत्त की यादगार कहानियाँ’ और ’अच्छी औरतें’ प्रसिद्ध हैं। वह थिएटर से भी जुड़ी रही हैं, उनके पुरस्कारों में शामिल हैं: आल इंडिया गेटी थियेटर एक्टिंग अवार्ड, रीजनल यूथ फ़ेस्टिवल अवार्ड और द स्टेट अवार्ड फ़ॉर प्रेमचंद’स ’धनिया’ (यूनिवर्सिटी कलर अवार्डी फ़ॉर थियेटर)। उन्होंने अपनी कहानी ’तुम वहाँ नहीं थे’ की नाटकीय प्रस्तुति की।
समस्त प्रोग्राम इतना दिलचस्प था कि हॉल में उपस्थित श्रोतागण अंत तक मंत्रमुग्ध होकर बैठे रहे। श्रीमती अरुणा सब्बरवाल ने धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। अंत में वातायन की संस्थापक, दिव्या माथुर और विशिष्ट अतिथि कौंसलर टॉम आदित्य ने इस कार्यक्रम में प्रतिभागियों को उपहार देकर आदरपूर्वक विदा किया।
प्रस्तुति शन्नो अग्रवाल
vatayanpoetry@gmail.com
पंकज सुबीर के नए उपन्यास ‘जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था’ का विमोचन
"एक रात की कहानी में सभ्यता समीक्षा है ये उपन्यास"- डॉ. प्रज्ञा
शिवना प्रकाशन द्वारा आयोजित एक गरिमामय साहित्य समारोह में सुप्रसिद्ध कथाकार पंकज सुबीर के तीसरे उपन्यास "जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था" का विमोचन किया गया। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध कथाकार, उपन्यासकार तथा नाट्य आलोचक डॉ. प्रज्ञा विशेष रूप से उपस्थित थीं। कार्यक्रम का संचालन संजय पटेल ने किया।
श्री मध्य भारत हिंदी साहित्य समिति के सभागार में आयोजित इस समारोह में अतिथियों द्वारा पंकज सुबीर के नए उपन्यास का विमोचन किया गया। इस अवसर पर वामा साहित्य मंच इन्दौर की ओर से पंकज सुबीर को शॉल, श्रीफल तथा सम्मान पत्र देकर सम्मानित किया गया। मंच की अध्यक्ष पद्मा राजेन्द्र, सचिव ज्योति जैन, गरिमा संजय दुबे, किसलय पंचोली तथा सदस्याओं द्वारा पंकज सुबीर को सम्मानित किया गया।
स्वागत भाषण देते हुए कहानीकार, उपन्यासकार ज्योति जैन ने कहा कि पंकज सुबीर द्वारा अपने नए उपन्यास के विमोचन के लिए इंदौर का चयन करना हम सबके लिए प्रसन्नता का विषय है; क्योंकि उनका इंदौर शहर से लगाव रहा है और यहाँ के साहित्यिक कार्यक्रमों में भी वे लगातार आते रहे हैं। इस उपन्यास का इंदौर में विमोचन होना असल में हमारे ही एक लेखक की पुस्तक का हमारे शहर में विमोचन होना है।
इस अवसर पर बोलते हुए डॉ. प्रज्ञा ने कहा कि नई सदी में जो लेखक सामने आए हैं, उनमें पंकज सुबीर का नाम तथा स्थान विशिष्ट है। वह लगातार लेखन में सक्रिय हैं, उनकी कई कृतियाँ आ चुकी हैं और पाठकों द्वारा सराही भी जा चुकी हैं। पिछला उपन्यास ‘अकाल में उत्सव’ किसानों की आत्महत्या पर केंद्रित था, तो यह नया उपन्यास "जिन्हें जुर्म-ए-इश्क़ पे नाज़ था" सांप्रदायिकता की चुनौतियों से रू-ब-रू होता दिखाई देता है। इस उपन्यास के बहाने पंकज सुबीर ने उन सारे प्रश्नों की तलाश करने की कोशिश की है, जिनसे हमारा समय इन दिनों जूझ रहा है। सांप्रदायिकता की चुनौती कोई नया विषय नहीं है; बल्कि यह समूचे विश्व के लिए आज एक बड़ी परेशानी बन चुका है। पंकज सुबीर ने इस उपन्यास में वैश्विक परिदृश्य पर जाकर यह तलाशने की कोशिश की है कि मानव सभ्यता और सांप्रदायिकता, यह दोनों पिछले पाँच हज़ार सालों से एक दूसरे के साथ-साथ चल रहे हैं, इसमें कोई नई बात नहीं है। पंकज सुबीर ने यह उपन्यास बहुत साहस के साथ लिखा है। इस उपन्यास को लेकर किया गया उनका शोध कार्य, उनकी मेहनत इस उपन्यास के हर पन्ने पर दिखाई देती है। उपन्यास को पढ़ते हुए हमें एहसास होता है कि इस एक उपन्यास को लिखने के लिए लेखक ने कितनी किताबें पढ़ी होंगी और उनमें से इस उपन्यास के और सांप्रदायिकता के सूत्र तलाशे होंगे। मैं यह ज़रूर कहना चाहूँगी कि एक पंक्ति में "यह उपन्यास एक रात में की गई सभ्यता समीक्षा है"। एक रात इसलिए क्योंकि यह उपन्यास एक रात में घटित होता है। उस एक रात के बहाने लेखक ने मानव सभ्यता के पाँच हज़ार सालों के इतिहास की समीक्षा कर डाली है। यह एक ज़रूरी उपन्यास है, जिसे हम सब को ज़रूर पढ़ना चाहिए।
उपन्यास के लेखक पंकज सुबीर ने अपनी बात कहते हुए कहा कि इस उपन्यास को लिखते समय बहुत सारे प्रश्न मेरे दिमाग़ में थे। सांप्रदायिकता एक ऐसा विषय है जिस पर लिखते समय बहुत सावधानी और सजगता बरतनी होती है, ज़रा सी असावधानी से सब कुछ नष्ट हो जाने की संभावना बनी रहती है। इस उपन्यास को लिखते समय मेरे दिमाग़ में बहुत सारे पात्र थे, बहुत सारे चरित्र थे। इतिहास में ऐसी बहुत सारी घटनाएँ थीं, जिन घटनाओं के सूत्र विश्व की वर्तमान सांप्रदायिक स्थिति से जुड़ते हुए दिखाई देते हैं। मैं उन सब को इस उपन्यास में नहीं ले पाया। फिर भी मुझे लगता है कि मैंने अपनी तरह से थोड़ा प्रयास करने की कोशिश की है, बाक़ी अब पाठकों को देखना है कि मैं अपने प्रयास में कितना सफल रहा हूँ।
अंत में आभार व्यक्त करते हुए शिवना प्रकाशन के महाप्रबंधक शहरयार अमजद खान में पधारे हुए सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का सुरुचिपूर्ण संचालन संजय पटेल ने किया। अंत में अतिथियों को स्मृति चिह्न श्रीमती रेखा पुरोहित तथा श्रीमती किरण पुरोहित ने प्रदान किए।
इस अवसर पर सर्वश्री प्रभु जोशी, सरोज कुमार, सूर्यकांत नागर, सदाशिव कौतुक, कैलाश वानखेड़े, कविता वर्मा, किसलय पंचोली, डॉ. गरिमा संजय दुबे, समीर यादव, शशिकांत यादव, अर्चना अंजुम, सुदीप व्यास, आनंद पचौरी, प्रदीप कांत, प्रदीप नवीन, अनिल पालीवाल, कैलाश अग्रवाल, उमेश शर्मा, शरद जैन, भारती दीक्षित, पंकज दीक्षित, अनिल त्रिवेदी, आदित्य जोशी, राजेंद्र शर्मा सहित बड़ी संख्या में इंदौर, देवास, सीहोर तथा उज्जैन से पधारे हुए साहित्यकार उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंगुरुपूर्णिमा पर्व के अवसर पर सम्मानित हुए क़लम-कला साधक
आगरा- विश्वशांति मानव सेवा समिति के कार्यालय में बृजलोक साहित्य-कला-संस्कृति अकादमी के सौजन्य से देशभर के साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों को सम्मानित किया गया। उपर्युक्त कार्यक्रम गुरुपूर्णिमा पर्व के पावन अवसर पर आयोजित किया गया। उक्त कार्यक्रम में मुख्यरूप से जयकिशन सिंह एकलव्य को उनकी क़लम साधना के लिए साहित्य साधक सम्मान उपाधि से सम्मानित किया गया। इस अवसर पर जिन अन्य महानुभावों को सम्मानित किया गया वे हैं -
राहुल सिंह (मुंबई - महाराष्ट्र), रेशमा शेख (मुंबई - महाराष्ट्र), दिव्या कुमारी जैन (चित्तौड़गढ़ - राजस्थान), एस.डी. ओमी प्रताप (वाराणसी - उ. प्र.), डॉ. राजेन्द्र श्रीवास्तव (फैजाबाद - उ. प्र.), भेरूलाल जैन (कलकत्ता - पं. बंगाल), सनातन कुमार वाजपेयी सनातन (जबलपुर - म. प्र.), बादल प्रयागवासी (प्रयागराज - उ. प्र.), शिव बक्श सागर प्रजापति (फैजाबाद - उ. प्र.), चित्रकार खलीक अहमद खाँ (फैजाबाद - उ. प्र.), सुनील कुमार दिवाकर (लखनऊ - उ. प्र.), शाह आलम (जालौन - उ. प्र.), आचार्य शीलक राम (रोहतक - हरियाणा), सी. एल. दीवाना हिन्दुस्तानी (रीवा - म. प्र.), श्रीमती आभा गुप्ता इन्दौरी (रीवा - म. प्र.), शंकर लाल माहेश्वरी (भीलवाडा - राजस्थान), गौरीशंकर वैश्य विनम्र (लखनऊ - उ. प्र.), आफताब आलम (मुंबई - महाराष्ट्र) आदि।
गौरतलब है कि बृजलोक अकादमी अपनी सहयोगी संस्थाओं के संयुक्त बैनर तले साल-भर में चार बार इस तरह के कार्यक्रमों का आयोजन करती है। ये अवसर हैं मकर संक्रांति, होली, गुरूपूर्णिमा और दीपावली। अगला आयोजन दीपावली पर होगा। इस हेतु देशभर से साहित्यकार, कलाकार, पत्रकार अपनी प्रविष्टियाँ पूर्णतः निशुल्क भिजवा सकते हैं।
सभी उपस्थित महानुभावों का आभार माना मुकेश कुमार ऋषि वर्मा ने और अपनी उपस्थिति दर्ज करायी मोहर सिंह निषाद, राकेश वर्मा, अवधेश कुमार, राजकुमार, प्रीतम, राहुल आदि ने।
रिपोर्ट - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा
आगे पढ़ेंपरमजीत दियोल के काव्य-संग्रह "हवा में लिखी इबारत" का लोकार्पण
हिन्दी राइटर्स गिल्ड की जून गोष्ठी आठ जून को स्प्रिंगडेल लाइब्रेरी के कमरे में यथासमय १:३० बजे बहुत धूमधाम से प्रारंभ हुआ। इस गोष्ठी का मुख्य कार्यक्रम पंजाबी की चर्चित कवयित्री श्रीमती परमजीत दियोल की पंजाबी की चुनी हुई कविताओं के हिन्दी अनुवाद की पुस्तक "हवा में लिखी इबारत" का लोकार्पण था। हिन्दी राइटर्स गिल्ड के लिए यह नई बात नहीं कि वह दूसरी भाषाओं से हिन्दी में अनूदित पुस्तकों के लोकार्पण का आयोजन करे। इससे पहले भी उर्दू, अंग्रेज़ी और पंजाबी से हिन्दी में अनूदित पुस्तकों पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करके इन पुस्तकों पर विशेष बातचीत की गई है। भाषाओं के आपसी सम्मिलन के इसी महोत्सव की एक कड़ी थी यह संग्रह! इस संग्रह पर बातचीत करने के लिए हिन्दी और पंजाबी के कई विद्वान इस अवसर पर उपस्थित थे। कुछ विद्वान भारत से भी आये हुए थे।
कार्यक्रम का प्रारंभ चाय और जलपान से हुआ जिसका आयोजन परमजीत जी ने किया था। इसके बाद कार्यभार सँभाला इस गोष्ठी की संचालिका श्रीमती कृष्णा वर्मा जी ने। उन्होंने सबसे पहले भारत से आये हुए कुलविंदर खैरा जी को इस संग्रह पर बोलने के लिए आमंत्रित किया। कुलविंदर जी ने कहा कि “कविताएँ कई तरह की होती हैं पर उनके मुख्यत: दो प्रकार होते हैं: फ़िक्र की कविता और संवेदना की कविता”! परमजीत जी की अनेक कविताओं के उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि “इन कविताओं में फ़िक्र और संवेदना दोनों ही हैं और औरत की त्रासदी से जुड़े गहरे अहसास हैं। फ़ेमनिज़्म यहाँ नारेबाज़ी नहीं बल्कि सहजता से गहरी बात करते हुए आता है, कई कवितायें अपनी छाप छोड़ती हैं जैसे चिडिया, लिहाफ, चूड़ियाँ, औलाद आदि!”
