क्षण भंगुर जीवन

01-06-2025

क्षण भंगुर जीवन

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

पल में बनती बात है, पल में बिगड़े खेल। 
जीवन नदिया नाव है, कर धारों से मेल॥
 
काया माटी का महल, साँसों की है डोर। 
टूटेगी जब डोर यह, छूटेगा यह ठौर॥
 
धन दौलत यह राज सब, सपने जैसे जान। 
जागोगे जब अंत में, होगा ख़ाली स्थान॥
 
जीवन के इस साज़ पर, मत कर तू अभिमान। 
चक्र घूमता काल का, मिट्टी मिलती शान। 
 
पत्ते गिरते पेड़ से, थम जाता है शोर। 
वैसे ही यह ज़िन्दगी, क्षण भंगुर की भोर॥
 
जी लो अपनी ज़िन्दगी, नहिं कल का है ठौर। 
हँस कर ही जीवन जियो, बड़ा कठिन है दौर॥
 
बाँध कर्म की पोटली, जाएगी जो साथ। 
मिट्टी में तन यह मिले, छूटेंगे सब हाथ॥
 
मत माया में तू उलझ, यह तो है उलझाव। 
जीवन को ऊँचा करें, बस मन के सद्भाव॥
 
पानी का है बुलबुला, क्षण भंगुर है श्वास। 
क्यों इतना अभिमान है, कुछ नहिं तेरे पास॥
 
प्रेम करुण मन रख सदा, कर जीवन से प्यार। 
बाक़ी सब झूठा यहाँ, यह संसार असार॥

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