फ़र्ज़

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 201, मार्च द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

“हमें अपने देश के लिए लड़ना है चाहे मुझे कोई भी क़ुर्बानी क्यों न देनी पड़े,” सर्जेई की आँखें शून्य में कुछ ढूँढ़ रहीं थीं। 

“हाँ सर्जेई हमें युद्ध में जाना ही होगा आज हमारे देश को हमारी ज़रूरत है,” सर्जेई की पत्नी ने दृढ़ स्वर में कहा। 

“पर अंकल आप दोनों चले जायेंगें फिर आपके ये छोटे-छोटे बच्चे, इनका क्या होगा?” सुनंदा ने सर्जेई को प्रश्नवाचक दृष्टि से देखा। 

“मुझे नहीं मालूम इनका क्या होगा? ये इस भीषण युद्ध में मारे जाएँगे या बच जाएँगे ये इनकी क़िस्मत,” सर्जेई की आँखों में आँसू थे। 

“सुनंदा तुम अपने देश चली जाओ अभी मौक़ा है इस युद्ध में कुछ भी हो सकता है तुम्हारे माता पिता तुम्हारे इंतज़ार में हैं,” सर्जेई ने प्यार से सुनंदा के सिर पर हाथ फेरा। 

तभी पास में धमाका हुआ और सर्जेई के बच्चे डर कर अपनी माँ से चिपक गए। 

“सुनंदा तुम इसी वक़्त यहाँ से निकल जाओ शत्रु ने आक्रमण कर दिया है,” सर्जेई ने सुनंदा से कहा। 

“अंकल जब मैं यहाँ यूक्रेन में मेडिकल की पढ़ाई के लिए आयी थी तब मुझे बहुत डर लग रहा था उस समय आपने कहा था बेटा डरो मत हम तुम्हारे माँ बाप जैसे हैं आप दोनों ने मुझे कभी भी माँ बाप की कमी महसूस नहीं होने दी,” सुनंदा की आँखों में आँसू थे। 

“इस लिए तो कह रहा हूँ बेटे तुम यहाँ से सुरक्षित निकल जाओ, तुमको सुरक्षित भारत पहुँचाना मेरा फ़र्ज़ है। सर्जेई के चेहरे पर चिंता साफ़ झलक रही थी। 

“नहीं अंकल अब मैं कहीं नहीं जाउँगी आप दोनों अपने देश के लिए अपना फ़र्ज़ निबाहें, मैं आपके बच्चों की देखभाल कर अपना फ़र्ज़ निबाहूँगीं, हम भारतीय अपनी जान दे देते हैं पर अपना फ़र्ज़ कभी नहीं भूलते,” सुनंदा के स्वर में दृढ़निश्चय था। 

सर्जेई की आँखों में कृतज्ञता थी। 

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