प्रेम

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)


(दोहे)
 
जब से देखा है तुम्हें
मन है बहुत अधीर
बहुत संभाला हृदय को
रखे न मन ये धीर।
 
इतनी सुंदर तुम प्रिये
जैसे फूल गुलाब
जी करता है अब तुम्हें
दिल में रख लूँ दाब।
 
हो पवित्र मन भावनी
जैसे गंगा नीर।
इतनी चंचल सोख तुम
मन हो उठे अधीर।
 
काश मुझे तुम मिल सको
मन में है ये आस।
जीवन सुखद सुगंधमय
गर तुम मेरे पास।
 
प्रेम भरी पाती लिखी
ये है दिल का हाल।
तेरे गुण गाते रहे
हम तो पूरे साल।
 
तोड़ मौन को तुम करो
अपने दिल का दान।
देकर मुझको हॄदय तुम
रखो प्रेम का मान।
 
हर दम दिल में मैं रखूँ
देकर मन सम्मान।
अब तो कर दो तुम मुझे
अपने दिल का दान।

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