इसके बाद परमजीत जी को अपनी रचनाओं के पाठ के लिए आमंत्रित किया गया। उन्होंने अलग-अलग भाव की कुछ कविताएँ दर्शकों के समक्ष रखीं जिनमें "मछलियाँ", "पानी के बुलबुलों को बार-बार पकडूँगी" को श्रोताओं ने बहुत सराहा।
"दिशा" संस्था की अध्यक्षा डॉ. कुलविंदर ढिल्लों ने परमजीत जी की रचना यात्रा पर प्रकाश डालते हुए बताया कि "२०११ में सबसे पहले परमजीत ने कविता लिखना शुरू किया था जो अब तक चल रहा है।" मंचों की सार्थक भूमिका को बताते हुए उन्होंने कहा कि "मंच प्रस्तुतियों से लेखक का आत्मविश्वास बढ़ता है और यह परमजीत का सौभाग्य है कि उन्हें अपनी रचनाओं को प्रस्तुत करने के लिए पंजाबी और हिंदी के मंच कई बार मिले। औरत की संवेदना से जुड़े कई भावों को इन कविताओं में प्रस्तुत किया गया है, "घर" कविता की विशेष चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इस विषय पर प्राय: सभी लेखिकाएँ लिखती हैं। इस काव्य-संग्रह के अनुवादक श्री सुभाष नीरव जी की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि ये कविताएँ पंजाबी की नहीं बल्कि हिंदी की ही लगती हैं। उन्होंने "दिशा" की ओर से एक सर्व-भाषीय लिटरेचर फ़ेस्टिवल करने का आह्वान किया।
तत्पश्चात रिंटु भाटिया ने परमजीत जी के बारे में बताते हुए कहा कि वे बहुत उदार महिला हैं और स्नेहपूर्ण कविताएँ ऐसी रचती हैं जैसे मृग की नाभि से कस्तूरी लाना! वे कविताओं का अपने बच्चों की तरह लालन-पालन करती हैं। रिंटु जी ने परमजीत जी की "ज़रूरी" कविता पढ़ी और उनके लिखी ग़ज़ल के शेर गाए।
इसके बाद सुमन घई जी ने सुभाष नीरव जी के अनुवाद की प्रशंसा करते हुए कहा कि अनुवाद का कार्य सरल नहीं पर सुभाष जी ने यह कार्य बहुत अच्छी तरह किया है। परमजीत की छोटी-छोटी कविताओं में भाषा की शक्ति को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ पंक्तियों के बीच के मौन में भी कविता का भाव बोलता हुआ दिखाई देता है। परमजीत की रचना-प्रक्रिया को औलाद, तलाश और स्व-संवेदना के तीन हिस्सों में बाँट कर देखते हुए सुमन जी ने कई कविताओं के उदाहरण दिए और इस काव्य-संग्रह में संकलित कविताओं के व्यापक परिप्रेक्ष्य की चर्चा की।
आशा बर्मन जी ने इस संग्रह की कविताओं की बिहारी की कविताओं से तुलना करते हुए कहा कि "ये देखन में छोटे लगें, घाव करें गंभीर" की विशेषताएँ लिए हुए हैं। इस संग्रह में लिखी भूमिका में भावों की गहनता और भाषा के सौन्दर्य की भी उन्होंने चर्चा की।
श्री रामेश्वर हिमांशु "काम्बोज" जी किन्हीं अपरिहार्य कारणों से अनुपस्थित थे परन्तु उन्होंने अपनी समीक्षा लिख कर भेजी थी। उन्होंने परमजीत जी की कविताओं को मनोजगत के दरवाज़े खोलती हुई कविताएँ कहा जो मन के अंदर झाँकती हैं। इन रचनाओं में हर चीज़ और संबंध को गहराई से देखने की प्रवृति और उसी तरह की गहन अभिव्यक्ति को उन्होंने विशेषत: रेखांकित किया। सुभाष जी के अनुवाद की प्रशंसा भी उन्होंने की।
इसके बाद डॉ. शैलजा सक्सेना ने उपस्थित लोगों को आने के लिए धन्यवाद देते हुए परमजीत जी की रचनाओं में निजी संवेदना के विषयों के अतिरिक्त उपस्थित सामाजिक चिन्ता और बदलते हुए समाज के विषय पर लिखी कविताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया कि किस तरह परमजीत जी की रचनाएँ मन और समाज दोनों से गहराई से जुड़ी हुई हैं।
इन चर्चाओं के बाद कृष्णा वर्मा जी ने परमजीत जी को अपनी रचना-प्रक्रिया पर बात करने के लिए बुलाया। अपने भावनात्मक वक्तव्य में परमजीत जी ने कहा कि न जाने कितने ही दुख, विचार और दृश्य उनके मन में दबे हुए हैं और वही काग़ज़ पर समय-समय पर उतर आते हैं।
इसके बाद इस गोष्ठी के स्वरचित रचनाओं की प्रस्तुति के दूसरे सत्र को प्रारंभ करते हुए कृष्णा जी ने भारत से पधारी दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज की एसोसिएट प्रोफ़ेसर डॉ. विजया सती जी को आमंत्रित किया। उन्होंने गोष्ठी में अपनी उपस्थिति पर प्रसन्नता जताते हुए कहा कि उन्हें कनाडा में इतने समृद्ध साहित्य के होने का पता नहीं था, अब वे इस पर एक लेख लिखेंगी। उन्होंने अपनी एक कविता "बातचीत अपने आप से" भी इस अवसर पर सुनाई। तत्पश्चात दिल्ली विश्वविद्यालय के खालसा कॉलेज में पंजाबी भाषा और साहित्य की प्राध्यापिका डॉ. कुलदीप पाहवा ने अपनी रचना "समय" का पाठ किया, और साथ ही सुरिन्दरजीत कौर, निर्मल सिद्धू, वरिष्ठ सदस्या कैलाश महंत जी, हरविंदर जी, अखिल भंडारी, प्रमिला भार्गव, नरेन्द्र ग्रोवर और प्रीति अग्रवाल ने अपनी भाव और विचारपूर्ण रचनाओं की प्रस्तुति से दर्शकों का मन जीत लिया।
कार्यक्रम सुन्दर कविताओं की चर्चा के रचनात्मक आनंद के वातावरण में संपन्न हुआ।
प्रस्तुति - डॉ. शैलजा सक्सेना
आगे पढ़ेंवियतनाम में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में डॉ. रवीन्द्र प्रभात के नेतृत्व में हिस्सा लिया 55 सदस्यीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने
भारतीय महावाणिज्य दूतावास हो ची मिन्ह सिटी वियतनाम, भारतीय व्यापार कक्ष वियतनाम और प्रमुख भारतीय संस्था परिकल्पना के संयुक्त तत्वावधान में विगत 26 और 27 मई 2019 को हो ची मिन्ह सिटी वियतनाम के स्थानीय क्लब हाउस एवं एलीओस सभागार में आयोजित अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव में लखनऊ के वरिष्ठ साहित्यकार और हिन्दी के मुख्य ब्लॉग विश्लेषक डॉ. रवीन्द्र प्रभात के नेतृत्व में 55 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता वियतनाम में भारत के कार्यवाहक प्रधान कौन्सुल श्री जे. सी. कंदपाल ने की और संचालन किया पी पी एस टू कौन्सुल जनरल एवं कम्यूनिटी वेलफेयर ऑफिसर, भारत का प्रधान कौंसुलावास, हो ची मिन्ह सिटी, वियतनाम, श्री आर. एस. चौहान ने। साथ ही मंचासीन रहे भारतीय व्यापार कक्ष, हो ची मिन्ह सिटी वियतनाम के उपाध्यक्ष श्री मुनीश गुप्ता, राष्ट्रीय विश्वविद्यालय वियतनाम के हिन्दी विभागाध्यक्ष,श्रीमती साधना सक्सेना, ऑस्ट्रेलिया से आए चिकित्सक एवं समाजसेवी, डॉ. राहुल गुप्ता एवं लखनऊ से प्रकाशित हिन्दी मासिक परिकल्पना समय के प्रधान संपादक डॉ. रवीन्द्र प्रभात।
हिन्दी भाषा की विविधता, सौन्दर्य, डिजिटल और अंतराष्ट्रीय स्वरुप को विगत 10 वर्षों से वैश्विक मंच पर प्रतिष्ठापित करती आ रही लखनऊ की संस्था परिकल्पना के द्वारा नयी दिल्ली, लखनऊ, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, थाईलैंड, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, मलेशिया, इन्डोनेशिया और मॉरीशस के बाद इस वर्ष 11 वां अंतरराष्ट्रीय हिन्दी उत्सव 26 मई से 2 जून तक वियतनाम और कंबोडिया के विभिन्न शहरों क्रमश: हो ची मिन्ह सिटी, कैन थो, चाऊ डॉक, नोम फेनह और सिम रीप में किया गया। पहले दिन का उदघाटन सत्र भारतीय महावाणिज्य दूतावास (वियतनाम), परिकल्पना (भारत) और इंडियन बिजनेस चैंबर इन वियतनाम के संयुक्त तत्त्वावधान में दिनांक 26 मई को कलब हाउस हो ची मिन्ह सिटी में आयोजित किए गए। दूसरे दिन का कार्यक्रम एलीओस सभागार हो ची मिन्ह सिटी में आयोजित हुआ जिसके प्रयोजक थे परिकल्पना (भारत) और इंडियन बिजनेस चैंबर इन वियतनाम। इसी प्रकार लघुकथा और हाइकू पर केन्द्रित कार्यक्रम सैम सीएम रीप सभागार सीम रीप कंबोडिया में तथा समापन इकोटेल सभागार बैंकॉक में हुआ, जिसके प्रयोजक थे परिकल्पना (भारत) और माधवी फाउंडेशन।
आठ दिनों तक चले इस उत्सव में कार्यवाहक प्रधान कौन्सुल द्वारा उदघाटन उद्बोधन, भारतीय अध्ययन विभाग, सामाजिक विज्ञान और मानविकी विश्वविद्यालय वियतनाम के छात्रों द्वारा नृत्य प्रदर्शन, लखनऊ से प्रकाशित परिकल्पना समय मासिक पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. रवीन्द्र प्रभात का उद्बोधन, 21 हिन्दी पुस्तकों का विमोचन, जिसमें प्रमुख थी हिन्दी समाचार पत्रों पर वैश्वीकरण का प्रभाव: डॉ. अलका चौधरी, जीवन गीत और माटी (काव्य संग्रह): डॉ. रमाकांत तिवारी "रामिल", बूंद बूंद से घट भरे: डॉ. सुषमा सिंह, मुखर मौन: राम किशोर मेहता, शिवसागर दोहावली: शिव सागर शर्मा, नदी को बहने दो (काव्य संग्रह) एवं खोलो द्वार सफलता के (निबंध: डॉ. मीना गुप्ता, विन्यास: डॉ. चम्पा श्रीवास्तव, ड्रेस, ड्रिंक, फूड मेड हिस्ट्री: डॉ. अनीता श्रीवास्तव, ओढ़ी हुयी मुस्कान: डॉ. रेखा कक्कड़, इंद्रधनुष जीवन के और मरुस्थल का संगीत (काव्य संग्रह): डॉ. प्रभा गुप्ता, डॉ. ओंकारनाथ द्विवेदी द्वारा संपादित अभिदेशक पत्रिका का चौथे अंक, शीला पाण्डेय द्वारा संपादित साहित्यगंधा पत्रिका का महिला नवगीतकर विशेषांक,परों को तोल (नवगीत) एवं समय के घेरे (निबंध): शीला पाण्डेय, रवीन्द्र प्रभात द्वारा संपादित परिकल्पना समय (हिन्दी मासिक) का मई अंक, सत्या सिंह का काव्य संग्रह "मेरी अग्निवीणा", डॉ. अमोल रॉय की पुस्तक "लोकजीवन में संस्कार और संस्कार गीत" तथा डॉ. सतीश चन्द्र शर्मा "सुधांशु" की पुस्तक "मिथिलेश दीक्षित का काव्य चिंतन एवं विमर्श"। इसके अलावा भारतीय टेलीविजन की चर्चित कलाकार डॉ. प्रतिमा वर्मा (इलाहावाद), राजीवा प्रकाश एवं कुसुम वर्मा (लखनऊ) द्वारा मंचित नाटक की प्रस्तुति, श्रीमती साधना सक्सेना, भारतीय हिन्दी शिक्षक, भारतीय अध्ययन विभाग,सामाजिक विज्ञान और मानविकी विश्वविद्यालय के द्वारा वियतनाम में हिन्दी प्रचार-प्रसार गतिविधियों पर टिप्पणी, अवधी लोकगायिका श्रीमती कुसुम वर्मा के द्वारा लोकगायन व नृत्य की प्रस्तुति तथा वियतनाम में हिन्दी पढ़ रहे छात्रों से विशेष संवाद भी किया गया।
इसके अलावा श्रीमती कुसुम वर्मा (लखनऊ) तथा डॉ. रेखा कक्कड़ (आगरा) की कला प्रदर्शनियों के साथ-साथ श्रीमती आभा प्रकाश (लखनऊ) की एम्ब्रायडरी कला और पुस्तक प्रदर्शनियों के लोकार्पण के साथ-साथ डॉ. राम बहादुर मिश्र और श्रीमती कुसुम वर्मा को परिकल्पना का अंतरराष्ट्रीय शीर्ष उत्सव सम्मान एवं भारतीय मूल की वियतनामी हिन्दी सेवी श्रीमती साधना सक्सेना एवं वियतनामी मूल के हिन्दी सेवी फेन दिन हयूयांग को परिकल्पना सम्मान प्रदान किए गए। वहीं भारत से पधारे 55 साहित्यकारों का "परिकल्पना" द्वारा, चार साहित्यकारों का "माधवी फाउंडेशन" के द्वारा, "रेयान मंच" की ओर से चार साहित्यकारों का तथा साहित्यिक संस्था "साहित्य धारा" द्वारा पाँच साहित्यकारों का सारस्वत सम्मान भी किया गया। इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश की संस्था अवध भारती संस्थान की ओर से रजत जयंती वर्ष के उपलक्ष्य में चार साहित्यकारों का सम्मान किया गया। साथ ही कई शहरों में परिचर्चा सत्र और कवि सम्मेलन भी आयोजित हुये।
इस अवसर पर परिकल्पना समय के प्रधान संपादक डॉ. रवीन्द्र प्रभात ने कहा कि "हमारी आने वाली पीढ़ी इस सुगन्धित वातावरण से गुलज़ार रहेगी। विश्व के सभी देशों में चाहे वह अमेरिका हो या अफ्रीका, क्षेत्रीय लोकभाषाओं की मृत्यु के भयानक आँकड़े मिलते हैं। इन्हीं सब घटनाओं ने मुझे हिन्दी उत्सव के आयोजन को एक मूर्त रूप देने की सार्थक दिशा दी। यह ग्यारहवाँ हिन्दी उत्सव हिन्दी भाषा को और समृद्ध करने की रचनात्मक पहल है। हम चाहते हैं कि हिन्दी भाषी समाज के साथ-साथ ही आप भारतीय भाषाओं के साथ भी जुड़ें और भाषायी विकास को रोशन करें।"
वियतनाम में भारत के प्रधान कौंसुल श्री जे सी कंदपाल ने कहा, कि "यह हिन्दी उत्सव भाषा और साहित्य की तकनीकी प्रगति को समर्पित है। हिन्दी उत्सव वह स्थान है जहाँ हम हिन्दी के प्रति अपनी प्रतिबद्धताओं का प्रदर्शन करते हैं, बिना किसी प्रकार का संकोच किये। और यह स्थान वह भी है जहाँ से हम हिन्दी भाषा और साहित्य से गैर हिन्दी भाषियों को अवगत कराते है।"
