नीले वस्त्रों में उगता सूरज

15-11-2025

नीले वस्त्रों में उगता सूरज

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 288, नवम्बर द्वितीय, 2025 में प्रकाशित)


(विश्वविजेता बेटियों पर कविता) 

 

जब स्टेडियम की छतों पर
अँधेरा उतरने को था, 
ढलते सूरज की लालिमा
खिल रही थी पसीने और उम्मीद में 
तभी
एक नई सुबह ने आकार लिया, 
भारत की बेटियों के बल्लों से
ध्वनि आई 
हम यहाँ हैं, जीतने के लिए नहीं, इतिहास लिखने के लिए। 
 
वे आईं
लंबी साधनाओं के पथ से, 
जहाँ मैदानों की मिट्टी
अक्सर पुरुषों के जूतों से रौंदी जाती थी, 
पर उन्होंने वही मिट्टी माथे पर लगाई, 
और कहा 
अब यह हमारी रणभूमि है। 
 
DY पटिल के नीले आसमान के नीचे
खिल उठा था एक और आसमान, 
जब कप्तान ने आकाश की ओर देखा, 
मानो कह रही हो 
माँ, यह तुम्हारे आशीर्वाद की उड़ान है। 
 
298 रन, 
संघर्ष की पराकाष्ठा थे, 
हर रन में थी
एक माँ की प्रार्थना, 
एक पिता का गर्व, 
एक कोच की धूप में जली हुई उम्मीद। 
 
साउथ अफ़्रीका की गेंदें
आग बनकर आईं, 
पर भारतीय बल्ले
शैफाली, स्मृति, दीप्ति
बिजली बनकर चमकीं। 
हर चौका था एक उद्घोष 
हम अब किसी से कम नहीं। 
हर छक्का एक प्रतीक 
सीमाएँ अब तोड़ दी गई हैं। 
 
फिर आई गेंदबाज़ी की घड़ी, 
जहाँ पसीना और धैर्य
एक ही मुद्रा बन गए। 
हर ओवर
मानो इतिहास की नई पंक्ति लिख रहा था। 
विकेट गिरीं
तो पूरे देश की धड़कनें गूँज उठीं 
जयकारों में मिली थीं सदी की सिसकियाँ। 
 
बावन रन से
जब जीत का परचम फहराया गया, 
तो सिर्फ़ एक कप नहीं उठा था, 
उठी थी सदियों की आकांक्षा 
कि स्त्री अब सिर्फ़ प्रेरणा नहीं, 
बल्कि परिणाम भी है। 
 
कप्तान की आँखों में
अश्रु नहीं थे, 
वह गर्व का गंगा-जल था, 
जिसमें डूबकर पूरा राष्ट्र
स्वयं को शुद्ध कर रहा था। 
 
कोई कहता 
ये तो खेल है
पर सच यह है
कि यह खेल नहीं, 
कहानी थी उस देश की
जहाँ बेटियों को खिलने के लिए
अभी भी कई बार
अनुमति लेनी पड़ती है। 
 
और आज उन्होंने
अनुमति नहीं माँगी 
जीत कर सिद्ध कर दिया
कि उनका समय आ चुका है। 
 
मंच पर जब राष्ट्रीय ध्वज उठा, 
राष्ट्रगान की ध्वनि
नीले वस्त्रों से टकराई, 
तब लगा 
यह संगीत नहीं, 
एक युग का आगमन है। 
 
भारत की इन बेटियों ने
सिर्फ़ ट्रॉफी नहीं जीती, 
जीता है हर उस दिल को
जो कभी कहता था 
तुम नहीं कर सकती। 
उन्होंने उत्तर दिया 
हम कर सकते हैं, 
और कर चुके हैं। 
 
अब मैदान में नहीं, 
हर घर में गूँजेगी यह कथा 
कि खेल अब किसी का क्षेत्र नहीं, 
यह स्वप्नों का युद्ध है, 
जहाँ हथियार हैं
साहस, अनुशासन और आत्मविश्वास। 
 
आज रात जब चाँद शरद-पूर्णिमा सा
धीरे-धीरे धरती पर उतरेगा, 
तो हर माँ अपनी बेटी से कहेगी 
देखो, 
भारत की बेटियों ने दिखा दिया है
कि आकाश छोटा पड़ जाता है
जब नारी अपने विश्वास पर उतरती है। 
 
विजय की इस चमक में
कोई एक नाम नहीं, 
बल्कि करोड़ों नारी नाम हैं
जो अब नीले वस्त्रों में
सूरज की तरह उग चुके हैं। 

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