मैं कुछ ख़ास बनूँगा

01-06-2025

मैं कुछ ख़ास बनूँगा

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 278, जून प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

आसमान को छू लूँगा मैं, 
तारों से मैं बात करूँगा। 
सपनों वाले आसमान पर
इंद्रधनुष के रंग भरूँगा। 
 
चिड़ियों की मैं चहक बनूँगा, 
फूलों जैसा मुस्काऊँ। 
आँधी आए या बारिश हो, 
सदा अडिग मैं रह पाऊँ। 
 
शिक्षा मेरी ताक़त होगी, 
ज्ञान से दीप जलाऊँगा
हर दिन नया नया कुछ सीखूँ
आसमान छू जाऊँगा। 
 
नन्हा हूँ पर मन में मेरे, 
सागर-सी गहराई है
साहस, सच्चाई की हरदम 
बजती मन शहनाई है। 
 
माँ कहती “तू दीपक बन जा
तम की रात मिटाना है”
पिता बोलते “तू पर्वत बन, 
आसमान को पाना है!”
 
मित्रों के संग हँसता खेलूँ
सबसे प्यार जताता हूँ। 
ग़लती कर लूँ, तो दिल से
'सॉरी' भी कह जाता हूँ। 
 
मैं छोटा हूँ, मगर हौसला
शेरों का मैं रखता हूँ, 
मैं अपने हर सपने को
मेहनत के संग रखता हूँ। 
 
मैं निश्चित ही ख़ास बनूँगा
इसका मन विश्वास है
कठनाई कितनी भी आये
पर मन में यह आस है। 

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