पत्नी

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 180, मई प्रथम, 2021 में प्रकाशित)

"तुम में एक भी गुण नहीं था मेरे पति बनने के लेकिन हाय रे भाग्य! . . ." पत्नी ने ग़ुस्से में कहा।

"जब तुम मुझे पसंद नहीं करती तो फिर क्यों मेरी इतनी फ़िक्र करती हो?" पति ने ग़ुस्से में पत्नी से कहा।

"मैं तुम्हे भले ही पसंद नहीं करती किन्तु मेरे पापा-मम्मी, भाई, मेरे बच्चे सब तुम्हें पसंद करते हैं। इसलिए मैं तुम्हारी इतनी फ़िक्र करती हूँ क्योंकि मुझे इन सबकी फ़िक्र है," पत्नी ने मुस्कुराते हुए कहा।

"अच्छा मैं आपको कितनी पसंद हूँ?" पत्नी ने प्रश्नवाचक दृष्टि से पति को देखा।

"बिलकुल उतना ही जितना मेरा ये चश्मा मेरी आँखों को पसंद है," पति ने चश्मा निकालते हुए उत्तर दिया।  

"मतलब?" पत्नी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा।

"मतलब ये आँखों को क़ैद किये रहता है लेकिन इसके बग़ैर आँखें रह भी नहीं सकतीं," पति के चेहरे पर मुस्कुराहट थी।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

सामाजिक आलेख
गीत-नवगीत
दोहे
काव्य नाटक
कविता
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में