यदि मेरी सुधि तुम ले लेतीं

01-10-2025

यदि मेरी सुधि तुम ले लेतीं

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

अंतर के निनाद से विचलित प्राण, 
मौन अधरों पर सूखी स्मित की रेखा, 
स्मृतियों की पुलकित छायाएँ
क्षणभंगुर ज्योति बन
अंधकार में विलीन हो जातीं। 
 
दृग-कोरों पर ठहरी प्रीत की थरथराहट
जैसे मेघ का नीररहित भार, 
तृषित उर में उमड़ते ज्वार
लहर बनकर भी तट न पाते। 
 
ओ प्रिय! 
यदि मेरी सुधि तुम ले लेतीं 
तो यह शुष्क धरा भी
जलधि का आलिंगन पा लेती, 
और मेरे रुदन का निनाद
अनहद वीणा-स्वर हो जाता। 
 
मेरा क्रन्दन
जैसे व्योम में बिखरा विद्युत-कंकण, 
हर क्षण दहकाता है विरहाग्नि, 
जिसमें मैं स्वयं को
धूल की तरह जलते देखता हूँ। 
 
किन्तु, 
तेरे मिलन की उत्कंठा प्रतिक्षण
मुझे संचित रखती है
जैसे कोई दीपक आँधियों के बीच
तेलहीन होकर भी
जलने की ज़िद करता हो। 
 
यादों की मरुभूमि
जिसे तेरी एक दृष्टि
नीरनिधि में परिणत कर दे; 
वह स्पर्श, वह आह्लाद
जो हर वेदना को अमृत बना दे। 
 
प्रिय, 
यदि मेरी सुधि तुम ले लेतीं 
तो यह समस्त जगत्
मेरा शोक हर लेता, 
और मैं इस विरह की चिता से
फीनिक्स की भाँति
पुनः प्रेम के पंखों पर उड़ जाता। 

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