अविचल प्रताप: भारत की आत्मचेतना के प्रहरी
डॉ. सुशील कुमार शर्मा
(महाराणा प्रताप के व्यक्तित्व का विश्लेषण करता हुआ आलेख)
भारतवर्ष के इतिहास में अनेक ऐसे नायक हुए हैं जिन्होंने केवल अपने समय को ही नहीं, आने वाले युगों की चेतना को भी दिशा दी है। ऐसे ही महान योद्धा और राजधर्म के अप्रतिम प्रतीक थे महाराणा प्रताप। वे केवल मेवाड़ की सीमाओं तक सीमित कोई राजा नहीं थे, वे भारत की आत्मा में रचे-बसे एक स्वाधीनता-प्रतीक थे, जिनके जीवन, संघर्ष और सिद्धांतों ने राष्ट्रचेतना को प्रज्वलित किया।
आज जब भारत आत्मनिर्भरता, आत्मगौरव और सांस्कृतिक पुनरुत्थान की ओर अग्रसर है, तब महाराणा प्रताप की विरासत न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि मार्गदर्शक भी।
महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था। वे मेवाड़ के राजा उदयसिंह के ज्येष्ठ पुत्र थे। बाल्यकाल से ही उन्होंने युद्धकला, घुड़सवारी, अस्त्र-शस्त्र और आत्मसम्मान की शिक्षा प्राप्त की। वे सिसोदिया वंश के उत्तराधिकारी थे— एक ऐसा वंश जो कभी भी विदेशी शासन के समक्ष नहीं झुका।
प्रारंभ से ही प्रताप ने स्पष्ट कर दिया था कि उनके लिए राज्य या सुविधाएँ महत्त्वपूर्ण नहीं, अपितु स्वराज और स्वाभिमान सर्वोपरि हैं। वे उन राजाओं में से थे जिन्होंने मुग़ल बादशाह अकबर की अधीनता अस्वीकार कर दी। जब अधिकांश राजवंश अकबर के दरबार में झुक चुके थे, तब महाराणा प्रताप ने अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए अपना सब कुछ दाँव पर लगा दिया।
18 जून 1576 को हल्दीघाटी की प्रसिद्ध लड़ाई लड़ी गई, जहाँ महाराणा प्रताप की सेना ने मुग़लों की विशाल और सुसज्जित सेना से लोहा लिया। भले ही यह युद्ध निर्णायक रूप से उनके पक्ष में नहीं गया, परन्तु यह प्रताप की वीरता, रणनीति और आत्मबल का प्रतीक बन गया।
इस युद्ध में प्रताप का प्रिय घोड़ा चेतक घायल होकर भी प्रताप को युद्धभूमि से निकाल लाया— यह केवल एक योद्धा और उसके पशु के बीच का सम्बन्ध नहीं, बल्कि स्वराज के लिए बलिदान की भावना का प्रतीक बन गया।
हल्दीघाटी के बाद भी प्रताप ने आत्मसमर्पण नहीं किया। जंगलों में, पर्वतों पर, छोटी-छोटी गुफाओं में रहकर वे छापामार युद्ध करते रहे। उन्होंने पुनः मेवाड़ के अधिकांश भागों को स्वतंत्र कराया— यह इतिहास की विलक्षण घटनाओं में से एक है।
जब अन्य राजा अकबर के समक्ष झुककर दरबारी सम्मान, धन और सुख सुविधाएँ भोग रहे थे, तब महाराणा प्रताप अपने परिवार सहित जंगलों में रहे। उनकी पत्नी और बच्चों को बाँस के बर्तनों में भोजन करना पड़ता था, अनेक बार अन्न के अभाव में उपवास करना पड़ता था, परन्तु उन्होंने कभी अपने सम्मान का सौदा नहीं किया।
