विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर

15-04-2024

विधि क्यों तुम इतनी हो क्रूर

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 251, अप्रैल द्वितीय, 2024 में प्रकाशित)


(शोक गीत) 
 
जिनको तिल तिल कर था पाला। 
मुँह का जिनको दिया निवाला। 
जिनके मुख को देख देख कर
जीवन में था रोज़ उजाला
 
उन माँ बाप के प्यारों को
क्यों तुमने किया है दूर
विधि तुम क्यों इतनी हो क्रूर। 
 
सुबह सबेरे जो मेरे थे
सुख ख़ुशियों को जो घेरे थे
किलक किलक कर जो हँसते थे
चंद्रमुखी से जो चेहरे थे। 
 
उसी शाम की बेला में सब
रोने को क्यों हैं मजबूर
विधि तुम क्यों इतनी हो क्रूर। 
 
पिता के कांधे सुत की ठठरी। 
कितनी बड़ी ये दुख की गठरी। 
जीवन भर का है यह दुखड़ा
हाय तू क़िस्मत कितनी शठ-री। 
 
ख़ुशियाँ उड़ गईं यूँ जीवन से
विधि तेरा कैसा ये दस्तूर
विधि तुम क्यों इतनी हो क्रूर। 
 
पल छिन दिन गति से ही झूमें। 
कालचक्र के पहिया घूमें। 
कहाँ गया वो प्यारा बेटा
प्यार से जिसका माथा चूमें। 
 
तिनके का कभी मिटा सहारा
क्यों दुखों का आया पूर
विधि तुम क्यों हो इतनी क्रूर। 

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

काव्य नाटक
सामाजिक आलेख
गीत-नवगीत
दोहे
कविता
लघुकथा
कविता - हाइकु
नाटक
कविता-मुक्तक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
चिन्तन
कविता - क्षणिका
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
बाल साहित्य कविता
अनूदित कविता
साहित्यिक आलेख
किशोर साहित्य कविता
कहानी
एकांकी
स्मृति लेख
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
व्यक्ति चित्र
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
ललित निबन्ध
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में