वियतनाम में भारतीय व्यापार कक्ष के उपाध्यक्ष श्री मुनिश गुप्ता ने कहा कि "हिन्दी उत्सव के आयोजन के माध्यम से हम वियतनाम की सक्रिय संस्थाओं को एक मंचप्रदान करने जा रहे हैं। इस आयोजन से यहाँ के हिन्दी लेखकों, शिक्षकों और विद्यार्थियों को प्रेरणा और मनोबल मिलेगा। वियतनाम में हिन्दी उत्सव का आयोजन विभिन्न शहरों में हो रहा है जिससे हम अधिक से अधिक लोगों तक पहुँच सकें और हिन्दी का व्यापक प्रचार कर सकें।"
आगे पढ़ेंजल है तो कल है - हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मई मासिक गोष्ठी
मई 11, 2019 को ब्रैम्पटन लाइब्रेरी की स्प्रिंगडेल शाखा में हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी का आयोजन सफलतापूर्वक सम्पन्न हुआ। यह गोष्ठी विशेष थी क्योंकि पहले सत्र की विशेष अतिथि वक्ता डॉ. रोमिला वर्मा थीं जो यूनिवर्सिटी ऑफ़ टोरोंटो में प्राध्यापक एवं वैज्ञानिक (हाइड्रॉलोजिस्ट) हैं। वह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ताज़े पानी के गिरते स्तर और अभाव के प्रति लोगों में जागरूकता लाने के लिए अनेक स्तरों पर प्रयत्नशील हैं।
कार्यक्रम का आरम्भ डॉ. शैलजा सक्सेना ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि माँ समान प्रकृति का देय अतुलनीय है और प्राकृतिक सम्पदा के दुरुपयोग के प्रति हमें सचेत रहा चाहिए। उन्होंने अगले दिन आने वाले मदर्स डे की अग्रिम बधाई भी सभी माताओं को दी। डॉ. शैलजा सक्सेना ने डॉ. रोमिला वर्मा का परिचय देते हुए उन्हें आमंत्रित किया कि वह विशेष प्रस्तुति उपस्थित जनों के समक्ष दें।
अपनी प्रस्तुति को आरम्भ करने से पहले रोमिला जी ने कैनेडावासियों को विशेषत: कैनेडा के मूलनिवासियों को धन्यवाद दिया कि आज हम उन्हीं के कारण यहाँ खड़े हैं। उन्होंने अपनी गत दिनों में की भारत यात्रा के अनुभवों को साझा करते हुए जहाँ एक और चौंकाने वाले वैज्ञानिक आंकड़े बताये कि किस तरह से ताज़े जल के अभाव के दुष्परिणाम दिखने आरम्भ हो चुके हैं, दूसरी ओर राजस्थान के एक छोटे से गाँव की भी बात की जहाँ सारी पंचायत महिलाओं की है और जिनके प्रशासन में किस तरह से छोटा सा गाँव पर्यावरण के प्रति दायित्वपूर्ण व्यवहार का उदाहरण बन रहा है।
डॉ. रोमिला की प्रस्तुति ऑडियो-वीडियो के माध्यम से बहुत प्रभावशाली रही। उन्होंने दिनकर जी कविता "जीवन की गति" को उद्धृत करते हुए कहा कि "जल चक्र सत्य है"। उन्होंने बताया कि विश्व में केवल एक प्रतिशत पेय जल है। विश्व के समक्ष छह मुख्य चुनौतियों को बताते हुए हुए उन्होंने गंगा के प्रदूषित हो जाने की समस्या की चर्चा की। डॉ. रोमिला वर्मा ने अपनी प्रस्तुति के अन्त में अपनी लघुकथा "गंगा का पुनर्जन्म" श्रव्य दृश्य माध्यम से प्रस्तुत की।
डॉ. शैलजा सक्सेना ने डॉ. रोमिला वर्मा का धन्यवाद करते हुए कहा कि लेखक विश्व की समस्याओं से जुड़ा होता है अत: अपने लेखन में उसे इन समस्याओं के समाधान के विकल्प और विचार भी प्रस्तुत करने की चेष्टा करनी चाहिए क्योंकि साहित्य समाज का दर्पण ही नहीं उसे सही दिशा में प्रेरित करने वाला भी होता है।
जलपान के लिए एक छोटे अंतराल के बाद गोष्ठी का दूसरा सत्र आरम्भ हुआ जिसमें स्वरचित रचनाएंँ सुनाई गईं।
इस सत्र के पहले कवि थे श्री अखिल भंडारी। उन्होंने पानी के विषय पर ही अपनी ग़ज़ल प्रस्तुत की - 'किस किस को ले डूबा पानी/पानी आख़िर निकला पानी'। अगले कवि डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर थे, अपनी कविता में उन्होंने जीवन की अच्छी - बुरी सभी परिस्थितियों के लिए व्यक्ति को स्वयं ज़िम्मेदार ठहराते हुए पढ़ा; 'मेरे जीवन में हर निर्णय मेरा था'। श्रीमती प्रमिला भार्गव ने इंटरनेट से प्राप्त किसी अनजान कवि की कविता सुनाई, पंक्तियाँ थीं - मैं पानी हूँ आपकी आँखों का पानी। अगले कवि श्री बाल कृष्ण शर्मा थे उन्होंने जल के महत्व को दर्शाते आलेख का पाठ किया। श्री सतीश सेठी की कविता "झील कुछ कह रही है" थी। श्रीमती आशा मिश्रा जो अभी तक केवल श्रोता रही हैं, ने अपनी पहली कविता में पानी के विभिन्न रूपों का वर्णन करते हुए कहा "जीवन का आधार हूँ पर हूँ पानी"। श्रीमती पूनम चन्द्रा मनु की कविता विशेषरूप से भावपूर्ण रही। उनके प्रतीक और उनकी अभिव्यक्ति सदा की तरह अनूठी थी "बारिश को बाँध कर रोशनाई की जगह/ भर लिया था मैंने दवात में/ बस उसीसे लिखा..."। श्रीमती आशा बर्मन ने अपनी हास्य कविता "सावन" में भारत के सावन के महीने और कैनेडा की वर्षा ऋतु के समकक्ष रखते हुए प्रभु से पूछा "सावन तो प्रभु अब आया/ उससे पहले ही पानी इतना क्यों बरसाया"। श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी की कविता थी "मैं पानी हूँ मैं जीवन हूँ"। सुमन कुमार घई ने पर्यावरण के प्रभाव को दर्शाती कविता "इस बरस वह पेड़ टूट गया" सुनाई। श्री विजय विक्रान्त जी ने अपनी हास्य आलेख शृंखला की डायरी का अगला पन्ना "रिमोट की कहानी" सुनाई। श्रीमती कृष्णा वर्मा ने अपनी कोई रचना सुनाने की बजाय श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी की बाल कहानी पुस्तक "हरियाली और पानी" की कहानी का पाठ किया। अन्तिम कवयित्री कार्यक्रम की संचालिका स्वयं डॉ. शैलजा सक्सेना थीं जिनकी कविता थी "कविता क्या दे सकती है"।
पर्यावरण और विशेषत: पानी पर आधारित इस विशेष गोष्ठी के माध्यम से हिंदी राइटर्स गिल्ड ने अपने तरीके से इस सन्दर्भ में जागरूकता लाने के प्रयासों में अपनी यह एक चेष्टा जोड़ी।
जलपान का प्रबन्ध श्रीमती इंद्रा वर्मा और डॉ. रोमिला वर्मा ने किया था, संस्था ने उनका धन्यवाद किया।
पूरी फोटो गैलरी के लिए लिए - हिन्दी राइटर्स गिल्ड मई २०१९ फोटो गैलरी को क्लिक करें।
- प्रस्तुति सुमन कुमार घई एवं डॉ. शैलजा सक्सेना
आगे पढ़ेंसाहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला सम्मानित
ब्रजभाषा साहित्य समिति, कोटा (राजस्थान) के तत्वावधान में दिनांक 18 मई 2019 को आयोजित माताश्री शान्ति देवी उपाध्याय स्मृति सम्मान समारोह 2019 के अंतर्गत कुण्डलिया छन्द के सशक्त हस्ताक्षर व वरिष्ठ साहित्यकार श्री त्रिलोक सिंह ठकुरेला को महाप्रभु मंदिर के अधिष्ठाता आचार्य विनय कुमार गोस्वामी जी के आशीर्वाद, समारोह के अध्यक्ष वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रघुनाथ मिश्र ‘सहज’, मुख्य अतिथि श्री अमित भटनागर (ज़ोनल सेक्रेटरी NFIR नई दिल्ली, अध्यक्ष/मीडिया प्रभारी WCRMS जबलपुर & CRMS मुंबई), विशिष्ट अतिथि विकल्प कोटा इकाई के महासचिव, वरिष्ठ शायर श्री शकूर अनवर, बाल साहित्य के जाने-माने रचनाकार, वरिष्ठ साहित्यकार श्री भगवती प्रसाद गौतम, संस्था के संरक्षक श्री प्रताप भानु सिंह, अध्यक्ष श्री शून्य आकांक्षी, महासचिव श्री कमलेश कमल, वेस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ के मंडल अध्यक्ष श्री गिरिराज यादव, मंडल सचिव श्री अब्दुल खलीक आदि की गरिमामयी उपस्थिति में माताश्री शान्ति देवी उपाध्याय स्मृति सम्मान - 2019, समारोह आयोजक श्री गया प्रसाद उपाध्याय जी द्वारा, वेस्ट सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ, कोटा के सभागार में प्रदान किया गया।
उल्लेखनीय है कि साहित्यकार त्रिलोक सिंह ठकुरेला को उनके साहित्यिक अवदान के लिए पूर्व में भी राजस्थान साहित्य अकादमी सहित देश की अनेक साहित्यिक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत और सम्मानित किया जा चुका है।
श्रीमती साधना ठकुरेला
आगे पढ़ेंटोरंटो में लिट फेस्टिवल
पिट्सबर्ग (अमेरिका) से हिंदी व अंग्रेज़ी भाषा में प्रकाशित होने वाली साहित्य मासिक पत्रिका सेतु द्वारा टोरंटो में लिट फेस्टिवल का सफल आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ. सुनील शर्मा के कविता संग्रह इंटरसेक्शंस, श्री अनुराग शर्मा द्वारा संपादित काव्य संकलन पतझड़ सावन बसंत बहार एवं डॉ. हंसा दीप के उपन्यास ‘कुबेर’ का लोकार्पण हिंदी एवं अँग्रेज़ी के रचनाकारों की उपस्थिति में किया गया।
अमेरिका में हिंदी के पाठन की चुनौतियों पर सुश्री सोनिया तनेजा के वक्तव्य के साथ सर्वश्री स्कॉट थॉमस आउटलर, हीथ ब्रोघर, नरेंद्र भांगू, डॉ. सुनील शर्मा, शेरान बर्ग एवं संगीता शर्मा ने अँग्रेज़ी में एवं सर्वश्री अखिल भंडारी, सुमन घई, सरन घई, अजय गुप्ता, अनुराग शर्मा व धर्मपाल महेंद्र जैन ने हिंदी में रचना पाठ किया। रचनाकारों ने हिंदी एवं अँग्रेज़ी में लिखी जा रही आधुनिक कविता की प्रासंगिकता और भविष्य पर सार्थक बातचीत करते हुए द्विभाषी कार्यक्रमों में रचनात्मक सहयोग पर बल दिया। सुश्री संगीता शर्मा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
चित्र में बाएँ से दाएँ भारत से पधारे डॉ. सुनील शर्मा (मुख्य संपादक, सेतु, अँग्रेज़ी) श्री अखिल भंडारी, श्री सुमन घई (संपादक, साहित्य कुंज) डॉ. हंसा दीप, श्रीमती कोकिला शाह, धर्मपाल महेंद्र जैन (सभी टोरंटो), श्री अनुराग शर्मा (मुख्य संपादक, सेतु हिंदी, अमेरिका) एवं सुश्री शेरोन बर्ग (कनाडा)
आगे पढ़ेंडॉ. सुरंगमा यादव के आलेख संग्रह ’विचार प्रवाह’ का विमोचन
महामाया राजकीय महाविद्यालय, महोना, लखनऊ में दिनांक 9 व 10 फरवरी 2019 को आयोजित राष्ट्रीय सेमिनार में डॉ. सुरंगमा यादव, असि प्रो. हिन्दी की पुस्तक ’विचार प्रवाह’ का लोकार्पण मुख्य अतिथि डॉ. राजीव कुमार पाण्डेय, क्षे़त्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी, लखनऊ(उ.प्र.) के कर कमलों द्वारा किया गया। इस पुस्तक में संकलित उच्च स्तरीय लेखों की विद्वत समाज द्वारा भूरि-भूरि प्रशंसा की गयी।
आगे पढ़ेंअमेरिका की फ़ोलसम नगरी ने मनाया हिंदी कवि का जन्मोत्सव
बायें - काव्य पाठ करते अभिनव शुक्ल दायें - सरस्वती वंदना करती दीप्ति शरण
मई १८, २०१९, फ़ोलसम, कैलिफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका। कैलिफोर्निया की राजधानी साक्रामेंटो क्षेत्र की फॉल्सम नगरी के मेसॉनिक सेंटर सभागार में, लोकप्रिय हिंदी कवि अभिनव शुक्ल के चालीसवें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में एक हिंदी कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में अभिनव शुक्ल को सैक्रामेंटो के साहित्यिक समाज की ओर से सम्मानित किया गया तथा कवियों ने चार घंटों तक श्रोताओं को अपनी कविताओं के रस से सराबोर किया।
मंच पर अभिनव की विभिन्न भाव भंगिमाएँ प्रदर्शित करता एक बैनर लगाया गया था, अभिनव के जीवन के विविध पड़ावों को दर्शाते चित्र एक प्रोजेक्टर पर प्रदर्शित करने हेतु फिल्म तैयार की गयी थी तथा पूरा सभागार सुरुचिपूर्ण तरीके से सजाया गया था। कवि सम्मेलन के प्रारम्भ में जय श्रीवास्तव ने अभिनव को जन्मदिन की बधाइयाँ देते हुए इस कार्यक्रम के विषय में बताया, उन्होंने यह भी बताया कि अभिनव को कवि सम्मेलन के उनके जन्मदिन के उपलक्ष्य में होने की जानकारी नहीं थी तथा यह सभी की ओर से अपने कवि को एक सर-प्राइज़ है। उन्होंने श्रोताओं का स्वागत किया तथा मंच की बागडोर संचालन हेतु कवि अभिनव शुक्ल के हाथों में सौंप दी। अभिनव ने प्रथम सत्र के कवियों, मनीष श्रीवास्तव, चिंतन राज्यगुरु, जय श्रीवास्तव, अनिरुद्ध पांडेय तथा अतुल श्रीवास्तव को अपनी काव्य पंक्तियाँ समर्पित करते हुए मंच पर आमंत्रित किया। तदुपरांत दीप्ति शरण ने अपने सुमधुर स्वरों से सरस्वती वंदना प्रस्तुत कर कवि सम्मलेन को गरिमा प्रदान करी। प्रथम सत्र के अंत में मनीष श्रीवास्तव ने कवि अभिनव शुक्ल का विस्तृत परिचय दिया। उन्होंने अभिनव की पुस्तकों, एलबमों आदि के बारे में बताते हुए कहा कि संसार की सौ से अधिक संस्थाएं अभिनव का सम्मान कर चुकी हैं तथा अभिनव अनेक पत्रिकाओं के संपादन में सहयोग कर चुके हैं। अभिनव की सुमधुर घनाक्षरियों के संग उनके चुटीले व्यंग्यों पर बोलते हुए मनीष ने अभिनव के नियमित स्तम्भकार होने की बात भी श्रोताओं को बताई। अभिनव के वायरल हुए वीडियोज़ की चर्चा करते हुए उन्होंने अभिनव को जन्मदिन की शुभकामनाएं दीं तथा मुख्य काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया। भावविभोर होते हुए अभिनव ने कहा कि हमारी संस्कृति में सृजन के प्रति सम्मान का भाव होने के चलते ही इस कार्यक्रम की उत्पत्ति हुई लगती है क्योंकि वे स्वयं को इस सम्मान हेतु योग्य पात्र नहीं समझते हैं। अभिनव ने इस आयोजन के लिए सभी आयोजकों को धन्यवाद देते हुए अपनी हास्य कविताओं का पाठ किया। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में अर्चना पांडा, शोनाली श्रीवास्तव तथा शिवेश सिन्हा ने अपनी रचनाओं का पाठ किया।