महाराणा प्रताप का यह त्याग आज के भारत को आत्मनिर्भरता, संघर्ष और अस्मिता की शिक्षा देता है। वे बताते हैं कि राष्ट्र की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान के लिए व्यक्तिगत सुख का त्याग आवश्यक है।
आज जब भारत वैश्विक मंच पर अपनी पहचान बना रहा है, तब महाराणा प्रताप के सिद्धांत और अधिक प्रासंगिक हो गए हैं:
प्रताप का जीवन इस बात का प्रमाण है कि कोई भी राष्ट्र तब तक सच्चे अर्थों में स्वतंत्र नहीं हो सकता जब तक उसका नेतृत्व आत्मगौरव से प्रेरित न हो। आज “वोकल फ़ॉर लोकल”, “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” जैसी पहलें प्रताप की स्वराज अवधारणा की ही आधुनिक अभिव्यक्तियाँ हैं।
महाराणा प्रताप ने कभी व्यक्तिगत शत्रुता नहीं पाली। उन्होंने कभी अकबर के प्रति अनादर का भाव नहीं रखा, परन्तु उनके अधीन रहने की बात स्वीकार नहीं की। यह हमें सिखाता है कि विचारों की असहमति गरिमा और सिद्धांतों के साथ हो सकती है।
प्रताप का जीवन नीति और धर्म का अद्भुत संगम था। उन्होंने कभी अन्याय, प्रजा पर अत्याचार या लोभ के मार्ग को नहीं अपनाया। भारत के लिए आज ऐसा नैतिक नेतृत्व अत्यंत आवश्यक है जो सत्ता को सेवा समझे।
प्रताप केवल युद्धकौशल के लिए नहीं, सांस्कृतिक आत्मगौरव के लिए भी स्मरणीय हैं। उन्होंने मेवाड़ की परंपराओं, कला, और स्थापत्य को सुरक्षित रखा। उनका जीवन बताता है कि स्वाधीनता केवल भू-भाग की रक्षा नहीं, बल्कि सांस्कृतिक आत्मा की रक्षा भी है।
वे राष्ट्रवाद की उस भावना के प्रतीक हैं जो किसी संप्रदाय, भाषा या जाति से नहीं, बल्कि राष्ट्र की साझा आत्मा से संचालित होती है।
इतिहास में कई बार महाराणा प्रताप की तुलना राजा मान सिंह या अकबर से की जाती है, परन्तु यह तुलना केवल सैन्य दृष्टिकोण से की जाती है। वास्तव में, प्रताप का स्थान इसलिए विशेष है क्योंकि उन्होंने बल से नहीं, बलिदान से इतिहास रचा।
राजनीति की चतुर चालों के सामने प्रताप का नैतिक आग्रह खड़ा था। उन्होंने कभी राजपाट की क़ुर्बानी देने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई। उनका जीवन इस सत्य को उद्घाटित करता है कि नैतिक शक्ति सैन्य शक्ति से बड़ी होती है।
आज जब भारत विविध चुनौतियों से जूझ रहा है जैसे कि सांस्कृतिक अपमूल्यन, उपभोक्तावाद, नैतिक क्षरण तब महाराणा प्रताप के जीवन के प्रमुख पक्ष हमें दिशा देते हैं:
हमें संस्कृति और परंपरा का सम्मान करना चाहिए हमारी जड़ें हमारी शक्ति हैं।
प्रताप का जीवन हमें संदेश देता है कि राजनीति में नैतिकता की आवश्यकता है सत्ता सेवा का माध्यम होनी चाहिए।
साथ ही शान्ति में भी आत्मबल होना चाहिए समर्पण नहीं, संवाद के साथ खड़ा होना ज़रूरी है।
