बहुत कुछ सीखना है

01-05-2025

बहुत कुछ सीखना है

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

मैंने दूसरों को राह दिखाई, 
राहों में जलाए ज्ञान के दीपक। 
शब्दों से सींचा सबके मन को, 
सिखलाया जीवन का व्याकरण, 
प्रेम और करुणा के अध्याय। 
 
बताईं सफलता की परिभाषाएँ, 
और जीने की सुंदर कलाएँ। 
 
पर जब मुड़कर मैंने देखा ख़ुद को, 
तो पाया एक गहरा ख़ालीपन। 
दूसरों को तराशता रहा दिन रात, 
और ख़ुद रहा अनगढ़, अधूरा। 
ज्ञान की बातें तो कंठस्थ थीं
पर आचरण में फिसलता रहा। 
दूसरों को देता रहा उपदेश, 
पर ख़ुद सीख के पथ पर रहा अनगढ़। 
शायद अहंकार का था पर्दा, 
दूसरों की कमियों को तो देखा, 
पर कभी न झाँका अपने अंदर। 
अब यह अहसास जगा है मन में, 
कि सीखना तो जीवन का क्रम है। 
दूसरों को सिखाने से पहले, 
ख़ुद को सुधारना सबसे प्रथम है। 
अब मैं विद्यार्थी बनूँगा फिर से, 
सीखूँगा मन के अंदर
प्रेम के बीज बोना। 
सीखूँगा की नफ़रत के बदले
प्रेम कैसे किया जाता
कैसे लोगों की उपेक्षाओं को
सहन कर बड़ा बनाया जाता है
व्यक्तित्व को। 
 
सीखूँगा अपनों के लिया हारना। 
क्योंकि सफलता
हमेशा जीत में नहीं होती। 
सफलता सतत सीखने में है। 
सफलता किसी उदास हृदय
की धरती नम करना है
किसी रोते को हँसाने में है
बुज़ुर्ग उँगली थाम कर
उन्हें मंज़िल तक पहुँचाने में है। 

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