शिक्षण का वर्तमान परिदृश्य: चुनौतियाँ, अपेक्षाएँ और भावी दिशा
डॉ. सुशील कुमार शर्मा
भारत में शिक्षा, जिसे हमेशा से राष्ट्र निर्माण का आधार माना गया है, आज 21वीं सदी की नई चुनौतियों और अवसरों का सामना कर रही है। यह केवल अक्षर ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि व्यक्ति के चरित्र, नैतिक मूल्यों और समाज की चेतना को आकार देने का एक शक्तिशाली साधन है। इस परिदृश्य में, शिक्षक की भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण हो जाती है।
प्राथमिक शिक्षा की गुणवत्ता और संरचनात्मक अभाव
भारतीय संविधान के अनुसार, शिक्षा एक मौलिक अधिकार है, लेकिन गुणवत्तापूर्ण शिक्षा आज भी देश के कई हिस्सों में दूर का सपना बनी हुई है।
आधारभूत ढाँचे की कमी: यूनिसेफ और यूनेस्को जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के कई ग्रामीण और दूर-दराज़ के क्षेत्रों में स्थित प्राथमिक विद्यालयों में अभी भी पर्याप्त क्लासरूम और बैठने की व्यवस्था नहीं है। छात्रों को अक्सर खुले आसमान के नीचे या जर्जर इमारतों में पढ़ना पड़ता है। यह स्थिति न केवल सीखने के माहौल को बाधित करती है, बल्कि बच्चों की सुरक्षा पर भी सवाल खड़े करती है।
मूलभूत सुविधाओं का अभाव: स्वच्छ शौचालय, सुरक्षित पेयजल, बिजली और वेंटिलेशन जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी बच्चों के स्वास्थ्य और स्वच्छता पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। इसके कारण लड़कियाँ अक्सर स्कूल छोड़ने पर मजबूर होती हैं, जिससे शिक्षा के क्षेत्र में लैंगिक असमानता बढ़ती है।
तकनीकी संसाधनों की कमी: जहाँ शहरी क्षेत्रों के निजी विद्यालयों में स्मार्टबोर्ड, कंप्यूटर और इंटरनेट आधारित शिक्षण आम बात है, वहीं अधिकांश सरकारी विद्यालयों में आज भी पुरानी शिक्षण पद्धतियाँ ही प्रचलित हैं। समग्र शिक्षा अभियान के तहत ICT लैब्स और डिजिटल लर्निंग को बढ़ावा देने का प्रयास किया गया है, लेकिन इन संसाधनों का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करना अभी भी एक बड़ी चुनौती है।
नियुक्ति प्रक्रिया, मानसिकता और संसाधन संबंधी चुनौतियाँ
भारत में एक शिक्षक बनने की प्रक्रिया बेहद जटिल और लंबी है, जो योग्य उम्मीदवारों को हतोत्साहित करती है।
नियुक्ति की जटिलता: शिक्षक भर्ती परीक्षाओं में लाखों उम्मीदवार भाग लेते हैं, लेकिन भर्ती की प्रक्रिया में अक्सर वर्षों का समय लगता है। भर्ती में देरी और पारदर्शिता की कमी के कारण योग्य और उत्साही उम्मीदवार शिक्षण के बजाय अन्य करियर विकल्पों की ओर रुख़ करने लगते हैं। इससे शिक्षण पेशे में योग्य प्रतिभा की कमी होती है।
पुरानी मानसिकता: कई अनुभवी शिक्षक अभी भी रटने पर आधारित शिक्षा और परीक्षा में अच्छे अंक लाने पर ज़ोर देते हैं, जबकि NEP 2020 का उद्देश्य आलोचनात्मक सोच, रचनात्मकता और व्यावहारिक ज्ञान पर आधारित शिक्षा प्रदान करना है। इस पुरानी मानसिकता को बदलना एक बड़ा सामाजिक और शैक्षणिक कार्य है, जिसके लिए निरंतर प्रशिक्षण और सकारात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
