आज से विस्मृत किया सब

01-05-2025

आज से विस्मृत किया सब

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 276, मई प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

लो कर दिया सब कुछ विदा अब
यादें तुम्हारी, प्रेम अपना, 
आज से विस्मृत किया सब। 
 
शून्य पथ के मौन तारों में तुम्हीं थे। 
मौज जीवन की बहारों में तुम्हीं थे। 
हृदय में दीप बनकर विराजे
नेह के नूतन नज़ारों में तुम्हीं थे। 
 
बातें तुम्हारी, नेह सपना, 
आज से विस्मृत किया सब। 
 
दूरियाँ इतनी हैं कि अब आहें न पहुँचें। 
अब कभी तुम तक ये राहें न पहुँचें। 
वह हँसी, वह स्पर्श, वह बातें पुरानी। 
अब गले तक वो तुम्हारी बाँहें न पहुँचें। 
 
दर्द तुमने दिया, सहूँ कितना, 
आज से विस्मृत किया सब। 
 
लो विसर्जन आज उस मधुमास का भी। 
साथ में विसर्जन तुम्हारे साथ का भी। 
जो कभी था प्यार से भी मुझे प्यारा
विसर्जन उस सुहाने हाथ का भी
 
खो गया जो था कभी अपना, 
आज से विस्मृत किया सब। 

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