अवसाद, अकेलापन और असमर्थता–मन की आवाज़

15-05-2025

अवसाद, अकेलापन और असमर्थता–मन की आवाज़

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 277, मई द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

“जो बाहर हँसता दिखता है, वह भीतर कितना टूटा है, यह कोई नहीं जानता।”

1. अवसाद–भीतर का टूटता आत्मबल

कारण:

  • निरंतर असफलताएँ या ज़िंदगी में निराशा

  • बचपन में गहरा मानसिक आघात

  • मस्तिष्क में रासायनिक असंतुलन

  • अत्यधिक सामाजिक या पेशेवर दबाव

उदाहरण:

रीमा एक बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर थी। उसके पास एक आलीशान घर, महँगी कार और अच्छा सामाजिक स्टेटस था। बाहर से सब उसे सफल मानते थे। 

लेकिन अंदर से वह रोज़ ख़ालीपन महसूस करती थी। 

सुबह उठते ही उसे एक अजीब भारीपन जकड़ लेता, ऑफ़िस जाते हुए लगता कि सबकुछ बेकार है। मीटिंग्स में मुस्कुराते हुए भी उसका मन रोता रहता। धीरे-धीरे उसे किसी भी चीज़ में रुचि नहीं रही— न परिवार में, न शौकों में।

डॉक्टर ने उसे बताया कि वह क्लिनिकल डिप्रेशन से जूझ रही थी। बाहर से हँसती रीमा अंदर ही अंदर बिखर रही थी। 

निराकरण के उपाय:

  • पेशेवर मदद लें (मनोचिकित्सक से थेरेपी या दवा) 

  • रोज़ थोड़ा-थोड़ा शारीरिक व्यायाम करें

  • ख़ुद के साथ धैर्य और करुणा बरतें

  • सकारात्मक आदतें धीरे-धीरे विकसित करें

2. अकेलापन–भीड़ में भी ख़ुद से कट जाना

कारण:

  • भावनात्मक जुड़ाव की कमी

  • सोशल मीडिया के आभासी रिश्ते

  • जीवन में क़रीबी सम्बन्धों का टूटना या न बन पाना। 

  • आत्मसम्मान में गिरावट

उदाहरण:

अरविंद एक फ़ेमस डिजिटल इनफ्लुएंसर था। इंस्टाग्राम पर उसके लाखों फॉलोअर्स थे। 

दिनभर उसके पास ढेरों कमेंट्स, मैसेज आते रहते थे। 

लेकिन जब वह रात को अपने कमरे में अकेला बैठता, तो उसे लगता कि उसका कोई भी असली दोस्त नहीं है। 

जो लोग उसे जानते थे, वे सिर्फ़ उसकी प्रोफ़ाइल या ब्रांड वैल्यू से जुड़े थे, उसकी सच्ची भावनाओं से नहीं। 

कोई नहीं था जिससे वह अपने डर, अपने संघर्ष साझा कर सके। 

वह भारी भीड़ में होते हुए भी ख़ुद को गहरे अकेलेपन में डूबा महसूस करता था। 

निराकरण के उपाय:

  • वास्तविक सम्बन्धों में समय और भावना लगाएँ

  • छोटे-छोटे स्थानीय समूहों या गतिविधियों से जुड़ें

  • अपने शौक़ (पेंटिंग, संगीत, खेल) के ज़रिए नए दोस्त बनाएँ

  • ख़ुद के साथ भी अच्छा सम्बन्ध बनाएँ 

  • ख़ुद की कंपनी का आनंद लें

3. असमर्थता–हार मानने का भाव

कारण:

  • कई असफल प्रयासों के बाद आत्मविश्वास में गिरावट

  • लगातार असफलताओं से मनोबल का टूटना

  • कोई सहारा न होना

  • मानसिक और शारीरिक थकान

उदाहरण:

सुनील एक छोटे शहर से था और मुंबई जाकर एक्टर बनने का सपना लेकर आया था। 

पहले साल बहुत संघर्ष किया, ऑडिशन दर ऑडिशन दिए, लेकिन हर बार रिजेक्शन मिला। 

धीरे-धीरे उसके पैसे ख़त्म होने लगे, दोस्तों ने किनारा करना शुरू कर दिया। 

सुनील का मन कहने लगा— “शायद मैं इस लायक़ ही नहीं हूँ।”

वह ऑडिशन पर जाना ही छोड़ बैठा, अपने सपनों को असम्भव मान लिया। 

सुनील के भीतर एक भारी असमर्थता का भाव बैठ गया था जिसने उसे कोशिश करने से भी रोक दिया। 

निराकरण के उपाय:

  • असफलताओं को सीखने के अवसर के रूप में देखें। 

  • छोटे, आसान लक्ष्यों से दोबारा शुरूआत करें। 

  • ख़ुद को सहानुभूति से देखें, कठोर आलोचना न करें। 

  • अगर ज़रूरत हो तो गुरु या मार्गदर्शक से सलाह लें। 

अवसाद, अकेलापन, और असमर्थता— ये भावनाएँ हमें कमज़ोर नहीं बनातीं, बल्कि हमारी संवेदनशीलता की निशानी हैं। 

इन आवाज़ों को सुनना, उन्हें सम्मान देना, और मदद लेना— यही सच्ची शक्ति है। 

हर अँधेरे के बाद रोशनी आती है— अगर हम हिम्मत न हारें। 

“मन की सबसे गहरी रात में भी उम्मीद का दीपक जलाना सम्भव है। बस उसे बुझने न दें।”

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