अधिकांश कवियों ने सामाजिक विसंगतियों पर चुटीले प्रहार किए। चिंतन ने भारत में ट्रैफिक की स्थिति को भ्रष्टाचार से जोड़ती हुई कविता पढ़ी तो शिवेश ने अस्सी के दशक में टीवी एंटीने को सही दिशा में रखने वाले छोटे भाई का दायित्व निभाने पर एक कविता सुनाई। अर्चना पांडा ने बच्चियों पर होने वाले अत्याचारों पर कविता सुनाई तथा अनिरुद्ध पांडेय ने भारतीय वायुसेना के कैप्टन अभिमन्यु पर कविता सुनाई जिन्हें बहुत पसंद किया गया। जय श्रीवास्तव ने सोशल मीडिया पर चुटकियां लीं तथा अतुल श्रीवास्तव ने संसार के पार को संसार से जोड़ती रचना सुनाई। मनीष और शोनाली ने होली के गीत पर एक मन-मोहक जुगलबंदी प्रस्तुत करी तथा अभिनव ने कार्यक्रम के सभी प्रायोजकों को धन्यवाद दिया तथा अपनी प्रसिद्ध रचना "पत्नी चालीसा" का पाठ किया जिसे श्रोताओं का भरपूर प्यार मिला।
कार्यक्रम से होने वाला सारा लाभ उड़ीसा में आए फ़ानी तूफ़ान से प्रभावित लोगों की रहतार्थ सेवा यूएसए द्वारा भेजा जा रहा है। जय श्रीवास्तव, शिवेश सिन्हा, ब्रह्म प्रकाश मोहंती, दिव्या, नम्रता, दीप्ति, स्मिता, परेश सिन्हा, प्रदीप मिश्रा, संतोष मिश्रा, सुनील कुमार, आशुतोष, प्रेम समेत अनेक साहित्य प्रेमियों ने इस कार्यक्रम के सफल आयोजन में सहयोग किया। कार्यक्रम के अंत में केक काटा गया तथा रात्रिभोज हुआ। अनेक भाषाओं में जन्मदिवस गीत गाते हुए, एक अमेरिकी नगरी ने अपने हिंदी कवि को जन्मदिन का अनमोल उपहार प्रदान किया।
आगे पढ़ेंओमप्रकाश क्षत्रिय शब्द-निष्ठा सम्मान हेतु चयनित
रतनगढ़ - आचार्य रत्नलाल विज्ञानुग की स्मृति में शब्दनिष्ठा सम्मान देशभर की प्रसिद्ध साहित्यिक प्रतिभा और उन की कृति के आधार पर चयनित रचनाकारों को पुरस्कार प्रदान किया जाता है। यह पुरस्कार दो वर्ग में विभाजित किया जाता है। एक वर्ग में पुस्तक की श्रेष्ठता के आधार पर और दूसरे वर्ग का पुरस्कार कहानी की श्रेष्ठता के आधार पर दिया जाता है। जिस में प्रथम वर्ग में 5500 रुपए, दूसरे वर्ग में 5100 रुपए और तृतीय वर्ग में 3100 रुपए की राशि के साथ शाल, श्रीफल, प्रमाणपत्र व प्रकाशित पुस्तक दे कर सम्मान पुरस्कृत किया जाता है। प्रत्येक वर्ग में दो-दो रचनाकारों का सम्मान किया जाता है।
संयोजक डॉ. अखिलेश पालरिया ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति में 2019 के सम्मान की घोषणा की है। जिस में नीमच ज़िले के प्रसिद्ध बालसाहित्कार ओमप्रकाश क्षत्रिय 'प्रकाश' की कृति 'रोचक विज्ञान बालकहानियां' को तृतीय स्थान प्राप्त हुआ है। इस चयन फलस्वरूप आप को शब्द निष्ठा सम्मान कार्यक्रम में 3100 रुपए की नगद राशि, शाल, श्रीफल व प्रमाणपत्र आदि दे कर सम्मानित किया जाएगा। इस पुरस्कार हेतु चयनित होने पर साहित्यकार साथियों और इष्टमित्रों ने आप को हार्दिक बधाई दी। इन का कहना है कि यह नीमच क्षेत्र के लिए गौरव का विषय है। स्मरणीय है कि आप को गत वर्ष नेपाल प्रदेश 2 के मुख्यमंत्री लालबाबू राऊतजी द्वारा नेपाल- भारत साहित्य सेतु सम्मान-2018 से नेपाल के बीरगंज में सम्मानित किया गया था।
आगे पढ़ेंडॉ. गरिमा संजय दुबे के प्रथम कहानी संग्रह 'दो ध्रुवों के बीच की आस' का लोकार्पण
डॉ. गरिमा संजय दुबे के प्रथम कहानी संग्रह 'दो ध्रुवों के बीच की आस' का लोकार्पण
वामा साहित्य मंच की सुपरिचित, लोकप्रिय, युवा लेखिका डॉ. गरिमा संजय दुबे के प्रथम कहानी संग्रह "दो ध्रुवों के बीच की आस" का लोकार्पण एवं चर्चा संगोष्ठी दिनांक 28 अप्रैल 2019 प्रीतम लाल दुआ सभाग्रह, इंदौर में हुआ। समारोह में लेखक व प्रकाशक पंकज सुबीर, वरिष्ठ साहित्यकार मनोहर मंजुल व लेखिका ज्योति जैन ने पुस्तक पर चर्चा की। स्वागत भाषण संस्था की अध्यक्ष पद्मा राजेंद्र ने दिया। आत्मकथ्य में लेखिका ने अपनी रचना प्रक्रिया की जानकारी देते हुए अपनी कहानी में आधुनिक युग की समस्याओं को चित्रित करने की बात की। उन्होंने कहा, "युग बदला है तो समस्याएँ भी बदली हैं, इसलिए हल भी नए होने चाहिए। जीवन में संतुलन का समर्थन करती हूँ लेकिन अतिवाद से बचने का प्रयास रहता है, इसीलिए पुस्तक और एक कहानी का शीर्षक दो ध्रुवों के बीच की आस सूझा।"
ज्योति जैन ने पुस्तक पर अपने विचार रखते हुए कहा, "गरिमा के प्रथम कहानी संग्रह दो ध्रुवों के बीच की आस के प्रथम प्रयास में उनकी कहानियों की परिपक्वता अचंभित करती है।"
वरिष्ठ पत्र लेखक व साहित्यकार मनोहर मंजुल ने अपने वक्तव्य में कहानियों पर चर्चा करते हुए कहा, "गरिमा की कहानियाँ समाज के विभिन्न दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करती हैं। उसकी लेखनी समाज के प्रति उसके दायित्व का बोध कराती है।"
प्रकाशक व लेखक पंकज सुबीर ने लेखिका के कहानीकार स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा, "गरिमा का पहला क़दम सधा हुआ और संतुलित है। इनकी कहानियों में विषयों का विस्तृत संसार है। कहानी संग्रह वही सफल होता है, जिसकी कहानियों के पात्रों की छटपटाहट औऱ बैचैनी पाठक अपने में महसूस करें । वही इनकी कहानियों में देखने को मिला है। कहानियों के विषय की विविधता चकित करती है, और गरिमा ने अपने पहले ही कहानी संग्रह से अपने लिए एक बड़ी रेखा खींची है जिसके आगे बहुत और बहुत सी श्रेष्ठ कृतियों की अपेक्षा बढ़ गई है।" सुबीरजी ने कहा, "इंदौर के साहित्यिक कार्यक्रमों में समय की प्रतिबद्धता, कार्यक्रम के प्रति उत्साह, साहित्य की समय के साथ क़दमताल सीखने लायक़ है।
परिवार के प्रतिनिधि के रूप में डॉ. दीपा मनीष व्यास नेअपने वक्तव्य में गरिमाजी के लिखने से छपने के सफ़र की रोचक और गंभीर चर्चा की।
पंकज सुबीर ने "अब मैं सो जाऊँ", "पन्ना बा" व "जीवन राग" कहानियों के बारे में बात करते हुए कहा कि अब मैं सो जाऊँ आपको बेचैन कर देती है। पन्ना बा में किन्नर जीवन की व्यथा का वर्णन है, और जीवन राग में जीवन की छोटी-छोटी ख़ुशियों व साकार रागात्मकता की बात है। ज्योति जैन ने कहा कि, लिव इन, किन्नर, डूब विषयों पर लेखिका की कहानियाँ गहरे से प्रभावित करती हैं और कहानियों की परिपक्वता व विषयों की विविधता चकित करती है।
इस अवसर पर पारिवारिक मित्रों और संबंधियों के अलावा वरिष्ठ साहित्यकार सरोज कुमार, संजय पटेल, जवाहर चौधरी, सूर्यकांत नागर, डॉ. पद्मा सिंह, सतीश राठी, पुरुषोत्तम दुबे, अश्विनी दुबे, हरेराम वाजपेयी, प्रदीप नवीन, अशोक शर्मा, सुषमा दुबे समेत नगर के सभी साहित्यकार मौजूद थे।
अतिथियों का स्वागत मदनलाल दुबे, शांता पारिख, सुभाष चंद्र दुबे, मीनाक्षी रावल, मनीष व्यास तथा भावना दामले ने किया।
सरस्वती वंदना संगीता परमार ने प्रस्तुत की।
कार्यक्रम का संचालन अंतरा करवड़े ने किया व आभार वसुधा गाडगिल ने माना।
सतीश राठी
आर 451, महालक्ष्मी नगर,
इंदौर452010
आचार्य निरंजननाथ पुरस्कारों की घोषणा
राजसमन्द 6 मई 2019 -
आचार्य निरंजननाथ स्मृति संस्थान द्वारा रविवार को इस वर्ष के पुरस्कारों की घोषणा कर दी गई। इस बार पुरस्कार उपन्यास, कविता तथा कहानी विधा पर केंद्रित थे। पुरस्कार समिति के संयोजक क़मर मेवाड़ी के अनुसार इस वर्ष यह पुरस्कार सुप्रसिद्ध कथाकार, उपन्यासकार और सम्पादक पंकज सुबीर को उनके उपन्यास 'अकाल में उत्सव' पर, सुप्रसिद्ध कवि ओम नागर को उनके कविता संग्रह 'विज्ञप्ति भर बारिश' पर तथा ख्यातनाम कथाकार डॉ. गोपाल सहर को उनके कथा संग्रह 'हवा में ठहरा सवाल' पर प्रदान किए जाएँगे। तीनों पुरस्कारों की राशि इक्कीस-इक्कीस हज़ार रुपये के साथ शाल, प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट किया जायगा। समारोह 9 जून 2019 रविवार को प्रातः दस बजे गाँधी सेवा सदन राजसमन्द में आयोजित होगा। निर्णायक मण्डल के अध्यक्ष कर्नल देशबन्धु आचार्य की अध्यक्षता में आयोजित बैठक में कथाकार माधव नागदा तथा डॉ. नरेन्द्र निर्मल की महत्त्वपूर्ण भागीदारी रही।
प्रेषक
क़मर मेवाड़ी
संयोजक
आचार्य निरंजननाथ सम्मान समिति
कांकरोली, राजसमन्द (राजस्थान)
मानवता की प्रबल वकालत की है प्रदीप श्रीवास्तव ने : शिवमूर्ति
प्रदीप श्रीवास्तव की कहानियाँ नव उदारवाद, उदारवाद और भूमंडलीकरण की कहानियाँ हैं : हरिचरण प्रकाश
यूपी प्रेस क्लब, लखनऊ में 7 अप्रैल 2019 को प्रदीप श्रीवास्तव के कहानी संग्रह 'मेरी जनहित याचिका एवं अन्य कहानियां' पर एक परिचर्चा का आयोजन भारतीय जर्नलिस्ट परिषद, अनुभूति संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कथाकार श्री शिवमूर्ति ने कहा कि, "सारे नियम क़ानून से ऊपर है मानवता और इस मानवता की प्रबल वकालत की है प्रदीप श्रीवास्तव ने लेकिन अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर वह देश की वसुधैव कुटुंबकम की भावना को पीछे छोड़ देते हैं।" श्री शिवमूर्ति ने संग्रह की कहानियों की पठनीयता की बात करते हुए कहा कि, "लम्बी कहानियों के बावजूद प्रभावशाली भाषा, रोचकता इतनी है कि आप एक बार कहानी पढ़ना शुरू करेंगे तो बीच में छोड़ नहीं पायेंगे, आख़िर तक पढ़ते चले जायेंगे।" संग्रह की "बिल्लो की भीष्म प्रतिज्ञा" कहानी का विशेष रूप से उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि "महिलाओं को यह कहानी अवश्य ही पढ़नी चाहिए।" उन्होंने "घुसपैठिये से आखिरी मुलाकात के बाद" कहानी का भी ख़ासतौर से उल्लेख किया।
वरिष्ठ साहित्यकार श्री हरि चरण प्रकाश ने संग्रह पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि, "भूमंडलीकरण ने पूँजीवाद के व्यभिचार को और बढ़ाया है। प्रदीप श्रीवास्तव की कहानियाँ नव उदारवाद, उदारवाद और भूमंडलीकरण की कहानियाँ हैं। मैं प्रदीप की कहानिओं को आत्म स्वीकारोक्ति शैली की कहानी कहना चाहूँगा।"
प्रदीप श्रीवास्तव ने अपनी कहानियों के बारे में बताया कि यह कहानियाँ शहरी निम्न मध्यवर्गीय ज़िंदगी की मुख्यतः नकारात्मक स्थितियों का बयान हैं। दरअसल भूमंडलीकरण ने हिंदुस्तानी समाज को अपनी गिरफ़्त में ले लिया है। विकास और बौद्धिकता की आँधी में मानव मूल्य तिरोहित होते जा रहे हैं। लेकिन हमें सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ते रहना है। तेज़ी से विकसित हो रही टेक्नोलॉजी मानव को निकट भविष्य में कई ग्रहों तक ले जाने में सक्षम होगी, इस आधार पर मैं वसुधैव कुटुंबकम के विचार को और आगे ले जाते हुए ब्रह्मांड कुटुंबकम के विचार को प्रस्तुत करता हूँ। सारी दुनिया से इस पर चिंतन मनन का आग्रह करता हूँ। मेरी जनहित याचिका कहानी का पात्र इस बिंदु पर पूरी गंभीरता से बात करता है। प्राणी मात्र के सुंदर खुशहाल जीवन के लिए हमें इस बिंदु पर गंभीरता से सोचना ही होगा। कार्यक्रम की संचालिका वरिष्ठ लेखिका डॉ. अमिता दुबे का मानना था कि, "प्रदीप की कहानियों में मानवीय मूल्यों की पुनर्स्थापना पर विशेष बल है। कहानी के पात्र समाज में परिवर्तन लाने के लिए प्रयासरत रहते हैं।"
श्री प्रतुल जोशी का कहना था कि, "प्रदीप की कहानियों में चित्रात्मकता है।" वहीं श्री पवन सिंह ने कहा कि, "यह समय जनहित याचिकाओं के सहालग का है।" समापन भाषण देते हुए श्री प्रवीण चोपड़ा ने कहा, "साहित्य वही है जो समग्र समाज का हित सोचे। उसका उद्देश्य समाज की भलाई हो। कार्यक्रम में विख्यात साहित्यिक पत्रिका 'लमही' के संपादक श्री विजय राय, अनुभूति संस्थान के श्री धीरेन्द्र धीर एवं अन्य विशिष्ठजन उपस्थित थे।
