अमृत काल का आम

15-06-2025

अमृत काल का आम

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 279, जून द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


(एक सामयिक व्यंग्य) 

 

गरमी का मौसम और आम . . . आह! कभी यह सिर्फ़ एक फल होता था। रसीला, मीठा, जिसकी ख़ुश्बू से पूरा घर महक उठता था। लेकिन अब, जब देश ‘विश्वगुरु’ बनने की होड़ में है, आम भला कैसे पीछे रहता? अब आम सिर्फ़ पेट भरने के लिए नहीं, पार्टी लाइन तय करने के लिए, अर्थव्यवस्था की दिशा बताने के लिए, और समाज की नई बुनावट दिखाने के लिए भी उगाया जाता है! 

‘अमृत काल’ का आम अब बाज़ार की बहस बन चुका है

सुबह का समय। दिल्ली के एक ठेठ भारतीय बाज़ार में, दो ठेले वाले, कालू और मोहन, अपने आमों के ढेर लगाए बैठे थे। कालू के आम थोड़े मुरझाए से लग रहे थे, जबकि मोहन के ठेले पर चमकते, सुनहरे आमों का अंबार था। 

कालू ने खीजते हुए, एक मक्खी को आम से उड़ाते हुए पूछा, “ओए मोहन, क्या भाव दे रहा है ‘केसर’ वाला? लगता है इस बार किसानों को फिर रुलाएगा ये आम! मंडी में पिछली बार से ज़्यादा दाम देके आए, अब बिक नहीं रहा।” 

मोहन मुस्कुराते हुए बोला, “अरे कालू भाई! रुलाएगा क्यों? ये अमृत काल का आम है! ये मीठा इतना है कि डायबिटीज़ वाले भी खा लें तो शुगर कंट्रोल में आ जाए! और महँगा क्यों है? क्योंकि ये सिर्फ़ फल नहीं, देश की बढ़ती GDP का प्रतीक है! अब किसानों को सीधा लाभ मिल रहा है, बिचौलियों का खेल ख़त्म! सरकार ने सीधे खातों में पैसा डाला है, भाई!” 

कालू ने अविश्वास से सिर हिलाया। “अच्छा? बिचौलिए ख़त्म? परसों मैं मंडी गया था, वही चार सेठ बैठे थे पिछली बार वाले, और इस बार तो उनकी गाड़ियाँ और बड़ी हो गई हैं। लग रहा है बिचौलिए बस नाम बदलकर ‘नवाचार पार्टनर’ हो गए हैं और अब ऑनलाइन ही कमीशन काटते हैं!”

कल्लू ने गर्व से छाती फुलाई। ”तुम समझते नहीं हो कालू! ये ‘नवाचार’ है! अब किसान सीधा ऐप से बेचते हैं, ‘डिजिटल इंडिया’ है! अरे, पिछले हफ़्ते मैंने देखा, एक मंत्री जी आए थे। उन्होंने एक आम ख़रीदा और मीडिया को बताया, ‘ये आम ‘आत्मनिर्भर भारत’ की पहचान है! ये हमारे किसानों की मेहनत का फल है जो अब विदेशों में धूम मचाएगा!’ टीवी पर देखा नहीं था?” 

“विदेशों में?” कालू ने हँसते हुए कहा।

”हाँ, बस कुछ ही लोग खा पाते हैं इसे। एक आम का दाम उतना है जितने में एक ग़रीब की दो दिन की दाल-रोटी आ जाए। ‘आत्मनिर्भर’ तो वो हुआ जो इस दाम पर इसे ख़रीद पाए! बाक़ी तो बस टीवी पर देखकर ही ख़ुश हो लेते हैं,” उसने अपने मुरझाए आमों को ठीक किया और एक लंबी साँस ली। 

सोशल मीडिया का ‘आम-प्रभाव’ भी बहुत प्रभावी है

शाम के समय शहर के एक पॉश कैफ़े में, दो युवा, राहुल और साहिल, साथ बैठे थे। राहुल ने अभी-अभी अपना मैंगो शेक मँगाया था और तुरंत फ़ोन निकाल कर उसकी तस्वीर लेने लगा। 

राहुल ने फ़ोन को विभिन्न एंगल से घुमाते हुए कहा, “ओएमजी! साहिल, देख, मेरा मैंगो शेक! #MangoLove #SummerVibes #HealthyEating. पर एक मिनट, इसमें थोड़ा सा केसर और डाल देताहूँ ताकि ये #OrganicFarming और #LocalProduce वाला लुक दे। आजकल यही सब चलता है न?” 

साहिल अपने फ़ोन से आँखें हटाए बिना, एक इंस्टाग्राम रील्स देखते हुए राहुल से बोला, “सिर्फ केसर क्यों? कैप्शन में ये भी लिख, ‘ये आम सिर्फ़ स्वाद नहीं, देश की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है, जो हमारे पूर्वजों ने हमें सौंपा है।’ और एक टैग कर दे किसी बड़े सरकारी हैंडल को, ‘आम महोत्सव’ वाले को। पता है, पिछली बार मेरे एक दोस्त ने एक आम की तस्वीर डाली थी जिस पर ‘वोकल फ़ॉर लोकल’ लिखा था, उसकी पोस्ट वायरल हो गई! उसे एक हफ़्ते के लिए फ़्री आम खाने को मिला, और एक बड़ा ब्रांड एंबेसडर बनने का मौक़ा भी!” 

