संग्राम

15-05-2022

संग्राम

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 205, मई द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

छिड़ा महा संग्राम है, आतातायी रूस। 
जला दिया यूक्रेन को, जैसे छप्पर फूस। 
 
जीवन बस संग्राम है, घर हो या संसार। 
युद्ध कभी हम जीतते, कुछ में मिलती हार। 
 
हो विरुद्ध संसार तो, नहीं कठिन संग्राम। 
अपनों से जब हम लड़ें, कितना मुश्किल काम। 
 
बहुत कठिन है जीतना, मन अंतस संग्राम। 
अपनों से सब हारना, बड़ा सुखद आयाम। 
 
ख़ुद से ख़ुद का हारना, ख़ुद से ख़ुद पर जीत। 
जब अंदर संग्राम हो, मन होता भयभीत। 
 
मन में साहस बाँध लो, उम्र बहुत है अल्प। 
युद्ध सभी लड़ने पड़ें, इनका नहीं विकल्प। 

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