प्रताप का जीवन युवाओं में राष्ट्रप्रेम की चेतना जागृत करता है प्रताप केवल इतिहास नहीं, प्रेरणा हैं।
भारत के पाठ्यक्रमों में महाराणा प्रताप को केवल एक योद्धा या हल्दीघाटी के युद्ध के संदर्भ में पढ़ाया जाता है। आवश्यकता है कि उन्हें एक राष्ट्रनिर्माता, सांस्कृतिक संरक्षक और आत्मगौरव के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत किया जाए। उनके जीवन से नेतृत्व, नैतिकता, परंपरा और आत्मनिर्भरता के अनेक पाठ लिए जा सकते हैं।
महाराणा प्रताप भारतीय चेतना के उस स्तंभ का नाम है जिसने ग़ुलामी की गहन अंधकार में स्वतंत्रता का दीप प्रज्वलित रखा। उनका जीवन इतिहास के पृष्ठों तक सीमित नहीं, अपितु भारत के भविष्य की प्रेरक धरोहर है।
आज का भारत यदि आत्मनिर्भर, समरस और सांस्कृतिक रूप से सशक्त बनना चाहता है, तो महाराणा प्रताप के सिद्धांतों को केवल स्मरण नहीं, जीवन में धारण करना होगा।
महाराणा प्रताप प्रतिकार नहीं, प्रतीकार हैं वे उस भावना के प्रतिनिधि हैं जो कहती है:
“झुकना नहीं है, चाहे टूट जाना पड़े; क्योंकि राष्ट्र की अस्मिता से बड़ा कोई स्वार्थ नहीं।”
0 टिप्पणियाँ
कृपया टिप्पणी दें
लेखक की अन्य कृतियाँ
- सामाजिक आलेख
-
- अध्यात्म और विज्ञान के अंतरंग सम्बन्ध
- अबला निर्मला सबला
- आप अभिमानी हैं या स्वाभिमानी ख़ुद को परखिये
- करवा चौथ बनाम सुखी गृहस्थी
- गाँधी के सपनों से कितना दूर कितना पास भारत
- गाय की दुर्दशा: एक सामूहिक अपराध की चुप्पी
- गौरैया तुम लौट आओ
- जीवन संघर्षों में खिलता अंतर्मन
- नकारात्मक विचारों को अस्वीकृत करें
- नब्बे प्रतिशत बनाम पचास प्रतिशत
- नव वर्ष की चुनौतियाँ एवम् साहित्य के दायित्व
- पर्यावरणीय चिंतन
- बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर: समता, न्याय और नवजागरण के प्रतीक
- भारतीय जीवन मूल्य
- भारतीय संस्कृति में मूल्यों का ह्रास क्यों
- माँ नर्मदा की करुण पुकार
- मानव मन का सर्वश्रेष्ठ उल्लास है होली
- मानवीय संवेदनाएँ वर्तमान सन्दर्भ में
- वाह रे पर्यावरण दिवस!
- विश्व पर्यावरण दिवस – वर्तमान स्थितियाँ और हम
- वेदों में नारी की भूमिका
- वेलेंटाइन-डे और भारतीय संदर्भ
- व्यक्तित्व व आत्मविश्वास
- शिक्षक पेशा नहीं मिशन है
- संकट की घड़ी में हमारे कर्तव्य
- सम्बन्धों का क्षरण: एक सामाजिक विमर्श
- हैलो मैं कोरोना बोल रहा हूँ
- कविता
-
- अधूरा सा
- अधूरी लिपि में लिखा प्रेम
- अनुत्तरित प्रश्न
- आकाशगंगा
- आस-किरण
- उड़ गयी गौरैया
- एक पेड़ का अंतिम वचन
- एक स्कूल
- एक स्त्री का नग्न होना
- ओ पारिजात
- ओमीक्रान
- ओशो ने कहा
- और बकस्वाहा बिक गया
- कबीर छंद – 001