आगे पढ़ेंराम तुम्हारा वृत्त स्वयं ही काव्य है…
हिन्दी राइटर्स गिल्ड की अप्रैल, 2019 मासिक गोष्ठी
’हिन्दी साहित्य में राम के विभिन्न रूप’ विषय पर इस शनिवार, 13 अप्रैल 2019 को हिन्दी राइटर्स गिल्ड ने अपनी मासिक गोष्ठी में एक विशेष कार्यक्रम आयोजित किया। रामनवमी के पावन अवसर पर हुई इस चर्चा में भाग लेने के लिए लगभग 40 लोग इस कार्यक्रम में उपस्थित थे। (हिन्दी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठियाँ महीने के दूसरे शनिवार को 1:30 से 4:30 बजे तक स्प्रिंगडेल शाखा, ब्रैम्पटन में आयोजित होती हैं)
कार्यक्रम का संचालन डॉ. शैलजा सक्सेना ने सँभाला और सभी उपस्थित लेखकों तथा श्रोताओं का स्वागत किया। उन्होंने रामनवमी तथा वैसाखी के पावन पर्वों की शुभकामनाएँ देते हुए भारत से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी तथा गिल्ड से जुड़े नए हिन्दी प्रेमियों के प्रति विशेष आभार प्रकट किया। कार्यक्रम की रूपरेखा स्पष्ट करते हुए उन्होंने बताया कि आज दो सत्र होंगे। पहले सत्र में ’हिन्दी साहित्य में राम के विभिन्न रूप’ पर चर्चा होगी तथा दूसरे सत्र में रचनाएँ, गीत, ग़ज़लें आदि होंगी।
विषय की प्रस्तावना करते हुए डॉ. शैलजा ने मध्यकाल में तुलसी के सगुण राम और कबीर के निर्गुण राम के आकार-प्रकार में अंतर की अपेक्षा दोनों भक्त कवियों के प्रेम और समर्पण भाव की समानता को अधिक महत्त्वपूर्ण ठहराया। उन्होंने कबीर की राम यानी परमशक्ति राम के प्रति समर्पण की पराकाष्ठा को इस दोहे से रेखांकित किया:
“मैं तो कूता राम का, मुतिया मेरा नाँव।
गले राम की जेवड़ी, जित खींचे तित जाँव”
मध्यकाल के बाद मैथिलीशरण गुप्त जी की ’साकेत’ और फिर निराला की ’राम की शक्तिपूजा’ की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि राम के भीतर आधुनिक मनुष्य की उद्भावना निराला ने की और राम से कहलवाया; ’धिक जीवन जो पाता ही आया विरोध/ धिक साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध’! उन्होंने कहा कि राम द्वारा अपने जीवन को धिक्कार कर, अपने को साधनहीन कहने में एक आम आदमी की पीड़ा दिखाई देती है, सर्वशक्तिशाली भगवान की नहीं। राम के भीतर इसी मानवीयता को प्रश्न और संशय के रूप में श्री नरेश मेहता ने अपने काव्य ’संशय की एक रात’ में दिखाया है जहाँ राम, अपनी व्यक्तिगत समस्या, सीता-हरण पर एक पूरी सेना को मृत्यु की संभावना पर ले जाकर नहीं खड़ा करना चाहते । डॉ. शैलजा ने श्री नरेश मेहता द्वारा गढ़ी राम की मानवीय छवि की बात करते हुए डॉ. नरेन्द्र कोहली के रामकथा पर आधारित उपन्यास की भी चर्चा की जिसमें राम अद्भुत प्रबंधनकर्ता (मैनेजर) दिखाई देते हैं। सर्व-साधन संपन्न लंकेश्वर रावण से साधनहीन आदिवासी जनता को लड़ने के लिए की गई तैयारी को जिस बारीक़ी और गहराई से कोहली जी के राम सँभालते हैं, वह आज के ’मैनेजमेंट’ विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है।
आगे चर्चा को विस्तार देने के लिए उन्होंने सर्वप्रथम प्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामेश्वर काम्बोज ’हिमांशु’ जी को आमंत्रित किया जिन्होंने श्री नरेश मेहता द्वारा लिखित ’प्रवाद पर्व’ को अपने वक्तव्य का केंद्र बनाते हुए कहा कि इस खंड काव्य में राम राज-नियमों की सत्ता के बीच राजा के बंधन और उससे उत्पन्न पीड़ा को प्रकट करते हुए एक आधुनिक मनुष्य के रूप में दिखाई देते हैं। वे पति रूप में सीता पर संदेह नहीं करते परन्तु राजा के आदर्श को स्थापित करने को भी अपना धर्म समझते हैं। राम जनमानस से उठी हर आवाज़ को ’अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ देना चाहते हैं, हर साधारण जन को भाषा का वह अधिकार देना चाहते हैं जो उन्हें कभी नहीं मिला चाहे इसके लिए उन्हें अपनी प्राण प्रिया को भी छोड़ना पड़े। राम राजा का यह दायित्त्व मानते हैं कि राजा व्यक्तिगत स्वार्थों और सुविधाओं से ऊपर उठा हुआ होना चाहिए। राम का कहना है:
’राजभवनों और राजपुरुषों से ऊपर/
राज्य और न्याय/
प्रतिष्ठापित होने दो भरत’
’हिमांशु’ जी के वक्तव्य ने दर्शकों को ’प्रवाद पर्व’ के ’पुराण पुरुष’ राम के लोकनायक रूप से जोड़ा और चर्चा को बहुमुखी बनाया।
इसके बाद डॉ. इन्दु रायज़ादा जी ने राम पर अपने विचारों से अवगत कराया। साथ ही राम के पति रूप पर संशय जताते हुए मन में उठे कुछ प्रश्नों का ख़ुलासा भी किया। प्रश्न आज के विषय के अनुकूल न होने के कारण चर्चा से अछूते रह गए।
अगली वक्ता श्रीमती आशा बर्मन जी ने अपने वक्तव्य का आधार ’श्रीरामचरित मानस’ को बनाया। उन्होंने तुलसी द्वारा भाव और भाषा, दोनों को तत्कालीन शास्त्रीय परिभाषाओं से निकाल कर जन-सामान्य से जोड़ने की प्रशंसा की। आशा जी ने कहा कि तुलसी के राम को पूजने के लिए किसी विधि-विधान की आवश्यकता नहीं, उनके राम जन-मन के राम हैं, जिनके लिए तुलसी कहते हैं:
’तुलसी मेरे राम को, रीझ भजो या खीज।
भौम पड़ा जामे सभी, उल्टा सीधा बीज।’
उनके बाद के वक्ताओं ने राम और उनके गुणों पर लिखित अपनी रचनाएँ तथा वक्तव्य प्रस्तुत किए। श्री सतीश सेठी ने रामराज्य पर रचना पढ़ी तो श्री विद्याभूषण ने अपनी रचना में धरती से आकाश, पौधों से जीव, राम को प्रत्येक वस्तु में विद्यमान बताया। श्री बाल कृष्ण ने राम नाम का महत्व बताते हुए राम धुन या ओम का सही उच्चारण पर बल दिया। श्रीमती प्रमिला भार्गव ने सीता-त्याग से असहमति व्यक्त करते हुए अपनी बात रखी। गिल्ड की सभा में पहली बार उपस्थित हुई श्रीमती अमरजीत कौर ’पंछी’ जी ने गुरुवाणी में राम नाम और भक्ति के महत्व बताते हुए एक सुंदर रचना का पाठ भी किया। श्री अनिल कुन्द्रा जी ने राम नाम के जाप की शक्ति का प्रमाण देते हुए परिवार में घटित सच्ची घटना से अवगत करवाया। श्रीमती कृष्णा वर्मा ने राम के प्रति अपने भाव प्रकट करते हुए कहा कि राम सत्य सनातन है, जीवन का मूल मंत्र हैं, प्रत्येक भोर का स्वर हैं, चरित्र, मर्यादा, शील, संयम और नैतिकता हैं। राम का अनुसरण ही जीवन का सच्चा अर्थ है।
इस कार्यक्रम में पुलिट्ज़र पुरस्कार से सम्मानित श्री बैरी ब्राउन भी, अपनी लोक-संपर्क अधिकारी श्रीमती रेनु मेहता के साथ उपस्थित थे। श्री बैरी ब्राउन ने एक किताब ’द वर्ल्ड बिफ़ोर रिलीजन, वार एंड इनैक्यैलिटी’ लिखी है जिसमें महाभारत के युद्ध को विश्व का पहला बड़ा युद्ध बताया है। उन्होंने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में अपनी लंबी रिसर्च और उससे निकले तथ्यों के आधार पर कृष्ण वंशज यादवों से ही ज्यूज़ के होने और ब्राह्मण धर्म से ज्यूडिज़्म के होने को बताया। समय कम होने से वे अगली गोष्ठी में फिर आएँगे और दर्शकों के प्रश्नों के उत्तर भी देंगे।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उन लोगों ने कविता पढ़ी जिन्होंने पहले सत्र में भाग नहीं लिया था। इस का प्रारंभ अखिल भंडारी जी की ग़ज़ल से हुआ जिसे बहुत पसंद किया गया:
’ये माना ज़िन्दगी तो एक सफ़र है
सफ़र में हैं मगर, जाना किधर है’
दूसरी वक्ता थीं, श्रीमती भुवनेश्वरी पांडे, जिन्होंने ’श्री रामचन्द्र कृपालु भज मन हरन भव भय दारुनम’ श्री राम की स्तुति का मधुर गायन किया। तत्पश्चात मन के विभिन्न पहलुओं की पर्तें खोलती सुरजीत कौर जी की कविता ’तपोवन’ ने मन को छू लिया। डॉ. नरेन्द्र ग्रोवर जी ने आज ही के दिन सौ वर्ष पहले घटी जलियाँ वाला बाग की घटना को याद करते हुए सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता ’जलियाँवाला बाग में बसंत’ का पाठ किया। जिसकी पंक्तियाँ थीं:-
’कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर
कलियाँ उनके लिए गिराना थोड़ी लाकर”
श्रीमती पूनम चन्द्रा ’मनु’ ने अपनी कविता में रिश्तों के बदलते रूप की बात की:
"जाने ये रिश्ते क्यों चेहरा अपना बदल लेते हैं
भूल जाते हैं जिन्हें पल में ग़ैरों की तरह
वे ही नाम पत्थरों पर साथ लिखे मिलते हैं’
श्रीमती रिंकु भाटिया जी ने अपने मधुर स्वर में एक लोक गीत ’माँए मेरिए नी/ शिमले दी राहे/ चम्बा कितनी दूर’ का गायन कर सबको विभोर किया।
अंत में डॉ. शैलजा ने अपना एक हाइकु – ’लिख वक़्त के/ सीने पे विश्वास की/ नई लिखाई’ कहते हुए सबका धन्यवाद देकर कार्यक्रम का समापन किया।
बदलते मौसम का ख़ूबसूरत सुहाना दिन था। कार्यक्रम आत्मीय-संवाद पूर्ण होने से उपजे आनंद पूर्ण रहा, साथ ही इस पावन पर्व पर गर्मा-गरम चाय, समोसे, बर्फी, लड्डू तथा जलेबियों का सबने भरपूर आनंद उठाया। इस जलपान का प्रायोजन श्रीमती कैलाश महंत, मीनाक्षी सेठी तथा कृष्णा वर्मा ने किया था।
- प्रस्तुति कृष्णा वर्मा एवं डॉ. शैलजा सक्सेना
आगे पढ़ें‘प्रवासी हिंदी साहित्य : संवेदना के विविध संदर्भ’ विषयक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न
मैसूर, 8 मार्च, 2019 - प्रवासी हिंदी साहित्य का परिदृश्य वैश्विक बनता जा रहा है। हिंदी में रचे जा रहे प्रवासी साहित्य का अपना वैशिष्ट्य है जो उसकी संवेदना, परिवेश, जीवन दृष्टि तथा सरोकारों में दिखाई देता है। इसी कड़ी में कर्नाटक की पारंपरिक नगरी मैसूर के हिंदी अध्ययन विभाग, मैसूर विश्वविद्यालय, मानसगंगोत्री, मैसूर तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के संयुक्त तत्वावधान में ‘प्रवासी हिंदी साहित्य : संवेदना के विविध संदर्भ’ विषयक द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी, मैसूर विश्वविद्यालय के बहादुर इंस्टीट्यूट ऑफ मेनेजमेंट के सभागार में आयोजित की गई।
इस अवसर पर ब्रिटेन की प्रख्यात हिंदी लेखिका उषा राजे सक्सेना प्रमुख अतिथि रही। उद्घाटन भाषण में उन्होंने विदेशों में हिंदी साहित्य सृजन के परिवेश, स्वरूप, विषय-वस्तु, महत्वाकांक्षाओं और चुनौतियों पर प्रकाश डालते हुए कहा - “प्रवासी भारतीय रचनाकारों की लेखन-शैली, शब्द-संस्कृति, संवेदना, सरोकार और स्तर मुख्यधारा के लेखन से भिन्न रही है। इसी भिन्नता के कारण प्रवासी हिंदी लेखन ने हिंदी साहित्य के मुख्यधारा के पाठकों को एक नई दृष्टि, एक नई चेतना, एक नई संवेदना और एक नई उत्तेजना भी दी है।” विदेशों में लिखे जा रहे सृजनात्मक हिंदी साहित्य पर अपने विचार प्रकट करते हुए उषा राजे सक्सेना का यह मानना है कि प्रवासी रचनाकारों को अपने साहित्य को बरकरार रखने के लिए अपने कैनवस को और अधिक विशाल करना होगा।
उद्घाटन सत्र में प्रो.आर.शशिधरन, कुलपति, विज्ञान तथा तकनीकी विश्विविद्यालय, कोचिन ने बीज भाषण में प्रवासी साहित्यकारों की अहम भूमिका को रेखांकित करते हुए कहा कि रचनाकारों ने अपने वतन से दूर रहकर अपनी रचनाओं के ज़रिये हिंदी भाषा और हिंदी साहित्य को गौरवान्वित करने का सराहनीय कार्य किया है तथा प्रवासी जीवन की संवेदना की अभिव्यक्ति ही प्रवासी साहित्य में मुखर हुई है।
प्रो. प्रतिभा मुदलियार की अध्यक्षता और मार्गदर्शन में इस द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का सफल आयोजन हुआ। संगोष्ठी में मॉरीशस, फीजी, चीन और ब्रिटन से प्रतिभागी आए थे। अध्यक्षीय भाषण में प्रो. प्रतिभा मुदलियार ने संगोष्ठी के मूल उद्देश्य को प्रतिपादित करते हुए कहा कि विदेशों में बसे भारतीय मूल के लेखकों के साहित्य को समझने के लिए उनका जीवन संघर्ष, मानवीय जीवन तथा सामाजिक परिवेश आदि को जानना जुरूरी है। इस अवसर पर उनके द्वारा संपादित पुस्तक ‘प्रवासी हिंदी साहित्य : संवेदना के विविध संदर्भ’ का लोकार्पण भी संपन्न हुआ।
मुख्य अतिथि के रूप में मंचासीन केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के प्रो. रामवीर सिंह ने कहा कि प्रवासी साहित्य नोस्टेलिजिया का साहित्य होते हुए भी विभिन्न संवेदनाओं को लेकर चलता है।
उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष्य प्रो. लिंगराज गांधी, कुलसचिव, मैसूर विश्वविद्यालय, मैसूर ने हिंदी विभाग को इस प्रकार के आयोजन के लिए बधाई दी और साहित्य में प्रवासी लेखकों के योगदान को रेखांकित किया।
समापन सत्र के प्रमुख अतिथि के रूप में प्रो.ऋषभदेव शर्मा ने द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का मूल्यांकन करते हुए कहा कि प्रवासी साहित्य हिंदी सहित कई और भारतीय भाषाओं में भी लिखा जा रहा है और उसका महत्व आज के युग में बहुत अधिक है। उनका यह कहना था कि इस साहित्य की ओर आलोचकों को व्याख्याकार के दृष्टिकोण से देखना आवश्यक है। इस संगोष्ठी के दौरान प्रो.ऋषभदेव शर्मा की पुस्तक ‘संपादकीयम्’ का लोकार्पण भी हुआ। समापन सत्र में प्रो. टी. आर भट्ट, मुखय अतिथि और प्रो. शशिधर एल. गुडिगेनवर अध्यक्ष के रूप में उपस्थित थे।
संगोष्ठी के अंतर्गत आठ अकादमिक और समांतर सत्रों में सत्तर शोध पत्र प्रस्तुत किए गए। इन सत्रों की अध्यक्षता डॉ. ऋषभदेव शर्मा, डॉ. रामनिवास साहु, डॉ. रामप्रकाश, डॉ. शशिधर एल. जी., डॉ. शुभदा वांजपे, डॉ. सतीश पांडेय, डॉ. नामदेव गौड़ा और उषा राजे सक्सेना ने की।
पहले दिन रंगारंग सांस्कृतिक संध्या का आयोजन मुख्य रूप से आकर्षण का केंद्र रहा जिसमें कर्नाटक की लोक संस्कृति को व्यक्त करने वाली संगीतमय प्रस्तुतियों के अलावा ‘अंधेर नागरी’ और ‘वापसी’ के नाट्य रूपांतरण ने समां बाँध दिया। कार्यक्रम का संचालन डॉ. रेखा अग्रवाल एवं अन्य प्राध्यापकों ने किया तथा धन्यवाद ज्ञापन डॉ. एम. वासंति ने किया।
प्रेषक – डॉ. प्रतिभा मुदलियार
विभागाध्यक्ष
हिंदी अध्ययन विभाग
मैसूर विश्वविद्यालय
मानसगंगोत्री
मैसूर – 570006
ऋषभदेव शर्मा की पुस्तक 'संपादकीयम्' लोकार्पित
मैसूर, 7 मार्च, 2019 - मैसूर विश्वविद्यालय और केंद्रीय हिंदी संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित द्विदिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के अंतर्गत उच्च शिक्षा और शोध संस्थान के पूर्व आचार्य डॉ. ऋषभदेव शर्मा की सद्यःप्रकाशित पुस्तक 'संपादकीयम्' का लोकार्पण ब्रिटेन से पधारी प्रख्यात प्रवासी हिंदी साहित्यकार उषा राजे सक्सेना के हाथों संपन्न हुआ। पुस्तक की प्रथम प्रति छत्तीसगढ़ी कथाकार डॉ. रामनिवास साहु ने ग्रहण की। कार्यक्रम संयोजक प्रो. प्रतिभा मुदलियार ने कहा कि यह पुस्तक समसामयिक विषयों पर निष्पक्ष संपादकीय टिप्पणियों का ऐसा संग्रह है जिसमें वर्तमान समय के सभी विमर्श विद्यमान हैं। अवसर पर फिजी से पधारे खेमेंद्र कमल कुमार तथा सुभाषिणी शिरीन लता, चीन से पधारे प्रो. बलविंदर सिंह राणा और मॉरीशस से पधारी लेखिका दिया लक्ष्मी बंधन ने लेखक को शुभकामनाएँ दी।
केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा के प्रो. रामवीर सिंह ने पुस्तक पर बातचीत में कहा कि संपादकीय टिप्पणियों का प्रकाशन एक अच्छी शुरूआत है क्योंकि इनसे समकालीन इतिहास लेखन के लिए पर्याप्त आधार सामग्री मिल सकती है।
• डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह संपादक ‘स्रवंति’
असिस्टेंट प्रोफ़ेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद
हैदराबाद – 500004
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन, अमेरिका तथा शिवना प्रकाशन का साहित्य समागमसंपन्न
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका तथा शिवना प्रकाशन का संयुक्त आयोजन ‘साहित्य समागम’ राज्य संग्रहालय, भोपाल के सभागार में आयोजित किया गया। इस समारोह में देश भर के साहित्यकारों ने भाग लिया। समारोह में ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका के प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान तथा शिवना प्रकाशन के कथा-कविता सम्मान प्रदान किए गए। दिन भर चले इस समारोह में बड़ी संख्या में साहित्यकार उपस्थित थे।
कार्यक्रम का शुभारंभ ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन की अध्यक्ष डॉ. ओम ढींगरा तथा उपाध्यक्ष डॉ. सुधा ओम ढींगरा ने दीप प्रज्ज्वलित करके किया। तीन सत्रों में आयोजित हुए इस समागम में शिवना प्रकाशन की पुस्तकों का विमोचन तथा रचना पाठ भी शामिल रहा, जिसमें हिन्दी के महत्त्वपूर्ण साहित्यकारों ने भाग लिया। प्रथम सत्र ‘सम्मानित रचनाकारों का पाठ’ की अध्यक्षता डॉ. उर्मिला शिरीष ने की तथा मुख्य अतिथि श्री महेश कटारे थे। इस सत्र में सम्मानित रचनाकारों ने अपनी सम्मानित रचनाओं का पाठ किया। सम्मानित रचनाकारों की कृतियों पर श्री बलराम गुमाश्ता, श्री विनय उपाध्याय, श्री समीर यादव तथा डॉ. गरिमा संजय दुबे ने टिप्पणी की।
दूसरे सत्र ‘अलंकरण समारोह’ में अध्यक्षता श्री संतोष चौबे ने की जबकि मुख्य अतिथि श्री पलाश सुरजन थे। सभी सम्मानों के तहत सम्मान राशि, शॉल, श्रीफल तथा सम्मान पट्टिका प्रदान की गई। सम्मान समारोह में प्रदान किए गए सम्मानों में ‘ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन लाइफ़ टाइम सम्मान’ डॉ. कमल किशोर गोयनका को, ‘ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान’ उपन्यास विधा में मनीषा कुलश्रेष्ठ को उपन्यास ‘मल्लिका’ हेतु तथा कहानी विधा में मुकेश वर्मा को कहानी संग्रह ‘सत्कथा कही नहीं जाती’ हेतु प्रदान किया गया। शिवना प्रकाशन का ‘शिवना कथा सम्मान’ गीताश्री को उपन्यास ‘हसीनाबाद’ के लिए, ‘शिवना कविता सम्मान’ वसंत सकरगाए को कविता संग्रह ‘पखेरू जानते हैं’ तथा ‘शिवना कृति सम्मान’ उपन्यास ‘पार्थ तुम्हें जीना होगा’ के लिए कथाकार, कवयित्री ज्योति जैन को प्रदान किया गया।
तीसरे सत्र ‘विमोचन समारोह’ में शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित बीस पुस्तकों का विमोचन किया गया। इस सत्र की अध्यक्षता डॉ. प्रेम जनमेजय ने की जबकि मुख्य अतिथि के रूप में श्री शशिकांत यादव उपस्थित थे। इस अवसर पर बोलते हुए श्री संतोष चौबे ने कहा कि बड़ी प्रसन्नता की बात है कि भोपाल में अंतर्राष्ट्रीय सम्मान समारोह का आयोजन किया जा रहा है, इससे भोपाल की साहित्यिक गतिविधियों को और बल मिलेगा। श्री पलाश सुरजन ने साहित्य की विधाओं के बीच पारस्परिक अंर्तसंबंधों पर काम किए जाने की बात कही, तथा देश के बाहर काम कर रहे हिन्दी सेवियों की सराहना की। डॉ. उर्मिला शिरीष ने कहा कि भोपाल में एक नई शुरूआत आज होने जा रही है, जो कार्यक्रम पूर्व में अमेरिका और कैनेडा में आयोजित हुआ अब वह भोपाल में आयोजित हो रहा है। श्री महेश कटारे ने कैनेडा यात्रा के अपने संस्मरण सुनाते हुए फ़ाउण्डेशन को साधुवाद दिया। डॉ. प्रेम जनमेजय ने शिवना प्रकाशन और ढींगरा फ़ाउण्डेशन द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह संस्थाएँ बड़ा काम कर रही हैं। श्री शशिकांत यादव ने कहा कि भविष्य में यह दोनो संस्थाएँ हिन्दी साहित्य की प्रमुख संस्थाएँ होंगी। डॉ. कमल किशोर गोयनका ने ढींगरा फ़ाउण्डेशन द्वारा किए जा रहे साहित्यिक और सामाजिक कार्यों का ज़िक्र करते हुए फ़ाउण्डेशन की मुक्त कंठ से सराहना की। अंत में आभार ढींगरा फ़ैमिली फाउण्डेशन की उपाध्यक्ष डॉ. सुधा ओम ढींगरा ने व्यक्त किया। कार्यक्रम का संचालन पंकज सुबीर ने किया
श्रवण मावई
मीडिया प्रभारी
’केसरिया फागुन’: हिन्दी राइटर्स गिल्ड की पुलवामा शहीदों को रचनात्मक श्रद्धांजलि
हिन्दी राइटर्स गिल्ड ने ९ मार्च २०१९ को ब्रैमप्टन की स्प्रिंगडेल शाखा लाइब्रेरी में दोपहर १.३० से ४.३० बजे एक विशिष्ट कार्यक्रम ’केसरिया फागुन’ आयोजित करके पुलवामा के शहीदों को रचनात्मक श्रद्धांजलि दी।
भीषण शीत और हवा के बाद भी लगभग चालीस लोगों के बीच यह विशिष्ट कार्यक्रम समय पर आरंभ हुआ। इस कार्यक्रम का संचालन डॉ. श्रीमती शैलजा सक्सेना ने किया। उन्होंने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए सभी श्रीताओं से १ मिनट का मौन रखने का आग्रह किया। भारत में उत्पन्न कठिन स्थिति पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि यहाँ प्रश्न युद्ध का नहीं बल्कि आतंक को समाप्त करने का है क्योंकि हमारे वीर लड़ते हुए शहीद नहीं हुए अपितु षड़यंत्र का शिकार होकर शहीद हुए हैं। ऐसे वातावरण में बात युद्ध और शांति की नहीं, आतंक समाप्त करने की होनी चाहिये और इस कार्य में लेखक अपने सामाजिक दायित्त्व को समझते हुए महती भूमिका निभा सकता है। शैलजा जी ने सर्वप्रथम श्रीमती आशा बर्मन को मंच पर आमंत्रित किय। आशा जी ने प्रदीप जी के एक सुप्रसिद्ध गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों” गाकर शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की और यह भी कहा कि कई दशक प्रवास में रहने पर भी एक भारतीय सदा स्वदेश से जुड़ा रहता है। उनकी इस भावपूर्ण प्रस्तुति ने सभी की आँखें नम कर
इसके पश्चात् डॉ. जगमोहन सिंह सांगाजी को मंच पर आमंत्रित किया गया। उन्होंने कहा कि इतने समय से हम इतने युद्धों के परिणाम देखने के बावजूद भी युद्ध कर रहे हैं। शायद हम अभी तक अच्छे इंसान नहीं बन सके। उन्होंने अपनी कविता में एक अच्छा इंसान बनने का सन्देश देते हुए कहा कि सभी अच्छा बनने की कोशिश करें तो ही संसार बेहतर हो सकता है।
निर्मल सिद्धू जी ने एक अत्यंत मर्मस्पर्शी रचना सुनाई, "हम शहीदों की शहादत को न भुला पायेंगे”। इसके बाद श्री इकबाल बरार जी ने अपने मधुर स्वर में देशभक्ति का गीत ’ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछड़े चमन’ को गाकर सुनाया।
इसके पश्चात श्री बालकृष्ण जी ने कविता पाठ के साथ साथ युद्ध का एक अत्यंत रोचक समाधान प्रस्तुत किया। उनके अनुसार यदि वैज्ञानिक परमाणु बम के स्थान पर एक ऐसा ‘शांति बम’ निर्मित कर सकें जिसके डालने से सबके मन में शांति हो जाए तो संभवत: विश्व में शांति की स्थापना की जा सकती है। तदुपरांत श्री सतीश सेठी जी ने शहीदों को श्रद्धांजलि देते हुए युद्ध बँदी वीरों की स्थिति पर अपनी मार्मिक कविता सुनाई। उनकी कविता ने यह सोचने पर बाध्य किया कि शहीदों को तो हम सम्मानित करते हैं पर जो वीर शारीरिक और मानसिक प्रताड़नाएँ, आघात और अंग-भंग की कठोर स्थिति को झेलते हुए दुश्मनों के कब्ज़े में आ जाते हैं, उनके और उनके परिवार को हम भूल जाते हैं।
दीपक राज़दान जी ने सभा में युद्ध को स्थिति के अनुसार आवश्यक बताते हुए कहा कि युद्ध चाहें जितना भी विध्वंसात्मक हो पर कभी-कभी आत्मरक्षा के लिए आवश्यक भी हो जाता है इसीलिए श्रीकृष्णजी ने अर्जुन को युद्ध करने के लिए प्रेरित किया था।
श्रीमती सीमा बागला प्रथम बार मासिक गोष्ठी में आयीं थीं, अपनी सुन्दर कविता में आवश्यकतानुसार युद्ध की भेरी बजाने का आह्वान करते हुए उन्होंने सन्देश दिया कि समय आ गया है कि एकबार फिर से अर्जुन गांडीव उठायें। इसके बाद श्रीमती आशा मिश्रा ने प्रसादजी का उद्बोधन गीत ’हिमाद्री तुंग श्रृँग से’ गाकर प्रस्तुत किया।
इसके पश्चात श्री राज माहेश्वरी ने भारतीय राजनीति के ऐतिहासिक गुजराल सिद्धांतों की चर्चा कर भारत और उसके पड़ोसी देशों के संबंधों की चर्चा की।
श्री नरेन्द्र ग्रोवर ने एक अत्यंत मार्मिक रचना पढ़ी जिसका भाव था कि शहीदों के जीवन के कष्टों को शब्दों में कैसे बाँधू? उन्होंने सही ही कहा कि हर शब्द और श्रद्धाँजलि शहीदों की वीरता और त्याग के सामने अपूर्ण है।
तदुपरांत पूनम चन्द्र ‘मनु’ ने शहीदों के जीवन की आहुति को व्यर्थ न जाने देने की बात करते हुए वीर रस की एक अत्यंत प्रभावशाली रचना सुनाईं; “चिंघाड़ो कि तुम भारत हो, जब तक शत्रु न मिट जाए ।
भूल जाओ तुम बुद्ध के वंशज हो, भूल जाओ तुम बुद्ध के वंशज हो
शिव बन कर ताण्डव करो…रणचण्डी बन रक्तपात करो ...”
