तुम्हारे साथ समय ठहर जाए

01-11-2025

तुम्हारे साथ समय ठहर जाए

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 287, नवम्बर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

थोड़ा और पास आओ, 
इतना कि शब्दों की आवश्यकता समाप्त हो जाए। 
जहाँ साँसें ही संवाद बन जाएँ, 
और मौन कविता की सबसे गहरी पंक्ति। 
 
मेरे चारों ओर बाँहों का एक वृत्त बनाओ, 
जिसमें ब्रह्मांड की सारी उदासियाँ पिघल जाएँ। 
जहाँ धड़कनों की गति एक लय हो, 
और उस लय में हम दोनों का एक होना। 
 
थोड़ा और ठहरो, 
कि मेरी थकान तुम्हारे कंधे पर विश्राम पा ले, 
और तुम्हारा स्पर्श मेरे भीतर
नई चेतना का शंख फूँक दे। 
 
मैं चाहता हूँ वह क्षण, 
जब पहचानें विलीन हो जाएँ, 
तुम्हारे स्पर्श में मैं स्वयं को भूल जाऊँ, 
और मेरा अस्तित्व
तुम्हारी साँसों की सुगंध बन जाए। 
 
ना शब्द, ना प्रतिज्ञाएँ
केवल एक निःशब्द मिलन, 
जहाँ रूहें अपनी सीमाएँ भूल जाएँ। 
 
इतना पास आओ कि
मैं तुम्हें देख न सकूँ, 
केवल महसूस कर सकूँ
कि मैं अब ‘मैं’ नहीं रहा
तुम में ही विलीन हूँ, 
तुम्हारे ताप में, 
तुम्हारे मौन में, 
तुम्हारे भीतर की अनंत शान्ति में।

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