- कभी तो मिलोगे
- कविता तुम कहाँ हो
- कविताएँ संस्कृतियों के आईने हैं
- कहने को अपने
- काल डमरू
- काश तुम समझ सको
- क्रिकेट बस क्रिकेट है जीवन नहीं
- गाँधी धीरे धीरे मर रहे हैं
- गाँधी मरा नहीं करते हैं
- गाँधीजी और लाल बहादुर
- गाडरवारा गौरव गान
- गोवर्धन
- चरित्रहीन
- चलो उठो बढ़ो
- चिर-प्रणय
- चुप क्यों हो
- छूट गए सब
- जब प्रेम उपजता है
- जय राम वीर
- जहाँ रहना हमें अनमोल
- जैसे
- ठण्ड
- तुम और मैं
- तुम जो हो
- तुमसे मिलकर
- तुम्हारी रूह में बसा हूँ मैं
- तुम्हारे जाने के बाद
- तुम—मेरी सबसे अनकही कविता
- तेरा घर या मेरा घर
- देखो होली आई
- नए वर्ष में
- नारी का प्यार
- पत्ते से बिछे लोग
- पीले अमलतास के नीचे— तुम्हारे लिए
- पुण्य सलिला माँ नर्मदे
- पुरुष का रोना निषिद्ध है
- पृथ्वी की अस्मिता
- प्रणम्य काशी
- प्रभु प्रार्थना
- प्रिय तुम आना हम खेलेंगे होली
- प्रेम का प्रतिदान कर दो
- प्रेम में पूर्णिमा नहीं होती
- फागुन अब मुझे नहीं रिझाता है
- बस तू ही तू
- बसंत बहार
- बहुत कुछ सीखना है
- बोलती कविता
- बोलती कविता
- ब्राह्मण कौन है
- ब्राह्मणत्व की ज्योति
- बड़ा कठिन है आशुतोष सा हो जाना
- भीम शिला
- मत टूटना तुम
- मन का पौधा
- मिट्टी का घड़ा
- मुझे कुछ कहना है
- मुझे लिखना ही होगा
- मृगतृष्णा
- मेरा मध्यप्रदेश
- मेरी चाहत
- मेरी बिटिया
- मेरी भूमिका
- मेरे भैया
- मेरे लिए एक कविता
- मैं अब भी प्रतीक्षा में हूँ
- मैं अब भी वही हूँ . . .
- मैं तुम ही तो हूँ
- मैं तुम्हें प्यार करता हूँ
- मैं पर्यावरण बोल रहा हूँ . . .
- मैं मिलूँगा तुम्हें
- मैं लड़ूँगा
- मैं वो नहीं
- मौन तुम्हारा
- यज्ञ
- ये चाँद
- रक्तदान
- रक्षा बंधन
- रिश्ते
- वर्षा ऋतु
- वर्षा
- वसंत के हस्ताक्षर
- वो तेरी गली
- शक्कर के दाने
- शब्दों को कुछ कहने दो
- शिव आपको प्रणाम है
- शिव संकल्प
- शुभ्र चाँदनी सी लगती हो
- संघर्ष का सूर्योदय
- सखि बसंत में तो आ जाते
- सत्य के नज़दीक
- सिंदूर का प्रतिशोध
- सीता का संत्रास
- सुनलो ओ रामा
- सुनो प्रह्लाद
- स्वप्न से तुम
- हर बार लिखूँगा
- हे केदारनाथ
- हे छट मैया
- हे क़लमकार
- लघुकथा
-
- अंतर
- अनैतिक प्रेम
- अपनी जरें
- आँखों का तारा
- आओ तुम्हें चाँद से मिलाएँ
- उजाले की तलाश
- उसका प्यार
- एक बूँद प्यास
- काहे को भेजी परदेश बाबुल
- कोई हमारी भी सुनेगा
- गाय की रोटी
- गाय ‘पालन की परिभाषा’!
- डर और आत्म विश्वास
- तहस-नहस
- दूसरी माँ
- नारी ‘तुम मत रुको’!
- पति का बटुआ
- पत्नी
- पाँच लघु कथाएँ
- पौधरोपण
- बेटी की गुल्लक
- माँ का ब्लैकबोर्ड
- माँ ‘छाया की तरह’!
- मातृभाषा
- माया
- मुझे छोड़ कर मत जाओ
- मुझे ‘बहने दो’!
