ओ पारिजात

01-10-2022

ओ पारिजात

डॉ. सुशील कुमार शर्मा (अंक: 214, अक्टूबर प्रथम, 2022 में प्रकाशित)

कृष्ण से लेकर
कलियुग तक
तुम कितने निशिगंधा हो
शरद की शुभ्र छितवन में
मनमोहक
मादक
मन्मथरूपा
देव तरु
तुम्हारे हरिरूप स्वरूप में
सौभाग्य की श्रीवृद्धि है
तो क्यों न शची और सत्यभामा
तुम पर मोहित हों
तुम्हारी पद्मसारिका सुरभित सुगंध
लगता है कोई अनिद्य सुंदरी
बयार में घुल कर तन मन को
बाँध रही है मोहपाश में
हे मंदार के सार
कश्यप जनित देववृक्ष
नंदनवन के शिरोमणि
दिव्य भेषज
चिर-यौवन धारक
मेरे मन को भी बना दो
अपने जैसा
सुरम्य सप्तवर्णी
मेरे तन को भी महका दो
अपनी स्मृतिगन्धा महक से
कर दो मेरे अस्तित्व को
अपने जैसा पारिजाती
ओ पारिजात
ओ हरसिंगार। 

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