गोवर्धन

01-11-2022

गोवर्धन

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 216, नवम्बर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

(घनाक्षरी छंद) 
 
जय हो हे गोवर्धन, 
बसो मेरे अंतर्मन
जीवन की नैया प्रभु
पार तो लगाइए। 
 
चरणों में माथ प्रभु
कुमति अनाथ प्रभु
आपकी शरण बसे
नीचे से उठाइए। 
 
देर बहुत हो गयी
राह दिखाओ नयी
टेर-टेर रात हुई
अब तो आ जाइए। 
 
कृपा करो ब्रज-नाथ
चरणों में झुका माथ
कृष्ण मधुर माधवा
गीत झूम गाइए।

0 टिप्पणियाँ

कृपया टिप्पणी दें

लेखक की अन्य कृतियाँ

कविता
सांस्कृतिक आलेख
चिन्तन
लघुकथा
व्यक्ति चित्र
किशोर साहित्य कहानी
कहानी
कविता - क्षणिका
दोहे
सांस्कृतिक कथा
हास्य-व्यंग्य आलेख-कहानी
सामाजिक आलेख
ललित निबन्ध
कविता - हाइकु
साहित्यिक आलेख
कविता-मुक्तक
गीत-नवगीत
स्वास्थ्य
स्मृति लेख
खण्डकाव्य
ऐतिहासिक
बाल साहित्य कविता
नाटक
रेखाचित्र
काम की बात
काव्य नाटक
यात्रा वृत्तांत
हाइबुन
पुस्तक समीक्षा
हास्य-व्यंग्य कविता
गीतिका
अनूदित कविता
किशोर साहित्य कविता
एकांकी
ग़ज़ल
बाल साहित्य लघुकथा
सिनेमा और साहित्य
किशोर साहित्य नाटक
विडियो
ऑडियो

विशेषांक में