करवाचौथ की चाँदनी में

15-10-2025

करवाचौथ की चाँदनी में

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 286, अक्टूबर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)

 

दिन भर का उपवास, 
ओंठों पर मौन, 
नेत्रों में प्रतीक्षा, 
और हृदय में अनकही प्रार्थना 
वही तो है करवाचौथ का सौंदर्य। 
 
न कोई अलंकार
इतना उज्ज्वल होता, 
जितना उजास उस स्त्री के मुख पर होता है
जो अपने प्रिय के लिए
भूख-प्यास भूल जाती है। 
 
वो जब थाली में दीप सजाती है, 
तो मानो चाँद की आरती उतारती हो, 
वो जब छलनी से देखती है उसे, 
तो लगता है जैसे समय ठहर गया हो। 
 
करवाचौथ कोई एक दिन नहीं, 
यह तो उन असंख्य क्षणों का स्मरण है
जो दो आत्माओं ने साथ जिए हैं
हँसी में, आँसुओं में, 
संघर्ष में, और सपनों में। 
 
वो जो सुबह जल्दी उठती है
मन ही मन कहती है 
उनकी उम्र लंबी हो प्रभु, 
वो स्वस्थ रहें, प्रसन्न रहें। 
और उस क्षण उसका व्रत
केवल पति के लिए नहीं, 
पूरे परिवार, पूरे प्रेम के लिए हो जाता है। 
 
पति भी जानता है 
यह उपवास शरीर का नहीं, 
यह विश्वास का है। 
यह उस नारी का मौन उद्घोष है
कि हमारा रिश्ता देह से नहीं, 
प्राण से जुड़ा है। 
 
कभी सोचता हूँ 
यह पर्व केवल स्त्री का क्यों कहा जाए? 
हर वह पुरुष भी व्रती है, 
जो अपनी पत्नी के सुख के लिए
रात भर अस्पताल में जागा है, 
जिसने अपने अरमानों को रोका है
उसकी मुस्कान के लिए। 
 
करवाचौथ का चाँद
साक्षी है उन सभी प्रेमों का
जो शब्दों से नहीं, 
नज़रों से बोले गए, 
जो समय के पार टिके हैं
विश्वास की लौ बनकर। 
 
जब वह चाँद उगता है
तो जैसे हर आँगन में
आशीर्वाद उतरता है। 
पायल की झंकार में 
भक्ति गूँजती है, 
दीपक की लौ में दुआ झिलमिलाती है। 
 
उस क्षण पति के नेत्रों में
एक विनम्र कृतज्ञता होती है, 
जैसे कह रहे हों 
तुम्हारे बिना अधूरा था मैं, 
अब सम्पूर्ण हूँ। 
 
और स्त्री के नेत्रों में
एक गहराई होती है, 
जैसे कह रही हो 
यह जीवन कठिन सही, 
पर तुम्हारे संग सहज है। 
 
सच्चा प्रेम व्रत नहीं माँगता, 
फिर भी वह व्रत में निखरता है, 
क्योंकि व्रत का अर्थ है
स्वार्थ का विसर्जन, 
और यही तो प्रेम का भी अर्थ है। 
 
चाँदनी जब धरती पर उतरती है, 
दोनों हाथ जोड़कर देखते हैं 
मानो दोनों कह रहे हों 
हे समय, हमें ऐसे ही रखो, 
एक दूजे की आस्था बने रहें। 
 
करवाचौथ की यह रात्रि
सिर्फ़ दाम्पत्य नहीं सजाती, 
यह सिखाती है 
सम्बन्ध प्रेम से पलते हैं, 
त्याग से टिकते हैं, 
और विश्वास से अमर होते हैं। 
 
अगली सुबह जब सूरज उगता है, 
तो वो स्त्री मुस्कुराती है 
जैसे चाँदनी उसके भीतर बस गई हो, 
और वो कहती है
व्रत समाप्त हुआ, 
पर प्रेम का व्रत तो आजीवन है। 
 
करवाचौथ केवल चाँद 
को देखने का पर्व नहीं, 
यह हृदयों के मिलने का पर्व है। 
जहाँ प्रेम, धैर्य, और समर्पण
दोनों के जीवन को उजाला बना देते हैं। 

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