श्रीमती कृष्णा जी अपनी क्षणिकाएँ सुनाकर सबको मुग्ध कर दिया।
अंत में सुश्री अरूज राजपूत जी ने शहीदों को नमन करते हुए इन कठिन परिस्थितियों में शांति का आह्वान किया। वे यू. एन. ओ. में भी ’पीस डेलिगेशन’ के सदस्य के रूप में जा चुकी हैं। उन्होंने अपनी कविता में "किनारे-किनारे अमन के पौधे लगाने" की बात की। अरूज जी इस गोष्ठी की अंतिम वक्ता थीं।
कार्यक्रम का आरम्भ सभी अतिथियों का स्वागत श्री अरुण कुमार बर्मन तथा श्रीमती आशा बर्मन द्वारा लाए गए स्वादिष्ट जलपान और दीपक राज़दान द्वारा लाए गए गर्म कशमीरी कहवा द्वारा किया गया था। भावनाओं और विचारों की संतुलित रचनात्मक धारा के बीच डॉ. शैलजा सक्सेना ने सफल संचालन करते समय बीच-बीच में युद्ध और शांति के विभिन्न पहलुओं पर हिंदी के वरिष्ठ कवियों की रचनाओं के उदाहरण भी दिये जैसे दिनकर, नरेश मेहता इत्यादि जिससे उनके संचालन ने श्रोताओं को मुग्ध कर दिया। इस प्रकार हिन्दी राइटर्स गिल्ड द्वारा शहीदों को एक अत्यंत भावभीनी श्रद्धांजलि दी गयी।
-आशा बर्मन
आगे पढ़ेंविज्ञान लोकप्रियकरण के लिए डॉ. ज़ाकिर अली 'रजनीश' को राष्ट्रीय विज्ञान संचार पुरस्कार
विज्ञान इसलिए महत्वपूर्ण नहीं है कि वह हमें सुख और सुविधा के साधन मुहैया कराता है, वह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि हमें तर्कपूर्ण और विचारशील बनाने के लिए भी प्रेरित करता है। और इस नज़रिए से समाज को परिचित कराने में विज्ञान संचारकों की महत्वपूर्ण भूमिका है, जिसके लिए उनकी जितनी सराहना की जाए कम है।
उक्त बातें विज्ञान दिवस के अवसर पर जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान संचार पुरस्कार वितरण समारोह में सचिव, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार, प्रोफेसर आशुतोष शर्मा ने कहीं। इस पर लखनऊ के लोकप्रिय लेखक और 'साइंटिफिक वर्ल्ड' के सम्पादक डॉ. ज़ाकिर अली 'रजनीश' को बच्चों के मध्य विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के लिए राष्ट्रीय विज्ञान संचार पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरूप उन्हें दो लाख रूपये, स्मृति चिन्ह एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान किये गये।
इस अवसर पर पर प्रिंट मीडिया के लिए हुद्रम बीरकुमार सिंह, मणिपुर, मनींद्र कुमार मजूमदार, असम, प्रोफेसर मानसी गोस्वामी, उड़ीसा को, बच्चों के मध्य विज्ञान लोकप्रियकरण के लिए रूरल एग्रीकल्चरल डेवलेपमेंट सोसायटी, आंध्र प्रदेश, डॉ. राजकुमार उत्तर प्रदेश को अनुवाद के लिए प्रोफे. मनीष रत्नाकर जोशी, परम्परागत माध्यम के लिए डॉ. बृजमोहन शर्मा, उत्तराखण्ड, डॉ. सुनीता झाला राजस्थान, व इलेक्ट्रानिक मीडिया के लिए डॉ. अंकुरन दत्ता, असम को भी पुरस्कृत किया गया।
बच्चों के मध्य विज्ञान विज्ञान लोकप्रियकरण के लिए राष्ट्रीय विज्ञान पुरस्कार से सम्मानित होने वाले डॉ. ज़ाकिर अली 'रजनीश' देश के जाने-माने रचनाकार हैं, जो अपनी विज्ञान कथाओं के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। डॉ. रजनीश गत दो दशकों से बच्चों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण को विकसित करने वाले साहित्य का सृजन कर रहे हैं। उनकी 60 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वे हिंदी की लोकप्रिय ब्लॉग पत्रिका 'साइंटिफिक वर्ल्ड' के सम्पादक हैं, जो देश की आई.एस.एस.एन. नम्बर प्राप्त इकलौती हिन्दी ब्लॉग पत्रिका है। इसके अलावा वे 'साइंस ब्लॉगर्स असोसिएशन', 'सर्प संसार' और 'टेकगेप' नामक ब्लॉग पत्रिकाओं के द्वारा भी विज्ञान संचार की अलख जला रहे हैं।
बताते चलें कि डॉ. रजनीश 'तस्लीम' (टीम फॉर साइंटिफिक अवेयरनेस आन लोकल इश्यूज़ इन इंडियन मॉसेस) नामक संस्था के महासचिव भी हैं और इसके माध्यम से विज्ञान संचार सम्बंधी सम्मेलन, गोष्ठी और कार्यशालाओं का आयोजन करते रहते हैं , जिनसे अबतक हजारों बच्चे लाभान्वित हो चुके हैं। डॉ. ज़ाकिर अली 'रजनीश' की इन उपलब्धियों के लिए उन्हें अब तक बॉब्स अवार्ड, जर्मनी, कथा महोत्सव पुरस्कार, शारजाह, यू.ए.ई. सहित तीन दर्जन से अधिक पुरस्कार/सम्मान प्राप्त हो चुके हैं।
आगे पढ़ेंपुस्तक विमोचन कार्यक्रम : अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो व्यंग्य संग्रह
दिनांक 20 मार्च 2019: स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी भोपाल -
श्री सुदर्शन कुमार सोनी की पुस्तक ’अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो’ का विमोचन दिनांक 20 मार्च 2019 को स्वामी विवेकानंद लाइब्रेरी भोपाल में लब्ध प्रतिष्ठित व्यंग्यकार ’पदमश्री’ डॉक्टर ज्ञान चतुर्वेदी के मुख्य आतिथ्य में आयोजित एक कार्यक्रम में किया गया। कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री मकरंद देऊस्कर आईजी इंटेलीजेंस तथा वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन उपस्थित थे।
व्यंग्य पुरोधा डॉक्टर ज्ञान चर्तुवेदी जी ने इस अवसर पर कहा कि सुदर्शन की वर्तमान पुस्तक व्यंग्य में एक नया प्रयोग कह सकते हैं। पूरे चौंतीस व्यंग्य कुत्तों पर हैं। व्यंग्य अपने आप में मज़ेदार हैं। इस संग्रह में उनका भोगा हुआ यथार्थ भी दिखता है। कुत्तों पर आप असीमित लिख सकते हो। किसी ने कहा कि ये देश का पहला ऐसा संग्रह है। एक कुत्ता अपने मालिक से निस्वार्थ प्रेम प्यार करता है। नया विषय तो है इसके कई व्यंग्य में तो वे गहराई पर गये हैं लेकिन कई अन्य में विकसित होने की और संभावनायें हैं। मेरी ज़्यादा सहानुभूति गली-कूचे के कुत्तों से है। उनका कोई ठिकाना नहीं है कि सुबह रोटी मिली तो शाम को कुछ मिलेगा कि नहीं? कहाँ कब कौन लतिया दे पत्थर मार दे! मेरे प्रत्येक उपन्यास में कुत्ते की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है जबकि मैंने स्वयं कभी कुत्तापालन नहीं किया।
श्री मकरंद देऊस्कर आईजी (इंटेलीजेंस) ने कहा कि सुदर्शन सोनी की किताबों की ताज़ी प्रति मुझे मिल जाती है। आज का जो व्यंग्य संग्रह है यह लाजबाब है पूरा कुत्तामय होकर लिखा है उन्होंने। मैंने भी कुत्तापालन किया है लेकिन मात्र एक रात के लिये और उसी में मैंने कुत्ते के पूरे रूप जो इस पुस्तक के अलग-अलग व्यंग्यों में अलग-अलग तरह से वर्णिंत हैं, देख लिये।
भोजपाल साहित्य संस्थान के अध्यक्ष प्रियदर्शी खैरा ने कहा कि सुदर्शन का रचनाकर्म मैं लगातार कई सालों से देख रहा हूँ। ख़ास बात तो यह है कि वे शासकीय सेवा के विभिन्न दायित्वों को पूर्ण कुशलता से निभाते हुये भी लगातार सृजनशीलता बनाये रखे हुये हैं। ख़ुशी की बात है कि भोजपाल साहित्य संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष का एक और संकलन आया है। श्री खैरा ने कहा कि केवल कुत्तों पर ही केन्द्रित व्यंग्य संग्रह पूरे देश क्या पूरे ब्रह्मांड में पहले कभी नहीं आया है! इनका यह तीसरा व्यंग्य संग्रह है उन्होंने इस संग्रह के माध्यम से कुछ नये शब्दों को भी गढ़ डाला है। कुत्तों की दिनचर्या, उनकी आदतों, अच्छाइयों, बुराइयों का इन्होंने माइक्रोस्कोपिक विश्लेषण अपने व्यंग्यों में किया है। उन्होंने लेखक की धर्मपत्नी डॉक्टर सीमा सोनी व सुपुत्री सुभुति का भी व्यंग्य पाठ हेतु आभार माना।
सुदर्शन सोनी ने कहा कि इंसान को कुत्तों के प्रति अपने नज़रिये को बदलने की ज़रूरत है; वह वैसा नहीं है जैसा कि अधिकांश लोग समझते हैं। संग्रह के व्यंग्य पिछले दस सालों में लिखे गये हैं। उन्होंने इस संग्रह को अपने प्रिय कुत्ते राॅकी जिसका दो साल पहले आकस्मिक अवसान बीमारी से हो गया था को श्रंद्वाजलि देने का एक तरीक़ा बताया। लेखक ने पुस्तक के कार्टून रचियता श्री हरिओेम तिवारी का विशेष आभार माना। जिन्होंने अत्यंत कम समय में पुस्तक के लिये बेहतरीन कार्टून बना उसे और आकर्षक बनाया। भोजपाल साहित्य संस्थान व धर्मपत्नी डॉक्टर सीमा पुत्र अभ्युदय व पुत्री सुभुति का भी विशेष आभार माना। लेखक ने पुस्तक से ही एक व्यंग्य ’जेनरेशन गैप इन कुत्तापालन’ का वाचन किया। सुभुति सोनी ने ’अगले जनम मोहे कुत्ता कीजो’ रचना का वाचन किया जिसे उपस्थित साहित्य प्रेमियों द्वारा सराहा गया। स्वामी विवेकानंद लायब्रेरी के प्रबंधक रनवीर सिंह सहायक प्रबंधक श्री यतीश भटेले का भी आभार लेखक ने किया।
वरिष्ठ व्यंग्यकार श्री शांतिलाल जैन ने पुस्तक के व्यंग्यों पर एक आलोचनात्मक वक्तव्य दिया। उन्होने कहा कि आज जब शब्दों की हत्या का समय चल रहा है तब लेखक ने इस संग्रह में कुछ नये शब्दों जैसे ’जेबकुतरा’ को गढ़ा है। कुत्तों के प्रतीक के माध्यम से उन्होने सर्वहारा वर्ग की तकलीफ़ों को सामने लाने का कार्य किया है। उन्होंने कुत्तों को न जाने कितने कोणों से परखा है। जब विषय एक हो तो ज़्यादा लिखने की गुंजाइश नहीं रहती लेकिन सुदर्शन सोनी जी ने यह साहस किया है। सारे व्यंग्यों के केन्द्र पर कुत्ता ही है। हाँ, ऐसा संग्रह हिंदी व्यंग्य में पहले कभी नहीं आया है। वे एक सजग व्यंग्यकार हैं।
कार्यक्रम का सफल व प्रभावी संचालन साहित्यकार श्री चन्द्रभान राही ने किया। कार्टूनिस्ट श्री हरिओम तिवारी द्वारा पुस्तक के व्यंग्यों को बहुचर्चित जर्जर भोपाली के किरदार के माध्यम से कॉमेडी के रूप में प्रस्तुत करके उपस्थित साहित्यकारों व साहित्य पे्रमियों की वाहवाही लूटी।
आभार प्रदर्शन भोजपाल साहित्य संस्थान के सक्रिय पदाधिकारी श्री जगदीश किंजल्क ने किया। उन्होंने कुत्तों के संबंध मे हरिशंकर जी परसाई के एक प्रसंग का भी उल्लेख किया कि कैसे परसाई जी जो कभी आकाशवाड़ी जबलपुर नहीं आये थे वे कुत्तों के शोर के कारण रिकार्डिंग हेतु आकाशवाणी आये। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में साहित्यकार साहित्य प्रेमी व अधिकारीगण उपस्थित थे।
प्रियदर्शी खैरा
अध्यक्ष भोजपाल साहित्य संस्थान
90-91 यशोदा विहार चूना भट्टी भोपाल
छत्तीसगढ़ी उपन्यास ‘मोर दुलरुआ’ और बड़का दाई’ लोकार्पित
मैसूर, 3 मार्च, 2019 -
केंद्रीय हिंदी संस्थान के व्याख्यान कक्ष में संपन्न क्षेत्रीय निदेशक डॉ. राम निवास साहू के सेवा निवृत्ति समारोह के अवसर पर उनकी दो छत्तीसगढ़ी पुस्तकों 'मोर दुलरुआ' (जीवनीपरक उपन्यास) और 'बड़का दाई' (अनुवाद : डॉ. गीता शर्मा) का लोकार्पण किया गया। अध्यक्षता मैसूर विश्वविद्यालय की प्रो. प्रतिभा मुदलियार ने की। बतौर मुख्य अतिथि लोकार्पण प्रो. ऋषभदेव शर्मा ने किया। एनसीईआरटी के डॉ. सर्वेश मौर्य और केंद्रीय हिंदी संस्थान के डॉ. परमान सिंह ने लोकार्पित पुस्तकों की समीक्षा प्रस्तुत की। वल्लभविद्यानगर से पधारे डॉ. योगेन्द्रनाथ मिश्र तथा हैदराबाद से पधारे चंद्रप्रताप सिंह ने शुभाशंसा व्यक्त की। इस अवसर पर आशा रानी साहू, शशिकांत साहू, श्रीकांत साहू और श्रीदेवी साहू ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। नराकास-मैसूर के प्रतिनिधियों के अलावा डॉ. साहू के गृहनगर कोरबी-छत्तीसगढ़ से आए समूह के सदस्यों ने भी उत्साहपूर्वक भागीदारी निबाही।
