गुलशन उजड़ गया

01-06-2021

गुलशन उजड़ गया

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 182, जून प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

ठूँठ हुए जंगल
सब सूखे
गुलशन उजड़ गया।
 
आदमखोर
हवाएँ बहतीं,
मौत की मंशा
पूरी हैं।
गंगा में हैं,
शव उतराते
साँसें आज
अधूरी हैं।
 
पीड़ा की
परछाईं लम्बी
तन मन निचड़ गया।
 
ख़त्म सभी,
संवाद प्रेम के।
रिश्ते सड़कों,
पर औंधें।
विरह वेदना,
बेकल बेसुध
टूट गए
सपने सौँधें।
 
हर घर में अब
महारुदन है
अपना बिछड़ गया।
 
डर से भरा हुआ
मन कोना
भय से भरी
हुई रातें।
लहू चूसने को
आतुर हैं
अहंकार की
बरसातें।
 
संवेदन की
बाट जोहता
रिश्ता उजड़ गया।

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