कुण्डलिया - डॉ. सुशील कुमार शर्मा - संवेदन
डॉ. सुशील कुमार शर्मामानव जीवन में रहे, संवेदन का भाव।
मानवीय हो चेतना, शुद्ध रहे बर्ताव।
शुद्ध रहे बर्ताव, अवांछित भाव तिरोहित
प्राकृतिक अनुभाव, रहें सद्गुण आयातित।
कहता सत्य सुशील, बनो न मन तुम दानव।
संवेदन मन धार, बनो तुम सच्चे मानव।
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