माँ कात्यायनी: भगवती का षष्ठम प्राकट्य रूप

01-10-2025

माँ कात्यायनी: भगवती का षष्ठम प्राकट्य रूप

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

शारदीय नवरात्र की गहन साधना में
छठे दिन प्रकट होती हैं माँ कात्यायनी,
ऋषि कात्यायन की तपस्या से जन्मी,
दैत्य संहारिणी,
अद्भुत तेज से दीप्त,
धर्म और विजय की प्रतीक।
 
उनकी छवि
सिंह पर आरूढ़,
चार भुजाओं में शस्त्र और वरद मुद्रा से सुशोभित,
एक ओर करुणा, दूसरी ओर प्रचंड शक्ति
युगों से यही संदेश देती है
कि मातृत्व केवल वात्सल्य नहीं,
सत्य की रक्षा का संकल्प भी है।
 
माँ कात्यायनी की आराधना में
भक्त सजाते हैं भोग,
शहद और मधुर फल,
क्योंकि उनकी उपासना
जीवन की मधुरता और 
समरसता का आह्वान है।
भक्त जब माँ को पुष्प अर्पित करते हैं
तो वे केवल श्रद्धा ही नहीं,
अपना साहस और समर्पण भी चढ़ा देते हैं।
 
आध्यात्मिक रूप से
माँ कात्यायनी हैं
आत्मबल की गहन साधना।
वे वह शक्ति हैं
जो साधक को संशयों से मुक्त करती हैं,
हृदय में निडरता का प्रकाश भरती हैं,
और चेतना को धर्ममार्ग की ओर मोड़ती हैं।
उनकी उपासना में
साधक को केवल विजय नहीं मिलती,
बल्कि मन का संतुलन और
अन्याय का सामना करने का
संकल्प मिलता है।
 
माँ के व्रत से
भय का नाश, शौर्य की प्राप्ति,
और जीवन के संघर्षों में 
विजय का आशीष मिलता है।
कहा जाता है कि
जिन्होंने श्रद्धा से माँ कात्यायनी का ध्यान किया,
वे जीवन में कभी अन्याय के सामने झुके नहीं।
उनकी साधना से
मनुष्य को अदृश्य कवच प्राप्त होता है,
जो न केवल शत्रु से रक्षा करता है
बल्कि भीतर के संशयों को भी नष्ट करता है।
 
वर्तमान समय में
जब अधर्म और असत्य
नवीन रूप धारण कर खड़े होते हैं,
माँ कात्यायनी की उपासना
और भी प्रासंगिक हो उठती है।
आज जब मनुष्य
भय, छल और अन्याय से घिरा है,
तब माँ का व्रत
हमें सिखाता है
साहस ही धर्म है,
अन्याय के सामने मौन ही पाप है।
 
माँ कात्यायनी
आज भी वही दिव्य ऊर्जा हैं
जो स्त्री के आत्मबल को जगाती हैं,
युवाओं के भीतर विवेक का दीप जलाती हैं,
और संसार को
न्याय और करुणा से संतुलित करती हैं।
 
हे माँ कात्यायनी,
आपके चरणों में यह प्रार्थना
हमारे भीतर वह निर्भीकता जागृत कर
जिससे हम सत्य के लिए अडिग खड़े हों।
आपकी कृपा से
हम जीवन के युद्ध में
केवल विजेता ही नहीं,
बल्कि धर्मरक्षक भी बन सकें।

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