डर और आत्म विश्वास

01-04-2024

डर और आत्म विश्वास

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 250, अप्रैल प्रथम, 2024 में प्रकाशित)

 

शहर में सर्कस लगा हुआ था। मोहन की सर्कस के मैनेजर से पहचान हो गयी। मोहन ने सोचा चलो आज सर्कस के जानवरों को देखा जाए, मैनेजर ने एक व्यक्ति को बुला कर कहा, “ये हमारे मित्र हैं इन्हें सर्कस के जानवर दिखा दो।” 

वह व्यक्ति मोहन को उस स्थान पर ले गया जहाँ पर शेर थे। वह व्यक्ति अपने साथ में एक जंगली कुत्ता भी ले गया। मोहन ने दूर से देखा कि शेर एक छोटे से मैदान में घूम रहे थे। शेरों को देख कर वह कुत्ता ज़ोर से भौंक कर उनकी ओर दौड़ा। उस कुत्ते की आवाज़ से वो सब शेर डर गए कि सभी भाग कर पिंजड़ों में घुस गए। मोहन को बहुत आश्चर्य हुआ उसने उस व्यक्ति से पूछा, “आप मुझे दो बातें बताइये। एक तो यह सामान्य प्रश्न है कि कुत्ते से शेर क्यों डर गए और दूसरा कुत्ते में इतना आत्मविश्वास कैसे आ गया?” 

वह व्यक्ति मुस्कुरा कर बोला, “ये सभी शेर इस सर्कस में जब लाये गए जब ये बच्चे थे और तभी से ये कुत्तों की निगरानी में रहे। इनसे बड़े कुत्ते इन पर भौकते थे और ये डर कर छुप जाते थे। वो डर इनके मस्तिष्क में आज भी भरा हुआ है। ये कुत्ता बचपन से ये देख रहा है कि ये शेर कुत्तों के भौकने से डर कर भागते हैं। बस यही इसका आत्मविश्वास है।”

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