ज़िन्दगी और बंदगी

01-02-2022

ज़िन्दगी और बंदगी

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

रवि रीता को सुना-सुना कर कविता कह रहा था। 

“तुम्हारा प्यार ही दुनिया में
सबसे बड़ा धन है
तुम मिलो तो जीवन है
वरना टूटा हुआ मन है। 
तुम ज़िन्दगी हो
तुम बंदगी हो।” 

“बस बस बहुत प्यार हो गया ये बताओ अगर ये धन खो गया तो फिर तुम क्या करोगे?” रीता की नज़रें रवि के चेहरे पर टिक गयीं। 

“क्यों क्यों खो जाएगा ये धन?” रवि अचकचा गया। 

“अगर मैं किसी के साथ भाग गयी तो क्या करोगे?” रीता ने मुस्कुराते हुए कहा। 

“मैं तुम दोनों को गोली मार दूँगा,” रवि ने ग़ुस्से में रीता को देखा। 

“तब ये बंदगी और ज़िन्दगी को क्या होगा?” रीता ने मुस्कुराते हुए कहा। 

“जब तुम दूसरे के पास चली जाओगी तो फिर क्या मतलब तुमसे,” रवि ग़ुस्से में बोला। 

“जब तक औरत अधिकार में है तो ज़िन्दगी बंदगी है और जहाँ अधिकार गया तो गोली और गंदगी है। रवि यही सच्चाई है मर्द और औरत के रिश्ते की। आज तुम नहीं रहोगे तो मैं सारी ज़िन्दगी अकेले काट लूँगी तुम्हारे यादों के सहारे लेकिन अगर मैं नहीं रहूँगी तो तीन महीने बाद तुम्हारी दूसरी शादी की तैयारियाँ होने लगेगीं,”  रीता के चेहरे पर उदासी थी। 

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