राहुल की आँखें चमक उठीं। “सीरियसली? वाह! तो इस बार, मैं लिखूँगा, ‘इस आम की मिठास में हमारे राष्ट्र के नव निर्माण की ख़ुश्बू है!’ परफ़ेक्ट! अब ये आम सिर्फ़ फल नहीं, मेरे पॉलिटिकल स्टैंड का भी हिस्सा है! इससे मेरे फ़ॉलोअर्स बढ़ेंगे और ब्रांड्स भी अट्रैक्ट होंगे!”

साहिल ने सहमति में सिर हिलाया। “बिल्कुल! अब आम के साथ तुम्हारा ‘पार्टी सिंबल’ और ‘विचारधारा’ भी जुड़ी है। वरना लोग तुम्हें आउटडेटेड समझेंगे। ये आम सिर्फ़ पेट नहीं भरता, अब ये तुम्हारी सोशल मीडिया प्रेजेंस भी बनाता है और तुम्हें ‘सही साइड’ में खड़ा दिखाता है!”

एक भव्य सरकारी बँगले के आलीशान बैठक कक्ष में, मंत्री जी, जिन्हें अब प्यार से ‘मैंगो मैन’ कहा जाने लगा था, कुछ चापलूस अफ़सरों से घिरे बैठे थे। उनके सामने चाँदी की थालियों में अलग-अलग क़िस्म के आमों का ढेर लगा था। हर आम पर एक छोटा सा झंडा लगा था, जिस पर मंत्री जी की पार्टी का लोगो था। 

मंत्री जी एक विशालकाय ‘लँगड़ा’ आम को हाथ में घुमाते हुए बोले, “देखिए, ये है ‘लँगड़ा’। नाम लँगड़ा है, पर ये चलता बहुत तेज़ है! हमारी आर्थिक वृद्धि की तरह! पिछली तिमाही के आँकड़े देखे न? सब इस आम की कृपा है! और ये ‘चौसा’? इसकी मिठास देखिए! ये हमारी जनता का अटूट विश्वास है जो कभी कम नहीं होता!” 

एक युवा अफ़सर अति उत्साहित होकर, मंत्री जी के पैरों के पास झुकते हुए बोला, “जी मंत्री जी! बिलकुल सही फ़रमाया! पिछली बार जब आपने ‘दशहरी’ आम की तारीफ़ की थी, तो बाज़ार में उसकी क़ीमतें आसमान छू गई थीं और हमारा वोट बैंक भी! ये आपकी दूरदर्शिता है, जो आम में भी राष्ट्र देखती है!” 

मंत्री जी गंभीर होकर, लेकिन आँखों में चमक लाकर बोले, “हाँ, दूरदर्शिता! और इसी दूरदर्शिता के तहत हमने तय किया है कि अगले बजट में हम ‘आम अनुसंधान केंद्र’ के लिए एक बड़ा फ़ंड जारी करेंगे। जिससे ऐसी नई क़िस्में विकसित होंगी जो वैश्विक बाज़ार में हमारी धाक जमा सकें! ‘मैंगो डिप्लोमेसी’ चलाएँगे!” 

दूसरा अफ़सर फाइल आगे बढ़ाते हुए बोला, “मंत्री जी से कहा शानदार मंत्री जी! इससे किसानों की आय दोगुनी होगी, और देश विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा! और विपक्ष को बोलने का मौक़ा नहीं मिलेगा कि हमने किसानों के लिए कुछ नहीं किया!” 

मंत्री जी ने चुटकी लेते हुए कहा, “बिलकुल! और याद रखना, अगले हफ़्ते जो हमारी ‘आम जनसभा’ है, उसमें हर एक कार्यकर्ता के पास कम से कम दो आम ज़रूर पहुँचने चाहिएँ। ये आम सिर्फ़ खाने के लिए नहीं, ये हमारे विकास मॉडल का जीवंत प्रमाण हैं! ये दिखाएँगे कि हम सिर्फ़ बातें नहीं करते, हम फलों से भी राष्ट्र का निर्माण करते हैं! और हाँ, हर आम पर मेरी तस्वीर वाला एक स्टीकर ज़रूर लगाना!” 

तो अगली बार जब आप आम खाएँ, तो सिर्फ़ उसकी मिठास का ही नहीं, उस पर लिपटे हुए राजनीतिक बयानों, आर्थिक जुमलों, और सामाजिक दिखावे का भी स्वाद लें। क्योंकि अब आम सिर्फ़ आम नहीं रहा। वह हमारी बदलती हुई दुनिया का, हमारी महत्वाकांक्षाओं का, और हमारे कभी न ख़त्म होने वाले बड़बोलेपन का एक रसीला प्रतीक बन गया है। और हाँ, अगर आपको इस आम में थोड़ी कड़वाहट महसूस हो, तो घबराइए मत। हो सकता है, वो किसी नेता के चुनावी भाषण का असर हो, या फिर सोशल मीडिया पर वायरल हुई कोई फ़र्ज़ी ख़बर! 

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