जहाँ रहना हमें अनमोल

01-02-2022

जहाँ रहना हमें अनमोल

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 198, फरवरी प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

जहाँ न बोलना हमको
वहाँ हम बोल जाते हैं। 
जहाँ रहना हमें ठंडा
वहाँ हम खौल जाते हैं। 
 
जहाँ सीधा हमें रहना
अकड़ अपनी दिखाते हम। 
जहाँ हो सीखना हमको
वहाँ ख़ुद ही सिखाते हम। 
 
जो दूजे की अगर हो बात
तिल भी ताड़ लगता है। 
लगे सब कुछ सही अपना
ये जंगल झाड़ लगता है। 
 
जो कहता मैं सही वो सब
तुम्हारी मैं नहीं सुनता। 
चले इस राह ये दुनिया
किसी को न कोई गुनता। 
 
सदा मैं ही रहूँ आगे
सदा मेरी ही बातें हों। 
सदा मुझसे ही दिन निकले
सदा मेरी ही रातें हों। 
 
नहीं ये भावना अच्छी
नहीं ये फ़लसफ़े अच्छे। 
चढ़े हो सत्य के घोड़े
पहन कर झूठ के कच्छे। 
 
लगा कर लम्ब चंदन हम
करें आध्यत्म की बातें। 
पढ़ें पोथी जड़ें भाषण
करें अपनों से हम घातें। 
 
लिखीं हैं चार ठो कविता
नक़ल कर कर के लाते हैं। 
बकें अश्लील मंचों पर
मगर दिनकर कहाते हैं। 
 
जहाँ रहना हमें अनमोल
वहाँ सब तौल आते हैं। 
जहाँ रहना हमें ठंडा
वहाँ हम खौल जाते हैं। 

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