तहस-नहस

01-05-2021

तहस-नहस

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

पूरा घर तहस-नहस हो गया दो भाई कारों की चपेट में आ कर स्वर्ग सिधार गए। बड़े भाई और पिता इस गहन दुःख को न झेल पाए और हार्ट अटैक से मृत्यु को प्राप्त हो गए।

पूरे शहर में शोक व्याप्त था।

उस घर की दो महिलाएँ भोजन के पैकेट बना कर अस्पताल के कोरोना वार्ड में मरीज़ों को निःशुल्क पैकेट दे रहीं थीं।

डॉक्टर ने बहुत उदासी से पूछा, "आपके घर में इतना दुःख फिर भी आप लोग मरीज़ों की इतनी सेवा कर रहीं हैं।"

"जी डॉक्टर साहब, जैसे हमारा घर तहस-नहस हुआ है हम नहीं चाहते इनमें से किसी के घर पर ये विपत्ति आये," उन दोनों महिलाओं के आँखों में दर्द के आँसू थे।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
सांस्कृतिक आलेख
चिन्तन
लघुकथा
व्यक्ति चित्र
किशोर साहित्य कहानी
कहानी
कविता - क्षणिका
दोहे
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सामाजिक आलेख
ललित निबन्ध
कविता - हाइकु
साहित्यिक आलेख
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
स्वास्थ्य
स्मृति लेख
खण्डकाव्य
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
रेखाचित्र
काम की बात
काव्य नाटक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में