वृद्धजन—अतीत के प्रकाश स्तंभ और भविष्य के सेतु

15-10-2025

वृद्धजन—अतीत के प्रकाश स्तंभ और भविष्य के सेतु

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

 (वृद्ध दिवस पर आलेख-सुशील शर्मा) 

 

कल जब विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस के रूप में मनाया जाएगा, तो यह अवसर मेरे लिए व्यक्तिगत रूप से भी एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव लेकर आ रहा है। यह वर्ष की वह मनमोहक घड़ी है, जब प्रकृति अपनी सुंदरता के चरम पर होती है और शरद पूर्णिमा की धवल चाँदनी पृथ्वी पर उतरती है ठीक उसी पवित्र तिथि पर मैं भी अपने जीवन के इकसठवें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ। यह मात्र आयु का एक अंक नहीं है, यह उस पड़ाव की दहलीज़ है जिसे हमारी परंपरा में वानप्रस्थ आश्रम कहा गया है, यानी सक्रिय जीवन की अगली, अधिक चिंतनशील और समर्पित पारी। 

यह आलेख केवल एक दिवस के उत्सव पर केंद्रित नहीं है, बल्कि उस विशाल अनुभव के भंडार, वृद्ध समाज की वर्तमान स्थिति, उनके अंतर्द्वंद्व और उनकी शाश्वत प्रासंगिकता पर केंद्रित है, जिसे आज का समाज अक्सर अनदेखा कर देता है। हमें यह समझना होगा कि वृद्धावस्था जीवन की साँझ नहीं, बल्कि अनुभवों से दमकता हुआ एक नया प्रभात है। 

वृद्धों की वर्तमान स्थिति: अकेलापन और डिजिटल अंतराल

आज का विश्व जिस गति से बदल रहा है, उसने वृद्धों के जीवन को सबसे अधिक प्रभावित किया है। संयुक्त परिवार की टूटन और एकल परिवार की अनिवार्यता ने हमारे समाज के उस मूल आधार को खंडित कर दिया है, जहाँ वृद्ध जन स्वाभाविक रूप से परिवार के केंद्र में होते थे। आज उनकी स्थिति किसी सुंदर, किन्तु अनुपयोगी, कलाकृति जैसी हो गई है सम्माननीय, पर अप्रासंगिक। 

भावनात्मक एकाकीपन का अंधकार

वृद्धों का सबसे बड़ा कष्ट शारीरिक पीड़ा नहीं, बल्कि भावनात्मक एकाकीपन है। आर्थिक और भौतिक सुख-सुविधाएँ तो शायद उपलब्ध हो जाती हैं, लेकिन उन्हें चाहिए होता है—समय। आज की पीढ़ी समय की निरंतर कमी से जूझ रही है, जिसके चलते पीढ़ीगत अंतराल केवल विचारों का नहीं, बल्कि संवाद का भी अंतराल बन गया है। जब बच्चे अपने करियर की भाग-दौड़ में व्यस्त हो जाते हैं, तब माता-पिता के विशाल अनुभव के भंडार को सुनने वाला कोई नहीं बचता। घर भरा रहता है, पर आत्मा एकांत महसूस करती है। यह अकेलापन उस वृद्ध हृदय को भीतर से तोड़ देता है, जो जीवन भर अपनों के लिए जीता रहा। 

तकनीक का 'डिजिटल डिवाइड'

वर्तमान युग तकनीक का है। स्मार्टफोन, इंटरनेट, और कृत्रिम बुद्धिमत्ता हमारे जीवन के हर पहलू को नियंत्रित कर रहे हैं। दुर्भाग्य से, डिजिटल साक्षरता की कमी के कारण एक बड़ी संख्या में वृद्धजन इस प्रवाह से बाहर छूट गए हैं। सरकारी योजनाएँ, बैंकिंग, संचार और यहाँ तक कि सामाजिक समारोहों का आमंत्रण भी अब डिजिटल माध्यमों से होता है। यह डिजिटल डिवाइड उन्हें केवल तकनीकी रूप से ही नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से भी हाशिए पर धकेल रहा है। वे आधुनिक जीवन की ताल से ताल नहीं मिला पाते और स्वयं को इस तेज़ भागती दुनिया में असहज और अनचाहा महसूस करते हैं। 

आर्थिक और स्वास्थ्य सुरक्षा का संकट

जीवन के इस अंतिम चरण में, स्वास्थ्य और आर्थिक असुरक्षा दो सबसे बड़े भय हैं। चिकित्सा विज्ञान की प्रगति ने जहाँ जीवनकाल बढ़ाया है, वहीं दीर्घकालिक बीमारियों और उनके महँगे उपचारों ने बचत को समाप्त कर दिया है। निर्भरता का डर उन्हें भीतर से खाए जाता है। यह पीड़ा तब और गहरी हो जाती है, जब जीवन भर स्वाभिमान से जीने वाला व्यक्ति छोटी-छोटी ज़रूरतों के लिए भी अपने बच्चों या बाहरी सहायता पर निर्भर हो जाता है। 

वृद्धों की शाश्वत प्रासंगिकता: अनुभव का अक्षय कोष

इन चुनौतियों के बावजूद, वृद्ध समाज की प्रासंगिकता आज भी उतनी ही गहरी और आवश्यक है, जितनी सदियों पहले थी। दरअसल, आज के अति-तीव्र और तनावपूर्ण जीवन में तो उनकी भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो गई है। 

