माँ कूष्मांडा – नवरात्र का चतुर्थ स्वरूप

01-10-2025

माँ कूष्मांडा – नवरात्र का चतुर्थ स्वरूप

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 285, अक्टूबर प्रथम, 2025 में प्रकाशित)

 

जब सृष्टि का प्रारंभ हुआ,
जब आकाश शून्य था,
जब दिशाएँ मौन थीं,
तब एक क्षीण मुस्कान से
उदित हुआ सृजन
माँ कूष्मांडा का प्राकट्य।
 
उनकी हँसी से ही
अंधकार में दीप जले,
सूर्य ने अपनी किरणें पाईं,
ग्रह-नक्षत्रों ने गति पाई,
और जीवन ने
अपने पहले स्वर गाए।
 
उनका नाम ही कहता है
कूष्मांड, अर्थात वह ऊर्जा
जो ब्रह्मांड के अंड में
सृष्टि को आकार देती है।
वे केवल एक देवी नहीं,
संपूर्ण ब्रह्मांड की जननी हैं,
जिनके बिना
अस्तित्व संभव ही नहीं।
 
उनकी आकृति
आठ भुजाओं में कमल, चक्र, गदा, धनुष,
तीर और अमृतकलश;
सिंह पर आरूढ़,
सूर्य-मंडल से आच्छादित।
उनकी आभा से
हर दिशा प्रकाशमान है,
मानो सूर्य स्वयं
उनके चरणों का दास हो।
 
आराधना में भक्त
दीपों की शृंखला सजाते हैं,
क्योंकि माँ स्वयं ज्योति हैं।
कुम्हड़े का भोग
उनके समक्ष अर्पित होता है,
जो जीवन की सरलता,
धरती की सादगी
और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है।
 
उनका आध्यात्मिक स्वरूप
हृदय से भी आगे,
अनाहत चक्र से ऊपर
मणिपुर चक्र में वास करता है।
यह वही स्थान है
जहाँ से ऊर्जा का विस्फोट
साधक को शक्ति, ओज और तेज से भर देता है।
ध्यान में माँ कूष्मांडा
साधक को सूर्य-सा प्रकाशित करती हैं,
भीतर के अंधकार को
जला डालती हैं,
और जीवन को
नए अर्थों से आलोकित कर देती हैं।
 
उनकी उपासना से प्राप्त फल है
दीर्घायु,
ऊर्जा,
साहस और स्वास्थ्य।
भक्त के भीतर
रोगों का नाश होता है,
मन का बोझ हल्का होता है,
और जीवन में
सृजनात्मकता का प्रवाह उमड़ पड़ता है।
 
आज के समय में
जब मानव तकनीक से घिरा हुआ है,
पर भीतर से रिक्त,
जब मशीनों की गूंज
हृदय की धड़कन को दबा रही है,
जब पर्यावरण संकट में है
और जीवन असंतुलित,
तब माँ कूष्मांडा का व्रत
और भी प्रासंगिक हो उठता है।
 
यह हमें याद दिलाता है
कि सृजन की शक्ति
भोग-विलास से नहीं,
बल्कि सरलता और संतुलन से आती है।
माँ का कुम्हड़े का प्रसाद
आज भी कहता है
धरती से जुड़े रहो,
प्रकृति की सादगी अपनाओ,
यही ऊर्जा तुम्हें
सच्चा तेज प्रदान करेगी।
 
माँ कूष्मांडा
मानव को यह सीख देती हैं
कि ब्रह्मांड बाहर कहीं नहीं,
बल्कि भीतर भी है।
यदि साधक
अपने हृदय की गहराइयों में झाँके,
तो पाएगा कि
हर मुस्कान में सृजन है,
हर श्वास में ब्रह्मांड है।
 
नवरात्र की चतुर्थी पर
माँ कूष्मांडा की उपासना
सिर्फ एक परंपरा नहीं,
बल्कि जीवन के अंधकार से
प्रकाश की ओर
एक सतत यात्रा है।

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