तुम मुक्ति का श्वास हो

15-10-2022

तुम मुक्ति का श्वास हो

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 215, अक्टूबर द्वितीय, 2022 में प्रकाशित)

मैं हूँ मन की व्यथा कथा सी
तुम मुक्ति का श्वास हो। 
 
शब्दरत्न की माला पहने
भाव भटकते सूने मन। 
अनगिन जीवन ओट छिपाते
घूम रहे हैं ऊने तन। 
मंदिर की उस वेदी पर
सूख रहें हैं श्रद्धा फूल। 
उषा की धुँधली अरुणाली
रही भोर मस्तक पर झूल। 
 
मरुथल में मन दीप जलाये
अंतहीन विश्वास हो। 
 
घना कोहरा घूम रहा है
अँधियारी सब रातें हैं। 
अमलतास के नीचे बैठीं
भूली बिसरी बातें हैं। 
मन में दुबका वो हुलास है
न्यौत रहा तुमको आओ। 
मन वीणा के तार छुओ तुम
नेह दान अब दे जाओ। 
 
मृगतृष्णा सा है यह जीवन
तुम तृप्ति की आस हो। 

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