ज्ञान और अनुभव के प्रकाश स्तंभ

वृद्धजन किसी भी समाज के अनुभव का अक्षय कोष होते हैं। उन्होंने जीवन के हर रंग को देखा है, हर उतार-चढ़ाव को पार किया है। आज की युवा पीढ़ी जहाँ तत्काल समाधान की तलाश में रहती है, वहीं वृद्धों का व्यावहारिक ज्ञान उन्हें धैर्य, दृढ़ता और दीर्घकालिक सोच का महत्त्व सिखाता है। वे अतीत के प्रकाश स्तंभ हैं, जिनकी रौशनी में हम वर्तमान की चुनौतियों को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। 

संस्कृति और मूल्यों के संवाहक

वृद्धजन ही परिवार में नैतिकता और संस्कृति के सच्चे वाहक हैं। वे बच्चों को कहानियों, लोकगीतों और पारिवारिक परंपराओं के माध्यम से उन संस्कारों से जोड़ते हैं जो उन्हें उनकी जड़ों से बाँधे रखते हैं। दादा-दादी और नाना-नानी की गोद में पलने वाला बच्चा केवल प्यार ही नहीं पाता, बल्कि वह एक मज़बूत सांस्कृतिक और नैतिक आधार भी प्राप्त करता है। यह वह अमूल्य योगदान है जिसकी क़ीमत कोई आधुनिक शिक्षण संस्थान नहीं चुका सकता। 

भावनात्मक स्थिरता और संतुलन

वृद्धजन परिवार के भीतर भावनात्मक स्थिरता का केंद्र होते हैं। उनकी शांत उपस्थिति, उनका स्नेह और उनका सहज मार्गदर्शन तनावपूर्ण पारिवारिक माहौल में एक शीतल छाँव प्रदान करता है। वे पीढ़ीगत विवादों में मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं और युवा माता-पिता के तनावपूर्ण जीवन में सहयोग प्रदान करते हैं। वे निष्पक्ष प्रेम और बिना शर्त स्नेह का प्रतीक होते हैं। 

सक्रिय नागरिक और समाज सेवक

आज एक नई श्रेणी के सक्रिय वरिष्ठ नागरिक उभर रहे हैं। वे रिटायरमेंट को जीवन का अंत न मानकर, दूसरा अध्याय मानते हैं। वे अपने अनुभव का उपयोग समाज सेवा, अध्यापन, परामर्श या यहाँ तक कि अपने शौकों और कलाओं को आगे बढ़ाने में कर रहे हैं। वे अब सिर्फ़ परिवार के आश्रित नहीं, बल्कि समाज के सक्रिय योगदानकर्ता हैं। 

एक नए प्रतिमान की ओर: सम्मान, न कि दया

इस विश्व वृद्ध दिवस पर हमें यह संकल्प लेना चाहिए कि हम वृद्धों के प्रति अपने दृष्टिकोण को बदलेंगे। हमें उन्हें दया का पात्र नहीं, बल्कि सम्मान और समावेश का भागीदार बनाना होगा। 

हमें जानबूझकर तकनीक और जीवन की व्यस्तताओं से समय निकालकर उनके साथ भावनात्मक संवाद स्थापित करना होगा। हमें उनके अनुभवों को सुनने की आवश्यकता है। 

युवाओं को ज़िम्मेदारी लेनी होगी कि वे अपने घर के वृद्धजनों को तकनीक सिखाएँ, ताकि वे भी डिजिटल दुनिया के लाभ उठा सकें और अकेलापन महसूस न करें। 

अब बच्चों को अपने माता-पिता के लिए सुरक्षा का कवच बनना होगा, उन्हें स्वास्थ्य और आर्थिक चिंताओं से मुक्त करना होगा। 

सरकार और सामाजिक संगठनों को चाहिए कि वे स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ बनाएँ और ऐसे सामुदायिक केंद्र स्थापित करें जहाँ वृद्धजन सक्रिय रूप से भाग ले सकें, अपने अनुभव साझा कर सकें और अपनी प्रासंगिकता महसूस कर सकें। 

वानप्रस्थ का नया संकल्प

जब मैं स्वयं अपने जीवन के 61वें वर्ष में प्रवेश कर रहा हूँ, तो यह आशा करता हूँ कि यह उम्र केवल यादों का पुलिंदा समेटने की नहीं, बल्कि उन अनुभवों को समाज को लौटाने की है। वृद्धावस्था जीवन की अंतिम सीमा नहीं है, बल्कि वह उच्चतम बिंदु है जहाँ से ज्ञान का प्रकाश फैलना शुरू होता है। 

हम सभी का कर्त्तव्य है कि हम अपने वृद्धजनों को वह गरिमा, सम्मान और प्रेम दें जिसके वे वास्तविक हक़दार हैं। क्योंकि आज हम उनके जीवन की कहानी पढ़ रहे हैं, कल आने वाली पीढ़ी हमारी कहानी पढ़ेगी। 
आइए, हम सब मिलकर वृद्ध दिवस को मात्र औपचारिकता न बनाकर, जीवन और अनुभव के उत्सव के रूप में मनाएँ। 

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