सुख–दुख

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 200, मार्च प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

सुख–दुख ही सारा जीवन है। 
इनको तन-मन से अपनाओ। 
 
कब आते हैं
कब जाते हैं। 
कब छटते
कब छा जाते हैं। 
इनका अपना
क्रम होता है। 
कर्म इन्हें हर
दिन बोता है। 
 
सुख–दुख आनी जानी ऋतुएँ। 
इनको अपने हृदय बसाओ। 
 
क़दम क़दम पर
रोड़े आते। 
दुख ज़्यादा
सुख थोड़े आते। 
धूप-छाँव से
सुख-दुख भैया। 
न पकड़े न ये
छोड़े जाते। 
 
आशाओं की गठरी बाँधे
ख़ुद को मंज़िल पर पहुँचाओ
 
कर्म लक्ष्य
निर्धारित करते। 
सुख–दुख को
आधारित करते
चलते चलो
निरंतर पथ पर
मन में प्रभु को
आवाहित करते
 
सुख–दुख के गहनों में सज कर। 
जीवन को मधुवन कर जाओ। 

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