- म्यूज़िक कंसर्ट
- रिश्ते (डॉ. सुशील कुमार शर्मा)
- रौब
- शर्बत
- शिक्षक सम्मान
- शुद्धि की प्रतीक्षा
- शेष शुभ
- हर चीज़ फ़्री
- हिन्दी इज़ द मोस्ट वैलुएबल लैंग्वेज
- ग़ुलाम
- ज़िन्दगी और बंदगी
- फ़र्ज़
- कविता-मुक्तक
-
- अक्षय तृतीया
- कबीर पर कुंडलियाँ
- कुण्डलिया - अटल बिहारी बाजपेयी को सादर शब्दांजलि
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - अपना जीवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - आशा, संकल्प
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - इतराना, देशप्रेम
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - काशी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गंगा
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गणपति वंदना
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गीता
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - गुरु
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गणेश
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जय गोवर्धन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - जलेबी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - झंडा वंदन, नमन शहीदी आन, जय भारत
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नया संसद भवन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नर्स दिवस पर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - नवसंवत्सर
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पर्यावरण
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पहली फुहार
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - पेंशन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बचपन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बम बम भोले
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - बुझ गया रंग
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - भटकाव
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मकर संक्रांति
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मतदान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - मानस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - विद्या, शिक्षक
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - शुभ धनतेरस
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - सावन
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - स्तनपान
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - हिन्दी दिवस विशेष
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - होली
- कुण्डलिया - सीखना
- कुण्डलिया – कोशिश
- कुण्डलिया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – यूक्रेन युद्ध
- कुण्डलिया – परशुराम
- कुण्डलिया – संयम
- कुण्डलियाँ स्वतंत्रता दिवस पर
- गणतंत्र दिवस
- दुर्मिल सवैया – डॉ. सुशील कुमार शर्मा – 001
- प्रदूषण और पर्यावरण चेतना
- शिव वंदना
- सायली छंद - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - चाँद
- सोशल मीडिया और युवावर्ग
- होली पर कुण्डलिया
- हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
- दोहे
-
- अटल बिहारी पर दोहे
- आदिवासी दिवस पर दोहे
- कबीर पर दोहे
- क्षण भंगुर जीवन
- गणपति
- गुरु पर दोहे – 01
- गुरु पर दोहे – 02
- गोविन्द गीत— 001 प्रथमो अध्याय
- गोविन्द गीत— 002 द्वितीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 003 तृतीय अध्याय
- गोविन्द गीत— 004 चतुर्थ अध्याय
- गोविन्द गीत— 005 पंचम अध्याय
- गोविन्द गीत— 006 षष्टम अध्याय
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 1
- गोविन्द गीत— 007 सप्तम अध्याय–भाग 2
- चंद्रशेखर आज़ाद
- जल है तो कल है
- जीवन
- टेसू
- नम्रता पर दोहे
- नरसिंह अवतरण दिवस पर दोहे
- नववर्ष