• डॉ. गुर्रमकोंडा नीरजा
सह संपादक ‘स्रवंति’
असिस्टेंट प्रोफेसर
उच्च शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा
खैरताबाद, हैदराबाद – 500004
स्पंदन संस्था भोपाल के सम्मानों की घोषणा
श्री उदयन बाजपेई, श्री पंकज सुबीर, श्री आलोक चटर्जी, श्री महेश दर्पण तथा श्री प्रेम जनमेजय को स्पंदन सम्मान प्रदान किया जाएगा, युवा स्पंदन पुरस्कार श्री थवई थियाम को।
ललित कलाओं के लिए समर्पित स्पंदन संस्था भोपाल की ओर से स्थापित सामानों की घोषणा कर दी गई है। वर्ष 2018 का 'स्पंदन कथा शिखर सम्मान' हिंदी के वरिष्ठ साहित्यकार श्री असगर वजाहत को प्रदान किया जाएगा। 'स्पंदन कृति सम्मान' कविता संग्रह 'केवल कुछ वाक्य' के लिए कवि श्री उदयन वाजपेई को, 'स्पंदन कृति सम्मान' उपन्यास 'अकाल में उत्सव' के लिए श्री पंकज सुबीर को, 'स्पंदन आलोचना सम्मान' श्री महेश दर्पण को, 'स्पंदन ललित कला सम्मान' रंग कर्म के लिए श्री आलोक चटर्जी को, 'स्पंदन साहित्यिक पत्रिका सम्मान' व्यंग्य यात्रा के लिए श्री प्रेम जनमेजय को तथा 'स्पंदन युवा पुरस्कार' थिवई थियाम को देने का निर्णय सर्वानुमति से किया गया है।
स्पंदन सम्मान समारोह की संयोजक उर्मिला शिरीष ने बताया कि सम्मान समारोह दिनांक 29 तथा 30 मार्च 2019 को भोपाल में आयोजित किया जाएगा।
उर्मिला शिरीष
संयोजक
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन, अमेरिका द्वारा अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान तथा शिवना प्रकाशन द्वारा कथा-कविता सम्मान घोषित
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका ने अपने प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान तथा शिवना प्रकाशन ने अपने कथा-कविता सम्मान घोषित कर दिए हैं। ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन सम्मानों की चयन समिति के संयोजक पंकज सुबीर ने बताया कि "ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन लाइफ़ टाइम एचीवमेंट सम्मा" हिन्दी के वरिष्ठ साहित्यकार तथा केंद्रीय हिन्दी संस्थान के उपाध्यक्ष डॉ. कमल किशोर गोयनका को, "ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अंतर्राष्ट्रीय कथा सम्मान" उपन्यास विधा में हिन्दी की चर्चित लेखिका मनीषा कुलश्रेष्ठ को उपन्यास 'मल्लिका' हेतु तथा कहानी विधा में हिन्दी के वरिष्ठ कथाकार और समावर्तन के संपादक मुकेश वर्मा को कहानी संग्रह 'सत्कथा कही नहीं जाती' हेतु प्रदान किए जाएँगे। शिवना प्रकाशन के सम्मानों की चयन समिति के संयोजक श्री नीरज गोस्वामी ने बताया कि 'शिवना कथा सम्मान' हिन्दी की चर्चित लेखिका गीताश्री को उपन्यास 'हसीनाबाद' के लिए, 'शिवना कविता सम्मान' महत्त्वपूर्ण कवि वसंत सकरगाए को कविता संग्रह 'पखेरू जानते हैं' तथा 'शिवना कृति सम्मान' शिवना प्रकाशन से प्रकाशित उपन्यास 'पार्थ तुम्हें जीना होगा' के लिए कथाकार, कवयित्री ज्योति जैन को प्रदान किए जाएँगे। शिवना प्रकाशन तथा ढींगरा फ़ैमिली द्वारा संयुक्त रूप से 17 मार्च 2019 रविवार को भोपाल के राज्य संग्रहालय के सभागार में आयोजित 'ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन- शिवना साहित्य समागम' में यह सम्मान प्रदान प्रदान किये जाएँगे। चार सत्रों में आयोजित होने वाले इस समागम में शिवना प्रकाशन की पुस्तकों का विमोचन, रचना पाठ, सम्मान समारोह तथा विमर्श का समावेश रहेगा, जिसमें हिन्दी के महत्त्वपूर्ण साहित्यकार भाग लेंगे।
ढींगरा फ़ैमिली फ़ाउण्डेशन अमेरिका का यह तीसरा सम्मान समारोह है। हिन्दी की वरिष्ठ कथाकार, कवयित्री, संपादक डॉ. सुधा ओम ढींगरा तथा उनके पति डॉ. ओम ढींगरा द्वारा स्थापित इस फ़ाउण्डेशन के यह सम्मान इससे पूर्व श्रीमती उषा प्रियंवदा, श्रीमती चित्रा मुद्गल, श्री महेश कटारे, डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी, श्रीमती सुदर्शन प्रियदर्शिनी, तथा श्री हरिशंकर आदेश को प्रदान किया जा चुका है। सभी सम्मानों के तहत सम्मान राशि, शॉल, श्रीफल तथा सम्मान पट्टिका प्रदान की जाएगी।
शहरयार अमजद ख़ान
शिवना प्रकाशन
हिम की चादर पे खेले बसंत राज
फरवरी 09, 2019 - कैनेडा की जानी-मानी और बहुआयामी संस्था हिंदी राइटर्स गिल्ड की मासिक गोष्ठी ०९ फ़रवरी २०१९ को स्प्रिंगडेल लायब्ररी, ब्रैम्पटन में दोपहर १.३० बजे प्रारंभ हुई। “हिम की चादर पे खेले बसंत राज” को चरितार्थ करता बर्फ़ीला मौसम था फिर भी कवियों और श्रोताओं ने बड़ी संख्या में आकर हिंदी के प्रति प्रेम का परिचय दिया। बसंत पंचमी के शुभ अवसर पर सभी ने एक दूसरे को बसंत ऋतु के आगमन पर बधाई दी। हिंदी राइटर्स गिल्ड द्वारा आयोजित समोसे, बर्फ़ी, गर्म चाय और श्रीमती सविता अग्रवाल द्वारा परोसे गए, बसन्ती मीठे चावलों का सभी ने भरपूर आनंद उठाया।
कार्यक्रम की संचालिका श्रीमती आशा बर्मन ने अपना कार्यभार संभालते हुए सभी का स्वागत किया और हिंदी साहित्य जगत के चारों काल वीर गाथा काल, भक्ति काल, रीति काल और आधुनिक काल के बारे में संक्षिप्त परिचय देते हुए, भक्ति काल में सूर, तुलसी, रहीम और कबीर के बारे में चर्चा करते हुए हिंदी के नौ रसों में श्रृंगार रस को सभी रसों का राजा बताया क्योंकि यह माह प्रेम के रूप में भी मनाया जाता है इसलिए इस गोष्ठी का विषय भी प्रेम ही था। प्रेम का स्वरुप इतना व्यापक है कि उसे किसी सीमा में बांधा नहीं जा सकता है इसीलिये सभी ने अपने-अपने ढंग से अपने प्रेम की अनुभूतियों को प्रस्तुत किया। सर्वप्रथम श्रीमती सविता अग्रवाल ने बसंत पंचमी क्यों मनाई जाती है और उसके महत्व के बारे में अपनी बात रखी तथा हिंदी के एक लेखक श्री उदय भानु हंस की कविता “मैं तुमसे प्रीत लगा बैठा” की प्रस्तुति की। दूसरे कवि श्री नरेन्द्र ग्रोवर ने अपनी कविता “रेल यात्रा” प्रस्तुत की, इस कविता में ग्रोवर जी ने रेल यात्री के सुन्दर अनुभवों जैसे मूंगफली खाकर छिलके फेंकने का आनंद और एक मुसाफ़िर के बार बार छींक रोकने की बात को बड़े अनोखे ढंग से हास्य का पुट देकर यात्रा का किस्सा सुनाया। तत्पश्चात श्रीमती कृष्णा वर्मा ने अपनी कविता में “प्रेम की स्याही से नज़रें सीने पर पैगाम लिख जाती हैं, प्रेम में सोच रेशमी हो जाती है” जैसी पंक्तियों से प्रेम रस की अनुभूति को दर्शाया। दूसरी कविता “क्यूँ बाबा” में एक पुत्री के अपने बाबा से कई सवाल और लड़के लड़की के अन्तर को मिटाने की गुहार को बड़े सुन्दर ढंग से प्रस्तुत किया। अगले कवि श्री अखिल भंडारी ने अपनी गज़ल “हुई मुद्दत कोई आया नहीं था” में ऐसे दोस्त की बात की, जो बुरे वक़्त में भी काम नहीं आया। श्रीमती आशा बर्मन ने डॉ. इंदु रायज़ादा को आमंत्रित करने से पूर्व ख़ूबसूरत अंदाज़ में फैज़ की कुछ पंक्तियां पढ़ीं। डॉ. इंदु रायज़ादा ने सर्व प्रथम गायत्री मंत्र की स्तुति की और इसके अर्थ को भी बताया। सभी ने मिलकर तीन बार इस मंत्र का उच्चारण किया। प्रेम की चर्चा करते हुए प्रेम में वात्सल्य रस के अपने कुछ अनुभवों की चर्चा की, प्रेम में संबंधों का टूटना फिर जुड़ जाना, बंधन टूटने पर मानव का बिखर जाना, पर फिर भी जीवन को जीते रहना इत्यादि अनेक उदाहरण देकर अपने विचार रखे। इंदु जी ने श्री हरिवंशराय बच्चन की लिखी कुछ पंक्तियों को भी उद्दृत किया। अगले कवि श्री बाल शर्मा ने “मेरा गीत” नामक अपनी रचना की प्रस्तुति की जिसमें दुनिया की भीड़ में ’मन का मीत मिला दो’ और बादलों से बरस जाने जैसी इच्छाओं को प्रस्तुत किया गया था। अपनी दूसरी कविता में ‘एक प्रेमी तस्वीरों को ना देख कर भी उसमें अपने प्रिय को देख लेता है’ कहकर प्रेम के असीम विश्वास का वर्णन बख़ूबी किया। एक और कविता “हम सो रहे थे” की भी प्रस्तुति की। श्री इकबाल बरार, जो टोरंटो के जाने माने गायक हैं, ने हस्तीमल हस्ती (गज़लकार) की एक ग़ज़ल “वक़्त तो लगता है” को गाकर कर्ण आनंद से विभोर किया। उन्होंने बॉलीवुड की एक फिल्म का मशहूर गाना “तेरे बिन सूने नयन हमारे... को बहुत ख़ूबसूरती के साथ पेश किया। तत्पश्चात श्री सतीश सेठी ने अपनी रचना “मैं तेरी माँ हूँ” प्रस्तुत की, जिसमें माँ को सर्वोच्च मानते हुए मातृप्रेम को अनोखा और अलग माना है जिसका दुनिया में कोई सानी नहीं है। माँ के पास ना होते हुए भी माँ को सदैव अपने चारों ओर महसूस करते हैं। अगले लेखक और कवि श्री विजय विक्रांत को, जो हिंदी राइटर्स गिल्ड के संस्थापक निदेशक भी हैं, को मंच पर आमंत्रित किया गया। विक्रांत जी ने अमीर खुसरों और बसंत से जुड़ी एक घटना को कहानी के रूप में प्रस्तुत किया, उन्होंने बताया कि खुसरों के समय में हिन्दू मुस्लिम दोनों ही आपस के बैर भाव को त्याग कर बसंत पंचमी का त्यौहार मनाते थे और दरगाहों पर बसंत पंचमी के दिन फूल चढ़ाए जाते थे। अमीर खुसरो की दो रचनाओं जैसे “आज बसंत मना ले सुहागिन” और “सघन वन फूल रही सरसों” का भी वर्णन किया | हिंदी राइटर्स गिल्ड की गोष्ठी में पहली बार पधारे श्री विनोद महेन्द्रू ने श्री हरिवंशराय बच्चन की एक कविता “मकान चाहे कच्चे थे” की प्रस्तुति की जिसमें आधुनिक वस्तुओं के आ जाने से रिश्तों में दूरियां बढ़ गयीं हैं जैसे कई उदाहरण निहित हैं।
अंत में गोष्ठी की संचालिका श्रीमती आशा बर्मन को श्रीमती सविता अग्रवाल ने कविता पाठ के लिए मंच पर आमंत्रित किया। आशा जी ने “प्यार का प्रतिदान” नामक रचना को गाकर प्रस्तुत किया, दूसरी रचना प्रसिद्ध कवि श्री सोम ठाकुर की, “ये प्याला प्रेम का प्याला है” को अपने मधुर कंठ से गाकर कविता में चार चाँद लगा दिए। एक नए सज्जन श्री राम सिंह इस गोष्ठी का हिस्सा बने, उन्हें भी मंच पर आमंत्रित किया किया गया। पंजाबी भाषी होते हुए भी उनका शुद्ध हिंदी उच्चारण सुनकर ह्रदय गद-गद हो गया। उन्होंने बसंत पंचमी और रंगों पर अपने विचार रखे जिसमें भाषा के माध्यम से सभी रंगों को अपने अन्दर समेटा जा सकता है। सृजन की जिज्ञासा दुनिया के हर कोने में रहने वाले व्यक्ति में होती है, भाषा कोई भी छोटी या बड़ी नहीं होती | भाषा तो अपनी बात दूसरे तक पहुंचाने का एक माध्यम है कहते हुए अपनी बात समाप्त की। अंत में संचालिका आशा बर्मन ने सभी का धन्यवाद किया। श्री संजीव अग्रवाल ने अपने कैमरे से सबके चित्र लिए और अंत में एक सामूहिक चित्र भी लिया। ज़ी टी वी से पधारे श्री अरहान निज्जर ने कार्यक्रम के कुछ अंश वीडिओ कैमरे में उतार कर लेखकों का मनोबल बढ़ाया। इस प्रकार गोष्ठी का सफ़लतापूर्वक समापन हुआ।
--सविता अग्रवाल 'सवि'
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