बड़े क्लासरूम और सीमित संसाधन: भारत में प्राथमिक स्तर पर शिक्षक-छात्र अनुपात अक्सर असंतुलित होता है। आदर्श अनुपात 1:20 की तुलना में यह कई जगह 1:40 से भी अधिक होता है। इस स्थिति में, एक शिक्षक के लिए हर छात्र पर व्यक्तिगत ध्यान देना और उसकी समस्याओं को समझना लगभग असंभव हो जाता है।
समाज की अपेक्षाएँ और शिक्षकों पर गैर-शैक्षणिक बोझ
भारतीय समाज में शिक्षक को हमेशा एक ‘आदर्श’ और ‘गुरु’ के रूप में देखा जाता है। समाज उनसे अपेक्षा करता है कि वे हर बच्चे के भविष्य को सँवारें, लेकिन उन्हें अपने मूल कार्य के अलावा कई अतिरिक्त ज़िम्मेदारियाँ भी सौंपी जाती हैं।
गैर-शैक्षणिक कार्यों का बोझ: एक सर्वेक्षण के अनुसार, एक शिक्षक अपने शिक्षण कार्य के अलावा चुनाव ड्यूटी, जनगणना, पल्स पोलियो अभियान और विभिन्न सरकारी योजनाओं के सर्वेक्षण जैसे लगभग 27 प्रकार के गैर-शैक्षणिक कार्य करता है। इन कार्यों में शिक्षक का बहुमूल्य समय और ऊर्जा ख़र्च होती है, जिससे उनका ध्यान शिक्षण कार्य से हट जाता है।
मनोबल पर प्रभाव: जब एक शिक्षक को समाज द्वारा दिए गए आदर्श और यथार्थ के बीच का अंतर महसूस होता है, तो उसका मनोबल गिरता है। वह अपनी प्राथमिक भूमिका, यानी बच्चों को पढ़ाने, पर पूरा ध्यान नहीं दे पाता। यह स्थिति न केवल शिक्षकों के लिए निराशाजनक है, बल्कि इसका सीधा असर बच्चों की शिक्षा पर भी पड़ता है।
भविष्य की शिक्षा का रोडमैप और शिक्षक की भूमिका
भविष्य की शिक्षा को किताबों और परीक्षाओं से आगे बढ़कर नवीनता, तकनीक और मानवीय मूल्यों से जोड़ना होगा। इस रोडमैप में शिक्षक की भूमिका सबसे महत्त्वपूर्ण है।
डिजिटल और आधुनिक शिक्षण पद्धतियाँ: DIKSHA Portal, SWAYAM, और PM eVidya जैसे डिजिटल प्लेटफ़ॉर्मों ने शिक्षा को घर-घर पहुँचाने का मार्ग प्रशस्त किया है। शिक्षकों को इन प्लेटफार्मों का उपयोग करने के लिए व्यापक और व्यावहारिक प्रशिक्षण देना आवश्यक है, ताकि वे ऑनलाइन कंटेंट को प्रभावी ढंग से कक्षा में लागू कर सकें।
E अटेंडेंस-ई-अटेंडेंस एक आधुनिक और प्रभावी प्रणाली है जो शिक्षा में पारदर्शिता और जवाबदेही को बढ़ा सकती है। यह केवल एक तकनीकी उपकरण नहीं है, बल्कि यह शिक्षा प्रणाली में एक बड़ा बदलाव लाने की क्षमता रखता है। लेकिन, इसके सफल क्रियान्वयन के लिए सरकार को शिक्षकों के डर और चिंताओं को समझना होगा। उन्हें पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षण और सम्मान देना होगा। जब शिक्षक महसूस करेंगे कि यह प्रणाली उनके हित में है और यह उनके काम को आसान बना रही है, तो वे स्वयं इसका स्वागत करेंगे। एक सफल डिजिटल क्रांति तभी सम्भव है जब हम अपने शिक्षकों को इस बदलाव का हिस्सा बनाएँ, न कि केवल एक पर्यवेक्षण का हिस्सा।
गैर-शैक्षणिक कार्यों से मुक्ति: शिक्षकों को उनके मुख्य कार्य पर केंद्रित करने के लिए सरकार को एक स्पष्ट नीति बनानी चाहिए। चुनाव और जनगणना जैसे कार्यों के लिए अलग से प्रशासनिक स्टाफ़ की नियुक्ति की जानी चाहिए।