- नूतन वर्ष
- प्रभु परशुराम पर दोहे
- प्रेम
- प्रेमचंद पर दोहे
- फगुनिया दोहे
- बचपन पर दोहे
- बस्ता
- बाबा साहब अम्बेडकर जयंती पर कुछ दोहे
- बुद्ध
- बेटी पर दोहे
- मित्रता पर दोहे
- मैं और स्व में अंतर
- रक्षाबंधन पर दोहे
- राम और रावण
- वट सावित्री व्रत पर दोहे
- विवेक
- शिक्षक पर दोहे
- शिक्षक पर दोहे - 2022
- श्रम की रोटी पर दोहे
- संग्राम
- सूरज को आना होगा
- स्वतंत्रता दिवस पर दोहे
- हमारे कृष्ण
- होली
- सांस्कृतिक आलेख
- ऐतिहासिक
- बाल साहित्य कविता
-
- अरे गिलहरी
- कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - ठंड
- गर्मी की छुट्टी
- चिड़िया का दुःख
- चिड़िया की हिम्मत
- पतंग
- पानी बचाओ
- बादल भैया
- बाल कविताएँ – 001 : डॉ. सुशील कुमार शर्मा
- बेचारा गोलू
- मुनमुन गिलहरी
- मैं कुछ ख़ास बनूँगा
- मैं ही तो हूँ— तुम्हारे भीतर
- लोरी
- लौकी और कद्दू की लड़ाई
- हम हैं छोटे बच्चे
- होली चलो मनायें
- नाटक
- साहित्यिक आलेख
-
- आज की हिन्दी कहानियों में सामाजिक चित्रण
- गीत सृष्टि शाश्वत है
- डिजिटल युग में कविता की प्रासंगिकता और पाठक की भूमिका
- पुरुष सत्तात्मक समाज में स्त्री विमर्श
- प्रवासी हिंदी साहित्य लेखन
- प्रेमचंद का साहित्य – जीवन का अध्यात्म
- बुन्देल खंड में विवाह के गारी गीत
- भारत में लोक साहित्य का उद्भव और विकास
- मध्यकालीन एवं आधुनिक काव्य
- रामायण में स्त्री पात्र
- वर्तमान में साहित्यकारों के समक्ष चुनौतियाँ
- समाज और मीडिया में साहित्य का स्थान
- समावेशी भाषा के रूप में हिन्दी
- साहित्य में प्रेम के विविध स्वरूप
- साहित्य में विज्ञान लेखन
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी भाषा की उत्पत्ति एवं विकास एवं अन्य भाषाओं का प्रभाव
- हिंदी साहित्य में प्रेम की अभिव्यंजना
- रेखाचित्र
- चिन्तन
- काम की बात
- गीत-नवगीत
-
- अखिल विश्व के स्वामी राम
- अच्युत माधव
- अनुभूति
- अब कहाँ प्यारे परिंदे
- अब का सावन
- अब नया संवाद लिखना
- अब वसंत भी जाने क्यों
- अबके बरस मैं कैसे आऊँ
- आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
- आज से विस्मृत किया सब
- इस बार की होली में
- उठो उठो तुम हे रणचंडी
- उर में जो है
- कि बस तुम मेरी हो
- कृष्ण मुझे अपना लो
- कृष्ण सुमंगल गान हैं
- गमलों में है हरियाली
- गर इंसान नहीं माना तो
- गुलशन उजड़ गया
- गोपी गीत
- घर घर फहरे आज तिरंगा
- चला गया दिसंबर
- चलो होली मनाएँ
- चढ़ा प्रेम का रंग सभी पर
- ज्योति शिखा सी
- झरता सावन
- टेसू की फाग
- तुम तुम रहे
- तुम मुक्ति का श्वास हो
- दिन भर बोई धूप को
- धरती बोल रही है
- नया कलेंडर
- नया वर्ष
- नव अनुबंध
- नववर्ष
- फागुन ने कहा
- फूला हरसिंगार
- बहिन काश मेरी भी होती
- बेटी घर की बगिया
- बोन्साई वट हुए अब
- भरे हैं श्मशान
- मतदाता जागरूकता पर गीत
- मन का नाप
- मन को छलते
- मन गीत
- मन बातें
- मन वसंत
- मन संकल्पों से भर लें
- महावीर पथ
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 001
- मैं दिनकर का वंशज हूँ – 002
- मौन गीत फागुन के
- मज़दूर दिवस पर गीत
- यूक्रेन युद्ध
- वयं राष्ट्र
- वसंत पर गीत
- वासंती दिन आए
- विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर
- शस्य श्यामला भारत भूमि
- शस्य श्यामली भारत माता
- शिव
- सत्य का संदर्भ
- सुख-दुख सब आने जाने हैं
- सुख–दुख
- सूना पल
- सूरज की दुश्वारियाँ
- सूरज को आना होगा
- स्वागत है नववर्ष तुम्हारा
- हर हर गंगे
- हिल गया है मन
- ख़ुद से मुलाक़ात
- ख़ुशियों की दीवाली हो
- कहानी
- काव्य नाटक
- कविता - हाइकु
- यात्रा वृत्तांत
- हाइबुन
- पुस्तक समीक्षा
- कविता - क्षणिका
- हास्य-व्यंग्य कविता
- गीतिका
- अनूदित कविता
- किशोर साहित्य कविता
- एकांकी
- स्मृति लेख
- ग़ज़ल
- बाल साहित्य लघुकथा
- व्यक्ति चित्र
- सिनेमा और साहित्य
- किशोर साहित्य नाटक
- ललित निबन्ध
- विडियो
- ऑडियो
-