कोई हमारी भी सुनेगा

15-11-2021

कोई हमारी भी सुनेगा

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 193, नवम्बर द्वितीय, 2021 में प्रकाशित)

"आप सभी बड़े लोग क्या हम बच्चों की कभी सुनेगें?" दिनेश जो कि बाल दिवस के अवसर पर भाषण देने खड़ा हुआ था अचानक मंच की और मुड़ कर बोला।

मुख्य अतिथि कलेक्टर महोदय मुस्कुराये बोले, "हाँ बेटा बोलो।"

"आप लोगों ने हमारे सभी अधिकार छीन लिए हैं," दिनेश की आँखों में आक्रोश था।

"दिनेश क्या बोल रहे हो तुम बेटा, तुम्हारे कौन से अधिकार हम लोगों ने छीने हैं," प्रधानपाठक महोदय हतप्रभ थे।

"हम कितने बजे उठें?

"हम क्या खाएँ?

"हम क्या पहनें?

"हम कैसे दिखें?

"हम कैसे उठें, कैसे बैठें?

"हम क्या पढ़ें क्या लिखें?

"कब खेलें?

"कब सोएँ?

"यहाँ तक की हम कब साँसें लें आख़िर क्यों?

"ये भी आप सभी बड़े तय करते हैं

"घर में बाहर, स्कूल में हर जगह सिर्फ डाँटें, सीखें और अनुशासन के ताले।

"हम लोगों के भी मन हैं, इच्छाएँ हैं, कल्पनाएँ हैं, योजनाएँ हैं।

"क्या कभी उनको साकार करने का हमें मौक़ा मिलेगा?

"या हम भी यूँ ही बड़े होकर आप जैसे हो जाएँगे।

"हमारा बचपन कब तक आपकी अपेक्षाओं को ढोता रहेगा?

"प्लीज़ हमको इस क़ैद से मुक्त कर दो।"

पूरे हाल में सन्नाटा था सभी बड़ों के चेहरे झुके हुए थे।

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