निरंतर पेशेवर विकास: NEP 2020 के अनुसार, प्रत्येक शिक्षक को हर साल कम से कम 50 घंटे का पेशेवर प्रशिक्षण प्राप्त करना अनिवार्य है। इस प्रशिक्षण में केवल तकनीक ही नहीं, बल्कि बाल मनोविज्ञान, भावनात्मक बुद्धिमत्ता और समावेशी शिक्षा जैसे विषय भी शामिल होने चाहिए।
शिक्षक = मार्गदर्शक परामर्शदाता और प्रेरक: भविष्य में शिक्षक की भूमिका केवल जानकारी देने तक सीमित नहीं होगी, बल्कि वह एक मार्गदर्शक, परामर्शदाता और प्रेरक होगा। उसे बच्चों में जीवन कौशल, नैतिक मूल्यों और सामाजिक ज़िम्मेदारी को विकसित करना होगा।
समावेशी और बहुभाषीय शिक्षा: शिक्षकों को विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए समावेशी शिक्षा प्रदान करने का प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। इसके अलावा, स्थानीय भाषाओं में शिक्षा (जैसा कि NEP 2020 में सुझाया गया है) को बढ़ावा देने के लिए शिक्षकों को बहुभाषीय शिक्षण पद्धतियों का उपयोग करना सिखाया जाना चाहिए।
शिक्षा का असली उद्देश्य केवल डिग्री प्राप्त करना नहीं, बल्कि ऐसे नागरिक तैयार करना है जो संवेदनशील, रचनात्मक और ज़िम्मेदार हों। यह तभी सम्भव है जब हम अपने शिक्षकों को सशक्त बनाएँगे, उन्हें अनावश्यक बोझ से मुक्त करेंगे और उन्हें वह सम्मान देंगे जिसके वे वास्तव में हक़दार हैं।
NEP 2020, डिजिटल इंडिया मिशन और समग्र शिक्षा अभियान जैसे प्रयास सही दिशा में एक महत्त्वपूर्ण क़दम हैं। योजनाओं को धरातल पर सफल बनाने के लिए इस वर्ष शिक्षक दिवस पर हमें शिक्षक संवर्ग में यह विश्वास भरना होगा कि हम शिक्षक को केवल एक कर्मचारी नहीं, बल्कि राष्ट्र निर्माता के रूप में देखना चाहते हैं।
भारत का भविष्य उसकी कक्षाओं में गढ़ा जा रहा है। यदि हम अपने शिक्षकों को वह सम्मान और साधन प्रदान करेंगे, तो वे न केवल नई पीढ़ी को ज्ञानवान बनाएँगे, बल्कि उन्हें ऐसे नागरिक भी बनाएँगे जो विश्व पटल पर भारत की पहचान को नई ऊँचाइयों तक ले जाएँगे।
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- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुरु पूर्णिमा पर गीत
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- धरती बोल रही है
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नव अनुबंध
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- महावीर पथ
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- मज़दूर दिवस पर गीत
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- श्रावण
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
- कविता - क्षणिका
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- बाल साहित्य कविता
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- अरे गिलहरी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - ठंड
- गर्मी की छुट्टी
- चिड़िया का दुःख
- चिड़िया की हिम्मत
- पतंग
- पानी बचाओ
- बादल भैया
- बाल कविताएँ – 001 : डॉ. सुशील कुमार शर्मा
- बेचारा गोलू
- मुनमुन गिलहरी
- मैं कुछ ख़ास बनूँगा
- मैं ही तो हूँ— तुम्हारे भीतर
- लोरी
- लौकी और कद्दू की लड़ाई
- हम हैं छोटे बच्चे
- होली चलो मनायें
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